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एक मेरी ही बात नहीं थी सब का दर्द दिसम्बर था..
बर्फ के शहर में रहने वाला हर एक शख्स दिसम्बर था..
पिछले साल की आखिर में भी हैरत में हम तीनों थे..
एक मैं थी एक तन्हाई और बरबाद दिसम्बर था..
अपनी अपनी हिम्मत थी और अपनी अपनी किस्मत थी..
हाँथ किसी के नीले थे और पीला ज़र्द दिसम्बर था..
काँटों का फूलों पर पहरा खुशबू सहमी सहमी थी..
खौफ़जदा था गुलशन सारा दहशतगर्द दिसम्बर था..
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