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Incest RISTON KE RAKH ( maa beta story)

coollog

Love mom
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Congratulations for new update and
Stroy ko English-hindi main likho
Ho sake to gif add karo story ke hisab se
Got it! Here's the revised version without the headlines:

कहानी का नाम: रिश्तों की राख

मुख्य पात्र:

1. एरा (Era)
एरा एक खूबसूरत, आत्मनिर्भर महिला है और एक मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ है। उसने अपने माता-पिता के दबाव में आकर अपने पति अमर और बेटे करण को छोड़कर अमेरिका में नई ज़िंदगी शुरू की थी। अब वो अपने फैसले पर पछता रही है और करण को ढूंढकर अपनी गलती सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।


2. करण (Karan)


एरा और अमर का बेटा। अपनी माँ के बिना बिता हुआ बचपन और पिता को खोने का दर्द करण को कठोर और आत्मनिर्भर बना चुका है। अपनी दादी के साथ गाँव में रहने वाला करण अब अपनी माँ से नफरत करता है और अपने दिल में बहुत सारे सवाल छिपाए हुए है।


3. अमर (Amar)
एरा के पति और करण के पिता। अमर ने एरा के जाने के बाद गहरे दुख में अपनी जान दे दी थी। उनकी मौत ने करण को गहरी चोट पहुंचाई और उसे जीवन के कठिन रास्तों पर अकेला छोड़ दिया।


4. दादी (Karan’s Grandmother)
करण की दादी, जिन्होंने अमर की मौत के बाद करण को अपनी गोद में पाला। वह करण के लिए माँ और पिता दोनों बनीं और उसकी परवरिश में अपने मूल्यों को प्राथमिकता दी





9. गीता शर्मा

एरा की सेक्रेटरी, जो हमेशा उसके साथ खड़ी रहती है और एरा के दर्द को समझती है।

भविष्य में करन के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।








कहानी की थीम:

यह कहानी माँ-बेटे के बीच की नफरत, पछतावे और टूटे रिश्तों को जोड़ने की जद्दोजहद की है। रिश्तों की राख से एक नई शुरुआत करने की कोशिश, जहाँ हर पात्र अपनी गलतियों से सीखते हुए प्यार और माफी की ओर बढ़ता है।


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इरा एक खूबसूरत, आत्मविश्वासी और महत्वाकांक्षी महिला थी। वह अपने आकर्षक व्यक्तित्व और स्मार्ट फैसलों से हमेशा सबका ध्यान आकर्षित करती थी। उम्र के इस पड़ाव में भी, वह किसी युवा लड़की से कम नहीं लगती थी। उसकी हरी आँखें, घने काले बाल, और पतला सुंदर शरीर उसे सबकी नज़र में आकर्षक बनाते थे। इरा, जो अब अमेरिका में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की सीईओ के पद पर काबिज़ थी, एक समय में दुनिया के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक मानी जाती थी।

वह कंपनी की मीटिंग्स और ग्लोबल विस्तार योजनाओं की जिम्मेदारी संभालते हुए अपने कर्मचारियों से संवाद करती। पर, उसके चेहरे पर एक गहरी चुप्प थी, एक ऐसा दर्द जिसे वह छुपाने की कोशिश करती थी, लेकिन कभी न कभी वह बाहर आ ही जाता था।

आज की मीटिंग में इरा ने एक नए प्रोजेक्ट पर चर्चा करने के लिए टीम को बुलाया था। उसका कार्यालय एक आलीशान और अत्याधुनिक था, जो उसकी सफलता को दिखाता था। उसके चारों ओर उसके कर्मचारी बैठकर उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। इरा की आवाज़ में एक विशेष कशिश थी, जो सभी को प्रभावित करती थी।

"हमें इस प्रोजेक्ट को अगले तीन महीनों में लांच करना है," इरा ने गंभीरता से कहा। "हमारे पास सही टीम है, और मैं जानती हूं कि हम इसे बिना किसी मुश्किल के पूरा कर सकते हैं। हर एक डिटेल को ध्यान से देखना है।"

"जी, मैम," सभी कर्मचारी सहमति में सिर हिलाते हैं।

"और ध्यान रखें," इरा ने फिर से अपनी आवाज़ को थोड़ी तीव्रता से उठाया, "हमारा उद्देश्य केवल मुनाफा नहीं है, बल्कि इस प्रोजेक्ट को समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने के रूप में देखना है।"

कर्मचारी एक दूसरे को देखने लगे। इरा का नेतृत्व और दूरदृष्टि उन्हें प्रेरित करती थी, लेकिन एक बात जो सबको चौंकाती थी, वह यह थी कि इरा के भीतर एक हल्की सी उदासी छुपी रहती थी। कभी-कभी वह अपनी समस्याओं का सामना नहीं कर पाती थी और फिर वही गहरी चुप्प उसे घेर लेती थी।

इरा का जीवन एक सुखद यात्रा नहीं था। उसकी सफलता की कुंजी उसके अंदर की इच्छाशक्ति और संघर्ष थी। एक वक्त था जब वह एक छोटे शहर की लड़की थी, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए बड़ी उम्मीदों के साथ घर से निकली थी। उसने सबकुछ छोड़ा था, अपने बेटे करण को, अपने पति को, और अपने पुराने जीवन को।

"मैम, क्या सब कुछ ठीक है?" एक कर्मचारी, जिसे गीता नाम था, ने इरा से हल्के से पूछा। इरा की आँखों में एक आंसू था, जो वह तुरंत पोंछने की कोशिश करती थी, लेकिन गीता ने देख लिया।

"हाँ, गीता। सब ठीक है," इरा ने जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में वह विश्वास नहीं था, जो आमतौर पर होती थी। वह जानती थी कि गीता को उसका दर्द महसूस हो रहा था।

"अगर आपको कुछ चाहिए, तो बताइए," गीता ने समझदारी से कहा।

"नहीं, गीता। मुझे सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना है," इरा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा। लेकिन उसके भीतर का दर्द अब भी उसे परेशान कर रहा था।

हालाँकि इरा का बाहरी जीवन बेहद सफल था, पर उसकी निजी ज़िंदगी की स्थिति कुछ और ही थी। उसे अपने बेटे करण के बारे में बार-बार याद आता था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे को छोड़ दिया था, और अब वह उसे ढूँढने की कोशिश कर रही थी। इरा को यह एहसास हो गया था कि अब वह जिस सफलता का स्वाद चख रही है, वह उसके बेटे के बिना अधूरी है।

कभी वह सोचती थी कि अगर वह उस वक्त करण को छोड़ने के बजाय उसे साथ लेकर जाती, तो उसका जीवन कितना अलग होता। लेकिन, एक गहरी चाहत थी कि वह अब सब कुछ ठीक कर ले, और वह अपने बेटे के पास वापस लौटे।

"मैम, आपको हमारे नए प्रोजेक्ट के लिए क्या उम्मीदें हैं?" एक कर्मचारी ने गंभीरता से पूछा।

"मैं उम्मीद करती हूँ कि आप लोग मेहनत करें और हर एक चुनौती का सामना करें। हमारा उद्देश्य इस प्रोजेक्ट को सफलता की ऊँचाईयों तक ले जाना है, लेकिन इसके लिए हमें सबका सहयोग चाहिए होगा," इरा ने आश्वस्त करते हुए कहा।

यह मीटिंग खत्म हो गई, लेकिन इरा के चेहरे पर गहरी चिंता थी। उसके अंदर एक ऐसी कशिश थी, जो किसी को दिखाई नहीं देती थी, लेकिन वह खुद जानती थी कि उसकी ज़िंदगी में कुछ जरूरी चीज़ें अधूरी हैं।

उसके मन में हमेशा एक सवाल रहता था - "क्या मैं अपने बेटे को फिर से पा सकूँगी?"

इरा ने अपने जीवन को साकार किया था, लेकिन वह यह जानती थी कि हर सफलता की एक कीमत होती है। और उसकी सफलता की कीमत थी, उसका बेटा। वह उसे ढूंढने के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार थी, चाहे उसे अपने अतीत से जूझना पड़े या अपनी गलती को सुधारने के लिए अपनी सारी खुशियाँ छोड़नी pare


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इरा ऑफिस से घर लौटने के बाद अपने बेडरूम में आकर बिस्तर पर बैठ गई। दिन भर की व्यस्तता और जिम्मेदारियों के बाद, अब उसे अपने अकेलेपन का सामना करना था। वह गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे अपने जूते उतारती है और बिस्तर पर गिर पड़ती है। उसके मन में आज फिर वही सवाल उठता है, जो कई सालों से उसे परेशान कर रहा था – क्या उसने सही किया था? क्या वह कभी अपने बेटे को वापस पा सकेगी?

बेहद थकी हुई इरा ने अपना ध्यान बिस्तर के सामने रखे एक पुराने फ़्रेम की ओर मोड़ा। वह तस्वीर उसकी आँखों के सामने खड़ी हो गई, जिस पर उसके बेटे करण का चेहरा था। वह तस्वीर एक पुरानी याद को ताजा कर देती थी – वह दिन जब उसने उसे छोड़ दिया था, जब उसने अपना करियर बनाने के लिए उसे छोड़ दिया था। उसे याद था कि करण बहुत छोटा था उस समय, और वह बेहद नाज़ुक था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया।

इरा की आँखों में गहरी उदासी थी, और उसने धीरे से तस्वीर की ओर देखा। यह वही तस्वीर थी, जो उसने अपने बेटे के कमरे से ले ली थी। जब वह घर छोड़ने वाली थी, तब करण की छोटी सी मुस्कान और उसकी मासूमियत उसे हमेशा याद दिलाती थी। यह वही तस्वीर थी, जो वह अक्सर रात को अपने कमरे में देखती थी, जब अकेले होती थी, और अपने बेटे से बात करने की कोशिश करती थी।

इरा की आँखों में आंसू थे, जो धीरे-धीरे उसकी आँखों से बहने लगे। वह यह महसूस करती थी कि कितने सालों से वह अपनी सफलता की चादर ओढ़े हुए थी, लेकिन उसने अपनी खुशियाँ खो दी थीं। अपनी जड़ों को भूल चुकी थी, और अब वह अकेली थी।

"करण..." इरा ने धीमी आवाज में कहा। "क्या तुम मुझे माफ करोगे?" वह अपने बेटे से यह सवाल करती थी, लेकिन जवाब कभी नहीं आता था। क्या उसने अपने बेटे को छोड़कर सही किया था? क्या वह कभी उस प्यार को वापस पा सकेगी, जिसे उसने अपने बेटे से दूर रहकर खो दिया था?

इरा ने अपनी आँखों को पोंछते हुए फिर से तस्वीर की ओर देखा। "जब तुम छोटे थे, तब मैं तुम्हें हर दिन देखती थी, तुम्हारी छोटी सी मुस्कान को, तुम्हारी मासूम बातें। और अब, मैं अपनी आँखों में तुम्हारी यादों को संजोकर जी रही हूँ। क्या तुम्हारे दिल में मेरे लिए अब भी कोई जगह है, करण?" इरा ने अपनी आँखों को बंद करते हुए कहा, उसकी आवाज में अब गहरी उदासी थी। "क्या तुम मुझे कभी अपनी माँ मान सकोगे?"

तस्वीर की ओर देखते हुए, उसकी आँखों में यह गहरी कशिश थी कि वह वापस लौट सके। वह चाहती थी कि उसे अपने बेटे से एक बार फिर वही प्यार और संबंध मिल जाए। वह चाहती थी कि उसका बेटा उसे फिर से अपने दिल से स्वीकार करे, लेकिन अब वह जानती थी कि ऐसा बहुत मुश्किल था। उसने जो गलती की थी, वह अब कभी सुधर नहीं सकती थी।

उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे, और उसका चेहरा गुस्से और पश्चाताप से भरा हुआ था। "मैं नहीं जानती कि तुम्हारा दिल मुझसे कभी मिलेगी या नहीं। लेकिन एक चीज़ मैं जानती हूँ कि मेरे दिल में तुम्हारी यादें हमेशा बनी रहेंगी।" इरा ने कहा, और उसकी आवाज में अब भी वही दुख था।

वह तस्वीर को अपने हाथों में उठाकर उसके करीब लाई और उसे अपने गालों पर रखा। "तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, करण। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकती। क्या तुम अब भी मुझे अपनी माँ के तौर पर अपनाना चाहोगे? क्या तुम्हारे दिल में वो प्यार फिर से जिंदा हो सकेगा?" इरा की आवाज में अब उम्मीद थी, लेकिन वह जानती थी कि यह उम्मीद शायद कभी पूरी नहीं होगी।

उसने तस्वीर को फिर से दीवार पर टांग दिया, लेकिन उसे महसूस हो रहा था कि इस तस्वीर के आगे वह खुद कितनी छोटी और अकेली थी। इरा जानती थी कि वह अब अपने बेटे को वापस पाने के लिए जो भी कर सकती थी, उसे करेगी। वह हर कोशिश करने के लिए तैयार थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका बेटा उसकी इस कोशिश को स्वीकार करेगा या नहीं।

"करण, मुझे तुमसे मिलने की एक आखिरी कोशिश करने का हक चाहिए," इरा ने अपनी आँखों में फिर से आशा भरते हुए कहा। "क्या तुम कभी मेरे पास आओगे, मुझे गले लगाओगे? क्या तुम मेरे लिए वह प्यार फिर से दे पाओगे?" उसकी आवाज़ अब बहुत हल्की थी, जैसे वह खुद भी अपनी उम्मीदों से टूट चुकी हो, लेकिन फिर भी अपने बेटे को पाकर उसे हर हाल में चाहती थी।

अब इरा ने खुद से वादा किया कि वह कभी हार नहीं मानेगी। चाहे जो भी हो, वह अपने बेटे को वापस पाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेगी। उसकी आँखों में यह नयी उम्मीद थी।

इरा ने तस्वीर से फिर से आँखें हटाईं और खुद को समेटते हुए कहा, "मैं तुमसे प्यार करती हूँ, करण, और मैं तुम्हे कभी नहीं छोड़ूंगी।"

इस समय, इरा को यह अहसास हुआ कि यह प्यार कभी खत्म नहीं हो सकता। भले ही वह अपने बेटे से दूर थी, लेकिन उसका दिल हमेशा उसी के पास रहेगा।



एरा का दिल जैसे बर्फ से भी ठंडा हो गया था। वह तस्वीर में अपने बेटे को देख रही थी, और उसके अंदर का दर्द और बढ़ता जा रहा था। आँसुओं से भरी उसकी आँखें अब उसे ये समझाने की कोशिश कर रही थीं कि वह उस दर्द को महसूस करे जो उसने कभी न कभी किया था। जैसे ही एरा ने तस्वीर को फिर से देखा, उसे अपनी छोटी सी कटी-फटी यादें ताजा हो आईं। वो यादें जो उसकी आत्मा में हमेशा के लिए दर्ज हो गई थीं।

वह यादें, जब करण छोटा था, और वह अपनी माँ की गोदी में झूलते हुए अपनी प्यारी मुस्कान के साथ दुनिया से खेलता था। एरा ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस छोटे से मासूम बेटे की मुस्कान को अपनी आँखों में बसाने की कोशिश की। उसे आज भी उसकी उस मुस्कान की जरुरत थी। लेकिन उसकी आँखों के सामने एक सन्नाटा था।

एरा के होंठ एक धीमी आवाज में कांपे। "करण, मुझे तुमसे बहुत प्यार था... लेकिन मैंने तुम्हें छोड़ दिया। क्या तुम मुझे फिर से अपना सकोगे?"

उसकी यह बात सिर्फ एक सवाल नहीं थी, बल्कि उसके दिल का एक टूटा हुआ टुकड़ा था, जिसे वह छुपा नहीं पाई। तस्वीर को देखते हुए उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे, लेकिन उसे लग रहा था कि ये आँसू अब उसे कोई राहत नहीं देंगे। उसे बस यह चाहिए था कि वह अपनी गलती का प्रायश्चित कर सके।

वह तस्वीर को अपनी आँखों से चिपकाकर देख रही थी और किसी तरह से सोच रही थी कि क्या वह कभी करण को फिर से अपनी माँ बना पाएगी? क्या वह कभी अपने बेटे का दिल फिर से जीत सकेगी? लेकिन उसके अंदर के सवालों का कोई जवाब नहीं था।

इतना ही नहीं, अचानक एरा को ऐसा महसूस हुआ कि कमरे में कुछ बदल रहा है। जैसे किसी ने उसके सामने आकर उसके साथ बातें की हो। उसे लगा जैसे करण सचमुच उसके पास हो, और उसकी आँखों में दर्द और सवाल था। "माँ, तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया था?"

एरा के दिल में एक अजीब सा दर्द हुआ। उसकी हिम्मत अब टूट चुकी थी, और उसने अपने हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया। वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसका दिल जैसे चीरने वाला दर्द महसूस कर रहा था। "करण... मेरे बेटे... मुझे माफ़ कर दो। मैं जानती हूं कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है।"

उसकी आवाज़ में इतने कषट थे कि कमरे का हर कोना उसे सुन सकता था। उसकी आँखें जल चुकी थीं, और उसके चेहरे पर वो चुप्प थी जो कभी उसे समझ में नहीं आती थी।

लेकिन जैसे ही वह और रोई, उसे अचानक ऐसा लगा कि उसके सामने करण एक बार फिर खड़ा है। उसकी आँखों में वही मासूमियत और वही सवाल था। "माँ, क्या तुम मुझे फिर से अपना सकोगी?"

यह सवाल उसे अब और भी बेहोश करने वाला था। एरा अपने आँसुओं को नहीं रोक पाई। "करण, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। तुम मेरी जिंदगी हो। मुझे माफ़ कर दो।"

उसकी आवाज में यह दर्द था, और वह चाहती थी कि वह अब कभी न रुक सके, लेकिन जैसे ही उसने पलटकर देखा, कमरे में सन्नाटा था। सब कुछ हलचल में डूबा हुआ था। और तभी उसे समझ में आया कि जो कुछ उसने महसूस किया वह सिर्फ एक सपना था। वह एक ऐसा सपना था जिसे वह खो चुकी थी।

कमरे में एक ठंडी हवा आई, जैसे वह सपना अचानक टूट चुका हो। एरा ने अपनी आँखें खोलीं, और वह यही सोचने लगी कि कहीं वह अपनी गलती के लिए कभी माफ़ी पा सकेगी या नहीं।

तभी, कमरे का दरवाजा खुला और उसकी माँ, पिता, भाई, और भाभी एक-एक करके कमरे में आए। वे एरा को देखते हुए चुपचाप खड़े थे। हर एक के चेहरे पर कुछ छिपा हुआ था। एरा ने जब उनकी आँखों में देखा, तो उसे समझ में आया कि वे सब उसे समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे भी उस दर्द को महसूस नहीं कर पा रहे थे जो उसने खोया था।

उसका भाई, जो हमेशा उससे बात करने के लिए हिम्मत देता था, अब चुप था। उसकी आँखों में भी गहरी उदासी थी। वह बस खड़ा रहा, और उसके पास कोई शब्द नहीं थे।

एरा ने आँखों में आँसू समेटते हुए कहा, "मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूं कि करण मुझे फिर से अपना पाएगा या नहीं?" उसकी आवाज़ अब भी कांप रही थी।

तभी उसके पिता ने धीरे से उसकी पीठ थपथपाई। "बिलकुल, एरा। समय कभी भी सजा नहीं देता। तुम जो कुछ भी कर सकती हो, करो। लेकिन तुम्हें एक बात याद रखनी होगी... कभी भी अपने फैसले के लिए खुद को दोषी मत समझो।"

एरा की आँखें एक पल के लिए और भर आईं, लेकिन उसने धीरे से उन्हें पोंछ लिया। उसे अब एक उम्मीद का नया सूरज दिखाई दे रहा था। वह जानती थी कि अब शायद वह करण से माफ़ी मांग सकेगी।

लेकिन वह जानती थी कि उसका सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। उसे अपने बेटे को खोने के बाद खुद को पाना था।

एरा अपने किए फैसलों पर पछता रही थी। वो सोच रही थी कि कैसे उसने अपनी खुशियों को छोड़कर अपने परिवार की इच्छाओं को पूरा करने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। उसने अपने पति अमर और बेटे करण को छोड़कर, अपनी मां-बाप के दबाव में आकर, अमरीका आकर एक नई जिंदगी शुरू की थी। वह मानती थी कि यह निर्णय सही था, लेकिन अब उसे यह समझ में आ रहा था कि कुछ फैसले एक व्यक्ति की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देते हैं, और उसने जो किया, उसका खामियाजा उसे अब भुगतना पड़ रहा था।

एरा के दिल में यह सवाल बार-बार गूंजता था कि क्या उसने सही किया था? क्या अगर वह अमर और करण को छोड़कर अपने माता-पिता की बातों को न मानती तो उसकी जिंदगी अलग होती? क्या अगर वह उनके साथ रहती, तो क्या वह आज खुश होती?

एरा के मन में यह विचार घूमते रहते थे कि उसने अपने बेटे करण को क्यों छोड़ा। उस वक्त, जब वह अमर और अपने बेटे के साथ खुश थी, उसे क्यों लगा कि वह अपनी मां-बाप के पास जा सकती थी, और फिर उसके बाद क्या हुआ, वह जानती थी। उसे यह भी समझ में आ रहा था कि उस समय उसके सामने कुछ और ही दृश्य थे, जो अब उसे साफ दिखाई दे रहे थे। उसकी मां-बाप ने उसके सामने एक अलग ही दुनिया का सपना रखा था, और वह इस सपने का पीछा करते हुए अपनी असल जिंदगी और असल खुशियों को भूल गई थी।

उसे याद था कि जब उसने अमर से शादी की थी, तब वह बहुत खुश थी। दोनों ने अपने रिश्ते को समझा, उसकी नींव मजबूत थी, और उनके बीच एक प्यार था, जो बहुत गहरा था। लेकिन फिर उसके माता-पिता का दबाव बढ़ा, और वह समझ नहीं पाई कि वह किसे चुनें—अपनी फैमिली या अपने पति और बेटे को। उसके माता-पिता ने उसे यह समझाया था कि अमरीका में एक नई जिंदगी शुरू करने से वह कुछ बड़ा हासिल कर सकती है, लेकिन उसकी यह सोच एक भटकाव की तरह साबित हुई।

आज एरा जानती थी कि उसने सब कुछ छोड़कर जो फैसला लिया था, वह गलत था। जब वह अपनी दुनिया छोड़कर अमरीका आई, तो उसका दिल टूट चुका था। वह अपनी मां-बाप के साथ भी खुश नहीं थी, क्योंकि वह हमेशा यह महसूस करती थी कि उसने किसी को छोड़ दिया था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे करण को सबसे ज्यादा दुख पहुंचाया था, और इस दर्द को वह हमेशा महसूस करती थी।

वह सोचती थी कि क्या उसने सही किया? अगर वह अमर और करण को छोड़कर अपनी मां-बाप के पास नहीं जाती, तो क्या वह आज खुश रहती? अब उसकी जिंदगी सिर्फ खालीपन से भरी हुई थी, और वह समझती थी कि इस खालीपन को भरने का कोई तरीका नहीं है।

उसे याद आया कि एक दिन उसने अमर से बात की थी, और वह उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि वह गलत कर रही है। अमर ने उससे कहा था, "तुम्हें हमारे साथ रहना चाहिए था, एरा। तुम्हें अपने बेटे के साथ रहना चाहिए था। तुमने अपनी खुशियों को छोड़ दिया है, और मैं जानता हूं कि तुम कभी भी अपनी गलतियों का पछतावा करोगी।"

आज एरा को यही बात महसूस हो रही थी। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे करण को खो दिया था। उसने कभी उसे खुद के पास रखा था, और आज जब वह अपने बेटे के बारे में सोचती थी, तो उसे उसकी आँखों में वह मासूमियत और प्यार दिखता था, जो वह कभी छोड़ नहीं पाई थी। वह अब कभी भी उसे वापस नहीं पा सकती थी।

उसने अपने आप से कहा, "क्या मैं कभी करण को फिर से पा सकूँगी?" यह सवाल उसका पीछा नहीं छोड़ता था, और उसने अपने मन से इसका जवाब भी ढूंढ लिया था। वह जानती थी कि जो कुछ भी हुआ, अब वह उसे बदल नहीं सकती थी, और उसके फैसले ने उसे दर्द और अकेलेपन के रास्ते पर चला दिया था।

एरा की आँखों में आँसू थे, और उसने अपने हाथों से उन आँसुओं को पोंछा। वह जानती थी कि उसने जो किया, वह अब उसे कभी वापस नहीं पा सकती थी। लेकिन फिर भी, उसके मन में उम्मीद थी कि कभी न कभी वह अपने बेटे और पति को ढूंढ पाएगी। एरा का दिल अब भी वही चाहता था, जो उसने खो दिया था—अपना परिवार।

वह महसूस करती थी कि शायद अब वह अपने फैसलों को सुधार नहीं सकती, लेकिन वह चाहती थी कि किसी तरह उसे और अमर को फिर से मिलाया जाए। उसकी आत्मा, उसकी अंतरात्मा में यह विचार था कि क्या वह कभी अपने परिवार को सही तरीके से वापस पा सकती है?



एरा अपने अतीत के हर एक पल को याद करती थी, और जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसकी सज़ा और बढ़ती गई। वह खुद से सवाल करती थी, "क्या मैंने सही किया था? क्या सच में मुझे अपने बेटे और पति को छोड़कर अपनी मां-बाप के साथ जाना चाहिए था?"

उसने कई सालों तक इस सवाल से लड़ाई की थी, लेकिन अब भी उसे इसका जवाब नहीं मिल सका था। उस दिन के बाद, जब उसने अमर और करण को छोड़ा था, उसकी जिंदगी बस एक खामोशी और पछतावे में बदल गई थी। अब वह हर रात अपने बेटे के बारे में सोचती थी, और वह सोचने लगी थी कि क्या उसकी गलती की वजह से करण की ज़िंदगी भी नष्ट हो गई थी।

कभी-कभी, उसे ऐसा लगता था कि वह अमर और करण के बिना जी नहीं सकती थी। लेकिन फिर उसके मन में एक और सवाल उठता था, क्या वह सही कर रही थी? क्या वह इस दर्द को सहन करने के लिए तैयार थी?

एरा ने अपने बेटे करण को ढूंढने के लिए बहुत मेहनत की थी। उसने कई जांच एजेंसियों से संपर्क किया था, और उन्हें अपनी पूरी ज़िंदगी का हिसाब देने के लिए तैयार थी। वह जानती थी कि उसे अपने बेटे को वापस पाना था, और इसके लिए वह कोई भी रास्ता अपनाने के लिए तैयार थी।

धीरे-धीरे, उसने कुछ ऐसे डिटेक्टिव्स को हायर किया, जो इस काम में माहिर थे। उसे उम्मीद थी कि वे उसे करण तक पहुँचाने में मदद करेंगे। डिटेक्टिव्स ने कड़ी मेहनत की, और कुछ महीनों बाद, उन्होंने एरा को एक ख़बर दी, जो उसके दिल को तोड़ने वाली थी।

"मैम," एक डिटेक्टिव ने उसे बताया, "हमने कुछ जानकारियाँ हासिल की हैं। आपके बेटे करण के बारे में पता चला है। जब आप अमेरिका गईं थीं, उसके कुछ समय बाद अमर ने ग़म में अपनी जान दे दी थी। और उसके बाद, करण को उसकी दादी ने अपने साथ ले लिया और एक छोटे से गाँव में रहने लगे।"

यह खबर सुनते ही एरा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसका दिल बुरी तरह से टूट गया, और उसके अंदर की सारी उम्मीदें चूर-चूर हो गईं। वह बस एक ही बात बार-बार सोचने लगी थी, "क्यों? क्यों ऐसा हुआ? क्या मैंने गलत किया?"

"मुझे माफ़ कर दो, करण," उसने अपने बेटे के बारे में सोचते हुए धीमे से कहा, "मुझे माफ़ कर दो, कि मैंने तुम्हें छोड़ दिया। मुझे पता था कि तुम अकेले हो गए थे, और फिर भी मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकी।"

एरा को अब महसूस हो रहा था कि उसने जो किया, उसका खामियाजा उसे हमेशा भुगतना होगा। वह जितना भी आगे बढ़ने की कोशिश करती थी, कुछ न कुछ उसे हमेशा उस अतीत की ओर खींच ले आता था।

"क्या तुम मुझे माफ करोगे, करण?" एरा ने अपने दिल से यह सवाल किया। "क्या तुम मुझे फिर से अपने पास आने दोगे? क्या तुम मुझे फिर से अपनी माँ के रूप में स्वीकार करोगे?"

वह बुरी तरह से रो रही थी। उसकी आँखों में वह हीन भावना और पछतावा था, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल था। वह जानती थी कि अब करण का वापस लौटना संभव नहीं था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे को हमेशा के लिए खो दिया था।

अब एरा को यह समझ में आ गया था कि उसने अपनी जिंदगी के सबसे बड़े फैसले को कितना गलत लिया था। वह सोचती थी, "क्या मैं अब भी अपने बेटे के पास जा सकती हूँ? क्या मेरे पास उसे वापस पाने का कोई रास्ता है?"

फिर भी, एरा की उम्मीदें और उसकी आत्मा ने उसे कभी हार मानने की अनुमति नहीं दी। वह जानती थी कि एक दिन वह अपने बेटे को ढूंढ निकालेगी। वह जानती थी कि वह अपने बेटे से मिलकर उसे वो सारी चीज़ें दे सकती थी, जो उसने उसे नहीं दी थीं।

एरा अपने आप से कहती थी, "मैं कभी हार नहीं मानूंगी। मुझे बस अपने बेटे को वापस पाना है।"

लेकिन फिर उसे याद आया कि वह कितना भी कोशिश करे, वह कभी अपनी गलतियों को नहीं बदल सकती थी। उसे महसूस हुआ कि जो कुछ भी हो चुका है, वह अब कभी भी वापस नहीं आएगा। और यही सोचते हुए, एरा के दिल में एक गहरी उदासी भर गई थी।

उसने अपने आप से यह वादा किया, "मैं अब अपनी गलती का अहसास कर रही हूँ। मुझे पता है कि मैंने क्या खो दिया है, और अब मुझे इसे ठीक करना है।"

एरा को अब यह भी समझ में आ गया था कि वह जब तक अपने बेटे से नहीं मिलेगी, तब तक वह सुकून से नहीं जी सकती थी। वह सिर्फ एक ही चीज़ चाहती थी—अपने बेटे का चेहरा देखना। उसे बस यही लगता था कि अगर वह करण को फिर से देख पाएगी, तो शायद वह अपने दर्द और पछतावे को थोड़ा कम महसूस कर पाएगी।

उसने अपने अंदर एक नई ताकत पाई थी। अब वह जानती थी कि वह अपने बेटे को ढूंढेगी, चाहे जो भी हो। और इस बार, वह उसे कभी नहीं खोने देगी।




रात का समय था। एरा अपने माता-पिता, भाई, भाभी और उनके बच्चों के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठी हुई थी। मेज पर स्वादिष्ट पकवानों की भरमार थी, पर उस रात का माहौल खाने से ज़्यादा भावनाओं से भरा हुआ था। एरा ने अपनी प्लेट में खाना तो परोसा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। उसके मन में सिर्फ़ एक ही बात घूम रही थी—करन।

विक्रम (एरा के पिता):
"तो... एरा," उन्होंने एक लंबी सांस लेते हुए बात शुरू की, "हमने तय कर लिया है कि अगले हफ्ते भारत जाएंगे।"

टेबल पर अचानक शांति छा गई। हर कोई उनके शब्दों को समझने की कोशिश कर रहा था। एरा ने धीरे से अपना सिर उठाया और अपने पिता की ओर देखा।

एरा (चौंकते हुए):
"क्या... क्या कहा आपने? हम भारत जा रहे हैं?"

विक्रम ने सिर हिलाकर हामी भरी।

विक्रम:
"हां। करन को ढूंढने के लिए।"

यह सुनते ही एरा की आंखों में आंसू छलक पड़े। वह इतनी भावुक हो गई कि बोल भी नहीं पा रही थी। उसके दिल में करन की यादें हिलोरें मारने लगीं।

संध्या (एरा की मां):
"हम सब तुम्हारे साथ हैं, बेटा। अब और विलंब नहीं करेंगे। करन को वापस लाना ही होगा।"

एरा की आंखें भर आईं। उसने अपनी मां के हाथ थाम लिए।

एरा (आवाज़ भर्राई हुई):
"मां, मैंने करन को बहुत दर्द दिया है। क्या वो मुझे कभी माफ करेगा?"

संध्या:
"वक़्त हर जख्म को भर देता है, बेटी। पर तुम्हें अपना दिल मज़बूत रखना होगा। करन तुम्हारा खून है। वो तुम्हें ज़रूर माफ करेगा।"

इस बातचीत के बीच एरा का भाई, अभिषेक, जो आमतौर पर हंसी-मज़ाक में माहिर था, गंभीर हो गया।

अभिषेक:
"दीदी, तुमने जो किया वो आसान नहीं था, लेकिन अब पीछे मुड़ने का समय नहीं है। करन को ढूंढकर ही चैन मिलेगा।"

अंजलि (अभिषेक की पत्नी):
"और हम सब तुम्हारे साथ हैं।"

एरा ने सबकी ओर देखा। वह भावनाओं के जाल में फंसी हुई थी। इतने सालों से जो बोझ उसके दिल पर था, वह अब धीरे-धीरे हल्का महसूस कर रही थी।

एरा:
"पापा, क्या आपने सारी तैयारी कर ली है?"

विक्रम:
"हां, टिकट्स और रहने का इंतज़ाम हो गया है। हमने डिटेक्टिव्स को भी निर्देश दे दिए हैं। हमें बस करन के गांव जाना है।"

अभिषेक (हल्की मुस्कान के साथ):
"और हां, तुम टेंशन मत लेना। हम वहां घूमने भी जाएंगे।"

इस पर सभी हंस पड़े, माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

एरा (थोड़ी मुस्कुराते हुए):
"अभि, तुम हमेशा मेरी टेंशन कम कर देते हो।"

अभिषेक:
"क्या करूं, दीदी? तुम्हें हंसाना मेरी ड्यूटी है।"

रात के खाने के बाद भी एरा का दिल करन की यादों में डूबा हुआ था। उसने अपने पिता के फैसले को दिल से स्वीकार कर लिया था।

एरा (अपने आप से):
"करन, मैं आ रही हूं। इस बार तुम्हें अपनी मां का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।"

उसकी आंखों में दृढ़ निश्चय की चमक थी।


करण का परिचय

करण, एरा का बेटा, जो कि अब कई सालों से अपनी दादी के साथ गाँव में रहता है, अपनी ज़िन्दगी में एक अजनबी सा मोड़ लेकर आगे बढ़ रहा था। बचपन की वो हंसी-खुशी, प्यार और ममता, जो उसे अपनी मां और पिता से मिली थी, अब उसकी यादों में धुंधली हो गई थी। वह एक इंट्रोवर्ट और सख्त दिल का लड़का बन चुका था। उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल अपनी दादी का साथ देना और अपनी छोटी सी दुकान चलाना था।

वह गाँव के चौराहे पर एक छोटी सी मैकेनिक की दुकान चलाता था। वहाँ लोग अपनी बाइक और गाड़ी की मरम्मत के लिए आते थे, और करण को देखकर लगता था जैसे वो किसी फिल्म का हीरो हो। उसकी चौड़ी कांधें, मजबूत कद, और घुंघराले बाल उसकी अलग पहचान बनाते थे। उसकी आँखें, जो हमेशा शांत और गंभीर रहती थीं, कभी भी किसी से मिलकर हंसती नहीं थीं।

करण का रूप और व्यक्तित्व

करण का चेहरा किसी आदर्श युवक जैसा था, काले बाल घुंघराले, जो उसके माथे पर हमेशा गिरे रहते थे। उसकी आँखों में गहरी नीली चमक थी, जैसे सागर की लहरें हो। उसकी मजबूत कद-काठी और चौड़े कंधे उसे और भी आकर्षक बनाते थे। जब वह गाँव की गलियों से गुजरता, तो लोग उसे दूर से पहचान लेते थे। उसकी आँखों में एक गहरी चुप सी थी, एक ऐसा ग़म जो उसने कभी किसी से साझा नहीं किया था।

उसकी शरीर की ताकत को देखकर लगता था कि वह किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है, लेकिन उसकी व्यक्तित्व में एक ठंडी शांति थी। वह दूसरों से मेल-मिलाप करने में बहुत ही कम रुचि दिखाता था। उसकी दुकान पर आकर लोग काम करवाते, लेकिन करण हमेशा बिना किसी से ज्यादा बात किए बस अपने काम में व्यस्त रहता था। उसकी स्थिति यही थी कि वह ज्यादा किसी से घुलता-मिलता नहीं था, और न ही कोई उसे जान पाता था।

करण का जीवन और उसकी दादी

करण का जीवन, अपनी दादी के साथ बिताने में गुजर रहा था। उसकी दादी, जो बहुत ही सख्त और समझदार महिला थी, ने उसे अपना जीवन सिखाया था। वह जब भी किसी के पास से गुजरता, उसकी आँखों में एक शांति का सा अहसास होता था, जैसे वह दुनिया से कटकर बस अपनी दादी के पास ही जीता था।

गाँव के लोग करण को जानते थे, लेकिन कोई उसे करीब से जानने की कोशिश नहीं करता था। वह हमेशा अकेला ही रहता था, अपने काम में व्यस्त और अपने दादी के साथ। उसकी दादी ने उसे इस काबिल बनाया था कि वह खुद की मदद कर सके, लेकिन करण का दिल अब भी उसके माता-पिता की यादों से भरा था। उसे यह समझने में वक्त लगा था कि उसकी मां ने उसे छोड़ दिया, और वह कभी भी अपने पिता के पास वापस नहीं जाएगा।

करण का ठंडा और चुप्पा व्यक्तित्व

उसके अंदर एक ठंडी खामोशी थी, जो उसे औरों से अलग करती थी। वह ज्यादा बातें नहीं करता था, बस वही करता था जो उसे करना था। उसका चुप्पापन उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुका था। गाँव के लोग कहते थे कि करण कभी किसी से बात नहीं करता, लेकिन जब भी वह अपने काम में व्यस्त होता, उसकी आँखों में एक अलग ही चमक होती।

करण की दुनिया अब बस उसकी दुकान और दादी तक सीमित थी। एक दिन, जब वह अपनी दुकान पर बैठा था और किसी ग्राहक की गाड़ी की मरम्मत कर रहा था, तभी एक बच्चा आया और उसने पूछा,
बच्चा: "भैया, आप इतने अच्छे क्यों हो?"
करण ने सिर उठाया, लेकिन कुछ नहीं बोला। उसने बस हल्की सी मुस्कान के साथ काम करना जारी रखा।

इस छोटी सी घटना ने उसके चुप रहने के कारणों को और भी गहरा कर दिया था। करण का दिल बहुत बड़ा था, लेकिन वह उसे किसी से साझा नहीं करना चाहता था। वह अपने अंदर के जख्मों को दबाए हुए था, और शायद यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थी।



हालाँकि, वह अपने जीवन में खुश था, लेकिन उसकी यादों में एक खालीपन था, जो कभी पूरा नहीं हो सका। वह नहीं जानता था कि उसकी मां एरा कभी उसे ढूंढने आई थी। एरा ने कभी उससे मिलने की कोशिश नहीं की, और अब वह यही सोचता था कि शायद वह कभी अपनी मां से मिल भी नहीं पाएगा। उसकी दुनिया में सिर्फ उसकी दादी थी, और वह बस अपनी दिनचर्या में खोया रहता था।

लेकिन एक दिन, उसके जीवन में बदलाव आ सकता था, जब उसकी माँ एरा, भारत लौटने का निश्चय करेगी।



गाँव में रहते हुए, करण की दुकान के आसपास कुछ खास लड़कियाँ थीं, जिनकी आँखों में हमेशा एक अलग सा आकर्षण और आँख मिचौली करने का अंदाज़ था। वे गाँव के चौराहे पर आतीं और एक-दूसरे से बातें करतीं, कभी हँसते हुए, कभी शरारत से। उनके बीच करण का नाम हमेशा ही चर्चा का विषय रहता था। कोई भी लड़की जब भी अपनी सहेलियों के साथ वहाँ से गुजरती, तो उसकी नज़रें स्वाभाविक रूप से करण पर ही होतीं।

सपने, शरारतें और छोटी-छोटी चहक—इन सबमें करण की छवि कहीं न कहीं सबसे पहले आ जाती थी। उसकी बड़ी-बड़ी नीली आँखें और घुंघराले बाल जैसे उन लड़कियों के दिलों में हलचल पैदा कर देते थे। वे हमेशा से ही करण के इर्द-गिर्द अपना ध्यान बनाए रखतीं। कभी कभार, वे दुकान के पास से गुज़रते हुए जान-बूझकर आवाज़ में कुछ कह देतीं, ताकि करण उनकी तरफ देखे। उनका दिल उसी पल धड़क उठता था, जैसे ही करण की आँखें उन पर पड़ती थीं।

"किसी दिन तो करण भैया को देखना है ना!"
"तुम्हें क्या लगता है, आज वह फिर हमें देखेगा?"
"मुझे तो लगता है कि वो जानबूझकर ध्यान नहीं देता।"

ऐसी ही चहकती आवाज़ें दिनभर गाँव के चौराहे के आस-पास गूंजती रहतीं। लड़कियाँ हमेशा एक-दूसरे से करण के बारे में बात करतीं, उसकी कद-काठी, उसकी आँखों की चमक, उसकी मुस्कान—सभी कुछ उन्हे खास ही लगता था। कभी कभी, एक लड़की किसी तरह की टिपण्णी करती,
"देखो, इस बार तो करण ने हमें ध्यान से देखा, लगता है वो मुझसे कुछ कहने वाला है।"

और फिर उसकी सहेलियाँ मजाक में कह देतीं, "पागल! वो कभी किसी से बात नहीं करता, छोड़ो! खुद को धोखा दे रही हो।"
लेकिन फिर भी वह लड़की अपनी बात पर अड़ी रहती।

"क्या तुमने देखा, उसकी आँखें कितनी गहरी हैं, जैसे उसमें दुनिया की सारी कहानियाँ समाई हुई हों।"

ऐसे ही छोटे-छोटे वार्तालापों में करण का नाम हमेशा आता रहता। लड़कियाँ उसे लेकर चहकतीं, कभी बग़ैर उसकी तरफ देखे, कभी बिना किसी उद्देश्य के दुकान के पास से गुजरतीं। उनका उद्देश्य सिर्फ करण की आँखों का सामना करना था।

एक दिन की बात है, जब गाँव में मेला लगा था। सभी लड़कियाँ जश्न में शामिल होने के लिए तैयार हो रही थीं। कुछ लड़कियाँ गाने की तैयारी कर रही थीं, कुछ सज-धज कर मेला देखने जा रही थीं, और कुछ ने तो करण को देखने के लिए खास कोशिश की थी। वे जानती थीं कि करण उस दिन भी अपनी दुकान पर बैठा होगा। उनका मन चाहता था कि करण के पास जाकर कुछ बातें करें।

"चलो, आज मैं जाकर करण से बात करती हूँ!" एक लड़की ने साहस जुटाते हुए कहा।
"क्या तुम पागल हो? वो तो हमारी तरफ देखता भी नहीं।" दूसरी लड़की ने चुटकी ली।
"नहीं, देखना! आज तो मैं उसे ज़रूर पकड़ लूंगी!"

आखिरकार, लड़की ने अपनी सहेलियों की बातों को नजरअंदाज करते हुए दुकान की तरफ कदम बढ़ाया। उसके साथ उसकी दूसरी सहेली भी चल पड़ी, और दोनों करण की दुकान के पास पहुँच गईं। करण उस वक्त अपनी दुकान पर ही खड़ा था, किसी बाइक के इंजन को ठीक कर रहा था। लड़कियाँ दूर से उसे देख रही थीं, लेकिन उनमें से एक लड़की ने हिम्मत जुटाते हुए पास जाकर करण से कहा,
"क्या आप मेरी बाइक ठीक कर सकते हैं?"

करण ने उसे देखा, फिर बिना कुछ कहे, सिर झुकाकर बाइक को देखा। लड़कियों की दिल की धड़कन बढ़ गई थी, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अब करण उनसे कुछ बात करेगा। लेकिन करण ने अपनी आँखों को नीचे किया और काम पर ध्यान केंद्रित किया।

"इसकी चाबी दो। मैं देखता हूँ।" करण की आवाज़ में वही ठंडक थी, जो हमेशा रहती थी।

लड़कियाँ थोड़ी मायूस हो गईं, लेकिन फिर भी उनके दिल में ख़ुशी थी, क्योंकि करण ने कम से कम उनसे बात की। वे अपनी चहकते हुए एक-दूसरे से बातें करने लगीं,
"देखा! करण भाई ने हमसे बात की! अब देखो, अगले दिन से हम और भी आसानी से मिल पाएंगे!"

"तुम सही कह रही हो, आज तो वह बहुत शांत लग रहा था। शायद हमें फिर से कोशिश करनी चाहिए।"

वहाँ पर थोड़ी देर और खड़ी रहने के बाद, लड़कियाँ मुस्कुराती हुई चली गईं, लेकिन उनके मन में करण के प्रति एक अजीब सी दीवानगी थी। वे सब एक-दूसरे से कह रही थीं,
"अगर कभी वो हमारी तरफ ध्यान दे, तो हम उसे क्या कहेंगे?"
"मैं तो बस ये कहना चाहूंगी, 'हाय! करण भाई!' और फिर देखते हैं क्या होता
है।"

"मुझे लगता है, करण को हमारी तरह से भी कुछ समझ में आता है। हम फिर से कोशिश करेंगे।"

गाँव में करण को लेकर ये चहक हमेशा बनी रहती थी।

गाँव में एक मेला लग रहा था, और लोग दूर-दूर से इस मेले का हिस्सा बनने के लिए आ रहे थे। वहाँ हर तरफ रौनक थी – रंग-बिरंगे झूले, स्टॉल्स, हंसी-खुशियाँ, और बच्चे खुशियों से झूम रहे थे। लेकिन करण के लिए यह सब कुछ भी मायने नहीं रखता था। वह अपने दो दोस्तों के साथ मेले में आया था, लेकिन उसका ध्यान किसी और चीज़ पर था। उसकी दादी ने उसे जबर्दस्ती मेले में ले जाने की जिद की थी, और अब वह वहाँ खड़ा था, अपने दोस्तों के साथ, जहाँ लड़कियाँ लगातार उसकी तरफ देख रही थीं और कुछ न कुछ बोलने की कोशिश कर रही थीं।

लड़कियाँ उसे देखतीं और उसकी ओर आकर्षित होतीं, लेकिन करण की आँखों में एक गहरी उदासी थी। वह जानता था कि वह इन चीज़ों से दूर रहकर अपनी दुनिया में शांत रहना चाहता था। वह जानता था कि लड़कियाँ उसे आकर्षक समझती थीं, लेकिन वह कभी किसी के साथ अपने दिल की बात नहीं करना चाहता था। उसकी खामोशी में गहरे राज छुपे थे, जो उसने कभी किसी को नहीं बताए थे।

करण और उसके दोस्त

करण के साथ दो और दोस्त थे – अली और मोहन। अली थोड़ा चुलबुला था, और हमेशा किसी न किसी लड़की के साथ बातें करने की कोशिश करता था। वहीं मोहन शांत और विचारशील था, ठीक करण जैसा, लेकिन वह थोड़ी ज्यादा हिम्मत दिखाता था। तीनों दोस्त एक साथ खड़े थे, लेकिन करण का मन कहीं और था।

अली ने देखा कि करण किसी लड़की से बात करने की बजाय, अपने दोस्तों से बातचीत में ज्यादा ध्यान दे रहा था, तो उसने मजाक किया,
"करण, यार, तू तो जैसे लड़की के नाम से डरता है, लड़कियाँ तेरे पास आकर लाइन मारती हैं, और तू उनसे दूर भागता है।" अली ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।

करण ने सिर झुका लिया और बस हल्का सा मुस्कुराया। वह जानता था कि अली मजाक कर रहा है, लेकिन वह इस तरह की बातें कभी नहीं समझ पाता था। मोहन ने बीच में आते हुए कहा,
"तुम दोनों ही लड़की के बारे में कुछ नहीं समझते।"

अली और करण दोनों ही मोहन की तरफ देखने लगे। मोहन थोड़ा गंभीर हो गया और बोला,
"लड़कियाँ कोई खिलौना नहीं होतीं, जिन्हें हम अपनी खुशी के लिए इस्तेमाल करें। वे हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन यह सब केवल तभी सही होता है, जब हम किसी को सच में प्यार करते हैं।"

अली थोड़ा चौंकते हुए बोला,
"क्या बात कर रहे हो तुम? तुम तो हमेशा कहते हो कि लड़की के साथ टाइम पास करो, जब तक मस्ती कर सको। अब क्या हो गया?"

मोहन ने गहरी साँस ली और जवाब दिया,
"देखो, अली, मैं तुमसे ज्यादा बड़ा नहीं हूँ, लेकिन मेरी सोच में एक फर्क है। प्यार सिर्फ एक आकर्षण नहीं होता। यह एक गहरी भावना है, जो कभी भी किसी के साथ गलत नहीं होनी चाहिए। जब तुम किसी को दिल से चाहो, तो तुम्हें सिर्फ उसे ही चाहना चाहिए, न कि अपने फायदे के लिए।"

करण, जो अब तक खामोश था, अपने दोस्तों की बातों को सुनते हुए धीरे से बोला,
"तुम दोनों कुछ भी समझ नहीं पा रहे हो। लड़कियाँ अपनी चाहत नहीं दिखातीं, वे जो महसूस करती हैं, वही कहती हैं। लेकिन प्यार सिर्फ कहने की बात नहीं है। यह तब होता है, जब हम किसी के साथ अपने दर्द और खुशी को साझा करने के लिए तैयार होते हैं। मैं जानता हूँ कि इस वक़्त लड़कियाँ मेरे पास आकर बात करती हैं, लेकिन क्या फर्क पड़ता है? क्या मेरी चुप्पी से किसी का दिल टूटता है?"

अली और मोहन दोनों चुप हो गए। वे समझ गए कि करण की खामोशी में कुछ गहरी बातें थीं, जो उसने अभी तक किसी से नहीं साझा की थीं। अली ने सिर झुका लिया और धीरे से कहा,
"मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम बस डरते हो, करण। डरते हो ये सोचने से कि अगर तुम किसी से अपने दिल की बात करोगे, तो वह तुम्हारे जैसा नहीं होगा।"

करण की आँखों में गहरी उदासी छा गई। वह जानता था कि उसके दोस्तों को वह महसूस नहीं करवा सकता था, जो वह महसूस कर रहा था। वह जानता था कि उसकी खामोशी एक रक्षा कवच है, जो उसे अपनी भावनाओं से दूर रखता है।

"ये सब बातें आसान नहीं हैं, अली।" करण ने कहा, "तुम नहीं समझ पाओगे। जब तुम किसी से प्यार करते हो, तो वह प्यार तुम्हें पूरे दिल से चाहिए होता है। और जब तुम्हारे पास वह नहीं होता, तो तुम बस खामोशी में डूब जाते हो, जैसे मैं डूबता हूँ। यह सिर्फ एक भावना नहीं होती, यह एक असलियत होती है, जो हमें चुप रहने पर मजबूर करती है।"

मोहन ने सिर झुका लिया और कहा,
"तुम सही कह रहे हो, करण। प्यार सिर्फ दिल से नहीं, बल्कि समझ से भी होता है। जब तक तुम किसी को समझने की कोशिश नहीं करोगे, तब तक तुम कभी भी पूरी तरह से उस व्यक्ति से प्यार नहीं कर पाओगे।"

अली चुप हो गया और अपनी सोच में खो गया। वह जानता था कि करण की चुप्पी में बहुत कुछ छिपा था, जो उसने कभी खुद महसूस नहीं किया था।

अचानक, मेले में कुछ हंसी की आवाज़ें आईं। लड़कियाँ फिर से करण के पास आईं, लेकिन इस बार वह बिना किसी झिझक के अपनी बातचीत में शामिल होने का इरादा रखते हुए, उसे चिढ़ाने लगीं।

"देखो, करण! तुम तो हमेशा खामोश रहते हो, क्या तुम्हारा दिल नहीं चाहता कि तुम हमसे बात करो?" एक लड़की ने चिढ़ाते हुए पूछा।

करण ने सिर झुका लिया, फिर एक हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"आप लोग अच्छे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि मेरी दुनिया में और भी बहुत कुछ है, जो मुझे समझने की जरूरत है।"

यह सुनकर लड़कियाँ थोड़ी चौंकीं, लेकिन फिर भी वे उसी तरह से उसके आस-पास घूमने लगीं। करण अब भी अपनी दुनिया में खोया हुआ था, जो कभी भी किसी के लिए नहीं खुलती थी।

बातचीत खत्म हुई, और तीनों दोस्त फिर से अपने रास्ते पर बढ़ गए। करण जानता था कि इस सबका कोई मतलब नहीं था, क्योंकि उसके लिए प्यार और रिश्ते हमेशा कुछ गहरे थे, जो उसने कभी किसी से नहीं कहा था।

अंत में, करण की खामोशी ही उसकी ताकत थी, और लड़कियाँ चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, वह हमेशा अपनी दुनिया में ही रहकर अपने दिल की बातों को सितारों के बीच खो देता था।


Karan मेले से सीधा अपने पापा की कब्र पर गया। रात का समय था, आसमान में घने बादल थे, और हवा में ठंडक बढ़ रही थी। चाँद की रोशनी भी दब सी गई थी, और आसपास का वातावरण शांति में डूबा हुआ था। केवल दूर कहीं कुछ आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन यहाँ सब कुछ शांत था, जैसे दुनिया के बाकी हिस्से से यह जगह एकदम अलग हो।

क़ब्र के पास पहुँचते ही, Karan ने अपनी आँखें बंद की और गहरी सांस ली। उस क़ब्र के पास उसकी पूरी ज़िंदगी की अनकही बातें, वह सारी यादें थीं जो उसने कभी किसी से नहीं बाँटी थीं। क़ब्र के सामने खड़े होकर, Karan ने धीरे से अपना सिर झुका लिया और बोला,

“पापा, तुमसे कुछ बातें करनी हैं। बहुत दिन हो गए, तुमसे कुछ भी कहे बिना। आज बहुत समय बाद लगता है कि शायद तुम मुझे सुन सकोगे।“

Karan के चेहरे पर एक गहरी उदासी थी, आँखों में कुछ बुझी सी लाली थी। उसके लिए यह एक सामान्य दिन नहीं था, बल्कि वह अपने पिता के सामने खड़ा होकर उन सवालों का जवाब ढूंढ रहा था, जो उसने कभी खुद से पूछे थे।

“पापा, तुम मुझे छोड़कर चले गए, और मैं अकेला रह गया। मुझे कभी समझ नहीं आया कि तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया। क्या तुम्हें कभी मेरा ध्यान नहीं आया? क्या तुमने कभी सोचा कि मेरे बिना तुम्हारे बिना मैं क्या करूँगा?”

Karan की आवाज़ में दर्द और गुस्सा था, लेकिन उसका दिल टूटकर भी शांत था। वह अपनी सारी बातें अब अपने पापा से कह रहा था, जैसे यह एक आखिरी मौका था।

“तुम्हें याद है, पापा, जब मैं छोटा था, तब हम दोनों कितने खुश रहते थे। तुम्हारी बाहों में छिपकर मैं दुनिया से लड़ने का साहस पाता था। लेकिन जब तुम मुझे छोड़ गए, तो सब कुछ बदल गया। मैं अकेला हो गया। क्या तुम नहीं जानते थे कि मैं तुम्हारे बिना टूट गया था? क्या तुम नहीं जानते थे कि मुझे किस हद तक तुम्हारी ज़रूरत थी? कभी सोचो, पापा, मैं तो तुम्हारे बिना जी ही नहीं सका।”

Karan ने एक गहरी सांस ली, और फिर आँखें बंद कर लीं। उसे जैसे अपने पापा के साथ बिताए गए वक्त की यादें फिर से ताज़ा हो रही थीं। उसने सिर झुका लिया, और धीरे से बोला,

“मैंने कभी भी किसी से अपने दिल की बात नहीं की। सब मुझसे डरते थे, सब मुझसे दूर रहते थे। क्या तुम नहीं जानते थे, पापा, मुझे प्यार की दरकार थी, मगर मुझे कभी किसी से सच्चा प्यार नहीं मिला। मेरे दिल में हमेशा एक कमी सी थी, और अब तक वो कमी पूरी नहीं हुई। तुम ही तो थे, जिनसे मैं प्यार करना चाहता था, मगर तुम मुझे छोड़कर चले गए, और मैं अकेला रह गया।”

क़ब्र के पास खड़े होकर Karan ने कई बातें की, कुछ अपने मन की, कुछ उन सवालों की जो वह कभी खुद से नहीं पूछ सकता था। उसने कहा,

“क्या तुम जानते हो पापा, कि मैं आज भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुमसे दूर जाने के बाद, मेरी ज़िंदगी की दिशा ही बदल गई। मुझे आज भी लगता है कि अगर तुम होते, तो मेरी ज़िंदगी में वो सब होता जो मैं आज तक चाह रहा था। क्या तुमने कभी सोचा कि अगर तुम मुझे छोड़कर चले गए, तो मेरे साथ क्या हुआ होगा?”

Karan की आवाज़ में गहरी उदासी थी, जैसे वह किसी गहरे अंधकार में खो गया हो। वह अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शब्द उसके पास नहीं थे। उसके लिए शब्दों से ज्यादा ज़रूरी था अपनी आँखों से उन दर्द भरे पलो को महसूस करना, जो वह बहुत पहले अपनी मां के बिना जी चुका था।

“पापा, तुमने हमेशा मुझे ताकत दी थी, और आज मैं खुद को टूटता हुआ महसूस कर रहा हूँ। मुझे अब यह समझ में आ गया है कि तुम्हारी मुझसे दूर जाने के बाद, मुझे वह ताकत खुद से ढूँढनी पड़ी। तुमसे दूर जाने के बाद मैंने जो संघर्ष किए, वह कभी खत्म नहीं हुए। तुम्हारा प्यार और आशीर्वाद मुझे कभी भी समझ में नहीं आया, और अब तक मैंने किसी से वह प्यार नहीं पाया, जो मुझे तुमसे चाहिए था। क्या तुम नहीं जानते थे कि तुम्हारे बिना मैं ज़िंदगी को सही से समझ नहीं पा रहा था?”

क़ब्र के पास खड़ा Karan अब रोने लगा था। उसकी आँखों में आँसू थे, जो अब तक उसने किसी से नहीं दिखाए थे। उसकी पूरी ज़िंदगी एक सवाल बनकर रह गई थी, और वह किसी से उन सवालों का जवाब नहीं पा सका था।

“पापा, तुम्हें याद है कि तुम मुझे हमेशा कहते थे कि लड़ाई और संघर्ष से कभी मत भागो। आज भी मैं उसी रास्ते पर हूँ, उसी संघर्ष में हूँ। लेकिन आज तक मुझे यह समझ में नहीं आया कि तुम मुझे क्यों छोड़ गए। क्या तुमने कभी सोचा था कि तुम्हारी अनुपस्थिति में मैं कैसे जी पाऊँगा? तुमसे मिले हुए वो प्यार भरे पल अब भी मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। जब भी मैं किसी मुश्किल में फंसता हूँ, तब मुझे लगता है कि तुम मेरे पास हो, लेकिन जब मैं देखता हूँ कि तुम नहीं हो, तो फिर से टूट जाता हूँ। तुमसे प्यार करने की इच्‍छा कभी खत्म नहीं होती, पापा।“

Karan फिर से अपनी पूरी ताकत से बोलने लगा,

“तुमसे मिली हुई वो सारी यादें, वो बातें, वे लम्हे, सब कुछ मेरे भीतर हैं। मुझे लगता है कि तुम अभी भी कहीं पास हो, सिर्फ मुझे समझने के लिए नहीं आए। काश, तुम मुझे समझ पाते कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी, पापा। काश तुम मुझे कभी न छोड़ते।”

Karan अब धीरे-धीरे खड़ा होने लगा, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। उसने सिर उठाकर एक आखिरी बार क़ब्र को देखा और फिर अपना चेहरा फिर से झुका लिया।

“पापा, शायद मैं अब समझ चुका हूँ कि तुम्हारी अनुपस्थिति में मुझे खुद को ढूँढना होगा। शायद यही वह रास्ता है, जो मुझे खुद से और तुम्हारे प्यार से जोड़ता है। शायद अब मुझे उस प्यार को अपने भीतर तलाशना होगा, जो तुमने मुझे कभी दिया था। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकता, और शायद यही वह प्यार है, जो मुझे आगे बढ़ने के लिए ताकत देता है।”

क़ब्र के पास खड़ा Karan एक गहरी साँस लेकर वापस मुड़ने लगा। उसकी आँखों में अब भी आँसू थे, लेकिन उसका दिल थोड़ी रा
हत महसूस कर रहा था। शायद अब वह अपने पापा के बिना भी अपनी ज़िंदगी को समझने में सक्षम था।




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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Got it! Here's the revised version without the headlines:

कहानी का नाम: रिश्तों की राख

मुख्य पात्र:

1. एरा (Era)
एरा एक खूबसूरत, आत्मनिर्भर महिला है और एक मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ है। उसने अपने माता-पिता के दबाव में आकर अपने पति अमर और बेटे करण को छोड़कर अमेरिका में नई ज़िंदगी शुरू की थी। अब वो अपने फैसले पर पछता रही है और करण को ढूंढकर अपनी गलती सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।


2. करण (Karan)


एरा और अमर का बेटा। अपनी माँ के बिना बिता हुआ बचपन और पिता को खोने का दर्द करण को कठोर और आत्मनिर्भर बना चुका है। अपनी दादी के साथ गाँव में रहने वाला करण अब अपनी माँ से नफरत करता है और अपने दिल में बहुत सारे सवाल छिपाए हुए है।


3. अमर (Amar)
एरा के पति और करण के पिता। अमर ने एरा के जाने के बाद गहरे दुख में अपनी जान दे दी थी। उनकी मौत ने करण को गहरी चोट पहुंचाई और उसे जीवन के कठिन रास्तों पर अकेला छोड़ दिया।


4. दादी (Karan’s Grandmother)
करण की दादी, जिन्होंने अमर की मौत के बाद करण को अपनी गोद में पाला। वह करण के लिए माँ और पिता दोनों बनीं और उसकी परवरिश में अपने मूल्यों को प्राथमिकता दी





9. गीता शर्मा

एरा की सेक्रेटरी, जो हमेशा उसके साथ खड़ी रहती है और एरा के दर्द को समझती है।

भविष्य में करन के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।








कहानी की थीम:

यह कहानी माँ-बेटे के बीच की नफरत, पछतावे और टूटे रिश्तों को जोड़ने की जद्दोजहद की है। रिश्तों की राख से एक नई शुरुआत करने की कोशिश, जहाँ हर पात्र अपनी गलतियों से सीखते हुए प्यार और माफी की ओर बढ़ता है।


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इरा एक खूबसूरत, आत्मविश्वासी और महत्वाकांक्षी महिला थी। वह अपने आकर्षक व्यक्तित्व और स्मार्ट फैसलों से हमेशा सबका ध्यान आकर्षित करती थी। उम्र के इस पड़ाव में भी, वह किसी युवा लड़की से कम नहीं लगती थी। उसकी हरी आँखें, घने काले बाल, और पतला सुंदर शरीर उसे सबकी नज़र में आकर्षक बनाते थे। इरा, जो अब अमेरिका में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की सीईओ के पद पर काबिज़ थी, एक समय में दुनिया के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक मानी जाती थी।

वह कंपनी की मीटिंग्स और ग्लोबल विस्तार योजनाओं की जिम्मेदारी संभालते हुए अपने कर्मचारियों से संवाद करती। पर, उसके चेहरे पर एक गहरी चुप्प थी, एक ऐसा दर्द जिसे वह छुपाने की कोशिश करती थी, लेकिन कभी न कभी वह बाहर आ ही जाता था।

आज की मीटिंग में इरा ने एक नए प्रोजेक्ट पर चर्चा करने के लिए टीम को बुलाया था। उसका कार्यालय एक आलीशान और अत्याधुनिक था, जो उसकी सफलता को दिखाता था। उसके चारों ओर उसके कर्मचारी बैठकर उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। इरा की आवाज़ में एक विशेष कशिश थी, जो सभी को प्रभावित करती थी।

"हमें इस प्रोजेक्ट को अगले तीन महीनों में लांच करना है," इरा ने गंभीरता से कहा। "हमारे पास सही टीम है, और मैं जानती हूं कि हम इसे बिना किसी मुश्किल के पूरा कर सकते हैं। हर एक डिटेल को ध्यान से देखना है।"

"जी, मैम," सभी कर्मचारी सहमति में सिर हिलाते हैं।

"और ध्यान रखें," इरा ने फिर से अपनी आवाज़ को थोड़ी तीव्रता से उठाया, "हमारा उद्देश्य केवल मुनाफा नहीं है, बल्कि इस प्रोजेक्ट को समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने के रूप में देखना है।"

कर्मचारी एक दूसरे को देखने लगे। इरा का नेतृत्व और दूरदृष्टि उन्हें प्रेरित करती थी, लेकिन एक बात जो सबको चौंकाती थी, वह यह थी कि इरा के भीतर एक हल्की सी उदासी छुपी रहती थी। कभी-कभी वह अपनी समस्याओं का सामना नहीं कर पाती थी और फिर वही गहरी चुप्प उसे घेर लेती थी।

इरा का जीवन एक सुखद यात्रा नहीं था। उसकी सफलता की कुंजी उसके अंदर की इच्छाशक्ति और संघर्ष थी। एक वक्त था जब वह एक छोटे शहर की लड़की थी, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए बड़ी उम्मीदों के साथ घर से निकली थी। उसने सबकुछ छोड़ा था, अपने बेटे करण को, अपने पति को, और अपने पुराने जीवन को।

"मैम, क्या सब कुछ ठीक है?" एक कर्मचारी, जिसे गीता नाम था, ने इरा से हल्के से पूछा। इरा की आँखों में एक आंसू था, जो वह तुरंत पोंछने की कोशिश करती थी, लेकिन गीता ने देख लिया।

"हाँ, गीता। सब ठीक है," इरा ने जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में वह विश्वास नहीं था, जो आमतौर पर होती थी। वह जानती थी कि गीता को उसका दर्द महसूस हो रहा था।

"अगर आपको कुछ चाहिए, तो बताइए," गीता ने समझदारी से कहा।

"नहीं, गीता। मुझे सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना है," इरा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा। लेकिन उसके भीतर का दर्द अब भी उसे परेशान कर रहा था।

हालाँकि इरा का बाहरी जीवन बेहद सफल था, पर उसकी निजी ज़िंदगी की स्थिति कुछ और ही थी। उसे अपने बेटे करण के बारे में बार-बार याद आता था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे को छोड़ दिया था, और अब वह उसे ढूँढने की कोशिश कर रही थी। इरा को यह एहसास हो गया था कि अब वह जिस सफलता का स्वाद चख रही है, वह उसके बेटे के बिना अधूरी है।

कभी वह सोचती थी कि अगर वह उस वक्त करण को छोड़ने के बजाय उसे साथ लेकर जाती, तो उसका जीवन कितना अलग होता। लेकिन, एक गहरी चाहत थी कि वह अब सब कुछ ठीक कर ले, और वह अपने बेटे के पास वापस लौटे।

"मैम, आपको हमारे नए प्रोजेक्ट के लिए क्या उम्मीदें हैं?" एक कर्मचारी ने गंभीरता से पूछा।

"मैं उम्मीद करती हूँ कि आप लोग मेहनत करें और हर एक चुनौती का सामना करें। हमारा उद्देश्य इस प्रोजेक्ट को सफलता की ऊँचाईयों तक ले जाना है, लेकिन इसके लिए हमें सबका सहयोग चाहिए होगा," इरा ने आश्वस्त करते हुए कहा।

यह मीटिंग खत्म हो गई, लेकिन इरा के चेहरे पर गहरी चिंता थी। उसके अंदर एक ऐसी कशिश थी, जो किसी को दिखाई नहीं देती थी, लेकिन वह खुद जानती थी कि उसकी ज़िंदगी में कुछ जरूरी चीज़ें अधूरी हैं।

उसके मन में हमेशा एक सवाल रहता था - "क्या मैं अपने बेटे को फिर से पा सकूँगी?"

इरा ने अपने जीवन को साकार किया था, लेकिन वह यह जानती थी कि हर सफलता की एक कीमत होती है। और उसकी सफलता की कीमत थी, उसका बेटा। वह उसे ढूंढने के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार थी, चाहे उसे अपने अतीत से जूझना पड़े या अपनी गलती को सुधारने के लिए अपनी सारी खुशियाँ छोड़नी pare


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इरा ऑफिस से घर लौटने के बाद अपने बेडरूम में आकर बिस्तर पर बैठ गई। दिन भर की व्यस्तता और जिम्मेदारियों के बाद, अब उसे अपने अकेलेपन का सामना करना था। वह गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे अपने जूते उतारती है और बिस्तर पर गिर पड़ती है। उसके मन में आज फिर वही सवाल उठता है, जो कई सालों से उसे परेशान कर रहा था – क्या उसने सही किया था? क्या वह कभी अपने बेटे को वापस पा सकेगी?

बेहद थकी हुई इरा ने अपना ध्यान बिस्तर के सामने रखे एक पुराने फ़्रेम की ओर मोड़ा। वह तस्वीर उसकी आँखों के सामने खड़ी हो गई, जिस पर उसके बेटे करण का चेहरा था। वह तस्वीर एक पुरानी याद को ताजा कर देती थी – वह दिन जब उसने उसे छोड़ दिया था, जब उसने अपना करियर बनाने के लिए उसे छोड़ दिया था। उसे याद था कि करण बहुत छोटा था उस समय, और वह बेहद नाज़ुक था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया।

इरा की आँखों में गहरी उदासी थी, और उसने धीरे से तस्वीर की ओर देखा। यह वही तस्वीर थी, जो उसने अपने बेटे के कमरे से ले ली थी। जब वह घर छोड़ने वाली थी, तब करण की छोटी सी मुस्कान और उसकी मासूमियत उसे हमेशा याद दिलाती थी। यह वही तस्वीर थी, जो वह अक्सर रात को अपने कमरे में देखती थी, जब अकेले होती थी, और अपने बेटे से बात करने की कोशिश करती थी।

इरा की आँखों में आंसू थे, जो धीरे-धीरे उसकी आँखों से बहने लगे। वह यह महसूस करती थी कि कितने सालों से वह अपनी सफलता की चादर ओढ़े हुए थी, लेकिन उसने अपनी खुशियाँ खो दी थीं। अपनी जड़ों को भूल चुकी थी, और अब वह अकेली थी।

"करण..." इरा ने धीमी आवाज में कहा। "क्या तुम मुझे माफ करोगे?" वह अपने बेटे से यह सवाल करती थी, लेकिन जवाब कभी नहीं आता था। क्या उसने अपने बेटे को छोड़कर सही किया था? क्या वह कभी उस प्यार को वापस पा सकेगी, जिसे उसने अपने बेटे से दूर रहकर खो दिया था?

इरा ने अपनी आँखों को पोंछते हुए फिर से तस्वीर की ओर देखा। "जब तुम छोटे थे, तब मैं तुम्हें हर दिन देखती थी, तुम्हारी छोटी सी मुस्कान को, तुम्हारी मासूम बातें। और अब, मैं अपनी आँखों में तुम्हारी यादों को संजोकर जी रही हूँ। क्या तुम्हारे दिल में मेरे लिए अब भी कोई जगह है, करण?" इरा ने अपनी आँखों को बंद करते हुए कहा, उसकी आवाज में अब गहरी उदासी थी। "क्या तुम मुझे कभी अपनी माँ मान सकोगे?"

तस्वीर की ओर देखते हुए, उसकी आँखों में यह गहरी कशिश थी कि वह वापस लौट सके। वह चाहती थी कि उसे अपने बेटे से एक बार फिर वही प्यार और संबंध मिल जाए। वह चाहती थी कि उसका बेटा उसे फिर से अपने दिल से स्वीकार करे, लेकिन अब वह जानती थी कि ऐसा बहुत मुश्किल था। उसने जो गलती की थी, वह अब कभी सुधर नहीं सकती थी।

उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे, और उसका चेहरा गुस्से और पश्चाताप से भरा हुआ था। "मैं नहीं जानती कि तुम्हारा दिल मुझसे कभी मिलेगी या नहीं। लेकिन एक चीज़ मैं जानती हूँ कि मेरे दिल में तुम्हारी यादें हमेशा बनी रहेंगी।" इरा ने कहा, और उसकी आवाज में अब भी वही दुख था।

वह तस्वीर को अपने हाथों में उठाकर उसके करीब लाई और उसे अपने गालों पर रखा। "तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, करण। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकती। क्या तुम अब भी मुझे अपनी माँ के तौर पर अपनाना चाहोगे? क्या तुम्हारे दिल में वो प्यार फिर से जिंदा हो सकेगा?" इरा की आवाज में अब उम्मीद थी, लेकिन वह जानती थी कि यह उम्मीद शायद कभी पूरी नहीं होगी।

उसने तस्वीर को फिर से दीवार पर टांग दिया, लेकिन उसे महसूस हो रहा था कि इस तस्वीर के आगे वह खुद कितनी छोटी और अकेली थी। इरा जानती थी कि वह अब अपने बेटे को वापस पाने के लिए जो भी कर सकती थी, उसे करेगी। वह हर कोशिश करने के लिए तैयार थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका बेटा उसकी इस कोशिश को स्वीकार करेगा या नहीं।

"करण, मुझे तुमसे मिलने की एक आखिरी कोशिश करने का हक चाहिए," इरा ने अपनी आँखों में फिर से आशा भरते हुए कहा। "क्या तुम कभी मेरे पास आओगे, मुझे गले लगाओगे? क्या तुम मेरे लिए वह प्यार फिर से दे पाओगे?" उसकी आवाज़ अब बहुत हल्की थी, जैसे वह खुद भी अपनी उम्मीदों से टूट चुकी हो, लेकिन फिर भी अपने बेटे को पाकर उसे हर हाल में चाहती थी।

अब इरा ने खुद से वादा किया कि वह कभी हार नहीं मानेगी। चाहे जो भी हो, वह अपने बेटे को वापस पाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेगी। उसकी आँखों में यह नयी उम्मीद थी।

इरा ने तस्वीर से फिर से आँखें हटाईं और खुद को समेटते हुए कहा, "मैं तुमसे प्यार करती हूँ, करण, और मैं तुम्हे कभी नहीं छोड़ूंगी।"

इस समय, इरा को यह अहसास हुआ कि यह प्यार कभी खत्म नहीं हो सकता। भले ही वह अपने बेटे से दूर थी, लेकिन उसका दिल हमेशा उसी के पास रहेगा।



एरा का दिल जैसे बर्फ से भी ठंडा हो गया था। वह तस्वीर में अपने बेटे को देख रही थी, और उसके अंदर का दर्द और बढ़ता जा रहा था। आँसुओं से भरी उसकी आँखें अब उसे ये समझाने की कोशिश कर रही थीं कि वह उस दर्द को महसूस करे जो उसने कभी न कभी किया था। जैसे ही एरा ने तस्वीर को फिर से देखा, उसे अपनी छोटी सी कटी-फटी यादें ताजा हो आईं। वो यादें जो उसकी आत्मा में हमेशा के लिए दर्ज हो गई थीं।

वह यादें, जब करण छोटा था, और वह अपनी माँ की गोदी में झूलते हुए अपनी प्यारी मुस्कान के साथ दुनिया से खेलता था। एरा ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस छोटे से मासूम बेटे की मुस्कान को अपनी आँखों में बसाने की कोशिश की। उसे आज भी उसकी उस मुस्कान की जरुरत थी। लेकिन उसकी आँखों के सामने एक सन्नाटा था।

एरा के होंठ एक धीमी आवाज में कांपे। "करण, मुझे तुमसे बहुत प्यार था... लेकिन मैंने तुम्हें छोड़ दिया। क्या तुम मुझे फिर से अपना सकोगे?"

उसकी यह बात सिर्फ एक सवाल नहीं थी, बल्कि उसके दिल का एक टूटा हुआ टुकड़ा था, जिसे वह छुपा नहीं पाई। तस्वीर को देखते हुए उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे, लेकिन उसे लग रहा था कि ये आँसू अब उसे कोई राहत नहीं देंगे। उसे बस यह चाहिए था कि वह अपनी गलती का प्रायश्चित कर सके।

वह तस्वीर को अपनी आँखों से चिपकाकर देख रही थी और किसी तरह से सोच रही थी कि क्या वह कभी करण को फिर से अपनी माँ बना पाएगी? क्या वह कभी अपने बेटे का दिल फिर से जीत सकेगी? लेकिन उसके अंदर के सवालों का कोई जवाब नहीं था।

इतना ही नहीं, अचानक एरा को ऐसा महसूस हुआ कि कमरे में कुछ बदल रहा है। जैसे किसी ने उसके सामने आकर उसके साथ बातें की हो। उसे लगा जैसे करण सचमुच उसके पास हो, और उसकी आँखों में दर्द और सवाल था। "माँ, तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया था?"

एरा के दिल में एक अजीब सा दर्द हुआ। उसकी हिम्मत अब टूट चुकी थी, और उसने अपने हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया। वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसका दिल जैसे चीरने वाला दर्द महसूस कर रहा था। "करण... मेरे बेटे... मुझे माफ़ कर दो। मैं जानती हूं कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है।"

उसकी आवाज़ में इतने कषट थे कि कमरे का हर कोना उसे सुन सकता था। उसकी आँखें जल चुकी थीं, और उसके चेहरे पर वो चुप्प थी जो कभी उसे समझ में नहीं आती थी।

लेकिन जैसे ही वह और रोई, उसे अचानक ऐसा लगा कि उसके सामने करण एक बार फिर खड़ा है। उसकी आँखों में वही मासूमियत और वही सवाल था। "माँ, क्या तुम मुझे फिर से अपना सकोगी?"

यह सवाल उसे अब और भी बेहोश करने वाला था। एरा अपने आँसुओं को नहीं रोक पाई। "करण, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। तुम मेरी जिंदगी हो। मुझे माफ़ कर दो।"

उसकी आवाज में यह दर्द था, और वह चाहती थी कि वह अब कभी न रुक सके, लेकिन जैसे ही उसने पलटकर देखा, कमरे में सन्नाटा था। सब कुछ हलचल में डूबा हुआ था। और तभी उसे समझ में आया कि जो कुछ उसने महसूस किया वह सिर्फ एक सपना था। वह एक ऐसा सपना था जिसे वह खो चुकी थी।

कमरे में एक ठंडी हवा आई, जैसे वह सपना अचानक टूट चुका हो। एरा ने अपनी आँखें खोलीं, और वह यही सोचने लगी कि कहीं वह अपनी गलती के लिए कभी माफ़ी पा सकेगी या नहीं।

तभी, कमरे का दरवाजा खुला और उसकी माँ, पिता, भाई, और भाभी एक-एक करके कमरे में आए। वे एरा को देखते हुए चुपचाप खड़े थे। हर एक के चेहरे पर कुछ छिपा हुआ था। एरा ने जब उनकी आँखों में देखा, तो उसे समझ में आया कि वे सब उसे समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे भी उस दर्द को महसूस नहीं कर पा रहे थे जो उसने खोया था।

उसका भाई, जो हमेशा उससे बात करने के लिए हिम्मत देता था, अब चुप था। उसकी आँखों में भी गहरी उदासी थी। वह बस खड़ा रहा, और उसके पास कोई शब्द नहीं थे।

एरा ने आँखों में आँसू समेटते हुए कहा, "मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूं कि करण मुझे फिर से अपना पाएगा या नहीं?" उसकी आवाज़ अब भी कांप रही थी।

तभी उसके पिता ने धीरे से उसकी पीठ थपथपाई। "बिलकुल, एरा। समय कभी भी सजा नहीं देता। तुम जो कुछ भी कर सकती हो, करो। लेकिन तुम्हें एक बात याद रखनी होगी... कभी भी अपने फैसले के लिए खुद को दोषी मत समझो।"

एरा की आँखें एक पल के लिए और भर आईं, लेकिन उसने धीरे से उन्हें पोंछ लिया। उसे अब एक उम्मीद का नया सूरज दिखाई दे रहा था। वह जानती थी कि अब शायद वह करण से माफ़ी मांग सकेगी।

लेकिन वह जानती थी कि उसका सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। उसे अपने बेटे को खोने के बाद खुद को पाना था।

एरा अपने किए फैसलों पर पछता रही थी। वो सोच रही थी कि कैसे उसने अपनी खुशियों को छोड़कर अपने परिवार की इच्छाओं को पूरा करने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। उसने अपने पति अमर और बेटे करण को छोड़कर, अपनी मां-बाप के दबाव में आकर, अमरीका आकर एक नई जिंदगी शुरू की थी। वह मानती थी कि यह निर्णय सही था, लेकिन अब उसे यह समझ में आ रहा था कि कुछ फैसले एक व्यक्ति की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देते हैं, और उसने जो किया, उसका खामियाजा उसे अब भुगतना पड़ रहा था।

एरा के दिल में यह सवाल बार-बार गूंजता था कि क्या उसने सही किया था? क्या अगर वह अमर और करण को छोड़कर अपने माता-पिता की बातों को न मानती तो उसकी जिंदगी अलग होती? क्या अगर वह उनके साथ रहती, तो क्या वह आज खुश होती?

एरा के मन में यह विचार घूमते रहते थे कि उसने अपने बेटे करण को क्यों छोड़ा। उस वक्त, जब वह अमर और अपने बेटे के साथ खुश थी, उसे क्यों लगा कि वह अपनी मां-बाप के पास जा सकती थी, और फिर उसके बाद क्या हुआ, वह जानती थी। उसे यह भी समझ में आ रहा था कि उस समय उसके सामने कुछ और ही दृश्य थे, जो अब उसे साफ दिखाई दे रहे थे। उसकी मां-बाप ने उसके सामने एक अलग ही दुनिया का सपना रखा था, और वह इस सपने का पीछा करते हुए अपनी असल जिंदगी और असल खुशियों को भूल गई थी।

उसे याद था कि जब उसने अमर से शादी की थी, तब वह बहुत खुश थी। दोनों ने अपने रिश्ते को समझा, उसकी नींव मजबूत थी, और उनके बीच एक प्यार था, जो बहुत गहरा था। लेकिन फिर उसके माता-पिता का दबाव बढ़ा, और वह समझ नहीं पाई कि वह किसे चुनें—अपनी फैमिली या अपने पति और बेटे को। उसके माता-पिता ने उसे यह समझाया था कि अमरीका में एक नई जिंदगी शुरू करने से वह कुछ बड़ा हासिल कर सकती है, लेकिन उसकी यह सोच एक भटकाव की तरह साबित हुई।

आज एरा जानती थी कि उसने सब कुछ छोड़कर जो फैसला लिया था, वह गलत था। जब वह अपनी दुनिया छोड़कर अमरीका आई, तो उसका दिल टूट चुका था। वह अपनी मां-बाप के साथ भी खुश नहीं थी, क्योंकि वह हमेशा यह महसूस करती थी कि उसने किसी को छोड़ दिया था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे करण को सबसे ज्यादा दुख पहुंचाया था, और इस दर्द को वह हमेशा महसूस करती थी।

वह सोचती थी कि क्या उसने सही किया? अगर वह अमर और करण को छोड़कर अपनी मां-बाप के पास नहीं जाती, तो क्या वह आज खुश रहती? अब उसकी जिंदगी सिर्फ खालीपन से भरी हुई थी, और वह समझती थी कि इस खालीपन को भरने का कोई तरीका नहीं है।

उसे याद आया कि एक दिन उसने अमर से बात की थी, और वह उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि वह गलत कर रही है। अमर ने उससे कहा था, "तुम्हें हमारे साथ रहना चाहिए था, एरा। तुम्हें अपने बेटे के साथ रहना चाहिए था। तुमने अपनी खुशियों को छोड़ दिया है, और मैं जानता हूं कि तुम कभी भी अपनी गलतियों का पछतावा करोगी।"

आज एरा को यही बात महसूस हो रही थी। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे करण को खो दिया था। उसने कभी उसे खुद के पास रखा था, और आज जब वह अपने बेटे के बारे में सोचती थी, तो उसे उसकी आँखों में वह मासूमियत और प्यार दिखता था, जो वह कभी छोड़ नहीं पाई थी। वह अब कभी भी उसे वापस नहीं पा सकती थी।

उसने अपने आप से कहा, "क्या मैं कभी करण को फिर से पा सकूँगी?" यह सवाल उसका पीछा नहीं छोड़ता था, और उसने अपने मन से इसका जवाब भी ढूंढ लिया था। वह जानती थी कि जो कुछ भी हुआ, अब वह उसे बदल नहीं सकती थी, और उसके फैसले ने उसे दर्द और अकेलेपन के रास्ते पर चला दिया था।

एरा की आँखों में आँसू थे, और उसने अपने हाथों से उन आँसुओं को पोंछा। वह जानती थी कि उसने जो किया, वह अब उसे कभी वापस नहीं पा सकती थी। लेकिन फिर भी, उसके मन में उम्मीद थी कि कभी न कभी वह अपने बेटे और पति को ढूंढ पाएगी। एरा का दिल अब भी वही चाहता था, जो उसने खो दिया था—अपना परिवार।

वह महसूस करती थी कि शायद अब वह अपने फैसलों को सुधार नहीं सकती, लेकिन वह चाहती थी कि किसी तरह उसे और अमर को फिर से मिलाया जाए। उसकी आत्मा, उसकी अंतरात्मा में यह विचार था कि क्या वह कभी अपने परिवार को सही तरीके से वापस पा सकती है?



एरा अपने अतीत के हर एक पल को याद करती थी, और जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसकी सज़ा और बढ़ती गई। वह खुद से सवाल करती थी, "क्या मैंने सही किया था? क्या सच में मुझे अपने बेटे और पति को छोड़कर अपनी मां-बाप के साथ जाना चाहिए था?"

उसने कई सालों तक इस सवाल से लड़ाई की थी, लेकिन अब भी उसे इसका जवाब नहीं मिल सका था। उस दिन के बाद, जब उसने अमर और करण को छोड़ा था, उसकी जिंदगी बस एक खामोशी और पछतावे में बदल गई थी। अब वह हर रात अपने बेटे के बारे में सोचती थी, और वह सोचने लगी थी कि क्या उसकी गलती की वजह से करण की ज़िंदगी भी नष्ट हो गई थी।

कभी-कभी, उसे ऐसा लगता था कि वह अमर और करण के बिना जी नहीं सकती थी। लेकिन फिर उसके मन में एक और सवाल उठता था, क्या वह सही कर रही थी? क्या वह इस दर्द को सहन करने के लिए तैयार थी?

एरा ने अपने बेटे करण को ढूंढने के लिए बहुत मेहनत की थी। उसने कई जांच एजेंसियों से संपर्क किया था, और उन्हें अपनी पूरी ज़िंदगी का हिसाब देने के लिए तैयार थी। वह जानती थी कि उसे अपने बेटे को वापस पाना था, और इसके लिए वह कोई भी रास्ता अपनाने के लिए तैयार थी।

धीरे-धीरे, उसने कुछ ऐसे डिटेक्टिव्स को हायर किया, जो इस काम में माहिर थे। उसे उम्मीद थी कि वे उसे करण तक पहुँचाने में मदद करेंगे। डिटेक्टिव्स ने कड़ी मेहनत की, और कुछ महीनों बाद, उन्होंने एरा को एक ख़बर दी, जो उसके दिल को तोड़ने वाली थी।

"मैम," एक डिटेक्टिव ने उसे बताया, "हमने कुछ जानकारियाँ हासिल की हैं। आपके बेटे करण के बारे में पता चला है। जब आप अमेरिका गईं थीं, उसके कुछ समय बाद अमर ने ग़म में अपनी जान दे दी थी। और उसके बाद, करण को उसकी दादी ने अपने साथ ले लिया और एक छोटे से गाँव में रहने लगे।"

यह खबर सुनते ही एरा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसका दिल बुरी तरह से टूट गया, और उसके अंदर की सारी उम्मीदें चूर-चूर हो गईं। वह बस एक ही बात बार-बार सोचने लगी थी, "क्यों? क्यों ऐसा हुआ? क्या मैंने गलत किया?"

"मुझे माफ़ कर दो, करण," उसने अपने बेटे के बारे में सोचते हुए धीमे से कहा, "मुझे माफ़ कर दो, कि मैंने तुम्हें छोड़ दिया। मुझे पता था कि तुम अकेले हो गए थे, और फिर भी मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकी।"

एरा को अब महसूस हो रहा था कि उसने जो किया, उसका खामियाजा उसे हमेशा भुगतना होगा। वह जितना भी आगे बढ़ने की कोशिश करती थी, कुछ न कुछ उसे हमेशा उस अतीत की ओर खींच ले आता था।

"क्या तुम मुझे माफ करोगे, करण?" एरा ने अपने दिल से यह सवाल किया। "क्या तुम मुझे फिर से अपने पास आने दोगे? क्या तुम मुझे फिर से अपनी माँ के रूप में स्वीकार करोगे?"

वह बुरी तरह से रो रही थी। उसकी आँखों में वह हीन भावना और पछतावा था, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल था। वह जानती थी कि अब करण का वापस लौटना संभव नहीं था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे को हमेशा के लिए खो दिया था।

अब एरा को यह समझ में आ गया था कि उसने अपनी जिंदगी के सबसे बड़े फैसले को कितना गलत लिया था। वह सोचती थी, "क्या मैं अब भी अपने बेटे के पास जा सकती हूँ? क्या मेरे पास उसे वापस पाने का कोई रास्ता है?"

फिर भी, एरा की उम्मीदें और उसकी आत्मा ने उसे कभी हार मानने की अनुमति नहीं दी। वह जानती थी कि एक दिन वह अपने बेटे को ढूंढ निकालेगी। वह जानती थी कि वह अपने बेटे से मिलकर उसे वो सारी चीज़ें दे सकती थी, जो उसने उसे नहीं दी थीं।

एरा अपने आप से कहती थी, "मैं कभी हार नहीं मानूंगी। मुझे बस अपने बेटे को वापस पाना है।"

लेकिन फिर उसे याद आया कि वह कितना भी कोशिश करे, वह कभी अपनी गलतियों को नहीं बदल सकती थी। उसे महसूस हुआ कि जो कुछ भी हो चुका है, वह अब कभी भी वापस नहीं आएगा। और यही सोचते हुए, एरा के दिल में एक गहरी उदासी भर गई थी।

उसने अपने आप से यह वादा किया, "मैं अब अपनी गलती का अहसास कर रही हूँ। मुझे पता है कि मैंने क्या खो दिया है, और अब मुझे इसे ठीक करना है।"

एरा को अब यह भी समझ में आ गया था कि वह जब तक अपने बेटे से नहीं मिलेगी, तब तक वह सुकून से नहीं जी सकती थी। वह सिर्फ एक ही चीज़ चाहती थी—अपने बेटे का चेहरा देखना। उसे बस यही लगता था कि अगर वह करण को फिर से देख पाएगी, तो शायद वह अपने दर्द और पछतावे को थोड़ा कम महसूस कर पाएगी।

उसने अपने अंदर एक नई ताकत पाई थी। अब वह जानती थी कि वह अपने बेटे को ढूंढेगी, चाहे जो भी हो। और इस बार, वह उसे कभी नहीं खोने देगी।




रात का समय था। एरा अपने माता-पिता, भाई, भाभी और उनके बच्चों के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठी हुई थी। मेज पर स्वादिष्ट पकवानों की भरमार थी, पर उस रात का माहौल खाने से ज़्यादा भावनाओं से भरा हुआ था। एरा ने अपनी प्लेट में खाना तो परोसा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। उसके मन में सिर्फ़ एक ही बात घूम रही थी—करन।

विक्रम (एरा के पिता):
"तो... एरा," उन्होंने एक लंबी सांस लेते हुए बात शुरू की, "हमने तय कर लिया है कि अगले हफ्ते भारत जाएंगे।"

टेबल पर अचानक शांति छा गई। हर कोई उनके शब्दों को समझने की कोशिश कर रहा था। एरा ने धीरे से अपना सिर उठाया और अपने पिता की ओर देखा।

एरा (चौंकते हुए):
"क्या... क्या कहा आपने? हम भारत जा रहे हैं?"

