आज इस कहानी को पढ़कर मन अशांत हो गया...............
दोषी वो खाँप या पंचायत ही नहीं.............. उसका फैसला मानने वाले और........ देश/प्रदेश और जनता के लिए शपथ लेकर सरकारों के तलुए चाटने वाले प्रशासनिक कर्मचारी/अधिकारी भी हैं
अगर दीप्ति गुपचुप तरीके से इस मामले को मीडिया में उछाल देती ............तो अकेली कमला की बेटी ही नहीं उस गाँव की कितनी ही लड़कियों की रक्षा हो सकती थी..........
शासन की महाभ्रष्ट प्रणाली लोकतन्त्र..............जिसमें शासक को योग्यता नहीं बहुमत के आधार पर चुना जाता है .................. संवैधानिक रूप से उचित निर्णय ले ही नहीं सकती...................
जो कुछ समर्थ हैं उन्हें अपने धन, पद, ज्ञान और बल के प्रयोग से कम से कम एक असमर्थ की रक्षा तो करनी चाहिए............................लेकिन दीप्ति ने निराश ही किया
रही उसके पति की समाजसेवा................1947 से 73 साल मे जितने करोड़ दान, अनुदान, चंदा इन एनजीओ ने लिया है सरकार और जनता से..............उतने भी लोगों के लिए काम नहीं कर पाये.............
दिखता बहुत कुछ है................लेकिन होता कुछ नहीं, किसी भी जरूरतमन्द के लिए
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध
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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर'