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Incest MAA MERI UMMID

kiya aur story likhu

  • Ha

    Votes: 21 95.5%
  • Na

    Votes: 1 4.5%

  • Total voters
    22

Raja jani

Active Member
867
1,938
139
Rebel jaat ki story hai Ma ke sath anutha Sanjog title se.bhai kam se kam CP hai bata to diya karo .dusre ka maal apne name se kyun dikha kar credit lete ho.
 
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Reactions: Gokb and Polakh555

Polakh555

𝕱𝖔𝖑𝖑𝖔𝖜 𝖞𝖔𝖚𝖗 𝖎𝖓𝖓𝖊𝖗 𝖒𝖔𝖔𝖓𝖑𝖎𝖌𝖍
1,484
3,343
144
bro itni hi h
Koi baat nehi dost...... Pehle page pe credit de do aur agar kahani adhuri he to aap likh sakte ho to likho........
 

Sandip2021

दीवाना चूत का
125
235
43
मैं यकायक जैसे नींद से जागा. मैने फुर्ती से अपना पयज़ामा और शॉर्ट्स उतार फैंके और बेड पर चढ़कर उसके पास चला गया. उसके जिस्म में जल्द से जल्द समा जाने की उस जबरदस्त कामना से मेरा लंड पत्थर की तरह कठोर हो चुका था. उसे पाने की हसरत में मेरा जिस्म बुखार की तरह तपने लगा था. मैं उस वक़्त इतना कामोत्तेजित था कि उसके साथ सहवास करने की ख्वाहिश ने मेरे दिमाग़ को कुन्द कर दिया था. मैं उसके अंदर समा जाने के सिवा और कुछ भी सोच नही पा रहा था जैसे मेरी जिंदगी इस बात पर निर्भर करती थी कि मैं कितनी तेज़ी से उसके अंदर दाखिल हो सकता हूँ.


मैं बेड पर उसकी बगल में चला गया और उसके मम्मों को मसलने लगा. उसकी बगल में जाते ही मैने उसके होंठो को अपने होंठो में भर लिया और उन्हे चूमने और चूसने लगा और फिर मैं उसके उपर चढ़ने लगा, मैने अपने होंठ उसके होंठो पर पूरी तरह चिपकाए रखे. उसके उपर चढ़ कर मैने खुद को उसकी टाँगो के बीच में व्यवस्थित किया तो मेरा लंड उसके पेट पर चुभ रहा था. उसने अपनी टाँगे थोड़ी सी खोल दी ताकि मैं उनके बीच अपने घुटने रखकर उसके उपर लेट सकूँ.


मैं उसके बदन पर लेटे लेटे आगे पीछे होने लगा, उसके मम्मो पर अपनी छाती रगड़ने लगा, मैं बिना चुंबन तोड़े अपना लंड सीधा उपरी की ओर करना चाहता था. एक बार मेरा लंड उसकी कमर पर सीधा हो गया तो मैं अपना जिस्म नीचे को खिसकाने लगा. धीरे धीरे मैं अपना जिस्म तब तक नीचे को खिसकाता रहा जब तक मैने अपना लंड उसकी चूत के छोटे छोटे बालों में फिसलता महसूस नही किया, और नीचे जहाँ उसकी चूत थी. जल्द ही मैने महसूस किया कि मेरा लंड उसकी चूत को चूम रहा है.


मैं बेसूध होता जा रहा था. मैं अपनी माँ को चोदने के लिए इतना बेताब हो चुका था कि अब बिना एक पल की भी देरी किए मैं उसके अंदर समा जाना चाहता था. मैं उसके मुख पर मुख चिपकाए, उसे चूमते, चाटते, चुस्त हुए आगे पीछे होने लगा इस कोशिश में कि मुझे उसका छेद मिल जाए. शायद उसको भी एहसास हो गया था कि मेरा इरादा क्या है, इसीलिए उसने अपने घुटने उपर को उठाए, अपनी टाँगे खोलकर अपने पेडू को उपर को मेरे लंड की ओर धकेला.


जब मैं उसे भूखो की तरह चूमे, चूसे जा रहा था, जब मेरा जिस्म इतनी उत्कंठा से उसका छेद ढूँढ रहा था, उसने अपना हाथ हमारे बीच नीचे करके मेरा लंड अपनी उंगलियों में पकड़ लिया और मुझे अपनी अपनी चूत का रास्ता दिखाया. जैसे ही मैने अपना लंड उसकी चूत के होंठो के बीच पाया, जैसे ही मैने अपने लंड के सिरे पर उसकी चूत के गीलेपान को महसूस किया, मैने अपना लंड उसकी चूत पर दबा दिया.


मैं उस समय इतना उत्तेजित हो चुका था कि कुछ भी सुन नही पा रहा था. मेरे कान गूँज रहे थे. मैं इतना कामोत्तेजित था कि उसे अपनी पूरी ताक़त से चोदना चाहता था. उसने ज़रूर मेरी अधिरता को महसूस किया होगा जैसे मुझे यकीन है उसने ज़रूर मेरी उत्तेजना की चरम सीमा को महसूस किया था. उसने मुझे अपने अंदर लेने के लिए खुद को हिल डुल कर व्यवस्थित किया. मैने महसूस किया वो मुझे अपने होंठो के बीच सही जगह दिखा रही थी. उसने मेरा लंड अपनी चूत के होंठो पर रगड़ा और फिर उसे थोड़ा उपर नीचे किया, अंत मैं मैने महसूस किया मेरे लंड की टोपी एकदम उसकी चूत के छेद के उपर थी. फिर उसने अपने नितंब उपर को और उँचे किए और उसके घुटने उसके मम्मो से सट गये. उसने अपने हाथ मेरी पीठ पर रखे और तोड़ा सा द्वब देकर मुझे घुसने का इशारा किया.


मैने घुसाया. मैं इतनी ताक़त से घुसाना चाहता था जितनी ताक़त से मैं घुसा सकता था मगर इसके उलट मैने आराम से घुसाना सुरू किया. उसके अंदर समा जाने की अपनी ज़बरदस्त इच्छा और उसमे धीरे धीरे समाने का वो फरक अविस्वसनीय था. बल्कि एक बार मैने अपने लंड को वापस पीछे को खींचा ताकि एकदम सही तरीके से डाल सकूँ, मैं माँ की चूत में पहली बार लंड घुसने को एक यादगार बना देना चाहता था.


मैने उसकी चूत को खुलते हुए महसूस किया. वो बहुत गीली थी इसलिए घुसने में कोई खास ज़ोर नही लगाना पड़ा. मैं अपने लंड को उसकी चूत में समाते महसूस कर रहा था. मैं महसूस कर रहा था किस तेरह मेरा लंड उसकी चूत में जगह बनाते आगे बढ़ रहा था. मैने अपने लंड का सिरा उसकी चूत में समाते महसूस किया. वो एकदम स्थिर थी और उसके हाथों का मेरी पीठ पर दवाब मुझे तेज़ी से अंदर घुसा देने के लिए मज़बूर कर रहा था.


मैं उसके अंदर समा चुका था. मैने अपनी पूरी जिंदगी मैं ऐसा आनंद ऐसा लुत्फ़ कभी महसूस नही किया जितना तब कर रहा था जब मेरा लंड उसकी चूत में पूरी तेरह समा चुका था. मैने उसे इतना अंदर धकेला जितना मैं धकेल सकता था और फिर मैं उसके उपर लेट गया और उसे इस बेकरारी से चूमने लगा जैसे मैं कल का सूरज नही देखने वाला था.


मैं अपनी माँ को चूमे रहा था जब मैं अपनी माँ को चोद रहा था. मैं उसके मम्मे अपनी छाती पर महसूस कर रहा था और उसकी जांघे अपने कुल्हो पर. मैं उसकी जिव्हा अपने मुख में महसूस कर रहा था और उसकी आइडियाँ अपने नितंबो पर. मैं उसके जिस्म के अंग अंग को महसूस कर रहा था, बाहर से भी और अंदर से भी. मैं उस सनसनी को बयान नही कर सकता जो मेरे लंड से मेरे दिमाग़ और मेरे पावं के बीच दौड़ रही थी.


हम बहुत बहुत देर तक ऐसे ही चूमते रहे जबके मेरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. कयि बार मैं उसे अंदर बाहर करता मगर ज़्यादातर मैं उसे उसके अंदर घुसाए बिना कुछ किए पड़ा रहा जबके मेरा मुख उसके मुख पर अपना कमाल दिखा रहा था. मैने उसके होंठ चूमे, उसके गाल चूमे, उसकी आँखे, उसकी भवें, उसका माथा, उसकी तोड़ी, उसकी गर्दन और उसके कान की लौ को चाटा और अपने मुँह में भरकर चूसा. मैने उसके मम्मे चूसने की भी कोशिश की मगर उसके गुलाबी निपल चूस्ते हुए मैं अपना लंड उसकी चूत के अंदर नही रख पा रहा था.









आधी रात के उस वक़्त जब मुझे उसकी चूत में लंड घुसाए ना जाने कितना वक़्त गुज़ार चुका था मैने ध्यान दिया हम उस व्याग्रता से चूमना बंद कर चुके थे जिस व्याग्रता से अब वो मुझे मेरा लंड उसकी चूत मैं अंदर बाहर करने के लिए उकसा रही थी. मैने धीरे धीरे अंदर बाहर करना शुरू किया, मेरी पीठ पर उसके हाथ मुझे उसकी चूत में पंप करते रहने को उकसा रहे थे. अंत-तहा उसके हाथ मुझे और भी तेज़ी से धक्के मारने को उकसाने लगे, अब मैं उसे चूम नही रहा था बस उसे चोद रहा था. मैं अपने कूल्हे आगे पीछे करते हुए, अपना लंड उसकी चूत में तेज़ी से ज़ोर लगा कर अंदर बाहर कर रहा था. उसने मेरी पीठ पर अपनी टाँगे कैंची की तरह कस कर इस बात को पक्का कर दिया कि मेरा लंड उसकी चूत के अंदर घुसा रहे और फिसल कर बाहर ना निकल जाए. उसके मम्मे मेरे धक्कों की रफ़्तार के साथ ठुमके लगा रहे थे और उसके चेहरे पर वो जबरदस्त भाव थे जिन्हे ना मैं सिर्फ़ देख सकता था बल्कि महसूस भी कर सकता था. वो हमारी कामक्रीड़ा की मधुरता को महसूस कर रही थी और उसका जिस्म बड़े अच्छे से प्रतिक्रिया मे ताल से ताल मिला कर जबाव दे रहा था.


इसी तरह प्रेमरस में भीगे उन लम्हो में एक समय ऐसा भी आया जब उसके जिस्म में तनाव आने लगा और मैं उसके जिस्म को अकड़ते हुए महसूस कर सकता था. अपने लंड के उसकी चूत में अंदर बाहर होने की प्रतिक्रिया स्वरूप मैं उसके जिस्म को अकड़ते हुए महसूस कर सकता था. असलियत में उसे चोदने के समय उसकी प्रतिक्रिया के लिए मैं तैयार नही था जब उसका बदन वास्तव में हिचकोले खाने लगा. उसने मेरी पीठ पर अपनी टाँगे और भी ज़ोर से कस दी और उपर की ओर इतने ज़ोर से धक्के मारने लगी जितने ज़ोर से मैं नीचे को नही मार पा रहा था. उसके धक्के इतने तेज़ इतने ज़ोरदार थे कि मैं आख़िरकार स्थिर हो गया जबकि वो नीचे से अपनी गान्ड उछाल उछाल कर मेरे लंड को पूरी ताक़त से अपनी चूत में पंप कर रही थी. उसकी कराह अजीबो ग़रीब थीं. वो सिसक रही थी मगर उसकी सिसकियाँ उसके गले से रुंध रुंध कर बाहर आ रही थी.


आख़िरकार मेरे खुद को स्थिर रखने के प्रयास के काफ़ी समय बाद यह हुआ. उसने कुछ समय तक बहुत ज़ोरदार धक्के लगाए. तब उसने अपनी पूरी ताक़त से खुद को उपर और मुझ पे दबा दिया और स्थिर हो गयी. फिर वो दाएँ बाएँ छटपताती हुई चीखने लगी. वो अपने होश हवास गँवा कर चीख रही थी. वो इतने ज़ोर से सखलित हो रही थी कि उसने लगभग मुझे अपने उपर से हटा ही दिया था


आख़िरकार उसका जिस्म नरम पड़ गया और मैने उसे फिर से चोदना चालू कर दिया. इस बार धीरे धीरे और एक सी रफ़्तार से. मैं अपने जिस्म में होने वाली सनसनाहट को अच्छे से महसूस कर सकता था. मैं भी अपना स्खलन नज़दीक आता महसूस कर रहा था और मैं उस चुदाई को ज़्यादा से ज़्यादा खींचना चाहता था जब वो एकदम नरम पड़ गयी थी. मुझे उसे इस तरह चोदने में ज़्यादा मज़ा आ रहा था क्योंकि अब में अपनी सनसनाहट पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकता था और उसकी चूत में अपना पूरा लंड पेलते हुए उसकी चूत से ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा ले सकता था.


मैने अपने अंडकोषों में हल्का सा करेंट दौड़ते महसूस किया और मुझे मालूम चल गया कि अब कुछ ही पल बचे हैं. मैं और भी तेज़ी से लंड चूत में पेलने लगा क्योंकि अब वो मज़ेदार सनसनाहट का एहसास बढ़ गया था. मेरी रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही थी, पूरी श्रष्टी का आनंद मैं अपने लंड के सिरे पर महसूस कर रहा था और अंत में मेरी हालत एसी थी कि मैं खुद को उसके जिस्म में समाहित कर देना चाहता था.


