तेरे नाम कविता
अब तो मेरी कविताएँ भी तुझसे जलने लगी हैं,
तेरी तारीफ सुन-सुन के ये नज़्में पकने लगी हैं,
तेरा नाम कविता में लिख दूँ तो ये मुझसे चिढ़ती हैं,
दुनिया क्या कम थी, जो अब ये भी मेरे कान भरती हैं,
ज़माने को क्या पता मेरी हर साँस में तेरा नाम बसा है,
ये अब भी कागज़ और कलम की कशमकश में फँसा है,
तेरे नाम को कविता दूँ या कविता को तेरा नाम
लिखूँ या नहीं, मैं तो फिर भी रहूँगा बदनाम,
तेरा नाम तो मेरी हर कहानी में आएगा,
कनक को तो पृथ्वी में ही बोया जाएगा ।।
