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अस्वीकरण
यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसमें वर्णित सभी पात्र, घटनाएँ, स्थान और परिस्थितियाँ लेखक की कल्पना का परिणाम हैं। यदि किसी जीवित व्यक्ति, समुदाय, संस्कृति, या स्थान के साथ समानता होती है, तो यह मात्र संयोग होगा। इस कहानी का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना, किसी धर्म, जाति, परंपरा, या मान्यताओं का अपमान करना नहीं है।
पाठकों से अनुरोध है कि इस कहानी को केवल मनोरंजन के दृष्टिकोण से पढ़ें और इसकी सामग्री को वास्तविकता से न जोड़ें।
उस कहानी के पात्र सभी बालिग हैं। इस कहानी में प्रेम प्रसंग बताए गए हैं। अगर किसी पाठक को यह पसंद नहीं, तो वह इस कहानी को न पढ़े। धन्यवाद।
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अपडेट १
यह कहानी छोटे शहर और गांव दोनों से जुड़ी है। यह कहानी की शुरुआत शहर से होती है और फिर गांव में प्रवेश होती है। तो आइए कहानी को शुरुआत करते हैं।
एक छोटे शहर में सतीश का छोटा बंगला था। यह बंगला उसने अपने माता-पिता की मदद से लिया था, जो अब इस दुनिया में नहीं थे। उस दिन तक—हरकर वह दूसरे शहर से वापस सुबह घर लौटा। उसने बोला नहीं, वजह—क्योंकि वह नहीं चाहता था कि वह जयश्री को नींद से जगाए। वह अपनी चाबी से घर के अंदर दाखिल हुआ। घर में दाखिल होते ही उसे अजीब सी स्मेल आई। वह सिगरेट की स्मेल थी। उसे अजीब लगा क्योंकि वह सिगरेट नहीं पीता था और न ही जया सिगरेट पीती थी। अपना सामान रखकर हाथ-पैर धोकर वह भी सोना चाहता था। उसने पानी पिया और बैडसाइड के पास के कचरे के डिब्बे में उसकी होटल और ट्रैवल की टिकट्स को डालने गया, तो उसने पहली बार यह दृश्य देखा। उसने देखा कि उसमें एक कंडोम शायद स्ट्रॉबेरी फ्लेवर का था। वह देख लिया और उसके होश उड़ गए। दूसरे कमरे में सामान रखने के लिए चला गया और देखा कि उसका अटैची का पूरा सामान और कपड़े-लत्ते सब वही कमरे में रखा है। वह चौंक गया और बिना आवाज किए अपने बेडरूम की तरफ बढ़ा। उसने हल्के से दरवाजा खोला और आगे का दृश्य देखकर उसके जो शक था वही दिखा। अंदर बिस्तर पर उसकी पत्नी जयश्री अपने बॉस रुद्रप्रताप के साथ सो रही थी।
सतीश 27 साल का है।
वह एक बहुत ही डरपोक दुबला-पतला सा शरीर से था, कमजोर भी था। दिखने में गोरा था, बस इतनी ही अच्छी बात थी उसकी। यहां तक कि पसलियां भी दिखती थीं उसकी। उसके माता-पिता अब नहीं थे। उसकी शादी उन्हीं के समाज के एक सम्पन्न परिवार की लड़की जयश्री से हुई थी। उसके माता-पिता शादी के कुछ दिन बाद वह चल बसे। अब वह गुजर जाने के बाद सतीश गांव का घर एवं थोड़ी जमीन बेचकर बाजू के छोटे शहर में जया के साथ रहने लगा। सतीश थोड़ा पढ़ा-लिखा था पर बहुत आलसी स्वभाव का था। उसे मेहनत करना कम और आराम की खानी की आदत लगी थी। अगर मौका मिले तो 2–3 दिन लगातार टीवी देख सकता था। सतीश और जयश्री की शादी हुए दो साल हुआ। पर पिछले कुछ महीनों से शादी में दरारें आने लगीं जिसके कई कारण थे। जब सतीश जॉब के लिए बाहर जाता तो जयश्री घर में अकेले बोर हो जाती। जॉब के कारण उसे कभी-कभी छोटे शहर के बाहर भी जाना पड़ता था। सतीश को जॉब भी सिफारिश से मिली थी। वह सिफारिश उसके ससुर बलदेव ने ही लगवाई थी क्योंकि रुद्रप्रताप बलदेव का बिज़नेस पार्टनर है। एक दिन रुद्रप्रताप ने सतीश को सुझाव दिया कि उसकी पत्नी जयश्री को भी वह काम पर रख सकता है। वैसे जयश्री को काम की ज़रूरत नहीं थी पर उसे घर पर रहने से अच्छा बाहर घूमना, दोस्त बनाना पसंद है। तो जब सतीश ने इस बारे में जयश्री को यह बताया कि क्या वह भी इस कंपनी में कुछ काम करेगी तो जयश्री ने तुरंत हां कर दी।
जयश्री 25 साल की है।
वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। वह एक सुंदर दिखने वाली घरेलू लड़की थी। उसका रंग गेहुँआ था। उसका कद सामान्य था। पर उसका चेहरा और शरीर बहुत आकर्षक था। उसकी छाती अभी भी तनी हुई, तंग और चुस्त गोलाकार थी, जो अभी भी 1 सेंटीमीटर मीटर भी नीचे नहीं झूलती थी। उसकी कमर काफी पतली तो नहीं, पर मनमोहक कमर थी जो उसे सज रही थी। उसका पश्चभाग भी ज्यादा बड़ा नहीं, पर अच्छे खासे कसे हुए और अच्छे आकार का था। उसका स्वभाव बाहर की दुनिया में ज्यादा लगता, वह खूब खुली-खिली माहौल में रही थी। वह भी थोड़ी पढ़ी-लिखी थी पर उसे पढ़ने का शौक बिल्कुल भी नहीं था। इंटर के बाद ग्रेजुएशन में मन लगा और पढ़ाई छोड़ दी। पर जयश्री की एक कमजोरी थी वह थी गहने। उसे सजना-संवरना, महंगे गहने पहनना, बढ़िया ब्रांडेड ड्रेस और साड़ियां पहनना अच्छा लगता था। उसकी खुशी को देखकर बलदेव ने उसे बार-बार नए-नए गहने खरीदकर दिए थे, जितना कि उन्होंने अपनी स्वर्गवासी पत्नी के लिए भी कभी नहीं खरीदे होंगे। उसकी शादी से पहले उसकी मां का देहांत हो गया, जो काफी पहले से बीमारी से ग्रस्त थी। और उसकी शादी उसके पिता बलदेव ने अपने ही खानदान के एक पहचान के घर में सतीश से कर दी। ऐसा नहीं कि जयश्री को और अच्छे रिश्ते नहीं आ सकते थे, पर बलदेव हमेशा से उसकी बेटी के लिए ऐसा रिश्ता चाहते थे जो उनसे कम घराने वाला हो, जो उनकी बात सुन सके और उनकी बेटी को कोई तकलीफ न दे। पर उसकी कई अपेक्षाएं थीं जो सतीश के बस की बात नहीं थी। जयश्री हमेशा से लोगों से मिलजुल कर रहती आई है। रिश्ते, बिरादरी वालों, सगे संबंधियों से उसकी जान-पहचान थी। उसे लगा कि उसका पति एक बहुत कामयाब और इंटरेस्टिंग होगा, पर उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया था। इन सबके बावजूद जयश्री को यह नहीं पता था कि उसके पिता कितने बड़े हरामी, कमीने और निर्दयी हैं।
बलदेव 50 साल के हैं।
ये जयश्री के पिता है | एक अधेड़ उम्र के विधुर। वह गांव के बहुत बड़े खानदानों में से एक थे। ये बहुत रंगीन मिजाज के हैं, पर बहुत चतुर भी। इनको अपने फायदे की चीजें जल्दी समझ आती थीं। और इनके पिता जी स्वर्गीय शंकरदास गांव के राजनीतिक पृष्ठभूमि से थे और गांव के मुखिया भी रह चुके थे। बलदेव जमींदार भी थे, किसान भी थे और ठेकेदारी भी लेते थे। एक तरह से देखा जाए तो काफी दबदबा था इनका। इनके दो फार्महाउस हैं, एक गांव में खेत में और दूसरा गांव के पास वाले जंगल में भी। बलदेव खेत वाले फार्महाउस में ही रहते थे। शहर के रास्ते पर इनके दो गैराज भी हैं। इसके अलावा इनके गाड़ियों का भी शौक था। जब भी मार्केट में नई SUVs आतीं, तो वह उस पर दावा मारते। बहुत सालों से इनकी पहचान रुद्रप्रताप से हुई थी। अब रुद्रप्रताप इनके दोस्त और बिजनेस पार्टनर भी थे। बलदेव एहसासीय थे। शहर में रुद्रप्रताप के होटल में जाकर डस्ट सिगरेट पेयां भी करते थे। जब भी वह पत्नी से नाराज होते, वह शहर जाकर रुद्रप्रताप को होटल का और औरत का इंतजाम करने को बोलते थे। बलदेव खेत वाले फार्महाउस में रहते थे। उनका वह फार्महाउस चार एकड़ साइज का था। वह खेत के कोने में बनाया था, जहां से पूरी खेती दिख सके और उसके पीछे जंगल का रास्ता बना हुआ था। बहुत आलीशान बनाया था वह फार्महाउस। आधे एरिया में नीचे चार बड़े-बड़े कमरे बनाए थे, जो कि हॉल, किचन और दो बेडरूम के साथ थे। फार्महाउस के पीछे सेट का एक कमरा बनाया था। वह नौकरों और ड्राइवरों के ठहरने के लिए था और उसके ऊपर एक पानी का बड़ा सा टैंक था। फार्महाउस की हर खिड़की से खेत का नजारा दिखता था। बलदेव बहुत ही बलशाली, ठोस शरीर के धनी थे। गांव में ज्यादा समय बिताने के कारण काम की वजह से उनका कसरती शरीर बना था। आज भी वह किसी सांड़ को टक्कर दे सकते हैं। उनका शरीर मानो फौलाद से बना हो ऐसा था। उनका कद 6 फीट का था, पर वह सांवले थे। आधी उम्र के बाद भी वह रत्तीभर भी कमजोर नहीं दिखते। उम्र के चलते पेट पर थोड़ी चर्बी आई थी, पर फिट भी बहुत थे। उनके सीने पर और शरीर पर कई जगह सफेद बाल थे। उनके सिर के बाल भी तकरीबन सफेद हो चुके थे। उनकी तेज़, तनी हुई बड़ी मूंछें भी थीं और वह भी सफेद मूंछें थीं। सिर के ऊपर के बाल कुछ झड़ गए थे, तो आधे गंजे जैसे थे। उनके गाड़ियों का शौक है, तो वह खुद गैराज में पुरानी गाड़ियों को नए जैसा बनाकर देते थे। बहुत बार वह खुद गैराज में बिना अपने ओहदे का विचार किए काम करते थे। उनकी दो कमजोरियां थीं—एक था पैसा और दूसरा थी अच्छी शराब।
रुद्रप्रताप ४८ साल के थे.
रुद्रप्रताप एक कारोबारी थे छोटे शहर में. उनका लोकल ट्रांसपोर्ट का बहोत बड़ा कारोबार था जो मशहूर भी था. ये पहले से ही रंगीन मिजाज के थे और दिलखोल भी थे. उनके इसी स्वभाव के कारण उनकी बलदेव से अच्छी पार्टनरशिप चली और फिर ये दोस्ती में बदल गयी. पर दिमाग से दोनों कमीने थे. रुद्रप्रताप ने जब बलदेव के सिफारिश पे उसके जमाई सतीश को काम पे रख लिया तभी से रुद्रप्रताप के दिमाग में कुरपति कारनामो ने जन्म लिया. जब बलदेव के यहाँ आते तो अक्सर जयश्री को आशीर्वाद के रूप में उसे कुछ न कुछ गिफ्ट लेके आते थे. तभी से जयश्री को रुद्रप्रताप के लिए अलग फील था.
यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसमें वर्णित सभी पात्र, घटनाएँ, स्थान और परिस्थितियाँ लेखक की कल्पना का परिणाम हैं। यदि किसी जीवित व्यक्ति, समुदाय, संस्कृति, या स्थान के साथ समानता होती है, तो यह मात्र संयोग होगा। इस कहानी का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना, किसी धर्म, जाति, परंपरा, या मान्यताओं का अपमान करना नहीं है।
पाठकों से अनुरोध है कि इस कहानी को केवल मनोरंजन के दृष्टिकोण से पढ़ें और इसकी सामग्री को वास्तविकता से न जोड़ें।
उस कहानी के पात्र सभी बालिग हैं। इस कहानी में प्रेम प्रसंग बताए गए हैं। अगर किसी पाठक को यह पसंद नहीं, तो वह इस कहानी को न पढ़े। धन्यवाद।
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यह कहानी छोटे शहर और गांव दोनों से जुड़ी है। यह कहानी की शुरुआत शहर से होती है और फिर गांव में प्रवेश होती है। तो आइए कहानी को शुरुआत करते हैं।
एक छोटे शहर में सतीश का छोटा बंगला था। यह बंगला उसने अपने माता-पिता की मदद से लिया था, जो अब इस दुनिया में नहीं थे। उस दिन तक—हरकर वह दूसरे शहर से वापस सुबह घर लौटा। उसने बोला नहीं, वजह—क्योंकि वह नहीं चाहता था कि वह जयश्री को नींद से जगाए। वह अपनी चाबी से घर के अंदर दाखिल हुआ। घर में दाखिल होते ही उसे अजीब सी स्मेल आई। वह सिगरेट की स्मेल थी। उसे अजीब लगा क्योंकि वह सिगरेट नहीं पीता था और न ही जया सिगरेट पीती थी। अपना सामान रखकर हाथ-पैर धोकर वह भी सोना चाहता था। उसने पानी पिया और बैडसाइड के पास के कचरे के डिब्बे में उसकी होटल और ट्रैवल की टिकट्स को डालने गया, तो उसने पहली बार यह दृश्य देखा। उसने देखा कि उसमें एक कंडोम शायद स्ट्रॉबेरी फ्लेवर का था। वह देख लिया और उसके होश उड़ गए। दूसरे कमरे में सामान रखने के लिए चला गया और देखा कि उसका अटैची का पूरा सामान और कपड़े-लत्ते सब वही कमरे में रखा है। वह चौंक गया और बिना आवाज किए अपने बेडरूम की तरफ बढ़ा। उसने हल्के से दरवाजा खोला और आगे का दृश्य देखकर उसके जो शक था वही दिखा। अंदर बिस्तर पर उसकी पत्नी जयश्री अपने बॉस रुद्रप्रताप के साथ सो रही थी।
सतीश 27 साल का है।
वह एक बहुत ही डरपोक दुबला-पतला सा शरीर से था, कमजोर भी था। दिखने में गोरा था, बस इतनी ही अच्छी बात थी उसकी। यहां तक कि पसलियां भी दिखती थीं उसकी। उसके माता-पिता अब नहीं थे। उसकी शादी उन्हीं के समाज के एक सम्पन्न परिवार की लड़की जयश्री से हुई थी। उसके माता-पिता शादी के कुछ दिन बाद वह चल बसे। अब वह गुजर जाने के बाद सतीश गांव का घर एवं थोड़ी जमीन बेचकर बाजू के छोटे शहर में जया के साथ रहने लगा। सतीश थोड़ा पढ़ा-लिखा था पर बहुत आलसी स्वभाव का था। उसे मेहनत करना कम और आराम की खानी की आदत लगी थी। अगर मौका मिले तो 2–3 दिन लगातार टीवी देख सकता था। सतीश और जयश्री की शादी हुए दो साल हुआ। पर पिछले कुछ महीनों से शादी में दरारें आने लगीं जिसके कई कारण थे। जब सतीश जॉब के लिए बाहर जाता तो जयश्री घर में अकेले बोर हो जाती। जॉब के कारण उसे कभी-कभी छोटे शहर के बाहर भी जाना पड़ता था। सतीश को जॉब भी सिफारिश से मिली थी। वह सिफारिश उसके ससुर बलदेव ने ही लगवाई थी क्योंकि रुद्रप्रताप बलदेव का बिज़नेस पार्टनर है। एक दिन रुद्रप्रताप ने सतीश को सुझाव दिया कि उसकी पत्नी जयश्री को भी वह काम पर रख सकता है। वैसे जयश्री को काम की ज़रूरत नहीं थी पर उसे घर पर रहने से अच्छा बाहर घूमना, दोस्त बनाना पसंद है। तो जब सतीश ने इस बारे में जयश्री को यह बताया कि क्या वह भी इस कंपनी में कुछ काम करेगी तो जयश्री ने तुरंत हां कर दी।
जयश्री 25 साल की है।
वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। वह एक सुंदर दिखने वाली घरेलू लड़की थी। उसका रंग गेहुँआ था। उसका कद सामान्य था। पर उसका चेहरा और शरीर बहुत आकर्षक था। उसकी छाती अभी भी तनी हुई, तंग और चुस्त गोलाकार थी, जो अभी भी 1 सेंटीमीटर मीटर भी नीचे नहीं झूलती थी। उसकी कमर काफी पतली तो नहीं, पर मनमोहक कमर थी जो उसे सज रही थी। उसका पश्चभाग भी ज्यादा बड़ा नहीं, पर अच्छे खासे कसे हुए और अच्छे आकार का था। उसका स्वभाव बाहर की दुनिया में ज्यादा लगता, वह खूब खुली-खिली माहौल में रही थी। वह भी थोड़ी पढ़ी-लिखी थी पर उसे पढ़ने का शौक बिल्कुल भी नहीं था। इंटर के बाद ग्रेजुएशन में मन लगा और पढ़ाई छोड़ दी। पर जयश्री की एक कमजोरी थी वह थी गहने। उसे सजना-संवरना, महंगे गहने पहनना, बढ़िया ब्रांडेड ड्रेस और साड़ियां पहनना अच्छा लगता था। उसकी खुशी को देखकर बलदेव ने उसे बार-बार नए-नए गहने खरीदकर दिए थे, जितना कि उन्होंने अपनी स्वर्गवासी पत्नी के लिए भी कभी नहीं खरीदे होंगे। उसकी शादी से पहले उसकी मां का देहांत हो गया, जो काफी पहले से बीमारी से ग्रस्त थी। और उसकी शादी उसके पिता बलदेव ने अपने ही खानदान के एक पहचान के घर में सतीश से कर दी। ऐसा नहीं कि जयश्री को और अच्छे रिश्ते नहीं आ सकते थे, पर बलदेव हमेशा से उसकी बेटी के लिए ऐसा रिश्ता चाहते थे जो उनसे कम घराने वाला हो, जो उनकी बात सुन सके और उनकी बेटी को कोई तकलीफ न दे। पर उसकी कई अपेक्षाएं थीं जो सतीश के बस की बात नहीं थी। जयश्री हमेशा से लोगों से मिलजुल कर रहती आई है। रिश्ते, बिरादरी वालों, सगे संबंधियों से उसकी जान-पहचान थी। उसे लगा कि उसका पति एक बहुत कामयाब और इंटरेस्टिंग होगा, पर उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया था। इन सबके बावजूद जयश्री को यह नहीं पता था कि उसके पिता कितने बड़े हरामी, कमीने और निर्दयी हैं।
बलदेव 50 साल के हैं।
ये जयश्री के पिता है | एक अधेड़ उम्र के विधुर। वह गांव के बहुत बड़े खानदानों में से एक थे। ये बहुत रंगीन मिजाज के हैं, पर बहुत चतुर भी। इनको अपने फायदे की चीजें जल्दी समझ आती थीं। और इनके पिता जी स्वर्गीय शंकरदास गांव के राजनीतिक पृष्ठभूमि से थे और गांव के मुखिया भी रह चुके थे। बलदेव जमींदार भी थे, किसान भी थे और ठेकेदारी भी लेते थे। एक तरह से देखा जाए तो काफी दबदबा था इनका। इनके दो फार्महाउस हैं, एक गांव में खेत में और दूसरा गांव के पास वाले जंगल में भी। बलदेव खेत वाले फार्महाउस में ही रहते थे। शहर के रास्ते पर इनके दो गैराज भी हैं। इसके अलावा इनके गाड़ियों का भी शौक था। जब भी मार्केट में नई SUVs आतीं, तो वह उस पर दावा मारते। बहुत सालों से इनकी पहचान रुद्रप्रताप से हुई थी। अब रुद्रप्रताप इनके दोस्त और बिजनेस पार्टनर भी थे। बलदेव एहसासीय थे। शहर में रुद्रप्रताप के होटल में जाकर डस्ट सिगरेट पेयां भी करते थे। जब भी वह पत्नी से नाराज होते, वह शहर जाकर रुद्रप्रताप को होटल का और औरत का इंतजाम करने को बोलते थे। बलदेव खेत वाले फार्महाउस में रहते थे। उनका वह फार्महाउस चार एकड़ साइज का था। वह खेत के कोने में बनाया था, जहां से पूरी खेती दिख सके और उसके पीछे जंगल का रास्ता बना हुआ था। बहुत आलीशान बनाया था वह फार्महाउस। आधे एरिया में नीचे चार बड़े-बड़े कमरे बनाए थे, जो कि हॉल, किचन और दो बेडरूम के साथ थे। फार्महाउस के पीछे सेट का एक कमरा बनाया था। वह नौकरों और ड्राइवरों के ठहरने के लिए था और उसके ऊपर एक पानी का बड़ा सा टैंक था। फार्महाउस की हर खिड़की से खेत का नजारा दिखता था। बलदेव बहुत ही बलशाली, ठोस शरीर के धनी थे। गांव में ज्यादा समय बिताने के कारण काम की वजह से उनका कसरती शरीर बना था। आज भी वह किसी सांड़ को टक्कर दे सकते हैं। उनका शरीर मानो फौलाद से बना हो ऐसा था। उनका कद 6 फीट का था, पर वह सांवले थे। आधी उम्र के बाद भी वह रत्तीभर भी कमजोर नहीं दिखते। उम्र के चलते पेट पर थोड़ी चर्बी आई थी, पर फिट भी बहुत थे। उनके सीने पर और शरीर पर कई जगह सफेद बाल थे। उनके सिर के बाल भी तकरीबन सफेद हो चुके थे। उनकी तेज़, तनी हुई बड़ी मूंछें भी थीं और वह भी सफेद मूंछें थीं। सिर के ऊपर के बाल कुछ झड़ गए थे, तो आधे गंजे जैसे थे। उनके गाड़ियों का शौक है, तो वह खुद गैराज में पुरानी गाड़ियों को नए जैसा बनाकर देते थे। बहुत बार वह खुद गैराज में बिना अपने ओहदे का विचार किए काम करते थे। उनकी दो कमजोरियां थीं—एक था पैसा और दूसरा थी अच्छी शराब।
रुद्रप्रताप ४८ साल के थे.
रुद्रप्रताप एक कारोबारी थे छोटे शहर में. उनका लोकल ट्रांसपोर्ट का बहोत बड़ा कारोबार था जो मशहूर भी था. ये पहले से ही रंगीन मिजाज के थे और दिलखोल भी थे. उनके इसी स्वभाव के कारण उनकी बलदेव से अच्छी पार्टनरशिप चली और फिर ये दोस्ती में बदल गयी. पर दिमाग से दोनों कमीने थे. रुद्रप्रताप ने जब बलदेव के सिफारिश पे उसके जमाई सतीश को काम पे रख लिया तभी से रुद्रप्रताप के दिमाग में कुरपति कारनामो ने जन्म लिया. जब बलदेव के यहाँ आते तो अक्सर जयश्री को आशीर्वाद के रूप में उसे कुछ न कुछ गिफ्ट लेके आते थे. तभी से जयश्री को रुद्रप्रताप के लिए अलग फील था.
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