kingkhankar
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The ending of this story is what deserves many standing applauses.
Really the writer is outstanding.
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Shukriya bade bhaiThe ending of this story is what deserves many standing applauses.
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Manmohak update sang durlabh katha ka samapan rahashymayi sa parteet hua haiअध्याय - 30
(अंतिम अध्याय)
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अब तक...
रस्सी के सहारे झूलते हुए मैं बड़ी तेज़ी से नीचे ज़मीन पर पहुंचा और रस्सी को कुंडे में ही लगी छोड़ कर मैं इमारत के पीछे की तरफ दौड़ चला। मैं ऐसे भाग रहा था जैसे हज़ारो भूत मेरे पीछे लग गए हों। मुझे नहीं पता कि मेरे पीछे कोई आ भी रहा था या नहीं लेकिन मैं बिना रुके भागता ही चला जा रहा था।
अब आगे....
एक लम्बा चक्कर लगा कर मैं मुख्य सड़क पर पहुंच चुका था। किस्मत से एक ऑटो आता हुआ दिखा तो मैंने उसे हाथ दे कर रुकवाया और बिना उससे कुछ बोले उसके ऑटो में बैठ गया। मेरी जल्दबाज़ी और हरकत को देख ऑटो वाला थोड़ा चौंका फिर हैरानी से मेरी तरफ देख कर पूछ ही बैठा कि कहां जाना है? मैंने उसे गंतव्य के बारे में बताया तो वो फ़ौरन ही चल पड़ा। सारे रास्ते मैं इस तरह चुपचाप बैठा रहा जैसे मुझे लकवा मार गया हो। ऑटो ड्राइवर बैक मिरर से बार बार मुझे देख रहा था किन्तु बोला कुछ नहीं। शायद वो मेरी हालत को समझने की कोशिश कर रहा था।
ऑटो एक जगह झटके से रुका तो मेरा ध्यान भांग हुआ और मैंने चौंक कर ऑटो वाले की तरफ देखा तो उसने बताया कि वो गंतव्य तक पहुंच गया है। उसकी बात सुन कर मैं थोड़ा हड़बड़ाया और फिर जल्दी से ऑटो से उतर कर उसके पैसे दिए। ऑटो वाला पैसे लेते वक़्त मेरी तरफ ही अजीब भाव से देख रहा था। मैं उसे पैसे देने के बाद बिना उससे कुछ बोले एक तरफ को बड़ी तेज़ी से बढ़ गया। कुछ ही देर में मैं ऐसी जगह पर आ गया जहां पर मैंने किराए की कार खड़ी की थी। कार में बैठ कर मैंने कार को स्टार्ट किया और फ़ौरन ही उसे मुख्य सड़क की तरफ बढ़ा दिया।
मुख्य सड़क पर बिना किसी बाधा के चलते हुए मैंने पहली बार राहत की थोड़ी सांस ली। हालांकि ज़हन अभी भी हज़ारो तरह के विचारो में उलझा हुआ था। मैं तेज़ी से चलते हुए मुख्य सड़क से उतर कर एक संकरी गली में कार को मोड़ दिया। कुछ दूर चलने के बाद मैंने कार रोक दिया। खिड़की का शीशा नीचे कर के मैंने आस पास का मुआयना किया और सब कुछ ठीक ठाक देख कर जल्दी से अपना हुलिया पहले जैसा बनाने में लग गया। जल्दी ही मैं अपने असली चेहरे में आ गया। सारी चीज़ों को मैंने बैग में ठूंसा और कार को स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया।
जहां से मैंने कार किराए पर ली थी वहां पर पहुंच कर मैंने कार के मालिक को उसकी कार वापस की और एक ऑटो में बैठ कर वापस होटल आ गया। होटल के कमरे में आ कर मैंने पहले दरवाज़े को अंदर से लॉक किया और फिर बेड पर पसर गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मानसिक और शारीरिक रूप से कितना थक गया हूं मैं।
कानों में अपने माता पिता की बातें ऐसे गूंज उठती थी जिससे मेरे कानों के साथ साथ मेरा ह्रदय भी फट पड़ता था। अंदर एक आग धधक रही थी जो मुझे अंदर ही अंदर जलाए जा रही थी। मन में विचारों का तूफ़ान मानो क़हर ढा रहा था। जब मैं अपने माता पिता के प्यार और स्नेह के बारे में सोचता तो मेरी आँखों से आंसू छलक पड़ते और जब ये सोचता कि उनकी असलियत क्या है तो आँखों से बहते आंसू मानो लावे में तब्दील हो जाते थे। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं एक झटके में सब कुछ तबाह कर दूं।
