• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery C. M. S. [Choot Maar Service] ( Completed )

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
अध्याय - 04
__________________




अब तक,,,,

रहस्यमयी आदमी की बात सुन कर मैंने अपनी तरफ बढ़े उसके हाथ को देखा। उसके हाथ में काले रंग के दस्ताने थे और उसकी हथेली पर पारदर्शी पन्नी में लपेटा हुआ मिठाई का एक छोटा सा टुकड़ा था। उस मिठाई के टुकड़े को देख कर मैंने एक बार उस रहस्यमयी आदमी की तरफ देखा और फिर उसकी हथेली से मिठाई का वो टुकड़ा उठा कर अपने मुँह में डाल लिया। मिठाई के उस टुकड़े को मैंने खा कर निगला तो कुछ ही पलों में मुझे मेरा सिर घूमता हुआ सा प्रतीत हुआ और फिर अगले कुछ ही पलों में मुझे चक्कर से आने लगे। मैं बेहोश होने वाला था जिसकी वजह से मेरा शरीर ढीला पड़ गया था और मैं लहरा कर गिरने ही वाला था कि मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मजबूत बाहों ने मुझे सम्हाल लिया हो। उसके बाद मुझे किसी भी चीज़ का होश नहीं रह गया था।

अब आगे,,,,



मैं नहीं जानता था कि मैं कब तक बेहोश रहा था किन्तु जब मुझे होश आया तो मैंने ख़ुद को एक बार फिर से उसी जगह पर पाया जहां इसके पहले भी मैंने किसी अजनबी जगह के किसी आलीशान कमरे में ख़ुद को पाया था। मैंने नज़र घुमा कर चारो तरफ देखा तो पता चला कि ये वही कमरा था और मैं उसी बेड पर पड़ा हुआ था किन्तु इस बार मेरे कपड़े बदले हुए नहीं थे, बल्कि मैं उन्हीं कपड़ों में था जो मैं अपने घर से पहन कर आया था।

मुझे होश आए अभी दो मिनट ही गुज़रे रहे होंगे कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और एक बार फिर से वही सफ़ेदपोश कमरे में दाखिल होता नज़र आया। इस बार मैं उसे देख कर चौंका नहीं था और ना ही इस जगह पर ख़ुद को पा कर हैरान हुआ था, क्योंकि अब मैं समझ चुका था कि ये सब उसी रहस्यमयी आदमी का किया धरा है और शायद यहाँ का ये नियम है कि जब भी किसी बाहर वाले को लाया जाता है तो उसे बेहोश कर दिया जाता है ताकि बाहर वाला आदमी इस जगह के बारे में जान न सके।

"मेरे पीछे आओ।" उस सफेदपोश ने मेरी तरफ देखते हुए हुकुम सा दिया तो मैं बिना कुछ बोले बेड से नीचे उतरा और उसकी तरफ बढ़ चला।

उस सफेदपोश के साथ चलते हुए मैं कुछ ही देर में उसी जगह पर पहुंचा जहां पर मैं पहले भी ले जाया गया था। एक लम्बा चौड़ा हाल और उस हाल के दूसरे छोर पर एक बड़ी सी सिंघासन नुमा कुर्सी, जिस पर वो रहस्यमयी आदमी बैठा हुआ था। हाल में आज भी नीम अँधेरा था जिससे हाल के अंदर कुछ भी ठीक से दिख नहीं रहा था।

"तुम यकीनन सोच रहे होंगे कि तुम्हें इस तरह दो दो बार बेहोश कर के यहाँ क्यों लाया गया है?" हाल में उस रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी_____"इसका जवाब यही है कि हम नहीं चाहते कि इस जगह के बारे में किसी भी बाहरी आदमी को पता चले। ख़ैर, अब जबकि तुम पूरी तरह से इस संस्था से जुड़ने के लिए तैयार हो तो हम तुम्हें बता दें कि अब से तुम पर भी संस्था के सारे नियम कानून लागू होंगे। सबसे पहला कानून तो यही है कि तुम इस संस्था के प्रति पूरी तरह से वफादार रहोगे और अगर कभी ऐसा वक़्त आया कि तुम्हारी वजह से इस संस्था का भेद बाहरी दुनिया को पता चलने वाला है तो तुम अपनी जान दे कर भी इस संस्था के राज़ को राज़ ही बना रहने दोगे। अगर किसी को किसी तरह से तुम्हारे बारे में पता चल जाता है तो तुम उसे उसी वक़्त जान से मार दोगे, ऐसा इस लिए ताकि तुम्हारा राज़ जानने वाला किसी और को तुम्हारे बारे में बता न सके। अगर तुम्हारा राज़ तुम्हारे किसी अपने के सामने खुल जाता है तो तुम उसे भी जान से मारने में रुकोगे नहीं।"

"ये कानून तो बहुत ही शख़्त है।" रहस्यमयी आदमी की बातें सुन कर मैंने हैरानी से कहा था_____"ऐसा भी तो हो सकता है कि अगर कोई हमारा अपना हमारा राज़ जान जाता है तो हम उसे समझा बुझा कर मना लें और उससे ये कह दें कि वो हमारे बारे में किसी को न बताए? राज़ जान जाने की सूरत में किसी अपने को जान से मार देना तो बहुत ही मुश्किल काम है।"

"नियम कानून सबके लिए एक सामान होते हैं।" उस शख़्स ने कहा____"हम उसे भी तो जान से मार देते हैं जो हमारा अपना नहीं होता, जबकि सच तो ये है कि वो भी तो किसी का अपना ही होता है। हम मानते हैं कि किसी अपने को जान से मारना बहुत ही मुश्किल है लेकिन अपने काम के बारे में और संस्था के बारे में राज़ रखने की यही एक शर्त है। इससे बेहतर यही है कि अपना हर काम इतनी सूझ बूझ और होशियारी से करो कि किसी को तुम्हारे और तुम्हारे काम के बारे में भनक भी न लग सके। जब किसी को तुम्हारे बारे में भनक ही नहीं लगेगी तो किसी को जान से मार देने की नौबत ही नहीं आएगी।"

"हां ये भी सही बात है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा तो उस आदमी ने कहा_____"अगर तुम्हें ये सारे नियम कानून मंजूर हैं तो बेशक तुम इस संस्था से जुड़ सकते हो, वरना अभी भी तुम अपनी दुनियां में वापस लौट सकते हो।"

"मुझे सब कुछ मंजूर है।" मैंने झट से कहा_____"अब ये बताइए कि मुझे आगे क्या करना है?"
"इस संस्था का मेंबर बनने के बाद तुम्हें सबसे पहले हर चीज़ की ट्रेनिंग दी जाएगी।" उस रहस्यमयी आदमी ने कहा____"उसके लिए तुम्हें हमारे ट्रेनिंग सेण्टर में ही रहना पड़ेगा।"

"लेकिन मैं अपनी फैमिली से दूर आपके ट्रेनिंग सेण्टर में कैसे रह पाऊंगा?" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"इतना तो मैं भी जानता हूं कि ट्रेनिंग एक दो दिन में तो पूरी नहीं हो जाएगी, यानी उसमें काफी समय भी लग सकता है तो इतने दिनों तक मैं कैसे अपनी फैमिली से दूर रह सकूंगा? मैं अपने माता पिता को क्या बताऊंगा कि मैं इतने समय के लिए कहां जा रहा हूं और ये भी सच ही है कि वो मुझे इतने समय के लिए कहीं जाने भी नहीं देंगे।"

"समस्या वाली बात तो है।" उस शख़्स ने कहा____"लेकिन फ़िक्र मत करो। शुरुआत में जिस चीज़ की ट्रेनिंग तुम्हें दी जाएगी वो मुश्किल से दो चार दिनों की ही होगी। उसके बाद की ट्रेनिंग के लिए कोई न कोई समाधान निकल ही आएगा। अभी तुम वापस अपने घर जाओगे और अपने पैरेंट्स से कहना कि तुम्हें अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाना है। पिकनिक का तुम्हारा टूर कम से कम पांच दिन का होना चाहिए। यानी पांच दिन के लिए तुम्हें अपने घर से दूर रहना है। हमारा ख़याल है कि पिकनिक पर भेजने के लिए तुम्हारे पैरेंट्स तुम्हें मना नहीं करेंगे।"

"सही कहा आपने।" मैंने कहा____"लेकिन दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाने को कहूंगा तो फिर मेरे दोस्त भी मेरे साथ जाएंगे।"
"तुम अपने उन दोस्तों को मत ले जाना।" रहस्यमयी आदमी ने कहा_____"बल्कि अपने पैरेंट्स से कहना कि तुम्हारे कुछ नए दोस्त बने हैं इस लिए वो नए दोस्त ही तुम्हें पिकनिक पर ले जा रहे हैं।"

"ठीक है। मैं ये कर लूंगा।" मैंने खुश होते हुए कहा____"उसके बाद आगे क्या होगा?"
"हमारा एक आदमी तुम्हें तुम्हारे घर से पिक कर लेगा।" रहस्यमयी आदमी ने कहा____"उसके बाद हमारा वो आदमी तुम्हें यहाँ पहुंचा देगा।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"मैं आज ही घर जा कर अपने पैरेंट्स से पिकनिक पर जाने की बात कहूंगा। मुझे यकीन है कि मेरे पैरेंट्स इसके लिए मना नहीं करेंगे।"
"बहुत बढ़िया।" उस शख़्स ने कहा_____"जिस दिन तुम्हें पिकनिक पर जाना हो उस दिन की सुबह तुम नीले रंग की शर्ट पहन कर अपने घर के बाहर कुछ देर तक खड़े रहना। इससे वहीं कहीं मौजूद हमारा आदमी समझ जाएगा और फिर वो तुम्हें लेने के लिए सुबह के क़रीब दस बजे पहुंच जाएगा।"

रहसयमयी आदमी की बात सुन कर मैंने हां में अपना सिर हिला दिया। उसके कुछ ही पलों बाद मेरे पीछे से फिर से वो सफेदपोश आया और मुझे बेहोश कर दिया। बेहोश होने के बाद जब मुझे होश आया तो मैं उसी जगह पर था जहां पर इसके पहले मैं रहस्यमयी आदमी के आने का इंतज़ार कर रहा था। ख़ैर उसके बाद मैं अपनी मोटर साइकिल से घर आ गया।

रात में खाना खाते समय मैंने अपने माता पिता से कल पिकनिक पर जाने की बात कही तो मेरे माता पिता ने पहले तो कई सारे सवाल पूछे। जैसे कि मेरे साथ और कौन कौन जा रहा है और पिकनिक के लिए हम कहां जा रहे हैं और साथ ही पिकनिक से कब वापस आएंगे? सारे सवालों के जवाब मैंने अपने माता पिता को दे दिए और उन्हें बताया कि पिकनिक का टूर पांच दिनों का है और छठे दिन हम वापस आ जाएंगे।

मेरे माता पिता जानते थे कि मैं कैसा लड़का हूं, दूसरी बात उन्होंने खुद ही कहा था कि कुछ समय एन्जॉय करो उसके बाद तो मुझे उनके साथ उनका बिज़नेस ही सम्हालना है। ख़ैर मैंने अपने माता पिता को बताया कि मुझे कल ही दोस्तों के साथ यहाँ से पिकनिक के लिए निकलना है। मेरी इस बात पर मेरे माता पिता बोले ठीक है और अपना ख़याल रखना।

खाने के बाद मैं ख़ुशी ख़ुशी अपने कमरे में चला आया था। असल में अब मुझे इस बात की जल्दी थी कि कितना जल्दी मैं उस संस्था से पूरी तरह जुड़ जाऊं और ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मैं उनके हुकुम से वो काम करने जाऊं जो मेरी सबसे बड़ी चाहत का हिस्सा था। यही वजह थी कि घर आते ही मैंने अपने पेरेंट्स से दूसरे दिन ही पिकनिक पर जाने की बात कह कर उनसे इजाज़त ले ली थी। अब तो बस कल सुबह का इंतज़ार था मुझे। अपने कमरे में आ कर मैंने आलमारी खोली और उसमे नीले रंग की शर्ट देखने लगा जो कि किस्मत से मेरे पास थी। नीले रंग की शर्ट को आलमारी से निकाल कर मैंने उसे कमरे की दिवार में लगे हैंगर पर टांगा और फिर बेड पर लेट गया।

बेड पर लेटा मैं ये सोच सोच कर मुस्कुरा रहा था कि बहुत जल्द मेरी लाइफ़ बदलने वाली है और उस बदली हुई लाइफ़ में बहुत जल्द मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होने वाली है। ये सब सोचते हुए मैं बहुत ही ज़्यादा खुश हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि मुझे कारून का कोई खज़ाना मिलने वाला था। मैं अपने मन में ही न जाने कैसे कैसे ख़्वाब सजाने लगा कि संस्था का एजेंट बनने के बाद मैं लड़कियों और औरतों की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाऊंगा और उनके खूबसूरत जिस्मों से जैसे चाहूंगा खेलूंगा। उन औरतों की बड़ी बड़ी चूचियों को अपनी दोनों मुट्ठियों में ले कर ज़ोर ज़ोर से मसलूंगा और फिर चूचियों को अपने मुँह में भर कर ज़ोर ज़ोर से चूसूंगा।

बेड पर लेटे लेटे मैं जाने कैसे कैसे सपने देखने लगा था और फिर जाने कब मेरी आँख लग गई। सुबह उठा तो रात के सारे मंज़र याद आए जिससे मैं जल्दी से उठा और बाथरूम में घुस गया। बाथरूम से नहा धो कर मैंने नीले रंग की शर्ट पहनी और कमरे से बाहर आ गया। बाहर आया तो देखा माँ मेरे कमरे की तरफ ही आ रहीं थी। मुझे देख कर वो रुक गईं और मुस्कुराते हुए बोलीं_____"अरे! बड़ा जल्दी उठ गया तू। चल अच्छा किया और हां मैंने एक बैग में तेरे लिए ज़रूरत का सारा सामान पैक कर दिया है। तू नहा धो कर आ, तब तक मैं तेरे लिए नास्ता बनवा देती हूं।"

मां की बात सुन कर मैंने उन्हें बताया कि मैं नहा चुका हूं और अभी मैं दो मिनट के लिए बाहर खुली हवा लेने जा रहा हूं। मेरी बात सुन कर मां ने मुझे हैरानी से देखा। उनके लिए हैरानी की बात ये थी कि मैं जो हमेशा आठ बजे सो कर उठता था वो आज सुबह सुबह ही उठ गया था और इतना ही नहीं बल्कि नहा धो के फुर्सत भी हो गया था। खैर माँ के जाने के बाद मैं घर से बाहर की तरफ चल पड़ा। अब भला माँ को कैसे पता हो सकता था कि उनके शर्मीले बेटे ने आज इतनी जल्दी में अपने सारे काम क्यों कर लिए थे?

घर से बाहर आ कर मैं लम्बे चौड़े लान में दाहिनी तरफ आ कर खड़ा हो गया। मैं दूर सड़क पर इधर उधर देख रहा था। रहस्यमयी आदमी ने कहा था कि मैं जब अपने घर के बाहर नीले रंग की शर्ट पहन कर खड़ा हो जाऊंगा तो उसका कोई आदमी मुझे देख लेगा और फिर समझ भी जाएगा कि मुझे आज ही पिकनिक पर निकलना है। ख़ैर मैं क़रीब दस मिनट तक लान में खड़ा रहा उसके बाद वापस घर के अंदर आ गया।

नास्ते के समय डायनिंग टेबल पर पिता जी भी बैठे थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरे दोस्त मुझे लेने यहीं आएंगे या मुझे उनके पास जाना होगा? पापा के पूछने पर मैंने उन्हें बताया कि दस बजे मेरा एक दोस्त मुझे यहाँ लेने आएगा। ख़ैर नास्ते के बाद पापा ने अपना एक ब्रीफ़केस लिया और कार की चाभी ले कर अपने ऑफिस के लिए चले गए। पापा रोज़ाना ही सुबह नौ बजे ऑफिस चले थे जबकि माँ सुबह ग्यारह बजे घर से ऑफिस के लिए निकलतीं थी।

अपने कमरे में मैं एकदम से तैयार बैठा था और दस बजने का इंतज़ार कर रहा था। मेरे पास वो बैग भी था जिसे माँ ने मेरे लिए पैक किया था। एक एक पल मेरे लिए जैसे सदियों का लग रहा था। आख़िर किसी तरह दस बजे तो मैं बैग ले कर कमरे से बाहर निकल आया। अभी ड्राइंग रूम में ही आया था कि डोर बेल बजी। मैं समझ गया कि रहस्यमयी आदमी का कोई आदमी मुझे लेने के लिए आ गया है। मैंने तेज़ी से बढ़ कर बाहर वाले दरवाज़े को खोला तो देखा बाहर एक आदमी खड़ा था। वो आदमी मेरे लिए बिलकुल ही अजनबी था। मैंने आज से पहले उसे कभी नहीं देखा था।

"तैयार हो न?" मेरे कुछ बोलने से पहले ही उसने मुझे देखते हुए मुझसे धीमें स्वर में पूछा तो मैं समझ गया कि ये वही आदमी है इस लिए मैंने फ़ौरन ही हां में सिर हिला दिया। तभी मेरे पीछे से माँ की आवाज़ आई तो मैं एकदम से चौंक गया और ये सोच कर थोड़ा घबरा भी गया कि अगर माँ ने इस आदमी को देख कर मुझसे पूछ लिया कि ये कौन है तो मैं क्या जवाब दूंगा उन्हें? हालांकि जवाब तो मेरे पास तैयार ही था किन्तु माँ मेरे सभी दोस्तों को जानती थी इस लिए वो न जाने क्या क्या पूछने लगतीं, और मैं यही नहीं चाहता था।

