Update 16 :
आखिरकार दोनों गाव पहुच जाते है ,बस से उतरते ही चाचाजी गाव की मिट्टी की अपने माथे पर लगाते है और सामने उसका दोस्त और शालिनी के ससुर खड़े थे।
(थोड़ा गाव और घर के बारे मे जनता है जिससे आगे समझने ने आसानी हो )
गाव वैसे छोटा सा है बस एक सड़क उसके दोनों ओर कुछ कच्चे मकान और कुछ चुना और ईंट से बने ,लेकिन सब घर थोड़े दूर दूर थे और बीच की जगह मे लोग सब्जी उगाते थे,कच्चे मकान खत्म होते है फिर उससे करीब 200 300 मीटर दूर दो पक्के मकान पहला एक मंजिला जो शालिनी के ससुर का था और ठीक उससे पास एक दो मंजिला मकान जो चाचाजी का है ,
गाव के प्रवेश उत्तर दिशा से होता है जहा एक गौशाला है ,जो चाचाजी के बेटे ने बनवाया था
गाव के पूर्व मे बड़ी सड़क
गाव के दक्षिण मे चाचाजी का घर
गाव के पश्चिम मे एक तालाब
दोनों घर के आसपास 7 फिट की दीवार थी दोनों घर वैसे तो एक जैसे ही थे ,पहले एक बड़ा गेट फिर बड़ा सा आँगन ,जहा एक एक पेड़ थे और एक कुआ था,घर काफी चौड़े थे जिससे एक बड़ा हॉल और उसके एक कोने मे किचन, फिर आते पास पास मे दो रूम ,
पर चाचाजी के छत पर एक रूम ज्यादा था ,वैसे तो महमान के लिए था पर उसका उपयोग खेत का समान और घर की कुछ चीजे रखने मे होता था,चाचाजी का घर ससुर के घर से थोड़ा मॉर्डन था ,उसमे घर मे,बाथरूम मे टाइल लगी थी फिर रसोई भी शहरों के जैसा था ,काफी कुछ शहरों जैसी सुविधा थी।
चाचाजी : बिरजू! मेरे दोस्त ,कितना समय बीत गया तुमसे मिले।
बिरजू : सच कहा ! बलवंत तुम्हारी बहुत याद आयी।
दोनों एक दूसरे से गले मिलते है और दोनों की आँखों नम हो जाती है।
बिरजू : तू कैसा है ? अब कैसी तबीयत है ?
चाचाजी : मे एकदम ठीक हुँ ,तुम्हारी दुआ और तुम्हारी बहु के वज़ह से मे तुम्हारे सामने खड़ा हूं।
बिरजू : अरे हाँ! कहा गया मेरा पोता और बहू ?
शालिनी नील को लेके खड़ी थी और दोनों को एसे मिलते देख शालिनी भी खुश हो जाती है और सोचती है आज कल एसी दोस्ती बहुत कम दिखने मिलती है,
बिरजू : अरे ये तो बड़ा हो गया ,तुम कैसी हो बहु ?
शालिनी : मे अच्छी हूं और आपका पोता भी।
बिरजू : अरे मे भी भूल गया पहले आप भीतर आओ फिर सारी बातें करेंगे, पर आप यही रुको मे आता हूं।
(अभी बिरजू को हम बाबुजी कहेगे, क्युकी शालिनी भी बाबूजी ही कहेगी)
बाबूजी भीतर जाकर आरती की थाली ले आते है और दोनों को दरवाजे पर खड़ा करके उनकी आरती उतरकर तीनों की नज़र भी उतारते है ,ताकि उसे आगे कोई मुश्किलों का सामना ना करना पड़े,गाव मे भी एसी मान्यता थी ,तीनों घर मे प्रवेश करते है।
बाबूजी : तुम्हारी सास होती तो वो ये सब करती पर अब तो मे ही बचा हूं तो अब मुझे ही सब करना पड़ता है।
शालिनी : कोई बात नहीं ,आप ने घर को काफी अच्छे से रखा है ,अब मे आ गई हूं तो अब आपको घर की चिंता छोड़ देनी है अब मे सब सम्भाल लुंगी।
बाबूजी : उसमे कोई शक नहीं है , और ये पल्लू से सिर ढकने की जरूरत नहीं है ,आप समान्य तरीके से रहो ,अब ये आपका ही घर है , पर मे पूछना चाहता हूं कि मेरा पोता मुझे दुबला पतला क्यु लग रहा है?
शालिनी : आपकी बात सही है पर चिंता की बात नहीं है उसका इलाज चल रहा है और अभी उसकी तबीयत काफी सुधर गई है।
बाबूजी : पर अब तो आप लोग यहा आ गए हों तो उसके इलाज का क्या होगा ?
शालिनी : वो इलाज उसका घर से ही हो रहा था तो उसकी चिंता नहीं है ,आप सब बैठे मे चाय बनाकर आती हूं।
बाबूजी : रुको तुम्हारा आज पहला दिन है तुम्हें नहीं पता होगा कि सब चीज़ कहा पर होगी तो तुम रुको मे बनाकर लता हूं।
बाबुजी सब के लिए चाय बनाकर लाते है ,सब चाय पीते है और ड्राईवर जाने की इजाजत लेता है और वो अपने घर अपने गांव चला जाता है।
शालिनी : आज रसोई मे आपकी मदद करेगी ताकि मुझे पता चल जाए कि सब चीजे कहा और कैसे रखी है ,फिर कल से आपको रसोई मे प्रवेश नहीं मिलेगा।
बाबुजी : वाह ! एक ही दिन मे मेरी रसोई से छुट्टी, फिर मे क्या करूंगा ?
शालिनी : आप अपने पोते के साथ खेलना।
शहर मे चाचाजी संभालते थे।
बाबुजी : ठीक है ,ठीक है ! हमारा कुलदीपक अब मेरे साथ खेलेगा।
चाचाजी : एसे कैसे अकेले ? मेरा भी उससे एक रिश्ता है ,इतने समय मेरे साथ जो रहा है।
शालिनी : (मन मे ..) कौनसा रिश्ता बना था वो तो मुझे मालूम है।
बाबुजी और चाचाजी दोनों नील के साथ खेलते है ,खासकर बाबुजी नील से ज्यादा प्यार दुलार करते हैं क्युकी सायद इतने दिन अपने पोते से दूर रहे थे और उन्हें बहुत दिनों बाद कोई मिला था जिसके साथ वो खुश होकर समय बिताना चाहते थे ,और हो भी क्यु ना वो कहते है ना "रकम से ज्यादा ब्याज ज्यादा अच्छा लगता है "
शाम तक शालिनी ने अपने समान को एक कमरे में रख दिया और चाचाजी का समान वो अपने ससुर के कमरे मे रख देती है,फिर वो अपने ससुर की मदद से खाना बनाने लगती है

