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अपडेट 2

राजा राज पाल पत्र को पढ़ता है और फिर सोचता है कि वह करे तो आखिरी क्या करे तभी रानी सृष्टि आती है और राजा को चिन्तित देख उनकी चिंता का कारण जानने की कोशिश करती है।


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रानी सृष्टि: महाराज क्या हुआ? आप चिंतित क्यों हैं?

महाराज: बात ये है कि राजा रतन ने हमें उनके युद्ध में उनका साथ देने के लिए अमनत्रित किया है!

रानी सृष्टि: तो आपने क्या सोचा है?



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महाराज: रानी।तुम तो इस बात को जानती हो के घटकराष्ट्र हमेशा से हिंसा का खिलाफ रहा है हिंसा के उसके साथ नहीं । पिता जी ने भी अपने जीवन में कभी दुसरो के राज्य को उजाड़ कर अपने राज्य को बढ़ाने का नहीं सोचा...

रानी सृष्टि: हमे ये सब ज्ञात है महाराज लेकिन आज कल भारत पर विदेशी ताकते हावी होती जा रही है । हम तो इस जंगल या प्रकृति से घिरे हैं ये ही हमारी रक्षा करते हैं जिसकी वजह से आज तक यहाँ किसी ने आक्रमण नहीं किया है

महाराज: महारानी! आप कहना क्या चाहती हो?


रानी सृष्टि: महाराज यदी भविष्य में कहीं कुछ अनर्थ हो जाए या हम पर आक्रमण हो तो हम हमारी छोटी-सी सेना से उनका मुकाबला नहीं कर सकते ऐसे में हमारे पड़ोस में राज्य ही हमारी मदद कर सकते हैं



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महाराज रानी की चतुराई से प्रसन्न हुआ या कहा "आपकी राय ठीक है रानी में इस युद्ध में राजा रतन का साथ जरूर दूंगा और आपके सुझाव के लिए आपको धन्यवाद करता हूँ।"

राजा राज पाल इस तरह अपने सम्बंध अच्छे बनाये रखने के लिए अपनी छोटी-सी सेना को ले कर पर्शिया की सीमा पर राजा रतन के साथ युद्ध करने चला गया। कुछ महिनो के युद्ध के बाद राजा रतन सिंह युद्ध जीत गया और युद्ध में अपनी कला का जौहर दिखा के राजा राज पाल सिंह ने अपने नाम का लोहा मनवाया। पर्सिया के लोगों में राजा राज पाल या राजा रतन का खौफ बैठा गया।

राजा रतन: राजा राज पाल हम तम्हारी सैन्य कला से अति प्रभावित हुए हैं इसका पुरस्कार हम आपको अवश्य देंगे!

राजा राज पाल: धन्यवाद राजा रतन जी ये तो आपका बड़पन्न है नहीं तो मेरे गुण आपके सामने कुछ भी नहीं हैं।




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राजा रतन: हमें तुम कुछ देना चाहते हैं वादा करो तम हमारे पुरूस्कार को स्वीकार करोगे!

राज पाल: जी हम वादा करते हैं

तब राजा रतन ताली बजाता है या एक बुद्ध व्यक्ति के साथ एक बालिका आती है और वह वृद्ध व्यक्ति राजा राज पाल के चरणों की जोड़ी पकड़ लेता है और धन्यवाद की झड़ी झरी लगा देता है। तब राजा रतन राजा राज पाल से कहता है।

राजा रतन: राजा राज पाल जी! ये वही लोग हैं जिनकी जान बचने के लिए हमें यहाँ आना पड़ा और आपको ये जान कर खुशी होगी ये बूढ़ा व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि पर्सिया के पूर्व राजा है और ये उनकी पुत्री है देवरानी और परसिआ के राजा अपनी जान बचाने की खुशी में अपनी बेटी देवरानी का हाथ तुम्हारे हाथ में देना चाहते हैं और हम भी पुरस्कार के रूप में आपको इसका हाथ आपको देते है।

राजा राज पाल: पर... (अपने मन में: ये कैसे हो सकता है ये घटकराष्ट्र के नियमो का उल्लंघन होगा। में दूसरा विवाह बिलकुल नहीं कर सकता और-और तो और ये देवरानी मेरे से आधे आयु की लग रही है बिलकुल किसी किशोरी बालिका जैसी है)




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राजा रतन: पर वर कुछ नहीं...महाराज आपने वादा किया था

राजा राज पाल ने सबके सामने वादा किया था अब मुकरना उसको शोभा नहीं देता और वह देवरानी से विवाह के लिए हाँ कर देता है । उसी दिन विवाह का कार्यकर्म रखा जाता है और विवाह का कार्यक्रम संपन्न होता है। फिर सुहाग रात के लिए राजा राज पाल अपने कक्ष में जाता है और बिस्तर पर अपनी जूती निकल कर बैठता है और फिर जैसे ही सर उठा कर देखता है तो सामने का दृश्य देख के उसकी आंखों फटी कि फटी रह जाती है

राजकुमारी देवरानी एक सफ़ेद रंग के लिबास में थी जैसा उसका वस्त्र था वैसा ही उसका बदन बिलकुल संगमर-सा था और तारे की तरह चमक रहा था । वह हाथ में दूध का गिलास लिए हुए राजा की और आ रही थी जैसे वह उसके पास पहुची तो राजा राज पल तुरंत ही खड़ा हो गया।

राजा राज पाल का कद 5.7 था फिर-फिर भी उसका इसका सर देवरानी के वक्ष तक ही आ रहा था, देवरानी की लम्बाई देख कर राजा अचंभित था कि इतनी कम उमर में इतने लम्बी राजकुमारी को देख राजा राज पाल चकित था । राजा उसके तीखे नाक, गहरी आँखों, फूल से लाल होठ, गोल सुडोल वक्ष, पतली कमर और सुंदरता देख कर जैसे होश खो गया था । तभी राजकुमारी उसे दूध का गिलास देते हुए बोली

देवरानी: लिजिये न!

राजपाल: धन्यवाद और उससे दूध ले कर पीता है।



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देवरानी जैसे वह ग्लास वापिस ले कर पलट कर रखती है तो राजा रानी के पतली कमर के नीचे शानदार गोल गुब्बारो के जैसे अलग-अलग दिशा में कुद रहे दोनों चूतड़ों को देख दंग रह जाता है। देवरानी ग्लास रख कर मुड़ी तभी राजा पीछे से जा कर उसे दबोच लेता है और राजा रानी देवरानी के पतले छरहरे लम्बे और दूध से गोरे बदन को अपने पास पाकर मदहोश-सा हो जाता है । उन्होंने अपने घटकरास्ट्र में आज से पहले कभी ऐसा दूध-सा गोरा बदन पहले नहीं देखा था । रानी देवरानी की जुल्फो की खुश्बू महाराज को पागल बना रही थी । वह धीरे से उसके वस्त्रो के नाडे को खोल कर अलग कर देता है और अब देवरानी उनके सामने केवल-केवल एक छोटे से वस्त्र में थी जो की रानी के उन्नत गोल स्तन और उसकी सुंदर योनि को मुश्किल से छुपा रहा था।



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देवरानी की जवानी अभी-अभी शुरू हुई थी वह इस कामक्रीड़ा का अपनी आखो को बंद कर आनंद ले रही थी। तब राजा राजपाल ने अपने दोनों हाथो को आगे बढ़ा कर उसके कठोर वक्षो को दबोच लिया और उन्हें जोर से दबा दिया जिससे देवरानी की सिस्की निकल गयी। फिर राजा देवरानी का हाथ पकड़े उसे बिस्तर की ओर ले गया और फिर उसे लिटा देता है और उसके बदन से बचे खुचे वस्त्र निकल देता है । रानी देवरानी को निर्वस्त्र करने के बाद राजा ने खुद भी अपने वस्त्र निकाल दिए. फिर वह देवरानी के दोनों वक्षो को दबा-दबा के बारी-बारी से चूसने लगा ।

अब देवरानी सिसकने लगती है और वह उत्तेजित होने लगती है जिससे उसकी योनि पानी छोड़ने लगती है । राजा अपना लिंग देवरानी की योनि पर लगाता है और उसके एक दो बार योनि से रगड़ता है फिर योनि के द्वार से सटा कर धक्का लगता है जैसे ही लिंग अंदर जाता है रानी जोर से चिल्लाती है और उसका शील भंग हो जाता है और उससे खून बहने लगता है । राजा गिन कर 5 बार लिंग अंदर बाहर करता है और रुक जाता है।




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रानी को अब दर्द नहीं बल्कि मजा आना शुरू हो जाता है । वह सोचती है कितना मजा आ रहा था और चाहती थी की राजा का लिंग और अंदर जाए इसलिए अपने हाथ से राजा के कमर के पकडकर धक्का देती है पर राजा के छोटे लंड ने जवाब दे दिया था।

रानी देवरानी जो की के उन्चे और लम्बे कद-कद की थी । उसकी लम्बाई कम से कम 5.10 की थी और उसकी योनि की पूरी गहरायी को राजा राजपाल का नन्हा-सा लिंग भेद नहीं पाता और उसका 4 इंच का लिंग चरम सीमा पर ही पहुच पाया था । राजा अपनी बढ़ती हुई उम्र के कारण इस नवयुवती रानी का ज्यादा देर तक साथ नहीं दे पाया और उसने रानी के योनी में अपना पानी छोड़ दिया जिसके कारण रानी देवरानी प्यासी रह गयी। फिर देवरानी अपने आखो में आंसू लिए सो गयी।
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 3

उसके बाद राजा राजपाल अपनी आयी रानी देवरानी को ले कर अपने राज्य घाटकराष्ट्र आ जाता है जहाँ उसे समाज या घरवालों के ताने सहने पड़ते हैं क्योंकि उसने नियम का उल्लंघन कर दुसरा विवाह कर लिया था । उसकी पहली पत्नी सृष्टि उससे वचन लेती है कि वह पहले सृष्टि को प्रथमिकता देगा उसके बाद दूसरी पत्नी देवरानी को।

सृष्टि ने साफ कर दिया था और इसी शर्त पर उसकी दूसरी शादी स्वीकार की थी की उसके आज्ञा के बिना राजा देवरानी के पास ना जाए । मजबूरन वह उसकी बात मान लेता है । इधर देवरानी को इस विषय पर पूरी खबर उसकी दासी कमला देती है और देवरानी ओर जैसे पहाड़ टूट पड़ता है।


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उधर राजा रतन अपने राज्य को बढ़ाने में लग जाता है और युद्ध में न चाहते हुए भी राजा राज पाल को जाना पड़ता था । इसलिए राजा राज पाल का बहुत कम समय अपने राज्य में बीतेता था, दीन रात युद्ध करने के वजह से उनको शराब की लत लग गई और उन्हें कभी-कभी ही अपने महल में रहने का सौभाग्य मिलता और तब रानी सृष्टि राजा-राजा राज पाल को नहीं छोड़ती थी और उनके साथ राज विलास और भोग में लिप्त रहती थी । वह बहुत हम समय हु राज राजपाट को अकेला छोड़ती थी । इस कारण रानी देवरानी राजा से मिलन के लिए तड़पती हुई जीवन यापन करने लगी।

अपनी पहली पत्नी के भनक लगे बिना चोरी छिपे राजा राज पाल अपनी नयी कमसिन रानी देवरानी से 6 महिनों में मुश्किल से एक या दो बार छिप-छिप कर मिलाप कर लेते थे। इस विवाह के समय हुई सुहागरात के 9 महीने बाद पारस की राजकुमारी या घाटकराष्ट्र की रानी, रानी देवरानी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया बलदेव सिंह।




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18 साल बाद महल में आज शुद्ध घी के दिए जलाये गए । हर तरफ खुशी का माहौल था। हो भी क्यू ना आज राजकुमार बलदेव सिंह का 18वा जन्मदिन जो था या आज वहअपने पिछले पांच वर्ष शिक्षा ग्रहण कर अपने गुरु के आश्रम से वापिस महल आया था।

अब राजा राज पाल की आयु लगभग 58 वर्ष हो गई थी ।राजा राज पाल की पहली पत्नी सृष्टि के आयु अब लगभग 48 वर्ष की थी पर लम्बाई कम होने के कारण वह कम आयु की लगती थी। अभी भी उनका बदन ढला नहीं था पर जहाँ सब बूढ़े हो रहे वही देवरानी दिन बा दिन जवान होते जा रही थी, देवरानी अब लगभाग 35 वर्ष की हो गयी थी और 5.10 ही लम्बाई वाली पतली छर्हरी राजकुमारी ने अब एक लम्बे कद की स्त्री का रूप प्राप्त कर लिया था, देविका के वक्ष संभाले नहीं संभालते थे जो 44 DD साइज के दो बड़े गुब्बारे की तरह चलने पर हिलते थे ।

पतली कमर उन पर दो बड़े-बड़े दृढ स्तन और दो मटके की तरह गोल नितम्बो के साथ लम्बे कद की रानी देवरानी और उसके ऊपर से दूध जैसा रंग जिसे देख सिपाही से ले कर पंडित तक आहे भरते थे । फिर आज देवरानी ने गहरे लाल रंग का ब्लाउज और साड़ी पहनी थी । उनका ब्लाउज इतना टाइट था कि जब भी देवीरानी चलती थी उनके स्तन दो पानी से भरे गुब्बारे किसी शराबी की तरह लड़खड़ाते हुए हिलने लगते थे ।



देवरानी पूजा की थाली तैयार कर रही थी तब उसकी दासी कमला आयी और उसे कहने लगी "महारानी युवराज आ गए!"

इतना सुनते ही देवरानी खुशी के मारे भर गयी और थाली ले कर दरवाज़े पर चली गयी और उनकी नज़र सीधे युवराज पर पड़ी जो अपने पिता राजा राजपाल से गले मिल रहा था।

देवरानी अपने युवा पुत्र को काई वर्षो बाद देख रही थी । उसे देख उनकी आँखे एक दम पत्थर कि तरह जम गयी है और मन में बोल रही थी " कितना बड़ा हो गया मेरा युवराज मेने इसका नाम बलदेव सही रखा था कितना ऊंचा लंबा और चौड़ा हो गया है। फिर भी कितना हसमुख है। अरे इसने तो मूंछे भी रख ली है, (तभी बलदेव अपनी मूंछो पर ताव देता है) देखो कैसे मूंछो को ताव दे रहा है जैसे कहीं का महाराजा हो। इसे देख कर कौन कहेगा के ये केवल 18 वर्ष का है, दिखने में 30 वर्ष का पूरा पुरुष राजा लग रहा है।




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"ऐसे अपने पुत्र को देखते देख उनकी आँखों में पानी आ जाता है । बलदेव भी अपनी माँ को देखता है और बलदेव का भी अपनी माँ की प्रति स्नेह छलक जाता है और अपने पास खड़े अपने पिता या बड़ी माँ की तुलना अपनी माँ से करता है" मेरी माँ तो इन दोनों के सामने दोनों की बेटी लग रही है, ऊपर उसके तीखे नयन नक्श, चमकटी हुई त्वचा, उसके आला लम्बा पतला गठीला बदन, लम्बी कद काठी, मेरी माँ को देख कर कोई ये नहीं कह सकता कि ये मेरी माँ है, कोई अनजान लोग देखें तो सभी सोचेंगे मेरी छोटी बहन है आज भी इनकी आयु 25 से ज़्यादा नहीं लगती।"

तभी राजा राज पाल दोनों को टोकते हुए कहते हैं-

राजा राज पाल: भाग्यवान दोनों माँ या पुत्र ने एक दूसरे को देख लिया हो तो आगे की कारवाई की जाए! बलदेव अपनी माँ के चरण छुओ।

बलदेव तूरंत अपने माँ के पास जा कर उनके सुंदर पैरो को स्पर्श कर देवरानी से आशीर्वाद प्राप्त करता है ।

पूजा कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा, पूजा खत्म होने के बाद सभी उठ कर जाने लगे । देवरानी और कमला आस पास मिठाई बटवाने लगी । जब बलदेव उठ कर अपने कक्ष की ओर चल देता है, तब उसे कुछ बातें करने की आवाज सुनती देती है और वह उस तरफ चल देता है और अंत में अपनी बड़ी माँ सृष्टि के कक्ष के पास रुक जाता है।

सृष्टि: आज तो ये बलदेव भी अपनी शिक्षा पुरी कर के लौट आया है ।

राधा: हाँ महारानी मेने देखा आज देवरानी बहुत खुश लग रही थी, कहीं वह आप से बदला लेने का कोई क्षडयंत्र तो नहीं बना रही!

रानी सृष्टि: राधा हो सकता है तम सही हो क्योंकि मेने उससे उसके पति का सुख छीना है और लगता है वह बुढ़िया इसका बदला लेने के लिए जरूर मेरे लिए खड़ा खोदेगी।

राधा: तो हमें क्या करना चाहिए महारानी।



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सृष्टि: सही समय का इंतजार, मैं बताउंगी के आपको क्या करना है राधा अभी तुम जाओ महाराज आते ही होंगे।

सब काम खत्म करने के बाद बलदेव को ले कर राजा राजपाल अपनी माँ यानी के महारानी जीविका जो अपनी जिंदगी के आखिरी दिन जी रही थी उनके कमरे में जाता है । बलदेव अपनी दादी जो कि बिस्तर पर लेटी थी और उनकी टांगो ने काम करना बंद कर दिया था इसलिए वह चल नहीं सकती थी परन्तु उनकी हाथ ठीक थे और थोड़ी मुश्किल से बोल भी लेती थी, बलदेव दादी को देख खुश होता है और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेता है फिर उनकी बगल में बैठ जाता है।

दादी: बेटा बलदेव!

बलदेव: जी दादी!



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दादी: मझे माफ़ कर दे में तेरा स्वागत करने द्वार पर ना आ सकी, अब में चल नहीं सकती

बलदेव: आप इस राज्य की महारानी हैऔर हम आपकी संतान हैं आपकी आज्ञा पर हम हिमालय भी चढ़ कर आपसे मिलने आ स्कते है।

दादी: बस बेटा, मझे तुमसे यही उम्मेद थी, तुम ही घटकराष्ट्र के भविष्य हो, भगवान तुम्हे एक अच्छा और महान राजा बनाएँ और तुम इतिहास बनाओ।

दादी जीविका राजमाता बलदेव के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देती हैं। फिर बलदेव और राजा राज पल बाहर आते हैं।

राजपाल: पुत्र अब कल सुबह मिलते हैं अब आप अपने कक्ष में जा कर आराम करो।

बलदेव फिर एक बार राजपाल के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेता है तो राजपाल अपने पुत्र को गले लगा लेता है और कहता है-

राजपाल: वाह पुत्र आप कितना लंबा हो गए हो देखते देखते!

बलदेव: कहा पिता जी, बस 6.3 फिट ही हू!

राजपाल: तेरे दादाजी की कद काठी भी तेरे जितनी नहीं थी तू अपने माँ पर गया है और फिर दोनों हसने लगते हैं ।

बलदेव अपनी प्रशंसा सुन कर प्रसन्न हो कर अपने एक उन्गली और अंगूठे से अपनी मूंछो पर ताव देता है।

राजपाल: बेटा अपनी माता को भोजन खिला कर सोना! तम्हे तो पता है वह तुम्हारे बिना नहीं खाती।

बलदेव: जी पिता जी!

फिर बलदेव अपनी माँ के कक्ष की ओर चल देता है



कहानी जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 4


राजकुमार बलदेव सिंह मन में कईं भाव लिए हुए अपने मां कक्षा की तरफ बढ़ा रहा था, उसे बड़ी मां को अपने मां के खिलफ बात सुन कर अजीब लगा था और परेशान हो गया था . उसे समझ नहीं आरहै था के को वो इन हालात में क्या करे। जब वो अपनी मान के काश में पहुँचता है तो देखता है रानी देवरानी अपने पुत्र के लिए 56 भोग सजा रही है. वो अपने बेटों का आभास पा कर कहती है -

देवरानी: आ गए पुत्र ..बड़ी देर कर दी आने में!


राजकुमार बलदेव : माता श्री आप थकती नहीं हो ?

देवरानी : ऐसा क्यू पूछ रहा है पुत्र ?

राजकुमार बलदेव: क्यूकी मझे ज्ञात है आप सुबह से काम कर रही हो, आप विश्राम क्यू नहीं करती ? (इसमें पुत्र का माँ के लिए प्रेम झलक रहा था .)

देवरानी: बलदेव..जिसका बेटा इतने वर्षो बाद वापिस आया है, वो माँ कैसे थक सकती है?



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राजकुमार बलदेव. दसिया भी तो है ना माँ ! और लोग भी है घर में..बड़ी मां भी है...!

देवरानी : वो महारानी है (मन में: ये क्या निकल गया मुह से .!)

राजकुमार बलदेव जो पहले से ही सब कुछ सुन के ही आ रहा था उसका माँ की बात सुन दिमाग खराब हो गया और उसने कहा
राजकुमार बलदेव : मां, अगर बड़ी मां महारानी है तो क्या आप दासी हो?

देवरानी; बात को संभलते हुए बोली आर्य! नहीं..बेटा, मेरा मतलब था कि नियम अनुसार बड़ी पत्नी को ही महारानी की उपाधी मिलती है और ऐसा हर राज्य में होता है। (मन में: मझे महारानी क्या कभी रानी भी नहीं समझ गया.)

राजकुमार बलदेव को भी रानी देवरानी(माँ) का चेहरा पढ़ने में देर नहीं लगी और मन में बोला (कोई बात नहीं माँ अब तक कौन क्या था और क्या हुआ मझे नहीं पता पर अब महारानी सिर्फ आप ही रहोगी , आपके पास वो सब कुछ होगा जो एक महारानी के पास होना चाहिए . )यही सोच ही रहा था की रानी देवरानी ने कहा ।
रानी देवरानी: पुत्र अब भोजन कर लो .

उसके बाद दोनों बैठ के 56 भोग पकवान का आनंद लेने लगे



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राजकुमार बलदेव: मां आज ऐसा लग रहा है वर्षो बाद भोजन किया हूं, क्या स्वादिष्ट भोजन है

देवरानी: सभी मेरे कुंवर कन्हैया के लिए ख़ास तौर पर बनवाया है ..पेट भर के खाना है आपको ..अब तुम्हे कहीं नहीं जाने दूंगी .

राजकुमार बलदेव: पर मां मेरे कुछ मित्रगण तो आगे पढ़ाई के लिए विदेश जाएंगे वहा महा विद्यालय है.

देवरानी: हर विद्या तो आ ही गई है तुमको अब और क्या सीखना है.

राजकुमार बलदेव: मां लोग फ्रांस जाते हैं या इंग्लैंड जाते हैं, सुना है वह. विज्ञान और नए आविष्कार करने की शिक्षा प्रदान की जाती है, और वो इसी कारण हम से कई 100 साल आगे है.

देवरानी : वो कैसे..

राजकुमार बलदेव: जैसे वहा पर चित्रकार कुछ यंत्रो से चित्र निकालते हैं, बिना घोड़े के सवारी की जाती है. वाहन चलते हैं पानी में बड़े बड़े नाव जो कोसो दूर तक हजारो लोगो के ले जा स्कते है वो ऐसे यंत्र बना रहे है .

देवरानी; (अचंभित हो कर) मैंने तो पारस तक कि दुनिया ही देखि है पुत्र ..क्या ऐसी ऐसी दुनिया भी है उस जगत में ?
बलदेव : हां उनके वेश भूसा भी अलग है बोली भी हम से अलग है . जिस दिन में महाराजा बन जाऊंगा उस दिन आपको अवश्य इस देशो की यात्रा करवाऊंगा .

देवरानी: भोलू...बिना महारानी के महाराजा बन जाओगे.

बलदेव : हा! ये तो मैंने सोचा ही नहीं




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देवरानी : .बुद्धू कही के

इसी बीच दोनो खाना खा लेते हैं या बलदेव भी थका था तो शुभ रात्रि कह के अपने कक्ष में चला जाता है और सो जाता है इधर देवरानी भी थकी हुई थी और वो भी सो जाती है।

(महल)
अगली सुबह सभी उठ जाते हैं । बलदेव सबसे पहले उठा था और वो महल मुआयना करता है। महल का ख़ास दरबार पहले से सुंदर और सजा हुआ दिख रहा था । एक बड़ा राजसिंहासन था. जिसके साथ एक छोटा आसान लगाया गया था जिसके दोनों तरफ 5, 5 आसन थे जो मंत्रियों के लिए थे . दरबार के एक तरफ सैनिको के अभ्यास के लिए जगह थी और अस्त्रों और शस्त्र के कक्ष थे और यात्रा अतिथि गृह, रसोई घर जहां पर भंडारा बनता था . राज्सिंघासन के पीछे से दरवाजा राज महल की और खुल रहगा था जहां पर अनेक सैनिक दिन रात पहरेदारी देते थे।

राजकुमार बलदेव के लिए राजा राजपाल ने महल में ऊपर एक मंज़िल बनवायी थी निचे खुद उनका स्वयं का कक्षा था और साथ ही महारानी और रानी का कक्ष था राजा राज पाल ने अपनी माँ को भी निचे हे कक्ष दिया था ,प्रथम मंजिल पर सिर्फ राजकुमार बलदेव का कक्ष था और ऊपर सीधे चढ़ते ही सामने एक विशाल दरवाजा था जो एक आलिशान कक्ष की ओर खुलता था . उस आलीशान कक्ष के बीच में पलंग जो किसी भी साधारण पलंग से 3 गुना ज्यादा बड़ा था, बिस्तर भी ऐसा नरम की अगर बच्चा भी बैठे तो धस जाए। पलंग चारो रतफ कीमती मोतीयो से सजा हुआ था, पलंग के आस पास आराम कुर्सी और मेज रखी हुई थी , मेंज परकुछ अलग किस्म के जग रखे हुए थे . वही एक कोने में स्नान घर और शौचालय था जो राजा राजपाल ने पारसियो के राजा के द्वारा भेजे गए कारीगरों से बनवाया था . कक्ष में कालीन भी पारस से ही मांगवाया था जो राजकुमार के पूरे महल को अलग रूप देते थे .)

