• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
33,365
70,467
304
Bhut hi badhiya update
To vyom us machine ki madad se samra rajy ke andar teleport ho gaya hai aur usne atlantis ke ped ko bhi chu liya jisse uske andar bhi kuch shaktiya chali gayi jiska use bhi pata nahi chala
Vahi yugaka aur kalat bhi atlantis ke ped ke pass ja rahe hai
Dekhte hai ab aage kya hota hai
Bilkul theek kah rahe hain aap, Vyom abhi kaafi kuch jaanega bhai, sur Yugaka apne baap ke sath Atlantis tree 🌳 ke pas jayega, uske baad sagarika ko bhi to kholna hai:bigboss:
Thank you so much for your wonderful review and support bhai :hug:
 

ak143

Member
190
333
78
#96.

चैपटर-12 : अटलांटिस वृक्ष

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 15:45, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

व्योम लगातार किसी अंधे कुंए में गिरता हुआ सा प्रतीत हो रहा था।

कुछ देर तक ऐसे गिरते रहने के बाद व्योम को अपना शरीर किसी धरातल से छूता हुआ प्रतीत हुआ।

व्योम ने अपनी आँखो को खोला। वह इस समय एक घने जंगल में घास पर पड़ा हुआ था।

“ये मैं कहां आ गया?"
व्योम याद करते हुए बड़बड़ाया- “मैं तो द्वीप के नीचे के स्थान पर किसी विज्ञान की दुनियां में था। वहां पर मैने एक मशीन का बटन दबाया था, तभी मुझे अपना शरीर खंडों मे विभक्त होता हुआ महसूस हुआ। जिसके फल स्वरूप मैं यहां पहुंच गया। क्या....क्या वो मशीन ट्रांसमिट मशीन थी? पर उस मशीन ने मुझे कहां भेज दिया?"

व्योम ने एक नजर अपने आसपास के स्थान पर मारी। वह एक बहुत ही खूबसूरत परंतु छोटी सी घाटी में था।

चारो ओर हरियाली थी। खूबसूरत पहाड़ो के बीच सुंदर फल और फूलों वाली घाटी रंग- बिरंगे फूलों से बिलकुल स्वर्ग के समान महसूस हो रही थी।

वहां लगे सभी पेड़-पौधे व्योम के लिये नये थे। इससे पहले उसने ऐसे फल और फूलों के पौधे अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे थे।

व्योम अभी जंगल की खूबसूरती का नजारा ले ही रहा था कि तभी उसे कुछ ‘धम-धम’ की आवाज सुनाई दी।

आवाज सुनते ही व्योम समझ गया कि कोई विशालकाय जीव उधर आ रहा है।

वह तुरंत एक पास के पेड़ पर चढ़ कर बैठ गया।

व्योम की नजर अब आवाज की दिशा की ओर थी, जो कि अब पास आती जा रही थी।

कुछ ही देर में व्योम को एक तरफ से एक मदममस्त हाथी आता हुआ दिखाई दिया।

उस हाथी की चाल से पता चल रहा था कि वह कुछ दिन पहले ही व्यस्क हुआ है। क्यों कि वह पूरी मस्ती में उछलता-कूदता दिखाई दे रहा था।

हाथी के दाँत लंबे और चमकीले थे। हाथी अपनी मस्तानी चाल से कुछ छोटे-छोटे पेडों को उखाड़ता चल रहा था।

हाथी को देख व्योम ने अपने आप को एक मोटी टहनी के पीछे छिपा लिया, जिससे हाथी की नजर उस पर ना पड़े।

झूमता हुआ हाथी अचानक एक पेड़ को उखाड़ते-उखाड़ते रुक गया। अब हाथी ध्यान से उस पेड़ पर लगे फलों को देखने लगा।

हाथी को ऐसा करते देख व्योम को थोड़ा आश्चर्य हुआ। वह भी ध्यान से उस पेड़ के फलों को देखने लगा।

उस पेड़ पर छोटे-छोटे आँवले के जैसे लाल और हरे फल लगे थे। कुछ देर तक देखते रहने के बाद हाथी ने एक लाल फल को खा लिया।

फल को खाते ही हाथी का आकार आश्चर्यजनक तरीके से एक चूहे के बराबर हो गया।

व्योम आँखे फाड़े उस दृश्य को देख रहा था।

चूहे के आकार में आकर हाथी काफ़ी खुश हो गया। अब वह चिंघाड़ते हुए वहां से चला गया।

“अरे बाप रे....यह तो बहुत ही विचित्र जगह है।" व्योम ने अपने मन मे सोचा- “ऐसे फलों के बारे में तो मैने कभी सुना भी नहीं....यह फल तो किसी भी जीव के जीनोम को बदलने की क्षमता रखता है।"

यह सोच व्योम अब पेड़ से उतरकर उस विचित्र वृक्ष के पास आ गया और उसके फलों को ध्यान से देखने लगा। व्योम को देखने में वो फल बिल्कुल साधारण से ही लगे।

“इन लाल फलों को खाकर वह हाथी छोटा हुआ था। पर यह हरे फलों से क्या होता है? कहीं ये हरे फल वापस जीव को सामान्य आकार में तो नहीं लाते। जरूर ऐसा ही होगा। पर इस हरे फल को चेक कैसे करू? मैं स्वयं पर तो इसका प्रयोग कर नहीं सकता। चलो कुछ फल जेब में रख लेता हूं, बाद में इसका प्रयोग करके देखूंगा कहीं पर?"