उसे ज्यादा मुश्किल नहीं हूं सब चीजे समझने मे ,वो अच्छे से याद रख लेती है और कुछ चीजे अपने हिसाब से रखती है ताकि उसे आसान हो ,उसके ससुर भी कुछ नहीं कहते क्युकी अब शालिनी ने रसोईघर सम्भालने का जिम्मा उठाया है ,वो तीनों खाना खाते है बाद मे वो कमरे मे आके नील को स्तनपान करवाती है ,शहर मे तो चाचाजी के सामने दिक्कत नहीं थी पर अपने ससुर के सामने उसे शर्म और मर्यादा बीच मे आती है ,उसे कमरे मे जाते देख चाचाजी को याद आता है कि कैसे शालिनी उसके सामने नील को स्तनपान करवाती थी।
शालिनी के स्तनपान करवाने के बाद वो घर के काम निपटाकर चाचाजी और बाबुजी के पास आती है।
शालिनी : यहां एक बात अच्छी है दिन मे जितनी गर्मी होती है ,शाम होते ठंडा भी जल्दी हो जाता है ,
बाबुजी : हाँ ! एक तो था रेगिस्तान पास है इसलिए और यहा शहर की तरह प्रदूषण नहीं है
शालिनी : ये बात सही कहीं ,यहा हवा साफ है।
चाचाजी : क्यु ना हम छत्त पर जाके बैठे ?
बाबुजी : ठीक है चलो ,मे खटिया लेके आता हूं
चाचाजी : मे भी एक खटिया ले लेता हूं ,काफी दिन हो गए खटिया पर लेटे हुए शाम का मनोहर वातावरण अनुभव किए।
बाबुजी : याद है हम कैसे आकाश मे तारो के समुह को देखते थे।
चाचाजी : हाँ सही कहा ,चलो फिर से उन दिनों की याद ताजा करते है।
तीनों छत्त पर आते है चाचाजी एक खटिया पर लेट जाते है और दूसरी खटिया पर बाबुजी और शालिनी बैठे थे ,चाचाजी और बाबुजी अपनी पुरानी यादे ताजा कर रहे थे और शालिनी उन दोनों की बातें सुन रही थी तभी नील अचानक से रोने लगता है,और शालिनी उसे उठाकर छत्त पर टहलने लगती है पर वो शांत नहीं हो रहा था।
चाचाजी : लगता है उनको फिर से गैस हो गई लगती है ,
बाबुजी : एसा है तो लाओ इधर दो मुझे मे मुन्ने को शांत करता हूं
शालिनी नील को बाबुजी को देकर उसके पास बैठ जाती है,और चाचाजी नील को उल्टा कर उसे पीठ पर थपकियाँ देते हुए राहत दिला रहे थे फिर वो अपने अनुभव से नील के पेट मे से गैस निकल देते है जिससे नील शांत हो जाता है।
शालिनी : वाह ! आपने भी चाचाजी की तरह नील को शांत कर दिया,जब शहर मे नील रोता तब चाचाजी ही उसे शांत करते थे।
बाबुजी : लगता है बलवंत ने बढ़िया ख्याल रखा है आपका।
शालिनी : हाँ सही कहा ,उसकी वज़ह से ही नील सुरक्षित है सायद ये कहो जिवित है।
,अगर उस दिन चाचाजी ने बहादुरी से उस बदमाश का सामना ना किया होता तो ....
चाचाजी : शुभ शुभ बोलो ! मेने जो किया परिवार को बचाने के लिए किया ,और मेरे होते हुए आप सब को कुछ होता तो ये बिरजू मुझे नहीं छोड़ता, हाँ हाँ हाँ ...
बाबुजी : नहीं बलवंत ! तुमने मेरे बहु और पोते की रक्षा करके बहुत बड़ा एहसान किया है
चाचाजी : बस क्या ! पराया कर दिया ना, इसमे एहसान क्या ? तुम्हारी बहु और पोते मेरे भी कुछ लगते है , हकीकत मे देखो तो बहु ने मेरी जान बचाई है।
बाबुजी : क्या ?कैसे?
चाचाजी : जब मेरा परिवार मुझसे हमेसा के लिए दूर हुआ तब बहु ने ही मुझे सम्भाला और मुझे प्यार और अपनेपन से अपनाया और मुझे परिवार की कमी महसूस ही नहीं होने दी ,उसकी वज़ह से ही मे आज आप सब के सामने शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हूं वर्ना मे कब का पागलपन का शिकार हो गया होता।
बाबुजी : तुम सच कह रहे हो ?
चाचाजी : हाँ 100 प्रतिशत?
बाबुजी : सच मे एक घर और परिवार सम्भाल ने के लिए एक स्त्री का होना बहुत जरूरी है ,जब नीरव की माँ गुजर गई थी तब भाभी (चाचाजी की पत्नी) ने ख्याल रखा था तभी तो मे और नीरव अच्छी जिंदगी जी पाए।
चाचाजी : एक बात तो सही है ,दुनिया गोल है और आप जैसा कर्म करते है कुदरत आपको वैसा ही फल देती है ,मेरी पत्नी ने आपके परिवार की मदद की थी ठीक वैसे ही बहु ने मेरी मदद की है।
बाबुजी : अब आप यहा आ गए हों तो अब सब अच्छा होगा
चाचाजी : हाँ ,अब कोई परेसानी नहीं आएगी।
बाबुजी : बलवंत अब तुम यहा आ गए हों तो क्यु ना हम एक भोज का आयोजन करे ,ताकि तुम्हारे परिवार की आत्मा को शान्ति मिले और गाव वालों का तुम्हारे परिवार को श्रद्धांजलि देना बाकी है ,तुम्हें तो पता है ना सब तुमसे और तुम्हारे परिवार का बहुत सम्मान करते थे।
चाचाजी : ठीक है ,कल सब को आमंत्रित कर दे फिर परसों भोज का आयोजन कर देंगे।
बाबुजी : एक काम करते है कल श्रद्धांजलि रखते है और तभी सब को बता देंगे।
बाते करते करते 2 घंटा बित जाता है तभी नीरव का कॉल आता है और सब से बात करते है और उसे तसल्ली हो जाती है कि सब सुरक्षित घर पहुच गए ,फिर सब सोने की तैयारी करते है।
शालिनी : क्यु ना हम सब यही सो जाए ,नीचे से गद्दे ले आते है ,बचपन मे खुले आकाश के नीचे सोये थे,इसी बहाने कुदरती वातावरण मे सोने का मौका मिलेगा।
बाबुजी : ठीक है पर रात को ठंड लगेगी तो ओढ़ने के लिए भी ले लेंगे
नील को खटिया पर रख के तीनों नीचे आते है और बाबुजी और चाचाजी दोनों गद्दे और शालिनी ओढ़ने के लिए और तकिये ले लेती है।
शालिनी : हम माँ बेटा दोनों खटिया पर नहीं सो सकते इस लिए हम फर्श पर सो जाएंगे।
चाचाजी : मे भी फर्श पर ही सो जाऊँगा
बाबुजी एक काम करो तीनों के गद्दे फर्श पर बिछा दो।
चाचाजी और बाबुजी का गद्दा पास पास और शालिनी का गद्दा उससे थोड़ा दूर बिछा देते है ,शालिनी के स्तनों मे दूध उतर आया था तो वो दोनों की ओर पीठ कर के लेटकर ही स्तनपान करवाने लगती है पर नील ज्यादा नहीं पिता और स्तन से आधा ही दूध पीता है,शालिनी ने एक हल्का गाउन पहना था जिसमें उसने ब्रा नहीं पहनी थी तो वो स्तन को ढककर सो जाती है ,पर आधी रात बीतने पर उसके स्तनों मे दर्द शुरू होने लगता है ,वो देखती है दोनों आदमी गहरी नींद मे सो रहे थे ,शालिनी को चाचाजी को देखकर बस वहीं उपाय सूझता है जो शहर मे किया था।
शालिनी : ( चाचाजी को झकझोरते हुए..) सुनिए, उठिए !

