kamdev99008
FoX - Federation of Xossipians
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अद्भुत कथानक#77.
“ये कैसे हो सकता है?" जॉनी ने डरते हुए शैफाली की ओर देखा- “दीवार के पीछे छिपी आकृति शैफाली को कैसे नजर आ गयी?"
“मुझे लगता है कि शैफाली की आँखे जादुई तरीके से सही हुई है, इसिलये इसकी आँखों में कोई शक्ति आ गयी है?" अल्बर्ट ने शैफाली की आँखों की ओर देखते हुए कहा।
सभी को अल्बर्ट की बातों में दम दिखाई दिया।
तभी शैफाली दूसरी दीवार की ओर देखते हुए आश्चर्य से भर उठी-
“ये कैसे संभव है?"
शैफाली की बात सुन सभी का ध्यान उस दीवार की ओर गया, पर पिछली बार की तरह इस बार भी किसी को कुछ नहीं दिखाई दिया।
सुयश को ये कोतूहल रास ना आया इसलिए उसने आगे बढ़कर उस दीवार से भी मिट्टी को साफ कर दिया।
पर मिट्टी साफ करते ही इस बार हैरान होने की बारी सबकी थी, क्यों कि उस दीवार पर वही सूर्य की आकृति बनी थी, जो कि सुयश की पीठ पर टैटू के रूप में मौजूद थी।
अब मानो सबके दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया। काफ़ी देर तक किसी के मुंह से कोई बोल नहीं फूटा।
“कैप्टन!"
आख़िरकार ब्रेंडन बोल उठा- “आप तो कह रहे थे कि यह टैटू का निशान आपके दादाजी के हाथ पर बना था, जो आपको अच्छा लगा और आपने इस टैटू को अपनी पीठ पर बनवा लिया। पर आपके दादाजी तो भारत में रहते थे, फ़िर बिल्कुल उसी तरह का निशान यहां इस रहस्यमयी द्वीप पर कैसे मौजूद है?"
“मुझे लगता था कि यह निशान साधारण है, पर अब मुझे याद आ गया कि बचपन में जब मैं अपने दादाजी के साथ अपने कुलदेवता के मंदिर जाता था, तो मैंने यह निशान वहां भी बना देखा था।"
सुयश ने बचपन की बातों को याद करते हुए कहा- “दरअसल हम लोग सूर्यवंशी राजपूत हैं, मुझे लगता है कि यह निशान हमारे कुल का प्रतीक है। अब यह निशान यहां कहां से आया, ये मुझे भी नहीं पता?"
“कैप्टन, लेकिन एक बात तो श्योर है कि देवी शलाका का जुड़ाव भारतीय संस्कृति से कुछ ज़्यादा ही था।" अल्बर्ट ने एक बार फ़िर खंडहारों के देखते हुए कहा।
“शैफाली।" जेनिथ ने शैफाली को देखते हुए कहा- “जरा एक बार ध्यान से पूरे खंडहर को देखो। शायद तुम्हे कुछ और रहस्यमयी चीज मिल जाए?"
शैफाली अब ध्यान से खंडहर की दीवार और छत को देखने लगी। सभी शैफाली के पीछे थे।
एक दीवार के पास जाकर शैफाली कि गयी और दीवार को ध्यान से देखते हुए बोली-
“इस दीवार पर देवी शलाका की तस्वीर है।"
देवी शलाका का नाम सुनते ही सुयश की आँखों के सामने देवी शलाका का प्रतिबिंब उभर आया।
वह एक क्षण रुका और फ़िर सामने की दीवार पर लगी मिट्टी को साफ करने लगा।
जैसे ही सुयश ने देवी शलाका की मूर्ति को स्पर्श किया, वहां से हजारों किलोमीटर दूर, अंटार्कटिका के बर्फ में मौजूद, शलाका के चेहरे पर एक गुलाबी मुस्कान बिखर गयी।
शलाका ने अपनी आँखों को बंद किया और धीरे से हवा में फूंक मारते हुए बुदबुदाई- “आर्यन!"
इधर अचानक सुयश को एक झटका सा महसूस हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके कान के पास ‘आर्यन’ पुकारा हो।
सुयश को झटका लगते देख अल्बर्ट ने पूछ लिया- “क्या हुआ कैप्टन? आपको कुछ महसूस हुआ क्या?"
“हां प्रोफेसर, मुझे ऐसा लगा जैसे कि किसी ने मेरे कान के पास ‘आर्यन’ कहकर पुकारा।" सुयश ने चारो ओर देखते हुए कहा।
“यह नाम भी भारतीय ही लग रहा है।“
क्रिस्टी ने कहा- “यहां कुछ ना कुछ तो ऐसा जरूर है? जो यहां है तो, पर हमें नजर नहीं आ रहा।"
“तुम्हारा यह कहने का मतलब है, कि यहां पर कोई अदृश्य शक्ति मौजूद है?" एलेक्स ने क्रिस्टी को देखते हुए कहा।
“कभी शैफाली के कानो में, तो कभी कैप्टन के कानो में यह अजीब सी आवाज सुनाई देना, यह साबित करता है, कि अवश्य ही कोई ऐसी शक्ति यहां है, जो या तो अदृश्य है या फ़िर किसी जगह से लगातार हम पर नजर रखे है।" क्रिस्टी के शब्दो में विश्वास की झलक दिख रही थी।
तभी ऐमू उड़कर एक दरवाजे के बीच लगे घंटे के आसपास मंडराते हुए जोर-जोर से चिल्लाया-
“घंटा बजाओगे, सब जान जाओगे .... घंटा बजाओगे, सब जान जाओगे।"
सुयश ने एक पल को कुछ सोचा और फ़िर आगे जाकर दरवाजे पर लगे घंटे को बजा दिया।
“टन्ऽऽऽऽऽऽऽऽऽ"
घंटे की आवाज जोर से पूरे खण्डहरों में गूंजी। अचानक से उन खण्डहरों की जमीन और छत कांपने लगी।
“भूकंप ..... ये भूकम्प के लक्षण हैं।" जैक जोर से चिल्लाया।
तभी उस कमरे की जमीन, एक जगह से अंदर की ओर धंस गयी और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उस जगह से जमीन के नीचे से एक प्लैटफ़ॉर्म ऊपर आता दिखाई दिया।
उस प्लैटफ़ॉर्म के ऊपर एक सुनहरे रंग की धातु का सिंहासन रखा हुआ था। जो किसी पौराणिक सम्राट का नजर आ रहा था।
उस सिंहासन के बीचोबीच एक विशालकाय ‘हिमालयन यति’ का चित्र बना था, जो अपने हाथो में एक गदा जैसा अस्त्र लिए हुए था। बाकी उस सिंहासन के चारो तरफ बर्फ़ की घाटी के सुंदर चित्र, फूल और पौधे बने हुए थे।
सिंहासन के जमीन से निकलते ही जमीन का हिलना बंद हो गया। सभी मन्त्रमुग्ध से उस चमत्कारी सिंहासन को देख रहे थे।
“कोई अभी इसे छुएगा नहीं, यह भी उन विचित्र घटनाओं का हिस्सा हो सकता है।" अल्बर्ट ने सबको हिदायत देते हुए कहा।
तभी ऐमू जाकर उस सिंहासन के ऊपर बैठ गया। कोई भी विचित्र घटना ना घटते देख सुयश भी आगे बढ़कर उस सिंहासन पर बैठ गया।
जैसे ही सुयश सिंहासन पर बैठा, उसका शरीर बेजान होकर उसी सिंहासन पर ढुलक गया।
यह देख सभी घबरा गये। अल्बर्ट भागकर सुयश का शरीर चेक करने लगा।
सुयश के शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी।
अल्बर्ट ने सुयश के शरीर को हिलाया, पर सुयश का शरीर बिल्कुल बेजान सा लग रहा था।
अल्बर्ट ने घबराकर सुयश की नाक के पास अपना हाथ लगाया और फ़िर उसकी नब्ज चेक करने लगा।
“कैप्टन! अब इस दुनियां में नहीं हैं।"
