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Shayari Kavita-sayri

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बिल में घुसकर नहीं, सामने दहाड़ते है,
अजी बिल में घुसकर नहीं, सामने दहाड़ते है,
और अपना रूतबा ही ऐसा है दोस्त, हम सामने वाले की कहकर फाड़तें हैं। :approve:
 
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Elon Musk_

Let that sink in!
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चलो बिखरने देते है ज़िन्दगी को अब,

सँभालने की भी तो एक हद होती है। 💔

Ju bas Julfo ko hi bikhane do, baki sab kuchh hum sambhal lenge :love:
 

Raj_sharma

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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bulbul_Rani

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विवाहित स्त्रियाँ जब होती हैं प्रेम में
तो उतनी ही प्रेम में होती हैं
जितनी होती हैं कुँवारी लड़कियां
प्रेम कुँवारेपन और विवाह को नहीं जानता
केवल मन के दर्पण को देखता
मन के राग को सुनता है....

विवाहित स्त्रियाँ भी समाज से डरते हुए
करती जाती हैं प्रेम
किसी अमर बेल की तरह
क्योंकि प्रेम के बीज बोये नहीं जाते
वे स्वत ही हृदय की नम सतह पाकर
कभी भी कहीं भी किसी क्षण
प्रेम बनकर अंकुरित हो उठते हैं.....

प्रेम में हो जाती हैं वे भी
सोलह सत्रह बरस की कोई नयी सी उमंग
ललक उठता है उनका भी मन
प्रेमी की एक झलक पाने को
दैहिक लालसा से परे होता है उसका प्रेम
वे आलिंगन के स्पर्श से ही मात्र
आत्मा के सुख में प्रवेश कर जाती है.....

वे भी बिसरा देती है अपना हर एक दुख
प्रेमी की आँखों में डूबकर
उसकी हर आहट से हो जाती है वो मीरा
तार तार बज उठता है उसके मन का संगीत....

प्रेमी की एक आवाज से
सोलहवें सावन सा मचल उठता है
भावनाओं का बादल
खिल उठती है वह पलाश के चटक रंगों की तरह
लहरा उठती है उसकी खुशियां
बसंत के पीले फूलों की फसलों की तरह....

नहीं चाहतीं वह अपने प्रेम पर
समाज का कोई भी लांछन
नहीं चाहती कोई कुल्टा कहकर
उसके प्रेम का करे अपमान
बनी रहना चाहती है अपने बच्चों सबसे अच्छी माँ
और पति की कर्तव्यनिष्ठ पत्नी
वह विवाह के सामाजिक बंधनों के दायित्वों से
नहीं फेरना चाहती अपने कदम....

वह बनी रहना चाहती है
अपनी इच्छाओं के समर्पण से एक सुंदर मन की स्त्री
जैसे बनी रहना चाहती है कुँवारी लड़कियाँ
अपने भाई की लाडली बहन
और माँ बाप की समझदार बेटी
अपने प्रेमी की होने के सपनों के साथ....

विवाहित स्त्रियाँ भी अपने प्रेमी का हर दुख
अपने आँचल में छुपा लेना चाहती है
अपनी हर प्रार्थना में करती हैं
उनके सुख की कामना के लिए आचमन
परन्तु कुँवारी प्रेमिकाओं की तरह
उसके सपनों की कोई मंजिल नहीं होती....

वह अपने सपनों में जीना चाहती है
अपने प्रेमी के साथ एक पूरा जीवन
गाड़ी के दो पहिए की तरह चलता है
उसका प्रेम और उसकी गृहस्थी....

रात के बैराग्य मठ पर नितांत अकेले
वे पति की पीठ पर देखती हैं प्रेमी का चेहरा
पाना चाहती है प्रेमी की भावनाओं में
अपनेपन की छाँव और जीवन की विषमताओं में
उसकी सरलता का साथ....

कुँवारी लड़कियाँ प्रेमी के संग
बंधना चाहती है परिणय सूत्र में
जबकि विवाहिता स्त्रियाँ प्रेमी को नहीं चाहती खोना
बंध जाना चाहती है विश्वास के अटूट बंधन में
वे विवाहिता होने की ग्लानि में प्रेम की आहूति नहीं देती
बल्कि संसार की सारी प्रेमिकाओं की तरह
अपने प्रेमी को मन प्राण से करती जाती है प्रेम....!!!!

धन्यवाद ।

पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद...अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।
 
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Raj_sharma

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विवाहित स्त्रियाँ जब होती हैं प्रेम में
तो उतनी ही प्रेम में होती हैं
जितनी होती हैं कुँवारी लड़कियां
प्रेम कुँवारेपन और विवाह को नहीं जानता
केवल मन के दर्पण को देखता
मन के राग को सुनता है....

विवाहित स्त्रियाँ भी समाज से डरते हुए
करती जाती हैं प्रेम
किसी अमर बेल की तरह
क्योंकि प्रेम के बीज बोये नहीं जाते
वे स्वत ही हृदय की नम सतह पाकर
कभी भी कहीं भी किसी क्षण
प्रेम बनकर अंकुरित हो उठते हैं.....

प्रेम में हो जाती हैं वे भी
सोलह सत्रह बरस की कोई नयी सी उमंग
ललक उठता है उनका भी मन
प्रेमी की एक झलक पाने को
दैहिक लालसा से परे होता है उसका प्रेम
वे आलिंगन के स्पर्श से ही मात्र
आत्मा के सुख में प्रवेश कर जाती है.....

वे भी बिसरा देती है अपना हर एक दुख
प्रेमी की आँखों में डूबकर
उसकी हर आहट से हो जाती है वो मीरा
तार तार बज उठता है उसके मन का संगीत....

प्रेमी की एक आवाज से
सोलहवें सावन सा मचल उठता है
भावनाओं का बादल
खिल उठती है वह पलाश के चटक रंगों की तरह
लहरा उठती है उसकी खुशियां
बसंत के पीले फूलों की फसलों की तरह....

नहीं चाहतीं वह अपने प्रेम पर
समाज का कोई भी लांछन
नहीं चाहती कोई कुल्टा कहकर
उसके प्रेम का करे अपमान
बनी रहना चाहती है अपने बच्चों सबसे अच्छी माँ
और पति की कर्तव्यनिष्ठ पत्नी
वह विवाह के सामाजिक बंधनों के दायित्वों से
नहीं फेरना चाहती अपने कदम....

वह बनी रहना चाहती है
अपनी इच्छाओं के समर्पण से एक सुंदर मन की स्त्री
जैसे बनी रहना चाहती है कुँवारी लड़कियाँ
अपने भाई की लाडली बहन
और माँ बाप की समझदार बेटी
अपने प्रेमी की होने के सपनों के साथ....

विवाहित स्त्रियाँ भी अपने प्रेमी का हर दुख
अपने आँचल में छुपा लेना चाहती है
अपनी हर प्रार्थना में करती हैं
उनके सुख की कामना के लिए आचमन
परन्तु कुँवारी प्रेमिकाओं की तरह
उसके सपनों की कोई मंजिल नहीं होती....

वह अपने सपनों में जीना चाहती है
अपने प्रेमी के साथ एक पूरा जीवन
गाड़ी के दो पहिए की तरह चलता है
उसका प्रेम और उसकी गृहस्थी....

रात के बैराग्य मठ पर नितांत अकेले
वे पति की पीठ पर देखती हैं प्रेमी का चेहरा
पाना चाहती है प्रेमी की भावनाओं में
अपनेपन की छाँव और जीवन की विषमताओं में
उसकी सरलता का साथ....

कुँवारी लड़कियाँ प्रेमी के संग
बंधना चाहती है परिणय सूत्र में
जबकि विवाहिता स्त्रियाँ प्रेमी को नहीं चाहती खोना
बंध जाना चाहती है विश्वास के अटूट बंधन में
वे विवाहिता होने की ग्लानि में प्रेम की आहूति नहीं देती
बल्कि संसार की सारी प्रेमिकाओं की तरह
अपने प्रेमी को मन प्राण से करती जाती है प्रेम....!!!!

धन्यवाद ।

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Ati uttam, :applause:Kya aap lekhak ho?
 
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