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Incest Pyaar - 100 Baar

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Life style

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बबिता और मुस्कान को लिए अर्जुन खामोशी से चला जा रहा था. वो दोनो पिछली सीट पर बैठी थी और मुस्कान को भी बुरा लग रहा था अर्जुन का यू खामोश रहना. बबिता ने हे बातों का सिलसिला शुरू किया जैसा वो ज़्यादा चुप रह हे नही सकती थी.

"तेरे जीजा से पहली बार खाली हाथ मिलेगा अर्जुन?", अर्जुन ने ये बात सुनकर आईने से पीछे देखा जहा बबिता का वो गोल खूबसूरत चेहरा और हल्की सी लाल भारी हुई माँग उसको और भी आकर्षक बनती थी. चेहरे पर हर वक़्त ये चमक रहने लगी थी जिसकी वजह शादी से ज़्यादा अर्जुन का प्यार था.

"सॉरी, भूल गया था के हम जहा जा रहे है अब वाहा जीजा जी भी होंगे. कोई बात नही मैं वो अगले तुर्न से हे शहर की तरफ ले लेता हू.", अर्जुन बस गाँव वाली सड़क पर पहुचने हे वाला था. मुस्कान भी सोच रही थी की बबिता के मॅन मे आख़िर चल क्या रहा है.

"ना ना. वाहा जाने की लोड ना है और गोलू अभी ज़्यादातर बिस्तेर पे हे रहता है. तोड़ा बहोट टहलता भी है तो शाम को यार दोस्त मिलने आते है तो बाहर आँगन मे जमघट लगा लेते है. वो उल्टे हाथ की तरफ ठेका है तेरे और गाड़ी थोड़ी आयेज रोक के उधर से कला कुत्ता ले लियो. जात खुश हो जे गा देख के."

"ये कला कुत्ता शराब की दुकान पे?"

"ईडियट, ब्लॅक डॉग विस्की की बॉटल. बिजेंदर को भी गिफ्ट मे मिली थी ब्याह मे तो मैने हवेली पे देखी. गोलू जबसे घर आया है, 2-3 पेग लगाने लगा है शाम को. देसी आदमी वीदेसी देख के घाना हे खुश होये करे है क्योंकि देसी तो हर टाइम मिल जाए है. ले पैसे लेता जा.", बबिता ने हैरान परेशन अर्जुन को 500 के 2 नोट देते हुए कहा लेकिन अर्जुन ने माना करते हुए अपना पर्स उठाया और कार से उतार कर 20 कदम पीछे उस शराब की ढुआकान की तरफ चल दिया.

'बस यही बाकी था करना अब. आज पहली बार शराब ले रहा हू वो भी गिफ्ट मे देने के लिए.', यहा 2 दुकाने थी एक साथ: "देसी शराब का ठेका" ओर "अँग्रेज़ी ठेका/ठंडी बियर भी मिलती है", अर्जुन बड़े ध्यान से देखने लगा और देसी वेल पर आतची ख़ासी भीड़ देख कर उसके बगल वेल पर चल दिया जो लगभग खाली हे था.

"एक ब्लॅक डॉग विस्की की बॉटल. लिफाफे मे डाल देना अगर है तो.", अर्जुन को घबराहट हो रही थी और वो हर तरफ ध्यान दे रहा था के कही कोई उसको देख तो नही रहा. ठेके वाला वो पतला सा अधेड़ ऐसे घूर रहा था जैसे अर्जुन ने उसकी किड्नी माँग ली हो. लाल आँखें जैसे वो ग्राहक ना होने की वजह से हर बॉटल से तोड़ा तोड़ा चख रहा हो.

"850 रुपये. नया नया है के?", बड़े जोश से वो गटते के डिब्बे मे बंद बॉटल काउंटर पर रखते हुए उसने अर्जुन को घूर के पूछा. अर्जुन ने बटुए से 1000 सामने रखते हुए बॉटल उठा ली. वो समझ गया था के यहा लिफ़ाफ़ा नही मिलता.

"कयन नये ग्राहक को लिफ़ाफ़ा नही देते क्या? शहर से और ये आइक्स्क्स्क्स गाँव जा रहा हू अपने जीजा से मिलने, उनके लिए हे ली है ये.", अर्जुन की बात सुन्न कर वो व्यक्ति दिल से मुस्कुराया और बॉटल वापिस लेते हुए अख़बार पे लपेट कर एक ख़ास प्लास्टिक मे डाल दी.

"देख के हे पता लगे है के तू दारू ना पीटा इसलिए पूच लिया. और शायद पहली बार शराब लेने आया है तो एक पाते के बात बता देता हू. ठको पे लिफाफे, मोमजामे ना मिलते और ना माँगने चाहिए. ये ले तेरा बकाया 150 और ये ताश की गद्दी इसके साथ मुफ़त.", आदमी ने काउंटर के नीचे से वैसा हे ताश का पॅकेट निकाल कर दिया जैसी तस्वीर बॉटल के डिब्बे पर बनी थी. अर्जुन भी अब मुस्कुराया और हाथ मिला कर धन्यवाद करता हुआ वापिस लौट चला.

"ये आप हे पाकड़ो.", कार मे बैठते हे अर्जुन ने बॉटल वाला पॅकेट पीछे बबिता को पकड़ा दिया जो उसमे देखने लगी और फिर ताश की गद्दी हाथ मे लेके मुस्कुराइ.

"तू तो सिर्फ़ ठेके जाने से हे खुश हो गया रे खागड़. लोग दारू पी के खुश होते है.. हाहाहा.. वैसे एक और कहावत है गाँव-देहात मे. दारू और बाजारू की इज़्जट्ट नही होती लेकिन मर्द दोनो पे मरता है.", बबिता ने कार के चलते साथ हे पॅकेट अपने और मुस्कान के बीच रख लिया.

"पता नही ये कहावत कितनी ठीक है लेकिन मैने सुना है की शराब के साथ ताश, घर का सत्यानाश.", अर्जुन ने आयेज इस छोटी सी सॉफ सड़क पे ध्यान देते हुए ऐसे कहा था और अब मुस्कान पहली बार बोली थी.

"ये भी ठीक कहा अर्जुन जी आपने. दुनिया जानती है पांडव जुए मे तभी सबकुछ हारे थे जब वो साथ मे मदिरा पी रहे थे. हैं तो दोनो हे काम ग़लत लेकिन फ़ितरातन इनसे कोई भी बचता नही. तुम ज़रा इन दोनो से दूर हे रहना.", अर्जुन तोड़ा हैरान हुआ लेकिन फिर आईना तोड़ा ठीक करते हुए मुस्कान को देखा तो उसकी सादगी और वो आँखें जो उसपे हे केंद्रित थी, उन्हे देख दिल मे सुकून सा पनप उठा. अलग हे प्यार था मुस्कान का जिसने कभी इतचा हे नही जताई थी अर्जुन से और आज भी वो खामोश तबीयत थी बिना किसी शिकवे के.

"बस कर मेरी बेहन को घूर्णा. मिल लियो अतचे से वाहा घर पे और ये तो इतनी देर से बस इंतजार हे कर रही थी के तू कब इसके उपर ध्यान दे. जो हो रहा है उसका मुझे भी नही पता के वो सही है या ग़लत क्योंकि ग़लत कहूँगी तो फिर खुद को देख ना सकूँगी और सही कहूँगी तो तुम दोनो के लिए बुरा लगेगा.", बबिता ने इतनी गहरी बात कह दी थी की मुस्कान ने उसका हाथ हे दबा दिया, तोड़ा ज़ोर से. और अर्जुन खामोश हो कर फिर से सामने देखने लगा.

"देखो इस बात पर ज़्यादा मत सोचो. हम दोस्त है और दोस्ती मे कोई बंधन नही होता. बबिता दीदी जैसा सोच रही है मैं उस पर क्या काहु लेकिन जब आप खुश हो तो फिर सब ठीक है. ग़लत तब होगा जब तुम खुद पछतावा करो और अगर मेरी दोस्ती से तुम्हे पछतावा हुआ तो फिर कुछ बचता हे नही.", मुस्कान ने जैसे बात अपने दिल पर हे ले ली थी और अर्जुन ने गाँव से 5-6 काइलामीटर पहले हे कार एक तरफ रोक दी.

"आयेज आओ तुम, यहा मेरी बगल मे. और इन्हे बैठने दो अपने सही ग़लत के विचारो के साथ.", अर्जुन ने बबिता पर मजाकिया तंज़ करते हुए कहा जो झूठे गुस्स्से से उसको देखने लगी लेकिन मुस्कान का हाथ अर्जुन द्वारा पकड़ने पर वो भी खिलखिला उठी.

"जा मेरी कबूतरी, बैठ जा इसकी बगल मे. वैसे भी ड्राइवर जैसी फीलिंग आ रही होगी बेचारे को इतनी देर से.", मुस्कान तोड़ा शरमाती हुई पिछली सीट से उतार कर अब अर्जुन की बगल मे आ बैठी थी. कार चलते हे अर्जुन ने मुस्कान का वो नाज़ुक नरम हाथ अपनी हथेली मे लेते हुए उंगलियों के बीच उंगलियाँ फँसा ली. मुस्कान शीशे से बाहर देखती हुई शर्मा भी रही थी और खुशी से उसके गाल लाल भी होने लगे थे. बबिता खुश थी की चाहे कुछ पल हे सही लेकिन जब आप किसी को उसके होने और इतने ख़ास होने का एहसास करवाते हो तो ये लम्हे जीवन भर याद रहते है.

"एक मज़े की बात बताती हू तुम दोनो को.", बबिता ने ऐसे हे लम्हो के बीच कुछ सांझा करने का सोचा.

"हन ज़रूर. वैसे भी आपको तो सुन्न कर हे मज़ा आता है और अब तो जैसे सचमुच कुछ मजेदार हे बताने वाली हो लगता है.", अर्जुन ने मुस्कान की तरफ वाला एसी का बंद ढक्कन खोलते हुए ठंडी हवा उसके चेहरे की तरफ करने के साथ हे एक बार आईने मे पीछे सड़क पर ध्यान दिया. दूर दूर तक वीरान थी लेकिन सड़क सॉफ-सूत्री.

"मा का तो सबको हे पता है लेकिन मेरे बापू भी बहोट हे लंबे-चौड़े थे. सारे कस्बे और आसपास के गाँव मे नाम था फ़तेह सिंग का, बदमाशी मे भी और गुस्से मे भी. लेकिन जब बापू कभी मा के सामने आया करते तो सुशीला जी कहके बात करते थे, वो बी नज़रे झुका के. हाहाहा..", बबिता के हँसने से उसके खूबसूरत चेहरे और दमकते एकसार दांतो को देख अर्जुन भी चहक उठा. मुस्कान भी हंस रही थी मंद मंद और इस बार उसने खुद हे अर्जुन का हाथ थाम लिया था.

"मतलब जो व्यक्ति आसपास इतना नामचीं था वो बीवी के सामने बेबस.. क्या बात है? वैसे बुआ इतनी भी ख़तरनाक नही है.", अर्जुन हौले हौले मुस्कान के हाथ को सहलाता हुआ बात भी कर रहा था. ये दोतरफ़ा ध्यान वही रख रहा था बस.

"अर्रे तू ना जानता फेर सही से मा को अर्जुन. मैं तब 7-8 बरस की और फाग के दिन दादी वाली हवेली मे खूब हड्ड-डांग मचा हुआ था. रंग-गुलाल, पानी, कोर्डे सब चल रहे थे भाभी-देवर वेल उस खेल मे. गुड्डी काकी छोटी भाभी थी और उसको सभी रंग रहे थे या फिर दादी (चंड्रो) बहोट माहिर थी देवर कूटने मे और खेलती भी बहोट थी. उनकी ननद और जीजा आए हुए थे ओर आँगन मे फूल ढोल के साथ हो हल्ला मचा था. बिजेंदर भी छोटा था और सुदर्शन तो दादा के साथ हे गोड चढ़ा रहता था जो खेलते ना थे, बस तोड़ा गुलाल का तिलक लगवा लिया या ज़्यादा से ज़्यादा गाल पे.", अर्जुन का एकके ध्यान बबिता की बात पर कुछ गहरा हे चला गया.

"अतचा फिर?", अर्जुन ने अभी सुना था की चंड्रो देवी की ननद और जीजा. मतलब सोंबीर सिंग की बेहन भी थी जिसका आज से पहले उसको पता हे ना था.

"हाहाहा.. पापा का एक दोस्त था जो पहले तो गुड्डी काकी के साथ होली खेला, फिर आस-पड़ोस की जो भाभी आई होई थी उनके साथ. फेर उसकी नज़र पड़ी मेरी मा पे जो सॉफ-सूत्री इन सबसे थोड़ी दूर खाट पे बैठी नाश्ता कर रही थी. उस आदमी ने बिना सोचे समझे मा के चेहरे पर पक्का रंग लगा दिया और फेर वो वैसे हे ज़मीन पे गिरा जैसे आज घर के बाहर वो छ्होरा तूने गिराया था. हाहाहा.. एक बार तो सारा हे खेल रुक गया था आँगन मे और बापू की तो हिम्मत भी ना हुई के अपना दोस्त जा के उठा ले. वो आदमी जैसे तैसे खड़ा हुआ और मा को गुस्से मे देखने लगा."

"फेर आपके पापा बीच मे ना आए?"

"अर्रे उनकी इतनी मज़ाल हे ना थी. मा ने उसका गिरेबान पकड़ के बस इतना कहा था, 'हाथ काट के बाहर फेंक दूँगी जे आइन्दा मेरे धोरे भी लखाया.' और इतनी टेम मे दादा दौड़े आए वाहा और उस आदमी को एक तरफ करते हुए मेरी मा से बोले के बेटा तोड़ा लिहाज भी करे कर. भांजी ब्याह राखी है दामाद जी के अपनी. लेकिन दादा भी उँची आवाज़ मे ना बोला था मा से. मा ने देखया के मैं दर्र गयी हू तो फेर मूह सॉफ करके मानने उठा के छ्चात पे चली आई. रात बापू ने दारू पी के कितनी बार माफी माँगी होंगी लेकिन मा ने सॉफ कह दिया के होश मे बात करियो काल सवेरे. बापू ने एक हफ़्ता लगया फेर सोफी बात करके माफी माँगण मे.", बबिता भी उस समय को याद करके अजीब सी दिख रही थी.

"आप मिस करती हो अपने पापा को? करती हे होगी क्योंकि एक पिता अपनी बेटी का सबकुछ होता है. और उतना हे प्रेम पिता के दिल मे बेटी के प्रति क्योंकि वो उसकी राजकुमारी जो होती है.", अर्जुन ने बात कहने के साथ मुस्कान को देखा जो इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखती थी जैसे. लेकिन बबिता के चेहरे पर अलग हे भाव उभर आए.

"ना अर्जुन ऐसा तो कभी ना लगा. लड़की चाहे ग़रीब घर मे पैदा हो या चौधरी के कुनबे मे, उसको लाद करने वेल ज़्यादा ना होते थे. मेरी मा, गुड्डी काकी और दादी हे थी जिन्होने मेरी परवाह की. एक वो कमीनी शीला थी उस टाइम, जिसने रही सही आग लगा के रख दी थी हंसते खेलते परिवार मे. लेकिन मेरी मा ने कभी एहसास तक ना होने दिया के मैं कोई बोझ हू और कोई मुझे पसंद नि करता.", बबिता अभी भी मुस्कुरा रही थी.

"दीदी ये नाम तो मैने भी कही सुना है. शीला देवी..!!", मुस्कान ने सवाल किया था लेकिन अर्जुन ने बात बीच मे काट कर अपना सवाल पूच लिया.

"वो आपने कहा था के बुआ ने जिसके थप्पड़ मारा था वो आपकी बुआ दादी का दामाद था. कौन था वो आदमी? आप जानती हो क्या उसको?", अब गाँव की तरफ जाने वाली उस सड़क पर कार उतार चुकी थी.

"हन, मेगराज नाम हैं उसका लेकिन उसके परिवार से कोई लेना देना नही अब अपना. वो लोग देल्ही से आयेज आइक्स्क्स्क्स शहर मे बस गये थे और अभी उधर हे उनका ट्रांसपोर्ट का काम है जो 2 बेटे संभालते है और वो खुद कोई पार्षद है या पता नही वैसा हे कुछ. आख़िर बार वो तभी आए थे हवेली जब दादा जी का देहांत हुआ था. दादी-बुआ ज़रूर इधर नानी से बात करती थी पीछे कोई 8-9 साल पहले तो बस इतना हे पता है. बाकी तुम संजय मामा से बात कर सकते हो. लो जी आ गया गाँव और शाम भी होने लगी है.", बातों मे हे वक़्त जल्दी गुजर गया था और अर्जुन सब गुस्सा भुला कर अब फिर से सहज था.

"तुम्हे अंदर वाली हवेली छ्चोड़ना है क्या?", अर्जुन ने आयेज जाने से पहले मुस्कान से पूछा.

