मिले सितारे लाख
बने सितारे ख़ाक
लकड़ी ने जलना था
बची सिर्फ राख
मन के भीतर, शब्दों के तीतर
कभी कभी किसी से इतनी शिकायते हो जाती है कि उन शिकायतो की कोई वजह ही नही बचती...
.......सिर्फ और सिर्फ सिवाय एक वजह के कि हम एक दुसरे से मिले ही क्यूँ ....
.....जाने अनजाने हम कब किसी के दर्द की वजह बन जाते है ये हमे खुद भी नही पता चलता...
....... हमारे चलने वाले रास्तो पर
हमे सिवाय मंजिलो के और किसी चीज की दरकार भी कहां रहती है....
....मैंने देर तक बैठ कर इन रास्तो पर मंजिलो की भयावह परछायी को देखा है...
.....अब जा कर समझ आया क्यों तमाम पंरिदो सांझ ढले घर को लौट जाते है...
......सिर्फ अन्धेरा ही नही दिन के उजाले भी हमे भर्माते है.....
.........ताउम्र हम बंद आंखो वाले अन्धेरों से नही चकाचौंध वाले उजालों से घबराये है....
......गर बाहर उजाला हो तो भीतर अन्धेरा नही होना चाहिये.......
.....और गर बाहर अन्धेरा हो तो भीतर का सूरज नही खोना चाहिये...