राजकुमार बलदेव अपना महल में आकर अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ फिर उसे कहीं कोई ना दिखने पर वो महल के मुख्य द्वार से बाहर आया और एक रक्षक से पूछा सब कहा है?



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सैनिक : युवराज वो आज सभा चल रही है

राजकुमार बलदेव : अच्छा ठीक है. तभी वहां सेनापति भी आ गया और प्रणाम कर बोला

राजकुमार सेनापति: युवराज! महाराज की आज्ञा है, आप भी तैयार हो कर सभा में आ जाए.

राजकुमार बलदेव : हां हम आते हैं.

राजकुमार बलदेव अपने कक्ष में जाकर अपने राजसी वस्त्र पहनता है और फिर उसपर मोतियो के हार पहनने के बाद दरबार की ओर चल देता है।

दरबार पहुचते ही देखता है के बारी बारी से सब लोग अपनी बात कह रहे हैं और मंत्री सभी की राय को लिख रहा था। जैसे ही वहां किसी की नजर युवराज पर पड़ती है सभी युवराज की जयकार करने लगते हैं। युवराज बलदेव देखता है के एक बड़े सिंघासन पर उसके पिता और उसके साथ के दूसरे बड़े सिघासन पर उसके बड़ी मां बैठी हैऔर छोटे सिंघासन पर उसकी मां बैठी है . जिसको देख कर बलदेव को अजीब लगता है परन्तु वो छोटे आसान पर अपनी मां बगल में जा कर बैठ जाता है. घंटो तक सभा चलती है राज्य के हर विषय पर सभी सभासद अपने तर्क रखते है और सबकी दुविधा परेशानीया सुनी जाती है। तभी महारानी सृष्टि उठ कर दरबार से जाने लगती है तो सब दरबारी उठ खड़े होते हैं और जय जय करने लगते हैं। ),, देवरानी जन बूझ कर नहीं उठती जिस से ये बात बलदेव से छुपाई जा सके पर अचानक महाराजा राजपाल कहते है-

महाराज राजपाल; देवरानी। आप महल में जाए विश्राम करे!

देवरानी: (ना चाहते हुए भी) जी महाराज !

देवरानी उठ कर जाने लगती है पर इस बार कोई भी सभासद देवरानी की जय जय कर नहीं करता बस एक महल का पहरेदार कहता है "रानी देवरानी पधार रही है"




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राजकुमार बलदेव: (मन में- यही पहरेदार बड़ी मां को महारानी कह के संबोधित करता है) आखिर ये भेद भाव क्यू? ना तो मेरी माँ को पिता जी के साथ सिंहासन न जय कार ना ही कोई उनको महारानी कहता हैं।

महाराज राजपाल :पुत्र!

राजकुमार बलदेव : आज्ञा पिता श्री!

महाराज राजपाल : किस सोच में डूबे हो?

राजकुमार बलदेव : कुछ नहीं.

महाराज राजपाल: पुत्र हमारे गुप्तचरों से खबर मिली है के अंग्रेज उत्तर से भारत के सीमा में प्रवेश करने का प्रयास करने वाले है

(हर मंत्री आश्चर्यचकित होता है या साथ ही बलदेव भी हैरान रह जाता है )

मंत्री: तो महाराज इसका क्या उपाय है?

महाराज राजपाल : अभी तक तो नहीं है.

मंत्री: आज तक इस उच्च पर्वत और इसके चारो और के घने वन ने हमारी रक्षा की है पर अंग्रेजी के पास तो आधुनिक यंत्र है और शस्त्र भी हैं .



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महाराज राजपाल: हम पड़ोसी राज्यों से इस विषय पर बात कर रहे हैं देखते हैं क्या निष्कर्ष निकलता है.



मंत्री : जो हुक्म महाराज !

फिर उसके बाद सभा समाप्त हो जाती है और हर मंत्री अलग अलग बने हुये मंत्री महल में चले जाते हैं और राजा राजपाल तथा बलदेव कुछ सैनिको के साथ पीछे राजमहल में आ जाते हैं . सैनिक वही द्वार पर पहरा देने लगते हैं।



कहानी जारी रहेगी
 
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अपडेट 5

उसी दिन दुपहर के भोजन के बाद राजकुमार बलदेव अपनी दादी के कक्ष में जाता है और उनके चरण छू कर आशीर्वाद लेता है।

दादी: आयुष्मान भवः पुत्र!

राजकुमार बलदेव: दादी माँ आप कैसी है?

दादी: मेरी उमर हो गई अब तो बस जाने का वक्त आ गया है।



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राजकुमार बलदेव: दादी ऐसा मत कहो अभी आप 100 साल और जीयोगे और ये आपके घुटनो में तकलीफ है ना!

दादी: हाँ पुत्र ।

राजकुमार बलदेव: तो आप ठीक हो सकते हैं और चल भी सकते हैं।

दादी: वह कैसे

राजकुमार बलदेव: मैं एक ऐसे वैध को जनता हूँ जिसने ऐसा रोग ठीक कर दिया है और ताप तब तक वैसाखी से चल सकती हो, मैं कल ही उस वैध को आपके उपचार के लिए बुलवाता हूँ।

दादी: मेरे लिए इतना सोचने के लिए, धन्यवाद बेटा ।

राजकुमार बलदेव: ये मेरा फ़र्ज़ है, दादी आपसे कुछ बात जाननी थी।

दादी: बोल ना!

राजकुमार बलदेव: ये माँ के साथ ये व्यवहार क्यू और उसकी सारी मन की बात दादी को बता दी ।

दादी: ये जीवन ऐसा ही है बेटा, तेरी पिता को तेरे माँ से छीना गया, उसका हक छीना गया लेकिन में चाह के भी तेरे माँ की मदद नहीं कर स्की और फिर दादी रोने लगी।



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राजकुमार बलदेव: रो मत दादी अब मैं आ गया हूँ ना मैं अब ठीक कर दूंगा।

दादी: बलदेव के सर पर हाथ रख के बोली "तू है महाराजा बलदेव सिंह घाटकराष्ट्र का राजा तेरी हर बोली होगी पत्थरों की लकीर"

ये सून कर राजकुमार बलदेव को एक अलग ही उर्जा मिली और उसकी दादी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा "हा मैं घाटराष्ट्र का महाराजा राजा बलदेव सिंह और मेरी हर बोली अब से है पत्थर की लकीर" और ये कह कर उसे एक अलग ही ऊर्जा की अनुभूति हुई।

दादी: बेटा मझ से एक वादा कर!

राजकुमार बलदेव: हाँ बोलिए दादी जी आज्ञा कीजिये ।

दादी: तेरे माँ कभी मुह से नहीं कहेगी । उसे क्या जरूरत है? क्या तकलीफ है? उसने बहुत तकलीफ झेली है, मैं औरत हूँ उसका दर्द समझ सकती हूँ, मुझसे वादा करो पुत्र तुम उसका हर कदम पर साथ दोगे। उसके बिना बोले! उसकी जरूरत को समझ कर पूरा करना जितना उसने दुख सहा है उसका 10 गुना सुख उसे मिले । वादा करो पुत्र!

राजकुमार बलदेव: मैं वादा करता हूँ मैं पूरी कोशिश करूंगा उनको हर प्रकार से खुश रखने की।

दादी: कोशिश नहीं...बेटा मुझे तम पर पूरा यकीन है तुम्हारा अखो में ये जलती ज्योति इस बात की गवाही दे रही है के तुम सभी जिम्मेदारीया उठा लोगे । बस पुत्र सदा अपने दिल की सुनना और किसी की नहीं...तभी मेरे मरने के बाद मेरी आत्मा को शांती मिलेगी ।

बलदेव: (सोचते हुए) पर दादी क्या करें कैसे करें?

दादी: आपनी आंखों में देख, अपने दिल में सोच की तू क्या कर सकता है और उसकी भी आंखों में देख उसे क्या चाहिए?

बलदेव: ठीक है दादी, आशीर्वाद बनाए रखें।

दादी: जीते रहो पुत्र!



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बलदेव अपने मन में कई सारे तूफान ले कर अपने कामरे में आकर विश्राम करने लगता है।

इधर देवरानी एक झीनी-सा लिबास पहन कर उल्टी लेटी हुई उसके गोरी बाजुए वस्त्रो से आज़ाद थी । उसके घाघरे में उसके मोटे गोल तरबूब एक गेंद की तरह लहरा रहे थे जिसे देख उसकी दासी कमला के मुंह में भी पानी आ गया था, कमला पिछले 10 मिनट से देवरानी की जैतून के तेल से मालिश कर रही थी, , देवरानी के दोनों तरफ अपने पैर रख के उनकी पीठ की मलिश कर रही थी। केवल कमला ही थी जो देवरानी को महारानी कहती थी।

कमला: महारानी आप का बदन तप रहा है।

देवरानी: हममम हूँ (सिसकी लेते हुए)

कमला: कही आपको बुखार तो नहीं महारानी! और फिर घाघरा के नीचे उसके जांघो और पिंडलियों पर तेल लगा के मलिश करने लगी ।

देवरानी: नहीं... कमला हम ठीक हैं ।

थोड़ा ऊपर हाथ करते हुए कमला उनके नितम्बो पर अपने हाथ रख देती है।

कमला: हाय राम इतना गोल और इतना बड़ा मेरे दोनों हाथो में तो महारानी का कुछ आता ही नहीं है।

देवरानी: क्या बोली।



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कमला: कुछ नहीं महारानी अगर में पुरुष होती तो आपका हाल बुरा कर देती।

देवरानी: एक तो तू महिला है दूसरा तेरे से मालिश तक तो ठीक से होती नहीं है पुरुष होती तो भी कुछ नहीं कर पाती और मुस्कान देती है।

कमला: महारानी जी अब-अब पलट जाईये ।

देवरानी अपने पीठ पर छोटा-सा कपड़े का टुकड़ा जिस से दूध ढक रहे हैं कस लेती है और फिर सीधी हो जाती है।

कमला: उफ्फ्फ! कितनी चौड़ी पीठ है, इतने बड़े और मोटे सुडोल दूध भी है महारानी के और गांड भी चौड़ी है और फिर मनो बड़े दो तरबूजे जैसे नितम्ब उफ़! (मन में बुदबुदाती है।)

कमला पेट से ले कर कंधे तक मलिश करती है और तेल की शीशी ले कर महरानी के सपाट पेट की नाभि में तेल उड़ेल देती है।



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कमला: हाय राम सारा का सारा तेल नाभी में ही रुक गया झाई इतनी गहरी नाभि है आपकी महारानी! (मन में चूत की खाई कितनी गहरी होगी और गांड तो मानो सुरंग ही होगी ।) देवरानी जब से विवाह के बाद महल में आई तब से अपनी आग बुझाने के लिए कमला का सहारा लेती रही है और कमला से उनकी दोस्ती-सी हो गई थी। एक तरह से कमला देवरानी की सखी-सी बन गयी थी ।

देवरानी अब कमला का हाथ ले कर अपनी बड़ी-बड़ी गेंदो पर ले जाती है और दांत से अपने ओंठ काटती है। कमला दोनों हाथो से एक दूध को पकड़कर मरोड़ती है और उससे रहा नहीं जाता तो फिर उसके दूध को चूम लेती है।

कमला: हाय दय्या इतना बड़ा दूध है महारानी आपका मेरे दोनों हाथो में भी नहीं आरहे इसके लिए तो अलग से हाथ बनवाना होगा (और महारानी के दूध को दबाती रहती हैं।)

देवरानी: ऐसा नहीं है कमला दुनिया में मैं अकेली नहीं हूँ जिसका बदन ऐसा है।

कमला: बराबर और औरतो को तो उनके हिसाब के नाप का पति मिल जाता है पर आप जैसी शानदार घोड़ी को राजा राजपाल जैसे डेढ़ फुटिया मिल गया।

देवरानी: ऐसा नहीं बोलते कमला।



कमला: काश अप्पको आपके हिसाब का हाथ और वह मिल जाता ।

देवरानी: सपना मत देखो कमला

कमला: सपना नहीं देखु तो क्या करूँ महारानी मैंने तो घाटक राष्ट्र में ही किसी का इतना लम्बा चौडा हाथ नहीं देखा जिसका जिस्म आपके जिस्म के उपयुक्त हो । जिसका हाथ इतना बड़ा होगा तो वह भी उतना बड़ा ही होगा तो आपके आगे का दरिया और पीछे का समुंदर पार कर देगा... अरे हाँ महारानी मैं अभी कुछ दिन पहले कुछ देखा मुझे याद नहीं आ रहा वह कौन था वह हाथ, वह बड़े हाथ वाला!



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(और बोलते-बोलते देवरानी के दूध को मसल रही थी ।)

देवरानी अब अपने चरम पर थी और उत्तेजना से उनकी आँख बंद थी और वह सिसक रही थी)

कमला भुल्लकड थी।

महारानी-कमला तू भुलक्क़ड ही रहेगी!

कमला: अरे हा महारानी याद आया वह हाथ तो युवराज बलदेव का था।

देवरानी ये सोच कर की उतना बड़ा हाथ उसके बेटे का ही है उसके चुत से चुतरस की पिचकारी छूट गयी और वह हंसने लगी और अर्ध मूर्छित हो गयी । थोड़ी देर बाद महारानी को होश आया।

देवरानी: अनपढ़ है तू । कमला गवार ही रहेगी! गुस्सा होते हुए महारानी बोली ।

कमला: अरे वह उस दिन युवराज घुड़ सवारी करने जा रहे थे तो अचानक घोड़ा मिमियाया तो युवराज ने उसके सर को अपने एक हाथ से दबोच लिया। इतना बड़ा हाथ था महारानी उनका और वह घोड़ा शांत हो गया।



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देवरानी: कमला तू गवार ही रहेगी तुझे नहीं पता है कब क्या बात करते हैं । वैसे वह घोड़ा नहीं था, जिसे बलदेव ने चुप करवाया था वह घोड़ी थी। (उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है।) फिर देवरानी झट से स्नान घर में घुस जाती है। अपने अंतर्वस्त्र निकाल के एक दम नग्न हो आईने के सामने जाती है।



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जैसे ही उसकी नजर अपने तरबूज जैसे दूध पर गयी, पतली कमर मोटे गोल मटके जैसे नितम्ब गोरा बदन । अपनी लंबाई और चौड़ाई देख कर एक उसके मुंह से निकालता है "घोड़ी कहीं की" और फिर वह स्नान ले कर एक लाल रंग का साड़ी और काले रंग की चोली पहनती है जो उसने मेवाड़ से मांगवायी थी । फिर शृंगार कर, गहने पहन तैयार हो कर अपने बेटे से मिलने निकल पड़ती है।

कहानी जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

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देवरानी शृंगार कर और सज सवर कर युवराज बलदेव को ढूँढने उसके कमरे की तरफ निकल गयी पर युवराज अपने कमरे में नहीं मिलता तो वह मुख्य महल के द्वार के पास गयी । जहाँ मुख्य द्वार पर सैनिक पहरेदारी कर रहे उन्हें महल के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी।

देवरानी: सुनो क्या तुमने युवराज बलदेव को देखा है?



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सैनिक: जी रानी जी वह अभ्यास कर रहे हैं।

और सैनिक उसे अभ्यास स्थल को इशारे से बताता है, देवरानी उधर बढ़ जाती है और जैसे ही देवरानी की नजर बलदेव पर पड़ती है, वह खो जाती है। उसकी चौडी छाती, मांसल पेट, मजबूत बांहे मांसपेशिया, कधे को देखती रह जाती है । युवराज के एक हाथ में जंजीर और एक हाथ में तलवार लिए अपने अभ्यास में लगा हुआ था। देवरानी जैसे ही उसके हाथ पर बंधे जंजीर को देखती है और उसके हाथ का ताकत का अंदाज लगता है वह मन में कहती है: इतना बड़ा, इतना मजबूत हाथ! (तब उसके मन में कमला की बात याद आती है "युवराज का हाथ ही आपके ये बड़े दूध को एक हाथ से दबोच सकता है या आप के मटके जैसी गांड की नसे ढीली कर सकता है, जब उसका हाथ इतना बड़ा है तो वह इतना बड़ा होगा ही जिस से वह आपके आगे का दरिया या पीछे का समुंदर पार कर देगा।")

देवरानी अंदर ही अंदर शर्म से गड जाती है और कही ना कही मन में सोचती है कि कमला सही कहती है कि इस आकार के उसके शरीर को कुछ इसी प्रकार के शरीर भोग कर के तृप्त कर सकता है। फिर वह इन विचारो को झटक कर बुदबुदाती है: "घोड़ी कहीं की"!

तभी उसके कान में आवाज पड़ती है।

बलदेव: मां...क्या हुआ आप क्या सोच रही हो?




देवरानी बस राजकुमार बलदेव को ममुस्कुरा कर देखती है।

बलदेव: (मन में) वह! क्या मुस्कान है माँ तुम्हारी और ये साडी आप पर कितनी फब रही है। माँ के ये आगे के पीछे के सब उभार ओरो से कितने अलग हैं, कितने बड़े हैं। माँ कितनी गोरी हैं (अरे! मैं क्‍या सोच रहा हूँ। वह मेरी माँ है। मुझे उनके लिए ऐसा नहीं सोचना चाहिए!) और अभ्यास रोक देता है!

राजकुमार बलदेव: माँ आप इतनी दूर क्यू हो पास आओ!



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देवरानी: हाँ कुछ नहीं हुआ बेटा तुम्हे अभयास करता हुआ देखा रहे थी। मैं तुम्हारे ध्यान भंग नहीं करना चाहती थी।

राजकुमार बलदेव: माँ मेरा अभ्यास पूरा हो गया है। और उनके पास आ कर प्रणाम करता है ।

देवरानी: आयुष्मान भवः पुत्र! बस सोच रही थी तू कितना बड़ा और बांका जवान हो गया है।

राजकुमार बलदेव: और आप भी तो कितनी बड़े हो गए हो।

देवरानी: क्या मतलब है तुम्हारा, मैं बूढ़ी हो गई हूँ क्या?

राजकुमार बलदेव: नहीं मेरा मतलब पहले आप पतली थी अब थोड़ी मोटी हो गई हो।

रानी देवरानी: क्या कह तूने मैं मोटी हूँ। तुझे मैं मोटी लगती हूँ ।

राजकुमार बलदेव: नहीं-नहीं आप तो मेरे से भी कम उमर की लगती हो और वह भी कम से कम 5 साल छोटी।

रानी देवरानी: तुम मेरा मजाक मत बनाओ!

राजकुमार बलदेव: माँ के करीब आ कर उनके हाथ पकड़कर कर "मेरी प्यारी महारानी माँ मैं आपका मजाक कभी नहीं उड़ा सकता। आप मोटी नहीं पर पहले से सेहतमंद हो गई हो, इससे अब आपका शरीर भरा-भरा लगता है।"

देवरानी उसके मन की बात टटोल रही थी और समझ रही थी कि बलदेव क्या बात कर रहा है और उसका क्या मतलब है।

देवरानी: अरे पुत्र तेरे वापिस आने की वजह से मेरे तन मन सब बहुत खुश है तुझे ऐसा इसलिए लगा होगा और हाँ अभी मैं बूढी नहीं हुई हूँ । अभी मैं सिर्फ 35 साल की हूँ।

बलदेव: मुझे तो आप सिर्फ 18 की लगती हो ।और मैं भी 18 का ही हुआ हूँ ।



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देवरानी: पर फिर भी तम कही के 30 वर्ष के राजा लगते हो, किसी अनजान व्यक्ति से पुछा कर देखना। (देवरानी थोड़ा तुनक कर बोलती है।)

बलदेव तुरंत पास रखे अपने राजसी वस्त्र उठा कर पहन लेता है।

बलदेव: अब बताओ में कैसा लग रहा हूँ?

देवरानी: अब तो प्योर 35 वर्षीय विवाहित राजपुरुष लग रहे हो" और फिर खिलखिला कर हंसने लगती है।

बात करते-करते दोनों माँ बेटा उद्यान की ओर चल देते हैं जहाँ हर जगह खूबसूरत फूल खिले हुए।

बलदेव: माँ कहीं बैठते हैं।

देवरानी: यहा नहीं वह दूर झील है वहा पर पत्थर पर बैठेंगे। दोनों चलते-चलते उद्यान पास कर उस छोटी-सी झील के किनारे पड़े पत्थर पर बैठ जाते हैं। बलदेव एक गुलाब का फूल जो उसे चलते हुए तोड लिया था आगे बढ़ कर माँ के बालो पर लगा देता है।

देवरानी: धन्यवाद बेटा।

बलदेव: ये तो मेरा फ़र्ज़ है। आप अब और भी सुंदर लग रही है ।

देवरानी: पुत्र! अब तुम मुझ से कही दूर मत जाना।

बलदेव बैठे-बैठे दहिने हाथ से उसके बाए हाथ को पकड़ लेता है।

बलदेव: कभी नहीं...मां!



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देवरानी: हाँ मैंने तुम्हे बिना बहुत अकेला महसुस किया है। पिछले 5 वर्ष मैंने कैसे गुजरे हैं तुम्हें ज्ञात नहीं है पुत्र । शुक्र है तुम अपने पिता जैसे नहीं हो ।

बलदेव: माँ मुझे पुरा ज्ञात है अब से मैं तुम्हारे चेहरे पर कभी दुख नहीं आने दूंगा, मुझे पता है आपके बलिदान का और अब तुम्हारी बारी है अपने हक लेने की।

देवरानी: क्या बात कर रहे हो बेटा।

बलदेव: यही के "महारानी की उपाधी आपको भी मिलनी चाहिए थी।" आपकी भी जय-जय कार दरबार में होनी चाहिए, राज्य हित के हर निर्णय में आपकी सहमती लेनी चाहिए। आप दिन रात काम करती रहती हो पकवान से ले कर वस्त्र तक का, सबका ध्यान रखती हो, आप दासी नहीं हो मां।

ये सचाई सुन कर देवरानी के आखो से आसु छलक जाते हैं और वह अपना सर बलदेव के कधे पर रख रोने लगती है।

बलदेव: रो मत माँ!

देवरानी: ये खुशी के आसूं है बेटा! पता है हमारी आयु में इतना कम अंतर क्यू है। क्यू के मेरा ब्याह कम उमर में कर दीया गया था। वह भी मेरे निर्णय के बिना, वह तो विवाह के अगले ही साल तुम्हारा जन्म हो गया, नहीं तो मैंने ठान न लिया गया राष्ट्र छोड़ कर कहीं दूर चले जाने का, फिर तुम ने मेरे जीवन में एक नई आशा दी और मैं अपना मन मार कर यही महल में रहने लगी।

बलदेव: ये सुन क्रोधित होते हुए कहने लगा मैं बड़ी माँ को भी नहीं छोड़ूंगा जिसने तुम्हें पिता जी से दूर किया।

देवरानी: ऐसा कुछ नहीं करना, सब कुछ प्रेम से हासिल क्या जा स्कता है और वैसे भी मैं विवाह के बाद तेरे पिता जी को समझ गई कि वह सिर्फ महारानी सृष्टि की बात ही मानेंगे। वह मुझे मजबूरी में अपने पास रख रहे हैं मैं उनके लिए सिर्फ एक उपहार में मिली वास्तु जैसी हूँ।

ये कह कर वह फिर रोने लगी। बलदेव ने अपने हाथों से उनकी आंखों का आसु पोंछे।

देवरानी: महाराज ररतन के साथ तुम्हारे पिता भी 6 माहीने साल भर युद्ध क्षेत्र में रहते थे और जब मेने गुप्तचर से पता करवाया तो पता चला वह वहा राजा रतन के साथ विदेशी महिलाओ के साथ रंगरालिया मना रहे होते और शराब की लत भी उन्होंने उसके साथ ही पकड़ ली थी राजा रतन के वजह से ही तुम्हारे पिताजी को ये बुरी आदते लगी है।

ये सुन कर युवराज बलदेव कहता है।

युवराज बलदेव: इन सब के किए उनको भी सजा मिलेगी मां!

देवरानी: धैर्य रखो बेटा, जोश में आकर होश कभी नहीं खोना।

युवराज बलदेव: जी माँ जब तक आप मेरे साथ है भला में कैसे धैर्य खो सकता हूँ आप ही मेरा धैर्य हो नींद हो, हृदय का सुकून हो।

देवरानी: बस-बस पुत्र ...बाते मत बनाओ ।




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युवराज बलदेव मुस्क़ुराणे लगा उसे देख देवरानी भी मुस्कुरा देती है।

युवराज बलदेव: अच्छा माँ में अपने पिता जैसा नहीं हूँ तो किसके जैसा हूँ।

देवरानी: तुम्हे अपने पिता जैसा होना भी नहीं था पुत्र तुम अपने नाना या मामा पर गए हो। बस तुम वीरता में अपने पिता पर गए हो ।

युवराज बलदेव: क्या सच में!

देवरानी: हाँ वही नयन नक्ष कद काठी।

युवराज बलदेव: तो क्या में उनसे मिल सकता हूँ?

देवरानी: तुम्हारे नाना की तो मृत्यु हो गई पर कई वर्षो से तेरे मामा का कुछ आता पता नहीं है। उन्हें मैंने आखिरी बार विवाह के पहले ही देखा था और गुप्तचरों से पता चला के वह कहीं गायब है । पारस में तो है ही नहीं।

युवराज बलदेव: मैं उनकी खोज करवाऊंगा और उनसे मिलूंगा और तुम्हें भी अपने भाई से मिलवाऊंगा।

देवरानी: हाँ मेरे भाई देवराज की लम्बाई भी तुम्हारी तरह 6.2 है और वह एक वीर योद्धा है, देवराज बचपन में मेरी लम्बाई का-का मज़ाक उड़ाता था के "तू कितनी छोटी है बंदरिया जैसी।."

युवराज बलदेवः पर माँ मेरी लम्बाई 6.3 है।

देवरानी: हाँ तुमसे थोड़ी कम है।



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युवराज बलदेव: पर मान तुम्हारी लम्बाई भी तो कम नहीं 5.10 का कद तो महिलाओ के लिए सबसे ऊंचा है।

देवरानी: हाँ बेटा पर पारस देश में तो ये महिलाओं के लिए ये लम्बाई आम बात है।

युवराज बलदेव: पर माँ तब की बात कुछ और थी अब यदी मामा आपको देख ले तो आपको देख के "बंदरिया" तो बिलकुल नहीं कह सकते।

देवरानी: हाँ ये तो है। उस वक्त मैं बहुत पतली थी और अब...

युवराज बलदेव बात काटते हुए, उठ कर रानी से दूर होते हुए जल्दबाजी से कहता हैं-

युवराज बलदेव: पर माँ अब अगर मामा आपको देखे तो घोड़ी जरूर कहेंगे । सफेद घोड़ी।

देवरानी: रुक जा नटखट अभी बताती हूँ मैं " तू देख अपने को। तू है घोड़ा।

पास में ही एक मैदान में भागते हुए युवराज बलदेव पीछे एक झाड़ी से टकरा जाता है और मैदान में गिर जाता है जिसे देख कर देवरानी हसने लगती है और तुरत पीठ के बाल लेटे युवराज बलदेव के ऊपर चढ़ा जाती है और उसकी गर्दन पकड़ कर बोलती है ।

देवरानी: अब बोल क्या हूँ मैं, तुम्हे पता नहीं आखिर में पारस की राजकुमारी हूँ और तू चूहा है।

युवराज बलदेव भी रानी को दबोच लेता है और पूरी ताकत से दबोचने से देवरानी सांस थोड़ा ज़ोर से लेने लगती है।

ये समझ कर की देवरानी की दौड़ने या बाल प्रयोग से सांस तेज हुई है युवराज बलदेव अपना हाथ अपने माँ के बाजू को पकड़ कर सहलाता हैऔर फिर उसे पलट देता है अब देवरानी सीधा लेटी थी और उसके ऊपर दोनों टांगो के घुटनो को देवरानी के दोनों तरफ टिकाए अपने हाथो से युवराज बलदेव ने देवरानी के दोनों हाथो को पकड़ा लिया और इस प्रकिर्या में पलटते समय देवरानी के ब्लाउज में फसे दोनों बड़े वक्ष कुछ समय के लिए बलदेव के सीने पर डाब गए थे और कुछ सेकंड के लिए देवरानी की आखे बंद हो गयी थी।

देवरानी: हम्म आह!

युवराज बलदेव: मैं आपको नहीं छोडूंगा और फिर अपने मजबूत सीने से रानी देवरानी के बड़े दूध को दबा दिया। फिर वह उठा और देवरानी के आंखो में देख कर बोला ।



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युवराज बलदेव: अब बोलो कौन चूहा है?

देवरानी के दोनों बड़े-बड़े चूचे साँसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे जिसे युवराज बलदेव भी देख रहा था।

देवरानी: मुस्कुरा कर तुम चूहे नहीं शेर हो।

युवराज बलदेव: आपसे ही तो मैंने सारी ताकत प्राप्त की है आप भी शेरनी हो घोड़ी नहीं।

फिर युवराज बलदेव हाथ पकड़कर देवरानी को उठाता है और उसके कान में कहता है।

युवराज बलदेव: माँ आप घोड़ी भी हो और शेरनी भी।

ये सुन कर देवरानी भी मस्ती में उत्तर दिए बिना नहीं मानती और कहती है "बेटा जरा जिराफ का कान इधर लाना" जब युवराज बलदेव झुका और अपना कान देवरानी के होठों के पास ले गया ।

देवरानी: तुम भी सिर्फ शेर नहीं हो घोड़े भी हो।

रानी देवरानी का ये उत्तर सुन कर युवराज बलदेव हस देता है फिर दोनों महल की ओर चल तेजी से देते है।


कहानी जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 7

देवरानी और राजकुमार बलदेव दोनों घूम के महल वापिस आ जाते हैं और देवरानी अपने कक्ष में चली जाती है और राजकुमार बलदेव स्नान करने चले जाते हैं। रानी देवरानी के सुंदर जिस्म को किसी मर्द के जिस्म ने पहली बार छूआ और सही धंग से दबाया था, देवरानी को अभी भी अपने बेटे की कठोर और बालिष्ठ छाती से उसके स्तनों के दबने का असर उसे महसूस हो रहा था, इस आभास भर से उसने आखे बंद कर ली और सोचने लगी।

देवरानी: (मन में) ये क्या हुआ है मुझे, मैं क्यू अपने पुत्र की और आकर्षित हो रही हूँ, उसका मुझे छूना और दबाना अलग अहसास क्यू दिया रहा है। वह है भी तो ऐसा की किसी बूढी का भी दिल उस पर आ जाए, उसे स्पर्श का एहसास क्यों मेरी सुप्त कामुक संवेदनाओ को जागृत कर रहा है। हाय राम में ये क्या सोच रही हूँ? मुझे अपने आप पर काबू करना होगा।



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उधर स्नान घर में बलदेव स्नान करने के लिए पुरा नंगा हो कर आज की घटना को याद कर रहा था और उसका हाथ उसके 9 इंच के लिंग पर था जिसे वह आगे पीछे कर रहा था। उसके मन में भी उथल पुथल मची हुई थी ।

राजकुमार बलदेव: (मन में) हाये मां! कितना मुलायम और गद्देदार और हलके ठोस चूचे हैं तुम्हारे! मेरी छाती में तो मानो तुम्हारे दूध पूरे ही चिपक ही गए थे। इतने बड़े-बड़े तो गाय के स्तन भी नहीं होते और ऐसे ही माँ के स्तन स्मरण कर तेजी से अपने 3 इंच मोटे और 9 इंच लम्बे लौड़ा हिलाने लगा।

राजकुमार बलदेव: हम्म आआह और उसके मुह से एक आवाज निकली "देवराणी" और उसके लिंग ले ज्वालामुखी की तरह गर्म-गर्म ज्वाला छोड़ दी जो की ज्वालामुखी के गर्म लावे जैसा था। राजकुमार ने अपने जीवन में पहली बार हस्तमैथुन किया था और उनसे लगभग इतना पानी छोड़ा की वह खुद इस गाड़े वीर्य के लावे को देख आश्चर्यचकित हो गया। कम से कम दो मुठी भर वीर्य उसने उत्सर्जित किया था जिसे उसे हाथ बिलकुल चिकने हो गए । स्नान समाप्त कर के वह अपने वस्त्र पहन कर अपने कक्ष के आसान पर बैठ कर सोचने लगा। उफ़ ये कितना अनैतिक है! उफ़ वह कितना बेशर्म है जो अपनी माँ के लिए ऐसे विचार अप्पने मन में आ ने दे रहा है! । पापी!

बलदेव: (मन में) क्या ये सही है। मेरे मुह से माँ का नाम कैसे निकल स्कता है, मेने देवरानी कहा, में कितना बेशरम हूँ, ऐसी पवित्र माँ को मेने अपवित्र कर दिया। परंतु मेरे उत्तेजना की वजह भी वही थी, आज झील के पास अगर उनसे छेड़ छाड़ नहीं होती तो ये सब ना होता, परन्तु मेरे साथ, मेरे छूने से, वह भी तो कितनी आनंदित लग रही थी, कई वर्षो बाद मैंने उनके चेहरे पर इतनी खुशी देखी है, नहीं ये पाप है पर इस से माँ की खुशी वापस आ सकती है। उनको प्रेम की आवश्यकता है। उन्हें प्रेमी की जरूरत है, परनतु क्या समाज और धर्म इस बात को समझेगा, और साथ ही घाटकराष्ट्र के नियमो के विरुद्ध जाने पर बहुत बुरा होगा? तो मुझे अब क्या करना चाहिए?