"क्यूँ? मैं तो इधर हे रहती हू दीदी के साथ. अभी इधर ज़्यादा लोग भी नही रहते तो मैं खाली टाइम आराम से पढ़ती भी हू और दीदी के साथ टाइम भी बिताती हू.", उस शुरूवात की बड़ी हवेली की तरफ कचे रास्ते पर कार उतरते हुए अर्जुन ने सर हिलाया. जगह कुछ ज़्यादा हे सॉफ सूत्री हो चुकी थी. ना कोई झाड़ थे और ना हे मिट्टी. हवेली का बड़ा गाते तोड़ा खुला था और मुस्कान ने उतार कर वो पूरा खोल दिया कार के लिए. अंदर ईंट के बने आँगन मे एक तरफ 4-5 लोग बैठे थे और 2 ने मुस्कान को तोड़ा सा खुशी से देख जबकि मुस्कान ने उन्हे कोई तवज्जो ना दी. बबिता की तरफ का दरवाजा खोल कर अर्जुन ने वो पॅकेट लिया और फिर बबिता के उतरने के बाद गाड़ी बंद कर दी.

"राम राम भाभी.", 4 युवको ने ये एक साथ कहा था और अब बबिता के सर पे दुपट्टा था, सिर्फ़ बाल ढकने तक. वो युवक देखने से हे हटते-काटते और गोलू के ख़ास दोस्त लग रहे थे.

"राम राम जी. लागे है मेफ़िल जमाए बैठे हो? अर्जुन मिल ले तेरे जीजा से और ये उनके दोस्त है.", अर्जुन ने ध्यान दिया तो गोलू ने खुशी से उसको देखा. कंडे पर सूती अंगोछा था और कमर पर पुर घ्राव लिए ढेर सारी पत्तियाँ. गोलू एक आराम कुर्सी पर बैठा था जबकि आँगन से दूसरी तरफ रसोई मे शायद कांवली कुछ बना रही थी.

"नमस्ते जीजा जी. ये आपके लिए मेरी तरफ से छ्होटी सी भेंट.", अर्जुन ने उन चार युवको को नज़र अंदाज करते हुए पॅकेट गोलू को सौंपते हुए हाथ जोदड़ कर अभिवादन किया.

"रे जीजा के तो पाँव पे सर झुआकये करे है. शहर मे सिखाया कोनी के?", एक मजबूत सा खिचड़ी दाढ़ी वाला युवक थोड़े मज़े मे ऐसा बोला था लेकिन चेहरा रौब सा बनता हुआ. गोलू ने उसको आँख दिखाई लेकिन देर तो हो हे चुकी थी. अर्जुन झुकने हे लगा था की बबिता ने सबके सामने उसका कंधा पकड़ कर ऐसा करने ना दिया.

"दीपे, तू कड़े झुकया के मेरे जूती पे? अर्र न्यू ना समझिए के यू बिजेंदर से घाट है. तू बैठ 5 मिनिट अर्जुन, मैं लत्ते (कपड़े) बदल के अओ हू. चाल मुस्कान, तू भी हाथ मूह धो ले.", बबिता ने अर्जुन को वही रखी एक खाली कुर्सी पर बैठने को कहा और फिर सीधा गलियारे से पिछली तरफ चली गयी. कमरे का रास्ता तो इधर से भी था लेकिन वो वही से गयी.

"ये मेरे दोस्त है अर्जुन, बचपन से हे साथ है लेकिन तुझे नही जानते. सॉरी आज आ ना सका क्योंकि अभी तोड़ा परहेज है चलने मे लेकिन ब्याह पे ज़रूर रहूँगा. ये कुलदीप है, ये अनिल जिसको नीलू भी बुलाते है. ये पहाड़ जैसा जानवर है बलशरण उर्फ बल्ली और ये मूहफ़टत है दीपा. अपने साथ हे अखाड़े मे थे और बिजेंदर के भी दोस्त है.", अर्जुन ने सभी से हाथ मिलकर मुलाकात की थी और दीपा तोड़ा नाराज़ सा लगा.

"भैया, बबिता दीदी ना ऐसी हे है बोल-बानी से तो उनकी बात का बुरा ना मानो. मैं इसलिए नही झुका था क्योंकि इनके घुटने पर भी चोट है और कमर मे भी. हिलते तो दुख़्ता.", अर्जुन के इतना स्पष्ट बोलने पर बल्ली हँसने लगा.

"भाई तू भी आएंडी मानस है और देख गिफ्ट भी लयाया तो अँग्रेज़ी की बॉटल. वाह रे छ्होरे. वैसे तेरा जीकर पहले भी सुना है.", बल्ली ने बात शुरू की थी और इस दौरान कांवली वाहा लकड़ी के मेज पर पानी का जुग, 5 गिलास और सलाद रख गयी. एक गिलास पानी का उसने अर्जुन को दिया जो धन्यवाद के साथ उसने पकड़ लिया. एक 17-18 बरस की लड़की जो शायद कांवली की हे बेटी थी, वो बरफ और नमकीन वाहा रख कर वैसे हे वापिस हो गयी. मतलब सॉफ था के इनका पहले से हे दारू का कार्यक्रम था.

"यार बल्ली यही है वो जिसने पहले बिजेंदर की करवाही की थी और फेर मेरी, बिजेंदर की जान भी बचाई. वो राच (रक्षश) था ना भीम सिंग? उसका हिसाब भी इसने हे कारया था उस लड़ाई मे. चेहरे पे ना जाइए और भी भातेरे कांड है इसके.", अब अर्जुन वाहा माजूद हर नज़र का आकर्षण बॅन चुका था. जीन्स-कमीज़ मे इनसे कुछ अलग मासूम से चेहरे और लंबे घुनराले बालो वाला ये लड़का ऐसे काम कर चुका होगा उन लोगो को जैसे विश्वास ना हुआ.

"मतलब तू भाई अर्जुन शर्मा है जो बिजेंदर ने बताया था वो लड़का, स्टेडियम वाला. छोटी की खाल इसने हे भारी थी मतलब?", गोलू ने तो बॉटल खोल कर 5 गिलास मे शराब उदेलनी शुरू कर दी थी. अर्जुन ने बस इशारे से अपने लिया माना कर दिया.

"सुदर्शन सिंग भी बड़े भाई है मेरे लेकिन उस वक़्त पता नही था. और मैने कोई जान नही बचाई इनकी या बिजेंदर भैया की, वो तो ये मुझे बचाने लगे थे जो वो सब हो गया.", अर्जुन अभी बोल रहा था की अनिल ने कमरे से कपड़े बदल कर बाहर निकलती हुई मुस्कान को देखा जो सफेद सलवार-कमीज़ मे अब कही ज़्यादा हे खिली हुई दिख रही थी.

"गोलू भाई तेरी साली गैल सेट्टिंग करवा दे यार. या तो भाव हे कोनी देवे लेकिन तू जीजा लागे है के बेरा बात कर ले. सच काहु हू या हन कर दे तो 40 किल्ले मेरे हिस्से के इसके नाम करके ब्याह कर लूँगा.", ये कुलदीप था और इसकी बात सुन्न कर जहा गोलू तोड़ा घबराया वही अर्जुन बस मुस्कुरा दिया. मुस्कान ने बिना किसी की तरफ ध्यान दिए शरबत मिला ठंडे दूध का बड़ा सा गिलास अर्जुन के सामने रखा और साथ हे हाथ सॉफ करने के लिए सफेद अंगोछा उसकी जाँघ पर रखते हुए अंदर चली गयी.

"कुलदीप जो कहे है वो मैं भी चाहू हू भाई. और मैं तो कॉलेज से पास भी हू इसके बराबर ज़मीन के साथ साथ.", ये दूसरा दावेदार था अनिल जो गिलास मे पानी भरने के साथ साथ एक एक बरफ का टुकड़ा भी रख रहा था.

"बबिता ने सुन्न लिया तो मेरी खाट भी घर से बाहर जावेगी. तोड़ा हौली बोल लिया करो मलांगो. वा कोई बकरी है जो तुम कहो और मैं उसकी जेवड़ी (रस्सी) तारे हाथ मे दे दयू के ले जाओ भाई.? इंग्लेंड की है और घर-परिवार मे यहा बैठे सारे परिवार से ज़्यादा अमीर. आनख्या ने आराम दयू रे झकोइयों, बबिता लत मारते टेम ना लगान वाली. मुस्कान एब किसी ने कोनी देखे तो फेर आप हे समझ लो.", गोलू ने एक बार अर्जुन का गिलास देखा और फिर नमकीन की प्लेट सामने खिसका दी.

"मानने तो लगे है के वो पहले हे सेट है भाई और जिसके सेट है उसके सामने तो थाम दोनो टीको कोनी. क्यूँ भाई अर्जुन, ग़लत कही के?", ये बल्ली था जो हर बात पर ध्यान दे रहा था. अर्जुन ने तोड़ा शर्मा के नज़रे झुका ली और फिर दूध का घूँट लेते हुए जैसे नज़र-अंदाज करने लगा. गोलू अब हैरत से अर्जुन को देख रहा था और कुलदीप-अनिल के चेहरो पर मिश्रित भाव थे, नाकामी और जलन के.

"सच मे ऐसा है रे अर्जुन?", गोलू ने गिलास टकराने के बाद एक साँस मे हे जाम निबटा दिया था, बाकी सबकी तरह.

"वो मेरी ख़ास दोस्त है जीजा जी और सच काहु तो ऐसी सभी बातों से दूर रहनी वाली लड़की. पढ़ाई, बॅस्केटबॉल और बस अपने मे खुश. मेरे साथ वो तोड़ा आराम समझती है बाकी ज़्यादा मैं क्या हे काहु.?", अर्जुन ने गिलास के बाहरी पानी से गीले हाथ अंगोचे से सॉफ करते हुए जवाब दिया.

"इसका मतलब फेर कुछ जुगाड़ नही मेरा? टोटल ना समझू या कुछ हो सके है चाहे तोड़ा बहोट हे?", कुलदीप ने ये बात जिस तरह से कही थी वो सुन्न कर अनिल तो हँसने लगा लेकिन अर्जुन के चेहरे को देख गोलू को भाए लगने लगा था और अपने दोस्त को देख बल्ली और दीपा भी उन दोनो को शांत रहने का इशारा करने लगे. अनिल इसके उलट आयेज बोल गया.

"बात तो जमा सही कही भाई कुल्लू. जे ब्याह ना हो सकता और यो अर्जुन भी दोस्त है तो फेर दोस्त की साली सट्टी नरम-गरम तो हो हे सके है.? क्यूँ भाई अर्जुन, तनने बुरा तो ना लाग रहा?", वो धिताई से बॉटल गिलासो मे उदेलटा हुआ अर्जुन को कूटली मुस्कान से देख रहा था लेकिन सामने से एक सर्द मुस्कान ने जैसे उसकी हँसी वही रोक दी.

"अब मज़ाक तो जीजा साली का होता है अनिल जी, कुनबे और मोहल्ले का नही. रही बात नरम-गरम वाली तो उसका ऐसा है की पानी से नरम कुछ नही और शराब से गरम भी. दोनो पहले से हे आपके पास है. जिसके लिए आप ऐसे विचार रख रहे हो वो बस अभी तक थे. आइन्दा इस घर मे आओ तो ये याद रखना की आपके दोस्त का घर है जहा माजूद सभी लोगो को इज़्जट्ट देना आपका कर्तव्या.", अर्जुन ने लहज़ा फिर भी नरम हे रखा था और बबिता कपड़े बदल कर इधर चली आई. एक बार को तो मुद्दा यही रुक गया था चर्चा का.

"घर पे बता दिया है के तू थोड़ी देर रुकेगा यहा. पौने 6 हुए है तो आराम से 7-8 बजे निकलियो. मैं ज़रा रसोई का काम समझा डू और तेरा यहा दिल ना लगे तो मुस्कान के पास बैठ जा, कंप्यूटर लगा है उसके कमरे मे बस इंटरनेट नही है.", बबिता ने दूध का गिलास खुद हे उठाया था 2-2 कांवली होते हुए भी. ढीले से कुर्ते मे भी उसका जिस्म का वो ख़ास उभार कसा हुआ था. उसके जाते हे अनिल धीमी आवाज़ मे हँसने लगा.

"तू तो यार कोई मोड़ा (साधु) लागे है. मतलब कर्तव्या, विचार, इज़्जट्ट.. अपने यहा तो साझा होता सबकुछ."

"तुम्हारी बेहन है क्या घर मे?", अर्जुन ने एकाएक उसकी हँसी पर विराम लगा दिया. गोलू गिलास आधा पी कर तोड़ा घबराहट से दोनो को देखने लगा था. अनिल के साथ साथ दीपक और कुलदीप के चेहरे पर भी गुस्से के भाव उभर आए.

"इतने मे हे हो गया ना परा हाइ? जब बोलते हो तो सोच के बोलना चाहिए क्योंकि घूम कर समय तुम्हारी तरफ भी आ सकता है. एक बात तुम तीनो हे सुन्न लेना कान खोल के, जिस तरह अभी तुम लोग गुस्सा दिखा रहे हो इस से ज़्यादा मैं अपने अंदर रोके हुआ हू इतनी देर से. बाहर निकल आया तो यही पटक के तब तक धुलाई करूँगा जब तक आँगन की हर ईंट लाल ना हो जाए. ये दोस्त है सेयेल? माफ़ करना गोलू जीजा जी, शराब पीनी है तो रिक्वेस्ट हे करूँगा की बगल वेल नॉहरे मे महफ़िल लगाया करो, कोई उँछ नीच हो गयी तो बेवज् आप बुराई लोगे अपने सर. अपने घर के मा-बेटी पे कोई नि सुनता लेकिन दूसरो की देख कर जवानी चलांगे मार्टी है.", अर्जुन बड़े आराम से उठ कर पहले बबिता की तरफ गया और फिर 2 कमरे पार करके आख़िर वेल मे जहा मुस्कान बिस्तेर पे टेक लगाए जैसे उसका हे इंतजार कर रही थी.

'बंद कर दो दरवाजा. कोई नही आने वाला अब इधर और तुम्हारा गुस्सा देखो मैं कैसे दूर करती हू.', मुस्कान की मुस्कान ने पल मे हे अर्जुन को नरम कर दिया था. लेकिन बाहर अभी महॉल तोड़ा गरम हो चुका था.

"देख भाई गोलू, बात 16 आने खरी है लड़के की. बगल मे इतना बड़ा घेरा (प्लॉट) खाली है, हुक्का है, चूल्हा भी और बैठांक खातिर तखत कुर्सी सबकुछ. फेर नीं की च्चाया मे अलग हे मज़ा. घर मे 4 लॅडीस है जिनके सामने यू सब ठीक कोनी.", बलशरण ने अपनी बात रखते हुए कहा. वो सचमुच शरीर के साथ साथ दिल और दिमाग़ से भी बड़ा था.

"या तो ग़लती है भाई लेकिन पहले कोई होया ना करता इसलिए बैठने लगे थे. लेकिन लड़का घाना बोल गया जो ठीक बात कोनी. खैर काल अड्डा बगल मे हे लगवांगे.", दीपे ने जाम खाली किया और 6 बजते देख सभी से कल मिलने का बोल कर निकल गया.

"घाना? वो तो यू भी ना सोच्या के हम उसके जीजा के दोस्त है. गोलू भाई, बात शराब वाली कोनी लेकिन तोड़ा बड़े छ्होटे का ख़याल रखना चाहिए. अर्जुन ने तेरी जान बचाई तो उपकार हो गया लेकिन न्यू बेइजत्ती करना कौनसा सही है? जमींदारी अपनी भी है और 8 साल अखाड़े मे भी लगाए है. यू बात कोई और कहता तो मिट्टी मे दाब देता.", अनिल ने तुरंत 4 गिलास फिर से बनाए और अपना गिलास एक साँस मे गले से नीचे उतार कर सलाद चबाने लगा. बल्ली मुस्कुरा रहा था ना मे गर्दन हिलता हुआ और गोलू भी अब कुछ सहज था क्योंकि बलशरण अर्जुन की बात से सहमत था और अर्जुन ने जो भी कहा था वो उदाहरण के साथ कहा था.

"देखो भाई अनिल और कुल्लू, बात यही ख़तम करो और अबसे नॉहरे मे हे बैठा करेंगे वो भी एक दिन छ्चोड़ के. रही बात अर्जुन ने ज़्यादा बोला या कम और बुरा लगा तो भाई खुद भी सोचो की लंगोट बांदणे वाला व्यक्ति ब्याह की बात करे तो मानी भी जाए. लेकिन तुम दोनो ने जो चूतिया बात करी थी नरम-गरम वाली मतलब लड़की के साथ सिर्फ़ जिस्मानी चाहत वाली तो ये कहा से सही हुई? वो जो बोल के गया है वैसा कर भी देगा और मैं तो क्या बल्ली भी ना बचा सकेगा क्योंकि सुदर्शन छोटी और उसके वो 4 बदमाश ऐसे थे जिनके सामने हम सबकी नाद (गर्दन) नीची रहती थी चाहे फेर बिजेंदर भी क्यूँ ना हो. ये अकेला उन्हे लगभग मौत दे चुका था, विकास से भी पूच लियो. साली है लेकिन बेहन जैसी इसलिए तोड़ा तो मर्यादा मे रहना हे पड़ेगा.", गोलू ने बात 2 टुक ना कहते हुए समझदारी से करी. दोनो हे युवक अपनी अपनी जगह से उठ खड़े हुए.

"चल भाई गोलू, ग़लती महरी भी है और उसकी भी. बात यही ख़तम और फेर अगर बैठअंगे तो नॉहरे मे हे सही.", कुलदीप इतना बोल कर दोनो से हाथ मिलते हुए अनिल के साथ यहा से चल दिया. अनिल अभी भी कुछ उखड़ा हुआ था क्योंकि वो अर्जुन द्वारा बेहन वाली बात को दिल पे ले चुका था और उसने एक बार भी बाकी बात समझने की जहमत ना उठाई. बलशरण तोड़ा गुर्दे वाला और शांत तबीयत व्यक्ति था जिसकी गोलू के साथ आंद्रूणई दोस्ती थी.

"भाभी, डाल की एक कटोरी डियो ज़रा.", उसने दोनो के सही से जाम बनाते हुए बबिता से कहा जो कांवली से सब्जी कटवा रही थी.

"ल्याई बल्ली भाई और थोड़ी ककड़ी गणठा (प्याज) काट डीयू के?", बबिता ने अंदर से हे पूछा था. और इसका सॉफ मतलब था की बलशरण की वो भी इज़्जट्ट करती थी.

"ना पड़ा है और गुड्डी के हाथ भिजवा दो. बस इसके बाद आप कर लो अपना काम.", बल्ली और बबिता की बातें सुन्न कर गोलू का भी मॅन अब बेहतर था. और हवेली के उस आख़िरी कमरे मे मुस्कान तबीयत से अर्जुन का गुस्सा ख़तम करने मे जुट्ट चुकी थी. सिर्फ़ सलवार पहने वो उसकी गोड मे बैठी हुई अपने गोरे सुडोल स्टअंन अर्जुन के मूह मे दिए सिसकती हुई उसका सर सहला रही थी. इन्हे कोई मतलब ना था के बाहर क्या चल रहा है और क्यूँ.
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उधर से 2 घंटे आयेज का हाल.

"अरे वालिया जी, बहोट कुक्कड़ कुक्कड़ करते रहते हो, आज आपको आहूणा मटन खिलते है और आपकी फॅवुरेट सफेद मछली. क्या हाल है जोगिंदर पाह जी.?", कम्यूनिटी सेंटर बाहर से उतना सज़ा ना था जितनी चहल पहल यहा अंदर के 2 बड़े बड़े हॉल मे थी. किसी की भी उम्मीद से इतर यहा पर बकायडा देल्ही से मधुशाला चलाने वेल बुलवाए गये थे. करीने से 3 जगह 4-4 सोफा और उनके बीच बड़ी टेबल सजी थी. 20 फीट लंबे बार के सामने 20जे20 का हे नाचने के लिए मंच लगा था लेकिन फिलहाल सिर्फ़ धीमा संगीत वातावरण को अलग हे खुशनुमा एहसास दे रहा था.

यहा सबसे पहले पहुचे थे शंकर, इनडर, उमेद, दलीप, धरंपाल और राजेश. सब तायारी देखने के बाद ठीक 8 बजे हे मेहमान आने लगे थे और वालिया जी के साथ कोच जोगिंदर जी भी पधारे जिनसे राजकुमार जी के बाद बाकी सभी गले लग कर मिले. परम, मेहुल, भूपिंदर भी तयार हो कर पहुचे जिनके साथ कुछ और भी शंकर जी के सहकर्मी थी. हरी झिलमिल सारी और लाल दमकते ब्लाउस मे बार बालाए सभी मेहमआनो का फुलो से स्वागत करती हुई उन्हे उन सोफॉ की तरफ ले चली.

"शंकर यार, शूकर है तुमने बाहर इतना उजाला नही करवाया जितना अंदर है. कसम से इनकम टॅक्स वेल हम सबको दबोच लेते. हाहाहा.", वालिया जी तो हैरान थे की ये कैसी छोटी सी डारी पार्टी जिसमे लाखो का खर्चा कर दिया है. ऐसे हे भाव बाकी सभी के थे जो बस औपचारिकता समझ कर आए थे.

"सरदार जी, शंकर ने ना किया ये सब. वो तो अपना गजजु किसी नेता से मिला था देल्ही मे और उसने गिफ्ट मे ये पार्टी अरेंज करवा दी. हमारे पास तो आपको भी पता है के हिसाब के गिने चुने पैसे होते है.", नरिंदर आदतन यहा भी मसखरी करने लगा था और वो जानकार वालिया जी भी उसकी पीठ पर थप्पड़ लगते हुए हेस्ट हुए गले लग गये.

"भाई जिसकी पार्टी है वो तो नज़र नही आ रहा. ओह भाई यहा तो ये दोनो सितारे भी मौजूद है डिपार्टमेंट के.", राजेश और दलीप भी ये सुन्न कर उनसे आ कर औपचारिकता से मिलने लगे थे लेकिन उन्हे भी वही सम्मान देते हुए जोगिंदर जी और वालिया जी ने गले लगाया. एक तरफ 15 से ज़्यादा स्टॉल पर शाकाहार-माँसाहार सबके सामने हे पाक रहा था. सलाखो मे पनीर, गोभी, मुर्गा, मटन और मछली के साथ जाने क्या क्या था लेकिन दोनो हिस्से अलग अलग थे एक दूसरे से.

"लो भाई जिसको याद किया वो भी आ गया और ज़रा मंडली भी देखो.", राजकुमार जी ने अपने बेटे के अंदर आते हे उसको सबसे मिलवाना शुरू किया. संजीव के साथ विकास, बिजेंदर, लकी, दीपक, मल्होत्रा जी का बेटा और ओर भी तकरीबन 12-13 युवक आए थे. हॉल मे अब भरपूर रोनक होने लगी थी 40-50 लोगो के होने से. संजीव को गुलदस्तो के साथ साथ जाने क्या क्या उपहार दिए जा रहे थे और फिर वो वक़्त भी आया जब खुद राजकुमार जी ने गाना चलते हुए युवक से मिक लिया और आज पहली बार वो इतने लोगो मे खुल कर कुछ कहने वेल थे.

वो उस जगमग नाचने वेल मंच की लाइट बंद करवाते हुए ठीक बीच मे आ खड़े हुए तो दरवाजे से भीतर आते तेजपाल उर्फ बिट्टू के साथ कुंदनलाल जी और सोहनलाल जी को देख कुछ वक़्त रुक गये. जो युवा मंडली थी उन्होने खुद को एक तरफ कर लिया था और बाकी सब भी इन्हे देख अपनी जगह से उठ खड़े हुए. मदिरा का दौर अभी शुरू करने से रोका हुआ था.

"माइक तुम बाद मे पकड़ना राजू बेटा. आज की महफ़िल कोई और शुरू करने वाला है.", कुंदनलाल जी तो बड़े मज़े से एक तरफ के 4 खाली सोफॉ मे से एक पर विराजमान हो गये. हॉल मे धरमवीर सांगवान जी के साथ कृषनेश्वर, कॉल साहब, आचार्या जी, मल्होत्रा जी, इग केपर, दिग निर्मल सिंग, र्ट्ड स्प गिल, चंद्रकांत का ये प्रभावी समूह आया तो लगा जैसे हॉल के वो असंख्या जगमग बत्तियाँ भी इनकी चमक के आयेज अधूरी है. हॉल मे तगड़ी खामोशी छा चुकी थी इन दिग्गाज्जो को देख लेकिन 6-7 बार बाला और वेटर बड़ी छपलता से सबको सीट दिखाते हुए ठंडा पानी और जूस पेश कर रहे थे.

"फिर तो मुझे लगता है की सांगवान चाचा जी या आचार्या जी आप हे इस मंगल काम को शुरू करे.", अब राजकुमार जी को तो पता भी ना था के ये काम मंगल होता है या कुछ और लेकिन उनकी हालत पर पुर हाल मे हँसी के ठहाके गूँज उठे थे. तालियाँ बजने लगी थी की सांगवान जी या आचार्या जी 2 शब्द कहे लेकिन धरमवीर सांगवान जी ने खड़े हो कर हाथ से सबको शांत रहने का कहा. बलबीर भी यहा मौजूद था जो विकास के कान मे कुछ कहता हुआ हंस रहा था.

"ऐसा है भाई, अब सब जवान लोग जब एकसाथ यहा शगल मेले मे पहुच हे गये है तो फिर जो एक दो लोग बाकी है उनको भी आने दो. अतचा रहेगा की हुंसे पहले हुंसे बड़े हे कुछ बात कह दे.", अब सांगवान जी ने अपने से भी बड़ा कहा तो इनडर का माता तनका लेकिन उसको तो यकीन था के ऐसा हो हे नही सकता.

"कौन भजन मामा आ रहे है क्या?", शंकर ने मस्ती मे ऐसा कहा था और उधर दरवाजे से अंदर दाखिल हुए हासमुख मामा और कश्यप जी. जिनके पीछे हे संजीव के 2 और दोस्त थे.

"शंकर बेटा, अब तेरे मामा से तो मैं बड़ा हू. हन मेरे बड़े भाई साहब भी है और लो जी वो भी आ गये अपने पौते के निमंत्रण पर.", इधर इन सबकी फटत चुकी थी बात और व्यक्ति की समझते हे. पंडित रामेश्वर शर्मा जी सफेद कुर्ते प्यज़ामे मे अपनी पूरी आभा के साथ पधारे थे और उनके साथ हे आया था उनका छ्होटा पौता अर्जुन.

'ओह बहनचोड़, लग गये बे अपने सबके तो. बापू हे आ गया दारू की महफ़िल मे. अब होगा प्रवचन.", शंकर तो डुबकने की नाकाम कोशिश कर रहा था और वैसा हे हाल बाकी सबका था जो हुमुमर थे. पंडित जी ने सबका हे हाथ जोदड़ कर अभिवादन किया और अर्जुन को वही पीछे एक कुर्सी पर बैठने का इशारा करके आयेज बढ़ चले. संजीव भी नज़रे झुकाए था क्योंकि उसने तो भनक तक ना लगने दी थी अपने दादा को. और पंडित जी उसको हे हाथ पकड़ कर अपने साथ मंच की और ले चले. माइक राजकुमार से लेते हुए उन्होने सबकी तरफ तोड़ा नाराज़गी से देख.

"भाई इतना सन्नट्ता क्यूँ है? ऐसा शोले मे था ना एक डाइलॉग.?", इस बात पर हे उनकी बुजुर्ग युवा मंडली ठहाका मार कर हँसने लगी और पंडित जी भी.

"अर्रे माफ़ करना वो ऐसा है की हुमको निमंत्रण नही मिला था लेकिन घुसपेत की पुरानी आदत है तो अपनी टीम को लिए ज़बरदस्ती आ पहुचे.", एक बार फिर से हँसी का शोर गूंजा और इस बार उनके साथ घर के लड़को को छ्चोड़ बाकी सभी थे.

"ये राजू, बचपन से हे खामोश तबीयत है लेकिन शंकर, उमेद और नरिंदर ने इसको शराब पीनी तो सीखा दी पर बोलना ना सीखा पाए. हन तो मैं सही कह रहा हू ना मा के लाड़ले?", रामेश्वर जी ने इधर इनडर को सबके सामने लपेट कर बता दिया थे के वो उसके बाप है. इनडर तो खिसिया गया था और शंकर की बाजू पकड़ कर नज़रे चुराने लगा.

"आप सभी यहा पधारे तो इस सबकी वजह है ये प्याली या प्याला जो भी कहो. अब जीवन मे जब आप कभी दोस्त ना बना पाओ तो अकेले कभी किसी ठेके पर बैठ जाना पववा ले कर. बाहर निकलोगे तो मॅन हल्का हो चुका होगा 2-3 अंजान दोस्तो के साथ. सोमरास, मदिरा, शराब बुराई नही है जब ये शगल मेले मे प्रयोग हो. हमारे बचो के इतने मित्रा और शुब्चिंतक देख हम खुदको देखते है के भाई ये तो बहोट भारी ग़लती हो गयी. लेकिन ग़लती सुधारने आ गये हम आज. ये है हमारा लायक बचा संजीव, बचपन मे इसको कभी जीवा तो काबी कालू बुला देते थे तो गुस्सा हो जाता था. आज ये होनहार और काबिल युवक बन चुका है जिसकी खुद की एक मजबूत पहचान है. धरमवीर भाई साहब बरसो से सर्जन है और उनकी च्चाया मे हज़ारो डॉक्टर बने. वालिया मेरा बेटा हे है और आज तक कभी किसी केस मे विफल नही रहा. बहोट बड़ा नाम है अपने डिपार्टमेंट मे. बिजेंदर मेरा पौता, पहलवान है, विकास भी. इनके कोच खुद रॅशट्रियीआ प्रतिभा और द्रोणाचर्या है. सबमे कुछ भी एक जैसा नही है लेकिन आज सब एक साथ है. क्यूँ?"

"शराब अंकल जी.",ये था अपना बलबीर आदतन बोल हे गया.

"वाह मेरे लाड़ले तू है तो 5 फुट का लेकिन गयाँ बहोट है. हाहाहा.. सही कहा इस बेटे ने की सभी एकत्रित है और सबमे एक शौक समान है. ज़्यादा वक़्त ना बर्बाद करते हुए मैं अपने पौते संजीव को जीवन के उस नये क्षान्न की ढेरो शुब्कामनाए देता हू जिसमे आने वेल समय मे वो एक पति, पिता और आयेज ऐसा हे ज़िम्मेवार इंसान बरकरार रहे. ये हमारे पौते के नये जीवन की खुशी मे.", बार बाला को अपने पास बुला कर आचार्या जी ने समझा दिया था के क्या करना है. वो ट्रे मे एक गिलास उचित शराब का बना कर पंडित जी के करीब आ खड़ी हुई. वही गिलास सबको दिखाते हुए रामेश्वर जी ने संजीव के लाबो से लगा दिया. फिर से ट्रे मे रख कर अपने पौते को गले लगाया तो अब तालियों के शोर से पूरा हॉल गूँज उठा. इनडर तो सोफे पर खड़ा हो कर सीटियाँ मार रहा था.

"ओये बस कर कमलेया, मेरी पंजाबी बाहर आई टे तुस्सी सारे दफ़ा हो जाने. बह जा ताल्ले, लगाया मवालियन वांग शेदाई.", रामेश्वर जी ने मीठी झिड़की लगाई थी अपने बेटे को जिस पर महॉल फिर से मजेदार हो गया.

"आप लोग इस तरफ अपने मज़े करो बचो. हम ये बगल वेल हॉल मे हमारे किससे कहानी बतियाते है. संजीव बेटा, मेजबान हो और आख़िर तक बरकरार रहना है. और हमारा अंगरक्षक अब वापिस लौट सकता है, जूस नस्टे के बाद.", अर्जुन की तरफ ये इशारा था पंडित जी का जो बहोट खुश था अपने दादा जी के इस नये पहलू को देख कर. सभी बुजुर्ग बगल वेल हॉल मे चले गये थे जिनकी सेवा मे खुद उमेद ने 5 वेटर चेतावनी के साथ तैनात किए थे. और अभी तो जैसे जिनका अनुमान तक ना था वो शक्ष भी पधारे. ये रौनक और गजेन्ड्रा भल्ला थे जो एक बार अपने सुरक्षाकर्मियो के साथ अंदर दाखिल हुए लेकिन फिर उन्हे बाहर जाने का कह कर अपनी तरफ बढ़ते उमेद और शंकर से आधे रास्ते मे हे गरम्जोशी से मिले.

"भाई साहब, मतलब आपने कीमती समय निकाल हे लिया फिर.?", ये शंकर ने कहा था और उनके हे करीब खड़े अर्जुन को एक बार अतचे से देख कर गजेन्ड्रा भल्ला ने जो कहा वो सुन्न कर खुद शंकर का सीना चौड़ा हो गया.

"एहसान करके आपने तो ह्यूम खरीद हे लिया है डॉक्टर साहब. ये आपके छोटे जनाब ने हुमको जो खुशिया लौटाई है इसकी भरपाई भल्ला मरते दूं तक ना कर सकेगा. कैसे हो अर्जुन मिया?", गजेन्ड्रा भल्ला ने खुशी खुशी अपने गले की चैन अर्जुन को पहनाते हुए सीने से लगाया था. ऐसा हे रौनक ने भी किया जो पंडित जा का ख़ास और इन सभी से उमर मे बड़ा था.

"वाह भाई, मतलब प्रदेश के इस हिस्से मे तुम लोगो ने अपनी हे देल्ही बना दी. बहोट खूब उमेद और ज़रा ह्यूम ये भी बता दो की पंडित जी के दर्शन करने पहले जाए या उसके लिए रात भर रुकना होगा.?", रौनक का हाथ अभी भी अर्जुन के कंधे पर था.

"दादा जी भी आए है अंकल और वो उस तरफ है अपने दोस्तो के साथ.", अर्जुन ने रौनक को बताया तो उमेद खुद हे उन दोनो को अपने साथ पहले वही ले चला जहा बुजुर्ग मंडली जमा थी.

"मतलब तुम बाज नही आओगे बर्खुरदार? चलो आज मेरे साथ बैठो और सबको अपना परिचाया भी दो.", शंकर जी अपने सुपुत्रा को हाथ पकड़ कर उधर हे ले चले जहा उनकी मित्रा मंडली बैठी थी. अर्जुन तोड़ा घबरा रहा था क्योंकि उसके पिता ने कही उसको शराब चखा दी तो जाने क्या हो. इस तरफ वेल 4 सोफॉ पर एक पे वालिया, जोगिंदर, राजकुमार थे, दूसरे पर सांगवान, भूप्पी, गुलाटी.. तीसरे पर 2 सर्जन के साथ राजेश और एक पर सिर्फ़ राजकुमार जी. दूसरी तरफ वेल 4 सोफॉ पर भी इनके हे हुमुमर थे और दोनो तरफ मेज पर अब जाम लगाए जा चुके थे काई तरह के व्यंजनो के साथ.

"ये है जी हमारे पिता जी का सेनापति.. हाहाहा..आक्च्युयली हे इस अर्जुन, मी यंगेस्ट चाइल्ड आंड फॅमिली'स 9त प्राउड. इस से पहले हमारे घर मे 8 बचे है और सबसे बड़ा संजीव, सबसे छोटा ये. ज़्यादातर तो इस से वाकिफ़ होंगे लेकिन ड्र कार्तिक और ड्र परेश आप आज पहली बार मिले है.", अर्जुन को वो लोग भी बाकी सभी के साथ प्रशानशा से देख रहे थे.

"बेटा पापा जैसे हे हो, बस थोड़े से ज़्यादा लंबे. होप योउ अरे नोट इंट्रेस्टेड इन मेडिकल लीके हिं.", ये ड्र परेशा था जो शंकर जी से अतचे से वाकिफ़ था. इस बार जाम सभी तरफ उठे और संजीव के नाम पर खूब काँच टकराए. गाने फिर धीमी आवाज़ मे बजने लगे थे और शंकर जी ने खुद हे एक वेटर से जूस का गिलास ले कर अपने बेटे की तरफ बढ़ाया.

"भाई परेश, ये मेडिकल के म से भी कोसो दूर है और मुझे इस बात की बहोट खुशी है. अपने संधु साहब भी वाकिफ़ होंगे अर्जुन से और इसका मामा तुम्हारी बगल मे हे बैठा है जो वाकिफ़ नही होगा.", शंकर जी की बातों मे शायद अपने पिता का असर था जो हास्या पुट्त् दर्शा रहे थे.

"संधु क्या बताएगा शंकर. ये मेरा पुत्तर है जिसको मैं तुम सबसे ज़्यादा जानता हू. ग़लत कहा क्या अर्जुन बेटा?", वालिया जी की बात पर अर्जुन बस झेंप गया था.

"चल बेटा तू मौज ले उधर अपने भाई के साथ क्योंकि मैं जानता हू तू खुश तो है लेकिन मज़े मे नही.", धरपाल जी ने ऐसा कहा तो शंकर जी ने भी इजाज़त दी क्योंकि बलबीर और विकास के साथ संजीव भी अर्जुन को इशारा कर रहे थे. अर्जुन सबसे हाथ जोदड़ कर अपना गिलास लिए चल दिया.

"शंकर यार तुम्हारी ब्लडलाइन मे कुछ अलग है क्या? तुम्हारा वो भाई तो दैत्याकार है हे उपर से ये इनडर और फिर तुम्हारे साथ साथ ये अर्जुन भी.", ड्र कार्तिक ने सिग्ग्रटते सुलगाई और इतने मे हे टेबल पर वेटर अश्-ट्रे रख गया.

"कार्तिक, ब्लडलाइन का तो पता नही लेकिन सभी को ब्लड से बहोट लगाव है. हाहाहा...", इनके किससे भी शुरू हो चुके थे और अंदर की तरफ भी बुजुर्ग मंडली के ठहाके गूंजने शुरू थे. संजीव का काफिला भी उसको लपेट चुका था और धदड़ गिलास टकराए जा रहे थे. अभी ये रात शुरू हुई थी जिसके तराने गुज़रते वक़्त के साथ तेज होने थे.
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उस बिस्तेर पर अब मुस्कान पूरी तरह मदहोश सी होती हुई अर्जुन से बुरी तरह लिपटी थी. अगाल मे बगल लेते वो दोनो सब भुला कर निरंतर बस होंठो को इस कदर चूम रहे थे की इसके बाद शायद मुस्कान को सूजे हुए होंता का जवाब देना पड़ता. मजबूत मर्दाना हाथ उन कोमल उभरो को कभी मसालते तो कभी मध्यम आकार के उस उभरे हुए लचीले से कूल्हे को. मुस्कान के मासूम से चेहरे पर जमाने भर का प्यार और समर्पण था अर्जुन के प्रति.

"सॉरी.", अर्जुन तोड़ा पीछे होते हुए मुस्कान के चेहरे पर आए बालो को पीछे करता अपने निचले हाथ से उसका चेहरा थामे निहार रहा था बस.

"कोई ज़रूरत नही सॉरी की. मैने कभी ज़िद्द नही की और तुमने कभी ज़बरदस्ती. देखो आज मेरा दिल था और तुमने भी मुझे अपने सीने से लगाया. अब बस इस मुस्कान की तरफ ध्यान दो, सिल्ली थॉट्स छ्चोड़ कर. ये जो इतनी देर से नीचे कूद रहा है ना, इसको जगह दिखती हू मैं.", मुस्कान ने अपने होंठो फिर से अर्जुन के होंठो पर लगते हुए बड़ी हे हिम्मत का प्रदर्शन किया. अर्जुन रोकना चाहता था लेकिन मुस्कान की खुशी से ज़्यादा नही. भारी भारी मांसल जाँघ अर्जुन के उपर लाते हुए मुस्कान ने वो लोखंड सा मजबूत और गरम लिंग अपने गुलाबी योनि कुंड से मिला दिया.

उस दहाकते हुए सूपदे को कुछ पल महसूस करने के बाद आहिस्ता से कमर का दबाव बढ़ाया तो हल्के अवरोध के बाद आधा सूपड़ा उस छ्होटे से च्छेद को फैलता हुआ अंदर समा गया. मुस्कान का जिस्म थरथराया लेकिन अर्जुन के कंधे को मजबूती से पकड़ते हुए उसने पूरी ताक़त से अपना शरीर जैसे अर्जुन की तरफ दे मारा.

"इसस्शह.. आहह...उम्म्म",बस ऐसे हे दबे घुटे लफ्ज़ सुनाई दिए और मुस्कान बिस्तेर पर करवट के बाल लेती हुई अब और ज़्यादा जोश से अर्जुन के होंठ लगभग खाने हे लगी. भयंकर पीड़ा को वो बर्दाश्त कर रही थी क्योंकि आधे से ज़्यादा लिंग उसकी नाज़ुक रेशमी छूट को भेंड चुका था. 2 महीने के अंतराल मे ये तीसरा हे संसर्ग था.

"आराम से बाबा, आराम से. मैने कहा भी था के दर्द होगा. बस अब हिलना नही.", अर्जुन ने होंठ अलग करते हुए पसीने मे नहाई मुस्कान के माथे को सहलाते हुए दोनो आँखों को चूम कर कहा. हल्की नाम्म आँखों से वो मुस्कुरा रही थी जैसे दर्द अर्जुन को हुआ हो.

"तुम ना इसलिए ये नही करते क्योंकि मुझे दर्द मे देख नही सकते. लेकिन ऐसे दूर होने से क्या कुछ अलग हो जाएगा? सपनो मे ना, तुम मुझे ऐसे हे अपने साथ चिपका लेते हो. अब तो दर्र भी नही लगता तो दर्द क्यूँ होने लगा. बस तोड़ा सा तो होगा हे ना, इतना बड़ा है ये. उमाहह.",उसकी बातें भी उतनी हे मासूम थी जितनी खुद मुस्कान. एकद्ूम भोली और दिल की सॉफ. अर्जुन अब उसकी अपने उपर रखी जाँघ को सहलाता हुआ बड़े हे धीमे से कमर को गति देने लगा. कोई ज़ोर का दिखावा नही था और ना चाहत की आख़िरी हिस्से को मापना हे है. बस उन तराशे हुए लचीले कुल्हो को हल्का सा दबा कर हर धक्के के साथ मुस्कान को करीब कर लेता.

"आहह.. ऐसे हे बस .. देखो.. उम्म्म.. बाहर दीदी और जीजा जी .. है और हम यहा.. अर्जुन.. होल्ड मे..",बात कहते कहते हे मुस्कान झड़ने लगी थी और अर्जुन के गाल पर गाल टिकती वो इस सुख को अपने भीतर भरने लगी थी जिसमे अर्जुन उसकी आत्मा तक बस चुका था. यहा अर्जुन भी शांत था जो बिना मुद्रा बदले बस मुस्कान को सहलाता रहा. जब फिर से कमर हिलने लगी तो मुस्कान ने शरारत से उसको देखा.

"दीदी ने बहोट मज़े लेने है तुम्हारे जाने बाद.. अफ.. अर्रे बाबा.. धीरे ना.. आहह.. वाइल्ड सेक्स सिर्फ़ हॉस्टिल मे.. उम्म्म्मम.", ऐसे एक टाँग पूरी तरह से उपर चाड़ने पर मुस्कान की गीली योनि लगभग पूरा हे लंड अंदर ले रही थी और एक-सार से धक्के बस 2-3 इंच अंदर बाहर करते. कामरस निचले कूल्हे की चिकनाहट से चादर तक आने लगा.

"तुम बहोट प्यारी हो मुस्कान और शायद कभी ऐसा हो जब मुझे तुमसे दूर जाना होगा.", अर्जुन कुछ रुका तो मुस्कान उसको प्यार से पीठ के बाल करती हुई बिना अलग हुए अर्जुन के उपर आ लेती. इस तरह जो बाकी बचा था वो हिस्सा भी मुस्कान के काम द्वार के अंतिम छ्होर तक जाने लगा. लेकिन इसमे ज़रा भी वासना ना था और ना हे कोई जल्दी हल्का हो कर अलग होने की. अर्जुन उसकी इस हरकत पर मंद मंद हँसने लगा था.

"देखा, मेरा नाम हे मुस्कान नही है. मैं तुम्हे स्माइल करवा देती हू. अफ.. बस ये नही हंसता कभी.. आहह.. और ये दूर जाना, पास आना जैसा अभी मत सोचो. मेरी शादी वही होगी जहा पापा कहेंगे और तुम्हारी तुम बता हे चुके हो. आहह.. ऐसे हे बस.. जीतने दिन यहा है मुझे बस कुछ घंटे की चाहत है तुम्हारे साथ, लेकिन तुमसे कोई वादा नही चाहिए. उम्म..", मुस्कान भली भाँति समझ रही थी की अर्जुन ज़ोर से नही करने वाला. उसने हे अपनी योनि को कसते हुए पूरी हिम्मत के साथ कमर तेज कर दी. उत्तेज्जाना अर्जुन की तरफ बढ़ी तो सर उठा कर उसने फिर से एक निपल मूह मे ले लिया..

"उम्म्म्म.. बचे वाले आअहह... तुमहरे ये काम.. हर रात याद आते है.. आराम से काटो नही.. आहह..", गुलाबी योनि से हल्का सफेद तरल बहने लगा था. घर्षण अभी भी कसाव से भरा और उतना हे तेज. मुस्कान के गले से पसीने की लकीर दोनो चुचो के बीच पहुचि तो वो नमकीन पानी अर्जुन ने जीबि फिरते हुए नीचे से गर्दन तक सॉफ कर दिया.

"पता नही कुछ तो अलग सा कनेक्षन है हम दोनो मे मुस्कान. जाने क्यूँ मुझे ऐसा लगता है की तुम्हारे दर्द की वजह मैं हू या शायद तुम्हारा दर्द कम कर सकता हू.", अर्जुन की बात सुन्न कर मुस्कान की आँखों मे आँसू आ गये लेकिन खुशी भी चेहरे पर सॉफ थी.

"मैं तुमसे दूर जा कर भी दूर नही हो सकती अर्जुन. मा का फोन आया था कुछ देर पहले.. आहह.. मैं 22 को उनके साथ वापिस जा रही हू.. हमेशा के लिए नही, बस जुलाइ एंड तक. आंड ई लोवे योउ.. ष्ह.. तुम कुछ मत कहना..", अर्जुन को चुप करवा कर मुस्कान तोड़ा तेज़ी से हिलने लगी और एक बार फिर वो चरम प्राप्त करती उसके सीने पर लुढ़क गयी. अभी वो खुद को संभाल हे रही थी की दरवाजे पर हल्की दस्तक होने लगी.

"मैं देखता हू?", अर्जुन ने मुस्कान को बड़े आराम से खुद से अलग किया लेकिन उसके खड़े होने से पहले मुस्कान ने उसको वापिस बिस्तेर पर लिटा दिया. बदन पर चादर लपेट कर वो बड़ी आडया से बोली.

"दीदी है बाहर और दरवाजा खोल कर मैं चली बातरूम और तुम अपने होने वेल बचे की अम्मा को संभलो.", अर्जुन जहा हैरान होने के बाद मुस्कुराया वही मुस्कान लंगड़ाती हुई दरवाजे की चितकनी खोल कर बिना बबिता से कुछ कहे कमरे मे हे एक तरफ बने बातरूम मे चली गयी.

"नहा लियो कबूतरी और तेरा दरवाजा बाहर से बंद कर रही हू.", बबिता ने कमरा बंद करने के साथ हे आयेज चल कर मुस्कान के बातरूम का दरवाजा बाहर से लगा दिया. अर्जुन को अब गोलू का ध्यान आया लेकिन बबिता तो इतमीनान से उसको देखती हुई अपना वो ढीला कमीज़ उतार कर सिर्फ़ उस असाधारण ब्रा और पाजामी मे खड़ी थी. पाजामी का नाडा ढीला करती हुई वो अर्जुन को हवाई चुम्मा देती हुई बोली.

"गोलू की टेन्षन ना ले डार्लिंग. वो गया नॉहरे मे और अब हुक्का चलेगा एक घंटा लेकिन अकेली मेरी कबूतरी इस खागड़ को ना संभाल सकती और ना तू उसपे ज़ोर लगवेगा. 10-15 मिनिट अपनी इस झोटती पे भी चढ़ाई कर ले, दूध का सवाल है.", बबिता ने आयेज बढ़ कर तुरंत हे उस आकड़े हुए मूसल को थाम लिया. मुस्कान के छूटरस से लिथड़ा वो लाल सूपड़ा हल्के से चूम कर वो अर्जुन के उपर आने लगी थी.

"अर्रे ऐसे कैसे?"

"लूब्रिकॅंट तो ऑलरेडी हो चुका डार्लिंग, छुदाई हम भी देख रहे थे जिस तरह तुम तोता-मैना लिपट के वो रोमॅंटिक सेक्स कर रहे थे. हुमारे साथ बनो जुंगली और दिखाओ अपनी ताक़त.. आहह.. बहनचोड़ गोलू.. देख असली खागड़.. आहह हह.", बबिता की तो एक बार साँस हे अटक गयी थी जब धम्म से वो उस गीत से बड़े मूसल पर एकद्ूम आ बैठी. अब अर्जुन हंस रहा था और बबिता फड़फदा रही थी. ये मुठभेड़ जोरदार होने वाली थी.

और अर्जुन को अंदाज़ा ना था के एक मुठभेड़ इस हवेली से बाहर भी होने वाली है. इस सबसे अनभीग्या वो अब तूफ़ानी दौर के लिए तयार हो चुका था.
वाह भाई दिल खुश हो गया इसी तरीके से सारी कहानी का पीडीऍफ़ हिंदी में कर दीजिए👍👍👏👏👏🙏🙏
 

Fâķîřă

Banned
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Billi420 bhaiya naraj hone se kya hoga 🤣🤣🤣
Ese kyn naraj hogye ki poora din shakal nhi dikhae.
Mana ki itna toh aapko bhabhi ji bhi nhi tadpati honge jitna guruji ne aapko babita ke doodh ke liye tadpa diya 🤣🤣🤣🤣
Ab kya kr skte ho panje kise kaam ke nhi hai aapke , dekh lo bikte ho toh bech do panje naye lgvalo 🤣🤣
 
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Update 94
Shatranz Ke khiladi (2)



Kareeb sava 6 baje Arjun park ke bahar aa khada hua jaha Aacharya Pramod Shastri ji apne samay ke paschaat bhi jaise uska he intjaar kar rahe the. Mukh par hamesha he rehne wala woh tej aur laali unke vyaktitva ki pehchaan. Arjun ne kareeb aate he unke paanv chuhe aur bina kuch kahe khada ho gaya.

"Bhai aaj jara humko bhi sawari karwao iski. Humne toh Jawa aur Triumph he chalaye lekin iska anubhav lena jaise tumhari sath he likha tha.", Unki aisi muskaan dekh Arjun ne apni hatheli unke saamne kar di jispar bullet ki chabi rakhi thi.

"Disha dikhane wale saamne rehte hai baba.", Arjun ke aisa kehne se he Aacharya ji sneh se gadgad ho gaye. Jo ladka unhe sabse priya tha aur unhone kabhi ye khud se bhi kabool na kia tha aaj usne jis haq se 'baba' pukara tha wahi shabd jaise woh kabse sunn-na chahte the. Apne samkaksh kad ke is ubharte vyaktitva ko gale lagane ke baad Aacharya ji jaise us bullet par sawaar hue toh Arjun ne bhi mehsoos kia tha ke uski 'Rani' ab shresth hath me thi. Woh saidev shaant rehne wala chehra ab kisi jawaan premi sa dikh raha tha. Aur Arjun ke peeche baithte he 'katak' ki awaaj bhi naa aai aur motorcycle aage badh gai.

