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Romance Ummid Tumse Hai

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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अनुनय विनय

मेरी यह कहानी किसी धर्म, समुदाय, संप्रदाय या जातिगत भेदभाव पर आधारित नहीं हैं। बल्कि यह एक पारिवारिक स्नेह वा प्रेम, जीवन के उतर चढ़ाव और प्रेमी जोड़ों के परित्याग पर आधारित हैं। मैने कहानी में पण्डित, पंडिताई, पोथी पोटला और चौपाई के कुछ शब्द इस्तेमाल किया था। इन चौपाई के शब्द हटा दिया लेकिन बाकी बचे शब्दो को नहीं हटाऊंगा। क्योंकि पण्डित (सरनेम), पंडिताई (कर्म) और पोथी पोटला (कर्म करने वाले वस्तु रखने वाला झोला) जो की अमूमन सामान्य बोल चाल की भाषा में बोला जाता हैं। इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चहिए फिर भी किसी को परेशानी होता हैं तो आप इन शब्दों को धारण करने वाले धारक के प्रवृति से भली भांति रूबरू हैं। मैं उनसे इतना ही बोलना चाहूंगा, मैं उनके प्रवृति से संबंध रखने वाले कोई भी दृश्य पेश नहीं करूंगा फिर भी किसी को चूल मचती हैं तो उनके लिए

सक्त चेतावनी


मधुमक्खी के छाते में ढील मरकर अपने लिए अपात न बुलाए....
 
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Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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सुनूं मुनु बाबू सोना वाले क्यूट क्यूट रीडर्स उम्मीद करता हूं आप सब की दिवाली में दिवाला नहीं निकला होगा। खुशी खुशी हर्ष और उलास के साथ आप सब ने दिवाली मनाई होगी।

मेरी बात करू तो बंगाली भाषा में एक कहावत हैं भीजे- ओ बारो आटी, सुघनो ओ बारों आटी मतबल ये होवे गीला हों या सुखा अपना हल एक जैसा!

Moral of the story ये हैं अपने को मिठाई अति प्रिय हैं। मिठाई किसी ने दी नहीं और पटका... ओ हों क्या शब्द हैं लडक़ी को बोलों तो जूते, चप्पल, सैंडिल इत्यादि बटोरते बटोरते एक खोली भर जाए और दुकान खोल कर बेचना पड़ जाएं। दिवाली और खुशी के मौके पर फोड़ों तो पड़ोसी के 1250 ग्राम के भेजे में केमिकल लोचा हों जाए। इसलिए मुझे न चप्पल खाने का कोई शौक, पड़ोसी विपदा में एक अहम साथी इसलिए उनसे बैर लेने का कोनो सवाल पैदा न होवे। इसलिए दिवाली अपनी ठीक ठाक ही रही
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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Creative things की संभनाओ से भरी इस मनोरंजक दुनिया में पहला कदम रख रहा हूं। कुछ Favourite राइटर Anandsingh12ji, Indian Princess Ji, Adirshi Ji nain11ster ji (जो की अभी अभी मेरा Favourite राइटर बाने हैं ) kamdev99008 ji, Mahi Maurya Ji, TharkiPo, Jguaar Ji। इन महानुभावों की आशीष लेकर अवचेतन मन में उपजी खलबली को शब्द रचना का रूप देकर आप के सामने पेश कर हूं उम्मीद "हैं सिर्फ़ तुमसे"

तो प्रिय रीडर्स लोगों एंजॉय कीजिए इस प्रेम कहानी को और हा अपना रेवो दिए बगैर जानें का नहीं क्योंकि रेवो देने में आपकी जेब पर कोनो आफत नहीं आएगा। आप का एक रेवो मेरे उत्साह को बुलेट ट्रेन की स्पीड से बढ़ाएगा। इसलिए रेवो देने में कंजूसी न करें।
 
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Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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तो प्रिय रीडर्स लोगों "सूचना ये जनहित में जारी हैं" मैं कोई राइटर नहीं हूं। तरह तरह की कहानी पड़कर जो शब्द मेरे मन में पनपा उन शब्दों को पंक्ति में ढाला, पंक्तियों को लेख में बदला और लेख को विनम्र भाव से आप सब के सामने पेश कर रहा हूं।

Let's Biggin उम्मीद की दुनियां

उम्मीद शब्द चार अक्षरों के मेल से बना हैं लेकिन वजन इतना भरी उठाना असम्भव हैं। हमारे जीवन के कुछ विष्टि लोग जिनके इर्द गिर्द जीवन में घटने वाली घटनाएं राउंड एंड राउंड घूमती हैं।

पहला शक्स मां जो एक बच्चे को जन्म देने में न जानें कितनी अशनीय पिढ़ाओ से गुजरती हैं। अपनी लाइफ की केयर किए बिना एक बच्चे को जन्म देती हैं। जिसमें उनकी जान जानें की पुरी पुरी संभावना होती हैं फिर भी आशा की दीप जलाकर बच्चे को जन्म देती हैं और उम्मीद करती हैं उसका बेटा या बेटी जैसा श्रद्धा पूर्ण व्यवहार उसके साथ करती हैं या करता हैं सब के साथ वैसा ही करे।

दूसरा शख्स हैं पिता, जिसे हम पिता, बाप, डैड न जानें किन किन नामो से बुलाते हैं। वह पालक हर की तरह विपदाओ का सामना कर हमारा पालन करता हैं। अच्छे और गुणी संस्कार देकर उम्मीद करता हैं हम उनके दिए संस्कार का मान रखे और यह भी उम्मीद करते हैं जो काम वो न कर पाए हम कर कर दिखाए।

तीसरा शक्श हम खुद हैं। अपनी निजी उम्मीदों को परे रख सब की उम्मीदों पर खड़ा उतरने के लिए जी तोड़ कोशिश करते हैं लेकिन कहीं कहीं हमसे किए जानें वाले उम्मीदों को हम अधूरा छोड़ देते हैं।

चौथा शक्श हैं अर्धांगिनी जिसे हम पत्नी, बीवी, अर्धांगिनी, जीवन संगिनी न जानें और क्या क्या कहते हैं। पहले प्रेमिका बनती हैं फिर जीवन संगिनी बन कर विपदा की घड़ी में कंधा से कंधा मिलाए खड़ी रहती हैं। कुछ जीवन संगिनी बिना प्रेमिका बाने ही जीवन साथी बन जाती हैं और बाद में प्रेमिका इस क्रिया को अरेंज मैरिज कहते हैं।

बहुत हुआ ज्ञान की बाते अब करते हैं मुद्दे की बात, गौरतलब मुदा ये हैं। कहानी एक लडके की इर्द गिर्द घूमेगी जिसे सब की उम्मीदों पर खडा उतरने के लिए न जानें कितने बलिदान देने पड़ते हैं।

पहला अपडेट जल्दी ही पेश करूंगा जब तक पहला अपडेट नहीं आता तब तक निचे दिए लेख का मजा लिजिए और क्यूट क्यूट रेवो देकर इच्छा शक्ति बड़ने में योगदान दे।
 

Dhaal Urph Pradeep

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उम्मीद की पोटली

खोला पोटली निकला चिराग।
घिसा चिराग निकला जिन।।
जिन निकलकर मुंह खोला।
बोला आका क्या हैं आपकी उम्मीद।।
मैं ठहरा वे उम्मीद।
कहा से लाता उम्मीद।।
खिसियाकर मैं बोला।
घिसता हूं दुबारा चिराग।।
चला जा वापस।
जहां से तू आया।।
मैं ठहरा वे उम्मीद।

कहा से लाता उम्मीद।।
 
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Jaguaar

Well-Known Member
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तो प्रिय रीडर्स लोगों "सूचना ये जनहित में जारी हैं" मैं कोई राइटर नहीं हूं। तरह तरह की कहानी पड़कर जो शब्द मेरे मन में पनपा उन शब्दों को पंक्ति में ढाला, पंक्तियों को लेख में बदला और लेख को विनम्र भाव से आप सब के सामने पेश कर रहा हूं।

Let's Biggin उम्मीद की दुनियां

उम्मीद शब्द चार अक्षरों के मेल से बना हैं लेकिन वजन इतना भरी उठाना असम्भव हैं। हमारे जीवन के कुछ विष्टि लोग जिनके इर्द गिर्द जीवन में घटने वाली घटनाएं राउंड एंड राउंड घूमती हैं।

पहला शक्स मां जो एक बच्चे को जन्म देने में न जानें कितनी अशनीय पिढ़ाओ से गुजरती हैं। अपनी लाइफ की केयर किए बिना एक बच्चे को जन्म देती हैं। जिसमें उनकी जान जानें की पुरी पुरी संभावना होती हैं फिर भी आशा की दीप जलाकर बच्चे को जन्म देती हैं और उम्मीद करती हैं उसका बेटा या बेटी जैसा श्रद्धा पूर्ण व्यवहार उसके साथ करती हैं या करता हैं सब के साथ वैसा ही करे।

दूसरा शख्स हैं पिता, जिसे हम पिता, बाप, डैड न जानें किन किन नामो से बुलाते हैं। वह पालक हर की तरह विपदाओ का सामना कर हमारा पालन करता हैं। अच्छे और गुणी संस्कार देकर उम्मीद करता हैं हम उनके दिए संस्कार का मान रखे और यह भी उम्मीद करते हैं जो काम वो न कर पाए हम कर कर दिखाए।

तीसरा शक्श हम खुद हैं। अपनी निजी उम्मीदों को परे रख सब की उम्मीदों पर खड़ा उतरने के लिए जी तोड़ कोशिश करते हैं लेकिन कहीं कहीं हमसे किए जानें वाले उम्मीदों को हम अधूरा छोड़ देते हैं।

चौथा शक्श हैं अर्धांगिनी जिसे हम पत्नी, बीवी, अर्धांगिनी, जीवन संगिनी न जानें और क्या क्या कहते हैं। पहले प्रेमिका बनती हैं फिर जीवन संगिनी बन कर विपदा की घड़ी में कंधा से कंधा मिलाए खड़ी रहती हैं। कुछ जीवन संगिनी बिना प्रेमिका बाने ही जीवन साथी बन जाती हैं और बाद में प्रेमिका इस क्रिया को अरेंज मैरिज कहते हैं।

बहुत हुआ ज्ञान की बाते अब करते हैं मुद्दे की बात, गौरतलब मुदा ये हैं। कहानी एक लडके की इर्द गिर्द घूमेगी जिसे सब की उम्मीदों पर खडा उतरने के लिए न जानें कितने बलिदान देने पड़ते हैं।


पहला अपडेट जल्दी ही पेश करूंगा जब तक पहला अपडेट नहीं आता तब तक निचे दिए लेख का मजा लिजिए और क्यूट क्यूट रेवो देकर इच्छा शक्ति बड़ने में योगदान दे।
Jaldi se Updates start karoo bhaiii.
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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सांसों का झोंका

सांसों का क्या आती जाती
हवा का झोंका हैं
मिले थे हम कभी
सांसे रोककर
तूने छुआ था इस नाचीज़ को
अपना समझकर
बस एक अहसास रह गई
आती जाती सांसों का
इश्क अधूरा रहा रहने दो
तू सांसों में समाई हैं
बस इसी अहसास में
जिंदा रहने दो
सांसों का क्या आती जाती

हवा का झोंका हैं
 
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Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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:congrats: for starting the new Thread. Umeed hai yeh story complete hogi aur regular updates aayenge.
शुक्रिया जगुआर जी
Umeed hai yeh story complete hogi
उम्मीद करना अच्छी बात हैं। ये मेरी पहली रचना हैं तो देर सवेर पुरा होगा।

रोज तो अपडेट नहीं दे पाऊंगा, क्या हैं न मजदूर आदमी हूं मजदूरी करना भी जरूरी हैं। पापी पेट का सवाल जो ठहरा।
 
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