Mantermugdh si karti update bhaiअध्याय - 04
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अब तक,,,,
रहस्यमयी आदमी की बात सुन कर मैंने अपनी तरफ बढ़े उसके हाथ को देखा। उसके हाथ में काले रंग के दस्ताने थे और उसकी हथेली पर पारदर्शी पन्नी में लपेटा हुआ मिठाई का एक छोटा सा टुकड़ा था। उस मिठाई के टुकड़े को देख कर मैंने एक बार उस रहस्यमयी आदमी की तरफ देखा और फिर उसकी हथेली से मिठाई का वो टुकड़ा उठा कर अपने मुँह में डाल लिया। मिठाई के उस टुकड़े को मैंने खा कर निगला तो कुछ ही पलों में मुझे मेरा सिर घूमता हुआ सा प्रतीत हुआ और फिर अगले कुछ ही पलों में मुझे चक्कर से आने लगे। मैं बेहोश होने वाला था जिसकी वजह से मेरा शरीर ढीला पड़ गया था और मैं लहरा कर गिरने ही वाला था कि मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मजबूत बाहों ने मुझे सम्हाल लिया हो। उसके बाद मुझे किसी भी चीज़ का होश नहीं रह गया था।
अब आगे,,,,
मैं नहीं जानता था कि मैं कब तक बेहोश रहा था किन्तु जब मुझे होश आया तो मैंने ख़ुद को एक बार फिर से उसी जगह पर पाया जहां इसके पहले भी मैंने किसी अजनबी जगह के किसी आलीशान कमरे में ख़ुद को पाया था। मैंने नज़र घुमा कर चारो तरफ देखा तो पता चला कि ये वही कमरा था और मैं उसी बेड पर पड़ा हुआ था किन्तु इस बार मेरे कपड़े बदले हुए नहीं थे, बल्कि मैं उन्हीं कपड़ों में था जो मैं अपने घर से पहन कर आया था।
मुझे होश आए अभी दो मिनट ही गुज़रे रहे होंगे कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और एक बार फिर से वही सफ़ेदपोश कमरे में दाखिल होता नज़र आया। इस बार मैं उसे देख कर चौंका नहीं था और ना ही इस जगह पर ख़ुद को पा कर हैरान हुआ था, क्योंकि अब मैं समझ चुका था कि ये सब उसी रहस्यमयी आदमी का किया धरा है और शायद यहाँ का ये नियम है कि जब भी किसी बाहर वाले को लाया जाता है तो उसे बेहोश कर दिया जाता है ताकि बाहर वाला आदमी इस जगह के बारे में जान न सके।
"मेरे पीछे आओ।" उस सफेदपोश ने मेरी तरफ देखते हुए हुकुम सा दिया तो मैं बिना कुछ बोले बेड से नीचे उतरा और उसकी तरफ बढ़ चला।
उस सफेदपोश के साथ चलते हुए मैं कुछ ही देर में उसी जगह पर पहुंचा जहां पर मैं पहले भी ले जाया गया था। एक लम्बा चौड़ा हाल और उस हाल के दूसरे छोर पर एक बड़ी सी सिंघासन नुमा कुर्सी, जिस पर वो रहस्यमयी आदमी बैठा हुआ था। हाल में आज भी नीम अँधेरा था जिससे हाल के अंदर कुछ भी ठीक से दिख नहीं रहा था।
"तुम यकीनन सोच रहे होंगे कि तुम्हें इस तरह दो दो बार बेहोश कर के यहाँ क्यों लाया गया है?" हाल में उस रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी_____"इसका जवाब यही है कि हम नहीं चाहते कि इस जगह के बारे में किसी भी बाहरी आदमी को पता चले। ख़ैर, अब जबकि तुम पूरी तरह से इस संस्था से जुड़ने के लिए तैयार हो तो हम तुम्हें बता दें कि अब से तुम पर भी संस्था के सारे नियम कानून लागू होंगे। सबसे पहला कानून तो यही है कि तुम इस संस्था के प्रति पूरी तरह से वफादार रहोगे और अगर कभी ऐसा वक़्त आया कि तुम्हारी वजह से इस संस्था का भेद बाहरी दुनिया को पता चलने वाला है तो तुम अपनी जान दे कर भी इस संस्था के राज़ को राज़ ही बना रहने दोगे। अगर किसी को किसी तरह से तुम्हारे बारे में पता चल जाता है तो तुम उसे उसी वक़्त जान से मार दोगे, ऐसा इस लिए ताकि तुम्हारा राज़ जानने वाला किसी और को तुम्हारे बारे में बता न सके। अगर तुम्हारा राज़ तुम्हारे किसी अपने के सामने खुल जाता है तो तुम उसे भी जान से मारने में रुकोगे नहीं।"
