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Adultery Village Girl in City

dhparikh

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Chapter-8

सुबह जब मेरी नींद खुली तो पूरा बदन टूट रहा था। बगल में प्रमोद भी पूरी नींद में सो रहे थे। उनका एक हाथ अभी भी मेरी चुची पर थी। धीरे से हाथ हटाते हुए मैं बेड से उतरी और फ्रेश होने बाथरुम की तरफ बढ़ गई।

फ्रेश होने के बाद मैं किचन में गई। तब तक मम्मी पापा भी जग गए थे। जल्दी से चाय बनाई और मम्मी पापा को देने के बाद प्रमोद को देने के बढ़ गई। अभी भी वे बेसुध हो कर सो रहे थे। मैं मुस्कुराती हुई उनके होंठों पर Morning Kiss जड़ दी। वे तुरंत ही नींद से जग गए। फिर मैंने उनकी तरफ चाय बढ़ा दी।

वे चाय लेते हुए बोले, "थैंक्स डॉर्लिँग, काश पहले भी इतनी अच्छी Morning Kiss देने वाली कोई होती।"

"झूठ क्यों बोलते हैं? आज कल तो अधिकांश लड़कों की प्रेमिका रहती है। आप थोड़े ही सन्यासी हैं।"
मैं भी मजाक करते हुए जवाब दी।

प्रमोद- "अगर प्रेमिका रहती तो मुझे इतना प्यार करने वाली बीबी थोड़े ही मिलती। वैसे मैं भी चाहता था कि कोई Girlfriend हो पर समय की कमी और पापा के डर की वजह से कभी हिम्मत नहीं हुई।"

मैं हँसती हुई जाने के मुड़ते हुए बोल पड़ी, "अच्छा ठीक है, आप अपनी प्रेम कहानी बाद में सुनाईएगा। जल्दी से फ्रेश हो जाइए, मैं नाश्ता बनाने जा रही हूँ।"

"जैसी आज्ञा आपकी"
कहते हुए वे भी बेड से नीचे उतर गए।

मैं उनकी बातें सुन हँसती हुई किचन की तरफ चल दी। तब तक साक्षी भी नीचे आ गई थी और चाय पी रही थी। हम दोनों की नजर मिलते ही एक साथ हम दोनों मुस्कुरा दिए। फिर मैं किचन के काम में लग गई। साक्षी और मम्मी भी हमारी सहायता करने आ गए। मम्मी के सामने साक्षी से किसी तरह की बात संभव नहीं थी।

फ्रेश होने के बाद प्रमोद नाश्ता कर बाहर चले गए। सारे काम निपटा मैं भी नाश्ता की और आराम करने चली गई। साक्षी भी नाश्ता करने के बाद अपने रूम में चली गई थी।

दिन के करीब 12 बजे प्रमोद आए, आते ही पूछे, "मोबाइल दो तो अपना।" मैं फोन उनके तरफ बढ़ा दी।

कुछ देर छेड़-छाड़ करने के वापस देते हुए बोले, "कल रात वाली सारी फोटो गजब की आई है। देख लेना फोन में डाल दिया हूँ।"

मैं हँसते हुए फोन ले ली। उन्हें खाने के लिए पूछी तो वे मना करते हुए बाहर निकल गए। शायद मुझे ये तस्वीर देने के लिए ही आए थे। उनके जाते ही मैं तकिया के सहारे औँधे मुँह लेट गई और फोटो देखने लगी। वाकई मेरी सभी तस्वीरें काफी सुंदर लग रही थी। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मुझ पर अंकल के गहने और कपड़े इतने अच्छे लगेंगे।

मैं हर एक तस्वीर आराम आराम से देख रही थी। तभी मेरी नंगी चुची की तस्वीरें आ गई। मैं देख के शर्मा गई, पर फिर गौर से देखने लगी। मेरी चुची सच में काफी सेक्सी थी। चुची के ठीक ऊपर लटकी नेकलेस और मंगलसूत्र, और भी सुंदरता में चार चाँद लगा रही थी। अगली फोटो देखते ही मैं पानी पानी हो गई। मैं बेड पर लेटी एक हाथ से चुची दबा रही थी और दूसरी हाथ बुर पर रखी थी। फिर अगली फोटो में अपनी चुची को खुद ही चुसने की कोशिश कर रही थी। इसी तरह किसी फोटो मे अपने के बुर फांको को दोनों हाथो से फैलाये हुए बहुत कामुक अंदाज मे सामने देखते हुए। किसी मे अपने बुर को फैलाये हुए अपनी चुची को दबाते हुए। इसी तरह ढेर सारी तस्वीरें आती गई और मैं कब अपनी पानी छोड़ती बुर सहलाने लगी, मालूम नहीं।

अब मुझे साड़ी के ऊपर से सहलाने में दिक्कत हो रही थी तो बिना किसी डर के साड़ी कमर तक कर ली और पेन्टी में हाथ डाल बुर में 2 उँगली घुसेड़ दी। मैं तस्वीरें देखने में पूरी तरह से मग्न बुर को शांत करने की प्रयास कर रही थी। मैं शायद पहली लड़की होऊँगी जो खुद की नंगी तस्वीरें देख अपनी बुर से पानी छोड़ दी। पर क्या करती तस्वीर थी ही इतनी गर्म।

अचानक ही मेरे हाथ पर किसी ने पकड़ लिए। मैं मोबाइल फेंकते हुए पलटी तो ये साक्षी थी। मैं गेट के उल्टी तरफ सोई थी जिस वजह से साक्षी को आते नहीं देख पाई। मैं जल्दी से साड़ी ठीक करने के लिए उठना चाहती थी कि साक्षी दूसरे हाथ से धक्का दे कर लिटा दी और अगली वार करती हुई मेरी एक पैर को बेड से बाहर की तरफ खींच दी। फिर तेजी से मेरे दोनों पैरों के बीच आती हुई अपने होंठ मेरी गीली बुर पर भिड़ा दी।

मैं पहले ही फोटो देख गर्म थी ही, अब साक्षी आग में घी डालने का काम कर रही थी। मैं साक्षी को हटाने का भरपूर प्यार की पर वो तो चुंबक की तरह चिपकी थी। मैं ज्यादा देर तक विरोध नहीं कर पाई और खुद को साक्षी के हवाले कर दी। दोनों भाई बहन की क्या पसंद मिलती थी, रात में प्रमोद इसी अवस्था में चोद रहे थे और दिन में साक्षी मेरी बुर चुस रही है।

अचानक मैं चीखते-चीखते बची। साक्षी मेरी दाने को अपने दाँतों से पकड़ खींच रही थी। मैं अपनी चीख को दबाए साक्षी के बाल नोँच कर हटाने का प्रयास कर रही थी, पर मेरे हाथों में इतनी ताकत नहीं थी कि सफल हो पाती। मैं ज्यादा देर तक साक्षी के इस वार को नहीं सह पाई और एक हल्की चीख के साथ झड़ने लगी। साक्षी पुच्च-पुच्च करती हुई सारा पानी गटकने लगी। मैं उल्टे हाथों से बेडसीट पकड़े लगातार पानी बहाए जा रही थी। नीचे साक्षी आनंदमय मेरी चूत सोखने में लगी हुई थी।

कुछ पल के बाद साक्षी उठी और मुझे बेड पर बैठा दी। फिर मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कुराते हुए पूछी, "क्योंरी कुतिया, अकेले ही चुदाई देख मजे लेती रहती है। कम से कम मुझे भी बुला तो लेती।"

साक्षी द्वारा दी गई गाली सहित प्रश्न से मेरी हँसी निकल पड़ी। साक्षी हमें गाली भी देती है तो पता नहीं मुझे तनिक भी बुरी नहीं लगती। मैं हँसती हुई बोली, "नहीं फिल्म नहीं थी, कुछ और थी।"

"कुछ और...? दिखा तो फोन क्या है कुछ,"
साक्षी आश्चर्य से पूछते हुए बोली।

मैं मना करती हुई बोली, "नहीं तुम किसी को बता देगी।"

"पागल, इतना कुछ होने के बाद भी डरती हैं कि बता दूंगी चल दे जल्दी फोन"
साक्षी मेरी फोन की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोली।

मैं भी मुस्कुरा के साक्षी को फोन लेने दी, फिर हम दोनों साथ बैठ गए और साक्षी तस्वीरें निकालने लगी। मेरी नंगी तस्वीरें देखते ही साक्षी तो बेहोश होते-होते बची। उसकी नजरें तो हमसे पूछे जा रही थी कि भैया भी इतने हॉट हैं क्या, पर बोल कुछ नहीं रही थी।

"रात में सेक्स के बाद बोले मुझे ऐसा करने और फोटो खिँचवाने तो खिँचवाई। अब मुझे देखना बंद करो और ये बताओ कैसी लगी तस्वीरें?" साक्षी को चुप देख मैं अपनी सफाई देते हुए बोली।

"Wowwww! भाभी, मैं नहीं जानती थी कि आप नंगी किसी मॉडल से कम नहीं लगोगी। ऐसी रूप में देख के तो बड़े से बड़े हिरोईन भी पानी नहीं माँगेगी।" साक्षी चहकते हुए तारीफ करने लगी।

मैं उसकी बात सुन झेँप सी गई। फिर वो एक एक तस्वीरें देखने लगी। देखने के क्रम में उसके हाथ अपनी सलवार में धँस सी गई। वो भी शायद गर्म होने लगी थी।

अनायास ही साक्षी बोली, "भाभी, एक बात बोलूँ।"

मैं "हम्म" करती हुई उसकी तरफ देखने लगी।

"मेरी प्यारी भाभी, ऐसी फोटो देख तो तुम कहीं से भी मेरी शरीफ भाभी नहीं लगती। बिल्कुल जिला टॉप रण्डी लग रही हो", कहते हुए साक्षी अपने बुर को मसलते हुए हँस दी।

मैंने पीछे से एक चपत लगाते हुए बोली, "कुतिया तेरे से कम ही रण्डी लगती हूँ।"

साक्षी थोड़ी सी चिढते हुए बोली, "पता है पर इस रेस में बहुत जल्द ही तुम हमसे भी आगे निकल जाएगी।"

साक्षी की उँगली अब बुर से हट गई थी, पर झड़ी नहीं थी। साक्षी की बात सुन मेरी दिल के किसी कोने में ये बात समा गई। शायद कुछ हद तक सही कह रही थी क्योंकि 3 दिन की चुदाई में ही मैं Once More.... कहने लगी थी।

तब तक साक्षी सारा तस्वीरें देख चुकी थी। फिर उसने सारी तस्वीरें अपने फोन में भेजने लगी। मैं कुछ कहना चाहती थी पर रुक गई क्योंकि वो बिना लिए तो मानती नहीं। सिर्फ इतना ही कह सकी, "साक्षी, किसी को वो वाली फोटो दिखाना मत प्लीज।"

साक्षी हाँ में सिर हिलाती हुई फोटो भेजती रही। जैसी ही सारी फोटो सेन्ट हुई कि साक्षी की फोन बज उठी। साक्षी नम्बर देखते ही मुस्कुरा दी, फिर जल्दी से इयरफोन अपने कान में लगाने लगी। अचानक ही इयरफोन की एक स्पीकर मेरे कान में लगा दी और बोली, "अंकल है, कुछ बोलना मत सिर्फ सुनना।" मैं दबी हुई आवाज में हँसती हुई हाँ में सिर हिला दी।

अंकल का नाम सुनते ही मेरी शरीर भी रोमांचित हो गई थी। तभी अंकल की आवाज आई। "हैल्लो!"

साक्षी- "हाँ अंकल, कहाँ हैं आप? मैं आपको देखने आज सुबह आपके घर गई थी, पर आप मिले नहीं घर पर।"

अंकल- "अरे साक्षी वो अचानक ही मुझे पटना निकलना पड़ा। चुनाव की वजह से दौड़-धूप तो लगी ही रहती है।" अंकल अपनी सफाई देते हुए बोले।

"अच्छा आना कब है?", तब साक्षी एक समझदार बच्ची की तरह पूछी।

अंकल- "फुर्सत मिलते ही आ जाऊँगा। अच्छा अभी तुम क्या कर रही हो।"

साक्षी बुरी सी सूरत बनाते हुए बोली, "आपके बिना ज्यादा कुछ क्या करूँगी। बस अपनी बुर में उँगली कर गर्मी निकाल रही थी।" यह सुन मेरी तो हँसी निकलते-निकलते बची।

"हा हा हा… रात में 2 बार तो पेला था फिर प्यास नहीं गई।" अंकल की हँसती हुई आवाज आई।

दोनों की बाते सुन मुझे तो शर्म के साथ मजे भी आ रही थी, जिस वजह चुपचाप सुनी जा रही थी।

साक्षी बात को बढ़ाते हुए बोली, "अंकल, रात में आप चोद तो मुझे रहे थे पर मैं दावे से कहती हूँ कि आपके मन में कोई और थी, कौन थी वो.....?"

साक्षी की बात सुन तो मैं भी अचरज में पड़ गई। कितनी शातिर दिमाग रखती है ये लड़की।

"हा हा हा… अब तुमसे क्या छुपाना साक्षी। कल रात मैं भारती को याद कर तुम्हें चोद रहा था।", अंकल सीधे अपने हथियार रखते हुए बोले।

मैं तो एक बार अपना नाम सुन शर्मा गई, पर उससे ज्यादा हमें साक्षी की तेज दिमाग देख दंग रह गई।

साक्षी मुझे आँख मारते हुए बोली, "Wowww! अंकल, एक तीर दो निशाने। तभी तो मैं सोच रही थी कि इतनी धमाके से मेरी चुदाई क्यों हो रही है।"

साक्षी की बात सुन अंकल सिर्फ हँस दिए, साथ मैं भी मुस्कुरा दी।

तभी साक्षी बोली, "वैसे आपको पता है मैं अभी कहाँ से आई हूँ।"

मैं भी सोच में पड़ गई कि साक्षी आखिर कहाँ गई थी।

उधर अंकल भी उत्सुकता से भरी आवाज में बोले, "कहाँ गई थी?"

साक्षी तभी मेरी साड़ी के ऊपर से बुर दबाते हुए बोली, "आज एक मस्त बुर का रसपान करके आई हूँ।"

साक्षी के इतना कहते ही मेरी तो घिघ्घी बँध गई। तुरंत ही कान पकड़ते हुए साक्षी से मेरा नाम नहीं बोलने के लिए आग्रह करने लगी।

तभी अंकल की सिसकारि भरी आवाज सुनाई दी, "आहहहहह साक्षी! कौन थी वो जल्दी बताना। मेरा लण्ड तो पूरा उफान पर आ गया है।"

पर पैदाइशी हरामिन साक्षी मेरी एक ना सुनी और बोली, "मैं अपनी जान भारती भाभी की बुर का भोग लगा के आई हूँ। आपको यकीन नहीं होगा अंकल कि कितनी स्वादिष्ट थी चूत। आहहहहह.... मजा आ गया आज।"

अपना नाम सुनते ही मैं साक्षी के गले दबाने लगी। पर फुर्ति से साक्षी हाथ हटा मेरे बाल पीछे से पकड़ी और सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत की तरफ गिरा दी और केहुनी मेरी पीठ पर गड़ा दी। मैं छटपटा के उसकी बुर पर मुँह रख पड़ी रही और गीली बुर की महक लेते हुए अंकल की बातों से मजे लेने की कोशिश करने लगी।

अंकल- "ओफ्फ भारती! छिनाल, कुतिया खुद मजे लेती है। हमें भी तो एक बार भारती की चूत दिला दे। आह! बर्दाश्त नहीं होती अब।"

मैं नीचे पड़ी बुर की गंध पा मदहोश होने लगी थी। अगले ही पल मैं सलवार के नाड़े खोलने की कोशिश करने लगी।

साक्षी मेरी स्थिति को समझते हुए तेजी से बोली, "अंकल, आप के लिए ही तो जुगाड़ कर रही हूँ। अच्छा ठीक है, मैं अभी फोन रखती हूँ, बाद में बात करूँगी।"

इतना कह साक्षी फोन काट दी और सलवार पूरी खोल दी और अपना बुर मेरे मुँह से चिपका दी। मैं भी उसकी बुर पर टूटते हुए जोरदार चुसाई शुरू कर दी। कुछ ही देर में साक्षी एक अंगड़ाई लेती चीखते हुए झड़ गई। उसकी चूत से निकली ढेर सारी पानी पूरे चेहरे पर आ गई थी। साक्षी लगभग बेहोश हो आँखें बंद कर चुकी थी। मैं जिंदगी में आज पहली बार चूत चूसी थी। कुछ अलग ही कामुक सा अनुभव था।

इसी तरह रोज साक्षी के साथ दिन भर हँसी मजाक, एक दूसरे से छेड़ छाड़, नोक झोक और फिर रात में प्रमोद से चुदाई चलती रही।


To be continued...
Nice update....
 
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Chapter-9

जैसा कि गाँवों में ये एक रिवाज है कि नई दुल्हन 3 या 9 दिन के बाद वापस अपने मायके चली जाती है। मैं भी जिंदगी के हसीन पल अपनी यादों में समेट वापस अपने मायके चली आई थी। जिंदगी में इतनी हसीन यादें फिर कभी नहीं आती है, ये एक कटु सत्य है। समय मिलते ही प्रमोद और साक्षी से अच्छी बुरी बातें फोन पर शुरू कर देती थी। अंकल तो अभी तक व्यस्त ही थे। उनसे मिले बिना ही मैं आ गई थी, इसका मुझे काफी मलाल था।

आते वक्त साक्षी बोली थी कि जब तक आप अंकल को एक बार फोन नहीं करोगी, तब तक अंकल आपको फोन नहीं करेंगे। मैं अंकल से भी बात करना चाहती थी पर शर्म की वजह से हिम्मत नहीं कर पा रही थी फोन करने की। उधर प्रमोद की छुट्टी भी समाप्त हो चुकी थी तो वे वापस ड्यूटी पर चले गए थे।

कुछ दिन साक्षी का भी रिजल्ट आ गया और वो भी अच्छे नम्बरोँ से पास हो गई थी। साक्षी सबसे पहले हमें ही ये खुशखबरी सुनाई और साथ में ये भी बताई कि भाभी, दो दिन बाद मैं भैया के जाऊंगी और वहीं रह आगे की पढ़ाई करूँगी।

मैं ये सुन साक्षी से कहीं ज्यादा खुश हुई। खुश क्यों नहीं होती आखिर कुछ दिन बाद तो मैं भी वहीं जाऊंगी। दो दिन बाद साक्षी प्रमोद के पास चली गई थी। साक्षी वहाँ जाते ही फोन से ही वहाँ के बारे में बताती रही।

इधर मैं अपने मायके में जब से आई हूँ, भाभी तो रोज ही सताती रहती है। हमेशा कहती रहती है कि जब से ससुराल से आई है, हमेशा वहीं का गुणगान करती रहती है। आखिर क्यों नहीं करती, ढेर सारी चुदाई जो मिल रही थी। ससुराल से आने के बाद तो मेरी हवस इतनी बढ़ गई कि मैं सभी को सेक्स भरी नजरों से देखने लगी थी। यहाँ तक कि मैं खुद के सगे भैया से भी चुदने की इच्छा रखने लगी थी।

एक दिन मैं घर में बोर हो रही थी। तभी मेरी नजर भैया पर पड़ी जो कि देहाती रूप में लुँगी और गंजी पहने, हाथ में बड़ी सी खाली थैली रखे बाहर जाने वाले थे।

मेरे मन में अचानक शरारत सुझी और भैया को पीछे से आवाज दी, "भैया, कहीं जा रहे हो क्या?"

भैया मेरी तरफ पलटे और बोले, "हाँ भारती, वो आम अब पकने लग गए हैं, वहीं बगीचे जा रहा हूँ। कुछ खाने लायक हुआ तो लेते आऊँगा।"

"भैया, काफी दिन से बगीचे नहीं गई हूँ। हमें भी ले चलो ना।"
मैं आग्रह करती हुई बोली।

तब तक भाभी भी बाहर आ गई थी, आते ही बोली, "हाँ हाँ ले जाइए ना। घर में बैठी बोर हो रही है, बाहर घूम लेगी तो मन बहल जाएगा। ससुराल जाएगी तो पता नहीं कब मौका मिलेगा।"

भाभी के कहते ही भैया हँस पड़े और जल्दी तैयार हो चलने के लिए बोल बाहर इंतजार करने लगे। मैं झटपट अंदर गई और जल्दी से नाइटी खोली। फिर सफेद रंग की चोली-घाँघरा पहनी और चुन्नी डालते हुए निकल गई। भैया की नजर मुझ पर पड़ते ही उनका मुँह खुला सा रह गया। उनकी नजर मेरी चोली में कसी हुई चुची पर अटक सी गई। अगले ही पल जब उनकी नजर ऊपर उठी तो वे शर्म से झेँप से गए। मेरी शैतान नजर उनकी चोरी जो पकड़ ली थी।

मैं हल्की ही मुस्कान देते हुए उनके पास जाते हुए बोली, "अब चलो भैया।"

भैया बिना कुछ कहे बाईक स्टॉर्ट किए और मेरे बैठने का इंतजार करने लगे। मैं भी बाईक पर बैठी और चलने के लिए हाँ कह दी। बगीचा घर से करीब 3 किमी दूर थी। इनमें 1 किमी तो गाँव थी और बाकी के सुनसान सड़क, जिसके दोनों तरफ बड़ी बड़ी वृक्ष थी। सड़क उतनी अच्छी नहीं थी पर वृक्षों के रहने से कम से कम, धूप से राहत तो मिलती थी। गाँव भर तो मैं ठीक से बैठी रही पर जैसे ही गाँव खत्म हुई, मैं भैया की तरफ सरक गई। अचानक ही बाईक गड्ढे में पड़ी और मैं पूरी तरह से भैया के शरीर पर लद गई।

मैं संभलती हुई सीधी हुई तो भैया बोले, "भारती, अब सड़क अच्छी नहीं है सो तुम मुझे पकड़ के बैठो वर्ना अगर गिर गई तो तुम्हें चोट तो लगेगी ही, साथ में हमें भी खाना नहीं मिलेगा।"

भैया के बोलते ही मैं जोर से हँस पड़ी और ओके कहते हुए उनके कमर पकड़ती हुई चिपक के बैठ गई। मेरी एक चुची अब भैया के पीठ में धँस रही थी। जैसे ही बाईक किसी गड्ढे में पड़ती तो मेरी चुची पूरी तरह रगड़ जाती। भैया को भी अब मेरी इस शैतानी खेल में मजा आने लगा था। वो तो अब जान बूझकर गड्ढे हो कर चल रहे थे। मैं ये देख हल्के से मुस्कुराते हुए और कस कर अपनी चुची रगड़वाने लगी।

तभी सामने से एक लड़का साइकिल से आता हुआ दिखाई दिया। मुझे तो पहले थोड़ी शर्म हुई पर अगले ही क्षण बेशर्म बनते हुए ऐसे ही चिपके रही। पास आते ही वो लड़का लगभग चिल्लाते हुए बोला, "ओढनी गाड़ी में फँसेगा!"

भैया तेजी से ब्रेक लगाते हुए रुके। बाईक से मैं भी उतरी तो सच में मेरी चुन्नी बिल्कुल चक्के के पास लहरा रही थी। अगर कुछ और देर हो जाती तो पता नहीं क्या होता। तब तक वो लड़का भी जा चुका था। मेरी नजर भैया पर पड़ी तो देखी वो मुस्कुरा रहे थे। मैं भी हल्की ही हँसी हँस दी।

अगले ही पल वे मेरी चुन्नी एक झटके से सीने से हटाते हुए बोले, "जान बचे तो लाख उपाय। अब देखने वाला कौन है जो तुम्हें शर्म आएगी। चलो ऐसे ही चलते हैं। वापस गाँव आने से पहले फिर ओढ लेना।"

फिर भैया चुन्नी को डिक्की में बंद कर दिए। मैं भैया की मस्ती वाली सलाह सुन शर्माती हुई मुस्कुरा दी। अगले ही क्षण बाईक स्टॉर्ट हो चुकी थी। मैं भी बेहया बनते हुए भैया के शरीर पर लगभग चढती हुई चिपक के बैठ गई और अब मैं अपने दोनों हाथ से भैया की कमर कसते हुए जकड़ ली। अब तो मेरी दोनों चुची उनकी पीठ में धँस गई थी और मैं अपना चेहरा उनके कंधे पर टिका दी थी। अचानक बाईक एक गहरी गड्ढे में गई और मेरी चीख निकल गई। चीख चुची के दर्द की वजह से आई थी क्योंकि मेरी चुची काफी जोर से रगड़ा गई थी। साथ में भैया के मुँह से भी आह निकल गई। ये आह मेरे हाथ उनके लण्ड पर घिसने की वजह से आई थी। हम दोनों हल्की हँसी हँसते हुए बिना कुछ बोले बगीचे की तरफ बढ़ने लगे।

कुछ ही देर में अपने भैया के साथ बगीचे पहुँच गई थी। मैं उतरी और अपनी गांड़ पूरब पश्चिम करती आगे बढ़ गई। सिर्फ चोली में मेरी चुची मानो दो बड़े-बड़े पर्वत जैसी लग रही थी। पीछे भैया भी जल्दी से बाईक खड़ी की और लगभग दौड़ते हुए पीछे-पीछे चलने लगे। भैया की हालत देख मेरी तो हँसी निकल रही थी पर किसी तरह खुद को रोक रखी थी।

एक पेड़ के पास रुकते हुए मैं तेजी से पलटी, ओह गॉड! भैया अपनी जीभ होंठ पर फेरते हुए लुँगी के ऊपर से लण्ड सहलाते हुए आ रहे थे। मुझ पर नजर पड़ते ही भैया हड़बड़ा कर हाथ हटा लिए।

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मैं भी बिना शर्म किए हल्की ही मुस्कान देते हुए बोली, "भैया, अब जल्दी से आम खिलाओ।"

भैया हाँ कहते हुए एक पेड़ की तरफ बढ़े और चढ़ गए। कुछ ही दूर चढ़े थे कि तभी उनकी लुँगी हवा में लहराती हुई नीचे आ गई। ऊपर देखी तो भैया सिर्फ अंडरवियर में नीचे की तरफ देख रहे थे और उनका लण्ड तो मानो कह रहा कि ये अंडरवियर भी निकालो, मुझे घुटन हो रही है।

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फिर मैं जोर से हँसते हुए लुँगी उठा के पेड़ पर रखते हुए पूछी, "क्या हुआ भैया?"

भैया- "ओफ्फ! मेरी लुँगी खुल के गिर गई।"

"कोई बात नहीं भैया। वैसे यहाँ कोई नहीं आने वाला जिससे आपको शर्म आएगी। अब जल्दी से पके आम नीचे करो।"
मैं मुस्काती हुई बोली।

मेरी बात सुन भैया भी मुस्कुरा दिए और आम तोड़ने लग गए। जल्द ही नीचे ढेर सारी आम जमा हो गई। कुछ ही देर में भैया भी नीचे आ गए। तुरंत ही मेरी नजर भैया के लण्ड की तरफ घूम गई… अरे! ये तो अभी भी खड़ा ही है। इतनी देर तक ध्यान बँटे रहने के बावजूद भी ठुमके लगा रहा था।

फिर मैं दो पके हुए आम लिए और एक भैया को देते हुए खाने बोली। भैया भी अब शर्म नहीं कर रहे थे। आम लेते हुए वहीं पास में एक झुकी हुई टहनी के सहारे खड़े हो खाने लगे। मैं भी उनके बगल में खड़ी हो खाने लगी। आम खत्म होते ही भैया आगे बढ़े और दो आम और उठा लिए। जैसे ही उन्होंने मुँह लगाया जोर से थू-थू करते हुए चीख पड़े। मेरी तो जोर से हँसी निकल पड़ी क्योंकि मेरी वाली खट्टे नहीं थे।

"भारती, तुम्हारे आम कितने मीठे थे और ये...." भैया मेरी तरफ देखते हुए बोले।

भैया की द्विअर्थी शब्द सुन मैं कुटीली मुस्कान देते हुए बोली, "अच्छा......"

भैया मेरी इस अदा देखते हुए शायद कुछ याद करने की कोशिश करने लगे। अचानक वे बिल्कुल झेँप से गए और सिर झुका लिए। शायद उन्हें अपनी गलती का आभास हो गया था कि वे क्या बोल दिए। तभी मैं आगे बढ़ी और भैया के काफी करीब जा कर खड़ी हो गई।

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फिर हाथ वाली आम अपने दोनों आम के बीचोँ-बीच लाते हुए हल्के से बोली, "जब मेरे आम इतने मीठे हैं तो खाते क्यों नहीं?"

इतना सुनते ही भैया की नजरें ऊपर उठ गई और अचरज से मेरी तरफ देखने लगे। मैं मुस्कुराते हुए अपनी एक आँखें दबा दी। तभी भैया मुझे अपनी बाँहों में जोर से भीँचते हुए जकड़ लिए। मेरी दोनों आमों के बीच ये आम भी फँस गई थी। मैं तो सिर्फ गले लगने से ही पानी छोड़ने लगी थी।

तभी भैया मेरे चेहरे को पकड़ते हुए अपने गर्म होंठ मेरी होंठ पर रख दिए। मैं तो आकाश में उड़ने लग गई थी। मेरे हाथ भैया को पीछे से जकड़ ली थी। भैया भी मुझे कसते हुए होंठों का रसपान करने लगे। हम दोनों की पकड़ इतनी गहरी हो गई थी कि बीच में फँसी आम भी अपनी पानी छोड़ने लगी थी और मेरी चोली को गीली करने लगी। पर मैं बेफिक्र हो भैया के होंठ का स्वाद चख रही थी। कुछ ही पल में भैया की जीभ मेरी जीभ से टकराने लगी। मैं अब पूरी तरह से मचल रही थी।

तभी भैया मुझे घुमाते हुए टहनी के सहारे झुका दिए और अपना लण्ड मेरी बुर पर टिकाते हुए ताबड़-तोड़ किस करने लगे। कभी होंठ पर, कभी गाल पर, कभी गर्दन पर, कभी चुची की उभारोँ पर। इतनी तेजी से चुम्मी ले रहे थे कि कहना मुश्किल था कब कहाँ पर चूम रहे हैं। मेरी हालत अब पस्त होने लगी थी। मेरे पाँवोँ की ताकत बिलकुल खत्म हो गई थी। मेरी सफेद चोली पीले रंग में बदल गई थी और भैया जीभ से पीलेपन दूर करने की कोशिश कर रहे थे।

अचानक मैं तेजी से उठते हुए भैया से लिपटती हुई चीख पड़ी। मेरी बुर से मानो लावा फूट पड़ी। मैं सुबकते हुए पानी छोड़ रही थी।

तभी एक और ज्वालामुखी फूटी और भैया भी "आहहहहह भारती" कहते हुए झटके खाने लगे। उनका तोप अंडरवियर में अपने अँगारेँ बरसाने लगी।

हम दोनों झड़ चुके थे। कुछ देर तक यूँ ही हम दोनों चिपके रहे। फिर भैया मेरी चूतड़ पर पकड़ बनाते हुए नीचे जमीन पर लिटा दिए। मैं अपनी आँखें बंद किए चेहरे पर मुस्कान लाते हुए लेट गई। फिर भैया भी मेरे ऊपर लेटते हुए मेरे होठ को चूमने लगे। कुछ ही देर में मैं गर्म होने लगी थी।

अचानक से भैया मेरी चोली खोलने लगे और कुछ ही देर में मेरी चुची भैया के सामने नंगी थी। गोरी-गोरी चुची देखते ही भैया के मुँह से लार टपकने लगी। अगले ही पल भैया अपना आपा खोते हुए अपने दाँत गड़ा दिए। मैं जोर से चीख पड़ी जिसकी गूँज बगीचे में काफी देर तक सुनाई देती रही। भैया अब एक हाथ से मेरी चुची की मसल रहे थे और दूसरी हाथ से मेरी चुची ऐंठते हुए चूसे जा रहे थे। कुछ ही देर भैया का एक बार फिर से अपने शबाब पर थे और मेरी बुर में ठोकरे लगा रहा था। जिससे मेरी बुर में छोटी नदी बहने लगी थी। मैं अब कसमसाने लगी और खुद पर नियंत्रण खोने लगी थी।

अगले ही क्षण मैं सिसकते हुए बोली, "आहहहहहह भैया, नीचे कुछ हो रही है। जल्दी कुछ करो। ओफ्फ ओह!"

भैया अभी भी और तड़पाने के मूड में थे। वे नीचे की ओर चूमते हुए खिसकने लगे। जैसे ही उनकी जीभ मेरी नाभी में नाची, मैं पीठ उचकाते हुए तड़प उठी। भैया लगातार मेरी नाभी को जीभ से कुरेदने में लग गए। मेरे दोनों हाथ भैया के बालों को नोँचने लग गए थे और उन्हें हटाने की कोशिश कर रही थी। भैया भी अब पूरे रंग में आ गई थी। भैया के इस रूप को देख मैं हैरान रह गई कि सब दिन गाँव में रहने वाले सेक्स को इतने अच्छे से कैसे खेल रहे हैं।

तभी भैया उठे और मेरे पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए मेरी लहँगा को ऊपर करने लगे। कुछ ही पल में पूरी लहँगा मेरे पेट को ढँक चुकी थी और नीचे सिर्फ पेन्टी मेरी बुर की रखवाली कर रही थी। मैं इतनी देर से तो बेशर्म बन रही थी पर अब तो शर्म से मरने लगी थी और अपने हाथों से मुँह को ढँक ली थी। भैया पेन्टी के ऊपर से ही बुर पर उँगली नचाने लगे और अचानक उँगली फँसाते हुए एक जोरदार झटके दे दिए। मेरी भीँगी हुई पेन्टी चरचराती हुई कई टुकड़े में बँट गई।

भैया की नजर मेरी बुर पर पड़ते ही बोल पड़े, "ओफ्फ! क्या संगमरमर सी बुर है भारती तुम्हारी, कसम से अगर पहले जानता तो मैं कब का चोद चुका रहता।", और अपने होंठ मेरी गीली बुर में भिड़ा दिए।

मैं कुछ बोलना चाहती थी पर भैया के होंठ लगते ही मेरी आवाज एक आहहहह में बदल के गूँजने लगी। भैया मेरी बुर को ऐसे चुसने लगे कि मानो वो मेरी बुर नहीं, मेरी होंठ हो। मैं उल्टे हाथ से जमीन की घास नोँच नोँच के फेंकने लगी थी। अचानक मैं चिहुँक उठी… भैया मेरी बुर के दाने को अपने दाँतो से पकड़ काट रहे थे। मेरी शरीर में खून की जगह पानी दौड़ने लगी थी।

मैं लगातार चीखी जा रही थी। भैया बेरहम बनते हुए मुझे तड़पाने लगे। मैं ज्यादा देर तक टिक नहीं पाई और शरीर को जमीन पर रगड़ते हुए फव्वारे छोड़ने लगी। भैया बिना मुँह हटाए मेरी बुर रस तेजी से पीने लग गए। मैं भी लगातार भैया को अपनी रस सीधे गले में उतार रही थी। कुछ ही पल में भैया सारा रस चट कर गए थे। सारा रस चुसने के बाद भी भैया मेरी बुर को छोड़ने के मूड में नहीं थे। वे अब अपनी जीभ डालकर कुरेदने लगे। मैं झड़ने के बाद थोड़ी सुस्त पड़ गई थी, पर भैया की जीभ से मैं तुरंत ही अपने रंग में रंग गई और मचलने लगी। खुरदरे जीभ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकी।

मैं तड़पते हुए भैया के बाल पकड़ते हुए बोली, "आहहहहहह भैया, अब मत तरसाओ। जल्दी कुछ करो वर्ना मैं मर जाऊंगी। ओफ्फ......"

भैया होंठ हटाते हुए मेरी तरफ देखने लगे। मैं लगभग रुआंसी सी हो गई थी। भैया भी सोचे कि लगता है कि चूल्हा अब पूरी तरह से गर्म है, अब जल्दी ही भुट्टे सेंक लेना चाहिए। वे उठे और आगे बढ़ते हुए अपना 8 इंची लण्ड मेरी होंठ से सटाते हुए बोले, "जान, अब थोड़ा इसकी भी सेवा कर दो।"

मैं तो जल्द से जल्द चुदना चाहती थी। बिना कुछ कहे मैं गप्प से लण्ड को अपने होंठों में फँसा ली। भैया के मुख से एक जोर से सिसकारि निकल गई। उनके अंडोँ को पकड़े अपने होंठ आगे पीछे करने लगी। पूरे बगीचे में अब भैया की आवाजें गूँजने लगी थी। कुछ ही देर में मेरी रसीली होंठ अपने जलवे दिखा दी। भैया तड़पते हुए मेरी बाल पकड़े और अपने लण्ड को पीछे कर लिए। मेरी एक छोटी आह निकल गई। फिर मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए नशीली आँखों से देखने लगी।

भैया नीचे झुकते हुए मेरी होंठों को चूमे और बोले, "अब दिलाता हूँ असली मजा", और नीचे मेरी दोनों पैरों को ऊपर करते हुए बीच में आ गए।

फिर झुकते हुए अपने लंड को मेरी बुर पर घिसने लगे। मेरी नाजुक बुर भैया के गर्म लोहे को सह नहीं पाई और पानी छोड़ने लगी। दो बार झड़ने के बाद भी मेरी वासना की तुरंत ही भड़क गई। मैं अपनी गांड़ ऊपर करती हुई लण्ड को अपने बुर में लेने की कोशिश करने लगी। अचानक ही मेरी बुर पर एक जोरदार हमले हुए।

मैं जोर से चीखते हुए तड़पने लगी, "आहह.ह.ह.ह..भैया आआआआआआआ. मर गईईईईईईईईईईईई"

जोर मुझे अपनी मजबूत बाँहो से जकड़े थे। मैं चाह कर भी खुद को छुड़ा नहीं सकती थी। तभी मैं अपनी बुर की नजर घुमाई तो मेरी होश उड़ गई। भैया का 8 इंची लंड जड़ तक बुर में उतर चुकी थी। मेरी बुर में काफी दर्द हो रही थी।

तभी भैया मेरे कानों को चूमते हुए पूछे, "भारती, ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?"

