Shetan
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Amezing. Bahot wakt laga vapas lotne me. Pichhe ka update ek bar padha aur story ki ridam vapas aa gai. Sayad aage aur kuchh update rukna padega is tadap ko mitane ke lie. Love it. Wonderful updateUpdate 33
एक दो दिन ऐसे ही बीत गए, एकांश बिना किसी शक के घर में आता-जाता रहा और साथ ही अक्षिता पर नज़र भी रखता रहा उसके मन मे अब भी यही डर था के अगर अक्षिता उसे देख लेगी तो वापिस कही भाग जाएगी और ऐसा वो हरगिज नहीं चाहता था इसीलिए अक्षिता के सामने जाने की हिम्मत उसमे नहीं थी, हालांकि ये सब काफी बचकाना था पर यही था..
वहीं अक्षिता को नए किराएदार के बारे में थोड़ा डाउट होने लगा था क्योंकि उसने और उसके पेरेंट्स ने उसे कभी नहीं देखा था, उसने अपने मामा से इस बारे में पूछा भी तो उन्होंने बताया था कि उनका किराएदार एक बहुत ही बिजी आदमी है और अपने मामा की बात सुनकर उसने इसे एक बार कोअनदेखा कर दिया था...
वही दूसरी तरफ एकांश भी उसके साथ एक ही छत के नीचे रहकर बहुत खुश था, खाने को लेकर उसे दिककते आ रही थी लेकिन उसने मैनेज कर लिया था, पिछले कुछ दिनों में उसने अक्षिता को अपने मा बाप से बात करते, कुछ बच्चों के साथ खेलते और घर के कुछ काम करते हुए खुशी-खुशी देखा... वो जब भी वहा होता उसकी नजरे बस अक्षिता को तलाशती रहती थी..
जब भी वो उसकी मां को उससे पूछते हुए सुनता कि वो दवाइयां ले रही है या नहीं तो उसे उसकी सेहत के बारे में सोचकर दुख होता था लेकिन उसे अपना ख्याल रखते हुए देखकर राहत भी मिलती..
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एकांश ने बाहर से कीसी की हसने की आवाज सुनीं, वो अपने कमरे से बाहर निकला और उसने नीचे देखा, उसने देखा कि अक्षिता और कुछ लड़कियाँ घर दरवाज़े के सामने सीढ़ियों पर बैठी थीं
वैसे भी एकांश आज ऑफिस नहीं गया था, जब तक जरूरी न हो वो घर से काम करता था और ज़्यादातर समय अपने दोस्तों से फ़ोन पर बात करते हुए अक्षिता के बारे में जानकारी देता था और फोन पर स्वरा ने उस पर इतने सारे सवाल दागे कि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसके सवालों का जवाब देते-देते रात हो गई थी...
एकांश को अब यहा का माहौल पसंद आने लगा था यहाँ के लोग अपना काम करके अपना बाकी समय अपने परिवार के साथ बिताते थे.. कोई ज्यादा तनाव नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई इधर-उधर भागना नहीं, कोई परेशानी नहीं उसे इस जगह शांति का एहसास होने लगा था...
उसने नीचे की ओर देखा और अक्षिता के सामने खेल रहे बच्चों को देखा जो रात के आसमान को निहार रहे थे उसने भी ऊपर देखा जहा सितारों से जगमगाता आसमान था...
वो अक्षिता के साथ आसमान को निहारने की अपनी यादों को याद करके मुस्कुराया, उसने अक्षिता की तरफ देखा और पाया कि वो भी मुस्कुरा रही है, उसे लगा कि शायद वो भी यही सोच रही होगी...
तभी एक छोटी लड़की आई और अक्षिता के पास बैठ गई और उसे देखने लगी...
"दीदी, तुम आसमान की ओर क्यों देख रही हो?" उस लड़की ने अक्षिता से पूछा और एकांश ने मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखा
"क्योंकि मुझे रात के आकाश में तारों को निहारना पसंद है" अक्षिता ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"दीदी, मैंने सुना है कि जब कोई मरता है तो वो सितारा बन जाता है क्या ये सच है?" उस छोटी लड़की ने मासूमियत से पूछा..
उसका सवाल सुन अक्षिता की मुस्कान गायब हो गई और एकांश की मुस्कान भी फीकी पड़ गई थी, दोनों ही इस वक्त एक ही बात सोच रहे थे
"शायद..." अक्षिता ने नीचे देखते हुए धीमे से कहा
वो लड़की आसमान की ओर देख रही थी जबकि एकांश बस अक्षिता को देखता रहा..
