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मीनाक्षी :- “मैं किचन में खाना बना रही थी और वह सामने वाले घर में बिस्तर पर बैठे खेल रहा था | पता नहीं कैसे वह बिस्तर से गिर गया उसके सर में गहरी चोट लगी है |” छन भर के लिए तो मधुकर बाबू के आँखों के सामने मानो अँधेरा ही छा गया | लेकिन उन्होंने अपने आप को सँभालते हुए मीनाक्षी से बोला – मधुकर बाबू :- “तुम चिंता मत करो | उसे कुछ भी नहीं होगा | मैं अभी एम्बुलेंस को फोन कर देता हूँ | तुम उसे लेकर हॉस्पिटल पहुँचो मैं भी जितनी जल्दी हो सके हॉस्पिटल पहुँचता हूँ |” इतना कहकर मधुकर बाबू तुरंत एम्बुलेंस को फ़ोन लगते हैं और उन्हें सारा मसला समझाने के बाद खुद भी सब कुछ छोर छार कर हॉस्पिटल की तरफ रवाना हो जाते हैं | हॉस्पिटल पहुँचते पहुँचते उन्हें जरा समय लग जाता है | जबतक की वे हॉस्पिटल पहुँचते हैं तबतक सुमित को डॉक्टर देखने के बाद उसकी माथे पर पट्टी कर चुके थे | और मीनाक्षी वहीँ सुमित के बेड के पास बैठी रो रही थी | मधुकर बाबू को देखते ही मीनाक्षी जोरों से फुट फुट कर रोने लगी और बोली – मीनाक्षी :- “सब मेरी गलती है, मुझे सुमित को अकेले छोरकर जाना ही नहीं चाहिए था | मुझे माफ़ कर दीजिये |” मधुकर बाबू :- “देखो अब जो होना था वो तो हो चूका | होने वाला चीज़ को भला कोण रोक सकता है | इसमें तुम्हारी कोई भी गलती नहीं है | और मैंने बाहर डॉक्टर से बात की है | उन्होंने कहा है की अब सुमित के माथे में मामूली सी चोट लगी है | हमारा बेटा बिलकुल ठीक है तुम बिलकुल भी चिंता मत करो |” लेकिन मीनाक्षी का रोना तो किसी भी तरह से कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था | यह देखते हुए उसे शांत करने के लिए मधुकर बाबू ने मीनाक्षी को गले से लगा लिया और बोले –