"बेमकसद" सा ही सही,,,
थोड़ा "इश्क" तू भी करले,,,
"लहलहाती" सी किसी "नदिया" सी
" तू " भी किसी "सागर" में मिल ले,,, क्यो "बेरंग" सी पड़ी है "मोहब्ब्त" की, "तस्वीर" तेरी,,,
कोई "खुशनुमा" सा,,,
"चटक" रंग "तु" भी इनमे "भरले"
बहुत "जीया" तूने,,,
"औरो" के लिए,,,
अब कुछ "दिन" तू ,,,,
"अपने" लिए भी "जी" ले,,,
"खोल" दे अपने,,,
ये बन्द "पिंजरों" को,,,
और "टूटे" इन "पंखों" से "आसमान" में "उड़"ले,,,
"भूल" गया है,,,
ये "आईना" भी,,,
अब तेरे "अक्स" को,,,
"फुर्सत" मिले तो आ,,,
फिर "खुद" से "मिल" ले,,,
कई "ख्वाब" कुचल गए "जिम्मेदारियों" के "पाँव" तले,,,
खुली "आँखों" से फिर कुछ "ख्वाब" बुन ले,,,
जो "बरसे"
" सावन" इस बार "तू" भी,,,
उसमें "दिल" खोल कर "भीग" ले,,,
"बंजर" हुई "जमीन" को "फिरसे"
" जीने" की एक "उम्मीद" दे,,,
तेरी "ज़िन्दगी" में जो "छूट" गए,,,
"हाथ" वो उनको "भूल" तू,,,
अब "खुद" का ही "हाथ" दे तू,,,
"भूली" हुई सी "बिखरी" सी "दास्तां"
को अब "भूलकर" थोड़ा सा ही सही, "इश्क" तू "खुद" से भी कर ले....!!!
#थोड़ा_सा_इश्क़_करले
✿┅═══❁✿ ॐ ✿❁═══┅✿