मैं इतने ज़ोर से स्खलित होने लगा कि मेरा जिस्म बेसूध सा हो गया. वो एक जबरदस्त स्खलन था और मैं बहुत जोश से उसके अंदर छूटने लगा. पहले मेरे लंड ने थोड़े से झटके खाएँ और फिर बहुत दबाव से मेरे वीर्य की फुहारे लंड से छूटने लगी. मुझे पक्का विश्वास है उसने भी मेरे वीर्य की चोट अपनी चूत के अंदर महसूस की होगी. एक के बाद एक वीर्य की फुहारें निकलती रही. मैं लंबे समय तक छूटता रहा. मैने खुद को पूरी ताक़त से उससे चिपटाये रखा जब तक वीर्यपतन रुक ना गया. आख़िरकार मैं उसके उपर ढह गया.


मैं थक कर चूर हो चुका था और वो मुझे अपनी बाहों में थामे हुए थी. कितना सुखदायी था जब माँ मुझे अपनी बाहों में थामे हुए थी और मेरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. आख़िरकार मेरा लंड नरम पड़ कर इतना सिकुड गया कि अब मैं उसे उसकी चूत के अंदर घुसाए नही रख सकता था. वो फिसल कर बाहर आ गया. वो मेरे लिए भी संकेत था, मैं उसके उपर से फिसल कर उसकी बगल मे लेट गया.


उसने मेरी ओर करवट ले ली और मुझे देखने लगी जबकि मैं अपनी सांसो पर काबू पाने का प्रयास कर रहा था. . आख़िरकार, जब मैं खुद पर नियंत्रण पाने में सफल हो गया, वो मुस्कराई, मेरे होंठो पर एक नरम सा चुंबन अंकित कर उसने पूछा: “तो, कैसा था? कैसा लगा तुम्हे?”


“मेरे पास शब्द नही हैं माँ कि तुम्हे बता सकूँ ये कितना अदुभूत था! कितना ज़बरदस्त! एकदम अनोखा एहसास था!”


"हूँ, सच में बहुत जबरदस्त था" वो बहुत खुश जान पड़ती थी. "मैने अपनी पूरी जिंदगी में इतना अच्छा कभी महसूस नही किया जितना अब कर रही हूँ"


वो उस मिलन हमारे मिलन के कयि मौकों में से पहला मौका था. हम ने बार बार दिल खोल कर एक दूसरे को प्यार किया. हम एक दूसरे के एहसासो को, एक दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझे और हम एक दूसरे के प्रति अपनी गहरी इच्छाओं को अपनी ख्वाहिशों को कामनाओं को भी बखूबी जान चुके थे और एक दूसरे को जता भी चुके थे. मेरे पिताजी के आने के बाद भी हम अपनी रात्रि दिनचर्या बनाए रखने में सफल रहे बल्कि हम ने इसका विस्तार कर इसे अपनी सुबह की दिनचर्या भी बना लिया जब मेरे पिताजी के ऑफीस के लिए निकलने के बाद वो मेरे कमरे में आ जाती और हम तब तक चुदाई करते जब तक मेरे कॉलेज जाने का समय ना हो जाता.
यह हक़ीक़त कि हमारा प्यार हमारा रिश्ता वर्जित है, हमारे मिलन को हमारे प्रेम संबंध को आज भी इतना आनंदमयी इतना तीब्र बना देता है जितना यह तब था जब कुछ महीनो पहले हमने इसकी शुरुआत की थी
मां औरबीटी
मैं यकायक जैसे नींद से जागा. मैने फुर्ती से अपना पयज़ामा और शॉर्ट्स उतार फैंके और बेड पर चढ़कर उसके पास चला गया. उसके जिस्म में जल्द से जल्द समा जाने की उस जबरदस्त कामना से मेरा लंड पत्थर की तरह कठोर हो चुका था. उसे पाने की हसरत में मेरा जिस्म बुखार की तरह तपने लगा था. मैं उस वक़्त इतना कामोत्तेजित था कि उसके साथ सहवास करने की ख्वाहिश ने मेरे दिमाग़ को कुन्द कर दिया था. मैं उसके अंदर समा जाने के सिवा और कुछ भी सोच नही पा रहा था जैसे मेरी जिंदगी इस बात पर निर्भर करती थी कि मैं कितनी तेज़ी से उसके अंदर दाखिल हो सकता हूँ.