जब मेरे अंदर की धधकती हुई आग किसी भी तरह से शांत न हुई तो मैं बेड से उठा और सारे कपड़े उतार कर बाथरूम में घुस गया। बाथरूम में जा कर जब मैंने ठंडे पानी को अपने तपते जिस्म पर डाला तो एक सुखद एहसास की अनुभूति हुई। जाने कितनी ही देर तक मैं ठंडे पानी में खुद को भिगोता रहा उसके बाद तौलिए से खुद को पोंछते हुए बाथरूम से बाहर आ गया।
मन कुछ हल्का हो गया था और जिस्म में भी अब थकावट का ज़्यादा आभास नहीं हो रहा था। दिमाग़ ठंडा हुआ तो ज़हन में ये ख़याल उभरने लगे कि इस सबके बाद अब आगे क्या होगा? उन्हें ये पता चल चुका है कि किसी ने खिड़की के बाहर से उन सबकी सारी बातें सुन ली हैं इस लिए अब उनकी यही कोशिश होगी कि हर कीमत पर वो उस शख़्स को तलाश करें जिसने उनकी बातें सुनी हैं। ज़ाहिर है वो ऐसे शख़्स को जीवित नहीं छोड़ेंगे लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या वो ये जान पाएंगे कि खिड़की के बाहर से उनकी बातें सुन लेने वाला कौन था? अपने मन में उठे इस सवाल पर जब मैंने विचार किया तो मुझे जवाब भी मिल गया। यानि मौजूदा हालात में उन सबके ज़हन में उस शख़्स के रूप में एक ही नाम आएगा और वो नाम होगा मेरा। आज के वक़्त में अगर उनके लिए कोई सिरदर्द बन गया है तो वो हूं मैं। यानि उन्हें ये सोचने में ज़रा भी देर नहीं लगेगी कि खिड़की के बाहर से उनकी बातें सुन लेने वाला असल में मैं ही हो सकता हूं।
मैं भले ही वहां से फिलहाल पूरी तरह बच कर निकल आया था किन्तु उनकी नज़र में मेरा भेद खुल चुका था और अब वो हर जगह मेरी तलाश में अपने आदमियों को लगा देंगे। सबसे पहले तो मुझे जन्म देने वाला मेरा पिता मेरे बारे में ये पता लगाएगा कि मैं दूसरे शहर में हूं या नहीं? अगर उन्हें ये पता चला कि मैं वहां पर नहीं हूं तो ये साफ़ हो जाएगा कि खिड़की के बाहर से उनकी और बाकी सबकी बातें सुनने वाला मैं ही था।
हालात बहुत ज़्यादा गंभीर हो चुके थे। मेरे जितने भी अपने थे वो सब अब मेरी जान के दुश्मन बन चुके थे। अब मैं उनके लिए उनका बेटा नहीं रह गया था बल्कि ऐसा दुश्मन बन चुका था जिसे जीवित रखना उनके लिए हर्गिज़ संभव नहीं था। कोई और वक़्त होता तो मैं ये कल्पना तक नहीं कर सकता था कि मुझे इतना प्यार करने वाले मेरे ये अपने कभी मेरी जान के इस तरह दुश्मन भी बन सकते हैं। नियति जब कोई खेल रचती है तो वो हम मामूली इंसानों की कल्पना से बहुत ही ज़्यादा परे होता है। हालांकि मेरा मानना है कि हर चीज़ के जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ हम इंसान ही होते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि अगर किसी तरह का कोई बीज ही नहीं बोया जाएगा तो भला कोई फसल कैसे तैयार हो जाएगी? इंसान जाने अंजाने ऐसे बीज बो ही देता है जिसकी फसल आगे जा कर उसे ऐसे रूप में नज़र आती है। चाहे वो मेरे अपने रहे हों या मैं खुद, हम सबने ख़ुशी ख़ुशी अपनी ख़ुशी के लिए ऐसा बीज बोया जिसकी फसल आज ऐसे रूप में हमारे सामने नज़र आ रही थी जिसे ख़ुशी ख़ुशी काटने की किसी में हिम्मत ही नहीं थी। हालांकि जो हिम्मत दिखाने की कोशिश में लग गए थे वो भी उनकी हिम्मत नहीं थी बल्कि वो तो एक डर और मजबूरी। अपने अपने जीवन को सलामत रखने का डर और मजबूरी। सवाल था कि क्या मुझमें भी हिम्मत नहीं थी कि मैं इस तरह से तैयार हुई फसल को जड़ से काट कर उसका नामो निशान मिटा दूं?