"ये कानून तो बहुत ही शख़्त है।" रहस्यमयी आदमी की बातें सुन कर मैंने हैरानी से कहा था_____"ऐसा भी तो हो सकता है कि अगर कोई हमारा अपना हमारा राज़ जान जाता है तो हम उसे समझा बुझा कर मना लें और उससे ये कह दें कि वो हमारे बारे में किसी को न बताए? राज़ जान जाने की सूरत में किसी अपने को जान से मार देना तो बहुत ही मुश्किल काम है।"
"नियम कानून सबके लिए एक सामान होते हैं।" उस शख़्स ने कहा____"हम उसे भी तो जान से मार देते हैं जो हमारा अपना नहीं होता, जबकि सच तो ये है कि वो भी तो किसी का अपना ही होता है। हम मानते हैं कि किसी अपने को जान से मारना बहुत ही मुश्किल है लेकिन अपने काम के बारे में और संस्था के बारे में राज़ रखने की यही एक शर्त है। इससे बेहतर यही है कि अपना हर काम इतनी सूझ बूझ और होशियारी से करो कि किसी को तुम्हारे और तुम्हारे काम के बारे में भनक भी न लग सके। जब किसी को तुम्हारे बारे में भनक ही नहीं लगेगी तो किसी को जान से मार देने की नौबत ही नहीं आएगी।"
"हां ये भी सही बात है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा तो उस आदमी ने कहा_____"अगर तुम्हें ये सारे नियम कानून मंजूर हैं तो बेशक तुम इस संस्था से जुड़ सकते हो, वरना अभी भी तुम अपनी दुनियां में वापस लौट सकते हो।"
"मुझे सब कुछ मंजूर है।" मैंने झट से कहा_____"अब ये बताइए कि मुझे आगे क्या करना है?"
"इस संस्था का मेंबर बनने के बाद तुम्हें सबसे पहले हर चीज़ की ट्रेनिंग दी जाएगी।" उस रहस्यमयी आदमी ने कहा____"उसके लिए तुम्हें हमारे ट्रेनिंग सेण्टर में ही रहना पड़ेगा।"
"लेकिन मैं अपनी फैमिली से दूर आपके ट्रेनिंग सेण्टर में कैसे रह पाऊंगा?" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"इतना तो मैं भी जानता हूं कि ट्रेनिंग एक दो दिन में तो पूरी नहीं हो जाएगी, यानी उसमें काफी समय भी लग सकता है तो इतने दिनों तक मैं कैसे अपनी फैमिली से दूर रह सकूंगा? मैं अपने माता पिता को क्या बताऊंगा कि मैं इतने समय के लिए कहां जा रहा हूं और ये भी सच ही है कि वो मुझे इतने समय के लिए कहीं जाने भी नहीं देंगे।"
"समस्या वाली बात तो है।" उस शख़्स ने कहा____"लेकिन फ़िक्र मत करो। शुरुआत में जिस चीज़ की ट्रेनिंग तुम्हें दी जाएगी वो मुश्किल से दो चार दिनों की ही होगी। उसके बाद की ट्रेनिंग के लिए कोई न कोई समाधान निकल ही आएगा। अभी तुम वापस अपने घर जाओगे और अपने पैरेंट्स से कहना कि तुम्हें अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाना है। पिकनिक का तुम्हारा टूर कम से कम पांच दिन का होना चाहिए। यानी पांच दिन के लिए तुम्हें अपने घर से दूर रहना है। हमारा ख़याल है कि पिकनिक पर भेजने के लिए तुम्हारे पैरेंट्स तुम्हें मना नहीं करेंगे।"
"सही कहा आपने।" मैंने कहा____"लेकिन दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाने को कहूंगा तो फिर मेरे दोस्त भी मेरे साथ जाएंगे।"
"तुम अपने उन दोस्तों को मत ले जाना।" रहस्यमयी आदमी ने कहा_____"बल्कि अपने पैरेंट्स से कहना कि तुम्हारे कुछ नए दोस्त बने हैं इस लिए वो नए दोस्त ही तुम्हें पिकनिक पर ले जा रहे हैं।"
"ठीक है। मैं ये कर लूंगा।" मैंने खुश होते हुए कहा____"उसके बाद आगे क्या होगा?"
"हमारा एक आदमी तुम्हें तुम्हारे घर से पिक कर लेगा।" रहस्यमयी आदमी ने कहा____"उसके बाद हमारा वो आदमी तुम्हें यहाँ पहुंचा देगा।"
"ठीक है।" मैंने कहा____"मैं आज ही घर जा कर अपने पैरेंट्स से पिकनिक पर जाने की बात कहूंगा। मुझे यकीन है कि मेरे पैरेंट्स इसके लिए मना नहीं करेंगे।"
"बहुत बढ़िया।" उस शख़्स ने कहा_____"जिस दिन तुम्हें पिकनिक पर जाना हो उस दिन की सुबह तुम नीले रंग की शर्ट पहन कर अपने घर के बाहर कुछ देर तक खड़े रहना। इससे वहीं कहीं मौजूद हमारा आदमी समझ जाएगा और फिर वो तुम्हें लेने के लिए सुबह के क़रीब दस बजे पहुंच जाएगा।"
रहसयमयी आदमी की बात सुन कर मैंने हां में अपना सिर हिला दिया। उसके कुछ ही पलों बाद मेरे पीछे से फिर से वो सफेदपोश आया और मुझे बेहोश कर दिया। बेहोश होने के बाद जब मुझे होश आया तो मैं उसी जगह पर था जहां पर इसके पहले मैं रहस्यमयी आदमी के आने का इंतज़ार कर रहा था। ख़ैर उसके बाद मैं अपनी मोटर साइकिल से घर आ गया।
रात में खाना खाते समय मैंने अपने माता पिता से कल पिकनिक पर जाने की बात कही तो मेरे माता पिता ने पहले तो कई सारे सवाल पूछे। जैसे कि मेरे साथ और कौन कौन जा रहा है और पिकनिक के लिए हम कहां जा रहे हैं और साथ ही पिकनिक से कब वापस आएंगे? सारे सवालों के जवाब मैंने अपने माता पिता को दे दिए और उन्हें बताया कि पिकनिक का टूर पांच दिनों का है और छठे दिन हम वापस आ जाएंगे।
मेरे माता पिता जानते थे कि मैं कैसा लड़का हूं, दूसरी बात उन्होंने खुद ही कहा था कि कुछ समय एन्जॉय करो उसके बाद तो मुझे उनके साथ उनका बिज़नेस ही सम्हालना है। ख़ैर मैंने अपने माता पिता को बताया कि मुझे कल ही दोस्तों के साथ यहाँ से पिकनिक के लिए निकलना है। मेरी इस बात पर मेरे माता पिता बोले ठीक है और अपना ख़याल रखना।
खाने के बाद मैं ख़ुशी ख़ुशी अपने कमरे में चला आया था। असल में अब मुझे इस बात की जल्दी थी कि कितना जल्दी मैं उस संस्था से पूरी तरह जुड़ जाऊं और ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मैं उनके हुकुम से वो काम करने जाऊं जो मेरी सबसे बड़ी चाहत का हिस्सा था। यही वजह थी कि घर आते ही मैंने अपने पेरेंट्स से दूसरे दिन ही पिकनिक पर जाने की बात कह कर उनसे इजाज़त ले ली थी। अब तो बस कल सुबह का इंतज़ार था मुझे। अपने कमरे में आ कर मैंने आलमारी खोली और उसमे नीले रंग की शर्ट देखने लगा जो कि किस्मत से मेरे पास थी। नीले रंग की शर्ट को आलमारी से निकाल कर मैंने उसे कमरे की दिवार में लगे हैंगर पर टांगा और फिर बेड पर लेट गया।
बेड पर लेटा मैं ये सोच सोच कर मुस्कुरा रहा था कि बहुत जल्द मेरी लाइफ़ बदलने वाली है और उस बदली हुई लाइफ़ में बहुत जल्द मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होने वाली है। ये सब सोचते हुए मैं बहुत ही ज़्यादा खुश हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि मुझे कारून का कोई खज़ाना मिलने वाला था। मैं अपने मन में ही न जाने कैसे कैसे ख़्वाब सजाने लगा कि संस्था का एजेंट बनने के बाद मैं लड़कियों और औरतों की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाऊंगा और उनके खूबसूरत जिस्मों से जैसे चाहूंगा खेलूंगा। उन औरतों की बड़ी बड़ी चूचियों को अपनी दोनों मुट्ठियों में ले कर ज़ोर ज़ोर से मसलूंगा और फिर चूचियों को अपने मुँह में भर कर ज़ोर ज़ोर से चूसूंगा।
बेड पर लेटे लेटे मैं जाने कैसे कैसे सपने देखने लगा था और फिर जाने कब मेरी आँख लग गई। सुबह उठा तो रात के सारे मंज़र याद आए जिससे मैं जल्दी से उठा और बाथरूम में घुस गया। बाथरूम से नहा धो कर मैंने नीले रंग की शर्ट पहनी और कमरे से बाहर आ गया। बाहर आया तो देखा माँ मेरे कमरे की तरफ ही आ रहीं थी। मुझे देख कर वो रुक गईं और मुस्कुराते हुए बोलीं_____"अरे! बड़ा जल्दी उठ गया तू। चल अच्छा किया और हां मैंने एक बैग में तेरे लिए ज़रूरत का सारा सामान पैक कर दिया है। तू नहा धो कर आ, तब तक मैं तेरे लिए नास्ता बनवा देती हूं।"
मां की बात सुन कर मैंने उन्हें बताया कि मैं नहा चुका हूं और अभी मैं दो मिनट के लिए बाहर खुली हवा लेने जा रहा हूं। मेरी बात सुन कर मां ने मुझे हैरानी से देखा। उनके लिए हैरानी की बात ये थी कि मैं जो हमेशा आठ बजे सो कर उठता था वो आज सुबह सुबह ही उठ गया था और इतना ही नहीं बल्कि नहा धो के फुर्सत भी हो गया था। खैर माँ के जाने के बाद मैं घर से बाहर की तरफ चल पड़ा। अब भला माँ को कैसे पता हो सकता था कि उनके शर्मीले बेटे ने आज इतनी जल्दी में अपने सारे काम क्यों कर लिए थे?
घर से बाहर आ कर मैं लम्बे चौड़े लान में दाहिनी तरफ आ कर खड़ा हो गया। मैं दूर सड़क पर इधर उधर देख रहा था। रहस्यमयी आदमी ने कहा था कि मैं जब अपने घर के बाहर नीले रंग की शर्ट पहन कर खड़ा हो जाऊंगा तो उसका कोई आदमी मुझे देख लेगा और फिर समझ भी जाएगा कि मुझे आज ही पिकनिक पर निकलना है। ख़ैर मैं क़रीब दस मिनट तक लान में खड़ा रहा उसके बाद वापस घर के अंदर आ गया।
नास्ते के समय डायनिंग टेबल पर पिता जी भी बैठे थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरे दोस्त मुझे लेने यहीं आएंगे या मुझे उनके पास जाना होगा? पापा के पूछने पर मैंने उन्हें बताया कि दस बजे मेरा एक दोस्त मुझे यहाँ लेने आएगा। ख़ैर नास्ते के बाद पापा ने अपना एक ब्रीफ़केस लिया और कार की चाभी ले कर अपने ऑफिस के लिए चले गए। पापा रोज़ाना ही सुबह नौ बजे ऑफिस चले थे जबकि माँ सुबह ग्यारह बजे घर से ऑफिस के लिए निकलतीं थी।
अपने कमरे में मैं एकदम से तैयार बैठा था और दस बजने का इंतज़ार कर रहा था। मेरे पास वो बैग भी था जिसे माँ ने मेरे लिए पैक किया था। एक एक पल मेरे लिए जैसे सदियों का लग रहा था। आख़िर किसी तरह दस बजे तो मैं बैग ले कर कमरे से बाहर निकल आया। अभी ड्राइंग रूम में ही आया था कि डोर बेल बजी। मैं समझ गया कि रहस्यमयी आदमी का कोई आदमी मुझे लेने के लिए आ गया है। मैंने तेज़ी से बढ़ कर बाहर वाले दरवाज़े को खोला तो देखा बाहर एक आदमी खड़ा था। वो आदमी मेरे लिए बिलकुल ही अजनबी था। मैंने आज से पहले उसे कभी नहीं देखा था।
"तैयार हो न?" मेरे कुछ बोलने से पहले ही उसने मुझे देखते हुए मुझसे धीमें स्वर में पूछा तो मैं समझ गया कि ये वही आदमी है इस लिए मैंने फ़ौरन ही हां में सिर हिला दिया। तभी मेरे पीछे से माँ की आवाज़ आई तो मैं एकदम से चौंक गया और ये सोच कर थोड़ा घबरा भी गया कि अगर माँ ने इस आदमी को देख कर मुझसे पूछ लिया कि ये कौन है तो मैं क्या जवाब दूंगा उन्हें? हालांकि जवाब तो मेरे पास तैयार ही था किन्तु माँ मेरे सभी दोस्तों को जानती थी इस लिए वो न जाने क्या क्या पूछने लगतीं, और मैं यही नहीं चाहता था।
"अरे! बेटा तूने अपने दोस्त को बाहर क्यों खड़ा कर रखा है?" माँ की आवाज़ से मैंने पलट कर उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने आगे कहा_____"उसे अंदर ले आ और उससे पूछ ले कि अगर उसने नास्ता न किया हो तो अंदर आ कर पहले नास्ता करे उसके बाद ही यहाँ से तुझे ले कर जाए।"
"आंटी हम अभी लेट हो रहे हैं।" मेरे कुछ बोलने से पहले ही उस आदमी ने दरवाज़े के बाहर से ही कहा_____"इस लिए नास्ता करने का समय नहीं है। हम बाहर ही कहीं पर कर लेंगे नास्ता।"
उस आदमी की बात सुन कर माँ ने एक दो बार और कहा लेकिन हमें तो रुकना ही नहीं था इस लिए जल्दी ही मैं उस आदमी के साथ बाहर निकल गया। सड़क पर आ कर मैं उसकी कार में बैठा तो उसने कार को तेज़ी से आगे बढ़ा दिया। इस वक़्त मेरे दिल की धड़कनें तेज़ी से चल रहीं थी। मैं सोच रहा था कि ये आदमी मुझे आख़िर किस जगह पर ले कर जाएगा? क्या ये आदमी भी उसी संस्था का कोई सदस्य है?
