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अराका•••••! ये एक रहस्यमय द्वीप है भाई।भाई, ये “अराका” टापू बहुत ही कमाल का है!
पहले तो उस पेड़ के बारे में पढ़ कर लगा कि हैरी पॉटर के Whomping Willow जैसा बदमाश पेड़ है, लेकिन पारिजात वृक्ष से उसकी समानता दिखी। अद्भुत पेड़ है ये! फिर आगे मगरमच्छ ‘मानव’ जलोथा मिला। जो बर्फ़ 800 किलो का वज़न सह कर भी न टूटे, वो तौफ़ीक़ के प्रयास से टूट नहीं सकती थी - लेकिन इस बात का फायदा यह हुआ कि जेनिथ की नज़र में वो हीरो बन गया! हा हा हा हा!!
यहां कि हर एक चीज असाधारण है, आगे इसका ओर भी उदाहरण देखने को मिलेगा।
आप तो बेचारे सुयश के पीछे पड गये हो भैयाहर कदम पर अराका इस टीम की परीक्षा ले रहा है और हर बार शेफाली ही तारणहार बन कर सामने आ रही है। अगर वो पोसाइडन या फिर शलाका की वंशज नहीं है, तो फ़िर कुछ कहना ही बेकार है। सभी को चाहिए कि उस फेल्ड कप्तान सुयश के बजाय शेफ़ाली को अपना नेता (नेत्री) मान लें। सुयश ने अपना जहाज़ डुबो दिया। अपनी ज़िद के चलते असंख्य यात्री मरवा दिए। शिप की कप्तानी से ज़्यादा उनको मिस मार्पल बनने का शौक चढ़ा हुआ था। ऐसे में अब इस किरदार को साइड में कर देना चाहिए।

दो नजारै तो आप देख ही चुके हो।
कितनी पढाई किये हो महाप्रभूउधर अंटार्कटिका का अच्छा विवरण दिया है आपने। जिनको समझ में न आया हो -- अंटार्कटिका पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध में है। इसलिए ऋतुओं में 180 अंश का अंतर होता है। जब उत्तरी गोलार्द्ध में ठंडक होती है (जनवरी) तब वहाँ गर्मी पड़ती है। हाँ, लेकिन ये ऐसी गर्मी नहीं होती कि पसीने निकाल दे। वनस्पति के नाम पर काई, छोटी घास या फिर छोटी झाड़ियाँ ही उग पाती हैं। वो भी लगभग क्षणिक।


वो दीवार ही है भाई, ओर ढाल उसी पर लगी है।ऐसे में जेम्स और विल्मर द्वारा सुनहरी ढाल-दीवार-यान का पता लगाना एक और रहस्य है। शायद यहीं से “अटलांटिस” के ऊपर से आवरण हटेगा।
वैसे भाई, इतनी जल्दी 500 मीटर की दूरी की बर्फ़ हटा पाए वो दोनों, कमाल है! इनको बुला लाओ म्हारे देश। थोड़ा त्वरित गति से निर्माण कार्य होने लगेगा! हा हा हा हा!
कया लफडा है? ये जल्द ही सामने आ जायेगा

पड्या तो पाणी निर्मला, जै जल गहरा होय,संजू भाई का कमेंट मस्त लगता है। उन्होंने आखिरी लाइन में जो लिखा है वो प्रभु श्री राम और लंका के बीच वाले समुद्र की बात कही है। लेकिन दरअसल बात के मूल में यह है ही नहीं। जो समुद्र ‘उथला’ हो वो समुद्र नहीं हो सकता। उथला होना समुद्र की प्रकृति नहीं है। समुद्र गहरा होता है और उसमें सदैव लहरें उठती रहती हैं। वरुण देव, जो जल (नदियों, समुद्रों) के देवता हैं, उन्होंने ही यह नियम बनाये हैं।
आज कल बाहर हूँ। पढ़ तो लेता हूँ, लेकिन लिख नहीं पाता। उतना समय नहीं मिल रहा है।
बेहतरीन अपडेट्स![]()
साधु तो आसन भला, जै सतगुरू पूरा होय ।।
बहता पाणी निर्मला, पड्या गंदीला होय,
साधु तो रमता भला, दाग ना लागे कोय ।।
बात दोनो ही अपनी जगह है।, आपके इस शानदार रिव्यू के हार्दिक धन्यावाद भाई, ऐसे ही साथ बनाए रखियेगा तो हम जग जीत लेंगे।