चाचाजी : क्या हुआ ? कुछ चाइये?
शालिनी : वो दर्द हो रहा है
चाचाजी : पर इस समय कैसे?बिरजू पास मे सोया है अगर उसने ये देख लिया तो बवाल हो जाएगा।
शालिनी : हाँ मे जानती हूं ,पर सायद वो अभी गहरी नींद मे है तो आप फटाफट से पी लीजिए ,मुझे बहुत दर्द हो रहा है ,प्लीज।
चाचाजी को भी अब इन सब से ज्यादा फर्क़ नहीं पड़ रहा था क्युकी पिछले दो दिन में कभी रोमांचकारी परिस्थितियों मे स्तनपान किया था,पर उस समय कोई पहचान का कोई आसपास नहीं था पर इस समय उसके दोस्त और जिस स्त्री के स्तन चूसने थे उसके ससुर बग़ल मे ही सो रहे थे ,अगर वो जग गए तो बड़ी मुश्किल हो सकती है ,पर शालिनी के दर्द और अपनी ईच्छा के आगे चाचाजी हार जाते है और स्तनपान करने को राजी हो जाते है ,क्युकी अब तो जब भी स्तनपान का मोका मिलेगा तो वो उसे नहीं गंवाना चाहते थे ,चाहे कोई भी समय हो ,या कोई भी परिस्थिति, या कोई भी कठिनाई और कोई भी खतरा हो।
चाचाजी जानते थे कि उसे जब भी मौका मिले तब उसे उसका फायदा उठाना है ,अब उनको भी स्तनपान मे आनंद और सुकून मिलता था।
शालिनी अपने गाउन के एक बाजू के हिस्से को कंधे से सरका कर अपने स्तन को आजाद करती है

जैसे ही कुदरत ठंडी हवा उसके स्तन को छु कर बहती है उसके निप्पल तन कर एक अनार के दाने जैसे हो जाता है,चाचाजी को चांदनी के प्रकाश में इस स्तन रूपी चांद ज्यादा सुंदर लग रहा था

,चाचाजी बिना देरी के निप्पल को मुँह मे लेकर चूसने लगते है जिससे शालिनी के मुँह से एक सुकून की आह निकलती है ,शालिनी की नजर कभी बंध हो जाती तो कभी अपने ससुर की ओर देखती रहती ,कहीं वो जग ना जाए ,एक डर के माहौल मे दोनो थे ,इसलिए चाचाजी भी थोड़ा जल्दी से स्तनपान कर लेते है ,स्तनपान पूरा होते ही शालिनी चाचाजी के माथे पर चुम्मा देकर सो जाती है।
चाचाजी : (मन मे ...) यार ..यकीन नहीं होता कि गाव आके भी स्तनपान करने को इतनी जल्दी मिलेगा ,लगता है भाग्य हमारे साथ है ,अच्छा हो एसे मौके हमे मिलते रहे ताकि स्तनपान मे कोई रुकावट ना आए।
चाचाजी भी सो जाते है ,फिर सुबह को शालिनी की नींद पक्षियों के कलरव से खुलती है वो देखती है बाबुजी और चाचाजी अपने बिस्तर पर नहीं थे ,उसे जागने मे देर हुई ये सोच के वो मायूस होती है ,वो नील को लेके नीचे आती है और देखती है बाबुजी और चाचाजी अपनी देसी कसरत कर रहे थे।
शालिनी : अरे वाह! बाबूजी आप भी कसरत करते है ?
बाबुजी : हाँ ये तो मेरी दिनचर्या का हिस्सा है
शालिनी : ये तो अच्छी बात है ,मे भी योग करती हूं वो भी हररोज,मुझे लगा था कि गाव मे योग कैसे करूंगी ?पर आपको देखकर मुझे खुशी हुई ,मे भी आती हूं योग करने।
बाबुजी : ठीक है पर हमारा तो लगभग हो गया है ,पर तुम योग करो ,कोई बात नहीं।
शालिनी अपने योग ड्रेस मे आती है ,चाचाजी का तो ये रोज का था इस लिए उसे ज्यादा कुछ फर्क़ नहीं पड़ता पर बाबुजी के लिए ये पहली बार था कि कोई स्त्री एकदम स्किन टाइट कपड़े पे योग करने आयी है जिसमें उसके शरीर के सारे कटाव साफ़ दिख रहे थे ,उसके स्तन और नितंबों का उभार और सपाट पेट, चोटी बंधे हुए बाल,ये देख के बाबुजी की आंखे खुली की खुली रह जाती है ,पर उसको ख्याल आता है कि वो तो अपने बेटे की ही पत्नी है और अपने घर की ही बहु ,ऊपर से एक बच्चे की मां भी।

शालिनी के योग शुरू करते ही बाबुजी दातुन करने लगते है ,पर चाचाजी थोड़ी देर योग करते है ,फिर बारी बारी सब नहाने जाते है ,फिर शालिनी सब के लिए नास्ता बनाती है ,चाचाजी और बाबुजी को नास्ता परोसने के बाद शालिनी नील को स्तनपान करवाने कमरे मे जाती है ,बाद मे वो भी नास्ता करती है ,फिर वो घर के काम करने लगती है।

