*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*
*सब कुछ पाया इस जीवन में,*
*फिर भी इच्छाएं बाकी हैं*
*दुनिया से हमने क्या पाया,*
*यह लेखा - जोखा बहुत हुआ,*
*इस जग ने हमसे क्या पाया,*
*बस ये गणनाएं बाकी हैं।*
*इस भाग-दौड़ की दुनिया में*
*हमको इक पल का होश नहीं,*
*वैसे तो जीवन सुखमय है,*
*पर फिर भी क्यों संतोष नहीं !*
*क्या यूं ही जीवन बीतेगा,*
*क्या यूं ही सांसें बंद होंगी ?*
*औरों की पीड़ा देख समझ*
*कब अपनी आंखें नम होंगी ?*
*मन के अंतर में कहीं छिपे*
*इस प्रश्न का उत्तर बाकी है।*
*मेरी खुशियां, मेरे सपने*
*मेरे बच्चे, मेरे अपने*
*यह करते - करते शाम हुई*
*इससे पहले तम छा जाए*
*इससे पहले कि शाम ढले*
*कुछ दूर परायी बस्ती में*
*इक दीप जलाना बाकी है।*
*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*
_*जीवन की सारी दौड़ केवल अतिरिक्त के लिए है! अतिरिक्त पैसा, अतिरिक्त पहचान, अतिरिक्त शोहरत, अतिरिक्त प्रतिष्ठा, यदि यह अतिरिक्त पाने की लालसा ना हो तो जीवन एकदम सरल है.*_