"Hum swayam ko jaan-ne ke liye jitna andar se nirikshan karte hai utna bahar se bhi karna chahiye. Beshak ye maayne rakhne jaisa na lage kyonki ab sharir aur swayam toh ek he hai. Lekin prabhav bahut badi cheej hai beta. Woh tumhare aane se pehle tumhare liye tayaar tha aur ab bhi tumhe ghere hai."

"Baba, ye prabhav mujhe utna kyo nahi pata chalta jitna mujhe lagta hai ke woh kahi jyada he bada hai?"

"Tumhe aisa lagta hai ke woh bada hai? Beta, jara ye dekhna.", Motorcycle ki gati ekaek badh gai aur dono ke sahi bhaar se jaise bullet kahi jyada behtar pakad se daud rahi thi. Bypas par karte he pehli baar Arjun ki rani 130 ke upar udd rahi thi lekin hawa ko cheerti hui woh ab aise shaant thi jaise woh 'dug-dug' wala yantra gayab ho gaya ho usme se. Dono ki aankho se halka pani nikalta kaan ki disha me jaa raha tha. Kuch pal baad dono jaha ruke the woh wahi sarovar tha jaha Arjun Annu ko liye aaya tha.

"Kya mehsoos kia abhi?"

"Sab achanak ke hua. Ek pal ke liye ajeeb jaise niyantran se bahar ja rahi ho sthiti aur fir sab shaant lekin bahut tej aur wahi raftar jaise mann ko shaant karne lagi. Aisa lag raha tha ke Rani ne apni kashamta ko, us vaig ke sath bandh kar kaabu kar lia ho. Ye raftaar badhne ke bawjood sukoon de rahi thi."

"Rani.. hmm. Tum keh rahe the na dabaav bada lagta hai. Woh dabaav kaise cheer kar sukoon mila tumhari is 'Rani' ko? Gati toh tumne bhi mehsoos ki thi. Fir kahi koi dabaav na tha. Beta, woh dabaav jabtak tumhe uljhaye rakhega tum usko is sookshm roop ko bhi bade baadal samaan paoge. Lekin Arjun ka teer megh ke paar nikal kar bhi Indra ke sinhasan par aa laga tha. Matlab woh baadal ek dikhava hai aur tumhara vishwas aur kshamta kahi jyada badi jo har dabaav ke paar ja kar tumhe khud se milwayegi. Us pal me tumhe thik waisa he anubhav hoga jaisa kuch samay pehle abhi tumne kia. Lekin woh wala kshann bhar ke liye nahi hoga.", Aacharya ji muskurate hue seedhiyon ki taraf chal diye Arjun bhi gehri saans bharta hua unse ek kadam peeche chalne laga.

"Aapka kehna hai ke dabaav vyarth hai ya bhram jaisa kuch hai.?"

"Maine aisa toh nahi kaha dost. Saamne se truck aa raha hota toh hum dono kaha hote? Waise he maine jab megh kaha toh usme jal bhi bhara ho sakta hai aur vidhyut bhi. Khud ko niyantrit kar sakoge toh truck bhi nikal jayega aur woh paani-bijli bhi tumhe sehyog he denge. Anyatha udta kaagaj raftaar me disha bhool jata hai aur paani me geela. 'Rani' kuch hadd tak majboot hai aur tumhari hadd us se kahi jyada. Idhar dekho lekin shaant rehna.", Aacharya ji adhiktar udaharan he dete the baad me vyakhyaan agar jaruri lagta.

Arjun bhi un lambi seedhiyo par baitha dekhne laga ke kaise woh paani me doobi teesri seedhi par ek khaas tarike se ungli chalate hue tarange utpann kar rahe the. Aisa nahi tha ke woh ye kuch second tak karte rahe, agle 7-8 minute tak woh nirantar wahi dohrate rahe aur fir hath aadha feet andar aur utni he teji se bahar. Ek feet ke lagbhag lambai ke ye saleti si 'cat-fish' dono paro ke barabar se unke hath me idhar udhar hil rahi thi. Arjun kabhi us machli ko aur kabhi Aacharya ji ko dekh raha tha. Woh chamakdar thi aur fislan se bharpoor lekin fir bhi uske hath ki giraft me.

"Ye kitna daabav sehti hai maloom hai? Is paani ke talhatti me shayad itna wajan jitna kisi bade truck ko tumhare sar par rakh diya jaye utna. Ye ek minute agar us thehrav me aai toh jiwan dene wala paani he iska kaal ban kar praan le lega. Aur jara us taraf jaa kar khade ho jao.", Arjun tej kadmo se unki bataai disha me badh chala toh 20-25 feet duri par unhone rukne ko kaha aur machli ko hawa me uchaal dia. Paani par girte he woh aankhon se aujhal ho gai lekin fir 2-3 gol tarange banati apne zinda hone ka saboot de gai.

"Usko kuch nahi hua?"

"Jiwan milna thoda kasht de sakta hai lekin hai toh anmol he.", Agle 10 minute dono wahi seedhiyo par baithe rahe fir Arjun pehle baar unhe ghar ke bahar tak chhodd kar apne 'sansar' laut aaya. Thodi der se sahi lekin jyada he durust ho kar.
.
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"Thik ho aap?", Arjun nahane ke baad Ritu didi ke kamre me ab unhe apne se lagaye baitha tha. Woh bhi band kamre me apne dheele kapdo ke sath uske seene se lagi pyaar ke chote se pal me muskura rahi thi.

"Mujhe kya hua hai?"

"Wahi jo har mahine hota hai. Aapko taklif nahi hoti kya?"

"Hoti hai baba lekin pehle se bahut kam. Tumhari dawa kaam kar gai hai na aur ab tumne toh raha saha bhi khatam kar dia.", Arjun ne unke gulabi hontho ko choom kar fir seene par lita lia. Peeth sehlata hua woh jaise sachmuch Ritu ko sukoon de raha tha. Maasik chakra ko jaha log ghrina se dekhte the wahi Arjun ke liye bas ye ek chakra tha jisme uski sangini ko thode atirikt prem ki jarurat thi.

"Aap kahi jyada pyaari ho, pata hai?"

"Haan, kyonki tum jhooth nahi kehte kabhi.", Hansti hui woh Arjun ke gaal ko daanto se halka sa kaat kar jeebh se chatne lagi.

"Shaitaan bhi ho. Araam se leti raho na thodi der.", Arjun unke dono kulho ko halke se apni taraf dabate hue manmani karne de raha tha.

"Kal main aur Alka daadi aur maa ke sath naani ke ja rahe hai. Shayad baaki aur log bhi jaye kyonki badi gaadi se jaana hai.", Ritu didi ki baat sunn kar Arjun unka chehra dekhne laga.

"Kyon?"

"Daadi ne mannat ki hui thi aur kal Mangalwar bhi hai toh Hanuman ji ka prashad lagane. Jaha tak mujhe pata hai Aarti, Tara, Madhuri didi bhi sath chalengi. Lekin main aur Alka toh mandir ki jagah naani ke ghar rehne wali hai. Waha bhi maja aata hai. Aur tum hote toh jyada atcha lagta lekin Daadi ne saaf mana kar dia ke Arjun ko mandir nahi leke jaana."

"Aapne mujhe kabhi dekha hai kya mandir jaate? Haan fir kabhi sirf aapko leke jaunga lekin alag mandir me, Hanumanji wale me toh mushkil hai.", Arjun ke is tarah se kehne se he Ritu samajh gai ki ishara kis taraf hai.

"Gande kahi ke."

"Kyon, aap nahi chalogi mere sath Krishna-pranami?", Arjun ne jitni saadgi se poocha tha Ritu ne apni aankhe band karte hue apne labb uske hontho par dabane ke baad dheemi awaaj me kaha.

"Main khud chahti hu ke hum gandharv ko vastavik bana de. Jab tum kahoge main tayar rahungi.", Is baar ka gale lagna alag tha. Premika ki jagah ye jivansangini thi.

"Khana kha lo tum dono ab. Haan sath me main bhi khaungi he.", Alka didi ne darwaja wapis laga kar khana bister par khali jagah rakh dia. Halki fulki masti karta Arjun waha se uth kar bartan rasoi me rakhta hua apni maa ko kuch kehkar ghar se nikal chala.
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Menaka nashte se farig hone ke baad ab pichle aangan me kapde dhone ki machine lagane lagi thi. Nal ke neeche paani balti rakh kar woh Manju ko dekhne andar aai toh Manju itminaan se saaf-safaai karne me vyast dikhi. Jhadu pehle he laga chuki thi aur ab kaanch ka table kapde se chamkati hui woh kuch gungunane lag rahi thi.

"Oh laado meri. Araam kar le ya kitab khol le thodi der. Ye saaf-safaai main kar lungi."

"Didi, itna bhi kaam nahi hai. Aur 2 ghante pehle so ke uthne ke baad fir se araam kaun karta hai?", Muskurati hui woh thoda paani chiddak kar akhbaar se sheesha chamkane lagi.

"Tujhse kuch baat karni hai Manju, jara chai rakh main balti ka pani band kar ke aati hu.", Manju bhi sar jhatakti hui rasoi ki taraf chal di. Haath dhone ke baad pani ka bartan chulhe par chadhaya toh Menaka bhi andar aa khadi hui. Pathar ki slab par hath rakhti woh Manju ko dekhne lagi.

"Arjun khatre me hain.", Manju ke haath kaamp gaye itna sunte he. Woh jaise pal me he safed padd gai thi Menaka ke mooh Arjun ke liye aisa sunn kar.

"K..kis se khatra hai usko? Aapko kaise pata didi?", Manju pyaar jo karti thi us shakhs se jiska naam lia gaya tha.

"Mere pariwar se hai Manju. Tujhe main isliye ye bata rahi hu ki tumhari aankhon me maine uske liye samarpan aur pyaar dekha hai. Chahe woh tum dono ka aapas me khelna ya tumhare liye plate lagana ho. Woh bhi dil se tumhare liye sab karta hai. Pata nahi kitna sach hai ya kahi main jyada he sochti hou. Lekin tum uski bahut parwaah karti ho. Main khud usko kuch nahi keh sakti aur tumse bhi vachan chahti hu ki usko ye nahi kahogi ki maine tumhe bataya hai. Agar vachan de sakti ho toh main khatre se aagah kar sakti hu nahi toh seedha mere saamne aane par woh bach bhi jaye lekin mera wajood khatre me padd sakta hai aur sath he bahut se logo ka."

"Uske liye main kuch bhi karne ko tayaar hu. Tum befikar raho Manju kabhi jikar nahi karegi, apni aakhiri saans tak.", Manju aaj jaise Menaka ka rishta he bhool gai thi, aavesh aur darr ki wajah se. Woh bhi halki muskurahat ke sath chulhe ke saamne aati usme patti-adrak daalne lagi. Manju chup khadi bas dekh rahi thi ki Menaka ko chai ki padi hai aisi gambhir baat kehne ke baad. Lekin usko jawaab jald he mil gaya.

"Mera pariwar sirf wahi 4 log nahi hai jinhe tum jaanti ho. Ye bhi utna he bada hai jitna Arjun ka, shayad us se bhi kahi bada. Lekin yaha family tree sunane ki jagah main mudde ki baat karti hu. Mere bade bhaiya koi mahatma nahi hai jaisa agar maine unke mehant se mujhe padhane, paalne ke baare me pehle bataya tha. Main khud andhere me thi Manju. Woh chahte hai Arjun ko khatam karna aur isme unke sath hai meri badi bhabhi. Ye Bheem ki patni ki baat nahi kar rahi hu main, yaha 4 aur bhabhiya hai meri jinme se ek ko main thoda jyada jaanti hu aur dusri ke baare me jaanti hu lekin woh dikhi he nahi kabhi jyada. Toh 4 me se 2 bhabhiya jo meri maa ki umar ki hongi, woh apne bacho ke sath milkar chahti hai Arjun ko khatam karna. Waisa mauka mila toh woh uske pariwar ke harke vyakti ke sath aisa karna chahenge lekin Arjun ka pariwar apne aap me ek rehasya hai aur sath he aisa quila jisme koi khidki bahar nahi khulti jiski madad se koi bhed sake.", Menaka raamkahani sunate hue ruk ruk kar Manju ko bhi dekh rahi thi. Fir paani me ubaal aane par doodh dalti hui Manju ko dekhne lagi.

"Aur mere bhai ko ab ek nai wajah mil gai Arjun ko jaldi se jaldi raste se hatane ki. Aur ek wahi ladka hai jisko nuksaan pahuchate he uska pariwaar bikhar jayega. Meri badi bhabhiya kunbe se bahar hai aur jitni shaatir hai woh main bhi nahi soch sakti. Lekin is poore shadyantra me unke sath aur bhi darinde hai. Waqt kam hai aur jaha tak lagta hai unke liye ye waqt sahi hoga Arjun ko shikarn banane ke liye."

"Aur tum is sabme kaun ho? Tumhari sachhai kya hai Menaka?", Manju jo itni der se sunn rahi thi uski aankhon me aansu the aur dard. Kab usne Menaka ke dono hath kass ke pakad liye khud woh bhi nahi jaanti thi.

"Bakri thi main is sabke beech. Ek masoom si bakri jo kabhi idhar baandh di kabhi udhar. Sher ko pakadne ke liye lekin ab bakri bhi unke hath se bahar nikal aai hai toh chatpatahat jyada ho gai hai. Ho sakta hai ke Arjun ke sath meri bhi aahuti de di jaye. Woh jyada thik rahega us se jo main sapne me bhi khud ke sath hone wale anjaam se khauf khaa rahi hu.", Menaka ki halat aur baat ne Manju ko fir se vartmaan me la kar patak dia.

"Woh kya karne wale hai? Aur kaise?", Manju ne khud ko sambhalte hue ab samajhna he behtar mana.

"Woh shehar me toh aisa kuch kar nahi sakte aur Arjun ko bahar bulane ke liye unhe jarurat padegi ek bade chaare ki. Aur agar unhe itna he pata hai toh woh mujhe ya tumhe uthayenge. Ho sakta hai kisi aur ko bhi jo galti se unki najar me aa gaya ho aur jaankari le chuke ho uske baare me. Lekin sabse asaan main hu aur Arjun ko tum jaanti he ho ke woh madad karne se kabhi peeche nahi hat-ta toh agar kisi ki jaan khatre me padne par woh apni bhi daav par laga dega. Dekho Manju, is khatre ke talne ke baad tum mujhse jo bhi puchogi main sab bataungi lekin filhaal har cheej ko gor se samjho aur batao ke ye mauka he kyo thik hai.", Manju uljhan me padd gai aur Menaka chai ko 2 gilas me daalti khud bhi soch rahi thi. Chai liye woh apne kamre me chal di aur peeche gumsum si Manju.

"Arjun ke ghar me is waqt uske papa-chacha aur tauji nahi hai aur bhaiya bhi. Dada ji hamesha ghar rehte hai aur bujurg hai. Kal subah toh baaki ke sabhi log bhi nahi honge kyonki sab hamare gaanv jaane wale hai aur fir shehar. Matlab agar Arjun ke sath kuch hone wala hai toh .."

"Haan Manju, mujhe bhi chachi se pata chala tha ke woh log mangalwar ko ghar nahi honge aur jinse sab darte hai woh pehle he desh se bahar hai. Arjun kis waqt ghar nahi hota?"

"Subah se lekar dopahar tak woh school hota hai aur fir shaam ko stadium. School ke pas koi itni himmat nahi karega kyonki woh ghar ke pas hai aur school ke barabar he thana bhi hai. Waha aap bhi hongi aur Arjun bhi. Ye baat toh aap bhi jaan lijiye ke woh koi bacha nahi hai agar uske samne kisi ne aap par ya mujh par hath dala toh woh saamna kar sakta hai."

"Jawaan logo me yahi problem hoti hai ke woh jald hosh kho dete hai. Jinse khatra hai woh log dimag se itne shant hai ke saalo se woh jaise bahari duniya se alag hue pade hai. Rahi baat josh aur taqat ki toh ek janwar badi bhabhi ke pas hai Bijender ke roop me aur dusra mere bhaiya Bheem. Waise woh na bhai kehlane layak hai na bheem, duryodhan jyada thik rahega. Aur sher ko maarne ke liye kai jagah bade kutto ka prayog bhi hota hai. Agar Arjun tumhari soch me kahi jyada he majboot aur diler hai toh main bhi chahungi ke tumhara kehna he uchit ho. Bas ghinone dimaag jyada aage na soche baithe ho.", Menaka apni taraf se jitna batana chahti thi utna bata chuki thi.

"Woh log kisi ko stadium bhejenge. Arjun ka wahi thikana hai jaha uske aas-pas woh log nahi honge jinki woh parwah karta, jaisa woh log sochte hai. Preeti kal hogi nahi aur main yaha tumhare sath rehne wali hu."

"Tumhe jana he hoga Manju. Ye talwar aise jaane kab tak latakti rahegi. Mujhe woh yaha se le jaye toh tum kanoon ka sahara lena aur Arjun ko wahi roke rakhna. Sirf yahi ek tarika hai jis se main usko bacha sakti hu aur baaki sabko unke anjaam tak pahuchaya ja sakta hai.", Menaka ne jaise thaan lia tha ke ab bhi woh Arjun ko is sabse bahar he rakhegi, uske sath jo hota hai ho jaye.

"Agar woh aise log hai toh kanoon me bhi kahi na kahi unki pakad toh hogi he. Aur aap he nahi rahi toh fir sab vyarth ho jayega. Aisi qurbani woh bhi aap Arjun ke liye dene ko tayaar hai?"

"Jaan toh bahot chhoti cheej hai Manju, us ladke aur poore pariwar ke liye toh har roj marna bhi qubool hai mujhe. Unki apradhi bhi hu aur mureed bhi."

"Thik hai fir aap ghar rahengi aur main stadium lekin kuch badlaav ke sath.", Manju kuch vishwas se itna keh kar waha se uth khadi hui.
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"Mausi, aap aaj dhaniye-hari mirch ki chutnye banao toh khaane ka jyada maja aayega.", Arjun kuch der tak Saroj mausi ke sath gaushala me tehlta raha aur fir jab unhone khaane ka poocha toh Arjun ne apni pyaari mausi se farmaish kar di. Ghar se nikalte he woh aadhe ghante me yaha pahuch gaya tha aur ummeed ke mutabik mausi pehle se wahi mili thi. Aaj pichle din se bhi kahi jyada khush aur muskurati hui.

"Haan toh mere laadle ke liye itna toh kar he sakti hu. Bas thoda intjaar karna padega kyonki khet tak aane jaane me samay lagega aur banane me bhi.", Saroj mausi ko niharta hua woh unki baat bhi sunn raha tha.

"Fir khet pe he khayenge khana. Itni der me bhookh bhi lag he jayegi aur waha jyada sukoon hoga idhar se.", Arjun ki baat ka matlab samajhti woh halki si laal hoti apni saadgi bhari muskaan se usko dekhne lagi.

"Khet ka rasta idhar se bhi hai. Chalo fir wahi baith jana.", Mausi ne woh kacha taar wala darwaja dikhate hue sath chalne ko kaha.

"Aap chalo main jara ek baar ye sab dekh kar aata hu. Mausi, udhar paani ki vyavastha hai kya?", Arjun ki aisi baat par woh thoda hairaan ho gai.

"Mera matlab pani ki tanki ya nahane ki jagah se hai mausi. Woh thoda mitti aur paseena hone ki wajah se. Aap chinta mat karo agar nahi hai toh main idhar naha lunga."

"Beta poori haud hai waha par aur motor bhi lagi hai. Yaha fir mitti me ganda hoga lekin khet me ek hissa sirf rehne ke hisaab se tayaar kia hua hai. Chal tu jab dil kare aa jana. Ye seedha chalte hue woh neem ke peid ke pas aa jana, bagichi aur kamra wahi hai.", Arjun jaanta tha us jagah ko kahi atche se lekin fir bhi dhyan se dekhne ka dikhawa karta woh 400 gaz ki duri par nigaah marta sar hilane laga.

"Thik hai aap chalo main bhi aata hu. Aur inhe khulla he rehne du na.", Dono kutte aaj Arjun ke pas he ghoom rahe the jinke lambe baal woh sehlata hua mausi se pooch raha tha.

"Haan. Lekin ye band karke aana nahi toh khet me he aa jayenge ye.", Darwaja kholti woh aage gai idhar Arjun ne woh janjir wapis band karte he dono kutto ki gardan baahon me lete hue pyaar se kaha.

"Ab tum log masti karo aur main kaam karta hu.", Charpai par rakh doodh ka dabba bade bartan me khali karta woh us dusre kamre me ghus gaya aur ye dono bade kutte us bartan se ja lage. Jaise jaldi he dono ne Arjun ko apna khaas dost maan lia tha. Chabi bahar nikalte waqt bhi Arjun ne usko kapde se he pakda tha aur ab andar wale raste se he woh kutto ke jaali lage kamre me aa gaya tha. 8x10 ka ye kamre bahar se jaise aadha he dikhta tha saht lage darwaje ki wajah se lekin andar woh ek he tha jaise dusra darwaja ek bhram he ho. 2 lohe ke peti idhar kone me rakhi thi jaha najar nahi padti thi. Chabi aage aur peeche se daant wali thi matlab dono he taalo ke liye.

'Khul ja sim-sim', Arjun ne muskurate hue woh upar wala tala khola aur andar dher saare 'Koras' company ki rang-birangi file dekh kar hairaan ho gaya. Ye waisi he gatte ki file thi jaisi kaagz sambhalne ke liye dafta-school me prayog hoti hai. Kapde se pehli file ko upar uthate he uspar likha naam dekh kar ek taraf rakh dia. Koi Roshan tha jiski file the. Aise he 3-4 file hatane ke baad ye naam padhte he Arjun ne usko utha lia. 'Sushila'. Matlab ye naam wahi tha jo usne phone par suna tha. Koi 4 panne aur 6 tasveer dekhne ke baad Arjun ne woh wapis rakhte hue uske neeche wali file uthai. Agle 10 minute me he woh 6 file apne dimaag me bitha chuka tha. Unko sahi se wapis rakhne ke baad ye peti band karke usne ek aur rakh di.

'Itna jhamela hai aur kitne araam se ye log rehte hai jaise inse atchi zindagi kisi aur ki hai he nahi. Bewkoofi bhi hai jo itna samaan rakhe baithe hai.', Arjun dusri peti kholta yahi keh raha tha khudse aur isme jyada chaukane wala samaan tha.

"Ye photo toh meri aur Preeti ki lekin idhar.? Fir peeche laga khoon dekh kar jaise kuch samajhne laga tha ke ye kaise hansil ki gai hongi. Ek peele kaagaj me Muskaan, Shabnam, Akanksha ki tasveer dekh kar jaise Arjun ko jhatka laga. Shabnam ki tasveer toh khud usne bhi kal he dekhi thi aur yaha woh pehle se he thi lekin peeche likha tha unknown. Waise he Muskaan ki tasvir ke peeche likha tha lekin Akanksha ki photo ke peeche padhte he usne kuch rahat ki saans li. 'Friend'. Ek aur folder me wahi pehalwan tha jisne Vikas par hamla kia tha. (Bijender) aur yaha file wali Sushila ki ek photo thi (Maa), ek sehatmand tagdi yuvti jiska naam likha tha Babita (behan) aur fir Mohar Singh. Yaha kuch aur bhi photo thi jinke upar kaala kanta mara gaya tha aur sab alag alag tarah se rakhi gai thi.

'Matlab abhi inhe mere baare me bhi utna he pata hai jitna jaruri hai. Lekin Shabnam inki bhi pahuch se bahar rahi hai. Laal folder me Menaka ke maa aur bhai ki photo Sushila ke sath lekin Menaka ki photo meri wali list me. Hmm.. Sahi ja rahe ho papa lekin ab nahi fansne wala aapke chakkar me. Chal beta Arjun ab jara mausi ka haal-chaal lete hai fir muskaan ka ehsaan bhi utarna hai.', Sab sahi se rakhta woh bahar aa gaya. Itni he der me badan par paseena paani ki tarah aa chuka tha. Chabi wahi rakhta woh fir se dono kutto ke sath dil behlane laga. Rubber ki gend fenkta aur unhe bari bari se daudata woh jaise unhe thakana chahta tha ya unse kahi jyada he ghulna milna.

"Abse ye gale me patta nahi pehan-na. Chalo araam karo dosto.", Dono ki gardan se woh nylon ka chauda patta khol kar diwar par taangne ke baad woh bhi khet ki taraf badh chala. Apne pita ke prati uske dil me aadar aur badh gaya tha sab jaan-ne ke baad aur ab woh bhi chahta tha ke kuch aur photo par lakire lage lekin uska hath kharaab na ho. Pita ke liye woh wahi chota bacha rehna chahta tha jo ab tak woh bana hua tha.

"Mausi, lagta hai jyada pareshaan kar dia maine aapko. Aur yaha bhi chulha lagaye baithi ho aap.", Arjun aaspas ka ye jana-pehchana khoobsurat mahol dekh kar thoda taja mehsoos kar raha tha. Wahi Saroj mausi aam ke vrikhs ki thandi chaya ke neeche lakdi ki peedhi par baithi aanta goondh rahi thi. Bhari vaksh unke suit ke gale se 1/3 bahar nikalte hue hil bhi rahe the. Fir najar ghumata woh unke pas he rakhi taaji chutney aur karaahi dekhne par muskurata hua is badi tanki ke pas aa khada hua, unse 10 feet dur. Cement aur eent ki bani ye majboot tanki uski lambai jitni he thi aur atchi chaudi upar tak labalab bhari.

"Tune kaha pareshan kia re. Main toh khush hu ke tu is budhiya ke kehne bhar se uske pas chala aaya. Is bahane mujhe thoda kaam bhi mil gaya aur araam bhi. Abhi bhari hai maine ye aur tu idhar he naha le, main angocha de dungi paunchne ke liye.", Arjun hansta hue kapde utaar kar us sann ki rassi par tangne laga jo shayad chaya me kapde dalne ke liye he 2 peido se bandhi thi. 15-20 vriksho se ghira ye hissa sachmuch kisi prakritik swarg sa he tha. Aam ki bor ki mehak, bagiche me lage phool aur aaspas ka saf-suthra ye poora hissa Arjun ke dil ko bha gaya tha. Usko jaise pata he na tha ke Mausi kabse uske lambe chaude sharir ko nihar rahi thi. Sirf aadhi jaangh tak ka safed rang ka elastic wala kacha pehne woh ek choti balti se paani nikal kar apne upar daalne laga.

Lambe baal bheegne se apni poori lambai dikhate uske chehre ko bhi dhakk gaye the. Sharir ko atche se masal kar woh 5-6 balti girane ke baad khud ko upar se neeche tak dekhne laga.

"Mausi sach me aapne ye jagah jannat si bana rakhi hai. Jaane kitni mehnat ki hogi isko itna khaas banane me.", Arjun ki saadgi se kahi baat par aate ke upar kapda rakhti woh bhi hath dhone uske paas aa khadi hui. Arjun hath dhulwa raha tha aur fir se najar un sunehari kharbujo par ja padi. Ek dam chikne chamakdar ubhaar jaise bina kahe bhi mausi ke jism ke prati bahut kuch keh rahe the. Arjun ke kache me naa chahte hue bhi ubhaar badhne laga jisko dekh kar mausi bhi muskura uthi.

"Ye teri mausi ne apni laadli ke liye khud tayaar kia tha. Haan woh bargad sabse purana hai jiski wajah se baaki peid fale-fule aur aaj ye aisa ho gaya. Manju yaha tairna seekhti thi jab 4 saal ki hogi. Fir humne is se badi kheill (Long open tank) kamro ke pichle hisse me banwa ke di toh woh ghanto lagi rehti thi un 25 foot ko maapti. Fir woh yaha bas tabhi aane lagi jab uska thoda akele rehne ka mann hota. Kheill toh 8 saal se sukhi padi hai. Aur tune agar jyada he masti karni hai toh isme baith ja, teri gajar uthne lagi hai.", Mooh par hath rakh ke hansti hui woh tanki se pani Arjun ke mooh par fenkti palat kar jaane lagi.

"Aap bhi sath he aa jao andar iske. Kya pata ye baith jaye.", Arjun se itna khulle nimantran ki ummeed unhe na thi lekin woh hansti hui aage chal di.

"Khud bitha le isko beta, budhiya ke sath kahi fir ye rooth he na jaye.", Unka itna khushnuma swabhaav dekh kar Arjun bhi hansta hua us badi tanki me utar gaya.

"Mausi mujhe toh lagta hai ke Manju ki wajah se aisa keh rahi ho aap. Lekin woh beti nahi lagti aapki agar lambai aur aankhe hata de. Aap 30 se kahi upar nahi dikhti aur uski tarah dubli patli nahi ho.", Arjun itna keh kar dubki lagata khada ho gaya.

"Hawa me na chadha ab itna bhi. Shaadi ke samay main bhi Manju jaisi he thi lekin fir jaane kab charbi chaddh gai. Tere mausa ka toh kehna ke meri ab naani ban-ne ki umar ho gai hai toh ab main kaam-dhaam bhi band kar du."

"Mausa ke liye toh main kuch nahi keh sakta kyonki woh bade hai. Lekin itna kahunga ke aap jaisi biwi ho toh pati ghar se ghante bhar bhi dur na rahe. Sab kaam bhi karti ho ghar-pariwar, khet-khalihan ka aur mausa-manju ka bhi lekin fir bhi hardam muskurati rehti ho."

"Bada jaanta hai re tu apni mausi ko.", Saroj mausi ab salad ke liye kuch hare pyaj aur gol chote kheere todd rahi thi.

"Mausi, dil ki baat kahu toh aapke college me agar main bhi hota na us waqt toh pakka bhaga le jata main aapko. Ab toh mausa ji le ude aur main jara deir se paida hua.", Hansta hua woh bahar nikla toh mausi ne sar par chapat lagate hue woh safed gamcha aur toliya usko pakda dia.

"Tere mausa toh vairagi ho gai jaane unhone kya dekh lia mujhme. Chal gamcha baandh le aur main rotiyan paka lu fir khaane ke baad baatein karenge.
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Gollu aur Bijender apne sath 2 aur sathio or ek majdoor se aadmi ko liye jeep se is sunsaan sadak par bani ek manjila godaam jaisi ek manjila imaarat ke bahar aa khade hue. Dadtyakar sharir wale Bijender ne tala kholne ke baad ek hath se he us 20 feet chaude shutter ko upar uthate hue rasta khol dia. Gollu ne bhi jeep seedha andar karne ke baad utar kar Bijender ko thodi hairani se dekha.

"Bhai eb konsa kaam pakad lia yu? Is viraane me aan ke paache ke majburi ho gai.?"

"Aaja mere yaar jara isne thoda sanwaar deva. Oye thaam donu Maangeram ke sath milke woh aagle hisse ne thoda thik karwa dyo ar gaadi me lattu (bulb) pade hai woh lagwa dio. Main ar Gollu jarah jaanch-padtaal kar leva.", Uske kehte he woh teeno log furti se kaam me lag gaye. Yaha andar aate he 30 feet tak pakka farsha aur aage kachi jameen jispar jhaadiya ugg aai thi. Andar he ek taraf bada khali sa ujaad plot tha jaha 2-3 peid lage the aur ek taraf band store ya bathroom jaisa kuch tha. Idhar aakhir me upar jaane ke liye bahar se he seedhiya lagi thi lekin jarjar haalat me. Hath lagne bhar se woh gir sakti thi.

"Ehsa ke kaam hath lagya bhai ke aade aan ki load padd gai? Yu toh bahut badi jagah hai.", Gollu ab uske sath wo kachi jameen se godaam ke andar aa gaya tha jaha 20x90 foot ka ye bada haal ab thoda roshan tha diwar par lage 2 bade bulb ki roshni me. Aage ki taraf Mangeram kooda ek taraf karta hua jaale bhi hata raha tha. Bilkul aakhir me yaha toote kaanch ki khidkia aur 2 kamre bane the. Aur ek taraf shochalaya.

"Kaam badda hai bhai aur jitne log yaha hai hum sabne he yu kaam anjaam dena hai. Kade se bhi halki si galti ka matlab thaam saare meri maa ne jaano he ho. Maar degi bina sawaal jawaab ke.", Fir kuch der tak woh baaki charo ko badi gambhirta se sab samjhane laga aur fir ek kamre me chal dia Gollu ko liye. Is varsho se band kamre me ek darwaja bahar gali me bhi nikalta tha aur andar ki diwar par ye kala dedh feet ka sheesha laga tha jo bahar se purane aaine jaisa tha. Dhyaan se khud usko saaf karke woh bahar khade teeno ko dekhne laga.

"Yar yu chhora stadium me se arr main dekh chukya hu isne. Bada bhala chhora hai aur uski khatir itna jhanjhatt. Maarna he hai toh saale ne utha lete stadium ke bahar te aur nehar me fenk dena tha. Bera ni taai (Sushila) ke pakaana chahve hai.", Gollu kameej jhadta hua woh bahar ke darwaje se gali dekhne laga.

"Bhai maa jyada na bolti lekin itna jarur bataya ke yu chhora unka he hai jina ne mere pita ar dada ti maara tha. Ar England wali mausi iske khoon ke badle apna gaam ka hissa bhi maa ne den laag ri hai. 5 crore ke sath apni beti kya byaah mere gail. Lekin main is sabme is khatir shaamil konya. Tu toh jaane hai ke lugai mere kaam ki koni aur peesa mere daadke me bhi bahot hai aur naanke me bhi.", Bijender thoda gambhir ho gaya tha apni baat kehte hue. Gollu bhi apne dost ke kandhe par hath rakh ke jaise usko aage bolne ko kehne laga.

"Bhai mere ti bera hai ke tuh moh-maya te ghanni dur hai. Hum saare toh daru bhi pee leva ha ar kade hath lage toh koi kabootri bhi khet me pakad leva ha. Tu kade ehsa koi kaam ni karda."

"Main bhi pyaar karu su re Gollu. Mera jee bhi kare hai ke byaah karu, kheti sambhalu ar baalak paida karke pariwar banau. Fer tere gail daaru pee ke ghar jau toh meri jaan manne apne hath teh took khilave arr koli bhar ke mere te chipat ke sove. Lekin waa bhi sharat rakhe baithi hai ke byaah jadd karegi jib main Shankar ke chhore ki chaati paad usne khatam karunga.", Bijender jaise ekaek dil ki gehrai se bolne laga tha. Apni zindagi ka sach jo kabhi woh keh na paya tha aur is kaam se pehle woh apne raajdar ko bata ke halka hona chahta ho.

"Bhai tu karega yu aur main tere byaah me sar pe bottle rakh ke gaam ka chakkar lagaunga. Gollu apne yaar ke khatar kise teh bhi takraan ne tayaar hai."

"Gollu shart ka dusra bhaag bhi hai ek. Je meri ar us ladke ki muthbhed hui toh jitna tame mere baap ti Shankar ne dia tha utna main bhi us ladke ne dunga, jor ajmaaish ka. Woh jeet gaya toh ... main sab haar jaunga."

"Tu bebe teh pyaar kare hai bhai?", Gollu ab hairaan ho gaya tha kyonki agar kisi ne aisi shart uske dost ke sath rakhi hai toh woh ladki bhi Bijender jitna jaanti thi yar us se jyada he.

"Haan bhai. Babita mera pyaar aur duniya hai. Main Arjun ne koni maarna chahu na he Shankar ne. Mere baap-dada ki ladaai jisme woh khud galat the aur unhane he sab shuru kia tha toh main kis tariya keh diyu ke main sahi karan laag reha hu.? Shankar arr Umed chacha ne he 5 saal ki umar me mere sharir par maati lagai thi akhade ki fer ek saal me sab badal gaya. Madhulata chachi meri maa ki wajah teh Shankar ki na ho paai, mere baap ne Rameshwar ji pe goli chala di, Raghubir tauji ka chhora maar dia aur 15 aadmi jinda jala diye 4 jana ne milke, Rammehar nana ke laadle ne balatkaar ki gawahi ka badla lein ke chakkar me sara satyanash kar dia. Daadi bahot pyaari hai re meri lekin maa ziddi hai ar bebe uski bhi maa hai.", Bijender ne dil he khol ke rakh dia tha Gollu ke saamne.

"Bhai yu toh maine jama bhi konya bera tha. Etna badda ghamasaan ho rakhya hai aur fir Vikas ke gail tera panga kushti toh koni ho sake hai. Jab itni baddi baat tu maaf kar sake hai toh Vikas ki pehalwan selection pe ehsa kadam uthana janche koni.", Gollu ko apne yaar ka dard aaj pata laga tha.

"Woh bhi aapna he hai re. Uspe humla na karta toh woh marr jaata bematlab. Mohar maame ki lugai arr Vikas ki maa behan thi, woh din bithaye baithya tha uska arr hamari harkat ne sabke kaan khade kar diye. Nahi toh mama toh Vikas ne khatam karke apna badla lein main safal ho jata."

"Tu Arjun ne maarega fer?"

"Bhai Gollu, dekhunga ke kitna muqabla kar sake hai lekin Bheem jaan levega uski. Shama maang ke khoon hath pe laga lunga. Fer meri maa apnja raajpat sambhale arr main meri jaan ne leke Jammu. Chaal eb dekha jara ke kuch kar liya inhane. Ek kursi arr rassi bhi rakhwa de aade.", Bijender aage chal dia lekin Gollu jaise khud se baat karne me laga tha. 'Teri kasam bera na bhai sabka ke karwavegi. Woh jaanwar mahare sabke bass teh bahar hai lekin tera dost paache koni hatte. Babita toh teri ho ke rahegai.'
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Din ke 11 baj rahe the jab Arjun aur Saroj mausi khane se faarig ho kar kamre ke andar farsh pe dari bichaye lete the. Bahar ghani chaya ke bawjood kuch umas aur garmi badh gai thi aur andar is bade kamre me cement ka saaf farsh thanda bhi tha aur hawadar bhi jaha 2 pankhe chal rahe the. Arjun ko bade pyaar se khana khilaya toh Saroj ji ne aur usne bhi mausi ko waise he apne hatho se tript kia tha, mana karne ke bawjood. Halki fulki masti karte hue dono andar aa gaye the kyonki savere andhere me uthne wale ye log ab araam ki itcha liye the.

"Mausi aap bhi graduate ho fir aapne shaadi aise ghar me kaisi ki?", Arjun sar ke neeche takiya lagaye chatt ko dekh raha tha. Bagal wali dari par leti Saroj mausi karwat karti usko dekhne lagi

"2 baatein hai jinhe tu bhi samajh jara sa. Ek toh meri padhai ki wajah thi teri maa Rekha, aur tere nana ke kehne par he mujhe 10 jamaat ke baad college ki ijajat mili thi. Dusra beta samay aur mahol. Main zamindari wale ghar se hu jaha ladki ke sar pe 12 saal ki umar me dupatta aa jata hai aur fir 16 paar toh shaadi ho jati thi us bakht. Lekin pita ji bhi thoda maan rakhte the tere nana ka toh mujhe unhone padhya aur 22 saal hone par shaadi kar di. Meri chhoti behan bhi mere he sath tere mausa ke chhote bhai se byaah di aur us samay bas zamindari he dekhi jaati thi aur ye log bhi the barabari ke. Pitaji ne jhatt shaadi karwa di."

"Aapse kuch bhi nahi poocha ya salaah li kisi ne? Aur choti mausi bhi sath he?"

"Beta salaah, yaha toh shakal tak na dekhi thi maine inki aur jara soch ke pati aise mile jo saanjhe ghar ki sharam maante 4 mahine baad toh mere kareeb aaye. Chhoti toh tabhi jameen ka bahana bana kar apne pati ke sath idhar gaanv me aa basi. Main badi thi aur shaant rehne wali fir pati toh nira jadd mila. Khud soch jara ke Manju aur Komal me kitna farak hai, jabki shaadi meri pehle hui thi. Aur Manju hai Ritu se kuch badi."

"Fir mausi ab toh maine kisi ko nahi dekha waha ghar pe. Manju ke dada-daadi?"

"Woh beta chal base the. Saas meri bimar rehti thi toh jyada na jee saki aur babuji ka accident ho gaya tha. Ha meri maa 2 saal pehle he puri hui hai aur papa unse ek saal pehle."

"Kitni ajeeb zindagi hai aise toh. Mausa ko aisa toh nahi karna chahiye. Biwi matlab ardhangini, aadha sharir aur uska dhyaan jaruri hai, sabse jaruri. Itne saal aapne fir kaise nikaal diye?"

"Beta teri maa ne bhi nikaal diye bas farak itna hai ke Shankar jija ki majburi thi jo dur rehna padta tha aur mere miya ji toh khalihaan ka bol kar jaane kaha kaha gayab rehte the. Ab bhi toh kuch nahi badla hai. Manju se mujhe kabhi shikayat nahi hui aur usne bhi ghar ke ladke ki tarah sab kia hai. Baap ke laad ke naam par choti moti farmaish poori hoti rahi aur woh utne me he santusht. Lekin Rekha aur teri naani ne himmat di thi ki iske sath woh sab na ho jo maine jhela. Ladki khud ki apni pehchaan banaye, fir jitna kar sakti thi kia lekin aakhir me ye shaadi wali galti ho gai."

"Mausi, dadaji kehte hai ke galat toh kuch hota nahi bas parishtiti aur nirnya hote hai. Haan unhe badla jaa sakta hai agar aap me badalne ki himmat ho. Insaan ka sabse jaruri haq hai uska apne aap ko banaye rakhna aur jiwan ko behtar karne ke liye hamesha khush rehna. Baaki sab chinta hai ya chintan. Dekha kabhi aapne mujhe pareshan, akela ya samjhauta karte hue.?", Arjun ne jaan lia tha ke mausi ka sar sakht farsh par hai. Khud ko waise he rakhte hue usne apni baah unke sar ke neeche rakhte hue unhe thoda araam dia. Woh bhi araam se uske sath waise he leti rahi, karwat Arjun ki aur kiye.

"Sab tere jitne samajhdar nahi hote re. Tu kitno ka khayaal rakhta hai abhi se. Apne dada-dadi se lekar ghar ke har sadasya ka. Bahar bhi tu badalta toh nahi hoga. Heera aur Moti kisi ko aise pas nahi aane dete lekin tu unse bhi ghulmil gaya. Insaan-insaan ki baat hoti hai beta."

"Mausi zindagi me jo aaj hai woh hai, jo kal aayega uske liye tayaar raho lekin bewajah pareshan hona thik nahi. Main kaha khayaal rakhta hu kisi ka. Sab mera he khayaal rakhte hai badle me jo mere bas me hota hai woh main kar deta hu. Bas itna sa he toh hai. Aap bhi toh mera kitna khayaal rakhti ho. Sab chhod-chaad ke itni mehnat sirf mere liye ki. Isliye toh kehta hu ke aap bahot pyaari ho.", Arjun ne jaise he unki taraf dekha toh mausi nirantar bas uske chehre ko he dekh rahi thi lekin karwat lene se dono he ab ek dusre se 6 inch dur the.

"Main bhi badalna chahti hu lekin fir sochti hu toh darr lagta hai kahi apni khushi ke liye ... Aur unki baat khatam hone se pehle he Arjun ne pyaar se unke hontho ka namak chakh lia. Woh palbhar sunn si usko dekhti rahi jo unhe choomne ke baad bhi pyaar se dekhe ja raha tha.

"Sochna kamjor karta hai mausi. Aap majboor nahi hai aapka haq hai mujh par. Aapke nischal prem ke badle main itna toh kar he sakta hu. Woh khaalipan bahot taklif deta hai jiske liye aap khud ko jimmewar maan kar bas zindagi kaat rahi hai. Sabkuch pas hai aapke.", Arjun ne araam se unke baalo me laga clip nikalte hue lambe baal ajaad kar diye.

"Tu sach me bahot pyaara hai re.", Is baar unhone ape naram honth Arjun se joddte hue baahon ke ghere me le lia tha. Unnat bada seena Arjun se dabta jaise saalo se dabe pyaar ki garmi mehsoos karta sakht hone laga tha. Dono ke beech kahi koi jaldbaji na thi aur Arjun bhi barabar pyaar se unke hontho ko mooh me leta hua apni pyaari mausi ko naye ehsaas se bharne laga. Daleep Singh ne toh kabhi bhi hontho ko geela na kia tha lekin Arjun unki jeebh bhi nissankoch apne mooh me bharta hua peeth sehla raha tha. Sudhbudh khoti Saroj jaise apni jawani ka pehla sahi anubhav le rahi thi. Patni toh woh Daleep ki kitne he saalo se thi lekin premika woh aaj bani thi.

"Tu bahut kuch jaanta hai re.", Itni der baad unke mooh se yahi nikla aur woh muskurati hui Arjun par jaise nihal hue ja rahi thi.

"Main toh bacha hu mausi, aapke sath khud-ba-khud ho gaya ye.", Arjun unke tagde sharir ko apne upar le aaya toh woh aur hairaan ho gai.

"Ye kaise kia re ab?"

"Phool si toh aap aur itni dur se atcha bhi nahi lag raha tha.", Arjun ne kamar par dono hath rakhte hue gaal choomne ke sath he kaan me latakti sone ki bali ke chedd par jeebh firai aur mausi andar tak kaamp gai. Jeebh waha se ghumti kaan ki lou par aa ruki jaha Arjun ne hontho se choomte hue unki nangi kamar par apni ungliya khaas tarike se firani shuru kar di.

"Arre beta.. aahh.. tu toh hath laga ke he jaan le raha hai.. aur ye idhar choomne se toh jhurjhuri hone lagi.", Chaati ke dono kinaro par kohniya rakhti woh uske mooh ko idhar udhar jaane se rokne ke liye fir se hotho ko peene lagi. Arjun ke sath woh pehla chumban itna pasand aaya tha ke woh baar baar wahi ehsaas jeena chahti thi. Sirf dheele pajame me leta Arjun bhi unki itcha poori karta hua sath he salwar ke upar se woh 46 ke kulhe bade pyaar se dabata leta raha. Mausi ke kulhe bhi unki tarah bejod he the. Khas fulawat aur lambe tagde sharir ke anusar he vishal gaddedar.

"Mausi sach kahu toh aapki mehnat ne aapka sharir bhi nikhar dia hai. Abhi bhi aap kisi ladki se hajaar guna behtar ho.", Arjun ka ishara woh samajh gai thi aur uski ungliya ka apne naram kulho me dhansna bhi pasand aa raha tha.

"Itni he mehnat ke baad tera pyaar mil raha hai toh main santusht hu. Waise tune abhi mausi ko dekha he kaha hai re. Ab jab tere he hawale hai toh poora dekh le. Sach kahu toh tujhe dekh ke lagta hai ke mere is bade sharir ko tu sambhal sakta hai shayad. Tera poora sharir bhi kitna bada aur sakht hai. Chehre se dhokha ho sakta hai lekin baaki chattan sa hai jo mujh jaisi 2 mann (80) ki aurat ko aise upar litaye hai. Ruk jara.", Woh uthne lagi toh Arjun ne unki kamar thapthapa di.

"Upar he baith ke karo na mausi.", Woh sharmati hui fir peeth pe lagi choti chain neeche karne ke baad kamar se pakad kar apne kameej ko jism se alag karti jald he wapis leit gai. Itni he der me Arjun ne dekh lia tha un pahaad se bade stanno ko jo jara bhi latke na the bas ek khas golai aur wajan se bhaari jarur the. Is umar me bhi nipple matar ke daane jaise aur poora jism saaf chikna. Chaati par dono mulayam motte ubhar dabte he uski bhi aa nikal ai.

"Mausi, aapne toh beti paida ki hai fir bhi ye utne bade nahi hai."

"Itne bade poore gaanv me nahi honge aur tujhe ye chhote lagte hai. Besharam.", Woh waise he upar se nirvastra leti dono ke nirvastra seene ki garmi ka sukh le rahi thi. Arjun har maayne me unki takkar ka tha. 46 ke kulhe toh the he woh chuche bhi ratti bhar na chotte the.

"Mera matlab hai ke aapke nipple. Manju ne doodh toh peeya hoga aur mausa ne bhi toh inhe sukh dia hoga. Lekin ye utne bhi bade nahi hai jitne doodh aane se pehle ek aurat ke ho jaate hai."

"Dhatt. Itni jaldi ye dekh liya tune.? Mujhe doodh nahi utra tha kabhi. Rekha ne pilaya na apni laadli ko aur fir uska peit ni bharta tha toh woh gaaye ka peeti thi. Aaahhh.. araam se daba re. Teri mausi tagdi hai lekin jism 10 saal se achoota hai.", Arjun ne dabav se ludhak kar bahar nikal aaye ek bade gubbare se chuche ko hatheli me lete hue pichkane ki koshish ki toh woh bhi dang reh gaya unhe itna thoss aur bhara hua mehsoos karke.

"Mausi ye toh kore he hai jaise lekin itne bade."

"Tere mausa ne dabaye jarur lekin peeye nahi aur fir khurak aur maalish se jyada he bade ho gaye. aahh.. tu hai jo ummm inhe pyaar kar raha hai. Beshak pati hath nahi lagata lekin sharir maine hamesha dhyaan se rakha hai, is aas se ke kabhi toh sukh milega..", Woh thoda upar hui toh Arjun ne dono hath se ek ubhar ko upar karte hue woh bhoora nipple hontho me daba lia. Mausi khud he aage sarakti uske peit se thoda aage aa gai thi. Arjun ne ab dusre ko bhi anguthe se sehlate hue kada karna shuru kar dia.

"Thik kia mausa ne fir.", Arjun ne shararat se itna kehte he dusre wale ko mooh me bhar lia. Woh sach me tarbuj se he the, hari-neeli nasse aur utne he bade gubbare se lekin thos.

"Aahh.. Chal kuch toh thik kia agar tu kehta hai toh.. umm.. ", Aankhen band kiye woh thoda hanfne si lagi thi. Ye sansani ekdum alag aur tej thi jo sharir me adhik bharne ke baad jaise unke peit se neeche utarti hui jaangho ke beech bhuchal le aai thi. Panje Arjun ke seene par dabati woh reh reh ka jhatke khane lagi thi aur jab nashe se bhari aankhen kholi toh hairaan reh gai.

"aahhh.. ye kya karne laga hai tu beta?", Arjun unki sthool motti jaangho ke beech baitha kuch der tak kamar ke thik neeche us 7-8 inch ke nishaan ko dekhne ke baad naram maans ko failate hue 4 inch lambi aur jism ke anusaar he motti fooli hui band choot ko niharne laga. Choot ke itne motte aur ubhre honth toh kalpana se he pare the. Aur woh mulayam silvate unke naram hone ka sanket thi. Khud ko dheela choddta hua woh jaise he un motte makhmali hontho ko failate hue choot ke andruni hisse par honth dabane laga waise he unke charam ka ras mooh me utar gaya. Diwanwar sa woh apni mausi ke younkund ka poora rass jaise choosne he laga tha. Aur uthne ki koshish karti Saroj mausi ka jism bhi itne adhik maje ki wajah se fir dari par ludhak gaya.

"Mausi, ye toh abhi tak jaise kori hai lekin hain badi meethi aur sundar.", Arjun jaise he unki jaangho ki taraf se unke upar jhukta aaya waise he mausi sharam se dusri taraf mooh karti diwar dekhne lagi.

"Tu kya kya karne laga hai re. Aahh.. Ganda kahi ka."

"Atcha nahi laga kya? Woh toh khush ho rahi thi aur itna jyada he khush thi ki dusri baar mooh geela kar dia.", Dono chuche woh masalta hue jaise unka mooh in steering se ghumane laga.

"Badmash. aah. Koi waha bhi ye sab karta hai kya? Lekin pata nahi kyon atcha laga.", Woh khud Arjun ke pajame ko neeche sarkane ki koshish karne lagi thi.