सारे रास्ते हमारे बीच ख़ामोशी ही रही, ना मैंने उससे कोई सवाल किया और ना ही उसने कुछ कहा। क़रीब बीस मिनट बाद उसने एक ऐसी जगह पर कार को रोका जहां आस पास कोई नहीं था। कार के रुकते ही उसने मुझसे कार से अपना बैग ले कर उतर जाने को कहा तो मैं एकदम से चौंक सा गया। मैंने कार की खिड़की से सिर निकाल कर चारो तरफ देखा। कोई नहीं था आस पास। ऐसी जगह पर मुझे क्यों उतर जाने को बोल रहा था ये आदमी? मुझे उलझन में पड़ा देख उस आदमी ने फिर से मुझे उतर जाने को कहा तो इस बार मैं बिना कुछ बोले कार से उतर गया और अपना बैग भी निकाल लिया। मैंने जैसे ही अपना बैग निकाला वैसे ही उस आदमी ने कार को यू टर्न दिया और किसी तूफ़ान की तरह वापस उसी तरफ लौट गया जिस तरफ से वो मुझे ले कर आया था। उसके जाने के बाद मैं मूर्खों की तरह सड़क के किनारे खड़ा रह गया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो आदमी मुझे ऐसे सुनसान जगह पर अकेला छोड़ के क्यों चला गया था? अब यहाँ से भला मैं किस तरफ जाऊंगा। सच कहूं तो उस वक़्त मैं अपने आपको दुनियां का सबसे बड़ा बेवकूफ ही समझ बैठा था।
मेरे पास उस जगह पर खड़े रहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था इस लिए मैं क़रीब आधे घंटे तक खड़ा रहा। आधे घंटे बाद मुझे सड़क पर एक काले रंग की कार आती हुई दिखाई दी। मैं समझ गया कि इस कार में ज़रूर वो रहस्यमयी आदमी होगा। ख़ैर कुछ ही देर में वो कार मेरे पास आ कर रुकी। कार के रुकते ही कार का पिछला दरवाज़ा खुला। अंदर एक सफेदपोश आदमी बैठा नज़र आया मुझे। उसने मुझे अंदर आने का इशारा किया तो मैं अपना बैग ले कर चुप चाप कार के अंदर जा कर बैठ गया। मेरे बैठते ही कार का दरवाज़ा बंद हुआ और कार एक झटके से आगे बढ़ चली। कार में मेरे अलावा वो सफेदपोश और एक ड्राइवर था जिसके जिस्म पर काले कपड़े थे और सिर पर बड़ी सी गोलाकार टोपी जिसका अग्रिम सिरा उसके ललाट पर झुका हुआ था। आँखों में काला चश्मा था और हाथों में दस्ताने। चेहरे पर नक़ाब नहीं था। हालांकि पीछे से मुझे उसका चेहरा दिख भी नहीं रहा था किन्तु कार के अंदर लगे बैक मिरर में उसका अक्श दिख रहा था जिसमें उसकी गोलाकार टोपी और आँखों पर लगा काला चश्मा ही दिख रहा था। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरे बगल से बैठे सफ़ेदपोश ने मेरी आँखों पर काली पट्टी बाँध दी जिससे मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
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"साहब जी।" विक्रम सिंह की डायरी पढ़ रहे शिवकांत वागले के कानों में अपनी जेल के एक सिपाही की आवाज़ पड़ी तो उसने चौंक कर उसकी तरफ देखा, जबकि सिपाही ने आगे कहा____"कोई आपसे मिलने आया है।"
"क..कौन मिलने आया है हमसे?" वागले ने न समझने वाले भाव से पूछा। इस बीच उसने विक्रम सिंह की डायरी को बंद कर के टेबल में ही एक तरफ रख दिया था।
"कोई शूट बूट पहना हुआ आदमी है साहब जी।" सिपाही ने कहा_____"मुझसे बोला कि जेलर साहब से मिलना है। इस लिए मैं आपके पास ये बताने चला आया।"
"ठीक है भेज दो उन्हें।" कहने के साथ ही वागले ने डायरी को टेबल से उठाया और उसे अपने ब्रीफ़केस में रख दिया।
इधर वागले के कहने पर सिपाही वापस चला गया था। कुछ देर बाद ही एक आदमी केबिन में दाखिल हुआ। वागले ने उस आदमी को गौर से देखा। आगंतुक आदमी के जिस्म पर शूटेड बूटेड कपड़े थे। दमकता हुआ चेहरा बता रहा था कि वो कोई मामूली आदमी नहीं था। ख़ैर वागले ने उसे अपने सामने टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया तो वो मुस्कुरा कर शुक्रिया कहते हुए बैठ गया।
"जी कहिए।" उस आदमी के बैठते ही वागले ने नम्र भाव से कहा____"ऐसी जगह पर आने का कैसे कष्ट किया आपने?"
