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हमे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के बारे में जानकारी नहीं थी. अतिरिक्त ग्यान के लिए धन्यवाद...जैसा आपने कहा कि मैं फिल्म बहुत देखता हूं , वो एक समय में था । 60 - 70 दशक की फिल्मों का ही शौकिन हूं । अब न तो वैसे एक्टर हैं और न ही गानें । और न ही डायरेक्टर के पास कोई स्टोरी । पुरानी फिल्मों की स्टोरी और गानों पर बस रिमेक बन रहा है । हां , कुछ अपवाद जरूर है ।
मुझे नहीं पता कि वसियत के मामले में आप के साथ क्या हुआ था पर मैं इतना तो जरूर जानता हूं कि वसियत एक मृत व्यक्ति की अंतिम इच्छा होती है ।
आप ने जो कहा वो सब , कोई प्रोपर्टी के खरीद बेच पर लागू होता है । म्यूटेशन , रजिस्ट्री , प्रोपर्टी का टेक्स वगैरह किसी प्रोपर्टी के खरीद बिक्री पर लागू होता है ।
वसियत में इन चीजों की जरूरत नहीं होती । भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा ३ में इसके बारे में विवरण दिया गया है । वसियत करने के लिए स्टाम्प तक की जरूरत नहीं होती । बस , दो गवाह की मौजूदगी अवश्य है ।
एक सौ साल का बंदा कहां से यह सब कर सकता है जो आपने कहा ! उसे यदि लगता है कि अब वो मरने वाला है तो वो किसी वकील और दो गवाह को बुलाकर अपना आखिरी ख्वाहिश एक दस्तावेज के रूप में बनवाता है ।
वसियत भले ही कई बार बनाए वो लेकिन अंतिम बार संशोधित हुआ ही मान्य होता है । और इसके लिए किसी कोर्ट कचहरी की जरूरत नहीं होती है वसियतनामा लिखने वाले के लिए ।
जिस व्यक्ति को वसियत में उतराधिकारी बनाया गया है और वो उस वसियत से संतुष्ट नहीं हैं तो वो कोर्ट कचहरी का दरवाजा खटखटाते हैं ।
और मेरे भाई ! फिल्मों में भी ऐसी सेंसेटिव चीजें गलत नहीं दिखाई जाती । डायरेक्टर और राइटर्स बहुत ज्यादा ज्ञानी होते हैं हम जैसे आम इंसान से ।