तभी राजकुमार बलदेव के कान में दादी की बात गूंजती है "पुत्र दिल की सुनना! दिमाग की नहीं" हाँ दिल तो यही कहता है कि अपनी प्यारी सुंदर माँ को संसार भर का प्रेम दे दू और दिमाग कहता है इसका अधिकार सिर्फ पिता जी को है और ये दुनिया इस बात को है कभी नहीं मानेगी। पर पिता जी ने ही तो उन्हें इतना दुख दिया है। मैं बचपन से देख रहा हूँ माँ कैसे रात भर रो कर करवट बदलती रहती है। उन्होंने अपनी हर इच्छा को अपने मन में दबया है, ना कभी वस्त्र का ना कभी सोना का ना चांदी का, ना महारानी बनने की इच्छा जाहिर की है उन्होंने । मेने तो उनको काई बार बिना खाए पीये सोते हुए भी देखा है।




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अगर में दिल की सुनता हूँ तो मझे घाटराष्ट्र से लड़ाई लड़नी होगी और दिमाग से सुनता हूँ तो क्या करूँ? माँ ना तो दूसरा विवाह कर सकती है और वह जीवन भर ऐसे ही दुखी रहेगी।

किसकी खुशी देखूं घटकराष्ट्र की? या अपनी माँ देवरानी की?

वो ये सोचता हुआ अपने कक्ष से बाहर निकल कर महल की सीढ़ियों से नीचे उतारता है और देखता है उसकी माँ देवरानी ने एक लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी और हरे रंग के ब्लाउज में कसे हुए उसके बड़े चूचे साफ दिख रहे थे, उनकी दूधिया कमर पर एक कमरबंद चेन थी, पीछे उनकी गोल मोटी गांड देख राजकुँमार बलदेव का जी ललचा गया और उसका दिल बोल उठा।

बलदेव: वाह! क्या सुंदरी है। अध्भुत!

देवरानी देखती है कि उसका पुत्र राजकुम्मर बलदेव उसे मुग्ध हो कर निहार रहा है और उसका मुँह खुला हुआ है और आँखे बड़ी-बड़ी हो गयी हैं।

देवरानी अपने बेटे द्वारा ऐसे निहारे जाने से शर्मा जाती है और अंदर ही अंदर खुश होती है।

देवरानी: (मन में) आज पहली बार मैंने किसी की आँखों ने इतना प्यार देखा है और उसका दिल जोरो से धड़कने लगता है और उसे एक अजीब से खुशी का एहसास होता है।

बलदेव और देवरानी एक दूसरे के आंखो में खोए हुए थे तभी वहा रानी की दासी कमला आ जाती है और दोनों को इस तरह घुरते हुए देख लेती है । कमला को ये समझने में देर नहीं लगती की ये मा बेटे वाला प्रेम नहीं कोई और प्रेम है।

कमला: (हल्की-सी खांसी करते हुए) महारानी?



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दोनो का ध्यान भंग होता है और..

देवरानी: हा... हा बोलो कमला!

राजकुमार बलदेव अपना सर नीचे कर बाहर चला जाता है।

कमला: महारानी आप ठीक तो है ना।

देवरानी: हा क्यू?

कमला: बात छुपाते हुए कहती है "महारानी मैं तो आपकी मलिश करने आई हूं" "पर आज तो आप बिना मालिश के ही खिल रही हो"

देवरानी: कुछ भी!

कमला: सच, महारानी मुझे तो लगता है किसी ने आज आपको मसल दिया है। (देवरानी को आज सुबह की याद आती है जब बलदेव ने उसे अपने नीचे ले कर मसल दिया था और उसके चुत में चिट्टी रेंगने लगती है।)

देवरानी: तुम्हारा मतलब?

कमला: यही के किसी और दासी से मलिश तो नहीं करवा ली आपने?

देवरानी: कमला! तुम्हे तो पता है मेंने पीछे 18 वर्ष से तुम्हारे सिवा किसी और मलिश नहीं करवायी है ।

कमला: इसीलिए तो कहती हूँ आप की को ढूँढ लो जो आपकी ढंग से मलिश कर दे!

ये बात चीत करते हुए कमला और देवरानी दोनों देवरानी के कक्षा में आ जाते हैं।

देवरानी: कमला ऐसा मज़ाक मत करो ।



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कमला: क्षमा कीजिये महारानी परन्तु, जितनी आज आप प्रसन्न हो उतनी प्रसन्न मैंने आपको कभी नहीं देखा है । आपको 18 वर्षो में मैंने आपकी मालिश की पर आपको इतना खुश कभी नहीं देखा।

देवरानी को ये बात दिल में तीर की तरह चुभी ।

देवरानी: (मन में) ये तो सब पापी दिल का कमाल है । नशा है जिसे बलदेव ने आँखों से पिला दिया है।)

देवरानी: अंदर से मुस्कुराते हुए "। कुछ भी कहती हो कमला" ।

कमला: अच्छा तो चलिए आप की मलिश कर दू। ।

देवरानी: नहीं अभी मलिश नहीं तुम बस सिर्फ सर में तेल लगा दो।

फिर कमला एक बड़ी कुर्सी लाती है और जिसपर देवरानी बैठती है और कमला आयुर्वेदिक औषधि युक्त तेल ला कर उसके सर के बाल जो की बंधे हुए थे खोल देती है और उसके लम्बे काले बाल जो कमर तक थे उन पर तेल लगाने लगती है।

कमला: आप की सुंदरता ऐसे है कि अभी भी कोई राजा या राजकुमार आपको अपनी रानी बनाना चाहेगा

देवरानी: में इतनी भी जवान नहीं हूँ अब!

कमला: मैं तो कहती हूँ अगर आप कोशिश करो तो कोई ना कोई तो मिल ही जाएगा जो आपको वह प्यार देगा जो आपको कभी नहीं मिला । वह लैला मजनू जैसा प्यार करेगा आपको।



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देवरानी: हम्म!

कमला और आपके इस तराशे हुए बदन की ऐठन को बेदर्दी से दबा कर मरोड़ कर इसका दर्द कम कर देगा और आपको एक नई ऊर्जा देगा, विश्वास किजिए महारानी ऐसा हो गया तो आप जैसे बदन वाली का कभी सर भी ना दुखे और ना ही मालिश की आवश्यकता पड़े।

ये सुन कर देवरानी की आँखे शर्म से झुक जाती हैं।



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देवरानी: ना बाबा मझे डर लगता है और वैसे भी ऐसा राजा मिलेगा कहा जो मेरी खुमारी निकल दे और में इस उम्र में ऐसा प्रेमी कहा ढूँढू और महाराज वह तो मुझे मार हो डालेंगे । मुझे मरना नहीं कमला की बच्ची।

कमला: महारानी आपको कही जाने की आवशयकता नहीं है यही घाटराष्ट्र में खोजो।

देवरानी: यहा कोई मेरे हिसाब का नहीं होगा ।

कमला: मैंने बहुत से मर्द देखे हैं

देवरानी: कमला ये मत भूलो। में पारस की राजकुमारी हूँ। मैं किसी ऐरे गैरे को देखती भी नहीं हूँ ।

कमला: महारानी वचन दो! एक बात कहू तो आप बुरा नहीं मानोगी ।

देवरानी: हम वचन देते हैं। बोलो ।

कमला: आप के हिसाब का और आप की खुमरी निकालने वाला दम तो बस युवराज बलदेव सिंह रखता है, उसे ही ये मौका दे दो।

ये सुनते ही देवरानी के योनि में चींटी रेंगने लगी और इसका एहसास उसे अभी थोड़े देर पहले ही बलदेव हो देख कर हुआ था और बलदेव जैसे उसे देख रहा था उससे उसकी चूत में चींटी रेंगने लगी थी और कैसे उसने मैदान में रानी को मसला था ये सब याद आते ही वह तड़पने लगी ।




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देवरानी: ज़ोर से चिल्लते हुए "कमला तुम्हारी इतनी हिम्मत! अगर हमने वचन न दिया होता तो तुम्हारे ये पाप भरे शब्दो की सज़ा तुम्हारी जान होती!"

देवरानी सोचती है अगर वह ऐसा ना बोली तोपता नहीं कमला उसके बारे में क्या सोचेगी और कहीं और बतला दीया इस कमला ने तो क्या होगा?

कमला: क्षमा महारानी । क्षमा कर दो महारानी!

देवरानी: ठीक है मेरी सहेली हो कमला! पर कम से कम सोचो तो सही क्या बोल रही हो और कमला को एक मुस्कान देती है।

कमला समझ गयी थी देवरानी की चूत में कुछ और मुह में कुछ है और बलदेव उनके दिल में प्यार की घंटी अभी बजा कर गया है ।

कमला: अच्छा तो कोई अन्य आपके हिसाब का अच्छा राजकुमार ढूँढती हूँ और दोनों जोर से हस देती है। (कमला अपने मन में" मैंने आपका बुखार नहीं निकलवाया तो मेरा नाम कमला नहीं।)

देवरानी: थोड़ा नरम मिजाज़ी दिखाते हुए "अच्छा-सा देखो!"

कमला का काम खतम होने पर वह विदा ले कर चली जाती है।


कहानी जारी रहेगी
 
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