मम्मी :-"येह तुम क्या कर रहे हो? होश में तो हो?" वो फुसफुसा कर बोली.
मैं :-"तुमने खुद ही तो कहा था उतार कर गंदे कपड़ों में दाल दुं."
मैं ने ऐसे जबरदस्त तनावपूर्ण माहोल के बावजूद अत्यंत शांत स्वर में उसे जवाब दिया जैसे वहां कुछ भी ऐसा वैसा नहीं हुआ था और सब नार्मल था.
मम्मी :-"मेरे कहने का मतलब अभी से नहीं था. मैंने यह नहीं कहा था के अभी अपना पायजामा उतार कर मेरे सामने नंगे हो जाओ"
मम्मी ऊँचे स्वर में बोलती है. मैं मम्मी की तरफ मासुमियत से देखता हूं जैसे के उसे कुछ मालूम ही नहीं था के कोलाहल किस बात के लिए मचा हुआ है.
मम्मी का चेहरा कठोर रुख धरण कर जाता है जैसे उसने कोई सख्त फैसला लिया हो.
मम्मी :-"ठीक है अगर तुम मेरे मुंह से कहलवाना चाहते हो तो ऐसे ही सही. तुम्हे अपनी यह घटिया हरकतें बंद करनी होंगी!" वो उसके अंदेशे को सच करती हुयी बोली.
मम्मी:-"तुम चाहते हो के में तुम्हारे पापा को यहाँ बुलाऊ?"
मैं मम्मी के दिखावे से न डरते हुये लापरवाही से अपने कंधे झटक दिये.
मम्मी:-"अपना पायजामा इसी समय वापस पहनो वर्ना में इसी समय तुम्हारे पापा को बुला रही हु"
मम्मी ने अपनी बात पर ज़ोर डालने के लिए अपना हाथ फर्श पर पड़े मेरे पाजामे की और झटका मगर जल्दबाज़ी में मम्मी की हथेली का पिछला भाग मेरे कठोर लंड से टकरा गया.
मम्मी उस स्पर्श से कांप उठि और उसने फ़ौरन अपना हाथ झटक दिया. वो उसके एक तरफ से घूम कर घर के अंदर को जाने लगी मगर मैं एक दम से पीछे होकर उसके रस्ते में और दरवाजे के बिच खड़ा हो गया.
मैं :-"मगर उसे कैसे पह्नु, वो गन्दा है" मैने मम्मी से कहा.
मम्मी :-"तो कोई साफ़ कपड़ा पहन लो"
मैं ने धुले कपड़ों की बास्केट को इस तरह देखा की मम्मी को एहसास हो जाये के यह काम मेरे बस से बाहर का है.
हताश होकर मम्मी ने खुद धुले कपड़ों की बास्केट में से उसके पेहनने के लिए कुछ ढूंडने लगी और आखिरकार उसने एक धुला हुआ पायजामा निकाल कर मेरे और बढा दिया.
मैं ने मम्मी के हाथ से पायजामा लिया और झुक कर उसमे एक एक कर अपने दोनों पांव डालने लगा. और फिर धीरे धीरे खड़ा होते हुये पायजामा भी अपने साथ ऊपर चढाने लगा.
मैने उस समय रुका जब पयजामे का वेस्टबैंड उसके अंडकोषों से रगड खता हुआ उसके लंड के नीचले हिस्से को दबाने लगा जिस कारन मेरा का लंड हलके हलके आगे पीछे झुलने लगा।
मम्मी की नज़र सीधे उसके लंड पर टिकी हुयी थी और वो उसकी हर उछाल को धयानपूर्वक देख रही थी.
मैं:-"मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा अगर तुम इसे देखोगी"
मैने नरम स्वर में बोला.
मम्मी:-"येह तुम क्या कर रहे हो बेटा? आखिर तुम्हारा ईरादा क्या है?"
मैं:-"मैं बस चाहता हु के तुम इसे देखो"
मम्मी:-"मगर क्यों?"
मैं:-"मुझे नहीं मालुम्. मैं बस चाहता हु"
मम्मी:-"अब इसे ढको और यहाँ से जाओ. मुझे अपना का काम करने दो." वो बोली.
मैं:-"मैं चला जाऊंगा अगर तुम इसे अपने हाथों से मेरे पायजामे में दाल दो" अपनी पिछली हरकतों से उत्साहित होकर मैं ने जवाबी वार किया.
मम्मी ने ठण्डी आह भरी और उसके पायजामे में उँगलियाँ फँसकर उसे ऊपर खीँचा. वेस्टबैंड के दवाब के कारन मेरा लंड मेरे पेट् से चिपक गया था,
मम्मी ने अपने हाथ मेरे त्वचा से स्पर्श नहीं होने दिए थे. मम्मी दो कदम पीछे हट गयी और मुझे रस्ते से हट जाने का इंतज़ार करने लगी. मैने निचे देखा. उसके लंड का पूरा सुपाडा बाहर था.
मैं :-"तुम बस इतना ही कर सकती हो?" मैने पुछा.
सानिया निचे देखने लगी.
मम्मी:-"हूं" उसने धीरे से कहा.
मैं:-"ठीक है"
कहकर मैं वहा से चला आया.
इसके बाद जैसे उसे मौन आज्ञा मिल गयी थी के जब भी पापा आसपास न हो या उनके साथ कमरे में न हो मैं अपने लंड का प्रदर्शन कर सकता हूं।
मम्मी ने भी देख कर न देखने का अपना स्वभाव बदल कर उसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ करना सुरु कर दिया.
अगर मम्मी कभी देखति थी तो ऐसे दिखावा करती थी जैसे यह कोई बड़ी बात नहीं थी और मुझे अपनी इस बचकाना हरकत से पीछा छुड़ा लेना चाहिए था.
कयी दिनों के लंड प्रदर्शन के बाद अगले शनिवार को नाश्ते पर मैने पापा के किचन से चले जाने तक का इंतज़ार किया.
जैसे ही पापा किचन से बाहर निकले और मैं ने सीढ़ियों पर मम्मी के कदमो की आवाज़ सुनि, मैं ने अपना पायजामा निचे किया और अपना लंड बाहर निकाल लिया और मम्मी को देखकर मुस्कराने लगा.
मुझसे से इंतज़र नहीं हो रहा था के वो पलट कर उसके लंड को देखे. अखिरकार उसने कुछ समय के बाद देखा,
मम्मी:-"भगवान के लिये, आखिर तुम कब इस हरकत से बाज आओगे?"
मैं:-"किस हरकत से?"
मम्मी हँसते हुये कहा. मैं ने कुरसी पर अपने कुल्हे हिलाते हुये कहा जिससे मेरा लंड गोलाई में चक्कर काटने लगा. उसके अस्चर्य की सीमा न रही जब मम्मी भी हंस पड़ी, वो सच में हँसी थी.
मम्मी:-"ईस हरकत से"
वो उसके झूलते हुए लंड की और इशारा करके बोली.
मैं:-"कभी नही." मैं ने उसे जवाब दिया.
मैं:-"मेरी हमेशा से ख़्वाहिश रही है के आप एक बड़े वाले को देख सके."
उसकी बात से सानिया का चेहरा सुर्ख लाल हो गया.
मम्मी:-"तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा के अपने पापा के आने से पहले इसे धक् लो"
मैं:-"क्यों?" सतिशने उससे पुछा.
मैं:-"मुझे परवाह नहीं अगर वो देख ले" सतिशने हवा बनाते हुए कहा जबकि मैं अच्छे तरह से जानता था कि पापा उसकी क्या दुर्गति कर सकते है।
मम्मी:-"तुम बस इसे धक् लो"
मम्मी ने जोर देकर कहा तो मैं ने इंकार में सर हिलाया.
मम्मी:-"मैं इसे नहीं ढकने वालि"
मम्मी ने ज़ोर देकर कहा. मम्मी का इशारा लांड्री रूम के उस दिन के वाकये की और था.
मैं:-"मैं इसे खुद धक् लूँगा अगर मम्मी तुम मुझे अपनी टांगे दिखाओगी तोह्....." मैं समझौता करते हुए कहा.
मम्मी :-"तुम्हेँ अपनी टांगे दिखाउंगी तो? मगर तुम मेरी टांगे देख सकते हो"
मम्मी अपनी घुटनो तक लम्बी ड्रेस की स्कर्ट को अपने दाएँ हाथ से पकडती है और उसे अपनी जांघो के ऊपर हिलाती डुलाती है.
मैं :-"कहने का मतलब है ऊपर से." मैंने कामुक अति उत्तेजित आवाज़ में फुसफुसा कर बोला.
मैं :-"उपर! इसे अपने घुटनो से ऊपर उठाओ"
मम्मी मुझ को घूर रही थी. अब तक यह सब मेरे तरफ से हो रहा था. उस समय किचन में बिलकुल वैसे ही हालात थे जैसे उस दिन लांड्री रूम में थे जब मैंने अपना पायजामा उतार कर फेंक दिया था और वो सर घुमा कर उसे देख रही थी.
फिर समय थम सा गया था. मम्मी बिलकुल बूत बनी खड़ी थी और उसने अपने दाएँ हाथ में अपनी स्कर्ट को पकड़ा हुआ था. मैंने मम्मी की नज़र से नज़र मिलायी.
मैं भी उसी की तरह बूत बना हुआ था. पायजामे में मेरा लंड झटका मारता तन कर बिलकुल सीधा खड़ा हो गया था. मम्मी की नज़र उसके चेहरे से हटकर निचे उसके लंड पर चलि जाती है मगर इसके अलावा मम्मी का पूरा जिस्म पूरी तरह स्थिर था.
तब मम्मी का हाथ हिला. मम्मी का दाया हाथ नही जिसमे मम्मी ने अपनी स्कर्ट पकड़ी हुयी थी वो नहीं बल्कि दूसरा हाथ. मम्मी का बाया हाथ उसकी साइड में निचे गिर जाता है और मम्मी अपनी स्कर्ट को इकठ्ठा करने लगती है ।
मैं :-“प्लीज पापा निचे नहीं आना, प्लीज”
मैं ने भगवन से प्रार्थना की. मैंने इतनी मुश्किल से हाथ आये इस सुनहरे मौके को हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था.
मम्मी का हाथ स्कर्ट के कपडे से भर जाता है और वो उसे ऊपर की और लेजाने लगती है और साथ ही मम्मी की गोरी जांघे नुमाया होने लगती है. मम्मी का हाथ अब वहां रुकता है जहासे मम्मी की जांघे मोटी होने लगती है. इतनी दूर से भी मैं मम्मी की दूधिया त्वचा पर हलके रोयें तैरते देख सकता था.
मैं :-"और उपर....."उसके गले से घरघराती आवाज़ में शब्द निकल रहे थे.
आश्चर्य था मम्मी ने मेरी इच्छा अनुसार अपनी स्कर्ट को ऊपर उठाना जारी रखा. एक इंच और ऊपर जाते ही मेरा हाथ मेरे लंड पर कस गया था. एक.इंच और ऊपर उठाते ही मैंने अपने लंड को हिलाने लगता हूँ .
मेरी आंख मम्मी की नग्न जांघो पर टिकी हुयी थी. मम्मी का स्कर्ट का नीचला सिरा अब लगभग वहां तक्क ऊपर उठ चुका था जहा से थोड़ी ऊपर मम्मी की पेन्टी सुरु होती थी.