"Waise bataya nahi ke waha se abhi bhi aap aisi kaise ho?"

"Manju operation se hui the re. Uske baad he wajan badha tha aur woh toh waisi he rahegi jaisi thi. Konsa uske andar hamesha kuch ghusa rehta hai.", Sharam abhi bhi bahot aa rahi thi, shaayad jyada isliye kyonki ke naya jawaan ladka un jaisi tagdi aur umar-daraj ko 2 baar bina he milan kiye jhaad chuka tha.

"Ab jaayega andar fir waisi nahi rehne wali. Aur mujhe toh lagta hai aapko mere liye he bacha kar rakha gaya tha. Baal bhi nahi hai udhar toh.", Arjun thoda khull kar masti kar raha tha.

"Sharir bhari hai na toh baal saaf he rakhne padte hai, waise bhi aate he kitne hai. Aur tu kya andar daalega jis se usme badlaav aa jayega re?", Woh hontho par halke se daant dabati Arjun ko dekhne lagi. Mehsoos toh unhe bhi ho raha tha woh sakht motti lakdi sa danda apne naram peit par.

"Aa pehle ye baandho aankho par.", Arjun ko shararat soojhi aur pajama kholne se pehle he usne mausi ki aankho par unka he dupatta atche se bandh dia. Ek pal woh unke is bhadkau badan ko dekhne laga jo murde ka bhi khada kar de. Fir kamre ki khidki ke pas rakhi teil ki shishi uthata woh khud bhi pajama utaar kar unki jaangho ke pas aa baitha.

"Tu kya khel khelne laga hai re? Sharam aa rahi thi iska matlab ab aankhe he band kar dega?"

"Mausi, ap meri pyaari mausi ho na toh thodi der ke liye bas aise he leti raho.", Arjun ne thanda teil unki motti faanko ke beech dhaar se daalna shuru kia aur dusre hath se atche se utne hisse ki malish karne laga, bade halke dabaav se.

"Aahh.. Mere laadle teri he hai mausi lekin teil kyo laga raha hai? Waha pehele he geelapan bahot hai. aahh lekin tere hatho se bhi atcha lag raha hai re.", Mausi toh khud he paanv failane lagi thi. Kulhe itne motte the ki choot ka upar hissa 8 inch upar tha jameen se aur aage jaha tak cheera ja raha tha uske baad dono kulhe aapas me buri tarah chipke the. Arjun ne waise he unki choot me apni teil se sani ungli dabai toh woh pyaar se andar baithne lagi. Choot ka andar ka hissa bhi puri fulawat liye gelly sa naram tha.

"Umm... Teri toh ungli bhi maja de rahi hai. .aahh.. Mere mooh par bhi kapda bandh de re. Besharam hoti ja rahi hu main"

"Mausi aankhen band isliye ki hai ke mooh khol sako. Ab mehsoos karna kya andar karne wala tha main.", Arjun ne apna supada chikna karne ke baad 2-3 baar unke bhari kulho ke beech fansate hue jaise poora uttejit karna he thik samjha. Usko ye tarika maa ne sikhaya tha aur apne khulho ke beech itna motta garam gola sa mehsoos karte he mausi bhi uttejjana se usko dabati hui baaki kaam kar rahi thi. Aakriti se toh unhe bhi pata chal gaya tha ke woh kyaa cheej hai lekin aakar se khauf paida hone laga tha. Jaise he woh laal dehakta hua lund choot ke saamne aaya toh Arjun ne motti ubhri choot ki lakeer me usko dabate hue upar neeche karke bata dia tha ke mausi ka sochna sahi hai.

"Ye.. ye wahi hai jo main soch rahi hu? Tera kuch alag he hai beta.", Arjun muskurate hue unke upar leitne laga. Naram sharir par jab uska chauda sharir chaa gaya toh ek hath se unki rass bahati muniya ke chotte se chedd par bade desi tamatar sa supada dabaye rakhte hue usne dheemi awaaj me kaha.

"Ab woh badalne wali hai mausi lekin aapka sharir jhel lega. Thoda dard jarur hoga.", Iske sath he unhe kuch bolne dene se pehle he hontho ko kass ke mooh me dabata hua woh apni kamar ek madhyam se dhakke se aage thelta hua unke kandhe ko jameen se lagata ruk gaya. Choot beshak kachi na thi lekin supada jarurat se jyada he bhaynkar tha jisne band gulab ki doddi se chedd ko failate hue khile hue gulaab sa chauda dia tha. Mausi tadfi lekin Arjun ne unhe kaabu kiye rakha. Poora supada aur uske aage ka ek inch hissa andar bhuchal le aaya tha. Ab lund se hath hatata woh bade aram se unka woh baya ubhar masalta hua bhoore nipple ko sehla raha tha.

"Ye kya kar dia beta.. aahhh.. maa.. bhains ka khoota toh nahi baad dia re andar...", Hontho alag karte hue unhe saanse khulkar saans lene deta woh ab kandhe par rakha hath unke chehre par fira raha tha. Jaha dard aur paseena chaya tha.

"Mausi, agar aisa na karta toh ye andar na le paati. Bas thodi der baad aap khud sath dene lagogi.", Arjun ko aasha thi ki unki motti choot thodi he der me sab sehan kar legi aur fir kakh ka sahara leta woh dono ubhre nipple choosta hua utne he lund se chudai karne laga.

"aahh.. dukhta hai re.. jaise choot he bahar aa rahi ho iske sath.. umm.. Thoda pyaar se kar na.", Dheemi gati se bhi choot me jalan ho rahi thi jiski badi wajah nichli kinari se tapakta khoon tha. Choot ka maans thoda bahar aata aur fir andar chala jata lekin jald he teil aur chootras ke mishran ki wajah se woh bhains ka khoota aadhe ke lagbhag andar utarne laga tha. Chuche fir se phool kar kasne lage aur ab dard ki awaaj me halka khuamaar aane laga tha.

"Mausi sach me aap na bilkul band jaisi he ho. Aah.. mera bhi ye jaise taise he andar ja raha hai.", Arjun ko jab mushkil hone lagi toh mausi ne khud ghutne upar karte hue usko rasta dia. Beshak dard tha lekin woh jaanti thi ki aaj poora mard mila hai jo us se pyaar bhi kar raha hai aur dhyaan bhi rakh raha hai.

"Ummm.. Arjun.. aah.. itne se he kar re. Pata nahi aur le bhi sakegi ya nahi. ummmmaaahh.. thoda kass ke masal bobbe.", Ab woh thoda khulkar bolne lagi aur Arjun bhi naram jaangho ke beech har baar thoda aage sarakta 7 inch andar ghusaye choot ka roop badalne me laga tha. Honth choosta woh dono gubbare upar se niche tak masalta mausi ko woh sukh de raha tha jis se poori tarah anjaan thi. Unke Pati toh bas salwar kholi, andar dala aur kameej ke upar se he chuche masal kar andar khali ho gaye wala karyakram he jaante the lekin Arjun kaamkala me mausi ko naye he aasman me le aaya tha.

"Mausi ummm.. aapko atcha lag raha hai na ab.?", Chiknai aur sharir ke itne gadraye hone ki wajah se ab lund kuch araam se 5-6 inch tak andar bahar hone laga tha. Andar ki diwar se ragadta woh apne sath he choot ki safed bahar jama karta mausi ko fir se sakhalan par le aaya.

"Aaahhhh.. maa... Arjun.. ab bahut tej kuch nikalne wala hai..aahhh..", Aur sachmuch is baar jaise barsaat si hone lagi thi andar. Kaamras ka chiddra jaise poora aaj he khula tha aur itni maatra me kisi ko jhadte Arjun ne dusri baar dekha tha lekin ye fir bhi kahi jyada he tha. Lund bahar kheenchte he 'pukk' ki awaaj hui aur halke dard ke baad sharir shaant ho gaya tha mausi ka. Angoche se apna lund aur choot ko saaf karte hue usne kapda geela karke aur behtar tarike se sab nishaan saaf kiye. 10 saal se band woh gulabi patte ab choot ka mooh khole fir se bahar jhaank rahe the. Rangheen taral reh reh kar boond ke roop me bahar nikal raha tha. Arjun ne fir se thoda teil supade par lagane ke baad mausi ko karwat ke bal kar lia aur khud saamne aa kar woh bhari patt apni taang par rakhta thode kam dabaav se he firse unki naram sankari choot me lund bharta lipat gaya. Dupatta ab khol kar ek taraf rakh dia tha.

"Siiii.. aahhh. Itni ummeed na thi re.. aahh.. peit tak lagta hai aise karne se aur tera ye hai kitna bada? Maa...", Arjun unka ek vishaal kulha dabata neeche se dono ke kamar chipkayae araam se poora andar karke and chote lekin gehre dhakke de raha tha.

"Mausi ummm.. Sach kahu toh aapse pehle bhi main humbister hua hu.. aahh.. Lekin woh ladki sundar bahot thi par aapka mukabla woh sapne bhi nahi kar sakti.", Arjun ki aisi baat sunn kar mausi bhi sharamti siskati uske gale lag gai. Upar wale hath ko ab woh kulho ki darar me daba raha tha lekin aadhi ungliya darar me dhansne ke bawjood woh unke chedd se dur he raha. Waha ki narmahat aur chiknapan Arjun ko aur uttejjit kar raha tha. Lund jald he fatne ki haalat me aane laga jo Arjun ke liye thoda hairani ki baat thi. Woh milan ko aadhe ghante tak leke ja skta tha lekin itne kasaav aur geelepan me mausi ka bhaaripan bhi uske lund ko dabochta hua manjil par le jane laga tha.

"Ummm.. Beta .. aahhh. 10 saal band rehne se toh nadi bhi bhar jaati hai ye toh chotti si choot hai. aah.. lekin tu mmmm.. ssiii. tu pyaar karna bade atche se jaanta hai.. Main itni jaldi fir se aane lagi hu.. aahh.."

"Mausi dheela chhodo..aahh.. Mera..

"Andar he bhar de re.", Woh jaise kaampi thi unki pakad me Arjun bhi hill na saka aur sharir ki saari taqat jaise lund se nikalti mausi ke andar bahrne lagi thi. Sharir uska bhi reh reh kar jhatke kha raha tha. 5 minute tak dono he achet se ek dusre se lipte rahe aur Saroj ko aisa lag raha tha jaise kisi ne choot me garam pani ka nall khol dia ho. Safed ras me lithda woh atyadhik motta ling bahar nikalte he veerya ka dher dari par jamne laga.

"Hey raam.. Tu ghoda hai jo itna paani nikalta hai.?", Lekin Arjun shaant leta muskurata raha. Saroj bhi uthne ki asafal koshish karne ke baad Arjun ke seene par ludhak gai. Aankhen band kiye bhi woh unke gaddedar chucho ko sehlane laga.

"Oh besharam. Tu abhi toh tabahi macha ke ruka hai ab fir se inhe masalne laga. Aah.. sach me re tune kya haal kia hai meri dulari ka...", Unhe bhi Arjun ka sehlana pasand aa raha tha lekin woh sharmili aurat ek baar ki chudaai se he uska mooh me toh lene nahi wali thi.

"Oh mausi, aapke sath toh main har ghante baad karne ko tayaar hu. Pata hai pehli baar aisa laga hai jaise mere sharir se sara rass nichod lia gaya ho. Lekin fir bhi dil kehta hai ke rukna nahi hai.", Arjun ki baat sunkar khud mausi ne apna gaal uske hontho par rakh dia.

"Pata hai tu mera hamesha se chaheta raha hai. Rekha bolti thi ki Manju uski beti hai aur main hamesha usko ek taraf rakhke tujhe apne se laga leti thi. Aur kuch samay ke liye dono dur bhi ho gai thi jab tu ghar se bahar ho gaya tha."

"Mausi, mujhe pata hai aap hamesha mujhe Manju se dur rakhti thi aur sara pyaar mujhpe lutati thi. Kaise bhool sakta hu ke Manju ko aapne thappad maar kar uski kiss-miss mujhe de di thi. Bahot roi thi woh lekin baad me mujhse boli thi ki woh mere liye he leke aai thi lekin maa ne chinn ke de di thi. Aapko lagta hai ke main kuch bhool sakta hu? Woh ghar aapne baad me pakka kia hai, pehle waha samne aangan hota tha aur peeche kamre. Sath wala bhi hissa aapke pas tha jaha ab peela makan hai.", Arjun waise he leta ab bade pyaar se mausi ke baal aur sar sehla raha tha.

"Tujhe yaad hai ye sab?"

"Mujhe toh ye bhi yaad hai mausi ke aap us waqt hamare ghar aane ke baad kaise dupatta utaar kar rakh deti thi. Jaise bojh liye firti ho."

"Aur Manju?", Ab in 2 shabdo ne Arjun ke dil me hulchal macha di thi. Woh aankhen band kiye bas khamosh ho gaya tha.

"Tu Manju ki taraf khud he khincha aaya ya woh aai thi?

"Uska gussa waisa he hai. Ungli dikhate hue woh bolti gusse me hai lekin pata hai woh aisa tab karti hai jab usko woh pasand ho. Main jara der se samjha tha."

"Aur woh tere naam ka sindoor lagaye he fero se pehle he byaah kar chuki thi.", Bomb fodd dia tha mausi ne jaise ye baat kehke.

"Ye kaise hua? Aapne khud dekha ye sab?"

"Shaant reh mere bete. Woh jisne dekha tha wo Rekha thi. Lekin us se pehle mai tum dono ka pyaar sunn chuki hu, upar wale kamre me. Rekha ne kaha bhi tha ke ye dono barbaad na kar de sabkuch kyonki woh tujhse pyaar karti hai aur tu uska hamesha se ladla raha hai."

"Mausi maa ko pata hai ye sab?", Arjun ke paseene jaha se aa rahe the waha najara nahi ja sakti thi.

"Woh pata hai kaun hai? Jisne tunjhe dhadkan di hai. Ek tu he hai jiski wajah se Rekha khush hai aur ab tu usko wapis khushiyan dene laga hai. Ghar aayega toh dikhaungi ke woh khud ye sindoor wali baat kehne ke baad teri photo de kar gai thi. Aur hum dono ke sapne utne poore nahi bhi hue lein tera aur Manju ka pyaar bahot hai beta."

"Mausi woh meri patni hai aur aapke hone wali naati-natin ki maa. Pehli baar toh dil nahi pehchana tha lekin hum dono is jagah he the jab milan hua tha. Manju khud dil me aise utar gai thi ki main pachta raha tha."

"Woh tu matt he keh beta. Sambhal lia jayega sab aur main janti hu Preeti tera adhikaar hai, pyaar hai aur zindagi. Lekin Manju ki jitne naseeb me ho utna saath nibhana beta."

"Mausi, vaada karta hu ki Manju hamesha suhagan rahegi. Baaki jo ho na ho. Woh dur rahe ya kareeb lekin aaj aapse bhagwan ko sakshi maan kar kehta hu ki Manju par mera adhikar rahega. Rameshwar ji ki pratigya aur mera unko dia vachan bhi rukawat bana toh Arjun mitt jayega lekin Manju hamesha apne sthaan par rahegi.", Arjun itna keh he raha tha ke mausi ne uske hontho par ungli rakh di.

"Woh maayne nahi rakhta Arjun, tumhe bas us ghar ko surakshit rakhna hai. Manju ki zindagi woh khud he sanwaar sakti hai lekin ghar par lage grahan ko tumhe hatana hoga. Rekha kehti hai ke uska Arjun sabkuch kar sakta hai, tum yahi mere pas aa kar apni maa ko sarthak karna. Main samajh lungi ki meri beti hamesha suhagan rahegi aur mujhpar tumhara adhikar aisa he rahega. Main khud tumhe us vachan se mukt karti hu. Yaad rakhna ke tumhare dadaji he sabkuch hai.", Mausi is wakt apna dard bhoolti hui uth kar khadi ho gai thi.

"Ab mausi ko bhi pyaar karne lage ho toh sath toh chalo jara.", Arjun unhe niharta hua uth gaya.

"Waise mausi, Manju aap par he gai hai."

"Haan pata hai.Shayad mere se bhi khas hai jo meri beti hone ke bawjood tera jhel bhi gai aur nautanki bhi barkaraar rakhi usne. Aur tune baad me kuch kiya kya uske sath?", Mausi ab kamre ke bahar khadi thi uska sahara liye.

"Woh kehti hai ke mere bache ki he maa bann na hai usko."

"Jitna tu nikaal raha hai toh mujhe khud darr lag raha hai ke kahi tu maa aur beti dono he na peit se kar de.", Arjun hansta hua unhe utha kar haudi me ghus gaya. Pal bhar ke liye paani bahar uchla aur fir dono ek dusre se lipte sab bhool kar ek dusre me ko choomne lage.

"Tu bas wahi kar jo tu chahta hai. Sab jhanjhat ke baad main khud kehti hu ki jo tu chahega wahi hoga. Bas laksya matt bhool.", Mausi ne us thande paani me he uska ling pakad kar apne chedd par rakhte hue aanken band kar li. Sarr se woh bhayankar naag apni pasand ki jagah baith gaya tha
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Gollu kamar me chhura rakhe Arjun ke aane ki pratiksha kar raha tha jo ghante bhar pehle andar gaya tha. Dosti ka karz adaa karne ka waqt aa gaya tha.
Gjb
 
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