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Fantasy Dark Love (Completed)

drx prince

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Update - 01
_________________





हर एक पल रंज़-ओ-ग़म गवारा करके।
जी रहा हूं फक़त यादों का सहारा करके।।

हाल-ए-दिल मेरा समझता ही नहीं कोई,
बैठा है हर शख़्स मुझसे किनारा करके।।

तेरे बग़ैर मुझे रास न आएगी ये दुनियां,
देख लिया है मैंने हर सूं गुज़ारा करके।।

नींद आए कभी तो ख़्वाबों में देखूं तुझे,
जी नहीं लगता किसी का नज़ारा करके।।


ज़िन्दगी पहले भी बेरंग थी, ज़िन्दगी आज भी बेरंग है और न जाने कब तक ये ज़िन्दगी यूं ही बेरंग रहने वाली है। मैंने अपनी ज़िन्दगी को रंगों से भरने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार ऐसा ही हुआ है कि मेरी ज़िन्दगी मुझे बेरंग ही नज़र आई। मैं अक्सर सोचता था कि क्या मुझे कोई अभिशाप मिला है जिसकी वजह से मैं हर किसी की तरह खुश नहीं रह सकता? हलांकि इस दुनियां में खुश तो कोई नहीं है लेकिन मेरे अलावा बाकी लोगों को खुश रहने का कोई न कोई जरिया तो मिल ही जाता है। सबसे बड़ी बात तो ये भी है कि झूठ मूठ का ही सही लेकिन बाकी लोग खुश रहने का दिखावा तो कर ही लेते हैं किन्तु मेरी किस्मत में ऐसा दिखावा करना भी जैसे लिखा ही नहीं है।

पिछले दो साल में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने उस जगह को खोजने की कोशिश न की हो जिस जगह पर मैंने एक ऐसी शख़्सियत के साथ जीवन के चंद दिन गुज़ारे थे जिसे देख कर मैं ये समझ बैठा था कि उसके साथ ही मेरी ज़िन्दगी की असल खुशियां हैं। कुदरत कभी कभी इंसान को खुली आँखों से ऐसे ख़्वाब दिखा देती है जो उसे कुछ पलों के लिए तो ख़ुशी दे देते हैं लेकिन उसके बाद जीवन भर का दर्द भी जैसे उन्हें सौगात में मिल जाता है। मुझे ऐसे दर्द से कोई शिकवा नहीं था बल्कि मैं तो यही चाहता था कि दर्द चाहे जितने भी मिल जाएं लेकिन जीवन में एक बार फिर से उसका दीदार हो जाए ताकि उसके खूबसूरत चेहरे को अपनी पलकों में और अपने दिल में बसा कर उसी के ख़यालों में ताऊम्र खोया रहूं।

"अब मुझे जाना होगा ध्रुव।" उसने प्यार से मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा था____"ऐसा पहली बार हुआ है कि मैंने किसी इंसान के साथ इतना वक़्त बिताया है।"

"ये..ये तुम क्या कह रही हो मेघा?" उसके जाने की बात सुन कर मेरी जान जैसे मेरे हलक में आ फंसी थी_____"तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कैसे जा सकती हो?"

"मुझे जाना ही होगा ध्रुव।" मेघा ने पहले की भाँति ही मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा था_____"पिछले एक हप्ते से मैं तुम्हारे साथ यहाँ पर हूं। तुम्हारे ज़ख्म तो पहले ही ठीक हो गए थे लेकिन मैं तुम्हारे साथ इतने दिनों तक इसी लिए रह गई क्योंकि मेरी वजह से ही तुम मौत के मुँह में जाते जाते बचे थे। मैं खुद इस बात को नहीं जानती कि मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ क्यों किया जबकि मेरी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं।"

"ऐसा मत कहो मेघा।" मेरी आवाज़ भारी हो गई थी____"मेरी नज़र में तुम दुनियां की सबसे खूबसूरत और सबसे नेकदिल लड़की हो। एक हप्ते पहले जो कुछ भी हुआ था वो महज एक हादसा ज़रूर था लेकिन उस हादसे ने मुझे तुमसे मिलाया। सच कहूं तो मैं उस हादसे के होने से बेहद खुश हूं क्योंकि अगर वो हादसा न होता तो मैं एक ऐसी लड़की से कैसे मिल पाता जिसे अब मैं टूट टूट कर प्यार करने लगा हूं। तुम नहीं जानती मेघा, इसके पहले मेरी ज़िन्दगी का कोई मतलब ही नहीं था। इसके पहले मेरी ज़िन्दगी में ना तो कोई रंग थे और ना ही कोई खुशियां थी। सच तो ये है कि मुझे अपनी ही ज़िन्दगी बोझ सी लगती थी। एक पल भी जीने की आरज़ू नहीं होती थी, फिर भी इस उम्मीद में जीता था कि शायद किसी दिन मेरी ज़िन्दगी में भी कोई खुशियों की बहार आए। तुम मिली तो अब मुझे ऐसा ही लगता है जैसे मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी में खुशियों की बहार आ गई है। मैं अब तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता मेघा और ना ही जीना चाहता हूं। इस तरह मुझे छोड़ कर जाने को मत कहो। मैं तुमसे भीख मांगता हूं, भगवान के लिए मुझे छोड़ कर कहीं मत जाओ।"

"मुझे इस तरह मोह के जाल में मत फंसाओ ध्रुव।" मेघा ने लरज़ते स्वर में कहा था____"तुम पहले इंसान हो जिसके साथ मैंने इतना वक़्त गुज़ार दिया है वरना मेरी फितरत तो ऐसी है कि मैं किसी के लिए भी ऐसे जज़्बात नहीं रखती। तुम बहुत अच्छे हो ध्रुव लेकिन एक सच ये भी है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। अपने दिल से मेरे प्रति ऐसे ख़याल निकाल दो। मैं चाह कर भी ना तो तुम्हारे साथ रह सकती हूं और ना ही तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर सकती हूं।"

"आख़िर क्यों मेघा?" उसकी बातें सुन कर मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। कातर भाव से कहा था मैंने____"क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं? क्या मुझमें कोई कमी है जिसके चलते तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती? तुम बस एक बार बता दो मेघा, मैं तुम्हारे लिए अपने अंदर की हर कमी को दूर कर दूंगा।"

"नहीं ध्रुव।" उसने जल्दी से अपनी हथेली को मेरे मुख पर रख दिया था, फिर अधीर हो कर कहा_____"तुम में कोई कमी नहीं है बल्कि तुम तो ऐसे हो जिसके प्रेम को अगर कोई लड़की स्वीकार न करे तो वो बदनसीब ही कहलाएगी।"

"फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाने की बात कह रही हो?" मैंने अपने एक हाथ से उसकी हथेली को अपने मुख से हटाते हुए कहा था____"ये जानते हुए भी कि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता, फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाना चाहती हो?"

"कुछ सवालों के जवाब नहीं होते ध्रुव।" उसने कहीं खोए हुए अंदाज़ से कहा था____"काश! मेरी किस्मत में भी तुम्हारे साथ रहना लिखा होता। काश! विधाता ने मुझे तुम्हारे लायक बनाया होता। काश! तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर के मैं भी तुम्हारे साथ एक नई किन्तु हसीन दुनियां बसा सकती।"

"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि तुम ये क्या कह रही हो?" मैं उसकी बातें सुन कर बहुत ज़्यादा उलझन में पड़ गया था_____"आख़िर ऐसी कौन सी बात है कि तुम मेरे साथ नहीं रह सकती? अगर किसी तरह की कोई समस्या है तो हम दोनों मिल कर उस समस्या को दूर करेंगे ना।"

"ऐसा नहीं हो सकता ध्रुव।" उसने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरा चेहरा अपनी कोमल हथेलियों में भर कर कहा_____"इस दुनियां में बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिन पर किसी का अख़्तियार नहीं होता। ख़ैर, मैं बहुत खुश हूं कि मेरे जैसी लड़की के लिए तुम्हारे दिल में ऐसे खूबसूरत जज़्बात हैं। यकीन मानो, मुझे इस बात का बेहद रंज है कि मैं एक ऐसे इंसान को छोड़ कर जाने के लिए मजबूर हूं जो मुझे बेहद प्रेम करता है। काश! विधाता ने मुझे इस लायक बनाया होता कि मेरे नसीब में भी किसी इंसान से प्यार करना लिखा होता और मैं किसी इंसान के साथ जीवन गुज़ार सकती।"

मैं मूर्खों की तरह उस खूबसूरत लड़की की तरफ देखता रह गया था जिसका चेहरा उस वक़्त मुझे ऐसा नज़र आ रहा था जैसे वो अपने अंदर चल रहे किसी बहुत ही बड़े झंझावात से जूझ रही हो। मेरा जी चाहा कि बेड से उठ कर उसे अपने सीने से लगा लूं लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका। मेरे ज़ख्म तो पहले ही भर गए थे लेकिन जिस्म में कमजोरी का आभास हो रहा था इस लिए मैं बेबस भाव से उसकी तरफ बस देखता ही रह गया था।

✮✮✮

एक बार फिर से शाम ढल चुकी थी और मैं हमेशा की तरह आज भी इस उम्मीद में यहाँ आया था कि शायद आज मुझे वो जगह मिल जाए जिस जगह पर मैंने मेघा के साथ अपने जीवन के बहुत ही खूबसूरत पल बिताए थे। उसके साथ बिताए हुए चंद दिनों का ऐसा असर हुआ था कि पहले से ही बेरंग लगती मेरी ज़िन्दगी उसके बिना मुझे और भी ज़्यादा बेरंग लगने लगी थी। हर वक़्त दिल से यही दुआ करता था कि बस एक बार उसका दीदार हो जाए और मैं जी भर के उसे देख लूं लेकिन न पहले कभी मेरी दुआएं क़ुबूल हुईं थी और ना ही शायद आगे कभी क़ुबूल होने वाली थीं। मुझे मेरी बदनसीबी पर इतना एतबार जो था।

दिसंबर के आख़िर में ज़ोरों की ठण्ड होने लगती थी और कोहरे की धुंध ऐसी होती थी कि पांच फ़ुट की दूरी पर खड़ा ब्यक्ति भी आसानी से दिखाई नहीं देता था। इन दो सालों में मैंने इस पूरे क्षेत्र को अच्छी तरह छान मारा था लेकिन मुझे वो जगह नहीं मिली थी जिस जगह पर मैंने दो साल पहले मेघा के साथ एक हप्ता गुज़ारा था। ऐसा नहीं था कि मेरे ज़हन से उस जगह का नक्शा मिट चुका था बल्कि वो तो मुझे आज भी अच्छी तरह याद है लेकिन जाने क्यों मैं उस जगह को आज तक खोज नहीं पाया था। मैं अक्सर सोचता था कि क्या उस जगह को ज़मीन ने निगल लिया होगा या फिर आसमान खा गया होगा?

इन दो सालों में मेरी मानसिक हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे दुनियां से और दुनियां वालों से जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मैं आज भी सुबह काम पर जाता था और शाम से पहले ही काम से वापस आ जाता था। मेरे पास दिन का सिर्फ यही पहर होता था जब मैं उसकी खोज में इस क्षेत्र की वादियों में भटकता था। मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मेरी पीठ के पीछे मेरे बारे में तरह तरह की बातें करते थे लेकिन मुझे उनसे और उनकी बातों से कभी कोई मतलब नहीं होता था। मुझे तो बस एक ही सनक सवार थी कि एक बार फिर से मुझे मेघा मिल जाए और मैं उसे जी भर के देख लूं। उसकी खोज में मैंने वो सब किया था जो मुझसे हो सकता था लेकिन दो साल गुज़र जाने के बाद भी ना तो मुझे उसका कोई सुराग़ मिल सका था और ना ही कहीं उसके होने की उम्मीद नज़र आई थी। इस सबके बावजूद मुझे इतना ऐतबार ज़रूर था कि वो जब भी मुझे मिलेगी तो यहीं कहीं मिलेगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि यहीं पर कहीं आज भी उसका वजूद है।

शाम तो कब की ढल चुकी थी और गुज़रते वक़्त के साथ ठण्ड भी अपना ज़ोर दिखाती जा रही थी लेकिन मैं हाथ में बड़ी सी टार्च लिए मुसलसल आगे बढ़ता ही जा रहा था। हालांकि आसमान में चाँद खिला हुआ था किन्तु उसकी रौशनी कोहरे की गहरी धुंध को भेदने में नाकाम थी। मेरे चारो तरफ घना जंगल था और फ़िज़ा में रूह को थर्रा देने वाली सांय सांय की आवाज़ें गूँज रहीं थी लेकिन मेरे अंदर डर जैसी कोई बात नहीं थी। असल में मैं इन दो सालों में इस सबका आदी हो चुका था। अपने घर से बहुत दूर आ चुका था मैं और ये अक्सर ही होता था। कभी कभी ऐसा भी होता था कि मैं जंगल में ही थक कर सो जाता था और दिन निकलने पर जब मेरी आँखें खुलती तो वापस लौट जाता था, क्योंकि सुबह मुझे काम पर भी जाना होता था।

"मुझसे वादा करो ध्रुव कि तुम मुझे कभी भी खोजने की कोशिश नहीं करोगे।" दो साल पहले मेघा के द्वारा कहा गया ये वाक्य अक्सर मेरे कानों में गूँज उठता था_____"बल्कि मुझे भुलाने की कोशिश करते हुए तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाओगे।"

"मैं तुमसे ऐसा वादा नहीं कर सकता मेघा।" मैंने दुखी भाव से कहा था____"मैं चाह कर भी तुम्हें भुला नहीं सकूंगा बल्कि सच तो ये है कि हर पल तुम्हारी याद में तड़पना ही जैसे मेरा मुक़द्दर बन जाएगा। क्या तुम्हें मेरी हालत पर ज़रा भी तरस नहीं आता? भगवान के लिए मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ। मेरा इस दुनिया में दूसरा कोई भी नहीं है।"

"ऐसी बातें मत करो ध्रुव।" मेघा ने अपनी आँखें बंद कर के मानो बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालने की कोशिश की थी____"तुम्हारी ऐसी बातों से मेरा मुकम्मल वजूद कांप उठता है। तुम मेरी विवशता को नहीं समझ सकते। मैं तुम्हारे प्यार के लायक नहीं हूं और ना ही मेरी किस्मत में तुम्हारा साथ लिखा है।"

"आख़िर बार बार ऐसा क्यों कहती हो तुम?" मेघा के मलिन पड़े चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था मैंने____"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि तुम मेरे प्यार के लायक नहीं हो या तुम्हारी किस्मत में मेरे साथ रहना नहीं लिखा है? मुझे सच सच बताओ मेघा, आख़िर ऐसी कौन सी बात है?"

मेरे इस सवाल पर उसने बड़ी ही बेबसी से देखा था मेरी तरफ। उसकी गहरी आँखों में बड़ा अजीब सा सूनापन नज़र आया था मुझे। मैं अपने सवालों के जवाब की उम्मीद में उसी की तरफ अपलक देखता जा रहा था। लालटेन की धीमी रौशनी में भी उसका चेहरा चाँद की मानिन्द चमक रहा था। उसके सुर्ख होठ ताज़े खिले हुए गुलाब की पंखुड़ियों जैसे थे। कमर के नीचे तक बिखरे हुए उसके घने काले रेशमी बाल मानो घटाओं को भी मात दे रहे थे। उसके सुराहीदार गले में एक ऐसा लॉकेट था जिसमें गाढ़े नीले रंग का किन्तु बड़ा सा नगीने जैसा पत्थर था।

"क्या हुआ?" उसे गहरी ख़ामोशी में डूबा हुआ देख मैंने उससे कहा था____"तुम इस तरह ख़ामोश क्यों हो जाती हो मेघा? मुझे बताती क्यों नहीं कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से तुम मेरे साथ नहीं रह सकती?"

मेरी बात सुन कर उसने एक बार फिर से मेरी तरफ बेबसी से देखा और फिर मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर उसने जो कुछ कहा उसने मेरे मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। मेरी हालत उस बुत की तरह हो गई थी जिसमें कोई जान नहीं होती। हैरत से फटी आँखों से मैं बस उसे ही देखे जा रहा था, जबकि वो अपने चेहरे को ऊपर कर के मेरी तरफ इस तरह देखने लगी थी जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो।

अभी मैं मेघा के ख़यालों में ही खोया हुआ था की तभी मेरे बगल से कोई इतनी तेज़ रफ़्तार से निकल कर भागा कि एक पल के लिए तो मेरी रूह तक फ़ना होती हुई महसूस हुई। मैंने बौखला कर तेज़ी से टार्च का फोकस उस तरफ को किया जिस तरफ से कोई बड़ी तेज़ी से भागता हुआ गया था। टार्च के तेज़ प्रकाश में भाग कर जाने वाला तो नहीं दिखा, अलबत्ता कोहरे की गहरी धुंध ज़रूर दिखी। ठण्ड इतनी थी कि घने जंगल में होने के बावजूद मैं रह रह कर कांप उठता था। हालांकि ठण्ड से खुद को बचाने के लिए मैंने अपने जिस्म में कई गर्म कपड़े डाल रखे थे। मैंने महसूस किया कि आज कोहरे की धुंध पिछले दिनों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा ही थी और शायद यही वजह थी कि मुझे अपने सामने नज़र आने वाला हर रास्ता अंजान सा लग रहा था।

जब से मेघा मुझे छोड़ कर गई थी तब से ऐसा कोई दिन नहीं गुज़रा था जब मैंने उसकी खोज न की हो या उसका पता न लगाया हो। शुरुआत में तो मैं उसके बारे में दूसरों से भी पूछता था और हर जगह उसे खोजता भी था। यहाँ तक कि दूसरे शहरों में जा कर भी उसकी तलाश की थी लेकिन मुझे मेघा का कहीं कोई सुराग़ तक न मिला था। ऐसा लगता था जैसे सच में वो कोई ऐसा ख़्वाब थी जिसको मैंने खुली आँखों से देखा था। एक वक़्त ऐसा आ गया था जब लोग मुझे देखते ही मुझसे किनारा करने लगे थे। ऐसा शायद इस लिए कि वो मुझे पागल समझने लगे थे और नहीं चाहते थे कि वो किसी पागल की बातें सुनें। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो पहले ही मेघा का ख़याल अपने दिल से निकाल कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाता लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका था। सच तो ये था कि मैं मेघा को अपने दिलो दिमाग़ से निकालना ही नहीं चाहता था। मेरे जीवन में एक वही तो ऐसी थी जिसे देख कर मैंने ये महसूस किया था कि वो मेरा सब कुछ है और मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी सिर्फ उसी के द्वारा संवर सकती थी। मैं जानता हूं कि मेरा ऐसा सोचना महज बेवकूफ़ी के सिवा कुछ नहीं था लेकिन अपने दिल को मैं किसी भी कीमत पर समझा नहीं सकता था।

टार्च की रौशनी में आगे बढ़ते हुए अचानक ही मैं खुले मैदान में आ गया। यहाँ पर चाँद की रौशनी में कोहरे की गहरी धुंध मुझे साफ़ दिख रही थी। अपनी जगह पर रुक कर मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की लेकिन धुंध की वजह से मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। मैंने महसूस किया कि इस जगह पर मैं पहली बार आया हूं और ये वो जगह नहीं है जहां पर दो साल पहले मैं मेघा के साथ उसके अजीब से घर में एक हप्ते रहा था। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि पत्थर के बने उस अजीब से मकान के चारो तरफ घने पेड़ पौधे थे और पास में ही कहीं से किसी झरने से पानी बहने की आवाज़ आती थी।


✮✮✮
Very nice update bhai
 

drx prince

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Update - 02
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एक बार फिर से उसकी तलाश में मुझे नाकामी मिल गई थी। एक बार फिर से मैं मायूस और निराश हो गया था। एक बार फिर से मेरा दिल तड़प कर रह गया था। मेरी आँखों से आंसू के क़तरे छलक कर मेरे गालों पर आ गिरे। मैंने चेहरा उठा कर आसमान की तरफ देखा और मन ही मन ऊपर वाले से एक बार फिर शिकवा किया और उससे फ़रियाद भी की।

वापसी की राह हमेशा की तरह मुश्किल थी लेकिन ऐसी मुश्किलों को तो मैंने खुद ही शौक़ से चुना था इस लिए चल पड़ा घर की तरफ। मन में हज़ारों तरह के झंझावात लिए मैं जिस तरफ से यहाँ तक आया था उसी तरफ वापस चल पड़ा। न मेरे पागलपन की कोई सीमा थी और ना ही उस शख़्स के सताने की जिसकी मोहब्बत में मैं इस क़दर गिरफ़्तार था कि अपनी हालत को ऐसा बना बैठा था।

ये मोहब्बत भी बड़ी अजीब चीज़ होती है। जब तक किसी से नहीं होती तब तक इंसान न जाने कितने ही तरीके से खुद को खुश कर लेता है लेकिन जब किसी से मोहब्बत हो जाती है और साथ ही इस तरह का आलम हो जाता है तो दुनियां की कोई भी चीज़ उसे खुश नहीं कर सकती, सिवाय इसके कि उसे बस वो मिल जाए जिसे वो टूट टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है। मोहब्बत वो बला है जिसके मिलन में तो मज़ा है ही किन्तु उसके हिज़्र में तड़पने का भी अपना एक अलग ही मज़ा है।


हर इक ज़ख़्म दिल का जवां जवां करके।
चला गया वो ज़िन्दगी धुआं धुआं करके।।

एक मुद्दत से कहीं उसका पता ही नहीं,
जाने कहां गया है मुझको परेशां करके।।

मेरे बग़ैर कहीं तो सुकूं से रह रहा होगा,
वो जो यादें दे गया मुझे एहसां करके।।

किसे बताऊं मुसलसल उसकी जुस्तजू में,
थक गया हूं बहुत ज़मीनो-आसमां करके।।

ग़म ये नहीं के मेरे हिस्से में इंतज़ार आया,
ग़म ये है के लौटा नहीं मुझे तन्हां करके।।

ख़ुदा करे के कहीं से ख़बर हो जाए उसे,
के बैठा है कोई बीमारे-दिलो-जां करके।।

घर पहुंचते पहुंचते ऐसी हालत हो गई थी कि न कुछ खाने का होश रहा था और ना ही कुछ पीने का। जिस हालत में था उसी हालत में बिस्तर पर बेहोश सा पसर गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था बल्कि ऐसा अक्सर ही होता था। मुझे अपनी सेहत का या अपनी किसी बात का ज़रा भी ख़याल नहीं था। मेरे दिल में अगर उसको एक बार देख लेने की हसरत न होती तो मैं हर रोज़ ऊपर वाले से बस यही दुआ मांगता कि ऐसी ज़िन्दगी को विराम लगाने में वो एक पल न लगाए।

सुबह हमेशा की तरह मेरी आँख अपने टाइम पर ही खुली। हमेशा की तरह बेमन से मैं उठा और नित्य क्रिया से फुर्सत होने के बाद अपने पेट की तपिश को मिटाने के लिए घर के पास ही थोड़ी दूरी पर मौजूद ढाबे की तरफ चल दिया। मेरे घर में यूं तो ज़रूरत का हर सामान था लेकिन मेरे लिए वो किसी काम का नहीं था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि मुझे घर के किसी सामान से मतलब ही नहीं था। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए मैं बाहर ही थोड़ा बहुत खा लेता था। मेरे जीवन की दिनचर्या यही थी कि सुबह अपने काम पर जाना और शाम होने से पहले ही काम से वापस आ कर मेघा की खोज करना। इसके अलावा जैसे मेरे जीवन में ना तो कोई काम था और ना ही मेरी कोई ख़्वाहिशें थी।

मेघा के प्रति मेरे दिल में इस क़दर चाहत घर ग‌ई थी कि मैं हर पल बस उसी के बारे में सोचता रहता था। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि मैं मेघा की मोहब्बत में एक तरह से पागल हो चुका था। उसकी चाहत का नशा हर पल मेरे दिलो दिमाग़ में चढ़ा रहता था। काम करते वक़्त भी मैं मेघा के ही ख़यालों में खोया रहता था। शायद यही वजह थी कि मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मुझे देख कर उल्टी सीधी बातें करते रहते थे।

"क्या अब भी तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे लायक हूं ध्रुव?" मेरे ज़हन में मेघा के द्वारा कहे गए शब्द गूँज उठते थे____"क्या मेरा सच जानने के बाद भी तुम मुझसे प्यार करोगे?"

"मेरा प्यार तुम्हारे किसी सच को जान लेने से ख़त्म नहीं हो सकता मेघा।" मैंने उसकी गहरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा था_____"बल्कि सच तो ये है कि तुम चाहे जिस भी रूप में मेरे सामने आओ तुम्हारे प्रति मेरी चाहत में कोई फ़र्क नहीं आएगा।"

"ओह! ध्रुव।" मेघा के चेहरे पर दर्द और बेबसी के मिले जुले भाव उभर आए थे। मेरे दाएं गाल को सहलाते हुए कहा था उसने____"ये कैसा पागलपन है? तुम मेरी हक़ीक़त जान लेने के बाद भी मेरे प्रति भला ऐसे जज़्बात कैसे रख सकते हो?"

"सच्ची मोहब्बत में पैदा हुए दिल के जज़्बात किसी सच या झूठ को जान कर अपना रंग नहीं बदलते।" मैंने उसका वो हाथ थाम कर कहा था जिस हाथ से उसने मेरा दायां गाल सहलाया था____"ख़ैर, अब तो तुम्हें भी पता चल गया है ना कि मुझे तुम्हारी हक़ीक़त से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता इस लिए क्या अब भी तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी ?"

"तुमसे मिलने से पहले।" वो मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कह रही थी____"मैं कभी इस तरह किसी धर्म संकट में नहीं फंसी थी और ना ही इस तरह बेबस और लाचार हुई थी। तुमसे मिलने से पहले मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मोहब्बत क्या होती है और मोहब्बत की दीवानगी क्या होती है। मैंने ख़्वाब में भी ये नहीं सोचा था कि कोई इंसान मुझसे इस क़दर टूट कर मोहब्बत करेगा। ये विधाता की कैसी लीला है ध्रुव?"

"मैं किसी की लीला को नहीं जानता मेघा।" मैंने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा था____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं और इस बात का भी मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो चुका है कि मैं तुम्हारे बिना ना तो कभी खुश रह पाऊंगा और ना ही चैन से जी पाऊंगा। अब ये तुम पर है कि तुम मुझे किस हाल में रखती हो?"

"नहीं ध्रुव, ऐसा मत कहो।" उसने बेबस भाव से कहा था____"मैं सच में इस लायक नहीं हूं कि मेरी वजह से तुम अपनी ऐसी हालत बना लो। सच तो ये है कि तुम मेरे साथ भी कभी खुश नहीं रह पाओगे, बल्कि मुझसे जुड़ने के बाद तो तुम्हारी ज़िन्दगी ही ख़तरे में पड़ जाएगी। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि जो इंसान मुझसे इतना प्रेम करता है वो मेरी वजह से मौत के मुँह में चला जाए?"

"मुझे अपनी मौत का ज़रा भी डर नहीं है मेघा।" मैंने उठते हुए कहा था____"और अगर यही सच है कि तुमसे जुड़ने के बाद मुझे मौत ही आ जानी है तो मेरी बस यही आरज़ू है कि मेरा दम तुम्हारी बांहों में ही निकले। आह! कितना हसीन होगा ना वो मंज़र, जब मेरी जान मेरी जान की बांहों में जाएगी।"

मैं बेड पर उठ कर बैठ गया था और बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ को टिका लिया था। मेरी बात सुन कर मेघा मुझे अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे पर बेबसी और बेचैनी के भाव उजागर हो रहे थे। चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा ग्रहण सा लगाए हुए नज़र आने लगा था।

अपने चारो तरफ से आने लगी अजीब तरह की आवाज़ों को सुन कर मैं एकदम से चौंका। गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा तो ढाबे में मेरे दाएं बाएं और पीछे मौजूद लोग मुझे देखते हुए एक दूसरे से जाने क्या क्या कहते दिख रहे थे। मैंने फ़ौरन ही खुद को सम्हाला और ढाबे वाले से दो सौ ग्राम भुजिया के साथ चटनी ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ा। अक्सर ऐसा ही होता था कि मैं मेघा के ख़यालों में खो जाता था और मेरा ध्यान ऐसी ही आवाज़ों के द्वारा टूट जाता था।

सुबह का नास्ता कर के मैं अपने काम पर पहुंचा ही था कि मोटर गैराज के मालिक ने आवाज़ दे कर मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं समझ गया कि हमेशा की तरह आज सुबह सुबह फिर से वो मुझे चार बातें सुनाएगा। मैंने एक बार गैराज में मौजूद बाकी लोगों की तरफ देखा और फिर चुप चाप मालिक के केबिन की तरफ बढ़ गया।

"क्या तुमने क़सम खा रखी है कि तुम किसी और की नहीं सुनोगे बल्कि हमेशा वही करोगे जो तुम्हारी मर्ज़ी होगी?" मैं केबिन में दाखिल हुआ ही था कि मोटर गैराज का मालिक मुझे देख कर तेज़ आवाज़ में चिल्ला उठा____"ख़यालों की दुनियां से निकल कर हक़ीक़त की दुनियां में आ जाओ। मेरी नरमी का नाजायज़ फायदा मत उठाओ। मैं पिछले दो साल से तुम्हें सिर्फ इस लिए बरदास्त कर रहा हूं क्योंकि तुम एक अनोखे कारीगर हो। मैं हमेशा ये सोच कर हैरान हो जाता हूं कि तुम्हारे जैसे पागल इंसान के अंदर ऐसा गज़ब का हुनर कैसे हो सकता है?"

मोटर गैराज का मालिक चालीश साल का गंजा ब्यक्ति था जिसका नाम गजराज शेठ था। पिछले पांच सालों से मैं उसके यहाँ मोटर मकैनिक के तौर पर काम करता आ रहा था। दो साल पहले आज के जैसे हालात नहीं थे किन्तु जब से मेरे जीवन में मेघा का दखल हुआ था तब से मेरा बर्ताव पूरी तरह बदल गया था। गजराज शेठ यूं तो बहुत अच्छा इंसान था लेकिन किसी भी तरह का नुक्सान उसे बरदास्त नहीं था।

पिछले दो साल से वो मुझे ऐसे ही बातें सुनाता आ रहा था और मैं तब तक ख़ामोशी से उसकी बातें सुनता रहता था जब तक कि वो मुझे खुद ही चले जाने को नहीं कह देता था। उसे भी हर किसी की तरह इस बात का पता था कि मेरे पागलपन या मेरे ऐसे बर्ताव की वजह क्या है। शुरुआत में उसने मुझसे कई बार इस सिलसिले में बात की थी और अपनी तरफ से हर कोशिश की थी कि मैं पहले जैसा बन जाऊं लेकिन जब मुझ पर कुछ असर ही नहीं हुआ तो उसने मुझे समझाना ही छोड़ दिया था।

मोटर गैराज में मेरे साथ काम करने वाले लोग अक्सर उससे मेरी शिकायतें करते थे और मुझे हटाने की कोशिश में लगे रहते थे लेकिन मैं अब भी गजराज शेठ के गैराज में टिका हुआ था। इसकी वजह यही थी कि मुझ में बाकी लोगों से कहीं ज़्यादा बेहतर हुनर था और मेरा किया हुआ काम ऐसा होता था जिसे देख कर खुद गजराज शेठ दांतों तले उंगली दबा लेता था। दूसरी वजह ये भी थी कि पिछले दो साल से मैंने गजराज शेठ से अपने काम का कोई पैसा नहीं माँगा था बल्कि अपना गुज़ारा मैं कस्टमर के द्वारा मिले हुए टिप्स से ही चलाता आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मेरे न मांगने पर गजराज शेठ ने मुझे मेरे काम का पैसा देना नहीं चाहा था बल्कि वो तो हर महीने मेरी पगार मुझे पकड़ाता था लेकिन मैं ही लेने से इंकार कर देता था।

"देखो ध्रुव।" गजराज शेठ की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा____"मैंने हमेशा यही चाहा है कि तुम भी आम इंसानों की तरह सामान्य जीवन जियो। इस तरह किसी के पागलपन में अपना कीमती जीवन बर्बाद मत करो। ऊपर वाले ने तुम्हें अच्छी शक्लो सूरत दी है और ऐसा क़ाबिले तारीफ़ हुनर भी दिया है जिसके बल पर तुम बेहतर से बेहतर जीवन गुज़ार सकते हो। मुझे हर रोज़ तुम पर यूं गुस्सा करना और चिल्लाना अच्छा नहीं लगता। मैं दिल से चाहता हूं कि तुम ठीक हो जाओ, इस लिए मैंने तुम्हारे लिए एक मनोचिकित्सक डॉक्टर से बात की है। उसने बताया कि उसके द्वारा दी जाने वाली बेहतर थैरेपी से तुम पहले जैसे बन जाओगे।"

गजराज शेठ इतना कह कर चुप हो गया और मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। शायद वो मुझे देखते हुए ये समझने की कोशिश कर रहा था कि मुझ पर उसकी बातों का कोई असर हुआ है या नहीं? जब काफी देर बाद भी मैंने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने हताश भाव से गहरी सांस ली।

"आख़िर तुम किस तरह के इंसान हो ध्रुव?" फिर उसने झल्लाते हुए कहा____"तुम किसी की बातों को नज़रअंदाज़ क्यों कर देते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी अपने जीवन से मोह नहीं है? आख़िर कब तक चलेगा ये सब? आज तुम्हें मेरी बातें सुननी भी पड़ेंगी और माननी भी पड़ेंगी। कल तुम मेरे साथ उस डॉक्टर के पास चलोगे, समझ ग‌ए न तुम?"

ऐसा नहीं था कि मेरे कानों तक गजराज शेठ की बातें पहुंच नहीं रहीं थी बल्कि वो तो वैसे ही पहुंच रहीं थी जैसे किसी नार्मल इंसान के कानों में पहुँचती हैं लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि मैं किसी की बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं देता था। मैं नहीं चाहता था कि किसी की बातों की वजह से एक पल के लिए भी मेरे ज़हन से मेघा का ख़याल टूट जाए।

मुझे ख़ामोश खड़ा देख गजराज शेठ की हालत अपने बाल नोच लेने जैसी हो गई थी। उसके बाद गुस्से में ज़ोर से चिल्लाते हुए उसने "दफ़ा हो जाओ" कहा तो मैं चुप चाप पलट कर बाहर चला आया।

मेघा के प्रति मेरा प्रेम अब सिर्फ प्रेम ही नहीं रह गया था बल्कि वो एक पागलपन में बदल चुका था। मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि एक बार मेघा का खूबसूरत चेहरा देखने को मिल जाए उसके बाद फिर भले ही चाहे मुझे मौत आ जाए। दुनियां का कोई भी इंसान इस बात पर यकीन नहीं कर सकता था कि किसी लड़की के साथ सिर्फ एक हप्ता रहने से मुझे उससे इस हद तक प्यार हो सकता है कि मैं उसके लिए दुनियां जहान से बेख़बर हो कर पागल या सिरफिरा बन जाउंगा। मैंने खुद भी कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की थी कि ऐसा कैसे हो सकता है?


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सारा दिन मैं किसी मशीन की तरह काम में लगा रहा। काम पूरा होते ही मैंने खुद को साफ़ किया और बिना किसी से कुछ बोले गैराज से निकल लिया। मेरे हिस्से में मुझे जितना काम मिलता था उसे पूरा करने के बाद मैं एक पल के लिए भी गैराज में नहीं रुकता था, फिर चाहे भले ही क़यामत आ जाए। मेरे साथ गैराज में काम करने वाले बाकी लोगों को अब मेरे इस रवैए की आदत पड़ चुकी थी। मेरे सामने तो वो कुछ नहीं बोलते थे किन्तु मेरे जाते ही वो सब बातें शुरू कर देते थे।

गैराज से निकल कर मैं अपने घर नहीं जाता था बल्कि मेघा की खोज में उसी जंगल की तरफ निकल पड़ता था जहां पर मैंने उसके साथ चंद दिन गुज़ारे थे। सारी दुनियां भले ही मुझे पागल समझती थी लेकिन मेरे दिल को यकीन था कि मेघा मुझे जब भी मिलेगी उसी जंगल में मिलेगी। अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैं हर रोज़ शाम होने से पहले उस जंगल में दाखिल हो जाता था।

ठण्ड ने अपना असर दिखाना पहले ही शुरू कर दिया था और कोहरे ने फ़िज़ा में धुंध फैला दी थी। जंगल में दाखिल होने से पहले एक बार मैं उस जगह पर ज़रूर जाता था जहां पर दो साल पहले मेरे साथ हादसा हुआ था। वो हादसा ही था जिसने मेरी ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दिया था और उसी की वजह से मुझे मेघा मिली थी।

दो साल पहले का वो हादसा आज भी मेरे ज़हन में तारो ताज़ा था। मैं हर रोज़ की तरह सुबह सुबह अपने काम पर जाने के लिए निकला था। उस दिन भी आज की ही तरह ठण्ड थी और फ़िज़ा में कोहरे की धुंध छाई हुई थी। मैं अपनी ही धुन में एक पुरानी मोटर साइकिल में बैठा गजराज शेठ के मोटर गैराज की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। कोहरे की धुंध की वजह से सड़क पर ज़्यादा दूर का दिखाई नहीं दे रहा था इस लिए मैं धीमी रफ़्तार में ही मोटर साइकिल से जा रहा था। घर से क़रीब दो किलो मीटर दूर निकल आने के बाद अचानक मेरी नज़र सामने से भागती हुई आ रही एक लड़की पर पड़ी थी। कोहरे की वजह से वो अचानक ही मुझे दिखी थी और मेरे काफी पास आ गई थी। मैं उसे यूं अचानक देख कर एकदम से बौखला गया था। उसे बचाने के चक्कर में मैंने मोटर साइकिल का हैंडल जल्दी से घुमाया और ऐसा करना जैसे मुझ पर ही भारी पड़ गया।

मोटर साइकिल का अगला पहिया सड़क पर पड़े किसी पत्थर पर ज़ोर से लगा था और मैं मोटर साइकिल सहित सड़क पर जा गिरा था। अगर सिर्फ इतना ही होता तो बेहतर था लेकिन सड़क पर जब मैं गिरा था तो झोंक में मेरा सिर किसी ठोस चीज़ से टकरा गया था। मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकली और फिर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाता चला गया था। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था।

जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने खुद को एक ऐसे कमरे के बेड पर पड़ा हुआ पाया जिस कमरे की दीवारें काले पत्थरों की थीं। दीवारों पर दिख रहे काले पत्थर ऐसे थे जैसे न जाने कब से उन पर चढ़ी हुई धूल या काई को साफ़ ना किया गया हो। कमरा सामान्य कमरों से कहीं ज़्यादा बड़ा था और कमरे की छत भी सामान्य से कहीं ज़्यादा उँचाई पर थी। एक तरफ की दीवार पर लोहे की खूँटी थी जिस पर पुरानी जंग लगी हुई लालटेन टंगी हुई थी। उसी लालटेन का धीमा प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। हालांकि उसका प्रकाश कमरे को पूरी तरह रोशन करने में सक्षम नहीं था किन्तु इतना ज़रूर था कि कमरे में मौजूद किसी वस्तु को देखा जा सके। कमरे में कोई खिड़की या रोशनदान नहीं था, बल्कि लकड़ी का एक ऐसा दरवाज़ा था जिसे देख कर यही लगता था कि अगर उस दरवाज़े पर थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दिया जाए तो वो टूट जाएगा। दरवाज़े में लगे लकड़ी के पटरों पर झिर्रियां थी जिससे उस पार का दृश्य आसानी से देखा जा सकता था।

मैं खुद को ऐसी विचित्र जगह पर पा कर पहले तो हड़बड़ा गया था उसके बाद एकदम से मेरे अंदर अजीब सा डर और घबराहट भरती चली गई थी। मैं समझने की कोशिश करने लगा था कि आख़िर मैं ऐसी जगह पर पहुंच कैसे गया था? ज़हन पर ज़ोर डाला तो मुझे याद आया कि मेरे साथ हादसा हुआ था। यानि किसी लड़की को बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हो गया था। सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से मैं बेहोश हो गया था। उसके बाद जब मुझे होश आया तो मैं ऐसी जगह पर था।

ऐसी डरावनी जगह पर खुद को एक बिस्तर पर पड़े देख मेरे मन में तरह तरह के भयानक ख़याल आने लगे थे। मैंने चारो तरफ नज़रें घुमा घुमा कर देखा किन्तु मेरे अलावा उस कमरे में कोई नज़र नहीं आया। मैंने हिम्मत जुटा कर बिस्तर से उठने की कोशिश की तो एकदम से मेरे मुख से कराह निकल गई। मेरी पीठ पर बड़ा तेज़ दर्द हुआ था जिसकी वजह से मैं वापस उसी बिस्तर पर लेट गया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं ऐसी जगह पर आख़िर कैसे पहुंच गया था? मुझे अच्छी तरह याद था कि हादसा सड़क पर हुआ था जबकि ये ऐसी जगह थी जिसको मैंने तसव्वुर में भी कभी नहीं देखा था। अचानक ही मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे यहाँ पर पहुंचाने वाली कहीं वो लड़की ही तो नहीं जिसे बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हुआ था? उस लड़की का ख़याल आया तो मेरे ज़हन में उसके बारे में भी तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि अगर वो लड़की ही मुझे यहाँ ले कर आई है तो वो खुद कहां है इस वक़्त?

मैं अभी इन ख़यालों में खोया ही हुआ था कि तभी कमरे का दरवाज़ा अजीब सी चरमराहट के साथ खुला तो मैंने चौंक कर उस तरफ देखा। दरवाज़े से दाखिल हो कर जो शख्सियत मेरे सामने मुझे नज़र आई उसे देख कर मैं जैसे अपने होशो हवास खोता चला गया। कुछ देर के लिए ऐसा लगा जैसे मैं अचानक से ही कोई हसीन ख़्वाब देखने लगा हूं।

"अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?" उसकी मधुर आवाज़ मेरे एकदम पास से आई तो जैसे मुझे होश आया। जाने कब वो मेरे एकदम पास में आ कर बिस्तर के किनारे पर बैठ गई थी। मैंने जब उसे अपने इतने क़रीब से देखा तो मैंने महसूस किया जैसे मैं उसके सम्मोहन में फँसता जा रहा हूं। वो अपने सवाल के जवाब की उम्मीद में मुझे ही देखे जा रही और मैं उसे। जीवन में पहली बार मैंने अपने इतने क़रीब किसी लड़की को देखा था, वो भी ऐसी वैसी लड़की नहीं बल्कि दुनियां की सबसे हसीन लड़की को। मैं दावे के साथ कह सकता था कि दुनियां में उसके जैसी खूबसूरत लड़की कोई हो ही नहीं सकती थी।

चेहरा चांद की तरह रौशन था। बड़ी बड़ी आँखों में समुन्दर से भी कहीं ज़्यादा गहराई थी। नैन नक्श ऐसे थे जैसे किसी मूर्तिकार ने अपने हाथों से उस अद्भुत मूरत को रचा था। लम्बे सुराहीदार गले में लटका एक बड़ा सा लॉकेट जिसमें गाढ़े नीले रंग का नगीने जैसा पत्थर था। दूध की तरह सफ्फाक बदन पर ऐसे कपड़े थे मानो किसी बहुत ही बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। बड़े गले वाली कमीज थोड़ा कसी हुई थी जिसके चलते उसके सीने की गोलाइयों के उभार साफ़ दिख रहे थे। अपने रेशमी बालों को वैसे तो उसने जूड़े की शक्ल दे कर बाँध रखा था लेकिन इसके बावजूद उसके बालों की कुछ लटाएं दोनों तरफ से नीचे झूल कर उसके खूबसूरत गालों को बारहा चूम रहीं थी। खूबसूरत होठों पर गहरे सुर्ख रंग की लिपस्टिक लगी हुई थी। मैं साँसें रोके जैसे उसकी सुंदरता में ही खो गया था।

"क्या हुआ? तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?" मुझे अपनी तरफ अपलक देखता देख उसने कहा था____"मैं पूछ रही हूं कि अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?"

"आं..हां???" मैं उसकी शहद में मिली हुई आवाज़ को सुन कर हल्के से चौंका था, फिर जल्दी से खुद को सम्हाल कर बोला_____"म..मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं लेकिन...।"

"लेकिन???" उसके चमकते हुए चेहरे पर सवालिया भाव उभरे।
"ल..लेकिन तुम कौन हो?" वस्तुस्थित का एहसास होते ही मैं धड़कते दिल से पूछ बैठा था_____"और..और मैं यहाँ कैसे आ गया? मैं तो...।"

"फ़िक्र मत करो।" उसने इस लहजे से कहा कि उसकी खनकती हुई आवाज़ मेरे दिल की गहराइयों में उतरती चली गई थी____"तुम यहाँ पर सुरक्षित हो। तुमने मुझे बचाने के चक्कर में खुद को ही चोट पहुंचा लिया था। मैं तो ख़्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि कोई इंसान इतना नेकदिल हो सकता है। मैं चाह कर भी तुम्हें उस हालत में देख कर खुद को रोक नहीं पाई थी जोकि मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात ही थी। ख़ैर, मैं तुम्हें उस जगह से यहाँ ले आई और तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ किया।"

"तो क्या तुम्हीं वो लड़की थी जो अचानक से मेरे सामने भागती हुई आ गई थी?" मैंने हैरत से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था जिस पर वो हल्के से मुस्कुराई। मैं उसकी मुस्कान को देख कर अपने दिल में बजने लगी घंटियों को महसूस करने लगा था। जबकि उसने कहा____"हां वो मैं ही थी लेकिन जिस तरह से तुमने मेरे लिए खुद को ख़तरे में डाला था उससे मैं बेहद प्रभावित हुई थी।"

"पर तुम सुबह सुबह उस वक़्त ऐसे भागती हुई जा कहां रही थी?" मैं उससे पूछ ज़रूर रहा था लेकिन सच तो ये था कि मेरी नज़रें उसके हसीन चेहरे से हट ही नहीं रही थी और यकीनन उसे भी इस बात का एहसास ज़रूर था।

"इस दुनियां में कोई न कोई बहुत कुछ ऐसा कर रहा होता है जो बाकी लोगों की नज़र में अटपटा होता है।" उसने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ख़ैर छोड़ो इस बात को। तुम्हें अभी आराम की ज़रूरत है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मुझे याद कर लेना।"

"तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि तुम कौन हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से उससे कहा था____"मैंने अपने जीवन में तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की ख़्वाब में भी नहीं देखी। तुम्हें मैं एक ढीठ किस्म का इंसान ज़रूर लग सकता हूं लेकिन सच यही है कि तुम्हें देख कर मेरा दिल तुम्हारी तरफ किसी चुम्बक की तरह खिंचा जा रहा है। मेरे दिल में अजीब सी हलचल मच गई है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ये अचानक से मुझे क्या हो रहा है। मेरे अब तक के जीवन में मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। भगवान के लिए मुझे बताओ कि कौन हो तुम और मेरे दिल में तुम्हारे प्रति प्रेम की तरंगें क्यों उठ रही हैं?"

"तुम सिर्फ़ इतना जान लो कि मेरा नाम मेघा है।" उसने अजीब भाव से कहा था____"जो किसी वजह से तुमसे आ मिली है। तुम्हारे लिए मेरी सलाह यही है कि मेरे प्रति अपने अंदर प्रेम जैसे जज़्बात मत उभरने दो क्योंकि इससे तुम्हें ही नुक्सान होगा।"

"ऐसा क्यों कह रही हो तुम?" उसकी बातें सुन कर मेरा दिल धाड़ धाड़ कर के बजने लगा था। एक अंजाना सा भय मेरे अंदर उभर आया था, जिसे बड़ी मुश्किल से सम्हाला था मैंने।

"क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना मेरी फितरत में नहीं है।" उसने सपाट लहजे में कहा था____"इस लिए तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि मेरा ख़याल दिल से निकाल दो। तुमने क्योंकि मुझे बचाने के लिए अपनी जान जोख़िम में डाली थी इस लिए मैं अपनी फितरत के खिलाफ़ जा कर तुम्हारा इलाज़ कर के तुम्हें वापस तुम्हारे घर भेज देना चाहती हूं। उसके बाद हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

मुझे हैरान परेशान कर के मेघा नाम की वो लड़की मानो हवा के झोंके की तरह कमरे के दरवाज़े से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही ऐसा लगा जैसे मैं गहरी नींद से जागा था। कुछ देर तक तो मैं अपनी हालत को ही समझने की कोशिश करता रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर मेघा और उसकी बातों के बारे में सोचने लगा।

अभी मैं दो साल पहले हुए उस हादसे के ख़यालों में ही गुम था कि तभी किसी वाहन के तेज़ हॉर्न से मैं हक़ीक़त की दुनियां में आ गया। मैंने नज़र उठा कर आने वाले वाहन की तरफ देखा और फिर एक तरफ को बढ़ चला।

कोहरे की धुंध में पता ही नहीं चल रहा था कि शाम ढल चुकी है या अभी भी शाम ढलने में कुछ समय बाकी है। मैं सड़क से बाएं तरफ एक ऐसे संकरे रास्ते की तरफ मुड़ गया जो जंगल की तरफ जाता था। दूसरी तरफ पहाड़ों की ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाएं थीं जोकि कोहरे की गहरी धुंध की वजह से दिख नहीं रहीं थी।

एक बार फिर से मैं उसी जंगल में दाखिल हो चुका था जिस जंगल में मुझे ये उम्मीद थी कि मेघा का कहीं अशियाना होगा या ये कहूं कि जहां पर मैं उसके साथ एक हप्ते रहा था। मैं अगर सामान्य हालत में होता तो यकीनन ये सोचता कि मेरे जैसा बेवकूफ़ इंसान शायद ही इस दुनियां में कोई होगा जो आज के युग में किसी लड़की के प्रेम में पागल हो कर इस तरह उसकी खोज में दर दर भटक रहा है।

क़रीब डेढ़ घंटे टार्च की रौशनी में चलने के बाद अचानक ही एक जगह मैं रुक गया। मेरे रुक जाने की वजह थी कुछ आवाज़ें जो मेरे दाएं तरफ से हल्की हल्की आ रहीं थी। मैंने गौर से सुनने की कोशिश की तो अगले ही पल मेरे थके हारे जिस्म में जैसे न‌ई ताक़त और न‌ई स्फूर्ति भर गई। मैं उन आवाज़ों को सुन कर एकदम खुशी से पागल सा होने लगा। मैं फ़ौरन ही दाएं तरफ तेज़ी से बढ़ता चला गया। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे वो आवाज़ें और भी साफ़ सुनाई देती जा रहीं थी। मैं दुगुनी रफ़्तार से चलते हुए जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गया जहां से आवाज़ें आ रहीं थी।

कोहरे की गहरी धुंध में मैंने आवाज़ों की दिशा में टार्च की रौशनी डाली तो मुझे वो झरना दिखा जिसके पानी के गिरने की आवाज़ अक्सर मैं मेघा के उस कमरे में बेड पर लेटे हुए सुना करता था। इन दो सालों में पहली बार मुझे कोई ऐसी चीज़ खोजने पर मिली थी जो इस बात को साबित करती थी कि इस झरने के आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जिसके एक कमरे में मैं एक हप्ते रहा था। मेरा दिल इन दो सालों में पहली बार झरने को देख कर खुशी से झूमा था। मैं पहले भी कभी एक पल के लिए नाउम्मीद नहीं हुआ था और आज तो इस झरने के मिल जाने पर नाउम्मीद होने का सवाल ही नहीं था। एक मुद्दत से जो दिल बहुत उदास था वो इस झरने के मिल जाने से खुश हो गया था और साथ ही मेघा के दीदार के लिए बुरी तरह मचलने लगा था। जाने क्यों मेरे दिल के जज़्बात बड़े ज़ोरों से मचल उठे।


दिल को इक पल क़रार आना भी नहीं मुमकिन।
तेरे बग़ैर मेरे दोस्त, जी पाना भी नहीं मुमकिन।।

हर शब मैं तेरी जुस्तजू में भटका हूं कहां कहां,
मिल जाओ के दिल को बहलाना भी नहीं मुमकिन।।

दिल-ए-नादां पे गुज़री है क्या क्या तेरे बग़ैर,
हाले-दिल किसी को, बताना भी नहीं मुमकिन।।

तेरे ख़याल में गुम रहना ही मयस्सर है मुझे,
के तुझे एक पल भूल जाना भी नहीं मुमकिन।।

मैं तेरी याद में पतंगों सा जलता तो हूं मगर,
तेरी याद में फना हो जाना भी नहीं मुमकिन।।


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पिछले दो साल से मैं मेघा को तलाश कर रहा था और उसको देखने के लिए तड़प रहा था। इन दो सालों से जहां दिल बहुत उदास और टूटा हुआ सा था वहीं इस झरने के मिल जाने से ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुरझाए हुए गुलशन में बहार ने आ कर जान डाल दी हो। झरना इस बात का सबूत था कि उसके आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जहां दो साल पहले मैं मेघा के साथ एक हप्ते रहा था। मेरे दिल में अब मेघा से मिलने की और उसे देखने की बेचैनी एकदम से बढ़ गई थी। जी चाह रहा था कि पलक झपकते ही मैं मेघा के पास पहुंच जाऊं और उससे लिपट कर दो सालों की जुदाई का दुःख दर्द भूल जाऊं।

मेरी नज़रें अभी भी उस झरने को घूर रहीं थी, जैसे उसी झरने में कहीं पर मुझे मेघा का अक्श दिख रहा हो जिसे मैं अपलक देखे जा रहा था। ऊंचाई से गिरते हुए पानी की आवाज़ इस वक़्त अजीब सी लग रही थी जो दिल में एक भय सा उत्पन्न कर रही थी। हालांकि कोहरे की धुंध छाई हुई थी इस लिए ऊंचाई से गिरता हुआ पानी मुझे साफ़ नहीं दिख रहा लेकिन एक धुंध जैसा ज़रूर दिख रहा था जो ऊपर से नीचे की तरफ जाता उजागर हो रहा था।

दिल में मेघा से मिलने की तड़प बढ़ चुकी थी और अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मैं एक झटके से पलटा और दाएं हाथ में पकड़ी हुई टार्च के प्रकाश को पहले इधर उधर घुमाया उसके बाद एक तरफ को बढ़ चला। जिस्म में मौजूद थकान जाने कहां गायब हो गई थी। न अपनी हालत का होश था और ना ही अपने पेट के अंदर भूख की वजह से ऊपर नीचे उठ रहे गैस के गोलों का। मुझे बस इस बात की ख़ुशी महसूस हो रही थी कि झरना मिल गया है तो अब जल्द ही मुझे मेघा भी मिल जाएगी। मेघा से मिलने की ख़ुशी इतनी ज़्यादा थी कि मैं बिना रुके और बिना कुछ सोचे आगे बढ़ता ही जा रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनता जा रहा था कि जब मेघा मुझे मिलेगी तो मैं ऐसा करुंगा या वैसा करुंगा।

काफी देर तक चलने के बाद अचानक ही मुझे झटका सा लगा और मैं बुरी तरह चौंक गया। कारण मैं मेरे कानों में एक बार फिर से झरने में ऊपर से नीचे गिरते हुए पानी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मैंने टार्च के प्रकाश को बाएं तरफ घुमाया तो ये देख कर चौंक गया कि मैं उसी जगह खड़ा हूं जहां पर मैं पहले खड़ा था, यानि झरने के किनारे पर। मुझे समझ न आया कि ये क्या चक्कर है? मैं तो कुछ देर पहले इसी जगह से मेघा को खोजने ख़ुशी ख़ुशी गया था, जबकि मैं काफी देर तक चलने के बाद भी उसी झरने के पास आ गया था।

कुछ देर झरने के किनारे पर खड़ा मैं इस सबके बारे में सोचता रहा। मैं समझ गया कि शायद अंजाने में मैं घूम फिर कर वापस झरने के पास आ गया हूं। मेघा से मिलने की ख़ुशी ही इतनी थी कि मुझे बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। मेरे दिल को थोड़ी तकलीफ़ तो हुई लेकिन किसी तरह खुद को बहला कर मैंने फैसला किया कि इस बार मुझे पूरे होशो हवास में मेघा को खोजना है।

एक बार फिर से मैं मेघा और उसके उस पुराने से मकान की खोज में चल पड़ा। इस बार मैं पूरे होशो हवास में आगे बढ़ रहा था। मेरे हाथ में मौजूद टार्च का तेज़ प्रकाश कोहरे की धुंध को भेदता हुआ मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रहा था। चारो तरफ घने पेड़ थे। कच्ची ज़मीन पर पेड़ों के सूखे पत्ते थे जो मेरे चलने से बड़ी अजीब सी आवाज़ें कर रहे थे। मेरी जगह कोई सामान्य मनुष्य होता तो वो भय के मारे पेशाब कर देता लेकिन मैं तो जैसे इन दो सालों में खुद ही एक भूत बन गया था जो अँधेरे में ऐसे भयावह जंगल में हर रात विचरण करता था। मुझे इन दो सालों में कभी भी ऐसी जगह पर इधर उधर भटकने में डर का आभास नहीं हुआ। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मैं हर वक़्त सिर्फ मेघा के ख़यालों में ही रहता था। किसी और चीज़ का मुझे ख़याल ही नहीं रहता था। अगर मैं ये सोचता कि मैं रात के अँधेरे में एक ऐसे जंगल में भटक रहा हूं जहां पर किसी भी वक़्त मुझे कोई भी जीव या जानवर नुक्सान पहुंचा सकता है तो यकीनन इस ख़याल से मैं डरता और यहाँ रात के अँधेरे में आने के बारे में सोचता भी नहीं।

हड्डियों को भी कंपा देने वाली ठण्ड थी। कोहरे की धुंध के बीच ब्याप्त भयावह सन्नाटा जैसे मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। मैं बिना रुके आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। मुझे चलते हुए काफी देर हो चुकी थी। मैं कुछ दूर चलने के बाद रुक जाता था और टार्च के प्रकाश को इधर उधर घुमा कर ये भी देखता था कि मेघा के साथ मैं जिस मकान में रहा था वो कहीं दिख रहा है कि नहीं? कुछ देर और चलने के बाद अचानक से मैं ठिठक गया और साथ ही मैं आश्चर्यचकित भी रह गया। कारण एक बार फिर से मैं झरने के पास ही आ गया था।

मेरे लिए ये बेहद ही चौंकाने वाली बात थी कि मैं दूसरी बार एक ही जगह पर कैसे आ गया था? मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं कोई ख़्वाब नहीं देख रहा था लेकिन ये जो कुछ भी हुआ था वो ऐसा था जैसे मैं किसी ख़्वाबों की दुनियां में पहुंच गया हूं। ऐसी हैरतअंगेज़ बात ख़्वाब में ही हो सकती थी लेकिन सबसे बड़ा सच यही था कि ये कोई ख़्वाब नहीं था बल्कि वास्तविकता थी। एक ऐसी वास्तविकता जिसने मुझे बुरी तरह उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता था? मैं हर बार घूम फिर कर उसी झरने के पास क्यों आ जाता था? क्या ये मेरे लिए किसी प्रकार का संकेत था या फिर किसी तरह की चेतावनी थी?

मुझे ना तो किसी प्रकार के ख़तरे का डर था और ना ही अपनी जान जाने की फ़िक्र थी। मैं बस हर हाल में मेघा को खोजना चाहता था। अपने अंदर चल रही उथल पुथल को मैंने किसी तरह शांत किया और पलट कर फिर से एक तरफ को बढ़ चला।

रात तो शायद कब की हो चुकी थी लेकिन घने जंगल के बीच अभी भी वैसा ही वातावरण था जैसे यहाँ आने से पहले था। आसमान में शायद चाँद मौजूद था जिसकी रौशनी कोहरे को भेदने की नाकाम कोशिश कर रही थी। धुंध में रौशनी का आभास हो रहा था और यही वजह थी कि रात हो जाने पर भी मुझे शाम जैसा ही वातावरण प्रतीत हो रहा था। हालांकि संभव था कि इसकी कोई दूसरी वजह भी रही हो।

इस बार मैं झरने के किनारे किनारे ही चल रहा था। हालांकि झरने के किनारे पर कहीं मेघा के उस पुराने मकान का मौजूद होना ज़रूरी तो नहीं था किन्तु मैं देखना चाहता था कि इस बार भी मैं उसी जगह पर पहुंच जाता हूं या नहीं? काफी देर तक मैं किनारे किनारे ही चलता रहा। मेरे एक तरफ घना जंगल था तो दूसरी तरफ नीचे की तरफ दिख रही एक चौड़ी नदी जिसमें झरने का पानी अपने बहने का आभास करा रहा था। नदी के ऊपर हवा में कोहरे की धुंध थी जिसकी वजह से मुझे नदी में बहता पानी दिख नहीं रहा था। किनारे से चलते हुए मैं इतना ज़रूर अनुमान लगा रहा था कि नदी यहाँ की ज़मीन से काफी गहरी है। यानि मैं उंचाई पर चल रहा था। टार्च के प्रकाश में मैं आगे बढ़ता ही जा रहा था। मुझे महसूस हुआ कि इस बार मुझे चलते हुए काफी समय हो गया था। मैंने नदी की तरफ टार्च के प्रकाश को डाला तो सहसा मैं चौंक गया।

मेरे जिस तरफ नदी थी वहां अब नदी नहीं थी बल्कि उस जगह पर भी अब घने पेड़ पौधे और ज़मीन दिख रही थी। मैं सोच में पड़ गया कि क्या नदी पलक झपकते ही गायब हो गई या वो किसी दूसरी तरफ को मुड़ गई है? यकीनन वो किसी दूसरी तरफ ही मुड़ गई होगी, भला इतनी बड़ी नदी पलक झपकते ही तो गायब नहीं हो जाएगी। मैं कुछ और दूर आया तो देखा मेरे सामने पक्की सड़़क थी। मैं ये देख कर चौंका कि ये वही सड़़क है जहां से मैं हर रोज़ जंगल की तरफ मुड़ता था। यानि अंजाने में ही मैं सड़क पर आ गया था। दो सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मैं जंगल में इतने समय तक भटकने के बाद अपने आप ही सड़क पर आ गया था।

सड़क का एक छोर मुझे मेरे घर तक ले जाने के लिए मानो मुझे ज़ोर दे रहा था तो दूसरी तरफ का छोर मुझे दूसरे शहर की तरफ जाने का एहसास करा रहा था। सड़क को देख कर मेरा दिलो दिमाग़ भारी पीड़ा से भर गया। एक बार फिर से नाकामी ने अपना चेहरा दिखा कर मुझे हताश और दुखी कर दिया था। कहां इसके पहले उस झरने के मिल जाने से मैं ये सोच कर ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था कि अब मुझे मेघा मिल जाएगी और कहां अब मैं एक बार फिर से उसको खोज न पाने की वजह से दुखी हो गया था। मेरा जी चाहा कि उसी सड़क पर अपने सिर को पटक पटक कर अपनी जान दे दूं।

जंगल की तरफ मुखातिब हो कर और मन ही मन मेघा को याद करते हुए मैं उसको अपने दिल की हालत बताने के लिए जैसे तड़़प उठा। मेरा दिल चीख चीख कर उससे कहना चाहता था कि वो उसके लिए कितना तड़प रहा है। उसको एक बार देख लेने के लिए बुरी तरह बेचैन है। ज़हन में न जाने कितने ही ख़याल उभरने लगे जिनके एहसास से मेरी आँखें छलक पड़ीं।


यूं किया है तुमने ग़म के हवाले मुझको।
कोई ऐसा भी नहीं जो सम्हाले मुझको।।

देख कर हाले-दिल अपना यूं लगता है,
हिज़्रे-ग़म किसी रोज़ मार न डाले मुझको।।

मरीज़े-दिल की बस एक ही ख़्वाहिश है,
चैन आ जाए अगर गले लगा ले मुझको।।

मैं तेरी दीद की हसरत लिए फिरता हूं,
मुझ पे रहम कर अपना बना ले मुझको।।

मेरी ज़िन्दगी में बहार आ जाए शायद,
अपने जूड़े में गुल सा सजा ले मुझको।।

ऐसा न हो किसी रोज़ डूब के मर जाऊं,
अपनी याद के दरिया से बचा ले मुझको।।

घर आते आते रात काफी गुज़र गई थी। मेरा दिल बुरी तरह तड़प रहा था। कमरे में जाते ही बिस्तर पर औंधे मुँह गिर गया। फ़िज़ा में शमशान की मानिन्द सन्नाटा ब्याप्त था। कमरे में हल्की रौशनी थी क्योंकि बिजली का एक छोटा सा बल्ब अपनी क्षमता के अनुसार टिमटिमा रहा था। कुछ देर तक यूं ही बिस्तर में चेहरा छुपाए अपने अंदर मचल रहे जज़्बातों को रोकने की कोशिश करते हुए पड़ा रहा। उसके बाद उठा और लकड़ी के स्टूल पर एक प्लेट में रखी भुजिया को उठा कर उसे ज़बरदस्ती खाने का प्रयास करने लगा। भुजिया सुबह की थी और ठण्ड में और भी ज़्यादा ठण्ड हो गई थी। इस वक़्त ढाबे से कुछ भी मिलना मुश्किल था क्योंकि रात काफी हो जाने की वजह से ढाबा पहले ही बंद हो चुका था। ख़ैर बड़ी मुश्किल से मैंने प्लेट में बची हुई भुजिया को हलक के नीचे उतारा और फिर पानी पी कर वापस बिस्तर में पसर गया।

"कहां चली गई थी तुम?" क़रीब तीन घंटे बाद जब मेघा वापस आई थी तो मैंने सबसे पहले उससे यही कहा था_____"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि इस डरावनी जगह पर अकेले रहने से मेरी क्या हालत हो गई थी?"

"तुम्हारे लिए कुछ खाने का इंतजाम करने गई थी।" मेघा के हाथ में एक प्लास्टिक की थैली थी जिसे उसने एक पुराने से स्टूल पर रखते हुए कहा था____"मुझे पता है कि तुम भूखे होगे। हालांकि तुमने मुझसे इसके बारे में कहा नहीं लेकिन ये मेरा फ़र्ज़ है कि तुम्हारा ख़याल रखूं। मुझे नहीं पता कि तुम्हें खाने में क्या खाना पसंद है लेकिन फिर भी उम्मीद करती हूं कि मेरा लाया हुआ खाना तुम्हे पसंद आएगा।"

मेघा ये सब कहते हुए प्लास्टिक की उस थैली से निकाल कर खाने को एक बड़ी सी प्लेट में रख दिया था। मैं खाने की तरफ नहीं बल्कि उसके चेहरे की तरफ ही अपलक देखे जा रहा था। दूध में हल्का केसर मिले रंग जैसा उसका चेहरा गोरा था। उसके सिर में पहले की ही भाँति जूड़ा बना हुआ था और चेहरे के दोनों तरफ उसके बालों की दो लटें झूलते हुए उसके गालों को बार बार चूम ले रहीं थी। जिस्म पर वही रेशमी कपड़े थे जो उसने तीन घंटे पहले पहने थे। उसके कपड़े बिलकुल वैसे ही थे जैसे वो किसी बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। झुके होने की वजह से उसकी कमीज का गला थोड़ा ज़्यादा फ़ैल गया था जिससे उसके सीने के बड़े बड़े उभार और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। उसी दरार के सामने उसके गले में पड़ा हुआ वो लॉकेट झूल रहा था जिसमें गाढ़े नीले रंग का पत्थर जैसा नगीना लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" उसकी मधुर आवाज़ से जैसे मेरा सम्मोहन टूटा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। जबकि उसने सीधा खड़े हो कर आगे कहा____"तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया?"

"कि..किस बात का??" मैं एकदम से बौखला गया था। उधर उसने मेरे सवाल पर कुछ पलों तक मुझे देखा फिर स्टूल से उस प्लेट को उठा कर मेरे पास आते हुए कहा____"यही कि जो खाना मैं तुम्हारे लिए ले कर आई हूं वो तुम्हें ज़रूर पसंद आएगा।"

"हां बिल्कुल।" मैंने झट से कहा था____"भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम मेरे लिए कुछ लाओ और वो मुझे पसंद न आए?"
"अच्छा ऐसी बात है क्या?" उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा था____"फिर तो अच्छी बात है। मैं अपनी समझ में तुम्हारे लिए बेहतर खाना ही ले कर आई हूं। अब जबकि तुम खुद ही कह रहे हो कि मेरा लाया हुआ सब कुछ तुम्हें पसंद आएगा तो मुझे अब इसके लिए फ़िक्र करने की ज़रूरत ही नहीं है।"

मेघा ने मेरी तरफ प्लेट बढ़ाया तो मैंने उसे अपने एक हाथ से थाम लिया। मैंने पहली बार प्लेट में रखे हुए खाने की तरफ निगाह डाली और सच तो ये था कि मैंने ऐसा खाना पहली बार ही देखा था। हालांकि मैं जिस हैसियत वाला इंसान था उसमें मैंने वास्तव में ज़्यादा ब्यंजन के प्रकार नहीं देखे थे लेकिन इतना ज़रूर समझने की कोशिश कर सकता था कि ये ब्यंजन खाने योग्य है कि नहीं। प्लेट में जो खाना रखा हुआ था वो मेरे लिए बिलकुल ही अनभिज्ञ था लेकिन उसका रंग रूप बड़ा ही ख़ास नज़र आ रहा था।

"क्या देख रहे हो?" मुझे प्लेट की तरफ अपलक घूरता देख मेघा ने पूछा था____"ख़ाना पसंद नहीं आया क्या?"
"ऐसा तो मैंने नहीं कहा।" मैंने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा था____"और इसे खाने के बाद भी नहीं कहूंगा।"

"ऐसा क्यों?" मेघा ने हौले से पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा था।
"क्योंकि इस खाने को तुम ले कर आई हो।" मैंने बड़ी मोहब्बत से उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारी लाई हुई हर चीज़ बेहद ख़ास ही होगी और ऐसी भी होगी जो मुझे बेहद पसंद आएगी।"

"ये तुम नहीं बल्कि मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम बोल रहा है ध्रुव।" मेघा ने कहा था____"मैंने तुम्हें उस वक़्त भी समझाते हुए कहा था कि मेरे प्रति ऐसे ख़याल अपने ज़हन से निकाल दो। तुम्हें मेरी असलियत पता नहीं है। अगर मेरी असलियत जान जाओगे तो तुम्हारा ये प्रेम का भूत एक पल में तुम्हारे अंदर से भाग जाएगा।"

"सच्चे प्रेम के भूत की यही तो ख़ासियत होती है मेघा कि वो जब एक बार किसी के सिर पर चढ़ जाता है तो मरते दम तक नहीं उतरता।" मैंने बेझिझक और बिना किसी डर के कहा था____"तुम्हारे जाने के बाद मैंने ख़ुद इस बारे में बहुत सोचा था और यकीन मानो मैं खुद चकित था कि किसी को एक बार देख लेने से उसके प्रति कैसे इस तरह के जज़्बात पैदा हो सकते हैं जो मिटाना चाह कर भी मिटाए ही न जाएं? सुना तो था कि जब भी किसी को किसी से प्रेम होता है तो वो पहली ही नज़र में हो जाता है लेकिन जब खुद पर ऐसा हुआ तब यकीन करने में देर नहीं लगी मुझे। मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अपने अंदर तुम्हारे प्रति उभरने वाले प्रेम के मीठे जज़्बातों को चाह की मिटा न सका। अब तो ऐसा आलम है कि मैं खुद भी ये प्रयास नहीं करना चाहता कि मैं तुम्हारे प्रति अपने अंदर उभर रहे जज़्बातों का गला घोटूं।"

"बड़े अजीब इंसान हो तुम।" मेघा ने चकित भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा था_____"क्या हर इंसान तुम्हारी तरह ही ढीठ और ज़िद्दी होता है?"

"मैं किसी और के बारे में कुछ नहीं कह सकता।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि इस हालत में और सामान्य हालत में काफी फ़र्क होता है। इंसान को जब तक किसी से प्रेम नहीं होता तब तक उसका नज़रिया अलग होता है और जब उसे किसी से प्रेम हो जाता है तो उसका नज़रिया अपने आप ही बदल जाता है।"

"ख़ैर मुझे इससे क्या लेना देना।" मेघा ने जैसे विषय बदलने की कोशिश की थी____"मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम जल्द से जल्द पूरी तरह ठीक हो जाओ, ताकि मैं तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर भेज दूं।"

"ऐसा क्यों चाहती हो तुम?" मैंने अचानक से बढ़ चली अपनी धड़कनों को नियंत्रित करते हुए कहा____"क्या तुम्हें मेरा यहाँ पर रहना अच्छा नहीं लग रहा या फिर मैं तुम्हारे लिए बोझ सा लग रहा हूं?"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" मेघा ने सपाट भाव से कहा था____"सच तो ये है कि मैं खुद इस बात से हैरान हूं कि मैं किसी इंसान के लिए इतना कुछ क्यों कर रही हूं? मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं। माना कि तुमने मुझे बचाने के लिए खुद को ज़ख़्मी किया था लेकिन मेरी नज़र में ये कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके लिए मुझे तुम्हें यहाँ ला कर तुम्हारा इलाज़ करना चाहिए था।"

"फिर भी तुमने ऐसा किया न?" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा था____"मैं नहीं जानता कि तुम्हारी फितरत कैसी है लेकिन जो कुछ तुमने किया है या कर रही हो वो इस बात का सबूत है कि तुम्हारे अंदर भी इंसानियत मौजूद है और तुम किसी ऐसे इंसान को उसके हाल पर छोड़ कर नहीं जाना चाहती जो तुम्हारी ही वजह से ज़ख़्मी हो गया हो।"

"तुम मेरे बारे में कुछ नहीं जानते ध्रुव।" मेघा ने थोड़ा शख़्त भाव से कहा था____"वरना मेरे बारे में ऐसी बातें सोचते भी नहीं। ख़ैर मैं तुमसे कोई बहस नहीं करना चाहती। फिलहाल मुझे यहाँ से जाना होगा और हाँ, यहाँ से कहीं बाहर जाने का सोचना भी मत। अगर तुम यहाँ से बाहर गए और तुम्हारे साथ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो उसके जिम्मेदार तुम ख़ुद होगे।"

"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि मैं यहाँ से बाहर जाने का सोचूंगा भी?" मैंने एक बार फिर से मेघा की तरफ मोहब्बत से देखते हुए कहा था____"सच तो ये है कि अब मैं मरते दम तक इस जगह पर रहना चाहता हूं, ताकि मैं दुनियां की उस हसीन लड़की को अपनी आँखों से देख सकूं जिससे मेरा दिल प्रेम करता है।"

मेरी बातें सुन कर मेघा बड़े ही शख़्त भाव से मेरी तरफ कुछ देर तक देखती रही उसके बाद बिना कुछ कहे दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गई। मैं बंद हो चुके दरवाज़े को घूरता रह गया था। फिर जैसे एकदम से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने एक बार चारो तरफ नज़रें घुमाई और फिर हाथ में पकड़ी खाने की प्लेट को देखने लगा। खाना हल्का गर्म था और उसकी खुशबू भी काफी अच्छी थी। मैंने बड़ी ख़ुशी से उसे खाना शुरू कर दिया।

कहीं दूर घंटाघर में मौजूद बड़े से घंटे की आवाज़ आई तो मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। मैंने महसूस किया कि मुझे ठण्ड लग रही है इस लिए अपने नीचे पड़ी रजाई को मैंने उठाया और खुद को उसके अंदर क़ैद कर लिया। रात बड़ी ही मुश्किल से आँख लगी थी लेकिन सुबह होने में देर भी नहीं लगी। एक नई सुबह जाने किस तरह मेरा स्वागत करने का मुझे आभास करा रही थी?


✮✮✮
Very nice update bhai
 

drx prince

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Update - 05
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सुबह अपने समय पर ही मैं गजराज शेठ के मोटर गैराज पर पहुंचा। हालांकि मेरा मन आज यहाँ आने का बिलकुल भी नहीं था लेकिन ये सोच कर आ गया था कि खाली बैठ कर भी क्या करुंगा? घर में रहूंगा तो मेघा के ही ख़यालों में खोया रहूंगा और ये सोच सोच कर कुछ ज़्यादा ही दुखी होऊंगा कि पिछली रात उस झरने के मिल जाने के बावजूद मैं मेघा के उस मकान तक नहीं जा पाया था। जब भी ये ख़याल आता था तो दिल में दर्द भरी टीस उभर आती थी। काश! कुछ देर के लिए ही सही मेरी किस्मत मुझ पर मेहरबान हो गई होती तो मैं जी भर के मेघा का दीदार कर लेता।

अपने ज़हन से इन ख़यालों को झटक कर मैं अपने काम पर लग गया। गैराज में और भी लोग थे लेकिन उनसे मुझे कोई मतलब नहीं होता था। हालांकि ज़रूरत पड़ने पर वो खुद ही मुझसे बात कर लेते थे और मैं भी हाँ हूं में जवाब दे कर काम कर देता था। पिछले दिन गजराज शेठ ने मुझे किसी मनोचिकित्सक के पास ले जाने की बात कही थी लेकिन मेरी ज़रा भी इच्छा नहीं थी कि मैं उसके साथ किसी डॉक्टर के पास जाऊं। गैराज में मौजूद लोग आपस में बातें कर रहे थे और उनकी बातों से ही मुझे पता चला कि गजराज शेठ कहीं बाहर गया हुआ है। उसके न रहने पर गैराज का सारा कार्यभार उसका छोटा भाई जयराज सम्हालता था। जयराज पैंतीस के ऊपर की उम्र का तंदुरुस्त आदमी था किन्तु स्वभाव गजराज शेठ से बिलकुल उलट था। वो गैराज में काम करने वाले लोगों से ज़्यादा मतलब नहीं रखता था बल्कि अपने बड़े भाई के न रहने पर कार ले कर चला जाता था। वो निहायत ही अय्यास किस्म का इंसान था। शादी शुदा होते हुए भी वो बाहर मुँह मारता रहता था।

सारा दिन मैं गैराज में काम करता रहा और शाम होने से पहले ही मैं अपना काम पूरा कर के गैराज से चल पड़ा। रास्ते में एक जगह मैंने ढाबे पर खाना खाया और फिर सीधा जंगल की तरफ चल पड़ा। मैं अपने साथ एक छोटा सा बैग लिए रहता था जिसमें पीने के लिए पानी की एक बोतल और एक बड़ी सी टोर्च होती थी। ठण्ड के मौसम में यहाँ इतनी ज़्यादा ठण्ड और कोहरा होता था कि इंसान की हड्डियों तक में ठण्ड पहुंच जाती थी।

शहर के एक तरफ ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखर थे तो दूसरी तरफ घना जंगल। ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखरों में बर्फ की सफेदी छा जाती थी जो दिन में बहुत ही खूबसूरत दिखती थी। दूर उन पहाड़ों के नीचे भी कच्चे पक्के मकान बना रखे थे लोग। उस तरफ ठण्ड यहाँ से ज़्यादा होती थी। रात में तो घरों की छत पर भी बर्फ की सफेदी चढ़ जाती थी। यहाँ तक कि पीने का पानी भी जम कर बर्फ में तब्दील हो जाता था।

शाम हुई नहीं थी लेकिन कोहरे की वजह से ऐसा प्रतीत होता था जैसे शाम ढल चुकी हो। आसमान में सूर्य को देखे हुए जाने कितने ही दिन बीत गए थे। इन दो सालों में मैं इतना चल चुका था कि अब इस तरह पैदल भटकने में मुझे थकान का एहसास तक नहीं होता था। मन में मेघा का दीदार करने की हसरत लिए मैं हर रोज़ जंगल की तरफ जाता था और देर रात तक घने जंगल में अकेला ही भटकता रहता था।

पिछले दो सालों से मेरी एक दिनचर्या सी बन गई थी। शाम को जब मैं मेघा की खोज में जंगल की तरफ जाता था तो रास्ते में उस जगह पर ज़रूर रुकता था जहां पर दो साल पहले मेघा को बचाने के चक्कर में मैं खुद ही मोटर साइकिल से गिर कर गंभीर रूप से घायल हो गया था। उस वक़्त तो यही लगा था कि पहले क्या कम दुःख दर्द झेल रहा था जो अब ये हादसा भी हो गया मेरे साथ लेकिन बेहोश होने के बाद जब मुझे होश आया था और मेघा जैसी बेहद हसीन लड़की पर मेरी नज़र पड़ी थी तो अपनी वीरान पड़ी ज़िन्दगी के सारे दर्द और सारे गिले शिकवे भूल गया था।

मेघा को देख कर ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे अनंत रेगिस्तान में भटकते हुए किसी इंसान को कोई इंसान नहीं बल्कि फरिश्ता मिल गया हो। दिल से बस एक ही आवाज़ आई थी कि अगर ये लड़की मुझे हासिल हो जाए तो मेरे सारे दुःख दर्द मिट जाएं। उस वक़्त मैं भले ही उसे देख कर अवाक रह गया था लेकिन मेरा दिल तो मेघा को देखते ही उसके प्रति अपने अंदर मोहब्बत के अंकुर को जन्म दे चुका था। उसके बाद जब मेरा दिल चीख चीख मुझसे मेघा के प्रति अपनी मोहब्बत की दुहाई देने लगा तो मैं भी उसकी गुहार को दबा नहीं सका। मैं भला कैसे अपने दिल के जज़्बातों को दबा देता जबकि मुझे भी यही लगता था कि मेघा ही वो लड़की है जिसके आ जाने से मेरी ज़िन्दगी संवर सकती थी और मुझे जीने का एक खूबसूरत मकसद मिल जाता।

दो साल पहले इस सड़क के दोनों तरफ हल्की हल्की झाड़ियां थी किन्तु आज झाड़ियां नहीं थी बल्कि दोनों तरफ पथरीली ज़मीन दिख रही थी। सड़क के किनारे कुछ दूरी पर वो पत्थर आज भी मौजूद था जिस पर मेरा सिर टकराया था और मैं बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया था। फ़र्क सिर्फ इतना ही था कि वो पत्थर पहले सड़क के किनारे ही झाड़ियों के पास मौजूद था किन्तु आज उसे सड़क से थोड़ा दूर कर दिया गया था। पथरीली ज़मीन पर पड़ा वो अकेला पत्थर मेरे लिए बहुत मायने रखता था। भले ही उसने दो साल पहले मुझे ज़ख़्मी किया था किन्तु उसी की वजह से मुझे मेघा मिली थी और मेघा के साथ एक हप्ते रहने का सुख मिला था।

"कहां चली गई थी तुम?" शाम को जब मेघा मेरे पास वापस आई तो मैंने उससे पूछा था____"सारा दिन इस डरावने कमरे में मैं अकेला रहा। मुझे लगा तुम किसी काम से ग‌ई होगी और जल्दी ही वापस आ जाओगी लेकिन सुबह की गई तुम शाम को आई हो। क्या मैं जान सकता हूं कि सारा दिन कहां थी तुम?"

"तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए ध्रुव।" उसने सपाट लहजे में कहा था_____"तुम यहाँ पर सिर्फ इस लिए हो क्योंकि मेरी वजह से तुम घायल हुए हो और मैं चाहती हूं कि तुम जल्द से जल्द ठीक हो जाओ ताकि मैं तुम्हें तुम्हारे घर सही सलामत पहुंचा सकूं। उसके बाद हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

"मतलब जब तक मैं पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाऊंगा तब तक मैं यहीं पर रहूंगा?" मैं जाने क्यों मन ही मन उसकी बात से खुश हो गया था____"ये तो बहुत अच्छी बात है मेरे लिए।"

"क्या मतलब??" मेघा ने उलझन पूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा था।
"मतलब ये कि जब तक मैं पूरी तरह ठीक नहीं हो जाऊंगा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"तब तक तुम मुझे अपने इस कमरे में ही रखोगी जो कि मेरे लिए अच्छी बात ही होगी। मैं ऊपर वाले से अब यही दुआ करुंगा कि दुनियां की कोई भी दवा मेरे ज़ख्मों का इलाज़ न कर पाए।"

"तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या?" मेघा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए थे, बोली____"भला ऐसी दुआ तुम कैसे कर सकते हो?"
"तुम नहीं समझोगी मेघा।" मैंने उसी मुस्कान के साथ कहा था____"ये दिल का मामला होता ही ऐसा है। किसी की मोहब्बत में गिरफ्तार हुआ इंसान अपने सनम के लिए ऐसी ही ख़्वाहिशें करता है और ऐसी ही दुआएं करता है। साधारण इंसान भले ही इसे मूर्खता या पागलपन कहे लेकिन जो इश्क़ के मर्म को समझता है वही जानता है कि ये कितना खूबसूरत एहसास होता है।"

"तुम फिर से वही राग अलापने लगे?" मेघा ने शख़्त भाव से कहा____"तुम मेरी नरमी का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हो जोकि सरासर ग़लत है।"
"अगर तुम्हें लगता है कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए।" मैंने उसकी तरफ अपलक देखते हुए कहा था____"तो इसके लिए तुम मुझे बड़े शौक से सज़ा दे सकती हो। तुम्हारे हाथों से सजा पा कर मुझे ख़ुशी ही महसूस होगी।"

मेरी बातें सुन कर मेघा के चेहरे पर बेबसी के भाव उभर आए थे। मैं अपनी आँखों में उसके प्रति बेपनाह मोहब्बत लिए उसी की तरफ देखे जा रहा था। उसकी बेबसी देख कर मेरे होठों पर उभरी मुस्कान और भी बढ़ गई थी किन्तु अचानक ही मुझे झटका सा लगा। एकाएक दिल में दर्द सा उठा। दिल ने तड़प कर मुझसे कहा कि मैं अपनी मोहब्बत को किसी बात के लिए बेबस कैसे कर सकता हूं? ऐसा करना तो मोहब्बत की तौहीन होती है।

"मुझे माफ़ कर दो मेघा।" दिल की आवाज़ सुनने के बाद मैंने खेद भरे भाव से कहा____"मैं भूल गया था कि हम जिससे मोहब्बत करते हैं उसे किसी बात के लिए मजबूर या बेबस नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना मोहब्बत की तौहीन करना कहलाता है।"

मेरी बात सुन कर मेघा के चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। एक बार फिर से उसने मेरी तरफ हैरानी से देखा। कुछ कहने के लिए उसके होठ कांपे तो ज़रूर लेकिन होठों से कोई अल्फ़ाज़ ख़ारिज न हो सका था। शायद उसे समझ ही नहीं आया था कि वो क्या कहे?

"तुम मुझे जल्द से जल्द ठीक कर के मुझे मेरे घर भेज देना चाहती हो न?" मैंने गंभीर भाव से कहा था____"तो ठीक है, मैं भी अब यही दुआ करता हूं कि मैं जल्द से जल्द ठीक हो जाऊं। तुम्हें मेरी वजह से इतना परेशान होना पड़ रहा है इसका मुझे बेहद खेद है।"

"अब ये क्या कह रहे हो तुम?" मेघा चकित भाव से बोल पड़ी थी____"अभी तक तो यही चाह रहे थे न कि तुम्हें यहीं रहना पड़े?"
"सब कुछ हमारे चाहने से कहां होता है मेघा?" मैंने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था____"असल में मैं ये बात भूल गया था कि मोहब्बत वो चीज़ नहीं है जो बदले में किसी से कर ली जाती है बल्कि वो तो एक एहसास है जो किसी ख़ास को देख कर ही दिल में अचानक से पैदा हो जाता है। ये सच है कि तुम्हें देख कर मेरे अंदर ऐसा ही एहसास पैदा हो चुका है लेकिन ये ज़रूरी थोड़े न है कि मुझे देख कर तुम्हारे दिल में भी ऐसा ही एहसास पैदा हो जाए। इस लिए अब से मैं तुम्हें किसी बात के लिए न तो मजबूर करुंगा और न ही बेबस करुंगा।"

"पता नहीं क्या क्या बोलते रहते हो तुम।" मेघा ने उखड़े हुए लहजे में कहा था_____"अच्छा ये सब छोड़ो, मैं तुम्हारे लिए एक ख़ास दवा लेने गई थी। बड़ी मुश्किल से मिली है ये। इस दवा का लेप लगाने से तुम्हारे ज़ख्म जल्दी ही ठीक हो जाएंगे।"

मेघा के हाथ में एक नीले रंग की कांच की शीशी थी जिसकी निचली सतह पर पीतल की धातु की नक्काशी की हुई परत चढ़ी हुई थी और शीशी के ढक्कन पर भी वैसी ही धातु की नक्काशी की हुई परत चढ़ी हुई थी। मैंने इसके पहले कभी ऐसी कोई शीशी नहीं देखी थी। मेघा उसे लिए मेरे क़रीब आई और बिस्तर के किनारे पर बैठ गई। उसे अपने इतने क़रीब बैठे देखा तो मेरी नज़रें उसके खूबसूरत चेहरे पर जम सी गईं और मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं फिर से उसके सम्मोहन में फँसता जा रहा हूं। मन में बस एक ही ख़याल उभरा कि ऊपर वाले ने उसे कितनी खूबसूरती से बनाया था। राजकुमारियों जैसी पोशाक और गले में सोने की जंजीर जिसमें एक गाढ़े नीले रंग का ऐसा नगीना था जो चारो तरफ से सोने की बेहतरीन नक्काशी के साथ फंसा हुआ था।

"अब ऐसे आँखें फाड़े क्यों देख रहे हो मुझे?" मेघा की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैं एकदम से चौंका और हड़बड़ा कर उसके चेहरे से अपनी नज़रें हटा ली। थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई किन्तु अब भला मैं कर भी क्या सकता था? वो थी ही ऐसी कि उसे क़रीब से देखने पर हर बार मैं उसके सम्मोहन में खो जाता था।

"अच्छा एक बात बताओ।" मेघा ने मेरे माथे पर अपने हाथ से तेल जैसा कुछ लगाते हुए अचानक से कहा तो मैंने एक बार फिर उसकी तरफ देखा, जबकि उसने आगे कहा____"क्या सच में मोहब्बत इतनी अजीब सी चीज़ होती है?"

"क्या मतलब?" मैं उसके मुख से ये सुन कर चौंक गया था, फिर खुद को सम्हाल कर बोला____"मेरा मतलब कि तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?"

"पिछले चार दिनों से मैं तुम्हारे मुँह से यही सुन रही थी कि तुम मुझसे बेहद प्रेम करते हो।" मेघा अपनी मधुर आवाज़ में कह रही थी____"और मुझे तुम्हारी ऐसी बातें सुन कर गुस्सा भी आता था लेकिन आज अचानक से तुम ये कहने लगे कि अब तुम मुझे किसी बात के लिए मजबूर नहीं करोगे। मुझे समझ नहीं आया कि एक ही पल में तुम दूसरी तरह की अजीब बातें क्यों करने लगे थे?"

"अब ये सब तुम क्यों पूछ रही हो?" मैं अंदर ही अंदर उसकी ये बातें सुन कर हैरान था और इसी लिए ये सवाल पूछा था____"मैं तो अब वही करने को तैयार हूं जो तुम चाहती हो, फिर ये सब पूछने का क्या मतलब है?"

"तुम बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं।" मेघा ने बेड से उठते हुए कहा था____"अच्छा अब तुम कुछ देर आराम करो और हाँ यहाँ से बाहर जाने का सोचना भी मत।"

"क्या अब नहीं आओगी तुम?" मैं उसे जाता देख एकदम से मायूस हो गया था____"क्या मेरी वजह से तुम यहाँ पर नहीं रूकती हो? देखो, अगर तुम ये समझती हो कि मैं तुम्हें अपनी बातों से परेशान करुंगा तो मैं वादा करता हूं कि अब से मैं तुमसे किसी भी बारे में कोई बात नहीं करुंगा। तुम यहाँ पर बेफिक्र हो कर रुक सकती हो।"

"मुझे तुमसे कोई समस्या नहीं है ध्रुव।" मेघा ने पलट कर कहा था____"लेकिन मैं यहाँ नहीं रह सकती क्योंकि मुझे बहुत से काम करने होते हैं। बाकी तुम्हें यहां पर किसी बात की कोई परेशानी नहीं होगी। अच्छा अब सुबह मुलाक़ात होगी।"

कहने के साथ ही मेघा दरवाज़ा खोल कर किसी झोंके की तरह निकल गई। मैं बंद हो चुके दरवाज़े को मायूस सा देखता रह गया था। पिछले चार दिन से यही हो रहा था। मेघा मेरे पास या तो सुबह आती थी या फिर शाम को। सुबह वो मेरे लिए खाना और दवा ले के आती थी। कुछ देर रुकने के बाद वो चली जाती थी। सारा दिन मैं अकेला ही उस कमरे में रहता था। शाम को भी ऐसा ही होता था। मेघा मेरे लिए खाना और दवा ले कर आती और अपने हाथों से मेरे ज़ख्मों पर दवा लगा कर वो चली जाती थी। उसके बाद रात भर मैं फिर से अकेला ही उस कमरे में रह जाता था। मैं हर रोज़ मेघा से रुकने के लिए कहता था और हर रोज़ वो मुझसे यही सब कह कर चली जाती थी। मैं अक्सर सोचता था कि आख़िर वो मेरे पास ज़्यादा समय तक रूकती क्यों नहीं है? वो ऐसा क्या काम करती थी जिसके लिए उसे रात में भी जाना पड़ता था?

किसी वाहन के हॉर्न बजने से मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। शाम का धुंधलका छाने लगा था। हालांकि कोहरे की वजह से शाम जैसा ही लगता था किन्तु कोहरा होने के बावजूद ये आभास हो ही जाता था कि शाम कब हुई है। ख़ैर मैं गहरी सांस ले कर आगे की तरफ बढ़ चला।

मन में जाने कितने ही ख़याल बुनते हुए, दिल में जज़्बातों के जाने कितने ही तूफ़ान समेटे हुए। मैं बढ़ता ही चला जा रहा था एक ऐसे सफ़र पर जिसका मुझे अंदाज़ा तो था लेकिन मंज़िल कब मिलेगी इसका पता न था। उसने तो मना किया था कि मुझे खोजने की कोशिश मत करना और शुरुआत में मैंने भी यही कोशिश की थी लेकिन जब उसकी यादों ने सताना शुरू किया तो मजबूरन मुझे उसकी खोज में घर से निकलना ही पड़ा। उसे कैसे समझाता कि कहने में और करने में कितना फ़र्क होता है? उसे कैसे समझाता कि जिसके दिल पर गुज़रती है उसके अलावा दूसरा कोई भी उसके दर्द को महसूस नहीं कर सकता?

चलते चलते अचानक मैं रुक गया। नज़र बाएं तरफ कोहरे की धुंध में डूबे जंगल की तरफ पड़ी तो दिल में ये सोच कर एक मीठी सी लहर दौड़ गई कि शायद आज वो मुझे मिल ही जाए, जिसके दीदार के लिए मैं पिछले दो सालों से दर दर भटक रहा हूं। शायद आज ऊपर वाले को मुझ पर तरस आ जाए और वो मुझे मेरी मोहब्बत से मिला दे। ये मेरा दिल ही जानता था कि उससे मिलने के लिए और उसे एक बार देख लेने के लिए मैं कितना तड़प रहा था। कोहरे की धुंध में डूबे जंगल की तरफ देखा तो दिल की धड़कनें थोड़ी सी तेज़ हो ग‌ईं। दिल के जज़्बात तेज़ी से मचलने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें शांत किया और पक्की सड़क से उतर कर जंगल की तरफ जाने वाली पगडण्डी पर चलने लगा।

शाम पूरी तरह घिर चुकी थी। आस पास दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था। फ़िज़ा में ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था जैसे प्रलय के बाद एकदम से सब कुछ शांत हो गया हो। हालांकि ठण्ड का आभास ज़रूर हो रहा था जो मेरे जिस्म को बुरी तरह कंपा देने के लिए काफी था किन्तु ये ठंड ऐसी नहीं थी जो मेरे इरादों और हौसलों को परास्त कर दे। मैं तो जैसे हर चीज़ को चीरता हुआ आगे ही बढ़ता चला जा रहा था। बैग से मैंने टोर्च निकाल कर हाथ में ले ली थी और अब उसी के प्रकाश में आगे बढ़ रहा था। कुछ ही देर में मैं जंगल में दाखिल हो गया। जंगल की ज़मीन पर पड़े सूखे पत्ते मेरे चलने से ऐसी आवाज़ें करने लगे थे जो किसी भी साधारण इंसान की रूह को थर्रा देने के लिए काफी थे।

जाने कितनी ही देर तक मैं जंगल में चलता रहा। घने कोहरे की वजह से ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन फिर भी मैं अंदाज़वश चलता ही जा रहा था। पिछले दिन जब मैं यहाँ आया था तो एक जगह मुझे एकदम से रुक जाना पड़ा था क्योंकि मैंने पास ही कहीं से झरने में पानी के बहने की आवाज़ सुनी थी। आज भी मैं पूरी तरह से चौकन्ना हो कर उसी पानी के बहने की आवाज़ को सुनने की कोशिश में लगा हुआ था लेकिन फिलहाल कहीं से ऐसी आवाज़ सुनाई देती प्रतीत नहीं हो रही थी। कभी कभी सोचा करता था कि पिछले दो साल से मैं इस जंगल में हर रोज़ आता हूं लेकिन ना तो कभी वो झरना नज़र आया और ना ही झरने के आस पास बना वो पुराना सा मकान। ऐसा भी नहीं था कि इस जंगल का कोई अन्त ही नहीं था, फिर भला ऐसा कैसे हो सकता था कि मुझे दो में से कोई भी चीज़ इन दो सालों में नज़र ही न आए?

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी किसी आवाज़ पर मैं अपनी जगह पर रुक गया। दिल की धड़कनें एकदम से बढ़ ग‌ईं। मैंने पूरी एकाग्रता से सुनने की कोशिश की तो कुछ ही पलों में मेरे चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए। मेरे दाहिने तरफ से पिछली रात की तरह ही झरने में पानी के बहने की आवाज़ सुनाई दी। उस आवाज़ से साफ़ लग रहा था जैसे उँचाई से गिरता हुआ पानी नीचे तेज़ आवाज़ के साथ गिर रहा है। मैं बड़ी तेज़ी से दाए तरफ पलटा। टोर्च की रौशनी उस तरफ डाली किन्तु धुंध की वजह से दूर का कुछ नज़र नहीं आया। मैं तेज़ी से उस तरफ बढ़ चला। एक बार फिर से मेरे दिल के जज़्बात भड़क उठे थे। दिलो दिमाग़ मेघा को देखने के लिए बेकरार हो उठा था। जल्दी ही मैं झरने के पास आ गया।

ये वही झरना था जिसे मैंने कल देखा था। पानी के गिरने की ऐसी ही आवाज़ मुझे तब सुनाई देती थी जब मैं मेघा के उस पुराने से मकान के कमरे में रह रहा था। मेघा मुझे कमरे से बाहर जाने के लिए शख़्ती से मना कर देती थी इस लिए मैं ये देख ही न सका था कि ये झरना उस मकान से कितनी दूरी पर है या किस दिशा की तरफ है? दिशा...??? ज़हन में दिशा की बात आते ही मैं बुरी तरह चौंका। हाँ दिशा, दिशा की ही तो बात है। मेरे ज़हन में बड़ी तेज़ी से दिशा के बारे में जाने कितने ही सवाल उठ खड़े हुए। मैंने सोचा संभव है कि मेघा का मकान इस झरने के उस पार हो। इस पार तो मैंने दूर दूर तक देख लिया था, ये अलग बात है कि किसी चमत्कारिक ढंग से मैं हर बार झरने के पास ही आ जाता था।

आज से पहले मेरे ज़हन में ये विचार ही नहीं आया था कि मेघा का वो मकान झरने के आर या पार भी हो सकता है। हालांकि कल से पहले मुझे ये झरना भी नहीं मिला था। उस हिसाब से अगर देखा जाए तो संभव है कि मैंने इन दो सालों में झरने के पार भी देखा हो। झरना भले ही नज़र न आया था लेकिन इन दो सालों में मैंने पूरा जंगल छान मारा था। अपने मन में उठे इस ख़याल के बारे में जब मैंने विचार किया तो मुझे कल वाली घटना याद आई कि कैसे मैं हर बार घूम फिर कर झरने के पास ही आ जाता था तो संभव है कि मेघा के मकान का मामला भी झरने जैसा ही हो।

मैं तेज़ी से टोर्च के प्रकाश में एक तरफ को बढ़ चला। पिछली रात मैं झरने के किनारे किनारे चलते हुए मुख्य सड़क पर पहुंच गया था इस लिए आज मैं विपरीत दिशा की तरफ झरने के किनारे किनारे चलने लगा था। हर आठ दस क़दम के अंतराल में मैं एक बार टोर्च के प्रकाश को झरने की तरफ फोकस कर देता था। ऐसा इस लिए कि पिछली रात की तरह कहीं ऐसा न हो कि ये झरना अचानक से गायब हो जाए। मैं झरने के उस तरफ बढ़ रहा था जिधर उँचाई से पानी नीचे की तरफ गिर रहा था। किनारे किनारे चलने से पानी की तेज़ आवाज़ मेरे कानों में साफ़ सुनाई दे रही थी।

काफी देर तक मैं यूं ही चलता रहा। अचानक से मैंने महसूस किया कि झरने के किनारे किनारे मैं इतनी देर से चल रहा हूं लेकिन ना तो अभी तक मैं झरने के मुख्य छोर तक पहुंचा हूं और ना ही झरने में उँचाई से पानी गिरने की आवाज़ में कोई फ़र्क आया है। पानी गिरने की तेज़ आवाज़ वैसी ही सुनाई दे रही थी जैसे तब दे रही थी जब मैं कुछ समय पहले झरने के पास खड़ा था। इस विचार के उठते ही मैं ये सोच कर चौंका कि इसका मतलब मैं अभी भी उसी जगह पर खड़ा हूं जहां पहले खड़ा था लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अच्छी तरह याद है कि मुझे चलते हुए काफी समय गुज़र गया था और टोर्च की रौशनी में मैं आगे ही बढ़ता जा रहा था तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं पहली जगह पर ही मौजूद हूं?

