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Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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INDEX


Family Introduction

Update ♡ 01♡Update #02Update # 03Update # 04#05Update ♡ ♡
Update #06 ♡ ♡Update #07♡ ♡Update #08♡ ♡Update #09Update #10♡ ♡
Update #11Update #12♡♡Update #13♡♡Update #14Update #15
Update #16Update # 17Update #18Update #19Update # 20
Update # 21Update # 22Update # 23Update #24Update #25
Update # 26Update # 27Update # 28Update # 29Update # 30
Update #31Update # 32Update #33Update ♡ 34♡Update ♡ 35♡
Update ♡ 36♡Update ♡ 37♡Update ♡ 38♡Update ♡ 39♡Update ♡ 40♡
Update ♡ 41♡Update ♡ 42♡Update ♡ 43♡Update ♡ 44♡Update ♡ 45♡
Update ♡ 46♡Update ♡ 47♡Update ♡ 48♡Update ♡ 49♡Update ♡ 50♡
 
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Sanju@

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Update 2.

नेहरू नगर, मुम्बई गोरेगाँव ।
⁸उसी नगर की एक चाल में वैशाली का निवास था । उदास मन से वैशाली घर पहुंची । घर में अपाहिज बाप और माँ थी । उस समय घर में एक और अजनबी शख्स मौजूद था ।

वैशाली ने इस व्यक्ति को देखा , वह अधेड़ और दुबला -पतला आदमी था । सिर के आधे बाल उड़े हुये थे ।

"बेटी ये हैं करुण पटेल, सोमू के दोस्त ।"

"मेरे कू करुण पटेल बोलता ।

" वह व्यक्ति बोला, "तुम सोमू का बैन वैशाली होता ना ।"

"हाँ , मैं ही वैशाली हूँ । मगर आपको पहले कभी सोमू के साथ देखा नहीं ।"

"कभी अपुन तुम्हारे घर आया ही नहीं , देखेगा किधर से और अगर हम पहले आ गया होता , तो भी गड़बड़ होता ।"

"क्या मतलब ?"


"अभी कुछ दिन पहले तुम्हारे भाई ने हमको एक लाख रुपया दिया था । हम उसका पूरा सेफ्टी किया , इधर पुलिस वाला लोग आया होगा , उनको एक लाख रुपया का रिकवरी करना था । अब मामला फिनिश है, सोमू ने इकबाले जुर्म कर लिया ।
अब पुलिस को सबूत जुटाने का जरूरत नहीं पड़ेगा ।

देखो बैन तुम्हारा डैडी भी सेठ के यहाँ काम करता था , फैक्ट्री में टांग कट गया , तो उसको पूरा हर्जाना देना होता था कि नहीं ?"

"तो क्या सोमू ने सचमुच… ?"

"अरे अब आलतू-फालतू नहीं सोचने का । सेठ का मर्डर करके सोमू ने ठीक किया , साला ऐसा लोग को जिन्दा रहने का कोई हक नहीं ।

अरे उसकू फांसी नहीं होगा और दस बारह साल अन्दर भी रहेगा , तो कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम अपना शादी धूमधाम से मनाओ और किसी पचड़े में नहीं पड़ने का ।"

"लेकिन मेरा दिल कहता है, मेरा भाई काति ल नहीं हो सकता ।"

"दिल क्या कहता है बैन, उसको छोड़ो । अपुन की बात पर भरोसा करो , वो ही कत्ल किया है, माल हमको दे गया था । हम उसकी अमानत लेके आया है । हम तुम्हारा मम्मी डैडी को भी बरोबर समझा दिया , किसी लफड़े में पड़ेगा , तो पुलिस तुमको भी तंग करेगा ।

इसलिये चुप लगा के काम करने का , तुम्हारा डैडी -मम्मी ने जो रिश्ता देखा है, उन छोकरा लोग को बोलो कि शादी का तारीख पक्की करें ।
पीछे मुड़के नहीं देखने का है । काहे को देखना भई, इस दुनिया में मेहनत मजदूरी से कमाने वाला सारी जिन्दगी इतना नहीं कमा सकता कि अपनी बेटी का शादी धूमधाम से कर दे । नोट इसी माफिक आता है ।"

"बेटी ! अब हमारी फिक्र दूर हो गई, सिर का बोझ उतर गया । तेरे हाथ पीले हो जायेंगे, तो हमारा बोझ उतर जायेगा । सोमू के जेल से आने तक हम किसी तरह गुजारा कर ही लेंगे ।

"अच्छा हम चलता , कभी जरूरत पड़े तो बता ना । हमने माई को अपना एड्रेस दे दिया है । ओ.के. वैशाली बैन, हम तुम्हारी शादी पर भी आयेगा ।

"करुण पटेल चलता बना । उसके जाने के बाद वैशाली ने पूछा ।

"रुपया कहाँ है माँ ?"


"सम्भाल के रख दिया है ।"

"रुपया मेरे हवाले करदो माँ ।"

"क्यों , तू क्या करेगी ?"

"शादी तो मेरी होगी न, किसी बैंक में जमा कर दूंगी । "


वैशाली की माँ पार्वती देवी अपनी बेटी की मंशा नहीं भांप पायी । उसकी सुन्दर सुशील बेटी यूँ भी पढ़ी लिखी थी , बी .ए. करने के बाद एल.एल.बी . कर रही थी । लेकिन माँ इस बात को भी अच्छी तरह जानती थी , बेटी चाहे जितनी पढ़ लिख जाये पराया धन ही होती है और निष्ठुर समाज में बिना दान दहेज के पढ़ी- लिखी लड़की का भी विवाह नहीं होता बल्कि पढ़ -लिखने के बाद तो उसके लिये वर और भी महँगा पड़ता है ।"

"बेटी , तू इस पैसे को जमा कर आ, हमें कोई ऐतराज नहीं । वैसे भी घर में इतना पैसा रखना ठीक नहीं , जमाना बड़ा खराब है ।" पार्वती देवी ने रुपयों से भरा ब्रीफकेस वैशाली के सामने रख दिया ।


वैशाली ने ब्रीफकेस खोला । ब्रीफकेस में नये नोटों की गड्डियां रखी थी , वैशाली ने उन्हें गिना , वह एक लाख थे । उसने ब्री फकेस बन्द किया ।

"माँ , मैं थोड़ी देर में लौट आऊंगी ।"

"रुपया सम्भालकर ले जाना बेटी ।" अपाहिज पिता जानकी दास ने कहा।

"आप चिन्ता न करें डैडी ।"


वैशाली चाल से बाहर निकली । उसने बस से जाने की बजाय ऑटो किया और ऑटो में बैठ गई ।

"कि धर जाने का मैडम ।" ऑटो वाले ने पूछा ।

"थाने चलो ।"

"ठाणे, ठाणे तो इधर से बहुत दूर पड़ेला ।" ड्राइवर ने आश्चर्य से वैशाली को घूरा ।

"ठा _णे नहीं पुलिस स्टेशन ।" ऑटो वाले ने वैशाली को जरा चौंककर देखा , फिर गर्दन हिलाई और ऑटो स्टार्ट कर दिया ।

…………………………..जहां दो दिन पहले ही इंस्पेक्टर विजय ने गोरेगाव पुलिस स्टेशन का चार्ज सम्भाला था।

गोरेगांव में फिलहाल क्रिमिनल्स का ऐसा कोई गैंग नहीं था , जो उसे अपनी विशेष प्रतिभा का परिचय देना पड़ता । विजय अपने जूनियर ऑफिसर सब-इंस्पेक्टर बलदेव से इलाके के छंटे -छटाये बदमाशों का ब्यौरा प्राप्त कर रहा था ।

"दारू के अड्डे वालों का तो हफ्ता बंधा ही रहता है सर ।"

"हूँ ।"

"वैसे तो इलाके में हड़कम्प मच ही गया है, बदमाश लोग इलाका छोड़ रहे हैं, सबको पता है कि आपके इलाके में ये लोग धंधा नहीं कर सकते । हमने नकली दारू वालों को बता दिया है कि धंधा समेट लें, जुए के अड्डे भी बन्द हो गये हैं ।"

"ये लोग क्या अपनी सोर्स इस्तेमाल नहीं करते ।"

"आपके नाम के सामने कोई सोर्स नहीं चलती सबको पता है ।"

इंस्पेक्टर विजय अभी यह सब रिकार्ड्स देख ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर सूचना दी कि कोई लड़की मिलना चाहती है ।

"अन्दर भेज दो ।" विजय ने कहा ।

कुछ ही सेकंड बाद हरे सूट में सजी-संवरी वैशाली ने जैसे स्टेशन इंचार्ज के कक्ष में हरियाली फैला दी । विजय ने वैशाली को देखा तो देखता रह गया ।
वैशाली ने भी विजय को देखा तो ठगी -सी रह गई ।

"बलदेव !"
विजय को सहसा कुछ आभास हुआ,"जरा तुम बाहर जाओ ।

" बलदेव ने वैशाली को सिर से पाँव तक देखा । उसकी कुछ समझ में नहीं आया , फिर भी वह उठकर बाहर चला गया ।

"बैठिये ।" विजय ने सन्नाटा भंग किया । वैशाली ने विजय के चेहरे से दृष्टि हटाई, "अ… आप मेरा मतलब।"

"हाँ , मैं विजय ही हूँ ।" विजय के होंठों पर मुस्कान आ गई, "बैठिये !"

वैशाली कुर्सी पर बैठ गई । "हाँ , मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा है ।"

"बहुत कम सर्विस है मेरी और इस कम सर्विस में ही मैंने अच्छा काम किया है वैशाली।"

"आपको इस रूप में देखकर मुझे बेहद खुशी हुई ।"


"तुम यहीं रहती हो वैशा ली ?"

"नेहरू नगर की चाल नम्बर 18 में ।"

"इन्टर तक तो हम साथ-साथ पढ़े, मेरा इसके बाद ही पुलिस में सलेक्शन हो गया था और मैं पुलिस ऑफिसर बन गया ,

" कैसा लगता हूँ पुलिस ऑफिसर के रूप में ?"

"बहुत अच्छे लग रहे हो विजय ।"

"क्या तुम्हा री शादी हो गई ?" विजय ने पूछा ।

"नहीं । " वैशाली ने उत्तर दिया ।

"मेरी भी नहीं हुई ।"

वैशाली की आँखें शर्म से झुक गई ।

''अरे हाँ , यह पूछना तो मैं भूल ही गया , तुम यहाँ किस काम से आई हो।"

"दरअसल मैं आपको … ।"

''यह आप-वाप छोड़ो , पहले की तरह मुझे सिर्फ विजय कहो । अच्छा लगेगा ।"

वैशा ली मुस्करा दी । "पहले तो बहुत कुछ था , मगर… ।"


"अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, खैर यह घरेलू बातें तो किसी दूसरी जगह होंगी , फिलहाल तुम यह बताओ कि पुलिस स्टेशन में क्यों आना हुआ ?"

वैशाली ने ब्रीफकेस विजय के सामने रख दिया और फिर सारी बात बता दी।

विजय ध्यानपूर्वक सुनता रहा । सारी बात सुनने के बाद विजय बोला ,

"एक तरफ तो तुम्हारा दिल गवाही दे रहा है कि सोमू ने कत्ल नहीं किया । दूसरी तरफ यह रुपया चीख-चीख कर कह रहा है कि सोमू ने ही कत्ल किया है, और कानून कभी जज्बात नहीं देखता , सबूत देखता है ।
नो चांस, इकबाले जुर्म के बाद क्या बच जाता है ।"

"असल में मैं यहाँ पुलिस से मदद लेने नहीं यह लूट का माल जमा करने आई थी , ताकि अगर मेरे भाई ने सचमुच खून किया है, तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिल सके, और मैं इस दौलत से अपनी मांग भी नहीं सजा सकती ।"

"मैं जानता हूँ वैशाली तुम शुरू से ही कानून का सम्मान करती हो , फिर भी मैं तुम्हें एक निजी मशवरा दूँगा , बेशक यह रुपया तुम पुलिस स्टेशन में जमा कर दो , मगर एक बार किसी अच्छे वकील से मिलकर उसकी पैरवी तो की जा सकती है ।"

"इकबाले जुर्म और इस सबूत के बाद भी क्या कोई वकील उसे बचा सकता है ?"

"हाँ , बचा सकता है । इस शहर में एक वकील है रोमेश सक्सेना । वह अगर इस केस को हाथ में ले लेगा , तो समझो सोमू बरी हो गया । रोमेश की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह आज तक कोई मुकदमा हारा नहीं है, रोमेश की दूसरी विशेषता यह है कि वह मुकदमा ही तब हाथ में लेता है, जब उसे विश्वास हो जाता है कि मुलजिम निर्दोष है ।"


"क्या बात कह रहे हो , किसी भी वकील को भला इस बात से क्या मतलब कि वह किसी निर्दोष का मुकदमा लड़ रहा है या दोषी का ?,
मुकदमा लड़ना तो उसका पेशा है ।"


"यही तो अद्भुत बात इस वकील में है, वह जरायम पेशा लोगों की कतई पैरवी नहीं करता । वैसे तो वह मेरा मित्र भी है, लेकिन तुम खुद ही उससे सम्पर्क करो , मैं उसका एड्रेस दे देता हूँ, वह बांद्रा विंग जैग रोड पर रहता है।"

"यह रुपया ।"

"रुपया तुम यहाँ जमा कर सकती हो, अगर यह लूट का माल न हुआ, तो तुम्हें वापि स मिल जायेगा , लेकिन तुम रोमेश से तुरन्त सम्पर्क कर लो , उसके बाद मुझे बताना , कल मैं ड्यूटी के बाद तुमसे मिलने घर पर आऊँगा ।

" वैशाली जब पुलिस स्टेशन से बाहर निकली , तो उसका मन काफी कुछ हल्का हो गया था । किस्मत ने उसे एक बार विजय से मिला दिया था ।

इंटर तक दोनों साथ-साथ पढ़े थे । वह बड़ौदा में थी उस वक्त, फिर परिवार मुम्बई आ गया और वैशाली का बीच में एक वर्ष बेकार चला गया। उसने पुनः अपनी शिक्षा जारी रखी । वह विजय से प्यार करती थी , विजय भी उसे उतना ही चाहता था , परन्तु उस वक्त यह प्यार मुखरित नहीं हो पाया ।
इस अधूरे प्यार के बाद दोनों कभी नहीं मिले और आज संयोग ने उन्हें मिला दिया था ।

"क्या विजय आज भी मुझे उतना ही चाहता है ?" यह सोचती हुई वह अपने आप में खोई बढ़ी चली जा रही थी ।


जारी रहेगा..✍✍️
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है अब ये पैसों का क्या चक्कर है? वैशाली की मुलाकात अपने बचपन के प्यार विजय से हो गई है लगता है दोनो की प्रेम कहानी अब आगे बढ़ने वाली है बचपन का प्यार जवानी में मिलने वाला है अब देखते हैं कि क्या वकील सोमू का केस लड़ेगा
 

