कर्मा के मौसी की भावना ( कविता )
दबी भावना बाहर आई
जब उसने कमजोर नस दबाई
थे तो वो पति और पत्नी
बन बैठे अब बहन और भाई
देख चुदाई उनकी ऐसी
बहने लगी चुत मेरी जैसी
हुई खनक और ध्यान आया
जैसे किसी ने मुझे जगाया
भागी मै सरपट निचे को
मिल बैठी उस आगन्तुक को
बडे प्यार से उसने मुझे सम्भाला
गहरे भवर से उसने मुझे निकाला
हुई खुश मै उसको पुचकारा
उसने भी फिर मुझे दुलारा
रात वो बीत गयी
एक बात मै समझ गयी
तर्ज दोहे का
चलत चुदाई देख कर मन मे होये विकार
लण्ड अगर ना मिले तो खीरे का बनाओ हथियार
अद्भूत रचना और कयी सारे दृश्यों को एक साथ एक समय पर एक कड़ी ब्द्ध तरीके से दिखाना बहुत ही उत्तम रचना का उदहारण है । और सबसे बढ़कर की पाठक को कही बोरियत ना हो कही कोई लाईन स्किप ना करना पड़े ये और भी अच्छा लगता है कहांनी मे ।
लिखते रहिये और मनोरन्जन करवाते रहिये
बहुत ही सुन्दर और आनन्द भरा अपडेट