जाने ये कैसा मायाजाल था जो मुझे इस तरह से भटका रहा था? ये सोचते ही मैं निराशा और हताशा से भर गया। दिल में बड़ा तेज़ दर्द उठा जिसने मेरी आँखों से आंसू छलका दिए। नहीं नहीं, हे! ऊपर वाले मेरा ऐसा इम्तिहान मत ले। मुझे मेरी मेघा से मिला दे वरना मैं उसकी याद में तड़प कर मर जाऊंगा।

मैं वहीं झरने के किनारे घुटनों के बल गिर पड़ा और फूट फूट कर रोने लगा। मेरा जी चाहा कि हलक फाड़ कर मेघा का नाम ले कर चिल्लाऊं और उससे कहूं कि क्यों वो मुझ पर तरस नहीं खाती है? आख़िर क्यों वो मेरी चाहत का इस तरह से इम्तिहान ले रही है? माना कि वो मुझसे प्रेम नहीं करती लेकिन मेरे दिल की ख़ुशी के लिए सिर्फ एक बार अपनी सूरत तो दिखा दे मुझे। उसके बाद तो मैं वैसे भी उसकी जुदाई का ग़म बरदास्त नहीं कर पाऊंगा और मेरे जिस्म से मेरे प्राण चले जाएंगे।

जाने कितनी ही देर तक मैं यही सब सोच सोच कर रोता रहा। एकाएक मेरा रोना रुक गया। अगले ही पल मैं चौंका क्योंकि मेरे कानों में झरने के पानी बहने की कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। मैंने जल्दी से टोर्च उठा कर झरने की तरफ रौशनी की। मैं ये देख कर बुत सा बन गया कि उस तरफ अब कोई झरना नहीं था बल्कि घने पेड़ थे और उनके बीच कोहरे की गहरी धुंध। मुझे बड़ा तेज़ झटका लगा और मैं वहीं पर चक्कर खा कर लुढ़क गया।


दौरे-हयात में कोई मुस्तकबिल भी नहीं।
ऐसे रास्ते में हूं जिसकी मंज़िल भी नहीं।।

मैं उसकी याद में हर रोज़ जीता मरता हूं,
जिसके सीने में धड़कता दिल भी नहीं।।

जाने क्यों उसकी जुस्तजू में भटकता हूं,
वो एक शख़्स जो मुझे हासिल भी नहीं।।

हाल-ए-दिल अपना कहूं तो किससे कहूं,
मेरा हमदर्द मेरा कोई आदिल भी नहीं।।

वो सितमगर है लेकिन अज़ीज़ है मुझको,
मेरा दिल उसके जैसा संगदिल भी नहीं।।


✮✮✮
Very Nice Update bhai
 

drx prince

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Update - 06
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ठण्ड लगने की वजह से मुझे होश आया। पलकें खुलीं तो कोहरे की धुंध में मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की। मेरे पास ही कहीं पर रौशनी का आभास हुआ तो मैं चौंका। पहले तो कुछ समझ न आया कि मैं कहां हूं और किस हाल में हूं किन्तु कुछ पलों में जैसे ही ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ। नज़र पीछे की तरफ पड़ी तो देखा मेरी टोर्च ज़मीन पर पड़ी हुई थी। उसी टोर्च की रौशनी का मुझे आभास हुआ था। ठण्ड ज़ोरों की लग रही थी इस लिए उठ कर मैंने अपने कपड़ों को ब्यवस्थित किया जिससे ठण्ड का प्रभाव थोड़ा कम हो गया।

मैंने जब बेहोश होने से पूर्व का घटनाक्रम याद किया तो एक बार फिर से दिल में दर्द जाग उठा। ज़हन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। ज़ाहिर है वो सभी ख़याल मुझे कोई खुशियां नहीं दे रहे थे इस लिए मैंने बड़ी मुश्किल से उन ख़यालों को अपने ज़हन से निकाला और ज़मीन पर पड़ी टोर्च को उठा कर खड़ा हो गया। पलट कर उस दिशा की तरफ देखा जहां बेहोश होने से पूर्व मैंने उस झरने को देखा था। मेरे अलावा दुनियां का कोई भी इंसान इस बात का यकीन नहीं कर सकता था कि मैंने अपनी खुली आँखों से इस जंगल में दो दो बार एक ऐसे झरने को देखा था जो किसी मायाजाल से कम नहीं था।

मेरा दिल तो बहुत उदास और बहुत दुखी था जिसकी वजह से अब कुछ भी करने की हसरत नहीं थी किन्तु जाने क्यों मैं उसी तरफ चल पड़ा जिस तरफ मैंने झरने को देखा था। वही कच्ची ज़मीन, वही पेड़ पौधे और ज़मीन पर पड़े सूखे हुए पत्ते। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जिस जगह पर मैं चल रहा हूं यहीं पर कुछ समय पहले एक अच्छा ख़ासा झरना था। क्या हो अगर वो झरना फिर से प्रकट हो जाए? ज़ाहिर है मैं सीधा उसके पानी में डूबता चला जाऊंगा और ऐसी ठण्ड में मेरे सलामत होने की कोई उम्मीद भी नहीं होगी। इस ख़याल ने मेरे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा की किन्तु मैं रुका नहीं बल्कि आगे बढ़ता ही चला गया। टोर्च की रौशनी कोहरे को भेदने में नाकाम थी लेकिन मुझे रोक देने की ताकत उस कोहरे में तो हर्गिज़ नहीं थी।

"क्या बात है, तुम इतने गुमसुम से क्यों दिख रहे हो?" अगली सुबह मेघा आई और जब काफी देर गुज़र जाने पर भी मैंने कुछ न बोला था तो उसने पूछा था____"कुछ हुआ है क्या? कहीं तुम मेरे मना करने के बाद भी इस कमरे से बाहर तो नहीं चले गए थे?"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था____'पहले तुम्हें मेरे बोलने पर समस्या थी और अब जबकि मैं चुप हूं तो तुम पूछ रही हो कि मैं गुमसुम क्यों हूं?"

"इसमें अजीब क्या है?" उसने एक पीतल की थाली में खाने को सजा कर मेरे पास लाते हुए कहा था____"यहां पर तुम मेरे मेहमान हो और मेरी वजह से ज़ख़्मी भी हुए हो इस लिए ये मेरा फ़र्ज़ है कि मेरी वजह से तुम्हें फिर से कोई तकलीफ़ न हो। हालांकि तुम पहले ऐसे इंसान हो जिसके बारे में मैं ऐसा सोचती हूं और इतना कुछ कर रही हूं वरना मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ऐसा कुछ करना है ही नहीं।"

"तो फिर मत करो मेरे लिए ये सब।" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था____"अगर तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं तो फिर मेरे लिए भी तुम्हें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अगर तुम्हारी वजह से ज़ख़्मी हुआ भी था तो तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ कर चुप चाप चली जाती। मुझे तुमसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं होती बल्कि मैं ये समझ लेता कि ज़िन्दगी जहां इतने दुःख दे रही है तो एक ये अदना सा दुःख और सही।"

"मैं नहीं जानती कि तुम ये सब क्या और क्यों कह रहे हो।" मेघा ने मुझे हल्के से खींच कर बेड की पिछली पुष्त पर टिकाते हुए कहा____"लेकिन तुम्हें उस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती थी। उस दिन जब मैं तुम्हें यहाँ लाई थी तो मैं खुद हैरान थी कि मैंने ऐसा क्यों किया। काफी सोचने के बाद भी मुझे कुछ समझ नहीं आया था। तुम तो बेहोश थे लेकिन मैं अपने अंदर चल रहे द्वन्द से जूझ रही थी। उसके बाद न चाहते हुए भी मैं वो सब करती चली गई जो मेरी फितरत में है ही नहीं। जब तुम्हें होश आया और तुमसे बातें हुईं तो एक अलग ही एहसास हुआ मुझे जिसके बाद मैंने तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ करना शुरू कर दिया। मैं आज भी नहीं जानती कि मैंने किसी इंसान के लिए इतना कुछ कैसे किया और अब भी क्यों कर रही हूं?"

"तुम बार बार ऐसा क्यों कहती हो कि तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं?" मैंने वो सवाल किया जो मेरे मन में कई दिनों से उभर रहा था____"क्या तुम्हें मर्दों से कोई समस्या है या तुम उनसे नफ़रत करती हो?"

"ये सब ना ही जानो तो तुम्हारे लिए बेहतर होगा।" मेघा पीछे से आ कर मेरे पास ही बेड के किनारे पर बैठते हुए बोली थी____"चलो अब जल्दी से खाना खा लो। उसके बाद मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा दूंगी।"

"चलो मान लिया मैंने कि तुम्हें हम मर्दों से नफ़रत है जिसकी वजह से तुम किसी भी इंसान से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखती।" मैंने पीतल की थाली में रखे खाने की तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन ये भी सच है कि तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया। क्या तुमने ये समझने की कोशिश नहीं की कि ऐसा क्यों किया होगा तुमने? अगर तुम्हारी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं तो फिर क्यों ऐसा किया तुमने?"

"मैं ये सब फ़ालतू की बातें नहीं सोचना चाहती।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा था किन्तु उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही नज़र आ रहे थे जिन्हें देखते हुए मैंने कहा____"ठीक है, लेकिन मैं बता सकता हूं कि तुमने ऐसा क्यों किया?"

"क्या??" मेघा ने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा था____"मेरा मतलब है कि तुम भला कैसे बता सकते हो?"
"क्यों नहीं बता सकता?" मैंने थाली से नज़र हटा कर उसकी तरफ देखा____"आख़िर ऊपर वाले ने थोड़ा बहुत बुद्धि विवेक मुझे भी दिया है।"
"कहना क्या चाहते हो?" मेघा ने मेरी तरफ उलझन भरे भाव से देखते हुए कहा था।

"यही कि जो बात किसी इंसान की समझ से बाहर होती है।" मैंने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ज़रूरी नहीं कि उसका कोई मतलब ही न हो। सच तो ये है कि दुनियां में जो भी होता है वो सब उस ऊपर वाले की इच्छा से ही होता है। मैं नहीं जानता कि तुम इंसानों के प्रति ऐसे ख़याल क्यों रखती हो लेकिन इसके बावजूद अगर तुम्हें ये सब करना पड़ रहा है तो ज़ाहिर है कि इसमें नियति का कोई न कोई खेल ज़रूर है। इस सबके बारे में हम दोनों में से किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि ऐसा कुछ होगा लेकिन फिर भी ये सब हुआ तो ज़ाहिर है कि इसके पीछे कोई ऐसी वजह ज़रूर है जिसे हम दोनों को ही समझने की ज़रूरत है। हालांकि मैंने तो समझ लिया है लेकिन तुम्हें शायद देर से समझ आए।"

"तुमने ऐसा क्या समझ लिया है?" मेघा ने आँखें सिकोड़ते हुए पूछा था____"और ऐसा क्या है जो तुम्हारे हिसाब से मुझे देर से समझ में आएगा?"
"एक ऐसी चीज़ जो किसी के भी दिल में किसी के भी प्रति खूबसूरत एहसास जगा देती है।" मैंने कहा था____"उस एहसास को ये दुनिया प्रेम का नाम देती है। मैं बता ही चुका हूं कि तुम्हारे प्रति मेरे दिल में बेपनाह प्रेम का सागर अपना वजूद बना चुका है जबकि तुम्हें इसके बारे में शायद देर से पता चले। तुम खुद सोचो कि अचानक से हम दोनों एक दूसरे को क्यों मिल गए और इस वक़्त एक दूसरे के इतने क़रीब क्यों हैं? हम दोनों को भले ही ये नज़र आता हो कि इसकी वजह वो हादसा है लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वो हादसा भी इसी लिए हुआ हो ताकि हम दोनों को एक दूसरे के क़रीब रहने का मौका मिले और एक दिन हम दोनों एक हो जाएं?"

"पता नहीं तुम इंसान कैसी कैसी कल्पनाएं करते रहते हो।" मेघा ने हैरान नज़रों से मुझे देखते हुए कहा था____"अच्छा अब तुम चुप चाप खाना खाओ। तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा कर मुझे यहाँ से जाना भी है।"

"अभी और कितना वक़्त लगेगा मेरे इन ज़ख्मों को ठीक होने में?" मैंने थाली से एक निवाला अपने मुँह में डालने के बाद कहा था____"क्या कोई ऐसी दवा नहीं है जो एक पल में मेरे ज़ख्मों को ठीक कर दे?"

"ऐसी दवा तो है।" मेघा ने कहीं खोए हुए भाव से कहा था____"लेकिन वो दवा तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।"
"ये क्या बात हुई भला?" मैंने हैरानी से मेघा की तरफ देखा था_____"ऐसी दवा तो है लेकिन मेरे लिए ठीक नहीं है इसका क्या मतलब हुआ?"

"तुम बाल की खाल निकालने पर क्यों तुल जाते हो?" मेघा ने नाराज़गी भरे भाव से कहा था____"चुप चाप खाना खाओ अब।"
"जो हुकुम।" मैंने अदब से सिर नवा कर कहा और चुप चाप खाना खाने लगा। उधर मेघा बेड से उठ कर तथा थोड़ी दूर जा कर जाने क्या करने लगी थी। मेरी तरफ उसकी पीठ थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था।

पिछले पांच दिनों से मैं इस जगह पर रह रहा था। मेघा के ना रहने पर मैं अकेला पता नहीं क्या क्या सोचता रहता था। मुझे किसी भी चीज़ की समस्या नहीं थी यहाँ लेकिन जाने क्यों दिल यही चाहता था कि मेघा हर पल मेरे पास ही रहे। वो जब चली जाती थी तो मैं शाम या फिर सुबह होने का बड़ी शिद्दत से इंतज़ार करता था। रात तो को देर से ही सही लेकिन आँख लग जाती थी जिससे जल्द ही सुबह हो जाती थी लेकिन दिन बड़ी मुश्किल से गुज़रता था। अब तक मैंने मेघा से अपने दिल का हर हाल बयां कर दिया था और यही उम्मीद करता था कि उसके दिल में भी मेरे लिए वही एहसास पैदा हो जाए जैसे एहसास उसके प्रति मेरे दिल में फल फूल रहे थे। जैसे जैसे दिन गुज़र रहे थे और जैसे जैसे मुझे ये एहसास हो रहा था कि मेरी चाहत फ़िज़ूल है वैसे वैसे मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी। अक्सर ये ख़याल मेरी धड़कनों को जाम कर देता था कि क्या होगा जब मेरे ठीक हो जाने पर मेघा मुझे मेरे घर पहुंचा देगी? मैं कैसे उसके बिना ज़िन्दगी में कोई ख़ुशी खोज पाऊंगा?

अचानक किसी पत्थर से मेरा पाँव टकरा गया जिससे एकदम से मैं वर्तमान में आ गया। ज़मीन पर पड़े पत्थर से मेरा पाँव ज़्यादा तेज़ी से नहीं टकराया था इस लिए मैं सिर्फ लड़खड़ा कर ही रह गया था। ख़ैर वर्तमान में आया तो मुझे आभास हुआ कि मैं चलते चलते पता नहीं कहां आ गया हूं मैं। मैंने ठिठक कर टोर्च की रौशनी दूर दूर तक डाली। कोहरे की वजह से दूर का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ज़हन में ख़याल उभरा कि ऐसे कब तक चलता रहूंगा मैं? इस तरफ ठण्ड कुछ ज़्यादा ही महसूस हो रही थी। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं इधर उधर यूं ही देखता रहा उसके बाद अपने बाएं तरफ चल दिया।

मैं एक बार फिर से मेघा के ख़यालों में खोने ही वाला था कि तभी मैं चौंका। मेरे कानों में फिर से झरने में बहते पानी की आवाज़ सुनाई देने लगी थी। इस एक रात में ये दूसरी बार था जब झरने का वजूद मुझे नज़र आया था और इस बार मैं झरने के दूसरी तरफ मौजूद था। ये जान कर अंदर से मुझे जाने क्यों एक ख़ुशी सी महसूस हुई। दिल की धड़कनें ये सोच कर थोड़ी तेज़ हो गईं कि क्या इस तरफ सच में कहीं पर मेघा का वो पुराना सा मकान होगा? इस ख़याल के साथ ही मेरे जिस्म में एक नई जान सी आ गई और मैं तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला गया।

मुझे पूरा यकीन था कि झरने के आस पास ही कहीं पर वो मकान था जिसमें मैं एक हप्ते रहा था। इसके पहले मैं इस तरफ का पूरा जंगल छान मारा था किन्तु तब में और अब बहुत फ़र्क हो गया था। पहले मुझे इस झरने का कोई वजूद नहीं दिखा था और आज दो दो बार ये झरना मेरी आँखों के सामने आ चुका था जो मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। शुरू में ज़रूर मैं इस झरने की माया से चकित था लेकिन फिर ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी कि ये भी मेघा की तरह ही रहस्यमी है।

"क्या हुआ।" शाम को जब मेघा वापस आई थी तो वो एकदम ख़ामोश थी। उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे। इसके पहले वो एकदम खिली खिली सी लगती थी। जब काफी देर गुज़र जाने पर भी उसने कोई बात नहीं की थी तो मैं उससे पूछ बैठा था____"इतनी शांत और चुप सी क्यों हो मेघा? तुम्हारे चेहरे के भाव ऐसे हैं जैसे कोई गंभीर बात है। मुझे बताओ कि आख़िर बात क्या है? क्या मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो गई है? अगर ऐसा है तो तुम्हें मेरे लिए ये सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अब पहले से काफी ठीक हूं और मैं खुद अपने से अपना ख़याल रख सकता हूं।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो ध्रुव।" मेघा ने थाली में मेरे लिए खाना सजाते हुए कहा था____"मुझे तुम्हारी वजह से कोई परेशानी नहीं है।"
"तो फिर ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तुम्हारा चाँद की तरह खिला रहने वाला चेहरा इस वक़्त बेनूर सा नज़र आ रहा है?"

"तो तुम्हें मेरा चेहरा चाँद की तरह खिला हुआ नज़र आता था?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए पहली बार हल्के से मुस्कुरा कर कहा था____"ये तारीफ़ थी या मुझे यूं ही आसमान में चढ़ा रहे थे?"

"बात को मत बदलो।" मैंने उससे नज़रें चुराते हुए कहा____"मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो। आख़िर ऐसी क्या वजह थी कि तुम इतना गंभीर नज़र आ रही थी?"
"आज सारा दिन तुम्हारे द्वारा कही गई बातों के बारे में सोचती रही थी मैं।" मेघा ने थोड़े गंभीर भाव से कहना शुरू किया था____"जीवन में पहली बार मैंने किसी के द्वारा प्रेम के सम्बन्ध में ऐसी बातें सुनी थी। सुबह तुम्हारी बातें मुझे बहुत अजीब सी लग रहीं थी। मन में अजीब अजीब से ख़याल उभर रहे थे। यहाँ से जाने के बाद मैंने जब अकेले में तुम्हारी बातों पर विचार किया तो मुझे बहुत कुछ ऐसा महसूस हुआ जिसने मुझे एकदम से गंभीर बना दिया।"

"ऐसा क्या महसूस हुआ तुम्हें जिसकी वजह से तुम एकदम से इतना गंभीर हो गई?" मैं धड़कते हुए दिल से एक ही सांस में पूछ बैठा था।
"वही जो नहीं महसूस करना चाहिए था मुझे।" मेघा ने अजीब भाव से कहा____"कम से कम किसी इंसान के लिए तो हर्गिज़ नहीं।"

"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ये तुम क्या कह रही हो?" मैं सच में उसकी बातें सुन कर उलझन में पड़ गया था____"साफ़ साफ़ बताओ न कि बात क्या है?"
"मैं इस बारे में अब और कोई बात नहीं करना चाहती।" मेघा ने मेरे सामने बेड पर थाली रखते हुए कहा था____"तुम जल्दी से खाना खा लो ताकि मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा सकूं।"

मेघा की बातें सुन कर मैं एकदम से कुछ बोल न सका था, बल्कि मन में विचारों का तूफ़ान लिए बस उसकी तरफ देखता रह गया था। उसके चेहरे से भी ये ज़ाहिर हो रहा था कि वो किसी बात से परेशान है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर वो किस बात से इतना परेशान और गंभीर दिखने लगी थी। मेरे सामने पीतल की थाली में खाना रखा हुआ था किन्तु उसे खाने का ज़रा भी मन नहीं कर रहा था।

"क्या हुआ?" मुझे खाता न देख मेघा ने पूछा____"तुम खा क्यों नहीं रहे?"
"मुझे भूख नहीं है।" मैंने उसकी तरफ बड़ी मासूमियत से देखते हुए कहा था, जिस पर वो कुछ पलों तक ख़ामोशी से मेरे चेहरे को देखती रही उसके बाद बोली____"ठीक है, बाद में खा लेना। चलो अब मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा देती हूं।"

मेघा की ये बात सुन कर मुझे बड़ी मायूसी हुई। मुझे एक पल को यही लगा था कि शायद वो खुद ये कहे कि चलो मैं खिला देती हूं लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। हालांकि मुझे सच में भूख नहीं थी। इस वक़्त उसे परेशान देख कर मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा था। मैं चाहता था कि उसका चेहरा वैसे ही खिल जाए जैसे हर रोज़ खिला रहता था।

मेघा ने थाली को उठा कर एक तरफ रखा और मेरे ज़ख्मों पर दवा लगाने लगी। न वो कुछ बोल रही थी और ना ही मैं। हालांकि हम दोनों के ज़हन में विचारों तूफ़ान चालू था। ये अलग बात है कि मुझे ये नहीं पता था कि उसके अंदर किस तरह के विचारों का तूफ़ान चालू था? कुछ ही देर में जब दवा लग गई तो मेघा ने वहीं पास में ही रखे घड़े के पानी से अपना हाथ धो कर साफ़ किया और फिर मेरी तरफ पलटी।

"मुझे यकीन है कि कल या परसों तक तुम्हारे ज़ख्म भर जाएंगे और तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगे।" मेघा दरवाज़े के पास खड़ी कह रही थी____"उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दूंगी।"

"ठीक है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"लेकिन अगर कभी तुम्हें देखने का मेरा दिल किया तो क्या तुम मुझसे नहीं मिलोगी?"
"बिल्कुल नहीं।" मेघा ने दो टूक लहजे में कहा था____"तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर पहुंचा देना ही मेरा मकसद है, उसके बाद हम दोनों ही एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

"तुमने तो ये बात बड़ी आसानी से कह दी।" मैंने अपने अंदर बुरी तरह मचल उठे जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए कहा था____"लेकिन तुम्हें ये अंदाज़ा भी नहीं है कि यहाँ से जाने के बाद मेरी क्या हालत होगी। तुम्हारा दिल पत्थर का हो सकता है लेकिन मेरा नहीं। मेरे दिल के हर कोने में तुम्हारे प्रति मोहब्बत के ऐसे जज़्बात भर चुके हैं जो तुमसे जुदा होने के बाद मुझे चैन से जीने नहीं देंगे। ख़ैर कोई बात नहीं, मैं तो पैदा ही हुआ था जीवन में दुःख दर्द सहने के लिए। बचपन से ही मेरा कोई अपना नहीं था। बचपन से अब तक मैंने कैसे कैसे दुःख झेले हैं ये या तो मैं जानता हूं या फिर ऊपर बैठा सबका भगवान। न उसे कभी मेरी हालत पर तरस आया और ना ही तुम्हें आएगा लेकिन इसमें तुम्हारी ग़लती नहीं है मेघा बल्कि मेरे दिल की है। वो एक ऐसी लड़की से प्रेम कर बैठा है जो कभी उसकी हो ही नहीं सकती।"

"अपना ख़याल रखना।" मैं चुप हुआ तो मेघा ने बस इतना ही कहा और दरवाज़ा खोल कर किसी हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद एकदम से मुझे झटका लगा। ज़हन में ख़याल उभरा कि ये मैंने क्या क्या कह दिया उससे। मुझे उससे ये सब नहीं कहना चाहिए था। मुझे अपने जज़्बातों पर काबू रखना चाहिए था। भला इसमें उसका क्या कुसूर?