मैं बेड पर उसकी बगल में चला गया और उसके मम्मों को मसलने लगा. उसकी बगल में जाते ही मैने उसके होंठो को अपने होंठो में भर लिया और उन्हे चूमने और चूसने लगा और फिर मैं उसके उपर चढ़ने लगा, मैने अपने होंठ उसके होंठो पर पूरी तरह चिपकाए रखे. उसके उपर चढ़ कर मैने खुद को उसकी टाँगो के बीच में व्यवस्थित किया तो मेरा लंड उसके पेट पर चुभ रहा था. उसने अपनी टाँगे थोड़ी सी खोल दी ताकि मैं उनके बीच अपने घुटने रखकर उसके उपर लेट सकूँ.


मैं उसके बदन पर लेटे लेटे आगे पीछे होने लगा, उसके मम्मो पर अपनी छाती रगड़ने लगा, मैं बिना चुंबन तोड़े अपना लंड सीधा उपरी की ओर करना चाहता था. एक बार मेरा लंड उसकी कमर पर सीधा हो गया तो मैं अपना जिस्म नीचे को खिसकाने लगा. धीरे धीरे मैं अपना जिस्म तब तक नीचे को खिसकाता रहा जब तक मैने अपना लंड उसकी चूत के छोटे छोटे बालों में फिसलता महसूस नही किया, और नीचे जहाँ उसकी चूत थी. जल्द ही मैने महसूस किया कि मेरा लंड उसकी चूत को चूम रहा है.


मैं बेसूध होता जा रहा था. मैं अपनी माँ को चोदने के लिए इतना बेताब हो चुका था कि अब बिना एक पल की भी देरी किए मैं उसके अंदर समा जाना चाहता था. मैं उसके मुख पर मुख चिपकाए, उसे चूमते, चाटते, चुस्त हुए आगे पीछे होने लगा इस कोशिश में कि मुझे उसका छेद मिल जाए. शायद उसको भी एहसास हो गया था कि मेरा इरादा क्या है, इसीलिए उसने अपने घुटने उपर को उठाए, अपनी टाँगे खोलकर अपने पेडू को उपर को मेरे लंड की ओर धकेला.


जब मैं उसे भूखो की तरह चूमे, चूसे जा रहा था, जब मेरा जिस्म इतनी उत्कंठा से उसका छेद ढूँढ रहा था, उसने अपना हाथ हमारे बीच नीचे करके मेरा लंड अपनी उंगलियों में पकड़ लिया और मुझे अपनी अपनी चूत का रास्ता दिखाया. जैसे ही मैने अपना लंड उसकी चूत के होंठो के बीच पाया, जैसे ही मैने अपने लंड के सिरे पर उसकी चूत के गीलेपान को महसूस किया, मैने अपना लंड उसकी चूत पर दबा दिया.


मैं उस समय इतना उत्तेजित हो चुका था कि कुछ भी सुन नही पा रहा था. मेरे कान गूँज रहे थे. मैं इतना कामोत्तेजित था कि उसे अपनी पूरी ताक़त से चोदना चाहता था. उसने ज़रूर मेरी अधिरता को महसूस किया होगा जैसे मुझे यकीन है उसने ज़रूर मेरी उत्तेजना की चरम सीमा को महसूस किया था. उसने मुझे अपने अंदर लेने के लिए खुद को हिल डुल कर व्यवस्थित किया. मैने महसूस किया वो मुझे अपने होंठो के बीच सही जगह दिखा रही थी. उसने मेरा लंड अपनी चूत के होंठो पर रगड़ा और फिर उसे थोड़ा उपर नीचे किया, अंत मैं मैने महसूस किया मेरे लंड की टोपी एकदम उसकी चूत के छेद के उपर थी. फिर उसने अपने नितंब उपर को और उँचे किए और उसके घुटने उसके मम्मो से सट गये. उसने अपने हाथ मेरी पीठ पर रखे और तोड़ा सा द्वब देकर मुझे घुसने का इशारा किया.


मैने घुसाया. मैं इतनी ताक़त से घुसाना चाहता था जितनी ताक़त से मैं घुसा सकता था मगर इसके उलट मैने आराम से घुसाना सुरू किया. उसके अंदर समा जाने की अपनी ज़बरदस्त इच्छा और उसमे धीरे धीरे समाने का वो फरक अविस्वसनीय था. बल्कि एक बार मैने अपने लंड को वापस पीछे को खींचा ताकि एकदम सही तरीके से डाल सकूँ, मैं माँ की चूत में पहली बार लंड घुसने को एक यादगार बना देना चाहता था.