यह सोचकर व्योम ने कुछ लाल और कुछ हरे फल, पेड़ से तोड़कर अपनी जेब में डाल लिये।

“अब मुझे सबसे पहले पता करना चाहिए कि मैं हूं कहां पर?"
यह सोचकर व्योम ने अपने बैग से दूरबीन को निकाल कर अपनी आँखों पर चढ़ा लिया और घाटी पर एक नजर डाली, पर उसे दूर-दूर तक कुछ नजर नहीं आया।

“यहां से तो मनुष्य के जीवन के कोई अवशेष नजर नहीं आ रहे, फ़िर मुझे बतायेगा कौन? कि मैं इस समय कहां पर हूं? मुझे पहाड़ पर चढ़कर देखना चाहिए। शायद वहां से कुछ नजर आ जाये।"

यह सोचकर व्योम एक पास वाले पहाड़ पर चढ़ना शुरू हो गया। 1 घंटे के अथक परिश्रम के बाद व्योम उस पहाड़ की चोटी पर पाहुंच गया।

पहाड़ पर उसे एक विशालकाय वृक्ष दिखाई दिया। उस वृक्ष की ऊंचाई कम से कम 100 फिट से कम नहीं थी।

उस वृक्ष पर हजारो शाखाएं थी और हर शाखा पर बहुत ज़्यादा पत्तियाँ लगी थी। वह पेड़ इतना घना था कि पेड़ के नीचे सूर्य की रोशनी भी नहीं आ रही थी।

उस पेड़ का तना 12 फिट चौड़ा था। दूर से देखने पर वह पेड़ किसी विशालकाय दैत्य की भाँति प्रतीत हो रहा था।

उस पेड़ पर एक भी फल और फूल नहीं लगे थे।

व्योम ने उस पेड़ को हाथ लगाकर देखा। पेड़ को छूते ही अचानक उसे अपने मस्तिष्क में बहुत शांति महसूस हुई।

व्योम को एक अतिन्द्रिय शक्ति का अहसास हुआ, इसिलसे जाने क्यों श्रद्धावश व्योम ने पेड़ को हाथ जोड़कर प्रणाम कर लिया।

धीरे-धीरे शाम होने वाली थी और व्योम को भूख और प्यास भी लग रही थी, इसिलये व्योम ने एक बार फिर दूरबीन को आँखों से लगाकर घाटी की दूसरी ओर देखना शुरू कर दिया।

घाटी के दूसरी ओर बहुत दूरी पर उसे कोई चमकती हुई चीज दिखाई दी। व्योम ने दूरबीन को समायोजित करके देखा।

“अरे यह तो कोई धातु की विशाल मूर्ति लग रही है। मुझे उस दिशा में ही चलना चाहिए। शायद वहां पर कोई इंसान मिल जाये।"

यह सोच व्योम धीरे-धीरे पहाड़ से उतरने लगा। व्योम के पलटते ही उस वृक्ष से रोशनी की एक किरण निकली और व्योम के शरीर में समा गयी, पर व्योम इस दृश्य को देख नहीं पाया।

सागरिका

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 16:20, कलाट महल, अराका द्वीप)

इस समय युगाका कलाट महल में कलाट के सामने बैठा था।

“क्या हुआ बाबा? आपने आपातकाल बटन क्यों दबाया? ऐसी क्या तत्काल जरूरत पड़ गयी? सब ठीक तो है ना?" युगाका ने एक नजर कलाट पर डालते हुए पूछा।

“मुझे भी कुछ ज्यादा पता नहीं है बेटा। पर मुझे लग रहा है कि कोई बाहरी इंसान सामरा राज्य के अंदर दाख़िल हुआ है क्यों कि कुछ देर पहले अटलांटिस वृक्ष को, किसी के छूने के संकेत मुझे प्राप्त हुए हैं।" कलाट ने गंभीर होकर कहा।

“ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी अदृश्य दीवार को कोई बाहरी शक्ति भेद नहीं सकती। फ़िर भला कोई अंदर कैसे आ सकता है? और बाहरी किसी इंसान को अटलांटिस वृक्ष के बारे में कैसे पता चलेगा?" युगाका के शब्दों में आश्चर्य के भाव नजर आने लगे।

“युगाका तुम तो जानते हो कि तुम्हारी वृक्ष शक्ति का आधार वही अटलांटिस वृक्ष है। हम गिने-चुने सामरा वासियो के अलावा उस वृक्ष की जानकारी तो सीनोर वासियो को भी नहीं है। फ़िर कोई भला उसके बारे में कैसे जान सकता है। बस यही तो मेरी चिंता का कारण है। लगता है हमें अटलांटिस वृक्ष तक चलना पड़ेगा।" कलाट ये कहकर खड़ा होने लगा।