बाबुजी : चलो मे खेत होके आता हूं।
चाचाजी : नहीं आज मे जाऊँगा।
बाबुजी : तुम कुछ दिन आराम करो बाद मे आ जाना।
चाचाजी : अभी मे ठीक हुँ ,एकदम तंदुरुस्त
बाबुजी : अभी तुम्हें आए 1 दिन हुआ है तो आराम करो ,और आज के श्रद्धांजलि की तैयारी करो
चाचाजी : ठीक है पर मुझे जाना था यार
बाबुजी : मे कुछ नहीं जानता ,तू आज नहीं आ रहा है बस,और अगर तू आया तो तेरी टांगे तोड़ दूँगा।
चाचाजी : ठीक है ,ठीक है ! तुम जीते ,आज नहीं आ रहा ,पर कुछ दिन बाद जरूर आऊंगा ,और तुम आराम करोगे।
बाबुजी : मे दोपहर तक आ जाऊँगा,
बाबुजी खेत चले जाते है ,और बाबुजी आँगन मे खटिया पर बैठ जाते है।
शालिनी : बाबुजी चले गए?
चाचाजी : हाँ ,मुझे भी जाना था पर उसने मना कर दिया
शालिनी : ठीक है ना ये ,अभी आप थोड़े दिन आराम करो और इसी बहाने मुझे थोड़ी मदद कर देना ,क्युकी मुझे ज्यादा कुछ नहीं पता है कि गाव मे श्रद्धांजलि मे क्या कैसे करते है?
चाचाजी : कुछ ज्यादा नहीं होगा बस लोग आयेंगे और फोटो पर फुल चढ़ा के परिजन से सांत्वना जताते है ,फिर चले जाते है
शालिनी : ठीक है ,पर ये कहा करेंगे
चाचाजी : मेरे घर पर करते है ,वहां आँगन थोड़ा बड़ा है पर सफाई करनी होगी
शालिनी : फिर देर किस बात की चलिए अभी सफाई कर देते है।
नील को लेके शालिनी और चाचाजी अपने घर आते है , जो बाबुजी के घर के ठीक पास मे ही है,अपने घर के दरवाजा खोलते समय चाचाजी की आंखे नम और हाथ कांपने लगते है ,उसके हाथ कांपते देख शालिनी उसके हाथ पर अपना हाथ रख देती है।
शालिनी : हम आपके साथ है ,जो हुआ उसे कोई बदल नहीं सकता पर इस दुख का सामना करके आपके साथ जो है उसकी खुशी के लिए आपको खुश होना होगा और जिवन मे आगे बढ़ना होगा ,हम सब के लिए आपको सामन्य जीवन मे आना पड़ेगा।
चाचाजी : मे समझता हूं ,और मे जीने भी लगा था पर घर को देखकर मेरी पुरानी यादें ताजा हो गई ,मेरी पत्नी ,और बच्चों के साथ बिताए वो अनमोल पल सब मानो मेरी आँखों के सामने से गूजर रहे हो ,
शालिनी : आपकी बात सही है ,हम एसे तो सब भूल नहीं सकते इतने सालों का साथ सब एक झटके में थोड़ी ना भूल सकते है ,पर हम आगे बढ़ के अपनी नयी यादे बनाएंगे ,जो हमे खुसी दे और जिसे याद करके जीवन मे सुकून मिले ,मे भी नीरव जब गया था तब अकेली अकेली महसूस करती थी पर बाद मे आपके साथ मेरी नयी यादे बन गई जो मेरी नीरव की गैरमौजूदगी मे सहारा बनीं और मुझे सुख और सुकून दिया ठीक वैसे ही अब मे आपका साथ दूंगी नयी यादे बनाने मे।
चाचाजी : (आंसू पोछते हुए ..) ठीक है ,आप साथ है तो मुझे कोई परेसानी नहीं है ,
दोनों अंदर आते है और आँगन मे एक झुला है, एक कुआ है और एक नीम का पेड़ है आँगन से 4 स्टेप ऊपर एक हॉल और फिर पास पास दो कमरे थे और छत पर एक कमरा था पर वो स्टोर रूम जैसा था जिसमें खेत का समान और कुछ घर की चीजें पडी थी ,चाचाजी अपने घर के सारे दरवाजे खोल देते है और शालिनी के साथ सारे घर मे घूमते है ,पर जब आखिरी के कमरे मे आते है तब चाचाजी वहा रखे बेड के किनारे आके नीचे बैठ जाते है और रोने लगते है ,शालिनी भी वहा रखे फोटो से पहचान जाती है कि ये चाचाजी का कमरा था बेड के ऊपर दीवार पर चाचाजी और उसकी पत्नी का एक बड़ा फोटो था ,चाचाजी को रोता देख के शालिनी नील को बेड पर रख के चाचाजी को सहारा देने उसके पास आके बैठ जाती है और उसके कंधे पर अपना हाथ रख देती है।
शालिनी : मुझे पता है जब जीवनसाथी साथ नहीं होता तब क्या महसूस होता है ,कृपया आप रोये नहीं ,शांत हो जाए,हम है ना आप के साथ।
चाचाजी बस रोये जाँ रहे थे तब शालिनी को भी लगता है कि उसे चाचाजी को रोने देना चाइये ताकि उसके दिल मे इतने समय से दबे दर्द को बाहर निकाल सके वैसे तो शालिनी को भी रोने का मन कर रहा था पर वो अपने मन को मजबूत करके चाचाजी को सम्भालने का तय करती है,इस लिए शालिनी चाचाजी को सहारा और अपनापन महसूस कराने के लिए उसके सिर को अपने सीने पर टीका देती है ,चाचाजी को पता भी नहीं था कि उसका सिर शालिनी के स्तनों के ऊपर है वो बस रो रहे थे तभी उसका आंसू शालिनी के स्तनों के बीच बहता हुआ चला जाता है जो शालिनी को भी महसूस हुआ।
कुछ देर बाद जब शालिनी को लगा कि चाचाजी का रोना कुछ कम हुआ है तो वो उसके चेहरे को अपने दोनों हथेलियों के बीच लेकर उससे सांत्वना देती है।
शालिनी : बस कीजिए ,वर्ना मे रोने लगेगी ,आप सब अच्छे पल को याद करे ,आप को रोता देख उनकी आत्मा को दुख होगा और मुझे भी होगा ,चलो फिर शाम तक सब तैयारी भी करनी है
चाचाजी : (आंसू पोछते हुए ...)चलो मे आपको दुखी नहीं कर सकता अब परिवार के नाम पर आप ही हो।
शालिनी : ये हुई ना बात ,शाबाश ,चलो सफाई करते है पर एक दिक्कत है
चाचाजी : क्या ?
शालिनी : पहली दिक्कत ये कि आप हंसे नहीं अभी ,और दूसरी प्यास लगी है
चाचाजी जाते है और बाबुजी के घर से पानी ले आते है और शालिनी के सामने मुस्करा देते है जिससे शालिनी भी खुश होती है
शालिनी : अब काम की बात ये साड़ी मे थोड़ा सफाई करने मे दिक्कत है क्युकी एक तो गर्मी और दूसरा चढ़ने मे दिक्कत होती है मेरा योग वाले कपड़े पहन लू पर उसमे भी चिपचिपा लगेगा
चाचाजी : पंखा चालू कर देते है
शालिनी : नहीं नहीं वर्ना सब धूल धूल हो जाएगा
चाचाजी : रुको मे देखता हू कोई ड्रेस जैसा पड़ा हो मेरी बेटी का
चाचाजी अलमारी मे ढूंढने जाते है पर ज्यादा कपड़े नहीं थे पर एक शॉर्ट्स और एक शर्ट था ,शादी के पहले शोख से लिया था पर शादी के बाद कभी पहना ही नहीं पर उसे देने मे चाचाजी को झिझक हो रही थी।
शालिनी : क्या हुआ कुछ मिला ?
चाचाजी : है तो सही पर आपको ये चलेगा?
शालिनी : अरे चलेगा मेने भी शॉर्ट्स पहने कितना समय हो गया ,इसमे गर्मी कम होगी और चलने और चढ़ने मे दिक्कत नहीं होगी
शालिनी बाथरूम जाके शॉर्ट्स और शर्ट पहन के आती है,

