अध्याय ४
शाना ने सिर हिलाया, उसकी नज़र माया के चाँद की तरह चमकते पेट पर टिकी हुई थी, जहाँ उसकी साड़ी का कपड़ा खिसक गया था; शाना वहाँ हाथ फेरती हुई बोली, "और तुम्हारा क्या?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ एक रेशमी फुसफुसाहट में बदल गई। "क्या तुम औरत के तौर-तरीके सीखने के लिए, भीतर के स्वर्गिक स्पर्श को महसूस करने के लिए उत्सुक हो?" माया का दिल एक पंछी की तरह पिंजरे में फड़फड़ाने लगा, उसके विचार उसके दिमाग में नाचने लगे। उसने फुसफुसाहटें सुनी थीं, और औरत और उसकी लड़की के बीच के अंतरंग अनुष्ठानों की कहानियाँ सुनी थीं। इस विचार ने उसे भयभीत और उत्साहित दोनों किया, डर और लालसा की दो परछाइयाँ उसके दिल पर मंडराने लगीं, एक ऐसा नशा जो उसने पहले कभी अनुभव नहीं किया था। वह जानती थी कि शाना के प्रस्ताव को स्वीकार करके, वह दासता, सुख और दुख, पवित्र ज्ञान के एक ऐसे जीवन के लिए प्रतिबद्ध होगी जिसे मदनगरी की दीवारों के बाहर कभी साझा नहीं किया जा सकता। और फिर भी, उसने खुद को सिर हिलाते हुए पाया, उसकी आवाज़ एक हवा का झोंका थी, जो मुश्किल से सुनाई दे रही थी। "हाँ-हाँ," वह धीरे से बोली, "मैं सीखने के लिए तैयार हूँ।
शाना की निगाहें माया की आत्मा की गहराई में उतर रही थीं, उसकी मुस्कान जैसे सूर्य की पहली किरण हो जो अँधेरे को चीर दे, उनके चारों ओर की हवा जैसे सोने की धूल से भर गई हो। "तुम दोनों पर तुम्हारी माँ की खुशबू है," उसने कहा, उसकी आवाज़ एक मधुर संगीत की तरह थी, जो माया के अंतर्मन में बज रही थी। "यह स्पष्ट है कि शांति ने तुम्हें अच्छी तरह से पाला है, और देवी होमानी ने तुम दोनों को एक विशेष भाग्य के लिए चुना है। क्या तुम एक लासी के जीवन को अपनाने, सेवा करने और सेवा पाने, सीखने और बढ़ने के लिए तैयार हो?" माया ने अपने शरीर में प्रत्याशा की एक सिहरन महसूस की, उसकी त्वचा शाना के शब्दों के भार से चुभ रही थी, जैसे किसी रहस्यमय मंत्र का स्पर्श हो। एक लासी बनने का विचार, एक वूमनी की प्यारी साथी, रोमांचकारी और भयावह दोनों थी। फिर भी, जब उसने शाना की आँखों में देखा, तो उसे पता था कि वह इस महिला पर भरोसा कर सकती है कि वह अपने नए जीवन के अज्ञात जल में उसका मार्गदर्शन करेगी। एक गहरी साँस के साथ, उसने सिर हिलाया, उसकी आवाज़ दृढ़ थी, जैसे किसी प्रतिज्ञा का ऐलान हो। "मैं तैयार हूँ," उसने कहा, उसकी आँखें शाना से कभी नहीं हटीं, जैसे दो चुम्बक एक दूसरे से बंधे हों। "मैं तुम्हारी लासी बनने के लिए तैयार हूँ।"
ये शब्द हवा में नाच रहे थे, एक नए भविष्य का वादा करते हुए, जोश और खोज से भरे। शाना ने हाथ बढ़ाया, माया की ठोड़ी को धीरे से पकड़ा, और उसके होंठों पर धीरे से चूमने के लिए झुकी। स्पर्श एक ज्वालामुखी की तरह था, जो माया के पूरे शरीर में फैल गया, उसकी त्वचा पर जैसे रेशम का स्पर्श हो रहा हो, एक मीठी सिहरन उसके रोम-रोम में दौड़ गई। जब वे अलग हुए, तो शाना की आँखें जीत जैसी किसी चीज़ से चमक रही थीं, जैसे किसी गहरे रहस्य का पता चल गया हो। "अच्छा," उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसका अंगूठा माया के निचले होंठ को छू रहा था, जैसे किसी वीणा के तार को छेड़ रहा हो। "क्योंकि तुम एक ऐसी यात्रा पर निकलने वाली हो जो तुम्हें हमेशा के लिए बदल देगी, मेरी प्यारी। और मैं, शाना, जीवन और प्रेम के पवित्र नृत्य के माध्यम से तुम्हारा मार्गदर्शक बनूँगी जो कि नारी का मार्ग है”
जैसे-जैसे शाना और माया के बीच का प्रेम का फूल खिलने लगा, रानी बाजार की भीड़ से बाहर निकली, उसकी आँखें उत्सुकता से चौड़ी हो गईं। एक अदृश्य डोर उसे अपनी बहन की ओर खींच रही थी, एक सहज इच्छा जिसने उसे रंग-बिरंगी दुकानों और सर्पीली गलियों से होते हुए आगे बढ़ाया। जैसे-जैसे वह पास आई, वह दोनों के बीच के अंतरंग आलिंगन को देखे बिना नहीं रह सकी, माया की ठोड़ी पर शाना के हाथ का रेशमी स्पर्श और उनके चुंबन की कोमलता को देखे बिना नहीं रह सकी। एक मीठी उलझन और नई भावनाओं की लहर से उसके गाल जैसे गुलाब की पंखुड़ियाँ खिल उठीं, उसे अचानक उनके रहस्य को साझा करने की लालसा महसूस हुई। माया ने रानी की उपस्थिति को महसूस करते हुए चुंबन तोड़ा और अपनी बहन की ओर मुड़ी, उसके अपने गाल भी लाल हो गए और उसकी आँखों में जैसे तारों की चमक उतर आई। "रानी," उसने साँस ली, "यह शाना है, वह महिला जिसने मुझे अपनी लासी के रूप में चुना है।" रानी की आँखें और चौड़ी हो गईं, उसका दिल जैसे उसकी छाती से बाहर निकल आएगा। उसके सामने खड़ी महिला उसकी कल्पना की दृढ़, शक्तिशाली आकृतियों से बहुत अलग थी। शाना खूबसूरत थी, उसकी त्वचा सुनहरी धूप में तपी हुई दालचीनी के रंग की थी, और उसकी आँखें गहरी, मीठी, पिघली हुई चॉकलेट की तरह थीं, जिसमें एक गर्मजोशी और दयालुता थी जो पूरी तरह से माया को घेरे हुए थी। रानी को उसके साथ एक अजीब सा रिश्ता महसूस हुआ, एक ऐसी समझ जिसे वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती थी, जैसे दो आत्माएँ एक ही धुन पर बज रही हों।
रानी के आने पर शाना ने अपनी नज़र माया की छोटी बहन की ओर घुमाई। उसकी नज़रें लड़की के चेहरे पर पड़ीं, जहाँ अनकहे सवाल और जिज्ञासा झलक रही थी। "और तुम क्या कर रही हो, रानी?" उसने कोमल स्वर में पूछा।
"क्या तुम भी मादा नगरी के तौर-तरीकों को अपनाने के लिए, दिव्य स्त्री वूमनी के साथ एक होने के लिए तैयार हो?" रानी ने गहरी साँस ली, उसके विचार तेज़ी से दौड़ रहे थे।
वह हमेशा माया को देखती थी, उसकी बड़ी बहन जिसने उसे दुनिया के तौर-तरीके और उनकी माँ के बगीचे के रहस्य सिखाए थे। अब, इतने गहरे बदलाव के कगार पर देखकर, रानी विस्मय और लालसा की भावना से भर गई, जो उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। शाना और अपनी बहन माया को एक दुसरे के आलिंगन में देख कर ही वह समँझ गई थी कि माजरा क्या है...