“बाबा, मुझे भी आपसे कुछ बातें बतानी है?" युगाका ने कलाट को खड़ा होते देख कहा।

युगाका की बात सुन कलाट वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया और युगाका की ओर देखने लगा।

“बाबा कुछ दिन पहले एक पानी का जहाज कुछ इंसानों को लेकर इस क्षेत्र में आया था, जिसे लुफासा ने अपनी शक्तियों से तोड़कर अधिकतर इंसानों को मार डाला, परंतु 12 इंसान किसी प्रकार बचकर मायावन में प्रविष्ट हो गये हैं। वह एक के बाद एक बाधाओं को पार करते जा रहे हैं। उनमें से कुछ मानव के पास तो असीमित शक्तियां भी हैं।" युगाका ने अपने भावनाओं को प्रदर्शित करते हुए कहा।

“इंसानों के पास शक्तियां? कैसी शक्तियां हैं उनके पास?" कलाट ने आश्चर्य से भरते हुए युगाका से पूछा।

“एक इंसान की पीठ पर ‘पंचशूल’ पर छपी सूर्य की आकृति बनी है। उसने देवी शलाका की मूर्ति को भी छुआ, फिर भी वो जिंदा बच गया।" युगाका ने कहा।

“पंचशूल वाली सूर्य की आकृति? और....और....उसे देवी शलाका की मूर्ति को छूकर भी कुछ नहीं हुआ? ..... असंभव!....ये नहीं हो सकता।" कलाट भी यह बात सुनकर घबरा गया।

“ऐसा मेरी आँखों के सामने ही हुआ है बाबा। मैं आपसे झूठ नहीं बोल रहा।" युगाका ने कलाट को यकीन दिलाते हुए कहा- “और दूसरी लड़की तो अभी मात्र xx-xx वर्ष की ही लग रही है, पर वह मायावन के बारे में सबकुछ जानती है, उसने....उसने तो आज मेरी वृक्ष शक्ति भी मुझसे छीन ली थी।"

“क्याऽऽऽऽऽऽ?" युगाका के शब्द सुन कलाट के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा ।

“तुमने मुझे इस बारे में पहले क्यों नहीं बताया? मुझे लगता है वह घड़ी आने वाली है जिसका अराका वासियों को हज़ारों सालो से इंतजार है। महाशक्ति ने अराका पर अपने कदम को रख दिया है। अब ‘सागरिका’ को फ़िर से खोलना पड़ेगा।"

“कौन महाशक्ति बाबा? और...और ये सागरिका क्या है?" युगाका के लिये कलाट का हर शब्द एक रहस्य के समान था।

“बताता हूं, सब बताता हूं...पर पहले सूर्य के अस्त होने के पहले हमें अटलांटिस वृक्ष तक पहुंचना होगा।" कलाट ने कहा।

“ठीक है बाबा तो पहले अटलांटिस वृक्ष तक पहुंचने की ही व्यवस्था करते हैं। आप मेरे साथ महल की छत पर चिलये।" इतना कहकर युगाका कलाट महल के छत की ओर भागा।

कलाट युगाका के पीछे था।

युगाका ने महल की छत पर पहुंचकर एक अजीब सी सीटी बजाई, कुछ देर बाद उसे हवा में उड़कर वही लकड़ी का ड्रोन आता दिखाई दिया।

ड्रोन महल की छत पर उतर गया। कलाट और युगाका दोनों ही ड्रोन में बैठ गये।

युगाका के इशारे पर अब वह ड्रोन अटलांटिस वृक्ष की ओर उड़ चला।

“क्या अब आप बतायेंगे बाबा कि महाशक्ति कौन है?" युगाका ने कलाट से पूछा।


जारी रहेगा_______✍️
Behtareen update 🥰🥰
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,842
32,647
259
romanchak update. Vyom ka pahuchna aur jungle wali ghatna ek saath ho rahi thi ,jaise vyom ne atlantis ped ko chhuwa waise hi kalata ne yugaka ko bula liya ..
Vyom ke ander ped ki shakti chali gayi jiska usko pata nahi chala ..
ab ye sagrika ka kya raaz hai aage pata chale .
kalata bhi aascharya me pad gaya jab usko pata chala ki 12 logo me se kuch ek ke paas shaktiya bhi hai .
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
33,365
70,467
304
romanchak update. Vyom ka pahuchna aur jungle wali ghatna ek saath ho rahi thi ,jaise vyom ne atlantis ped ko chhuwa waise hi kalata ne yugaka ko bula liya ..
Vyom ke ander ped ki shakti chali gayi jiska usko pata nahi chala ..
ab ye sagrika ka kya raaz hai aage pata chale .
kalata bhi aascharya me pad gaya jab usko pata chala ki 12 logo me se kuch ek ke paas shaktiya bhi hai .
Bilkul theek kaha bhai, kalaat ko to yahi lagta hai ki kisi bhi samanya manav me shaktiya ho hi nahi sakti:declare:Per use kya maloom......
Ped se vyom ko kya mila? Ye samay per pata lagega:approve:
Sagarika ka raaj bhi jald hi saamne aajayega:declare: Thank you very much for your wonderful review and support bhai :thanx:
 

kas1709

Well-Known Member
11,512
12,293
213
#96.

चैपटर-12 : अटलांटिस वृक्ष

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 15:45, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

व्योम लगातार किसी अंधे कुंए में गिरता हुआ सा प्रतीत हो रहा था।

कुछ देर तक ऐसे गिरते रहने के बाद व्योम को अपना शरीर किसी धरातल से छूता हुआ प्रतीत हुआ।

व्योम ने अपनी आँखो को खोला। वह इस समय एक घने जंगल में घास पर पड़ा हुआ था।

“ये मैं कहां आ गया?"
व्योम याद करते हुए बड़बड़ाया- “मैं तो द्वीप के नीचे के स्थान पर किसी विज्ञान की दुनियां में था। वहां पर मैने एक मशीन का बटन दबाया था, तभी मुझे अपना शरीर खंडों मे विभक्त होता हुआ महसूस हुआ। जिसके फल स्वरूप मैं यहां पहुंच गया। क्या....क्या वो मशीन ट्रांसमिट मशीन थी? पर उस मशीन ने मुझे कहां भेज दिया?"

व्योम ने एक नजर अपने आसपास के स्थान पर मारी। वह एक बहुत ही खूबसूरत परंतु छोटी सी घाटी में था।

चारो ओर हरियाली थी। खूबसूरत पहाड़ो के बीच सुंदर फल और फूलों वाली घाटी रंग- बिरंगे फूलों से बिलकुल स्वर्ग के समान महसूस हो रही थी।

वहां लगे सभी पेड़-पौधे व्योम के लिये नये थे। इससे पहले उसने ऐसे फल और फूलों के पौधे अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे थे।

व्योम अभी जंगल की खूबसूरती का नजारा ले ही रहा था कि तभी उसे कुछ ‘धम-धम’ की आवाज सुनाई दी।

आवाज सुनते ही व्योम समझ गया कि कोई विशालकाय जीव उधर आ रहा है।

वह तुरंत एक पास के पेड़ पर चढ़ कर बैठ गया।

व्योम की नजर अब आवाज की दिशा की ओर थी, जो कि अब पास आती जा रही थी।

कुछ ही देर में व्योम को एक तरफ से एक मदममस्त हाथी आता हुआ दिखाई दिया।

उस हाथी की चाल से पता चल रहा था कि वह कुछ दिन पहले ही व्यस्क हुआ है। क्यों कि वह पूरी मस्ती में उछलता-कूदता दिखाई दे रहा था।

हाथी के दाँत लंबे और चमकीले थे। हाथी अपनी मस्तानी चाल से कुछ छोटे-छोटे पेडों को उखाड़ता चल रहा था।

हाथी को देख व्योम ने अपने आप को एक मोटी टहनी के पीछे छिपा लिया, जिससे हाथी की नजर उस पर ना पड़े।

झूमता हुआ हाथी अचानक एक पेड़ को उखाड़ते-उखाड़ते रुक गया। अब हाथी ध्यान से उस पेड़ पर लगे फलों को देखने लगा।

हाथी को ऐसा करते देख व्योम को थोड़ा आश्चर्य हुआ। वह भी ध्यान से उस पेड़ के फलों को देखने लगा।

उस पेड़ पर छोटे-छोटे आँवले के जैसे लाल और हरे फल लगे थे। कुछ देर तक देखते रहने के बाद हाथी ने एक लाल फल को खा लिया।

फल को खाते ही हाथी का आकार आश्चर्यजनक तरीके से एक चूहे के बराबर हो गया।

व्योम आँखे फाड़े उस दृश्य को देख रहा था।

चूहे के आकार में आकर हाथी काफ़ी खुश हो गया। अब वह चिंघाड़ते हुए वहां से चला गया।

“अरे बाप रे....यह तो बहुत ही विचित्र जगह है।" व्योम ने अपने मन मे सोचा- “ऐसे फलों के बारे में तो मैने कभी सुना भी नहीं....यह फल तो किसी भी जीव के जीनोम को बदलने की क्षमता रखता है।"

यह सोच व्योम अब पेड़ से उतरकर उस विचित्र वृक्ष के पास आ गया और उसके फलों को ध्यान से देखने लगा। व्योम को देखने में वो फल बिल्कुल साधारण से ही लगे।

“इन लाल फलों को खाकर वह हाथी छोटा हुआ था। पर यह हरे फलों से क्या होता है? कहीं ये हरे फल वापस जीव को सामान्य आकार में तो नहीं लाते। जरूर ऐसा ही होगा। पर इस हरे फल को चेक कैसे करू? मैं स्वयं पर तो इसका प्रयोग कर नहीं सकता। चलो कुछ फल जेब में रख लेता हूं, बाद में इसका प्रयोग करके देखूंगा कहीं पर?"

