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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 36
देवरानी द्वारा बलदेव को लुभा का मनाना


युवराज बलदेव से बात करने के लिए पिछले दो दिन के लगातर प्रयास करने के बाद भी असफल रहने के बाद रानी देवरानी अब समझ गई थी कि बलदेव से बात करने के लिए उसे कुछ और रास्ता निकलना पड़ेगा।

आज पूरे 4 दिन हो गए माँ बेटा बलदेव और देवरानी के बीच दूरिया आए हुए और चार दिनों में वह दोनों ऐसा महसूस कर रहे थे जैसे सालों से बिछड़े हुए हो।

देवरानी की आँखे सुबह सवेरा बिल्कुल खुलती है।

देवरानी: (मन मैं) आज तो इस लड़के से बात कर के रहूंगी, मेरी ही गलती थी । मैं ही उसे गलत समझ बैठी थी मैं एक सच्चे आशिक को हवास का पुजारी समझ बैठी थी पर उसने तो मेरे लिए खुद को बलिदान करने का निर्णय कर लिया था।



BATHGIF
बलदेव के बारे में सोचते हुए वह स्नान घर में जा कर अच्छे से अपने को रगड़ कर साफ करती है। फिर एक गहरे गले का छोटी-सी चोली पहनती है। जिसमें देवरानी के वक्ष बड़ी मुश्किल से समा गए थे, माथे पर बिंदी और सिन्दूर लगा लेती है और बालो में चमेली के फूलो का गजरा लगा खूब सजती सवरती है और तैयार होती है।

आयने के सामने खड़े हो कर अपना रूप सवारती है और सोचती हैं। "बेटा आज तो तेरे पर ऐसे बिजली गिराउंगी के....।" और अपने गदराये बदन को देख के मुस्कुराती है।



devrani000

अपनी कक्षसे बाहर निकाल कर जैसे वह रसोई की ओर घूमती है। उसे सामने से आता हुआ बलदेव देख लेता है और देवरानी एक मतवाली चाल चलती हुई रसोई में घुसती है।



देवरानी के भारी कुल्हे उसके हल्का झटका देने से एक लय से थिरक रहे थे और उसके बड़े दूध तो ऐसा लग रहा था मानो अभी उसकी चोली फाड़ कर बाहर आ जाएंगे इतने हिल रहे थे।

बलदेव ये दृश्य देख सब नशा और गम भूल जाता है और अपनी माँ की ऐसी चाल देख उसका लंड खड़ा हो जाता है।

तभी सब एक-एक करके खाना खाने आ जाते हैं। राजपाल बहुत दिनो बाद घाटराष्ट्र लौटा था और अधिकतर सब के साथ में ही भोजन करता था।

हमारी महारानी देवरानी रसोई में भोजन की तैयारी करने में लगी थी और राधा तथा कमला भोजन त्यार करने में उनका साथ दे रही थी।

राजपाल और बलदेव साथ बैठे थे और सामने बैठी थी महारानी सृष्टि ।

अब कमला खाना ले कर आती है और खाना परोसने लगती है।

देवरानी: अरी कमला आज खाना मैं परोसती हूँ।

सब अपने आसन पर नीचे बैठे हुए थे और देवरानी सबको भोजन परोसने लगी । सबको परोसने के बाद बलदेव की बारी थी।



CL-01
kill me smileys

देवरानी हल्का-सा अपना पल्लू खींचती है और बलदेव की तरफ घूम के झुक जाती है और उसको खाना परोसती है। बलदेव अपना सर झुकाए रहता है। अब देवरानी सब्जी का बर्तन उठा के...

देवरानी: ये लोगे?

बलदेव चुप रहता है।

देवरानी: बोलो ये लोगे क्या?

बलदेव मजबूरन अपना सारा ऊपर उठाता है और देखता है।

देवरानी झुकी हुई थी और अपने दूध की गहरी घाटी बलदेव के तरफ कर देती है।

देवरानी: तुम लोगे ये?

बलदेव की आखे उसके बड़े मम्मो पर बस थम जाती हैं।

बलदेव: क्या?



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देवरानी: अब भी नहीं दिख रहा क्या? लोगे या नहीं?

बलदेव: हाँ...वो नहीं...!

बलदेव उसके भारी मम्मे और उसके ऊपर इतने बड़े निपल जो उबर कर दिख रहे थे, देख उसका लंड उठने लगता है।

देवरानी: हाँ या नहीं?

तुम्हें तो पसंद है ना ये?

बलदेव: क्या?

देवरानी: अपने दूध में हल्का-सा ढील देती है और "ये गोभी और उसके साथ मटर।"

बलदेव: पर अब मेरा दिल नहीं है इस गोभी और इस मटर के दाने में। " बलदेव उसके दूध और उसके दूध के दाने को देख बोलता है।

देवरानी: महाराज इस लड़के का रोज़-रोज़ दिल बदलता है। कुछ समझाइये इसे!

राजपाल: बेटा माँ दे रही है। गोभी खाने को तो खाओ ना, खाने में मत शर्माओ।

ये सुन कर के उसका बाप उसने उसकी माँ की गोभी जो के देवरानी अपने वक्ष को निशाना बना कर बता रही थी, खाने को कह रहा है, चकित था।



DV15

बलदेव: ठीक है दे दो!

देवरानी एक कातिल मुस्कान से उसे गोभी परोस देती है।



फिर वह दरवाजे परखड़ी हो कर उसे खाते हुए देखने लगती है। और सोचती है।

"बलदेव अब तुमही मेरे सब कुछ हो। अब मेरे अंदर की औरत जाग गई है। जिसे सिर्फ अपनी खुशी की परवाह है और साथ में तुम्हारे प्यार और खुशी की परवाह है। कोई नियम किसी समाज की कोई परवाह नहीं है, अब जिंदगी के जो भी दिन बचे दिन है वोमेन। तुम्हारे साथ ही मस्ती में बिताउंगी और इसके लिए मैं समाज से क्या, भगवान से भी लड़ लुंगी।"

इतने में बलदेव अपना सर खाने से हटा कर अपनी माँ को देखता है जो मुस्कुरा रही थी।

देवरानी: ये गोभी और दू। फिकर मत करो ये मेरी पसंद की, बड़ी-बड़ी घोभी मैंने चुन चुन" के बनायी हैं।

बलदेव इस बात का मतलब समझ जाता है और खाना सटक जाता है और वह एक हिचकी लेता है।

देवरानी: आराम से धीरे से खाओ ये गोभी कहीं भागी नहीं जा रही है बेटा।

और उसकी आखो में देख ।



DV10

"तुम्हारा ही है, जिसने जितना खाना था वह उसने खा लिया अब बस तुम्हारा हिस्सा है और अब तुम्हे वह खाना है।"

ये बात सुन कर बलदेव का गुस्सा छू जैसे गायब हो जाता है कि देवरानी बलदेव को खुला निमंत्रण दे रही थी और वह हल्का-सा मुस्कुरा देता है।

पास में खड़ी कमला ये सब बात सुन रही थी और शर्म के मारे नीचे देख रही थी"Mये देवरानी ने तो आज मुझे भी पीछे छोड़ दीया । अब तो पति के सामने बेटे को रिझाने के लिए खुल के रंडीपना कर रही है।"

देवरानी काम बनते देख अपने कक्ष की और चलने लगती है और अपने चूतड़ों को खूब झटके देती हुई चल रही थी।



बलदेव उसके बड़े-बड़े नितम्बो और बड़ी-बड़ी गांड के थिरकन को महसूस और गांड के दोनों पटो की रगड़न देख रहा था, तभी देवरानी पीछे मुड़ती है।

देवरानी: बलदेव कैसे लगे खरबूजे?



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बलदेव सकपका जाता है। उसकी माँ अपनी गांड के बारे में मैं पूछ रही थी।

बलदेव: वह मैंने अभी तक चखा नहीं। अभी मैं आम खा रहा हूँ।

देवरानी: खरबूजे भी है। उसपे भी ध्यान दो।




bal1
अब देवरानी की बात सुन बलदेव भी शर्मा जाता है और सर नीचे कर लेता है।

कमला: महरानी आप भी खा लो ना।

देवरानी बलदेव की तरफ देख कर "वैसे भी मुझे ये सब पसंद नहीं, तुम केला ले आओ मेरे कमरे में खा लुंगी।" और बलदेव को एक आख मारती है।

कमला: ठीक है। मैं ले आउंगी महारानी।

बलदेव खाना खाता है और अपने पिता जी से बात करते हुए राज दरबार आता है। जहाँ उसे सेनापति के साथ घटराष्ट्र की सीमा पर जाना था।

देवरानी अपनी कक्षा में जाती है और एक कलम उठा कर एक कोरे कागज़ पर कुछ लिखने लगती है।

देवरानी: कमला इधर आना।



KAMLA-DEV

कमला: जी महारानी।

देवरानी उसे पत्र देती है।

कमला: ये क्या है।

देवरानी: (शर्मा कर) प्रेम पत्र।

कमला: ऐ हाय ! देखो कितना शर्मा रही है। अभी थोड़ी देर पहले तो बलदेव की हालत खराब कर दी थी आपने। अब तड़प रहा होगा उसका बदन प्यार के लिए!

ये बात सुन कर देवरानी और शर्मा जाती है।

देवरानी: अब क्या बतायू मैं तुम्हें कमला मेरे पासऔर कोई चारा नहीं था।

कमला: सही जा रही हो, महारानी! जी लो अपनी जिंदगी।

और मैं ये पत्र तुम्हारे प्रेमी तक पहुँचा दूंगी।



dv00

ये सुन कर देवरानी दौड कर अपने पलंग पर उल्टी हो कर लेट जाती है। ताकि को अपने मुहं को तकिये में दबा शरमा सके और फिर कुछ सोच कर मुस्कुरा देती है।

कमला: अरे रे बन्नो अभी से इतना शरमाना क्या अभी कौन-सी सुहागरात है आज आपकी?