"अरे! बेटा तूने अपने दोस्त को बाहर क्यों खड़ा कर रखा है?" माँ की आवाज़ से मैंने पलट कर उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने आगे कहा_____"उसे अंदर ले आ और उससे पूछ ले कि अगर उसने नास्ता न किया हो तो अंदर आ कर पहले नास्ता करे उसके बाद ही यहाँ से तुझे ले कर जाए।"

"आंटी हम अभी लेट हो रहे हैं।" मेरे कुछ बोलने से पहले ही उस आदमी ने दरवाज़े के बाहर से ही कहा_____"इस लिए नास्ता करने का समय नहीं है। हम बाहर ही कहीं पर कर लेंगे नास्ता।"

उस आदमी की बात सुन कर माँ ने एक दो बार और कहा लेकिन हमें तो रुकना ही नहीं था इस लिए जल्दी ही मैं उस आदमी के साथ बाहर निकल गया। सड़क पर आ कर मैं उसकी कार में बैठा तो उसने कार को तेज़ी से आगे बढ़ा दिया। इस वक़्त मेरे दिल की धड़कनें तेज़ी से चल रहीं थी। मैं सोच रहा था कि ये आदमी मुझे आख़िर किस जगह पर ले कर जाएगा? क्या ये आदमी भी उसी संस्था का कोई सदस्य है?

सारे रास्ते हमारे बीच ख़ामोशी ही रही, ना मैंने उससे कोई सवाल किया और ना ही उसने कुछ कहा। क़रीब बीस मिनट बाद उसने एक ऐसी जगह पर कार को रोका जहां आस पास कोई नहीं था। कार के रुकते ही उसने मुझसे कार से अपना बैग ले कर उतर जाने को कहा तो मैं एकदम से चौंक सा गया। मैंने कार की खिड़की से सिर निकाल कर चारो तरफ देखा। कोई नहीं था आस पास। ऐसी जगह पर मुझे क्यों उतर जाने को बोल रहा था ये आदमी? मुझे उलझन में पड़ा देख उस आदमी ने फिर से मुझे उतर जाने को कहा तो इस बार मैं बिना कुछ बोले कार से उतर गया और अपना बैग भी निकाल लिया। मैंने जैसे ही अपना बैग निकाला वैसे ही उस आदमी ने कार को यू टर्न दिया और किसी तूफ़ान की तरह वापस उसी तरफ लौट गया जिस तरफ से वो मुझे ले कर आया था। उसके जाने के बाद मैं मूर्खों की तरह सड़क के किनारे खड़ा रह गया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो आदमी मुझे ऐसे सुनसान जगह पर अकेला छोड़ के क्यों चला गया था? अब यहाँ से भला मैं किस तरफ जाऊंगा। सच कहूं तो उस वक़्त मैं अपने आपको दुनियां का सबसे बड़ा बेवकूफ ही समझ बैठा था।

मेरे पास उस जगह पर खड़े रहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था इस लिए मैं क़रीब आधे घंटे तक खड़ा रहा। आधे घंटे बाद मुझे सड़क पर एक काले रंग की कार आती हुई दिखाई दी। मैं समझ गया कि इस कार में ज़रूर वो रहस्यमयी आदमी होगा। ख़ैर कुछ ही देर में वो कार मेरे पास आ कर रुकी। कार के रुकते ही कार का पिछला दरवाज़ा खुला। अंदर एक सफेदपोश आदमी बैठा नज़र आया मुझे। उसने मुझे अंदर आने का इशारा किया तो मैं अपना बैग ले कर चुप चाप कार के अंदर जा कर बैठ गया। मेरे बैठते ही कार का दरवाज़ा बंद हुआ और कार एक झटके से आगे बढ़ चली। कार में मेरे अलावा वो सफेदपोश और एक ड्राइवर था जिसके जिस्म पर काले कपड़े थे और सिर पर बड़ी सी गोलाकार टोपी जिसका अग्रिम सिरा उसके ललाट पर झुका हुआ था। आँखों में काला चश्मा था और हाथों में दस्ताने। चेहरे पर नक़ाब नहीं था। हालांकि पीछे से मुझे उसका चेहरा दिख भी नहीं रहा था किन्तु कार के अंदर लगे बैक मिरर में उसका अक्श दिख रहा था जिसमें उसकी गोलाकार टोपी और आँखों पर लगा काला चश्मा ही दिख रहा था। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरे बगल से बैठे सफ़ेदपोश ने मेरी आँखों पर काली पट्टी बाँध दी जिससे मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

☆☆☆

"साहब जी।" विक्रम सिंह की डायरी पढ़ रहे शिवकांत वागले के कानों में अपनी जेल के एक सिपाही की आवाज़ पड़ी तो उसने चौंक कर उसकी तरफ देखा, जबकि सिपाही ने आगे कहा____"कोई आपसे मिलने आया है।"
"क..कौन मिलने आया है हमसे?" वागले ने न समझने वाले भाव से पूछा। इस बीच उसने विक्रम सिंह की डायरी को बंद कर के टेबल में ही एक तरफ रख दिया था।

"कोई शूट बूट पहना हुआ आदमी है साहब जी।" सिपाही ने कहा_____"मुझसे बोला कि जेलर साहब से मिलना है। इस लिए मैं आपके पास ये बताने चला आया।"
"ठीक है भेज दो उन्हें।" कहने के साथ ही वागले ने डायरी को टेबल से उठाया और उसे अपने ब्रीफ़केस में रख दिया।

इधर वागले के कहने पर सिपाही वापस चला गया था। कुछ देर बाद ही एक आदमी केबिन में दाखिल हुआ। वागले ने उस आदमी को गौर से देखा। आगंतुक आदमी के जिस्म पर शूटेड बूटेड कपड़े थे। दमकता हुआ चेहरा बता रहा था कि वो कोई मामूली आदमी नहीं था। ख़ैर वागले ने उसे अपने सामने टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया तो वो मुस्कुरा कर शुक्रिया कहते हुए बैठ गया।

"जी कहिए।" उस आदमी के बैठते ही वागले ने नम्र भाव से कहा____"ऐसी जगह पर आने का कैसे कष्ट किया आपने?"
"सुना है कि पिछले दिन आपकी इस जेल से एक क़ैदी रिहा हो कर गया है।" उस आदमी ने ख़ास भाव से वागले की तरफ देखते हुए कहा_____"मैं उसी क़ैदी के बारे में आपसे जानने आया हूं। उम्मीद है कि आप मुझे उसके बारे में बेहतर जानकारी देंगे।"

"देखिए महाशय।" वागले ने कहा____"यहां से तो कोई न कोई अपनी सज़ा काटने के बाद रिहा हो कर जाता ही रहता है। अब हमें क्या पता कि आप किसके बारे में पूछ रहे हैं? हां अगर आप हमें रिहा हो कर जाने वाले उस क़ैदी का नाम और उसका जुर्म बताएं तो शायद हमें उसके बारे में आपको बताने में आसानी हो।"

"उसका नाम विक्रम सिंह है जेलर साहब।" उस आदमी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा_____"और पिछले दिन ही वो यहां से रिहा हो कर गया है। मैं आपसे ये जानना चाहता हूं कि यहाँ से निकलने के बाद वो कहां गया है?"

"बड़ी हैरत की बात है महाशय।" वागले उस आदमी के मुख से विक्रम सिंह का नाम सुन कर पहले तो मन ही मन चौंका था फिर सामान्य भाव से बोला_____"जिस आदमी की आप बात कर रहे हैं उससे इन बीस सालो में कभी कोई मिलने नहीं आया और ना ही उसके बारे में कोई कुछ पूछने आया। अब जबकि वो यहाँ से रिहा हो कर जा चुका है तो अचानक से उसके जान पहचान वाले कहां से आ गए? वैसे आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि यहाँ से जो भी क़ैदी रिहा हो कर जाता है उसके बारे में हम ये रिकॉर्ड नहीं रखते कि वो यहाँ से कहां जाएगा और किस तरह का काम करेगा?"

"ओह! माफ़ कीजिएगा।" उस आदमी ने अजीब भाव से कहा____"मुझे लगा यहाँ हर उस क़ैदी का एक ऐसा रिकॉर्ड भी रखा जाता होगा जिससे ये पता चल सके कि फला क़ैदी जेल से रिहा हो कर कहां गया है और वर्तमान में किस तरह का काम कर रहा है। असल में बात ये है कि मैं कुछ दिन पहले ही विदेश से भारत आया हूं इस लिए मुझे विक्रम सिंह के बारे में ज़्यादा पता नहीं है। हालांकि एक समय वो मेरा दोस्त हुआ करता था किन्तु फिर हालात ऐसे बदले कि मेरा उससे हर तरह का राब्ता टूट गया। अभी कुछ दिन पहले ही मुझे कहीं से पता चला है कि मेरे दोस्त को उम्र क़ैद की सजा तो हुई थी किन्तु उसके अच्छे बर्ताव की वजह से अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर के रिहा कर दिया है। ये सब सुन कर मैं सीधा यहीं चला आया।"

"अगर विक्रम सिंह सच में आपका दोस्त है।" वागले ने एक सिगरेट सुलगाने के बाद कहा____"तो आपको ये भी पता होगा कि उसे किस जुर्म में उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी?"
"जी बिलकुल पता है जेलर साहब।" उस आदमी ने कहा_____"उसने अपने माता पिता की बेरहमी से हत्या की थी और पुलिस ने उसे घटना स्थल से रंगे हाथों पकड़ा था। मामला अदालत में पहुंचा था और जज साहब ने उसे उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी थी।"

"जब आपके दोस्त ने ऐसा संगीन अपराध किया था।" वागले ने सिगरेट के धुएं को हवा में उड़ाते हुए कहा_____"तब उस समय आप कहां थे?"
"मैं उस समय अपने पैरेंट्स के साथ विदेश में था।" उस आदमी ने कहा_____"असल में मेरे पैरेंट्स यहाँ का अपना सब कुछ बेंच कर विदेश में रहने का फ़ैसला कर लिया था और जब विदेश में सारी ब्यवस्था हो गई थी तो हम सब वहीं चले गए थे। जब विक्रम का मामला हुआ था तब मुझे अपने एक दूसरे दोस्त से इस बारे में पता चला था। मैं हैरान था कि विक्रम जैसा लड़का इतना संगीन अपराध कैसे कर सकता है? मैंने अपने पैरेंट्स से कहा था कि मुझे अपने दोस्त से मिलने इंडिया जाना है लेकिन मेरे पैरेंट्स ने मुझे यहाँ आने ही नहीं दिया। उसके बाद वक़्त और हालात ऐसे बने कि इंडिया आने का कभी मौका ही नहीं मिल पाया। इतने सालों बाद मौका मिला तो मैं सिर्फ अपने दोस्त से मिलने के लिए ही इंडिया आया हूं।"

"इसका मतलब।" वागले ने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"आपको ये भी पता नहीं होगा कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से अपने ही माता पिता की हत्या की थी?"

"क्या मतलब है आपका?" उस आदमी ने चौंकते हुए कहा_____"क्या आप ये कह रहे हैं कि पुलिस या अदालत को भी नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों किया था, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?"

"यही सच है महाशय।" वागले ने ऐशट्रे में बची हुई सिगरेट को बुझाते हुए कहा____"पुलिस की थर्ड डिग्री झेलने के बाद भी उस शख़्स ने ये नहीं बताया था कि उसने अपने माता पिता की हत्या क्यों की थी और इतना ही नहीं बल्कि इन बीस सालों में भी उसने कभी किसी से इस बारे में कुछ नहीं बताया। अब तो वो रिहा हो कर यहाँ से जा चुका है इस लिए ज़ाहिर है कि आगे भी कभी किसी को इस बारे में कुछ पता नहीं चलने वाला।"

"हैरत की बात है।" उस आदमी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"वैसे यहाँ से जाते समय आपने उससे पूछा तो होगा कि यहाँ से जाने के बाद वो अपने बाकी जीवन में क्या करेगा?"

"पूछने का कोई फायदा ही नहीं था।" वागले ने लापरवाही से कहा____"इस लिए हमने पूछा ही नहीं उससे।"
"क्या मतलब??" वो आदमी हल्के से चौंका।
"मतलब ये कि उससे कुछ भी पूछने का कोई फ़ायदा ही नहीं होता।" वागले ने कहा____"पिछले पांच सालों से हम इस जेल के जेलर पद पर कार्यरत हैं और इन पांच सालों में हमने न जाने कितनी ही बार उससे बहुत कुछ पूछने की कोशिश की है लेकिन उसने कभी भी हमारे किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। वो अपने होठों को जैसे सुई धागे से सिल लेता था। हमने अपने जीवन में उसके जैसा अजीब इंसान नहीं देखा।"

"चलिए कोई बात नहीं जेलर साहब।" उस आदमी ने गहरी सांस ले कर कहा____"अब मुझे ही अपने दोस्त का पता करना पड़ेगा। ख़ैर बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतना कुछ बताने के लिए। अच्छा अब चलता हूं, नमस्कार।"

कहने के साथ ही वो आदमी कुर्सी से उठ गया तो वागले भी कुर्सी से उठ गया। उस आदमी के जाने के बाद शिवकांत वागले सोचने लगा कि इतने सालों बाद विक्रम सिंह का कोई दोस्त कहां से आ गया? पुलिस के अनुसार उसके सभी दोस्तों से पूछताछ हुई थी किन्तु किसी भी दोस्त को ये नहीं पता था कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से अपने माता-पिता की हत्या की थी? इन बीस सालों में विक्रम सिंह का कोई भी दोस्त उससे मिलने नहीं आया था। इसकी वजह शायद ये हो सकती थी कि उसका कोई भी दोस्त अब उससे कोई वास्ता नहीं रखना चाहता था। ख़ैर कुछ देर इस बारे में सोचने के बाद वागले अपने केबिन से बाहर निकल गया।

शाम तक शिवकांत वागले किसी न किसी काम में व्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया। घर में कुछ देर वो टीवी देखता रहा और फिर रात का भोजन करने के बाद अपने कमरे में चला गया। उसका इरादा था कि रात में वो विक्रम सिंह की डायरी में उसकी आगे की दास्तान पड़ेगा किन्तु सावित्री अभी बर्तन धो रही थी। वो सावित्री के सो जाने के बाद ही आगे की कहानी पढ़ना चाहता था। ख़ैर, उसने सावित्री के सो जाने का इंतज़ार किया। जब सावित्री अपने सारे काम निपटाने के बाद कमरे में आ कर बेड पर सो ग‌ई तो वागले बेड से उतरा और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर वापस बेड पर आ गया। अपनी पत्नी सावित्री की तरफ एक बार उसने ध्यान से देखा और फिर डायरी खोल कर आगे का किस्सा पढ़ना शुरू कर दिया।

☆☆☆
Mantermugdh si karti update bhai
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,041
115,764
354
चौथा भाग

बहुत ही बेहतरीन

जब हम कोई नया चीज़ करने जा रहे होते हैं तो एक नई उमंग और उस चीज के प्रति लगाव बहुत ज्यादा हो जाता है, बिना यह सोचे कि भविष्य में उस उत्सुकता का भयंकर परिणाम भी सामने आ सकता है। विक्रम को चूत मार संस्था की सारी नियम और शर्ते स्वीकार थी इसलिए वो बहुत उत्सुक था संस्था का सदस्य बनने के लिए। उत्सुकता का मुख्य कारण था औरतों के जिस्म के प्रति अस्का आकर्षण।

विक्रम का कोई दोस्त जो लंदन में रहता था वो 20 साल बाद विक्रम को ढूंढते हुए वागले के पास आया। वागले का आश्चर्य हुआ स्वभाविक था। जिस इंसान का कोई सगा संबंधी और दोस्त विक्रम के जेल में रहते मिलने न आया हो। अचानक उसके रिहा होते ही उसका दोस्त बताकर कोई मिलने आया। हो सकता है ये चूत मार संस्था का ही कोई सदस्य हो जो अभी भी नहीं चाहता कि उसकी संस्था के बारे में किसी को पता चले।।

Shukriya Mahi madam is khubsurat pratikriya ke liye,,,,,:hug:
Dhire dhire sab pata chalega,,,:smoking:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,041
115,764
354
वागले साहब विक्रम की डायरी पढ़ते हुए ख्यालों में खो गए । उन्हें लगता ही नहीं कि ऐसा भी होता है । ये दुनिया विचित्रताओं और अजूबाओं से भरा हुआ है । जो हम सोच भी नहीं सकते वो भी होता है ।
अपनी पत्नी पर बरसों बाद प्यार आया । सेक्स करने की इच्छा पनपी । उन्हें लगा था उम्र होने के बाद औरतों में सेक्स करने की इच्छा कम हो जाती है । यह तो निर्भर करता है कि औरतों की सेक्सुअल निड्स कैसी है ! उसे सेक्स करना पसंद है भी या नहीं । वैसे कहा गया है उम्र के चालीस पार बाद औरतों की सेक्सुअल निड्स बढ़ जाती है ।

विक्रम ने आखिरकार वह कम्पनी ज्वाइन कर लिया । और यह उसने किसी दबाव में नहीं किया बल्कि अपनी इच्छा से किया । भिन्न भिन्न तरह की औरतों के साथ सेक्सुअल सम्बन्ध बनाने की फैंटेसी से किया ।
देखते हैं उसकी यह जर्नी कैसी होती है ! जिगोलो की जिंदगी उसके आम लाइफ में क्या असर डालती है !
और यह भी पता करना है कि इस कम्पनी का कर्ता धर्ता कौन है ! कौन है जो विक्रम को इस काम के लिए एप्रोच किया !

एक व्यक्ति विदेश से आता है और विक्रम का मौजूदा पता जानना चाहता है । वो खुद को विक्रम का दोस्त कहता है । इसके बारे में अगले कुछ अपडेट्स में ही शायद कुछ जानकारी मिले कि ये है कौन और अचानक से विक्रम के रिहा होने के बाद ही क्यों आया ?

अभी तक कहानी बहुत ही बढ़िया जा रही है । विक्रम की लाइफ एक मासूमियत और अल्हड़पन से बदलकर जिगोलो और खूनी बनने तक कैसे जा पहुंची , जानने की इच्छा बढ़ा रही है ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट शुभम भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।
Shukriya bade bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,:hug:
Vikram Singh ki sabse badi chaahat kismat se puri hone ja rahi hai jiski use behad khushi hai lekin jaisa ki prakrati ka niyam hai har cheez ka El dusra pahlu bhi hota hai jiska asar insaan par padta hi hai. Khair dekhiye uska ye safar uski life me kya gul khilaya hai,,,,:D
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,041
115,764
354
अध्याय - 05
_________________




अब तक,,,,,

शाम तक शिवकांत वागले किसी न किसी काम में व्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया। घर में कुछ देर वो टीवी देखता रहा और फिर रात का भोजन करने के बाद अपने कमरे में चला गया। उसका इरादा था कि रात में वो विक्रम सिंह की डायरी में उसकी आगे की दास्तान पड़ेगा किन्तु सावित्री अभी बर्तन धो रही थी। वो सावित्री के सो जाने के बाद ही आगे की कहानी पढ़ना चाहता था। ख़ैर, उसने सावित्री के सो जाने का इंतज़ार किया। जब सावित्री अपने सारे काम निपटाने के बाद कमरे में आ कर बेड पर सो ग‌ई तो वागले बेड से उतरा और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर वापस बेड पर आ गया। अपनी पत्नी सावित्री की तरफ एक बार उसने ध्यान से देखा और फिर डायरी खोल कर आगे का किस्सा पढ़ना शुरू कर दिया।

अब आगे,,,,,


किसी ने मेरे चेहरे पर पानी का छिड़काव किया तो कुछ ही पलों में मैं होश में आ गया। मेरी आँखें जब अच्छी तरह से देखने लायक हुईं तो मैंने देखा कि ये कोई दूसरी जगह थी। मैं कुर्सी पर बैठा हुआ था और मेरे सामने वही सफेदपोश खड़ा हुआ था जिसने कार में मेरी आँखों पर काले रंग की पट्टी बाँधी थी। बड़े से हाल में मेरे और उसके अलावा तीसरा कोई नहीं था।

"इस जगह पर तुम्हें पांच दिन रहना है।" उस सफेदपोश आदमी ने कहा____"यहां पर तुम्हारी पहली और सबसे ख़ास ट्रेनिंग होगी। मेरा दावा है कि इन पांच दिनों में तुम पूरी तरह से ट्रेंड हो जाओगे।"

"पर यहाँ पर मेरी किस चीज़ की ट्रेनिंग होगी?" मैंने उत्सुकतावश उससे पूछा_____"और कौन ट्रेंड करेगा मुझे?"
"बहुत जल्द पता चल जाएगा।" उस सफेदपोश आदमी ने कहने के साथ ही अपने दोनों हाथों से तीन बार ताली बजाई जिसके परिणामस्वरूप कुछ ही पलों में एक तरफ से तीन ऐसी लड़कियां हाल में आती नज़र आईं जिनका पहनावा देख कर मेरी आँखें फटी की फटी ही रह गईं थी।

वो तीनों लड़कियां आ कर कतार से खड़ी हो ग‌ईं। मेरी नज़र उन तीनों से हट ही नहीं रही थी। तीनों के दूध जैसे गोरे और सफ्फाक़ बदन पर सिर्फ ब्रा और पेंटी ही थी। ब्रा पेंटी भी ऐसी कि जिसमें उनके अंग साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे। ब्रा ऐसी थी कि उसमें से उन तीनों लड़कियों की चूचियों का सिर्फ निप्पल वाला भाग ही छुपा हुआ था। यही हाल उनकी पेंटी का भी था। एक पतली सी डोरी जो उनकी कमर पर दिख रही थी और चूत के ऊपर सिर्फ चार अंगुल की चौड़ी पट्टी थी। बाकी पूरा जिस्म दूध की तरह गोरा चमक रहा था। तीनों कतार में आ कर ऐसी मुद्रा में खड़ी हो गईं थी जैसे फोटो खिंचवाने का कोई पोज़ दे रही हों। मैं उन तीनों को मंत्र मुग्ध सा देखता ही रहता अगर मेरे कानो में उस सफेदपोश की आवाज़ न पड़ती।

"आज से इस लड़के को ट्रेंड करना शुरू कर दो।" उस सफेदपोश आदमी ने उन तीनों लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा_____"लेकिन इस बात का ख़याल रहे कि इसकी ट्रेनिंग पांच दिन के अंदर पूरी हो जाए।"

"फ़िक्र मत कीजिए सर।" तीन लड़कियों में से बीच वाली लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा____"पांच दिनों में हम इसे ऐसा ट्रेंड करेंगे कि इसके अंदर किसी भी तरह की कमी या कमज़ोरी नहीं रह जाएगी।"

"बहुत बढ़िया।" सफेदपोश ने कहा_____"मुझे पता है कि तुम तीनों अपना काम बेहतर तरीके से करोगी। ख़ैर अब मैं एक जनवरी को ही आऊंगा। बेस्ट ऑफ़ लक।"

उस सफेदपोश की बात पर तीनों लड़कियों ने मुस्कुराते हुए अपना अपना सिर हिलाया जबकि वो सफेदपोश आदमी हाल के एक तरफ बढ़ता चला गया। उस शख़्स के जाने के बाद उन तीनों लड़कियों ने मेरी तरफ गौर से देखा। इधर अब तक तो मेरी हालत ही ख़राब हो गई थी। पहली बार मैं एक नहीं दो नहीं बल्कि एक साथ तीन तीन लड़कियों को उस हालत में देख रहा था। मेरी धड़कनें ट्रेन की स्पीड से चल रहीं थी और जब उन तीनों ने एक साथ मेरी तरफ देखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे ट्रेन की स्पीड से भागती हुई मेरी धड़कनों को एकदम से ब्रेक लग गया हो। दोनों कानों में जैसे कोई भारी हथौड़ा सा बजता सुनाई देने लगा था।

"लगता है तुमने कभी लड़कियों को ऐसी हालत में नहीं देखा।" उन में से एक ने बड़ी अदा से कहा_____"वरना तुम्हारे चेहरे का रंग इस तरह उड़ा हुआ नज़र न आता। ख़ैर फ़िक्र मत करो। हम तीनों सब ठीक कर देंगी।"

उस लड़की ने जब ऐसा कहा तो मैं उन तीनों से नज़र चुराने लगा। असल में अब मुझे बेहद शर्म आने लगी थी जिससे मैं उनसे नज़रें नहीं मिला पा रहा था। इसके पहले जाने कैसे मेरी नज़रें उन तीनों के बेपर्दा जिस्म पर गड़ सी गईं थी।

मुझे नज़रें चुराते देख वो तीनों मेरी तरफ बढ़ीं तो मेरी धड़कनें फिर से तेज़ हो गईं। उधर वो तीनों मेरे क़रीब आईं और एक ने मेरी कलाई पकड़ कर मुझे कुर्सी से उठाया तो मैं अनायास ही उनके थोड़ा सा ज़ोर देने पर कुर्सी से उठ गया। वो तीनों मेरे बेहद क़रीब थीं इस लिए उन तीनों के बदन की खुशबू मेरी नाक में समाने लगी थी। यकीनन कोई बढ़िया वाला इत्र लगा रखा था उन तीनों ने। ख़ैर मैं उठा तो तीनों ने मुझे अलग अलग जगह से पकड़ा और एक तरफ को खींचती धकेलती ले जाने लगीं। मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मैं सामान्य हो जाऊं लेकिन मैं नाकाम ही हो रहा था।

कुछ ही देर में वो तीनों मुझे एक ऐसे कमरे में ले आईं जो बहुत ही सुन्दर था। कमरे के एक तरफ बड़ा सा बेड था और एक तरफ दो सोफे रखे हुए थे। कमरे के एक तरफ एक छोटा सा दरवाज़ा भी था जो कि शायद बाथरूम था। ख़ैर उन तीनों ने मुझे बेड पर बैठा दिया। मैं अंदर से बुरी तरह घबराया हुआ था जिसकी वजह से मेरे चेहरे पर पसीना उभर आया था। मैं उन तीनों के सामने बहुत ही ज़्यादा असहज महसूस कर रहा था।

