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मैंने उसका सर पकड़ कर अपने दूदू के तरफ खींच दिया और आँखों से इशारा कर दिया मेरी दूदू चूसने को। मेरा बेटु बिलकुल एक छोटे बाबू के तरह मेरे दूदू को चूसने लगा। मैं अभी उसके लंड से खेल रही थी। क्यूंकि वो अब भी जवान था, उसका लंड फिर से काफी जल्दी खड़ा हो गया।
मुझे बस अब मेरे बेटु का प्यार चाहिए था। मेरे बस ऊपर के हिस्से खुले हुए थे। मैं अब ज़रा सा हट कर खड़ी हुयी और अपने साड़ी को उतारने लगी। मैंने अपना पेटीकोट उतरा और अपनी पैंटी भी उतार दी। और बिलकुल नंगी अपने बेटे के सामने खड़ी हो गयी।
जब मैंने अपना चेहरा उठा कर अभिषेक को देखा, वो अचंभित होकर मुझे देख रहा था, बिलकुल उसी तरह जैसे उसके पापा ने मुझे पहली बार नंगी देखा था। मुझे लग रहा था मेरे आलोक वापस आ गए हैं। अभिषेक को देख मैं शर्मा गयी लेकिन अब मुझे बस अपने बेटु का लंड मेरे अंदर चाहिए था।
मैं अपने टेबल पर चढ़ कर लेट गयी, अपने टांगो को फैलाते हुए अभिषेक को इशारा किया। वो खड़ा हुआ और टेबल पर चढ़ कर मेरे ऊपर आ गया। उसने अपने लंड को मेरी चुत पर लगाकर सेट करने की कोशिश की, तो मैंने उसके लंड को पकड़ कर अपने चुत में सेट कर के आँखे बंद कर ली, उसने धीरे धीरे अंदर डालने को ज़ोर लगाया।
पार्क में चुम्बन करने के वक़्त से ही मेरी चुत गीली हो गयी थी। और मेरे पति और दोनों कर्मचारियों से चुदते हुए मेरा चुत ज़रा ढीला हो गया था। तो बेटु को ज़्यादा मुश्किल नहीं हुयी।
पर सृष्टि भी क्या खूबसूरत चीज़ है। किसी भी नर को मादा के चुत तक पहुँचा दो, बस। उसके बाद वो खुद ही कर लेता है हर कुछ। जैसे ही चुत में अभिषेक का लंड घुसा, मेरे मुंह से ज़ोर से “आह” निकल गयी और मेरे आँखों में आंसू थे, ख़ुशी के आंसू।
अब अभिषेक मुझे चोदने लगा। एक मर्द के तरह चोदने लगा। धक्के की तेज़ी बढ़ाने लगा। चोदते हुए वो कभी कभी मेरे दूदू को मसल देता और जब थकता तो झुक कर मेरे होंठो को चुम लेता।
मैं बस सिसक सिसक कर आहें भर रही थी।
अब वो काफी तेज़ चोदने लगा तो मैं समझ गयी वो झड़ने वाला है। मैंने आँखों से ही कह दिया की मैं पहली बार उसका अपने अंदर ही लेना चाहती हूँ। दो मिनट बाद वो झड़ गया और उसका सारा वीर्य मेरे अंदर गिर गया।
हम दोनों थक गए थे और पसीने से लथपथ थे। वो मेरे पास आकर लेट गया, मुझे पीछे से लिपट कर सो गया।
मेरी नींद उड़ गयी थी। मेरी ज़िन्दगी एक नयी मोड़ ले चुकी थी। मेरे आँखों में आंसू, थोड़े दर्द के, थोड़े ख़ुशी के, थोड़े प्यार के। अभिषेक का हाँथ मेरे पेट पर था। उसके लंड को अपने पीछे महसूस कर पा रही थी। उसके साँस की गरम हवा सीधे मेरे गले पर लग रही थी। मैं उसके हांथो को जकड़ कर सो गयी।
करीबन साढ़े नौ बजे फ़ोन बजने पर हमारी नींद खुली। मैंने उठाया तो नौकरानी के फ़ोन से आरती का कॉल था। उसने पूछा की हम कहाँ हैं, तो मैंने बहाना करते हुए कहा की ऑफिस में काम में देरी हो गयी है, बस आते हैं।
हम दोनों उठे, कपड़े पहने और एक टैक्सी में निकल पड़े। हम दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर पा रहे थे। पर उसका हाँथ मेरे हाँथ में था। आलोक जी के जाने के बाद पहली बार महसूस हो रहा था, कोई मेरा साथी है मेरे साथ।
उम्र चाहे कितनी भी हो उस वक़्त अभिषेक की, पर एक मर्द और एक औरत का मिलन किसी भी उम्र में हो सकता है। और पिछले कुछ दिनों से मैंने उसे भांप लिया था, वो भले ही अभी सिर्फ 19 साल का था, पर उसमे समझदारी काफी अधिक थी, काफी परिपक्व था, समय की नज़ाकत, रिश्तों की एहमियत समझता था।
अगर वो मेरी एहमियत नहीं समझता तो मेरे दर्द को नहीं समझता, भले ही गुस्से में था सुबह तक, पर खुद से बात करने की पहल नहीं करता और मुझे नहीं समझता। और अपने बेटे से, अपने संतान से तो प्यार करती ही थी, लेकिन अब उसे एक मर्द के रूप में प्यार कर बैठी थी। उसके तौर तरीके बिलकुल आलोक जी जैसे थे। मुझे अपने जीवन में जिस दूसरे मर्द से प्यार हुआ, वो पहले का ही बेटा था।
मुझे बिलकुल भी इसमें कुछ भी गलत होने का एहसास नहीं लग रहा था। कर्मचारियों से चुदवाना एक पल को पाप लगता था, पर अपने बेटे के लंड को अपने चुत में लेने में मुझे कोई शर्म नहीं आयी। शाम तक हम दोनों का ऐसा कोई इरादा नहीं था, ना ही हम दोनों की ऐसी कोई गलत नज़र थी एक दूसरे पे। प्यार आपको किस बात पे, किस पल हो जाए, पता ही नहीं चलता। इसीलिए एक कहावत है की प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है।
मैं अपने बेटे के प्यार में थी। अब वो मेरे प्यार में था या नहीं, ये आने वाले भागों में जानेंगे।आने वाले भागों में और भी रोमांच है, मसाला है, थोड़ी बहुत मस्ती है, शरारत है। ये शुरुआत थी और बिलकुल ही अभूतपूर्व अनुभव था हम दोनों के लिए इसीलिए उन पलों में हमारा कोई नियंत्रण था नहीं। बस, बिना कुछ कहे होता चला गया।
कहानी अभी काफी बाकी है।