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Thriller KHATARNAK PLAN AUR khoon

gauravrani

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भी खुला दिखाई दिया। क्या माजरा था, इतना लापरवाह तो नहीं था चौहान! छोटे से हाल से गुजरकर मैं बेडरूम तक पहुंचा और दरवाजे पर पहुंचते ही थमक कर खड़ा हो गया। वो डबल बेड पर फुल वर्दी में चित्त पड़ा हुआ था। कपड़ों पर लगा खून और फटी हुई नेम प्लेट की खाली जगह, अपनी कहानी आप बयान कर रही थी। बेड के बगल में फर्श पर ब्लैक लेबल की एक खाली बोतल लुढ़की पड़ी थी। बोतल के पास ही कांच के दो गिलास पड़े थे जिनमें से एक टूटा हुआ था। मैं सावधानी बरतता हुआ उसके करीब पहुंचा। उसे आवाजें दीं, हिलाया-डुलाया, मगर वो टस से मस नहीं हुआ। वह गहरे नशे में था। मैंने उसे जगाने की बहुतेरी कोशिशें कीं मगर कोई फायदा नहीं हुआ। हालांकि उसे नशे की तरंग से बाहर लाने के और भी रास्ते थे, मगर मेरे पास वक्त नहीं था। किसी भी वक्त पुलिस वहां पहुंच सकती थी और अगर ऐसा हो जाता, तो उसका तो जाने कुछ बिगड़ता या नहीं मैं जरूर बुरी तरह से फंस जाता। यह होम करते हाथ जलाने वाली बात होती जो कि सरासर नासमझी की श्रेणी में आती है। मैं नासमझ नहीं था। बेडरूम से निकलकर मैं बाहरी दरवाजे की ओर बढ़ा तो यहां भी दरवाजे के पास फर्श पर एक अधजला सिगरेट
 

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पड़ा दिखाई दिया। मैंने झुककर मुआयना किया तो पाया कि उसपर भी मैरून कलर की लिपस्टिक के दाग लगे हुए थे। ब्रांड भी वही था - गोल्ड फ्लैक! क्या गोरख धंधा था! बाहर निकलकर मैं जालीदार दरवाजा बंद करने ही लगा था कि मेरी निगाह जाली में अटके एक धागों के गुच्छे पर पड़ी। वो रेशम के आसमानी और सफेद रंग के धागे थे। वहां पर जाली के दो तार टूटे पड़े थे, उन्ही में धागों का वो गुच्छा उलझा हुआ था। यह वैसा ही गुच्छा था जो किसी साड़ी या डुपट्टे को बिना पीको कराये पहना जाय तो किनारों से निकलने लगता था। मुझे फौरन याद हो आया कि मंदिरा चावला की शॉल पर भी मैंने उसी रंग के धागों की कढ़ाई देखी थी। मैंने पूरी सावधानी से दरवाजा बंद कर दिया। अब इस पुलिसिए का भगवान ही मालिक था। बाहर आकर मैं अपनी कार को वहां से निकालकर बगल वाली बिल्डिंग के सामने ले आया और एक सिगरेट सुलगाकर इंतजार करने लगा। दस मिनट बाद एक पुलिस जीप वहां पहुंची। उसमें से उतरकर चार पुलिसिए बिल्डिंग में घुस गये।
 

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फिर दो मिनट बाद भीतर गये पुलिसियों में से एक बाहर आया और सिगरेट का कस लगाता हुआ वहीं टहलने लगा। पंद्रह मिनट और गुजर गये। पुलिसिया वहीं टहलता रहा। फिर बीसवें मिनट में नदीम खान और उस इलाके का एसएचओ प्रवीण शर्मा, दोनों लगभग आगे-पीछे ही वहां पहुंचे थे। दोनों में कुछ मंत्रणा हुई इसके बाद दोनों बिल्डिंग में दाखिल हो गये। मैंने अपनी कार से उतरने की कोशिश नहीं की! लगभग आधे घंटे बाद एक और गाड़ी वहां पहुंची। एक ऐसी गाड़ी, जिसके वहां पहुंचने की मुझे तनिक भी उम्मीद नहीं थी। वो फोरेंसिक टीम की गाड़ी थी। वे लोग भी बिल्डिंग में दाखिल हो गये। मैं हक्का-बक्का सा रह गया। उनका भला वहां क्या काम था। कहीं नरेश चौहान नशे की हालत में टें तो नहीं बोल गया। मेरे इस ख्याल ने मुझे आंदोलित कर के रख दिया। अब मेरा कार में बैठे रहना दूभर हो गया। अब तक आस-पास लोगों में उत्सुकता बढ़ने लगी थी। वो बिल्डिंग के सामने एकत्रित होने लगे। थोड़ी देर बाद मैं भी कार से बाहर निकलकर तमाशाइयों की भीड़ का हिस्सा बन गया। सब की जुबान पर एक ही सवाल
 

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था, क्या हुआ? मगर जवाब किसी के पास नहीं था। तभी एक व्यक्ति सीढ़ियों से नीचे उतरता दिखाई दिया। वो ना तो पुलिसवाला था और ना ही फोरेंसिक टीम से हो सकता था। मैं उसकी ओर लपकने ही लगा था कि मेरे बगल में खड़ा युवक मुझसे ज्यादा फुर्तीला निकला, वो एकदम उसका रास्ता रोककर खड़ हो गया। ‘‘भाई साहब! - वो बड़े ही उतावले स्वर में बोला - क्या हो गया ऊपर?‘‘ ‘‘मर्डर हुआ है! चौदह नम्बर में एक औरत को कत्ल कर दिया किसी कमीने ने, पता नहीं क्या जमाना आ गया है। स्साला कोई सेफ नहीं इस शहर में।‘‘ कहकर वो आगे बढ़ने को हुआ तो एक अन्य व्यक्ति ने उसका रास्ता रोक लिया, ‘‘कातिल पकड़ा गया या नहीं।‘‘ ‘‘अरे नहीं भाई, ऐसे कातिल पकड़े जाने लगें तो दिल्ली पुलिस की तो चांदी हो जाय।‘‘ मेरे दिमाग में सांय-सांय होने लगी। तेरह नम्बर राकेश चौहान का था, लिहाजा उसके दायें या बांये वाला चौदह नम्बर हो सकता था। हालांकि ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं थी, मगर फिर भी मेरे दिमाग में एक सवाल तेजी से दस्तक देने लगा - ‘क्या दूसरे कत्ल का रिश्ता भी चौहान से जुड़ने वाला था।‘
 

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मैं दोबारा अपनी कार में आकर बैठ गया, मैं नहीं चाहता था कि वहां मेरा सामना नदीम खान से हो। थोड़ी देर बाद एक एम्बुलेंस वहां पहुंची। सफेद यूनीफार्म में चार लोग दो स्ट्रेचर उठाए, सीढ़ियां चढ़ने लगे। जाहिर था दूसरा स्ट्रेचर चौहान के लिए था। जरूर उसके होशो-हवास अभी तक ठिकाने नहीं आये थे। मैंने घड़ी देखी साढ़े नौ बज चुके थे। आगे मुझे उम्मीद थी कि नदीम खान को अभी वहां आधा घंटा और लगना था। पास में ही एक रेस्टोरेंट था - खाना खजाना - मैंने वहां डिनर करने का फैसला किया। सवा दस बजे मैं थाने पहुंचा। पता चला एसएचओ साहब अभी फील्ड में थे। मैं वहीं बैठकर इंतजार करने लगा। पौने ग्यारह बजे नदीम खान के कदम थाने में पड़े। उसे देखकर मैं उठने ही लगा था कि तभी उसकी निगाह भी मुझपर पड़ गई। ‘‘पांच मिनट बाद आना।‘‘ जवाब में सहमति में सिर हिलाता मैं वापिस बैठ गया। पांच की बजाय दस मिनट बाद एक पुलिसिये ने आकर मुझसे कहा कि साहब बुला रहे हैं।
 

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मैं उठकर एसएचओ के कमरे में पहुंचा। वो मोबाइल पर किसी से बातें कर रहा था, इशारे से उसने मुझे बैठने को कहा। मैं एक विजिटर चेयर पर बैठ गया। ‘‘हां भाई! -वो मोबाइल से फारिग होता हुआ बोला - बताओ।‘‘ ‘‘बताऊं! क्या बताऊं जनाब! - मैं तनिक हड़बड़ाकर बोला - आपने ही तो मुझे दस बसे यहां पहुंचने को कहा था।‘‘ ‘‘अरे हां याद आया - कहकर उसने मेज पर रखी घंटी पुश कर दी - क्या करूं यार एक नया बवेला खड़ा हो गया था उसी से निपटकर आ रहा हूं, दिमाग हिला हुआ है मेरा।‘‘ ‘‘जरूर कोई खास बात हो गयी होगी।‘‘ ‘‘खास ही समझो...‘‘ कहता-कहता वो अदर्ली को भीतर आया देखकर खामोश हो गया। कमीना दो मिनट बाद नहीं आ सकता था। तब तक दूसरे कत्ल के बारे में कुछ ना कुछ जानकारी तो मैं हासिल कर ही लेता। ‘‘तुम साहब को हेमचंद के पास ले जाओ, उससे कहना शाम वाले कत्ल की बाबत इनका बयान दर्ज करना है।‘‘ ‘‘जी जनाब।‘‘ कहकर अर्दली ने मेरी तरफ देखा। ‘‘मैं बयान नोट करवाकर आता हूं।‘‘
 

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जरूरत नहीं, तुम बयान देकर घर जा सकते हो।‘‘ लिहाजा मेरा आखिरी दांव भी खाली चला गया। अर्दली ने मुझे राइटर के कमरे में पहुंचा दिया। रात के एक बजे मैं बयान दर्ज करवाने के अहमतरीन काम से फारिग हुआ। वहां से तारा अपार्टमेंट पहुंचने में मुझे मुश्किल से दस मिनट लगे थे। अपने फ्लैट पर पहुंचकर मैं पूरे कपड़ों में ही बिस्तर पर ढेर हो गया। जल्दी ही मुझे नींद आ गयी। ॅ दो जू ग्यारह बजे के करीब मैं साकेत स्थित अपने ‘रैपिड इंवेस्टिगेशन‘ के ऑफिस पहुंचा। मेरी रिसेप्शनिष्ट-कम सेक्रेटरी-कम लेगमैन-कम पार्टनर-कम मेरी सब-कुछ! शीला वर्मा हमेशा की तरह अपनी जगमग मुस्कान के साथ रिसेप्शन पर सुशोभित थी। ‘‘गुड मार्निंग मिस्टर गोखले।‘‘
 

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गुड मार्निंग मिस वर्मा, हाऊ आर यू फीलिंग नाऊ?‘‘ ‘‘एक्जेटली कल की तरह सर!‘‘ ‘‘और कल कैसा फील कर रही थीं आप?‘‘ ‘‘परसों से थोड़ा बैटर सर!‘‘ ‘‘और परसों?‘‘ ‘‘जाहिर है कल से थोड़ा खराब!‘‘ ‘‘कमीनी।‘‘ बड़बड़ाता हुआ मैं अपने केबिन की ओर बढ़ गया। पीछे से उसकी खनकती हंसी सुनाई दी। यूं लगा गिटार के तारों को हौले से छेड़ दिया गया हो। क्या हंसी थी कम्बख्त की, सुनकर कोमा का मरीज भी उठकर बैठ जाता। अपने केबिन में पहुंचकर मैंने अखबार की सूर्खियों पर एक नजर डाली, मगर कल के दोनों वाकायात में से किसी का भी जिक्र उसमें नहीं था। मैंने रिमोट उठाकर टीवी पर न्यूज लगाया तो मेरी मुराद पूरी हो गयी। मंदिरा के कत्ल की न्यूज चल रही थी। नीचे एक न्यूज लाइन फ्लैश हो रही थी - किसने की सुनीता गायकवाड़ की हत्या! क्या मॉडल कम अभिनेत्री, मंदिरा चावला और सुनीता गायकवाड़ का हत्यारा एक ही है। क्या राजधानी में औरतें अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं!
 

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तो दूसरी औरत - जिसका कत्ल नरेश चौहान के बगल वाले फ्लैट में हुआ था - का नाम सुनीता गायकवाड़ था। तभी एक रिपोर्टर कार में बैठने जा रहे किसी नेता से प्रश्न पूछने लगा। ‘‘सर आपका क्या कहना है इन दोनों घटनाओं के बारे में।‘‘ नेता जी तनिक हकबकाये फिर टिपिकल अंदाज में बोले, ‘‘सब हमारी पार्टी का नाम खराब करने की चाल है। चुनाव नजदीक हैं, जनता हमारे साथ है। ऐसे में मौजूदा सरकार को हमारी पार्टी से खतरा नजर आने लगा है, देखना आगामी चुनावों में हम इस सरकार का तख्ता पलट कर रख देंगे।‘‘ सुनकर रिपोर्टर हड़बड़ा उठा। जाहिर था नेता जी को उन दोनों वारदातों की कोई खबर नहीं थी। मगर रिपोर्टर काबिल था उसने फौरन बात संभाली। ‘‘अच्छा सर अब ये बताइये कि बीती रात राजधानी में जो दो औरतों की बर्बरता पूर्वक, उनके घरों में हत्या कर दी गयी, उसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे।‘‘ ‘‘भई क्या कहें उस बारे में - नेता जी सम्भलते हुए बोले - जंगल राज आ गया है इस पार्टी के शासनकाल में। रोजाना ऐसी वारदातें घटित होती हैं और किसी
 

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कान पर जूं तक नहीं रेंगती। लोगों का कानून व्यवस्था से विश्वास उठता जा रहा है। लोग सहमें हुए हैं, अक्सर हमारी पार्टी के वकर्रों से गुहार लगाते हैं कि हम कुछ करें। दिल्ली को सुरक्षित बनायें ताकि आवाम सुख-चैन के साथ जिंदगी बसर कर सके। हम जनता की तकलीफ को समझते हैं। जानते हैं कि दिल्ली की जनता बदलाव चाहती है। देखना बहुत जल्द हम इस मुद्दे को असैम्बली में उठाएंगे।‘‘ ‘‘सर क्या लगता है आपको किसने किया होगा ये सब।‘‘ ‘‘नो कमेंट प्लीज!‘‘ कहकर नेता जी अपनी कार में बैठ गये फिर कार यह जा वह जा। ‘‘तो जैसा की आपने देखा! - पीछे रिपोर्टर लगभग चिल्लाता हुआ बोला - विपक्ष का मानना है कि इसके लिए सरकारी हुक्मरान जिम्मेदार हैं। उन्होंने ये भी कहा कि दिल्ली में जंगल राज आ गया है। आपको क्या लगता है, क्या सचमुच दिल्ली में जंगल राज आ गया है, अपना जवाब भेजने के लिए अभी टाइप करें....।‘‘ मैंने रिमोट उठाकर टीवी बंद कर दिया। तभी मेज पर रखा इंटरकॉम बजने लगा। मैंने काल अटैंड की। शीला की सुरीली आवाज सुनाई दी, ‘‘थाने से फोन है क्या बोलूं! तुम अभी चांद पर गये हो या कह दूं कि
 
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