यह सोचकर व्योम ने कुछ लाल और कुछ हरे फल, पेड़ से तोड़कर अपनी जेब में डाल लिये।

“अब मुझे सबसे पहले पता करना चाहिए कि मैं हूं कहां पर?"
यह सोचकर व्योम ने अपने बैग से दूरबीन को निकाल कर अपनी आँखों पर चढ़ा लिया और घाटी पर एक नजर डाली, पर उसे दूर-दूर तक कुछ नजर नहीं आया।

“यहां से तो मनुष्य के जीवन के कोई अवशेष नजर नहीं आ रहे, फ़िर मुझे बतायेगा कौन? कि मैं इस समय कहां पर हूं? मुझे पहाड़ पर चढ़कर देखना चाहिए। शायद वहां से कुछ नजर आ जाये।"

यह सोचकर व्योम एक पास वाले पहाड़ पर चढ़ना शुरू हो गया। 1 घंटे के अथक परिश्रम के बाद व्योम उस पहाड़ की चोटी पर पाहुंच गया।

पहाड़ पर उसे एक विशालकाय वृक्ष दिखाई दिया। उस वृक्ष की ऊंचाई कम से कम 100 फिट से कम नहीं थी।

उस वृक्ष पर हजारो शाखाएं थी और हर शाखा पर बहुत ज़्यादा पत्तियाँ लगी थी। वह पेड़ इतना घना था कि पेड़ के नीचे सूर्य की रोशनी भी नहीं आ रही थी।

उस पेड़ का तना 12 फिट चौड़ा था। दूर से देखने पर वह पेड़ किसी विशालकाय दैत्य की भाँति प्रतीत हो रहा था।

उस पेड़ पर एक भी फल और फूल नहीं लगे थे।

व्योम ने उस पेड़ को हाथ लगाकर देखा। पेड़ को छूते ही अचानक उसे अपने मस्तिष्क में बहुत शांति महसूस हुई।

व्योम को एक अतिन्द्रिय शक्ति का अहसास हुआ, इसिलसे जाने क्यों श्रद्धावश व्योम ने पेड़ को हाथ जोड़कर प्रणाम कर लिया।

धीरे-धीरे शाम होने वाली थी और व्योम को भूख और प्यास भी लग रही थी, इसिलये व्योम ने एक बार फिर दूरबीन को आँखों से लगाकर घाटी की दूसरी ओर देखना शुरू कर दिया।

घाटी के दूसरी ओर बहुत दूरी पर उसे कोई चमकती हुई चीज दिखाई दी। व्योम ने दूरबीन को समायोजित करके देखा।

“अरे यह तो कोई धातु की विशाल मूर्ति लग रही है। मुझे उस दिशा में ही चलना चाहिए। शायद वहां पर कोई इंसान मिल जाये।"

यह सोच व्योम धीरे-धीरे पहाड़ से उतरने लगा। व्योम के पलटते ही उस वृक्ष से रोशनी की एक किरण निकली और व्योम के शरीर में समा गयी, पर व्योम इस दृश्य को देख नहीं पाया।

सागरिका

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 16:20, कलाट महल, अराका द्वीप)

इस समय युगाका कलाट महल में कलाट के सामने बैठा था।

“क्या हुआ बाबा? आपने आपातकाल बटन क्यों दबाया? ऐसी क्या तत्काल जरूरत पड़ गयी? सब ठीक तो है ना?" युगाका ने एक नजर कलाट पर डालते हुए पूछा।

“मुझे भी कुछ ज्यादा पता नहीं है बेटा। पर मुझे लग रहा है कि कोई बाहरी इंसान सामरा राज्य के अंदर दाख़िल हुआ है क्यों कि कुछ देर पहले अटलांटिस वृक्ष को, किसी के छूने के संकेत मुझे प्राप्त हुए हैं।" कलाट ने गंभीर होकर कहा।

“ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी अदृश्य दीवार को कोई बाहरी शक्ति भेद नहीं सकती। फ़िर भला कोई अंदर कैसे आ सकता है? और बाहरी किसी इंसान को अटलांटिस वृक्ष के बारे में कैसे पता चलेगा?" युगाका के शब्दों में आश्चर्य के भाव नजर आने लगे।

“युगाका तुम तो जानते हो कि तुम्हारी वृक्ष शक्ति का आधार वही अटलांटिस वृक्ष है। हम गिने-चुने सामरा वासियो के अलावा उस वृक्ष की जानकारी तो सीनोर वासियो को भी नहीं है। फ़िर कोई भला उसके बारे में कैसे जान सकता है। बस यही तो मेरी चिंता का कारण है। लगता है हमें अटलांटिस वृक्ष तक चलना पड़ेगा।" कलाट ये कहकर खड़ा होने लगा।

“बाबा, मुझे भी आपसे कुछ बातें बतानी है?" युगाका ने कलाट को खड़ा होते देख कहा।

युगाका की बात सुन कलाट वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया और युगाका की ओर देखने लगा।

“बाबा कुछ दिन पहले एक पानी का जहाज कुछ इंसानों को लेकर इस क्षेत्र में आया था, जिसे लुफासा ने अपनी शक्तियों से तोड़कर अधिकतर इंसानों को मार डाला, परंतु 12 इंसान किसी प्रकार बचकर मायावन में प्रविष्ट हो गये हैं। वह एक के बाद एक बाधाओं को पार करते जा रहे हैं। उनमें से कुछ मानव के पास तो असीमित शक्तियां भी हैं।" युगाका ने अपने भावनाओं को प्रदर्शित करते हुए कहा।

“इंसानों के पास शक्तियां? कैसी शक्तियां हैं उनके पास?" कलाट ने आश्चर्य से भरते हुए युगाका से पूछा।

“एक इंसान की पीठ पर ‘पंचशूल’ पर छपी सूर्य की आकृति बनी है। उसने देवी शलाका की मूर्ति को भी छुआ, फिर भी वो जिंदा बच गया।" युगाका ने कहा।

“पंचशूल वाली सूर्य की आकृति? और....और....उसे देवी शलाका की मूर्ति को छूकर भी कुछ नहीं हुआ? ..... असंभव!....ये नहीं हो सकता।" कलाट भी यह बात सुनकर घबरा गया।

“ऐसा मेरी आँखों के सामने ही हुआ है बाबा। मैं आपसे झूठ नहीं बोल रहा।" युगाका ने कलाट को यकीन दिलाते हुए कहा- “और दूसरी लड़की तो अभी मात्र xx-xx वर्ष की ही लग रही है, पर वह मायावन के बारे में सबकुछ जानती है, उसने....उसने तो आज मेरी वृक्ष शक्ति भी मुझसे छीन ली थी।"

“क्याऽऽऽऽऽऽ?" युगाका के शब्द सुन कलाट के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा ।

“तुमने मुझे इस बारे में पहले क्यों नहीं बताया? मुझे लगता है वह घड़ी आने वाली है जिसका अराका वासियों को हज़ारों सालो से इंतजार है। महाशक्ति ने अराका पर अपने कदम को रख दिया है। अब ‘सागरिका’ को फ़िर से खोलना पड़ेगा।"

“कौन महाशक्ति बाबा? और...और ये सागरिका क्या है?" युगाका के लिये कलाट का हर शब्द एक रहस्य के समान था।

“बताता हूं, सब बताता हूं...पर पहले सूर्य के अस्त होने के पहले हमें अटलांटिस वृक्ष तक पहुंचना होगा।" कलाट ने कहा।

“ठीक है बाबा तो पहले अटलांटिस वृक्ष तक पहुंचने की ही व्यवस्था करते हैं। आप मेरे साथ महल की छत पर चिलये।" इतना कहकर युगाका कलाट महल के छत की ओर भागा।

कलाट युगाका के पीछे था।

युगाका ने महल की छत पर पहुंचकर एक अजीब सी सीटी बजाई, कुछ देर बाद उसे हवा में उड़कर वही लकड़ी का ड्रोन आता दिखाई दिया।

ड्रोन महल की छत पर उतर गया। कलाट और युगाका दोनों ही ड्रोन में बैठ गये।

युगाका के इशारे पर अब वह ड्रोन अटलांटिस वृक्ष की ओर उड़ चला।

“क्या अब आप बतायेंगे बाबा कि महाशक्ति कौन है?" युगाका ने कलाट से पूछा।


जारी रहेगा_______✍️
Nice update....
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
4,063
15,655
159
#95.

हिमालयन यति :

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 15:30, ट्रांस अंटार्कटिक-पर्वत-अंटार्कटिका)

जेम्स और विल्मर को शलाका के दिये कमरे में रहते हुए आज एक दिन बीत गया था, पर ना तो शलाका उनसे मिलने आयी थी और ना ही उन दोनों को अपने पास बुलाया था।

जेम्स और विल्मर एक कमरे में बंद ऊब रहे थे। पर उन्हें यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर देवी शलाका से संपर्क कैसे करे?

उस कमरे में ना तो कोई दरवाजा था और ना ही कोई खिड़की? आख़िर वह बाहर जायें तो जायें कैसे?

“यार जेम्स!" हम लोग यहां क्या सोच कर आये थे कि खजाना मिलेगा? पर यहां कुछ मिलना तो छोड़ो, हम यहां खुद ही कैद हो गये।" विल्मर ने निराश होते हुए कहा।

“नकारात्मक मत सोचो दोस्त।" जेम्स ने विल्मर का हौसला बढ़ाते हुए कहा- “वह तो देवी हैं और पता नहीं कितने समय से यहां सो रही थी। अब इतने बाद अगर वो उठी हैं तो बहुत से काम बाकी होंगे। देवी पहले उसको पूरा करेंगी, फ़िर समय निकालकर हम लोगो से मिलेंगी। वैसे वह हमसे काफ़ी खुश हैं। हम तो जो मांगेंगे, उसे वह पूरा करेंगी । तू चिंता मत कर, हमारा खजाना मिलना तो पक्का है।"

“पता नहीं क्यों? पर मुझे तो थोड़ी टेंशन हो रही है।" विल्मर ने कहा- “अगर वह सच में हमसे इतना खुश थी, तो उसी समय क्यों नहीं खजाना देकर हमें वापस भेज दिया? और मान लिया कि उनके पास बहुत काम होंगे जिसकी वजह से वह हमसे नहीं मिल पा रही हैं, तो कम से कम ऐसे कमरे में रखती, जहां कुछ खिड़की व दरवाजे तो होते। उन्होने तो हमें ऐसे कमरे में बंद कर दिया है, जैसे हम उनके मेहमान ना होकर कोई कैदी हैं?"

विल्मर की बात में दम था, इसिलये जेम्स ने इस बार कोई विरोध नहीं किया।

जेम्स भी अब बैठे-बैठे थक गया था। इसिलये वह उठकर कमरे में ही टहलने लगा।

टहलते-टहलते जेम्स की निगाह एक दीवार पर चिपके दरवाजे के स्टीकर पर गयी।

स्टीकर देखकर उसे थोड़ा सा अजीब लगा। इसिलये वह दीवार के पास जाकर स्टीकर को देखने लगा।

वह एक साधारण स्टीकर ही था। ध्यान से देखने पर जेम्स को उस स्टीकर के दरवाजे पर एक उभरा हुआ लाल रंग का बटन दिखाई दिया।

जेम्स ने धीरे से उस बटन को दबा दिया।

बटन दबाने पर उसका रंग बदल कर लाल से हरा हो गया, पर कहीं से कोई आवाज नहीं आयी।

तभी जेम्स को स्टीकर देखते हुए एक अजीब सा अहसास हुआ।


एक बार फ़िर जेम्स ने स्टीकर को छूना चाहा, पर स्टीकर पर हाथ लगाते ही जेम्स को अपना हाथ दरवाजे के पार होता दिखाई दिया।

जेम्स ने एक बार विल्मर की ओर देखा। विल्मर कुर्सी पर आँख बंद किये हुए बैठा था।

जेम्स ने वापस स्टीकर की ओर देखा और धीरे से अपना एक हाथ स्टीकर के अंदर कर दिया।

दूसरी ओर खाली स्थान देख जेम्स पूरा का पूरा उस स्टीकर में घुस गया।

जेम्स के सामने एक गैलरी सी दिखाई दी। जिसमें हल्का उजाला था। जेम्स उस गैलरी में आगे बढ़ गया।

थोड़ा चलने के बाद जेम्स को हर तरफ दरवाजे ही दरवाजे दिखने लगे।

जेम्स ने घूमकर चारो ओर के दरवाजो को देखा, पर पलटने पर वह खुद भूल गया कि वह किस दरवाजे से यहां आया था।

अब जेम्स घबरा गया। काफ़ी देर तक उसने अंदाजा लगाने की सोची, पर उसे कुछ समझ नहीं आया।

अंततः वह एक दरवाजे से बाहर निकल गया। वह रास्ता एक बर्फ़ की गुफा में निकला था।

एक बार तो जेम्स खुश हो गया कि उसने बाहर निकलने का रास्ता खोज लिया, पर सामने का नजारा देख वह चकरा गया क्यों कि उसे अपने अगल-बगल चारो तरफ बर्फ़ के पहाड़ दिखाई दे रहे थे।

“यह मैं कहां आ पहुंचा? यह अंटार्कटिका नहीं है। अंटार्कटिका का एक-एक चप्पा मैं पहचानता हूं, वहां इतने पहाड़ नहीं है और...और वहां की बर्फ़ का रंग भी इतना सफेद नहीं है।....पर मैं 10 कदम के अंदर अंटार्कटिका से इतना दूर कैसे आ सकता हूं?” जेम्स मन ही मन बुदबुदाया।

जेम्स गुफा से निकल कर बाहर आ गया। तभी उसे अपने सामने एक 30 इंच लंबा पैर का निशान बर्फ़ पर बना दिखाई दिया।

“हे भगवान ... ये किस दैत्य के पैरों के निशान हैं बर्फ़ पर?" जेम्स के चेहरे पर आश्चर्य ही आश्चर्य दिख रहा था-“ये मैं कहां आ गया? मुझे तुरंत वापस जाना होगा।"

इतना सोचकर जेम्स जैसे ही वापस जाने के लिये घूमा, उसे अपने पीछे की गुफा गायब दिखाई दी।

“अब ये गुफा कहां गायब हो गयी?" गुफा को गायब देख जेम्स डर गया- “अब मैं वापस कैसे जाऊंगा?"