मैं अपने मन में उठ रहे ऐसे विचारों और ख़यालों के चलते बुरी तरह उलझ कर रह गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में अब मुझे क्या करना चाहिए? मेरे अंदर से कोई चीख चीख कर मुझे आवाज़ें दे रहा था और तर्क देते हुए जाने क्या क्या कहता जा रहा था। मैं ये मानता हूं कि मैंने अपनी ख़ुशी और अपनी चाहत को पूरा करने के लिए ऐसी संस्था को ज्वाइन किया जिसने यकीनन मेरी फितरत को बदल दिया और मेरी सबसे बड़ी चाहत को पूरा करवा दिया। मेरी उम्र के लड़के जवानी में अगर ऐसी हसरतें पाल बैठते हैं तो ये एक स्वाभाविक बात है। मैं नहीं समझता कि मैंने ऐसी संस्था को ज्वाइन कर के कोई ग़लत किया था लेकिन मेरे माता पिता और उनके साथियों ने क्या सोच कर ऐसी संस्था को ज्वाइन किया रहा होगा? आख़िर उन्हें ऐसा कौन सा दुःख था जिसे वो ऐसी संस्था में आने के बाद ही दूर कर सकते थे? कहते हैं कि माता पिता अपने बच्चों को ऐसे संस्कार और ऐसी शिक्षा देते हैं जिससे बच्चे संसार में आगे चल कर अपने अच्छे कर्मों द्वारा अपने माता पिता के साथ साथ अपने कुल खानदान का भी नाम रोशन करे लेकिन मेरे मामले को देख कर उसके बारे में कोई क्या कह सकता था? मैं पूछता हूं कि दुनियां में ऐसे कौन से माता पिता हैं जो अपनी ऐसी घटिया हसरतों के लिए ऐसे काम करते हैं जिसकी वजह से उनके सामने आज ऐसे हालात बन जाएं?
मेरे दिलो दिमाग़ में आँधियां सी चल रहीं थी और आँधियों के बीच मेरा वजूद बुरी तरह तहस नहस होता हुआ प्रतीत हो रहा था। बार बार मेरे ज़हन में बस यही ख़याल उभर आते थे कि कोई माता पिता अपने बेटे के बारे में ऐसा कैसे चाह सकता है और वो खुद ऐसा कैसे हो सकते हैं? ऐसी गिरी हुई सोच और ऐसी नीचता से भरी हुई मानसिकता कैसे हो सकती थी उन सबकी? बात सिर्फ मेरी या मेरे माता पिता बस की ही नहीं थी बल्कि मेरे बाकी दोस्तों के माता पिता भी ऐसी ही गिरी हुई सोच और मानसिकता के शिकार थे। उनके मन में भी अपने अपने बच्चों के प्रति ऐसी लालसा थी जो हद दर्ज़े का पाप था।
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उस वक़्त रात के क़रीब एक बज रहे थे जब मैं अपने घर के एक ऐसे हिस्से में जा पहुंच चुका था जहां पर लाइट का प्रकाश नहीं था। यहाँ तक पहुंचने में फिलहाल मुझे कोई परेशानी नहीं हुई थी। मैं अच्छी तरह जानता था कि मेरी जान के दुश्मन मुझे पूरे शहर में खोज रहे हैं लेकिन मैं ये भी जानता था कि वो यहाँ पर मुझे खोजने का सोचेंगे ही नहीं क्योंकि उनकी समझ में मैं अपनी जान बचाने के लिए किसी ऐसी जगह छुपने का सोचूंगा जहां पर मुझे कोई खोज ही न पाए। वो ये नहीं सोच सकते थे कि मैं इतने गंभीर हालात में अपने ही घर जाने का सोच सकता हूं। हालांकि यहाँ भी घर के अंदर जाना मेरे लिए आसान नहीं था क्योंकि घर के मुख्य दरवाज़े की तरफ नौकर थे और घर के अंदर सविता आंटी। सविता आंटी भी उन्हीं से मिली हुईं थी इस लिए अगर उनकी नज़र मुझ पर पड़ गई तो वो फ़ौरन ही मेरे यहाँ होने की सूचना उन्हें दे देंगी।
होटेल से मैं सीधा यहीं आया था। इतना तो मैं अपने पिता के मुख से ही सुन चुका था कि ज़्यादातर मामले संजय अंकल ही उनके कहने पर सम्हालते थे और उनके निर्देश पर बाकी लोग सम्हालते थे तो ज़ाहिर है कि मेरे पिता कोई भी काम फील्ड में जा कर नहीं करते थे। मुझे अंदेशा था कि वो संजय अंकल के बंगले से निकल कर मम्मी के साथ सीधा घर ही गए होंगे। मुझे ये भी अंदेशा था कि वो बंगले में पहुंच कर सीधा अपने कमरे के उस गुप्त तहख़ाने में जाएंगे जिस तहख़ाने का रहस्य जानने के लिए मैं उनकी चोरी से कई बार वहां जा चुका था। अपने घर आने का मेरा मकसद खुद को छुपाना या अपनी जान बचाना हरगिज़ नहीं था बल्कि यहाँ आने का बस एक ही मकसद था कि इस सबके बारे में अपने माता पिता से वो सब कुछ पूछ सकूं जो मैं जानना चाहता हूं और ये भी कि उन्होंने ये सब क्यों किया है?
बंगले के पीछे तरफ से दीवार के सहारे चलते हुए मैं उस हिस्से में आया जहां पर मेरे कमरे की खिड़की थी। ऊपर पहले फ्लोर पर मेरे कमरे की खिड़की के बाहरी तरफ बनी बालकनी मुझे साफ़ दिख रही थी। यहीं से रस्सी के सहारे उतर कर मैं एजेंट के रूप में आया जाया करता था। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि संभव है कि संस्था का कोई एजेंट मेरे इस बंगले के आस पास कहीं मौजूद हो। हालांकि इसका मुझे यकीन नहीं था क्योंकि कई बार मैंने पहले भी इस बात को जांचा परखा था लेकिन ऐसा कोई संदिग्ध ब्यक्ति मुझे पहले कभी नज़र नहीं आया था। तब मैंने यही निष्कर्ष निकाला था कि संस्था का कोई एजेंट तभी मेरे आस पास लगाया जाता था जब मैं एजेंट के रूप में सर्विस देने जाता था। कहने का मतलब ये कि इस वक़्त आस पास संस्था का कोई भी एजेंट नहीं हो सकता था।
चारो तरफ का बड़ी बारीकी से मुआयना करने के बाद मैंने अपनी पीठ से अपना बैग निकाला। होटल से आते वक़्त एक जगह मैंने एक और रस्सी खरीद ली थी। अपने घर में घुसने का प्लान मैंने होटेल में ही बनाया था। खैर बैग से रस्सी निकाल कर मैंने उसे खोला और उसके एक छोर को पकड़ कर बड़ी ही कुशलता से ऊपर की तरफ उछाल दिया। रस्सी हवा में लहराती हुई बालकनी में लगी लोहे की रेलिंग तक पहुंची लेकिन वापस नीचे की तरफ ही आ गिरी। ज़ाहिर था उसका छोर सही जगह पर पहुंच ही नहीं पाया था। मैंने फिर से कोशिश की लेकिन रस्सी का छोर सही तरीके से रेलिंग के उस हिस्से में नहीं पहुंच पा रहा था जहां मैं उसे पहुंचाना चाहता था। दो तीन बार की कोशिश बेकार जाने पर मेरे चेहरे पर परेशानी के साथ साथ गुस्से के भी भाव उभर आए। मैंने कुछ देर गहरी गहरी सांस ले कर खुद को शांत किया और चौथी बार फिर से रस्सी को ऊपर की तरफ उछाला। रस्सी का छोर लोहे के ऊपरी भाग में गया और घूम कर उसके नीचे बनी कई सारी छोटी बड़ी जालियों के बीच अटक गया। मैंने जल्दी से रस्सी को अपनी तरफ खींचा जिससे छोर पर लगी गाँठ उसमें शख़्ती से फंस गई। गाँठ की वजह से रस्सी का छोर उस छोटे हिस्से से निकल ही नहीं पाया जिसकी वजह से रस्सी टाइट हो गई। मैं समझ गया कि इस बार सही जगह पर रस्सी का छोर पहुंच गया है।
कुछ ही देर में मैं रस्सी के सहारे खिड़की के बाहरी भाग में बनी बालकनी में पहुंच गया था। साँसें थोड़ी फूल गईं थी इस लिए मैंने कुछ देर साँसों को नियंत्रित किया और फिर चारो तरफ का मुआयना करने के बाद खिड़की की तरफ पलटा। खिड़की में कांच के दो पल्ले थे जिनके चारो तरफ लकड़ी का फ्रेम लगा हुआ था। जब से मैंने चूत मार सर्विस जैसी संस्था को ज्वाइन किया था और एजेंट के रूप में सर्विस देने जाने लगा था तब से इस खिड़की को मैं अंदर से लॉक कर के बंद नहीं रखता था बल्कि सिर्फ दोनों पल्लों को आपस में जोड़ कर ही रखता था। खिड़की के अंदर पर्दा लगा हुआ था। अगर अंदर कमरे में लाइट जल रही होती तो यकीनन पर्दे में रौशनी का आभास होता।
मैंने बड़ी ही सावधानी से खिड़की के दोनों पल्लों को खोला और बड़ी ही आसानी से खिड़की के रास्ते अंदर कमरे में पहुंच गया। कमरा क्योंकि मेरा था इस लिए मुझे अच्छी तरह पता था कि अंदर कमरे में कौन सी चीज़ कहां पर मौजूद हो सकती है। मैंने खिड़की के पल्लों को पहले जैसे आपस में भिड़ाया और पलट कर बेड की तरफ बढ़ चला। मेरे दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थीं किन्तु डर का एहसास नहीं था क्योंकि इस वक़्त मैं उस तरह की मानसिकता में ही नहीं था।