मैने उसकी चूत को खुलते हुए महसूस किया. वो बहुत गीली थी इसलिए घुसने में कोई खास ज़ोर नही लगाना पड़ा. मैं अपने लंड को उसकी चूत में समाते महसूस कर रहा था. मैं महसूस कर रहा था किस तेरह मेरा लंड उसकी चूत में जगह बनाते आगे बढ़ रहा था. मैने अपने लंड का सिरा उसकी चूत में समाते महसूस किया. वो एकदम स्थिर थी और उसके हाथों का मेरी पीठ पर दवाब मुझे तेज़ी से अंदर घुसा देने के लिए मज़बूर कर रहा था.


मैं उसके अंदर समा चुका था. मैने अपनी पूरी जिंदगी मैं ऐसा आनंद ऐसा लुत्फ़ कभी महसूस नही किया जितना तब कर रहा था जब मेरा लंड उसकी चूत में पूरी तेरह समा चुका था. मैने उसे इतना अंदर धकेला जितना मैं धकेल सकता था और फिर मैं उसके उपर लेट गया और उसे इस बेकरारी से चूमने लगा जैसे मैं कल का सूरज नही देखने वाला था.


मैं अपनी माँ को चूमे रहा था जब मैं अपनी माँ को चोद रहा था. मैं उसके मम्मे अपनी छाती पर महसूस कर रहा था और उसकी जांघे अपने कुल्हो पर. मैं उसकी जिव्हा अपने मुख में महसूस कर रहा था और उसकी आइडियाँ अपने नितंबो पर. मैं उसके जिस्म के अंग अंग को महसूस कर रहा था, बाहर से भी और अंदर से भी. मैं उस सनसनी को बयान नही कर सकता जो मेरे लंड से मेरे दिमाग़ और मेरे पावं के बीच दौड़ रही थी.


हम बहुत बहुत देर तक ऐसे ही चूमते रहे जबके मेरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. कयि बार मैं उसे अंदर बाहर करता मगर ज़्यादातर मैं उसे उसके अंदर घुसाए बिना कुछ किए पड़ा रहा जबके मेरा मुख उसके मुख पर अपना कमाल दिखा रहा था. मैने उसके होंठ चूमे, उसके गाल चूमे, उसकी आँखे, उसकी भवें, उसका माथा, उसकी तोड़ी, उसकी गर्दन और उसके कान की लौ को चाटा और अपने मुँह में भरकर चूसा. मैने उसके मम्मे चूसने की भी कोशिश की मगर उसके गुलाबी निपल चूस्ते हुए मैं अपना लंड उसकी चूत के अंदर नही रख पा रहा था.









आधी रात के उस वक़्त जब मुझे उसकी चूत में लंड घुसाए ना जाने कितना वक़्त गुज़ार चुका था मैने ध्यान दिया हम उस व्याग्रता से चूमना बंद कर चुके थे जिस व्याग्रता से अब वो मुझे मेरा लंड उसकी चूत मैं अंदर बाहर करने के लिए उकसा रही थी. मैने धीरे धीरे अंदर बाहर करना शुरू किया, मेरी पीठ पर उसके हाथ मुझे उसकी चूत में पंप करते रहने को उकसा रहे थे. अंत-तहा उसके हाथ मुझे और भी तेज़ी से धक्के मारने को उकसाने लगे, अब मैं उसे चूम नही रहा था बस उसे चोद रहा था. मैं अपने कूल्हे आगे पीछे करते हुए, अपना लंड उसकी चूत में तेज़ी से ज़ोर लगा कर अंदर बाहर कर रहा था. उसने मेरी पीठ पर अपनी टाँगे कैंची की तरह कस कर इस बात को पक्का कर दिया कि मेरा लंड उसकी चूत के अंदर घुसा रहे और फिसल कर बाहर ना निकल जाए. उसके मम्मे मेरे धक्कों की रफ़्तार के साथ ठुमके लगा रहे थे और उसके चेहरे पर वो जबरदस्त भाव थे जिन्हे ना मैं सिर्फ़ देख सकता था बल्कि महसूस भी कर सकता था. वो हमारी कामक्रीड़ा की मधुरता को महसूस कर रही थी और उसका जिस्म बड़े अच्छे से प्रतिक्रिया मे ताल से ताल मिला कर जबाव दे रहा था.


इसी तरह प्रेमरस में भीगे उन लम्हो में एक समय ऐसा भी आया जब उसके जिस्म में तनाव आने लगा और मैं उसके जिस्म को अकड़ते हुए महसूस कर सकता था. अपने लंड के उसकी चूत में अंदर बाहर होने की प्रतिक्रिया स्वरूप मैं उसके जिस्म को अकड़ते हुए महसूस कर सकता था. असलियत में उसे चोदने के समय उसकी प्रतिक्रिया के लिए मैं तैयार नही था जब उसका बदन वास्तव में हिचकोले खाने लगा. उसने मेरी पीठ पर अपनी टाँगे और भी ज़ोर से कस दी और उपर की ओर इतने ज़ोर से धक्के मारने लगी जितने ज़ोर से मैं नीचे को नही मार पा रहा था. उसके धक्के इतने तेज़ इतने ज़ोरदार थे कि मैं आख़िरकार स्थिर हो गया जबकि वो नीचे से अपनी गान्ड उछाल उछाल कर मेरे लंड को पूरी ताक़त से अपनी चूत में पंप कर रही थी. उसकी कराह अजीबो ग़रीब थीं. वो सिसक रही थी मगर उसकी सिसकियाँ उसके गले से रुंध रुंध कर बाहर आ रही थी.


आख़िरकार मेरे खुद को स्थिर रखने के प्रयास के काफ़ी समय बाद यह हुआ. उसने कुछ समय तक बहुत ज़ोरदार धक्के लगाए. तब उसने अपनी पूरी ताक़त से खुद को उपर और मुझ पे दबा दिया और स्थिर हो गयी. फिर वो दाएँ बाएँ छटपताती हुई चीखने लगी. वो अपने होश हवास गँवा कर चीख रही थी. वो इतने ज़ोर से सखलित हो रही थी कि उसने लगभग मुझे अपने उपर से हटा ही दिया था


आख़िरकार उसका जिस्म नरम पड़ गया और मैने उसे फिर से चोदना चालू कर दिया. इस बार धीरे धीरे और एक सी रफ़्तार से. मैं अपने जिस्म में होने वाली सनसनाहट को अच्छे से महसूस कर सकता था. मैं भी अपना स्खलन नज़दीक आता महसूस कर रहा था और मैं उस चुदाई को ज़्यादा से ज़्यादा खींचना चाहता था जब वो एकदम नरम पड़ गयी थी. मुझे उसे इस तरह चोदने में ज़्यादा मज़ा आ रहा था क्योंकि अब में अपनी सनसनाहट पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकता था और उसकी चूत में अपना पूरा लंड पेलते हुए उसकी चूत से ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा ले सकता था.


मैने अपने अंडकोषों में हल्का सा करेंट दौड़ते महसूस किया और मुझे मालूम चल गया कि अब कुछ ही पल बचे हैं. मैं और भी तेज़ी से लंड चूत में पेलने लगा क्योंकि अब वो मज़ेदार सनसनाहट का एहसास बढ़ गया था. मेरी रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही थी, पूरी श्रष्टी का आनंद मैं अपने लंड के सिरे पर महसूस कर रहा था और अंत में मेरी हालत एसी थी कि मैं खुद को उसके जिस्म में समाहित कर देना चाहता था.


मैं इतने ज़ोर से स्खलित होने लगा कि मेरा जिस्म बेसूध सा हो गया. वो एक जबरदस्त स्खलन था और मैं बहुत जोश से उसके अंदर छूटने लगा. पहले मेरे लंड ने थोड़े से झटके खाएँ और फिर बहुत दबाव से मेरे वीर्य की फुहारे लंड से छूटने लगी. मुझे पक्का विश्वास है उसने भी मेरे वीर्य की चोट अपनी चूत के अंदर महसूस की होगी. एक के बाद एक वीर्य की फुहारें निकलती रही. मैं लंबे समय तक छूटता रहा. मैने खुद को पूरी ताक़त से उससे चिपटाये रखा जब तक वीर्यपतन रुक ना गया. आख़िरकार मैं उसके उपर ढह गया.


मैं थक कर चूर हो चुका था और वो मुझे अपनी बाहों में थामे हुए थी. कितना सुखदायी था जब माँ मुझे अपनी बाहों में थामे हुए थी और मेरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. आख़िरकार मेरा लंड नरम पड़ कर इतना सिकुड गया कि अब मैं उसे उसकी चूत के अंदर घुसाए नही रख सकता था. वो फिसल कर बाहर आ गया. वो मेरे लिए भी संकेत था, मैं उसके उपर से फिसल कर उसकी बगल मे लेट गया.


उसने मेरी ओर करवट ले ली और मुझे देखने लगी जबकि मैं अपनी सांसो पर काबू पाने का प्रयास कर रहा था. . आख़िरकार, जब मैं खुद पर नियंत्रण पाने में सफल हो गया, वो मुस्कराई, मेरे होंठो पर एक नरम सा चुंबन अंकित कर उसने पूछा: “तो, कैसा था? कैसा लगा तुम्हे?”


“मेरे पास शब्द नही हैं माँ कि तुम्हे बता सकूँ ये कितना अदुभूत था! कितना ज़बरदस्त! एकदम अनोखा एहसास था!”


