Funtastic updatesUpdate 4
मनदीप सिंह बेहद अहंकारी आदमी था । उसे अपने अमीर होने का बहुत अहम था । जिसके चलते वो दूसरों को हमेशा नीचा ही समझता था । वह पगडी बाँधता था । और उसके चेहरे पर बङी बङी दाङी मूँछे थी । मनदीप रोज ही शराब पीता था । और मुर्गा चिकन खाने का बहुत शौकीन था ।
वैसे जस्सी और उसके माँ बाप कभी कभी गुरुद्वारा जाते थे । लेकिन फ़िर भी मनदीप नास्तिक ही था । इसके विपरीत राजवीर काम चलाऊ धार्मिक थी । जस्सी न आस्तिक थी । और न ही नास्तिक । वो बस अपनी मदमस्त जवानी में मस्त थी ।
- सुनो जी । अचानक राजवीर अजीव से स्वर में बोली - ऐसा तो नहीं । कहीं ये भूत प्रेत का चक्कर हो ?
मनदीप ने उसकी तरफ़ ऐसे देखा । जैसे वह पागल हो गयी हो । दुनियाँ 21 वीं सदी में आ गयी । पर इन औरतों और जाहिल लोगों के दिमाग से सदियों पुराने भूत प्रेत के झूठे ख्याल नहीं गये ।
वह उठकर तकिये के सहारे बैठ गया । और उसने राजवीर को अपनी गोद में गिरा लिया । फ़िर उसकी तरफ़ देखता हुआ बोला - कैसे होते हैं भूत प्रेत ? तूने आज तक देखे हैं । तुझे पता है । सिख लोग भूत प्रेत को बिलकुल नहीं मानते । ये सब जाहिल गंवारों की बातें हैं । भूत प्रेत । आज तक किसी ने देखा है । भूत प्रेत को ।
फ़िर उसने मानों मूड सा खराब होने का अनुभव करते हुये राजवीर के स्तनों को सहला दिया । मानों उसका ध्यान इस फ़ालतू की बकबास से हटाने की कोशिश कर रहा हो । लेकिन राजवीर के दिलोदिमाग में कुछ अलग ही उधेङबुन चल रही थी । जिसे वह मनदीप को बता नहीं पा रही थी । फ़िर उसने सोचा । अभी मनदीप से बात करना बेकार है । शायद वह सीरियस नहीं है । इसलिये फ़िर कभी दूसरे मूड में बात करेगी । यही सोचते हुये उसने मनदीप का हाथ अपने स्तनों से हटाया । और कपङे ठीक करके बाहर निकल गयी ।
जस्सी दीन दुनियाँ से बेखबर सो रही थी । पर राजवीर की आँखों में नींद नहीं थी । वह रह रहकर करबटें बदल रही थी ।
दोपहर के समय करम कौर राजवीर के घर पहुँची । राजवीर ने उसे खास फ़ोन करके बुलाया था । उसकी गोद में एक छोटादोपहर के समय करम कौर राजवीर के घर पहुँची । राजवीर ने उसे खास फ़ोन करके बुलाया था । उसकी गोद में एक छोटा सा दूध पीता बच्चा था । वह एक हसीन और जवानी से भरपूर लदी हुयी मादक बनाबट वाली औरत थी । भरपूर औरत ।करम कौर गरेवाल जबर जंग सिंह की विधवा थी । और राजवीर की खास सहेली थी । उसका फ़िगर 37-33-40 था । और उसका कद 5 फ़ीट 9 इंच था । वह गुदा मैथुन की बहुत शौकीन थी । और ऐसे कामोत्तेजक क्षणों में वह स्वर्गिक आनन्द महसूस करती थी । उसके विशाल और अति उत्तेजक नितम्बों की बनावट अच्छे अच्छों की नीयत खराब कर देती थी । और तब वे हर संभव उसे पाने का प्रयत्न करते थे ।
करम कौर की पहली शादी से जो बेटा था । वो अभी 15 साल का था । उसका नाम " गुर निहाल सिंह " था । करम कौर का पहला पति । जो मर चुका था । उसका नाम " जबर जंग सिंह " था । और अभी दूसरे पति का नाम " शमशेर सिंह " था । करम कौर के पहले शादी से 2 बच्चे थे । जिनमें 1 बेटा और दूसरा बेटी थी । उसकी बेटी का नाम " गुरलीन कौर " था । दूसरी शादी से जो बच्चा पैदा हुआ । उसका नाम " हरकीरत सिंह " था ।
- ओये राजवीर ! वह उसके सामने बैठती हुयी बोली - तू बङी फ़िक्रमन्द सी मालूम हुयी फ़ोन पर । क्या बात हुयी ।
राजवीर ने रिमोट उठाकर टीवी का वाल्यूम बेहद हल्का कर दिया । और करम कौर की तरफ़ देखा । उसके और करम कौर के बीच कुछ छुपा हुआ नहीं था । वे एक दूसरे की पूरी तरह से राजदार थी । और अक्सर फ़ुरसत के क्षणों में अपने सेक्स अनुभवों को बाँटती हुयी काल्पनिक सुख महसूस करती थीं । करम कौर का बच्चा शायद भूख से मचलने लगा था । उसको शान्त कराने के उद्देश्य से वह स्तनपान कराने लगी ।
- समझ नहीं आ रहा । फ़िर राजवीर उसकी तरफ़ देखती हुयी बोली - क्या कहूँ । और कैसे कहूँ । और कहाँ से कहूँ
करम कौर ने इसे हमेशा की तरह सेक्सी मजाक ही समझा । अतः बोली - कहीं से भी बोल । आगे से पीछे से । ऊपर से नीचे से । आखिर तो साँप जायेगा । बिल के अन्दर ही ।
- वो बात नहीं । राजवीर बोली - मैं वाकई सीरियस हूँ । और जस्सी को लेकर सीरियस हूँ । पिछले कुछ दिनों से मैं कुछ अजीव सा देख रही हूँ । अनुभव कर रही हूँ ।
करम कौर बात की नजाकत को समझते हुये तुरन्त सीरियस हो गयी । और प्रश्नात्मक निगाहों से राजवीर की तरफ़ देखने लगी ।
- मैं ! राजवीर बोली - पिछले कुछ दिनों से । या लगभग बीस दिनों से । जस्सी के पास ही सो रही हूँ । मैंने सोचा । अगर वो वजह पूछेगी भी । तो मैं कुछ भी बहाना बोल दूँगी । पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं पूछा । तुझे मालूम ही है । मैं अक्सर ग्यारह के बाद ही सोती हूँ । जबकि जस्सी दस बजे से कुछ पहले ही सो जाती है । मनदीप का नशा ग्यारह के लगभग ही कुछ हल्का होता है । और तब वह रोमान्टिक मूड में होता है । मुझे उन पलों का ही इंतजार रहता है । उस समय वह भूखे शेर के समान होता है । लिहाजा उसका ये रुटीन पता लगते ही मेरी बहुत सालों से ऐसी आदत सी बन गयी है ।
ऐसे ही एक दिन । लगभग बीस दिन पहले । जब मैं सोने से पहले टायलेट जा रही थी । मैंने जस्सी को कमरे में टहलते हुये देखा । ऐसा लग रहा था । जैसे वह बहुत धीरे धीरे किसी से मोबायल फ़ोन पर बात कर रही हो । मैंने सोचा । लङकी जवान हो चुकी है । शायद किसी ब्वाय फ़्रेंड से चुपके से बात कर रही हो । उस वक्त उसके कमरे की लाइट बन्द थी । और बाहर का बहुत ही मामूली प्रकाश कमरे में जा रहा था । फ़िर उसे गौर से देखते हुये मुझे इसे बात का ताज्जुब हुआ कि उसके हाथ में कोई मोबायल था ही नहीं । और करमा तू यकीन कर । वह उसके गोल स्तन पर एक दृष्टि डालकर बोली - वह निश्चय ही किसी से बात कर रही थी । और ये मेरा भृम नहीं था । और ये एकाध मिनट की भी बात नहीं थी । मैं उसको लगभग बीस मिनट से देख रही थी । और सुन भी रही थी । पर उसकी बातचीत में मुझे बहुत ही हल्का हल्का हाँ । हूँ । ठीक है । ओ माय डार्लिंग .. जैसे शब्द ही मुश्किल से सुनाई दे रहे थे ।
Interesting updateUpdate no5
करम कौर के चेहरे पर गहन आश्चर्य के भाव आये । उसकी आँखे गोल गोल हो गयीं । तभी राजवीर का नौकर सतीश वहाँ आया । उसने एक चोर निगाह करम कौर के खुले स्तन पर डाली । और राजवीर से बोला - मैं बाजार जा रहा हूँ । कुछ आना तो नहीं है ?
राजवीर ने ना ना में सिर हिलाया ।
सतीश यूपी का रहने वाला पढा लिखा नौजवान था । और एक प्रायवेट नौकरी के चक्कर में पंजाब आया था । बाद
में न सिर्फ़ वह पंजाब में ही रम गया । बल्कि अपनी कंपनी टायप नौकरी छोङकर वह बराङ साहब के घर नौकर के रूप में काम करने लगा । ये नौकरी न सिर्फ़ उसके लिये आरामदायक सावित हुयी थी । बल्कि कई तरह से उसके लिये पाँचों उँगलियाँ घी में कहावत को भी पूरा कर रही थी ।
वास्तव में U.P वाला भईया के नाम से मशहूर सतीश करम कौर गरेवाल का बेहद आशिक था । और चोरी चोरी उसको देखता हुआ नयन सुख लेता था ।
सतीश ने करम कौर के लङके गुरु निहाल से नकली दोस्ती की हुई थी । और उसे बातों ही बातों में फ़ुसलाकर वह उससे उसकी मम्मी की दिन भर की गतिविधियाँ पूछता रहता था । उसकी नीयत से अनजान गुरु निहाल उसे
सब कुछ बताता रहता था । उसकी माँ रोज कितने बजे उठती है । कितने बजे नहाती है । कैसा खाना खाती है । क्या पीती है । किस समय अपने दूसरी शादी के बच्चे को स्तनपान कराती है । ये सब बातें पूछकर सतीश एकान्त में सोने से पहले करम कौर के साथ मानसिक संभोग की कल्पना करता हुआ हस्तमैथुन करता था ।
और वास्तविक रूप में उसको पाने का बेहद इच्छुक था । करम कौर भी इस बात को खूब समझती थी । और मौके बे मौके शायद वो कभी काम आये । इस हेतु अपने स्तनों की भरपूर झलक दिखाने से नहीं चूकती थी ।
उसको मरदों को ऐसे तङपाने में भी खास सुख मिलता था । दूसरे एक हिन्दू युवा पठ्ठा और और डिफ़रेंट टेस्ट की छुपी चाहत भी उसको सतीश के प्रति आकर्षित करती थी । और वह भी उसके साथ हमबिस्तर पर होने की अभिसारी कल्पना करती थी । पर अभी दोनों में से किसी की तरफ़ से कोई पहल नहीं हुयी थी ।
- अब करमा ! मुझे और भी । सतीश के जाने के बाद राजवीर फ़िर से बोली - और भी ताज्जुब इस बात का हुआ कि बात करते करते अचानक वह मेरी तरफ़ घूम गयी । हम दोनों की निगाहें मिली । मैं चौंक गयी । पर उसने मानों मुझे देखा ही नहीं । मुझसे कुछ बोली भी नहीं । और उसी तरह बात करती रही । तब मैं उसको टोकना चाहती थी । उससे कुछ पूछना चाहती थी । पर न जाने क्यों मेरी हिम्मत नहीं पङी । फ़िर चलते चलते वह अचानक वापिस बेड पर बैठ गयी । और अचानक इस तरह लुङकी । मानों नशे में गिरी हो । या नींद में लुङक गयी हो । ये पहले दिन की बात थी ।
करम कौर के चेहरे पर घबराहट के भाव फ़ैले हुये थे । वह हैरत से राजवीर को देखने लगी ।
- अब तू समझ सकती है । राजवीर फ़िर से बोली - ये देखने के बाद मेरे दिल का चैन और रातों की नींद उङ गयी । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । जस्सी को अचानक क्या हुआ था ? मेरी फ़ूल सी बच्ची किस तिलिस्मी चंगुल में थी ?
- वन मिनिट । करम कौर ने टोका - तिलिस्मी चंगुल । तिलिस्मी चंगुल से क्या मतलब है तेरा । तू ये कैसे कह सकती है । जसमीत किसी तिलिस्मी चंगुल में थी ?
थी के बजाय है कहा जाये । राजवीर बजते हुये मोबायल के नम्बर पर निगाह डालते हुये उसे साइलेंट करती हुयी बोली - है कहा जाये । तो ज्यादा उचित होगा । मैंने बोला ना । ये बीस दिन पहले की बात है । पहले मैंने यही सोचा था कि उससे सुबह नार्मली प्यार से सब पूछूँगी । ये सब क्या है ? वो लङका कौन है ? पर फ़िर मुझे ख्याल आया कि मैं उससे क्या पूछूँगी ? उसके पास मोबायल तो था ही नहीं । और जब मोबायल नहीं था । तब कैसे कहा जाये । वो किसी ब्वाय फ़्रेंड से बात कर रही थी । और ब्वाय फ़्रेंड से बात भी कर रही थी । तो ये कोई पूछने वाली बात ही नहीं थी । ऐसी ही तमाम बातें सोचते हुये मैंने कुछ दिन और इस रहस्य का पता लगाने की कोशिश की । और इसीलिये मैंने बराङ साहब को भी कुछ नहीं बोला ।
और लगातार बीच बीच में जागकर उसकी छुपी निगरानी की । तब कुछ और उसका रहस्यमय व्यवहार देखा । फ़िर मेरे को एक आयडिया आया । यदि मैं बहाने से उसके पास सोने लगूँ । तब शायद वह कुछ विरोध करे । पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया । एक बार भी नहीं किया । बल्कि उसके व्यवहार से ऐसा कभी लगता ही नहीं था कि वह मेरे लेटने के प्रति कोई नोटिस भी लेती है । वह पहले जैसी ही रही ।
- राजवीर ! अचानक करम कौर ने फ़िर से टोका - अभी अभी तूने कहा कि तूने और भी उसका रहस्यमय व्यवहार नोट किया । वो क्या था ?
- हाँ ! वो ये कि वो अक्सर रात को कभी कभी उठ जाती थी । और कभी भी उठ जाती थी । फ़िर खिङकी के पास खङे होकर उसके पार ऐसे देखती थी । मानों किसी दूसरी दुनियाँ को देख रही हो । खिङकी के एकदम पार कोई दूसरा लोक कोई दूसरी धरती उसे नजर आ रही हो । उसके चेहरे के भाव भी ऐसे बदलते थे । जैसे लगातार कुछ दिलचस्प सा देख रही हो । इसके भी अलावा मैंने उसे खङे खङे दीवाल पर या यूँ ही खाली जगह में किसी काल्पनिक बेस पर कुछ लिखते सा भी देखा । अब इससे भी ज्यादा चौंकने वाली बात तुझे बताती हूँ । एक दिन जब ये सब देखना मेरी बरदाश्त के बाहर हो गया । तो मैंने अपना जागना शो करते हुये आहट की । पर उस पर कोई असर नहीं हुआ । मैं भौंचक्का रह गयी । तब डायरेक्ट मैंने उसको आवाज ही दी । करमा ताज्जुब उस पर फ़िर भी कोई असर नहीं हुआ । अब तो मैं चीख पङना चाहती थी । पर फ़िर भी मैंने खुद को कंट्रोल करते हुये उसे जस्सी जस्सी मेरी बेटी कहते हुये झंझोङ ही दिया ।
Maast updateUpdate8समय की इस किताब में सदियों से जाने क्या क्या लिखा जाता रहा है । क्या लिखने वाला है । और आगे क्या लिखा जायेगा । ये शायद कोई नहीं जानता है । करमकौर को ही सुबह तक ये नहीं मालूम था । आज उसकी जिन्दगी में एक यादगार पुरुष आने वाला है । न सिर्फ़ यादगार पुरुष । बल्कि यादगार एक एक लम्हा भी । जिसको बारबार संजोने का दिल करे ।
क्या अजीव बात थी । उसे घर की देखभाल के लिये छोङ गयी राजवीर के बारे में सोचना चाहिये था । उसकी बेटी जस्सी के बारे में सोचना चाहिये था । उसे एक पराये पुरुषसे अनैतिक पाप संबन्ध के पाप के बारे में सोचना चाहिये था । पर येसभी सोच गायब हो चुकी थी। उसके अन्दर की करम कौरमर चुकी थी । और मुक्त भोग की अभिलाषी स्त्री जाग उठी थी । वासना से भरी हुयी स्त्री । जिसे सम्बन्ध नहीं । पुरुष नजर आता है । और ये पुरुष आज किस्मत की देवी ने मेहरबान होकर उसे उपलब्ध कराया था । अगर ये बेशकीमती पल वह पाप पुण्य को सोचने में गुजार देती । तो ना जानेये पल फ़िर कब उसकी जिन्दगी में आते । आते भी या ना आते । इसलिये वह किसी भी हालत में इसको गंवाना नहीं चाहतीथी ।
सतीश अनाङी था । औरत से उसका पहले वास्ता नहीं था । पर वह हेविच्युल थी। मेच्योर्ड थी । एक अनाङी था । एक खिलाङिन थी । और ये संयोग बङा अनोखा और दिलचस्प अनुभववाला था । अभी अभी बीते क्षणों को सोचकर ही उसका बदन रोमांचित होताथा । अब उसे कुछ लज्जा सी आ रही थी । और कुछ वह त्रिया चरित्र करना चाहती थी । इस तन्हाई केएक एक पल को सजाने के लिये ।
वह कपङे पहनने लगी । तब सतीश चौंककर बोला - नहाओगी नहीं..भ भाभी ?
- यू नाटी.. ब्वाय ! वह उसका कान पकङकर बोली - दर्द बेदर्द हो रही हूँ मैं । हिम्मत नहीं हो रही । पर नहाना भी चाहतीहूँ ।
सतीश के मुँह से चाहत केआवेग में भरी भावना निकल गयी । मैं नहला देता हूँ । वह मसाज से ज्यादा आसान है । वह भौंचक्का रह गयी । स्त्री पुरुष का सामीप्य अनोखी स्थितियों को जन्म देताहै । किसी खिलती कली के समान तमाम अनजान कलायेंपंखुरियों के समान खुलने लगती है । उसने कोई ना नुकुर नहीं की । वे दोनों बाथरूम में आ गये । सतीश की उत्तेजना वह जान रही थी । ये कभी न समाप्त होने वाली भूख थी । अगले ही क्षणों मेंफ़िर से बह आनन्दित होकर सिसकियाँ भर रही थी ।
और अब रात के नौ बज चुकेथे । वह टीवी के सामने बैठी हुयी फ़िल्मी सांगदेख रही थी । कितनी अदभुत बात थी । पर्दे पररोमांटिक भंगिमायें करते हर नायक नायिका में उसे अपनी और सतीश कीही छवि नजर आ रही थी । आज रात को भी वह भरपूर जीना चाहती थी । शायद ऐसी गोल्डन नाइट जिन्दगी में फ़िर से नसीब न हो । अतः उसने अपने पुष्ट बदन पर सिर्फ़ एक गाउन पहना हुआ था । और उसका भी एक बन्द ही लगाया हुआ था । एक बन्द ।
- ये स्त्री भी अजीब पागल ही होती है । उसने सोचा - सदियों से इसने व्यर्थ ही खुद को अनेक बन्दिशों की बन्द में कैद किया हुआ है । ये एक बन्द काफ़ी है । जब दिल अन्दर । जब दिल बाहर।
सतीश अभी काम में लगा हुआ था । तब उसे एक कल्पना हुयी । काश वह राजवीर की जगह होती । औरसतीश
उसका सर्वेंट होता । तो वह उसका भरपूर यूज करती । जवानी का एक एक क्षण ।एक एक एनर्जी बिट । वह स्त्री पुरुष के अभिसारी रंग से रंग देती । शायद आगे भी ऐसा मौका मिले । पर आगे की बात आगे थी । आज की रात तो निश्चय उसके हाथ में थी । और यकीनन गोल्डन थी।
अभिसार युक्त स्नान के बाद दोनों ने लंच किया था । और फ़िर दोपहर तीन बजे थककर चूर होकर सो गये थे । करमकौर रात मेंभी जागने और जगाने की ख्वाहिशमन्द थी । अतः उसने भरपूर नींद ली थी ।और शाम छह बजे उठी थी । वैसे भी मुक्त और सन्तुष्टिदायक यौनाचारके बाद तृप्ति की नींद आना स्वाभाविक ही थी ।
सो जागने के बाद वह खुद को एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी । महज तीन घण्टे पूर्व के वासनात्मक क्षण उसे गुजरे जमाने के पल लगने लगे थे । और वह फ़िर से अभिसार के लिये मानसिक रूप से तैयार थी ।
- कमाल की होती है । औरत के अन्दर छिपी औरत । उसने सोचा - वाकई यह अलग होती है । बाहर की औरत नकली और दिखाबटी होती है । सामाजिक रूढियों परम्पराओं के झूठे आभूषणों से लदी हुयी । बोगस दायरों में कैद । बेबसी की सिसकियाँ लेतीहुयी । मुक्ति और मुक्त औरत के अहसास ही जुदा होते हैं । और वे अहसास फ़िर से जागने लगे थे ।
यही सब सोचते सोचते उसे दस बज गये । सतीश फ़ारिगहोकर उसी कमरे में आ गया। पर वह उससे अपरिचित सीटीवी ही देखती रही । उसका बच्चा सो चुका था ।सतीश सोफ़े पर बैठा हुआ था । वह उसकी तरफ़ से किसी पहल का इन्तजार कर रही थी । पर उसे उदासीन समझकर जब वह भी टीवी देखने में मशगूल हो गया । तब वह खुद ही उसके पास जाकर गाउन समेटकर उसकी गोद में बैठ गयी । ऐसी ही किसी पूर्व कल्पना से आभासी सतीश सिर्फ़ लुंगी में था ।
सो उसका कठोर स्पर्श महसूस करती हुयी वह आनन्द के झूले में झूलने लगी । एक कसमसाहट के बीच दोनों ने खुद को एडजस्ट किया । और फ़िर वे आन्तरिक रूप से बेपर्दा अंगो के स्पर्शको महसूस करने लगे । सतीश ने उसके गाउन में हाथ डाल दिया । और गोलाईयों को सहलाने लगा।
पर अब उसकी इच्छा प्राकृतिकता से विपरीत अप्राकृतिक हो चली थी । जो पंजाबी पुरुषों का खास शौक था । और पंजाबन औरतों की एक अजीव लत । जिसकी वे पागल हद तक दीवानी थी । अतः इस खेल के अनाङी सतीश को वह भटकाती हुयी वासना की भूलभुलैया युक्त अंधेरी सुरंगों में ले गयी ।
और तब रात के बारह बज चुके थे । अभी अभी सोई करम कौर की अचानक किसी वजह से नींद खुल गयी थी । उसे टायलेट जाने की आवश्यकता महसूस हो रही थी । सतीश अपने कमरे मेंजा चुका था ।
उसने एक नजर अपने बच्चे पर डाली । और बाहर निकल गयी । सबकुछ सामान्य था । रात भरपूर जवान नायिका की भांति अंगङाईयाँ लेती हुयी मुक्त भाव से विचर रही थी । और खुद अनावृत सी होकर उसने अपना आवरण चारों और फ़ैला दिया था । एक जादू से सब सम्मोहित हुये से नींद के आगोश में थे । और निशा अंधेरे से आलिंगन सुख प्राप्त कर रही थी ।
अंधेरा । राजवीर के घर में भी अंधेरा फ़ैला हुआ था । वह टायलेट से फ़ारिग हो चुकी थी । और अचानक ही बिना किसी भावना के खिङकी के पास आकर खङी हो गयी । तब अक्समात ही उसे हल्का हल्का सा चक्कर आने लगा । पूरा घर उसे गोल गोल सा घूमता हुआ प्रतीत हुआ । कमरा । बेड । टीवी। सोफ़ा । उसका बच्चा । स्वयँ वह सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । सव कुछ मानों एक तूफ़ानी चक्रवात में घिर चुका हो । और अपने ही दायरे में गोल गोल घूम रहा हो । फ़िर उसे लगा । एक तेज तूफ़ान भांय भांय सांय सांय करता हुआ आ रहा है । और फ़िर सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । शहर। धरती । आसमान । लोग । वह । राजवीर । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह भयंकर तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । घबराकर वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उसको मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था । भयानक मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
और फ़िर वह एक दरिया मेंफ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । वह उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई। और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी । फ़िर उसका सिर बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी लहराकरगिर गयी ।
क्या ! राजवीर उछलकर बोली - क्या कह रही है तू ? क्या सच में ऐसा हुआ था ?
- मेरा यकीन कर । राजवीरतू मेरा यकीन कर । करमकौर घबराई हुयी सी बोली - मुझे तो तेरे इसीघर में कोई भूत प्रेत काचक्कर मालूम होता है । समझ ले । मरते मरते बची हूँ मैं । तेरे जाने के बाद सारा दिन मैं तेरे लिये दुआयें ही करती रही । पूजा पाठ के अलावाकिसी बात में मन ही नहींलगा । रात बारह बजे तक मुझे चैन नसीब नहीं हुआ । जिन्दगी में इतना दर्द एक साथ मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया । पर नींद ऐसी होती है । सूली पर लटके इंसान को भी आ ही जाती है । सो दिन भर की सूली चढी हुयीमैं बेचारी करमकौर अभी ठीक से नींद की झप्पी लेभी नहीं पायी थी कि अचानक मेरी आँख खुल गयी । और मुझे टायलेट जाना हुआ । बस उसके बाद मैं यहाँ खिङकी से आयी ..तू यकीन कर राजवीर । तब यहाँ खिङकी के बाहर तेरा । उसने उँगली दिखाई - ये घर नहीं था । कोई दूसरी ही दुनियाँ थी । भयानक जंगल था । एकऐसा जादुई जंगल । जिसमें जाते ही मैं नंगी हो गयी । और किसी अज्ञात भय से भाग रही थी।
पर राजवीर को अब उसकी बात सुनाई नहीं दे रही थी । वह उठकर खिङकी के पास पहुँची । और बाहर देखने लगी । जहाँ लान में लगे पेङ पौधे नजर आ रहे थे । वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं था ।
राजवीर जैसे ही वापिस लौटी । उस समय तो वह घर चली गयी थी । फ़िर उसने पहली फ़ुरसत में ही दोपहर को आकर उसे सव बातबताई । जस्सी अभी घर नहीं थी ।
- सच्ची ! मैं एकदम सच बोल रही हूँ । वह फ़िर से बोली - मुझे एकदम ठीकठीक याद है । टायलेट जाते समय मैंने घङी देखी थी । उस समय बारह बजे थे । फ़िर मैं चकराकर यहाँ । उसने जमीन की तरफ़ उँगली से इशारा किया - यहाँ गिर पङी थी । और जब मुझे होशआया । मैं संभली । मैंनेफ़िर घङी देखी थी । तब तीन बज चुके थे । पूरे तीन घण्टा मैं बेहोश सी पङी रही ।
- ठहर । ठहर । राजवीर ने उसे टोका - जब तू बेहोश सी हो गयी । उस टाइम क्या हुआ ?
- अरी पागल है क्या । करम कौर झुँझलाकर बोली - बेहोश मतलब बेहोश । उसटाइम का भी कुछ पता रहताहै क्या ? क्या हुआ ।
क्या नहीं हुआ । वैसे हुआ हो । तो मुझे पता नहीं । मैं तो मानों आपरेशन से पहले वाले नींद के इंजेक्शन के समान नशे में थी । और पूरे तीन घण्टे रही ।
- नहीं नहीं ! राजवीर बोली - मेरा मतलब था । वोनाविक मछुआरा..कहीं उसने तेरी बेहोशी का..कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया । ऐसा कुछ तुझे फ़ील हुआ हो । जैसे भूत बूत । वह भय से जस्सी कीकल्पना करती हुयी बोली - अक्सर जवान औरत का फ़ायदा उठा लेते हैं । नहीं मैंने ऐसा पढा है ।फ़िल्मों में भी देखा है ।
- अरे नहीं । वो सालिआ ऐसा कुछ करता । करमकौर अपने स्तन पर हाथ रखकर बोली - फ़िर मैं तीन घण्टे नहीं । तीन दिन बेहोश रहने वाली थी । एकदम टार्जन लुक ।..पर अपनी किस्मत में तो ये दाढी वाले सरदार ही लिखे हुये हैं । हिन्दू आदमी की बात ही अलग होतीहै ।
अजीव होती है ये औरत भी। शायद इसको समझना बहुत मुश्किल ही है । वह भयभीत थी । आशंकित थी । पर रोमांचित थी । वह सब क्या था ।
Funtastic updates maaza agaya padkar broUpdate no 9
जस्सी के साथ क्या हुआ था ? क्या वही टार्जन लुक नौजवान उसकाप्रेमी था । बकौल राजवीर जिससे वह बात करती रहती थी । वह उस दृश्य में पहुँचकर नंगीकैसे हो गयी थी । तब जस्सी के साथ क्या होता था । क्या वह उसके साथ काम सुख प्राप्त कर चुकी थी । भय की इन परिस्थितियों में भी येविचार एक साथ दोनों के दिमाग में आ रहे थे । औरभारी हलचल मचाये हुये थे ।
दूसरे राजवीर इस मामले की खेली खायी औरत थी । उसे साफ़ साफ़ लग रहा था। आज करमकौर उससे कुछ छुपा रही है । उसके चेहरे पर भय के वे रंग ही नहीं थे । जो होने चाहिये थे । बस एक क्षण को जब वह रहस्यमय चक्रवात की बात करती थी । तब वाकई लगता था कि वहसच बोल रही है । बाकी औरबात करते समय तो यही लगता था कि वह लण्डन की सैर करके आयी हो । भरपूररंगरेलियाँ मनायी हों ।पर बात इण्डियन कल्चर की कर रही हो । जाने क्यों राजवीर को दाल में कुछ काला सा नजर आया। बल्कि उसे पूरी दाल हीकाली नजर आ रही थी ।ालदाल तो सिर्फ़ उतनी ही थी । जब वह खिङकी के पारटार्जन लुक मछुआरे की बात करती थी । दाता ! क्या माजरा था । क्या बलाय घुस गयी थी घर में । उसकी खासमखास भी झूठ बोल रही थी । उसके मन में ये भी आया । काश ! वहजस्सी या करम कौर की जगहहोती । तो ये अनुभव उसकेसाथ भी होता । तब उसने मन ही मन तय किया । रात बारह बजे वह खुद भी खिङकी के पास आकर जादू देखेगी कि आखिर सच क्या है ?
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- ओये बेबे ! सच मैं साफ़साफ़ देख रहा हूँ । गुरुदेव सिंह दोनों के स्तनों का दृष्टिक रसपान करता हुआ बोला - तेरे घर में बङी तगङी बलाय घुसी हुयी है । चारबङे बङे जिन्नात तो मेरे कू साफ़ साफ़ दिख रहे हैं । बस थामने की देर है । फ़िर देखना । इस बाबे दा हुनर ।
गुरुदेव सिंह चौहान एक हरामी बाबा था । साधुओं के नाम पर कलंक था । दागथा । और अपनी हरामगीरी के चलते ही साधु बना था । वास्तव में उसने बाबाओं की संगति में दो चार जन्तर मन्तर सीख लिये थे । जिन्हें पढकर वो किसी के लिये ताबीज बना देता था । किसी को गण्डा बँधवा देता था । साधुओं की संगति में ही वह
वास्तविकता रहित नकली पूजा पाठ करना सीख गया था । और तांत्रिक गद्दी लगाने के थोथे आडम्बर सीख गया था । जिनसे न किसी को फ़ायदा होना था । और न ही कोई नुकसान । यह कुछ कुछ मनोबैज्ञानिक रूप से उनभृमित लोगों के लिये डिस्टल वाटर के डाक्टरीइंजेक्शन जैसा था । जिसे डाक्टर कोई भी बीमारी न होने पर सिर्फ़ इसलिये लगाते हैं कि उस मरीज को सीरियसली लगता है कि वो बीमार है । और पानी के इसी रंगीन इंजेक्शन के वह खासे पैसे वसूल करता है । और मरीज मनोबैज्ञानिक प्रभाव से ठीक होने लगता है ।
यही हाल बाबा गुरुदेव सिंह का था । उसका सिर्फ़ दिखावे का भेस था । जो अक्सर ही ज्यादातर पंजाब के नकलीबाबाओं की खासियत थी । वो कोई प्रेत बाधा ठीक करना नहीं जानता था । औरन ही उसे इन बातों की कोई समझ थी ।
पर इस बाबागीरी में उसे हर तरफ़ मौज मलाई मिली थी ।सो चैन की छानता हुआ वह इसी में रम गया था । कोईन कोई अक्ल का अंधा अंधीउससे टकरा ही जाता था । और फ़िर उसकी बल्ले बल्ले ही हो जाती थी ।
विधवा हो जाने के बाद कुछ दिनों तक इधर उधर टाइम पास करती करम कौर को किसी औरत के माध्यम से गुरुदेव सिंह का पता चला था । और तब वह उससे मिली थी । अपनी विधवा स्थितियों में वह मानसिक टेंशन में आ गयी थी । और शान्ति के लिये । अपने आगे के अच्छे दिनों की जानकारी के लिये वह बाबाओं के पास घूमती फ़िरी थी । तब से वह गुरुदेव सिंह से परिचित थी ।
गुरुदेव सिंह ने उसकी झाङ फ़ूँक शान्ति के नाम पर पूरा ऊपर से नीचेतक टटोल लिया था । यहाँ तक कि वह बहकने लगी थी ।और खुद उसका दिल होने लगा कि बाबा को स्वयँ बोल दे । मन्तर बाद में चलाना । पहले उसकी बचैनी दूर कर दे । और अभी कल से सतीश से जिस्मानी परिचय होने केबाद उसकी भावनायें अलग ही हो गयी थीं । जिन्दगीका जितना मजा लूट सकते हो लूटो । कल का कोई भरोसा नहीं । और स्वर्ग नरक किसने देखा है ।
- क्या ? वे दोनों सचमुचउछलकर बोली - क्या बाबाजी । चार चार जिन्नात । हाय रब्ब । येक्या मुसीबत है । बाबाजी आप कुछ करो ना । हमें इस मुसीबत से निकालने के लिये ।
गुरुदेव सिंह की बिल्लौरी आँखों में एक भूखी चमक उभरी । पर इस मामले में वह खासा समझदार था । उसने राजवीर को कमरे से बाहर जाने को कहा । और करम कौर को अन्दर ही रोक लिया । फ़िर उसने एक भभूति जैसी राख और कुछ मोरपंखी झाङन जैसा थैलेसे निकाला ।
कोई बीस मिनट बाद उसने राजवीर को अन्दर बुलाया। और करमकौर को बाहर जाने को कहा । अन्दर आतेसमय राजवीर ने देखा । करमकौर के चेहरे पर अजीव से रोमांच के भाव थे । क्या हुआ था । इसकेसाथ । उसने धङकते दिल सेसोचा । और डरते डरते अन्दर आ गयी । गुरुदेव सिंह ने उसे दरबाजा बन्द करने का आदेश दिया ।
कमरे में अजीव सी कसैली और मिश्रित दारू की सी गन्ध आ रही थी । जब वह गुरुदेव सिंह के पास आयी । तो उसे वैसी ही गन्ध उसके मुँह से महसूस हुयी । कमरे में सिगरेट का धुँआ अलग से भरा हुआ था । उस पर कमरा बन्द और होने से दमघोंटू वातावरण था । यह फ़र्जी साधुओं का औरतों को चक्कर में डालकर घनचक्कर बनाने कापुराना साधुई नुस्खा था। जिसे वह बेचारी नहीं जानती थी ।
- देख बेबे ! वह चेतावनी सी देता हुआ कठोर स्वर में बोला - तूने इलाज कराना हो । तो वैसा सोचना । ये जिन्नात का मामला बहुत बुरा होता है । ये औरत को सिर्फ़ औरत के तौर पर देखते हैं। तू समझ गयी ना । अगर तेरी सेवा के बदले राजी होकर तेरी छोरी को छोङ दे । तो उसके देखे । ये ज्यादा बुरा नहीं है । इसलिये तू पहले सोच ले ।फ़िर तू सोचे । इसमें मेरा कोई दोष है । मुझे तो दूसरे का दुख दूर करना ही ठीक लगता है । बाकी हम बाबाओं को दुनियाँदारी से क्या लेना ।
कुछ कुछ समझती हुयी । कुछ कुछ ना भी समझती हुयी राजवीर ने सहमकर उसके समर्थन में सिर हिलाया । जिन्नात का नाम सुनकर ही उसकी हवा खराब हो उठी थी । वो भी उसकी बेटी पर । वो भी उसके घर में । वह पूरा सहयोग करने को तैयार हो गयी ।
तब गुरुदेव सिंह ने उसे कमरे के बीचोबीच खङा कर दिया । और अगरबत्तियाँ सुलगा दी । फ़िर वह राजवीर के पास आया । और कोई तीखी गन्ध वाली जङी सी उसे सुंघाई । राजवीर हल्के हल्के नशे का सा अनुभव करने लगी । पर वह पूरे होश में थी ।
उसने सिन्दूर मिली भभूतउसके माथे पर लगा दी । फ़िर उसके ठीक पीछे आकर खङा हो गया । वह भभूत कीबिन्दियाँ सी उसके गाल पर लगा रहा था । वह राजवीर से एकदम सटकर खङा था । और उसके विशाल नितम्बों से लगा हुआ था ।
उसकी तरफ़ से कोई विरोधी प्रतिक्रिया न पाकर गुरुदेव सिंह ने उसकी कुर्ती में हाथ डाल दिया । और भभूत उसकेस्तनों पर मलने लगा । राजवीर उत्तेजित होने लगी । पर क्या हो सकता था । चुप रहना उसकी मजबूरी थी । बाबा उसके पूरे बदन पर हाथ फ़िरा रहा था । और फ़िर वह उसको बहकाता हुआ सा कमर के पास ले आया । पैरों के बीच उसका हाथ जाते हीराजवीर कसमसाने लगी । बाबा ने उसका बन्द खोल दिया ।
- चिन्ता न कर । वह फ़ुसफ़ुसाया - वह खुश हो जायेगा । फ़िर नुकसान नहीं करेगा । ठीक है ।
राजवीर ने समर्थन में सिर हिला दिया । बाबा नेउसको झुका दिया । और उसके नितम्बों के करीब हुआ । राजवीर ने भय से आँखे बन्द कर ली । फ़िर उसे अपने अन्दर कुछ सरकने का सा आभास हुआ । एक गरमाहट सी उसके अन्दर भरती जा रही थी । रोकते रोकते भी उसके मुँह से आह निकल गयी । फ़िर उसके विशाल अस्तित्व पर चोटों की बौछार सी होने लगी । और वह बेदम सी होती चली गयी।
क्या अजीब बात थी । वह भूल गयी थी । किसलिये आयी है । क्या परेशानी है । और उस नयी स्थिति को अनुभव करती हुयी पूर्णतया आत्मसात करने लगी । एक ऊँची हाँफ़ती सी चढाई चढती हुयी । वह गहरी गहरी सांसे लेने लगी । तब बाबा उसके ऊपर ढेर हो गया । राजवीर के अन्दर गर्म लावा सा बहने लगा ।
खिङकी की झिरी से आँख लगाये खङी करम कौर अलग हट गयी । उसके चेहरे पर अजीव सी मुस्कराहट थी । राजवीर ने कोई विरोध नहीं किया । इस बात की उसे बङी हैरत हुयी । उसेलगने लगा । उसकी तरह शायद राजवीर भी बहुभोग की अभ्यस्त थी । या फ़िर औरत होती ही ऐसी है कि जल्दी समर्पण कर देती है । कुछ भी हो । इस बात के लिये वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची ।
आखिर इस जिन्दगी का ही क्या निष्कर्ष है ? शायद कोई नहीं जानता । एक विशाल तूफ़ानी सैलाव की तरह जिन्दगी सबको बहाये ले जा रही है । कल जो अच्छा बुरा हुआ था ।उस पर हमारा कोई वश नहीं था । आगे भी जो होगा । उस पर भी कोई वश नहीं होगा । बच्चों की टाय ट्रेन की सीट पर बैठे किसी नादान बच्चे के समान ही इंसान जिन्दगी की इस रेल में गोल गोल घूम रहा है ।
रोज दिन होता है । रोज फ़िर वही रात होती है । रोज वही निश्चित दिनचर्या । कोई मरता है । कोई जीता है । कोई सुखी है । कोई दुखी है । कोई अरमानों की सेजपर मिलन के फ़ूल चुन रहा है । कोई विरहा के कांटों से घायल दिन गिन रहा है । पर जिन्दगी मौत को इस सबसे कोई मतलब नहीं ।उसका काम निरन्तर जारी ही रहता है ।
जस्सी की समस्या का भी कोई हल अभी समझ में नहीं आया था । बल्कि अभी समस्या ही समझ में नहीं आयी थी । बल्कि कभी कभी ये भी लगता था कि उसे दरअसल कोई समस्या ही नहीं थी । उसकी सभी मेडिकल रिपोर्ट नार्मल आयी थी । उनमें वीकनेस जैसा कुछ शो करने वाला भी कोई प्वाइंट नहीं था । तब डाक्टरों ने वैसे ही उसे टानिक टायप सजेस्ट कर दिया था ।
और वह पहले की तरह आराम से कालेज जाती थी । हाँ बस इतना अवश्य हुआ था कि राजवीर ने अब मनदीप से छुपाना उचित नहीं समझा था । और उसे सब कुछ न सिर्फ़ बता दिया था । बल्कि मौके पर दिखा भी दिया था । तब बराङ पहली बार चिंतित सा नजर आया ।और गम्भीरता से इस पर सोचने लगा । पर वह बेचारा क्या सोचता । ये तो उसके पल्ले से बाहर की बात थी । वह सिर्फ़ महंगे से महंगा इलाज करा सकता था । किसी की ठीकठाक राय पर अमल कर सकता था । या फ़िर शायद वह कुछ भी नहीं कर सकता था । और कुदरत का तमाशा देखने को विवश था । और तमाशा शुरू हो चुका था ।
सुबह के नौ बज चुके थे । जस्सी स्कूटर से कालेज जा रही थी । हमेशा की तरह उसके पीछे चिकन वाली उर्फ़ गगन कौर बैठी हुयी थी । और वह रह रहकर जस्सी के नितम्बों पर हाथ फ़िराती थी ।
जस्सी को उसकी ऐसी हरकतों की आदत सी पङ चुकी थी । बल्कि अब ये सब उसे अच्छा भी लगता था । गगन इस मामले में बहुत बोल्ड थी । जब क्लासरूम में टीचर ब्लेक बोर्ड पर स्टूडेंट की तरफ़ पीठ किये कुछ समझा रहा होता था । वह जस्सी को शलवार के ऊपर से ही सहलाती रहती थी । और जब तब उसके स्तन को पकङ लेती थी । उत्तेजित होकर मसल देती थी ।
- जस्सी । ख्यालों में डूबी गगन बोली - काश यार क्लासरूम की सीट पर कोई ब्वाय हमारे बीच में बैठा होता । तो मैं उसका हैंडिल ही घुमाती रहती । और वह बेचारा चूँ भी नहीं कर पाता ।
- क्यों ! जस्सी मजा लेती हुयी बोली - वो क्यों चूँ नहीं कर पाता । क्या वो टीचर को नहीं बोल सकता । तू उसका पाइप उखाङने पर ही तुली हुयी है ।
- अरे नहीं यार । वह बुरा सा मुँह बनाकर बोली - ये लङके बङे शर्मीले होते हैं । वो बेचारा कैसे बोलता । मैं उसके साथ क्या कर रही हूँ । देख तू कल्पना कर । तू किसी भीङभाङ वाले शाप काउंटर पर झुकी हुयी खङी है । अबाउट45 डिगरी । फ़िर पीछे से तुझे कोई फ़िंगर यूज करे । अपना हैंडिल टच करे । बोल तेरा क्या रियेक्ट होगा ।
- मैं चिल्लाऊँगी । शोर मचाऊँगी । उसको सैंडिल से मारूँगी ।
- ओह शिट यार । ये सब फ़ालतू के ख्यालात है ।कोई भी ऐसा नहीं कर पाता । देख मैं बताती हूँ । क्या होगा । तू यकायक चौंकेगी । सोचेगी । ये क्या हुआ । और फ़िर तेरा माउथ आटोमैटिक लाक्ड हो जायेगा । तू सरप्राइज्ड फ़ील करेगी । एक्साइटिड फ़ील करेगी । अब 1% को मान ले । तू चिल्लायेगी । उसको सैंडिल से मारेगी । मगर जमा पब्लिक को क्या बोलेगी । उसने तुझे सेक्सुअली टच किया । कहाँ किया । कैसे किया । बता सकेगी । साली इण्डियन लेडी । भारतीय नारी । घटिया सोच ।
जस्सी भौंचक्का रह गयी । वह चिकन वाली को बे अक्ल समझती थी । पर वह तो गुरुओं की भी गुरु थी । पहुँची हुयी थी । नम्बर एक कमीनी थी । टाप की नालायक थी ।
- एम आई राइट ! गगन फ़िर से बोली - वो मुण्डा कुछ नहीं कह सकता ।मानती हैं ना । और फ़िर वो सालिआ क्यों कहने लगा । स्टडी और रोमेंस एक साथ । एक टाइम । किसी नसीब वाले को ही नसीब हो सकते हैं ।
जस्सी को लगा । वह एकदम सही कह रही है । हकीकत और कल्पना में जमीन आसमान का अन्तर होता है । एक बार उसको भी एक आदमी ने उसके नितम्ब पर चुटकी काटी थी । पर तब वह सिटपिटा कर भागने के अलावा कुछ नहीं कर पायी थी ।
- जस्सी । गगन फ़िर बोली - तुझे मालूम है । मेरी वर्जिनिटी ब्रेक हो चुकी है । मैंने बहुत बार एंजाय किया है ।
जस्सी लगभग उछलते उछलते बची ।
- हाँ यार । वो साला मेरा एक ब्वाय फ़्रेंड था । मेरे पीछे ही पङ गया सालिआ । एक दिन वो मेरे को अपने दोस्त के खाली के मकान में ले गया । और मेरे लेप डाउन में अपना पेन ड्राइव इनसर्ट कर दिया । सालिआ अपना पूरा डाटा ही डाउनलोड करके उसने मुझे छोङा ।अभी मोटी अक्ल की भैंस । ये मत बोलने लगना कि - ये लेप डाउन क्या
होता है ? लेप टाप साले गंवार बोलते हैं । अभी तू बोल । लेपी कम्प्यूटर गोद में नीचे रखते हैं । या ऊपर ? जब गोद ही नीची हुयी । तो लेपी टाप कैसे हुआ । तब डाउन ही बोलो ना उसको ।
जस्सी के मुँह से जोरदार ठहाका निकला । क्या फ़िलासफ़ी थी साली की । एकदम सेक्सी बिच । इसको हर जगह हर समय एक ही बात नजर आती थी । हर डण्डे में अपनी झण्डी फ़ँसाना । क्या कुङी थी ये चिकन वाली भी ।
उसका अच्छा खासा सुबह सुबह का पढाई का मूड कमोत्तेजना में परिवर्तित हो गया था । एक तो वैसे ही सुन्दर और सेक्सी लङकी हर विपरीत लिंगी नजर के बर्ताव से सेक्सी फ़ीलिंग महसूस करती है ।उस पर गगन जैसी सहेली हो । फ़िर तो क्या बात थी । उसके बदन में चीटियाँ सी रेंगने लगी । एक भीगापन सा उसे साफ़ साफ़ महसूस हो रहा था । उसका दिल करने लगा था । गगन उससे किसी ब्वाय फ़्रेंड सा बर्ताव करे । और उसके जजबातों को दरिया खुलकर बहे । फ़िर उसने अपने आपको कंट्रोल किया ।
लेकिन अब नियन्त्रण करना मुश्किल सा हो रहा था । इस उत्तेजना को चरम पर पहुँचाये बिना रोका नहीं जा सकता था ।इच्छाओं का बाँध पूरे वेग से टूटने वाला था । सो उसने स्कूटर को कालेज की बजाय एक कच्चे रास्ते पर उतार दिया । जहाँ झूमती हुयी हरी भरी लहराती फ़सलों के खेतों का सिलसिला सा था । गगन एक पल को चौंकी । पर कुछ बोली नहीं । वे दोनों खेत में घुस गयी ।और एक दूसरे से खेलती हुयी सुख देने लगी ।
और तब जब जस्सी निढाल सी थकी हुयी सी सुस्त पङी थी । उसका दिमाग शून्य होने लगा । उसे तेज चक्कर से आने लगे । उसकी आँखे बन्द थी । पर उसे सब कुछ दिख रहा था । पूरा खेत मैदान उसे गोल गोल घूमता सा प्रतीत हुआ । खेतों में खङी फ़सल । आसपास उगे पेङ । उसका कालेज । सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । फ़िर उसे लगा । एक भयानक तेज आँधी सी आ रही है । और सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । लोग । वह । गगन । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक जस्सी की आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह तेज तूफ़ान उन्हें उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । वे दोनों जंगल में भागने लगी ।पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उनको भी मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकङाती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था ।
फ़िर वे दोनों बिछङ गयीं । और जस्सी एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । जस्सी उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी ।
और तब जस्सी का सिर बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी बेहोश हो गयी । अपनी धुन में मगन गगन कौर के मानों होश ही उङ गये । उसकी हालत खराब हो गयी । अचानक उसे कुछ नहीं सूझ रहा था । कुछ भी तो नहीं ।