देवरानी: अब बस करो! जाओ मुझे इस बारे में कुछ बात नहीं करनी।

कमला: अरे भाई. अब तो हम जाएंगे ही, प्रेमीका को प्रेमी मिल गया तो हमारा क्या काम।

देवरानी: अरे मत करो ना!



कमला: अरे लो लाड़ो शर्माओ नहीं। मैं जाती हूँ यहाँ पर लेटे-लेटे खूब सपने सजा लो अपने आशिक के।

ये सुन कर लज्जाते हुए।

देवरानी: कमला...!

कमला चली जाती है और पत्र को बलदेव को देने के लिए छुपा लेती है।


जारी रहेगी

1m
 
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BajiAmmi07

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महारानी देवरानी

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युवराज बलदेव से बात करने के लिए पिछले दो दिन के लगातर प्रयास करने के बाद भी असफल रहने के बाद रानी देवरानी अब समझ गई थी कि बलदेव से बात करने के लिए उसे कुछ और रास्ता निकलना पड़ेगा।

आज पूरे 4 दिन हो गए माँ बेटा बलदेव और देवरानी के बीच दूरिया आए हुए और चार दिनों में वह दोनों ऐसा महसूस कर रहे थे जैसे सालों से बिछड़े हुए हो।

देवरानी की आँखे सुबह सवेरा बिल्कुल खुलती है।

देवरानी: (मन मैं) आज तो इस लड़के से बात कर के रहूंगी, मेरी ही गलती थी । मैं ही उसे गलत समझ बैठी थी मैं एक सच्चे आशिक को हवास का पुजारी समझ बैठी थी पर उसने तो मेरे लिए खुद को बलिदान करने का निर्णय कर लिया था।

बलदेव के बारे में सोचते हुए वह स्नान घर में जा कर अच्छे से अपने को रगड़ कर साफ करती है। फिर एक गहरे गले का छोटी-सी चोली पहनती है। जिसमें देवरानी के वक्ष बड़ी मुश्किल से समा गए थे, माथे पर बिंदी और सिन्दूर लगा लेती है और बालो में चमेली के फूलो का गजरा लगा खूब सजती सवरती है और तैयार होती है।

आयने के सामने खड़े हो कर अपना रूप सवारती है और सोचती हैं। "बेटा आज तो तेरे पर ऐसे बिजली गिराउंगी के....।" और अपने गदराये बदन को देख के मुस्कुराती है।

अपनी कक्षसे बाहर निकाल कर जैसे वह रसोई की ओर घूमती है। उसे सामने से आता हुआ बलदेव देख लेता है और देवरानी एक मतवाली चाल चलती हुई रसोई में घुसती है।


देवरानी के भारी कुल्हे उसके हल्का झटका देने से एक लय से थिरक रहे थे और उसके बड़े दूध तो ऐसा लग रहा था मानो अभी उसकी चोली फाड़ कर बाहर आ जाएंगे इतने हिल रहे थे।

बलदेव ये दृश्य देख सब नशा और गम भूल जाता है और अपनी माँ की ऐसी चाल देख उसका लंड खड़ा हो जाता है।

तभी सब एक-एक करके खाना खाने आ जाते हैं। राजपाल बहुत दिनो बाद घाटराष्ट्र लौटा था और अधिकतर सब के साथ में ही भोजन करता था।

हमारी महारानी देवरानी रसोई में भोजन की तैयारी करने में लगी थी और राधा तथा कमला भोजन त्यार करने में उनका साथ दे रही थी।

राजपाल और बलदेव साथ बैठे थे और सामने बैठी थी महारानी सृष्टि ।

अब कमला खाना ले कर आती है और खाना परोसने लगती है।

देवरानी: अरी कमला आज खाना मैं परोसती हूँ।

सब अपने आसन पर नीचे बैठे हुए थे और देवरानी सबको भोजन परोसने लगी । सबको परोसने के बाद बलदेव की बारी थी।

देवरानी हल्का-सा अपना पल्लू खींचती है और बलदेव की तरफ घूम के झुक जाती है और उसको खाना परोसती है। बलदेव अपना सर झुकाए रहता है। अब देवरानी सब्जी का बर्तन उठा के...

देवरानी: ये लोगे?

बलदेव चुप रहता है।

देवरानी: बोलो ये लोगे क्या?

बलदेव मजबूरन अपना सारा ऊपर उठाता है और देखता है।

देवरानी झुकी हुई थी और अपने दूध की गहरी घाटी बलदेव के तरफ कर देती है।

देवरानी: तुम लोगे ये?

बलदेव की आखे उसके बड़े मम्मो पर बस थम जाती हैं।

बलदेव: क्या?

देवरानी: अब भी नहीं दिख रहा क्या? लोगे या नहीं?

बलदेव: हाँ...वो नहीं...!

बलदेव उसके भारी मम्मे और उसके ऊपर इतने बड़े निपल जो उबर कर दिख रहे थे, देख उसका लंड उठने लगता है।

देवरानी: हाँ या नहीं?

तुम्हें तो पसंद है ना ये?

बलदेव: क्या?

देवरानी: अपने दूध में हल्का-सा ढील देती है और "ये गोभी और उसके साथ मटर।"

बलदेव: पर अब मेरा दिल नहीं है इस गोभी और इस मटर के दाने में। " बलदेव उसके दूध और उसके दूध के दाने को देख बोलता है।

देवरानी: महाराज इस लड़के का रोज़-रोज़ दिल बदलता है। कुछ समझाइये इसे!

राजपाल: बेटा माँ दे रही है। गोभी खाने को तो खाओ ना, खाने में मत शर्माओ।

ये सुन कर के उसका बाप उसने उसकी माँ की गोभी जो के देवरानी अपने वक्ष को निशाना बना कर बता रही थी, खाने को कह रहा है, चकित था।

बलदेव: ठीक है दे दो!

देवरानी एक कातिल मुस्कान से उसे गोभी परोस देती है।



फिर वह दरवाजे परखड़ी हो कर उसे खाते हुए देखने लगती है। और सोचती है।

"बलदेव अब तुमही मेरे सब कुछ हो। अब मेरे अंदर की औरत जाग गई है। जिसे सिर्फ अपनी खुशी की परवाह है और साथ में तुम्हारे प्यार और खुशी की परवाह है। कोई नियम किसी समाज की कोई परवाह नहीं है, अब जिंदगी के जो भी दिन बचे दिन है वोमेन। तुम्हारे साथ ही मस्ती में बिताउंगी और इसके लिए मैं समाज से क्या, भगवान से भी लड़ लुंगी।"

इतने में बलदेव अपना सर खाने से हटा कर अपनी माँ को देखता है जो मुस्कुरा रही थी।

देवरानी: ये गोभी और दू। फिकर मत करो ये मेरी पसंद की, बड़ी-बड़ी घोभी मैंने चुन चुन" के बनायी हैं।

बलदेव इस बात का मतलब समझ जाता है और खाना सटक जाता है और वह एक हिचकी लेता है।

देवरानी: आराम से धीरे से खाओ ये गोभी कहीं भागी नहीं जा रही है बेटा।

और उसकी आखो में देख ।

"तुम्हारा ही है, जिसने जितना खाना था वह उसने खा लिया अब बस तुम्हारा हिस्सा है और अब तुम्हे वह खाना है।"

ये बात सुन कर बलदेव का गुस्सा छू जैसे गायब हो जाता है कि देवरानी बलदेव को खुला निमंत्रण दे रही थी और वह हल्का-सा मुस्कुरा देता है।

पास में खड़ी कमला ये सब बात सुन रही थी और शर्म के मारे नीचे देख रही थी"Mये देवरानी ने तो आज मुझे भी पीछे छोड़ दीया । अब तो पति के सामने बेटे को रिझाने के लिए खुल के रंडीपना कर रही है।"

देवरानी काम बनते देख अपने कक्ष की और चलने लगती है और अपने चूतड़ों को खूब झटके देती हुई चल रही थी।



बलदेव उसके बड़े-बड़े नितम्बो और बड़ी-बड़ी गांड के थिरकन को महसूस और गांड के दोनों पटो की रगड़न देख रहा था, तभी देवरानी पीछे मुड़ती है।

देवरानी: बलदेव कैसे लगे खरबूजे?

बलदेव सकपका जाता है। उसकी माँ अपनी गांड के बारे में मैं पूछ रही थी।

बलदेव: वह मैंने अभी तक चखा नहीं। अभी मैं आम खा रहा हूँ।

देवरानी: खरबूजे भी है। उसपे भी ध्यान दो।

अब देवरानी की बात सुन बलदेव भी शर्मा जाता है और सर नीचे कर लेता है।

कमला: महरानी आप भी खा लो ना।

देवरानी बलदेव की तरफ देख कर "वैसे भी मुझे ये सब पसंद नहीं, तुम केला ले आओ मेरे कमरे में खा लुंगी।" और बलदेव को एक आख मारती है।

कमला: ठीक है। मैं ले आउंगी महारानी।

बलदेव खाना खाता है और अपने पिता जी से बात करते हुए राज दरबार आता है। जहाँ उसे सेनापति के साथ घटराष्ट्र की सीमा पर जाना था।

देवरानी अपनी कक्षा में जाती है और एक कलम उठा कर एक कोरे कागज़ पर कुछ लिखने लगती है।

देवरानी: कमला इधर आना।

कमला: जी महारानी।

देवरानी उसे पत्र देती है।

कमला: ये क्या है।

देवरानी: (शर्मा कर) प्रेम पत्र।

कमला: ऐ हाय ! देखो कितना शर्मा रही है। अभी थोड़ी देर पहले तो बलदेव की हालत खराब कर दी थी आपने। अब तड़प रहा होगा उसका बदन प्यार के लिए!

ये बात सुन कर देवरानी और शर्मा जाती है।

देवरानी: अब क्या बतायू मैं तुम्हें कमला मेरे पासऔर कोई चारा नहीं था।

कमला: सही जा रही हो, महारानी! जी लो अपनी जिंदगी।

और मैं ये पत्र तुम्हारे प्रेमी तक पहुँचा दूंगी।

ये सुन कर देवरानी दौड कर अपने पलंग पर उल्टी हो कर लेट जाती है। ताकि को अपने मुहं को तकिये में दबा शरमा सके और फिर कुछ सोच कर मुस्कुरा देती है।

कमला: अरे रे बन्नो अभी से इतना शरमाना क्या अभी कौन-सी सुहागरात है आज आपकी?

देवरानी: अब बस करो! जाओ मुझे इस बारे में कुछ बात नहीं करनी।

कमला: अरे भाई. अब तो हम जाएंगे ही, प्रेमीका को प्रेमी मिल गया तो हमारा क्या काम।

देवरानी: अरे मत करो ना!

कमला: अरे लो लाड़ो शर्माओ नहीं। मैं जाती हूँ यहाँ पर लेटे-लेटे खूब सपने सजा लो अपने आशिक के।

ये सुन कर लज्जाते हुए।

देवरानी: कमला...!

कमला चली जाती है और पत्र को बलदेव को देने के लिए छुपा लेती है।


जारी रहेगी
Boring 😒
 

deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 37

प्रेम पत्र

देवरानी ने मन से बलदेव को स्वीकार कर लिया था और उसने इशारे से बलदेव को अपनी स्वकृति भी दे दी थी बस वह अब यही इंतजार कर रही थी-थी जब बलदेव उसके पत्र का उत्तर देता है।


DV8

आज सुबह की घटना के बाद सीमा पर बलदेव का मन भी नहीं लगता। सीमा पर रह-रह कर उसकी आखो के सामने सुबह के समय देवरानी की दृश्य आ जाता है।

बलदेव: (मन में) आज मदिरा को क्या पीना, देवरानी ने अपने बड़े वक्ष और चूतड दिखा कर मुझे जबरदस्त नशा चढ़ा दिया है। , जिस दिन हाथ आ गयी ना, तो उसको इतना मसलूंगा कि उसकी सब अंगड़ाई लेना, मटकना निकाल दूंगा" ये सोच कर बलदेव अपनी इस सोच पर मुस्कुरा देता है कि वह कैसे अपनी ही माँ को रगड़ने के बारे में सोच रहा है ।

देवरानी आज रात जल्दी से रात का खाना खा कर अपनी कक्षा में आ जाती है। उसे कहीं ना कहीं बलदेव का सामना करने से डर लग रहा था।

बलदेव भी सीमा से आज जल्दी वापिस पहुच कर अपने कक्ष में जाता है, तो उसे उसका कमरा साफ सुथरा मिलता है और उसके लिए 56 भोग बना कर रखा हुआ था खाने के लिए



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कमला: क्या हुआ युवराज आज जल्दी आगये? आप हाथ मुँह धो कर आइये!

बलदेव अपने अस्त्र शस्त्र निकाल कर, अपने कपड़े बदल कर हाथ मुँह धो कर आता है।

कमला: क्या बात है। युवराज आज होश में हो मदीरा नहीं चढ़ाई।

बलदेव: हा ! वो... !

कमला: हाँ क्या? सुबह में महारानी को देख तुमने आंखो से मदिरा पी ली थी?

बलदेव ये सुन कर मुस्कुराता है।

बलदेव: तुम्हें बड़ा दुख हो रहा है। अपनी महारानी के लिए !



BD7

कमला उसको सारी बात बता देती है कि कैसे कमला ने देवरानी को पूरी हकीकत बताई और वह हमें गलत नहीं समझती!

बलदेव: आज मेरा कमरा बहुत ज्यादा साफ सुथरा लग रहा है और ये पकवान इतने सारे व्यंजन क्यों?

कमला: बेचारी देवरानी ने तुम्हें मनाने के लिए खुद सुबह से तुम्हारे कमरे की सफाई की, बिस्तर को झाड़ा और उसकी चादर बदली, ताकिये का खोल बदला, तुम्हारे सब गंदे कपड़े धोए और ये सारे तुम्हारी पसंद के पकवान बनाये ।



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बलदेव ये सुन कर स्तब्ध हो जाता है।

बलदेव: इतना सब कुछ उन्होंने अकेले किया!

कमला: हाँ! पर जब मैंने कहा मैं करती हूँ तो उन्होंने मना कर दीया, ये कह कर "ये मेरा काम है। मेरा धर्म है।"

बलदेव: पागल है। वह!

कमला: वह अभी प्रेमिका भी नहीं बनी हैं और अभी से तुम्हारा हर काम ऐसे करना शुरू कर दीया है जैसे तुम्हारी पत्नी है वह और वह अपना पत्नी धर्म निभा रही हो।

ये सुन कर बलदेव का चेहरा शरमा कर लाल हो जाता है।

कमला: ओह्ह्ह हो! हा देखो तो पति जी के चेहरे की लाली!



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बलदेव: अब तुम मुझे महाराज कहना शुरू कर दो !

कमला: वह क्यू?

बलदेव: क्यों की तुम्हारी महारानी अब मेरी हो जाएगी, और तुम्हारे महारानी का महाराजा मैं बनूंगा!

कमला: इतनी जल्दी मत करो वह गरमा गरम महरानी है। इतना गरम खाओगे तो मुंह जल जाएगा! युवराज!

बलदेव: तुमने फिर युवराज कहा और वह जितनी भी गरम हो तुम्हारी महारानी को मेरे पास आते ही ठंडी कर दूंगा, मुंह जलना तो दूर की-की बात है।

कमला शरमा जाती है...ठीक है। बाबा तुम समझो देवरानी समझे! ये लो तुम्हारा प्रेम पत्र! "

कमला प्रेम पत्र अपने ब्लाउज से निकल कर बलदेव को दे देती है।

बलदेव भोजन करता है। फिर कमला भोजन के सब बर्तन उठा कर रसोई में ले जाती है।

बलदेव अपने बिस्तर पर लेट कर पत्र खोलता है और पढ़ना शुरू करता है।

" प्रिय शेर सिंह उर्फ बलदेव जी!

आशा करती हूँ आप अभी मेरा पत्र देख मुस्कुरा रहे होगे, मैं आपको हमेशा ऐसे ही मुस्कुराता हुआ ही देखना चाहता हूँ और उसके लिए मुझे अपने प्राण भी त्यागने पड़े, तो मुझे परवाह नहीं होगी ।



LETTER1

बलदेव मैंने हर एक बात कमला द्वारा जान ली है और जान गयी हूँ की तुम्हारे हर फैसले की वजह सिर्फ मैं हूँ और मेरा दुख है। , मैं ही पागल थी जो तुम्हें एक हवसी और मेरे मान सम्मान की परवाह ना करने वाला समझ लिया था क्यों की तुमने मुझे पाने के लिए शेर सिंह का भेस अपनाया था, जिसकी वजह से मुझे लगा था कि तुम मेरे जिस्म को पाने के लिए किसी नहीं हद तक गिर सकते हो पर अब मैं समझ गयी हूँ की मैं ही गलत थी।

तुमने मुझे पाने के लिए कमला से मदद ली जिससे मुझे लगा तुम मेरी मान मर्यादा दुनिया के सामने उजागर कर के मुझे बदनाम कर दोगे पर यहाँ भी मैं ही गलत थी।

कमला ने मुझे बताया कैसे तुमने मेरे लिए कोई शेर सिंह नामक किसी व्यक्ति के चयन कर लिया था और अगर मैं उस दिन घोड़े पर बैठ जाती थी तुम मुझे उसके पास छोड़ देने वाले थे। अब मैं समझ गयी हूँ की तुम मेरी ख़ुशी के लिए इतना बड़ा बलिदान देने जा रहे थे ।



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alfred tennyson ulysses summary

मैंने अपने जीवन में किसी से पहले प्रेम नहीं किया है, मेरा विवाह तो मेरे पिता जी ने जबरदस्त करवा दीया था । मेरा पहला प्रेम शेर सिंह था पर मैं उस से नहीं मिली हूँ । हाँ शायद! बलदेव मुझे नहीं पता पकी तुम दोनों के लिए मेरे दिल में प्रेम के जज्बात हैं या नहीं और जब ये बात चल रही थी, मैं इस संशय में थी की में किसका चुनाव करू?

मेरे दिल ने पहली बार किसी के सपने सजाये थे और वह था शेर सिंह और कोई अपनी प्यारी बातो से और मेरा ख्याल रख कर मेरे दिल को भाया वह था बलदेव।

बलदेव उर्फ शेर सिंह जी मेरा जीवन अब आपके नाम हैं । बसमेरा ये अनुरोध है कि मेरा ये दिल कभी मत तोड़ना, क्योंकि जब एक औरत हर मर्यादा नियम और धर्म के विरुद्ध जा कर फैसला लेती है, तो अगर उसके साथ कुछ गलत होता है तो वह दोबारा अपने जीवन में वापस नहीं जा सकती।

आपकी देवरानी"

देवरानी का पत्र पढ़ कर बलदेब कहता है ।

"सच में औरत को समझना बहुत मुश्किल है।"

"देवरानी तुम्हें किसी से भी प्यार हुआ हो पर बनोगी तो मेरी ही रानी ।"



BB0
alexander sergeyevich pushkin biography

फिर पत्र को एक तरफ रख कर बलदेव गहरी नींद में डूब जाता है।

जारी रहेगी
 
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deeppreeti

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महारानी देवरानी

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प्यार की सुबह


SUNRISE

आज का सवेरा बलदेव और देवरानी के लिए एक नई आस ले कर आया था और खास कर के ये सवेरा देवरानी के जीवन को जो हमेशा से अँधेरे में रही और प्यार को तरसती रही, उसका हक दिलाने के लिए आया था।


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रात भर बलदेव इतना खुश था कि उस रात इसे ठीक से नींद नहीं आयी। वह हर घंटे उठ कर बैठ जाता था। उसका दिल करता है कि वह देवरानी से अभी जा कर मिले। वह कभी उठ जाता था, तो कभी बैठता, कभी लेटता, कभी टहलने लगता है। रात करवाते बदलते कैसे भी निकलती है और सुबह होते ही वह खुशी के मारे जल्दी-जल्दी स्नान कर लेता है।

उधर देवरानी जिसका भी हाल कुछ बलदेव-सा वह था वह अपने बिस्तर पर रात भर इधर से उधर पलटती रही और जब भी आखे बंद करती उसे बलदेव हे दिखाई पड़ता है। (मन र वह इस बात को अपने दिल से मान लेती है कि बलदेव ही उसका पहला और आखिरी प्यार है।

देवरानी: (मन मे) मुझे ऐसा एहसास हुआ है कि भगवान में पहली बार मेरे दिल में प्यार डाला है और आज 35 साल की उम्र में मुझे प्यार हुआ भी तो अपने पुत्र से हुआ है ।



khushi-mukherjee-22

वैसे मेरे दिल को शेर सिंह ने भी छू लिया था जिसे मैं पहला प्यार समझ रही थी पर बलदेव ने अपनी वफ़ादारी और मेरे प्रति सम्मान और स्नेह दिखा कर मेरे दिल को मरोड़ दिया है। "

देवरानी यही सब सोच कर उठती है और नहाने चली जाती है।


देवरानी: (मन मे)"अब इस 35 साल के अधेड़ उमर की के एक बच्चे की माँ से 18 साल का जवान लड़का प्यार करता है। मैं और क्या मांग सकती हूँ भगवान से!"

नहा धो कर आ कर अपने माथे पर सिन्दूर और फिर गले में मंगलसूत्र पहन लेती है और खूब अच्छे से तैयार हो कर पहले अपने कक्ष के मंदिर में पूजा करने लगती है।

"भगवान मुझे याद है। मैंने अपने 10 दिन के व्रत की मन्नत मांगी थी और गरीबों को जिंदगी भर खिलाने का संकल्प किया था ।"

"भगवान मैंने बलदेव को अपने दिल से अपना लिया है। , कुछ ऐसा करो की वह गुस्सा छोड़ कर मेरे पत्र पढ़ कर मेरे पास भागा चला आए और मेरे और बलदेव के प्रेम के कारण से कुछ गलत ना हो। भगवान, अगर प्रेम करना गलत है और आपको मेरी ख़ुशी की परवाह नहीं ।तो ये तो गलत होगा मेरे साथ । अगर आपको लगता है कि मुझे खुश रहने का अधिकार है, तो मेरे साथ या बलदेव के साथ कुछ भी गलत नहीं होगा, अगर गलत हुआ कुछ तो मैं तेरे बनाये सब नियम भूल जाउंगी और धर्म पर से, मेरा विश्वास उठ जाएगा।"



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"अगर सब कुछ सही रहा मेरा और बलदेव का जीवन अच्छा कटा तो भगवान् मैं भी अपना वादा नहीं तोड़ूंगी । पूरे 10 दिन का व्रत रखूंगी और जीवन भर गरीबों के लिए अच्छा करती रहूंगी ।"

देवरानी फिर घंटी बजा के प्रसाद ले कर घर में बांटने लगती है। फ़िर कमला को प्रसाद दे कर कहती है कि बाकी का प्रसाद राज दरबार और गाओ में बटवा दे।

बलदेव भी स्नान कर तैयाए हो कर सबसे पहले अपनी कलम उठाता है और एक कागज़ के टुकड़े पर गुलाब का पानी छिड़क देता है और उससे वह कागज़ गुलाबी रंग का हो जाता है और वह कुछ देर उस कागज़ को सुखाने के पश्चात उस पर बलदेव धड़ा धड़ लिखना शुरू करता है और अपने पत्र को छुपा कर कमला को देने के लिए रख देता है।

जैसा वह बाहर निकलता है और देखता है कि देवरानी अपने कक्ष के द्वार पर खड़ी अपने बाल सुखा रही थी, बलदेव उसे देखता रह जाता है।



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उसकी साडी अस्त व्यस्त थी और उसके दूध का ऊपर हिसा और नाभि की गहरी घाटी साफ दिख रही थी । तभी सामने से राजपाल आ जाता है। और वह बलदेव को देख बोलता है ।

राजपाल: अरे तुम उठ गये बेटा, आओ बैठो यहाँ।

वही बीच आंगन में कुर्सी पर राजपाल उसे बैठा देता है। और देवरानी ने इस बात को भाप लीया था कि बलदेव उसे खा जाने वाली नजरों से देख रहा था और उसके देवरानी के करीब आने से पहले ही उसका बाप उससे राष्ट्र की सुरक्षा की बात करने लगता है। पर राजपाल की पीठ की ओर खड़ी देवरानी बलदेव को साफ दिख रही थी।



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बलदेव सिर्फ अपने पिता की हर बात में हाँ मिल रहा था और उसकी नजर अपनी माँ पर थी।

देवरानी: (मन मैं) बेशरम लड़का बाप के सामने माँ से मिलने के लिए तड़प रहा है। बलदेरव की नजरे उसके दूध और नाभि पर टिकी हुई थी।

देवरानी अब अपने हाथों से बालो को झाड़ते हुए थोड़ा ज़्यादा हिलती है। जिस से उसके स्तन भी हिलते है और उसका पूरा पल्लू नीचे गिर जाता है।


अब बलदेव को देवरानी के बड़े वक्ष और सुंदर पेट और नाभि साफ दिख रहे थे ।



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देवरानी: (मन मे) ये कैसे मुझे देख रहा हूँ। जैसा खा ही जायेगा। " "देखे भी क्यू ना बेचारा! इतनी सजी सवरी भी तो हूँ उसके लिए. और आज ऐसे कपडे भी तो उसके लिए ही पहने हैं की वह देख सके" और मुस्कुरा देती है।

बलदेव के इस तरह देखने से देवरानी भी गरम हो रही थी और वह बलदेव को भड़काने के लिए दिवाल से चिपक कर खड़ी हो जाती है और अपने दूध को ऊपर उठा लेती है और बलदेव को एक कातिल अंदाज़ से देखती है।

एक हाथ उठाने से उसके लाल ब्लाउज और कस जाता हैं और उसके ब्लाउज के नीचे कुछ जगह बन जाती है। , उसके पेट पर एक धारी बन जाती है और उसका पेट किसी रसगुल्ले की तरह चिकना था।

बलदेव: जी पिता जी आप सही कह रहे हैं।



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बलदेव अपनी धुन में अपनी प्रेमिका माँ को ताड़ रहा था और उसका बाप उसे सेना और युद्ध की बात समझा रहा था

एक दुसरे को ऐसे देख के देवरानी और बलदेव दोनों गरम हो रहे थे और तभी देवरानी अपना सर के लंबे बालो को अपने दोनों हाथ में उठा कर बाँधने लगती है और अपने बड़े वक्ष को बलदेव की तरफ निकाल लेती है और बड़े मादक अंदाज से उसकी आँखों में देखती है।

देवरानी: (मन में) आ कर पी लो दूर से क्या मिलेगा।

बलदेव: (मन में) हाय क्या माल हो तुम माँ कसम से! दिन रात पेलूँगा एक बार हाँ कर दो!

देवरानी: (मन में) बदमाश! जरूर मुझे चोदने के सपने देख रहा है। , हाय राम! मेरा बेटा मेरे बारे में ये कैसा सोच रहा है? उई! और वह सीधी खड़ी हो जाती है।



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बलदेव: (मन में) कैसे सीधी हो गई जैसे उसने कुछ किया ही ना हो।

देवरानी: (मन में ) अगर इसका बाप ना होता तो इसने अब तक तो मुझे नंगी कर दिया होता।

उसके अंदर कहीं ना कहीं, शर्म अब भी थीऔर वह वहाँ से पलट कर जाने लगती है। कुछ चार कदम चलने पर वह पीछे मुड़कर देखती है। देवरानी को पूरा यकीन था कि बलदेव की हवस भारी आखे उसके नितम्बो को जरूर घूर रही होंगी ।



वो मुड़ती है। तो बलदेव अपनी जुबान से अपने होठ चाट रहा था और उसका दूसरा हाथ अब उसकी धोती के ऊपर से उसके लौड़े पर था, देवरानी ने कनखियों से सब देख लीया था । वह बस मुस्कुराती है अपनी कक्षाकी ओर जाने लगती है।



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कुछ देर बाद वहा कुर्सी पर बैठ कर बात करने के बाद बलदेव के पिता राजा राजपाल चले जाते हैं। पर अपने खड़े लंड को छुपाने के लिए बलदेव थोड़ी देर वहीं बैठा रहा तभी वहाँ आ रही कमला को आता देख।

बलदेव: आओ कमला!

कमला: जी युवराज

बलदेव चुपके से उसके हाथ में वह प्रेम पत्र दे देता है और मुस्कुराता है।

कमला: मैं सब कुछ कर तो रही हूँ पर इसका इनाम क्या मिलेगा मुझे! युवराज?

बलदेव: तुम्हें इसका इनाम हम जरूर देंगे और कमला के कानों के पास जा कर बोला "जिस दिन तुम्हारी महारानी के महाराजा बन गए तब"



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बलदेव: पानी पिलाना कमला!

कमला रसोई के तरफ जाते हुए खिड़की से देवरानी के कक्ष में आवाज देती है। "महारानी दरवाजा खोलिये और बाहर आओ. अब आपके भागने से काम नहीं चलेगा।"

वो देवरानी को छेड़ते हुए कहती है। देवरानी सोचती है कि ये कमला उसे डरपोक समझ रही है।

देवरानी: (मन में) उसे बताना पड़ेगा में पारस की रानी हूँ।

देवरानी कक्ष से बाहर निकलती है तो सामने बलदेव को वही अपने लंड पर हाथ रखे बैठा पाती है।



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देवरानी: (मन मैं) इसे तो शांति ही नहीं है । 24 घंटे खड़ा ही रहता है।

तभी अचानक से बाहर से राजपाल वापस आ जाता है।

राजपाल: अरे बेटा मैं तुम्हें एक बात तो बताना भूल गया कि अगर सैनिक कम हो और शत्रु ज्यादा हो तो क्या करना चाहिए!



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देवरानी भी चल कर अपने बेटे के पास आ रही थी वह हल्का रुक जाती है।

पर इन सब से बेपरवाह कमला ग्लास और जग में पानी लिए रसोई के बाहर आती है और राजा राजपाल और बलदेव के पास झुक कर जग से गिलास में पानी भरने लगती है।

कमला ने जल्दी से बलदेव के दिये पत्र को अपने ब्लाउज में छुपाया था पर जैसे वह पानी भरना शुरू करती है। उसका ब्लाउज ढीला होता है और बलदेव का प्रेम पत्र बाहर गिर जाता है।

अब राजपाल और बलदेव के सामने वह पत्र गिर जाता है।

राजपाल: ये क्या है। कमला

कमला: उह वह ये वो...

कमला घबरा जाती है।



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उसका घबराया हुआ चेहरा देख राजपाल का शातिर दिमाग में कुछ गड़बड़ लगती है।

पानी पी रहा बलदेव पानी पीते हुए सरक जाता है और वह आँखे फाड़े देख रहा था ।

बलदेव (मन में) "हे! भगवान बचा लो!"

दूर खड़ी देवरानी (मन में) "अरे कृष्ण कन्हाई. बचा लो ले और घबरा कर अपने आख बंद कर के प्रार्थना करने लगती है और मंत्र पढ़ने लगती है।"

कमला: हाँ! वह वैध जी ने दिया था ये मुझे।

राजपाल: क्या है। इसमे

गुलाबी रंग के पत्र को देख ये तो गुलाबी है।

राजपाल (मन मे) : ये तो पत्र जैसा है।

कमला: वो महाराज इसमें जड़ी बूटी के नाम है। जो वैध जी ने कहा था मुझे कहा था युवराज को दे देने के लिए ।

कमला झट से उठा के पत्र बलदेव की तरफ करती है।

बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ाता है लेकिन उससे पहले..

राजपाल: ज़रा मुझे भी बताओ आख़िर कौन-सी औषधि और जड़ी बूटी मंगवाते हैं ये वैध जी।

राजपाल एक दम चतुर बनते हुए कमला के कांपते हुए हाथ से वह पत्र अपने हाथ में लेता है।

देवरानी अब आँख खोल कर देखती है। "हे भगवान, ये मेरा पत्र तो नहीं है पर बलदेव बुधु ने तो जरूर सब खुल्लम खुल्ला लिखा होगा!"

बलदेव डर से अपने दोनों हाथों से कुर्सी को पकड़ लेता है।


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और कमला कांपती हुई खड़ी थी।

जारी रहेगी ...
 
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Kumarshiva

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Thoda short me likhker jaldi jaldi aage badho
Jaha se chhuta hai waha jaldi pahucho,ye sb karmakand sbhi ko pta hai,pta chla ki kachhue ki chal se pahunchte pahuchate writer phir gayab
 

deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 39

बाल बाल बचे

राजपाल उसका पत्र को हाथ में लेते हैं और अपनी तरफ करता है।

राजपाल अभी पत्र खोलने वाले ही थे कि कोई जोर से चिल्लाता है।



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"राआआजजपाल !"

"हे राम !"

ये आवाज सुन कर राजपाल समझ जाता है। ये कोई नहीं उसकी माँ जीविका ही है जो उसे इस तरह से पुकार रही है।

सामने से भागती हुई राधा आती है। "महाराज! वह राजमाता महारानी जीविका चौखट पर गिर गई हैं"

राधा ने जीविका के कक्ष के सामने राजमाता जीविका अपनी बैसाखी से आती हुई दिखाई दी और अचानक अपने दरवाजे से बाहर निकलते हुए उसका एक पैर अटक गया और दूर पैर जो बिल्कुल नाकाम था, वह वैशाखी से संभल नहीं सकी और उलझ कर गिर गई. ऐसे आपातकाल में उसके मुंह से उसके बेटे का नाम फूटा पड़ा।

राधा के मुँह से जीविका के गिरने की खबर सुन राजपाल वह "प्रेम पत्र!" वही कुर्सी पर फेंक देता है।

जीविका की आवाज आने के बाद भी, बलदेव कमला और विशेषतौर पर देवरानी डरे हुए चेहरे से राजा राजपाल की ओर देख रहे थे और जैसे ही वहाँ राजपाल अपने हाथ से वह "प्रेम पत्र" फेकता है। , तीनों राहत की सांस लेते हैं।



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राजपाल: बलदेव, आप जरा देखो तुम्हारी दादी को क्या हुआ!

बलदेव: जी-जी पिता जी!

घबराई हुई कमला वह पत्र झट से उठा लेती है, अपने सामने से, और देवरानी वहाँ से ये मंज़र देख कर दौड़ते हुए अपने साडी के पल्लू को लहराते हुए अपने कमरे में पहुँचती है।

देवरानी अपने कक्ष के मंदिर की घंटी बजा कर वही घुटने के बल और अपने आखे बंद किये हुए हाथ जोड़ कर बैठ जाती है



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"भगवान ! तूने मेरी लाज रख ली! धन्यवाद भगवान !"

देवरानीकुछ श्लोक बुदबुदाती है और उठती है, तो देखती है। उसके सामने कमला खड़ी है ।

देवरानी: गुस्से में "कमला तुम्हारा दिमाग खराब तो नहीं!"

कमला: माफ़ कर दो महरानी !

देवरानी: ऐसे कैसे इतनी लापरवाही कर सकती हो !



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कमला: बस आज बाद नहीं होगा...!

कमला वह "प्रेम पत्र, जो बलदेव ने अपनी माँ देवरानी के लिए लिखा था" निकाल कर देवरानी को दे देती है। देवरानी झट से उसके हाथ से पत्र लेते हुए अपने तकिये के नीचे रख देती है।

कमला ऐसे अपने हाथ से जल्दीबाजी में पत्र छीने जाने पर।

कमला: बड़ा बेसबरी हो रही हो महारानी! इस पत्र के लिए!



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देवरानी मुस्कुरा रही थी ।

"होउंगी ही वह पहले प्यार की पहला पत्र जो है।"

और शर्म से अपने सर नीचे झुका लेती है।

कमला: लाड़ो अब नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माओ मत, चलो जीविका के पास नहीं तो दोनों को गायब देख महाराज जी समझ जाएंगे की गायब होने का मतलब है कि पत्र उनकी प्यारी पत्नी का ही था।

और कमला एक कातिल मुस्कान देती है।



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फिर दोनों चल पड़ती है, जीविका के कक्ष की तरफ ।

जीविका को चारो ओर से घेरे सब खड़े हुए थे और जीविका उस घेरे के अंदर-अंदर लंबी सांस ले रही है।

अब तक वैध भी पहुँच चुका था और उपचार शुरू कर देता है।

इतने में कमला और देवरानी दोनों भी पहुँच जाती है और सबके साथ ये भी जीविका को देखने लगती है।

वैध: महारानी जी आपको पता है। आपको चलने में परेशानी होती है। वैशाखी भी आप बड़ी मुश्किल से उठती हैं। तो आपको संभलना चाहिए था।



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राजपाल: हाँ माँ आपको कुछ भी लेना हो आप हमें बताएँ!

वैध: महाराज! इनके एड़ी के ऊपर की-की हड्डी जो नाज़ुक होती है। हमसे दरार आ गयी है। कुछ दिन इस पर जड़ी बूटी बाँध के रखना होगा ।



वैध अपना उपचार समाप्त करता है, तो जीविका का दर्द में अब कुछ आराम होता है।

वैध: अब आज्ञा दीजिए महाराज!

राजपाल को अब वह पत्र याद आता है और उसका शातिर दिमाग़ जानना चाहता था कि उसमे क्या है।

राजपाल: बेटा बलदेव तुमने वह पत्र देखा! वैध जी को क्या आयुर्वेदिक जड़ी बूटी चाहिए?

बलदेव: जी पिता जी.

महाराज राजपाल: वैधजी वैसे बलदेव आज ही जाए वह जड़ी बूटी लाने या कल।



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महाराज राजपाल एक शातिर दिमाग से अपनी आंखो को घुमा के वैध जी का तरफ देखता है।

वैध जी को समझ नहीं आता कि क्या बात चल रही है।

वैध राजपाल का तरफ देखता है। राजपाल के ठीक पीछे खड़ी कमला उसको देख कर आँख मारती है और अपने होठ दांत से काटती है।

राजपाल: क्या हुआ वैध जी आपने तो वह पात्र कमला को लिख दिया था।

वैध चलाक था वह कमला का इशारा समझ जाता है।

वैध: महाराज! आज कोई आवश्यकता नहीं, कल भी अगर वह जड़ी बूटीया मिले तो चलेगा।

और कमला की तरफ देखता है।

ये सब बलदेव देख रहा था और उसे भी सब समझ आ गया था ।

देवरानी ने तो बस मन में श्लोको की झड़ी लगा दी थी और लगातार प्रार्थना कर रही थी के वैध जी कही मना न कर दे के उनको कोई जड़ी बूटी नहीं मंगवाना था बलदेव से।

महाराजा राजपाल वैध का स्पष्ट उत्तर सुन कर मुस्कुराते हुए ।

राजपाल: ठीक है। तुम लोग माँ की देख भाल करो।

और फिर महाराज बाहर चला जाते है।

पर राधा को कहीं ना कहीं सबके मुख देख शक होना शुरू हो जाता है।



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फिर देवरानी और बलदेव कक्ष से बाहर चले जाते हैं।

राधा: कमला में महारानी श्रुष्टि से बता कर आती हूँ, वह यहाँ नहीं आई अब तक।

कमला: ठीक है। राधा!

फिर कमला राजमाता जीविका का मालिश करने लगी जिस से राजमाता जीविका अब राहत महसस कर रही थी।

जीविका: ये बलदेव और देवरानी भी चले गये।

कमला: जी राजमाता!

जीविका: "हाँ वह तो जाएंगे ही!"


(मन मैं: दोनों को प्यार का भूत जो चढ़ा है।)

कमला को इस तरह से जीविका का बोलना अटपटा-सा लगता है और सोच में पड़ जाती है। आखिर क्या सोच कर जीविका ने ऐसा कहा?

बलदेव बाहर अपने सैनिक अभ्यास में लगा हुआ था और अंदर देवरानी सब से पहले अपनी कक्ष का दरवाजा बंद करती है। फिर खिड़की परदे लगाती है और पलंग पर लेट कर अपने तकिए के नीचे से




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"प्रेम पत्र" निकालती है। जिसमें से गुलाब की भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी।

देवरानी पत्र को खोल कर पेट के बल लेट कर पढ़ना शुरू करती है।

" प्रिय माँ !


मैं आपका बलदेव हूँ और हमेशा आपका रहूंगा, अपनी माँ का बलदेव जितना सम्मान कल करता था आज भी उतना ही करता है और वह सम्मान कल भी उतना रहेगा चाहे प्रतिष्ठा कैसी भी हो।

मेरी माँ की मान मर्यादा इज्जत का रखवाला जितना बचपन से था उतना ही रहूँगा । मैं आज और कल भी नहीं बदलूंगा और हमेशा आपकी मान मर्यादा की रक्षा करूंगा।

मां अगर मेरे पास कोई भी गलत तरीके से आपके दिल को ठेस पहुँची तो उसके लिए आपसे क्षमा मांगता हूँ। आप! माफ़ कर दो मुझे!

जब तक मैं अपनी शिक्षा पूरी करके नहीं आया था और अपने जीवन में मैंने कल तक बहुत अकेला महसूस किया था और जैसे ही मेरी नज़र तुम पर गई तब से मैं तुम्हारे लिए पागल हो गया था कहीं ना कहीं मेरा दिल तुमने उस दिन चुरा लिया पर इस बात को मानने में मुझे समय लगा।

सिर्फ इसलिए नहीं कि तुम्हारा दुख देख कर मेरा दिल पसीज गया था, पर सही कहूँ तो तुम्हारी खूबसूरती भी बहुत बड़ी वजह थी, जिसने मेरे दिल को बेबस कर दिया मुझे अपनी माँ के प्यार में पड़ने के लिए ।

मां! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे साथ अपनी सारी जिंदगी बिताना चाहता हूँ और मैं तुम्हारे हर वह दुख जो तुमने जीवन में देखा है, उन सब पर मरहम की रुई की तरह लग जाना चाहता हूँ जिस से तुम्हारे दिल का दर्द मिट जाए और तुम जीवन का सही आनंद ले सको।

मैंने बहुत सोचा समाज के बारे में पर आख़िर कर मेरा दिल नहीं माना और मेरा दिल अपनी हसरते पूरी कर के रहेंगा और मेरी सबसे बड़ी हसरत है तुम्हें जीवन भर की ख़ुशी देना, उसके लिए ज़माने से लड़ने का और मरने का मुझे कोई गम नहीं होगा, अब बस आपके लिए जीने की ख़ुशी है।

बोलो जियोगी मेरे साथ? तो आज रात भोजन के बाद नदी किनारे आजाना!

तुम्हारा प्रेमी,

बलदेव उर्फ़ शेर सिंह।"





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देवरानी लेटी हुई ये प्रेम पत्र पढ़ रही थी और उसकी चूत में खलबली मच रही थी। वह बिस्तर पर अपनी चूत रगड़ के कराहती है!


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"आह बलदेव!"

जारी रहेगी ...
 
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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 40

बड़े अच्छे हैं

देवरानी लेटी हुई ये प्रेम पत्र पढ़ रही थी और उसकी चूत में खलबली मच रही थी। वह बिस्तर पर अपनी चूत रगड़ के कराहती है!

"आह बलदेव!"



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देवरानी के कान में कमला की कही हुई बात गूंजती है। "महारानी बलदेव का हाथ इतना बड़ा है। तो वह कितना बड़ा होगा और बलदेव का वह तो आपके आगे की खाई और पीछे के समुंदर को पार कर देगा"

देवरानी ये सोच कर अपना सर तकिये मैं दबा लेती है।

कमला की कही हुई मजाक की बात अब देवरानी को सच होती दिख रही थी जो खाई और समुंदर को पार राजपाल कभी नहीं कर पाया था शायद उसके अंत तक उसका बेटा चला जाए । अब यही उम्मीद देवरानी को अपने बलिष्ठ पुत्र से थी उसके वर्षों से तरसती अनछुई खाई और समुंदर को कोई पार कर दे। कोई वीर हो जो तैर कर खाई और समुद्र को चीर कर वह पार कर सके।



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dark poems about depression

ये सब सोचते हुए देवरानी शाम में उठ कर अपने आप को खूब अच्छे से रगड़-रगड़ कर स्नान कराती है। सजति सवारती है और छोटे से ब्लाउज और साडी में आग उगलती अपनी जवानी को ढक लेती है।

फिर वह अपने कक्षा में पूजा कर भगवान से प्रार्थना करती है के सब कुछ कुशल मंगल हो!

"भगवान मेरा मन रख लेना। हम पहली बार हम मिल रहे हैं कुछ उल्टा सीधा ना हो।"

देवरानी अब मंदिर से थोड़ा सिन्दूर उठाती है और उसको अपने मंगल सूत्र से रगड़ती है और मंगल सूत्र। पहन के फ़िर सिन्दूर अपने माथे पर लगा लेती है।



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अब देवरानी अपने आप को देखने आईने के सामने जाती है और बड़े शिद्दत से संवारती है।

देवरानी: (मन में) अच्छी। तो लग रही हूँ ना मैं, बलदेव को पसंद आऊंगी ना!

देवरानी अभी अपने आप को निहार रही थी कि कमला आ जाती है और उसे ऐसे अपने आप को बेहतर तरीके से सजते संवरते देख-

कमला: (मन में) ये तो चुदने के लिए बेहद बेचैन है।

देवरानी: अरे आओ कमला!



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कमला: क्या बात है। महारानी आज तो ऐसी सजी हो जैसी कवारी दुल्हन सजती है।

देवरानी ये सुन कर शर्मा जाती है।

हट कमला! तुम तो कुछ भी कहती हो। "

कमला: सही कह रही हूँ आप आज तो कयामत लग रही हो!

देवरानी: सच बताओ ठीक लग रही हूँ ना!



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कमला: आप अप्सरा से काम नहीं लग रही हो महारानी देवरानी, अगर बलदेव अकेला पा ले तो आप के दरिया और समुंदर दोनों में, अपनी नाव से गोते लगा ले।

देवरानी इस बात का मतलब समझ कर शर्मिंदा हो जाती है।

देवरानी: मेरा बलदेव इतना गंदा नहीं है ।

कमला: आपकी गलत फहमी है। वह क्या हैआपको जल्द ही पता चल जायेगा।

देवरानी: हे भगवान, इस कमला को सद्बुद्धि दो।

कमला: बस " हे भगवान! हे भगवान! ही चिल्लाती रह जाओगी! अगर बलदेव को एक मौका दिया तो!

देवरानी: बस करो कमला, दीवालों को भी कान होते है।



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कमला: वैसे बन ठन के कहाँ जा रही हो?

देवरानी: बलदेव से मिलने!

कमला: वह तो मुझे पता है। अपने यार से ही मिलोगी! पर कहा मिलोगी?

देवरानी अपने बाल संवारते हुए "उसने पत्र में लिखा था कि आज रात नदी किनारे मिलो!"

देवरानी की बात सुन कर कमला हस देती है।

कमला (मन में) : जो संस्कारी कल तक संकारो का पल्लू ओढ़े बिना घर से बाहर नहीं निकलती थी आज रात अपने आशिक से मिलने आज नदी के किनारे पर जाएगी।

कमला: आप ऐसे ही खुश रहें महारानी और याद रखें आप दोनों की प्रेम लीला कोई देखे नहीं!

देवरानी कमला के पास आकर उसका दोनों हाथ पकड़ लेती है।

"कमला तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद बहन आज तुम्हारे कारण ही मैं अपना प्यार पाने जा रही हूँ और इतनी खुश हूँ जैसे मुझे कोई गम नहीं था, तुमने मेरा हर मौके पर साथ दिया है ।"

"कमला बोलो इसके बदले में क्या चाहिए?"

कमला: मुझे जब चाहिए होगा तो बता दूंगी अभी तो आप लोग खुल के जियो।

देवरानी: हाँ अब किसी को पता भी चल जाएगा तो मैं उसकी परवाह नहीं करूंगी और ना कभी डरूंगी।

"घुट-घुट के 100 दिन जीने से अच्छा है। एक दिन ख़ुशी की जी लो"





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daffodils lyrics
कमला: वाह अब तो बड़े बहादुर हो गए हैं आप!

रात में देवरानी खूब जम के पकवान बनाती है और साथ में वह अपने हाथों से बलदेव के लिए खास कर खीर बनाती है।

रात का भोजन करने सब बैठे । एक तरफ बलदेव और उसके पिता राजपाल और दूसरी तरफ देवरानी और सृष्टि बैठी हुई थी ।

कमला और राधा खाने की तैयारी कर रही थी।

राजपाल: कमला, ज़रा माँ का भोजन उनको कक्ष में पहुँचा देना।

कमला: आप लोग खा ले मैं उनके लिए हूँ ना!

धीरे-धीरे कमला और राधा भोजन लगा देती है और सब खाना शुरू करते हैं।

राजपाल: वाह! आज का खाना ज्यादा स्वादिष्ट लग रहा है।



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सृष्टि: हाँ! वह तो है।

कमला: आज महारानी देवरानी ने खुद भोजन बनाया है।

सृष्टि कमला के मुंह से देवरानी के लिए महारानी सुन आगबबूला हो जाती है।

राजपाल: क्या बात है। रानी देवरानी आज आप बहुत सजी सवरी और खुश नजर आ रही हैं और ऊपर से इतना अच्छा खाना भी आपने बनाया है ।

कमला: (मन मैं) अब तुम्हें कैसे ये बताये महाराज राजपाल, की ये देवरानी की चूत ने अपने बराबर लौड़े का इंतज़ाम होने जाने के बाद, खुशी से देवरानी को मजबूर कर दिया ऐसा खाना बनाने के लिए ।

देवरानी: (मन में) महाराज आपको क्या बताऊ आप के निकम्मे होने की वजह से, आज मैं अपने बेटे से एक प्रेमी के रूप में, तुम सब से छुप के मिलने जा रही हूँ।

सृष्टि: महाराज इतना भी अच्छा खाना नहीं है। वह तो देवरानी ठीक ठाक बना लेती है।



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कमला: (मन मैं) अब इसकी क्यू जली पड़ी है। इसको तो बूढ़े लंड से वह काम चलाते रहना पड़ेगा देवरानी की बराबरी करती है। करम जली!

राजपाल: नहीं महारानी खाना सच में बहुत स्वादिष्ट है ।

और सृष्टि देवरानी का तारीफ सुन कर तुनक कर उठ जाती है।

राजपाल: बेटा तुम्हें कैसा लगा?

बलदेव जो चुपचप चोर नज़रो से देवरानी पर नज़र गड़ाये हुए था वह देवरानी की आँखों में आँखे डाल देख रहा था ।

बलदेव: "बहुत अच्छी है।"

राजपाल: कौन अच्छी है। तुम्हारी माँ?

राजपाल: मैं खाने की बात कर रहा हूँ ये तो मुझे पता है। तुम्हारी माँ अच्छी है। तुम्हारा बहुत ध्यान रखती है।

बलदेव देवरानी का तरफ दिखता है और उसके पल्लू के जालीदार कपड़ो से उसके बड़े ऊंचे दूध को देख बोलता है ।

बलदेव: इनके ये भी अच्छे हैं।

राजपाल: क्या बक-बक कर रहे हो?


जारी रहेगी
 
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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 41

प्रथम भेंट में कुछ प्रेम भरी शिकायते

बलदेव देवरानी का तरफ दिखता है और उसके पल्लू के जालीदार कपड़ो से उसके बड़े ऊंचे दूध को देख बोलता है।

बलदेव: इनके ये भी अच्छे हैं।

राजपाल: क्या बक-बक कर रहे हो?





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बलदेव: मतलब माँ भी अच्छी और इनके हाथों का ये सब खाना बहुत अच्छा है।

राजपाल: ओह! हाँ तुमने सही कहा

ये बात समझ हल्का-सा शर्मा कर देवरानी अपना सर नीचे कर भोजन खाने लगती है।

बलदेव: ओर लीजिए न पिता जी

राजपाल: नहीं, अब नहीं

बलदेव: अब लीजिए, ये क्या बात हुई? "मां इतनी अच्छी है। माँ के ये सब चीज खाने लायक है। पर आप खाते हैं नहीं"

राजपाल: अब बुढ़ापा आ गया पहले जैसी बात नहीं रही!



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बलदेव: पर मैं तो कभी थकूं ही नहीं, अगर इतना अच्छे खाने मिले तो...

राजपाल: हाँ तुम जवान हो! तुम खाओ पियो! कुछ मत छोड़ना सब चाट-चाट के खा जाओ

बलदेव: बस आप की आज्ञा और आशीर्वाद मिल जाए तो मुझे इतना खाउ दिन रात की खा-खा कर मोटा हो जाऊँ।

राजपाल: मेरी आज्ञा और आशीर्वाद है। मेरे हिस्से का भी खा लिया करो।

बलदेव: अब मैं चाट-चाट कर खाऊंगा, माँ अब आप मुझे मना मत करना।



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देवरानी ये सुन कर मुस्कुराती है।

देवरानी: "हाँ नहीं करूंगी मना, जितना जी चाहे खा लेना।"

देवरानी अपने होठ अपने दांत से पिसती हुई कहती है।

उसके बाद महाराज और फिर बलदेव खाना खा कर बाहर चला जाता है और कमला और देवरानी बर्तन समेटने लगती है।

कमला: अब तो तुम्हारा आशिक भी चला गया। नदी के किनारे तुम कब जाओगी?

देवरानी: कमला देखो ना, सैनिक बल चारो ओर घेरे हुए हैं और ये महाराज और सृष्टि भी पीछे पड़े रहते हैं हम पर नज़र रखते हैं।

कमला: तो फिर पीछे के रास्ते से जाओ



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देवरानी: हाँ इन लोगों को झपकी लेने दो फिर जाऊंगी बलदेव से मिलने।

कमला और हाँ जल्दी आ जाना पूरी रात नदी पर मत रुक जाना!

देवरानी: नहीं कमलाl!

कमला: हाँ! नहीं तो ज्यादा समय रुकी नदी पर तो बलदेव तुम्हारे नदी में गोते लगवा देगा।

यह बात बोलते समय कमला अपना सर झुकाए शर्माती है।

देवरानी: कुछ भी कहती हो! भगवान तुम्हें सद्बुद्धि दे!

बलदेव खाना खा कर टहलने के बहाने सोचते हुए नदी की ओर चल देता है।

बलदेव (मन में) आज कैसा दिन है। मेरी अपनी माँ जो अब मेरी प्रेमिका बन गई है। मैंने उसे प्रेम लीला के लिए नदी पर बुलाया है और वह भी घर वालो और सैनिकों से छुप कर आएगी, अपने प्रेमी से मिलने के लिए, ये प्रेम, ये मिलने की तड़प, ये जिस्म की आग हम से क्या करवाती है।

रात धीरे-धीरे बढ़ रही थी और सब अपने-अपने कक्ष में आराम कर रहे थे और सैनिक बल भी अब एक कोना पकड़कर झपकी लेने लगे थे, इसी का फायदा उठा कर देवरानी अपना हल्का-सा शृंगार करती है और अपने आशिक से मिलने के लिए पीछे के दरवाजे से नदी किनारे जाने के लिए बाहर जाने लगती है।

देवरानी: (मन में) हे भगवान कुछ गड़बड़ नहीं हो! , किसी ने हमें धर लिया तो क्या होगा, अरे नहीं मैं क्यू डरूँ! मेरा बलदेव सब संभाल लेगा, जो होगा देख लेंगे!

"पर आज अपने प्रेमी से ऐसे चोरी छुपे मिलने का आनंद कुछ और ही है।" और वह ये सोच कर मुस्कुरा रही थी।

बलदेव इधर नदी पर पहुँच कर एक पेड़ के नीचे छोटे से पत्थर पर बैठ जाता है और अपने हाथ में कुछ कंकर ले कर नदी के चलते हुए पानी पर मारने लगता है।



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देवरानी तभी नदी पर पहुँच कर चारो ओर देखती है और उसे पूर्णिमा की रात की रोशनी में पेड़ के नीचे बैठा हुआ बलदेव दिख जाता है।

देवरानी एक मुस्कान के साथ"कितनी शिद्दत से इंतज़ार कर रहा है। मेरा प्रेमी!"

देवरानी धीरे-धीरे चल के बलदेव के पास पहुँच रही थी, अंदर से देवरानी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा था और उसके हाथ और पैर हल्का-सा कांपने लग गए थे।

बलदेव धीरे-धीरे चल के मस्तानी देवरानी सजी सवरी अपने कसे हुए बदन को एक छोटे से ब्लाउज और साडी में लिपटी और अपनी लाज शर्म से छुपते छुपाते हुए उसके पास आ रही अपनी प्रेमिका को देख रहा था।

बलदेव: (मन में) शर्माओ मत माँ। मैं तुम्हारी सारी लाज शर्म निकाल दूंगा।

देवरानी अब बलदेव के सामने खड़ी थी। वह अपने पैर के अंगुठे को अपने अंगूठे के बगल वाली उंगली पर चढ़ाये हुए खड़ी थी और उसकी आखे नीचे थी जैसे इंतजार कर रही हो के बलदेव कुछ कहे।



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बलदेव अपनी माँ का रूप देख खो गया था और निहारे जा रहा था पर अंदर ही अंदर उसकी भी दिल की धड़कन, थोड़ी बढ़ गई थी, क्योंकि ये उसका भी पहला प्यार था।

देवरानी भी अपने पहले प्यार और अपने पहले यार के सामने सजी सवरी हुई खड़ी थी उसको अपने-अपने परोसने आई थी।

आख़िर कर बलदेव हे हिम्मत कर के चुप्पी तोड़ता है।

बलदेव: माँ बहुत देर कर दी!

देवरानी सर उठा कर बलदेव को देखती है। जो अपने मुछो पर ताव दे रहा था

देवरानी: हाँ वह सब के सोने का इंतजार कर रही थी।

बलदेव: मुस्कुरा के "अच्छा आओ मेरे पास बैठो।"

बलदेव के अच्छे बरताव से खुश हुई देवरानी उसके पास ही पत्थर पर बैठ जाती है।

बलदेव: खाना खा लिया आपने?



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देवरानी: हम्म!

बलदेव: झूठ!

देवरानी: हम्म्म!

बलदेव: खा कर आना था आपको। मैं थोड़ा समय और प्रतीक्षा कर लेता।

देवरानी: थोड़े देर में तो तुम्हारी हालत ऐसी हो गई और मुस्कुराती है। वैसे देर मैंने नहीं तुमने की है।

बलदेव: वह कैसे?

देवरानी: तुमने मुझे बताने में की। वह तो भला हो कमला का।

बलदेव मुस्कुरा कर "अच्छा जी!"

बलदेव: मैं डरता था के कहीं तुम।

देवरानी: हाँ हिम्मत नहीं तुम में!

बलदेव: ऐसी बात नहीं है।

देवरानी: क्या ऐसी बात नहीं है। मैंने पत्र लिखा तब तुम माने। जब तुम मदीरा में डूबे रहे तो क्या तुम मिलने आये।

बलदेव और देवरानी अपना मुंह अभी भी नदी के तरफ थे और दोनों बिना दूसरे को देखे बाते कर रहे थे।

बलदेवःधन्यवाद माँ!



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देवरानी: चुप करो धन्यवाद कितनी बात का करोगे, तुम इतने क्यू पीते हो?

बलदेव: वोह हम्म!

देवरानी बलदेव को ज़ोर से पूछती है। जिसका बलदेव उत्तर नहीं दे सका तब देवरानी उसको अपने सामने आने को कहती है।

देवरानी: इधर आओ मेरे सामने मेरे आखों में आखे डाल कर कहो!

बलदेव उठ कर पत्थर पर बैठी देवरानी के सामने खड़ा हो जाता है।

देवरानी: बढ़ कर वृक्ष हो गए, पर एक छोटी-सी बात कहने की हिम्मत नहीं जुटाई और मदिरा में डूब गए।

ये कह कर देवरानी बलदेव जो की 6.3 उचाई का था उसको नीचे होने को कहती है।

देवरानी: नीचे आओ तुम इतने ऊंचे हो की मैं तुम्हारी आँखे नहीं देख सकती कि क्या झूठ क्या सच कह रहे हो!

बलदेव ये सुन कर अपने घुटनो के बल देवरानी के आगे बैठ जाता है।

बलदेव के आसु से भरे थे।

देवरानी: अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं क्या करती हूँ? कहाँ जाती मैं? और तुमने कैसे सोचा कि अगर तुम अपने प्यार का इजहार कर देते, तो क्या मैं तुम्हें जान से मार देती?

और फिर तुमने तो मेरे लिए नया पति भी ढूँढ लिया और उस दिन मुझे किसी और के पास भी ले जा कर छोड़ देते?

बलदेव कुछ नहीं बोल रहा था।

देवरानी: बलदेव सुन रहे हो ना!



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बलदेव: हम्म्म!

बलदेव चुपचप सुने जा रहा था और उसका दर्द उसके आखो में पानी बन दिख रहा था।

देवरानी: क्या तुम पागल हो?

अब देवरानी की आंखो से आसू बहने लगते है।

देवरानी: क्या मुझे किसी और को सौप के तुम खुश रह पाते? तुमने ऐसा सोचा भी कैसे?

देवरानी अपना हाथ ले जा कर बलदेव को हल्का थप्पड मारती है और फिर ज़ोर से रोने लगती है।

देवरानी: "तुम मेरे पहले प्यार हो और मेरे बेटे भी हो। मैं तुम्हारे प्यार की कुर्बानी दे कर कभी जी नहीं पाती और तुम तो दो दिन में मरने के हाल में आ गए, तुम तो मेरे बिना मर ही जाओगे।" (रोते हुए) !

बलदेवःहाँ माँ (रोते हुए) !

देवरानी और तुमने कहा था कि तुम अपनी जान दे दोगे अगर तुम मुझे नहीं मिली तो।

बलदेव: हम्म!

देवरानी रोते हुए उठ खड़ी होती है और सीधा बलदेव के बाहो में आकर उसका गर्दन पकड़ कर लटक-सी जाती है।

देवरानी: खबरदार अगर तुमने अपने मरने का सोचा भी तो तुम्हारी जान से पहले मेरी जान जाएगी।


देवरानी फफक कर रोने लगती है।

अपनी मां, अपने प्रेमी को ऐसे अपने लटके देख अपने दोनों हाथों से अपनी माँ को पकड लेता है और उठा लेता है।

बलदेव: नहीं माँ मुझे माफ़ कर दो।

देवरानी: मुझे भी माफ़ कर दो जो मैं भी दूसरे पुरुष के बारे में सोच रही थी।

बलदेव: तुम्हें जीवन भर अपनी बना कर रखूंगा।



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देवरानी: मुझे तो बाकी के हर जन्म में भी तुम ही चाहिए।

और फ़िर से दोनों गले लग जाते हैं।

थोड़े देर तक गले लगने पर दोनों का दिल ठंडा होता है।

देवरानी: अब उतारो मुझे नीचे तुम थक जाओगे।

बलदेव: मैं तुम्हारे भार से कभी थक नहीं सकता।

देवरानी: मैं कोई हल्की नहीं जो तुम ऐसे उठ कर चल सकोगे। तुम्हारी नस न चढ़ जाएगी।

बलदेव देवरानी को नीचे उतार देता है।



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बलदेव: बस आपको मेरी काबिलियत पर इतना भरोसा है वैसे मैं तुमसे दुगना भार रात भर उठा के रखू तो भी टस से मस नहीं होऊंगा।

देवरानी: हा आए बड़े पहलवान कहीं के, चलो अब जल्दी चले घर!

देवरानी आगे-आगे चलने लगती है। बलदेव अभी जाना नहीं चाहता था वह बस वही रुक गया था।

देवरानी उसको पलट कर देखती है।

देवरानी: क्या उल्लू हो! निहारना बंद करो और चलो!

बलदेव: उल्लू नहीं मैं चकोर हूँ और तुम चांद हो!

देवरानी भली भांति जानती थी कि बलदेव उसके पिछवाड़े पर नजर गड़ाए हुए हैं। देवरानी अब हल्का-सा अपनी गांड को हिला देती है।



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बलदेव: थोड़ी देर और रुको ना।

देवरानी: अपनी मस्तानी चाल से जाने लगती है और जन बुझ कर बलदेव को तड़पा रही थी और धीरे-धीरे ऐठ के चल रही थी।

बलदेव: रुको मुझे पता है आप मेरी बात नहीं मानती हो।

देवरानी देखती है, बलदेव उसकी तरफ तेजी से भाग रहा है। तो वह भी भागने लगती है, पर बलदेव झट से उसको पीछे से पकड़ लेता है।

देवरानी को कसे हुए बलदेव अब उसके पीछे चिपक जाता है।

देवरानी: उफ़ हे भगवान!

बलदेव: कब तक भागोगी?



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अब बलदेव का लंड देवरानी को अपने पीछे महसुस होने लगता है और उसके मुँह से सिस्कारी निकलने लगती है। इस्सस! और उसे मसल देता है

बलदेव: इतनी सजती संवरती हो तुम, कहीं कोई भगा ना ले जाये!

देवरानी: आह! मुझे भगा ले जाने वाले के पास शेर का दिल होना चाहिए. "उह!"

बलदेव के इस तरह मसलने से देवरानी मचल रही थी और उसके साड़ी का पल्लू गिर जाता है।

बलदेव देवरानी के कमर में हाथ रख देवरानी के कंधे को चूमता है। जिस से देवरानी बलदेव से दूर होती है और उसके सामने सीधी खड़ी होती है।

बिना पल्लू के ब्लाउज में कसो गेंदो की तरफ बलदेव बड़े चाव से देख रहा था।

बलदेव:(मन मैं) ये सच में इतने बड़े हैं को घाटराष्ट्र में इतने बड़े किसी की चुची नहीं होंगे . माँ तुम सच में परी हो ।

मंगलसूत्र और सिन्दूर लगाए सजी संवरी देवरानी कयामत ढा रही थी ।



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बलदेव: माँ ब्लाउज बहुत अच्छा है।

देवरानी:सिर्फ ब्लाउज?

और कामुकता से बलदेव को देखती है।

बलदेव: वो भी बड़े अच्छे है।

देवरानी:बस सिर्फ बड़े अच्छे हैं। और कोई शब्द नहीं!

बलदेव: बहुत बड़े बड़े और अच्छे है।

इसका अर्थ समझ कर देवरानी शर्मा जाती है।


देवरानी बलदेव से दूर जाने लगती है। बलदेव उसके साड़ी का पल्लू पकड़ के उसके पास जाता है और उसके बड़े वक्ष को ढक देता है।


बलदेव के ऐसा करने से देवरानी बहुत खुश होती है।

बलदेव: अब चले माँ!

देवरानी: चलो बेटा जी!



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दोनों रास्ते पर चलने लगते हैं और बलदेव रास्ते में कुछ कंकड़ उठा कर फिर उनको पानी में फेकने लगता है।

देवरानी: तुम धीरे-धीरे अपने बचपन में जा रहे हो

बलदेव: प्यार में अक्सर लोग बच्चे हो जाते हैं।

देवरानी: हाँ ये पत्थर ही मारते रहो पानी में बच्चों की तरह...!

बलदेव देवरानी की आंखो में दिखता है।

बलदेव: अभी तो पत्थर ही है। कुछ और मिलेगा तो वह भी मार लूँगा

ऐसे खुल्लमखुल्ला मारने की बात समझ कर देवरानी का मुँह खुला रह जाता है।

देवरानी: घत्त! बेशरम...!


जारी रहेगी
 
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