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अक्षिता ने जैसे ही दरवाजा खोला वो अपने सामने खड़े शक्स को देख चौकी
"आई थिंक तुमने मुझे बहुत ज्यादा मिस किया" दरवाजे पर खड़े बंदे ने अक्षिता की ओर मुस्कुराकर देखते हुए कहा
"नहीं" अक्षिता अचानक सीधे सीधे बोली और ये सुन उस बंदे की मुस्कुराहट गायब हो गई और वो एकटक अक्षिता को देखने लगा
"तुम इस वक्त यहाँ क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने उस बंदे से पूछा जो अब भी दरवाजे पर ही खड़ा था वही उस बंदे की नजर उसके पीले चेहरे और थकी हुई आंखो पे पड़ी
"मैं बस तुमसे मिलने आया था।" उस बंदे ने कहा और अक्षिता गौर से देखा
"इस वक्त?" अक्षिता ने वापिस उस बंदे को घूरते हुए पूछा
"हाँ, उसमे क्या है" उसने कहा और घर में चला आया वही अक्षिता बस उसे देखती रही
वो बंदा सीधा घर में आया और डाइनिंग टेबल के पास गया और उसने वहा रखी सेब उठाई और खाने लगा और खाते खाते ही आकर सोफे पर बैठ गया वही अक्षिता बस उसे देखती रही और फिर वो भी उसके सामने सोफे पर बैठ गई
"तुम यहा क्या कर रहे ही तुम्हें तो उसके साथ होना चाहिए था" अक्षिता ने उस बंदे की ओर देखते हुए कहा
"हाँ पता है और मैं उसके साथ ही था, लेकिन मुझे कुछ ज़रूरी काम आगया था इसलिए मुझे जल्दी वापस आना पड़ा" उस बंदे ने कहा जैसी अक्षिता चुप रही
"तुम मुझसे एक वादा करोगी?" उसने अचानक से अक्षिता से पूछा जिसपर अक्षिता चौकी
"क्या?" अक्षिता ने पूछा
"प्लीज दोबारा एकांश का साथ मत छोड़ना तुम नही जानती तुम्हारे बगैर उसका क्या हाल था" अमर ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा
"अमर मैं...." अक्षिता से आगे कुछ बोला ही नही गया वो ये वादा कैसे।कर सकती थी जबकि को तो अपने जीवन की सच्चाई जानती थी, वो ये भी नही जानती थी के अगले ही पल उसके साथ क्या होगा, यही सोचते हुए अक्षिता की आंखे वापिस भर आई थी और उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखा
"मुझे पता है कुछ तो है जो तुम्हें वादा करने से रोक रहा है और मैं तुमसे नहीं पूछूंगा कि वो क्या बात है, लेकिन अब उससे फिर से दूर मत भागना, वो इस बार बर्दाश्त नहीं कर पाएगा अक्षिता" अमर ने अपनी आँखों में आँसू भरकर कहा और अक्षिता ने नीचे देखते हुए बस अपना सिर हिला दिया
अक्षिता ने अमर की ओर देखा, उसके चेहरे को देखा जिसपर थोड़ी हताशा थी और आंखो में सुनापन लिए वो सामने की कर देख रहा था
"तुम किसी से प्यार करते हो ना" अक्षिता ने पूछा और अमर ने चौंककर उसे देखा
"क्या? नहीं!" अमर ने एकदम से कहा जिसपर अक्षिता हस दी
"तुम्हारे चेहरे पर जो ये एक्सप्रेशंस है ना मिस्टर मैं उसे अच्छे से समझती हु, समझे" अक्षिता ने कहा और अमर से एक लंबी सास छोड़ी और फिर बोला
"मैं उससे प्यार तो करता हूँ, लेकिन वो अपने करियर से प्यार करती है, मैं चाहता हूँ कि वो मेरे साथ रहे, लेकिन वो पूरी दुनिया घूमना चाहती है, मैं उसके साथ घूमने के लिए भी तैयार हूँ, लेकिन वो किसी के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है...... और बस यही कहानी है जो यहीं खत्म होती है" अमर ने कहा
पहली बार अक्षिता को अमर की आवाज़ में उदासी और शब्दों में दर्द महसूस हुआ था
"तुमने अपनी फीलिंग्स उसे बताई?" अक्षिता ने पूछा
"नहीं" अमर ने धीमे से कहा
"और ये क्यों?"
"मैं उसे और उसकी प्रायोरिटीज को जानता हु अक्षिता और अगर मैंने उसे अपनी फीलिंग्स बता दी तो वो इसे कभी एक्सेप्ट नही करेगी और शायद फिर मैं उसकी दोस्ती भी खो बैठु" अमर ने दुखी होकर कहा
"लेकिन वो लड़की है कौन?" अक्षिता ने आखिर में मेन सवाल किया
"तुम जानती हो उसे" अमर ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा जिससे अब अक्षिता की भी उत्सुकता बढ़ने लगी थी
"क्या! वो कौन है?"
"श्रेया" उसने कहा.
फिर अक्षिता ने उन सभी श्रेया के बारे मे सोच जिन्हे वो जानती थी और उसकी आँखों के सामने बस एक ही चेहरा घूमने लगा और जब उसे ध्यान आया के अमर किस श्रेय की बात कर रहा था तो उसने चौक कर अमर को देखा
"तुम्हारा मतलब है.... श्रेया मेहता?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा जिसपर अमर ने बस हा मे गर्दन हिला दी
"गजब! पर तुम्हें उससे अपने दिल की बात कहनी तो चाहिए मुझे नहीं लगता वो तुम्हें ना करेगी?" अक्षिता ने कहा
"उसके पास इन सबके लिए समय नहीं है, वो सिर्फ अपने काम पर फोकस करना चाहती है" अमर ने उदास होकर कहा जिसपर अक्षिता बस चुप रही
"खैर मैनचलता हु बस तुमसे मिलने का मन किया था तो आ गया था" अमर ने कहा और उठ खड़ा हुआ
"इतना लेट हो गया है कहा जाओगे एकांश के कमरे में जाकर सो जाओ" अक्षिता ने कहा
"नहीं, ठीक है। चिंता मत करो...." अमर ने कहा लेकिन जब उसने देखा के अक्षिता उसे घूर के देख रही थी वो वो बोलते बोलते चुप हो गया
"उसका कमरा कहाँ है?" आखिर मे अक्षिता के आगे हार मानते हुए अमर बोला
"ऊपर" अक्षिता ने कहा और अमर एकांश के कमरे की ओर बढ़ गया वही अक्षिता भी एकांश के बारे मे सोचते हुए सो गई
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सुबह भी जब अमर जाना चाहता था तो अक्षिता की मा ने उसे नाश्ते के लिए रोक लिया जिसके बाद अमर ने उन सभी के साथ नाश्ता किया और जब वो जा रहा था तब
"तुम्हें उसे अपनी फीलिंग बतानी चाहिए" अक्षिता ने अपनी कार की ओर जाते अमर से कहा जिससे अमर थोड़ा रुक और अक्षिता ने आगे बोलना शुरू किया
"तुम्हें पता है कि हर लड़की बचपन से ही अपने राजकुमार का सपना देखती है, हर लड़की एक ऐसा लड़का ऐसा इंसान चाहती है जो उससे प्यार करे और उसका ख्याल रखे, हर लड़की एक ऐसे आदमी के साथ खुश रहने का सपना देखती है जिससे वो प्यार करती है" अक्षिता बोल रही थी और अमर सुन रहा था
"शायद वो भी अपने राजकुमार का इंतज़ार कर रही हो, शायद वो अपने मिस्टर राइट का इंतज़ार कर रही हो, शायद वो इस सब दिलचस्पी इसीलिए नहीं रखती क्योंकि वो अभी तब उस सही इंसान से मिली ही नहीं है" अक्षिता ने कहा
"और हो सकता है तुम उसे अपनी फीलिंगस बताओ तो वो तुम्हारे बारे मे सोचना शुरू करे, शायद वो तुममे अपना राजकुमार देख सके और हो सकता है उसे तुममे अपना मिस्टर राइट दिखे" अक्षिता ने हर शब्द को ध्यान से कहा एक पाज़िटिव अप्रोच के साथ जिसने अमर के दिल मे भी एक खुशी की उम्मीद की किरण जगाई
"मेरे अंदर होप जगाने के लिए थैंक्स" अमर ने अक्षिता को गले लगाते हुए कहा जिसके बाद वो उससे विदा लेकर वहा से निकल गया जब अक्षिता उसकी नजरों से दूर अपने घर मे चली गई अमर ने अपना फोन निकाला और एक नंबर डाइल किया और जब सामने से कॉल रीसीव हुआ तब वो भारी मन से बोला
"you need to come back soon, हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है"
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अक्षिता ने अपने हाथ मे रखी बुक को मुस्कुरा कर देखा
वो उस बुक में कुछ लिख रही थी और लिखते समय वो लगातार मुस्कुरा रही थी
और अचानक, उसकी वो मुस्कान जैसे गायब हो गई और वो कुछ सोचते हुए शून्य में देखने लगी और उसकी आँख से एक आँसू बह निकला
अक्षिता ने अपने सभी विचारों दिमाग से हटाते हुए अपना सिर हिलाया और फिर से लिखना शुरू कीया, लेकिन उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, वो अपने आंसू पोंछने की परवाह नहीं कर रही थी और लिखती जा रही थी
और आखिर मे उसने जोर से आह भरते हुए किताब बंद की और एकांश के बारे में सोचने लगी, उसे दो दिन पहले ही भारत वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन वो नहीं आया था और उसने उससे बस इतना कहा था कि कोई महत्वपूर्ण काम उसके हाथ लग गया है
एकांश ने उससे कहा कि वो 3-4 दिन में आ जाएगा जिसपर अक्षिता ने भी उससे कुछ नहीं कहा था, लेकिन उसके अंदर का डर बहुत बढ़ गया था वो किताब को साइन से लागए ही सो गयी
दूसरी तरफ़, अक्षिता के माता-पिता बहुत चिंतित थे क्योंकि अक्षिता डॉक्टर के पास जाने के लिए राज़ी ही नहीं थी जब उन्होंने उसे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए मजबूर किया, तो वो उन पर चिल्लाने लगी और उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया
उसके पेरेंट्स उसके व्यवहार से हैरान थे क्योंकि अक्षिता ने काभी ऐसे बर्ताव नहीं किया था उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है और जब उन्होंने एकांश से इस बारे में बात की, तो उसने उन्हें बताया कि वो जल्द ही वापस आ रहा है और फिर सब ठीक हो जाएगा
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डोरबेल की आवाज से अक्षिता की गहरी नींद मे खलल पड़ा था और उसने समय देखा तो अपनी भौंहें सिकोड़ लीं, क्योंकि रात के दस बज रहे थे और उसे आश्चर्य हुआ कि लोग उसके घर पर घंटी बजाते क्यों आते हैं, वो भी रात में ही
वो आह भरकर लिविंग रूम में आई उसे फिर इस बात पर आश्चर्य हुआ कि उसके माता-पिता कभी भी दरवाज़े की घंटी बजने पर क्यों नहीं उठते लेकिन फिर उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने खड़े व्यक्ति को देख खुशी से उछल पड़ी
"अंश” उसने एकांश को ऊपर से नीचे तक देखते हुए धीमे से कहा, उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था के एकांश सही मे वहा था
"अक्षिता.." एकांश भी अक्षिता को देख उतना ही खुश था और उसकी आँखों में भी आँसू थे
और तभी अक्षिता को ये एहसास हुआ कि वो सपना नहीं देख रही थी और एक कदम उसकी ओर बढ़ाते हुए उसने उसे कसकर गले लगा लिया
वो उसकी बाहों में रो रही थी और उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी, एकांश खुद भी रो रहा था क्योंकि उसे भी अक्षिता की बहुत याद आई थी
"I missed you so much" एकांश ने धीमे से उसके काम मे कहा वही अक्षिता ने उसे और भी कस कर पकड़ लिया
और कुछ पल वैसे ही रहने के बाद अक्षिता ने खुद को उससे दूर किया और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगी वही एकांश ने भी झुककर हल्के से अक्षिता के होठों को चूमा जिससे वो आँसूओ के साथ साथ मुस्कुराई फिर से उसने एकांश को कसकर गले लगाया और रो पड़ी क्योंकि उसे लगा था कि वो उसे देखे बिना ही मर जाएगी।
"शशश..... मैं यही हु तुम्हारे साथ..... अब रोना बंद करो" एकांश ने धीरे से अक्षिता की पीठ सहलाते हुए कहा
"मुझे डर लग रहा है अंश..... मैं..... मैं...." वो बोल नहीं पा रही थी
"कोई बात नहीं..... मैं हूँ ना..... अब सब ठीक हो जाएगा" एकांश ने अक्षिता को आश्वस्त करते हुए कहा
वो दोनों कुछ देर तक एक दूसरे को गले लगाए ऐसे ही बैठे रहे
"अब तुम जाकर सो जाओ, हम कल सुबह बात करेंगे" एकांश ने अक्षिता के आँसू पोंछते हुए कहा
लेकिन अक्षिता ने उसे जाने देने से मना कर दिया
"just stay with me..... please" अक्षिता ने एकांश के शर्ट को पकड़ते हुए कहा
" लेकिन....."
" प्लीज....."
और फी एकांश ने बगैर एक पल की देरी कीये अक्षिता को बाहर की ओर खिचा और दरवाजा बंद कर एक झटके मे उसे अपनी बाहों मे उठा लिया और अपने कमरे मे ले गया वही अक्षिता पूरे समय बगाऊर पलके झपकाए उसे देखती रही मानो उसने आंखे बंद की तो कही एकांश गायब ना हो जाए, अपने कमरे मे आकार एकांश ने अक्षिता को बेड पर सुलाया और खुद फ्रेश होने चला गया और जबतक वो बाहर आया अक्षिता सो चुकी थी, एकांश ने उसके पीले पड़े चेहरे और कमजोर शरीर की ओर देखा, अक्षिता की हालत एकांश का भी दिल दुख रहा था, उसने उसके माथे को चूमा और फिर उसे एक कंबल से धक दिया
एकांश फिर अपने कमरे से निकला और नीचे आया जहा अक्षिता के पेरेंट्स उसका इंतजार कर रहे थे
"उस डॉक्टर ने क्या कहा बेटा?" सरिताजी ने चिंतित होकर पूछा
"मैं उनसे मिला और अक्षिता की हालत के बारे में बताया, उन्होंने कहा है कि उन्होंने पहले भी इस तरह का ऑपरेशन किया था और वो सफल रहा था" एकांश ने रुककर उनकी तरफ देखा और उनके चेहरों पर उम्मीद की एक किरण देखी
"डैड के दोस्त उन्हें पहले से ही जानते थे, इसलिए उन्हें यहा इंडिया आने के लिए मनाना थोड़ा आसान था, उन्होंने मुझे कुछ और सिम्प्टम भी बताए है और कहा है कि जब हम उन्हें अक्षिता मे देखे तो हमें उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना होगा और डॉक्टर यहाँ बुला लेना होगा" एकांश मे बात खतम की वही अक्षिता के पेरेंट्स ये काम कर खुश थे के वो डॉक्टर अक्षिता के लिए भारत आने को राजी हो गया था
"वीडियो कॉल पर जब मैंने उसकी हालत देखी तो मैं समझ गया था के मामला और खराब हो रहा है, इसलिए मैंने अमर को यहाँ भेजा था ताकि वो उसके सिम्प्टम देख सके और मुझे बता सके, आप लोगों ने जो सिम्प्टम मुझे बताए थे और अमर ने जो सिम्प्टम पहचाने, वे बिल्कुल वही थे जो डॉक्टर ने हमें बताए थे, अमर ने तुरंत मुझे फ़ोन किया और कहा कि वापस आ जाओ ताकि हम उसका इलाज शुरू कर सकें" एकांश ने कहा
"मैं 2 दिन पहले ही वापस आ जाता, लेकिन मुझे डॉक्टर से एक बार और बात करनी थी और अक्षिता की हालत के बारे में बताने के लिए रुकना पड़ा, उन्होंने ही मुझे जल्द से जल्द इंडिया वापस जाने और उसे जल्द से जल्द अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कहा" एकांश ने भीगी पलको के साथ कहा और सारी बात सुन सरिता जी अपने पति के गले लगकर रो पड़ी
"क्या ऑपरेशन के बाद वो ठीक हो जाएगी?" अक्षिता के पिता ने डरते हुए पूछा जिसपर एकांश चुप रहा और इससे अक्षीता के पेरेंट्स और भी चिंतित हो गए
"हम अभी इस बारे में कुछ नहीं कह सकते लेकिन हमें उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना होगा क्योंकि आंटी आपने कहा था कि आजकल उसे चक्कर बहुत ज्यादा आ रहे है जो की ठीक नहीं है, और सबसे बड़ी बात ये है कि उसका सर कुछ यू धडक रहा होगा जैसे कोई हथोड़ा मार रहा हो और काफी दर्द भी हो रहा होता क्या उसने इस बारे में आपसे कुछ कहा?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा
"नहीं, उसने ऐसा कुछ नहीं बताया और वैसे भी अगर उसे दर्द भी होगा तो वो बताएगी नहीं और खुद ही सहेगी" अक्षिता की माँ ने रोते हुए कहा
"आप चिंता मत करो आंटी, मैं उसे कुछ नहीं होने दूंगा लेकिन पहले हमें उसे हॉस्पिटल में ऐड्मिट कराना होगा" एकांश ने कहा
"लेकिन इसके लिए तुम्हें उससे सच बोलना होगा कि तुम यहाँ क्यों हो" अक्षिता के पिता ने कहा
एकांश ने भी इस बारे में काफी सोचा कि उसे उसे सच बताना ही होगा क्योंकि शायद तब तक अक्षिता हॉस्पिटल में ऐड्मिट होने के लिए नहीं मानेगी जब तक वो उसके साथ नहीं है क्योंकि एकांश सच्चाई जानने के डर से तो वो सहमत नहीं होगी
"मैं कल उसे सब सच बता दूंगा" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता के पेरेंट्स भी थोड़े डरे हुए थे के क्या पता अक्षिता कैसे रीऐक्ट करेगी
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एकांश को सारी रात नींद नहीं आई वो बस अक्षिता के सोते हुए चेहरे को देखता रहा उसे नहीं पता था कि वो कैसे कहेगा और क्या कहेगा, लेकिन उसने अक्षिता सब कुछ बताने का फैसला कर लिया था
अगले दिन जब अक्षिता अपनी नींद से जागी औ उसने अपने आसपास एकांश को देखा तो वो कही नहीं था, अक्षिता जल्दी जल्दी नीचे आई तो उसने देखा के एकांश मस्त डाईनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था
जब अक्षिता ने उसकी तरफ देखा तो वो मुस्कुराया और वो भी मुस्कुराई, अक्षिता के अपने मा पापा को घर मे देखा तो वो कही नहीं थे तब एकांश ने उसे बताया के वो दोनों मंदिर गए थे और अब अक्षिता को भी भूख लगी थी इसीलिए वो भी फ्रेश होकर नाश्ता करने आ गई और जब अक्षिता नाश्ता कर रही थी एकांश फोन पर कुछ बाते कर रहा था
" अक्षिता."
एकांश ने अक्षिता को पुकारा और उसने भी उसकी ओर देखा
"मुझे तुमसे कुछ बात करनी है" एकांश ने उदास चेहरे से कहा, लेकिन अंदर ही अंदर उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था
वो दोनों जाकर सोफे पर बैठ गये
अक्षिता एकांश की घबराहट को उसकी झिझक को महसूस कर रही थी और उसने एकांश को पहले काभी ऐसे नहीं देखा था
"अंश, क्या हुआ? तुम क्या बात करना चाहते थे?" अक्षिता ने चिंतित होकर उससे पूछा
"यही की मैं यहाँ क्यों हूँ?" एकांश ने आराम से कहा और अब अक्षिता भी गौर से उसकी बात सुनने लगी
"अक्षिता...... मैं......"
" मुझे पता है, सब पता है" अक्षिता ने कहा
"क्या?"
"मैं जानती हूँ की तुम यहाँ क्यों हो एकांश" अक्षिता ने कहा
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा और उसे याद आया कि उसने तो पहले ही अक्षिता को था कि वो ऑफिस के काम से यहां आया था
"नहीं अक्षिता.... मैं ऑफिस के काम से यहाँ नहीं आया हूँ...... मैं तो यहाँ......"
"एकांश, मैं ऑफिस के काम की बात नहीं कर रही हूँ" अक्षिता ने नीचे देखते हुए कहा
"फिर?"
"मुझे पता है कि तुम मेरे बारे में सब सच जानते हो एकांश"
अक्षिता ने एकांश को देखा जो अपनी जगह जमा हुआ स बैठा था, उसके चेहरे पर स्पष्ट आश्चर्य था
"तुम क्या सोचते हो कि मैं नहीं जानती कि तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने एकांश से पूछा, जिसने उसकी ओर बड़ी-बड़ी आँखों से देखा
"हम एक दूसरे से प्यार करते थे अंश और तुम्हें मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता" अक्षिता ने नीचे देखते हुए कहा
"अब तुम सोच रहे होगे कि मुझे कैसे पता, लेकिन अगर तुम गहराई से सोचोगे तो तुम्हें खुद ही इसका जवाब मिल जाएगा।" अक्षिता ने मुस्कुराते हुए कहा
एकांश कुछ नहीं बोला..... वो कुछ कह ही नहीं सका
"मुझे पता है कि तुम मुझे ये बात बताने से बचने के लिए बहुत सतर्क थे, लेकिन फिर भी मैंने कुछ चीजें नोटिस कीं जो शायद तुमने नहीं कीं" अक्षिता ने कहा वही एकांश अब भी उसकी ओर ही देख रहा था
"जब तुमने ऊपर का कमरा किराए पर लिया, तो मुझे शक हुआ क्योंकि हमने तो तुम्हें कभी नहीं देखा था और किसी तरह मुझे लगा कि ये तुम ही हो क्योंकि मुझे पता है कि जब तुम मेरे करीब होते हो तो कैसा महसूस होता है लेकिन मैंने ये सोचकर उस फीलिंग को नजरअंदाज कर दिया कि मैं शायद तुम्हें बहुत याद कर रही हूं, और फिर उस दिन जब मैं अपने घर के बाहर बेहोश हो गई थी और जब मैं उठी तो मैं अपने कमरे में थी, मैं उलझन में थी कि मुझे मेरे कमरे में कौन लाया क्योंकि मेरे पापा भी उस समय वहां नहीं थे और जब मैंने अपनी मां से इस बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने ऊपर रहने वाले किरायेदार की मदद ली थी, और पता है सबसे कमाल की बात क्या थी, मुझे ना उस वक्त सपना आया था के तुमने मुझे अपनी बाहों मे उठा रखा था और फिर जब मैंने उस दिन तुम्हें अपने घर में देखा तो मुझे एहसास हुआ कि वो एक सपना नहीं था, जब मुझे पता चला की वो किरायेदार तुम थे, तो मैं चौंक गई थी लेकिन मैं खुश थी”
"और फिर मुझे तब थोड़ा शक हुआ जब मेरे मा पापा तुम्हें यहाँ देखकर चौके नहीं और इसके अलावा वो तुम्हारे साथ इतनी आसानी से घुलमिल गए जैसे कि वो तुम्हें लंबे समय से जानते हों"
"और फिर उस दिन की वो हमारी पानी की लड़ाई जिसके बाद तुम टेंशन मे मेरे कमरे में आए थे ये जानने के लिए कि मैं ठीक हूं या नहीं यही बस यही वो टाइम था जब मैं सब समझने लग थी"
"उसके बाद तुम मुझे कई बार मेरे रूम मे भी आए और मेरे बेडरूम की दीवारों पर लगी अपनी तस्वीरों को देखते हुए भी मुझसे कुछ भी नहीं पूछा या कुछ नहीं कहा" अक्षिता ने एकांश से कहा जो अब भी चुप चाप उसकी बात सुन रहा था
"तुम्हें वो दिन याद है जब तुमने मुझे मॉल छोड़ा था?" अक्षिताने पूछा और एकांश ने अपना सिर हा मे हिला दिया
"उस दिन जब मैं वापस आई तो तुमने मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा कि मैं कहाँ से आ रही हूँ, मैंने क्या खरीदा क्योंकि मेरे हाथ में मेरे हैंडबैग के अलावा कुछ भी नहीं था, और उस दिन मुझे समझ में आया कि तुम्हें पता होगा कि मैं अस्पताल गई थी मॉल नहीं"
"फिर एक दिन तुमने मुझे अपने ऑफिस में एक फ़ाइल लाने के लिए कहा था और जब मैं तुम्हारे केबिन में गई, तो मैंने तुम्हारे डेस्क पर अपनी तस्वीर देखी और तब मुझे एहसास हुआ कि तुम अभी भी मुझसे प्यार करते हो और मुझे ढूँढने यहाँ आए हो, जब हम तुम्हारे ऑफिस की पार्टी में गए, तो मैंने देखा कि कैसे मेरे दोस्त तुम्हारे भी दोस्त भी बन गए थे और मैं इससे काफी खुश हु, फिर तुम लोगों का मेरा ध्यान रखना, जब मैं कुछ पीना चाहती थी या आइसक्रीम खाना चाहती थी, तो जिस तरह से तुम रीऐक्ट करते थे, उससे मेरा शक और बढ़ गया" अक्षिता ने आगे कहा लेकिन एकांश की ओर नहीं देखा
"ये सब सिर्फ़ मेरा शक था या ऐसा मैं तब तक सोचती रही जब तक कि मैंने तुम्हारे कमरे में अपनी डायरी नहीं देखी जब तुम जर्मनी गए थे, तब सारी बातें साफ हो गईं और सब कुछ मेरे लिए क्लियर हो गया" अक्षिता ने कहा और एकांश की ओर देखा जो अब अपनी आँखें बंद कर रहा था
अक्षिता ने एकांश के दोनों हाथ पकड़ लिए जिससे वो उसकी ओर देखने लगा और अक्षिता ने पहली बार एकांश की आँखों में डर देखा जिससे वो और ज्यादा चिंतित हो गई
"तुमने मेरी वजह से अपनी माँ से झगड़ा किया था, है न?" अक्षिता ने अपनी आँखों मे आँसू भरकर पूछा और एकांश ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमाया लिया
"क्यों एकांश? क्यों?" अक्षिता चिल्लाई
"तुम्हें पता है मैं अचानक क्यों चली गयी थी?" अक्षिता ने पूछा
"मेरे लिए तुम्हारे बिहैव्यर में आए बदलाव के कारण मुझे वो जगह छोड़नी पड़ी" अक्षिता ने कहा और एकांश बस उसे देखता रहा
"तुम मेरे साथ अच्छा बर्ताव कर रहे थे, मेरा ख्याल रख रहे थे और मुझसे नॉर्मल तरीके से बात कर रहे थे...... इन सब बातों से मैं इतना डर गई कि मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ा क्योंकि मुझे डर था की तुम मुझसे फिर से जुड़ जाओगे और जब मैं चली जाऊंगी तो ये तुम्हें तोड़ के रख देगा" अक्षिता ने कहा और उसकी आंखों से आंसू बह निकले
एकांश चुपचाप उसकी बातें सुनता रहा, लेकिन उसकी ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया
"तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे साथ कितनी सारी बातें शेयर करना चाहती थी, लेकिन मुझे डर था कि मेरे चले जाने के बाद तुम्हारा क्या होगा"
"लेकिन अब, मैं ये बताने के लिए और इंतजार नहीं कर सकती कि मैं किस दौर से गुजर रही हूँ, जो की तुम पहले से ही जानते हो" अक्षिता ने आँसुओ के साथ कहा
"प्लीज मुझे बताओ अक्षु...... तुम्हें पता नहीं है कि मैं चाहता था कि तुम मुझे बताओ कि तुम पर क्या बीत रही है" एकांश ने अक्षिता के आँसू पोंछते हुए कहा
"हमारे रिलेशनशिप के दौरान ही मुझे बहुत ज़्यादा सिरदर्द और चक्कर आते थे, मुझे लगता था कि शायद ये तनाव या किसी कमज़ोरी की वजह से हो रहा होगा, जब मेरे मा पापा ने मेरी शादी के लिए लड़के देखने के बारे में सोचा, तो मैं तुम्हारी जगह किसी और के बारे मे सोच भी नहीं सकती थी इसलिए मैंने उन्हें तुम्हारे बारे में बताया, मैंने उन्हें तुम्हारी फोटो दिखाईं और वो तुमसे मिलने के लिए राज़ी हो गए, मैं बहुत खुश थी और सोचा कि अगले दिन तुम्हें बताऊँगी लेकिन मैं उस दिन अचानक बेहोश हो गई" अक्षिता बोलते बोलते चुप हो गई
"मेरे मा पापा मुझे अस्पताल ले गए लेकिन डॉक्टर मेरे अचानक बेहोश होने का कारण नहीं जान पाए, होश में आने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मुझे कोई सिम्प्टमस् है और मैंने उन्हें लगातार सिरदर्द और चक्कर आने के बारे में बताया तो उन्होंने मेरे कुछ टेस्ट किए और मुझे अगले दिन आने को कहा, और फिर जब हम अगले दिन अस्पताल गए, तो उन्होंने हमें मेरे ब्रैन में ट्यूमर के बारे में बताया" अक्षिता अपना चेहरा ढँककर फूट-फूट कर रोने लगी थी
औरों से अक्षिता के बारे मे सुनना अलग बात थी लेकिन अक्षिता के मुह से ही उसकी तकलीफ के बारे मे सुनना एकांश को तोड़ रहा था, वो उस दर्द को महसूस कर रहा था जिससे अक्षिता गुजरी थी, उसने आज पहली बात अक्षिता को अपने सामने टूटते देखा था जो उसका दिल छलनी कर रहा था
उसने अक्षिता को कस कर गले लगा लिया था
"मैं मर रही हूँ अंश...... मैं मर रही हूँ......" अक्षिता उसकी आगोश में जोर-जोर से रोने लगी थी और एकांश भी उसके साथ रो रहा था
दोनों ही एकदूसरे को गले लगा कर कुछ देर तक रोते रहे
अक्षिता तो एकांश के पहलू मे शांत हो गई थी लेकिन एकांश अभी भी उसे पकड़कर रो रहा था और अक्षिता उसे यू रोता देखना बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी एकांश के आँसू उसके दिल पर वार कर रहे थे
"शशश... एकांश... मैं हूँ अभी" अक्षिता ने एकांश की पीठ सहलाते हुए उसे गले लगा लिया और कुछ ही देर मे एकांश भी शांत हो गया था लेकिन उसका दिल अभी भी जोरों से धडक रहा था
"मुझे डर लग रहा है अंश...."
अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए कहा
"मुझे तुम्हारे लिए डर लग रहा है...... मुझे पता है कि मेरे चले जाने के बाद तुम अपनी जिंदगी सीधी तरह नहीं जी पाओगे और मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे कारण अपनी जिंदगी बर्बाद करो और मैं नहीं चाहती कि तुम मेरु वजह से जिंदगी जीना ही बंद कर दो" अक्षिता ने एकांश के गालों को सहलाते हुए कहा
"मुझे पता है कि तुम मेरे लिए हिम्मत बांधे हो अंश.... और मुझसे वादा करो के हमेशा ऐसे ही रहोगे और मेरे मा पापा के भी सपोर्ट मे रहोगे, ठीक है?" अक्षिता ने नाम आँखों से पूछा और एकांश ने भी हा मे सर हिला दिया
"तुम मुझे छोड़ कर कही नहीं जाओगी...... कही नहीं" एकांश ने रोते हुए कहा
"ये मेरे हाथ में नहीं है अंश.... मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती" अक्षिता एकांश के माथे को अपने माथे से छूते हुए रो पड़ी
"नहीं! ऐसा मत कहो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर बचाऊंगा अक्षु" एकांश ने अक्षिता के हाथों को अपने हाथों में कसकर पकड़ते हुए कहा और वो बस उसे देखकर मुस्कुराई
"अंश, क्या तुम मुझसे एक वादा करोगे?" अक्षिता ने पूछा
"जो तुम कहो" उसने कहा.
"अगर मुझे कुछ हो गया तो......" लेकिन एकांश ने उसे बीच मे ही रोक दिया
"नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा! और ऐसा दोबारा कभी मत कहना!"
"प्लीज मेरी बात सुनो अंश" अक्षिता ने वापिस आराम से कहा
"अगर मुझे कुछ हो जाता है तो मुझसे वादा करो कि तुम अपनी ज़िंदगी यहीं नहीं रोकोगे, तुम अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं करोगे, तुम अपने आस-पास के लोगों को चुप नहीं कराओगे, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे जिससे तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद हो जाए, मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ो, मैं चाहती हूँ कि तुम लोगों को अपनी ज़िंदगी में आने दो, मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी का एक नया चैप्टर शुरू करो जहाँ कोई दुख और आँसू न हों, सिर्फ़ मुस्कुराहट और खुशी हो, करोगे वादा" अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए पूछा और एकांश बस उसे देखता ही रहा
एकांश सोच रहा था की अक्षिता उससे ये बाते कैसे मांग सकती है जिनकी वो उसके बगैर कल्पना भी नहीं कर सकता
" मुझसे वादा करो अंश...." अक्षिता ने एकांश की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा, जिसकी आँखें पूरी आशा और विश्वास से भरी थीं
"अंश" जब एकांश ने कोई जवाब नहीं दिया तो अक्षिता ने उसे दोबारा पुकारा
"ठीक है, वादा रहा" एकांश ने कहा
अक्षिता भी एकांश का हाथ पकड़े हुए मुस्कुराई
"थैंक यू अंश"
वो खुश थी क्योंकि वो जानती थी कि एकांश अपना वादा निभाएगा
वो जानती थी कि एकांश उसका वादा उसका भरोसा कभी नहीं तोड़ेगा
वो जानती थी कि वो उसके लिए कुछ भी करेगा और ये तो उसकी आखिरी इच्छा थी और एकांश इसे पूरा जरूर करेगा
"और प्लीज फिर से प्यार करने की कोशिश करो, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे पास कोई हो जो तुम्हारा ख्याल रख सके और तुमसे प्यार कर सके, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारा एक परिवार हो, मैं चाहती हूँ कि तुम अपने परिवार के साथ एक नॉर्मल जिंदगी जियो अंश" अक्षिता ने एकांश के कंधे पर अपना सर टिकाते हुए कहा
"तुम्हें नहीं लगता कि ये तुम मुझसे बहुत ज्यादा मांग रही हो?" एकांश ने शांत स्वर मे उससे पूछा, लेकिन अक्षिता की बात सुनकर उसका दिल अंदर से टूट गया था
वो उसकी जगह किसी और को कैसे दे सकता था?
वो अपनी जिंदगी किसी और के साथ कैसे जी सकता था?
"अंश?" अक्षिता ने उसे पुकारा
"तुम थकी हुई लग रही हो, तुम्हें दवाइयां लेकर सो जाना चाहिए" एकांश ने बात बदलते हुए कहा जो अक्षिता समझ गई थी
एकांश ने अक्षिता को अपनी बाहों में उठाया और उसके कमरे में ले गया, उसने उसे बिस्तर पर सुला दिया और उसे राजाई उढ़ा दी
अक्षिता भी उसकी ओर देखकर मुस्कुराई और सो गई, क्योंकि वह बहुत थकी हुई थी
एकांश ने उसके माथे को चूमा और उसके कान में फुसफुसाया......
अगली सुबह उठते ही अक्षिता के चेहरे पर एक सुंदर मुस्कान थी, कल एकांश से बात करने के बाद वो काफी हल्का महसूस कर रही थी
उसने दीवारों पर देखा जिस पर एकांश की सारी तस्वीरें लगी हुई थीं, वो मुस्कुराई और उससे मिलने के लिए तैयार होने लगी और बढ़िया नहा कर साड़ी पहने बाहर आई
अक्षिता लिविंग रूम में आई तो उसकी माँ ने उसे नाश्ता दिया, उसने एकांश के बारे में पूछा तो सरिताजी ने उसे बताया कि एकांश बाहर गया हुआ है जिससे अक्षिता मुँह फुलाए हुए थी क्योंकि वो इस वक्त बस एकांश को देखना उससे मिलना चाहती थी
वो उसके कमरे में गई तो देखा कि फर्श पर उसकी फाइलें और कपड़ों सहित कई सारी चीजें बिखरी पड़ी थीं, ऐसा लग रहा था कि एकांश ने हताशा और गुस्से में ये चीजें फेंकी थीं
उसने पूरा कमरा साफ किया और एकांश की स्टडी टेबल पर
बैठ गई और अनजाने में ही वो नींद के आगोश में चली गई
थोड़ी देर बाद जब एकांश कमरे में आया तो उसने देखा कि अक्षिता उसकी टेबल पर सर टिकाए सो रही थी, उसने उसके खूबसूरत चेहरे को देखा और उसकी खूबसूरती की मन ही मन तारीफ़ की, उसकी आँखों से आँसू निकल आए जिसे उसने जल्दी से पोंछ दिया
एकांश ने आज सोच लिया था कि वो आज किसी भी कीमत पर अक्षिता को हॉस्पिटल में भर्ती करवा देगा
उसने कमरे में चारों ओर नज़र घुमाई तो पाया कि कमरा साफ़-सुथरा था, उसे अच्छी तरह याद था कि कल रात गुस्से और हताशा में उसने अक्षिता की सेहत के बारे में सोचते हुए सारी चीज़ें फेंक दी थीं
वो वाशरूम गया और बाहर आकर देखा कि अक्षिता अभी भी सो रही थी उसने उसे धीरे से उसे अपनी बाहों में उठाया और अपने बिस्तर पर सुला दिया
एकांश अक्षिता को अपने बेड पर सोता छोड़ अपने कमरे से बाहर आया और कुछ फ़ोन कॉल किए, उसने डॉक्टर से भी उसके हॉस्पिटल में ऐड्मिट होने के बारे में बात की और डॉक्टर ने उसे बताया कि सब कुछ तैयार था और एकांश उसे कभी भी ऐड्मिट करा सकता था
एकांश ने नीचे जाकर अक्षिता के मा पापा से भी इस बारे मे बात उन्होंने भी उससे कहा कि जो भी उसे सही लगे, वो करें क्योंकि वे बस इतना चाहते थे की उनकी बेटी ठीक रहे, उन्होंने जर्मनी में डॉक्टर से भी बात की और कहा कि जैसे ही उन्हें आने के लिए कहा जाएगा, वे भारत आ जाएंगे..
एकांश ऊपर जाकर अक्षिता के पास सो गया, लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी, उसके मन में कई विचार घूम रहे थे कि कहीं अक्षिता के साथ कुछ हो न जाए
अब तक अक्षिता भी जाग गई थी और उसने देखा कि एकांश उसके बगल में सो रहा था और छत को घूर रहा था, वह उसके करीब खिसकी और उसने एकांश के कंधे सर टिकाया और अपने हाथों से उससे पकड़े वापिस सो गई
एकांश ने भी अपना हाथ उसकी कमर के चारों ओर लपेटकर उसे अपने पास खींच लिया और जब वो उससे चिपक गई तो एकांश के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई
"अंश, तुम कहाँ थे?" अक्षिता ने पूछा
"मुझे कुछ काम था बस वही कर रहा था" एकांश ने कहा और अभी अक्षिता से बात करने का फैसला किया
" अक्षिता?"
" हम्म।"
"हमें हॉस्पिटल चलना चाहिए" एकांश ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा
"डॉक्टर ने जो सिम्प्टम बताए थे, वो अब साफ तौर पर दिख रहे हैं और अब हमे और देर न करते हुए जल्द से जल्द हॉस्पिटल में ऐड्मिट होने की जरूरत है"
"सिम्प्टम?" अक्षिता ने पूछा
"हाँ.... मैं जर्मनी किसी बिजनस की वजह से नहीं गया था, बल्कि एक डॉक्टर से मिलने गया था जो ऐसे मामलों का स्पेशलिस्ट है और वो तुम्हारा इलाज करने के लिए इंडिया आने को तैयार है" एकांश ने कहा और अक्षिता के रिएक्शन का इंतजार करने लगा
एकांश की उसे ठीक करने की कोशिश को देखते हुए अक्षिता की आंखे वापिपस भरने लगी थी
"कब?" अक्षिता ने पूछा और एकांश आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा
"आज" एकांश के कहा जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी
"हाँ, डॉक्टर ने कहा है कि तुम्हें जल्द से जल्द हॉस्पिटल मे ऐड्मिट करा दिया जाए" एकांश ने अक्षिता को समझाते हुए कहा और अक्षिता थोड़ा उधर होकर नीचे देखने लगी
"अक्षिता...." एकांश ने उसे पुकारा
"क्या हम कल जा सकते हैं? क्योंकि जाने से पहले मैं अपना ज़्यादातर समय तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूँ" अक्षिता ने उम्मीद से एकांश की आँखों मे देखते हुए पूछा
एकांश ने एक मिनट सोचा और अपना सिर हा मे हिला दिया जिसपर अक्षिता मुस्कुराई और उसके एकांश के गाल को चूम लिया
"बस सिर्फ एक किस, वो भी गाल पे" एकांश ने कहा और उसके इक्स्प्रेशन देख अक्षिता हसने लगी और एकांश ने अपने होंठ उसके होंठों पर रखकर उसकी हंसी को बंद करा दिया, दोनों एकदूसरे को चूम रहे थे और एकांश के हाथ अक्षिता की कमर पर घूम रहे थे
"तुमने साड़ी क्यों पहनी है?" एकांश ने अक्षिता से दूर हटते हुए कहा और अक्षिता ने उसे एक कन्फ्यूज़ लुक दिया
"जब तुम साड़ी पहनती हो तो मेरे लिए खुद को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है।" एकांश ने अक्षिता की आँखों में देखते हुए कहा
"तो फिर तुम्हें किसने कहा है कि तुम खुद पर कंट्रोल रखो।" अक्षिता ने कहा और शरमा कर दूसरी ओर देखने लगी वही एकांश बस अपलक उसे देख रहा था
एकांश ने फिर से अक्षिता को अपने करीब खिचा और दोनों के होंठ वापिस एकदूसरे से जुड़ गए थे, दोनों वापिस एकदूसरे के आगोश मे समा गए थे
"I think we should stop here" कुछ पल अक्षिता को किस करके के बाद एकांश ने पीछे हटते हुए बेड से उठते हुए कहा जिससे अक्षिता को थोड़ी निराश हुई
"ऐसा नहीं है कि मैं ये नहीं चाहता, मैं अभी तुम्हारे साथ कुछ करना चाहता हूँ, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि तुम्हारे मा पापा हम पर भरोसा करते हैं और हम इसका फायदा नहीं उठा सकते" एकांश ने कहा और अक्षिता भी जैसे उसकी बात समझ गई थी
वो बिस्तर से उठी और उसके गालों को अपने होंठों से चूमने लगी जिससे एकांश भी मुस्कुराया, उसने कभी ऐसा लड़का नहीं देखा था जो अपने आस-पास के लोगों से इतना प्यार करता हो, वो ना सिर्फ अपना काम और ऐशोआराम छोड़कर उसके पास आया था बल्कि उसके परिवार को उसके मा पापा को अपना माँ कर उनका सहारा भी बना था और एक आम आदमी की तरह रहने लगा था, दोनों ने एकदूसरे को गले लगा लिया था
"मैं सब ठीक कर दूंगा अक्षिता" एकांश ने अक्षिता के माथे को चूमते हुए कहा
"जानती हु"
******
अक्षिता एकांश का इंतजार कर रही थी, उसने उसे यायर होने के लिए कहा था और वो दोनों कही जा रहे थे, अक्षिता भी बढ़िया साड़ी पहन कर तयार हुई थी क्युकी वो भी जानती थी के एकांश को उसे साड़ी मे देखना पसंद था
जब अक्षिता ने एकांश की कार का हॉर्न सुना तो वो बाहर आई, एकांश भी मस्त रेडी हुआ था और अक्षिता की नजरे अब भी उसपर से हट नहीं रही थी
“चलें..." एकांश ने अक्षिता के लिए कार का दरवाज़ा खोलते हुए कहा
"कहाँ?" अक्षिता ने पूछा
"तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा" एकांश के अक्षिता के बैठने के बाद कार का दरवाजा बंद करते हुए कहा
एकांश भी कार मे आकार बैठा और वो दोनों निकल गए, दोनों ही कुछ नहीं बोल रहे थे, गाड़ी मे एकदम शांति थी लेकिन दोनों के होंठों पर मुस्कान खेल रही थी
अक्षिता समझ गई थी के एकांश उसे कही खास जगह लेकर जा रहा था लेकिन कहा ये वो नहीं जानती थी और उसने पूछा भी नहीं क्युकी एकांश चाहे उसे जहा ले जाए उसके लिए बस उसके साथ रहना जरूरी था वो बस उसके साथ रहना चाहती थी
एकांश उसे उस शॉपिंग मॉल मे ले गया जहाँ वो दोनों पहली बार मिले थे और उसने उस जगह को देखा जहाँ वो दोनों एक दूसरे से टकराए थे, दोनों की यादों के झरोखे मे खोए थे.... उनकी पहली लड़ाई, उनकी बातचीत और कैसे वो मुलाकात दोस्ती में बदल गई थी
दोनों ने एक दूसरे को देखा और नम आँखों से एक दूसरे को देखकर मुस्कुराये, एकांश ने अक्षिता को कुछ शॉपिंग करवाई और उसने उसके और उसके मा पापा के लिए कुछ चीजें खरीदीं
वो उसे उस पार्क में ले गया जहाँ वो हमेशा मिलते थे, दोनों एक बेंच पर बैठे और मुस्कुराते हुए उन यादों को फिर से ताज़ा कर रहे थे
फिर वो उसे एक रेस्तराँ में ले गया और एक दूसरे से बातें करते हुए और एक दूसरे को चिढ़ाते हुए दोनों ने खाना खाया, भविष्य के गर्भ मे क्या छिपा है इसकी चिंता छोड़ दोनों आज का दिन भरपूर जी रहे थे और हमेशा की ऐसे ही रहना चाहते थे
अक्षिता एकांश को हंसता और मुस्कुराता देखकर खुश थी, क्योंकि कल जब उसने एकांश अपने लिए रोते देखा था तो वह डर गई थी, उसे चिंता थी कि उसके बाद एकांश का क्या होगा और वो रात को उसके बारे में सोचकर सो भी नहीं पाती थी
वो बस यही चाहती थी कि वो खुश रहे और अपनी जिंदगी जिए, चाहे अक्षिता वहा हो या ना हो
अक्षिता उस इंसान की ओर देखकर मुस्कुराई जो उससे कुछ कहते हुए हंस रहा था और वो उससे अपनी नजरें नहीं हटा पा रही थी...
"अक्षिता, आओ हमें कहीं चलना है" एकांश ने अक्षिता को उसके खयालों से बाहर लाते हुए कहा
"कहाँ?" अक्षिता ने पूछा
"सप्राइज़ है” एकांश ने मुसकुराते हुए कहा और अक्षिता को कार मे बिठाया, उसके आगे एकांश से कुछ ना पूछने का फैसला किया और वो जहा ले जाए जाने के लिए माँ गई और जब कार रुकी तो वो जहा आए थे वो जगह देख अक्षिता थोड़ा चौकी और स जगह को देखने लगी
"अंश, हम यहाँ क्यों आए हैं?" अक्षिता ने धीमे से फुसफुसाते हुए पूछा
"यही वो सप्राइज़ है जिसके बारे में मैं बात कर रहा था" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा
"ये कोई सप्राइज़ की बात नहीं है, शॉक है" अक्षिता ने कहा
और एकांश अक्षिता के शॉक भरे इक्स्प्रेशन देखकर हंस पड़ा
"अब चलो" एकांश ने कार से उतरते हुए कहा लेकिन अक्षिता अपनी जगह से नहीं हिली
"अक्षिता?"
"प्लीज अंश, मुझसे ये नहीं होगा" अक्षिता ने कहा
"तुम्हें इतनी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है यार"
" लेकिन........"
"बाहर आ रही हो या उठाकर ले आऊ" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए कहा और जैसे ही एकांश ये बोला
"नहीं!" अक्षिता चिल्लाई और जल्दी से कार से नीचे उतर गई क्योंकि उसे यकीन था कि वो उसे जरूर उठाकर ले जाएगा
"अच्छा अब चलो वो हमारा ही इंतज़ार कर रहे हैं" एकांश ने अक्षिता का हाथ पकड़ते हुए कहा वही अक्षिता अब भी इस बारे मे शुवर नहीं थी
"चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा" एकांश ने कहा और उसे अपने साथ लेकर मेन गेट की ओर चल दिया
"नहीं, अंश, प्लीज" अक्षिता ने डरते हुए कहा
"do you trust me?" एकांश ने अक्षिता से पूछा
"हाँ." उसने कहा.
"तो फिर चलो"
"एकांश रुको!" अंदर से आवाज़ आई
दोनों ने अंदर देखा तो एकांश की मां तेजी से उनकी ओर आ
रही थी
"वहीं रुको।" एकांश की मा ने हाफते हुए कहा
"अब क्या हुआ माँ?" एकांश ने पूछा
"वो पहली बार हमारे घर आई है तुम रुको मुझे उसे अच्छे से अंदर बुलाने दो" एकांश की मां ने कहा और दोनो की आरती उतारी और अक्षिता का घर में स्वागत किया और अक्षिता को।कसकर गले लगाया और इससे अक्षिता को घबराहट थोड़ी कम हुई
"डैड कहाँ हैं?" एकांश ने पूछा।
"अरे मैं यहीं हूँ" एकांश के पिता आकार उसकी माँ के पास खड़े हो गए और उन्हें देखकर मुस्कुराने लगे
दोनों ने झुककर एकांश के पेरेंट्स के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया
"आओ पहले खाना खा लें" एकांश की मां ने कहा
उन्होंने बातें करते हुए और हंसते हुए खाना खाया, एकांश की माँ ने अक्षिता को उसके बचपन की सारी कहानियाँ सुनाईं जिससे अक्षिता को भी एकांश के मजे लेने का पूरा मौका मिला
अक्षिता वो वहा पूरी घरवाली फीलिंग आ रही थी और वो घबराहट तो मानो कब की गायब हो चुकी थी, एकांश भी उसे यू हसता मुस्कुराता देख खुश था
उन्होंने कुछ देर और बातें की और उसके बाद एकांश अक्षिता के अपना घर दिखाने ले गया, अक्षिता सब कुछ गौर से देख रही थी क्योंकि वो उसके बारे में सब कुछ जानना चाहती थी
और आखिर में वो उसे अपने कमरे में ले गया और अक्षिता एकांश के कमरे को देखकर दंग रह गई,
अक्षिता उस कमरे में घूम-घूम कर हर चीज़ को उत्सुकता से देख रही थी उसे एकांश के कमरे में होने का एहसास अच्छा लग रहा था और वो दीवार पर लगी तस्वीरों को देखकर मुस्कुरा रही थी
एकांश बाथरूम चला गया था जबकि अक्षिता फोटो देखने में मग्न थी और एकांश के बचपन के फोटो देख मुस्कुरा रही थी
अक्षिता हर चीज को देख रही थी और फिर देखते हुए अक्षिता की नजर एकांश की अलमारी में रखी अपनी फोटो पर पड़ी जिसमे वो मुस्कुरा रही थी, उसके देखा तो वहा उसकी और भी कई तस्वीरें थी, और ये देख कर की एकांश ने उसकी सभी यादों को संभाल कर रखा है अक्षिता की आंखो में पानी आ गया था, वो अब कमरे की खिड़की के पास खड़ी होकर इसी बारे में सोच रही थी और तभी उसने अपने चारो ओर हाथ महसूस किए और उसने पाया के एकांश उसे पीछे से लगे लगा रहा था
"अंश, I like your room..... क्या मस्त कमरा है तुम्हारा और यहा से व्यू कितना शानदार है" अक्षिता ने बाहर की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, बहुत सुंदर है" एकांश ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा
"अंश, मुझे माफ़ कर दो" अक्षिता ने अचानक कहा जिससे एकांश थोड़ा चौका
"क्यों?" एकांश ने अक्षिता का चेहरा अपनी ओर घूमते हुए पूछा
"तुम इतना बड़ा घर, सुख-सुविधाएं, ऐशोआराम और सबसे इंपोर्टेंट अपना परिवार छोड़कर हमारे साथ इतने छोटे से घर और छोटे से कमरे में रह रहे हो.... मेरी वजह से" अक्षिता ने धीरे से नीचे देखते हुए कहा
एकांश ने अक्षिता की ठोड़ी को ऊपर उठाया लेकिन फिर भी वो उसकी ओर नहीं देख रही थी
"मेरे लिए अभी तुमसे ज़्यादा इंपोर्टेंट कुछ भी नहीं है" एकांश ने धीमे से फुसफुसा कर कहा और अक्षिता आँसू भरी आँखों से उसे देखने लगी
वो थोड़ा मुस्कुराई और सोचने लगी कि उसने ऐसा क्या अच्छा काम किया होगा कि एकांश उसकी जिंदगी में आया
"I am still sorry" अक्षिता ने कहा
"अक्षिता, ऐसा मत सोचो...... और मैं तुम्हारे साथ रहकर खुश हूँ" एकांश ने अक्षिता को आंखो में देखते हुए कहा
"मैं इसके लिए सॉरी नही कह रही हूँ, मैं तो इसलिए माफ़ी मांग रही हूँ क्योंकि मैंने तुम्हें अभी अभी बिना कपड़ो के देख लिया" उसने कहा और उसकी आँखें आश्चर्य से बाहर आ गईं
"क्या.....?" एकांश ने एकदम चौक कर पूछा
"हाँ" अक्षिता ने मासूमियत से कहा
"कब और कहाँ?" एकांश ने हैरानी भरे स्वर में पूछा
"अभी, यहीं पर"
और फिर अक्षिता ने एकांश को उसके बचपन की एक फोटो दिखाई जिसमे वो बगैर कपड़ो के था
एकांश एक पल के लिए शॉक होकर उसे देखता रहा और फिर फोटो की तरफ, उसे समझने में थोड़ा समय लगा और जब उसे समझ आया, तो उसने अक्षिता की ओर देखा जो अपनी हंसी को रोकने की कोशिश कर रही थी और एकांश के एक्सप्रेशन देखकर वह अपनी हंसी पर कंट्रोल नहीं रख सकी और जोर से हंसने लगी, और एकांश से दूर हटी जो अब उसे घूर रहा था और उसके हाथ से अपनी फोटो छीनने की कोशिश कर रहा था
वही अक्षिता भाग भाग कर उसे चिढ़ा रही थी
अक्षिता बिस्तर के चारो ओर भाग रही थी और एकांश उसके पीछे था और आखिर में उसने अक्षिता का हाथ पकड़ लिया और वो दोनो बेड पर गिरे, नजदीकिया बढ़ रही थी, दोनो हाफ रहे थे और एकदूसरे को देख रहे थे और फिर दोनो जोर जोर से हंसने लगे
दोनो को अब अपनी नजदीकियों का एहसास बीके रहा था, आसपास के माहोल में गर्मी बढ़ रही थी, अनजाने में ही कब उनके चेहरे एकदूसरे को ओर बढ़े और होठ आपस में मिले उन्हें पता ही नही चला और उस प्यार भरे किस के टूटने के बाद एकांश ने अक्षिता को देखा और कहा
अक्षिता ने जैसे ही दरवाजा खोला वो अपने सामने खड़े शक्स को देख चौकी
"आई थिंक तुमने मुझे बहुत ज्यादा मिस किया" दरवाजे पर खड़े बंदे ने अक्षिता की ओर मुस्कुराकर देखते हुए कहा
"नहीं" अक्षिता अचानक सीधे सीधे बोली और ये सुन उस बंदे की मुस्कुराहट गायब हो गई और वो एकटक अक्षिता को देखने लगा
"तुम इस वक्त यहाँ क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने उस बंदे से पूछा जो अब भी दरवाजे पर ही खड़ा था वही उस बंदे की नजर उसके पीले चेहरे और थकी हुई आंखो पे पड़ी
"मैं बस तुमसे मिलने आया था।" उस बंदे ने कहा और अक्षिता गौर से देखा
"इस वक्त?" अक्षिता ने वापिस उस बंदे को घूरते हुए पूछा
"हाँ, उसमे क्या है" उसने कहा और घर में चला आया वही अक्षिता बस उसे देखती रही
वो बंदा सीधा घर में आया और डाइनिंग टेबल के पास गया और उसने वहा रखी सेब उठाई और खाने लगा और खाते खाते ही आकर सोफे पर बैठ गया वही अक्षिता बस उसे देखती रही और फिर वो भी उसके सामने सोफे पर बैठ गई
"तुम यहा क्या कर रहे ही तुम्हें तो उसके साथ होना चाहिए था" अक्षिता ने उस बंदे की ओर देखते हुए कहा
"हाँ पता है और मैं उसके साथ ही था, लेकिन मुझे कुछ ज़रूरी काम आगया था इसलिए मुझे जल्दी वापस आना पड़ा" उस बंदे ने कहा जैसी अक्षिता चुप रही
"तुम मुझसे एक वादा करोगी?" उसने अचानक से अक्षिता से पूछा जिसपर अक्षिता चौकी
"क्या?" अक्षिता ने पूछा
"प्लीज दोबारा एकांश का साथ मत छोड़ना तुम नही जानती तुम्हारे बगैर उसका क्या हाल था" अमर ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा
"अमर मैं...." अक्षिता से आगे कुछ बोला ही नही गया वो ये वादा कैसे।कर सकती थी जबकि को तो अपने जीवन की सच्चाई जानती थी, वो ये भी नही जानती थी के अगले ही पल उसके साथ क्या होगा, यही सोचते हुए अक्षिता की आंखे वापिस भर आई थी और उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखा
"मुझे पता है कुछ तो है जो तुम्हें वादा करने से रोक रहा है और मैं तुमसे नहीं पूछूंगा कि वो क्या बात है, लेकिन अब उससे फिर से दूर मत भागना, वो इस बार बर्दाश्त नहीं कर पाएगा अक्षिता" अमर ने अपनी आँखों में आँसू भरकर कहा और अक्षिता ने नीचे देखते हुए बस अपना सिर हिला दिया
अक्षिता ने अमर की ओर देखा, उसके चेहरे को देखा जिसपर थोड़ी हताशा थी और आंखो में सुनापन लिए वो सामने की कर देख रहा था
"तुम किसी से प्यार करते हो ना" अक्षिता ने पूछा और अमर ने चौंककर उसे देखा
"क्या? नहीं!" अमर ने एकदम से कहा जिसपर अक्षिता हस दी
"तुम्हारे चेहरे पर जो ये एक्सप्रेशंस है ना मिस्टर मैं उसे अच्छे से समझती हु, समझे" अक्षिता ने कहा और अमर से एक लंबी सास छोड़ी और फिर बोला
"मैं उससे प्यार तो करता हूँ, लेकिन वो अपने करियर से प्यार करती है, मैं चाहता हूँ कि वो मेरे साथ रहे, लेकिन वो पूरी दुनिया घूमना चाहती है, मैं उसके साथ घूमने के लिए भी तैयार हूँ, लेकिन वो किसी के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है...... और बस यही कहानी है जो यहीं खत्म होती है" अमर ने कहा
पहली बार अक्षिता को अमर की आवाज़ में उदासी और शब्दों में दर्द महसूस हुआ था
"तुमने अपनी फीलिंग्स उसे बताई?" अक्षिता ने पूछा
"नहीं" अमर ने धीमे से कहा
"और ये क्यों?"
"मैं उसे और उसकी प्रायोरिटीज को जानता हु अक्षिता और अगर मैंने उसे अपनी फीलिंग्स बता दी तो वो इसे कभी एक्सेप्ट नही करेगी और शायद फिर मैं उसकी दोस्ती भी खो बैठु" अमर ने दुखी होकर कहा
"लेकिन वो लड़की है कौन?" अक्षिता ने आखिर में मेन सवाल किया
"तुम जानती हो उसे" अमर ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा जिससे अब अक्षिता की भी उत्सुकता बढ़ने लगी थी
"क्या! वो कौन है?"
"श्रेया" उसने कहा.
फिर अक्षिता ने उन सभी श्रेया के बारे मे सोच जिन्हे वो जानती थी और उसकी आँखों के सामने बस एक ही चेहरा घूमने लगा और जब उसे ध्यान आया के अमर किस श्रेय की बात कर रहा था तो उसने चौक कर अमर को देखा
"तुम्हारा मतलब है.... श्रेया मेहता?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा जिसपर अमर ने बस हा मे गर्दन हिला दी
"गजब! पर तुम्हें उससे अपने दिल की बात कहनी तो चाहिए मुझे नहीं लगता वो तुम्हें ना करेगी?" अक्षिता ने कहा
"उसके पास इन सबके लिए समय नहीं है, वो सिर्फ अपने काम पर फोकस करना चाहती है" अमर ने उदास होकर कहा जिसपर अक्षिता बस चुप रही
"खैर मैनचलता हु बस तुमसे मिलने का मन किया था तो आ गया था" अमर ने कहा और उठ खड़ा हुआ
"इतना लेट हो गया है कहा जाओगे एकांश के कमरे में जाकर सो जाओ" अक्षिता ने कहा
"नहीं, ठीक है। चिंता मत करो...." अमर ने कहा लेकिन जब उसने देखा के अक्षिता उसे घूर के देख रही थी वो वो बोलते बोलते चुप हो गया
"उसका कमरा कहाँ है?" आखिर मे अक्षिता के आगे हार मानते हुए अमर बोला
"ऊपर" अक्षिता ने कहा और अमर एकांश के कमरे की ओर बढ़ गया वही अक्षिता भी एकांश के बारे मे सोचते हुए सो गई
******
सुबह भी जब अमर जाना चाहता था तो अक्षिता की मा ने उसे नाश्ते के लिए रोक लिया जिसके बाद अमर ने उन सभी के साथ नाश्ता किया और जब वो जा रहा था तब
"तुम्हें उसे अपनी फीलिंग बतानी चाहिए" अक्षिता ने अपनी कार की ओर जाते अमर से कहा जिससे अमर थोड़ा रुक और अक्षिता ने आगे बोलना शुरू किया
"तुम्हें पता है कि हर लड़की बचपन से ही अपने राजकुमार का सपना देखती है, हर लड़की एक ऐसा लड़का ऐसा इंसान चाहती है जो उससे प्यार करे और उसका ख्याल रखे, हर लड़की एक ऐसे आदमी के साथ खुश रहने का सपना देखती है जिससे वो प्यार करती है" अक्षिता बोल रही थी और अमर सुन रहा था
"शायद वो भी अपने राजकुमार का इंतज़ार कर रही हो, शायद वो अपने मिस्टर राइट का इंतज़ार कर रही हो, शायद वो इस सब दिलचस्पी इसीलिए नहीं रखती क्योंकि वो अभी तब उस सही इंसान से मिली ही नहीं है" अक्षिता ने कहा
"और हो सकता है तुम उसे अपनी फीलिंगस बताओ तो वो तुम्हारे बारे मे सोचना शुरू करे, शायद वो तुममे अपना राजकुमार देख सके और हो सकता है उसे तुममे अपना मिस्टर राइट दिखे" अक्षिता ने हर शब्द को ध्यान से कहा एक पाज़िटिव अप्रोच के साथ जिसने अमर के दिल मे भी एक खुशी की उम्मीद की किरण जगाई
"मेरे अंदर होप जगाने के लिए थैंक्स" अमर ने अक्षिता को गले लगाते हुए कहा जिसके बाद वो उससे विदा लेकर वहा से निकल गया जब अक्षिता उसकी नजरों से दूर अपने घर मे चली गई अमर ने अपना फोन निकाला और एक नंबर डाइल किया और जब सामने से कॉल रीसीव हुआ तब वो भारी मन से बोला
"you need to come back soon, हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है"
******
अक्षिता ने अपने हाथ मे रखी बुक को मुस्कुरा कर देखा
वो उस बुक में कुछ लिख रही थी और लिखते समय वो लगातार मुस्कुरा रही थी
और अचानक, उसकी वो मुस्कान जैसे गायब हो गई और वो कुछ सोचते हुए शून्य में देखने लगी और उसकी आँख से एक आँसू बह निकला
अक्षिता ने अपने सभी विचारों दिमाग से हटाते हुए अपना सिर हिलाया और फिर से लिखना शुरू कीया, लेकिन उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, वो अपने आंसू पोंछने की परवाह नहीं कर रही थी और लिखती जा रही थी
और आखिर मे उसने जोर से आह भरते हुए किताब बंद की और एकांश के बारे में सोचने लगी, उसे दो दिन पहले ही भारत वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन वो नहीं आया था और उसने उससे बस इतना कहा था कि कोई महत्वपूर्ण काम उसके हाथ लग गया है
एकांश ने उससे कहा कि वो 3-4 दिन में आ जाएगा जिसपर अक्षिता ने भी उससे कुछ नहीं कहा था, लेकिन उसके अंदर का डर बहुत बढ़ गया था वो किताब को साइन से लागए ही सो गयी
दूसरी तरफ़, अक्षिता के माता-पिता बहुत चिंतित थे क्योंकि अक्षिता डॉक्टर के पास जाने के लिए राज़ी ही नहीं थी जब उन्होंने उसे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए मजबूर किया, तो वो उन पर चिल्लाने लगी और उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया
उसके पेरेंट्स उसके व्यवहार से हैरान थे क्योंकि अक्षिता ने काभी ऐसे बर्ताव नहीं किया था उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है और जब उन्होंने एकांश से इस बारे में बात की, तो उसने उन्हें बताया कि वो जल्द ही वापस आ रहा है और फिर सब ठीक हो जाएगा
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डोरबेल की आवाज से अक्षिता की गहरी नींद मे खलल पड़ा था और उसने समय देखा तो अपनी भौंहें सिकोड़ लीं, क्योंकि रात के दस बज रहे थे और उसे आश्चर्य हुआ कि लोग उसके घर पर घंटी बजाते क्यों आते हैं, वो भी रात में ही
वो आह भरकर लिविंग रूम में आई उसे फिर इस बात पर आश्चर्य हुआ कि उसके माता-पिता कभी भी दरवाज़े की घंटी बजने पर क्यों नहीं उठते लेकिन फिर उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने खड़े व्यक्ति को देख खुशी से उछल पड़ी
"अंश” उसने एकांश को ऊपर से नीचे तक देखते हुए धीमे से कहा, उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था के एकांश सही मे वहा था
"अक्षिता.." एकांश भी अक्षिता को देख उतना ही खुश था और उसकी आँखों में भी आँसू थे
और तभी अक्षिता को ये एहसास हुआ कि वो सपना नहीं देख रही थी और एक कदम उसकी ओर बढ़ाते हुए उसने उसे कसकर गले लगा लिया
वो उसकी बाहों में रो रही थी और उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी, एकांश खुद भी रो रहा था क्योंकि उसे भी अक्षिता की बहुत याद आई थी
"I missed you so much" एकांश ने धीमे से उसके काम मे कहा वही अक्षिता ने उसे और भी कस कर पकड़ लिया
और कुछ पल वैसे ही रहने के बाद अक्षिता ने खुद को उससे दूर किया और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगी वही एकांश ने भी झुककर हल्के से अक्षिता के होठों को चूमा जिससे वो आँसूओ के साथ साथ मुस्कुराई फिर से उसने एकांश को कसकर गले लगाया और रो पड़ी क्योंकि उसे लगा था कि वो उसे देखे बिना ही मर जाएगी।
"शशश..... मैं यही हु तुम्हारे साथ..... अब रोना बंद करो" एकांश ने धीरे से अक्षिता की पीठ सहलाते हुए कहा
"मुझे डर लग रहा है अंश..... मैं..... मैं...." वो बोल नहीं पा रही थी
"कोई बात नहीं..... मैं हूँ ना..... अब सब ठीक हो जाएगा" एकांश ने अक्षिता को आश्वस्त करते हुए कहा
वो दोनों कुछ देर तक एक दूसरे को गले लगाए ऐसे ही बैठे रहे
"अब तुम जाकर सो जाओ, हम कल सुबह बात करेंगे" एकांश ने अक्षिता के आँसू पोंछते हुए कहा
लेकिन अक्षिता ने उसे जाने देने से मना कर दिया
"just stay with me..... please" अक्षिता ने एकांश के शर्ट को पकड़ते हुए कहा
" लेकिन....."
" प्लीज....."
और फी एकांश ने बगैर एक पल की देरी कीये अक्षिता को बाहर की ओर खिचा और दरवाजा बंद कर एक झटके मे उसे अपनी बाहों मे उठा लिया और अपने कमरे मे ले गया वही अक्षिता पूरे समय बगाऊर पलके झपकाए उसे देखती रही मानो उसने आंखे बंद की तो कही एकांश गायब ना हो जाए, अपने कमरे मे आकार एकांश ने अक्षिता को बेड पर सुलाया और खुद फ्रेश होने चला गया और जबतक वो बाहर आया अक्षिता सो चुकी थी, एकांश ने उसके पीले पड़े चेहरे और कमजोर शरीर की ओर देखा, अक्षिता की हालत एकांश का भी दिल दुख रहा था, उसने उसके माथे को चूमा और फिर उसे एक कंबल से धक दिया
एकांश फिर अपने कमरे से निकला और नीचे आया जहा अक्षिता के पेरेंट्स उसका इंतजार कर रहे थे
"उस डॉक्टर ने क्या कहा बेटा?" सरिताजी ने चिंतित होकर पूछा
"मैं उनसे मिला और अक्षिता की हालत के बारे में बताया, उन्होंने कहा है कि उन्होंने पहले भी इस तरह का ऑपरेशन किया था और वो सफल रहा था" एकांश ने रुककर उनकी तरफ देखा और उनके चेहरों पर उम्मीद की एक किरण देखी
"डैड के दोस्त उन्हें पहले से ही जानते थे, इसलिए उन्हें यहा इंडिया आने के लिए मनाना थोड़ा आसान था, उन्होंने मुझे कुछ और सिम्प्टम भी बताए है और कहा है कि जब हम उन्हें अक्षिता मे देखे तो हमें उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना होगा और डॉक्टर यहाँ बुला लेना होगा" एकांश मे बात खतम की वही अक्षिता के पेरेंट्स ये काम कर खुश थे के वो डॉक्टर अक्षिता के लिए भारत आने को राजी हो गया था
"वीडियो कॉल पर जब मैंने उसकी हालत देखी तो मैं समझ गया था के मामला और खराब हो रहा है, इसलिए मैंने अमर को यहाँ भेजा था ताकि वो उसके सिम्प्टम देख सके और मुझे बता सके, आप लोगों ने जो सिम्प्टम मुझे बताए थे और अमर ने जो सिम्प्टम पहचाने, वे बिल्कुल वही थे जो डॉक्टर ने हमें बताए थे, अमर ने तुरंत मुझे फ़ोन किया और कहा कि वापस आ जाओ ताकि हम उसका इलाज शुरू कर सकें" एकांश ने कहा
"मैं 2 दिन पहले ही वापस आ जाता, लेकिन मुझे डॉक्टर से एक बार और बात करनी थी और अक्षिता की हालत के बारे में बताने के लिए रुकना पड़ा, उन्होंने ही मुझे जल्द से जल्द इंडिया वापस जाने और उसे जल्द से जल्द अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कहा" एकांश ने भीगी पलको के साथ कहा और सारी बात सुन सरिता जी अपने पति के गले लगकर रो पड़ी
"क्या ऑपरेशन के बाद वो ठीक हो जाएगी?" अक्षिता के पिता ने डरते हुए पूछा जिसपर एकांश चुप रहा और इससे अक्षीता के पेरेंट्स और भी चिंतित हो गए
"हम अभी इस बारे में कुछ नहीं कह सकते लेकिन हमें उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना होगा क्योंकि आंटी आपने कहा था कि आजकल उसे चक्कर बहुत ज्यादा आ रहे है जो की ठीक नहीं है, और सबसे बड़ी बात ये है कि उसका सर कुछ यू धडक रहा होगा जैसे कोई हथोड़ा मार रहा हो और काफी दर्द भी हो रहा होता क्या उसने इस बारे में आपसे कुछ कहा?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा
"नहीं, उसने ऐसा कुछ नहीं बताया और वैसे भी अगर उसे दर्द भी होगा तो वो बताएगी नहीं और खुद ही सहेगी" अक्षिता की माँ ने रोते हुए कहा
"आप चिंता मत करो आंटी, मैं उसे कुछ नहीं होने दूंगा लेकिन पहले हमें उसे हॉस्पिटल में ऐड्मिट कराना होगा" एकांश ने कहा
"लेकिन इसके लिए तुम्हें उससे सच बोलना होगा कि तुम यहाँ क्यों हो" अक्षिता के पिता ने कहा
एकांश ने भी इस बारे में काफी सोचा कि उसे उसे सच बताना ही होगा क्योंकि शायद तब तक अक्षिता हॉस्पिटल में ऐड्मिट होने के लिए नहीं मानेगी जब तक वो उसके साथ नहीं है क्योंकि एकांश सच्चाई जानने के डर से तो वो सहमत नहीं होगी
"मैं कल उसे सब सच बता दूंगा" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता के पेरेंट्स भी थोड़े डरे हुए थे के क्या पता अक्षिता कैसे रीऐक्ट करेगी
******
एकांश को सारी रात नींद नहीं आई वो बस अक्षिता के सोते हुए चेहरे को देखता रहा उसे नहीं पता था कि वो कैसे कहेगा और क्या कहेगा, लेकिन उसने अक्षिता सब कुछ बताने का फैसला कर लिया था
अगले दिन जब अक्षिता अपनी नींद से जागी औ उसने अपने आसपास एकांश को देखा तो वो कही नहीं था, अक्षिता जल्दी जल्दी नीचे आई तो उसने देखा के एकांश मस्त डाईनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था
जब अक्षिता ने उसकी तरफ देखा तो वो मुस्कुराया और वो भी मुस्कुराई, अक्षिता के अपने मा पापा को घर मे देखा तो वो कही नहीं थे तब एकांश ने उसे बताया के वो दोनों मंदिर गए थे और अब अक्षिता को भी भूख लगी थी इसीलिए वो भी फ्रेश होकर नाश्ता करने आ गई और जब अक्षिता नाश्ता कर रही थी एकांश फोन पर कुछ बाते कर रहा था
" अक्षिता."