"किसी दिन मैं भी स्टार बनूंगी और अपने चाहने वालों को नीचे देखूंगी" अक्षिता ने आंसुओं के साथ मुस्कुराते हुए धीमे से कहा
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एकांश इधर उधर देखते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था देख रहा था कि कोई है या नहीं तभी गेट पर खड़ी अक्षिता को देखकर वो जल्दी से दीवार के पीछे छिप गया
उसने खुद को थोड़ा छिपाते हुए झाँका और देखा कि अक्षिता बिना हिले-डुले वहीं खड़ी थी, एकांश ने सोचा के इस वक्त वो वहा क्या कर रही है
अचानक अक्षिता ने अपने सिर को अपने हाथों से पकड़ लिया था और एकांश को क्या हो रहा था समझ नहीं आ रहा था उसने अक्षिता को देखा जो अब बेहोश होने के करीब थी और इसलिए वो उसके पास पहुचा और उसने उसे ज़मीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया और उसकी तरफ़ देखा, अक्षिता बेहोश हो चुकी थी...
एकांश ने उसके गाल थपथपाते हुए उसे कई बार पुकारा लेकिन वो नहीं जागी
एकांश उसे गोद में उठाकर उठ खड़ा हुआ और सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अपने कमरे में ले गया और उसे अपने बिस्तर पर लिटा दिया
घबराहट में उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे.... उसने अपना फोन निकाला और किसी को फोन किया
"हैलो?"
"डॉक्टर अवस्थी"
"मिस्टर रघुवंशी, क्या हुआ?" डॉक्टर ने चिंतित होकर पूछा
"अक्षिता बेहोश हो गई है मुझे... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा डॉक्टर?" उसने अक्षिता चेहरे को देखते हुए पूछा
"क्षांत हो जाइए और मुझे बताइए ये कैसे हुआ?" डॉक्टर ने जल्दी से पूछा
"वो दरवाजे के पास खड़ी थी और उसके सर मे शायद दर्द शुरू हुआ और उसने अपना सिर पकड़ लिया और अगले ही मिनट वो बेहोश हो गई"
" ओह...."
"डॉक्टर, उसे क्या हुआ? वो बेहोश क्यों हो गई? क्या कुछ गंभीर बात है? क्या मैं उसे वहाँ ले आऊ? या किसी पास के डॉक्टर के पास जाऊ? अब क्या करू बताओ डॉक्टर?" एकांश ने डरते हुए कई सवाल कर डाले
"मिस्टर रघुवंशी शांत हो जाइए क्या आपके पास वो ईमर्जन्सी वाली दवा है जो मैंने आपको दी थी?" डॉक्टर ने शांति से पूछा
"हाँ!" एकांश ने कहा.
"तो वो उसे दे दो, वो ठीक हो जाएगी" डॉक्टर ने कहा
"वो बेहोश है उसे दवा कैसे दूँ?" एकांश
"पहले उसके चेहरे पर थोड़ा पानी छिड़को" डॉक्टर भी अब इस मैटर को आराम से हँडल करना सीख गया था वो जानता था एकांश अक्षिता के मामले मे काफी पज़ेसिव था
"ठीक है" उसने कहा और अक्षिता चेहरे पर धीरे से पानी छिड़का
"अब आगे"
"क्या वो हिली?" डॉक्टर ने पूछा
"नहीं." एकांश फुसफुसाया.
"तो उस दवा को ले लो और इसे थोड़े पानी में घोलो और उसे पिलाओ" डॉक्टर ने आगे कहा
"ठीक है" यह कहकर एकांश ने वही करना शुरू कर दिया जो डॉक्टर ने कहा था
एकांश धीरे से अक्षिता सिर उठाया और दवा उसके मुँह में डाल दी, चूँकि दवा तरल रूप में थी, इसलिए दवा अपने आप उसके गले से नीचे उतर गई
"हो गया डॉक्टर, दवा दे दी है, मैं उसे अस्पताल ले आऊ? कही कुछ और ना हो?" एकांश ने कहा
"नहीं नहीं इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, इस बीमारी मे ऐसा कई बार होता है अगर आप उसे यहाँ लाते तो मैं भी वही दवा देता, बस इंजेक्शन लगा देता अब वो ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है" डॉक्टर ने शांति से कहा
"ठीक है, तो वो कब तक जागेगी?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा
"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे में, और अगर दोबारा कुछ लगे तो मुझे कॉल कर लीजिएगा" डॉक्टर ने कहा
"थैंक यू सो मच डॉक्टर" एकांश ने कहा और फोन काटा
एकांश ने राहत की सांस ली और अक्षिता की तरफ देखा जो अभी ऐसी लग रही थी जैसे आराम से सो रही हो, एकांश वही बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया और धीरे से अक्षिता के बालों को सहलाने लगा
"काश मैं तुम्हारा दर्द दूर कर पाता अक्षु" एकांश ने धीमे से कहा और उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद टपकी
उसने आगे झुक कर अक्षिता के माथे को चूम लिया जो की अपने में ही एक अलग एहसास था, एकांश अब शांत हो गया था अक्षिता अब ठीक थी और उसके साथ थी इसी बात से उसे राहत महसूस हुई थी
अक्षिता की आंखों के चारों ओर काले घेरे और उसकी कमज़ोरी देखकर उसका दिल बैठ रहा था उसने उसका हाथ पकड़ा और उसके हाथ को चूमा
"मैं तुम्हें बचाने मे कोई कसर नहीं छोड़ूँगा अक्षु, मैं वादा करता हु तुम्हें कही नहीं जाने दूंगा" एकांश ने धीमे से अक्षिता का हाथ अपने दिल के पास पकड़ते हुए कहा
(पर बचाएगा कैसे जब खुद उसके सामने ही नही जा रहा)
"लेकिन वो चाहती है के तुम उसे जाने को बेटे"
अचानक आई इस आवाज का स्त्रोत जानने के लिए एकांश ने अपना सिर दरवाजे की ओर घुमाया जहा अक्षिता की माँ आँखों में आँसू लिए खड़ी थी एकांश ने एक नजर अक्षिता को देखा और फिर उठ कर खड़ा हुआ
"जानता हु लेकिन मैं उसे जाने नहीं दे सकता, कम से कम अब तो नहीं जब वो मुझे मिल गई है" एकांश ने दृढ़तापूर्वक कहा
अक्षिता की मा बस उसे देखकर मुस्कुरायी.
"तुम्हें सब कुछ पता है, है न?" उन्होंने उदासी से नीचे देखते हुए उससे पूछा
"हाँ" एकांश ने कहा और वो दोनों की कुछ पल शांत खड़े रहे
"मुझे पता है कि तुम यहाँ रहने वाले किरायेदार हो" उसकी माँ ने कहा
"उम्म... मैं... मैं... वो...." एकांश को अब क्या बोले समझ नहीं आ रहा था क्युकी ये सामना ऐसे होगा ऐसा उसने नही नहीं सोचा था
"मुझे उसी दिन ही शक हो गया था जब मैंने देखा कि कुछ लोग तुम्हारे कमरे में बिस्तर लेकर आए थे और मैंने देखा कि एक आदमी सूट पहने हुए कमरे में आया था, मुझे शक था कि यह तुम ही हो क्योंकि यहाँ कोई भी बिजनेस सूट नहीं पहनता" उसकी माँ ने कहा
"मैंने भी यही सोचा था के शायद यहा नॉर्मल कपड़े ज्यादा ठीक रहेंगे लेकिन देर हो गई" एकांश ने पकड़े जाने पर हल्के से मुसकुराते हुए कहा
"और मैंने एक बार तुम्हें चुपके से अंदर आते हुए भी देखा था, तभी मुझे समझ में आया कि तुम ही यहां रहने आए हो"
एकांश कुछ नहीं बोला
"लेकिन तुम छिप क्यू रहे हो?" उन्होंने उससे पूछा.
"अगर अक्षिता को पता चल गया कि मैं यहा हूँ तो वो फिर से भाग सकती है और मैं नहीं चाहता कि वो अपनी ज़िंदगी इस डर में जिए कि कहीं मैं सच न जान जाऊँ और बार-बार मुझसे दूर भागती रहे, मैं तो बस यही चाहता हु कि वो अपनी जिंदगी शांति से जिए" एकांश ने कहा और अक्षिता की मा ने बस एक स्माइल दी
“तुम अच्छे लड़के को एकांश और मैं ऐसा इसीलिए नहीं कह रही के तुम अमीर हो इसके बावजूद यह इस छोटी सी जगह मे रह रहे हो या और कुछ बल्कि इसीलिए क्युकी मैंने तुम्हें देखा है के कैसे तुमने अभी अभी अक्षिता को संभाला उसकी देखभाल की” अक्षिता की मा ने कहा
"ऐसा कितनी बार होता है?" एकांश अक्षिता की ओर इशारा करते हुए पूछा।
"दवाओं की वजह से उसे थोड़ा चक्कर आता है, लेकिन वो बेहोश नहीं होती वो तब बेहोश होती है जब वो बहुत ज्यादा स्ट्रेस में होती है" उसकी माँ दुखी होकर कहा
"वो स्ट्रेस में है? क्यों?"
लेकिन अक्षिता की मा ने कुछ नहीं कहा
"आंटी प्लीज बताइए वो किस बात से परेशान है?" एकांश ने बिनती करते हुए पूछा
"तुम्हारी वजह से”
"मेरी वजह से?" अब एकांश थोड़ा चौका
" हाँ।"
"लेकिन क्यों?"
"उसे तुम्हारी चिंता है एकांश, कल भी वो मुझसे पूछ रही थी कि तुम ठीक होगे या नहीं, वो जानती है कि उसके गायब होने से तुम पर बहुत बुरा असर पड़ेगा वो सोचती है कि तुम उससे और ज्यादा नफरत करोगे लेकिन वो ये भी कहती है कि तुम उससे नफरत करने से ज्यादा उसकी चिंता करोगे उसने हाल ही में मीडिया में भी तुम्हारे बारे में कुछ नहीं सुना था जिससे वो सोचने लगी कि तुम कैसे हो सकते हो और तुम्हारे सच जानने का डर उसे खाए जा रहा है इन सभी खयालों और चिंताओं ने उसे स्ट्रेस में डाल दिया और वो शायद इसी वजह से बेहोश हो गई होगी।" उसकी माँ ने कहा
एकांश कुछ नहीं बोला बस अक्षिता को देखता रहा और फिर उसने उसकी मा से कहा
"आंटी क्या आप मेरा एक काम कर सकती हैं?"
"क्या?"
"मैं यहा रह रहा हु ये बात आप प्लीज अक्षिता को मत बताना"
"लेकिन क्यों? "
"उसे ये पसंद नहीं आएगा और हो सकता है कि वो फिर से मुझसे दूर भागने का प्लान बना ले"
"लेकिन तुम जानते हो ना ये बात उसे वैसे भी पता चल ही जाएगी उसे पहले ही थोड़ा डाउट हो गया है" उन्होंने कहा
"जानता हु लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं है आप प्लीज उसे कुछ मत बताना, उसे खुद पता चले तो अलग बात है जब उसे पता चलेगा, तो मैं पहले की तरह उससे बेरुखी से पेश आ जाऊंगा मेरे लिए भी ये आसान हो जाएगा और उसे यह भी नहीं पता होना चाहिए कि मैं उसे यहाँ लाया हूँ और दवा दी है"
अक्षिता की मा को पहले तो एकांश की बात समझ नहीं आई लेकिन फिर भी उन्होंने उसने हामी भर दी
"वैसे इससे पहले कि वो जाग जाए तुम उसे उसके कमरे मे छोड़ दो तो बेहतर रहेगा" अक्षिता की मा ने कहा जिसपर एकांश ने बस हा मे गर्दन हिलाई और वो थोड़ा नीचे झुका और अक्षिता को अपनी बाहों में उठा लिया उसकी माँ कुछ देर तक उन्हें ऐसे ही देखती रही जब एकांश ने उनसे पूछा कि क्या हुआ तो उसने कहा कि कुछ नहीं हुआ और नीचे चली गई
एकांश उनके पीछे पीछे घर के अंदर चला गया अक्षिता की माँ ने उसे अक्षिता का बेडरूम दिखाया और वो अंदर गया और उसने अक्षिता को देखा जो उसकी बाहों में शांति से सो रही थी
अक्षिता की माँ भी अंदर आई और उन्होंने देखा कि एकांश ने अक्षिता को कितने प्यार से बिस्तर पर लिटाया और उसे रजाई से ढक दिया उसने उसके चेहरे से बाल हटाए और उसके माथे पर चूमा..
एकांश खड़ा हुआ और उसने कमरे मे इधर-उधर देखा और वो थोड़ा चौका दीवारों पर उसकी बहुत सी तस्वीरें लगी थीं कुछ तो उसकी खूबसूरत यादों की थीं, लेकिन बाकी सब सिर्फ उसकी तस्वीरें थीं...
"वो जहाँ भी रहती है, अपना कमरा हमेशा तुम्हारी तस्वीरों से सजाती है" अक्षिता की माँ ने एकांश हैरान चेहरे को देखते हुए कहा
एकांश के मुँह शब्द नहीं निकल रहे थे वो बस आँसूओ के साथ तस्वीरों को देख रहा था
"वो कहती है कि उसके पास अब सिर्फ यादें ही तो बची हैं" सरिता जी ने अपनी बेटी के बालों को सहलाते हुए कहा
एकांश की आँखों से आँसू बह निकले और इस बार उसने उन्हें छिपाने की ज़हमत नहीं उठाई
वो उसके कमरे से बाहर चला गया, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी......
क्रमश: