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Fantasy Meri Biwi aur patni (ek paheli. Suspence. MYSTRY. Thriller)

gauravrani

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भी सामने वाले की नख-शिख तस्वीर उतारने में सक्षम था। लिहाजा उस काम में मुझे कोई असुविधा नहीं हो रही थी। उस वक्त ग्यारह बजने को थे जब महेश बाली ने वेटर को बिल लाने का इशारा किया। वो इशारा वेटर के साथ-साथ मैंने भी कैच किया। गिलास में बची ब्रांडी को एक ही सांस में अपने हलक में उतारने के बाद मैं उठकर काउंटर पर पहुंचा। जहां मैंने अपना बिल चुकता किया और उन दोनों के उठने से बहुत पहले वहां से बाहर निकल आया। पार्किंग में पहुंचकर मैं अपनी बलेनो में सवार हुआ और सिगरेट के कश लगाता हुआ उनके वहां पहुंचने का इंतजार करने लगा। सोनाली की नेक्सन कार मेरे सामने वाली कतार में पार्क थी, लिहाजा इस बात का कोई डर नहीं था कि वो दोनों वहां से चलते बनते और मुझे खबर ही नहीं लगती। पांच मिनट बाद सोनाली की कमर में हाथ डाले महेश बाली पार्किंग में नमूनदार हुआ। वो नजारा देखकर मेरे तन-बदन में आग सी लग गई! बावजूद इसके कि सोनाली भगत से मेरी कोई यारी नहीं थी। बहरहाल दोनों कार में सवार होकर वहां से चलते बने, तो मैंने अपनी कार उनके पीछे लगा दी। आशियाना से निकलकर उनकी कार दाएं-बाएं होती हुई वसंतकुंज पहुंची और शामियाना अपार्टमेंट के नाम से
 
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जानी जाने वाली एक हाउसिंग कॉम्प्लैक्स में दाखिल हो गयी। मैं बदस्तूर उनके पीछे लगा रहा। कॉम्प्लैक्स के भीतर दाखिल होकर उनकी कार करीब दो सौ मीटर आगे गई फिर एक तीन मंजिला इमारत के सामने जाकर खड़ी हो गई। मैंने अपनी कार उस इमारत से एक ब्लॉक पहले ही रोक दी! रोककर इंतजार करने लगा। मेरे देखते ही देखते दोनों कार से बाहर निकलकर इमारत में दाखिल हो गये। मैंने फौरन अपनी कार आगे बढ़ाई और नेक्सन के बराबर में ले जाकर खड़ी कर दी। सीढ़ियों के दहाने पर पहुँचते ही मुझे ऊपर जाती सैंडिलों की खटखटाहट की आवाज सुनाई दी। मैं फासला बनाकर सीढ़ियां चढ़ने लगा। कुछ देर बाद खटखटाहट बंद हो गई। मैं तेजी से ऊपर की ओर बढ़ा। दूसरी मंजिल पर पहुंचकर मैंने सावधानी से गलियारे में झांका तो एक दरवाजे के आगे खड़े वो दोनों दिखाई दे गये। मैंने पूरी सावधानी बरतते हुए दोनों की एक तस्वीर उतार ली। वैसे भी उस वक्त दोनों एक दूसरे में यूं खोये हुए थे कि मैं उनकी बगल से गुजर जाता तो भी उन्हें मेरी खबर नहीं लगती। महेश बाली ने झुककर ताला खोला फिर दोनों भीतर दाखिल हो गये। मैं तत्काल दरवाजे के सामने जा खड़ा
 
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हुआ और भीतर से उभरती कोई आहट सुनने की कोशिश करने लगा। मगर कामयाब नहीं हो सका। तब मैंने झुककर अपनी एक आंख की-होल से सटा दी। आगे जो नजारा मुझे दिखाई दिया वो उसी घड़ी शुरू हुई पॉर्न मूवी के स्टार्टिंग सीन जैसा था। महेश बाली सोनाली के तन से से एक-एक करके कपड़ों का आवरण हटाए जा रहा था। कुछ ही क्षणों में वो जन्मजात नग्नावस्था में बाली के सामने खड़ी थी! फिर बाली ने उस अहम काम को अंजाम देना शुरू किया जिसके लिए वो सोनाली को साथ लेकर यहां तक पहुंचा था। जो उसकी स्पैशिलिटी थी। जिसकी वजह से सोनाली उसकी दीवानी थी। बहरहाल की-होल से आंख हटाकर मैंने अपनी रिस्टवॉच को कलाई से अलग किया फिर उसका कैमरे वाला हिस्सा की-होल पर रखकर उसे वीडियो मोड पर चला दिया। शुक्र था कि उस दौरान गलियारे में किसी के कदम नहीं पड़े थे वरना मेरे लिए दुश्वारी खड़ी हो सकती थी। तकरीबन एक मिनट तक रिकार्डिंग करने के बाद मैंने दोबारा की-होल से भीतर झांका तो आगे मुझे ड्राइंगरूम खाली दिखाई दिया। मैं दरवाजे से अलग हटा और बिल्डिंग से बाहर निकल आया।
 
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नीचे पहुंचकर मैंने साहिल भगत को फोन किया। तत्काल कॉल अटैंड की गई। “बोलो!” उधर से कहा गया। मैंने कम शब्दों में उसे वस्तुस्थिति समझाई और जानना चाहा कि आगे वो क्या चाहता था। “तुम्हारा काम खत्म!” - वो बोला - “मेरी तरफ से तुम वहां खड़े रहने के अलावा कहीं भी जाने को आजाद हो। कल बिल भेज देना, चाहो तो खुद आकर पेमेंट कलैक्ट कर लेना।” कहकर उसने काल डिस्कनैक्ट कर दिया। उसके उस व्यवहार ने मुझे हैरान करके रख दिया। केस हाथ में लेने के बाद ये पहला मौका था जब वो मेरे साथ यूं बेरूखी से पेश आया था। बड़े लोगों की बड़ी बातें! क्या फर्क पड़ता था। लापरवाही से कंधे उचकाकर मैं अपनी कार में सवार हो गया। शामियाना से बाहर निकलकर मैंने अपनी कार का रूख अंधेरिया मोड़ की ओर कर दिया मगर थोड़ा आगे जाते ही यू टर्न लेकर दोबारा शामियाना के सामने, मगर सड़क की दूसरी ओर पहुंच गया। जहां कार को सड़क के किनारे लगाकर इंतजार करने लगा। मैं नहीं जानता था कि मुझे किस बात का इंतजार था। बस मेरे अंदर कहीं से आवाज आई कि मुझे कुछ देर वहां
 
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रूकना चाहिए। वक्त-गुजारी के लिए मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और इंतजार करने लगा। अपनी मौजूदा पोजीशन में मुझे वो बिल्डिंग तो नहीं दिखाई दे रही थी जिसमें सोनाली और बाली का का मधुर-मिलन हो रहा था। मगर सिक्योरिटी गेट - जो कि इकलौता वहां पहुंचने का रास्ता था - मेरे एकदम सामने था। उसपर नजर रखकर हर आये गये को बखूबी देखा जा सकता था। आधा घंटा यूंही गुजर गया। फिर एक कार वहां पहुंची। उसकी ड्राइविंग सीट पर बैठे साहिल भगत को मैंने साफ पहचाना। उसकी कार बाउंड्री के भीतर दाखिल हुई ही थी कि महेश बाली वहां से बाहर निकलता दिखाई दिया। किस्मत अच्छी थी पट्ठे की! साहिल से उसका आमना-सामना होने से बाल-बाल बचा था। बाहर आकर वो पैदल ही एक ओर को चल दिया। मैं उसके पीछे जाने की सोच ही रहा था कि उसे एक दुकान पर ठिठकता देखकर मैंने अपना वो इरादा मुल्तवी कर दिया। बाली के हाथ में उस घड़ी एक पैकेट था, जिसे उसने दुकान के काउंटर पर रख दिया और एक सिगरेट खरीदकर बड़े इत्मीनान से कश लगाने लगा। मुझे वो नजारा बड़ा
 
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ही अजीब लगा। उसे सिगरेट के कश ही लगाने थे तो वो वापिस फ्लैट में जाकर लगा सकता था। या चलते-चलते लगा सकता था। मगर वो तो यूं तसल्ली से वहां खड़ा था जैसे उसे वापिस लौटने की कोई जल्दी ही ना हो। क्या माजरा था! क्या सोनाली वहां से कहीं और चली गई थी। मगर उसकी कार गेट से बाहर निकलती तो दिखाई नहीं दी थी। अहम सवाल ये था कि उसे फ्लैट में अकेला छोड़कर ये जमूरा यहां क्यों खड़ा था। जरूर उसने साहिल को वहां पहुंचते देख लिया होगा। मगर अगले ही पले मुझे अपना ये खयाल जहन से झटक देना पड़ा। भला फ्लैट के भीतर रंगरलियां मनाते बाली को ये खबर कैसे लग सकती थी कि साहिल भगत वहां पहुंचने वाला था। अगले दो मिनटों में ये साबित भी हो गया कि मेरा वो ख्याल गलत था। मेरी निगाह उसी घड़ी वहां पहुंचे ऑटो से उतरती लड़की पर गड़ सी गयी। जरूर बाली उसी के इंतजार में वहां खड़ा था। युवती पीले रंग का सलवार कुर्ता पहने हुए थी, साथ ही उसने बड़े सलीके से दुपट्टा ओढ़ रखा था, ना कि आजकल कि अधिकतर लड़कियों की तरह गले में फांसी के फंदे की तरह झुलाया हुआ था। बाली ने अपने हाथ में थमा पैकेट लड़की को दे दिया, फिर दोनों में कुछ बातें हुईं जिसके बाद बाली ने अपनी
 
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जेब से निकालकर कोई चीज उसे पकड़ाई। दोनों के बीच फिर कुछ बातें हुईं, इसके बाद लड़की वापिस उसी ऑटो में सवार हो गई। लड़की के जाने के बाद बाली वापिस घूमा और एक बार फिर शामियाना के कंपाउंड में दाखिल हो गया। यानि किस्मत बस थोड़ी ही देर के लिए उसके साथ थी। अगर मेरे क्लाइंट का मुझे वहां से चले जाने का हुक्म नहीं होता तो आगे होने वाला हाई टेंशन ड्रामा देखे बिना मैं वहां से नहीं हिलता। मगर वो बड़ा क्लाइंट था, बड़ा और रसूक वाला क्लाइंट था। मैं उसे नाराज करना अफोर्ड नहीं कर सकता था। इसलिए साहिल भगत की निगाहों में आये बिना मेरा वहां से कूच कर जाना जरूरी था। आगे क्या होने वाला था उसका अंदाजा मैं बखूबी लगा सकता था। लिहाजा पूरे ड्रामे की मन ही मन कल्पना करता हुआ मैं अपने घर की राह लगा।
सुबह करीब आठ बजे मैं सोकर उठा। उठकर तैयार हुआ और किचन में पहुंचकर अपने लिए टोस्ट और कॉफी तैयार किया फिर बैठक में पहुंचकर नाश्ता करने लगा।
 
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उसी दौरान मेरी निगाह दरवाजे केे नीचे से झांकते अखबार पर पड़ी। मैंने अखबार उठाकर सैंट्रल टेबल पर रख लिया और कॉफी चुसकते हुए एक सरसरी निगाह उसपर डाली, फ्रंट पेज पर छपी खबर पर निगाह पड़ते ही मैं नाश्ता करना भूल गया। मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था - ‘मशहूर बिजनेसमैन साहिल भगत की बीवी, सोनाली भगत की हत्या‘ - मैंने जल्दी-जल्दी पूरी खबर पढ़ डाली। खबर के अनुसार बीती रात बारह बजे के करीब साहिल भगत ने अपनी बीवी सोनाली की गोली मारकर हत्या कर दी थी। हत्या का चश्मदीद गवाह महेश बाली नाम का फैशन फोटोग्राफर था। जिसने हत्या के बाद साहिल को मौकायेवारदात से फरार होने से रोका था। हत्या महेश बाली के फ्लैट में की गई थी, जो कि सोनाली भगत का फ्रैंड बताया जाता है। पुलिस के अनुसार बाली ने जब साहिल को अपनी बीवी की हत्या करते देखा तो बाहर से फ्लैट का दरवाजा लॉक करके पुलिस को इत्तिला दे दी। बाद में पुलिस ने वहां पहुंचकर दरवाजा खुलवाया और साहिल भगत को हिरासत में ले लिया। मैंने जल्दी-जल्दी अखबार के बाकी पन्ने पलट डाले मगर उससे संबंधित कोई और खबर अखबार में नहीं
 
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मैंने एक गहरी सांस ली और अखबार एक तरफ फेंककर बचे हुए नाश्ते को हलक में उतारने लगा। इस दौरान एक ही सवाल मेरे जहन में गूंजता रहा - क्या सचमुच साहिल ने अपनी बीवी की हत्या की थी, अगर ऐसा था तो उसने महेश बाली को जिंदा क्यों छोड़ दिया था। तभी मुझे याद हो आया कि कत्ल के वक्त तो महेश बाली बाहर सड़क पर खड़ा था। जरूर वापिस अपने फ्लैट पर पहुंचकर उसने साहिल भगत को सोनाली की हत्या करते देख लिया होगा और इससे पहले कि साहिल उसे भी गोली मार देता, उसने बाहर से फ्लैट का दरवाजा बंद कर दिया होगा। मुझे अपना ये ख्याल जंचा। नाश्ते से फारिग होकर मैंने साहिल के मोबाइल पर फोन किया मगर दो तीन कोशिशों के बाद भी मेरा उससे संपर्क नहीं हो सका। मैंने उसके बंगले पर फोन किया। साहिल की बाबत पूछने पर कोई जवाब दिये बिना दूसरी तरफ से कॉल डिस्कनैक्ट कर दी गयी। दस बजे के करीब मैं साकेत स्थित अपने रैपिड इंवेस्टिगेशन के ऑफिस पहुंचा। जहां हमेशा की तरह मेरी सेक्रेटरी कम रिसैप्शनिस्ट कम लेगमैन कम मेरी सब-कुछ, शीला वर्मा अपने हुस्न के पूरे जलाल के साथ, मेरा स्वागत करने के लिए मौजूद थी।
 
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मैंने जी-भरकर उसका नख-शिख मुआयना किया फिर बोला, ‘गुड मॉर्निंग ब्यूटी क्वीन‘ “गुडमॉर्निंग हैंडसम!” “क्या कर रही है?” “इंतजार!” “मेरा!” “नहीं फोन का!” “कोई खास कॉल आने वाली है।” “आई, तो खास ही होगी वरना कैसी भी हो क्या फर्क पड़ता है?” “ठीक कहती है खास लोगों को खास कॉल्स ही आती हैं, या फिर आती ही नहीं हैं।” “चलो तुमने ये तो माना कि मैं खास हूं।” “वो तो तू है ही, लेकिन अभी वाले खास का जिक्र मैंने अपने संदर्भ में किया था।” “फिर तो मैं बहुत खास हुई।” “वो कैसे?” “वैसे ही जैसे चम्मच के सामने कटोरे की अहमियत ज्यादा होती है।” “चम्मच कौन!” “और तो कोई दिखाई नहीं देता मुझे।” “चल इसी बहाने चम्मच को कटोरे में मुंह मारने का
 
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