Raj_sharma

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है अब ये पैसों का क्या चक्कर है? वैशाली की मुलाकात अपने बचपन के प्यार विजय से हो गई है लगता है दोनो की प्रेम कहानी अब आगे बढ़ने वाली है बचपन का प्यार जवानी में मिलने वाला है अब देखते हैं कि क्या वकील सोमू का केस लड़ेगा
Thank you very much bhai for your wonderful review and support ❣️❣️
Paiso ka chakkar jhole hai bhai😊 aur pyar apni jagah hai or farj apni jagah👍
 

Raj_sharma

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Badhiya likh rahe ho Raj bhai , purani movies ke style mai thoda ek do update ho sake to jaldi do taki kahani samajh mai aaye.. keep writing 👍🏻
Kosis karta hu kal ek or update post karne ki👍 thanks for your valuable review man :thanx:
 
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Frieren

𝙏𝙝𝙚 𝙨𝙡𝙖𝙮𝙚𝙧!
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Raj_sharma

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KARISHMA JAIN

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अपडेट 1

अंधेरे को चीरती हुई एक कार , जो की बोहोत ही तेजी से अपने गन्तव्य की ओर बढी जा रही थी।
कि अचानक कार के ब्रेक चीख पडें!!

कार के ब्रेकों के चीखने का शोर इतना तीव्र था कि अपने घोंसलों में सोते पक्षी भी फड़फड़ा कर उड़ चले ।
रात की नीरवता खण्ड-विखण्ड हो कर रह गयी ।


"क्या हुआ ?" सेठ कमलनाथ ने पूछा!

"एक आदमी गाड़ी के आगे अचानक कूद गया।

" ड्राइवर ने थर्राई आवाज में उत्तर
दिया , "मेरी कोई गलती नहीं सेठ जी ! मैंनेतो पूरी कौशिश की ।"

"अरे देखो तो , जिन्दा है या मर गया !"

ड्राइवर ने फुर्ती से दरवाजा खोला । हेडलाइट्स अभी भी ऑन थी , वह ड्राइविंग सीट से उतरकर आगे आ गया । गाड़ी के नीचे एक व्यक्ति औंधा पड़ा था , उसके जिस्म पर आगे के पहिये उतर चुके थे ।
चूँकि पहियों के बीच में अन्धेरा था ,
इसलिये कुछ ठीक से नजर नहीं आ रहा ...।"

"जी के बच्चे जो मैं कह रहा हूँ, वह कर, नहीं तो तू सीधा अन्दर होगा ।"
"लेकिन सेठ जी , कपड़े क्यों ?"

"सवाल नहीं करने का , समझे ! जो बोला वह करो।"
इस बार सेठ कमलनाथ मवालियों
जैसे अन्दाज में बोला ।

सोमू ने डरते हए कपड़े उतार डाले । इसी बीच सेठ कमलनाथ ने अपने भी कपड़े उतारे
और खुद कार की पिछली सीट पर आ गया । उसने कार में रखी एक चादर लपेट ली ।

"मेरे कपड़े लाश को पहना दे सोमू ।" सेठ कमलनाथ ने खलनायक वाले अन्दाज में कहा ।

"सोमू के कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है ? अपने मालिक का हुक्म मानते हुए उसने सेठ कमलनाथ के कपड़े लाश को पहना दिये ।

"मेरी घड़ी , मेरी अंगूठी , मेरे गले की चेन भी इसे पहना दे ।"
कमलनाथ ने अपनी घड़ी , चेन और अंगूठी भी सोमू को थमा दी ।

सोमू ने सेठ कमलनाथ को ऐसी निगाहों से देखा , जैसे सेठ पागल हो गया हो !! फिर उसने वह तीनों चीजें भी लाश को पहना दी ।

"अब कार में आजा ...।"

सोमू कार में आ गया ।

"इसका चेहरा इस तरह कुचल दे, जो पहचाना न जा सके ।"

सोमू ने यह काम भी कर दिखाया । इस बीच वह हांफने भी लगा था । चादर ओढ़े सेठ ने एक बार फिर लाश का निरीक्षण किया और फिर से गाड़ी में आ बैठा ।

"हमें किसी ने देखा तो नहीं ?"

"इतनी रात गये इस सड़क पर कौन आयेगा ।"

"हूँ !! चलो ! छुट्टी हुई, मैं मर गया ।"

"क… क्या कह रहे हैं ?"

"अबे गाड़ी चला , रास्ते में तुझे सब बता दूँगा कि सेठ कमलनाथ कैसे मरा और किसने मारा , चल बेफिक्र हो कर गाड़ी चला ।"

गाड़ी आगे बढ़ गई, इसके साथ ही सेठ कमलनाथ का कहकहा गूँज उठा ।।

इस घटना के कुछ समय बाद :

जब सेठ कमलनाथ की मौत का समाचार बासी हो चुका था , किसी को अब उस हादसे में कोई दिलचस्पी भी नहीं थी । लोगों की आदत होती है, बड़े-बड़े हादसे चंद दिन में ही भूल जाते हैं । और फिर कमलनाथ ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति भी नहीं था , जो चर्चा में रहता ।

मुकदमा मुम्बई सेशन कोर्ट में पेश था ।
कटघरे में एक मुलजिम खड़ा था , नाम था सोमू !

"योर ऑनर ! यह नौजवान सोमू जो आपके सामने कटघरे में खड़ा है, एक वहशी हत्यारा है, जिसने अपने मालिक सेठ कमलनाथ का निर्दयता पूर्वक कत्ल कर डाला ।

मैं अदालत के सामने सभी सबूतों के साथ-साथ गवाहों को पेश करने की भी इजाजत चाहूँगा।"

"इजाजत है । "
जज ने अनुमति प्रदान कर दी ।

पब्लिक प्रोसिक्यूटर राजदान मिर्जा ने मुकदमे की पृष्ठभूमि से पर्दा उठाना शुरू किया ।

"उस रात सेठ कमलनाथ मुम्बई गोवा हाईवे पर सफर कर रहे थे । वह कारोबार की उगाही करके लौट रहे थे! और उनके सूटकेस में एक लाख रुपया नकद मौजूद था । रात के एक बजे जल्दी पहुंचने की गरज से ड्राइवर सोमू ने कार को एक शॉर्टकट मार्ग पर मोड़ा,
और एक सुनसान सड़क पर गाड़ी को ले गया । असल में मुजरिम का मकसद जल्दी पहुंचना नहीं था बल्कि वह तो सेठ को कभी भी घर न पहुंचने देने के लिए प्लान कर चुका था ।"

कुछ रुककर मिर्जा ने कहा ।

"योर ऑनर, सुनसान और सन्नाटेदार सड़क पर आते ही इस वफादार नौकर ने अपनी नमक हरामी का सबसे बड़ा सिला यह दिया कि सुनसान जगह कार रोककर सेठ से रुपयों का सूटकेस माँगा । सोमू उस वक्त रुपया लेकर भागजाने का इरादा रखता था , इसी लिये वह उस सुनसान सड़क पर पहुंचा , ताकि सेठ अगर चीख पुकार मचाए भी , तो कोई सुनने वाला न हो , कोई उसकी मदद के लिए न आये और यही हुआ ।

लेकिन सेठ ने जब पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने और भुगत लेने की धमकी दी , तो सोमू ने सेठ का कत्ल कर डाला ।

“जी हाँ योर ऑनर”, गाड़ी से कुचलकर उसने सेठ को मार डाला । यहाँ तक कि लाश का चेहरा ऐसा बिगाड़ दिया कि कोई पहचान भी न सके ।"

अदालत खामोश थी । लोग राजदान मिर्जा की दलीलें चुपचाप सुन रहे थे । किसी ने टोका -टाकी नहीं की ।

"लेकिन मीलार्ड, कहते हैं अपराधी चाहे कितना भी चालाक क्यों न हो, उससे कोई-न-कोई भूल तो हो ही जाती है, और कानून के लम्बे हाथ उसी भूल का फायदा उठा कर मुजरिम के गिरेबान तक जा पहुंचते हैं ।

मुलजिम सोमू ने हत्या तो कर दी , लेकिन सेठ कमलनाथ के जिस्म पर उसकी शिनाख्त की कई चीजें छोड़ गया । अंगूठी , घड़ी और पर्स तक जेब में पड़ा रह गया । जिससे न सिर्फ लाश की शिनाख्त हो गई बल्कि यह भी पता चल गया कि उस रात सेठ एक लाख रुपया लेकर मुम्बई लौट रहा था ।

इसने सेठ कमलनाथ का कत्ल किया और लाश का हुलिया बिगाड़ने के लिए पूरा चेहरा गाड़ी के पहिये से कुचल डाला ।
इसलिये भारतीय दण्ड विधान धारा 302 के तहत मुलजिम को कड़ी -से-कड़ी सजा दी जाये ।


“दैट्स आल योर ऑनर ।"

सरकारी वकील राजदान मिर्जा ने मुलजिम के विरुद्ध आरोप दाखिल किया और अपनी सीट पर आ बैठा ।

"मुलजिम सोमू "

थोड़ी देर में न्यायाधीश की आवाज कोर्ट में गूंजी ,


"तुम पर जो आरोप लगाए गये हैं, क्या वह सही हैं ?"

मुलजिम सोमू कटघरे में निर्भीक खड़ा था । उसने एक नजर अदालत में बैठे लोगों पर डाली और फिर वह दृष्टि एक नौजवान लड़की पर ठहर गई थी , जो उसी अदालत के एक कोने में बैठी थी और डबडबाई आँखों से सोमू को देख रही थी ।
वहाँ से सोमू की दृष्टि पलटी और सीधा न्यायाधीश की ओर उठ गई ।

"क्या तुम अपने जुर्म का इकबाल करते हो ?" आवाज गूँज रही थी ।

"जी हाँ योर ऑनर ! मैं अपने जुर्म का इकबाल करता हूँ । वह हत्या मैंने ही की और एक लाख रूपए के लालच में की ।

मेरा सेठ बहुत ही कंजूस और कमीना था । मैंने उससे अपनी बहन की शादी के लिए कर्जा माँगा , तो उसने एक फूटी कौड़ी भी देने से इन्कार कर
दिया । उस रात मुझे मौका मिल गया और मैंने उसका क़त्ल कर डाला ।"

"नहीं..s..s..s. ।"

अचानक अदालत में किसी नारी की चीख-सी सुनाई दी । सबका ध्यान उस
चीख की तरफ आकर्षित हो गया ।

"सोमू झूठ बोल रहा है, यह किसी का कत्ल नहीं कर सकता , यह झूठ है ।"

कुछ क्षण पहले जो लड़की डबडबाई आँखों से सोमू को निहार रही थी , वह उठ खड़ी हुई ।

"तुम्हें जो कुछ कहना है, कटघरे में आकर कहो ।"

युवती अदालत में खाली पड़े दूसरे कटघरे में पहुंच गई ।

"मेरा नाम वैशाली है जज साहब” !
मैं इसकी बहन हूँ । मुझसे अधिक सोमू को कोई नहीं जानता , यह किसी की हत्या नहीं कर सकता ।"

"परन्तु वह इकबाले जुर्म कर रहा है ।"
"मीलार्ड ।"

सरकारी वकील उठ खड़ा हुआ, "कोई भी बहन अपने भाई को हत्यारा
कैसे मान सकती है । जबकि मुलजिम अपने जुर्म का इकबाल कर रहा है, तो इसमें सच्चाई की कोई गुंजाइश ही कहाँ रह जाती है ।"

"मैं कह चुका हूँ योर ऑनर ! मैंने कत्ल किया है, मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता और न ही यह मुकदमा आगे चलाना चाहता हूँ ।

वैशाली तुम्हें यहाँ अदालत में नहीं आना चाहिये था , तुम घर जाओ ।"
वैशाली सुबकती हुई कटघरे से बाहर आई और फिर अदालत से ही बाहर चली गई ।
अदालत ने अगली कार्यवाही के लिए तारीख दे दी ।

जारी रहेगा…✍✍
Congrats for new story 🎉
Nice update 👌🏻
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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KARISHMA JAIN

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वैशाली ने इस व्यक्ति को देखा , वह अधेड़ और दुबला -पतला आदमी था । सिर के आधे बाल उड़े हुये थे ।

"बेटी ये हैं करुण पटेल, सोमू के दोस्त ।"

"मेरे कू करुण पटेल बोलता ।

" वह व्यक्ति बोला, "तुम सोमू का बैन वैशाली होता ना ।"

"हाँ , मैं ही वैशाली हूँ । मगर आपको पहले कभी सोमू के साथ देखा नहीं ।"

"कभी अपुन तुम्हारे घर आया ही नहीं , देखेगा किधर से और अगर हम पहले आ गया होता , तो भी गड़बड़ होता ।"

"क्या मतलब ?"


"अभी कुछ दिन पहले तुम्हारे भाई ने हमको एक लाख रुपया दिया था । हम उसका पूरा सेफ्टी किया , इधर पुलिस वाला लोग आया होगा , उनको एक लाख रुपया का रिकवरी करना था । अब मामला फिनिश है, सोमू ने इकबाले जुर्म कर लिया ।
अब पुलिस को सबूत जुटाने का जरूरत नहीं पड़ेगा ।

देखो बैन तुम्हारा डैडी भी सेठ के यहाँ काम करता था , फैक्ट्री में टांग कट गया , तो उसको पूरा हर्जाना देना होता था कि नहीं ?"

"तो क्या सोमू ने सचमुच… ?"

"अरे अब आलतू-फालतू नहीं सोचने का । सेठ का मर्डर करके सोमू ने ठीक किया , साला ऐसा लोग को जिन्दा रहने का कोई हक नहीं ।

अरे उसकू फांसी नहीं होगा और दस बारह साल अन्दर भी रहेगा , तो कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम अपना शादी धूमधाम से मनाओ और किसी पचड़े में नहीं पड़ने का ।"

"लेकिन मेरा दिल कहता है, मेरा भाई काति ल नहीं हो सकता ।"

"दिल क्या कहता है बैन, उसको छोड़ो । अपुन की बात पर भरोसा करो , वो ही कत्ल किया है, माल हमको दे गया था । हम उसकी अमानत लेके आया है । हम तुम्हारा मम्मी डैडी को भी बरोबर समझा दिया , किसी लफड़े में पड़ेगा , तो पुलिस तुमको भी तंग करेगा ।

इसलिये चुप लगा के काम करने का , तुम्हारा डैडी -मम्मी ने जो रिश्ता देखा है, उन छोकरा लोग को बोलो कि शादी का तारीख पक्की करें ।
पीछे मुड़के नहीं देखने का है । काहे को देखना भई, इस दुनिया में मेहनत मजदूरी से कमाने वाला सारी जिन्दगी इतना नहीं कमा सकता कि अपनी बेटी का शादी धूमधाम से कर दे । नोट इसी माफिक आता है ।"

"बेटी ! अब हमारी फिक्र दूर हो गई, सिर का बोझ उतर गया । तेरे हाथ पीले हो जायेंगे, तो हमारा बोझ उतर जायेगा । सोमू के जेल से आने तक हम किसी तरह गुजारा कर ही लेंगे ।

"अच्छा हम चलता , कभी जरूरत पड़े तो बता ना । हमने माई को अपना एड्रेस दे दिया है । ओ.के. वैशाली बैन, हम तुम्हारी शादी पर भी आयेगा ।

"करुण पटेल चलता बना । उसके जाने के बाद वैशाली ने पूछा ।

"रुपया कहाँ है माँ ?"


"सम्भाल के रख दिया है ।"

"रुपया मेरे हवाले करदो माँ ।"

"क्यों , तू क्या करेगी ?"

"शादी तो मेरी होगी न, किसी बैंक में जमा कर दूंगी । "


वैशाली की माँ पार्वती देवी अपनी बेटी की मंशा नहीं भांप पायी । उसकी सुन्दर सुशील बेटी यूँ भी पढ़ी लिखी थी , बी .ए. करने के बाद एल.एल.बी . कर रही थी । लेकिन माँ इस बात को भी अच्छी तरह जानती थी , बेटी चाहे जितनी पढ़ लिख जाये पराया धन ही होती है और निष्ठुर समाज में बिना दान दहेज के पढ़ी- लिखी लड़की का भी विवाह नहीं होता बल्कि पढ़ -लिखने के बाद तो उसके लिये वर और भी महँगा पड़ता है ।"

"बेटी , तू इस पैसे को जमा कर आ, हमें कोई ऐतराज नहीं । वैसे भी घर में इतना पैसा रखना ठीक नहीं , जमाना बड़ा खराब है ।" पार्वती देवी ने रुपयों से भरा ब्रीफकेस वैशाली के सामने रख दिया ।


वैशाली ने ब्रीफकेस खोला । ब्रीफकेस में नये नोटों की गड्डियां रखी थी , वैशाली ने उन्हें गिना , वह एक लाख थे । उसने ब्री फकेस बन्द किया ।

"माँ , मैं थोड़ी देर में लौट आऊंगी ।"

"रुपया सम्भालकर ले जाना बेटी ।" अपाहिज पिता जानकी दास ने कहा।

"आप चिन्ता न करें डैडी ।"


वैशाली चाल से बाहर निकली । उसने बस से जाने की बजाय ऑटो किया और ऑटो में बैठ गई ।

"कि धर जाने का मैडम ।" ऑटो वाले ने पूछा ।

"थाने चलो ।"

"ठाणे, ठाणे तो इधर से बहुत दूर पड़ेला ।" ड्राइवर ने आश्चर्य से वैशाली को घूरा ।

"ठा _णे नहीं पुलिस स्टेशन ।" ऑटो वाले ने वैशाली को जरा चौंककर देखा , फिर गर्दन हिलाई और ऑटो स्टार्ट कर दिया ।

…………………………..जहां दो दिन पहले ही इंस्पेक्टर विजय ने गोरेगाव पुलिस स्टेशन का चार्ज सम्भाला था।

गोरेगांव में फिलहाल क्रिमिनल्स का ऐसा कोई गैंग नहीं था , जो उसे अपनी विशेष प्रतिभा का परिचय देना पड़ता । विजय अपने जूनियर ऑफिसर सब-इंस्पेक्टर बलदेव से इलाके के छंटे -छटाये बदमाशों का ब्यौरा प्राप्त कर रहा था ।

"दारू के अड्डे वालों का तो हफ्ता बंधा ही रहता है सर ।"

"हूँ ।"

"वैसे तो इलाके में हड़कम्प मच ही गया है, बदमाश लोग इलाका छोड़ रहे हैं, सबको पता है कि आपके इलाके में ये लोग धंधा नहीं कर सकते । हमने नकली दारू वालों को बता दिया है कि धंधा समेट लें, जुए के अड्डे भी बन्द हो गये हैं ।"

"ये लोग क्या अपनी सोर्स इस्तेमाल नहीं करते ।"

"आपके नाम के सामने कोई सोर्स नहीं चलती सबको पता है ।"

इंस्पेक्टर विजय अभी यह सब रिकार्ड्स देख ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर सूचना दी कि कोई लड़की मिलना चाहती है ।

"अन्दर भेज दो ।" विजय ने कहा ।

कुछ ही सेकंड बाद हरे सूट में सजी-संवरी वैशाली ने जैसे स्टेशन इंचार्ज के कक्ष में हरियाली फैला दी । विजय ने वैशाली को देखा तो देखता रह गया ।
वैशाली ने भी विजय को देखा तो ठगी -सी रह गई ।

"बलदेव !"
विजय को सहसा कुछ आभास हुआ,"जरा तुम बाहर जाओ ।

" बलदेव ने वैशाली को सिर से पाँव तक देखा । उसकी कुछ समझ में नहीं आया , फिर भी वह उठकर बाहर चला गया ।

"बैठिये ।" विजय ने सन्नाटा भंग किया । वैशाली ने विजय के चेहरे से दृष्टि हटाई, "अ… आप मेरा मतलब।"

"हाँ , मैं विजय ही हूँ ।" विजय के होंठों पर मुस्कान आ गई, "बैठिये !"

वैशाली कुर्सी पर बैठ गई । "हाँ , मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा है ।"

"बहुत कम सर्विस है मेरी और इस कम सर्विस में ही मैंने अच्छा काम किया है वैशाली।"

"आपको इस रूप में देखकर मुझे बेहद खुशी हुई ।"


"तुम यहीं रहती हो वैशा ली ?"

"नेहरू नगर की चाल नम्बर 18 में ।"

"इन्टर तक तो हम साथ-साथ पढ़े, मेरा इसके बाद ही पुलिस में सलेक्शन हो गया था और मैं पुलिस ऑफिसर बन गया ,

" कैसा लगता हूँ पुलिस ऑफिसर के रूप में ?"

"बहुत अच्छे लग रहे हो विजय ।"

"क्या तुम्हा री शादी हो गई ?" विजय ने पूछा ।

"नहीं । " वैशाली ने उत्तर दिया ।

"मेरी भी नहीं हुई ।"

वैशाली की आँखें शर्म से झुक गई ।

''अरे हाँ , यह पूछना तो मैं भूल ही गया , तुम यहाँ किस काम से आई हो।"

"दरअसल मैं आपको … ।"

''यह आप-वाप छोड़ो , पहले की तरह मुझे सिर्फ विजय कहो । अच्छा लगेगा ।"

वैशा ली मुस्करा दी । "पहले तो बहुत कुछ था , मगर… ।"


"अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, खैर यह घरेलू बातें तो किसी दूसरी जगह होंगी , फिलहाल तुम यह बताओ कि पुलिस स्टेशन में क्यों आना हुआ ?"

वैशाली ने ब्रीफकेस विजय के सामने रख दिया और फिर सारी बात बता दी।

विजय ध्यानपूर्वक सुनता रहा । सारी बात सुनने के बाद विजय बोला ,

"एक तरफ तो तुम्हारा दिल गवाही दे रहा है कि सोमू ने कत्ल नहीं किया । दूसरी तरफ यह रुपया चीख-चीख कर कह रहा है कि सोमू ने ही कत्ल किया है, और कानून कभी जज्बात नहीं देखता , सबूत देखता है ।
नो चांस, इकबाले जुर्म के बाद क्या बच जाता है ।"

"असल में मैं यहाँ पुलिस से मदद लेने नहीं यह लूट का माल जमा करने आई थी , ताकि अगर मेरे भाई ने सचमुच खून किया है, तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिल सके, और मैं इस दौलत से अपनी मांग भी नहीं सजा सकती ।"

"मैं जानता हूँ वैशाली तुम शुरू से ही कानून का सम्मान करती हो , फिर भी मैं तुम्हें एक निजी मशवरा दूँगा , बेशक यह रुपया तुम पुलिस स्टेशन में जमा कर दो , मगर एक बार किसी अच्छे वकील से मिलकर उसकी पैरवी तो की जा सकती है ।"

"इकबाले जुर्म और इस सबूत के बाद भी क्या कोई वकील उसे बचा सकता है ?"

"हाँ , बचा सकता है । इस शहर में एक वकील है रोमेश सक्सेना । वह अगर इस केस को हाथ में ले लेगा , तो समझो सोमू बरी हो गया । रोमेश की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह आज तक कोई मुकदमा हारा नहीं है, रोमेश की दूसरी विशेषता यह है कि वह मुकदमा ही तब हाथ में लेता है, जब उसे विश्वास हो जाता है कि मुलजिम निर्दोष है ।"


"क्या बात कह रहे हो , किसी भी वकील को भला इस बात से क्या मतलब कि वह किसी निर्दोष का मुकदमा लड़ रहा है या दोषी का ?,
मुकदमा लड़ना तो उसका पेशा है ।"


"यही तो अद्भुत बात इस वकील में है, वह जरायम पेशा लोगों की कतई पैरवी नहीं करता । वैसे तो वह मेरा मित्र भी है, लेकिन तुम खुद ही उससे सम्पर्क करो , मैं उसका एड्रेस दे देता हूँ, वह बांद्रा विंग जैग रोड पर रहता है।"

"यह रुपया ।"

"रुपया तुम यहाँ जमा कर सकती हो, अगर यह लूट का माल न हुआ, तो तुम्हें वापि स मिल जायेगा , लेकिन तुम रोमेश से तुरन्त सम्पर्क कर लो , उसके बाद मुझे बताना , कल मैं ड्यूटी के बाद तुमसे मिलने घर पर आऊँगा ।

" वैशाली जब पुलिस स्टेशन से बाहर निकली , तो उसका मन काफी कुछ हल्का हो गया था । किस्मत ने उसे एक बार विजय से मिला दिया था ।

इंटर तक दोनों साथ-साथ पढ़े थे । वह बड़ौदा में थी उस वक्त, फिर परिवार मुम्बई आ गया और वैशाली का बीच में एक वर्ष बेकार चला गया। उसने पुनः अपनी शिक्षा जारी रखी । वह विजय से प्यार करती थी , विजय भी उसे उतना ही चाहता था , परन्तु उस वक्त यह प्यार मुखरित नहीं हो पाया ।
इस अधूरे प्यार के बाद दोनों कभी नहीं मिले और आज संयोग ने उन्हें मिला दिया था ।

"क्या विजय आज भी मुझे उतना ही चाहता है ?" यह सोचती हुई वह अपने आप में खोई बढ़ी चली जा रही थी ।


जारी रहेगा..✍✍️
Nice update 👌🏻
 
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