कमरे में अँधेरा था और सन्नाटा ऐसा कि अगर कहीं सुई भी गिरे तो धमाके जैसी आवाज़ हो। मैं कुछ देर बेड के पास खड़ा अपने अंदर उठ आए तूफ़ान को सम्हालने की कोशिश करता रहा उसके बाद मुट्ठियां कस कर दरवाज़े की तरफ बढ़ा। दरवाज़ा मेरी उम्मीद के अनुसार बाहर से बंद नहीं था, इस लिए मैंने उसे आहिस्ता से थोड़ा सा खोला तो बाहर तरफ रौशनी का आभास हुआ। ड्राइंग रूम के बहुत ऊपर छत के कुंडे में एक विशाल झूमर लगा हुआ था जो कई सारी लाइटों से रोशन था और उसी की रौशनी चारो तरफ फैली हुई थी। हर तरफ गहरी ख़ामोशी छाई हुई थी। मुझे ये देख कर थोड़ी हैरानी हुई कि ऐसे हालात में भी बंगले के अंदर किसी तरह की हलचल का आभास तक नहीं हो रहा था। बगले के अंदर का माहौल बिलकुल वैसा ही था जैसे सामान्य परिस्थिति में होता था।
मैं दरवाज़ा खोल कर बाहर निकला और लम्बी राहदारी से चलते हुए सीढ़ियों के पास आया। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जो मुझे बुरी तरह झकझोर रहे थे और यहाँ पर भयानक तांडव करने के लिए मजबूर कर रहे थे। मैं सीढ़ियों से उतारते हुए नीचे आया। सीढ़ियों पर हरे रंग का कालीन नीचे तक बिछा हुआ था इस लिए मेरे उतरने पर कोई आवाज़ नहीं हुई।
सीढ़ियों से नीचे आ कर मैंने चारो तरफ नज़रे घुमाई। मेरे माता पिता का कमरा नीचे ही था और दूसरी तरफ एक कोने में सविता आंटी का कमरा था। मैंने इधर उधर देखा किन्तु ना तो कोई नज़र आया और ना ही किसी प्रकार की कहीं कोई हलचल समझ में आई जोकि ऐसी सिचुएशन में मेरे लिए बहुत ही चौकाने वाली बात थी। ख़ैर मैं सीधा अपने माता पिता के कमरे की तरफ बढ़ चला। कुछ ही देर में जब मैं मम्मी पापा के कमरे के पास पंहुचा तो देखा दरवाज़ा बंद था। पहले तो मन किया कि दरवाज़े पर पूरी ताकत से लात मारूं ताकि दरवाज़ा जड़ से ही उखड़ जाए किन्तु फिर मैंने अपने अंदर उठे क्रोध को शांत किया और दरवाज़े से कान सटा कर अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की।
कमरे के अंदर भी वैसी ही ख़ामोशी छाई हुई थी जैसे बाहर छाई हुई थी। मैं समझ गया कि या तो वो दोनों तहख़ाने में होंगे या फिर सो गए होंगे। मैंने दरवाज़े को अंदर की तरफ हल्का सा धकेला तो मेरी उम्मीद के विपरीत दरवाज़ा बड़ी आसानी से खुलता ही चला गया। कमरे में नीम अँधेरा था। मैं दरवाज़े के पास खड़ा अंदर किसी तरह की हलचल होने का इंतज़ार करने लगा किन्तु जब काफी देर गुज़र जाने के बाद भी मुझे किसी तरह की हलचल का आभास नहीं हुआ तो मैं कमरे के अंदर दाखिल हुआ।
मन में तो तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे किन्तु जाने क्यों इस वक़्त मुझे थोड़ी घबराहट सी महसूस होने लगी थी। कमरे के अंदर आया तो मेरी नज़र बड़े से बेड पर पड़ी। बेड में कोई नहीं था। बेड अपनी जगह पर वैसा ही रखा हुआ था जैसे हमेशा रखा रहता था। ये देख कर मैं मन ही मन चौंका। मुझे समझ न आया कि अगर बेड कालीन के ऊपर ही रखा हुआ है और बेड भी खाली है तो फिर मेरे मम्मी पापा कहां हैं? मैं तो यही समझा था कि या तो वो दोनों बेड पर सोए हुए होंगे या फिर नीचे तहख़ाने में होंगे लेकिन यहाँ तो ऐसा कुछ था ही नहीं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वो दोनों यहाँ आए ही न हों?
