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Romance Ek Duje ke Vaaste..

Shetan

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Update 33



एक दो दिन ऐसे ही बीत गए, एकांश बिना किसी शक के घर में आता-जाता रहा और साथ ही अक्षिता पर नज़र भी रखता रहा उसके मन मे अब भी यही डर था के अगर अक्षिता उसे देख लेगी तो वापिस कही भाग जाएगी और ऐसा वो हरगिज नहीं चाहता था इसीलिए अक्षिता के सामने जाने की हिम्मत उसमे नहीं थी, हालांकि ये सब काफी बचकाना था पर यही था..

वहीं अक्षिता को नए किराएदार के बारे में थोड़ा डाउट होने लगा था क्योंकि उसने और उसके पेरेंट्स ने उसे कभी नहीं देखा था, उसने अपने मामा से इस बारे में पूछा भी तो उन्होंने बताया था कि उनका किराएदार एक बहुत ही बिजी आदमी है और अपने मामा की बात सुनकर उसने इसे एक बार कोअनदेखा कर दिया था...

वही दूसरी तरफ एकांश भी उसके साथ एक ही छत के नीचे रहकर बहुत खुश था, खाने को लेकर उसे दिककते आ रही थी लेकिन उसने मैनेज कर लिया था, पिछले कुछ दिनों में उसने अक्षिता को अपने मा बाप से बात करते, कुछ बच्चों के साथ खेलते और घर के कुछ काम करते हुए खुशी-खुशी देखा... वो जब भी वहा होता उसकी नजरे बस अक्षिता को तलाशती रहती थी..

जब भी वो उसकी मां को उससे पूछते हुए सुनता कि वो दवाइयां ले रही है या नहीं तो उसे उसकी सेहत के बारे में सोचकर दुख होता था लेकिन उसे अपना ख्याल रखते हुए देखकर राहत भी मिलती..

--

एकांश ने बाहर से कीसी की हसने की आवाज सुनीं, वो अपने कमरे से बाहर निकला और उसने नीचे देखा, उसने देखा कि अक्षिता और कुछ लड़कियाँ घर दरवाज़े के सामने सीढ़ियों पर बैठी थीं

वैसे भी एकांश आज ऑफिस नहीं गया था, जब तक जरूरी न हो वो घर से काम करता था और ज़्यादातर समय अपने दोस्तों से फ़ोन पर बात करते हुए अक्षिता के बारे में जानकारी देता था और फोन पर स्वरा ने उस पर इतने सारे सवाल दागे कि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसके सवालों का जवाब देते-देते रात हो गई थी...

एकांश को अब यहा का माहौल पसंद आने लगा था यहाँ के लोग अपना काम करके अपना बाकी समय अपने परिवार के साथ बिताते थे.. कोई ज्यादा तनाव नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई इधर-उधर भागना नहीं, कोई परेशानी नहीं उसे इस जगह शांति का एहसास होने लगा था...

उसने नीचे की ओर देखा और अक्षिता के सामने खेल रहे बच्चों को देखा जो रात के आसमान को निहार रहे थे उसने भी ऊपर देखा जहा सितारों से जगमगाता आसमान था...

वो अक्षिता के साथ आसमान को निहारने की अपनी यादों को याद करके मुस्कुराया, उसने अक्षिता की तरफ देखा और पाया कि वो भी मुस्कुरा रही है, उसे लगा कि शायद वो भी यही सोच रही होगी...

तभी एक छोटी लड़की आई और अक्षिता के पास बैठ गई और उसे देखने लगी...

"दीदी, तुम आसमान की ओर क्यों देख रही हो?" उस लड़की ने अक्षिता से पूछा और एकांश ने मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखा

"क्योंकि मुझे रात के आकाश में तारों को निहारना पसंद है" अक्षिता ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"दीदी, मैंने सुना है कि जब कोई मरता है तो वो सितारा बन जाता है क्या ये सच है?" उस छोटी लड़की ने मासूमियत से पूछा..

उसका सवाल सुन अक्षिता की मुस्कान गायब हो गई और एकांश की मुस्कान भी फीकी पड़ गई थी, दोनों ही इस वक्त एक ही बात सोच रहे थे

"शायद..." अक्षिता ने नीचे देखते हुए धीमे से कहा

वो लड़की आसमान की ओर देख रही थी जबकि एकांश बस अक्षिता को देखता रहा..

"किसी दिन मैं भी स्टार बनूंगी और अपने चाहने वालों को नीचे देखूंगी" अक्षिता ने आंसुओं के साथ मुस्कुराते हुए धीमे से कहा

--

एकांश इधर उधर देखते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था देख रहा था कि कोई है या नहीं तभी गेट पर खड़ी अक्षिता को देखकर वो जल्दी से दीवार के पीछे छिप गया

उसने खुद को थोड़ा छिपाते हुए झाँका और देखा कि अक्षिता बिना हिले-डुले वहीं खड़ी थी, एकांश ने सोचा के इस वक्त वो वहा क्या कर रही है

अचानक अक्षिता ने अपने सिर को अपने हाथों से पकड़ लिया था और एकांश को क्या हो रहा था समझ नहीं आ रहा था उसने अक्षिता को देखा जो अब बेहोश होने के करीब थी और इसलिए वो उसके पास पहुचा और उसने उसे ज़मीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया और उसकी तरफ़ देखा, अक्षिता बेहोश हो चुकी थी...

एकांश ने उसके गाल थपथपाते हुए उसे कई बार पुकारा लेकिन वो नहीं जागी

एकांश उसे गोद में उठाकर उठ खड़ा हुआ और सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अपने कमरे में ले गया और उसे अपने बिस्तर पर लिटा दिया

घबराहट में उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे.... उसने अपना फोन निकाला और किसी को फोन किया

"हैलो?"

"डॉक्टर अवस्थी"

"मिस्टर रघुवंशी, क्या हुआ?" डॉक्टर ने चिंतित होकर पूछा

"अक्षिता बेहोश हो गई है मुझे... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा डॉक्टर?" उसने अक्षिता चेहरे को देखते हुए पूछा

"क्षांत हो जाइए और मुझे बताइए ये कैसे हुआ?" डॉक्टर ने जल्दी से पूछा

"वो दरवाजे के पास खड़ी थी और उसके सर मे शायद दर्द शुरू हुआ और उसने अपना सिर पकड़ लिया और अगले ही मिनट वो बेहोश हो गई"

" ओह...."

"डॉक्टर, उसे क्या हुआ? वो बेहोश क्यों हो गई? क्या कुछ गंभीर बात है? क्या मैं उसे वहाँ ले आऊ? या किसी पास के डॉक्टर के पास जाऊ? अब क्या करू बताओ डॉक्टर?" एकांश ने डरते हुए कई सवाल कर डाले

"मिस्टर रघुवंशी शांत हो जाइए क्या आपके पास वो ईमर्जन्सी वाली दवा है जो मैंने आपको दी थी?" डॉक्टर ने शांति से पूछा

"हाँ!" एकांश ने कहा.

"तो वो उसे दे दो, वो ठीक हो जाएगी" डॉक्टर ने कहा

"वो बेहोश है उसे दवा कैसे दूँ?" एकांश

"पहले उसके चेहरे पर थोड़ा पानी छिड़को" डॉक्टर भी अब इस मैटर को आराम से हँडल करना सीख गया था वो जानता था एकांश अक्षिता के मामले मे काफी पज़ेसिव था

"ठीक है" उसने कहा और अक्षिता चेहरे पर धीरे से पानी छिड़का

"अब आगे"

"क्या वो हिली?" डॉक्टर ने पूछा

"नहीं." एकांश फुसफुसाया.

"तो उस दवा को ले लो और इसे थोड़े पानी में घोलो और उसे पिलाओ" डॉक्टर ने आगे कहा

"ठीक है" यह कहकर एकांश ने वही करना शुरू कर दिया जो डॉक्टर ने कहा था

एकांश धीरे से अक्षिता सिर उठाया और दवा उसके मुँह में डाल दी, चूँकि दवा तरल रूप में थी, इसलिए दवा अपने आप उसके गले से नीचे उतर गई

"हो गया डॉक्टर, दवा दे दी है, मैं उसे अस्पताल ले आऊ? कही कुछ और ना हो?" एकांश ने कहा

"नहीं नहीं इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, इस बीमारी मे ऐसा कई बार होता है अगर आप उसे यहाँ लाते तो मैं भी वही दवा देता, बस इंजेक्शन लगा देता अब वो ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है" डॉक्टर ने शांति से कहा

"ठीक है, तो वो कब तक जागेगी?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा

"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे में, और अगर दोबारा कुछ लगे तो मुझे कॉल कर लीजिएगा" डॉक्टर ने कहा

"थैंक यू सो मच डॉक्टर" एकांश ने कहा और फोन काटा

एकांश ने राहत की सांस ली और अक्षिता की तरफ देखा जो अभी ऐसी लग रही थी जैसे आराम से सो रही हो, एकांश वही बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया और धीरे से अक्षिता के बालों को सहलाने लगा

"काश मैं तुम्हारा दर्द दूर कर पाता अक्षु" एकांश ने धीमे से कहा और उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद टपकी

उसने आगे झुक कर अक्षिता के माथे को चूम लिया जो की अपने में ही एक अलग एहसास था, एकांश अब शांत हो गया था अक्षिता अब ठीक थी और उसके साथ थी इसी बात से उसे राहत महसूस हुई थी

अक्षिता की आंखों के चारों ओर काले घेरे और उसकी कमज़ोरी देखकर उसका दिल बैठ रहा था उसने उसका हाथ पकड़ा और उसके हाथ को चूमा

"मैं तुम्हें बचाने मे कोई कसर नहीं छोड़ूँगा अक्षु, मैं वादा करता हु तुम्हें कही नहीं जाने दूंगा" एकांश ने धीमे से अक्षिता का हाथ अपने दिल के पास पकड़ते हुए कहा

(पर बचाएगा कैसे जब खुद उसके सामने ही नही जा रहा🫠)

"लेकिन वो चाहती है के तुम उसे जाने को बेटे"

अचानक आई इस आवाज का स्त्रोत जानने के लिए एकांश ने अपना सिर दरवाजे की ओर घुमाया जहा अक्षिता की माँ आँखों में आँसू लिए खड़ी थी एकांश ने एक नजर अक्षिता को देखा और फिर उठ कर खड़ा हुआ

"जानता हु लेकिन मैं उसे जाने नहीं दे सकता, कम से कम अब तो नहीं जब वो मुझे मिल गई है" एकांश ने दृढ़तापूर्वक कहा

अक्षिता की मा बस उसे देखकर मुस्कुरायी.

"तुम्हें सब कुछ पता है, है न?" उन्होंने उदासी से नीचे देखते हुए उससे पूछा

"हाँ" एकांश ने कहा और वो दोनों की कुछ पल शांत खड़े रहे

"मुझे पता है कि तुम यहाँ रहने वाले किरायेदार हो" उसकी माँ ने कहा

"उम्म... मैं... मैं... वो...." एकांश को अब क्या बोले समझ नहीं आ रहा था क्युकी ये सामना ऐसे होगा ऐसा उसने नही नहीं सोचा था

"मुझे उसी दिन ही शक हो गया था जब मैंने देखा कि कुछ लोग तुम्हारे कमरे में बिस्तर लेकर आए थे और मैंने देखा कि एक आदमी सूट पहने हुए कमरे में आया था, मुझे शक था कि यह तुम ही हो क्योंकि यहाँ कोई भी बिजनेस सूट नहीं पहनता" उसकी माँ ने कहा

"मैंने भी यही सोचा था के शायद यहा नॉर्मल कपड़े ज्यादा ठीक रहेंगे लेकिन देर हो गई" एकांश ने पकड़े जाने पर हल्के से मुसकुराते हुए कहा

"और मैंने एक बार तुम्हें चुपके से अंदर आते हुए भी देखा था, तभी मुझे समझ में आया कि तुम ही यहां रहने आए हो"

एकांश कुछ नहीं बोला

"लेकिन तुम छिप क्यू रहे हो?" उन्होंने उससे पूछा.

"अगर अक्षिता को पता चल गया कि मैं यहा हूँ तो वो फिर से भाग सकती है और मैं नहीं चाहता कि वो अपनी ज़िंदगी इस डर में जिए कि कहीं मैं सच न जान जाऊँ और बार-बार मुझसे दूर भागती रहे, मैं तो बस यही चाहता हु कि वो अपनी जिंदगी शांति से जिए" एकांश ने कहा और अक्षिता की मा ने बस एक स्माइल दी

“तुम अच्छे लड़के को एकांश और मैं ऐसा इसीलिए नहीं कह रही के तुम अमीर हो इसके बावजूद यह इस छोटी सी जगह मे रह रहे हो या और कुछ बल्कि इसीलिए क्युकी मैंने तुम्हें देखा है के कैसे तुमने अभी अभी अक्षिता को संभाला उसकी देखभाल की” अक्षिता की मा ने कहा

"ऐसा कितनी बार होता है?" एकांश अक्षिता की ओर इशारा करते हुए पूछा।

"दवाओं की वजह से उसे थोड़ा चक्कर आता है, लेकिन वो बेहोश नहीं होती वो तब बेहोश होती है जब वो बहुत ज्यादा स्ट्रेस में होती है" उसकी माँ दुखी होकर कहा

"वो स्ट्रेस में है? क्यों?"