एकांश ने अक्षिता को पुकारा और उसने भी उसकी ओर देखा
"मुझे तुमसे कुछ बात करनी है" एकांश ने उदास चेहरे से कहा, लेकिन अंदर ही अंदर उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था
वो दोनों जाकर सोफे पर बैठ गये
अक्षिता एकांश की घबराहट को उसकी झिझक को महसूस कर रही थी और उसने एकांश को पहले काभी ऐसे नहीं देखा था
"अंश, क्या हुआ? तुम क्या बात करना चाहते थे?" अक्षिता ने चिंतित होकर उससे पूछा
"यही की मैं यहाँ क्यों हूँ?" एकांश ने आराम से कहा और अब अक्षिता भी गौर से उसकी बात सुनने लगी
"अक्षिता...... मैं......"
" मुझे पता है, सब पता है" अक्षिता ने कहा
"क्या?"
"मैं जानती हूँ की तुम यहाँ क्यों हो एकांश" अक्षिता ने कहा
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा और उसे याद आया कि उसने तो पहले ही अक्षिता को था कि वो ऑफिस के काम से यहां आया था
"नहीं अक्षिता.... मैं ऑफिस के काम से यहाँ नहीं आया हूँ...... मैं तो यहाँ......"
"एकांश, मैं ऑफिस के काम की बात नहीं कर रही हूँ" अक्षिता ने नीचे देखते हुए कहा
"फिर?"
"मुझे पता है कि तुम मेरे बारे में सब सच जानते हो एकांश"
अक्षिता ने एकांश को देखा जो अपनी जगह जमा हुआ स बैठा था, उसके चेहरे पर स्पष्ट आश्चर्य था
"तुम क्या सोचते हो कि मैं नहीं जानती कि तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने एकांश से पूछा, जिसने उसकी ओर बड़ी-बड़ी आँखों से देखा
"हम एक दूसरे से प्यार करते थे अंश और तुम्हें मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता" अक्षिता ने नीचे देखते हुए कहा
"अब तुम सोच रहे होगे कि मुझे कैसे पता, लेकिन अगर तुम गहराई से सोचोगे तो तुम्हें खुद ही इसका जवाब मिल जाएगा।" अक्षिता ने मुस्कुराते हुए कहा
एकांश कुछ नहीं बोला..... वो कुछ कह ही नहीं सका
"मुझे पता है कि तुम मुझे ये बात बताने से बचने के लिए बहुत सतर्क थे, लेकिन फिर भी मैंने कुछ चीजें नोटिस कीं जो शायद तुमने नहीं कीं" अक्षिता ने कहा वही एकांश अब भी उसकी ओर ही देख रहा था
"जब तुमने ऊपर का कमरा किराए पर लिया, तो मुझे शक हुआ क्योंकि हमने तो तुम्हें कभी नहीं देखा था और किसी तरह मुझे लगा कि ये तुम ही हो क्योंकि मुझे पता है कि जब तुम मेरे करीब होते हो तो कैसा महसूस होता है लेकिन मैंने ये सोचकर उस फीलिंग को नजरअंदाज कर दिया कि मैं शायद तुम्हें बहुत याद कर रही हूं, और फिर उस दिन जब मैं अपने घर के बाहर बेहोश हो गई थी और जब मैं उठी तो मैं अपने कमरे में थी, मैं उलझन में थी कि मुझे मेरे कमरे में कौन लाया क्योंकि मेरे पापा भी उस समय वहां नहीं थे और जब मैंने अपनी मां से इस बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने ऊपर रहने वाले किरायेदार की मदद ली थी, और पता है सबसे कमाल की बात क्या थी, मुझे ना उस वक्त सपना आया था के तुमने मुझे अपनी बाहों मे उठा रखा था और फिर जब मैंने उस दिन तुम्हें अपने घर में देखा तो मुझे एहसास हुआ कि वो एक सपना नहीं था, जब मुझे पता चला की वो किरायेदार तुम थे, तो मैं चौंक गई थी लेकिन मैं खुश थी”
"और फिर मुझे तब थोड़ा शक हुआ जब मेरे मा पापा तुम्हें यहाँ देखकर चौके नहीं और इसके अलावा वो तुम्हारे साथ इतनी आसानी से घुलमिल गए जैसे कि वो तुम्हें लंबे समय से जानते हों"
"और फिर उस दिन की वो हमारी पानी की लड़ाई जिसके बाद तुम टेंशन मे मेरे कमरे में आए थे ये जानने के लिए कि मैं ठीक हूं या नहीं यही बस यही वो टाइम था जब मैं सब समझने लग थी"
"उसके बाद तुम मुझे कई बार मेरे रूम मे भी आए और मेरे बेडरूम की दीवारों पर लगी अपनी तस्वीरों को देखते हुए भी मुझसे कुछ भी नहीं पूछा या कुछ नहीं कहा" अक्षिता ने एकांश से कहा जो अब भी चुप चाप उसकी बात सुन रहा था
"तुम्हें वो दिन याद है जब तुमने मुझे मॉल छोड़ा था?" अक्षिताने पूछा और एकांश ने अपना सिर हा मे हिला दिया
"उस दिन जब मैं वापस आई तो तुमने मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा कि मैं कहाँ से आ रही हूँ, मैंने क्या खरीदा क्योंकि मेरे हाथ में मेरे हैंडबैग के अलावा कुछ भी नहीं था, और उस दिन मुझे समझ में आया कि तुम्हें पता होगा कि मैं अस्पताल गई थी मॉल नहीं"
"फिर एक दिन तुमने मुझे अपने ऑफिस में एक फ़ाइल लाने के लिए कहा था और जब मैं तुम्हारे केबिन में गई, तो मैंने तुम्हारे डेस्क पर अपनी तस्वीर देखी और तब मुझे एहसास हुआ कि तुम अभी भी मुझसे प्यार करते हो और मुझे ढूँढने यहाँ आए हो, जब हम तुम्हारे ऑफिस की पार्टी में गए, तो मैंने देखा कि कैसे मेरे दोस्त तुम्हारे भी दोस्त भी बन गए थे और मैं इससे काफी खुश हु, फिर तुम लोगों का मेरा ध्यान रखना, जब मैं कुछ पीना चाहती थी या आइसक्रीम खाना चाहती थी, तो जिस तरह से तुम रीऐक्ट करते थे, उससे मेरा शक और बढ़ गया" अक्षिता ने आगे कहा लेकिन एकांश की ओर नहीं देखा
"ये सब सिर्फ़ मेरा शक था या ऐसा मैं तब तक सोचती रही जब तक कि मैंने तुम्हारे कमरे में अपनी डायरी नहीं देखी जब तुम जर्मनी गए थे, तब सारी बातें साफ हो गईं और सब कुछ मेरे लिए क्लियर हो गया" अक्षिता ने कहा और एकांश की ओर देखा जो अब अपनी आँखें बंद कर रहा था
अक्षिता ने एकांश के दोनों हाथ पकड़ लिए जिससे वो उसकी ओर देखने लगा और अक्षिता ने पहली बार एकांश की आँखों में डर देखा जिससे वो और ज्यादा चिंतित हो गई
"तुमने मेरी वजह से अपनी माँ से झगड़ा किया था, है न?" अक्षिता ने अपनी आँखों मे आँसू भरकर पूछा और एकांश ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमाया लिया
"क्यों एकांश? क्यों?" अक्षिता चिल्लाई
"तुम्हें पता है मैं अचानक क्यों चली गयी थी?" अक्षिता ने पूछा
"मेरे लिए तुम्हारे बिहैव्यर में आए बदलाव के कारण मुझे वो जगह छोड़नी पड़ी" अक्षिता ने कहा और एकांश बस उसे देखता रहा
"तुम मेरे साथ अच्छा बर्ताव कर रहे थे, मेरा ख्याल रख रहे थे और मुझसे नॉर्मल तरीके से बात कर रहे थे...... इन सब बातों से मैं इतना डर गई कि मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ा क्योंकि मुझे डर था की तुम मुझसे फिर से जुड़ जाओगे और जब मैं चली जाऊंगी तो ये तुम्हें तोड़ के रख देगा" अक्षिता ने कहा और उसकी आंखों से आंसू बह निकले
एकांश चुपचाप उसकी बातें सुनता रहा, लेकिन उसकी ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया
"तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे साथ कितनी सारी बातें शेयर करना चाहती थी, लेकिन मुझे डर था कि मेरे चले जाने के बाद तुम्हारा क्या होगा"
"लेकिन अब, मैं ये बताने के लिए और इंतजार नहीं कर सकती कि मैं किस दौर से गुजर रही हूँ, जो की तुम पहले से ही जानते हो" अक्षिता ने आँसुओ के साथ कहा
"प्लीज मुझे बताओ अक्षु...... तुम्हें पता नहीं है कि मैं चाहता था कि तुम मुझे बताओ कि तुम पर क्या बीत रही है" एकांश ने अक्षिता के आँसू पोंछते हुए कहा
"हमारे रिलेशनशिप के दौरान ही मुझे बहुत ज़्यादा सिरदर्द और चक्कर आते थे, मुझे लगता था कि शायद ये तनाव या किसी कमज़ोरी की वजह से हो रहा होगा, जब मेरे मा पापा ने मेरी शादी के लिए लड़के देखने के बारे में सोचा, तो मैं तुम्हारी जगह किसी और के बारे मे सोच भी नहीं सकती थी इसलिए मैंने उन्हें तुम्हारे बारे में बताया, मैंने उन्हें तुम्हारी फोटो दिखाईं और वो तुमसे मिलने के लिए राज़ी हो गए, मैं बहुत खुश थी और सोचा कि अगले दिन तुम्हें बताऊँगी लेकिन मैं उस दिन अचानक बेहोश हो गई" अक्षिता बोलते बोलते चुप हो गई
"मेरे मा पापा मुझे अस्पताल ले गए लेकिन डॉक्टर मेरे अचानक बेहोश होने का कारण नहीं जान पाए, होश में आने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मुझे कोई सिम्प्टमस् है और मैंने उन्हें लगातार सिरदर्द और चक्कर आने के बारे में बताया तो उन्होंने मेरे कुछ टेस्ट किए और मुझे अगले दिन आने को कहा, और फिर जब हम अगले दिन अस्पताल गए, तो उन्होंने हमें मेरे ब्रैन में ट्यूमर के बारे में बताया" अक्षिता अपना चेहरा ढँककर फूट-फूट कर रोने लगी थी
औरों से अक्षिता के बारे मे सुनना अलग बात थी लेकिन अक्षिता के मुह से ही उसकी तकलीफ के बारे मे सुनना एकांश को तोड़ रहा था, वो उस दर्द को महसूस कर रहा था जिससे अक्षिता गुजरी थी, उसने आज पहली बात अक्षिता को अपने सामने टूटते देखा था जो उसका दिल छलनी कर रहा था
उसने अक्षिता को कस कर गले लगा लिया था
"मैं मर रही हूँ अंश...... मैं मर रही हूँ......" अक्षिता उसकी आगोश में जोर-जोर से रोने लगी थी और एकांश भी उसके साथ रो रहा था
दोनों ही एकदूसरे को गले लगा कर कुछ देर तक रोते रहे
अक्षिता तो एकांश के पहलू मे शांत हो गई थी लेकिन एकांश अभी भी उसे पकड़कर रो रहा था और अक्षिता उसे यू रोता देखना बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी एकांश के आँसू उसके दिल पर वार कर रहे थे
"शशश... एकांश... मैं हूँ अभी" अक्षिता ने एकांश की पीठ सहलाते हुए उसे गले लगा लिया और कुछ ही देर मे एकांश भी शांत हो गया था लेकिन उसका दिल अभी भी जोरों से धडक रहा था
"मुझे डर लग रहा है अंश...."
अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए कहा
"मुझे तुम्हारे लिए डर लग रहा है...... मुझे पता है कि मेरे चले जाने के बाद तुम अपनी जिंदगी सीधी तरह नहीं जी पाओगे और मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे कारण अपनी जिंदगी बर्बाद करो और मैं नहीं चाहती कि तुम मेरु वजह से जिंदगी जीना ही बंद कर दो" अक्षिता ने एकांश के गालों को सहलाते हुए कहा
"मुझे पता है कि तुम मेरे लिए हिम्मत बांधे हो अंश.... और मुझसे वादा करो के हमेशा ऐसे ही रहोगे और मेरे मा पापा के भी सपोर्ट मे रहोगे, ठीक है?" अक्षिता ने नाम आँखों से पूछा और एकांश ने भी हा मे सर हिला दिया
"तुम मुझे छोड़ कर कही नहीं जाओगी...... कही नहीं" एकांश ने रोते हुए कहा
"ये मेरे हाथ में नहीं है अंश.... मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती" अक्षिता एकांश के माथे को अपने माथे से छूते हुए रो पड़ी
"नहीं! ऐसा मत कहो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर बचाऊंगा अक्षु" एकांश ने अक्षिता के हाथों को अपने हाथों में कसकर पकड़ते हुए कहा और वो बस उसे देखकर मुस्कुराई
"अंश, क्या तुम मुझसे एक वादा करोगे?" अक्षिता ने पूछा
"जो तुम कहो" उसने कहा.
"अगर मुझे कुछ हो गया तो......" लेकिन एकांश ने उसे बीच मे ही रोक दिया
"नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा! और ऐसा दोबारा कभी मत कहना!"
"प्लीज मेरी बात सुनो अंश" अक्षिता ने वापिस आराम से कहा
"अगर मुझे कुछ हो जाता है तो मुझसे वादा करो कि तुम अपनी ज़िंदगी यहीं नहीं रोकोगे, तुम अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं करोगे, तुम अपने आस-पास के लोगों को चुप नहीं कराओगे, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे जिससे तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद हो जाए, मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ो, मैं चाहती हूँ कि तुम लोगों को अपनी ज़िंदगी में आने दो, मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी का एक नया चैप्टर शुरू करो जहाँ कोई दुख और आँसू न हों, सिर्फ़ मुस्कुराहट और खुशी हो, करोगे वादा" अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए पूछा और एकांश बस उसे देखता ही रहा
एकांश सोच रहा था की अक्षिता उससे ये बाते कैसे मांग सकती है जिनकी वो उसके बगैर कल्पना भी नहीं कर सकता
" मुझसे वादा करो अंश...." अक्षिता ने एकांश की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा, जिसकी आँखें पूरी आशा और विश्वास से भरी थीं
"अंश" जब एकांश ने कोई जवाब नहीं दिया तो अक्षिता ने उसे दोबारा पुकारा
"ठीक है, वादा रहा" एकांश ने कहा
अक्षिता भी एकांश का हाथ पकड़े हुए मुस्कुराई
"थैंक यू अंश"
वो खुश थी क्योंकि वो जानती थी कि एकांश अपना वादा निभाएगा
वो जानती थी कि एकांश उसका वादा उसका भरोसा कभी नहीं तोड़ेगा
वो जानती थी कि वो उसके लिए कुछ भी करेगा और ये तो उसकी आखिरी इच्छा थी और एकांश इसे पूरा जरूर करेगा
"और प्लीज फिर से प्यार करने की कोशिश करो, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे पास कोई हो जो तुम्हारा ख्याल रख सके और तुमसे प्यार कर सके, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारा एक परिवार हो, मैं चाहती हूँ कि तुम अपने परिवार के साथ एक नॉर्मल जिंदगी जियो अंश" अक्षिता ने एकांश के कंधे पर अपना सर टिकाते हुए कहा
"तुम्हें नहीं लगता कि ये तुम मुझसे बहुत ज्यादा मांग रही हो?" एकांश ने शांत स्वर मे उससे पूछा, लेकिन अक्षिता की बात सुनकर उसका दिल अंदर से टूट गया था
वो उसकी जगह किसी और को कैसे दे सकता था?
वो अपनी जिंदगी किसी और के साथ कैसे जी सकता था?
"अंश?" अक्षिता ने उसे पुकारा
"तुम थकी हुई लग रही हो, तुम्हें दवाइयां लेकर सो जाना चाहिए" एकांश ने बात बदलते हुए कहा जो अक्षिता समझ गई थी
एकांश ने अक्षिता को अपनी बाहों में उठाया और उसके कमरे में ले गया, उसने उसे बिस्तर पर सुला दिया और उसे राजाई उढ़ा दी
अक्षिता भी उसकी ओर देखकर मुस्कुराई और सो गई, क्योंकि वह बहुत थकी हुई थी
एकांश ने उसके माथे को चूमा और उसके कान में फुसफुसाया......
अगली सुबह उठते ही अक्षिता के चेहरे पर एक सुंदर मुस्कान थी, कल एकांश से बात करने के बाद वो काफी हल्का महसूस कर रही थी
उसने दीवारों पर देखा जिस पर एकांश की सारी तस्वीरें लगी हुई थीं, वो मुस्कुराई और उससे मिलने के लिए तैयार होने लगी और बढ़िया नहा कर साड़ी पहने बाहर आई
अक्षिता लिविंग रूम में आई तो उसकी माँ ने उसे नाश्ता दिया, उसने एकांश के बारे में पूछा तो सरिताजी ने उसे बताया कि एकांश बाहर गया हुआ है जिससे अक्षिता मुँह फुलाए हुए थी क्योंकि वो इस वक्त बस एकांश को देखना उससे मिलना चाहती थी
वो उसके कमरे में गई तो देखा कि फर्श पर उसकी फाइलें और कपड़ों सहित कई सारी चीजें बिखरी पड़ी थीं, ऐसा लग रहा था कि एकांश ने हताशा और गुस्से में ये चीजें फेंकी थीं
उसने पूरा कमरा साफ किया और एकांश की स्टडी टेबल पर
बैठ गई और अनजाने में ही वो नींद के आगोश में चली गई
थोड़ी देर बाद जब एकांश कमरे में आया तो उसने देखा कि अक्षिता उसकी टेबल पर सर टिकाए सो रही थी, उसने उसके खूबसूरत चेहरे को देखा और उसकी खूबसूरती की मन ही मन तारीफ़ की, उसकी आँखों से आँसू निकल आए जिसे उसने जल्दी से पोंछ दिया
एकांश ने आज सोच लिया था कि वो आज किसी भी कीमत पर अक्षिता को हॉस्पिटल में भर्ती करवा देगा
उसने कमरे में चारों ओर नज़र घुमाई तो पाया कि कमरा साफ़-सुथरा था, उसे अच्छी तरह याद था कि कल रात गुस्से और हताशा में उसने अक्षिता की सेहत के बारे में सोचते हुए सारी चीज़ें फेंक दी थीं
वो वाशरूम गया और बाहर आकर देखा कि अक्षिता अभी भी सो रही थी उसने उसे धीरे से उसे अपनी बाहों में उठाया और अपने बिस्तर पर सुला दिया
एकांश अक्षिता को अपने बेड पर सोता छोड़ अपने कमरे से बाहर आया और कुछ फ़ोन कॉल किए, उसने डॉक्टर से भी उसके हॉस्पिटल में ऐड्मिट होने के बारे में बात की और डॉक्टर ने उसे बताया कि सब कुछ तैयार था और एकांश उसे कभी भी ऐड्मिट करा सकता था
एकांश ने नीचे जाकर अक्षिता के मा पापा से भी इस बारे मे बात उन्होंने भी उससे कहा कि जो भी उसे सही लगे, वो करें क्योंकि वे बस इतना चाहते थे की उनकी बेटी ठीक रहे, उन्होंने जर्मनी में डॉक्टर से भी बात की और कहा कि जैसे ही उन्हें आने के लिए कहा जाएगा, वे भारत आ जाएंगे..
एकांश ऊपर जाकर अक्षिता के पास सो गया, लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी, उसके मन में कई विचार घूम रहे थे कि कहीं अक्षिता के साथ कुछ हो न जाए
अब तक अक्षिता भी जाग गई थी और उसने देखा कि एकांश उसके बगल में सो रहा था और छत को घूर रहा था, वह उसके करीब खिसकी और उसने एकांश के कंधे सर टिकाया और अपने हाथों से उससे पकड़े वापिस सो गई
एकांश ने भी अपना हाथ उसकी कमर के चारों ओर लपेटकर उसे अपने पास खींच लिया और जब वो उससे चिपक गई तो एकांश के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई
"अंश, तुम कहाँ थे?" अक्षिता ने पूछा
"मुझे कुछ काम था बस वही कर रहा था" एकांश ने कहा और अभी अक्षिता से बात करने का फैसला किया
" अक्षिता?"
" हम्म।"
"हमें हॉस्पिटल चलना चाहिए" एकांश ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा
"डॉक्टर ने जो सिम्प्टम बताए थे, वो अब साफ तौर पर दिख रहे हैं और अब हमे और देर न करते हुए जल्द से जल्द हॉस्पिटल में ऐड्मिट होने की जरूरत है"
"सिम्प्टम?" अक्षिता ने पूछा
"हाँ.... मैं जर्मनी किसी बिजनस की वजह से नहीं गया था, बल्कि एक डॉक्टर से मिलने गया था जो ऐसे मामलों का स्पेशलिस्ट है और वो तुम्हारा इलाज करने के लिए इंडिया आने को तैयार है" एकांश ने कहा और अक्षिता के रिएक्शन का इंतजार करने लगा
एकांश की उसे ठीक करने की कोशिश को देखते हुए अक्षिता की आंखे वापिपस भरने लगी थी
"कब?" अक्षिता ने पूछा और एकांश आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा
"आज" एकांश के कहा जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी
"हाँ, डॉक्टर ने कहा है कि तुम्हें जल्द से जल्द हॉस्पिटल मे ऐड्मिट करा दिया जाए" एकांश ने अक्षिता को समझाते हुए कहा और अक्षिता थोड़ा उधर होकर नीचे देखने लगी
"अक्षिता...." एकांश ने उसे पुकारा
"क्या हम कल जा सकते हैं? क्योंकि जाने से पहले मैं अपना ज़्यादातर समय तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूँ" अक्षिता ने उम्मीद से एकांश की आँखों मे देखते हुए पूछा
एकांश ने एक मिनट सोचा और अपना सिर हा मे हिला दिया जिसपर अक्षिता मुस्कुराई और उसके एकांश के गाल को चूम लिया
"बस सिर्फ एक किस, वो भी गाल पे" एकांश ने कहा और उसके इक्स्प्रेशन देख अक्षिता हसने लगी और एकांश ने अपने होंठ उसके होंठों पर रखकर उसकी हंसी को बंद करा दिया, दोनों एकदूसरे को चूम रहे थे और एकांश के हाथ अक्षिता की कमर पर घूम रहे थे
"तुमने साड़ी क्यों पहनी है?" एकांश ने अक्षिता से दूर हटते हुए कहा और अक्षिता ने उसे एक कन्फ्यूज़ लुक दिया
"जब तुम साड़ी पहनती हो तो मेरे लिए खुद को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है।" एकांश ने अक्षिता की आँखों में देखते हुए कहा
"तो फिर तुम्हें किसने कहा है कि तुम खुद पर कंट्रोल रखो।" अक्षिता ने कहा और शरमा कर दूसरी ओर देखने लगी वही एकांश बस अपलक उसे देख रहा था
एकांश ने फिर से अक्षिता को अपने करीब खिचा और दोनों के होंठ वापिस एकदूसरे से जुड़ गए थे, दोनों वापिस एकदूसरे के आगोश मे समा गए थे
"I think we should stop here" कुछ पल अक्षिता को किस करके के बाद एकांश ने पीछे हटते हुए बेड से उठते हुए कहा जिससे अक्षिता को थोड़ी निराश हुई
"ऐसा नहीं है कि मैं ये नहीं चाहता, मैं अभी तुम्हारे साथ कुछ करना चाहता हूँ, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि तुम्हारे मा पापा हम पर भरोसा करते हैं और हम इसका फायदा नहीं उठा सकते" एकांश ने कहा और अक्षिता भी जैसे उसकी बात समझ गई थी
वो बिस्तर से उठी और उसके गालों को अपने होंठों से चूमने लगी जिससे एकांश भी मुस्कुराया, उसने कभी ऐसा लड़का नहीं देखा था जो अपने आस-पास के लोगों से इतना प्यार करता हो, वो ना सिर्फ अपना काम और ऐशोआराम छोड़कर उसके पास आया था बल्कि उसके परिवार को उसके मा पापा को अपना माँ कर उनका सहारा भी बना था और एक आम आदमी की तरह रहने लगा था, दोनों ने एकदूसरे को गले लगा लिया था
"मैं सब ठीक कर दूंगा अक्षिता" एकांश ने अक्षिता के माथे को चूमते हुए कहा
"जानती हु"
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अक्षिता एकांश का इंतजार कर रही थी, उसने उसे यायर होने के लिए कहा था और वो दोनों कही जा रहे थे, अक्षिता भी बढ़िया साड़ी पहन कर तयार हुई थी क्युकी वो भी जानती थी के एकांश को उसे साड़ी मे देखना पसंद था
जब अक्षिता ने एकांश की कार का हॉर्न सुना तो वो बाहर आई, एकांश भी मस्त रेडी हुआ था और अक्षिता की नजरे अब भी उसपर से हट नहीं रही थी
“चलें..." एकांश ने अक्षिता के लिए कार का दरवाज़ा खोलते हुए कहा
"कहाँ?" अक्षिता ने पूछा
"तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा" एकांश के अक्षिता के बैठने के बाद कार का दरवाजा बंद करते हुए कहा
एकांश भी कार मे आकार बैठा और वो दोनों निकल गए, दोनों ही कुछ नहीं बोल रहे थे, गाड़ी मे एकदम शांति थी लेकिन दोनों के होंठों पर मुस्कान खेल रही थी
अक्षिता समझ गई थी के एकांश उसे कही खास जगह लेकर जा रहा था लेकिन कहा ये वो नहीं जानती थी और उसने पूछा भी नहीं क्युकी एकांश चाहे उसे जहा ले जाए उसके लिए बस उसके साथ रहना जरूरी था वो बस उसके साथ रहना चाहती थी
एकांश उसे उस शॉपिंग मॉल मे ले गया जहाँ वो दोनों पहली बार मिले थे और उसने उस जगह को देखा जहाँ वो दोनों एक दूसरे से टकराए थे, दोनों की यादों के झरोखे मे खोए थे.... उनकी पहली लड़ाई, उनकी बातचीत और कैसे वो मुलाकात दोस्ती में बदल गई थी
दोनों ने एक दूसरे को देखा और नम आँखों से एक दूसरे को देखकर मुस्कुराये, एकांश ने अक्षिता को कुछ शॉपिंग करवाई और उसने उसके और उसके मा पापा के लिए कुछ चीजें खरीदीं
वो उसे उस पार्क में ले गया जहाँ वो हमेशा मिलते थे, दोनों एक बेंच पर बैठे और मुस्कुराते हुए उन यादों को फिर से ताज़ा कर रहे थे
फिर वो उसे एक रेस्तराँ में ले गया और एक दूसरे से बातें करते हुए और एक दूसरे को चिढ़ाते हुए दोनों ने खाना खाया, भविष्य के गर्भ मे क्या छिपा है इसकी चिंता छोड़ दोनों आज का दिन भरपूर जी रहे थे और हमेशा की ऐसे ही रहना चाहते थे
अक्षिता एकांश को हंसता और मुस्कुराता देखकर खुश थी, क्योंकि कल जब उसने एकांश अपने लिए रोते देखा था तो वह डर गई थी, उसे चिंता थी कि उसके बाद एकांश का क्या होगा और वो रात को उसके बारे में सोचकर सो भी नहीं पाती थी
वो बस यही चाहती थी कि वो खुश रहे और अपनी जिंदगी जिए, चाहे अक्षिता वहा हो या ना हो
अक्षिता उस इंसान की ओर देखकर मुस्कुराई जो उससे कुछ कहते हुए हंस रहा था और वो उससे अपनी नजरें नहीं हटा पा रही थी...
"अक्षिता, आओ हमें कहीं चलना है" एकांश ने अक्षिता को उसके खयालों से बाहर लाते हुए कहा
"कहाँ?" अक्षिता ने पूछा
"सप्राइज़ है” एकांश ने मुसकुराते हुए कहा और अक्षिता को कार मे बिठाया, उसके आगे एकांश से कुछ ना पूछने का फैसला किया और वो जहा ले जाए जाने के लिए माँ गई और जब कार रुकी तो वो जहा आए थे वो जगह देख अक्षिता थोड़ा चौकी और स जगह को देखने लगी
"अंश, हम यहाँ क्यों आए हैं?" अक्षिता ने धीमे से फुसफुसाते हुए पूछा
"यही वो सप्राइज़ है जिसके बारे में मैं बात कर रहा था" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा
"ये कोई सप्राइज़ की बात नहीं है, शॉक है" अक्षिता ने कहा
और एकांश अक्षिता के शॉक भरे इक्स्प्रेशन देखकर हंस पड़ा
"अब चलो" एकांश ने कार से उतरते हुए कहा लेकिन अक्षिता अपनी जगह से नहीं हिली
"अक्षिता?"
"प्लीज अंश, मुझसे ये नहीं होगा" अक्षिता ने कहा
"तुम्हें इतनी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है यार"
" लेकिन........"
"बाहर आ रही हो या उठाकर ले आऊ" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए कहा और जैसे ही एकांश ये बोला
"नहीं!" अक्षिता चिल्लाई और जल्दी से कार से नीचे उतर गई क्योंकि उसे यकीन था कि वो उसे जरूर उठाकर ले जाएगा
"अच्छा अब चलो वो हमारा ही इंतज़ार कर रहे हैं" एकांश ने अक्षिता का हाथ पकड़ते हुए कहा वही अक्षिता अब भी इस बारे मे शुवर नहीं थी
"चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा" एकांश ने कहा और उसे अपने साथ लेकर मेन गेट की ओर चल दिया
"नहीं, अंश, प्लीज" अक्षिता ने डरते हुए कहा
"do you trust me?" एकांश ने अक्षिता से पूछा
"हाँ." उसने कहा.
"तो फिर चलो"
"एकांश रुको!" अंदर से आवाज़ आई
दोनों ने अंदर देखा तो एकांश की मां तेजी से उनकी ओर आ
रही थी
"वहीं रुको।" एकांश की मा ने हाफते हुए कहा
"अब क्या हुआ माँ?" एकांश ने पूछा
"वो पहली बार हमारे घर आई है तुम रुको मुझे उसे अच्छे से अंदर बुलाने दो" एकांश की मां ने कहा और दोनो की आरती उतारी और अक्षिता का घर में स्वागत किया और अक्षिता को।कसकर गले लगाया और इससे अक्षिता को घबराहट थोड़ी कम हुई
"डैड कहाँ हैं?" एकांश ने पूछा।
"अरे मैं यहीं हूँ" एकांश के पिता आकार उसकी माँ के पास खड़े हो गए और उन्हें देखकर मुस्कुराने लगे
दोनों ने झुककर एकांश के पेरेंट्स के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया
"आओ पहले खाना खा लें" एकांश की मां ने कहा
उन्होंने बातें करते हुए और हंसते हुए खाना खाया, एकांश की माँ ने अक्षिता को उसके बचपन की सारी कहानियाँ सुनाईं जिससे अक्षिता को भी एकांश के मजे लेने का पूरा मौका मिला
अक्षिता वो वहा पूरी घरवाली फीलिंग आ रही थी और वो घबराहट तो मानो कब की गायब हो चुकी थी, एकांश भी उसे यू हसता मुस्कुराता देख खुश था
उन्होंने कुछ देर और बातें की और उसके बाद एकांश अक्षिता के अपना घर दिखाने ले गया, अक्षिता सब कुछ गौर से देख रही थी क्योंकि वो उसके बारे में सब कुछ जानना चाहती थी
और आखिर में वो उसे अपने कमरे में ले गया और अक्षिता एकांश के कमरे को देखकर दंग रह गई,
अक्षिता उस कमरे में घूम-घूम कर हर चीज़ को उत्सुकता से देख रही थी उसे एकांश के कमरे में होने का एहसास अच्छा लग रहा था और वो दीवार पर लगी तस्वीरों को देखकर मुस्कुरा रही थी
एकांश बाथरूम चला गया था जबकि अक्षिता फोटो देखने में मग्न थी और एकांश के बचपन के फोटो देख मुस्कुरा रही थी
अक्षिता हर चीज को देख रही थी और फिर देखते हुए अक्षिता की नजर एकांश की अलमारी में रखी अपनी फोटो पर पड़ी जिसमे वो मुस्कुरा रही थी, उसके देखा तो वहा उसकी और भी कई तस्वीरें थी, और ये देख कर की एकांश ने उसकी सभी यादों को संभाल कर रखा है अक्षिता की आंखो में पानी आ गया था, वो अब कमरे की खिड़की के पास खड़ी होकर इसी बारे में सोच रही थी और तभी उसने अपने चारो ओर हाथ महसूस किए और उसने पाया के एकांश उसे पीछे से लगे लगा रहा था
"अंश, I like your room..... क्या मस्त कमरा है तुम्हारा और यहा से व्यू कितना शानदार है" अक्षिता ने बाहर की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, बहुत सुंदर है" एकांश ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा
"अंश, मुझे माफ़ कर दो" अक्षिता ने अचानक कहा जिससे एकांश थोड़ा चौका
"क्यों?" एकांश ने अक्षिता का चेहरा अपनी ओर घूमते हुए पूछा
"तुम इतना बड़ा घर, सुख-सुविधाएं, ऐशोआराम और सबसे इंपोर्टेंट अपना परिवार छोड़कर हमारे साथ इतने छोटे से घर और छोटे से कमरे में रह रहे हो.... मेरी वजह से" अक्षिता ने धीरे से नीचे देखते हुए कहा
एकांश ने अक्षिता की ठोड़ी को ऊपर उठाया लेकिन फिर भी वो उसकी ओर नहीं देख रही थी
"मेरे लिए अभी तुमसे ज़्यादा इंपोर्टेंट कुछ भी नहीं है" एकांश ने धीमे से फुसफुसा कर कहा और अक्षिता आँसू भरी आँखों से उसे देखने लगी
वो थोड़ा मुस्कुराई और सोचने लगी कि उसने ऐसा क्या अच्छा काम किया होगा कि एकांश उसकी जिंदगी में आया
"I am still sorry" अक्षिता ने कहा
"अक्षिता, ऐसा मत सोचो...... और मैं तुम्हारे साथ रहकर खुश हूँ" एकांश ने अक्षिता को आंखो में देखते हुए कहा
"मैं इसके लिए सॉरी नही कह रही हूँ, मैं तो इसलिए माफ़ी मांग रही हूँ क्योंकि मैंने तुम्हें अभी अभी बिना कपड़ो के देख लिया" उसने कहा और उसकी आँखें आश्चर्य से बाहर आ गईं
"क्या.....?" एकांश ने एकदम चौक कर पूछा
"हाँ" अक्षिता ने मासूमियत से कहा
"कब और कहाँ?" एकांश ने हैरानी भरे स्वर में पूछा
"अभी, यहीं पर"
और फिर अक्षिता ने एकांश को उसके बचपन की एक फोटो दिखाई जिसमे वो बगैर कपड़ो के था
एकांश एक पल के लिए शॉक होकर उसे देखता रहा और फिर फोटो की तरफ, उसे समझने में थोड़ा समय लगा और जब उसे समझ आया, तो उसने अक्षिता की ओर देखा जो अपनी हंसी को रोकने की कोशिश कर रही थी और एकांश के एक्सप्रेशन देखकर वह अपनी हंसी पर कंट्रोल नहीं रख सकी और जोर से हंसने लगी, और एकांश से दूर हटी जो अब उसे घूर रहा था और उसके हाथ से अपनी फोटो छीनने की कोशिश कर रहा था
वही अक्षिता भाग भाग कर उसे चिढ़ा रही थी
अक्षिता बिस्तर के चारो ओर भाग रही थी और एकांश उसके पीछे था और आखिर में उसने अक्षिता का हाथ पकड़ लिया और वो दोनो बेड पर गिरे, नजदीकिया बढ़ रही थी, दोनो हाफ रहे थे और एकदूसरे को देख रहे थे और फिर दोनो जोर जोर से हंसने लगे
दोनो को अब अपनी नजदीकियों का एहसास बीके रहा था, आसपास के माहोल में गर्मी बढ़ रही थी, अनजाने में ही कब उनके चेहरे एकदूसरे को ओर बढ़े और होठ आपस में मिले उन्हें पता ही नही चला और उस प्यार भरे किस के टूटने के बाद एकांश ने अक्षिता को देखा और कहा
अक्षिता ने जैसे ही दरवाजा खोला वो अपने सामने खड़े शक्स को देख चौकी
"आई थिंक तुमने मुझे बहुत ज्यादा मिस किया" दरवाजे पर खड़े बंदे ने अक्षिता की ओर मुस्कुराकर देखते हुए कहा
"नहीं" अक्षिता अचानक सीधे सीधे बोली और ये सुन उस बंदे की मुस्कुराहट गायब हो गई और वो एकटक अक्षिता को देखने लगा
"तुम इस वक्त यहाँ क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने उस बंदे से पूछा जो अब भी दरवाजे पर ही खड़ा था वही उस बंदे की नजर उसके पीले चेहरे और थकी हुई आंखो पे पड़ी
"मैं बस तुमसे मिलने आया था।" उस बंदे ने कहा और अक्षिता गौर से देखा
"इस वक्त?" अक्षिता ने वापिस उस बंदे को घूरते हुए पूछा
"हाँ, उसमे क्या है" उसने कहा और घर में चला आया वही अक्षिता बस उसे देखती रही
वो बंदा सीधा घर में आया और डाइनिंग टेबल के पास गया और उसने वहा रखी सेब उठाई और खाने लगा और खाते खाते ही आकर सोफे पर बैठ गया वही अक्षिता बस उसे देखती रही और फिर वो भी उसके सामने सोफे पर बैठ गई
"तुम यहा क्या कर रहे ही तुम्हें तो उसके साथ होना चाहिए था" अक्षिता ने उस बंदे की ओर देखते हुए कहा
"हाँ पता है और मैं उसके साथ ही था, लेकिन मुझे कुछ ज़रूरी काम आगया था इसलिए मुझे जल्दी वापस आना पड़ा" उस बंदे ने कहा जैसी अक्षिता चुप रही
"तुम मुझसे एक वादा करोगी?" उसने अचानक से अक्षिता से पूछा जिसपर अक्षिता चौकी
"क्या?" अक्षिता ने पूछा
"प्लीज दोबारा एकांश का साथ मत छोड़ना तुम नही जानती तुम्हारे बगैर उसका क्या हाल था" अमर ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा
"अमर मैं...." अक्षिता से आगे कुछ बोला ही नही गया वो ये वादा कैसे।कर सकती थी जबकि को तो अपने जीवन की सच्चाई जानती थी, वो ये भी नही जानती थी के अगले ही पल उसके साथ क्या होगा, यही सोचते हुए अक्षिता की आंखे वापिस भर आई थी और उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखा
"मुझे पता है कुछ तो है जो तुम्हें वादा करने से रोक रहा है और मैं तुमसे नहीं पूछूंगा कि वो क्या बात है, लेकिन अब उससे फिर से दूर मत भागना, वो इस बार बर्दाश्त नहीं कर पाएगा अक्षिता" अमर ने अपनी आँखों में आँसू भरकर कहा और अक्षिता ने नीचे देखते हुए बस अपना सिर हिला दिया
अक्षिता ने अमर की ओर देखा, उसके चेहरे को देखा जिसपर थोड़ी हताशा थी और आंखो में सुनापन लिए वो सामने की कर देख रहा था
"तुम किसी से प्यार करते हो ना" अक्षिता ने पूछा और अमर ने चौंककर उसे देखा
"क्या? नहीं!" अमर ने एकदम से कहा जिसपर अक्षिता हस दी
"तुम्हारे चेहरे पर जो ये एक्सप्रेशंस है ना मिस्टर मैं उसे अच्छे से समझती हु, समझे" अक्षिता ने कहा और अमर से एक लंबी सास छोड़ी और फिर बोला
"मैं उससे प्यार तो करता हूँ, लेकिन वो अपने करियर से प्यार करती है, मैं चाहता हूँ कि वो मेरे साथ रहे, लेकिन वो पूरी दुनिया घूमना चाहती है, मैं उसके साथ घूमने के लिए भी तैयार हूँ, लेकिन वो किसी के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है...... और बस यही कहानी है जो यहीं खत्म होती है" अमर ने कहा
पहली बार अक्षिता को अमर की आवाज़ में उदासी और शब्दों में दर्द महसूस हुआ था
"तुमने अपनी फीलिंग्स उसे बताई?" अक्षिता ने पूछा
"नहीं" अमर ने धीमे से कहा
"और ये क्यों?"