मैं :-"पूरी ऊपर मम्मी..........पूरी तरह ऊपर कर दो"
मैंने कांपते स्वर में बोला. मेरा हाथ मेरे लंड पर ऊपर निचे हो रहा था और मम्मी की ऑंखे मेरे हाथ के साथ साथ ऊपर निचे घूम रही थी.
मम्मी की पेन्टी नज़र आने लगती है. मम्मी की पेन्टी सामने से थोड़ी उभरि हुयी थी और उस उभार के अंदर बिच में एक सिलवट थी जिसमे मम्मी की पेन्टी हलकी सी अंदर को घुसी हुयी थी बिलकुल वहां जहा से पेन्टी मम्मी की टांगो के बिच घूम हो जाती थी. उस उभरि जगह पर मेरी नज़र टिक जाती है. वो उभरि जगह उसकी मम्मी की चुत थी.
मेरा हाथ मेरे लंड पर और भी तेज़ी से चलने लगता है और मम्मी का सर मेरे हाथ का पीछा करते हुए ऊपर निचे होने लगता है.
मैं :-“है भगवान!' मैं इतनी जल्दी चुट्ने वाला हु”.
मैं कुरसी से लडख़ड़ाते हुए उठ खड़ा हुआ और अपना लौडा मसलते हुये मम्मी की तरफ बढा. मैं सिंक के पास पहुँचना चाहता था मगर वह सिंक तक्क न पहुंह सका.
मेरे लंड ने वीर्य की तेज़ और भारी पिचकारी मारी जो सीधी मम्मी की जांघो पर जाकर गिरि और उसने अपनी स्कर्ट को छोड़ दिया. मेरे लंड ने फिर से पिचकारी मारी मगर वो मम्मी की एप्रन पर जाकर गिरि जो वो खाना बनाते समय पहनती थी.
मेरे घुटने मूढ़ने लगे और मैंने अपनी दूसरी बाँह मम्मी की कमर में दाल दी और मम्मी की एप्रन से लंड रगडते हुए बाकि वीर्य निकालने लगा.
मम्मी ने एप्रन उठाकर मेरे झटके मार रहे लौड़े पे लपेट दिया ताकि मेरा वीर्य आसपास न गिर सके. मेरा वीर्य की अखिरी धार निकलने तक बुरी तरह हाँफ रहा था
मैं :-"ओह god! मम्मी मुझे माफ़ करदो." मैं अभी भी उत्तेजना से कांप रहा था. "मुझे माफ़ करदो मम्मी"
मम्मी :-"इट्स ओके. इट्स ओके." मम्मी एप्रन उठाकर उसके लंड को साफ़ करने लगी.
मैं :-"मम्मी आप इतनी सुन्दर हो के........... के मुझसे रहा नहीं गया." सतीश सिसकते हुये बोला.
मम्मी :-"स्स्स्सह्ह्ह्हह्हह्ह्.....इट्स ओके बेटा. मैं तुमसे गुस्सा नहीं हु." मम्मी ने बड़े प्यार से ममतामयी स्वर में बोली. वो एप्रन को उसके लंड पर आगे पीछे करते हुए रगड रही थी.
तभी मैं ने सीढ़ियों पर कदमो की आहट सुनी. मम्मी एक दम झटके से पीछे को हट कर सीधी खड़ी हो गयी, फिर मम्मी बला की तेज़ी से घूम कर किचन के बाहर की और खुलने वाले दरवाजे से निकल घर के पिछवाड़े की और चलि गयी जहा लॉन्ड्री रुम, स्टोर रूम और एक छोटा सा लॉन था.
मैं ने भी जितनी तेज़ी से सम्भव हो सकता था अपना पायजामा ऊपर चढ़ाया और चेयर पर बैठकर उसे घुमाकर टेबल के अंदर की और कर दिया. अभी वह चेयर हिलाकर ही हटा था के किचन के डोर पर पापा खडे थे।