अल्बर्ट के शब्द किसी बम के धमाके की तरह से पूरे कमरे में गूंजे। जिसने भी सुना वह सदमें से वहीं बैठ गया।
“यह कैसे हो सकता है? कोई सिंहासन पर बैठने से भला कैसे मर सकता है?" तौफीक की आँखों में दुनियां भर का आश्चर्य दिख रहा था।
“आप सब परेशान मत होइये, कैप्टन अंकल अभी मरे नहीं हैं।" शैफाली ने कहा।
“मैं उनके शरीर से जुड़ी जीवन की डोर को स्पस्ट देख रही हूं। इसका मतलब उनका सूक्ष्म शरीर यहां पर नहीं है, परंतु उनकी मौत नहीं हुई है। वो किसी रहस्यमय यात्रा पर हैं।
वो जल्दी ही अपने शरीर में वापस लौटेंगे। हमें यहां बैठकर उनकी वापसी का इंतजार करना चाहिए।"
शैफाली के शब्द सुन सभी शैफाली को देखने लगे। किसी की समझ में तो कुछ नहीं आ रहा था, पर शैफाली की बातों को झुठलाना किसी के बस की बात नहीं थी। इसिलये सभी चुपचाप से उस सिंहासन के चारो ओर बैठकर सिंहासन को देखने लगे।
चैपटर-7: कैलाश रहस्य (आज से 5020 वर्ष पहले, वेदालय, कैलाश पर्वत, हिमालय)
सिंहासन पर बैठते ही सुयश को अपना शरीर हवा में उड़ता हुआ महसूस हुआ। ऐसा लगा जैसे उसके शरीर से आत्मा ही निकल गयी हो।
उसका सूक्ष्म शरीर हवा में बहुत तीव्र गतिमान था।
गाढ़े अंधकार के बाद सुयश को भिन्न - भिन्न प्रकार की रोशनियो से गुजरना पड़ा।
कुछ रोशनी इतनी तेज थी कि सुयश की आँखें ही बंद हो गयी। जब सुयश की आँखें खुली तो उसने अपना शरीर बर्फ के पहाड़ो पर उड़ते हुए पाया।
“क्या मैं मर चुका हूं? या.....या फ़िर किसी रहस्यमयी शक्ति के प्रभाव में हूं?" सुयश अपने मन ही मन में बड़बड़ाया- “यह तो बहुत ही विचित्र और सुखद अनुभूति है।"
थोड़ी देर उड़ने के बाद सुयश को नीचे जमीन पर पानी की 2 झीलें दिखायी दी। एक का आकार सूर्य के समान गोल था, तो दूसरी का आकार चन्द्रमा के समान था।
तभी सुयश को सामने एक विशालकाय बर्फ का पर्वत दिखाई दिया, जो चौमुखी आकार का लग रहा था। उस पर्वत से 4 नदियां निकलती हुई दिखाई दे रही थी।
उस पर्वत को पहचान कर सुयश ने श्रद्धा से अपने शीश को झुका लिया। वह कैलाश पर्वत था। देवों के देव, का निवास स्थान- कैलाश।
जारी रहेगा_________![]()

बन्धु आपने इस फोरम ही नहीं साहित्यिक मंचों के पटल पर 'बाबू देवकीनंदन खत्री' को

बहुत पहले xossip पर इस प्रकार की कहानी 'मायावी गणित' नाम की भी पढ़ी थी
लेकिन ये कथा तिलस्म आधारित खत्री जी की चन्द्रकान्ता, चन्द्रकान्ता सन्तति व भूतनाथ, वेदप्रकाश शर्मा जी की देवकान्ता सन्तति.... और मायावी गणित से बहुत आगे ना सिर्फ तिलिस्म बल्कि वैश्विक धरातल पर विभिन्न संस्कृतियों से जुड़े मनुष्यों के ना सिर्फ वर्तमान बल्कि प्राचीन भावनात्मक सम्बन्धों को भी बहुत आकर्षक रूप से परिभाषित करने का प्रयास कर रही है
और अब तक इस प्रयास में आप सफल भी रहे हैं....कहीं भी ना तो पाठक बोर हुए ना भटके.... हर अपडेट में आकर्षण बना रहा और अगले अपडेट के लिए व्याकुलता भी