मेघा जा चुकी थी और मैं बंद हो चुके दरवाज़े पर निगाहें जमाए किसी शून्य में डूबता चला गया था। कानों में किसी भी चीज़ की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। ज़हन पूरी तरह से निष्क्रिय हो चुका था लेकिन आंसू का एक कतरा मानो इस स्थिति में भी क्षण भर के लिए जीवित था। वो मेरी आँख से निकल कर नीचे गिरा और फ़ना हो गया।


कोई उम्मीद कोई ख़्वाहिश कोई आरज़ू क्यों हो।
वो नसीबों में नहीं मेरे, उसकी जुस्तजू क्यों हो।।

उम्र गुज़री है मेरी ख़िजां के साए में अब तलक,
फिर आसपास मेरे सितमगर की खुशबू क्यों हो।।

इससे अच्छा है किसी रोज़ मौत आ जाए मुझे,
इश्क़-ए-रुसवाई का आलम कू-ब-कू क्यों हो।।

कितना अच्छा हो अगर सब कुछ भूल जाऊं मैं,
खुद अपने ही आपसे हर वक़्त गुफ्तगू क्यों हो।।

मुझे भी उसकी तरह सुकूं से नींद आए कभी,
बंद पलकों में कोई चेहरा मेरे रूबरू क्यों हो।।

मेरे ख़ुदा तू इस अज़ाब से रिहा कर दे मुझे,
सरे-बाज़ार ये दिले-बीमार बे-आबरू क्यों हो।।


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मैं अभी मेघा के ख़यालों में ही था कि तभी टोर्च की रौशनी कोहरे की धुंध को भेदता हुए जिस चीज़ पर पड़ी उस पर नज़र पड़ते ही मैं एकदम से रुक गया। उस चीज़ पर मेरी नज़रें जैसे जम सी गईं थी। मेरे दिल को पहले तो एक झटका लगा और फिर जैसे वो धड़कना भूल गया। समूचा जिस्म मानो पलक झपकते ही क्रियाहीन हो गया, किन्तु जल्द ही मैं इस स्थिति से उबरा।

मेरी आँखों के सामने क़रीब चार क़दम की दूरी पर वो मकान मौजूद था जिसमें मैं दो साल पहले मेघा के साथ रहा था। चारो तरफ से कोहरे की धुंध में घिरा वो पुराना सा मकान बिल्कुल वैसा ही था जैसे दो साल पहले मैंने देखा था। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो इस बियाबान जंगल में इस वक़्त ऐसे भयावह मकान को देख कर बेहोश हो जाता लेकिन मैं तो जैसे उस स्थिति में पहुंच था जहां पर इंसान को किसी चीज़ से कोई फ़र्क ही नहीं पडता था।

जैसे ही मेरा ज़हन सक्रिय हुआ तो मेरे अंदर ख़ुशी की ऐसी लहरें उठने लगीं जो मेरे समूचे जिस्म को एक सुखद सा एहसास करने लगीं। उस मकान को देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मेघा मुझे मिल गई हो। मेरे दिल के जज़्बात बुरी तरह मचल उठे और मुझसे अपनी जगह पर खड़े न रहा गया। मैं भागते हुए उस मकान के पास पहुंचा और उसकी दीवारों को अपने हाथों से सहलाने लगा। आँखों से अनायास ही आंसू बहने लगे। मेरा दिल कर रहा था कि उस मकान को मेघा समझ कर अपने सीने से लगा लूं और बिलख बिलख कर रोने लगूं। रोते हुए उससे कहूं कि इतने समय तक वो मुझे क्यों अकेला छोड़े हुए थी? क्या उसे मेरी ज़रा भी याद नहीं आती थी? क्या सच में उसका दिल पत्थर की तरह कठोर है कि उसके अंदर मेरे लिए कोई जज़्बात ही नहीं थे?

जाने कितनी ही देर तक मैं मकान की दीवारों को अपने हाथों से सहलाता रहा और साथ ही मन ही मन तरह तरह की बातें करते हुए अपना दुःख दर्द जताता रहा। उसके बाद मैं घूम कर मकान के सामने की तरफ आया। मकान का दरवाज़ा वैसा ही था जैसे दो साल पहले था। लकड़ी के चार पटरे आपस में जुड़े हुए थे जिनके बीच झिर्रियां थी। दरवाज़े की हालत आज भी वैसी ही थी, यानि अगर कोई उसमें थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दे तो उसकी लकड़ी टूट टूट कर बिखर जाएगी।

मेरी ख़ुशी का कोई पारावार नहीं था। मेरे दिल की हसरतें जो दम तोड़ने लगीं थी उनमें मानो फिर से जान आ गई थी। मेरा यकीन जो इसके पहले बुरी तरह डगमगाने लगा था वो फिर से ये सोच कर अपनी जगह पर दृढ़ हो गया था कि अब जब ये मकान मिल गया है तो मेघा भी मिल ही जाएगी। मेरा दिल चीख चीख कर मुझसे कहने लगा कि अब और तड़पने की ज़रूरत नहीं है ध्रुव। जिसकी जुदाई में अब तक इतने दुःख और कष्ट सहे थे वो जल्द ही मुझे मिलेगी और अपना प्यार दे कर मेरा हर दुःख दर्द दूर कर देगी।

मेरा मन जाने कैसे कैसे मीठे ख़याल बुनता जा रहा था जिसके असर से मेरा दिल खुशियों से भरता जा रहा था और ये ख़ुशी ऐसी थी जो मेरी आँखों से आंसू बन कर निकलती भी जा रही थी। मैं पागलों की तरह मकान के उस दरवाज़े को अपने हाथों से सहला सहला कर उसे चूम भी लेता था। जब मुझसे और ज़्यादा न रहा गया तो मैंने उस दरवाज़े को अंदर की तरफ ढकेला। दरवाज़ा जिस्म को थर्रा देने वाली आवाज़ के साथ खुलता चला गया। कमरे के अंदर पीले रंग का मध्यम सा प्रकाश फैला हुआ था जो शायद उसी लालटेन के जलने से था जो दो साल पहले मैंने देखी थी। अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को बड़ी मुश्किल से काबू करने का प्रयास करते हुए मैं अंदर की तरफ दाखिल हुआ।

दरवाज़े के अंदर दाखिल होते ही मैं उसी कमरे में आ गया जिसमें दो साल पहले मैं रहा था। वो एक बड़ा सा कमरा था जिसके एक कोने में बेड था और एक कोने में मिट्टी का वो घड़ा जिसमें पानी भरा रहता था। एक तरफ की दिवार पर गड़ी कील में लालटेन टंगी हुई थी जिसका पीला प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। बेड से थोड़ा दाएं तरफ एक और दरवाज़ा था जो कि बाथरूम था। बेड पर लगा बिस्तर वैसा ही था जैसा दो साल पहले था, फ़र्क सिर्फ इतना ही था कि उसमें कोई सलवटें नहीं थी जो ये ज़ाहिर करती थीं कि उसमें लेटने या बैठने वाला फिलहाल कोई नहीं था।

कमरे में खड़ा मैं हर चीज़ को बड़े ध्यान से देखते हुए वो सब बातें याद कर रहा था जो मेघा से साथ हुईं थी। मेरे जीवन का वो एक हप्ता मेरे लिए बहुत ही ज़्यादा मायने रखता था। माना कि उस एक हप्ते मेघा के साथ रहने के बाद मैंने एक और दर्द पा लिया था लेकिन ये भी सच था कि कुछ दिन तो उसके साथ ख़ुशी ख़ुशी ही गुज़रे थे। अपनी ज़िन्दगी में मैंने पहले कभी कोई खुशियां नहीं देखी थीं लेकिन मेघा को देखने के बाद और उसके साथ चंद दिन गुज़ारने के बाद जैसे मैंने बहुत कुछ पा लिया था। उसको अपने क़रीब देख कर बहुत कुछ महसूस कर लिया था। आज उसका दर्द भी मुझे एक मीठे आनंद की अनुभूति ही कराता था।

मैं अपनी जगह पर घूम घूम कर हर उस जगह को देख रहा था जहां जहां मेघा मौजूद रहती थी। उन जगहों को देखते ही आँखों के सामने मानो वो चित्र सजीव हो उठते थे। उन सजीब चित्रों को देख कर मेरा दिल एक अलग ही ख़ुशी महसूस करने लगा था। कुछ ही पलों में मैं ये भूल गया कि मैं इस वक़्त कहां हूं और किस हालत में हूं।

"अब तुम्हारे ज़ख्म कैसे हैं ध्रुव?" पूरे दो दिन बाद मेघा आई थी और मुझे देखते ही उसने मुझसे यही पूछा था। मैं दो दिन से भूखा था, सिर्फ मिट्टी के घड़े में रखे पानी को पी कर ही ज़िंदा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेघा हर रोज़ की तरह मेरे पास मुझे खाना देने और दवा लगाने क्यों नहीं आई थी? आज जब आई तो मैंने उसके चेहरे पर दो दिन पहले जैसी ही गंभीरता छाई हुई देखी थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी बात से बेहद परेशान हो।

"जिस्म के ज़ख्म तो तुम्हारी दवा से ठीक हो जाएंगे मेघा।" उसके सवाल पर मैंने गंभीरता से जवाब देते हुए कहा था____"लेकिन दिल पर लगा ज़ख्म शायद कभी भी ठीक नहीं होगा। ख़ैर छोड़ो, अभी तक कौन सा मैं ऐशो आराम में जी रहा था? आज से पहले भी तो ज़िन्दगी में दुःख दर्द ही थे, तो एक तुम्हारे प्रेम का दर्द और सही। मैं बस ये जानना चाहता हूं कि परसों की गई तुम आज आई हो...ऐसा क्यों भला?"

"क्या करोगे जान कर?" मेघा मुझसे नज़रें हटा कर लकड़ी के उस टेबल की तरफ बढ़ी जो घड़े के पास ही रखा रहता था और उसी टेबल में वो मेरे खाने की थाली सजाती थी। टेबल के पास पहुंच कर उसने बिना मेरी तरफ देखे ही कहा____"इस दुनियां में सबके साथ कुछ न कुछ होता ही रहता है।"

"तुम हर बार पहेलियाँ क्यों बुझाती हो मेघा?" मैंने आहत भाव से कहा था____"अपनी कोई भी बात साफ़ शब्दों में क्यों नहीं कहा करती तुम? आज भी तुम्हारे चेहरे पर वैसी ही गंभीरता है जैसे परसों थी। मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर इन दो तीन दिनों में ऐसा क्या हो गया है जिसने तुम्हारे चाँद की तरह खिले हुए चेहरे को इतना बेनूर बना दिया है? तुम अपनी परेशानी मुझे बता सकती हो मेघा। मैं अपने पवित्र प्रेम की क़सम खा कर कहता हूं कि तुम्हारी जो भी परेशानी होगी उसे दूर करने की पूरी कोशिश करुंगा। तुम्हें भले ही मेरी ये बात छोटे मुँह बड़ी बात लगे लेकिन यकीन मानो तुम्हारे चेहरे पर छाई इस गंभीरता को देख कर मेरे दिल को बेहद तकलीफ़ हो रही है। मैं उस शख़्स को एक पल के लिए भी परेशान या दुखी नहीं देख सकता जिससे मैं बेपनाह प्रेम करता हूं।"

"ऐसी बातें मत करो ध्रुव।" मेघा ने एक झटके से मेरी तरफ पलट कर कहा था। उसके चेहरे पर एकदम से ऐसे भाव उभर आए थे जैसे मेरी इन बातों से उसे बेहद तकलीफ़ हुई हो, बोली_____"मैं इस बात से तो बेहद खुश हूं कि कोई इंसान मुझ जैसी लड़की से इतना अगाध प्रेम करता है लेकिन इस बात से बेहद दुखी भी हूं कि मैं तुम्हारे इस पवित्र प्रेम के ना तो लायक हूं और ना ही तुम्हारे प्रेम को स्वीकार कर सकती हूं।"

मेघा ने दुखी भाव से और एक ही सांस में मानो सब कुछ उगल दिया था। उसकी बातें सुन कर मैं बुरी तरह चकित रह गया था। वो तो ख़ामोश हो गई थी लेकिन उसके द्वारा कहा गया एक एक शब्द मेरे कानों में अभी भी गूँज रहा था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि जो मेघा परसों तक मेरे प्रेम को फ़ालतू की बातें कह रही थी और ऐसी बातों पर नाराज़गी जताती थी आज वही ख़ुद ऐसी बातें कह रही थी। बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल कौंधा कि क्या सच में मेघा को मेरे प्रेम का एहसास है? अगर है तो फिर वो ऐसा क्यों कह रही है कि वो मेरे प्रेम के लायक नहीं है या वो मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती?

"ये तुम कैसे कह सकती हो कि तुम मेरे लायक नहीं हो?" मैंने मेघा की तरफ गंभीरता से देखते हुए कहा था____"अरे! सच तो ये है कि मैं ख़ुद तुम्हारे लायक नहीं हूं मेघा। तुम तो आसमान का चमकता हुआ वो खूबसूरत चाँद हो जिसे पाने के लिए मुझ जैसा दो कौड़ी का इंसान बेकार ही अपने दिल में हसरत लिए बैठा है। तुम तो ख़्वाबों की परी हो मेघा। तुम्हारे सामने मेरी कोई औक़ात ही नहीं है। मैं तो बस अपने दिल के हाथों मजबूर हो गया हूं क्योंकि वो तुमसे बेपनाह प्रेम करने लगा है और इतना पागल है कि तुम्हें पाने की ख़्वाहिश भी करता है। तुमसे तो मेरी कोई बराबरी ही नहीं है फिर ऐसा क्यों कहती हो कि तुम मेरे प्रेम के लायक नहीं हो?"

"क्योंकि तुम मेरी असलियत नहीं जानते ध्रुव।" मेघा ने अपने जज़्बातों को मानो बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए कहा था____"इस संसार में जो कुछ जैसा दिखता है वैसा असल में होता नहीं है। सब कुछ आँखों का भ्रम होता है। हर कोई उसी भ्रम को सच मान कर जीता है और एक दिन मर जाता है।"

"मैं कुछ समझा नहीं" मैंने उलझन भरे भाव से कहा____"आख़िर तुम कहना क्या चाहती जो?"
"इससे ज़्यादा खुल कर और कुछ नहीं कह सकती ध्रुव।" मेघा ने पीतल की थाली में खाने को सजाते हुए कहा____"मैं बस ये चाहती हूं कि जल्द से जल्द तुम ठीक हो जाओ ताकि मैं तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर भेज दूं।"

"आख़िर चल क्या रहा है तुम्हारे अंदर?" मैंने शंकित भाव से कहा था____"मुझे साफ़ साफ़ बताओ मेघा। मेरा दिल चीख चीख कर मुझसे कह रहा है कि तुम मुझसे बहुत कुछ छुपा रही हो। मेरा दिल ये भी चीख चीख कर कहता है कि इस वक़्त तुम भी उसी तरह अंदर से दुखी हो जैसे मैं हूं। अगर हम दोनों का एक जैसा ही हाल है तो हमारे एक होने में समस्या क्या है? मैं क़सम खा कर कहता हूं कि तुम्हारी जो भी समस्या होगी उसे मैं अपनी जान दे कर भी दूर करुंगा। उसके बाद हम दोनों इसी जंगल में अपनी एक अलग दुनियां बसाएंगे। हमारे पवित्र प्रेम की दुनियां, जिसमें हम होंगे और समंदर से भी गहरा हमारा प्रेम होगा।"

"मुझे इस तरह के सपने मत दिखाओ ध्रुव।" मेघा ने लरज़ते स्वर में कहा____"तुम मेरी बिवसता को कभी नहीं समझ सकते। तुम्हें क्या लगता है, मैं दो दिन तुमसे मिलने यहां क्यों नहीं आई? तुम नहीं समझ सकते ध्रुव कि ये दो दिन मैंने किस हाल में गुज़ारे हैं। अपने जीवन में मैं पहले कभी इतनी बेबस और लाचार नहीं हुई थी। तुमसे मुलाक़ात हुई तो जैसे मेरे जीवन में सब कुछ बदल गया लेकिन जब बदली हुई चीज़ों का एहसास हुआ तो समूचा वजूद थर्रा उठा। मैं उस वक़्त नहीं समझी थी किन्तु जब ख़ुद का वैसा हाल हुआ तो समझ आया कि तुम पर क्या गुज़र रही है।"

"इसका मतलब" मैं मारे ख़ुशी के बीच में ही मेघा की बात काट कर बोल पड़ा था____"इसका मतलब तुम भी मुझसे प्रेम करती हो, है ना?"
"नहीं, मैं तुमसे प्रेम नहीं करती।" मेघा ने सहसा शख़्ती अख्तियार करते हुए कहा____"मैं किसी इंसान से प्रेम कर ही नहीं सकती।"

"लेकिन अभी जो कुछ तुम कह रही थी।" मेरी ख़ुशी मानो एक झटके में छू मंतर हो गई थी____"उसका तो यही मतलब हुआ कि तुम भी मुझसे प्रेम करती हो।"
"नहीं ध्रुव।" मेघा ने शख़्ती से अपने सिर को इंकार में हिलाते हुए कहा____"जब मैं तुम्हारे लायक ही नहीं हूं तो भला तुमसे प्रेम कैसे कर सकती हूं?"

"तुम झूठ बोल रही हो।" मैं बुरी तरह खीझ उठा था, दिल को इतना तेज़ दर्द उठा था कि आँखों से आंसू बह चले थे____"क्यों मेघा क्यों? क्यों ऐसा कर रही हो तुम? क्यों मेरे साथ साथ खुद को भी इस तरह सज़ा दे रही हो? आख़िर ऐसी कौन सी मज़बूरी है तुम्हारी जो तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती?"

"चलो खाना खाओ।" मेघा ने थाली को मेरे सामने रखते हुए कहा____"और हां, इसके लिए मुझे माफ़ करना कि मैंने दो दिन से तुम्हें यहाँ भूखा रखा।"
"नहीं खाना मुझे ये खाना।" मैंने बिफरे हुए अंदाज़ से कहा____"ले जाओ इसे और अब मुझे यहाँ भी नहीं रहना है। मैं खुद यहाँ से चला जाऊंगा। तुम्हें मेरे लिए और तकलीफ़ उठाने की ज़रूरत नहीं है।"

"कमाल है।" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए अजीब भाव से कहा था____"अभी तक तो बड़ा कह रहे थे कि मुझसे बेपनाह प्रेम करते हो और अब मुझ पर ही गुस्सा कर रहे हो, वाह! बहुत खूब। तुम्हीं से सुना था कि हम जिससे प्रेम करते हैं उन्हें किसी बात के लिए ना तो मजबूर करते हैं और ना ही बेबस। क्योंकि ऐसा करना प्रेम की तौहीन करना कहलाता है। अगर ये सब सच है तो क्या यही प्रेम है तुम्हारा?"

मेघा की बातों से मेरे तड़पते दिल को झटका सा लगा। किसी हारे हुए जुआरी की तरह मैं बेबस सा देखता रह गया था उसे। सच ही तो कह रही थी वो। प्रेम की परिभाषा और प्रेम के नियम यही तो थे कि खुद चाहे जितनी तकलीफ़ सह लो लेकिन जिससे प्रेम करते हो उसे अपनी तरफ से ज़रा सी भी तकलीफ़ न दो। प्रेम किया है तो हर कीमत पर अपने प्रेमी या प्रेमिका की बातो का मान रखो। उससे किसी भी तरह का शिकवा न करो, बल्कि हर बात को अपने सीने में दबा कर सिर्फ उसको खुशियां देने की कोशिश करो। वाह रे प्रेम, ये कैसा नियम था तेरा?

अपने आंसुओं को पोंछ कर मैंने चुप चाप खाना खाना शुरू कर दिया था। दिल के अंदर तो हलचल मची हुई थी लेकिन सब कुछ जज़्ब कर के मैं एक एक निवाला ज़बरदस्ती अपने हलक के नीचे उतारता जा रहा था। मेघा कुछ देर तक मेरी तरफ ख़ामोशी से देखती रही फिर वो बिना कुछ कहे बेड के किनारे से उठी और पानी के घड़े के पास जा कर खड़ी हो गई। मैंने महसूस किया जैसे उसका दिल भी रो रहा था।

किसी आहट के चलते मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। मैंने ये सोच कर इधर उधर देखा कि आहट कहां से और किस चीज़ की हुई थी? चारो तरफ घूम घूम कर मैंने देखा किन्तु कहीं पर कुछ ऐसा नज़र न आया जिससे ये पता चल सके कि आहट किस चीज़ की हुई थी। ख़ैर मैं आगे बढ़ा और बेड के पास पहुंचा। लकड़ी का पुराना सा बेड था वो, जिसका सिरहाना काफी ऊँचा था। बेड भले ही पुराना था किन्तु उस पर बिछे हुए बिस्तर के कपड़े ऐसे थे जैसे किसी राजा महाराजाओं के यहाँ होते हैं। कीमती रेशमी कपड़े और वैसी ही मखमली रजाई जिसे ठण्ड से बचने के लिए ओढ़ा जाता था। ये बिछौना दो साल पहले भी था लेकिन हैरानी की बात थी कि पुराना नहीं नज़र आ रहा था।

मैंने झुक कर हल्के हाथों से उस बिस्तर को दोनों हाथों से छुआ और सहलाया। हाथों की उंगलियों में अजीब सा एहसास हुआ जिसने दिल की धड़कनों को सामान्य से थोड़ा ज़्यादा बढ़ा दिया। ये वही बिस्तर था जिस पर मैं एक हप्ते लेटा था और इसी बेड के किनारे पर हर शाम-ओ-सहर मेघा आ कर मेरे पास ही बैठ जाती थी। अचानक ही मेरे दिल ने मुझे एक क्रिया करने पर ज़ोर दिया, जिसे सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। सच ही कहते हैं कि दिल पागल होता है। वो मुझे बिस्तर पर वैसे ही लेट जाने के लिए ज़ोर दे रहा था जैसे दो साल पहले मैं लेटा रहता था। ऐसा करने से दिल का तात्पर्य यही थी कि शायद ऐसा हो जाए कि अचानक ही दरवाज़ा खुले और मेघा अंदर दाखिल हो कर मेरे पास बेड के किनारे पर ही आ कर बैठ जाए। वो जब मेरे इतने क़रीब बैठ जाएगी तो मैं उसके खूबसूरत चेहरे को देखते हुए उसके सम्मोहन में खो जाऊंगा।

मुझे अपने दिल की ये बात कहीं से भी अनुचित नहीं लगी इस लिए मैं बेड पर वैसे ही लेट गया, जैसा लेटने के लिए वो ज़ोर दे रहा था। सचमुच इस तरह लेटने के बाद मुझे भी ऐसा प्रतीत हुआ कि अभी कमरे का दरवाज़ा खुलेगा और मेघा किसी स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा की तरह प्रकट हो जाएगी। बेड की पिछली पुष्त पर अपनी पीठ टिकाए मैं दरवाज़े की तरफ ही देखने लगा था और ये उम्मीद लगा बैठा था कि सच में मेघा आएगी लेकिन कल्पनाओं में और हकीक़त में तो ज़मीन आसमान का फ़र्क होता है। कहने का मतलब ये कि मैं काफी देर तक वैसे ही बेड पर अधलेटा सा पड़ा दरवाज़े की तरफ देखता रहा लेकिन ना तो दरवाज़ा खुला और ना ही मेघा का आगमन हुआ। एक बार फिर से मैं निराशा और हताशा से भर उठा। दिल एक बार फिर से तड़पने लगा था। उम्मीद का दीपक फिर से बुझने के लिए फड़फड़ाने लगा था। मन ही मन मैंने ऊपर वाले को याद किया। बंद पलकों में मेघा का अक्श उभरा तो मैंने उससे फरियाद की।


इससे पहले के जी तन से जुदा हो जाए।
तेरी सूरत मेरी आँखों को अता हो जाए।।

मैं आ गया हूं वही इश्क़ का दरिया ले कर,
खुदा करे के तुझको भी ये पता हो जाए।।

इतना आसां नहीं तेरी याद में जीना जाना,
वो भी क्या जीना के जीना सज़ा हो जाए।।

रास आएगी तुझे भी ये मोहब्बत ऐ दोस्त,
तू जो आलम-ए-बेबसी से रिहा हो जाए।।

कज़ा के बाद तब ही सुकून आएगा मुझे,
तेरे हाथों से अगर दिल की दवा हो जाए।।


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जाने वो कौन सी जगह थी? ऐसी जगह को मैंने पहले कभी नहीं देखा था। ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखरों के ऊपर छाई हुई कोहरे की हल्की धुंध शाम जैसा माहौल बनाए हुए थी। उन्हीं के बीच बर्फ़ की सफ़ेद चादर यदा कदा दिखाई दे रही थी। चारो तरफ तो ऊँचे ऊँचे पहाड़ थे किन्तु उनके बीच नीचे बल्कि बहुत ही गहराई में कुछ ऐसा नज़र आ रहा था जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। नीचे गहराई में और बर्फ़ की चादर से घिरे पहाड़ों से सटे बड़े बड़े ऐसे महल बने हुए थे जिनके ऊपर भी बर्फ़ की चादर चढ़ी हुई दिख रही थी। उन महलों के झरोखों से पीले रंग का प्रकाश दिख रहा था। ज़ाहिर था कि महलों के अंदर या तो लालटेनें जल रहीं थी फिर मशालें। चारो तरफ के पहाड़ों से सटे उन महलों के बीच काफी लम्बा गोल घेरा बना हुआ था जिसका फर्श पक्का था और उस फर्श पर खूबसूरत नक्काशी की हुई थी। मैं हैरत से फटी अपनी आँखों से एकटक उस मंज़र को देखे जा रहा था।

मैं जिस जगह पर खड़ा था वो समतल ज़मीन तो थी लेकिन नीचे दिख रहे उन महलों से काफी उँचाई पर थी। मेरे पीछे दूर दूर तक समतल ज़मीन थी जिस पर बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी। एक तरफ विशाल जंगल दिख रहा था। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि ऐसी जगह पर आख़िर मैं पहुंच कैसे गया था? मुझे अपना पिछला कुछ भी याद नहीं था। सिर्फ इतना ही याद था कि मैं अपनी मेघा को खोज रहा था।

समय तो दिन का ही था लेकिन आसमान में कोहरे की गहरी धुंध छाई हुई थी इस लिए सूरज नहीं दिख रहा था। हालांकि ज़मीन पर पड़ी बर्फ़ की चादर की वजह से सब कुछ साफ़ नज़र आ रहा था। मैं मूर्खों की तरह कभी अपने पीछे दूर दूर तक खाली पड़ी ज़मीन को देखता तो कभी जंगल को तो कभी सामने नीचे की तरफ नज़र आ रहे उन अजीब से महलों को। फ़िज़ा में अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था।

मैं अपनी जगह पर अभी खड़ा ही था कि सहसा मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि हो सकता है कि मेघा नीचे नज़र आ रहे उन महलों में हो। उसके जिस्म पर राजकुमारियों जैसा लिबाश रहता था जो यही ज़ाहिर करता था कि वो कोई मामूली लड़की नहीं थी। अभी मैं सोच ही रहा था कि तभी बिजली की तरह मेरे ज़हन में मेघा की बात कौंधी जो उसने अपने बारे में मुझे बताया था। मेघा की असलियत का ख़याल आते ही पहले तो मेरे जिस्म में झुरझुरी हुई उसके बाद मैंने गहरी सांस ली।

नीचे नज़र आ रहे महलों की तरफ मैंने फिर से नज़र डाली और वहां पहुंचने का रास्ता खोजने लगा। जल्दी ही मुझे रास्ता नज़र आ गया जो कि महलों के बीच बने विशाल गोले के सामने की तरफ था किन्तु वहां पर यहाँ से सीधा नहीं जाया जा सकता था। मैं बाएं तरफ घूमा और सीधा चल दिया। मेरा अनुमान था कि दूर दूर तक नज़र आ रही समतल ज़मीन में ही कहीं से उन महलों की तरफ जाने का रास्ता होगा। मेरे ज़हन में तो जाने कितने ही ख़याल उभर रहे थे लेकिन फ़िज़ा में एकदम से ख़ामोशी छाई हुई थी। सामने नज़र आ रही ज़मीन में बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी लेकिन कहीं पर भी ऐसा निशान नहीं था जो ये साबित करे कि यहाँ से कोई जीव गया हो या आया हो। ख़ैर मैं बढ़ता ही चला जा रहा था।

काफी देर चलने के बाद मैंने देखा कि आगे की तरफ ज़मीन ढलान में है। पहली बार मैंने फ़िज़ा में एक अजीब सा शोर होता सुना। शोर की तरफ जब मैंने ध्यान दिया तो मेरी नज़र सामने क़रीब दो सौ मीटर उँचाई में नज़र आ रहे एक जल प्रवाह पर पड़ी। ऊंचाई से पानी नीचे गिर रहा था और नीचे वही पानी एक नदी का रूप अख्तियार कर के बह रहा था। नदी के बीच और आस पास छोटी बड़ी चट्टानें नज़र आ रही थी। ज़मीन पर बिछी बर्फ़ की चादर उस नदी के किनारे तक फैली हुई थी। मैं चलते हुए नदी के पास आ गया।

नदी का पानी बेहद ही साफ़ था जिसके नीचे मौजूद छोटे बड़े पत्थर साफ़ दिख रहे थे। जो चट्टानें थोड़ी बड़ी थी उनसे टकरा कर नदी का पानी अलग ही नज़ारे के साथ बह रहा था। नदी को बड़ी ही आसानी से पार किया जा सकता था क्योंकि बड़े बड़े पत्थर और चट्टानों का सिखर पानी से ऊँचा था। हालांकि नदी की गहराई मुश्किल से घुटनों तक या फिर उससे थोड़ा ज़्यादा थी। जहां मैं खड़ा हो गया था वहां से बाएं तरफ क़रीब सौ मीटर की दूरी पर वो जल प्रवाह गिरता हुआ नज़र आ रहा था। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं चारो तरफ देखता रहा उसके बाद नदी को पार करने का सोचा और आगे बढ़ चला।

बड़े बड़े पत्थरों पर पाँव रख कर मैंने नदी को पार किया और दूसरी तरफ पहुंच गया। इस तरफ आया तो देखा आगे की तरफ की ज़मीन अब उठान पर थी। मैं बढ़ता ही चला गया। थोड़ा ऊपर आया तो देखा इस तरफ पेड़ पौधे थे जिनके बीच से दो पगडंडियां जा रहीं थी। उन पगडंडियों को देख कर यही लगता था जैसे कोई वाहन उनमें से आता जाता है। पगडंडियां पेड़ों के बीच से ही थीं और आगे जाने कहां तक चली गईं थी। मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उसी पगडण्डी पर बढ़ चला।

क़रीब आधे घंटे बाद उस पगडण्डी पर चलते हुए मैं उस छोर पर आया जहां पर शुरू में मैंने महल बने हुए देखे थे। सामने एक तरफ अजीब सा पहाड़ था जिसके बगल से वो पगडण्डी जा रही थी। पगडण्डी का रास्ता ही बता रहा था कि रास्ता ऊँचे पर्वत शिखर को काट कर बनाया गया रहा होगा। बर्फ़ की चादर इधर भी थी। मैं जब कुछ और पास पहुंचा तो ये देख कर चौंका कि जिन्हें अब तक मैं पहाड़ समझ रहा था असल में वो पहाड़ नहीं बल्कि मिट्टी में दबी बहुत ही विशाल पत्थर की चट्टानें थी जिनका रंग काला था। पगडण्डी वाला रास्ता दो चट्टानों के बीच से गुज़र रहा था। वो दोनों चट्टानें अपने सिर के भाग से आपस में जुडी हुईं थी।

मैं पगडण्डी में आगे बढ़ा और कुछ ही समय में उस जगह पर पहुंच गया जहां पर महल बने हुए थे। आस पास कोई नहीं दिख रहा था। फ़िज़ा में बड़ा ही अजीब सा सन्नाटा कायम था। एक मैं ही अकेला था जो ऐसी जगह पर भटक रहा था। मन में एक भय पैदा हो गया था और दिल की धड़कनें तेज़ हो ग‌ईं थी। मैं चलते हुए उसी गोले पर आ गया जिसे मैंने शुरू में उँचाई से देखा था। गोलाकार फर्श पर रुक कर मैं महलों के उन झरोखों की तरफ देखने लगा जहां से पीला प्रकाश दिख रहा था। मैं चकित आँखों से महलों की बनावट और उनमें मौजूद शानदार नक्काशी को देखे जा रहा था। महलों की दीवारें बेहद पुरानी सी नज़र आ रहीं थी। बड़े बड़े परकोटे और ऊपर बड़े बड़े गुंबद। काले पत्थरों की दीवारें और मोटे मोटे खम्भे। बड़ा ही रहस्यमय नज़ारा था। सहसा मेरी नज़र महल के एक बड़े से दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा बंद था किन्तु जाने क्या सोच कर मैं उस दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। ऐसा लगा जैसे कोई अज्ञात शक्ति मुझे अपनी तरफ खींच रही थी।

दरवाज़े के पास पहुंच कर मैं रुका। कुछ देर जाने क्या सोचता रहा और फिर दोनों हाथों को बढ़ा कर उस विशाल दरवाज़े को अंदर की तरफ ज़ोर दे कर ढकेला। दरवाज़ा भयानक आवाज़ करता हुआ अंदर की तरफ खुलता चला गया। अंदर नीम अँधेरा नज़र आया मुझे। अभी मैं अंदर दाखिल होने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी जैसे क़यामत आ गई।

अंदर की तरफ इतना तेज़ शोर हुआ कि मेरे कानों के पर्दे फट गए से प्रतीत हुए। मैंने जल्दी से हड़बड़ा कर अपने कानों को हाथों से ढँक लिया। मुझे समझ न आया कि अचानक से ये कैसा शोर होने लगा था। ऐसा लगा था जैसे अंदर कोई भारी और वजनी चीज़ कहीं से टकरा कर गिरी थी। शोर धीमा हुआ तो मैंने अपने कानों से हाथ हटाए और आगे की तरफ बढ़ चला। मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था। ज़हन में हज़ारो तरह के विचार उभरने लगे थे।

अंदर आया तो एक बड़ा सा गोलाकार हाल नज़र आया। हाल के बहुत ऊपर छत पर एक विशाल झूमर लटक रहा था। चारो तरफ की दीवारों में बड़े बड़े मशाल जल रहे थे जिसकी रौशनी हर तरफ फैली हुई थी। सामने की तरफ बेहद चौड़ी सीढ़ियां थी जो ऊपर की तरफ जा कर दोनों तरफ की बालकनी की ओर मुड़ गईं थी। अभी मैं सीढ़ियों की तरफ देख ही रहा था कि तभी किसी नारी कंठ से निकली भयानक चीख को सुन कर मैं दहल गया। एकाएक वहां की फ़िज़ा में गहमा गहमी महसूस हुई और अगले ही पल मेरे बाएं तरफ ऊपर के माले से कोई तेज़ी से आया और हाल में बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ गिरा। मैं छिटक कर उससे दूर हट गया था।

हाल में गिरने वाला शख़्स दो तीन पलटियां खाया था और फिर रुक गया था। उसके जिस्म पर काले रंग के किन्तु चमकीले कपड़े थे। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरी नज़र उसके नीचे से निकल रहे गाढ़े काले रंग के तरल पदार्थ पर पड़ी। ऐसा लगा जैसे वो उसके जिस्म के किसी हिस्से से निकल रहा था और अब हाल में फैलता जा रहा था। मुझसे मात्र दो तीन क़दम की दूरी पर ही था वो इस लिए मैं हिम्मत कर के उसकी तरफ बढ़ा। चेहरे की तरफ आ कर मैं रुक गया और उसे ध्यान से देखने लगा। लम्बे लम्बे बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे जिससे मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था लेकिन इतना मैं समझ गया कि वो कोई लड़की थी।

जिस्म पर चुस्त काले लेदर के कपड़े। पैरों में काले रंग के ही लांग बूट जो उसके घुटनों तक दे। दोनों हाथों की दो दो उंगलियों में ऐसी अँगूठियां जिनमें काले और नीले रंग का पत्थर जड़ा हुआ था। उंगलियों के नाख़ून भी काले रंग के थे और थोड़ा बड़े हुए थे। हाथ ज़रूर उसका दूध की तरह गोरा दिख रहा था। कुछ पलों तक मैं उसे ऐसे ही निहारता रहा उसके बाद सहसा मैं झुका और एक हाथ से उसके चेहरे पर बिखरे बालों को बहुत ही सावधानी से हटाया। मेरा दिल इस वक़्त धाड़ धाड़ कर के बज रहा था।

चेहरे पर से जैसे ही बाल हटे तो मेरी नज़र उस लड़की के चेहरे पर पड़ी और मैं ये देख कर उछल पड़ा कि वो मेघा थी। मैं उस चेहरे को पलक झपकते ही पहचान गया था? भला मैं उस चेहरे को भूल भी कैसे सकता था जिसे मैं टूट टूट कर चाहता था और जिसके ख़यालों में मैं हर वक़्त खोया ही रहता था। मैंने झपट कर मेघा को सीधा किया तो ये देख कर मेरे हलक से चीख निकल गई कि उसके पेट पर बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था। वहीं से काले रंग का वो तरल पदार्थ निकल कर हाल के फर्श पर फैलता जा रहा था। इसका मतलब वो काला पदार्थ मेघा का खून था।

एक पल में ही मेरी हालत ख़राब हो गई। अपनी मेघा को इस हालत में देख कर मैं तड़प उठा और झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया। मेरी आँखों से ये सोच कर आंसू बहने लगे कि जिस मेघा को मैं इतना चाहता था और जिसकी खोज में मैं दर दर भटक रहा था वो मर चुकी है। दिल में बड़ा तेज़ दर्द उठा जो मेरी सहन शक्ति से बाहर हो गया और मैं मेघा का नाम ले कर पूरी शक्ति से चिल्लाया।

मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा था। मेरी आँखें खुल चुकीं थी। ठण्ड के मौसम में भी मैं पसीने से भींगा हुआ था। विचित्र सी हालत में मैं मूर्खों की तरफ बेड पर बैठा इधर उधर देखने लगा था। न वो महल दिख रहे थे, न ही वो बड़ा सा हाल और ना ही उस हाल में मेघा। खुली आंखों में बस कमरे की वो दीवारें दिख रहीं थी जो काले पत्थरों की थीं। एक तरफ की दीवार में गड़ी कील पर लालटेन टंगी हुई थी। एक तरफ मिट्टी का घड़ा रखा हुआ था और उसी घड़े के पास एक टेबल था। दूसरी तरफ लकड़ी का दरवाज़ा। मुझे एकदम से झटका लगा। मनो मस्तिष्क में जैसे विस्फोट सा हुआ और पलक झपकते ही ज़हन में ख़याल उभरा______'इसका मतलब मैं अभी तक ख़्वाब देख रहा था।'

✮✮✮

वो यकीनन ख़्वाब ही था और दुनिया भले ही ये कहे कि ख़्वाबों का सच से कोई वास्ता नहीं होता लेकिन दिल को भला कौन समझाए? वो तो यही समझ रहा था कि उसकी मेघा मर चुकी है। किसी ज़ालिम ने उसे बेदर्दी से मार डाला है। ये ऐसा एहसास था जो मेरे ज़हन को भी यही स्वीकार करने पर ज़ोर दे रहा था जिसकी वजह से मैं बेहद दुखी हो गया था। मैं बार बार ऊपर वाले से मेघा को सही सलामत रखने की दुआ करता जा रहा था। मेरी हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। बस दहाड़ें मार मार कर रोने का मन कर रहा था। चारो तरफ मेघा को खोजते हुए चीख चीख कर उसको पुकारने का मन कर रहा था।

मैं झटके से बेड से उठा था और भागते हुए कमरे से बाहर आया था। बाहर पेड़ पौधों के अलावा कुछ नज़र न आया। कोहरे की धुंध उतनी नहीं थी जैसे तब थी जब मैं यहाँ आया था। दिन जैसा जान पड़ता था। जंगल की ज़मीन पर सूझे पत्ते बिखरे हुए थे। मैं तेज़ी से एक तरफ को भाग चला। आँखों से बहते आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। ज़हन में बस एक ही ख़याल बार बार मुझे तड़पा देता था कि मेरी मेघा मर चुकी है। अगले ही पल मैं अपने इस ख़याल पर बिफरे हुए अंदाज़ में मन ही मन कह उठता कि ऐसे कैसे मर जाएगी वो? अभी तो मुझे उसकी सूरत देखनी है। अभी तो मुझे उसको अपने सीने से लगाना है ताकि मेरे दिल को शान्ति मिल जाए। वो इस तरह मुझे तड़पता छोड़ कर कैसे चली जाएगी?

यकीनन रात गुज़र गई थी और अब दिन का समय था। वातावरण में कोहरे की धुंध अब कुछ कम थी जिसकी वजह से आगे बढ़ने में मुझे न तो टोर्च की ज़रूरत थी और ना ही कोई परेशानी थी। मैं अपनी नाक के सीध भागता ही चला जा रहा था। मेरे ज़हन में ख़्वाब में दिखने वाले वो महल उभर रहे थे और अब मुझे हर कीमत पर उन महलों में पहुंचना था। मुझे यकीन सा हो गया था कि मेरी मेघा वहीं है और इस वक़्त उसे मेरी शख़्त ज़रूरत है।

"क्या हुआ, तुम इतने चुप क्यों हो?" मेरे ज़ख्म ठीक होने के बाद मेघा मुझे मेरे घर छोड़ने जा रही थी। मैं और वो पैदल ही जंगल में चल रहे थे। मैं अंदर से बेहद उदास और बेहद ही दुखी था। दुखी इस लिए क्योंकि आज के बाद मेघा से कभी मुलाक़ात नहीं होनी थी। उसके अनुसार हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे। रास्ते में जब मैं कुछ नहीं बोल रहा था तो मेघा ने मुझसे यही कहा था_____"देखो, हम दोनों के लिए बेहतर यही है कि हम अपनी अपनी दुनिया में खो जाएं। हमारा मिलना तो बस इत्तेफ़ाक़ की बात थी ध्रुव। मैं खुश हूं कि मुझे एक ऐसा इंसान मिला जिसने मुझे अपने खूबसूरत प्रेम का एहसास कराया। भले ही ये एहसास जीवन भर मुझे दर्द देता रहे लेकिन यकीन मानो इसका मुझे ज़रा भी रंज नहीं होगा। मैं तुम्हारे भगवान से दुआ करती हूं कि वो तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

"जिन्हें प्रेम का रोग लग जाता है न।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा था____"वो ऐसे बदनसीब बन जाते हैं कि फिर उनको किसी की दुआ भी नहीं लगती। उनका तो बस अपने प्रेमी या अपनी प्रेमिका की यादों में तड़पते रहने का मुकद्दर ही बन जाता है। मैं तो तुम्हारी असलियत जानने के बाद भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूं और अभी भी यही चाहता हूं कि हम दोनों एक साथ रहें लेकिन तुम जाने क्यों ऐसा नहीं चाहती?"

"तुमने एक बार कहा था न कि प्रेम को हासिल कर लेना ही प्रेम नहीं कहलाता।" मेघा ने कहा____"बल्कि प्रेम के लिए त्याग और बलिदान करना भी प्रेम कहलाता है। असल में प्रेम की महानता भी वही है जिसमें त्याग और बलिदान किया जाए। तुम्हारी इन बातों ने मुझे समझा दिया था कि मुझे क्या करना चाहिए। मैं अपनी ख़ुशी के लिए भला वो काम कैसे कर सकती थी जो तुम्हारे जीवन को संकट में डाल दे? प्रेम के नियम सिर्फ तुम पर ही तो लागू नहीं होते थे बल्कि वो तो हर उस शख़्स पर लागू होंगे जो किसी से प्रेम करता हो।"

"तुमसे जुदा होने के बाद मैं कौन सा ख़ुशी से जी सकूंगा?" मैंने कहा था____"इससे अच्छा तो यही था कि साथ रह कर हर उस चीज़ का सामना करते जो हमारे लिए परेशानी बन कर आती। अगर साथ में जी नहीं सकते थे तो कम से कम साथ में मर तो सकते ही थे।"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने सहसा रुक कर और मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहला कर कहा था____"जब अंजाम अच्छे से पता हो तो जान बूझ कर वैसी ग़लती क्यों की जाए? मैं ये हर्गिज़ बरदास्त नहीं कर सकूंगी कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। इसी लिए तो तुम्हारी तरह जीवन भर तड़पना मंज़ूर कर लिया है मैंने। सोचा था कि तुमसे ये सब नहीं बताऊंगी ताकि तुम मेरा ख़याल अपने दिल से निकाल कर जीवन में आगे बढ़ जाओ लेकिन तुमने मजबूर कर दिया मुझे।"

"तुम बेवजह ही ये सब सोच रही हो मेघा।" मैंने पहली बार मेघा के चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच लिया था____"प्रेम करने वाले किसी अंजाम की परवाह नहीं करते बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं और अगर साथ जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"

"तुम्हारी बातें मुझे कमजोर बनाने लगती हैं ध्रुव।" मेघा ने मेरी हथेलियों से अपना चेहरा छुड़ा कर कहा था____"तुम मेरी बिवसता को क्यों नहीं समझते? ये सब इतना आसान नहीं है जितना तुम समझते हो।"

"ठीक है।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा था____"मैं तुम्हें किसी चीज़ के लिए बिवस करने का सोच भी नहीं सकता। मैं तो बस सम्भावनाओं से अवगत करा रहा था। अगर तुम इसके बावजूद यही चाहती हो तो ठीक है।"

मेरी बात सुन कर मेघा अपलक मुझे देखने लगी थी। शायद वो समझने की कोशिश कर रही थी कि उसकी बातों से मुझे बुरा लगा है या मुझे ठेस पहुंची है। कुछ पल देखने के बाद वो आगे बढ़ चली तो मैं भी आगे बढ़ चला।

"एक वादा करो मुझसे।" कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा_____"आज के बाद खुद को कभी दुखी नहीं रखोगे और ना ही मुझे खोजने की कोशिश करोगे।"

"मेरी जान मांग लो।" मेरी आँखों में आंसू तैरने लगे थे____"लेकिन ऐसा वादा नहीं कर सकता जो मेरे अख्तियार में ही नहीं है।"
"अगर तुम खुद को दुखी रखोगे तो मैं भी ख़ुशी से जी नहीं पाऊंगी।" मेघा ने भारी गले से कहा था_____"बस ये समझ लो कि जैसा हाल तुम्हारा होगा वैसा ही हाल यहाँ मेरा भी होगा।"

"इसका तो एक ही उपाय है फिर।" मैंने रुक कर उससे कहा था____"और वो ये कि मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटा दो। जब तुम्हारे बारे में मुझे कुछ याद ही नहीं रहेगा तो फिर भला कैसे मैं ऐसे हाल से गुज़रुंगा?"

"हां ये कर सकती हूं मैं।" मेघा ने अजीब भाव से कहा था।
"लेकिन मेरी एक शर्त है।" मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा था____"मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटाने के बाद तुम्हें भी अपने दिलो दिमाग़ से मेरी सब यादें मिटानी होंगी।"

"नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं करुंगी।" मेघा एकदम से दुखी लहजे से बोल पड़ी थी____"तुम्हारे प्रेम की खूबसूरत यादें और उसका एहसास मैं मरते दम तक सम्हाल के रखना चाहती हूं।"

"तो फिर मेरे साथ ही ये नाइंसाफ़ी क्यों?" मैंने मेघा के दोनों कन्धों पर अपने हाथ रख कर कहा था____"मुझे तिल तिल कर मरना मंजूर है लेकिन तुम्हारी यादों को अपने दिलो दिमाग़ से मिटाना मंजूर नहीं है। मेरे पास तुम्हारी इन यादों के अलावा कोई भी अनमोल दौलत नहीं है। क्या तुम मुझसे मेरी ये दौलत छीन लेना चाहती हो?"

