deeppreeti
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महारानी देवरानी
अपडेट 36
देवरानी द्वारा बलदेव को लुभा का मनाना
अपडेट 36
देवरानी द्वारा बलदेव को लुभा का मनाना
युवराज बलदेव से बात करने के लिए पिछले दो दिन के लगातर प्रयास करने के बाद भी असफल रहने के बाद रानी देवरानी अब समझ गई थी कि बलदेव से बात करने के लिए उसे कुछ और रास्ता निकलना पड़ेगा।
आज पूरे 4 दिन हो गए माँ बेटा बलदेव और देवरानी के बीच दूरिया आए हुए और चार दिनों में वह दोनों ऐसा महसूस कर रहे थे जैसे सालों से बिछड़े हुए हो।
देवरानी की आँखे सुबह सवेरा बिल्कुल खुलती है।
देवरानी: (मन मैं) आज तो इस लड़के से बात कर के रहूंगी, मेरी ही गलती थी । मैं ही उसे गलत समझ बैठी थी मैं एक सच्चे आशिक को हवास का पुजारी समझ बैठी थी पर उसने तो मेरे लिए खुद को बलिदान करने का निर्णय कर लिया था।
बलदेव के बारे में सोचते हुए वह स्नान घर में जा कर अच्छे से अपने को रगड़ कर साफ करती है। फिर एक गहरे गले का छोटी-सी चोली पहनती है। जिसमें देवरानी के वक्ष बड़ी मुश्किल से समा गए थे, माथे पर बिंदी और सिन्दूर लगा लेती है और बालो में चमेली के फूलो का गजरा लगा खूब सजती सवरती है और तैयार होती है।
आयने के सामने खड़े हो कर अपना रूप सवारती है और सोचती हैं। "बेटा आज तो तेरे पर ऐसे बिजली गिराउंगी के....।" और अपने गदराये बदन को देख के मुस्कुराती है।
अपनी कक्षसे बाहर निकाल कर जैसे वह रसोई की ओर घूमती है। उसे सामने से आता हुआ बलदेव देख लेता है और देवरानी एक मतवाली चाल चलती हुई रसोई में घुसती है।
देवरानी के भारी कुल्हे उसके हल्का झटका देने से एक लय से थिरक रहे थे और उसके बड़े दूध तो ऐसा लग रहा था मानो अभी उसकी चोली फाड़ कर बाहर आ जाएंगे इतने हिल रहे थे।
बलदेव ये दृश्य देख सब नशा और गम भूल जाता है और अपनी माँ की ऐसी चाल देख उसका लंड खड़ा हो जाता है।
तभी सब एक-एक करके खाना खाने आ जाते हैं। राजपाल बहुत दिनो बाद घाटराष्ट्र लौटा था और अधिकतर सब के साथ में ही भोजन करता था।
हमारी महारानी देवरानी रसोई में भोजन की तैयारी करने में लगी थी और राधा तथा कमला भोजन त्यार करने में उनका साथ दे रही थी।
राजपाल और बलदेव साथ बैठे थे और सामने बैठी थी महारानी सृष्टि ।
अब कमला खाना ले कर आती है और खाना परोसने लगती है।
देवरानी: अरी कमला आज खाना मैं परोसती हूँ।
सब अपने आसन पर नीचे बैठे हुए थे और देवरानी सबको भोजन परोसने लगी । सबको परोसने के बाद बलदेव की बारी थी।
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देवरानी हल्का-सा अपना पल्लू खींचती है और बलदेव की तरफ घूम के झुक जाती है और उसको खाना परोसती है। बलदेव अपना सर झुकाए रहता है। अब देवरानी सब्जी का बर्तन उठा के...
देवरानी: ये लोगे?
बलदेव चुप रहता है।
देवरानी: बोलो ये लोगे क्या?
बलदेव मजबूरन अपना सारा ऊपर उठाता है और देखता है।
देवरानी झुकी हुई थी और अपने दूध की गहरी घाटी बलदेव के तरफ कर देती है।
देवरानी: तुम लोगे ये?
बलदेव की आखे उसके बड़े मम्मो पर बस थम जाती हैं।
बलदेव: क्या?
देवरानी: अब भी नहीं दिख रहा क्या? लोगे या नहीं?
बलदेव: हाँ...वो नहीं...!
बलदेव उसके भारी मम्मे और उसके ऊपर इतने बड़े निपल जो उबर कर दिख रहे थे, देख उसका लंड उठने लगता है।
देवरानी: हाँ या नहीं?
तुम्हें तो पसंद है ना ये?
बलदेव: क्या?
देवरानी: अपने दूध में हल्का-सा ढील देती है और "ये गोभी और उसके साथ मटर।"
बलदेव: पर अब मेरा दिल नहीं है इस गोभी और इस मटर के दाने में। " बलदेव उसके दूध और उसके दूध के दाने को देख बोलता है।
देवरानी: महाराज इस लड़के का रोज़-रोज़ दिल बदलता है। कुछ समझाइये इसे!
राजपाल: बेटा माँ दे रही है। गोभी खाने को तो खाओ ना, खाने में मत शर्माओ।
ये सुन कर के उसका बाप उसने उसकी माँ की गोभी जो के देवरानी अपने वक्ष को निशाना बना कर बता रही थी, खाने को कह रहा है, चकित था।
बलदेव: ठीक है दे दो!
देवरानी एक कातिल मुस्कान से उसे गोभी परोस देती है।
फिर वह दरवाजे परखड़ी हो कर उसे खाते हुए देखने लगती है। और सोचती है।
"बलदेव अब तुमही मेरे सब कुछ हो। अब मेरे अंदर की औरत जाग गई है। जिसे सिर्फ अपनी खुशी की परवाह है और साथ में तुम्हारे प्यार और खुशी की परवाह है। कोई नियम किसी समाज की कोई परवाह नहीं है, अब जिंदगी के जो भी दिन बचे दिन है वोमेन। तुम्हारे साथ ही मस्ती में बिताउंगी और इसके लिए मैं समाज से क्या, भगवान से भी लड़ लुंगी।"
इतने में बलदेव अपना सर खाने से हटा कर अपनी माँ को देखता है जो मुस्कुरा रही थी।
देवरानी: ये गोभी और दू। फिकर मत करो ये मेरी पसंद की, बड़ी-बड़ी घोभी मैंने चुन चुन" के बनायी हैं।
बलदेव इस बात का मतलब समझ जाता है और खाना सटक जाता है और वह एक हिचकी लेता है।
देवरानी: आराम से धीरे से खाओ ये गोभी कहीं भागी नहीं जा रही है बेटा।
और उसकी आखो में देख ।
"तुम्हारा ही है, जिसने जितना खाना था वह उसने खा लिया अब बस तुम्हारा हिस्सा है और अब तुम्हे वह खाना है।"
ये बात सुन कर बलदेव का गुस्सा छू जैसे गायब हो जाता है कि देवरानी बलदेव को खुला निमंत्रण दे रही थी और वह हल्का-सा मुस्कुरा देता है।
पास में खड़ी कमला ये सब बात सुन रही थी और शर्म के मारे नीचे देख रही थी"Mये देवरानी ने तो आज मुझे भी पीछे छोड़ दीया । अब तो पति के सामने बेटे को रिझाने के लिए खुल के रंडीपना कर रही है।"
देवरानी काम बनते देख अपने कक्ष की और चलने लगती है और अपने चूतड़ों को खूब झटके देती हुई चल रही थी।
बलदेव उसके बड़े-बड़े नितम्बो और बड़ी-बड़ी गांड के थिरकन को महसूस और गांड के दोनों पटो की रगड़न देख रहा था, तभी देवरानी पीछे मुड़ती है।
देवरानी: बलदेव कैसे लगे खरबूजे?
बलदेव सकपका जाता है। उसकी माँ अपनी गांड के बारे में मैं पूछ रही थी।
बलदेव: वह मैंने अभी तक चखा नहीं। अभी मैं आम खा रहा हूँ।
देवरानी: खरबूजे भी है। उसपे भी ध्यान दो।
अब देवरानी की बात सुन बलदेव भी शर्मा जाता है और सर नीचे कर लेता है।
कमला: महरानी आप भी खा लो ना।
देवरानी बलदेव की तरफ देख कर "वैसे भी मुझे ये सब पसंद नहीं, तुम केला ले आओ मेरे कमरे में खा लुंगी।" और बलदेव को एक आख मारती है।
कमला: ठीक है। मैं ले आउंगी महारानी।
बलदेव खाना खाता है और अपने पिता जी से बात करते हुए राज दरबार आता है। जहाँ उसे सेनापति के साथ घटराष्ट्र की सीमा पर जाना था।
देवरानी अपनी कक्षा में जाती है और एक कलम उठा कर एक कोरे कागज़ पर कुछ लिखने लगती है।
देवरानी: कमला इधर आना।
कमला: जी महारानी।
देवरानी उसे पत्र देती है।
कमला: ये क्या है।
देवरानी: (शर्मा कर) प्रेम पत्र।
कमला: ऐ हाय ! देखो कितना शर्मा रही है। अभी थोड़ी देर पहले तो बलदेव की हालत खराब कर दी थी आपने। अब तड़प रहा होगा उसका बदन प्यार के लिए!
ये बात सुन कर देवरानी और शर्मा जाती है।
देवरानी: अब क्या बतायू मैं तुम्हें कमला मेरे पासऔर कोई चारा नहीं था।
कमला: सही जा रही हो, महारानी! जी लो अपनी जिंदगी।
और मैं ये पत्र तुम्हारे प्रेमी तक पहुँचा दूंगी।
ये सुन कर देवरानी दौड कर अपने पलंग पर उल्टी हो कर लेट जाती है। ताकि को अपने मुहं को तकिये में दबा शरमा सके और फिर कुछ सोच कर मुस्कुरा देती है।
कमला: अरे रे बन्नो अभी से इतना शरमाना क्या अभी कौन-सी सुहागरात है आज आपकी?
देवरानी: अब बस करो! जाओ मुझे इस बारे में कुछ बात नहीं करनी।
कमला: अरे भाई. अब तो हम जाएंगे ही, प्रेमीका को प्रेमी मिल गया तो हमारा क्या काम।
देवरानी: अरे मत करो ना!
कमला: अरे लो लाड़ो शर्माओ नहीं। मैं जाती हूँ यहाँ पर लेटे-लेटे खूब सपने सजा लो अपने आशिक के।
ये सुन कर लज्जाते हुए।
देवरानी: कमला...!
कमला चली जाती है और पत्र को बलदेव को देने के लिए छुपा लेती है।
जारी रहेगी
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