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Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

Sanju@

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# 32

तब तक विजय अन्दर कदम रख चुका था, वह ड्राइंगरूम में कमर पर हाथ रखे और टांगे फैलाये खड़ा था, तभी माया देवी ने ड्राइंगरूम में कदम रखा।

"तुम !" वह चीख पड़ी,

"रोमेश सक्सेना, तुम ! मैं अभी पुलिस को फोन करती हूँ, तुम यहाँ क्यों आये ? क्या फिर किसी का खून ?"

विजय ने सिर से हेट उतारा और फिर चेहरे से मफलर। अब विजय को सामने देखकर माया भी हैरान हो गयी। वह हैरत से फटी आँखों से विजय को देख रही थी।

"अ… आप ?"

"हाँ , मैं !"

"म… मगर… ब… बैठिये।" विजय बैठ गया।

"मगर यह सब क्या है ?"

"मैं एक शक दूर करना चाहता था।"

"क्या ? "

"माया देवी अगर आपने पुलिस को बयान देते वक्त यह बताया होता कि फ्लैट में दाखिल होने वाले रोमेश ने अपना चेहरा मफलर में छिपाया हुआ था, तो कहानी कुछ और बनती। मैं अदालत में कभी केस न डालता और सबसे पहले यह जानने की कौशिश करता कि जिस रोमेश सक्सेना का आपने चेहरा नहीं देखा, वह दरअसल रोमेश ही था या कोई और।"


"त… तो क्या वह रोमेश नहीं था ?"

"नहीं मैडम, वह कोई और था।"

"मगर उससे पहले जब रोमेश मिला था, तो वह धमकी देकर गया था, उसने यही ड्रेस पहना हुआ था।"


"सारा धोखा ड्रेस का ही तो है, पहली बार यहाँ आया और तुम्हें गवाह बनाने के लिये कह गया। क्या उस वक्त भी उसने चेहरा मफलर में ढ़का हुआ था ?"

"नहीं , लेकिन वापिस जाते समय उसने चेहरा मफलर में छिपा लिया। उस वक्त मैंने यह समझा कि हो सकता है, वह अपना चेहरा छिपाना चाहता हो। ताकि कोई राह चलता शख्स उसकी शिनाख्त न कर बैठे। क़त्ल की रात वह इसी तरह मफलर लपेटे था।"


"और तुमने केवल उसका गेटअप देखकर यह समझ लिया कि वह रोमेश है। लेकिन वह कोई और था। जिसकी कद-काठी हूबहू रोमेश से मिलती थी, हो सकता है कि उसकी चाल ढाल भी रोमेश जैसी हो। यह भी हो सकता है कि उसने रोमेश की आवाज की नक़ल करने की भी प्रैक्टिस भी कर ली हो।" विजय उठ खड़ा हुआ।

छठा दिन ।

विजय इंस्पेक्टर की ड्रेस में नहीं था। वह उसी गेटअप में था, मफलर चेहरे पर लपेटे, काली पैन्ट, काली शर्ट, ओवरकोट। रोमेश उसे देखकर चौंका, जब विजय अन्दर दाखिल हुआ, तो पीछे से हवलदार ने लॉकअप में ताला डाल दिया। विजय दीवार की तरफ चेहरा किये खड़ा हो गया।

"तुम… तुम कैसे पकड़े गये ?" रोमेश के मुँह से निकला ।

विजय चुप रहा । उसने कोई उत्तर नहीं दिया ।

"मेरे सवाल का जवाब दो सोमू, तुम्हें तो अब तक लंदन पहुंच जाना था। तुम कैसे पकड़े गये, बोलो ?" रोमेश उठ खड़ा हुआ ।

रोमेश, विजय के पास पहुँचा। उसने विजय का कंधा पकड़कर एक झटके में घुमाया, विजय के चेहरे से मफलर खिंच गया और हैट विजय ने स्वयं उतार दी।

"माई गॉड !" रोमेश पीछे हटता चला गया।

"उस पेचीदा सवाल का जवाब तुमने खुद दे दिया है रोमेश, अब गुत्थी सुलझ गई।



“वह शख्स जो तुम्हारी जगह क़त्ल करने माया के फ्लैट पर पहुँचा, उसका नाम सोमू था। सोमू यानि वैशाली का बड़ा भाई, मेरा साला। "

"अब बात समझ में आ रही है, वह पिछले दिनों कह रहा था कि लंदन में उसे नौकरी मिल गई है। उसने अपना वीजा पासपोर्ट भी बनवा लिया था। शायद तुमने उसे पैसे के मामले में हेल्प की होगी, वह अपनी बहन की शादी की वजह से रुक न गया होता, तो यह गुत्थी कभी न सुलझ पाती कि जब सोमू ने तुम्हारे प्लान के अनुसार क़त्ल किया, तो खंजर पर उसके बजाय तुम्हारी उंगलियों के निशान कैसे पाये गये। अब हमें सारे सवालों का जवाब मिल जायेगा।"

रोमेश एक बार फिर चुप हो गया।

"तुम अपने ही बनाये गेटअप से धोखा खा गये रोमेश, तो भला माया देवी क्यों न खाती।" इतना कहकर विजय बाहर निकल गया ।

सातवां दिन।

विजय एक बार फिर लॉकअप में था।

"अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कितनी ही चतुराई से फुलप्रूफ प्लान क्यों न बनाये, उससे कहीं न कहीं चूक तो हो ही जाती है। दरअसल इस पूरे मामले में पुलिस ने एक ही लाइन पर काम किया। उसने यह पहले ही मान लिया कि क़त्ल रोमेश ने ही किया है और जुनूनी हालत के कारण किया।"


"बस यह सबसे बड़ी भूल थी। इसका परिणाम था कि पूरे घटनाक्रम की बारीकी से जांच ही नहीं की गयी। अगर उस ख़ंजर की बारीकी से जांच की गयी होती, जो चाकू जे.एन. की लाश में पैवस्त पाया गया था, तो साफ पता चल जाता कि क़त्ल उस चाकू से नहीं हुआ, उस पर सिर्फ जे.एन. का खून लगा था। उसे केवल घाव में फंसाया गया था, वह बिल्कुल नया का नया था और उससे कोई वार भी नहीं किया गया था। लेकिन तुमसे एक चूक हो गयी। तुमने सोमू को उस चाकू के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया था, जिससे जे.एन. का क़त्ल हुआ।"


विजय कुछ पल के लिए खामोश हो गया।

"और हमने वह चाकू बरामद कर लिया है। जब उसकी जांच होगी, तो पता चल जायेगा कि उस पर भी वह खून लगा, जो जे.एन. के शरीर से बहा था। यह चाकू सोमू ने उसी रात अपने घर के आंगन में गाड़ दिया था और अब वैशाली की मदद से उससे सब मालूम कर लिया है।"