"माया, इसे ट्रेंड करना इतना आसान नहीं होगा।" एक लड़की की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने चेहरा उठा कर उसकी तरफ देखा जबकि उसने माया नाम की लड़की को देखते हुए कहा_____"क्योंकि ये तो बेहद शर्मीला है। देखो तो ये हम तीनों की तरफ देखने से कैसे डर रहा है।"

"सही कहा तबस्सुम ने।" माया ने कहा____"ये हम तीनों के साथ बेहतर महसूस नहीं कर रहा है। ख़ैर कोई बात नहीं, हमारा तो काम ही है लड़कों को इस तरह ट्रेंड करना जिससे कि वो एक भरपूर मर्द बन जाएं और किसी भी लड़की या औरत को पूरी तरह संतुष्ट कर सकें।"

मैं उन तीनों की बातें सुन रहा था और अंदर ही अंदर ये सोच कर घबरा भी रहा था कि जाने ये तीनों मेरे साथ क्या करने वाली हैं? तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मैं इतना घबरा क्यों रहा हूं? अगर मैं इसी तरह घबराऊंगा तो इनके अनुसार भरपूर मर्द कैसे बन पाऊंगा और जब भरपूर मर्द ही नहीं बन पाऊंगा तो कैसे मैं किसी लड़की या औरत के साथ सेक्स कर सकूंगा जो कि मेरी सबसे बड़ी चाहत है? इस ख़याल के साथ ही मैंने अपने अंदर के तूफ़ान को काबू करने के लिए अपनी आँखें बंद की और गहरी गहरी साँसें लेने लगा।

अभी मैं अपनी आँखें बंद किए गहरी गहरी साँसें ही ले रहा था कि तभी मैं चौंका और झट से आँखें खोल कर देखा। उन में से एक मेरी कोट और स्वेटर उतारने लगी थी और एक दूसरी मेरा पैंट उतारने लगी थी। ये देख कर मैं फिर से घबरा उठा और अपने आपको उनसे छुड़ाने की कोशिश की लेकिन वो न मानी। यहाँ तक कि कुछ ही देर में उन तीनों ने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए। अब मैं उन तीनों के सामने बेड पर मादरजात नंगा बैठा हुआ था।

"वैसे मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम जैसे शर्मीले लड़के को यहाँ ले कर क्यों आए हैं सर?" उनमें से उस लड़की ने कहा जिसका नाम तबस्सुम था_____"हालाँकि समझ में तो मुझे ये भी नहीं आ रहा कि ख़ुदा ने तुम्हें लड़का कैसे बना दिया है? तुम्हें तो लड़की बना कर इस दुनियां में भेजना था।"

"य..ये क..क्या कह रही हो तुम?" मैंने हकलाते हुए कहा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा____"सच ही तो कह रही हूं मैं। तुम तो इतना ज़्यादा शर्मा रहे हो कि शर्मो हया के मामले में लड़कियां भी तुमसे पीछे हो जाएं। इसी लिए कह रही हूं कि ख़ुदा को तुम्हें लड़की बना कर इस दुनियां में भेजना था।"

"माना कि ये बेहद शर्मीला है तबस्सुम।" तीसरी वाली लड़की ने कहा_____"लेकिन इसका हथियार देख कर तो यही लगता है कि ये एक भरपूर मर्द है।"

उस लड़की ने कहने के साथ ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया जिससे मेरे मुख से सिसकी निकल गई। पहली बार किसी लड़की के कोमल हाथ मेरे लंड पर पड़े थे। मेरा पूरा बदन झनझना गया था और मेरे जिस्म में कम्पन होने लगा था। उधर उस लड़की की बात सुन कर बाकी दोनों ने भी मेरे लंड की तरफ देखा।

"अरे! वाह।" माया ने कहा_____"तूने सच कहा कोमल। इसका हथियार तो सच में काफी तगड़ा लगता है। जब हल्के नींद में होने पर इसका ये साइज़ है तो जब ये पूरी तरह जाग जाएगा तो कितना बड़ा हो जाएगा। बड़ी हैरत की बात है कि इतना बड़ा हथियार लिए ये लड़का अब तक किसी लड़की के संपर्क में कैसे नहीं पहुंचा?"

"ज़ाहिर है अपने शर्मीले स्वभाव की वजह से।" कोमल ने हंसते हुए कहा_____"ख़ैर अब हमें सबसे पहले इसकी शर्म को ही दूर करना पड़ेगा।"
"सही कहा तुमने।" तबस्सुम ने कहा____"चलो ले चलो इसे बाथरूम में।"

वो तीनों हंसी मज़ाक कर रहीं थी और मैं उन तीनों के बीच सहमा सा बैठा हुआ था। हालांकि मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मैं एकदम से सामान्य ही रहूं लेकिन मैं सामान्य नहीं हो पा रहा था। ख़ैर तीनों मुझे ले कर उसी कमरे में बने बाथरूम में गईं जहां पर बड़ा सा एक बाथटब था। मैंने देखा बाथटब में पहले से ही पानी भरा हुआ था जिसके ऊपर ढेर सारा झाग था। माया ने मुझे पकड़ रखा था और मैं अपने लंड को दोनों हाथों से छुपाए चुपचाप खड़ा था।

माया के अलावा बाकी दोनों लड़कियों ने अपने अपने जिस्म से बचे हुए वस्त्र भी निकाल दिए। मैं हैरान था कि मेरे सामने उन्हें लेश मात्र भी शर्म नहीं आ रही थी। ब्रा पैंटी के हटते ही उन दोनों की बड़ी बड़ी दुधिया छातियां उजागर हो ग‌ईं थी। पिंक कलर के निप्पल और निप्पल के चारो तरफ सुर्ख रंग का घेरा जो हल्का डार्क था। मेरी नज़र उन दोनों की चूचियों पर मानो जम सी गई। तभी दोनों ने मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखा तो मैं एकदम से झेंप गया और अपनी नज़रें चुराने लगा। उधर इन दोनों को इस तरह नंगा देख मेरा लंड तेज़ी से सिर उठाते हुए खड़ा हो गया था, जो कि अब मेरे छुपाने से भी छुप नहीं रहा था। तीनों ने मेरे लंड की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए।

मेरी हालत तो बहुत ज़्यादा ख़राब हो चली थी। उन तीनों हसीनाओं के सामने मैं इस हालत में अपने आपको बहुत ही लाचार सा महसूस कर रहा था। ख़ैर तीनों ने मुझे बाथटब के पानी में लगभग लिटा सा दिया। उधर तबस्सुम और कोमल भी बाथटब में मेरे दोनों तरफ से आ ग‌ईं। मैं अजीब सी कस्मकस में था किन्तु जो हो रहा था उसे रोक नहीं रहा था। मैं भले ही इस वक़्त बहुत ही ज़्यादा घबराया हुआ और दुविधा जैसी हालत में था लेकिन मैं इतना तो समझ ही रहा था कि जो कुछ भी ये लोग कर रही हैं वो मेरे भले के लिए ही है। इस लिए मैं उन्हें किसी बात के लिए रोक नहीं रहा था।

बाथटब में आने के बाद कोमल और तबस्सुम ने मुझे नहलाना शुरू कर दिया। वो बहुत ही आहिस्ता से और मादक अंदाज़ में मेरे बदन पर अपने हाथ फेरती जा रहीं थी। उनके हाथों के स्पर्श से मुझे बेहद मज़ा आने लगा था जिससे मेरी आँखें बंद हो गईं थी। मेरे दिल की धड़कनें बड़ी तेज़ी से चल रहीं थी जिन्हें मैं काबू में करने का प्रयास कर रहा था। काफी देर तक उन दोनों ने मेरे पूरे बदन पर उस झाग मिश्रित पानी को डाल डाल कर अपने हाथों को फेरा उसके बाद सहसा उनके हाथ मेरे बदन के निचले हिस्से की तरफ बढ़ने लगे। मेरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रही थी और जैसे जैसे उनके हाथ मेरे बदन के निचले हिस्से की तरफ बढ़ रहे थे वैसे वैसे मेरी धड़कनें भी बढ़ती जा रहीं थी। कुछ ही पलों में मुझे उस वक़्त झटका लगा जब उनका एक हाथ एकदम से मेरे लंड पर पहुंच गया। मेरे लंड के चारो तरफ घने बाल थे जिन पर वो अपने हाथ की उंगलियां भी फेरने लगीं थी। मैं साँसें रोके और आँखें बंद किए इस सनसनीखेज़ मज़े में डूबा जा रहा था।

मेरी आँखें बंद थी इस लिए मुझे ये नहीं दिख रहा था कि वो ये सब करते हुए मेरी तरफ देख रहीं थी कि नहीं। मैं तो बस अपने बदन पर हो रही सुखद तरंगों के एहसास में ही डूबा हुआ था। तभी मैं चौंका जब कोई कोमल सी चीज़ मेरे होठों पर हल्के से छू गई। मैंने झट से आँखें खोली तो देखा एक चेहरा मेरे चेहरे पर झुका हुआ था। पहले तो मैं अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गया किन्तु फिर एकदम से शांत पड़ गया। उन में से कोई मेरे होठों को चूमने लगी थी। उसकी गर्म गर्म साँसें मेरे चेहरे पर ऐसा ताप छोड़ रहीं थी कि मुझे लगा मेरा चेहरा उस ताप से झुलस ही जाएगा। ये सब मेरे लिए पहली बार ही था और ऐसे मज़े का अनुभव भी पहली बार ही मैं कर रहा था। उधर कुछ पलों तक मेरे होठों को चूमने के बाद उस लड़की ने सहसा मेरे होठों को अपने मुँह में भर लिया और मेरे निचले होठ को ऐसे चूसने लगी जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी माँ के स्तनों को चूसने लगता है। जल्दी ही मेरी ऐसी हालत हो गई कि मुझे सांस लेना भी मुश्किल पड़ने लगा।

अभी मैं इसी में फंसा हुआ था कि तभी नीचे तरफ किसी ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया। मेरा लंड अब तक पूरी तरह अपनी औकात पर आ चुका था। मेरे जिस्म को अब झटके से लगने लगे थे। मेरे जिस्म में दौड़ता हुआ लहू बड़ी तेज़ी से मेरे जिस्म के उस हिस्से की तरफ भागता जा रहा था जिसे उनमे से किसी ने अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया था। मेरे मुख से सिसकियां निकली थी जो कि उस लड़की के मुँह में ही दफ़न हो गईं जिसने मेरे होठों को अपने मुँह में भर रखा था। जब मुझे सांस लेना मुश्किल होने लगा तो मैंने झटके से अपने सिर को पीछे कर लिया। सिर पीछे होते ही मैं ऐसे हांफने लगा था जैसे मीलों दौड़ कर आया था। आँखें खुली तो सामने माया के चेहरे पर मेरी नज़र पड़ी। उसकी आँखों में लाल डोरे तैरते दिखे मुझे और साथ ही उसका चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आया।

उधर नीचे तरफ मेरे लंड को मुट्ठी में जकड़े उन दोनों में से कोई ऊपर नीचे करने लगी थी। उन दोनों के हाथ नहीं दिख रहे थे इस लिए मैं ये नहीं जान पाया कि उनमें से मेरे लंड को किसने अपनी मुट्ठी में जकड़ रखा है?

"दम तो है लड़के में।" कोमल ने मुस्कुराते हुए माया की तरफ देखा____"वरना इतने में ही ये झड़ गया होता।"
"सही कहा।" माया ने कहा____"मैं भी यही परख रही थी कि ये अपने जज़्बातों को कितनी देर तक काबू किए रहता है। माना कि ये स्वभाव से शर्मीला है लेकिन इसके निचले हिस्से पर ख़ास बात है। ख़ैर इसे नहला कर जल्दी से बाहर ले आओ।"

माया के कहने पर उन दोनों ने मुझे नहलाना शुरू कर दिया। कुछ देर में दोनों ने मुझे बाथटब से बाहर निकाला और फिर शावर चला कर मेरे पूरे बदन को पानी से अच्छे से धोया। वो दोनों तो अपने काम में लगी हुईं थी लेकिन मैं उन दोनों की हिलती उछलती चूचियों को अपलक देख रहा था जिससे मेरा लंड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरा मन कर रहा था कि मैं उन दोनों की बड़ी बड़ी और सुन्दर सी चूचियों को दोनों हाथों से पकड़ लूं और फिर ज़ोर ज़ोर से उन्हें मसलना शुरू कर दूं किन्तु ऐसा करने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी। ख़ैर कुछ ही देर में शावर बंद हुआ और फिर वो दोनों मेरे बदन को टॉवल से पोंछने लगीं। वो दोनों भी मेरे साथ साथ ही भींग गईं थी।

कोमल और तबस्सुम के साथ जब मैं वापस कमरे में आया तो देखा कमरे के नीचे बीचो बीच क़रीब ढाई या तीन फुट ऊँची और क़रीब छः फुट लम्बी एक टेबल रखी हुई थी जिसमें मोटे लेदर का एक कपड़ा बिछा हुआ था। उसी टेबल के उस पार माया खड़ी थी। उसके जिस्म पर अभी भी सिर्फ ब्रा और पेंटी थी। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि इस संस्था वाले इतनी सुन्दर लड़कियां कहां से ले कर आए होंगे? हालांकि वो तीनों अपने ही देश की लगती थीं लेकिन मैंने अब तक जितनी भी लड़कियों को देखा था वो तीनों उन सबसे कहीं ज़्यादा खूबसूरत थीं और उनका बदन तो ऐसे था जैसे किसी मूर्तिकार ने बड़ी ही फुर्सत और लगन से उन तीन खूबसूरत मूर्तियों को रचा हो।

"इस टेबल पर पेट के बल लेट जाओ डियर।" माया ने बड़े ही प्रेम और अदा से कहा____"हम तीनों तुम्हारा मसाज करेंगी और वो भी ऐसा मसाज जिसकी तुमने कभी कल्पना भी न की होगी।"

माया की इस बात को सुन कर मैं कुछ न बोला, बल्कि जब कोमल और तबस्सुम ने मुझे टेबल की तरफ हल्के से धकेला तो मैं आगे बढ़ चला। कुछ ही पलों में मैं उस टेबल पर पेट के बल लेटा हुआ था। इस वक़्त मुझे बहुत ही ज़्यादा शर्म आ रही थी। ये तीनों लड़कियां तो ऐसी थीं जैसे इन्होंने शर्म नाम की चीज़ को किसी बड़े से बाज़ार में बेंच दिया हो।

टेबल पर लेटे हुए मेरी गर्दन बाएं तरफ मुड़ी हुई थी जिससे मेरी नज़र कोमल और तबस्सुम दोनों की ही चिकनी चूत पर जा पड़ी थी। उन दोनों की चूत पर मेरी नज़र जैसे गड़ सी गई थी जिसका असर ये हुआ कि टेबल पर दबा हुआ मेरा लंड जो अब थोड़ा शांत सा होने लगा था वो फिर से अपनी औकात पर आने लगा। तभी वो दोनों मेरी तरफ बढ़ीं जिससे उनकी चूतें भी मेरी आँखों के क़रीब आने लगीं। मेरी धड़कनें ये देख कर और भी तेज़ हो गईं। तभी मेरी पीठ पर कोई तरल सी चीज़ गिरने लगी जिससे मेरा बदन कांप सा गया।

मेरी पीठ पर कोई तरल पदार्थ गिराया गया था और उसके कुछ ही पलों बाद दो कोमल हाथों ने उस तरल पदार्थ को मेरी पीठ पर हल्के हाथों से फेरना शुरू कर दिया। मुझे बेहद मज़ा आने लगा था जिसकी वजह से मेरी आँखें बंद हो गईं और कुछ देर पहले जो चिकनी चूतें मुझे क़रीब से दिख रहीं थी वो गायब हो गईं। अभी मैं मज़े में आँखें बंद किए लेटा ही था कि तभी मेरी टांगों पर भी तरल पदार्थ गिरा और फिर वैसे ही कोमल हाथ मेरी टांगों पर फिसलने लगे।

वैसे तो कमरे में किसी की भी आवाज़ नहीं आ रही थी लेकिन मेरे कानों में हथौड़ा सा बजता प्रतीत हो रहा था। कुछ ही देर में मेरी पीठ और दोनों टाँगें उस तरल पदार्थ से चिपचिपी सी हो गईं, यहाँ तक कि मेरा पिछवाड़ा भी।

"चलो अब सीधा लेट जाओ।" कुछ देर बाद उनमें से किसी ने कहा तो मैं मज़े की दुनियां से बाहर आया। मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ तो एक बार फिर से मेरे अंदर शर्म और घबराहट उभरने लगी जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से दबाने की कोशिश की और सीधा हो कर लेट गया।

सीधा हो कर जैसे ही मैं लेटा तो मेरी नज़र बारी बारी से उन तीनों पर पड़ी। कोमल और तबस्सुम तो पूरी नंगी ही थीं लेकिन माया के बदन पर अभी भी ब्रा और पेंटी थी। हालांकि मेरी हालत ख़राब होने के लिए यही बहुत था। कोमल और तबस्सुम की बड़ी बड़ी सुडौल चूचियों को देखते ही मेरा लंड झटके खाने लगा था और जैसे ही मेरी नज़र उन दोनों की चूचियों से फिसल कर दोनों की टांगों के बीच नज़र आ रही चिकनी चूत पर पड़ी तो मुझे ऐसा लगा जैसे कि मेरे लंड से मेरा पानी पूरी स्पीड से निकल जाएगा। उन तीनों की नज़रें मेरे लंड पर ही टिकी हुईं थी जिससे मुझे शर्म भी आने लगी थी लेकिन मैंने इस बार अपने लंड को हाथों से छुपाने की कोई कोशिश नहीं की।

"इसका लंड तो सच में काफी तगड़ा है कोमल।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा_____"इसे देख कर लगता है कि अभी इसे अपनी चूत में भर लूं।"
"इतनी बेसब्र क्यों हो रही हो तुम?" माया ने सपाट लहजे में कहा_____"ये मत भूलो कि इसे हमारे पास ट्रेंड करने के लिए लाया गया है। अगर तुम ख़ुद ही अपना संयम खोने लगोगी तो इसे संयम करना कैसे सिखाओगी?"

"तू तो ऐसे कह रही है जैसे इसका लंड देख कर तेरी अपनी चूत में कोई खुजली ही न हो रही हो।" तबस्सुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा_____"शायद इसी लिए अब तक तूने अपनी ब्रा पेंटी को अपने बदन से अलग नहीं किया है।"

"हमसे ज़्यादा सेक्स की गर्मी तो इसी के अंदर है तबस्सुम।" कोमल ने हंसते हुए कहा_____"सच को छुपाने के लिए हम पर अपना रौब झाड़ती रहती है।"
"मैंने कब रौब झाड़ा तुम पर?" माया ने आँखें दिखाते हुए कहा____"अब बातों में समय न गंवाओ और आगे का काम शुरू करो।"

माया की बात सुन कर दोनों ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर कोमल ने अपने हाथ में ली हुई एक बड़ी सी कटोरी को तबस्सुम की तरफ बढ़ाया तो तबस्सुम ने उस कटोरी में अपने दोनों हाथ डाले और ढेर सारा तरल पदार्थ कटोरी से लेकर मेरे पेट से ले कर सीने तक गिरा दिया। उसके बाद उसने फिर से कटोरी से तरल पदार्थ लिया और इस बार उसे मेरे पेट के नीचे नाभि से होते हुए लंड पर और फिर जाँघों पर गिराया।

कटोरी रखने के बाद तबस्सुम के साथ कोमल भी आगे बढ़ कर मेरे बदन पर उस तरल पदार्थ को अपने कोमल कोमल हाथों से मलने लगी। कोमल मेरे सीने पर और तबस्सुम मेरी जाँघों से ले कर मेरे पेट तक मलने लगी थी। दोनों मेरे अगल बगल से खड़ी हो कर ये सब कर रहीं थी। मेरी नज़रें उनकी हिल रही चूचियों पर टिकी हुईं थी और मेरा लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था। मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं अपना एक हाथ बढ़ा कर कोमल की बड़ी बड़ी चूचियों को पकड़ लूं लेकिन मुझमें ऐसा करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

अभी मैं कोमल की चूची को पकड़ने का सोच ही रहा था कि तभी मुझे झटका लगा। तबस्सुम ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया था। उसकी मुट्ठी में जैसे ही मेरा लंड आया तो मेरे मुँह से सिसकी निकल गई। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उधर तबस्सुम मेरे लंड को उस तरल पदार्थ से भिगो रही थी और साथ ही मेरे लंड को दोनों हाथों से पकड़ कर कभी ऊपर तो कभी उसकी खाल को नीचे करने लगी। मैं मज़े के सातवें आसमान में पहुंच गया। मेरे पूरे बदन में बड़ी तेज़ी से सुरसुराहट होने लगी थी जो मेरे लंड की ही तरफ तेज़ी से बढ़ती हुई जा रही थी।

मैं आँखें बंद किए ज़ोर ज़ोर से सिसकियां ले रहा था और उधर तबस्सुम मेरे लंड को उस तरल पदार्थ से भिगोते हुए मुट्ठ सी मार रही थी। अभी मैं इस मज़े में ही था कि तभी फिर से मुझे झटका लगा और मैंने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोल दी। मैंने देखा कि कोमल जो इसके पहले नीचे खड़े हो कर मेरे सीने और पेट पर मसाज कर रही थी वो अब टेबल पर चढ़ कर मेरे ऊपर आ गई थी। मैं ये देख कर बुरी तरह हैरान हो गया था। तभी वो मेरे ऊपर लेट गई जिससे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे चिपचिपे सीने में धंस गईं और साथ ही उसका निचला हिस्सा मेरे लंड के ऊपर आ गया जिससे मेरा लंड उसकी चूत के पास दस्तक देने लगा। ये सब देख कर मुझे लगा कि मुझे दिल का दौरा ही पड़ जाएगा। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला।

माया ने तबस्सुम को कोई इशारा किया जिससे तबस्सुम ने उस कटोरी को उठाया और सारा तरल पदार्थ कोमल के ऊपर उड़ेल दिया जिससे वो बड़ी तेज़ी से बहता हुआ मेरे बदन पर भी आ गया। कोमल मेरे ऊपर लेटी हुई थी और मैं साँसें रोके अचरज से उसे देखे जा रहा था। तभी कोमल ने चेहरा घुमा कर मेरी तरफ देखा। उसके खूबसूरत होठों पर बड़ी ही मनमोहक मुस्कान उभर आई। उसने दोनों हाथों से टेबल को पकड़ा और अपने जिस्म को मेरे जिस्म के ऊपर फिसलाने लगी जिससे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे सीने से फिसलती हुई मेरे पेट की तरफ जाने लगीं। कुछ ही पलों में उसकी दोनों चूचियां मेरे पेट और नाभि से होते हुए मेरे झटका खा रहे लंड पर पहुंच ग‌ईं। मेरा लंड उसकी दोनों चूचियों के बीच जैसे फंस सा गया। एक बार फिर से मेरे मुख से मज़े में डूबी सिसकारी निकल गई और साथ ही कराह भी। क्योंकि मेरे लंड की खाल पीछे की तरफ थोड़ा खिंच सी गई थी। उधर कोमल ने मेरी तरफ देखते हुए फिर से ज़ोर लगाया और नीचे से ऊपर आने लगी। उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे पेट से होते हुए वापस मेरे सीने पर आ ग‌ईं।

मैं आँखें बंद किए हुए मज़े में डूबा सिसकारियां भर रहा था कि तभी मेरे चेहरे पर कुछ चिपचिपा सा टकराया तो मैंने आँखें खोल कर देखा। कोमल की चूचियां उस तरल पदार्थ में सनी हुई मेरे चेहरे पर छू गईं थी। मैंने नज़र उठा कर कोमल की तरफ देखा तो उसे मुस्कुराते हुए ही पाया।

"ये तो छुपा रुस्तम निकला माया।" उधर तबस्सुम की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी_____"ये तो अभी तक टिका हुआ है। इसकी जगह कोई दूसरा होता तो अब तक दो तीन बार अपना पानी फेंक चुका होता।"
"हां मैं भी यही सोच रही थी।" माया ने सिर हिलाते हुए कहा_____"इसके आव भाव देख कर शुरुआत में यही लगा था कि ये हम तीनों को नंगा देखते ही अपना पानी छोड़ देगा लेकिन नहीं, ये तो इतना कुछ होने के बाद भी टिका हुआ है। इसका मतलब ये हुआ कि ये बहुत ही ख़ास है।"

"इसका मतलब तो ये भी हुआ कि हमें इसके संयम की परीक्षा लेने की अब कोई ज़रूरत नहीं है।" तबस्सुम ने कहा_____"बल्कि इसे अब ये सिखाना है कि किसी औरत को कैसे संतुष्ट किया जाता है?"
"सही कहा तुमने।" माया ने कहा_____"हमें अब यही सिखाना होगा इसे। चलो जाओ इसे फिर से नहला कर लाओ।"

माया के कहते ही कोमल मेरे ऊपर से उतर गई। उसके उतरते ही मुझे बहुत बुरा लगा। कितना मज़ा आ रहा था मुझे जब कोमल की बड़ी बड़ी चूचियां मेरे जिस्म पर फिसल रहीं थी। ख़ैर अब क्या हो सकता था? माया के कहे अनुसार कोमल और तबस्सुम मुझे फिर से बाथरूम ले गईं और अच्छे से नहलाया। उसके बाद मैं उन दोनों के साथ वापस कमरे में आ गया। कमरे में आया तो देखा उस टेबल को हटा दिया गया था जिसके ऊपर लेटा कर मेरा मसाज किया जा रहा था।

कमरे में एक तरफ रखे आलीशान बेड पर माया पहले से ही बैठी हुई थी। उसके जिस्म पर अभी भी ब्रा और पेंटी ही थी। मुझे देखते ही माया बेड से उठी और मेरे पास आई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ गईं कि अब इसके आगे क्या क्या होने वाला है। हालांकि उनकी बातों से मैं जान तो गया था कि आगे क्या होगा लेकिन वो सब किस तरीके से होगा ये जानने की उत्सुकता प्रबल हो उठी थी मेरे मन में।

☆☆☆
 
Top