"नहीं नहीं, मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती।" मेघा ने बुरी तरह तड़प कर कहा और झपट कर मेरे सीने से लिपट गई। ये पहली बार था जब वो मेरे सीने से लिपटी थी। उसके यूं लिपट जाने पर मेरे दिल को बड़ा सुकून मिला। अपने दोनों हाथ आगे कर के मैंने भी उसे अपने सीने में भींच लिया। ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। मन ही मन ऊपर वाले से फ़रियाद की कि इस वक़्त को अब यहीं पर ठहर जाने दो।

अभी एक मिनट भी नहीं हुआ था कि अचानक मेघा मुझसे अलग हो कर दूर खड़ी हो गई। उसके यूं अलग हो जाने पर मुझे पहले तो हैरानी हुई किन्तु फिर अनायास ही मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई और साथ ही दिल तड़प कर रह गया।

मेघा की साँसें थोड़ी भारी हो गईं थी। कुछ पलों के लिए उसका गोरा चेहरा अजीब सा दिखा किन्तु फिर सामान्य हो गया। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद वो पगडण्डी पर चलने लगी तो मैं भी उसके बगल से चलने लगा। जल्द ही हम दोनों जंगल से निकल कर मुख्य सड़क पर आ ग‌ए। सुबह अभी हुई नहीं थी किन्तु चांदनी थी इस लिए कोहरे की धुंध में भी हल्का उजाला सा प्रतीत होता था। मैं अभी मुख्य सड़क के दोनों तरफ बारी बारी से देख ही रहा था कि तभी मेघा पर नज़र पड़ते ही मैं चौंका। वो मेरी मोटर साइकिल के साथ खड़ी थी।

"ये तुम्हारे पास कहां से आ गई?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था।
"उस दिन जब हादसा हुआ था और तुम बेहोश हो गए थे।" मेघा कह रही थी____"तो मैंने इसे सड़क से दूर ला कर यहाँ झाड़ियों में छुपा दिया था। अब यहाँ से तुम्हें इसी मोटर साइकिल से जाना होगा।"

"तो क्या तुम मेरे साथ नहीं चलोगी?" मैंने धड़कते दिल से पूछा____"तुमने तो कहा था कि मुझे सही सलामत मेरे घर तक पहुचाओगी।"
"मैं तुम्हारे घर तक नहीं जा सकती ध्रुव।" मेघा ने गंभीरता से कहा था____"यहां से अब तुम्हें किसी भी तरह का ख़तरा नहीं है। इस लिए तुम इस मोटर साइकिल के द्वारा आराम से अपने घर जा सकते हो।"

"क्या सच में तुम ऐसा ही चाहती हो मेघा?" मैंने आख़िरी उम्मीद से कहा था_____"एक बार फिर से सोच लो। ग़मे-इश्क़ वो अज़ाब है जो हम दोनों को चैन से जीने नहीं देगा। मुझे किसी बात की परवाह नहीं है, परवाह है तो सिर्फ हमारे प्रेम की। मैं तुम्हारे लिए हर कीमत देने को तैयार हूं।"

"काश! ऐसा संभव होता ध्रुव।" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए लरज़ते स्वर में कहा था____"काश! मेरे लिए ये सब इतना आसान होता और काश मेरे पास ऐसी मजबूरियां न होती। ख़ैर, हमेशा खुश रहना ध्रुव। मेरे लिए अपना जीवन बर्बाद मत करना। अच्छा अब तुम जाओ, मैं भी जा रही हूं....अलविदा।"

शायद उसे पता था कि उसके ऐसा कहने पर मैं फिर से कुछ ऐसा कहूंगा जिससे वो जज़्बातों में बह कर कमज़ोर पड़ जाएगी। इसी लिए उसने इतना कहा और फिर बिना मेरी कोई बात सुने वो तेज़ी से जंगल की तरफ लगभग भागते हुए चली गई। मैं ठगा सा उसे देखता रह गया था। ऐसा लगा जैसे उसके चले जाने से मेरी दुनिया ही उजड़ गई हो। जी चाहा कि मैं भी उसके पीछे भाग जाऊं और अगले ही पल मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर उसके पीछे दौड़ भी पड़ा। मैं जितना तेज़ दौड़ सकता था उतना तेज़ दौड़ता हुआ जंगल की तरफ भागा। कुछ ही देर में मैं जंगल में दाखिल हो गया। मैंने चारो तरफ दूर दूर तक नज़र घुमाई लेकिन मेघा कहीं नज़र न आई। मैंने पूरी शक्ति से चिल्ला चिल्ला कर उसे पुकारा भी लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। ज़हन में बस एक ही ख़याल उभरा कि मेरी मेघा हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर जा चुकी है। इस एहसास के साथ ही मानो सारा आसमान मेरे सिर पर आ गिरा और मैं वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल गिर कर ज़ार ज़ार रो पड़ा।


चला गया मेरे दिल को उदासियां दे कर।
मैं हार गया उसे इश्क़ की दुहाइयां दे कर।।

दिल की दुनिया अब कहां आबाद होगी,
चला गया इक तूफ़ां उसे वीनाइयां दे कर।।

वो भी न ले गया दर्द-ए-दिले-शिफ़ा कोई,
मुझे भी न गया दिल की दवाईयां दे कर।।

क्या कहूं उसको के जिसने ऐसे मरहले में,
दर्द से भर दिया दामन जुदाईयां दे कर।।

जिस तरह मुझको गया है छोड़ कर कोई,
यूं न जाए कोई किसी को तन्हाइयां दे कर।।


✮✮✮
Very nice update bhai
 

drx prince

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Update - 09
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मैं बेतहाशा भागता ही चला जा रहा था। दिलो दिमाग़ में आंधी तूफ़ान मचा हुआ था। रह रह कर आँखों के सामने मेघा का चेहरा उभर आता और ज़हन में उसके ख़याल जिसकी वजह से मेरी आँखों से आंसू छलक पड़ते थे। मुझे नहीं पता कि मैं कब तक यूं ही भागता रहा। रुका तब जब एकाएक मैं जंगल से बाहर आ गया।

जंगल के बाहर आ कर रुक गया था मैं। बुरी तरह हांफ रहा था, ऐसा लगता था जैसे साँसें मेरे काबू में ही न आएंगी। वही हाल दिल की धड़कनों का भी था। मैं घुटनों के बल वहीं गिर कर अपनी साँसों को नियंत्रित करने लगा। नज़र दूर दूर तक फैले हुए खाली मैदान पर घूमने लगी थी। कोहरे की धुंध ज़्यादा नहीं थी क्योंकि सूर्य का हल्का प्रकाश धुंध से छंट कर ज़मीन पर आ रहा था। मेरे पीछे तरफ विशाल जंगल था जिसकी चौड़ाई का कोई अंत नहीं दिख रहा था जबकि सामने तरफ खाली मैदान था। खाली मैदान में हरी हरी घांस तो थी लेकिन कहीं कहीं बर्फ़ की ऐसी चादर भी पड़ी हुई दिख रही थी जो उस खाली मैदान की सुंदरता को चार चाँद लगा रही थी।

मेरी नज़र चारो तरफ घूमते हुए एक जगह जा कर ठहर गई। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सामने कुछ दूरी पर ज़मीन का किनारा था और उसके आगे ज़मीन नहीं थी। मेरी साँसें अब काफी हद तक नियंत्रित हो गईं थी इस लिए मैं फ़ौरन ही उठा और ज़मीन के उस छोर की तरफ तेज़ी बढ़ता चला गया। जैसे जैसे मैं क़रीब पहुंच रहा था वैसे वैसे उधर का मंज़र साफ़ होता जा रहा था। कुछ समय बाद जब मैं उस छोर पर पहुंचा तो देखा सच में उस जगह पर ज़मीन ख़त्म थी। हालांकि ज़मीन तो आगे भी थी लेकिन इधर की तरह समतल नहीं थी बल्कि एकदम से गहराई पर थी। मैं किनारे पर खड़ा बिल्कुल अपने नीचे देखने लगा था और अगले ही पल मैं ये देख कर चौंका कि नीचे गहराई में वैसे ही महल बने हुए थे जिन्हें मैंने ख़्वाब में देखा था। उन महलों को देखते ही मुझे ये सोच कर झटका सा लगा कि अगर इन महलों का वजूद सच है तो फिर ख़्वाब में मैंने जो कुछ देखा था वो भी सच ही होगा। इस एहसास ने मेरी आत्मा तक को झकझोर कर रख दिया। मैं ये सोच कर तड़पने लगा कि मेरी मेघा सच में मर चुकी है। पलक झपकते ही मेरी हालत ख़राब हो गई और मैं एक बार फिर से फूट फूट कर रोने लगा।

अचानक ही मुझे झटका लगा और मेरे चेहरे पर बेहद ही शख़्त भाव उभर आए। ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर मेरी मेघा ही नहीं रही तो अब मैं भी जी कर क्या करुंगा? एक वही तो थी जिसके लिए जीने का मकसद मिला था मुझे और अब जब वही नहीं रही तो मैं किसके लिए और क्यों ज़िंदा रहूं? जहां मेरी मेघा है मुझे भी वहां जल्दी से पहुंच जाना चाहिए। इस ख़याल के साथ ही मैं उस गहरी खाई में छलांग लगाने के लिए तैयार हो गया। असहनीय पीड़ा से मेरी आँखें आंसू बहाए जा रहीं थी। मैंने आँखें बंद कर के मेघा को याद किया और उससे कहने लगा_____'मैं आ रहा हूं मेघा। अब तुम्हें मेरे बिना दुःख दर्द सहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारा ध्रुव तुम्हारे पास आ रहा है। अब दुनिया की कोई भी ताक़त हमें एक होने से नहीं रोक पाएगी। मैं आ रहा हूं मेघा। मैं अब तुम्हारी जुदाई का दर्द नहीं सह सकता।'

अभी मैं मन ही मन ये सब मेघा से कह ही रहा था कि तभी ज़हन में एक सवाल उभर आया____किसने मेरी मेघा को इतनी बेदर्दी से मारा होगा? जिसने भी मेरी मेघा की जान ली है उसे इस दुनिया में जीने का कोई अधिकार नहीं है। मेरे दिल को तब तक सुकून नहीं मिलेगा जब तक मैं अपनी मेघा के हत्यारे को मार नहीं डालूंगा।

ज़हन में उभरे इन ख़यालों के साथ ही मेरा चेहरा पत्थर की तरह शख़्त हो गया और मुट्ठिया कस ग‌ईं। मैंने जान देने का इरादा मुल्तवी किया और अपने बाएं तरफ मुड़ कर चल दिया। मुझे अच्छी तरह पता था कि अब मुझे कहां जाना है और किस तरह से जाना है। गहराई में दिखे वो महल इस बात का सबूत थे कि मेरा ख़्वाब भी सच ही था। यानि मेरी मेघा उन्हीं महलों के अंदर हाल में बेजान सी पड़ी होगी।

मुझसे रहा न गया तो मैं एकदम से दौड़ते हुए आगे बढ़ने लगा। मेरा दिल कर रहा था कि मैं कितना जल्दी उन महलों में पहुंच जाऊं और मेघा को अपने कलेजे से लगा कर उसे अपने अंदर समा लूं। जिस किसी ने भी उसकी हत्या की है उसे ऐसी भयानक मौत दूं कि ऊपर वाले का भी कलेजा दहल जाए।

मुझे अपनी हालत का ज़रा भी एहसास नहीं था। भागते भागते मेरे पाँव जवाब देने लगे थे और मेरी साँसें उखड़ने लगीं थी लेकिन मैं इसके बावजूद दौड़ता ही चला जा रहा था। आँखों के सामने ख़्वाब में देखा हुआ बस एक वही मंज़र उभर आता था जिसमें मैं मेघा को अपने सीने से लगाए रो रहा था और पूरी शक्ति से चीखते हुए उसका नाम ले कर उसे पुकार रहा था। तभी किसी पत्थर से मेरा पैर टकराया और मैं किसी फुटबॉल की तरफ उछल कर हवा में तैरते हुए ज़मीन पर पेट के बल गिरा। आगे ढलान थी जिसकी वजह से मैं फिसलता हुआ बड़ी तेज़ी से जा कर किसी बड़े पत्थर से टकरा गया। चोट बड़ी तेज़ लगी थी जिसके चलते आँखों के सामने पलक झपकते ही अँधेरा छा गया और मैं वहीं पर अचेत होता चला गया।

✮✮✮

"ये हम कहां आ गए हैं मेघा?" मैंने चारो तरफ दूर दूर तक दिख रही खूबसूरत वादियों और रंग बिरंगे फूलों को देखते हुए मेघा से पूछा____"ये कौन सी जगह है?"

"क्या तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा ध्रुव?" मेघा ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देख कर कहा___"क्या तुम्हें इस सबको देख कर कुछ महसूस नहीं हो रहा?"

"अच्छा तो बहुत लग रहा है मेघा।" मैंने एक बार फिर से चारो तरफ के खूबसूरत नज़ारे को देखते हुए कहा____"और ये भी मन करता है कि यहाँ से अब हम कहीं न जाएं लेकिन मुझे अब भी समझ में नहीं आ रहा कि तुम मुझे यहाँ क्यों ले कर आई हो? आख़िर ये कौन सी जगह है?"

"तुम भी न ध्रुव बड़े ही बुद्धू हो।" मेघा ने बड़ी शेखी से मुस्कुराते हुए कहा____"अरे! बाबा कुछ तो समझो कि ये कौन सी जगह हो सकती है।"

"तुम हमेशा यूं पहेलियों में बात क्यों किया करती हो?" मैंने बुरा सा मुँह बना के कहा____"तुम जानती हो न कि मुझे पहेलियों वाली बातें कभी समझ में नहीं आती हैं। अब साफ़ साफ़ बताओ न कि ये कौन सी जगह है और तुम मुझे यहाँ क्यों ले कर आई हो?"

"अरे! बुद्धू राम इतना भी नहीं समझे कि ये कौन सी जगह हो सकती है।" मेघा ने प्यार से मेरे दाएं गाल को हल्के से खींच कर कहा_____"अरे! ये वो जगह है जहां पर हम अपने पवित्र प्रेम की दुनिया बसाएंगे। क्या तुम्हें इस जगह को देख कर नहीं लगता कि यहीं पर हमें अपने प्रेम का संसार बसाना चाहिए?"

"क्या??? सच में???" मैं मेघा की बातें सुन कर ख़ुशी से झूम उठा____"ओह! मेघा क्या सच में ऐसा हो सकता है?"
"तुम न सच में बुद्धू हो।" मेघा ने खिलखिला कर हंसने के बाद कहा____"अरे! मेरे भोले सनम हम सच में यहीं पर अपने प्रेम की दुनिया बसाएंगे। इसी लिए तो मैं तुम्हें इस खूबसूरत जगह पर लाई हूं। तुम्हारी तरह मैं भी तो यही चाहती हूं कि हमारे प्रेम की एक ऐसी दुनिया हो जहां पर हमारे सिवा दूसरा कोई न हो। हमारे प्रेम की उस दुनिया में ना तो कोई दुःख हो और ना ही कोई परेशानी हो। हर जगह एक ऐसा मंज़र हो जो हम दोनों को सिर्फ और सिर्फ खुशियां दे और हम दोनों उन खुशियों में डूबे रहें।"

मेघा की ये खूबसूरत बातें सुन कर मैं मंत्रमुग्ध हो गया। मेरा जी चाहा कि जिन होठों से उसने ऐसी खूबसूरत बातें की थी उन्हें चूम लूं। मेरा मन मयूर एकदम से मचल उठा। मैं आगे बढ़ा और मेघा के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले कर हल्के से उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर अपने होठ रख दिए। मेरे ऐसा करते ही मेघा एकदम से शांत पड़ गई। ऐसा लगा जैसे प्रकृति की हर चीज़ अपनी जगह पर रुक गई हो। मेघा के होठों को चूमने का एक अलग ही सुखद एहसास हो रहा था और यकीनन वो भी ऐसा ही एहसास कर रही थी।

हम दोनों एक झटके से अलग हुए। ऐसा लगा जैसे किसी ने हमें अंजानी दुनिया से ला कर हक़ीक़त की दुनिया में पटक दिया हो। हम दोनों की नज़र एक दूसरे से मिली तो हम दोनों ही शरमा ग‌ए। मेघा का गोरा चेहरा एकदम से सुर्ख पड़ गया था और उसके होठों पर शर्मो हया में घुली मुस्कान थिरकने लगी थी।

"तुम बहुत गंदे हो।" मेघा ने शरमा कर किन्तु उसी थिरकती मुस्कान के साथ कहा____"कोई ऐसा भी करता है क्या?"
"कोई क्या करता है इससे मुझे कोई मतलब नहीं है मेघा।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा_____"मुझे तो बस इस बात से मतलब है कि मेरे कुछ करने से मेरी मेघा पर बुरा असर न पड़े। तुम्हारी खूबसूरत बातें सुन कर मेरा दिल इतना ज़्यादा ख़ुशी से झूम उठा था कि वो पलक झपकते ही जज़्बातों में बह गया।"

"अच्छा जी।" मेघा मुस्कुराते हुए मेरे पास आई____"बड़ा जल्दी तुम्हारा दिल जज़्बातों में बह गया। अब अगर मैं भी बह जाऊं तो?"
"तो क्या? शौक से बह जाओ।" मैंने उसकी नीली गहरी आँखों में झांकते हुए मुस्कुरा कर कहा____"हम दोनों अपने प्रेम में बह ही तो जाना चाहते हैं।"

"हां, लेकिन उससे पहले हमें कुछ ज़रूरी काम भी करने हैं मेरे भोले सनम।" मेघा ने मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"हमे अपने लिए इस खूबसूरत जगह पर एक अच्छा सा घर बनाना है। क्या हम बिना घर के यहाँ रहेंगे?"

"ये खूबसूरत वादियां हमारा घर ही तो है।" मैंने चारो तरफ देखते हुए कहा_____"अब और क्या चाहिए?"
"फिर भी लोक मर्यादा के लिए कोई ऐसा घर तो होना ही चाहिए जिसे सच मुच का घर कहा जा सके।" मेघा ने कहा____"और जिसके अंदर हम लोक मर्यादा के अनुसार अपना जीवन गुज़ारें।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"अगर तुम ऐसा सोचती हो तो ऐसा ही करते हैं।"
"ये हुई न बात।" मेघा ने मुस्कुरा कर कहा_____"अब आओ उस तरफ चलते हैं। उस तरफ यहाँ से ऊँचा स्थान है। मुझे लगता है वहीं पर हमें अपने प्रेम का आशियाना बनाना चाहिए।"

मैंने मेघा की बात पर हाँ में सिर हिलाया और उसके पीछे चल पड़ा। चारो तरफ खूबसूरत वादियां थी। हरी भरी ज़मीन और सुन्दर सुन्दर पेड़ पौधे। जहां तक नज़र जाती थी वहां तक हरी हरी घांस थी। चारो तरफ पहाड़ थे। एक तरफ कोई सुन्दर नदी बहती दिख रही थी। दाहिने तरफ उँचाई से गिरता हुआ झरने का खूबसूरत जल प्रवाह। हरी हरी घांस के बीच रंग बिरंगे फूल ऐसा नज़ारा पेश कर रहे थे कि बस देखते ही रहने का मन करे। इसके पहले न तो मैंने कभी ऐसा खूबसूरत नज़ारा देखा था और ना ही इतना खुश हुआ था। आँखों के सामने ऐसी खूबसूरती को देख कर मैं अपने नसीब पर गर्व करने लगा था। कुछ पल के लिए ज़हन में ये ख़याल भी आ जाता था कि कहीं ये सब कोई ख़्वाब तो नहीं? अगर ये ख़्वाब ही था तो मैं ऊपर वाले से दुआ करना चाहूंगा कि वो मुझे ऐसे ख़्वाब में ही जीने दे।

"ये जगह ठीक रहेगी न ध्रुव?" ऊंचाई पर पहुंचते ही मेघा ने मेरी तरफ पलट कर पूछा_____"यहां से दूर दूर तक प्रकृति की खूबसूरती दिख रही है।"

"प्रकृति की सबसे बड़ी खूबसूरती तो तुम हो मेघा।" मैंने सहसा गंभीर भाव से कहा____"मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि मुझे तुम मिल गई हो और अब मैं तुम्हारे साथ अपना जीवन जीने वाला हूं। मुझे सच सच बताओ मेघा कहीं ये कोई ख़्वाब तो नहीं है? देखो, मुझे अपने नसीब पर ज़रा भी भरोसा नहीं है। बचपन से ले कर अब तक मैंने सिर्फ और सिर्फ दुःख दर्द ही सहे हैं और अपने नसीब से हमेशा ही मेरा छत्तीस का आंकड़ा रहा है। इस लिए मुझे सच सच बताओ क्या मैं कोई ख़्वाब देख रहा हूं?"

"नहीं मेरे ध्रुव।" मेघा ने तड़प कर मुझे अपने सीने से लगा लिया_____"ये कोई ख़्वाब नहीं है, बल्कि ये वो हक़ीक़त है जिसे तुम अपनी खुली आँखों से देख रहे हो। तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं अपने ध्रुव के साथ ऐसा मज़ाक करुँगी?"

"हां, मैं जानता हूं।" मैंने दुखी भाव से कहा____"मुझे मेरी मेघा पर पूर्ण भरोसा है कि वो मुझे इस तरह का कोई दुःख नहीं देगी लेकिन....।"
"लेकिन क्या ध्रुव?" मेघा ने मेरे सिर के बालों पर हाथ फेरते हुए पूछा।

"लेकिन अगर ये सच में कोई ख़्वाब ही है तो मेरी तुमसे प्रार्थना है कि इसे ख़्वाब ही रहने देना।" मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े____"मुझे नींद से मत जगाना। मैंने तुम्हें पाने के लिए बहुत दुःख सहे हैं। अब मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता। अब अगर तुम मुझसे जुदा हुई तो तुम्हारी क़सम मैं एक पल भी जी नहीं पाऊंगा।"

"तो क्या मैं तुम्हारे बिना जी पाऊंगी?" मेघा ने मुझे और भी ज़ोरों से अपने सीने में भींच लिया, फिर भारी गले से बोली_____"नहीं मेरे ध्रुव, मैं भी अब तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी। इसी लिए तो सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास आ गई हूं। मेरा अब इस दुनिया में तुम्हारे अलावा किसी से कोई रिश्ता नहीं रहा। मेरा मन करता है कि मैं अपने ध्रुव को हर वो ख़ुशी दूं जिसके लिए अब तक वो तरसता रहा है।"

"क्या तुम सच कह रही हो?" मैं एकदम से उससे अलग हो कर बोल पड़ा____"इसका मतलब ये सच में कोई ख़्वाब नहीं है, है ना?"
"हां ध्रुव।" मेघा ने मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर प्यार से कहा____"ये कोई ख़्वाब नहीं है। तुम्हारी ये मेघा सच में तुम्हारे सामने है और अब तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी।"

मेघा की बात सुन कर मैं किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो गया। मैंने देखा मेघा की आँखों से आंसू बहे थे इस लिए मैंने जल्दी से अपना हाथ बढ़ा कर उसके आंसू पोंछे। मेघा ने भी अपने हाथों से मेरे आंसू पोंछे। मैं अब ये सोच कर मुतमईन हो गया कि अब ये कोई ख़्वाब नहीं है बल्कि सच में मेघा मेरे साथ ही है।

हम दोनों जब सामान्य हो गए तो मेघा मेरा हाथ पकड़ कर पास ही पड़े एक पत्थर पर बैठा दिया, जबकि वो पलटी और आँखें बंद कर के अपने दोनों हाथों को हवा में उठा लिया। उसकी दोनों हथेलियां सामने की तरफ थीं। मुझे पहले तो कुछ समझ न आया किन्तु अगले कुछ ही पलों में मैं ये देख कर आश्चर्य चकित रह गया कि मेघा की दोनों हथेलियों के बीच से गाढ़े सफ़ेद रंग का धुआँ निकलने लगा जो आगे की तरफ ज़मीन पर जा कर टकराने लगा। कुछ ही पलों में ज़मीन पर बहुत ज़्यादा धुआँ एकत्रित हो कर ऊपर की तरफ उठने लगा। दो मिनट के अंदर ही जब वो इकठ्ठा हुआ धुआँ ग़ायब हुआ तो मेरी आँखों के सामने एक बेहद ही सुन्दर महल बना हुआ नज़र आया। वो महल ना ही ज़्यादा छोटा था और ना ही ज़्यादा बड़ा।

"देखो ध्रुव।" मेघा की आवाज़ पर मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा, जबकि उसने मुस्कुराते हुए कहा_____"ये है हमारे प्रेम का आशियाना। कैसा लगा तुम्हें?"

"बहुत ही सुन्दर है।" मैंने महल की तरफ देखते हुए कहा____"मैं तो ऐसे महल के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकता था लेकिन....।"
"लेकिन क्या ध्रुव?" मेघा के चेहरे पर शंकित भाव उभरे____"क्या अभी कोई कमी है इस महल में?"

"नहीं, कमी तो कोई नहीं है।" मैंने कहा____"लेकिन मैं ये सोच रहा था कि हम किसी महल में नहीं बल्कि किसी साधारण से दिखने वाले घर में रहते।"

"तुम अगर ऐसा चाहते हो तो मैं इसकी जगह पर साधारण सा दिखने वाला घर ही बना दूंगी।" मेघा ने कहा_____"लेकिन मैंने महल इस लिए बनाया क्योंकि मैं चाहती हूं कि मेरे ध्रुव को हर वो सुख मिले जैसे सुख की उसने कल्पना भी न की हो। तुम मेरे सब कुछ हो और मैं चाहती हूं कि तुम किसी राजा महाराजा की तरह मेरे दिल के साथ साथ इस महल में भी मेरे साथ राज करो।"

"तुम्हारी ख़ुशी के लिए मैं इस तरह भी रहने को तैयार हूं मेघा।" मैंने कहा_____"लेकिन मेरी ख़्वाहिश ये थी कि हम अपनी मेहनत से कोई साधारण सा घर बनाएं और साधारण इंसान की तरह ही यहाँ पर रहते हुए अपना जीवन बसर करें। मैं यहाँ की ज़मीन पर मेहनत कर के खेती करूं और तुम घर के अंदर घर के काम करो, बिल्कुल किसी साधारण इंसानों की तरह।"

"तुम सच में बहुत अच्छे हो ध्रुव।" मेघा ने मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा____"और मुझे बहुत ख़ुशी हुई तुम्हारी ये बातें सुन कर। मैं भी तुम्हारे साथ वैसे ही रहना चाहती हूं जैसे कोई साधारण औरत अपने पति के साथ रहती है। ओह! ध्रुव तुमने ये सब कह कर मेरे मन में एक अलग ही ख़ुशी भर दी है। मैं भी साधारण इंसान की तरह तुम्हारे साथ जीवन गुज़ारना चाहती हूं।"

"तो फिर इस महल को गायब कर दो मेघा।" मैंने कहा_____"और कोई साधारण सा लकड़ी का बना हुआ घर बना दो। उसके बाद हम अपनी मेहनत से यहाँ की ज़मीन को खेती करने लायक बनाएंगे। उस ज़मीन से हम फसल उगाएंगे और उसी से अपना जीवन गुज़ारेंगे।"

"जैसी मेरे ध्रुव की इच्छा।" मेघा ने कहा और पलट कर उसने फिर से अपने दोनों हाथ हवा में लहराए जिससे उसकी दोनों हथेलियों से गाढ़ा सफ़ेद धुआँ निकलने लगा। उस धुएं ने पूरे महल को ढँक दिया और जब धुआँ गायब हुआ तो महल की जगह लकड़ी का बिल्कुल वैसा ही घर नज़र आया जैसे घर की मैंने इच्छा ज़ाहिर की थी।


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बाद मुद्दत के बहार आई है ज़िन्दगी में।
मर न जाऊं कहीं ऐ दोस्त इस खुशी में।।

छुपा ले मुझको आंखों में आंसू की तरह,
बड़े अज़ाब सहे दिल ने तेरी बेरुखी में।‌।

दुवा करो के फिर कोई ग़म पास न आए,
बहुत हुआ जीना मरना इस ज़िन्दगी में।।

याद आए तो कांप उठता है बदन ऐ दोस्त
ऐसे गुज़री है शब-ए-फ़िराक़ बेखुदी में।।

अब कोई शिकवा कोई ग़म नहीं मेरे ख़ुदा,
विसाले-यार हुआ मुझको तेरी बंदगी में।।


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Very nice Update bhai
 
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