आठवें दिन विजय ने बड़े नाटकीय अन्दाज में कहना शरू किया।

"मिस्टर रोमेश सक्सेना, आपने पूरा प्लान इस तरह बनाया। आप इस मर्डर की भूमिका इस तरह बनाना चाहते थे कि अगर जे.एन. का क़त्ल कोई भी करता, तो पुलिस आपको ही गिरफ्तार करती। आपने यह तय कर लिया था कि सबूत और गवाहों का रास्ता भी दुनिया के लिये आसान रहे, उसे कुछ भी तफ्तीश न करनी पड़े और अदालत में आप यह साबित कर डालते कि आप उस समय कानून की कस्टडी में थे।"


"उसके लिए यह भी जरूरी था कि आप दूसरे शहर में पकड़े जायें, किसी भी शहर में जाकर थाने में बन्द होना और जेल की हवा खाना बड़ा ही आसान काम है। प्लान के अनुसार आपको नौ तारीख को यह काम करना था और इत्तफाक से मैंने नौ तारीख की टिकट आपको थमा दी। आपके प्लान में एक ऐसे शख्स की जरूरत थी, जो आपकी कदकाठी का हो और क़त्ल भी कर सकता हो।"

विजय कुछ रुका ।

"सोमू पर आपका यह अहसान था कि उसे आपने बरी करवाया था और वैशाली का भी मार्ग प्रशस्त किया था, वैशाली ने जब घर में जिक्र किया कि आप पर जनार्दन नागा रेड्डी को क़त्ल करने का भूत सवार है, तो सोमू दौड़ा-दौड़ा आपके पास पहुँचा।
सोमू ने आपसे कहा कि आपको किसी का खून करने की क्या जरूरत है, वह किस काम आयेगा ? आपने सोमू को जांचा-परखा। उसकी कदकाठी आपसे मिलती थी, बस आपको वह शख्स बैठे-बिठाये मिल गया, जिसकी आपको तलाश थी।"

विजय ने पैकट से एक सिगरेट निकाली और पैकेट रोमेश की तरफ बढ़ाया, वह रोमेश की ब्राण्ड का ही पैक था।


रोमेश ने अनजाने में सिगरेट निकालकर होंठों में दबा लिया । विजय ने उसका सिगरेट सुलगा दिया।

"यह वो कहानी थी, जिसे न तो पुलिस समझ सकती थी और न अदालत। इस तरह तुम एक ही वक्त में दो जगह खड़े दिखाई दिये, आज तुम्हारा थाने में आखिरी दिन है। मैं परसों तुम्हें पेश कर दूँगा और जनार्दन नागा रेड्डी का मुकदमा री-ओपन करने की दरख्वास्त करूंगा।"

नौवें दिन विजय ने वह चाकू रोमेश को दिखाया, जिससे क़त्ल हुआ था।


"अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि वहाँ तुम्हारी उंगलियों के निशान किस तरह पाये गये। बियर की बोतल और गिलास जिस पर तुम्हारी उंगलियों के निशान थे, वह ओवरकोट की जेब में डाला गया था। जिस चाकू पर तुम्हारी उंगलियों के निशान थे, उसे भी वह साथ ले गया था।
चाकू को जख्म में फंसा कर छोड़ दिया गया, जो बियर उसने फ्रिज से निकलकर पी थी, उसकी जगह दूसरी बोतल रख दी। हमारे डिपार्टमेंट ने दूसरी जगह उंगलियों के निशान उठाने की कौशिश तो की, लेकिन फॉर्मेल्टी के तौर पर वहाँ उन्हें कहीं भी तुम्हारी उंगलियों के निशान नहीं मिले और हमने यह जानने की कौशिश नहीं की; कि चाकू पर जो निशान थे, बियर की बोतल और गिलास पर भी वही थे, तो दूसरी जगह पर क्यों नहीं पाये गये ?"


"ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनका जवाब हमें उसी वक्त तलाश लेना चाहिये था किन्तु तुमने जो ट्रैक बनाया था, वह इतना शानदार और नाकाबन्दी वाला था कि हम ट्रैक से बाहर दौड़ ही नहीं सकते थे। हम उसी ट्रैक पर दौड़ते हुए तुम तक पहुंचे और तुम अपने प्लान में कामयाब हो गये।" रोमेश ने मुस्कराते हुए कहा,

"मगर यह सब तुम साबित नहीं कर पाओगे।"

"मैं साबित कर दूँगा रोमेश !"




जारी रहेगा.......✍️✍️
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है विजय ने जेएन मर्डर केस की मिस्ट्री सुलझा ली है
 

Sanju@

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#.33
अंतिम अपडेट :declare:


"अदालत इस केस में मुझे बरी कर चुकी है, अब यह मुकदमा दोबारा मुझ पर नहीं चलाया जा सकता। मैं कानून की धाराओं का सहारा लेकर इसका पूरा विरोध करूंगा।"

"कानून की जितनी धाराओं की जानकारी तुम्हें है, उतनी ही वैशाली को भी है रोमेश ! वह सरकारी वकील के रूप में कोर्ट में तुम्हारे खिलाफ खड़ी होगी।"

"देखा जायेगा।" रोमेश ने मुस्कराते हुए कहा !

"लेकिन तुम लोग को इससे क्या फर्क पड़ता है, मुझे सीमा के क़त्ल के जुर्म में सजा तो होनी है। वह सजा या तो फाँसी होगी या आजन्म कारावास ! मैं कह चुका हूँ कि किसी भी जुर्म की दो बार फाँसी नहीं दी जा सकती, न ही आजन्म कारावास।"

"मैं वह केस तुम्हें सजा दिलवाने के लिए नहीं अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए री-ओपन करूंगा और उसे जीतकर दिखाऊंगा, भले ही तुम्हें उसमें सजा न हो।"

"लेकिन सोमू…।"

"वह भी उतना ही गुनहगार है, जितने कि तुम।"

"यह उसके ज्यादती होगी। उसका इसमें कोई कसूर नहीं।"

"है एडवोकेट साहब, वह भी फाँसी का ही मुजरिम है।"

"सुनो विजय, मुझसे शतरंज खेलने की कौशिश मत करो। अगर तुमने बिसात बिछा दी है, तो कानून की बिसात पर एक बार फिर तुम हार जाओगे और मुझे सीमा की हत्या के जुर्म में सजा नहीं दिलवा पाओगे। इसलिये मुझ पर दांव मत खेलो। यह सोचकर तुम केस री-ओपन करना कि तुम दोनों केस हारोगे या जीतोगे, फिर यह न कहना कि तुम सब-इंस्पेक्टर भी नहीं रहे।"

दसवें दिन।

"मैं तुम्हें एक आखिरी खबर और देना चाहता हूँ। अब तक मैं एक गुत्थी नहीं सुलझा पा रहा था, वो ये कि जब तुमने क़त्ल का प्लान बनाया, तो यह सोचकर बनाया कि जनार्दन नागा रेड्डी शनिवार की रात माया देवी के फ्लैट पर गुजारता है। दस जनवरी भी शनिवार का दिन था, इसलिए तुमने सोचा कि हर शनिवार की तरह वह इस शनिवार को भी वहाँ जरुर जायेगा और तुमने मर्डर के लिए वह जगह तय कर दी।"

"जाहिर है।"


"लेकिन तुम्हें शत-प्रतिशत यह यकीन कैसे होगा कि वह उस रात यहाँ पहुंचेगा ही। ऐसी सूरत में जबकि तुम उसे क़त्ल करने की धमकी दे चुके थे और बाकायदा तारीख घोषित कर चुके थे, क्या यह मुमकिन नहीं था कि वह उस दिन कहीं और रात गुजारता ? जबकि तुम माया देवी को भी बता चुके थे कि वह चश्मदीद गवाह होगी।"


"दरअसल बात सिर्फ यह थी कि जनार्दन नागा रेड्डी पिछले तीन साल से, हर शनिवार की रात माया के फ्लैट पर गुजारता था, यहाँ तक कि एक बार वह लंदन में था, तो भी फ्लाईट से मुम्बई आ गया और शनिवार की रात माया के फ्लैट पर ही सोया, अगली सुबह वह फिर लंदन फ्लाईट पकड़कर गया था। वह शख्स माया को बहुत चाहता था। सार्वजनिक रूप से उससे शादी नहीं कर सकता था। परन्तु वह उसकी पत्नी ही थी। उसका सख्त निर्देश होता था कि शनिवार की रात उसका कोई अपॉइंटमेंट न रखा जाये।"

रोमेश कुछ रुक कर बोला:

"मैंने इन सब बातों का पता लगा लिया था और कहावत है कि जब गीदड़ की मौत आती है, तो वह शहर की तरफ भागता है।"

"नहीं रोमेश, इतने से ही तुम संतुष्ट नहीं होने वाले थे। तुम्हें जनार्दन नागा रेड्डी हर कीमत पर उस रात उस फ्लैट में ही चाहिये था, वरना तुम्हारा सारा प्लान चौपट हो जाता।"

"ऐनी वे, इससे मुकदमे पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला कि वह मर्डर स्पॉट पर कैसे और क्यों पहुँचा?"


“लेकिन मैंने मायादास को भी अरेस्ट कर लिया है।”

"क्या ? "

"हाँ, मायादास भी इस प्लान में शामिल था। बल्कि मायादास इस मर्डर का सेंट्रल प्वाइंट है।"


"तुम चाहो, तो सारे शहर को लपेट सकते हो।"

"अब मैं तुम्हें अदालत में उपस्थित करने से पहले इस मर्डर प्लान की इनडोर स्टोरी सुनाता हूँ। दरअसल यह तो बहुत पहले तय हो गया था कि जे.एन. का मर्डर किया जाना है। मायादास और शंकर दोनों ही एक थैली के चट्टे-बट्टे हैं। दोनों की निगाह जनार्दन की अरबों की जायदाद पर थी। मायादास को यह भी डर था कि कहीं जनार्दन, माया देवी से विवाह न कर ले। यह शख्स शंकर का आदमी था और जे.एन. की दौलत का पच्चीस प्रतिशत साझीदार इसे बनना था। मायादास इस मर्डर का मेन प्वाइंट है।“

“पहले उसने सोचा कि मर्डर करके अगर कोई गिरफ्तारी भी होती है, तो किसी ऐसे वकील की व्यवस्था की जाये, जो उन्हें साफ बचा कर ले जाये, उसकी नजर में ऐसे वकील तुम थे।"

"हो सकता है ।" रोमेश ने कहा।

"उसने शंकर से तुम्हारा जिक्र किया। संयोग से शंकर तुम्हारी पत्नी को पहले से जानता था और क्लबों में मिलता रहा था। उसने यह बात सीमा भाभी से भी पूछी होगी। उधर मायादास ने भी तुम्हें टटोल लिया और इस नतीजे पर पहुंचे कि तुम इस काम में उनकी मदद नहीं करोगे। इसी बीच एम.पी. सांवत का मर्डर हो गया और मायादास को एक मौका मिल गया। उसने ऐसा ड्रामा तैयार कर डाला कि तुम्हारी जे.एन. से ठन जाये।“


“हालांकि उस वक्त जे.एन. भी तुमसे सख्त नाराज था, क्यों कि तुम्हारी मदद से उसका आदमी पकड़ा गया था, जे.एन. तुम्हें इसका कड़ा सबक सिखाना चाहता था, इसी का फायदा उठा कर मायादास, शंकर और सीमा ने मिलकर एक ड्रामा स्टेज किया। तुम्हारे बैडरूम में सीमा भाभी को जो अपमानित और टॉर्चर किया गया, वह नाटक का एक हिस्सा था। या यूं समझ लो, वह किसी फिल्म का शॉट था।"


"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।"


"ऐसा ही था मित्र, यहीं से सीमा ने तुमसे पच्चीस लाख की डिमांड रखी और तुम्हें छोड़कर चली गई। अब तुम्हारे दिमाग में एक फितूर था कि यह सब जे.एन. के कारण हुआ। तुमने जे.एन. को सबक सिखाने की सोच भी ली, लेकिन तुम उस वक्त उसे कानूनी तौर पर बांधना चाहते थे।"


"ठीक उसी वक्त गर्म लोहे पर चोट कर दी गयी, यानि शंकर फ्रेम में आ गया, पच्चीस लाख की ऑफर लेकर और तुमने स्वीकार कर ली, क्यों कि तुम यह जान चुके थे कि जे.एन. को कानूनी तौर पर सजा नहीं दी जा सकती, तुम उसे खुद मौत के घाट उतारने के लिए तैयार हो गये।"

रोमेश के चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आये।

"मुझे मत सुनाओ यह सब, इसीलिये तो मैंने सीमा को दंड दिया। मैं उसे बेइन्तहा प्यार करता था और उसने मुझे क्या दिया, क्या सिला दिया उसने और तुम तो सब जानते ही थे। क्या कमी थी मुझमें ? मैंने उसकी कौन-सी ख्वाइश पूरी नहीं की ? उसके क्लबों के बिल भी भुगतता था। मैंने उसकी आजादी में कभी टांग नहीं अड़ाई। फिर उसने ऐसा क्यों किया मेरे साथ ?”


“देखो विजय, अगर यह सब बातें अदालत में उधड़कर आएँगी, तो मेरी सामाजिक जिन्दगी तबाह हो कर रह जायेगी। मैं इज्जत के साथ मरना चाहता हूँ। यह सब मैं सुनना भी नहीं चाहता, वह मर चुकी है,उसे सजा मिल चुकी है।"

"उसे सजा मिल चुकी, लेकिन मुझे किस गुनाह की सजा मिली, जो मेरा एक स्टार उतार दिया गया। खैर मैं तुम्हें बताता हूँ कि जनार्दन नागा रेड्डी खुद मर्डर स्पॉट पर कैसे घुस गया।"

"उसे मायादास ने वहाँ पहुंचाया था।"


"हाँ, तुमने इसी बीच शंकर को फोन किया था और उस समस्या का समाधान चाहा। शंकर ने कह दिया कि समाधान हो जायेगा, वह मर्डर स्पॉट तय करे, जे.एन. को वहाँ पहुँचा दिया जायेगा। तुमने सही जगह तय की और उधर से ग्रीन सिग्नल दिया गया। जे.एन. के सारे प्रोग्राम मायादास ही तय करता था, उसके अपॉइंटमेंट भी मायादास तय करता था। जे.एन. को उस जगह पहुंचाने में मायादास को जरा भी परेशानी नहीं उठानी पड़ी।

दैट्स आल मीलार्ड !" विजय बाहर निकल गया।

अगले दिन :…….
अदालत और अदालत से बाहर एक बार फिर तिल रखने की जगह न थी। रोमेश सक्सेना की दोबारा गिरफ्तारी भी कम सनसनी खेज नहीं थी। इस बार पुलिस की तरफ से सरकारी वकील राजदान नहीं था बल्कि वैशाली वहाँ खड़ी थी।

"योर ऑनर, इस संगीन मुकदमे पर प्रकाश डालने से पहले मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगी कि मुझे जे.एन. मर्डर केस पर एक बार फिर प्रकाश डालने का अवसर दिया जाये, क्यों कि सीमा मर्डर केस का सीधा सम्बन्ध जनार्दन नागा रेड्डी के मर्डर केस से जुड़ता है और क़त्ल की इन दोनों ही वारदातों का मुल्जिम एक ही व्यक्ति है, रोमेश सक्सेना !"


"जनार्दन नागा रेड्डी मर्डर के बारे में कानून, अदालत, न्यायाधीश पुलिस को एक शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा था। कानून के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं है, इसलिये अदालत जनार्दन नागा रेड्डी मर्डर केस को दोबारा शुरू करने की अनुमति देती है।"

"थैंक्यू योर ऑनर !"

"आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर !" रोमेश ने आपत्ति प्रकट की !


"यह मुकदमा जे.एन. मर्डर केस नहीं है। जे.एन. मर्डर केस का फैसला हो चुका है, अदालत अपना दिया फैसला कैसे बदल सकती है ?"

"बदल सकती है।" वैशाली ने दलील दी,


"ठीक उस तरह जैसे सेशन कोर्ट में दिया गया फैसला हाईकोर्ट बदल देती है और हाईकोर्ट में दिया फैसला सुप्रीम कोर्ट बदल सकती है। हाँ, सुप्रीम कोर्ट का दिया फैसला, फिर कोई अदालत नहीं बदल सकती।"

"आप तो कानून के दिग्गज खिलाड़ी है सर रोमेश सक्सेना ! आप तो जानते हैं कि जब एक मुलजिम को सजा हो जाती है, तो वह सुप्रीम कोर्ट तक अपील कर सकता है। अब अगर पुलिस कोर्ट केस हार जाती है, तो सभी ऊपरी अदालतों में अपील कर सकती है, आपको सेशन कोर्ट ने बरी किया है, हाईकोर्ट ने नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने नहीं। इसलिये मुकदमा अभी खत्म नहीं होता, इसे री-ओपन करने का कानूनी हक़ अभी हमें है।"

कानूनी बहसों के बाद वैशाली का पक्ष उचित ठहराया गया, यह अलग बात है कि जे.एन. मर्डर केस को हाईकोर्ट में री-ओपन करने की इजाजत दी गयी। रोमेश सक्सेना के यह दोनों ही केस हाईकोर्ट में ट्रांसफर हो गये।

रोमेश के अतिरिक्त मायादास और सोमू भी मुलजिम थे। तीनो को आजन्म कारावास की सजा हो गयी। वैशाली ने मुकदमा जीत लिया। जेल जाते समय वैशाली और विजय ने रोमेश से मुलाकात की।


"हाँ, मैं हार गया। सचमुच हार गया। तुम्हें बधाई देता हूँ वैशाली ! याद रखना मेरे बाद तुम्हें मेरे आदर्शों पर चलना है।"

"वही सब तो किया है मैंने सर ! कानून के आदर्शों को स्थापित किया।"

"मुझे तुम पर फख्र है और विजय तुम पर भी। आखिर जीत सच्चाई की होती है, अब मैं चलता हूँ। कुछ आराम करना चाहता हूँ।”

"आपको और सोमू को हमारी शादी में आना है, इसके लिए हमने पैरोल की एप्लीकेशन लगवा दी है।" विजय ने कहा।

"उचित होता कि तुम इस अवसर पर न बुलाते।"

"नहीं, यह हमारा जाति मामला है। वैशाली को आपने आशीर्वाद देना है। कानून की लड़ाई तो खत्म हो चुकी, अब हमारे पुराने सम्बन्ध तो खत्म नहीं होते। हम जेल में भी मिलने आते रहेंगे। शादी में तो शामिल होना ही होगा रोमेश।"


"ओ.के. ! ओ.के. !!"

रोमेश ने विजय और वैशाली के हाथ जोड़े और उन्हें थपथपाया फिर वह सलाखों के पीछे चला गया।



समाप्त__:happy:
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है रोमेश को सजा हो गई आखिर वैशाली ने रोमेश के उशूलो को आगे बढ़ा कर गुनेहगार को सजा दिलवा दी है
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है विजय ने जेएन मर्डर केस की मिस्ट्री सुलझा ली है
Bilkul bhai, 👍
Thank you so much for your valuable review and support ❣️
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है रोमेश को सजा हो गई आखिर वैशाली ने रोमेश के उशूलो को आगे बढ़ा कर गुनेहगार को सजा दिलवा दी है
Ye to hona hi tha bhai, bas ek gunahgaar bach gaya uska khed hai, Thanks for your wonderful review and support bhai :hug:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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dosto maine ek nai story suru kiya hai
"flying Ship सुप्रीम "
name hai, aap sabka swagat hai
 

Shetan

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# 30

रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था।

गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ. था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछा लेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था। अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था। उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी।

कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था। इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। विजय ने फोन रिसीव किया।

"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन।" दूसरी तरफ से पूछा गया।

"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन।"

"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"

"क्या ?" विजय चौंक पड़ा,

"तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ।"

"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे। खैर अच्छा ही है यार, तुम हो। देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो।"

"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है। तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया। लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"

"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा।"

"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा।"

"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है। अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ। मैंने यहाँ एक खून कर डाला है।”

"क्या ? " विजय उछल पड़ा।

"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है।"

"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"

"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में।"

"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो।"

"यह मजाक नहीं है। तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ। अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा। उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे।"

"पता बताओ।"

रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया। विजय ने थाना इंचार्ज रवि कांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया। उसके साथ चार सिपाही थे बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। बारिश थम गई थी। इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे। इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है। विजय अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुँचा। खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी। रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे। वह विक्षिप्त-सा बैठा था। पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी। पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे।

विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया। जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था। उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था।

विजय उठ खड़ा हुआ। उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया। उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया। रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा। रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये। विजय ने हथकड़ी पहना दी।

रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी। घटना स्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे। पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटना स्थल पर पहुंची थी। रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया। लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा,


"विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है। वह अदालत भगवान की अदालत है। जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है। उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्यों कि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा।"

विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया। एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था। सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं। वह बड़ा सनसनी खेज कांड था,

एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं। रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी।

"वहाँ एक आदमी और मौजूद था।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी।

"मुझे नहीं मालूम।" रोमेश ने कहा।

"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा।"

"उसका कसूर ही क्या है। सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी।"


"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"

"ठहरो , मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है।"

"क्या ?"

"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे। मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे। मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी। खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है। उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती। अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती। इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ।"


"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है। बड़ी रुसवाई हुई है। इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो।"

"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला।"

"मैं मालूम कर लूँगा। तुम्हें घटना स्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है। मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।"

"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"

"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं। आपको टार्चर नहीं किया जा सकता। आप अपना मेडिकल करवा कर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा।"

"तुम कभी नहीं जान पाओगे।"

"वक्त __________बतायेगा।"


विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया। उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था। रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था। अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा। उसने अपना कोई बयान नहीं दिया।


"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त।" रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।

"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ। पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था। उसका नाम है- शंकर नागा रेड्डी।"

विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया। रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप रहा। एक दिन और गुजर गया । विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था। उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो। लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया।

"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागा रेड्डी ने दिया था। हम शंकर नागा रेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है। मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी।"




जारी रहेगा.......✍️✍️
Bahot khub. Vijay jid par ada he ki vo khud pata lagaega. Magar ye to aham hi hai. Magar vakil sahab ne apni biwi ke katal ka julm khud kabul kar liya. Kahi na kahi vakil sahab police ke sajirye reddy ko bahar nikalvana chahte hai. Maza aaya.
 

Shetan

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# 31

विजय रूककर रोमेश के खामोश चेहरे को देखता रहा, जिस पर कोई भाव नहीं था।

"ऐनी क्वेश्चन ?" विजय ने पूछा। रोमेश ने कोई प्रश्न नहीं किया।

"नो क्वेश्चन ?" विजय ने गर्दन हिलाई और बाहर निकल गया। एक बार फिर लॉकअप पर ताला पड़ गया। तीसरा दिन गुजर गया।

विजय एक बार फिर लॉकअप में दाखिल हुआ।

"मेरे साथ वैशाली भी काम कर रही है। वैशाली अब सरकारी वकील बन गई हैं। अगली बीस तारीख को हमारी शादी होने वाली है, ये रहा निमंत्रण।" विजय ने रोमेश को निमंत्रण दिया।

"इस तारीख को तुम पैरोल पर छूट सकते हो रोमेश।" रोमेश कुछ नहीं बोला।

"इस खुशी के मौके पर मैं तुम्हें कोई बुरी खबर नहीं सुनाना चाहता। हालातकुछ भी हो, तुम्हें शादी में शरीक होना है।" रोमेश ने कोई उत्तर नहीं दिया। कार्ड उसके हाथ में थमाकर गर्दन हिलाता बाहर निकल गया।

चौथा दिन भी बीत गया। रोमेश का मौन व्रत अभी टूटा नहीं था।

"आज की खबर बहुत जोरदार है रोमेश सक्सेना ?" विजय ने लॉक अप में कदम रखते हुए कहा !


"शंकर नागा रेड्डी सरकारी गवाह बन गया है और उसने हमें बताया कि उसने पच्चीस लाख रुपया तुम्हें जे.एन. की हत्या के लिए दिया था। उसका तुम्हारी पत्नी से भी लगाव था। अब यह बात भी समझ में आ गई कि तुमने अपनी पत्नी की हत्या क्यों कर डाली। तुम्हारी बीवी यह कहकर तुम्हारी जिन्दगी से रुखसत हो गई कि अगर तुम उसे फिर से पाना चाहते हो, तो उसके एकाउन्ट में पच्चीस लाख रुपया जमा करना होगा और शंकर यह रकम लेकर आ गया। तुमने जे.एन. के क़त्ल का ठेका ले लिया, शर्त यह थी कि तुम्हें क़त्ल के जुर्म में गिरफ्तार भी होना है और बरी भी, तुमने शर्त पूरी कर दी।"

विजय लॉकअप में टहलता रहा।

"बाद में तुम यह रुपया लेकर अपनी पत्नी के पास पहुंचे, वह लोग यह सोच भी नहीं सकते थे कि तुम उस फ्लैट तक पहुंच जाओगे। वह एक दूसरे से शादी करने का प्रोग्राम बनाये बैठे थे। सीमा यह चाहती थी कि पहले पच्चीस लाख की रकम भी तुमसे ले ली जाये, उसके बाद वह शंकर से शादी कर लेती और तुम हाथ मलते रह जाते।"

रोमेश चुप रहा।

"तुमने बड़ी जल्दी अपनी पत्नी का पता निकाला और जा पहुंचे उस जगह, जहाँ तुम्हारी बीवी किसी और की बांहों में मौजूद थी और फिर तुमने अपनी बीवी को बेरहमी से मार डाला।"

"शंकर नागा रेड्डी अपना लाइसेन्स -शुदा रिवॉल्वर छोड़ गया था, जिसकी पहली गोली उसने तुम पर चलाई, तुम बच गये, शंकर को भागने का मौका मिल गया। वरना तुम उसका भी खून कर डालते। हो सकता है, तुम अभी भी यह तीसरा खून करने का इरादा रखते हो।"

रोमेश चुप रहा।

"मैं चाहता था कि जिस तरह तुम अदालत में बहस करते हो, उसी तरह यहाँ भी करो। लेकिन लगता है, तुम्हारा मौनव्रत फाँसी के फंदे पर ही टूटेगा।" इतना कहकर विजय बाहर निकल गया।


"अब यह बात तो साफ है कि इस काम के लिए दो आदमियों का इस्तेमाल हुआ।" विजय ने कहा।

"दूसरा कौन ?" वैशाली बोली,

"क्या कोई हमशक्ल था ?"

"मेरे ख्याल से यह डबल रोल वाला मामला हरगिज न था, जेल के अन्दर तो रोमेश ही था, यह पक्के तौर पर प्रमाणिक है।"

"कैसे कह सकते हो विजय ?"

"साफ सी बात है, हमने रोमेश को राजधानी में बिठाया। राजधानी बड़ौदा से पहले कहीं रुकी ही नहीं। रामानुज ने रोमेश को बड़ौदा में पुलिस के हैण्डओवर कर दिया। जहाँ से रोमेश को जेल भेज दिया गया। जब किसी आदमी को सजा होती है, तो उसके फोटो और फिंगर प्रिंट उतारे जाते हैं। जेल में दाखिल होते समय भी फिंगर प्रिंट लिये जाते हैं।“


“रोमेश सक्सेना दस जनवरी को जेल में था। अब हमें यह पता लगाना है कि मौका-ए-वारदात पर कौन शख्स पहुँचा। लेकिन अगर वह शख्स कोई और था, तो माया देवी ने उसे रोमेश क्यों बताया ? क्या वह सचमुच रोमेश का हमशक्ल था ? अगर वह रोमेश का हमशक्ल नहीं था, तो क्या माया देवी भी इस प्लान में शामिल थी।"


"थोड़ी देर के लिए मैं अपने आपको रोमेश समझ लेता हूँ। मेरी पत्नी पच्चीस लाख की डिमांड करके मुझे छोड़कर चली गई और मैं उसे हर कीमत पर हासिल करना चाहता हूँ। नागा रेड्डी को भी उसके किये का सबक पढ़ाना चाहता हूँ। कानून उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। कानून की निगाह में वह फाँसी का मुजरिम है, किन्तु उसे एक दिन की भी सजा नहीं हो सकती। मेरे मन में एक जबरदस्त हलचल हो रही है, मैं फैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि जनार्दन नागा रेड्डी को क्या सजा दूं या दिलवाऊं और कैसे ?"


विजय खड़ा हुआ और टहलने लगा।

"तभी शंकर आता है।" वैशाली बोली,

"और जनार्दन नागा रेड्डी की हत्या के लिये पच्चीस लाख देने की बात करता है।"

"कुछ देर के लिये मैं धर्म संकट में पड़ता हूँ, फिर सौदा स्वीकार कर लेता हूँ। सौदा यह है कि मुझे क़त्ल करके खुद को बरी भी करना है, इसका मतलब यह हुआ कि मुझे गिरफ्तार भी किया जायेगा। अब मैं पूरा प्लान बनाता हूँ और सबसे पहले तुम्हें अपने करीब से हटाता हूँ, नौकर को चले जाने के लिये कहता हूँ। अब मैं खास प्लान बनाता हूँ कि मुझे यह काम किस तरह करना है।" विजय बैठकर सोचने लगा।


"चारों गवाहों के बयानों से पता चलता है कि रोमेश पहले ही इनसे मिलकर इन्हें अपने केस के लिये गवाह बना चुका था। इसका मतलब रोमेश यह चाहता था कि पुलिस को वह उस ट्रैक पर ले जाये, जो वह चाहता है। उसने गवाह खुद इसी लिये तैयार किए और पुलिस ठीक उसी ट्रैक पर दौड़ पड़ी, जिस पर रोमेश यानि मैं दौड़ना चाहता था।"


"और ट्रैक में यह था कि पुलिस इस केस को एक ही दृष्टिकोण से इन्वेस्टीगेट करे। यानि सबको पहले से ही एक लाइन दी गयी, यह कि अगर जे.एन. का मर्डर हुआ, तो रोमेश ही करेगा। रोमेश के अलावा कोई कर ही नहीं सकता। पुलिस को भी इसका पहले ही पता था, इसलिये मर्डर स्पॉट से इंस्पेक्टर विजय तुरंत रोमेश के फ्लैट पर पहुंचा। जहाँ उसे एक आवाज सुनाई दी, रुक जाओ विजय, और इंस्पेक्टर विजय ने एक पल के लिये भी यह नहीं सोचा कि वह आवाज रिकॉर्ड की हुई भी हो सकती है।"


"माई गॉड !" विजय उछल पड़ा,

"यकीनन वह आवाज टेप की हुई थी, खिड़की के पास एक स्पीकर रखा था। मुझे ध्यान है, उसने एक ही तो डायलॉग बोला था, लेकिन वो शख्स जिसे मैंने खिड़की पर देखा।" विजय रुका और फिर उछल पड़ा !!


"चलो मेरे साथ, हम जरा उस डिपार्टमेंटल स्टोर में चलते हैं, जहाँ रोमेश ने कॉस्ट्यूम खरीदा था।"

विजय और वैशाली डिपार्टमेन्टल स्टोर में पहुंच गये। चंदू सेल्स कांउटर पर मौजूद था। इंस्पेक्टर विजय को देखते ही वह चौंका।


"सर आप कैसे, क्या फिर को ई झगड़ा हो गया ?" चंदू घबरा गया।

"हमें वह ड्रेस चाहिये, जो तुमने रोमेश को दी थी।"


"क… क्यों साहब ? क… क्या आपको भी ?"

"हाँ , हमें भी उसी तरह एक खून करना है, जैसे रोमेश ने किया। हम भी बरी हो कर दिखायेंगे।”

"ब… बाप रे ! क… क्या मुझे फिर से गवाही देनी होगी ?"

"तुमने ही गवाही दी थी चंदू ! मैं तुम्हें झुठी गवाही देने के जुर्म में गिरफ्तार कर सकता हूँ ।"

"म… मैंने झूठी गवाही नहीं दी सर ! वह ही वो सब कहकर गया था ।"

"बस ड्रेस निकालो।" विजय ने पुलिस के रौब में कहा,

"मेरा मतलब है, वैसी ही ड्रेस ।"

"द… देता हूँ।" चंदू अन्दर गया, वह बड़बड़ा रहा था,

"लगता है सारे शहर के खूनी अब मेरी ही दुकान से ड्रेस खरीदा करेंगे और मैं रोज अदालत में गवाही देने के लिये खड़ा रहूँगा।"

चंदू ने ओवरकोट, पैंट, शर्ट, सब लाकर रख दिया।

"मैं जरा यह ड्रेस चैंज करके देखता हूँ ।" विजय बराबर में बने एक केबिन में दाखिल हो गया, जो ड्रेस चैंज करने के ही काम में इस्तेमाल होता था। जब वह बाहर निकला, तो ठीक उसी गेटअप में था, जिसमें रोमेश ने क़त्ल किया था। विजय ने ड्रेस का मुआयना किया और शॉप से बाहर निकल गया।


"तुमने एक बात गौर किया वैशाली ?" रास्ते में विजय ने कहा।

"क्या ?"

"रोमेश ने कॉ स्ट्यूम चुनते समय मफलर भी रखा था, जबकि वह मफलर हमें बरामद नहीं हुआ। उसकी वजह क्या हो सकती है ? वार्निंग के अनुसार उसने सारे कपड़े बरामद कराये, फिर मफलर क्यों नहीं करवाया और इस मफलर का क्या इस्तेमाल था ? मैं आज रात इस मफलर का इस्तेमाल करना चाहता हूँ।"

रात के ठीक दस बजे विजय एक मोटर साईकिल द्वारा माया देवी के फ्लैट पर पहुँचा। उसने फ्लैट की बेल बजाई, कुछ ही पल में द्वार खुला। दरवाजा खोलने वाली माया की नौकरानी थी। नौकरानी ने चीख मारी,

"तुम !"

वह दरवाजा बन्द करना चाहती थी, लेकिन विजय ने दरवाजे के बीच अपनी टांग फंसा दी। नौकरानी बदहवास पलटकर भागी।

"मालकिन ! मालकिन !! वह फिर आ गया।" नौकरानी अभी भी चीखे जा रही थी।


"कौन आ गया ?" माया की आवाज सुनाई दी।





जारी रहेगा........✍️✍️
Waw vaishali ki soch bilkul sahi thi. Katal karne vala aur Vadodra se mumbai travel karne vala dono alag alag hai. Train me surat dikhi. Matlab ki vo vakil sahab the. To fir vo dress vala muh par maflar bandhe kon ho sakta hei. Amezing update.
 

Shetan

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# 32

तब तक विजय अन्दर कदम रख चुका था, वह ड्राइंगरूम में कमर पर हाथ रखे और टांगे फैलाये खड़ा था, तभी माया देवी ने ड्राइंगरूम में कदम रखा।

"तुम !" वह चीख पड़ी,

"रोमेश सक्सेना, तुम ! मैं अभी पुलिस को फोन करती हूँ, तुम यहाँ क्यों आये ? क्या फिर किसी का खून ?"

विजय ने सिर से हेट उतारा और फिर चेहरे से मफलर। अब विजय को सामने देखकर माया भी हैरान हो गयी। वह हैरत से फटी आँखों से विजय को देख रही थी।

"अ… आप ?"

"हाँ , मैं !"

"म… मगर… ब… बैठिये।" विजय बैठ गया।

"मगर यह सब क्या है ?"

"मैं एक शक दूर करना चाहता था।"

"क्या ? "

"माया देवी अगर आपने पुलिस को बयान देते वक्त यह बताया होता कि फ्लैट में दाखिल होने वाले रोमेश ने अपना चेहरा मफलर में छिपाया हुआ था, तो कहानी कुछ और बनती। मैं अदालत में कभी केस न डालता और सबसे पहले यह जानने की कौशिश करता कि जिस रोमेश सक्सेना का आपने चेहरा नहीं देखा, वह दरअसल रोमेश ही था या कोई और।"


"त… तो क्या वह रोमेश नहीं था ?"

"नहीं मैडम, वह कोई और था।"

"मगर उससे पहले जब रोमेश मिला था, तो वह धमकी देकर गया था, उसने यही ड्रेस पहना हुआ था।"


"सारा धोखा ड्रेस का ही तो है, पहली बार यहाँ आया और तुम्हें गवाह बनाने के लिये कह गया। क्या उस वक्त भी उसने चेहरा मफलर में ढ़का हुआ था ?"

"नहीं , लेकिन वापिस जाते समय उसने चेहरा मफलर में छिपा लिया। उस वक्त मैंने यह समझा कि हो सकता है, वह अपना चेहरा छिपाना चाहता हो। ताकि कोई राह चलता शख्स उसकी शिनाख्त न कर बैठे। क़त्ल की रात वह इसी तरह मफलर लपेटे था।"


"और तुमने केवल उसका गेटअप देखकर यह समझ लिया कि वह रोमेश है। लेकिन वह कोई और था। जिसकी कद-काठी हूबहू रोमेश से मिलती थी, हो सकता है कि उसकी चाल ढाल भी रोमेश जैसी हो। यह भी हो सकता है कि उसने रोमेश की आवाज की नक़ल करने की भी प्रैक्टिस भी कर ली हो।" विजय उठ खड़ा हुआ।

छठा दिन ।

विजय इंस्पेक्टर की ड्रेस में नहीं था। वह उसी गेटअप में था, मफलर चेहरे पर लपेटे, काली पैन्ट, काली शर्ट, ओवरकोट। रोमेश उसे देखकर चौंका, जब विजय अन्दर दाखिल हुआ, तो पीछे से हवलदार ने लॉकअप में ताला डाल दिया। विजय दीवार की तरफ चेहरा किये खड़ा हो गया।

"तुम… तुम कैसे पकड़े गये ?" रोमेश के मुँह से निकला ।

विजय चुप रहा । उसने कोई उत्तर नहीं दिया ।

"मेरे सवाल का जवाब दो सोमू, तुम्हें तो अब तक लंदन पहुंच जाना था। तुम कैसे पकड़े गये, बोलो ?" रोमेश उठ खड़ा हुआ ।

रोमेश, विजय के पास पहुँचा। उसने विजय का कंधा पकड़कर एक झटके में घुमाया, विजय के चेहरे से मफलर खिंच गया और हैट विजय ने स्वयं उतार दी।

"माई गॉड !" रोमेश पीछे हटता चला गया।

"उस पेचीदा सवाल का जवाब तुमने खुद दे दिया है रोमेश, अब गुत्थी सुलझ गई।



“वह शख्स जो तुम्हारी जगह क़त्ल करने माया के फ्लैट पर पहुँचा, उसका नाम सोमू था। सोमू यानि वैशाली का बड़ा भाई, मेरा साला। "

"अब बात समझ में आ रही है, वह पिछले दिनों कह रहा था कि लंदन में उसे नौकरी मिल गई है। उसने अपना वीजा पासपोर्ट भी बनवा लिया था। शायद तुमने उसे पैसे के मामले में हेल्प की होगी, वह अपनी बहन की शादी की वजह से रुक न गया होता, तो यह गुत्थी कभी न सुलझ पाती कि जब सोमू ने तुम्हारे प्लान के अनुसार क़त्ल किया, तो खंजर पर उसके बजाय तुम्हारी उंगलियों के निशान कैसे पाये गये। अब हमें सारे सवालों का जवाब मिल जायेगा।"

