स्तन तो माँ के अधेड़ उम्र में हो गए है पक्की मौसमी से
सर उठाये झांकते रहते है छाती को ढकी हुई चुननी से
मम्मी तो पवित्र गंगा जल सी, और मेरी निगाहे गन्दी-गन्दी
खूब कामना होती के देखूँ , अपनी ही मम्मी को नंगी
अपनी ही मम्मी को नंगी
नहाकर थोड़ी कमर झुकाकर, मम्मी करती गीले केशो में कंघी
मुख से उच्चारण हो जाता है -- आह -- रंडी ! आह--- रंडी !
गोल - सुडौल नितम्भों की मल्लिका , मांसल टांगे लम्बी-लम्बी
खूब कामना होती के देखूँ , अपनी ही मम्मी को नंगी
अपनी ही मम्मी को नंगी
करवा चौथ पर जब पिता के मम्मी झुक के पाऊँ छूती रहती है
नहीं जानती नज़र बेटे की , उसकी झुकी गांड पर रहती है।
गहरी नाभि मेरी मम्मी की, कुदरत ने चुत गुलाबी रंग से रंगी
खूब कामना होती के देखूँ , अपनी ही मम्मी को नंगी
अपनी ही मम्मी को नंगी
कैद कर लूँ मम्मी के जिस्म को, अपनी नज़र के तालों में
फस के रह जाना चाहता हूँ, मम्मी की गोरी झांघो के बालों में।
लंड निकालूँ और फैहरा दूँ मम्मी के गोर गालों पे
जी करता है हाथ घुमा दूँ कमर की संकरी ढालों पे।
लंड तो मेरा हर दम नाचे, मम्मी की थिरकती चालों पे
दो-चार तमाचे जोर से जड़ दूँ मम्मी के चूतड़ लालों पे
मम्मी बिस्तर में हो काश ! किसी दिन, आहें ठंडी-ठंडी भरता हूँ
साड़ी पहनी मम्मी को आंखों से नंगी करता हूँ।
कामुक हो लंड निकाले, ध्यान मम्मी का धर्ता हूँ
स्मरण मम्मी का करता हूँ जब गर्ल फ्रंड पर चढ़ता हूँ
ऊपर ऊपर से मम्मी की इज़्ज़त करता बन गया हूँ केसा पाखंडी
खूब कामना होती के देखूँ , अपनी ही मम्मी को नंगी
अपनी ही मम्मी को नंगी
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