शर्ट के नीचे के बटन टूट गए थे इस लिए वो गांठ लगा देती है और गर्मी के वज़ह से ऊपर का बटन खुल्ले रखती है बीच मे दो बटन लगा देती है,और जो शॉर्ट्स जो पहना था वो उसकी आधी जांघों तक ही था ,जब शालिनी पहनकर बाहर आती है तब चाचाजी बस देखते रहते है ,आज पहली बार उसने शालिनी को वेस्टन कपड़े मे देखा था शालिनी इसमे भी काफी सुंदर लग रही मानो कोई गोरी मेम या NRI हो ,फिर वो पहले टेबल पर चढ़कर जाली साफ़ करती है तब उसको हो रही गर्मी से उसको पसीना आता है जिससे शालिनी और ज्यादा कामुक और सुंदर लग रही थी।

दोनों मिलके मोटा मोटी सफाई करते है क्युकी पूरी सफाई के लिए समय नहीं था , जब आंगन धोने की बारी आती है तब शालिनी वापिस से साड़ी पहन लेती है क्युकी उसे डर था कोई देख लेगा , शालिनी आँगन पानी से धों देती है क्युकी वो मिट्टी से ज्यादा बिगड़ गया था

सब सफाई पूरी होने तक 11 बज चुके थे और बाबुजी को आने के अभी समय था।
शालिनी : आज तो काफी कसरत हो गई ,ये अच्छा है मेहनत की मेहनत और घर का काम भी ,इस लिए गाव मे लोग कम बीमार पड़ते होगे ,मे क्या कहती हूँ कि अभी बाबुजी को आने मे समय है तो क्या आप स्तनपान करेंगे?
चाचाजी : ठीक है ,मेने सोचा नहीं था कि हमे इस तरह से मौके मिलेंगे।
शालिनी : लगता है किस्मत हमारे साथ है क्युकी जिसका दिल साफ़ हो उसकी मदद किसी ना किसी तरह हो ही जाती है।
चाचाजी : चलो कमरे मे जाते है।
शालिनी : हाँ चलिए ,पर मे बेडशीट बदल लेती हूं ,कितने समय से ये बिछायी होगी।
शालिनी बेडशीट बदलने लगती है ,जब वो बदलने के लिए झुकती है तब उसके ब्लाउज मे से उसके स्तनों के बीच की जगह को चाचाजी एकटक देख रहे थे जिसे शालिनी भी नोटिस करती है और उसके सामने देख मुस्कराती है।
शालिनी : क्या देख रहे है ?
चाचाजी : खूबसूरती।
शालिनी : ना जाने कितनी बार देखी है आपने खूबसूरती
चाचाजी : हज़ारों बार देखने के बाद भी इससे दिल नहीं भरा।
शालिनी : ओह हो! इतना पसंद है आपको
चाचाजी : बेहद,
शालिनी : ठीक है तो ये लीजिए ठीक से देखिए, मुझे दर्द से राहत दिलाने के लिए मे इतना तो आपके लिए कर ही सकती है।
शालिनी धीरे से अपने ब्लाउज को अपने शरीर से अलग करती है और अपने बेहद ही खूबसूरत स्तनों को चाचाजी के सामने फिर एक बाद उजागर करती है

और साड़ी को कमर पर लपेट कर बेड पर बैठ जाती है और चाचाजी को बुलाती है

,चाचाजी बेड पर आके उसके पास बैठ जाते है तभी उसकी नजर बेड के ऊपर टंगी फोटो पर जाति है और वो शालिनी से थोड़ा दूर खिसक जाते है।
शालिनी : क्या हुआ ? आप दूर क्यु जाने लगे?
चाचाजी : (नीचे नजर करके..)कहीं मे अपनी पत्नी से बेवफाई तो नहीं कर रहा ?

शालिनी : किसने कहा ? आपको भी पता है कि हमने ये सब क्यु और किस परिस्थिति में शुरू किया था ,और हमारी नियत भी साफ है ,अगर एसा है तो मे भी नीरव से बेवफाई कर रही हूं, पर एसा नहीं है आप एक माँ को उसके दर्द से राहत दिला रहे हो ,वो भी उसकी मर्जी से ,आप कुछ गलत नहीं कर रहे और एक स्त्री दूसरी स्त्री के दर्द को समझेगी, हमारे पास दूसरा रास्ता नहीं है ,जैसे आपकी गैरमौजूदगी मे मेरे ससुर को स्तनपान करवाने की सलाह आपकी माँ ने ही आपकी पत्नी को दी थी।
चाचाजी : हाँ ये बात सही है।
शालिनी : बस तो फिर ,अगर चाचीजी जिंदा होती और मे उससे मदद को कहती तो वो भी आपको नहीं रोकती।
चाचाजी : ठीक है ,मे करूंगा स्तनपान।
शालिनी : फिर जल्दी करो ,बाबुजी आने से पहले स्तनपान कर लो।
शालिनी अपनी बांहें फैलाकर चाचाजी को अपने पास लेती है और उसके सिर को अपने स्तन पर रख देती है और चाचाजी भी मुँह खोलकर गुलाबी निप्पल को अपने मुँह मे ले लेते है
और जोर से चुस्की लेते है और दूध की धार गले मे उतर जाती है जिससे शालिनी भी राहत मिलने की वजह से आंखे बंध कर के सिसकारी भर्ती है ,चाचाजी भी भूखे बच्चे की तरह स्तन को चूस रहे थे ,शालिनी को हल्का दर्द हो रहा था पर जो राहत उसको मिल रही थी उसके सामने दर्द की पीड़ा नजरंदाज करती है और चाचाजी को अपने स्तन दबाकर उसको ज्यादा पीने को प्रोत्साहन दे रही थी।

करीब आधा घंटे तक स्तन चूसने के बाद चाचाजी बैठ जाते है ,शालिनी के चेहरे पर एक सुकून था ,वो अपने ब्लाउज के बटन बंध कर के बेड पर बैठी थी।

चाचाजी : क्या हम थोड़ी देर साथ मे सो सकते है?
शालिनी : इसमे पूछना क्या,आओ इधर
चाचाजी शालिनी के स्तन पर सिर टिका के लेट जाते है
चाचाजी : ये ब्लाउज खोल दो ना और मेरी ओर पीठ करके सो जाओ
शालिनी ब्लाउज खोल के चाचाजी की ओर पीठ करके लेट जाती है ,

चाचाजी पिछे से चिपक कर अपने पैर को शालिनी के जांघों पर रख देते है ,दोनों थोड़ी देर एसे ही लेते रहते है चाचाजी अपने हाथ को कभी स्तन पर रखते और कभी शालिनी के पेट पर ,शालीन भी कभी कभी उसके गालों को सहलाती

तभी चाचाजी के फोन की घंटी बजती है ,बाबुजी ने फोन किया था ,बाबुजी कुछ काम से शहर गए है और आने मे देर होगी तो आप लोग खाना खा लेना और वो श्रद्धांजलि से पहले आ जाएंगे,एसा कहकर फोन काट देते है।
शालिनी : किसका फोन था?
चाचाजी : बिरजू का ,वो कुछ काम से शहर गया है इसलिए उसको देर होगी तो हम लोग खाने मे उसका इंतजार ना करे।
शालिनी : ठीक है ,चलो हम भी चलते है और खाना भी बनाना है।
शालिनी अपने ब्लाउज को पहन के साड़ी ठीक करके चलने लगती है

और चाचाजी नील को लेके आते है ,शालिनी जब खाना बना लेती है फिर खाना खाने बैठते हैं।
चाचाजी : क्या हम शहर की तरह खा सकते है?
शालिनी समज जाती है और मुस्कराते हुए अपने ब्लाउज को खोलने लगती है जिससे चाचाजी खुश हो जाते है,

फिर दोनों खाना खाते हैं और नील को गोदी मे स्तनपान करवाती है ,तभी शालिनी को अचानक से याद आता है।
शालिनी : अरे वो मे मेरी दवाई शहर भूल गई ,वो फ्रिज पर रखी थी इस लिए याद ही नहीं आया,तो क्या बाबुजी से मंगवा ले ?
चाचाजी : दवाई का नाम या फोटो है ?
शालिनी : नहीं वो तो नहीं है ,और वो डॉक्टर की फाइल भी घर पर है।
चाचाजी : (कुछ सोचकर..)दवाई तो नहीं है पर वो चूर्ण होगा जो मेरी माँ ने मेरी पत्नी को दिया था ,वो पूरी तरीके से आयुर्वेदिक है ,इस लिए वो नुकसानदायक भी नहीं होगा ,
शालिनी : ठीक है अभी खाना खाने के बाद ले लुंगी ,ताकि नील की तबीयत मे कोई जोखिम ना हो।
खाना खाने के बाद शालिनी बिना ब्लाउज के ही सब काम करती है और चाचाजी नील को सुला देते है ,थोड़ी देर मे शालिनी भी सब काम निपटाकर आती है।
शालिनी : सो गया ?
चाचाजी :हा बस अभी सोया है
शालिनी : चलो इसे कमरे मे ले जाकर ठीक से सुला देते है।
बाबुजी गाव मे से किसी का पालना ले आए थे जिसमें नील को सुला देते है और शालिनी और चाचाजी बेड पर आके लेट जाते है।
चाचाजी : मुझे नहीं लगा था कि गाव आकर स्तनपान मे इतनी आसानी होगी।
शालिनी : आप वो चूर्ण ले आइए ,फिर आराम से सो जाना।
चाचाजी अपने घर जाके वो चूर्ण ले आते है और शालिनी उसे पी लेती है फिर दोनों आके बेड पर लेट जाते है ,

चाचाजी रोज के जैसे अपना पैर शालिनी के ऊपर रख के लेटे थे।
चाचाजी : मन करता है कि तुम्हारे स्तनों के साथ खेले और उसे प्यार करू।
शालिनी : मेने कब मना किया ,आप कर सकते है।
चाचाजी : मेरा जब भी मन करेगा तब इस स्तन को चूसने दोगे?
शालिनी : हाँ बाबा हाँ! पर अकेले हो तब
चाचाजी : हाँ ,मे भी तब कि बात कर रहा हूं।
शालिनी : तो फिर आपको जो करना है करो, ये स्तन और उसका दुध आपका और नील का ही है।
चाचाजी स्तनों को अपने हाथों से गेंद की तरह खेलने लगते है ,कभी नीचे से ऊपर धक्का देते कभी दाएं बाएं करते ,कभी दोनों को आपस में टकराते, शालिनी ये देख के हसने लगती है
चाचाजी : क्या हुआ ?
शालिनी : कुछ नहीं, आप जो कर रहे है वो करो।
चाचाजी स्तन को मुँह मे भर लेते है और दूसरे स्तन को सहलाने लगते है ,कभी निप्पल पर उंगली घुमाते, कभी तेजी से दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसने लगते ,जिससे शालिनी को दर्द होता है ,पर चाचाजी की खुशी के लिए वो सहन कर लेती है।

शालिनी : थोड़ा धीरे ...मे कहीं नहीं भागी जा रही ,आप तो मानो किसी छोटे बच्चे को गेंद मिल गई हो और वो उसे छोड़ना नहीं चाहता हो वैसे कर रहे है।
चाचाजी : आपने कहा ना ये मेरे लिए है ,
चाचाजी स्तनों से अच्छे से खेलते हैं, फिर निप्पल को मुँह मे लेके सो जाते है ,शालिनी भी सो जाती है ,करीब 2 बजे शालिनी के स्तन दूध से भर जाते है और वो चाचाजी को स्तनपान करवा देती है ,फिर सो जाते है और 3 बजे घंटी बजती है ,शालिनी तुरत जग जाती है और अपने ब्लाउज को ढूंढ कर पहनने लगती है ,और चाचाजी को जगती है ,