"सुना है कि पिछले दिन आपकी इस जेल से एक क़ैदी रिहा हो कर गया है।" उस आदमी ने ख़ास भाव से वागले की तरफ देखते हुए कहा_____"मैं उसी क़ैदी के बारे में आपसे जानने आया हूं। उम्मीद है कि आप मुझे उसके बारे में बेहतर जानकारी देंगे।"
"देखिए महाशय।" वागले ने कहा____"यहां से तो कोई न कोई अपनी सज़ा काटने के बाद रिहा हो कर जाता ही रहता है। अब हमें क्या पता कि आप किसके बारे में पूछ रहे हैं? हां अगर आप हमें रिहा हो कर जाने वाले उस क़ैदी का नाम और उसका जुर्म बताएं तो शायद हमें उसके बारे में आपको बताने में आसानी हो।"
"उसका नाम विक्रम सिंह है जेलर साहब।" उस आदमी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा_____"और पिछले दिन ही वो यहां से रिहा हो कर गया है। मैं आपसे ये जानना चाहता हूं कि यहाँ से निकलने के बाद वो कहां गया है?"
"बड़ी हैरत की बात है महाशय।" वागले उस आदमी के मुख से विक्रम सिंह का नाम सुन कर पहले तो मन ही मन चौंका था फिर सामान्य भाव से बोला_____"जिस आदमी की आप बात कर रहे हैं उससे इन बीस सालो में कभी कोई मिलने नहीं आया और ना ही उसके बारे में कोई कुछ पूछने आया। अब जबकि वो यहाँ से रिहा हो कर जा चुका है तो अचानक से उसके जान पहचान वाले कहां से आ गए? वैसे आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि यहाँ से जो भी क़ैदी रिहा हो कर जाता है उसके बारे में हम ये रिकॉर्ड नहीं रखते कि वो यहाँ से कहां जाएगा और किस तरह का काम करेगा?"
"ओह! माफ़ कीजिएगा।" उस आदमी ने अजीब भाव से कहा____"मुझे लगा यहाँ हर उस क़ैदी का एक ऐसा रिकॉर्ड भी रखा जाता होगा जिससे ये पता चल सके कि फला क़ैदी जेल से रिहा हो कर कहां गया है और वर्तमान में किस तरह का काम कर रहा है। असल में बात ये है कि मैं कुछ दिन पहले ही विदेश से भारत आया हूं इस लिए मुझे विक्रम सिंह के बारे में ज़्यादा पता नहीं है। हालांकि एक समय वो मेरा दोस्त हुआ करता था किन्तु फिर हालात ऐसे बदले कि मेरा उससे हर तरह का राब्ता टूट गया। अभी कुछ दिन पहले ही मुझे कहीं से पता चला है कि मेरे दोस्त को उम्र क़ैद की सजा तो हुई थी किन्तु उसके अच्छे बर्ताव की वजह से अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर के रिहा कर दिया है। ये सब सुन कर मैं सीधा यहीं चला आया।"
"अगर विक्रम सिंह सच में आपका दोस्त है।" वागले ने एक सिगरेट सुलगाने के बाद कहा____"तो आपको ये भी पता होगा कि उसे किस जुर्म में उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी?"