लेकिन अक्षिता की मा ने कुछ नहीं कहा

"आंटी प्लीज बताइए वो किस बात से परेशान है?" एकांश ने बिनती करते हुए पूछा

"तुम्हारी वजह से”

"मेरी वजह से?" अब एकांश थोड़ा चौका

" हाँ।"

"लेकिन क्यों?"

"उसे तुम्हारी चिंता है एकांश, कल भी वो मुझसे पूछ रही थी कि तुम ठीक होगे या नहीं, वो जानती है कि उसके गायब होने से तुम पर बहुत बुरा असर पड़ेगा वो सोचती है कि तुम उससे और ज्यादा नफरत करोगे लेकिन वो ये भी कहती है कि तुम उससे नफरत करने से ज्यादा उसकी चिंता करोगे उसने हाल ही में मीडिया में भी तुम्हारे बारे में कुछ नहीं सुना था जिससे वो सोचने लगी कि तुम कैसे हो सकते हो और तुम्हारे सच जानने का डर उसे खाए जा रहा है इन सभी खयालों और चिंताओं ने उसे स्ट्रेस में डाल दिया और वो शायद इसी वजह से बेहोश हो गई होगी।" उसकी माँ ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला बस अक्षिता को देखता रहा और फिर उसने उसकी मा से कहा

"आंटी क्या आप मेरा एक काम कर सकती हैं?"

"क्या?"

"मैं यहा रह रहा हु ये बात आप प्लीज अक्षिता को मत बताना"

"लेकिन क्यों? "

"उसे ये पसंद नहीं आएगा और हो सकता है कि वो फिर से मुझसे दूर भागने का प्लान बना ले"

"लेकिन तुम जानते हो ना ये बात उसे वैसे भी पता चल ही जाएगी उसे पहले ही थोड़ा डाउट हो गया है" उन्होंने कहा

"जानता हु लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं है आप प्लीज उसे कुछ मत बताना, उसे खुद पता चले तो अलग बात है जब उसे पता चलेगा, तो मैं पहले की तरह उससे बेरुखी से पेश आ जाऊंगा मेरे लिए भी ये आसान हो जाएगा और उसे यह भी नहीं पता होना चाहिए कि मैं उसे यहाँ लाया हूँ और दवा दी है"

अक्षिता की मा को पहले तो एकांश की बात समझ नहीं आई लेकिन फिर भी उन्होंने उसने हामी भर दी

"वैसे इससे पहले कि वो जाग जाए तुम उसे उसके कमरे मे छोड़ दो तो बेहतर रहेगा" अक्षिता की मा ने कहा जिसपर एकांश ने बस हा मे गर्दन हिलाई और वो थोड़ा नीचे झुका और अक्षिता को अपनी बाहों में उठा लिया उसकी माँ कुछ देर तक उन्हें ऐसे ही देखती रही जब एकांश ने उनसे पूछा कि क्या हुआ तो उसने कहा कि कुछ नहीं हुआ और नीचे चली गई

एकांश उनके पीछे पीछे घर के अंदर चला गया अक्षिता की माँ ने उसे अक्षिता का बेडरूम दिखाया और वो अंदर गया और उसने अक्षिता को देखा जो उसकी बाहों में शांति से सो रही थी

अक्षिता की माँ भी अंदर आई और उन्होंने देखा कि एकांश ने अक्षिता को कितने प्यार से बिस्तर पर लिटाया और उसे रजाई से ढक दिया उसने उसके चेहरे से बाल हटाए और उसके माथे पर चूमा..

एकांश खड़ा हुआ और उसने कमरे मे इधर-उधर देखा और वो थोड़ा चौका दीवारों पर उसकी बहुत सी तस्वीरें लगी थीं कुछ तो उसकी खूबसूरत यादों की थीं, लेकिन बाकी सब सिर्फ उसकी तस्वीरें थीं...

"वो जहाँ भी रहती है, अपना कमरा हमेशा तुम्हारी तस्वीरों से सजाती है" अक्षिता की माँ ने एकांश हैरान चेहरे को देखते हुए कहा

एकांश के मुँह शब्द नहीं निकल रहे थे वो बस आँसूओ के साथ तस्वीरों को देख रहा था

"वो कहती है कि उसके पास अब सिर्फ यादें ही तो बची हैं" सरिता जी ने अपनी बेटी के बालों को सहलाते हुए कहा

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले और इस बार उसने उन्हें छिपाने की ज़हमत नहीं उठाई

वो उसके कमरे से बाहर चला गया, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी......



क्रमश:
Amezing. Bahot wakt laga vapas lotne me. Pichhe ka update ek bar padha aur story ki ridam vapas aa gai. Sayad aage aur kuchh update rukna padega is tadap ko mitane ke lie. Love it. Wonderful update
 

kas1709

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Shetan

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Update 35



"मेरा रास्ता छोड़ो"

"नहीं!"

"मैंने कहा हटो!"

"नही!"

"क्या चाहती हो?"

"ये जानना के तुम यहा क्या कर रहे हो?"

"इससे तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है"

"न न न मेरा इससे पूरा लेना देना है तो चुप चाप मेरे सवाल का जवाब दो"

एकांश अपने ऑफिस जाने की कोशिश कर रहा था जबकि अक्षिता उसके रास्ते में खड़ी थी और तब तक हटने के मूड में नहीं थी जब तक एकांश उसके सवालों के जवाब नहीं दे देता, वह सीढ़ियों पर अड़ी हुई उसका रास्ता रोके खड़ी थी

"हटो यार" एकांश उसे अपने रास्ते से बाजू हटने की कोशिश करते हुए कहा लेकिन उसका अक्षिता पर कोई असर नही हुआ

"नहीं" अक्षिता ने कहा

"अक्षिता देखो अगर तुम अभी नहीं हिली, तो मैं कुछ ऐसा करूँगा जो तुम्हें पसंद नहीं आएगा"

"हुह, तुम मेरे घर में हो तो मुझे धमकाओ मत" अक्षिता ने भी उसी टोन में जवाब दिया

और फिर एकांश ने वो किया जो अक्षिता ने सोचा भी नही था, एकांश ने अक्षिता को किसी बोरी की तरह अपने कंधे पर उठा लिया, अब अक्षिता का वजन वैसे ही पहले से थोड़ा कम हो चुका था इसीलिए उसे खास तकलीफ भी नही हुई और वो वैसे ही सीढ़िया उतरने लगा वही अक्षिता उसकी पीठ पर मारते हुए एकांश पर चिल्लाने लगी

"मुझे नीचे उतारो!" अक्षिता ने चिल्लाकर कहा एकांश की पीठ पर मुक्के मारते हुए कहा

"जब तक मैं सीढ़ियों से नीचे नहीं उतर जाता, तब तक नहीं" एकांश ने उतनी ही शांति से जवाब दिया

"मुझे अभी के अभी नीचे उतारो!"
इसका एकांश कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि मुस्कुराया और नीचे उतरने लगा वही अक्षिता उसके हाथ से छूटने के लिए छटपटाने लगी

"हिलना बंद करो वरना यही पटक दूंगा" एकांश ने वापिस धमकाया और इस बार इसका अक्षिता पर असर भी हुआ और उसने हिलना बंद कर दिया..
और जैसे ही अक्षिता ने अपने हाथ पाव चलाना छोड़े एकांश पे चेहरे पर एक हल्की सी स्माइल आ गई, दोनो एकदूसरे का चेहरा नही देख पा रहे थे लेकिन अक्षिता एकांश के हावभाव समझ गई और आखिरकार जब वे गेट के पास पहुंचे तो उसने उसे नीचे उतार दिया, अक्षिता का थोड़ा सर घुमा लेकिन उसने अपने आप को संभाला और एकांश को गुस्से से देखने लगी

"ये क्या हरकत थी एकांश" उसने अपना सिर पकड़े हुए कहा

"तुमने मुझे मजबूर किया तुम हट जाती तो मैं ऐसा नही करता" एकांश ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा और वहा से जाने के लिए मुड़ा
अक्षिता कुछ देर जाते हुए देखता एकांश के देखती वही खडी रही और फिर होठों पर मुस्कान लिए अपने घर के अंदर चली गई।

"तुम ऐसे मुस्कुरा क्यों रही हो?" अक्षिता जब चेहरे पर स्माइल लिए घर में दाखिल हुई तो उसकी मां ने उसे पूछा

"कुछ.. कुछ नही बस ऐसे ही" अक्षिता ने इधर उधर देखते हुए कहा

"मैंने अभी अभी देखा है तुम दोनो को" सरिताजी बोलते हुए रुकी, उन्होंने अक्षिता को देखा फिर आगे कहा, "और वो अच्छा लड़का है, और मुझे पसंद भी है" सरीताजी ने मुस्कुराते हुए कहा

"माँ! प्लीज़!"

"क्या?? वो मेरी बेटी को खुश रखता है, और हर माँ अपनी बेटी के लिए ऐसा दामाद चाहती है जो इतना सुन्दर हो और जिसका दिल भी सोने जैसा हो" सरीता जी ने कहा
अक्षिता अपनी मां की बात सुन हस पड़ी, शायद वो अपनी बेटी की शादी उसके पसंदीदा लड़के एकांश से होने का सपना देख रही थी और है सोचते ही अक्षिता का चेहरा अचानक उतर गया और वह अपनी किस्मत पर उदास होकर मुस्कुराने लगी, वो कभी भी अपनी और अपनी मां की ये इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी,

"हंसो मत अक्षु, मैं सीरियस हु" सरिता जी बात करने के साथ साथ घर के काम भी कर रही थी

"मां आप जानती है मेरी किस्मत में ये खुशी नही है" अक्षिता ने धीमी आवाज़ में कहा और अपनी मां को अपनी ओर देखने पर मजबूर कर दिया

"तुम भी खुश रहने की हकदार हो अक्षिता" सरिता जी ने कहा

"वापिस वही बता मत शुरू करो मां आप मेरी जिंदगी का सच जानती है इसीलिए प्लीज मेरी शादी के बारे में सपने मत देखो मैं अपनी कुछ पल को खुशी के लिए किसी की जिंदगी खराब नही करूंगी, खासकर एकांश

की।" अक्षिता ने सख्ती से कहा

" लेकिन....."

"नहीं मां, क्या आप भूल गई कि हम शहर से क्यों भागे थे? हम इसलिए भागे क्योंकि मैं एकांश की ज़िंदगी बर्बाद नहीं करना चाहती और उसे सच्चाई पता नहीं चलनी चाहिए, लेकिन फिर वो अचानक यहा क्या कर रहा है? वो यहा क्यों आया? उसके जैसा अमीर आदमी इतनी छोटी जगह में क्यों रह रहा है? मेरे लिए? क्या उसे सच्चाई पता है? नही ये नही हो सकता" बोलते बोलते अक्षिता घबराने लगी थी उसका आवाज भी ऊंचा हो गया था वही अब सरिताजी को डर लग रहा था के कही अक्षिता को पैनिक अटैक ना आ जाए

"अक्षिता, बच्चे शांत हो जाओ! मैंने उससे पूछा है कि वो यहा क्यों रह रहा है, उसने बस इतना कहा कि वह यहा इसलिए रुका है क्योंकि उसे अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए साइट के पास रहना था और यह प्रोजेक्ट कंपनी के लिए बहुत बड़ी बात है इसलिए उसने ये जगह किराए पर ली क्योंकि ये उसके ऑफिस और साइट के बहुत पास है" सरिता जी ने उसे पैनिक अटैक से बचाने के लिए शांति से समझाया

"ओह" अक्षिता ने कहा लेकिन अभी भी उसे इस बारे में थोडा डाउट था, लेकिन फिलहाल उसने इस बता को यही छोड़ देने का फैसला किया

******

ऑफिस में एकांश ने जब रोहन और स्वरा के बताया के उसके अक्षिता के घर रहने का भेद खुल गया है तो ये जान कर स्वरा थोड़ी खुश हुई क्युकी वो एकांश की इस बात से थोड़ी खफा थी के वो छुप रहा था साथ ही उसने अक्षिता से मिलने को जिद पकड ली थी और एकांश को ये कह कर समझाना पडा के अक्षिता अभी उसके वहा रहने को पचा नहीं पाई है ऐसे में इन लोगो को वहा देख वो डेफिनेटली भाग जायेगी जिससे obviously स्वरा खुश नही थी लेकिन एकांश की बात मानने के अलावा उसके पास फिलहाल कुछ नही था उसकी उसकी नजर में एकांश को ये हरकते बिलकुल ही बेवकूफाना थी जो की कुछ हद तक सही भी था,

शाम को एकांश हमेशा को तरह गली के मोड पे अपनी कार से उतरा और ड्राइवर से अगले दिन जल्दी आने कहा और वो आराम से घर की ओर चल पड़ा, उसके दिमाग में कई बातें घूम रही थीं की कैसे कुछ ही दिनों में उसकी जिंदगी एकदम बदल गई थी, ऐसा नहीं था कि उसे इससे कोई परेशानी है, लेकिन वो आने वाले कल को लेकर डर रहा है

अपने ख्यालों से एकांश ने नेगेटिव ख्यालों को किनारे किया, वो घर पहुंच गया था और ऊपर जाते समय उसने शोर या यू कहें कि एक आवाज़ सुनी, उसने इधर-उधर देखा तो उसे एक लड़की दिखी जो शायद अभी भी कॉलेज में पढ़ रही होगी और सामने की बिल्डिंग की छत पर खड़ी होकर उसे देख हाथ हिला रही थी

एकांश ने अपने पीछे की ओर देखा कि कोई है या नहीं, लेकिन वहा कोई नहीं था, उसने फिर से उलझन में उसकी ओर देखा और देखा कि वह मुस्कुराते हुए उसकी ओर ही हाथ हिला रही थी, एकांश समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे और इसलिए उसने वही किया जो एक अच्छा पड़ोसी करता है, उसने भी उस लड़की को देख हाथ हिला दिया..