शालिनी : उठिए ,लगता है बाबुजी आ गए ,आप दरवाजा खोले, मे तब तक साड़ी पहन लेती हूं।
चाचाजी धीरे से जाते है ताकि शालिनी को ज्यादा समय मिले तैयार होने मे ,चाचाजी दरवाजा खोलते है और बाबुजी के साथ घर मे आते है
चाचाजी : कहा गए थे ?
बाबुजी : वो क्या हुआ जब मे खेत पहुचा तो पता चला पानी की मोटर खराब हो गई है और खेत मे पानी तो चाहिए इसलिए तुरत शहर निकल गया।
तभी शालिनी पानी का गिलास बाबुजी को देती है और बाबुजी उसे शहर से फुल लाए थे वो देते है ,फिर सब तैयारी मे लग जाते है शालिनी एक सफेद साड़ी जो चाचीजी की थी वो पहन लेती है ,ब्लाउज जो थोड़ा खुला था उसे शालिनी सिलाई-कटाई करके अपने नाप के हिसाब से कर देती है।

करीब शाम के 4 : 30 बजे तक लोग आना शुरू हो जाते है और धीरे धीरे जो भी बड़े बुजुर्ग थे वो सब आ जाते है और सब चाचाजी को सांत्वना देते है और चाचाजी के परिवार को श्रद्धांजलि देते है ,शालिनी देखती है गर्मी की वज़ह से सब ने शरीर के ऊपरी भाग मे कम कपड़े पहने है ,ज्यादातर पुरुष एक कपड़ा डाल के आये थे और महिलाओं मे किसी ने बेकलेस ,किसी ने खुले गले का ,एसा ब्लाउज पहना था

,चाचाजी ने उसे शहर मे बता दिया था इस लिए ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ
बार बार परिवार को याद दिलाने से चाचाजी के आँखों मे आंसू आ जाते है ,जिसे देख शालिनी पानी का गिलास लाके देती है ,गाव वाले ये देख के शालिनी की तारीफ करते है ,तभी नील के रोने की आवाज आती है ,और शालिनी नील को लेके आती है पर वो शांत नहीं होता तो बाबुजी उसे संभालते है और शांत करा देते है,तभी एक बुजुर्ग दादी बाबुजी से बात करती है।
दादी : ये तुम्हारा पोता है ?
बाबुजी : हा अम्मा ! ये बहु है और बेटा विदेश गया है इसलिए बहु बच्चे को लेके गाव आयी है।
दादी : अच्छा हुआ ,शहर मे अकेले नहीं रहना चाहिए ,वैसे कितने महीने का हुआ है लल्ला?
शालिनी : जी 6 महीने से ज्यादा
दादी : फिर इसका अन्न प्रासन करना पड़ेगा।
शालिनी : वो क्या होता है ?
दादी : जब बच्चा 6 महीने का होता है तब उसको अन्न पीस के खिलाते है।
शालिनी : वो तो मे खिला रही हूँ। ,पर उसकी तबीयत के लिए डॉक्टर ने दुध पिलाने को जारी रखने को कहा है।
दादी : वो सही है पर जो रिवाज़ है और जो रस्मे निभाई जाती है वो तो करना पड़ता है ना ,तुम बहु हो तो तुम्हें इस रीति रिवाजों को आगे बढ़ाना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी अपने जड़ से जुड़े रह सके ,ये काम एक स्त्री की कर सकती है।
शालिनी : ठीक है हम कल ही वो रस्म करेंगे ,बाबुजी आप जिसे बताना हो उसे बता दीजियेगा
दादी : इसमे सिर्फ औरते ही होती है और आपके परिवार के पुरुष हो तो चलेगा
दादी ही सब औरतों को न्यौता दे देती है ,फिर सब एक एक कर के अपने घर जाने लगते है ,फिर शालिनी नील को स्तनपान करवाने कमरे मे ले जाती है और चाचाजी और बाबुजी दोनों सब सामान इकट्ठा कर के अपनी जगह रखने लगते है।
बाबुजी : देख बलवंत, दुखी मत हो ,समय हर पीड़ा की दवा है ,सब ठीक हो जाएगा।
चाचाजी : पता है ,पर यादे को कैसे भूलूंगा?मे आज अपने घर सोना चाहता हूं
चाचाजी : ठीक है हम सब तुम्हारे साथ वही सोने आयेंगे।
शालिनी नील को लेके आती है और बाबुजी को सौप देती है फिर सब कुछ देर छत्त पर जाते है वहां पर शालिनी थोड़ी दूर एक महल जैसा देखती है ,उसने पहले भी देखा था पर आज उसने जानने के लिए पूछ लिया।