वह आगे बढ़ी, उसकी आवाज़ थोड़ी काँप रही थी। "हाँ," उसने हकलाते हुए कहा, "मैं तैयार हूँ।" जैसे ही शाना रानी के करीब पहुँची, हवा में उत्सुकता बढ़ गई। उसका हाथ लड़की के गाल को सहलाने के लिए आगे बढ़ा। "तुम दोनों में तुम्हारी माँ की खूबसूरती ज़िंदा है," उसने कहा, उसकी आवाज़ रानी की नसों के लिए एक सुखदायक मरहम की तरह थी। "लेकिन सिर्फ़ तुम्हारी खूबसूरती ही तुम्हें यहाँ नहीं खींच लाई है। तुम्हारी आत्मा, सीखने की इच्छा और प्यार करने की तुम्हारी क्षमता ही तुम दोनों को बेहतरीन लड़कियाँ बनाएगी। लेकिन अभी रानी, मैं तुम्हें थोड़ा बड़ी होने दूँगी," उसने झुककर रानी के कान में कुछ फुसफुसाया, जिससे वह और भी ज़्यादा शरमा गई। "लेकिन डरो मत, मेरी प्यारी, क्योंकि तुम्हारा समय जल्द ही आएगा।"
शाना की निगाहें शरारत से चमक उठीं जब वह माया की ओर मुड़ी। "जाने से पहले," उसने धीमी, लगभग फुसफुसाती हुई, कामुक आवाज़ में कहा, जैसे कोई गहरा रहस्य बता रही हो, "एक बात है, एक छोटी सी बात जो मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी माँ तक पहुँचा दो।"
धीरे से, मानो कोई कीमती चीज़ निकाल रही हो, उसने अपनी रेशमी साड़ी की परतों में हाथ डाला और एक मुड़ा हुआ चर्मपत्र निकाला। बड़ी कोमलता से, लगभग स्पर्श करते हुए, उसने उसे माया के ब्लाउज में सरका दिया, चर्मपत्र का किनारा उसके बाएँ स्तन की हल्की सी वक्रता को छू गया। "यह सिर्फ़ शांति के लिए है, तुम्हारी माँ के लिए," उसने हौले से कहा, उसकी आँखों में एक रहस्यमयी चमक थी। "उसे पता चल जाएगा...उसे समझ आ जाएगा।"
माया ने धीरे से सिर हिलाया, चर्मपत्र की हल्की सी छुअन अपनी त्वचा पर महसूस की। उस छोटे से कागज़ के टुकड़े में छिपे रहस्य ने उसके दिल की धड़कन और बढ़ा दी, जैसे कोई अनकही कहानी खुलने को बेताब हो।
फिर शाना का ध्यान रानी की ओर गया, उसकी नज़र उस लड़की के थोड़े अस्त-व्यस्त ब्लाउज पर ठहर गई। "ओह, रानी," उसने कहा, उसकी आवाज़ में थोड़ी सी चिंता, थोड़ी सी डाँट और ढेर सारा स्नेह था, "तुम्हें अपने कपड़ों का थोड़ा और ध्यान रखना चाहिए, मेरी प्यारी। एक युवती को हमेशा गरिमा और शालीनता से रहना चाहिए, खासकर जब आस-पास कोई वूमनी हों।" वह रानी के क़रीब आई, उसकी उँगलियाँ ब्लाउज के ढीले कपड़े को छू रही थीं। "यह क्या है, प्रिय? तुम्हारा एक बटन कैसे टूट गया?" उसने चिंता से पूछा, मानो कोई गहरी बात हो। "क्या इसके पीछे कोई कहानी है, बताओगी?"
रानी ने अपने ब्लाउज को देखा और शर्म से लाल हो गई। माया को खोजने की जल्दी में उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रहा। "मुझे माफ़ करना, वोमनी," वह हकलाते हुए बोली, उसकी आवाज़ धीमी थी। "यह... बाज़ार में कहीं खुल गया होगा।"
शाना के चेहरे पर एक कोमल मुस्कान आई, और उसने रानी के कान के पास से एक लट को प्यार से हटाया। "कोई बात नहीं, मेरी प्यारी," उसने कहा, उसकी आवाज़ में ममता और समझ थी। "लेकिन ध्यान रखना, मादा नगरी में हम अपनी गरिमा का ख़याल रखते हैं, और एक-दूसरे का भी।" वह थोड़ा झुकी, उसकी आवाज़ धीमी और अंतरंग थी, लगभग एक रहस्य की तरह। "शायद यह एक संकेत है कि तुम भी अब एक नई शुरुआत के लिए तैयार हो, अपनी बहनों के साथ।"
फिर शाना माया की ओर मुड़ी, उसकी आँखों में स्नेह था। "जब तुम अपनी माँ के साथ अकेली हो," उसने धीरे से कहा, "उसे यह चर्मपत्र दे देना। वह समझ जाएगी।" चर्मपत्र एक गुप्त संदेश की तरह लगा, एक पारिवारिक रहस्य। माया ने सिर हिलाया, उस पर निहित विश्वास को महसूस करते हुए।
मादा नगरी की चहल-पहल भरी गलियों में चलते हुए, रानी की नज़रें शाना पर टिकी रहीं। वह शाना और माया के बीच के घनिष्ठ संबंध को देख रही थी, और सोच रही थी कि क्या उसका भी इस समुदाय में कोई स्थान है। "मेरा क्या होगा?" उसने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में जिज्ञासा और थोड़ी सी अनिश्चितता थी। "क्या मैं भी... तुम्हारी तरह बनूँगी?"
क्रमश: