अपडेट ४
सतीश ससुराल में अपने खट्टरा पार्क करता है और बलदेव से मिलने अंदर जाता है. रात के १० बजे थे तो बलदेव अपने स्पेशल हॉल में जो ऊपर छज्जे पे बना था वह टीवी देखते बार काउंटर पर व्हिस्की चढ़ा रहा था. आधे छत पर कोई कवर नहीं था. आधे छत से पूरा खुला आसमान दीखता था. बलदेव का हॉल जो फार्महाउस के छत पे था बोहोत आलिशान सुविधा से युक्त था. वहा दारू की बॉटल्स का आलिशान डेस्क और शोकेस के साथ आधुनिक कटलरी. हॉल में लेटेस्ट फिनिशिंग इंटीरियर था जो डिम लाइट्स के साथ एक रंगीन माहौल बनता था. बलदेव ने हॉल में ३ बड़े बड़े मिरर लगा रखे थे. वही पूरब के बड़े खिड़की पास एक बड़ा सा आलीशान किंग साइज बेड जो किसी पौराणिक ज़माने के डिज़ाइन का था. बेडबोर्ड पे पुणे ज़माने की कलाकृतिया थी. बेड पे जालीदार परदे भी लगे थे जाओ किसी राजा के बेड की तरह दीखता था. बेड पे आलिशान एक मखमली का चद्दर और अन्सिएंट डिज़ाइन वाले पिलो भी थे. और उस पर एक बड़ा सा मख़मली ढकने वाला चद्दर भी था. बेड के पास वही पे एक ड्रेसिंग टेबल भी था. तोह बेड के दूसरी तरफ एक पार्टीशन के बाद आधे से ज्यादा छत खुला था. हॉल के पीछे की साइड में दक्षिण वाले कोने में जहा नोकरो कारूम से सीढ़ियों से सीधा एंट्री था वही एक आलीशान वाशरूम और बाथरूम पुरे मॉडर्न इक्विपमेंट से सज्ज था, बाथटम, स्प्रिंकलर, शावर सब. बाहर छत की उत्तर में आधे से ज्यादा खुले छत पे एक मिट्टी का कुश्ती का अखाडा भी था जहा बलदेव कभी २ हाथ आजमाइश करता था. आधे बॉर्डर से लगा पूरा गार्डन था जहा अलग अलग फूल और छोटे पौधे थे. वहां उत्तर के साइड में एक बड़ा सा झूला था जहा सिर्फ और सिर्फ बलदेव ही बैठ सकता था ऐसी ताकीत भी दी थी सब को. उसके साइड में एक बड़ा लार्ड सोफे था उसी के बाजु में एक बड़ा म्यूजिक सिस्टम लगाया हुआ था.
सतीश ये सब देख कर चौंक गया. उसकी सासु माँ के गुजर ने के बाद तोह उसके ससुर बलदेव में काफी रंगीनियत आ गयी थी. वैसे बलदेव उसके फार्महाउस के छत पर सिर्फ गिनेचुने लोगों को ही आने देता था. सतीश के आते ही डलदेव ने उसे ऊपर चाट पे बुआलया था.
बलदेव- आइये आइये दामाद जी बैठो. बोलो क्या हल चल है? हमारी राजकुमारी को नहीं लाये साथ में? ऐसी क्या बात है जो अकेले चले आये?
सतीश- जी ससुर जी उसी के बारे में बात करने आया था.
सतीश ससुर जी के शानो शौक़ से पहले भी अभिभूत नहीं था ऐसे नहीं पर पिछले एक दो साल में काफी बदलाव दिखे थे उसने अपने ससुर जी में. थोडासा मॉडर्न भी हो चुके थे. वेलवेट वाला रॉब पहना हुआ था और खुले आसमान के निचे बड़े झूले पर बैठ व्हिस्की चढ़ा रहा था बलदेव. सतीश जब बड़े झूले पर बैठने गया तो बलदेव ने अजीब नजर से सतीश को देखा और कुछ इशारा किया. सतीश समाज गया की वो झूले पे नहीं बैठ सकता. वो बजे में सोफे पे बैठ गया.
बलदेव- तुम कुछ लोगे दामाद जी?