शालिनी : बाबुजी ! वो दूर वो चोटी पर महल है क्या ?
बाबुजी : हाँ वो महल कम एक सेना का किला था ,इस गाव का इतिहास उस किले से जुड़ा है
(उसके बारे मे हम आगे थोड़ा विस्तार से जानेंगे)
शालिनी : अच्छा ! वो क़िला चालू के कि खंडहर बन गया है ?
बाबुजी : वैसे तो खुल्ला है पर कोई कोई सैलानी कभी कभार आ जाए तो खुलता है ,पर पिछले कब कौन आया वो भी याद नहीं ,पर सरकार द्वारा इसे पुरातात्विक अवशेष मे गिना जाता है इसलिए महीने मे एक बार उसको साफ करने गाव के लोग को दिहाड़ी पर रख लेते।
शालिनी फिर खाना बनाने नीचे आती है फिर सब खाना खा लेते है तब चाचाजी अपने घर की ओर जाने लगते है
शालिनी : आप कहा चले?
बाबुजी : वो आज उसको अपने घर सोना है ,आज सबने उसको पुरानी यादें ताजा करा दी इसलिए वो आज उस यादो मे रहना चाहता है ,हम सब भी उधर ही सोने जाएंगे।
शालिनी : ठीक है फिर।
शालिनी नील को लेके बाबुजी के साथ चाचाजी के घर आते है ,चाचाजी अपने कमरे मे जाके अकेले सोते है और शालिनी और बाबुजी हॉल मे सो जाते है ,करीब आधी रात मे जब शालिनी के स्तन मे दर्द होता है तो उसकी नींद उड़ जाती है ,वो देखती है बाबुजी अपने बिस्तर मे नही थे ,उसे लगा बाथरूम गए होगे इस लिए वो चाचाजी के कमरे के पास आके भीतर देखती है चाचाजी परिवार की तस्वीर लेके रो रहे थे ,तभी बाबुजी पिछे से आते है और देखते है चाचाजी रो रहे थे
बाबुजी : बहु लगता है ,आज श्रद्धांजलि के कारण उसके दिल मे दबे दुःख को और गहरा कर दिया ,ये ज्यादा समय एसे रहेगा तो तबीयत बिगड़ जाएगी।
शालिनी : आपने सही कहा बाबुजी ,हमे ही इन्हें संभालना होगा ताकि चाचाजी की तबीयत बिगड़े नहीं
बाबुजी : शहर मे भी तुमने सब सम्भाल लिया था तो तुम जाके बात करो ,मे ईन सब बातों मे थोड़ा कच्चा हूं, मे ठीक से नहीं कर पाउंगा।
तभी नील की आवाज आती है और शालिनी और बाबुजी दोनों उसके पास आते है बाबुजी चाचाजी को ज्यादा तकलीफ ना हो इसलिए तुरत आँगन मे आ जाते है।
शालिनी : लगता है इसे भूख लगी होगी ,लाओ इसे खाना खिला दु।
शालिनी नील को लेके आँगन मे रखी खटिया पर बैठ के स्तनपान करवाने लगती है पर नील बहुत कम दूध पिता है और रोने लगता है।
शालिनी : बाबुजी ,लगता है इसे दूसरी पीड़ा है ,सायद गर्मी की वजह से
बाबुजी : ठीक है मे इसे छत्त पर ले जाता हू तब तक तुम बलवंत को संभालो।
बाबुजी नील को लेके छत्त पर जाते है और इधर शालिनी चाचाजी के कमरे मे आके उसके पास बैठ जाती है और उसके कंधे पर हाथ रख के दिलासा देती है ,शालिनी को देख के चाचाजी शालिनी से गले लग जाते है ,शालिनी फिर से चाचाजी को समझाती है तब जाके वो थोड़ा शांत हुए ,

और मुँह धोकर आते है और पानी पीते है तब शालिनी उसके पास आती है और चाचाजी के हाथ को अपने हाथ मे लेके अपने ब्लाउज की डोरी पर रख देती है बाकी आगे का काम चाचाजी समझकर अपने-आप करने लगते है।

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चाचाजी शालिनी के ब्लाउज को निकाल देते है इस समय दोनों मे से किसी को बाबुजी के आ जाने का डर नहीं था ,वो बस अभी जो जरूरत थी दोनों की वो पूरी करते है ,चाचाजी भी नील को शांत कराने के बाद ऊपर खटिया पर लेट जाते है तब उसको कब झपकी आ जाती है उनको नहीं पता रहता ,इधर चाचाजी जैसे भूखा खाने पर टूट पाता है वैसे शालिनी के स्तन पर टूट पाते है और स्तन चूसने लगते है ,स्तनपान करने बाद चाचाजी कुछ संभले हुए थे।

चाचाजी : माफ़ करना आज मे बहक गया था ,आज काफी दिनों बाद मेरी पत्नी की बहुत याद आयी थी ,और आज जब आपने उसकी साड़ी पहनी थी तो मुझे आपमे उसकी झलक दिखाई दी थी ,और अभी आप जैसे मेरे सामने आए मुझे लगा मेरी पत्नी मेरे सामने है, इसलिए मे बहक गया था
शालिनी : आपको इतना सब बताने की जरूरत नहीं थी ,मे समझ गयी थी आज आप अलग रूप मे थे ,और मुझे खुशी है मे इस दुख मे कैसे भी करके आपके काम तो आयी।
चाचाजी : मुझे माफ़ कर दो
शालिनी : अब बस ! और ज्यादा नहीं ,पहले मे एक माँ के रूप मे आपके काम आयी ,तो आज एक पत्नी रूप मे काम आयी
चाचाजी : क्या पत्नी ?
शालिनी : हाँ अभी तक आप मुझमें एक माँ देखते थे इस लिए मे एक माँ की तरह बर्ताव कर रही थी ,आज आपको मुझमे आपकी पत्नी की झलक दिखाई दी तो अब मे पत्नी की तरह बर्ताव करूंगी ,हम दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है ,आपको मानसिक तौर पर एक सहारा चाहिए और मुझे अपने स्तनों से दूध निकलने के लिए आप चाहिए ,वो मे एक माँ के रूप मे स्तनपान करवाऊं या एक पत्नी के रूप मे ,
चाचाजी : ये एक बड़ा फैसला है, आप सोच लीजिए ,और आपके इस त्याग को मेरा कोटि कोटि वंदन
शालिनी : आप तो मुझे महान बना रहे है
चाचाजी : आप महान है ,वर्ना आज के समय में कोन इतना कर्ता है
शालिनी : बस पर याद रहे हमारा जो रिश्ता वो एकांत मे हो तब ही होगा
चाचाजी : हाँ ,वचन है मेरा ,
शालिनी : लगता है आप तो चाचीजी पर टूट पड़ते होगे ,चाचीजी कैसे सहन करती होगी?
चाचाजी : मे प्यार भी उतना करता था ,
शालिनी : मालूम है ,मे मस्ती कर रही हूं ,चलो अब सो जाते है
चाचाजी : आज आप यही सो जाइए मेरे साथ
शालिनी : एक मिनट रुको
शालिनी बाहर आके देखती है बाबुजी छत्त पर सो गए है ,इस लिए वो भी चाचाजी के पास सोने को तैयार हो जाती है ,शालिनी कमरे मे आती है और जैसे बेड पर लेटने जाती है तब चाचाजी उसे साड़ी और ब्लाउज उतरने को कहते है,और शालिनी भी सिर्फ घाघरा पहने लेट जाती है ,

शालिनी : आज शाम को सब महिला ने कैसे ब्लाउज पहने थे
चाचाजी : अभी गर्मी का मौसम है इस लिए
शालिनी : क्या मे भी एसे पहन सकती हूं ?
चाचाजी : हाँ बिल्कुल ,अगर तुम्हें कोई दुविधा नहीं तो पहनो
शालिनी : पर बाबुजी ?
चाचाजी : मे उससे बात करूंगा ,उसे भी कोई एतराज नहीं होगा
शालिनी और चाचाजी गर्मी मे भी एक दूसरे से लिपटकर सो जाते हैं और जब सुबह होती है तब शालिनी देखती है चाचाजी सो रहे थे

,और वो खड़ी होके अपने ब्लाउज और साड़ी पहनने लगती है ,जब शालिनी साड़ी सही कर रही थी तब एक नजर दरवाजे के चाबी के सूराख से उसे देख रही थी।