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तभी राहुल ने पूछा “क्या हुआ पापा? गाड़ी चालू करके अब आप किसका इंतज़ार कर रहे हैं? चलिए गाड़ी निकलिये यहाँ से.” “कोशिश तो कर रहा हूँ बेटा, पर न जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि कार आगे नही बढ़ पा रही है. ऐसा लग रहा है जैसे ये गाड़ी आगे बढ़ना नहीं चाहती. कुछ समझ नहीं आ रहा मैं पूरी कोशिश तो कर रहा हूँ, गेयर डाला हुआ है, एक्सिलरेटर भी दबा रहा हूँ पर...अभी तो सब ठीक लग ही रहा था अब देखो तो सही अचानक...” “मुझे तो लगता है कार में कोई गड़बड़ी हो गयी होगी पापा. अरे इतने जोर से पेड़ से जो टकराई थी. आप रुकिए मैं बाहर जाके देखता हूँ...शायद कोई प्रॉबलम हो.” राहुल ने कहा और उसने कार का दरवाजा खोला, पर अर्चना ने मुड़कर उसका हाथ पकड़ लिया. “नहीं बेटा! कार से मत उतरना. जाने क्यों मेरा दिल जोर-जोर से घबरा रहा है...ऐसा लग रहा है जैसे कोई अनहोनी होने वाली है. कुछ भी ठीक नहीं लग रहा...ऐ जी...आप कोशिश करिये कार चल जाएगी.” अर्चना सहमी हुई थी. वह किसी भी तरह की मुसीबत को नहीं बुलाना चाहती थी और शायद जंगल को महसूस भी कर रही थी. कभी-कभी वहम सच भी हो जाता है. आगे