सतीश- जी नहीं मई ठीक हूँ
बलदेव- क्या दामाद जी तुम भी न कोई बुरी आदत न कोई रंगीनिया न कोई थ्रिल है तुम में दामाद जी. बहोत सीधे हो और इसलिए एक बात बताता हूँ मैदान-इ-जंग में सबसे पहले शरीफ मरे जाते है
बलदेव- बोलो क्या बात थी तुम कुछ बतानेवाले थे
सतीश मसोस गया की कैसे बताये बलदेव को. पर बताना जरुरी था.
सतीश- ससुर जी आप यहाँ खोये हुए है और वह आपकी बेटी ...
बलदेव जयश्री का नाम सुनते ही चौक गया.
बलदेव - क्या, क्या हुआ मेरी लाड़ली को?
सतीश- कुछ हुआ नहीं है ससुर जी पर बात थोड़ी अजीब है कैसे बताऊँ
बलदेव- बताओ खुल कर क्या बात है
सतीश- वो... वो हमारे शादी को काफी महीने हुई पर ... पर लगता है जयश्री मुझ से खुश नहीं है ...
बलदेव- ऐसा क्यों बोल रहे हो क्या हुआ?
सतीश- अब हम दोनों की नहीं जमती है
बलदेव सुनाने लगा
सतीश- अब ज्यादा तोह नौकरी के कारन बहार रहता हूँ. आप का ही दोस्त रुद्रप्रताप मुझे सुधरने नहीं देता
बलदेव- तोह मई क्या कर सकता हूँ इसमें दामाद जी यह काम है तुम्हारा
सतीश- पर अब आपका दोस्त हाथ से चला गया है ससुर जी
बलदेव- मतलब.... क्या है तुम्हारा... ठीक से बताओ
बलदेव सिगरेट की चुस्की लगते हुए सुन रहा था
सतीश अब देर नहीं कर सकता था बताने में
सतीश- वो... वो... ये है की .. वो जयश्री ...
बलदेव- अरे बताओ न क्या बात है
सतीश- जी वो जयश्री कुछ ज्यादा ही रुद्रप्रताप जी के साथ घूमने लागि है
बलदेव- मतलब...
सतीश- ससुर जी अब कैसे बताऊँ!
बलदेव- देखो दामाद जी घुमाओ मत सीधा मुद्दे पे आओ
सतीश- ससुर जी वो... वो जयश्री और रुद्रप्रताप में ....
बलदेव चुप रहा. उसने कुछ भी चेहरे पर भाव नहीं आने दिया. बलदेव उठा और आखाड़े के कोने की टेबल पर राखी हुई व्हिस्की की बोतल उठाई और गिलास में दारू भरने लगा
बलदेव अब सतीश की तरफ पीठ कर के बात कर रहा था
बलदेव- हम्म , कब से चल रहा है ये सब?
सतीश- जी अब तक़रीबन २ महीना हुआ...
बलदेव- (जोर से ) और ये तुम मुझे अब बता रहे हो सतीश!
सतीश थोड़ा डर गया अभी पहले बार उन्होंने सतीश को नाम से बुलाया था
बलदेव- मुझे पूरी बात बताओ
सतीश- जब से रुद्रप्रताप जी ने उसे अपनी सेक्रेटरी बना है तब से वो ज्यादा साथ रहने लगे है. रात रात भर पार्टीया करती है सहेली के साथ गुलछर्रे भी उड़ाती है. मई क्या करता एक दो बार समझाया भी मगर कुछ न हुआ.
बलदेव- ग़ुस्से से, संजय! कैसे समझाते है पता है! मर्द को मर्द का काम करना चाहिए वैसे हो तोह बोरिंग बोहोत कुछ खाऊ पियो जरा अपना स्वाग दिखाओ निक्कमो की तरह मत बैठो
बलदेव ने घूंट पे घुट लगते हुई बोला सतीश चुपचाप सुन रहा था.
बलदेव- क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है इसका ?
सतीश- हाँ है. मेरे मोबाइल पे है
बलदेव- तोह अब ठीक है तुम जाओ आगे का में सभाल लूंगा...
सतीश- ससुर जी कुछ करो न प्लीज ... ऑफिस के लोग मुझ पे हंस रहे है .. अब आप ही मेरा सहारा हो
बलदेव- गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी है, अब तुम जाओ मुझ पर छोड़ दो सब. और हाँ इसके बारे में मुझे पता है यह जरा सी भी भनक जयश्री को और रुद्रप्रताप को नहीं लगनी चाहिए. में देख लूंगा अब निकलो..
सतीश- जी पर क्या आज की रात में यहाँ रुक सकता हूँ
बलदेव - ह निचे एक कमर है तैयार मेहमानो के लिए जाओ
पर अब बलदेव गहरी सोच में था. उसकी एकलौती बेटी का चक्कर चल रहा है. गाँव में यह बात किसी को पता चली तोह उसके पुरे रुतबे पे आफत आ सकती है. वो सोचने लगा की उसने ये जरूर सोचा था की उसका दामाद शरीफ हो और उसके विरोध न करे पर उसने ये नहीं सोचा था की उसका दामाद इतना कमजोर और निठल्ला और निकम्मा निकलेगा. जयश्री को बचपन से ध्यान नहीं दिया जितना देना चाहिए वो अपने आप आज़ाद खयालो वाली हो गयी थी. पर वो अभी भी जयश्री को ज्यादा बड़ी नहीं समज़ता था. उस ने आज पहली बार अपनी बेटी का अफेयर के बारे में सुन कर अहसास हुआ की अब वो जवान हो गयी है. वो सोफे पे झूलते हुए सब गणित बिठाने लगा. यहाँ वो कश पे कश लगाए जा रहा था. उधर दारू गटकता गटकता दिमाग में सुरसुरी चढ़ने लगी और पता नहीं उसे क्या हुआ उसने अपना मोबाइल हाथ में लेकर पहली बार अपना फोटो एल्बम खोला और सहेज उसको ऊपर निचे स्क्रॉल कर देखने लगा अब उसकी अपनेआप नजर जयश्री के फोटो पर लगी. स्क्रॉल करते करते उसकी नजर उकसे पिछले महीने के जन्मदिन की तस्वीरों पर गयी थी जिस में जयश्री एक टाइट ब्लैक टॉप और स्किन टाइट जीन्स में थी जाओ की उसने कभी गौर नहीं किया. वहां कमर पर टॉप थोड़ा शार्ट था तो उसकी पतली कोमल कमर और नाभि दिखाई दे रही थी जहा उसने अब नवल रिंग पेअर्स कराई थी. जयश्री ने उसके थोड़े फैले हुई नक् की पंखुड़ियों पर दये साइड में एक छोटी पतली से नोज रिंग पेअर्स कराई थी जो उसके चेहरे को खूबसूरतऔर मादक बना रही थी. वैसे मायके में ज्यादा तोह जयश्री कुरता पजामा या सदी ही पहनती थी. कभी कभी एकड़ दिन वो जीन्स और कासुअल टॉप पहनती थी पर अब उसका यह नया खूबसूरत रूप पे कभी गौर नहीं किया उसने. उस फोटो में वो खुश लग रही थी शायद उसके पापा का जन्मदिन था इस लिए! उसके जन्मदिन के कुछ फोटोज में सतीश भी था रुद्रप्रताप भी था और बाकि कुछ इधर उधर के लोग भी थे. कुछ फोटो सतीश ने खींची थी और उसको भेजी थी. उस में जयश्री प्यार से उसको केक खिला रही थी. बलदेव का एक हाथ उसकी कमर पर था और जयश्री की ऊंचाई सिर्फ बलदेव के सीने तक ही थी. बलदेव ने उसे हो सके उतनी खुशिया जरूर दी थी. बलदेव ने और कुछ फोटोज देखि और हर फोटो में अब वो जयश्री को गौर से देखने लगा. उसका खूबसूरत चेहरा बलदेव प्यार लगा. जयश्री के चेहरे पर एक कसक थी. नई जवानी के आसार दिख रहे थे. देसी थी पर बोहोत आकर्षक चेहरा था उसका. जन्मदिन के कुछ फोटोज में रुद्रात्रताप भी था पर कभी नहीं उसे ऐसा लगा की रुद्रप्रताप ऐसा करेगा. रुद्रप्रताप दोस्त के साथ साथ एक बिज़नेसमन था और वो क्या सोचता है इसके बारे में जानना पड़ेगा. बलदेव ने फोटोज देखते देखते जयश्री के खयालो में खोने लगा. उसे जयश्री के वो सब लम्हे याद आये जहा वो खुश दिक्ति थी. दरसल बलदेव ने कभी उसे मायूस या उदास कभी नहीं देखा. वो हमेशा से चाहता था की उसकी बेटी खुश रहे पर अब बात सिर्फ ख़ुशी की न थी बल्कि उसके इज्जत की भी थी. अब उसको ऐसा रास्ता अपनाना पड़ेगा की सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे. यह सोचते सोचते वो अपना आखरी घूंट पि के अंदर चला गया.