"मैं उसे और उसकी प्रायोरिटीज को जानता हु अक्षिता और अगर मैंने उसे अपनी फीलिंग्स बता दी तो वो इसे कभी एक्सेप्ट नही करेगी और शायद फिर मैं उसकी दोस्ती भी खो बैठु" अमर ने दुखी होकर कहा
"लेकिन वो लड़की है कौन?" अक्षिता ने आखिर में मेन सवाल किया
"तुम जानती हो उसे" अमर ने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा जिससे अब अक्षिता की भी उत्सुकता बढ़ने लगी थी
"क्या! वो कौन है?"
"श्रेया" उसने कहा.
फिर अक्षिता ने उन सभी श्रेया के बारे मे सोच जिन्हे वो जानती थी और उसकी आँखों के सामने बस एक ही चेहरा घूमने लगा और जब उसे ध्यान आया के अमर किस श्रेय की बात कर रहा था तो उसने चौक कर अमर को देखा
"तुम्हारा मतलब है.... श्रेया मेहता?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा जिसपर अमर ने बस हा मे गर्दन हिला दी
"गजब! पर तुम्हें उससे अपने दिल की बात कहनी तो चाहिए मुझे नहीं लगता वो तुम्हें ना करेगी?" अक्षिता ने कहा
"उसके पास इन सबके लिए समय नहीं है, वो सिर्फ अपने काम पर फोकस करना चाहती है" अमर ने उदास होकर कहा जिसपर अक्षिता बस चुप रही
"खैर मैनचलता हु बस तुमसे मिलने का मन किया था तो आ गया था" अमर ने कहा और उठ खड़ा हुआ
"इतना लेट हो गया है कहा जाओगे एकांश के कमरे में जाकर सो जाओ" अक्षिता ने कहा
"नहीं, ठीक है। चिंता मत करो...." अमर ने कहा लेकिन जब उसने देखा के अक्षिता उसे घूर के देख रही थी वो वो बोलते बोलते चुप हो गया
"उसका कमरा कहाँ है?" आखिर मे अक्षिता के आगे हार मानते हुए अमर बोला
"ऊपर" अक्षिता ने कहा और अमर एकांश के कमरे की ओर बढ़ गया वही अक्षिता भी एकांश के बारे मे सोचते हुए सो गई
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सुबह भी जब अमर जाना चाहता था तो अक्षिता की मा ने उसे नाश्ते के लिए रोक लिया जिसके बाद अमर ने उन सभी के साथ नाश्ता किया और जब वो जा रहा था तब
"तुम्हें उसे अपनी फीलिंग बतानी चाहिए" अक्षिता ने अपनी कार की ओर जाते अमर से कहा जिससे अमर थोड़ा रुक और अक्षिता ने आगे बोलना शुरू किया
"तुम्हें पता है कि हर लड़की बचपन से ही अपने राजकुमार का सपना देखती है, हर लड़की एक ऐसा लड़का ऐसा इंसान चाहती है जो उससे प्यार करे और उसका ख्याल रखे, हर लड़की एक ऐसे आदमी के साथ खुश रहने का सपना देखती है जिससे वो प्यार करती है" अक्षिता बोल रही थी और अमर सुन रहा था
"शायद वो भी अपने राजकुमार का इंतज़ार कर रही हो, शायद वो अपने मिस्टर राइट का इंतज़ार कर रही हो, शायद वो इस सब दिलचस्पी इसीलिए नहीं रखती क्योंकि वो अभी तब उस सही इंसान से मिली ही नहीं है" अक्षिता ने कहा
"और हो सकता है तुम उसे अपनी फीलिंगस बताओ तो वो तुम्हारे बारे मे सोचना शुरू करे, शायद वो तुममे अपना राजकुमार देख सके और हो सकता है उसे तुममे अपना मिस्टर राइट दिखे" अक्षिता ने हर शब्द को ध्यान से कहा एक पाज़िटिव अप्रोच के साथ जिसने अमर के दिल मे भी एक खुशी की उम्मीद की किरण जगाई
"मेरे अंदर होप जगाने के लिए थैंक्स" अमर ने अक्षिता को गले लगाते हुए कहा जिसके बाद वो उससे विदा लेकर वहा से निकल गया जब अक्षिता उसकी नजरों से दूर अपने घर मे चली गई अमर ने अपना फोन निकाला और एक नंबर डाइल किया और जब सामने से कॉल रीसीव हुआ तब वो भारी मन से बोला
"you need to come back soon, हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है"
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अक्षिता ने अपने हाथ मे रखी बुक को मुस्कुरा कर देखा
वो उस बुक में कुछ लिख रही थी और लिखते समय वो लगातार मुस्कुरा रही थी
और अचानक, उसकी वो मुस्कान जैसे गायब हो गई और वो कुछ सोचते हुए शून्य में देखने लगी और उसकी आँख से एक आँसू बह निकला
अक्षिता ने अपने सभी विचारों दिमाग से हटाते हुए अपना सिर हिलाया और फिर से लिखना शुरू कीया, लेकिन उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, वो अपने आंसू पोंछने की परवाह नहीं कर रही थी और लिखती जा रही थी
और आखिर मे उसने जोर से आह भरते हुए किताब बंद की और एकांश के बारे में सोचने लगी, उसे दो दिन पहले ही भारत वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन वो नहीं आया था और उसने उससे बस इतना कहा था कि कोई महत्वपूर्ण काम उसके हाथ लग गया है
एकांश ने उससे कहा कि वो 3-4 दिन में आ जाएगा जिसपर अक्षिता ने भी उससे कुछ नहीं कहा था, लेकिन उसके अंदर का डर बहुत बढ़ गया था वो किताब को साइन से लागए ही सो गयी
दूसरी तरफ़, अक्षिता के माता-पिता बहुत चिंतित थे क्योंकि अक्षिता डॉक्टर के पास जाने के लिए राज़ी ही नहीं थी जब उन्होंने उसे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए मजबूर किया, तो वो उन पर चिल्लाने लगी और उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया
उसके पेरेंट्स उसके व्यवहार से हैरान थे क्योंकि अक्षिता ने काभी ऐसे बर्ताव नहीं किया था उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है और जब उन्होंने एकांश से इस बारे में बात की, तो उसने उन्हें बताया कि वो जल्द ही वापस आ रहा है और फिर सब ठीक हो जाएगा
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डोरबेल की आवाज से अक्षिता की गहरी नींद मे खलल पड़ा था और उसने समय देखा तो अपनी भौंहें सिकोड़ लीं, क्योंकि रात के दस बज रहे थे और उसे आश्चर्य हुआ कि लोग उसके घर पर घंटी बजाते क्यों आते हैं, वो भी रात में ही
वो आह भरकर लिविंग रूम में आई उसे फिर इस बात पर आश्चर्य हुआ कि उसके माता-पिता कभी भी दरवाज़े की घंटी बजने पर क्यों नहीं उठते लेकिन फिर उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने खड़े व्यक्ति को देख खुशी से उछल पड़ी
"अंश” उसने एकांश को ऊपर से नीचे तक देखते हुए धीमे से कहा, उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था के एकांश सही मे वहा था
"अक्षिता.." एकांश भी अक्षिता को देख उतना ही खुश था और उसकी आँखों में भी आँसू थे
और तभी अक्षिता को ये एहसास हुआ कि वो सपना नहीं देख रही थी और एक कदम उसकी ओर बढ़ाते हुए उसने उसे कसकर गले लगा लिया
वो उसकी बाहों में रो रही थी और उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी, एकांश खुद भी रो रहा था क्योंकि उसे भी अक्षिता की बहुत याद आई थी
"I missed you so much" एकांश ने धीमे से उसके काम मे कहा वही अक्षिता ने उसे और भी कस कर पकड़ लिया
और कुछ पल वैसे ही रहने के बाद अक्षिता ने खुद को उससे दूर किया और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगी वही एकांश ने भी झुककर हल्के से अक्षिता के होठों को चूमा जिससे वो आँसूओ के साथ साथ मुस्कुराई फिर से उसने एकांश को कसकर गले लगाया और रो पड़ी क्योंकि उसे लगा था कि वो उसे देखे बिना ही मर जाएगी।
"शशश..... मैं यही हु तुम्हारे साथ..... अब रोना बंद करो" एकांश ने धीरे से अक्षिता की पीठ सहलाते हुए कहा
"मुझे डर लग रहा है अंश..... मैं..... मैं...." वो बोल नहीं पा रही थी
"कोई बात नहीं..... मैं हूँ ना..... अब सब ठीक हो जाएगा" एकांश ने अक्षिता को आश्वस्त करते हुए कहा
वो दोनों कुछ देर तक एक दूसरे को गले लगाए ऐसे ही बैठे रहे
"अब तुम जाकर सो जाओ, हम कल सुबह बात करेंगे" एकांश ने अक्षिता के आँसू पोंछते हुए कहा
लेकिन अक्षिता ने उसे जाने देने से मना कर दिया
"just stay with me..... please" अक्षिता ने एकांश के शर्ट को पकड़ते हुए कहा
" लेकिन....."
" प्लीज....."
और फी एकांश ने बगैर एक पल की देरी कीये अक्षिता को बाहर की ओर खिचा और दरवाजा बंद कर एक झटके मे उसे अपनी बाहों मे उठा लिया और अपने कमरे मे ले गया वही अक्षिता पूरे समय बगाऊर पलके झपकाए उसे देखती रही मानो उसने आंखे बंद की तो कही एकांश गायब ना हो जाए, अपने कमरे मे आकार एकांश ने अक्षिता को बेड पर सुलाया और खुद फ्रेश होने चला गया और जबतक वो बाहर आया अक्षिता सो चुकी थी, एकांश ने उसके पीले पड़े चेहरे और कमजोर शरीर की ओर देखा, अक्षिता की हालत एकांश का भी दिल दुख रहा था, उसने उसके माथे को चूमा और फिर उसे एक कंबल से धक दिया
एकांश फिर अपने कमरे से निकला और नीचे आया जहा अक्षिता के पेरेंट्स उसका इंतजार कर रहे थे
"उस डॉक्टर ने क्या कहा बेटा?" सरिताजी ने चिंतित होकर पूछा
"मैं उनसे मिला और अक्षिता की हालत के बारे में बताया, उन्होंने कहा है कि उन्होंने पहले भी इस तरह का ऑपरेशन किया था और वो सफल रहा था" एकांश ने रुककर उनकी तरफ देखा और उनके चेहरों पर उम्मीद की एक किरण देखी
"डैड के दोस्त उन्हें पहले से ही जानते थे, इसलिए उन्हें यहा इंडिया आने के लिए मनाना थोड़ा आसान था, उन्होंने मुझे कुछ और सिम्प्टम भी बताए है और कहा है कि जब हम उन्हें अक्षिता मे देखे तो हमें उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना होगा और डॉक्टर यहाँ बुला लेना होगा" एकांश मे बात खतम की वही अक्षिता के पेरेंट्स ये काम कर खुश थे के वो डॉक्टर अक्षिता के लिए भारत आने को राजी हो गया था
"वीडियो कॉल पर जब मैंने उसकी हालत देखी तो मैं समझ गया था के मामला और खराब हो रहा है, इसलिए मैंने अमर को यहाँ भेजा था ताकि वो उसके सिम्प्टम देख सके और मुझे बता सके, आप लोगों ने जो सिम्प्टम मुझे बताए थे और अमर ने जो सिम्प्टम पहचाने, वे बिल्कुल वही थे जो डॉक्टर ने हमें बताए थे, अमर ने तुरंत मुझे फ़ोन किया और कहा कि वापस आ जाओ ताकि हम उसका इलाज शुरू कर सकें" एकांश ने कहा
"मैं 2 दिन पहले ही वापस आ जाता, लेकिन मुझे डॉक्टर से एक बार और बात करनी थी और अक्षिता की हालत के बारे में बताने के लिए रुकना पड़ा, उन्होंने ही मुझे जल्द से जल्द इंडिया वापस जाने और उसे जल्द से जल्द अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कहा" एकांश ने भीगी पलको के साथ कहा और सारी बात सुन सरिता जी अपने पति के गले लगकर रो पड़ी
"क्या ऑपरेशन के बाद वो ठीक हो जाएगी?" अक्षिता के पिता ने डरते हुए पूछा जिसपर एकांश चुप रहा और इससे अक्षीता के पेरेंट्स और भी चिंतित हो गए
"हम अभी इस बारे में कुछ नहीं कह सकते लेकिन हमें उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना होगा क्योंकि आंटी आपने कहा था कि आजकल उसे चक्कर बहुत ज्यादा आ रहे है जो की ठीक नहीं है, और सबसे बड़ी बात ये है कि उसका सर कुछ यू धडक रहा होगा जैसे कोई हथोड़ा मार रहा हो और काफी दर्द भी हो रहा होता क्या उसने इस बारे में आपसे कुछ कहा?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा
"नहीं, उसने ऐसा कुछ नहीं बताया और वैसे भी अगर उसे दर्द भी होगा तो वो बताएगी नहीं और खुद ही सहेगी" अक्षिता की माँ ने रोते हुए कहा
"आप चिंता मत करो आंटी, मैं उसे कुछ नहीं होने दूंगा लेकिन पहले हमें उसे हॉस्पिटल में ऐड्मिट कराना होगा" एकांश ने कहा
"लेकिन इसके लिए तुम्हें उससे सच बोलना होगा कि तुम यहाँ क्यों हो" अक्षिता के पिता ने कहा
एकांश ने भी इस बारे में काफी सोचा कि उसे उसे सच बताना ही होगा क्योंकि शायद तब तक अक्षिता हॉस्पिटल में ऐड्मिट होने के लिए नहीं मानेगी जब तक वो उसके साथ नहीं है क्योंकि एकांश सच्चाई जानने के डर से तो वो सहमत नहीं होगी
"मैं कल उसे सब सच बता दूंगा" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता के पेरेंट्स भी थोड़े डरे हुए थे के क्या पता अक्षिता कैसे रीऐक्ट करेगी
******
एकांश को सारी रात नींद नहीं आई वो बस अक्षिता के सोते हुए चेहरे को देखता रहा उसे नहीं पता था कि वो कैसे कहेगा और क्या कहेगा, लेकिन उसने अक्षिता सब कुछ बताने का फैसला कर लिया था
अगले दिन जब अक्षिता अपनी नींद से जागी औ उसने अपने आसपास एकांश को देखा तो वो कही नहीं था, अक्षिता जल्दी जल्दी नीचे आई तो उसने देखा के एकांश मस्त डाईनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था
जब अक्षिता ने उसकी तरफ देखा तो वो मुस्कुराया और वो भी मुस्कुराई, अक्षिता के अपने मा पापा को घर मे देखा तो वो कही नहीं थे तब एकांश ने उसे बताया के वो दोनों मंदिर गए थे और अब अक्षिता को भी भूख लगी थी इसीलिए वो भी फ्रेश होकर नाश्ता करने आ गई और जब अक्षिता नाश्ता कर रही थी एकांश फोन पर कुछ बाते कर रहा था
" अक्षिता."