"हूँ, सच में बहुत जबरदस्त था" वो बहुत खुश जान पड़ती थी. "मैने अपनी पूरी जिंदगी में इतना अच्छा कभी महसूस नही किया जितना अब कर रही हूँ"


वो उस मिलन हमारे मिलन के कयि मौकों में से पहला मौका था. हम ने बार बार दिल खोल कर एक दूसरे को प्यार किया. हम एक दूसरे के एहसासो को, एक दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझे और हम एक दूसरे के प्रति अपनी गहरी इच्छाओं को अपनी ख्वाहिशों को कामनाओं को भी बखूबी जान चुके थे और एक दूसरे को जता भी चुके थे. मेरे पिताजी के आने के बाद भी हम अपनी रात्रि दिनचर्या बनाए रखने में सफल रहे बल्कि हम ने इसका विस्तार कर इसे अपनी सुबह की दिनचर्या भी बना लिया जब मेरे पिताजी के ऑफीस के लिए निकलने के बाद वो मेरे कमरे में आ जाती और हम तब तक चुदाई करते जब तक मेरे कॉलेज जाने का समय ना हो जाता.
यह हक़ीक़त कि हमारा प्यार हमारा रिश्ता वर्जित है, हमारे मिलन को हमारे प्रेम संबंध को आज भी इतना आनंदमयी इतना तीब्र बना देता है जितना यह तब था जब कुछ महीनो पहले हमने इसकी शुरुआत की थी
मां बेटे का रिश्ता बहुत ही नाजुक और सामाजिक रुप से संभोग इत्यादि के लिए वर्जित होता है। परंतु मानव स्वभाव अनुसार इस पारिवारिक रिश्ते के लिए सभी लालयित रहते हैं और इस वर्जना को तोड़कर व्यभिचार की लालसा रखते हैं। संपूर्ण रिश्ते का एक सुखद एहसास होता है और मानसिक संतुष्टि भी मिलती है।

लेखक महोदय द्वारा अपनी कलम से किसी रिश्ते को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शित किया गया है।
 

CHOTU sing

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मां औरबीटी

मां बेटे का रिश्ता बहुत ही नाजुक और सामाजिक रुप से संभोग इत्यादि के लिए वर्जित होता है। परंतु मानव स्वभाव अनुसार इस पारिवारिक रिश्ते के लिए सभी लालयित रहते हैं और इस वर्जना को तोड़कर व्यभिचार की लालसा रखते हैं। संपूर्ण रिश्ते का एक सुखद एहसास होता है और मानसिक संतुष्टि भी मिलती है।

लेखक महोदय द्वारा अपनी कलम से किसी रिश्ते को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शित किया गया है।
bahut dhaynayvad
 

Siraj Patel

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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

As you all know, in previous week we announced USC and also opened Rules and Queries thread after some time. Before all this, chit-chat thread already opened in Hindi section.

Well, Just want to inform that it is a Short story contest, in this you can post post story under any prefix. with minimum 700 words and maximum 7000 words . That is why, i want to invite you so that you can portray your thoughts using your words into a story which whole xforum would watch. This is a great step for you and for your stories cause USC's stories are read by every reader of Xforum. You are one of the best writers of Xforum, and your story is also going very well. That is why We whole heatedly request you to write a short story For USC. We know that you do not have time to spare but even after that we also know that you are capable of doing everything and bound to no limits.

And the readers who does not want to write they can also participate for the "Best Readers Award" .. You just have to give your reviews on the Posted stories in USC

"Winning Writer's will be awarded with Cash prizes and another awards "and along with that they get a chance to sticky their thread in their section so their thread remains on the top. That is why This is a fantastic chance for you all to make a great image on the mind of all reader and stretch your reach to the mark. This is a golden chance for all of you to portrait your thoughts into words to show us here in USC. So, bring it on and show us all your ideas, show it to the world.

Entry thread will be opened on 7th February, meaning you can start submission of your stories from 7th of feb and that will be opened till 25th of feb. During this you can post your story, so it is better for you to start writing your story in the given time.

And one more thing! Story is to be posted in one post only, cause this is a short story contest that means we can only hope for short stories. So you are not permitted to post your story in many post/parts. If you have any query regarding this, you can contact any staff member.



To chat or ask any doubt on a story, Use this thread — Chit Chat Thread

To Give review on USC's stories, Use this thread — Review Thread

To Chit Chat regarding the contest, Use this thread— Rules & Queries Thread

To post your story, use this thread — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 1500 Rupees + Award + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 500 Rupees + Award + 2500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 5000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories) + 2 Months Prime Membership
Best Supporting Reader Award + 1000 Likes+ 2 Months Prime Membership
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 
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