रोमेश एक बार फिर चुप हो गया।

"तुम अपने ही बनाये गेटअप से धोखा खा गये रोमेश, तो भला माया देवी क्यों न खाती।" इतना कहकर विजय बाहर निकल गया ।

सातवां दिन।

विजय एक बार फिर लॉकअप में था।

"अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कितनी ही चतुराई से फुलप्रूफ प्लान क्यों न बनाये, उससे कहीं न कहीं चूक तो हो ही जाती है। दरअसल इस पूरे मामले में पुलिस ने एक ही लाइन पर काम किया। उसने यह पहले ही मान लिया कि क़त्ल रोमेश ने ही किया है और जुनूनी हालत के कारण किया।"


"बस यह सबसे बड़ी भूल थी। इसका परिणाम था कि पूरे घटनाक्रम की बारीकी से जांच ही नहीं की गयी। अगर उस ख़ंजर की बारीकी से जांच की गयी होती, जो चाकू जे.एन. की लाश में पैवस्त पाया गया था, तो साफ पता चल जाता कि क़त्ल उस चाकू से नहीं हुआ, उस पर सिर्फ जे.एन. का खून लगा था। उसे केवल घाव में फंसाया गया था, वह बिल्कुल नया का नया था और उससे कोई वार भी नहीं किया गया था। लेकिन तुमसे एक चूक हो गयी। तुमने सोमू को उस चाकू के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया था, जिससे जे.एन. का क़त्ल हुआ।"


विजय कुछ पल के लिए खामोश हो गया।

"और हमने वह चाकू बरामद कर लिया है। जब उसकी जांच होगी, तो पता चल जायेगा कि उस पर भी वह खून लगा, जो जे.एन. के शरीर से बहा था। यह चाकू सोमू ने उसी रात अपने घर के आंगन में गाड़ दिया था और अब वैशाली की मदद से उससे सब मालूम कर लिया है।"


आठवें दिन विजय ने बड़े नाटकीय अन्दाज में कहना शरू किया।

"मिस्टर रोमेश सक्सेना, आपने पूरा प्लान इस तरह बनाया। आप इस मर्डर की भूमिका इस तरह बनाना चाहते थे कि अगर जे.एन. का क़त्ल कोई भी करता, तो पुलिस आपको ही गिरफ्तार करती। आपने यह तय कर लिया था कि सबूत और गवाहों का रास्ता भी दुनिया के लिये आसान रहे, उसे कुछ भी तफ्तीश न करनी पड़े और अदालत में आप यह साबित कर डालते कि आप उस समय कानून की कस्टडी में थे।"


"उसके लिए यह भी जरूरी था कि आप दूसरे शहर में पकड़े जायें, किसी भी शहर में जाकर थाने में बन्द होना और जेल की हवा खाना बड़ा ही आसान काम है। प्लान के अनुसार आपको नौ तारीख को यह काम करना था और इत्तफाक से मैंने नौ तारीख की टिकट आपको थमा दी। आपके प्लान में एक ऐसे शख्स की जरूरत थी, जो आपकी कदकाठी का हो और क़त्ल भी कर सकता हो।"

विजय कुछ रुका ।

"सोमू पर आपका यह अहसान था कि उसे आपने बरी करवाया था और वैशाली का भी मार्ग प्रशस्त किया था, वैशाली ने जब घर में जिक्र किया कि आप पर जनार्दन नागा रेड्डी को क़त्ल करने का भूत सवार है, तो सोमू दौड़ा-दौड़ा आपके पास पहुँचा।
सोमू ने आपसे कहा कि आपको किसी का खून करने की क्या जरूरत है, वह किस काम आयेगा ? आपने सोमू को जांचा-परखा। उसकी कदकाठी आपसे मिलती थी, बस आपको वह शख्स बैठे-बिठाये मिल गया, जिसकी आपको तलाश थी।"

विजय ने पैकट से एक सिगरेट निकाली और पैकेट रोमेश की तरफ बढ़ाया, वह रोमेश की ब्राण्ड का ही पैक था।


रोमेश ने अनजाने में सिगरेट निकालकर होंठों में दबा लिया । विजय ने उसका सिगरेट सुलगा दिया।

"यह वो कहानी थी, जिसे न तो पुलिस समझ सकती थी और न अदालत। इस तरह तुम एक ही वक्त में दो जगह खड़े दिखाई दिये, आज तुम्हारा थाने में आखिरी दिन है। मैं परसों तुम्हें पेश कर दूँगा और जनार्दन नागा रेड्डी का मुकदमा री-ओपन करने की दरख्वास्त करूंगा।"

नौवें दिन विजय ने वह चाकू रोमेश को दिखाया, जिससे क़त्ल हुआ था।


"अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि वहाँ तुम्हारी उंगलियों के निशान किस तरह पाये गये। बियर की बोतल और गिलास जिस पर तुम्हारी उंगलियों के निशान थे, वह ओवरकोट की जेब में डाला गया था। जिस चाकू पर तुम्हारी उंगलियों के निशान थे, उसे भी वह साथ ले गया था।
चाकू को जख्म में फंसा कर छोड़ दिया गया, जो बियर उसने फ्रिज से निकलकर पी थी, उसकी जगह दूसरी बोतल रख दी। हमारे डिपार्टमेंट ने दूसरी जगह उंगलियों के निशान उठाने की कौशिश तो की, लेकिन फॉर्मेल्टी के तौर पर वहाँ उन्हें कहीं भी तुम्हारी उंगलियों के निशान नहीं मिले और हमने यह जानने की कौशिश नहीं की; कि चाकू पर जो निशान थे, बियर की बोतल और गिलास पर भी वही थे, तो दूसरी जगह पर क्यों नहीं पाये गये ?"


"ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनका जवाब हमें उसी वक्त तलाश लेना चाहिये था किन्तु तुमने जो ट्रैक बनाया था, वह इतना शानदार और नाकाबन्दी वाला था कि हम ट्रैक से बाहर दौड़ ही नहीं सकते थे। हम उसी ट्रैक पर दौड़ते हुए तुम तक पहुंचे और तुम अपने प्लान में कामयाब हो गये।" रोमेश ने मुस्कराते हुए कहा,

"मगर यह सब तुम साबित नहीं कर पाओगे।"

"मैं साबित कर दूँगा रोमेश !"




जारी रहेगा.......✍️✍️
Wow amezing. Somu katal kar raha tha. Vo ehsan chuka raha tha. Muje Vijay ki leed vala ye update pasand aaya. Ye vahi muhavra hai. Baaz chuha jaha hai vaha nahi jaha pahochne vala hai vaha nishana lagata hai. Amezing update
 
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