और बस... एकांश का रिस्पॉन्स देख वो लड़की खुशी से उछल पड़ी और उसे एक फ्लाइंग किस दे डाली
और जब उस लड़की की ये हरकत देख एकांश एकदम स्तब्ध हो गया, उसे समझ ही नहीं आराहा था के अभी अभी ये हुआ क्या, उसने थोड़ी झुंझलाहट में अपना सिर हिलाया और अपने कमरे की ओर मुड़ा ,लेकिन आश्चर्य से उसकी पलकें तब झपकी जब उसने अपने सामने क्योंकि अक्षिता को खड़ा देखा जो अपने हाथों को कमर पर रखे और चेहरे पर हल्का गुस्सा लिए उसे देख रही थी
एकांश ने अपने चेहरे पर बगैर कोई भाव लाए नजर भर के अक्षिता को देखा और फिर उसके घूरने को इग्नोर करते हुए उसे हल्का सा धक्का देकर अपने कमरे के अंदर चला गया

"तुम क्या कर रहे थे?" अक्षिता ने एकांश के पीछे कमरे में आते हुए पूछा

"क्या?"

"तुमने उस लड़की की ओर हाथ क्यों हिलाया?" अक्षिता ने अपने दाँत पीसते हुए पूछा

"पहले तो उसने मेरी ओर हाथ हिलाया और फिर मैंने उसकी ओर, क्योंकि मुझे लगा कि कोई अगर मुझे ग्रीट कर रहा है और मैं ना करू तो ठीक नही लगेगा" एकांश ने कहा और अपनी फाइल्स और लैपटॉप टेबल पर रखने लगा

"वो तुम्हें ग्रीट नहीं कर रही थी!" अक्षिता झल्लाकर कहा

"हं?"

"वो तुमपे लाइन मार रही थी"

एकांश ने पहले तो अक्षिता को देखा लेकिन फिर उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई

"ओह.. अच्छा... ओके... तो.. तुम्हें इससे क्या लेना-देना है?" एकांश ने पूछा लेकिन अक्षिता कुछ पलों तक कुछ नही बोली फिर फिर

"देखो.. वैसे तो मुझे कुछ फर्क नही पड़ता लेकिन तुमने उसे देखकर हाथ हिलाया और अब वो सोच रही होगी कि तुम्हें उसमें दिलचस्पी है" अक्षिता ने कहा

"तो सोचने दो.. maybe I am interested" एकांश ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा वही अक्षिता इसे शॉक होकर देखने लगी

"वैसे मेरे आने से पहले तुम यहा क्या कर रही थीं?" एकांश ने पूछा

"एकांश तुम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो? तुमने अपना कमरा क्यों नहीं बंद किया?"

एकांश कभी अपना कमरा बंद नही करता था क्युकी सरिता जी रोज उसके कमरे में आती थी और उसके आने से पहले ही वो उसका खाना कमरे में रख जाति थी, उन्हें आने जाने में आसानी ही इसीलिए एकांश कमरे को खुला छोड़ जाता था

"मैंने ताला नहीं लगाया क्योंकि मैं जानता हूं कि कुछ नहीं होगा।" एकांश ने आराम से कहा

"और अगर तुम्हारा कुछ सामान खो गया तो?"

"मेरे पास अब खोने को कुछ नहीं बचा है" एकांश ने धीमे से फुसफुसाकर कहा लेकिन अक्षिता ने सुन लिया
अक्षिता कुछ नही बोली वही एकांश बस उसे देखता रहा और फिर आगे बोला

"कुछ नही खोने वाला तुम भी यही हो और तुम्हारे पेरेंट्स भी इसलिए कोई भी अंदर आकर लूट तो नहीं सकता ना और मुझे तुम लोगों पर भरोसा है" एकांश ने कहा और मुड़ गया
और इससे पहले कि वह कुछ कह पाती, एकांश ने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए, जिससे अक्षिता एकदम चौकी

"तुम क्या कर रहे हो? "

"चेंज कर रहा हु"

"मेरे सामने? "

एकांश कुछ नही बोला उसके अपने शर्ट के बटन खोले और बस पलट गया, उसकी वेल मेंटेंड बॉडी अक्षिता के सामने थी और वो उसे ऐसे देखकर थोड़ा लेकिन अक्षिता की नजरे भी उसपर से नही हट रही थी

"मुझे चेकआउट करके हो गया?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा

"मैं तुम्हें नहीं देख रही थी"

"Yeah" एकांश ने कहा और अपनी बेल्ट खोलना शुरू कर दिया

"रुको!" अक्षिता चिल्लाई.

"क्या?" उसने चिढ़कर पूछा

एकांश थका होने की वजह से बस आराम करना चाहता था और अभी अक्षिता को अपने सामने देख उसे गले लगाने के लिए उसका मन मचल रहा था और वो इस समय बस अपने आप को कंट्रोल कर रहा था

"मैं अभी भी तुम्हारे सामने हू, कुछ तो शर्म करो?" अक्षिता ने कहा

"यह मेरा कमरा है"

"पता है!"

"तो जाओ फिर निकलो यहा से" एकांश ने कहा

"और अगर मैं ऐसा न करू तो?"

" तब..... "

यह कहते हुए एकांश ने अपनी शर्ट पूरी तरह से उतारनी शुरू कर दी

"नही नही..." यह कह कर अक्षिता वहा से निकल गई

एकांश ये समझ गया था के अक्षिता को उस लड़की से जरूर जलन हुई थी और इसलिए वो यू उससे लड़ने खड़ी थी और यही सोच एकांश के चेहरे पर मुस्कान आ गई
उधर अक्षिता का दिल तेज़ी से धड़क रहा था उसके दिमाग में बस एकांश छाया हुआ था वही एकांश को देख हाथ हिलाने वाली लड़की का खयाल आते ही उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए थे उसने मन ही मन उस लड़की को ढेरो गालियां दी, एक नजर एकांश के कमरे की ओर देखा और फिर अपने घर में चली गई..


क्रमश:
Amezing update adirishi. Amezing maza aa gaya
 

Shetan

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Update 39



होप.....

मैने होप खो दिया है अंश.....

मैं आजकल उलझन में हूँ, तुम्हारा मेरे साथ अच्छा व्यवहार करना, मुझे देखकर मुस्कुराना, मुझसे ठीक से बात करना, इन सब बातों ने मुझे उलझन में डाल दिया है..

मैं उलझन से ज़्यादा डरी हुई हू... तुम्हारी मुस्कुराहट से... वो मुझे ऐसी उम्मीद देती है जो मैं नहीं चाहती...

हाल ही में मेरे चेकअप के दौरान डॉक्टर ने मुझे बताया है के मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है, कभी भी कुछ भी हो सकता है, मैं तुम्हारे बारे में सोचकर इतना रोई कि मैं तुम्हें फिर से खो दूंगी

मैं जीना चाहती हू अंश, मैं भविष्य की चिंता किए बिना खुशी से सास लेना चाहती हू, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती... हर दिन तुम्हें देखकर मुझे तुम्हारे साथ और जीने की इच्छा होती है..

लेकिन मैं तुम्हारे साथ ऐसा नहीं कर सकती... मैं तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकती, मैं चाहती हूँ कि तुम खुश रहो, चाहे मैं रहूँ या न रहूँ.. इसीलिए मैंने यह फ़ैसला लिया अंश

मुझे पता है कि तुम परेशान होगे और शायद मुझसे और भी नफ़रत करने लगोगे, लेकिन याद रखना कि मैं हमेशा तुमसे प्यार करूंगी..... अपनी आखिरी साँस तक सिर्फ़ तुमसे..

मैंने एक डिसीजन लिया है और मुझे उम्मीद है कि मैं शायद इसे पूरा कर पाऊंगी, आज जब मैंने तुम्हें देखा तो मैं तुम्हें देखती ही रह गई,

आज जब मैं उस पार्क के पास से गुजर रही थी जहा हम अक्सर मिला करते थे तो वही तुम मुझे वहा भी मिल गए, तुम मुझपर गुस्सा थे के में अंधेरे में सड़क पर अकेली चल रही थी लेकिन मैं खुश थी के एक बार और तुम्हे देख तो पाई, तुम्हारे साथ थोड़ा वक्त बिता पाई, मुझे नहीं पता आगे मैं तुम्हे कभी देख भी पाऊंगी या नही और शायद इसीलिए मैंने तुम्हे गले लगा लिया था, ये सोच कर के शायद अब हम दोबारा कभी ना मिले

मुझे माफ़ कर दो अंश , मुझे पता है कि ऐसा करके मैं तुम्हें और मेरे दोस्तों को दुख पहुंचा रही हु लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है

मै जा रही हु.....

बाय अंश...

आई लव यू



एकांश अक्षिता डायरी का आखिरी पन्ना पढ़ते हुए चुपचाप रो पड़ा उसे लगा कि उस समय उसके अंदर कितना कुछ चल रहा था, फिर भी वो अपनो के लिए मुस्कुरा रही थी एकांश मन में उथलपुथल लिए अक्षिता की उस डायरी को सीने से लगाकर वैसे ही सो गया..



******

अलार्म की आवाज़ सुनकर एकांश की नींद खुली, उसने अपना फ़ोन देखा और पाया कि वो रिमाइंडर अलार्म था, फिर उसे याद आया कि आज अक्षिता का डॉक्टर के पास चेकअप है,

वो अपने बिस्तर से उठकर जल्दी से तैयार हो गया और नीचे आकर दरवाजे के पास खड़ा हो उसका इंतजार करने लगा,

उसने अपनी घड़ी देखी और पाया कि सुबह के 10 बज चुके थे और अपॉइंटमेंट सुबह 11 बजे का था, इसलिए उन्हें वहाँ जल्दी पहुँचना था

"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने दरवाजे के पास खड़े एकांश को देखकर पूछा

"उह...." एकांश समझ नहीं आया कि क्या कहे

"एकांश, क्या तुम कही बाहर जा रहे हो बेटा?" सरिताजी ने मुस्कुराते हुए एकांश से पूछा

"हा आंटी"

तभी अक्षिता अपना हैंडबैग लेकर अपनी मा को बाय कहती हुई बाहर आई

"I'll drop you.." एकांश ने अक्षिता ने कहा निस्पर वो थोड़ा ठिठकी

"उम्म... नहीं, मैं अकेले चली जाऊंगी।" अक्षिता ने एकांश की।और बगैर देखे कहा

"मैं सिटी साइड ही जा रहा हूँ मैं तुम्हें वहाँ तक छोड़ दूँगा" एकांश ने कहा

"मैंने कहा न नहीं" अक्षिता ने सख्ती से कहा और आगे बढ़ है

"मैंने कहा कि मैं तुम्हें ड्रॉप रहा हूँ और अब बात फाइनल हो गई" एकांश ने अक्षिता के आगे जाते हुए बात को आगे ना खींचते हुए कहा

"तुम मुझे इस तरह हुकुम नहीं दे सकते" अक्षिता गुस्से से उसकी ओर बढ़ते हुए चिल्लाई

"बिलकुल दे सकता हु अब चलो" उसने अपनी कार की ओर इशारा करते हुए कहा

" नहीं!"

" हाँ!"

" नहीं।"

" हाँ।"

"नहीं।"

"हाँ।"

"नहीं।"

"तुम्हें देर हो जाएगी अक्षिता अब बहस बंद करो और कार में बैठो"

"एकांश तुम मुझे इस तरह मजबूर नहीं कर सकते मैं तुम्हारे साथ नहीं आना चाहती और मैं नहीं आऊँगी"

"अक्षिता प्लीज, बहस करना बंद करो और जो मैं कहता हूँ वो करो" उसने गुस्से से कहा वही अक्षिता को उसकी आंखों चिंता नजर आ रही थी

और वो उसे चिंतित नहीं करना चाहती लेकिन वो उसे ये भी नहीं बता सकती कि वो कहां जा रही है

"अक्षु चली जाओ उसके साथ तुम्हें देर हो रही है और तुम्हें अंधेरा होने से पहले घर वापस भी आना है" दोनो के बीच बहस रुकती ना देख सरिताजी को ही बीच में बोलना पड़ा

"लेकिन माँ...." लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी ही नही करने दी

" अब चलो।" एकांश ने अपनी कार में बैठते हुए कहा

कुछ बुदबुदाते हुए अक्षिता गुस्से से कार में बैठ गई और एकांश सरिताजी को देखकर मुस्कुराया वही अक्षिता ये सोचकर चिंता में थी कि अब क्या होगा

अक्षिता के गाड़ी में बैठते एकांश ने राहत की सांस ली क्योंकि अब वो टाइम पर हॉस्पिटल पहुँच सकते थे, वो जानता था कि अक्षिता के चेहरे पर टेंशन क्यों था वो नही चाहती थी के एकांश को पता चले वो अस्पताल जा रही है, लेकिन एकांश उसे इस हालत में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में नही जाने दे सकता था

"तुम्हारी कार आज यहाँ क्यों है? रोज़ तुम्हारा ड्राइवर आकर तुम्हे पिक करता है ना?"

"वो इसीलिए के मैंने ड्राइवर से कहा था की वो कार यहीं छोड़कर चला जाए क्योंकि अब से मैं गाड़ी चलाऊंगा"

एकांश का जवाब सुन अक्षिता कुछ नही बोली और दोनो पूरे रास्ते चुप ही रहे, दोनो के ही दिमाग में अपने अपने खयाल चल रहे थे

******

वो लोग हॉस्पिटल के इलाके के दाखिल हो चुके थे और जैसे ही अक्षिता ने देखा वो लोग हॉस्पिटल पहुंचने ही वाले थे वो थोड़ा घबराई और उसने एकांश को एकदम गाड़ी रोकने कहा

"रुको रुको, मुझे यही उतरना है" अक्षिता ने अपनी बाईं ओर एक मॉल कीमोर इशारा किया

"यहाँ?"

"हाँ, वो... मुझे... थोड़ी शॉपिंग करनी थी" अक्षिता ने वापिस मॉल की ओर इशारा करते हुए कहा

अक्षिता क्या करने की कोशिश कर रही है ये एकांश समझ गया था और इस बात का उसे गुस्सा भी आया था लेकिन वो इस वक्त बहस नही करना चाहता था इसीलिए उसने तुरंत गाड़ी रोक दी और वो तुरंत नीचे उतर गई और उसके वहा से जाने का इंतज़ार करने लगी

एकांश बिना अक्षिता की ओर देखे और उससे कुछ भी कहे बिना वहां से तेजी से चला गया, उसे अक्षिता के झूठ बोलने पर बुरा लगा लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नहीं था, अक्षिता तब तक वहीं रुकी रही जब तक एकांश की कार उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गई और फिर अस्पताल की ओर चल पड़ी जो सिर्फ़ 5 मिनट की दूरी पर था

इधर एकांश ने हॉस्पिटल की पार्किंग में अपनी कार रोकी और गुस्से में अपना हाथ स्टीयरिंग व्हील पर पटक दिया

'वो मुझे अन्दर क्यों नहीं आने दे सकती? क्यों सच नही बोल सकती? तब चीजे कितनी आसान हो जाएगी लेकिन इस बारे में इससे बात करू भी तो कैसे करू वो टेंशन में आ जाएगी इससे तबियत और बिगड़ जाएगी'

एकांश ने मन ही मन सोचा और अपनी आँखें बंद कर लीं और पार्किंग में उसका इंतज़ार करने लगा

इधर अक्षिता हॉस्पिटल में पहुंच कर अपनी बारी का इंतजार करने लगी और जैसे ही उसका नंबर आया वो डॉक्टर के केबिन में चली गईवह अस्पताल में गई

"हेलो डॉक्टर अवस्थी" उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा

"आओ अक्षिता, कैसी है आप?" डॉक्टर ने पूछा

"बढ़िया" अक्षिता ने कहा जिसके बाद डॉक्टर ने उसका रेगुलर चेकअप करना शुरू किया, आंखे, ब्लडप्रेशर यही सभी रेगुलर चेकअप वही अक्षिता थोड़ी डरी हुई दिख रही थी के डॉक्टर क्या कहेगा

"You're good" डॉक्टर ने कहा

"क्या?" अक्षिता को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ

"अक्षिता, तुम्हारी सेहत में सुधार हो रहा है और ये साफ दिख रहा है, पिछले चेकअप के हिसाब से तुम अब बेटर लग रही हो, तुम्हारी स्किन का कलर भी पहले से कम पीला है, तुम्हारी आँखों के नीचे काले घेरे और बैग नहीं हैं, ब्लड प्रेशर भी नॉर्मल है..... इन सबका मतलब है कि तुम टेंशन फ्री हो जो एक बहुत अच्छा संकेत है और इसका तुम्हारे हेल्थ पर भी बहुत अच्छा असर पड़ेगा" डॉक्टर ने कहा

"थैंक यू डॉक्टर, शायद आपकी नई दवाइयां मुझ पर अच्छा असर दिखा रही हैं"

"हा ऐसा कह सकते है लेकिन अक्षिता, तुममें जो सुधार हुआ है, वह सिर्फ़ दवाइयों की वजह से नहीं है" डॉक्टर ने कहा

"आप कहना क्या चाहते है डॉक्टर?"

"पहले तुम्हारे कुछ टेस्ट कर लेते है फिर इस बारे में बात करेंगे" जिसके बाद उन्होंने अक्षिता के कुछ टेस्ट्स किए कुछ एक्स-रे और MRI के सत्र समाप्त होने के बाद, वो डॉक्टर के केबिन में वापस आ गए और कुछ ही समय में अक्षिता के रिपोर्ट्स भी उनके सामने थे

"See this is what I call improvement" डॉक्टर ने रिपोर्ट्स देखते हुए कहा वही अक्षिता अब भी थोड़ा डर रही थी लेकिन कुछ बोली नहीं तो डॉक्टर ने बोलना शुरू किया

"अक्षिता, अब शायद एक डॉक्टर के मुंह से ये बात सुन के तुम्हे अजीब लग सकता है, लेकिन इस दुनिया में दवाओं के अलावा भी ऐसी चीजे है जो आपको हिल कर सकती है, ऑफकोर्स दवाइयां जरूरी है लेकिन कुछ उससे भी ज्यादा जरूरी है"

"क्या?"

"प्यार..."

डॉक्टर के शब्द सुन अक्षिता सन्न रह गई

"प्यार घाव भर देता है, जिन लोगों से हम प्यार करते हैं उनसे मिलने वाला प्यार हमें यह भूला देता है कि हम क्या दुख झेल रहे हैं और जब हम उनके साथ होते हैं तो हम खुश होते है, जब आप अपने प्यार के साथ होते हैं तो आपको जो खुशी मिलती है वो आपके मन और आत्मा के सबसे गहरे घावों को भर देती है" डॉक्टर ने कहा और अक्षिता की ओर देखा जो उन्हें ही देख रही थी

"मैं किसी फिल्म की कहानी या किसी फेरी टेल की बात नहीं कर रहा हु ऐसा कई बार हुआ भी है, कभी-कभी आपको बस प्यार की जरूरत होती है..... सिर्फ प्यार की"

"जब आप अपने अपनो के साथ होते हैं तो आपको जो खुशी मिलती है, वह आपके शरीर में कुछ हार्मोन उत्पन्न करती है जो टेंशन को दूर करता है, अपने आप को ही देखो तुम टेंशन फ्री लग रही हो जो की हमारे ट्रीटमेंट के लिए काफी अच्छा है" डॉक्टर ने कहा

डॉक्टर की बातो पर अक्षिता ने गौर किया तो पाया
कि आजकल वो बहुत खुश है, उसे बुरे सपने नहीं आते और सोते समय वो रोती नहीं थी उसे चक्कर या बेचैनी भी नहीं होती थी, उसे अब सिर दर्द नहीं होता था, वह उठकर डॉक्टर के केबिन में लगे आईने के पास गई, उसने आईने में अपने आप देखा और उसे देखकर पलकें झपकाई, उसका चेहरा पहले की तरह सामान्य था और उसकी आँखों के नीचे कोई झुर्रियाँ या काले घेरे नहीं थे।,फिर उसे एहसास हुआ कि आजकल वह रोज़ाना शांति से सो रही थी और उसके चेहरे पर मुस्कान थी उसकी आँखों और चेहरे पर चमक लौट आई थी..

डॉक्टर ने ये बातें इसलिए नहीं कही क्योंकि उन्हें पता था कि एकांश अक्षिता से प्यार करता है, बल्कि इसलिए कही क्योंकि उनके सामने सुधार साफ तौर पर दिख रहा था एकांश उन्हें खुश रख रहा था और साथ ही उसकी जिंदगी को टेंशन फ्री भी कर रहा था

अक्षिता ने आईने में अपने आप को देखा और फिर डॉक्टर को देखा और फिर उसके ध्यान में आया के ये बस एक इंसान की वजह से था... एकांश की वजह से...


एकांश के बारे में सोचते ही उसकी आंखे भरने लगी थी वो इन दिनों खुश थी क्योंकि वह उसे खुश कर रहा था, उसे रोज़ देखना, उससे बात करना, उससे लड़ना, उसे चिढ़ाना, उसके साथ सितारों को निहारना..... एकांश के वहा होने से अक्षिता ने उसके बारे में सोचना चिंता करना बंद कर दिया था, एकांश के साथ होने से वो वापिस जिंदा महसूस करने लगी थी

इन सभी भावनाओं के बीच, जो वो अभी महसूस कर रही थी एक और फीलिंग थी जिसे वो नजरंदाज नहीं कर सकती थी जो उसके दिल में उठ रही थी...
होप


जीने ही आशा...

क्रमश:
Akshita aur ansh ki chemistry ab bhi padhne me maza aa raha hai. Akshita khud ko ansh se dur kar ke khud ki tabiyat aur jyada hi khatab kar rahi thi. Amezing update maza aa gaya.
 

Shetan

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Update 42




अक्षिता अपने आस-पास के माहौल को देख रही थी, हर कोई बातें कर रहा था, हंस रहा था, नाच रहा था,मौज-मस्ती कर रहा था,

उसने एकांश की तरफ देखा जो उससे थोड़ी दूर खड़ा किसी से बात कर रहा था, वो एकांश को देख रही थी और खुश थी, आज वो काफी टाइम बाद कुछ अच्छा कुछ नया महसूस कर रही थी, उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो इतने दिनों से मानो पिंजरे में बंद थी, लेकिन अब बाहर आकर लोगों से मिलकर उसे अच्छा लग रहा था, और सबके खास बात ये की जिससे वो पीर करती थी वो उसके साथ था…

एकांश ने अक्षिता की ओर देखा तो पाया कि वो अपने चारों ओर देखकर मुस्कुरा रही थी, वो कीसी मेले मे घूम रहे बच्चे की तरह एक्सईटेड लग रही थी, खुश थी मुस्कुरा रही थी

एकांश ने जिससे वो बात कर रहा था उनसे विद ली और अक्षिता के पास चला आया और उसने उसका हाथ पकड़ा अपने हाथ पर कीसी का हाथ महसूस कर अक्षिता थोड़ा चौकी लेकिन फिर जब उसने देखा के वो एकांश है तो वो थोड़ी शांत हो गई, एकांश उसे ही देख रहा था वही अक्षिता एकांश से नजरे बचाने की कोशिश करते हुते इधर उधर देख रही थी

और तभी अक्षिता ने कुछ ऐसा देखा जिससे वो थोड़ा घबराई और वो डर के मारे थोड़ा पीछे हटने लगी, एकांश ने भी अक्षिता मे आए इस बदलाव को नोटिस किया और उसकी मुस्कान के गायब होने का कारण जानने के लिए उसने अक्षिता की नजरों का पीछा किया तो वो समझ गया के क्या हुआ है और तभी अक्षिता वहा से जाने के लिए मुड़ी लेकिन जा न सकी, एकांश ने उसका हाथ मजबूती से पकड़ रखा था

"कहा जा रही हो?" एकांश ने पूछा

"मेरा हाथ छोड़ो एकांश?" अक्षिता ने धीमी आवाज मे कहा

"क्या? क्यों?"

"मैं.... " अक्षिता ने कुछ बोलते नहीं बन रहा था और अब वो उन लोगों की ओर देख रही थी जो उन दोनों के पास आ रहे थे

"तुम उन्हें देखकर इतने डरी हुए क्यों हो?" एकांश ने पूछा

"क्योंकि मैं उनकी आँखों में अपने लिए नफ़रत नहीं देखना चाहती" अक्षिता ने वापिस धीमी आवाज मे नीचे देखते हुए कहा

"तुम पागल हो गई जो क्या, और वो भला तुमसे नफरत क्यों करने लगे?" एकांश ने कहा

"क्योंकि मैं उन्हें बिना कुछ बताए सब कुछ छोड़ कर आई थी और अब शायद वो...." बोलते बोलते अक्षिता चुप हो गई और वापिस नीचे देखने लगी वही एकांश उसकी इस बात पर हसने के अलावा कुछ ना कर सका

"मैंने कोई जोक मारा क्या जो यू हस रहे हो?" अक्षिता ने एकांश को घूरते हुए पूछा

"नहीं तुम्हारी बेवकूफी पर हास रहा हु"

"छोड़ो यार जाने डू मुझे" अक्षिता ने चिढ़कर कहा और एकांश के हाथ से अपने हाथ छुड़ाने लगी

"तुम्हें पागलपन के दौरे पड़ते है क्या जो सोच रही हो के वो लोग तुमसे नफरत करेंगे, तुम्हें पता भी है कि जब तुम अचानक चली गई थी तो उनलोगों की क्या हालत थी, ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी उन्होंने जहा तुम्हें खोजा ना हो और स्वरा का तो रो रो के बुरा हाल था और तुम सोचती हो कि वो तुमसे नफरत करेंगे?" एकांश ने कहा

"लेकिन.... मुझे नहीं पता कि मैं उनका सामना कैसे करूंगी....." अक्षिता ने वापिस धीमी आवाज मे कहा जीसे सुन कोई भी समझ सकता था के वो काभी भी रो पड़ेगी

"अक्षिता, वो दोस्त है तुम्हारे, बल्कि सबसे अच्छे दोस्त है, देखो तुम्हारे जाने का जो भी कारण हो, वो समझ जाएंगे और ट्रस्ट मी तुमसे मिलकर खुश होंगे ना की तुमसे नफरत करेंगे वैसे कोई तुमसे कभी नफरत कर ही नहीं सकता, अब जाओ और जाकर मिलों उनसे" एकांश ने अक्षिता के आँखों मे देखते हुए उसे समझाते हुए कहा और उसने भी हा मे सिर हिलाया मानो एकांश की बात समझ गई जो जीसे देख एकांश के चेहरे पर भी स्माइल आ गई और अक्षिता उन लोगों की ओर मुड़ी जो अब वहा पहुच चुके थे और उसे ही देख रहे थे लेकिन कुछ बोल नहीं रहे थे

रोहन और स्वरा उन दोनो के सामने खड़े अक्षिता को देख रही थे वही अक्षिता को समझ नही आ रहा था के क्या बोले, कैसे अपने दोस्तो का सामना करे और आखिर स्वरा ने ही वो चुप्पी तोडी

"फिर से हमसे दूर भाग रही थी?" स्वरा ने पूछा, उसके चेहरे पर हल्का सा गुस्सा था और उसकी नजरो से अपने लिए वो गुस्सा देख अक्षिता से आगे कुछ बोलते ही नही बना, वो नीचे देखने लगी, उसकी आंखों में पानी था

"मैं... वो... मैं..." वो हकला रही थी, समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे कैसे कहे और फिर स्वरा ने वो किया जो अक्षिता ने सोचा नही था, अगले ही मिनट स्वरा ने उसे गले लगा लिया

"पागल हो क्या यार अक्षु, ऐसे कोई गायब होता है क्या पता है।हम कितना टेंशन में आ गए थे?" स्वरा अक्षिता को कसकर गले लगाते हुए रो पड़ी यही हाल अक्षिता का भी था, उसने भी स्वरा को कस कर गले लगा लिया

"I missed you" स्वरा ने कहा

"I missed you too"

कुछ देर बाद दोनो अलग हुए और अक्षिता ने स्वरा के आंसू पोछे

"होगया... लॉस्ट लवर्स का मिलाप हो गया?" रोहन ने उनका रोना धोना देख ताना मारते हुए कहा जिसे सुन स्वरा ने उसे घूरकर देखा वही अक्षिता हस पड़ी

"How are you?" रोहन ने अक्षिता को गले लगाते हुए कहा

"एकदम बढ़िया"

"Good..... and you look better too..... that's nice" रोहन ने अक्षिता को देखते हुए कहा जिसपर वो बस मुस्कुरा दी

"हटो यार रोहन बोर कर रहे हो तुम, मुझे मेरी बेस्ट फ्रेंड से बहुत सारी बाते करने है" स्वरा ने रोहन को दूर धकेलते हुए कहा

"अरे! वो मेरी भी तो दोस्त है यार" रोहन ने कहा लेकिन तब तक स्वरा अक्षिता को अपने साथ ले गई थी और इस दौरान एकांश वहीं खड़े होकर बस उन्हें देखकर मुस्कुरा रहा था..

"तुम ठीक हो? तुम्हारी तबीयत कैसी है अब? दवाइयां ठीक से ले रही हो ना? आंटी और अंकल कैसे हैं?" स्वरा ने अक्षिता पे एक के बाद एक सवाल दाग दिए वही अक्षिता बस उसे देख हस रही थी और सोच रही थी के उसने स्वरा इस इस बकबक को कितना मिस किया था

"ठीक है ठीक है..... बस ये बताओ तुम कैसी हो?" स्वरा ने इस बार उसे हसता देख कर सीरियस होकर पूछा

अक्षिता ने एक नजर एकांश की ओर देखा जो रोहन से बात कर रहा था

"मैं ठीक हूं... सच में..." अक्षिता ने मुस्कुराते हुए कहा लेकिन वो अब भी एकांश को देखे जा रही थी

उसे यू देख स्वरा के भी चेहरे पर स्माइल आ गई क्योंकि वो भी जानती थी कि उसकी दोस्त का क्या मतलब था, जब तक एकांश उसके साथ है, अक्षिता खुश है..

और फिर उन सभी बातो का सिलसिला शुरू हुआ जो इन दोनो ने मिस की थी

"अब इससे पहले कि एकांश आकर तुम्हें खींचकर ले जाए, चलो" स्वरा ने कहा और अक्षिता ने एकांश की ओर देखा जो बीच-बीच में उसकी ओर ही देख रहा था, पूरा ध्यान रख रहा था कि वो ठीक है या नहीं स्वरा और अक्षिता भी जाकर रोहन एकांश के पास खड़े हों गए..

"कुछ खाए क्या अब भूख लग रही है?" स्वरा ने कहा जिसपर बाकी सब ने भी सहमति जताई और एकांश ने उन्हें खाने के सेक्शन की ओर चलने का इशारा किया और सब उसके पीछे हो लिया

एकांश अक्षिता के खाने के लिए एक प्लेट में सारी हेल्थी चीजे ले आया था जो के बस सलाद और फ्रूट्स थे जिसे देख अक्षिता ने मुंह बना लिया लेकिन जब उसके मुंह बनाने का एकांश पर कोई असर नहीं हुआ तो उसने चुप चाप वही खा लिया

"आइसक्रीम!" खाना होने के बाद अक्षिता ने अचानक चीखकर कहा जिससे बाकी तीनों चौके

"क्या?" एकांश पूछा

"वो देखो उधर आइस क्रीम है, चलो ना आइस क्रीम खाते है" अक्षिता ने एक और इशारा करते हुए कहा और एकांश का चेहरा थोड़ा टेंशन में आ गया वही रोहन और स्वरा ने भी एकदूसरे को देखा

"अक्षिता बाहर बहुत ठंड है और ऐसे मौसम में तुम्हें आइसक्रीम नहीं खानी चाहिए..... तुम्हें सर्दी लग सकती है" एकांश ने अक्षिता को समझाते हुए कहा

"Whatever मुझे आइस क्रीम खानी है बस" अक्षिता ने ज़िद करते हुए कहा

एकांश ने स्वरा और रोहन की ओर मदद की नजरो से देखा, वो अक्षिता को सेहत के साथ कोई रिस्क नही लेना चाहता था खासकर तब जब उसकी हालत में सुधार हो रहा था

"अक्षिता, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है.... अकेले में" रोहन ने कहा

" लेकिन....."

"प्लीज....." रोहन ने जोर देते हुए कहा

"ठीक है" बोलके अक्षिता रोहन के साथ चली गई

एकांश और स्वरा ने अक्षिता और रोहन की ओर देखा जो कुछ सीरियस होकर बातचीत कर रहे थे एकांश ने देखा कि जब रोहन ने अपनी बात खत्म की तो अक्षिता थोड़ी निराश दिख रही थी और उसका दिल ये सोचकर दुख रहा था कि वो जो चाहती थी वो खा भी नहीं पाई..

"Let's have some desert.." स्वरा ने अक्षिता का मूड ठीक करने के लिए कहा

"नहीं रहने दो" अक्षिता ने कहा

"क्यों?" स्वरा ने पूछा

"मेरा अब कुछ खाने का मन नही है" अक्षिता ने नीचे देखते हुए कहा और कोने में रखे एक सोफे पर जाकर बैठ गई, एकांश को उसे यू मायूस देखना बिलकुल अच्छा नही लग रहा था

रोहन और स्वरा ने एकांश की ओर देखा जो कुछ लोगो से बात कर रहा था और बीच बीच में अक्षिता को भी देख रहा था अक्षिता भी जब वो उसकी ओर देखता तो मुस्कुरा देती, लेकिन एकांश समझ गया था कि वो किसी बात गहन चिंतन में डूबी हुई थी, रोहन किसी ऐसे बंदे से बात कर रहा था जिसे वो कंपनी की मीटिंग के कारण जानता था और स्वरा को एक फोन आया था जिसे वो अटेंड कर रही थी

अक्षिता सोफे पर अकेली बैठी थी और बीच-बीच में वो भी एकांश को देख रही थी साथ ही उन लड़कियों को घूर रही थी जो बेशर्मी से एकांश पर लाइन मार रही थीं,

अक्षिता अभी सोफ़े पर बैठी अपने खयालों मे खोई थी के उसने महसूस किया के कोई उसके बाजू मे आके बैठा है उसने अपने पास बैठे बंदे को देखा जो उसे ही देख रहा था जिसके बाद अक्षिता ने अपने कपड़े ठीक कीये

"what a hot and young woman like you doing here sitting alone?" उस बंदे ने अक्षिता की ओर देख पूछा, उसके इंटेन्शन अक्षिता को सही नहीं लग रहे थे

"it’s none of your business" अक्षिता ने तीखे स्वर मे कहा

"जब बात खूबसूरत लड़कियों की आती है then it’s my business" उसने अक्षिता के शरीर को ऊपर से नीचे देखते हुए कहा

"इक्स्क्यूज़ मी" अक्षिता ने कहा और वहा से जाने के लिए उठ खड़ी हुई और वो वहा से जाने ही वाली थी के उस बंदे से अक्षिता का हाथ पकड़ कर उसे जाने से रोका और अक्षिता अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी

"stop struggling, let’s have some fun... वैसे भी इस साड़ी मे बहुत सेक्सी लग रही हो तुम" उस बंदे के अक्षिता के पास आते हुए कहा

“हाथ छोड़ो मेरा" अक्षिता ने गुस्से मे कहा और इससे पहले कि वो बंद आगे कुछ कह पाता वो अपना जबड़ा पकड़े फर्श पर गिरा पड़ा था और एकांश उसे जानलेवा नजरों से घूर रहा था

"how dare you touch her?" एकांश ने चिल्ला कर कहा और उस बंदे को मारने के लिए उसकी ओर बढ़ा अक्षिता ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन अब एकांश कहा रुकने वाला था वही वो बंदा भी शांत नहीं था उसने ऐसी बात बोली की एकांश को और गुस्सा चढ़ने लगा

"एकांश रघुवंशी, तो तुम्हारी भी नजर है उसपर.... बढ़िया तो क्यों न हम दोनों मिलकर उसके साथ मजे करें... क्या बोलते हो" एकांश ने मुक्का इतनी जोर से मारा था के उस बंदे का होंठ फट गया था जिसमे से थोड़ा खून आ रहा था फिर भी वो मुसकुराते हुए एकांश को देख बोला और अगले ही पल वो अपना पेट पकड़े वापिस जमीन पर पड़ा था

"तूने दोबारा उसकी ओर देखने की हिम्मत भी की ओर जान से मार दूंगा...... " एकांश ने उसका कॉलर पकड़ कर उसे ऊपर उठाते हुए कहा

"अंश... रुको..." अक्षिता ने एकांश का हाथ पकड़ लिया

मामला बढ़ता देख कई लोग अब बीच मे आ गए थे एकांश को रोकने लगे थे, एकांश को यू गुस्से मे एक लड़की के लिए झगड़ते देख कई लोग हैरान था, कीसी ने भी उसे पहले कभी कीसी लड़की के साथ नहीं देखा था और अब एकांश का वहा रुकने का जरा भी मन नहीं था वो अक्षिता का हाथ थामे होटल से बाहर चला आया वही अक्षिता उसे देखती हुई उसके पीछे पीछे चल रही

उनके साथ ही रोहन और स्वरा भी निकल आए थे और पार्किंग मे अक्षिता ने उन दोनों से बाय कहा, रोहन ने एकांश को देखा जो अभी भी काफी गुस्से मे था और ऐसा लग रहा था के कभी भी फट पड़ेगा, अक्षिता और एकांश कार मे बैठे और कार घर की ओर चल पड़ी

अक्षिता को समझ नहीं आ रहा था कि वो एकांश को कैसे शांत करे, जो अभी भी गुस्से में अपनी मुट्ठियाँ भींचे हुए था, उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा जो स्टीयरिंग व्हील को कसकर पकड़े हुए था

अक्षिता की छुअन से एकांश का मन थोड़ा शांत होने लगा था, उसने उसकी ओर देखा जो चिंतित नजरों से उसे देख रही थी, उसने सोचा था के पार्टी के बाद अक्षिता को बढ़िया डिनर पर ले जाएगा, उसे सप्राइज़ करेगा लेकिन कुछ और ही हो गया था

एकांश ने अचानक कार की डिरेक्शिन चेंज की, पहले तो अक्षिता को कुछ समझ नहीं आया लेकिन उसने कोई सवाल नहीं किया और वो कहा जा रहे है ये सोच ही रही थी के तभी अचानक कार रुकी और एकांश नीचे उतार कर उसकी साइड आया और उसने उसके लिए दरवाजा खोला

"आइ एम सॉरी.... मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे साथ ये सब होगा... मुझे केयरफूल रहना चाहिए था और किसी को भी तुम्हारे पास नहीं आने देना चाहिए था.... सॉरी अक्षिता....." एकांश ने कहा और तभी अक्षिता ने उसे कसकर गले लगा लिया, एकांश पहले तो हैरान हुआ लेकिन फिर उसने भी अपने आप को उस मोमेंट के हवाले कर दिया, उसका मन शांत होने लगा था,

"तो हम यहाँ क्या कर रहे हैं?" कुछ समय बाद उससे अलग होते हुए अक्षिता ने पूछा

"मुझे पता है कि तुमने वहाँ ज्यादा कुछ नहीं खाया इसीलिए कुछ खाने आए है" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

एकांश को मुसकुराता देख की अक्षिता को राहत महसूस हुई

"यहाँ? लेकिन मुझे यहाँ कोई होटल नहीं दिख रहा है.." अक्षिता ने अपने चारों ओर देखते हुए कहा

"चलो मेरी साथ" एकांश ने अपनी कार लॉक करते हुए कहा और अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे लेकर थोड़ा आगे आया और अक्षिता का रिएक्शन देखने रुका

उस जगह को देख अक्षिता के चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल थी और उसने मुस्कुराते हुए पूछा

"मजाक तो नहीं कर रहे न?"

"नहीं..." एकांश ने भी वैसे ही मुसकुराते हुए कहा....

क्रमश:
Ufff ye pyari nok zok. Maza aa gaya. Amezing update. Bahot lambe wakt ke bad kahani ne khul kar mushkurane ka mouka diya.
 
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Shetan

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Update 44



"अंश..."

"अंश..."

"अंश...!"

अक्षिता बार बार एकांश को पुकार रही थी लेकिन वो कही नहीं था

एकांश को वहा ना पाकर अक्षिता घबरा गई और उसे ढूँढ़ते हुए ऊपर की ओर भागी, उसने उसके कमरे में जाकर उसे देखा लेकिन कमरा खाली था...

कमरा खाली था जैसे वहाँ कोई रहता ही न हो, अक्षिता ने अलमारी खोल कर देखि लेकिन वो भी खाली थी..

वो हांफ रही थी और उसका चेहरा पसीने से पूरी तरह भीगा हुआ था, ऐसा लग रहा था जैसे उसे पैनिक अटैक आ गया हो, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके आस-पास की दीवारें उसे निगल रही हों...

अक्षिता को अब सास लेने मे भी मुश्किल हो रही थी, वो सास नहीं ले पा रही थी और धीरे-धीरे वो उसके कमरे से बाहर चली आई, वो अपनी छाती पर हाथ रखे बैल्कनी से देख रही थी

आँखों मे भरे आँसुओं की वजह से उसे साफ दिखाई नहीं दे रहा था और जब उसे साफ साफ दिखने लगा तब उसने एकांश को देखा

उसने देखा कि उसका एकांश उससे दूर जा रहा है, उसके घर से दूर, उसकी जिंदगी से दूर, अपना सामान हाथ में लिए हुए...

वो अब जोर जोर से उसका नाम पुकारने लगी थी..

एकांश रुका और उसने मूड कर अक्षिता की ओर देखा, वो उसे साफ साफ नहीं देख पा रही थी, आँसुओ की वजह से उसकी दृष्टि धुंधली हो गई थी

उसने एकांश अपनी ओर हाथ हिलाते हुए देखा और वो अगले ही पल उसकी नज़रों से ओझल हो गया...


"अंश...!"

अक्षिता चिल्ला उठी

"अक्षिता!" अक्षिता की चीख सुन सरिता जी उसके कमरे मे आ गई थी और वहा आकार उन्होंने देखा के अक्षिता रो रही है...

"अक्षिता, अक्षिता...... क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने चिंतित होकर पूछा

सरिता जी ने अक्षिता का चेहरा अपने हाथों मे थामा हुआ था और उसे शांत करा रही थी

"क्या हुआ अक्षु? तुम क्यों रो रही हो?" सरिताजी ने धीरे से पूछा

"माँ... माँ... एकांश ..." बोलते हुए अक्षिता वापिस रो पड़ी

"एकांश.... क्या?"

"एकांश मुझे छोड़कर चला गया" ये कहते हुए अक्षिता ने अपनी माँ को कसकर गले लगाया और वापिस रोने लगी...

"तुम क्या कह रही हो?"

"एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है माँ.... वो मुझसे नफरत करता है..." अक्षिता पागलों की तरह बस रोए जा रही थी...

सरिताजी ने अक्षिता को कसकर गले लगाया और उसकी पीठ सहलाने लगी और जब उसका रोना बंद हो गया तो वो उसकी पीठ थपथपाने लगी और उन्होंने उसे अपनी गोद में सुला लिया और उसके बालों को धीरे से सहलाना शुरू किया

सरिताजी भी अपनी बेटी की हालत देखकर चुपचाप रो रही थी, वो भी अक्षिता के लिए काफी चिंतित थी..... अक्षिता को बुरे सपने वापिस आने लगे थे और आज ऐसा बहुत समय बाद हुआ था, उसे वापिस एक बुरा सपना आया था और काफी समय बाद सरिताजी ने अक्षिता को उस तरह रोते हुए देखा था

उन्होंने समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे, उन्होंने सोचा के एकांश को इस सब के बारे मे बताना ही बेहतर होगा, शायद वो डॉक्टर से इस बारे में बात करेगा...

उन्होंने अक्षिता को बेड पर सुला दिया और उसका माथा चूमते हुए बाहर चली गई और सीधा एकांश के कमरे की को गई जिसका दरवाजा खुला था, वो अंदर आयो तो उन्होंने देखा के वो कमरा खाली था

उन्होंने सोचा के शायद एकांश अभी टक काम से लौटा नहीं था और यही सोचते हुए वो वापिस नीचे चली आई...

अक्षिता के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे

एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है...

उन्होंने एकांश के मोबाइल पर फोन करने की कोशिश की लेकिन उसका फोन भी बंद था और अब सरिताजी ये सोचकर घबरा रही थी के काही अक्षिता की बात, जो उसने कहा वो सच तो नहीं था



"क्या वो सचमुच चला गया?"

और यही सब सोचते हुए उनकी आँखों मे भी आँसू आ गए थे और तभी गेट खुलने की आवाज आई और उन्होंने गेट की चरमराहट की आवाज की ओर देखा...

एकांश थका हुआ था और थका हुआ सा ही घर में दाखिल हुआ... सरिताजी ने उसे देखकर राहत की साँस ली और अब वो खुश थी कि एकांश वही था

वही एकांश ने चिंतित सरिताजी को देखा तो पूछा

"आंटी, क्या हुआ?" एकांश ने सरिताजी को कंधे से हिलाते हुए पूछा

सरिताजी ने एकांश का हाथ पकड़ लिया और अपना माथा उसके हाथ पर रख कर रोने लगी.. एकांश को समझ नहीं आ रहा था के सरिताजी यू रो क्यू रही है और तबही उसका ध्यान तुरंत अक्षिता पर चला गया और वो इस डर से काँप उठा कि कहीं अक्षिता को कुछ हो न गया हो

"आंटी, क्या हुआ? आप रो क्यू रही है? अक्षिता ठीक है न?" एकांश ने हकलाते हुए पूछा...

सरिताजी ने एकांश की ओर देखा और उनका आँसुओ से भीगा चेहरा देख एकांश का दिल डूब रहा था, उसने सरिताजी को हमेशा एक स्ट्रॉंग महिला के तौर पर देखा था, वही थी जिन्होंने उसे उस वक्त सपोर्ट किया था जब वो अपनी उम्मीद खोए जा रहा था, वो इस घर मे हर पल उसके साथ थी और अब उन्हे यू टूटते देख एकांश को यकीन हो गया था के हो ना हो अक्षिता को कुछ हुआ है वो ठीक नहीं है और बस इसी खयाल से उसका दिल बैठा जा रहा

"उसे वापिस बुरे सपने आ रहे हैं और उसे लगभग एक पैनिक अटैक आया था" सरिताजी ने खुदको शांत करने के बाद कहा

"क्या? क्यों?" एकांश ने पूछा

"मुझे नहीं पता... वो अचानक नींद से उठकर तुम्हारा नाम चिल्लाने लगी और जब मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ, तो वह पागलों की तरह ये कहने लगी कि तुमने उसे छोड़ दिया है और तुम उससे नफरत करते हो...." सरिताजी ने एकांश को देखते हुए वहा वही वो बस चुपचाप उनकी बात सुन रहा था

"मैं उसे क्यों छोड़ कर जाऊंगा? और मैं उससे नफरत क्यों करूँगा?" एकांश ने थोड़ा चौक कर पूछा

"शायद उसे यही बुरा सपना आया था कि तुम उसे छोड़कर चले गए हो..." सरिताजी ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला

"आंटी, आप प्लीज रोइए मत... प्लीज बी स्ट्रॉंग, मैं कही नहीं जाने वाला और उसे कुछ नहीं होगा..." एकांश ने सरिताजी को सांत्वना देते हुए कहा लेकिन अंदर ही अंदर वो भी डरा हुआ ही था

"एकांश, तुम समझ नहीं रहे हो... आज बहुत समय बाद ऐसा हुआ आई के उसे बुरे सपने आए है और मैंने उसे इस तरह रोते हुए देखा है और अब मुझे डर है के ये शायद उसकी बिगड़ती सेहत का ही असर" सरिताजी ने सोफ़े कर धम्म से बैठते हुए कहा वही एकांश अपने मन में अनेक विचार लिए चुपचाप खड़ा रहा...

"क्या हुआ?" उन दोनों ने एक आवाज़ सुनी और मुड़कर देखा तो वहा अक्षिता के पिता खड़े थे जिनके चेहरे पर डर का भाव था

सरिताजी उन्हे बताने लगी के क्या हुआ था, जबकि एकांश धीरे-धीरे अक्षिता के कमरे की ओर गया... उसने दरवाज़ा खोला और अक्षिता को सोते हुए देखा...

वो अंदर गया और उसके बिस्तर के पास घुटनों के बल बैठ गया.. उसने उसके चेहरे को देखा जिससे साफ पता चल रहा था कि वह बहुत रोई थी, एकांश ने अपने आंसू पोंछे और उसके माथे को चूमकर वो वापस लिविंग रूम में आया और उसने अक्षिता के पिता का चिंतित चेहरा देखा

"मैं डॉक्टर से बात करता हु" एकांश ने कहा और इससे पहले कि वो लोग उसकी आंखों में आंसू देख पाते, वो वहां से चला गया

******

अक्षिता अपनी नींद से उठी और दीवार पर टंगी एकांश की तस्वीरे देखने लगी, वो उसके मुस्कुराते चेहरे को देखकर मुस्कुराई और फिर अचानक पिछली रात का सपना उसकी आँखों के सामने घूम गया...

वो अपने कमरे से निकलकर भागकर ऊपर गई और उसने एकांश के कमरे का दरवाजा खोला

"एकांश..." उसने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला

कोई जवाब न सुन अक्षिता थोड़ा डर गई और घबराकर चारों ओर देखने लगी...

"अक्षिता?" अक्षिता ने एकांश की आवाज़ सुनी और अपना सिर बाथरूम की ओर घुमाया

वो वहीं खड़ा कन्फ़्युशन मे उसे देखता रहा

"अंश!"

अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा जो भाग कर उसके पास गई और उसे उसे कस कर गले लगा लिया, वो डर से थोड़ा कांप रही थी और एकांश उसकी पीठ सहलाने लगा

"मैं यहीं हूँ अक्षिता.... शांत हो जाओ" एकांश यही शब्द तब तक दोहराता रहा जब तक वो शांत नहीं हो गई

"अब बताओ क्या हुआ?" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने कुछ ना कहते हुए अपना सर ना मे हिला दिया

"यू वॉन्ट टू से सम्थिंग?" एकांश ने वापिस से पूछा

"कुछ नहीं" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ गई

"अक्षिता, अगर कोई बात है तो प्लीज बताओ मुझे" एकांश ने हताश स्वर मे कहा और अक्षिता जाते जाते रुक गई

"मैं अब ये लुका-छिपी का खेल और नहीं खेल सकता" एकांश ने गंभीरता से कहा और अक्षिता उसकी ओर देखने के लिए मुड़ी

“मैं चाहता हु तुम अपने खयाल अपनी फीलिंग सब मुझे बताओ, तुम मुझे बताओ के तुम क्यू परेशान हो मैं जानना चाहता हु के तुम क्यूँ घबरा रही हो क्या वजह है के रो रही हो” एकांश ने कहा

अक्षिता कुछ नहीं बोली बस चुपचाप खडी रही

वो उसे बताना चाहती थी कि वह उससे प्यार करती है

वो उसे बताना चाहती थी कि वही उसकी पूरी दुनिया है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो मर रही है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो अपनी जान से ज्यादा उसकी जान के लिए डरी हुई है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो चाहती है कि वो आखिरी सांस तक उसके साथ रहे

वो उसे बताना चाहती थी कि उसके अंदर एक बड़ा डर पैदा हो गया है, उसके उसे छोड़ कर चले जाने का डर

वो उसे बताना चाहती थी कि उसे महसूस हो रहा है कि उसका जाने का टाइम नजदीक आ रहा है

वो अपने मन में चल रहे सभी खयालों के साथ उसे गौर से देख रही थी और उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे

लेकिन वो एक शब्द भी नहीं बोल पाई

वो दोनों एक दूसरे को देख रहे थे, उनके चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था और वे एक दूसरे के दिल की धड़कनें साफ साफ सुन सकते थे

एकांश का फ़ोन बजने से उसकी तंद्रा टूटी और एकांश ने फ़ोन उठाया वही अक्षिता मुड़ी और भारी मन से उसके कमरे से बाहर चली गई

"काश मैं कह पाती कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ"

अक्षिता ने अपने आप से कहा और अपने आँसू पोंछते हुए घर में चली गई



******



"डॉ. अवस्थी, मुझे नहीं पता कि आप क्या करेंगे और कैसे करेंगे, लेकिन वो डॉक्टरस् जल्द से जल्द यहा आ जाने चाहिए उनसे कहिए कि वो जितना पैसा चाहें, हम देने को तैयार हैं"

"यदि उनके लिए जर्मनी से यहां आना पॉसिबल नहीं है तो इन्फॉर्म देम के हम जर्मनी आ रहे है"

"मुझे पता है कि ये आसान नहीं है लेकिन हमारे पास ज़्यादा समय नहीं बचा है, वो बहुत अलग बिहैव कर रही है और मैं उसे खोना नहीं चाहता"

"ठीक है, प्लीज ट्राइ टु अरेंज सम्थिंग, मैं कुछ भी बड़ा हादसा होने से पहले उसे बचाना चाहता हूँ"

और एकांश ने फोन काट दिया और नीचे चला गया

"आंटी, मुझे कुछ जरूरी काम है, मैं कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूँ इसलिए आप मेरा इंतजार मत करना" एकांश ने सरिताजी को बताया और अक्षिता की तरफ देखा जो उसे ऐसे देख रही थी जैसे वो हमेशा के लिए कही जा रहा हो

एकांश ने सरिताजी से कुछ कहा और उन्होंने सिर हिलाकर एकांश की बात पर अपनी सहमति जताई और वो बाहर आया और अपनी कार में बैठकर चला गया...

"अक्षिता आओ, चलें" सरिताजी ने कहा

"कहाँ?"

"डॉक्टर साहब से मिलने, मैंने तुम्हारे लिए अपॉइंटमेंट ले लिया है" सरिताजी ने अपना पर्स लेते हुए कहा

" लेकिन......"

"कोई लेकिन नहीं... मैं तुम्हारी हेल्थ के बारे में डॉक्टर से बात करना चाहती हूँ" सरिताजी ने कहा और अक्षिता ने भी उनकी बात मान ली

अस्पताल जाने के बाद अक्षिता पर कई तरह के टेस्ट किए गए और उन्हें रिपोर्ट आने तक का इंतज़ार करना पड़ा, जिसमे कई घंटों का समझ लग गया

जब टेस्टस् चल रहे थे एकांश भी अस्पताल में ही था

टेस्टस् हो जाने के बाद अक्षिता और सरिताजी घर वापस आ गईं थी जबकि एकांश अस्पताल में रुक कर डॉक्टर से बात कर रहा था

वो कुछ विदेशी डॉक्टरों को भारत लाने की कोशिश कर रहे थे जो ऐसे मामलों के स्पेशलिस्ट थे, एकांश ने अपने और अपने पिता के कोंटकट्स का भी इस्टमाल किया लेकिन उन डॉक्टरस् के लिए पैशन्टस् और सर्जरी की लाइन लगी हुई थी और उनके पास बस एक पैशन्ट के लिए भारत आना पॉसिबल नहीं था

एकांश को समझ नहीं आ रहा था के क्या करे, वो काफी ज्यादा टेंशन मे था, वो कीसी भी कीमत पर अक्षिता को बचाना चाहता था और अब उसे समझ नहीं आ रहा था के उसे बचाने के लिए क्या करे....



क्रमश:
La jawab update. Dill ko chhu lene vala pal. Najane kab akriti samazegi.
 
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Shetan

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"व्हाट द हेल? हमे उनका अपॉइन्ट्मन्ट नहीं मिला से क्या मतलब है तुम्हारा?" एकांश फोन पर बात करते हुए चिल्लाया

“सॉरी सर, लेकिन हमने हमारी ओर से पूरी कोशिश की थी" दूसरी ओर से बात करते व्यक्ति ने डरते हुए कहा

"मुझे नहीं पता तुम क्या करोगे और कैसे करोगे.... मुझे जल्द से जल्द उनका अपॉइन्ट्मन्ट चाहिए..... मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है....." एकांश ने फोन पर चिल्लाते हुए कहा और फोन काट दिया

अभी एकांश ने फोन काटा ही था के उसका फोन वापिस बज उठा और उसने देखा कि उसके पिता का फोन था और एकांश अभी उनसे बात नहीं करना चाहता था, असल में वो अभी किसी से भी बात नहीं करना चाहता



******

अक्षिता ने अपने सामने बैठे बंदे को देखा जो अपने सिर को हाथों में पकड़े हुए बिस्तर पर बैठा था और लगातार बज रहे अपने फोन को देख रहा था

उसने कल भी डाइनिंग टेबल पर देखा था जब एकांश ने किसी की कॉल को इग्नोर कर दिया था

अक्षिता ने एकांश को इतना चिंतित कभी नहीं देखा था

वो धीरे से उसके कमरे में गई और उसके फोन की तरफ देखा जो फिर से बज रहा था, एकांश की मा उसे बार बार कॉल कर रही थी और वो फोन नहीं उठा रहा था



"क्या हुआ?" अक्षिता ने धीरे से पूछा

एकांश अक्षिता की आवाज़ सुनकर चौका और उसने ऊपर देखा जहा अक्षिता खडी थी

"कुछ नहीं"

"एकांश, तुम बहुत परेशान लग रहे हो.... क्या हुआ है बताओगे?"

"कुछ नहीं हुआ है" एकांश ने अपना फोन बंद करते हुए कहा

"तुम अपनी माँ का फोन क्यों नहीं उठाते?"

एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो उसके जवाब की राह देख रही थी लेकिन वो कुछ नहीं बोला

"मैंने तुमसे कुछ पूछा है एकांश" अक्षिता ने सीरीअस टोन मे कहा

"तुम्हारा इससे कुछ लेना देना नहीं है" एकांश ने कहा और वहा से जाने लगा लेकिन अक्षिता के शब्दों ने उसे रोक दिया

"अपनी मॉम को यू इग्नोर मत करो.... माना तुम उनसे नाराज हो या उनसे बात नहीं करना चाहते लेकिन उन्हे यू इग्नोर मत... हम नहीं जानते के हमारी जिंदगी मे आगे क्या होने वाला है... लाइफ इस अनप्रीडिक्टबल... ऐसा ना हो के आगे इस नाराजी पर पछताना पड़े और फिर माफी मांगने मे बहुत देर हो जाएगी, मुझे नहीं पता के क्या बात है लेकिन प्लीज उनसे बात करो और इसे सॉर्ट करो" अक्षिता ने कहा और अपने आँसू रोकते हुए वहाँ से चली गई

एकांश भी अक्षिता की कही बातों के बारे मे सोचने लगा था, उसकी बात एकदम सच थी, बाद मे पछताने से क्या ही होगा था और ये उसने अक्षिता के मामले मे पहले ही इक्स्पीरीअन्स किया था और अब वो ऐसा कोई रिस्क नहीं चाहता था, हालांकि वो अपनी मा की बात को भुला नहीं था वो आज भी अक्षिता की बीमारी उससे छिपाने को लेकर उनसे नाराज था लेकिन फिर अब एकांश ने उनसे बात करने इस मामले को सुलझाने का सोचा

वो तुरंत रेडी होकर अपने पेरेंट्स के घर की ओर निकल गया, एकांश को घर मे देख वो दोनों काफी खुश हुए और उसके पिता ने उसे गले लगा लिया वही उसकी मा उसके सामने आने से थोड़ा झिझक रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने उसे गले लगा लिया

एकांश ने बहुत दिनों बाद अपनी मा के उस ममतामई स्पर्श को महसूस किया था उसने भी अपनी मा को गले लगाया जिससे वो भी थोड़ी खुश हो गई

"एकांश, बेटा कैसे हो तुम?" एकांश की मा ने एकांश के गाल को सहलाते हुए पूछा

"ठीक हूं" एकांश ने धीरे से कहा

"तुम हमारी कॉल का जवाब क्यों नहीं दे रहे थे?" सीनियर रघुवंशी ने पूछा

"मैं बिजी था" एकांश ने अपने पिता से नजरे चुराते हुए कहा

"और तुम यहाँ क्यों आये हो?" एकांश के पिता ने आगे का सवाल किया

"यह घर है उसका... वह यहा कभी भी आ सकता है" एकांश की मा ने उसके पिता के सवाल का जवाब देते हुए कहा




"अरे सॉरी.... मुझे तो ये पूछना चाहिए था कि तुम्हें यहाँ किसने भेजा है?" एकांश के पिता ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा

अब इसपर क्या बोले एकांश को समझ नहीं आ रहा था वो इधर उधर देखने लगा वही उसकी मा भी अपने पति के बोलने का मतलब समझ गई थी वो जान गई थी के एकांश को वापिस घर आने के लिए एक ही इंसान मना सकता था

"अब आप चुप रहो और मुझे मेरे बेटे से बात करने दो?" साधनाजी (एकांश की मा) ने मुकेशजी (एकांश के पिता) को चुप कराते हुए कहा जिसपर एकांश मुस्कुरा उठा



"अक्षिता कैसी है?" साधना जी ने चिंतित होकर पूछा और इस सवाल पर एकांश थोड़ा चौका

हालांकि वो जानता था कि उनलोगों को पहले से ही उसके ठिकाने के बारे में अंदाजा था, लेकिन उसने यह उम्मीद नहीं की थी कि उन्हें पता चल जाएगा कि वो अक्षिता के साथ था

"ठीक है......" एकांश ने हताश स्वर मे कहा

"सब ठीक है बेटे?" मुकेश जी ने भी चिंतित स्वर मे पूछा

"अभी तो ठीक ही है डैड.... लेकिन कभी भी कुछ भी हो सकता है" एकांश ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा

"हम उसके इलाज के लिए सबसे बढ़िया डॉक्टरों से कन्सल्ट करेंगे बेटा.... तुम चिंता मत करो" मुकेश जी ने मुस्कुराते हुए एकांश को आश्वासन दिया

"दरअसल, जर्मनी में एक डॉक्टर है जो ऐसे मामलों का स्पेशलिस्ट है, मैंने उसे अक्षिता के मामले की जांच करने के लिए भारत आने के लिए राजी करने की कोशिश की, लेकिन वो बस एक पैशन्ट के लिए आने के लिए राजी नहीं हो रहा, कह रहा है जर्मनी मे कई पैशन्टस् को छोड़ना पड़ेगा" एकांश ने उदास होकर कहा

"तो फिर अब क्या करने का सोचा है?"

"मैं जर्मनी जाकर अपनी रिपोर्ट्स उसे दिखाने, उसकी सलाह लेने और उसे मनाने की सोच रहा हूँ" एकांश ने कहा

"ये ठीक रहेगा” साधना जी ने कहा

"हमें उसे ठीक करने के लिए हर कोशिश करके देखनी चाहिए" साधना जी ने एकांश को देखते हुए कहा और फ़र मुकेश जी की ओर मुड़ी

"आपका एक कोई दोस्त जर्मनी में है ना जिसकी फेमस होटल चैन है?" साधनाजी ने पूछा

"हाँ...."

"तो फिर उससे कहो कि वो एकांश की डॉक्टर से मिलने में मदद करे और डॉक्टर को भारत आने के लिए राजी भी करे" साधना जी ने सलाह दी और उनकी बात सुन एकांश और मुकेश जी ने भी इसमे हामी भारी क्युकी ये उपाय सही मे कारगर साबित हो सकता था और वो डॉक्टर भारत आने के लिए राजी हो सकता था

"मैं उसे अभी कान्टैक्ट करता हु" और मुकेश जी अपने जर्मनी वाले दोस्त को फोन करने चले गए वही साधना जी एकांश की ओर मुड़ी हो नाम आँखों से उन्हे देख रहा था

"एकांश?"

एकांश से और नहीं रुका जा रहा था और उसने कस कर अपनी मा को गले लगा लिया

एकांश के इस रिएक्शन से साधनाजी थोड़ा चौकी, लेकिन वो खुश थी, उनका बेटा उनके पास था और जब उन्होंने उसे रोते सुना तो वो उसे चुप कराने लगी, उन्होंने एकांश को रोने देना ही बेहतर समझा, वो एकांश की पीठ सहला रही थी वो जानती थी के एकांश अपने अंदर बहुत कुछ दबाए था जिसका बाहर निकालना जरूरी था

"मॉम, मुझे बहुत डर लग रहा है" एकांश ने धीमे से कहा वही साधना जी चुप चाप उसकी बात सुनती रही

"मुझे डर लग रहा है कि उसे कुछ हो न जाए, अगर मैं उसे नहीं बचा पाया तो मैं जी नहीं पाऊंगा मॉम...... मैं जी नहीं पाऊंगा......" एकांश ने रोते हुए कहा, साधना जी की भी आंखे नम थी

इतने दिनों से एकांश के अंदर दबे सभी ईमोशनस् बाहर आ रहे थे

"शशश...... उसे कुछ नहीं होगा बेटे, वो बहुत अच्छी लड़की है..... उसके लिए तुम्हारा प्यार और उसे बचाने की तुम्हारी इच्छाशक्ति जरूर उसकी जान बचाएगी, जब तक तुम उसके साथ हो उसे कुछ नहीं होगा और मुझे अपने बेटे पर भरोसा है कि वो अपने प्यार को कुछ नहीं होने देगा" उन्होंने एकांश के चेहरे से आँसू साफ करते हुए कहा

"यू नीड़ टु बी स्ट्रॉंग बच्चा, तुम्हें अक्षिता के लिए स्ट्रॉंग रहना होन" साधना जी ने एकांश का मठ चूमते हुए कहा

"आइ मिसड् यू मॉम" एकांश ने अपना सर अपनी मा की गोद मे टिकाते हुए कहा और साधना जी की आँखों से भी आँसू बह निकले, उन्हे नहीं पता के वो क्यू रो रही थी, ये आँसू खुशी के थे या गम के, उन्हे समझ नहीं आ रहा था के बेटा वापिस मिल गया इसपर खुश हो या आने वाले भविष्य मे बेटे को मिलने वाले दर्द के लिए दुखी

"आइ मिसड् यू टू बेटा" उन्होंने एकांश की पीठ थपथपाते हुए कहा और वो उनकी गोद में एक बच्चे की तरह सो गया

मुकेश जी अपनी पत्नी और बेटे के बीच के इस पूरे सीन को देख रहे थे, उनकी आँखों में भी आँसू थे, उन्हें खुशी थी कि आखिरकार उन्हें उनका बेटा वापस मिल गया था , लेकिन आने वाले समय मे क्या होगा ये सोचकर उनका मन भी डर रहा था... वो जानते थे के उनका बीटा उस राह पर था जहा उसका दिल टूटने के चांस बहुत ज्यादा थे और यही सोच उनका दिल बैठा जा रहा था...

******

एकांश जब घर में आया और उसने चारो ओर देखा तो घर में एकदम शांति थी, चारो ओर सन्नाटा था और घर एकदम खाली था

"एकांश ?"

आवाज सुनकर एकांश मुडा तो उसने देखा के अक्षिता के पिता वहा खड़े थे

"तुम्हें कुछ चाहिए?" उन्होंने पूछा

"आंटी कहाँ हैं?"

"वो पड़ोस में गई है वहा कुछ प्रोग्राम है तो, अभी आजाएगी" अक्षिता के पिता ने जूते पहनते हुए कहा

"आप कहाँ जा रहे हो?" एकांश ने उनसे पूछा

"मैं अपने दोस्त से मिलने जा रहा हूँ, अपनी आंटी से कहना कि मेरा इंतज़ार न करें..... मुझे देर हो जाएगी" अंकल में कहा

"ओके अंकल"

"अपना और अक्षिता का ख्याल रखना" अंकल ने कहा और वहा से चले गए

अब एकांश वहा अक्षिता को ढूंढने लगा लेकिन वो घर में थी थी नही

" अक्षिता ? " एकांश ने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला

वो अक्षिता के कमरे की ओर गया और और दरवाजे पर नॉक किया लेकिन हालत वही रही कोई जवाब नही जिसके बाद एकांश ने दरवाज़ा खोला और अंदर कमरे में देखा तो कमरा खाली था, वो रूम वापिस बंद करके ऊपर अपने अपने की ओर बढ़ गया

एकांश अक्षिता के बारे में सोचते हुए अपने कमरे की और बढ़ गया और जैसे ही उसने दरवाजा खोला और अपने कमरे में आया तो वो थोड़ा चौका और जहा था वही खड़ा रह जहा

अक्षिता उसके बेड पर उसकी शर्ट को सीने से चिपकाए सो रही थी, अक्षिता को वहा यू देख एकांश के मन में क्या इमोशंस आ रहे थे वो बताना मुश्किल था, वो धीरे-धीरे उसके पास गया और बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया

उसने अक्षिता के चेहरे पर आए बाल हटाए और उसके शांत चेहरे को देखा, फिर अपनी शर्ट को देखा जो उसके शरीर से चिपकी हुई थी, उसे अपनी उस शर्ट से जलन हो रही थी क्योंकि उसे लग रहा था के काश उस शर्ट की जगह वो खुद होता



उसे उस चीज से जलन हो रही थी जो बेजान थी और उसकी अपनी थी

अपने ही ख्यालों पर एकांश को हसी आ गई और वो फ्रेश हो e बाथरूम की ओर चला गया, फिर बाहर आकर टेबल पर बैठ कुछ फाइल्स देखने लगा, वैसे तो एकांश अपना काम कर रहा था लेकिन दिमाग में ये बात भी चल रही थी के अक्षिता को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है, क्यों अक्षिता को इतने दर्द का सामना करना पड़ रहा है

उसने तो कभी किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया था

वो तो सपने में भी किसी को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकती थी

तो फिर इतना सब क्यूं

एकांश ने अपने कमरे में रखी भगवान की मूर्ति की ओर देखा जो सरिताजी ने वहा एक एक शेल्फ में रखी थी

एकांश अभी अपने ख्यालों में ही खोया था के तभी उसके डैड का फोन आया और उसने फोन उठाया

उसके डैड ने बताया कि उन्हें जर्मनी में डॉक्टर से अपॉइंटमेंट मिल गया है और एकांश को एक हफ्ते में जर्मनी के लिए रवाना होना था

एकांश अपने डैड की बात सुन काफी खुश हुआ, अक्षिता को बचाने को वो ये पहला कदम था जी सफल हुआ था, उसने अपने डैड को थैंक्स कहा और फोन रखा

एकांश ने एक नजर बेड पर सोती अक्षिता को देखा और सोचा के अब सबसे मुश्किल काम अक्षिता को मनाना है, उसके नही पता था के उसके जाने की बात पर अक्षिता किस तरह रिएक्ट करेगी क्युकी आजकल वो ये सोचकर भी घबरा जाती थी के एकांश उसे छोड़कर चला जायेगा

एकांश अपने कमरे से बाहर आया और अपने दोस्तों को फोन करके ये खबर सुनाई और अक्षिता के बारे में अपनी चिंता भी जाहिर की, डॉक्टर के अपॉइंटमेंट की बात सुन सभी खुश हुए और उससे वादा किया कि वो उसके वहा ना रहने पर अक्षिता के साथ रहेंगे उसका खयाल रखेंगे

एकांश ने अब एक राहत की सास की और वापिस अंदर जाकर।देखा तो अक्षिता नींद में करवाते बदल रही थी, वो चुपचाप जाकर खुर्ची पर बैठ गया और लैपटॉप पर काम करने लगा क्योंकि अब उसे एक हफ़्ते में अपना सारा काम पूरा करना था

"एकांश ?"

एकांश ने अक्षिता को अपना नाम पुकारते सुना तो उसने उसकी तरफ देखा जो बेड पर बैठी थी और आधी बंद आंखो से उसे देख रही थी और काफी प्यारी लग रही थी

"अंश?" अक्षिता ने उसे थोड़ा जोर से पुकारा और एकांश अपने ख्यालों से बाहर आया

" हाँ"

"तुम कब आये?" अक्षिता ने अपनी आँखें मलते हुए पूछा

"मुझे घर आये एक घंटा हो गया है"

"तो तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?"

"अब तुम मेरी शर्ट को पकड़ कर शांति से सो रही थी तो मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता थोड़ा शर्मासी गई, उसे पता ही नही चला था के कब वो उसकी शर्ट को पकड़ कर से गई थी

"तुम कहाँ थे?" अक्षिता ने बेड से उठते हुए बात बदलते हुए पूछा

"मैं घर चला गया था" एकांश ने लैपटॉप की ओर मुड़ते हुए कहा

"तुमने अपने मॉम डैड से बात की?" अक्षिता ने पूछा

"हाँ" एकांश ने कहा और अक्षिता ने मुस्कुराते हुए उसे देखा

और एकांश उसे इस तरह मुस्कुराते हुए देखने के लिए कुछ भी कर सकता था

"गुड बॉय" अक्षिता ने एकांश के बालों को सहलाते हुए कहा

"ओय! आई एम नॉट ए बॉय, आई एम ए मैन..... एक्चुअली a हॉट एंड हैंडसम मैन" एकांश ने कहा

अक्षिता एकांश की बात सुन दबी आवाज में उसे सेल्फ ऑबसेड लेकिन एकांश ने सुन लिया

"तुमने कुछ कहा?" एकांश ने उसके पास जाकर पूछा

"नही... कुछ नहीं" अक्षिता ने पीछे हटते हुए कहा

"सेल्फ ऑबसेस्ड, और क्या?" एकांश ने पूछा और अक्षिता हंसते हुए वहा से भाग ली और एकांश उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा

वो दोनों हँसते हुए कमरे में इधर उधर भाग रहे थे और आखिर में एकांश ने उसे पकड़ लिया और वो उसे गुदगुदी करने लगा और वो जोर-जोर से हंसने लगी।l

"अंश रुको!" अक्षिता ने हंसते हुए कहा

एकांश ने उसकी कमर को पीछे से पकड़ कर उसे हवा में उठा लिया और जब उसने उसे वैसे ही घूमने लगा और वो जोर से हंसने लगी

कुछ देर बाद एकांश ने अक्षिता को नीचे उतारा, दोनो ही हाफ रहे थे और एकदूसरे को देख हस रहे थे

सरिताजी भी अब तक घर आ चुकी थी और उन्हें ढूँढते हुए ऊपर आई थी और उनकी हरकतें देखकर वहीं खड़ी रह गई थी

एकांश और अक्षिता को वैसे एकदूसरे के साथ देख उनकी आंखे भर आई थी

बहुत दिनों बाद उन दोनों को ऐसे देखकर सरिताजी को खुशी और उम्मीद की किरण दिख रही थी, उन्होंने आसमान की तरफ देखा और हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की कि वे दोनों हमेशा ऐसे ही खुश रहें और साथ रहें...

क्रमश:
Last vala seen kya romantic tha. Amezing.
 
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