विक्रम ने सिर हिलाकर हामी भरी।

विक्रम:
"हां। करन को ढूंढने के लिए।"

यह सुनते ही एरा की आंखों में आंसू छलक पड़े। वह इतनी भावुक हो गई कि बोल भी नहीं पा रही थी। उसके दिल में करन की यादें हिलोरें मारने लगीं।

संध्या (एरा की मां):
"हम सब तुम्हारे साथ हैं, बेटा। अब और विलंब नहीं करेंगे। करन को वापस लाना ही होगा।"

एरा की आंखें भर आईं। उसने अपनी मां के हाथ थाम लिए।

एरा (आवाज़ भर्राई हुई):
"मां, मैंने करन को बहुत दर्द दिया है। क्या वो मुझे कभी माफ करेगा?"

संध्या:
"वक़्त हर जख्म को भर देता है, बेटी। पर तुम्हें अपना दिल मज़बूत रखना होगा। करन तुम्हारा खून है। वो तुम्हें ज़रूर माफ करेगा।"

इस बातचीत के बीच एरा का भाई, अभिषेक, जो आमतौर पर हंसी-मज़ाक में माहिर था, गंभीर हो गया।

अभिषेक:
"दीदी, तुमने जो किया वो आसान नहीं था, लेकिन अब पीछे मुड़ने का समय नहीं है। करन को ढूंढकर ही चैन मिलेगा।"

अंजलि (अभिषेक की पत्नी):
"और हम सब तुम्हारे साथ हैं।"

एरा ने सबकी ओर देखा। वह भावनाओं के जाल में फंसी हुई थी। इतने सालों से जो बोझ उसके दिल पर था, वह अब धीरे-धीरे हल्का महसूस कर रही थी।

एरा:
"पापा, क्या आपने सारी तैयारी कर ली है?"

विक्रम:
"हां, टिकट्स और रहने का इंतज़ाम हो गया है। हमने डिटेक्टिव्स को भी निर्देश दे दिए हैं। हमें बस करन के गांव जाना है।"

अभिषेक (हल्की मुस्कान के साथ):
"और हां, तुम टेंशन मत लेना। हम वहां घूमने भी जाएंगे।"

इस पर सभी हंस पड़े, माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

एरा (थोड़ी मुस्कुराते हुए):
"अभि, तुम हमेशा मेरी टेंशन कम कर देते हो।"

अभिषेक:
"क्या करूं, दीदी? तुम्हें हंसाना मेरी ड्यूटी है।"

रात के खाने के बाद भी एरा का दिल करन की यादों में डूबा हुआ था। उसने अपने पिता के फैसले को दिल से स्वीकार कर लिया था।

एरा (अपने आप से):
"करन, मैं आ रही हूं। इस बार तुम्हें अपनी मां का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।"

उसकी आंखों में दृढ़ निश्चय की चमक थी।


करण का परिचय

करण, एरा का बेटा, जो कि अब कई सालों से अपनी दादी के साथ गाँव में रहता है, अपनी ज़िन्दगी में एक अजनबी सा मोड़ लेकर आगे बढ़ रहा था। बचपन की वो हंसी-खुशी, प्यार और ममता, जो उसे अपनी मां और पिता से मिली थी, अब उसकी यादों में धुंधली हो गई थी। वह एक इंट्रोवर्ट और सख्त दिल का लड़का बन चुका था। उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल अपनी दादी का साथ देना और अपनी छोटी सी दुकान चलाना था।

वह गाँव के चौराहे पर एक छोटी सी मैकेनिक की दुकान चलाता था। वहाँ लोग अपनी बाइक और गाड़ी की मरम्मत के लिए आते थे, और करण को देखकर लगता था जैसे वो किसी फिल्म का हीरो हो। उसकी चौड़ी कांधें, मजबूत कद, और घुंघराले बाल उसकी अलग पहचान बनाते थे। उसकी आँखें, जो हमेशा शांत और गंभीर रहती थीं, कभी भी किसी से मिलकर हंसती नहीं थीं।

करण का रूप और व्यक्तित्व

करण का चेहरा किसी आदर्श युवक जैसा था, काले बाल घुंघराले, जो उसके माथे पर हमेशा गिरे रहते थे। उसकी आँखों में गहरी नीली चमक थी, जैसे सागर की लहरें हो। उसकी मजबूत कद-काठी और चौड़े कंधे उसे और भी आकर्षक बनाते थे। जब वह गाँव की गलियों से गुजरता, तो लोग उसे दूर से पहचान लेते थे। उसकी आँखों में एक गहरी चुप सी थी, एक ऐसा ग़म जो उसने कभी किसी से साझा नहीं किया था।

उसकी शरीर की ताकत को देखकर लगता था कि वह किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है, लेकिन उसकी व्यक्तित्व में एक ठंडी शांति थी। वह दूसरों से मेल-मिलाप करने में बहुत ही कम रुचि दिखाता था। उसकी दुकान पर आकर लोग काम करवाते, लेकिन करण हमेशा बिना किसी से ज्यादा बात किए बस अपने काम में व्यस्त रहता था। उसकी स्थिति यही थी कि वह ज्यादा किसी से घुलता-मिलता नहीं था, और न ही कोई उसे जान पाता था।

करण का जीवन और उसकी दादी

करण का जीवन, अपनी दादी के साथ बिताने में गुजर रहा था। उसकी दादी, जो बहुत ही सख्त और समझदार महिला थी, ने उसे अपना जीवन सिखाया था। वह जब भी किसी के पास से गुजरता, उसकी आँखों में एक शांति का सा अहसास होता था, जैसे वह दुनिया से कटकर बस अपनी दादी के पास ही जीता था।

गाँव के लोग करण को जानते थे, लेकिन कोई उसे करीब से जानने की कोशिश नहीं करता था। वह हमेशा अकेला ही रहता था, अपने काम में व्यस्त और अपने दादी के साथ। उसकी दादी ने उसे इस काबिल बनाया था कि वह खुद की मदद कर सके, लेकिन करण का दिल अब भी उसके माता-पिता की यादों से भरा था। उसे यह समझने में वक्त लगा था कि उसकी मां ने उसे छोड़ दिया, और वह कभी भी अपने पिता के पास वापस नहीं जाएगा।

करण का ठंडा और चुप्पा व्यक्तित्व

उसके अंदर एक ठंडी खामोशी थी, जो उसे औरों से अलग करती थी। वह ज्यादा बातें नहीं करता था, बस वही करता था जो उसे करना था। उसका चुप्पापन उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुका था। गाँव के लोग कहते थे कि करण कभी किसी से बात नहीं करता, लेकिन जब भी वह अपने काम में व्यस्त होता, उसकी आँखों में एक अलग ही चमक होती।

करण की दुनिया अब बस उसकी दुकान और दादी तक सीमित थी। एक दिन, जब वह अपनी दुकान पर बैठा था और किसी ग्राहक की गाड़ी की मरम्मत कर रहा था, तभी एक बच्चा आया और उसने पूछा,
बच्चा: "भैया, आप इतने अच्छे क्यों हो?"
करण ने सिर उठाया, लेकिन कुछ नहीं बोला। उसने बस हल्की सी मुस्कान के साथ काम करना जारी रखा।

इस छोटी सी घटना ने उसके चुप रहने के कारणों को और भी गहरा कर दिया था। करण का दिल बहुत बड़ा था, लेकिन वह उसे किसी से साझा नहीं करना चाहता था। वह अपने अंदर के जख्मों को दबाए हुए था, और शायद यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थी।



हालाँकि, वह अपने जीवन में खुश था, लेकिन उसकी यादों में एक खालीपन था, जो कभी पूरा नहीं हो सका। वह नहीं जानता था कि उसकी मां एरा कभी उसे ढूंढने आई थी। एरा ने कभी उससे मिलने की कोशिश नहीं की, और अब वह यही सोचता था कि शायद वह कभी अपनी मां से मिल भी नहीं पाएगा। उसकी दुनिया में सिर्फ उसकी दादी थी, और वह बस अपनी दिनचर्या में खोया रहता था।

लेकिन एक दिन, उसके जीवन में बदलाव आ सकता था, जब उसकी माँ एरा, भारत लौटने का निश्चय करेगी।



गाँव में रहते हुए, करण की दुकान के आसपास कुछ खास लड़कियाँ थीं, जिनकी आँखों में हमेशा एक अलग सा आकर्षण और आँख मिचौली करने का अंदाज़ था। वे गाँव के चौराहे पर आतीं और एक-दूसरे से बातें करतीं, कभी हँसते हुए, कभी शरारत से। उनके बीच करण का नाम हमेशा ही चर्चा का विषय रहता था। कोई भी लड़की जब भी अपनी सहेलियों के साथ वहाँ से गुजरती, तो उसकी नज़रें स्वाभाविक रूप से करण पर ही होतीं।

सपने, शरारतें और छोटी-छोटी चहक—इन सबमें करण की छवि कहीं न कहीं सबसे पहले आ जाती थी। उसकी बड़ी-बड़ी नीली आँखें और घुंघराले बाल जैसे उन लड़कियों के दिलों में हलचल पैदा कर देते थे। वे हमेशा से ही करण के इर्द-गिर्द अपना ध्यान बनाए रखतीं। कभी कभार, वे दुकान के पास से गुज़रते हुए जान-बूझकर आवाज़ में कुछ कह देतीं, ताकि करण उनकी तरफ देखे। उनका दिल उसी पल धड़क उठता था, जैसे ही करण की आँखें उन पर पड़ती थीं।

"किसी दिन तो करण भैया को देखना है ना!"
"तुम्हें क्या लगता है, आज वह फिर हमें देखेगा?"
"मुझे तो लगता है कि वो जानबूझकर ध्यान नहीं देता।"

ऐसी ही चहकती आवाज़ें दिनभर गाँव के चौराहे के आस-पास गूंजती रहतीं। लड़कियाँ हमेशा एक-दूसरे से करण के बारे में बात करतीं, उसकी कद-काठी, उसकी आँखों की चमक, उसकी मुस्कान—सभी कुछ उन्हे खास ही लगता था। कभी कभी, एक लड़की किसी तरह की टिपण्णी करती,
"देखो, इस बार तो करण ने हमें ध्यान से देखा, लगता है वो मुझसे कुछ कहने वाला है।"

और फिर उसकी सहेलियाँ मजाक में कह देतीं, "पागल! वो कभी किसी से बात नहीं करता, छोड़ो! खुद को धोखा दे रही हो।"
लेकिन फिर भी वह लड़की अपनी बात पर अड़ी रहती।

"क्या तुमने देखा, उसकी आँखें कितनी गहरी हैं, जैसे उसमें दुनिया की सारी कहानियाँ समाई हुई हों।"

ऐसे ही छोटे-छोटे वार्तालापों में करण का नाम हमेशा आता रहता। लड़कियाँ उसे लेकर चहकतीं, कभी बग़ैर उसकी तरफ देखे, कभी बिना किसी उद्देश्य के दुकान के पास से गुजरतीं। उनका उद्देश्य सिर्फ करण की आँखों का सामना करना था।

एक दिन की बात है, जब गाँव में मेला लगा था। सभी लड़कियाँ जश्न में शामिल होने के लिए तैयार हो रही थीं। कुछ लड़कियाँ गाने की तैयारी कर रही थीं, कुछ सज-धज कर मेला देखने जा रही थीं, और कुछ ने तो करण को देखने के लिए खास कोशिश की थी। वे जानती थीं कि करण उस दिन भी अपनी दुकान पर बैठा होगा। उनका मन चाहता था कि करण के पास जाकर कुछ बातें करें।

"चलो, आज मैं जाकर करण से बात करती हूँ!" एक लड़की ने साहस जुटाते हुए कहा।
"क्या तुम पागल हो? वो तो हमारी तरफ देखता भी नहीं।" दूसरी लड़की ने चुटकी ली।
"नहीं, देखना! आज तो मैं उसे ज़रूर पकड़ लूंगी!"

आखिरकार, लड़की ने अपनी सहेलियों की बातों को नजरअंदाज करते हुए दुकान की तरफ कदम बढ़ाया। उसके साथ उसकी दूसरी सहेली भी चल पड़ी, और दोनों करण की दुकान के पास पहुँच गईं। करण उस वक्त अपनी दुकान पर ही खड़ा था, किसी बाइक के इंजन को ठीक कर रहा था। लड़कियाँ दूर से उसे देख रही थीं, लेकिन उनमें से एक लड़की ने हिम्मत जुटाते हुए पास जाकर करण से कहा,
"क्या आप मेरी बाइक ठीक कर सकते हैं?"

करण ने उसे देखा, फिर बिना कुछ कहे, सिर झुकाकर बाइक को देखा। लड़कियों की दिल की धड़कन बढ़ गई थी, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अब करण उनसे कुछ बात करेगा। लेकिन करण ने अपनी आँखों को नीचे किया और काम पर ध्यान केंद्रित किया।

"इसकी चाबी दो। मैं देखता हूँ।" करण की आवाज़ में वही ठंडक थी, जो हमेशा रहती थी।

लड़कियाँ थोड़ी मायूस हो गईं, लेकिन फिर भी उनके दिल में ख़ुशी थी, क्योंकि करण ने कम से कम उनसे बात की। वे अपनी चहकते हुए एक-दूसरे से बातें करने लगीं,
"देखा! करण भाई ने हमसे बात की! अब देखो, अगले दिन से हम और भी आसानी से मिल पाएंगे!"

"तुम सही कह रही हो, आज तो वह बहुत शांत लग रहा था। शायद हमें फिर से कोशिश करनी चाहिए।"

वहाँ पर थोड़ी देर और खड़ी रहने के बाद, लड़कियाँ मुस्कुराती हुई चली गईं, लेकिन उनके मन में करण के प्रति एक अजीब सी दीवानगी थी। वे सब एक-दूसरे से कह रही थीं,
"अगर कभी वो हमारी तरफ ध्यान दे, तो हम उसे क्या कहेंगे?"
"मैं तो बस ये कहना चाहूंगी, 'हाय! करण भाई!' और फिर देखते हैं क्या होता
है।"

"मुझे लगता है, करण को हमारी तरह से भी कुछ समझ में आता है। हम फिर से कोशिश करेंगे।"

गाँव में करण को लेकर ये चहक हमेशा बनी रहती थी।

गाँव में एक मेला लग रहा था, और लोग दूर-दूर से इस मेले का हिस्सा बनने के लिए आ रहे थे। वहाँ हर तरफ रौनक थी – रंग-बिरंगे झूले, स्टॉल्स, हंसी-खुशियाँ, और बच्चे खुशियों से झूम रहे थे। लेकिन करण के लिए यह सब कुछ भी मायने नहीं रखता था। वह अपने दो दोस्तों के साथ मेले में आया था, लेकिन उसका ध्यान किसी और चीज़ पर था। उसकी दादी ने उसे जबर्दस्ती मेले में ले जाने की जिद की थी, और अब वह वहाँ खड़ा था, अपने दोस्तों के साथ, जहाँ लड़कियाँ लगातार उसकी तरफ देख रही थीं और कुछ न कुछ बोलने की कोशिश कर रही थीं।

लड़कियाँ उसे देखतीं और उसकी ओर आकर्षित होतीं, लेकिन करण की आँखों में एक गहरी उदासी थी। वह जानता था कि वह इन चीज़ों से दूर रहकर अपनी दुनिया में शांत रहना चाहता था। वह जानता था कि लड़कियाँ उसे आकर्षक समझती थीं, लेकिन वह कभी किसी के साथ अपने दिल की बात नहीं करना चाहता था। उसकी खामोशी में गहरे राज छुपे थे, जो उसने कभी किसी को नहीं बताए थे।

करण और उसके दोस्त

करण के साथ दो और दोस्त थे – अली और मोहन। अली थोड़ा चुलबुला था, और हमेशा किसी न किसी लड़की के साथ बातें करने की कोशिश करता था। वहीं मोहन शांत और विचारशील था, ठीक करण जैसा, लेकिन वह थोड़ी ज्यादा हिम्मत दिखाता था। तीनों दोस्त एक साथ खड़े थे, लेकिन करण का मन कहीं और था।

अली ने देखा कि करण किसी लड़की से बात करने की बजाय, अपने दोस्तों से बातचीत में ज्यादा ध्यान दे रहा था, तो उसने मजाक किया,
"करण, यार, तू तो जैसे लड़की के नाम से डरता है, लड़कियाँ तेरे पास आकर लाइन मारती हैं, और तू उनसे दूर भागता है।" अली ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।

करण ने सिर झुका लिया और बस हल्का सा मुस्कुराया। वह जानता था कि अली मजाक कर रहा है, लेकिन वह इस तरह की बातें कभी नहीं समझ पाता था। मोहन ने बीच में आते हुए कहा,
"तुम दोनों ही लड़की के बारे में कुछ नहीं समझते।"

अली और करण दोनों ही मोहन की तरफ देखने लगे। मोहन थोड़ा गंभीर हो गया और बोला,
"लड़कियाँ कोई खिलौना नहीं होतीं, जिन्हें हम अपनी खुशी के लिए इस्तेमाल करें। वे हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन यह सब केवल तभी सही होता है, जब हम किसी को सच में प्यार करते हैं।"

अली थोड़ा चौंकते हुए बोला,
"क्या बात कर रहे हो तुम? तुम तो हमेशा कहते हो कि लड़की के साथ टाइम पास करो, जब तक मस्ती कर सको। अब क्या हो गया?"

मोहन ने गहरी साँस ली और जवाब दिया,
"देखो, अली, मैं तुमसे ज्यादा बड़ा नहीं हूँ, लेकिन मेरी सोच में एक फर्क है। प्यार सिर्फ एक आकर्षण नहीं होता। यह एक गहरी भावना है, जो कभी भी किसी के साथ गलत नहीं होनी चाहिए। जब तुम किसी को दिल से चाहो, तो तुम्हें सिर्फ उसे ही चाहना चाहिए, न कि अपने फायदे के लिए।"

करण, जो अब तक खामोश था, अपने दोस्तों की बातों को सुनते हुए धीरे से बोला,
"तुम दोनों कुछ भी समझ नहीं पा रहे हो। लड़कियाँ अपनी चाहत नहीं दिखातीं, वे जो महसूस करती हैं, वही कहती हैं। लेकिन प्यार सिर्फ कहने की बात नहीं है। यह तब होता है, जब हम किसी के साथ अपने दर्द और खुशी को साझा करने के लिए तैयार होते हैं। मैं जानता हूँ कि इस वक़्त लड़कियाँ मेरे पास आकर बात करती हैं, लेकिन क्या फर्क पड़ता है? क्या मेरी चुप्पी से किसी का दिल टूटता है?"

अली और मोहन दोनों चुप हो गए। वे समझ गए कि करण की खामोशी में कुछ गहरी बातें थीं, जो उसने अभी तक किसी से नहीं साझा की थीं। अली ने सिर झुका लिया और धीरे से कहा,
"मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम बस डरते हो, करण। डरते हो ये सोचने से कि अगर तुम किसी से अपने दिल की बात करोगे, तो वह तुम्हारे जैसा नहीं होगा।"

करण की आँखों में गहरी उदासी छा गई। वह जानता था कि उसके दोस्तों को वह महसूस नहीं करवा सकता था, जो वह महसूस कर रहा था। वह जानता था कि उसकी खामोशी एक रक्षा कवच है, जो उसे अपनी भावनाओं से दूर रखता है।

"ये सब बातें आसान नहीं हैं, अली।" करण ने कहा, "तुम नहीं समझ पाओगे। जब तुम किसी से प्यार करते हो, तो वह प्यार तुम्हें पूरे दिल से चाहिए होता है। और जब तुम्हारे पास वह नहीं होता, तो तुम बस खामोशी में डूब जाते हो, जैसे मैं डूबता हूँ। यह सिर्फ एक भावना नहीं होती, यह एक असलियत होती है, जो हमें चुप रहने पर मजबूर करती है।"

मोहन ने सिर झुका लिया और कहा,
"तुम सही कह रहे हो, करण। प्यार सिर्फ दिल से नहीं, बल्कि समझ से भी होता है। जब तक तुम किसी को समझने की कोशिश नहीं करोगे, तब तक तुम कभी भी पूरी तरह से उस व्यक्ति से प्यार नहीं कर पाओगे।"

अली चुप हो गया और अपनी सोच में खो गया। वह जानता था कि करण की चुप्पी में बहुत कुछ छिपा था, जो उसने कभी खुद महसूस नहीं किया था।

अचानक, मेले में कुछ हंसी की आवाज़ें आईं। लड़कियाँ फिर से करण के पास आईं, लेकिन इस बार वह बिना किसी झिझक के अपनी बातचीत में शामिल होने का इरादा रखते हुए, उसे चिढ़ाने लगीं।

"देखो, करण! तुम तो हमेशा खामोश रहते हो, क्या तुम्हारा दिल नहीं चाहता कि तुम हमसे बात करो?" एक लड़की ने चिढ़ाते हुए पूछा।

करण ने सिर झुका लिया, फिर एक हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"आप लोग अच्छे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि मेरी दुनिया में और भी बहुत कुछ है, जो मुझे समझने की जरूरत है।"

यह सुनकर लड़कियाँ थोड़ी चौंकीं, लेकिन फिर भी वे उसी तरह से उसके आस-पास घूमने लगीं। करण अब भी अपनी दुनिया में खोया हुआ था, जो कभी भी किसी के लिए नहीं खुलती थी।

बातचीत खत्म हुई, और तीनों दोस्त फिर से अपने रास्ते पर बढ़ गए। करण जानता था कि इस सबका कोई मतलब नहीं था, क्योंकि उसके लिए प्यार और रिश्ते हमेशा कुछ गहरे थे, जो उसने कभी किसी से नहीं कहा था।

अंत में, करण की खामोशी ही उसकी ताकत थी, और लड़कियाँ चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, वह हमेशा अपनी दुनिया में ही रहकर अपने दिल की बातों को सितारों के बीच खो देता था।


Karan मेले से सीधा अपने पापा की कब्र पर गया। रात का समय था, आसमान में घने बादल थे, और हवा में ठंडक बढ़ रही थी। चाँद की रोशनी भी दब सी गई थी, और आसपास का वातावरण शांति में डूबा हुआ था। केवल दूर कहीं कुछ आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन यहाँ सब कुछ शांत था, जैसे दुनिया के बाकी हिस्से से यह जगह एकदम अलग हो।

क़ब्र के पास पहुँचते ही, Karan ने अपनी आँखें बंद की और गहरी सांस ली। उस क़ब्र के पास उसकी पूरी ज़िंदगी की अनकही बातें, वह सारी यादें थीं जो उसने कभी किसी से नहीं बाँटी थीं। क़ब्र के सामने खड़े होकर, Karan ने धीरे से अपना सिर झुका लिया और बोला,

“पापा, तुमसे कुछ बातें करनी हैं। बहुत दिन हो गए, तुमसे कुछ भी कहे बिना। आज बहुत समय बाद लगता है कि शायद तुम मुझे सुन सकोगे।“

Karan के चेहरे पर एक गहरी उदासी थी, आँखों में कुछ बुझी सी लाली थी। उसके लिए यह एक सामान्य दिन नहीं था, बल्कि वह अपने पिता के सामने खड़ा होकर उन सवालों का जवाब ढूंढ रहा था, जो उसने कभी खुद से पूछे थे।

“पापा, तुम मुझे छोड़कर चले गए, और मैं अकेला रह गया। मुझे कभी समझ नहीं आया कि तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया। क्या तुम्हें कभी मेरा ध्यान नहीं आया? क्या तुमने कभी सोचा कि मेरे बिना तुम्हारे बिना मैं क्या करूँगा?”

Karan की आवाज़ में दर्द और गुस्सा था, लेकिन उसका दिल टूटकर भी शांत था। वह अपनी सारी बातें अब अपने पापा से कह रहा था, जैसे यह एक आखिरी मौका था।

“तुम्हें याद है, पापा, जब मैं छोटा था, तब हम दोनों कितने खुश रहते थे। तुम्हारी बाहों में छिपकर मैं दुनिया से लड़ने का साहस पाता था। लेकिन जब तुम मुझे छोड़ गए, तो सब कुछ बदल गया। मैं अकेला हो गया। क्या तुम नहीं जानते थे कि मैं तुम्हारे बिना टूट गया था? क्या तुम नहीं जानते थे कि मुझे किस हद तक तुम्हारी ज़रूरत थी? कभी सोचो, पापा, मैं तो तुम्हारे बिना जी ही नहीं सका।”

Karan ने एक गहरी सांस ली, और फिर आँखें बंद कर लीं। उसे जैसे अपने पापा के साथ बिताए गए वक्त की यादें फिर से ताज़ा हो रही थीं। उसने सिर झुका लिया, और धीरे से बोला,

“मैंने कभी भी किसी से अपने दिल की बात नहीं की। सब मुझसे डरते थे, सब मुझसे दूर रहते थे। क्या तुम नहीं जानते थे, पापा, मुझे प्यार की दरकार थी, मगर मुझे कभी किसी से सच्चा प्यार नहीं मिला। मेरे दिल में हमेशा एक कमी सी थी, और अब तक वो कमी पूरी नहीं हुई। तुम ही तो थे, जिनसे मैं प्यार करना चाहता था, मगर तुम मुझे छोड़कर चले गए, और मैं अकेला रह गया।”

क़ब्र के पास खड़े होकर Karan ने कई बातें की, कुछ अपने मन की, कुछ उन सवालों की जो वह कभी खुद से नहीं पूछ सकता था। उसने कहा,

“क्या तुम जानते हो पापा, कि मैं आज भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुमसे दूर जाने के बाद, मेरी ज़िंदगी की दिशा ही बदल गई। मुझे आज भी लगता है कि अगर तुम होते, तो मेरी ज़िंदगी में वो सब होता जो मैं आज तक चाह रहा था। क्या तुमने कभी सोचा कि अगर तुम मुझे छोड़कर चले गए, तो मेरे साथ क्या हुआ होगा?”

Karan की आवाज़ में गहरी उदासी थी, जैसे वह किसी गहरे अंधकार में खो गया हो। वह अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शब्द उसके पास नहीं थे। उसके लिए शब्दों से ज्यादा ज़रूरी था अपनी आँखों से उन दर्द भरे पलो को महसूस करना, जो वह बहुत पहले अपनी मां के बिना जी चुका था।

“पापा, तुमने हमेशा मुझे ताकत दी थी, और आज मैं खुद को टूटता हुआ महसूस कर रहा हूँ। मुझे अब यह समझ में आ गया है कि तुम्हारी मुझसे दूर जाने के बाद, मुझे वह ताकत खुद से ढूँढनी पड़ी। तुमसे दूर जाने के बाद मैंने जो संघर्ष किए, वह कभी खत्म नहीं हुए। तुम्हारा प्यार और आशीर्वाद मुझे कभी भी समझ में नहीं आया, और अब तक मैंने किसी से वह प्यार नहीं पाया, जो मुझे तुमसे चाहिए था। क्या तुम नहीं जानते थे कि तुम्हारे बिना मैं ज़िंदगी को सही से समझ नहीं पा रहा था?”

क़ब्र के पास खड़ा Karan अब रोने लगा था। उसकी आँखों में आँसू थे, जो अब तक उसने किसी से नहीं दिखाए थे। उसकी पूरी ज़िंदगी एक सवाल बनकर रह गई थी, और वह किसी से उन सवालों का जवाब नहीं पा सका था।

“पापा, तुम्हें याद है कि तुम मुझे हमेशा कहते थे कि लड़ाई और संघर्ष से कभी मत भागो। आज भी मैं उसी रास्ते पर हूँ, उसी संघर्ष में हूँ। लेकिन आज तक मुझे यह समझ में नहीं आया कि तुम मुझे क्यों छोड़ गए। क्या तुमने कभी सोचा था कि तुम्हारी अनुपस्थिति में मैं कैसे जी पाऊँगा? तुमसे मिले हुए वो प्यार भरे पल अब भी मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। जब भी मैं किसी मुश्किल में फंसता हूँ, तब मुझे लगता है कि तुम मेरे पास हो, लेकिन जब मैं देखता हूँ कि तुम नहीं हो, तो फिर से टूट जाता हूँ। तुमसे प्यार करने की इच्‍छा कभी खत्म नहीं होती, पापा।“

Karan फिर से अपनी पूरी ताकत से बोलने लगा,

“तुमसे मिली हुई वो सारी यादें, वो बातें, वे लम्हे, सब कुछ मेरे भीतर हैं। मुझे लगता है कि तुम अभी भी कहीं पास हो, सिर्फ मुझे समझने के लिए नहीं आए। काश, तुम मुझे समझ पाते कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी, पापा। काश तुम मुझे कभी न छोड़ते।”

Karan अब धीरे-धीरे खड़ा होने लगा, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। उसने सिर उठाकर एक आखिरी बार क़ब्र को देखा और फिर अपना चेहरा फिर से झुका लिया।

“पापा, शायद मैं अब समझ चुका हूँ कि तुम्हारी अनुपस्थिति में मुझे खुद को ढूँढना होगा। शायद यही वह रास्ता है, जो मुझे खुद से और तुम्हारे प्यार से जोड़ता है। शायद अब मुझे उस प्यार को अपने भीतर तलाशना होगा, जो तुमने मुझे कभी दिया था। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकता, और शायद यही वह प्यार है, जो मुझे आगे बढ़ने के लिए ताकत देता है।”

क़ब्र के पास खड़ा Karan एक गहरी साँस लेकर वापस मुड़ने लगा। उसकी आँखों में अब भी आँसू थे, लेकिन उसका दिल थोड़ी रा
हत महसूस कर रहा था। शायद अब वह अपने पापा के बिना भी अपनी ज़िंदगी को समझने में सक्षम था।




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