अभी मैं ये सोच ही रहा था कि एकदम से मेरी नज़र बेड के दूसरी तरफ पड़ी। ऐसा लगा जैसे वहां पर कोई पड़ा हुआ है। मैं सावधानी से उस तरफ बढ़ा। मन में हज़ारो तरह के ख़याल लिए जैसे ही मैं बेड के दूसरी तरफ पहुंचा तो मेरे होश उड़ गए। दिलो दिमाग़ को ऐसा झटका लगा कि मैं एकदम से अपने होश खो बैठा और बिजली की तरफ लपक कर आगे बढ़ा। कमरे के फर्श पर मेरी माँ लहू लुहान पड़ी हुई थी और उनके पीछे बेड की पुश्त से अपनी पीठ टिकाए मेरे पापा बैठे हुए थे। इस तरफ के फर्श पर खून ही खून फैला हुआ था। अपने माता पिता को इस तरह लहू लुहान हालत में देख कर मैं उनके प्रति अपनी नफ़रत और गुस्से को भूल गया और तड़प कर उनके नज़दीक पहुंचा।
फर्स पर किसी ठंडी चीज़ पर मेरा हाथ पड़ा तो मैंने बेध्यानी में उस चीज़ को पकड़ लिया। हथेली पर ठण्ड का एहसास हुआ तो मैंने मम्मी और पापा की तरफ से नज़र हटा कर अपनी हथेली की तरफ देखा तो बुरी तरह उछल पड़ा। मेरे हाथ में रिवाल्वर था। पलक झपकते ही मेरे ज़हन में बस एक ही बात गूँजी कि इस रिवाल्वर से मेरे माता पिता ने अपनी जान ले ली है। शायद वो मुझे खोने के बाद खुद भी जीवित नहीं रहना चाहते थे। उन्हें लगा होगा कि मैं संजय अंकल के बंगले से भाग कर सीधा घर ही जाऊंगा। उसके बाद जब वो भी घर लौटेंगे तो उनका सामना मुझसे होगा। अपनी असलियत के उजागर हो जाने की वजह से भला वो कैसे मुझे अपना चेहरा दिखा सकते थे? शायद इसी लिए उन्होंने ऐसा वक़्त आने से पहले ही अपने आपको ख़त्म कर लिया।
अपने माता पिता को इस तरह से इस दुनियां से गया देख मेरा दिल हाहाकार कर उठा। एक असहनीय दर्द मेरी आत्मा तक को पीड़ा देता हुआ चला गया। पलक झपकते ही मेरी हालत पागलों जैसी हो गई किन्तु फिर अचानक से मुझे झटका लगा और मैं ये सोच कर हलक फाड़ कर चिल्लाया कि मुझे मेरे सवालों का जवाब दिए बिना मेरे माँ बाप कैसे इस दुनिया से जा सकते हैं? जिस ख़ुशी से उन्होंने ऐसा कुकर्म किया था उसी ख़ुशी से उन्हें मेरा सामना भी करना चाहिए था। पूरे बंगले में मेरी आवाज़ें गूँज उठीं थी। मैं गुस्से और नफ़रत में पागलों की तरह चिल्लाए जा रहा था। अचानक से बंगले में बड़ी तेज़ी से हलचल होती हुई प्रतीत हुई। कई सारे लोगों के क़दमों की आवाज़ें इस तरह से सुनाई दीं जैसे कई सारे लोग भागते हुए मेरी तरफ ही आ रहे थे।
कुछ ही देर में कमरे में कई सारे लोग दाखिल हुए और कई लोगों ने मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया। अगले ही पल कमरे में तेज़ रौशनी हो गई। मैंने पहली बार उन लोगों की तरफ नज़र घुमाई तो ये देख कर मुझे झटका लगा कि मुझे पकड़ने वाले कोई और नहीं बल्कि पुलिस के लोग थे। एक पुलिस वाले ने सफ़ेद रुमाल के सहारे मेरे हाथ से वो रिवाल्वर ले लिया जिसे अब तक मैंने अपने हाथ में ही पकड़ा हुआ था। पलक झपकते ही मानो हर मंज़र बदल गया था। कई पुलिस वाले मुझे शख़्ती से खींचते हुए कमरे से बाहर ले गए। कमरे से बाहर हॉल में आया तो एक ने मेरे हाथों में हथकड़ी पहना दी। मुझे किसी चीज़ का होश ही नहीं था कि मेरे साथ वो लोग क्या क्या करते जा रहे थे। मेरे ज़हन में तो बस इसी बात का गुस्सा भरा हुआ था कि मेरे माँ बाप मेरे सवालों का जवाब दिए बिना कैसे इस दुनिया से जा सकते थे?
बंगले से बाहर वो लोग मुझे पकड़ कर ले आए थे और अपनी पुलिस जीप में किसी बोरे की तरह ठूंस कर बैठा दिया। पुलिस की जीप एक झटके से वहां से चल पड़ी तो जैसे मेरी चीखों पर ब्रेक लग गया और मैं किसी गहरे सदमे में डूबता चला गया। उसके बाद मुझे कोई होश नहीं रह गया था कि किसी ने क्या क्या मेरे साथ किया। हवालात में पुलिस वालों ने ये कहते हुए मुझ पर डंडे बरसाए कि मैंने अपने माता पिता का खून क्यों किया लेकिन मेरे मुख से बस दर्द से भरी चीखें ही निकलती रहीं। तीन चार दिन यही आलम रहा। इन चार दिनों में मुझसे कोई भी ऐसा ब्यक्ति मिलने नहीं आया जिसे मैं कभी अपना समझता था।
चौथे दिन मुझे अदालत में पेश किया गया। अदालत में वकीलों ने अपना अपना काम किया जबकि मैं बेजान लाश की तरह कटघरे में खड़ा रहा। मेरे कानों तक किसी की बातें पहुंच ही नहीं रहीं थी और ना ही मैंने किसी के सवालों के जवाब दिए। आख़िर में न्याय की कुर्सी पर बैठे न्यायाधीश ने मुझे उम्र क़ैद की सजा सुना दी। उसके बाद एक बड़ी सी गाडी में मुझे सेंट्रल जेल की एक कोठरी में ला कर डाल दिया गया।
ज़िन्दगी कहां से शुरू हुई थी और कहां आ कर ख़त्म हो गई थी। मैं महीनों सदमे में डूबा रहा। शुरुआत के कुछ महीने मैंने जेल में क़ैदियों के बीच न जाने कैसे कैसे कष्ट सहे और कैसी कैसी यातनाएं सहीं किन्तु मुझ पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। न जीने की आरज़ू थी और न ही किसी से कुछ कहने की तमन्ना। ऐसे ही दिन महीने में और महीने साल में गुज़रने लगे। कुछ साल बाद जब मैं थोड़ा ठीक हुआ तो अक्सर ये सोचता कि मेरे माता पिता ने खुद ख़ुशी क्यों की होगी? क्या सच में वो अपराध बोझ से इतना दब चुके थे कि वो मेरा सामना करने से डरते थे और मेरी मौत का फरमान सुनाने के बाद खुद भी जीवित नहीं रहना चाहते थे? क्या सच में यही बात रही होगी या असलियत कुछ और थी? मैं अक्सर सोचता था कि मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करने वाले मेरे अपने एक बार भी उस समय मुझसे मिलने पुलिस लॉकअप में क्यों नहीं आए थे? जब मुझे अदालत में जज के सामने पेश किया गया था तब भी शायद वो नहीं आए थे। आख़िर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि मेरे अपनों ने मुझसे इस तरह से मुँह मोड़ लिया था? मेरे दोस्तों में से भी कोई मुझसे मिलने नहीं आया था। क्या इस सबके पीछे कोई ऐसा रहस्य हो सकता है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था? ऐसे न जाने कितने ही सवाल अक्सर मेरे ज़हन में उभरते रहते थे लेकिन ऐसे सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं था।
ज़िन्दगी जब बोझ लगने लगती है तो फिर किसी चीज़ से मोह नहीं रह जाता और ना ही किसी चीज़ से कोई फ़र्क पड़ता है। संसार में कब किसके साथ क्या होता है इस बात से भी इंसान को कोई मतलब नहीं रह जाता। वक़्त और हालात जब किसी इंसान को ये एहसास करा देते हैं कि उसका इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं रहा और न ही कोई उसके लिए दुखी होने वाला रहा तो इंसान एक गहरे शून्य में डूब जाता है। वो इस संसार की माया से विरक्त हो जाता है। हर गुज़रते वक़्त के साथ मेरा यही हाल होता जा रहा था। मैं इस बात को भी नहीं सोचता था कि क्या सच था और क्या झूठ। जिससे मुझे अपने सवालों के जवाब चाहिए थे वो तो खुद ही इस दुनिया से जा चुके थे, फिर भला किसी से किस लिए कोई सवाल करना या किसी बात का शिकवा गिला करना? हर रोज़ दिल करता था कि अपनी ऐसी ज़िन्दगी को एक झटके में मिटा दूं लेकिन अगले ही पल मैं ये सोच कर अपनी इस सोच को बेदर्दी से कुचल देता था कि मैं अपने माता पिता की तरह कायर नहीं हूं जो किसी का सामना करने की बजाय खुद ख़ुशी कर ले। इस संसार में अमर कोई नहीं है। मौत सबको एक दिन आनी है तो जिस दिन मुझे मरना लिखा होगा तो मर ही जाऊंगा। अगर मैंने भूल से कोई पाप भी किया था तो यही समझ लूंगा कि ये दुःख दर्द सहना ही मेरा प्रयाश्चित है। दिल में बस यही एक ख़्वाहिश रह गई थी कि काश! मौत नाम की खूबसूरत बला जल्दी से मुझे अपनी बाहों में लेने के लिए आ जाए।
जेलर साहब, यही मेरे जीवन की कहानी है और यही मेरा सच है। आपसे पहले भी इस जेल में कई जेलर आए थे किन्तु मैंने उनमें से किसी को भी अपना सच नहीं बताया था। उन्हें भला क्या बताता कि मैं कौन था और मेरे साथ साथ मेरे परिवार का सच क्या था। क्या इससे कोई चीज़ बदल सकती थी? क्या किसी से अपनी दास्तान बताने से मुझे कोई ख़ुशी मिल सकती थी? मेरा किस्सा ऐसा था ही नहीं जो किसी को बताने लायक हो, बल्कि ये तो ऐसा था जिसे हज़ारो लाखों पर्दों में छिपा कर ही रखा जा सकता था। भला मैं कैसे किसी को ये बताता कि मेरे अपने किस तरह की मानसिकता के शिकार थे और किस तरह की ख़्वाहिश रखते थे?
सोचा तो यही था कि मरता मर जाऊंगा लेकिन किसी को अपना सच नहीं बताऊंगा लेकिन शायद नियति मुझसे कुछ और ही चाह रही थी इस लिए उसने मेरे जीवन में आपको भेजा। वागले साहब आप सच में बहुत ही नेकदिल इंसान हैं और मैं दुआ करता हूं कि ऊपर वाला हमेशा आपको और आपके परिवार को खुश रखे। आपने हमेशा मुझे अपने छोटे भाई की तरह प्यार और स्नेह दिया। इस जीवन में बस यही एक अच्छी बात हुई कि मुझे आपके जैसा प्यार और स्नेह देने वाला कोई गैर मिला। आपको अपना नहीं कहूंगा क्योंकि अपने कैसे होते हैं ये मैंने देख लिया है। ख़ैर जब मुझे पता चला कि मेरी बाकी की सज़ा को माफ़ कर दिया गया है तो मैंने भी सोचा कि जीवन में अब कुछ तो करना ही पड़ेगा इस लिए जब कुछ करने के बारे में सोचा तो एक बार फिर से ज़हन सक्रिय हो गया। जो सवाल कभी अक्सर ज़हन में उभरा करते थे वो एक बार फिर से उभरने लगे और इस बार उन सवालों के जवाब मुझे खुद ही मिल गए।
मैं अच्छी तरह समझ चुका हूं जेलर साहब कि बीस साल पहले का सच क्या था और जब समझ गया तो ये सोच कर मुस्कुरा उठा कि नियति के खेल भी कितने निराले होते हैं। मैंने कभी खुद ख़ुशी इसी लिए नहीं की थी क्योंकि नियति आगे चल कर मेरे द्वारा एक और खेल खेलना चाहती थी। यहाँ से जाने से पहले मैंने सोचा कि आपको अपना सच बता कर ही जाऊं। आप जैसे नेकदिल इंसान के मन में हमेशा के लिए ये जिज्ञासा छोड़ कर क्यों जाऊं जो आपको हमेशा सोचने पर मजबूर करती रहे।
आख़िर में बस यही कहूंगा कि आपसे फिर मुलाक़ात होगी किन्तु रूबरू नहीं बल्कि ऐसी ही मेरी किसी डायरी के द्वारा।
अच्छा अब अलविदा...!!
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☆☆☆ समाप्त ☆☆☆
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दोस्तों, कहानी का ये भाग यहीं पर समाप्त होता है। हालांकि मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता था कि कहानी का कोई दूसरा भाग भी बने किन्तु मेरे ना चाहने के बावजूद ऐसा हो गया। कहानी तो अपने इस शीर्षक के हिसाब से पूरी हो चुकी है लेकिन इस कहानी में अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो शेष रह गया है। आख़िर में मैंने यही सोचा कि जो कुछ शेष रह गया है उसे एक नए शीर्षक के साथ शुरू करुंगा।
कहानी का अंत पढ़ने के बाद आप सबके ज़हन में भी यही विचार आया होगा कि जो कुछ रह गया है वो इस कहानी के शीर्षक के हिसाब से नहीं हो सकता।
ख़ैर जल्द ही इस कहानी का दूसरा भाग शुरू करूंगा और आप सबके मन में उपजे सवालों के जवाब भी दूंगा।
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद कि आप सबने इस कहानी को पढ़ा और अपनी खूबसूरत प्रतिक्रियाओं से मुझे खुशी प्रदान की।
Shukriya bhaiManmohak update sang durlabh katha ka samapan rahashymayi sa parteet hua hai
Shukriya bhaiNice ending![]()