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हमारे अंकल के घर के पीछे ही एक तालाब था जो की सिर्फ 100 फुट ही दूर था।
बीच में और किसी का घर नहीं था। सिर्फ कुछ पेड़ पौधे थे। हमारी भाभी रोज उधर ही कपड़े धोने जाती थी। सभी भाभियां कम बाँट लेती थी। कोई रसोई, तो कोई कपड़े धोने का, तो कोई बर्तन और सफाई का।
जैसे ही मैं गया उन सभी लोगों ने मुझे बड़े प्यार से आमंत्रित किया।
मेरी भाभियां मजाक भी करने लगीं की बहुत बड़ा हो गया है, शादी के लायक। तो मैं जाकर सभी से मिलने के बाद सोचा थोड़ा फ्रेश होता हूँ। मैंने अपनी बड़ी भाभी से बोला- मुझे नहाना है।
उसने बोला- इधर नहाना है या तालाब पे जाना है?
मैं- अभी इधर ही नहा लेता हूँ तालाब कल जाऊँगा।
वो बोली- “ठीक है…” और उसने पानी दे दिया।
मैं सभी भाभियों को देखकर उतेजित हो गया था तो मैंने बड़ी भाभी को याद करते हुए मूठ मारी
और स्नान करके जैसे ही वापस आया, बड़ी भाभी बोली- क्यों देवरजी इतनी देर क्यों लगा दी? कही कोई प्राब्लम तो नहीं? अगर हो तो बता देना, शायद हम आपकी कोई मदद कर सकें? ऐसा बोलकर सभी भाभियां हँसने लगीं।
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और खुशी भी।
दूसरे दिन सुबह मैं 7:00 बजे उठा। ब्रश करके नाश्ता किया।
तभी बड़ी भाभी कपड़े की पोटली बना के तालाब पे धोने को जा रही थी।
वो बोली- “चलो देवरजी, तालाब आना है क्या?”
मैं तो वही राह देख रहा था कि कब मुझे वो बुलाएं। मैंने हाँ कहा और उपने कपड़े और तौलिया लेकर उनके साथ चल पड़ा। रास्ते में भाभी खुश दिख रही थी। उसने थोड़ी इधर-उधर की बातें की। जब हम तालाब पहुँचे। ओह्ह… माई गोड… मैं क्या देख रहा हूँ? मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गईं। वहां पे 10-15 औरतें थी और उन सब में से 6-7 ने तो ऊपर ब्लाउज़ नहीं पहना था,
मेरे कदम रुक ही गये थे
बीच में और किसी का घर नहीं था। सिर्फ कुछ पेड़ पौधे थे। हमारी भाभी रोज उधर ही कपड़े धोने जाती थी। सभी भाभियां कम बाँट लेती थी। कोई रसोई, तो कोई कपड़े धोने का, तो कोई बर्तन और सफाई का।
जैसे ही मैं गया उन सभी लोगों ने मुझे बड़े प्यार से आमंत्रित किया।
मेरी भाभियां मजाक भी करने लगीं की बहुत बड़ा हो गया है, शादी के लायक। तो मैं जाकर सभी से मिलने के बाद सोचा थोड़ा फ्रेश होता हूँ। मैंने अपनी बड़ी भाभी से बोला- मुझे नहाना है।
उसने बोला- इधर नहाना है या तालाब पे जाना है?
मैं- अभी इधर ही नहा लेता हूँ तालाब कल जाऊँगा।
वो बोली- “ठीक है…” और उसने पानी दे दिया।
मैं सभी भाभियों को देखकर उतेजित हो गया था तो मैंने बड़ी भाभी को याद करते हुए मूठ मारी
और स्नान करके जैसे ही वापस आया, बड़ी भाभी बोली- क्यों देवरजी इतनी देर क्यों लगा दी? कही कोई प्राब्लम तो नहीं? अगर हो तो बता देना, शायद हम आपकी कोई मदद कर सकें? ऐसा बोलकर सभी भाभियां हँसने लगीं।
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और खुशी भी।
दूसरे दिन सुबह मैं 7:00 बजे उठा। ब्रश करके नाश्ता किया।
तभी बड़ी भाभी कपड़े की पोटली बना के तालाब पे धोने को जा रही थी।
वो बोली- “चलो देवरजी, तालाब आना है क्या?”
मैं तो वही राह देख रहा था कि कब मुझे वो बुलाएं। मैंने हाँ कहा और उपने कपड़े और तौलिया लेकर उनके साथ चल पड़ा। रास्ते में भाभी खुश दिख रही थी। उसने थोड़ी इधर-उधर की बातें की। जब हम तालाब पहुँचे। ओह्ह… माई गोड… मैं क्या देख रहा हूँ? मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गईं। वहां पे 10-15 औरतें थी और उन सब में से 6-7 ने तो ऊपर ब्लाउज़ नहीं पहना था,
मेरे कदम रुक ही गये थे
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