एकांश ने अक्षिता को पुकारा और उसने भी उसकी ओर देखा
"मुझे तुमसे कुछ बात करनी है" एकांश ने उदास चेहरे से कहा, लेकिन अंदर ही अंदर उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था
वो दोनों जाकर सोफे पर बैठ गये
अक्षिता एकांश की घबराहट को उसकी झिझक को महसूस कर रही थी और उसने एकांश को पहले काभी ऐसे नहीं देखा था
"अंश, क्या हुआ? तुम क्या बात करना चाहते थे?" अक्षिता ने चिंतित होकर उससे पूछा
"यही की मैं यहाँ क्यों हूँ?" एकांश ने आराम से कहा और अब अक्षिता भी गौर से उसकी बात सुनने लगी
"अक्षिता...... मैं......"
" मुझे पता है, सब पता है" अक्षिता ने कहा
"क्या?"
"मैं जानती हूँ की तुम यहाँ क्यों हो एकांश" अक्षिता ने कहा
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा और उसे याद आया कि उसने तो पहले ही अक्षिता को था कि वो ऑफिस के काम से यहां आया था
"नहीं अक्षिता.... मैं ऑफिस के काम से यहाँ नहीं आया हूँ...... मैं तो यहाँ......"
"एकांश, मैं ऑफिस के काम की बात नहीं कर रही हूँ" अक्षिता ने नीचे देखते हुए कहा
"फिर?"
"मुझे पता है कि तुम मेरे बारे में सब सच जानते हो एकांश"
अक्षिता ने एकांश को देखा जो अपनी जगह जमा हुआ स बैठा था, उसके चेहरे पर स्पष्ट आश्चर्य था
"तुम क्या सोचते हो कि मैं नहीं जानती कि तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने एकांश से पूछा, जिसने उसकी ओर बड़ी-बड़ी आँखों से देखा
"हम एक दूसरे से प्यार करते थे अंश और तुम्हें मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता" अक्षिता ने नीचे देखते हुए कहा
"अब तुम सोच रहे होगे कि मुझे कैसे पता, लेकिन अगर तुम गहराई से सोचोगे तो तुम्हें खुद ही इसका जवाब मिल जाएगा।" अक्षिता ने मुस्कुराते हुए कहा
एकांश कुछ नहीं बोला..... वो कुछ कह ही नहीं सका
"मुझे पता है कि तुम मुझे ये बात बताने से बचने के लिए बहुत सतर्क थे, लेकिन फिर भी मैंने कुछ चीजें नोटिस कीं जो शायद तुमने नहीं कीं" अक्षिता ने कहा वही एकांश अब भी उसकी ओर ही देख रहा था
"जब तुमने ऊपर का कमरा किराए पर लिया, तो मुझे शक हुआ क्योंकि हमने तो तुम्हें कभी नहीं देखा था और किसी तरह मुझे लगा कि ये तुम ही हो क्योंकि मुझे पता है कि जब तुम मेरे करीब होते हो तो कैसा महसूस होता है लेकिन मैंने ये सोचकर उस फीलिंग को नजरअंदाज कर दिया कि मैं शायद तुम्हें बहुत याद कर रही हूं, और फिर उस दिन जब मैं अपने घर के बाहर बेहोश हो गई थी और जब मैं उठी तो मैं अपने कमरे में थी, मैं उलझन में थी कि मुझे मेरे कमरे में कौन लाया क्योंकि मेरे पापा भी उस समय वहां नहीं थे और जब मैंने अपनी मां से इस बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने ऊपर रहने वाले किरायेदार की मदद ली थी, और पता है सबसे कमाल की बात क्या थी, मुझे ना उस वक्त सपना आया था के तुमने मुझे अपनी बाहों मे उठा रखा था और फिर जब मैंने उस दिन तुम्हें अपने घर में देखा तो मुझे एहसास हुआ कि वो एक सपना नहीं था, जब मुझे पता चला की वो किरायेदार तुम थे, तो मैं चौंक गई थी लेकिन मैं खुश थी”
"और फिर मुझे तब थोड़ा शक हुआ जब मेरे मा पापा तुम्हें यहाँ देखकर चौके नहीं और इसके अलावा वो तुम्हारे साथ इतनी आसानी से घुलमिल गए जैसे कि वो तुम्हें लंबे समय से जानते हों"
"और फिर उस दिन की वो हमारी पानी की लड़ाई जिसके बाद तुम टेंशन मे मेरे कमरे में आए थे ये जानने के लिए कि मैं ठीक हूं या नहीं यही बस यही वो टाइम था जब मैं सब समझने लग थी"
"उसके बाद तुम मुझे कई बार मेरे रूम मे भी आए और मेरे बेडरूम की दीवारों पर लगी अपनी तस्वीरों को देखते हुए भी मुझसे कुछ भी नहीं पूछा या कुछ नहीं कहा" अक्षिता ने एकांश से कहा जो अब भी चुप चाप उसकी बात सुन रहा था
"तुम्हें वो दिन याद है जब तुमने मुझे मॉल छोड़ा था?" अक्षिताने पूछा और एकांश ने अपना सिर हा मे हिला दिया
"उस दिन जब मैं वापस आई तो तुमने मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा कि मैं कहाँ से आ रही हूँ, मैंने क्या खरीदा क्योंकि मेरे हाथ में मेरे हैंडबैग के अलावा कुछ भी नहीं था, और उस दिन मुझे समझ में आया कि तुम्हें पता होगा कि मैं अस्पताल गई थी मॉल नहीं"
"फिर एक दिन तुमने मुझे अपने ऑफिस में एक फ़ाइल लाने के लिए कहा था और जब मैं तुम्हारे केबिन में गई, तो मैंने तुम्हारे डेस्क पर अपनी तस्वीर देखी और तब मुझे एहसास हुआ कि तुम अभी भी मुझसे प्यार करते हो और मुझे ढूँढने यहाँ आए हो, जब हम तुम्हारे ऑफिस की पार्टी में गए, तो मैंने देखा कि कैसे मेरे दोस्त तुम्हारे भी दोस्त भी बन गए थे और मैं इससे काफी खुश हु, फिर तुम लोगों का मेरा ध्यान रखना, जब मैं कुछ पीना चाहती थी या आइसक्रीम खाना चाहती थी, तो जिस तरह से तुम रीऐक्ट करते थे, उससे मेरा शक और बढ़ गया" अक्षिता ने आगे कहा लेकिन एकांश की ओर नहीं देखा
"ये सब सिर्फ़ मेरा शक था या ऐसा मैं तब तक सोचती रही जब तक कि मैंने तुम्हारे कमरे में अपनी डायरी नहीं देखी जब तुम जर्मनी गए थे, तब सारी बातें साफ हो गईं और सब कुछ मेरे लिए क्लियर हो गया" अक्षिता ने कहा और एकांश की ओर देखा जो अब अपनी आँखें बंद कर रहा था
अक्षिता ने एकांश के दोनों हाथ पकड़ लिए जिससे वो उसकी ओर देखने लगा और अक्षिता ने पहली बार एकांश की आँखों में डर देखा जिससे वो और ज्यादा चिंतित हो गई
"तुमने मेरी वजह से अपनी माँ से झगड़ा किया था, है न?" अक्षिता ने अपनी आँखों मे आँसू भरकर पूछा और एकांश ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमाया लिया
"क्यों एकांश? क्यों?" अक्षिता चिल्लाई
"तुम्हें पता है मैं अचानक क्यों चली गयी थी?" अक्षिता ने पूछा
"मेरे लिए तुम्हारे बिहैव्यर में आए बदलाव के कारण मुझे वो जगह छोड़नी पड़ी" अक्षिता ने कहा और एकांश बस उसे देखता रहा
"तुम मेरे साथ अच्छा बर्ताव कर रहे थे, मेरा ख्याल रख रहे थे और मुझसे नॉर्मल तरीके से बात कर रहे थे...... इन सब बातों से मैं इतना डर गई कि मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ा क्योंकि मुझे डर था की तुम मुझसे फिर से जुड़ जाओगे और जब मैं चली जाऊंगी तो ये तुम्हें तोड़ के रख देगा" अक्षिता ने कहा और उसकी आंखों से आंसू बह निकले
एकांश चुपचाप उसकी बातें सुनता रहा, लेकिन उसकी ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया
"तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे साथ कितनी सारी बातें शेयर करना चाहती थी, लेकिन मुझे डर था कि मेरे चले जाने के बाद तुम्हारा क्या होगा"
"लेकिन अब, मैं ये बताने के लिए और इंतजार नहीं कर सकती कि मैं किस दौर से गुजर रही हूँ, जो की तुम पहले से ही जानते हो" अक्षिता ने आँसुओ के साथ कहा
"प्लीज मुझे बताओ अक्षु...... तुम्हें पता नहीं है कि मैं चाहता था कि तुम मुझे बताओ कि तुम पर क्या बीत रही है" एकांश ने अक्षिता के आँसू पोंछते हुए कहा
"हमारे रिलेशनशिप के दौरान ही मुझे बहुत ज़्यादा सिरदर्द और चक्कर आते थे, मुझे लगता था कि शायद ये तनाव या किसी कमज़ोरी की वजह से हो रहा होगा, जब मेरे मा पापा ने मेरी शादी के लिए लड़के देखने के बारे में सोचा, तो मैं तुम्हारी जगह किसी और के बारे मे सोच भी नहीं सकती थी इसलिए मैंने उन्हें तुम्हारे बारे में बताया, मैंने उन्हें तुम्हारी फोटो दिखाईं और वो तुमसे मिलने के लिए राज़ी हो गए, मैं बहुत खुश थी और सोचा कि अगले दिन तुम्हें बताऊँगी लेकिन मैं उस दिन अचानक बेहोश हो गई" अक्षिता बोलते बोलते चुप हो गई
"मेरे मा पापा मुझे अस्पताल ले गए लेकिन डॉक्टर मेरे अचानक बेहोश होने का कारण नहीं जान पाए, होश में आने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मुझे कोई सिम्प्टमस् है और मैंने उन्हें लगातार सिरदर्द और चक्कर आने के बारे में बताया तो उन्होंने मेरे कुछ टेस्ट किए और मुझे अगले दिन आने को कहा, और फिर जब हम अगले दिन अस्पताल गए, तो उन्होंने हमें मेरे ब्रैन में ट्यूमर के बारे में बताया" अक्षिता अपना चेहरा ढँककर फूट-फूट कर रोने लगी थी
औरों से अक्षिता के बारे मे सुनना अलग बात थी लेकिन अक्षिता के मुह से ही उसकी तकलीफ के बारे मे सुनना एकांश को तोड़ रहा था, वो उस दर्द को महसूस कर रहा था जिससे अक्षिता गुजरी थी, उसने आज पहली बात अक्षिता को अपने सामने टूटते देखा था जो उसका दिल छलनी कर रहा था
उसने अक्षिता को कस कर गले लगा लिया था
"मैं मर रही हूँ अंश...... मैं मर रही हूँ......" अक्षिता उसकी आगोश में जोर-जोर से रोने लगी थी और एकांश भी उसके साथ रो रहा था
दोनों ही एकदूसरे को गले लगा कर कुछ देर तक रोते रहे
अक्षिता तो एकांश के पहलू मे शांत हो गई थी लेकिन एकांश अभी भी उसे पकड़कर रो रहा था और अक्षिता उसे यू रोता देखना बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी एकांश के आँसू उसके दिल पर वार कर रहे थे
"शशश... एकांश... मैं हूँ अभी" अक्षिता ने एकांश की पीठ सहलाते हुए उसे गले लगा लिया और कुछ ही देर मे एकांश भी शांत हो गया था लेकिन उसका दिल अभी भी जोरों से धडक रहा था
"मुझे डर लग रहा है अंश...."
अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए कहा
"मुझे तुम्हारे लिए डर लग रहा है...... मुझे पता है कि मेरे चले जाने के बाद तुम अपनी जिंदगी सीधी तरह नहीं जी पाओगे और मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे कारण अपनी जिंदगी बर्बाद करो और मैं नहीं चाहती कि तुम मेरु वजह से जिंदगी जीना ही बंद कर दो" अक्षिता ने एकांश के गालों को सहलाते हुए कहा
"मुझे पता है कि तुम मेरे लिए हिम्मत बांधे हो अंश.... और मुझसे वादा करो के हमेशा ऐसे ही रहोगे और मेरे मा पापा के भी सपोर्ट मे रहोगे, ठीक है?" अक्षिता ने नाम आँखों से पूछा और एकांश ने भी हा मे सर हिला दिया
"तुम मुझे छोड़ कर कही नहीं जाओगी...... कही नहीं" एकांश ने रोते हुए कहा
"ये मेरे हाथ में नहीं है अंश.... मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती" अक्षिता एकांश के माथे को अपने माथे से छूते हुए रो पड़ी
"नहीं! ऐसा मत कहो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर बचाऊंगा अक्षु" एकांश ने अक्षिता के हाथों को अपने हाथों में कसकर पकड़ते हुए कहा और वो बस उसे देखकर मुस्कुराई
"अंश, क्या तुम मुझसे एक वादा करोगे?" अक्षिता ने पूछा
"जो तुम कहो" उसने कहा.
"अगर मुझे कुछ हो गया तो......" लेकिन एकांश ने उसे बीच मे ही रोक दिया
"नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा! और ऐसा दोबारा कभी मत कहना!"
"प्लीज मेरी बात सुनो अंश" अक्षिता ने वापिस आराम से कहा
"अगर मुझे कुछ हो जाता है तो मुझसे वादा करो कि तुम अपनी ज़िंदगी यहीं नहीं रोकोगे, तुम अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं करोगे, तुम अपने आस-पास के लोगों को चुप नहीं कराओगे, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे जिससे तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद हो जाए, मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ो, मैं चाहती हूँ कि तुम लोगों को अपनी ज़िंदगी में आने दो, मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी का एक नया चैप्टर शुरू करो जहाँ कोई दुख और आँसू न हों, सिर्फ़ मुस्कुराहट और खुशी हो, करोगे वादा" अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए पूछा और एकांश बस उसे देखता ही रहा
एकांश सोच रहा था की अक्षिता उससे ये बाते कैसे मांग सकती है जिनकी वो उसके बगैर कल्पना भी नहीं कर सकता
" मुझसे वादा करो अंश...." अक्षिता ने एकांश की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा, जिसकी आँखें पूरी आशा और विश्वास से भरी थीं
"अंश" जब एकांश ने कोई जवाब नहीं दिया तो अक्षिता ने उसे दोबारा पुकारा
"ठीक है, वादा रहा" एकांश ने कहा
अक्षिता भी एकांश का हाथ पकड़े हुए मुस्कुराई
"थैंक यू अंश"
वो खुश थी क्योंकि वो जानती थी कि एकांश अपना वादा निभाएगा
वो जानती थी कि एकांश उसका वादा उसका भरोसा कभी नहीं तोड़ेगा
वो जानती थी कि वो उसके लिए कुछ भी करेगा और ये तो उसकी आखिरी इच्छा थी और एकांश इसे पूरा जरूर करेगा
"और प्लीज फिर से प्यार करने की कोशिश करो, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे पास कोई हो जो तुम्हारा ख्याल रख सके और तुमसे प्यार कर सके, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारा एक परिवार हो, मैं चाहती हूँ कि तुम अपने परिवार के साथ एक नॉर्मल जिंदगी जियो अंश" अक्षिता ने एकांश के कंधे पर अपना सर टिकाते हुए कहा
"तुम्हें नहीं लगता कि ये तुम मुझसे बहुत ज्यादा मांग रही हो?" एकांश ने शांत स्वर मे उससे पूछा, लेकिन अक्षिता की बात सुनकर उसका दिल अंदर से टूट गया था
वो उसकी जगह किसी और को कैसे दे सकता था?
वो अपनी जिंदगी किसी और के साथ कैसे जी सकता था?
"अंश?" अक्षिता ने उसे पुकारा
"तुम थकी हुई लग रही हो, तुम्हें दवाइयां लेकर सो जाना चाहिए" एकांश ने बात बदलते हुए कहा जो अक्षिता समझ गई थी
एकांश ने अक्षिता को अपनी बाहों में उठाया और उसके कमरे में ले गया, उसने उसे बिस्तर पर सुला दिया और उसे राजाई उढ़ा दी
अक्षिता भी उसकी ओर देखकर मुस्कुराई और सो गई, क्योंकि वह बहुत थकी हुई थी
एकांश ने उसके माथे को चूमा और उसके कान में फुसफुसाया......