मैं रोनी सूरत बनाते हुए हाँ में सिर हिला दी।

"लगता है शाले प्रमोद 5 इंच का लंड लिए घूम रहा है। अगर पहले पता होता तो कतई नहीं तुम्हें चुदने के लिए उसके पास जाने देता।"

भैया की बातें सुनते ही मैं दर्द को भूलते जोर से हँस पड़ी, भैया को लगा कि मेरी दर्द कम हो गई है तो अपना लंड पीछे खींचते हुए धक्का लगा दिए। मैं आउच्च्च्च्च्च करते हुए उछल पड़ी।

"जानू, असली लंड से चुदने पर थोड़ा दर्द तो सहना ही पड़ेगा" और मुस्कुरा दिए।

"भैया, उनका भी असली ही था पर आपसे थोड़ा छोटा था", कहते हुए मैं मुस्कुराते हुए अपनी नजर घुमा दी।

"हा हा हा... अच्छा… कहते हुए भैया मेरी चुची मसलते हुए चुसने लगे। अपने लंड की तारीफ सुन और गर्मजोशी से चुसने लग गए थे। कुछ ही देर में मैं दर्द से मुक्त हो अपनी बुर ऊपर की तरफ धकेलने लगी। ये देखते ही भैया मुँह मेरी चुची से हटा लिए और फिर अपना लंड खींचते हुए अंदर कर दिए और आगे पीछे करने लगे। मेरी चीख अब सेक्सी आवाजें में बदल गई थी।

भैया अपने हर धक्के पर या हहहहहह करते और साथ में मैं भी आहहहहह करती हुई उनका साथ दे रही थी। कुछ ही देर में भैया किसी मशीन के पिस्टन की तेजी से चोदने लगे। खुले में चुदने के मजे मैं पूरी तरह से ले रही थी। भैया पूरे रफ्तार से मेरी बुर की धज्जियाँ उड़ा रहे थे।

कोई 15 मिनट तक लगातार पेलने के बाद भैया चीखते बोले, "आहहहह भारती! मेरी प्यारी बहन, मैं आने वाला हूँऊँऊँऊँ.. अंदर ही डाल दूँ?"

"हाँ भैया या या या या ... मैं भी आने वाली हूँ। अपना सारा पानी अंदर ही डाल दो।"
मैं भी लगभग चीखते हुए बोली।

तभी भैया का पूरा शरीर अकड़ते हुए झटके खाने लगा और नीचे मैं भी अकड़ने लगी। भैया अपने लंड से अपनी बहन की गहरी बुर को नहला रहे थे। एक दूसरे को इतनी जोर से जकड़े हुए थे कि मेरी नाखून उनकी पीठ को नोँच रही थी। भैया के दाँत मेरी चुची में गड़ गई थी। काफी देर तक झटके खाने के बाद हम दोनों शांत यूँ ही एक दूसरे के शरीर पर चिपके थे। मैं मस्ती में अपनी आँखें बंद किए खो सी गई थी। फिर भैया मुझ पर से हटते हुए बगल में हाँफते हुए लुढक गए।

कुछ देर बाद जब होश में आई तो उठ के बैठ गई और अपनी हालत देख मैं मुस्कुराने लगी। पूरी चोली आम के रस और भैया के थूक से सनी हुई थी और लहँगा तो पूरी मिट्टी से भरी हुई थी। पास ही मेरी पेन्टी फटी पड़ी थी। इस वक्त अगर कोई देख ले उसे समझते देर नहीं लगेगी कि अभी-अभी दमदार चुदाई हुई है।

बगल में नजर दौड़ाई तो देखी भैया बेसुध से अभी भी पड़े हुए थे मानो लम्बी रेस दौड़ के आए हों। उनका लंड अभी भी मेरी बुर की रस से सनी हुई थी। मैं मुस्कुराते हुए फटी हुई पेन्टी उठाई और आहिस्ते से उनका लंड साफ करने लग गई। लंड पर हाथ पड़ते ही भैया आँखें खोल दिए और मुस्कुराने लगे।

जवाब में मैं भी शर्मिली हँसी हँसते हुए बोली, "अब उठो भी भैया! जल्दी घर चलो वर्ना ज्यादा देर हुई तो भाभी मुफ्त में डांटेगी।"

भैया उठ के बैठते हुए बोले, "ऐसी माल के बदले अगर कोई 100 डंडे भी मारे तो मैं मार खाना मंजूर करूँगा मेरी रानी, मुआहहह।"

मैं उनकी बात सुन हँसते हुए बोली, "ठीक है, ठीक है, अब बातें बनाना कम करो और जल्दी से कपड़े ठीक करो; और जल्दी चलो।"

भैया हँसते हुए अपने कपड़े ठीक किए और सारे आम थैली में डाल बाईक पर लाद दिए। फिर मैं भी चुन्नी निकाल शॉल की तरह ओढ ली और बाईक पर भैया से चिपकते हुए बैठ घर की तरफ चल दी।

To be continued...
 
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