"जी बिलकुल पता है जेलर साहब।" उस आदमी ने कहा_____"उसने अपने माता पिता की बेरहमी से हत्या की थी और पुलिस ने उसे घटना स्थल से रंगे हाथों पकड़ा था। मामला अदालत में पहुंचा था और जज साहब ने उसे उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी थी।"
"जब आपके दोस्त ने ऐसा संगीन अपराध किया था।" वागले ने सिगरेट के धुएं को हवा में उड़ाते हुए कहा_____"तब उस समय आप कहां थे?"
"मैं उस समय अपने पैरेंट्स के साथ विदेश में था।" उस आदमी ने कहा_____"असल में मेरे पैरेंट्स यहाँ का अपना सब कुछ बेंच कर विदेश में रहने का फ़ैसला कर लिया था और जब विदेश में सारी ब्यवस्था हो गई थी तो हम सब वहीं चले गए थे। जब विक्रम का मामला हुआ था तब मुझे अपने एक दूसरे दोस्त से इस बारे में पता चला था। मैं हैरान था कि विक्रम जैसा लड़का इतना संगीन अपराध कैसे कर सकता है? मैंने अपने पैरेंट्स से कहा था कि मुझे अपने दोस्त से मिलने इंडिया जाना है लेकिन मेरे पैरेंट्स ने मुझे यहाँ आने ही नहीं दिया। उसके बाद वक़्त और हालात ऐसे बने कि इंडिया आने का कभी मौका ही नहीं मिल पाया। इतने सालों बाद मौका मिला तो मैं सिर्फ अपने दोस्त से मिलने के लिए ही इंडिया आया हूं।"
"इसका मतलब।" वागले ने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"आपको ये भी पता नहीं होगा कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से अपने ही माता पिता की हत्या की थी?"
"क्या मतलब है आपका?" उस आदमी ने चौंकते हुए कहा_____"क्या आप ये कह रहे हैं कि पुलिस या अदालत को भी नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों किया था, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?"
"यही सच है महाशय।" वागले ने ऐशट्रे में बची हुई सिगरेट को बुझाते हुए कहा____"पुलिस की थर्ड डिग्री झेलने के बाद भी उस शख़्स ने ये नहीं बताया था कि उसने अपने माता पिता की हत्या क्यों की थी और इतना ही नहीं बल्कि इन बीस सालों में भी उसने कभी किसी से इस बारे में कुछ नहीं बताया। अब तो वो रिहा हो कर यहाँ से जा चुका है इस लिए ज़ाहिर है कि आगे भी कभी किसी को इस बारे में कुछ पता नहीं चलने वाला।"
"हैरत की बात है।" उस आदमी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"वैसे यहाँ से जाते समय आपने उससे पूछा तो होगा कि यहाँ से जाने के बाद वो अपने बाकी जीवन में क्या करेगा?"
"पूछने का कोई फायदा ही नहीं था।" वागले ने लापरवाही से कहा____"इस लिए हमने पूछा ही नहीं उससे।"
"क्या मतलब??" वो आदमी हल्के से चौंका।
"मतलब ये कि उससे कुछ भी पूछने का कोई फ़ायदा ही नहीं होता।" वागले ने कहा____"पिछले पांच सालों से हम इस जेल के जेलर पद पर कार्यरत हैं और इन पांच सालों में हमने न जाने कितनी ही बार उससे बहुत कुछ पूछने की कोशिश की है लेकिन उसने कभी भी हमारे किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। वो अपने होठों को जैसे सुई धागे से सिल लेता था। हमने अपने जीवन में उसके जैसा अजीब इंसान नहीं देखा।"
"चलिए कोई बात नहीं जेलर साहब।" उस आदमी ने गहरी सांस ले कर कहा____"अब मुझे ही अपने दोस्त का पता करना पड़ेगा। ख़ैर बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतना कुछ बताने के लिए। अच्छा अब चलता हूं, नमस्कार।"
कहने के साथ ही वो आदमी कुर्सी से उठ गया तो वागले भी कुर्सी से उठ गया। उस आदमी के जाने के बाद शिवकांत वागले सोचने लगा कि इतने सालों बाद विक्रम सिंह का कोई दोस्त कहां से आ गया? पुलिस के अनुसार उसके सभी दोस्तों से पूछताछ हुई थी किन्तु किसी भी दोस्त को ये नहीं पता था कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से अपने माता-पिता की हत्या की थी? इन बीस सालों में विक्रम सिंह का कोई भी दोस्त उससे मिलने नहीं आया था। इसकी वजह शायद ये हो सकती थी कि उसका कोई भी दोस्त अब उससे कोई वास्ता नहीं रखना चाहता था। ख़ैर कुछ देर इस बारे में सोचने के बाद वागले अपने केबिन से बाहर निकल गया।
शाम तक शिवकांत वागले किसी न किसी काम में व्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया। घर में कुछ देर वो टीवी देखता रहा और फिर रात का भोजन करने के बाद अपने कमरे में चला गया। उसका इरादा था कि रात में वो विक्रम सिंह की डायरी में उसकी आगे की दास्तान पड़ेगा किन्तु सावित्री अभी बर्तन धो रही थी। वो सावित्री के सो जाने के बाद ही आगे की कहानी पढ़ना चाहता था। ख़ैर, उसने सावित्री के सो जाने का इंतज़ार किया। जब सावित्री अपने सारे काम निपटाने के बाद कमरे में आ कर बेड पर सो गई तो वागले बेड से उतरा और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर वापस बेड पर आ गया। अपनी पत्नी सावित्री की तरफ एक बार उसने ध्यान से देखा और फिर डायरी खोल कर आगे का किस्सा पढ़ना शुरू कर दिया।
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चौथा भाग
बहुत ही बेहतरीन
जब हम कोई नया चीज़ करने जा रहे होते हैं तो एक नई उमंग और उस चीज के प्रति लगाव बहुत ज्यादा हो जाता है, बिना यह सोचे कि भविष्य में उस उत्सुकता का भयंकर परिणाम भी सामने आ सकता है। विक्रम को चूत मार संस्था की सारी नियम और शर्ते स्वीकार थी इसलिए वो बहुत उत्सुक था संस्था का सदस्य बनने के लिए। उत्सुकता का मुख्य कारण था औरतों के जिस्म के प्रति अस्का आकर्षण।
विक्रम का कोई दोस्त जो लंदन में रहता था वो 20 साल बाद विक्रम को ढूंढते हुए वागले के पास आया। वागले का आश्चर्य हुआ स्वभाविक था। जिस इंसान का कोई सगा संबंधी और दोस्त विक्रम के जेल में रहते मिलने न आया हो। अचानक उसके रिहा होते ही उसका दोस्त बताकर कोई मिलने आया। हो सकता है ये चूत मार संस्था का ही कोई सदस्य हो जो अभी भी नहीं चाहता कि उसकी संस्था के बारे में किसी को पता चले।।
Shukriya bhai,,,,Badhiya update Bhai
Shukriya bade bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,वागले साहब विक्रम की डायरी पढ़ते हुए ख्यालों में खो गए । उन्हें लगता ही नहीं कि ऐसा भी होता है । ये दुनिया विचित्रताओं और अजूबाओं से भरा हुआ है । जो हम सोच भी नहीं सकते वो भी होता है ।
अपनी पत्नी पर बरसों बाद प्यार आया । सेक्स करने की इच्छा पनपी । उन्हें लगा था उम्र होने के बाद औरतों में सेक्स करने की इच्छा कम हो जाती है । यह तो निर्भर करता है कि औरतों की सेक्सुअल निड्स कैसी है ! उसे सेक्स करना पसंद है भी या नहीं । वैसे कहा गया है उम्र के चालीस पार बाद औरतों की सेक्सुअल निड्स बढ़ जाती है ।
विक्रम ने आखिरकार वह कम्पनी ज्वाइन कर लिया । और यह उसने किसी दबाव में नहीं किया बल्कि अपनी इच्छा से किया । भिन्न भिन्न तरह की औरतों के साथ सेक्सुअल सम्बन्ध बनाने की फैंटेसी से किया ।
देखते हैं उसकी यह जर्नी कैसी होती है ! जिगोलो की जिंदगी उसके आम लाइफ में क्या असर डालती है !
और यह भी पता करना है कि इस कम्पनी का कर्ता धर्ता कौन है ! कौन है जो विक्रम को इस काम के लिए एप्रोच किया !
एक व्यक्ति विदेश से आता है और विक्रम का मौजूदा पता जानना चाहता है । वो खुद को विक्रम का दोस्त कहता है । इसके बारे में अगले कुछ अपडेट्स में ही शायद कुछ जानकारी मिले कि ये है कौन और अचानक से विक्रम के रिहा होने के बाद ही क्यों आया ?
अभी तक कहानी बहुत ही बढ़िया जा रही है । विक्रम की लाइफ एक मासूमियत और अल्हड़पन से बदलकर जिगोलो और खूनी बनने तक कैसे जा पहुंची , जानने की इच्छा बढ़ा रही है ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट शुभम भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।
Shukriya bhai,,,,Rasprad aur Romanchak. Pratiksha agle update kI
Shukriya bhai,,,,Nice update
Shukriya bhai,,,,Mantermugdh si karti update bhai