जेम्स ने अपने आप को एक मैदान में खड़े पाया। उसे समझ में नहीं आया कि अब वो कहां जाये? तभी आसमान से बर्फ़ गिरना शुरू हो गयी।

पहले ही जेम्स को ठंड लगने लगी थी और अब उस अनचाही बर्फ़ ने जेम्स का शरीर गलाना भी शुरू कर दिया।

अब जेम्स के पास और कोई चारा नहीं था, उन विशालकाय कदमों का पीछा करने के अलावा। कुछ सोच जेम्स उन कदमों के निशान के पीछे चल पड़ा।

थोड़ा आगे जाने पर उसे वो कदमों के निशान एक गुफा की ओर जाते हुए दिखाई दिये।

आसपास कुछ और ना होने की वजह से जेम्स भी उस गुफा की ओर चल दिया।

जेम्स ने बाहर से ही धीरे से झांक कर गुफा में देखा।

जेम्स को गुफा में कोई दिखाई नहीं दिया। गुफा के छत की ओर एक गोल सा सुराख था, जिसमें से होकर बर्फ़ ने गुफा में एक छोटा सा पहाड़ बना दिया था।

वह गुफा आगे जाकर सुरंग में बदलती दिख रही थी। आसमान से गिरती बर्फ़ से बचने के लिये जेम्स उस गुफा के एक किनारे खड़ा हो गया।

जेम्स को वहां खड़े हुए अभी ज़्यादा देर नहीं हुआ था कि अचानक जेम्स को गुफा के अंदर का बर्फ़ का टीला हिलता हुआ सा दिखाई दिया।

यह देख जेम्स डरकर वहीं दीवार से चिपक गया।

अब वह बर्फ़ तेजी से हिली और उसमें से एक 12 फुट का विशाल यति निकल आया।

यति को देख जेम्स बहुत डर गया और वह गुफा से चीखकर बाहर की ओर भागा।

यति की नजर भी जेम्स की ओर गयी। वह भी जेम्स के पीछे भागा।
मुस्किल से 5 सेकंड में ही यति ने जेम्स को अपने हाथों में पकड़ लिया।

यति ने एक बार ध्यान से जेम्स की ओर देखा। जेम्स ने डर के मारे अपनी आँखे बंद कर ली।

उसे लगा कि यति अब उसे खाने जा रहा है। जेम्स के मुंह से एक तेज चीख भी निकल गयी।

तभी जेम्स को अपना शरीर हवा में झूलता हुआ महसूस हुआ। जेम्स ने एक झटके से अपने आँखे खोली। उसने देखा कि यति हवा में ऊंचे-ऊंचे कूदता हुआ किसी दिशा में जा रहा है और वह यति के हाथों में है।

बस इससे ज़्यादा जेम्स कुछ नहीं देख पाया क्यों की अब वह बेहोश हो चुका था।

ऊंची छलांग लगाता हुआ वह यति एक विशालकाय पर्वत के पास पहुंच गया।

पर्वत पर एक बर्फ़ से लदा हुआ घर बना था।

घर बर्फ़ से इतना ज़्यादा ढका था कि यही नहीं पता चल रहा था कि वह घर किस चीज से बना है।

उस घर का दरवाजा छोटा था।

यह देख यति का आकार अपने आप छोटा होने लगा।

अब यति का आकार इंसान के बराबर हो गया और वह जेम्स को लेकर उस घर में दाख़िल हो गया।
पता नहीं यति किस प्रकार चल रहा था कि उसके पैरों से रत्ती भर भी आवाज नहीं हो रही थी।

2 कमरे पारकर यति एक बड़े से हॉल में पहुंचा।

उस हॉल के बीचोबीच एक काले रंग के पत्थर से निर्मित शिवाला बना था। जिसके पास एक सफेद दाढ़ी वाला बूढ़ा बैठा भगवान की पूजा कर रहा था।

यह तिब्बत का एक भिक्षुक नीमा था।

यति ने धीरे से शिवाला को सिर झुकाया और सामने की ओर चुपचाप बैठकर नीमा की पूजा ख़तम होने का इंतजार करने लगा।

लगभग 10 मिनट के बाद नीमा ने अपनी पूजा ख़तम करके अपनी आँखे खोली।

आँख खोलते ही नीमा की नजर यति और उसके पास बेहोश पड़े जेम्स की ओर गयी।

“यह कौन है हनुका?" नीमा ने यति की ओर देखते हुए पूछा।

“मुझे भी नहीं पता। मुझे ये म.. हा….देव की ‘योग-गुफा’ में मिला था।"
हनुका ने कहा- “मुझे शकल से ये विदेशी दिखाई दिया, इसिलये इसे मैं आपके पास ले आया।"

“गुरुत्व शक्ति के प्रकट होने का समय आ रहा है। हो सकता है ये वही चुराने के लिये यहां आया हो।"

नीमा ने कहा- “आप इसे रूद्राक्ष और शिवन्या को सौंप दो। वही देखेंगे कि इसका आगे क्या करना है?"

“जी धर्मगुरु!" इतना कहकर हनुका जेम्स को ले वहां से बाहर निकल गया।



जारी रहेगा_________✍️

Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bhai,

James ko Yati utha ke le gaya.......

Lekin ye to Antarctica me tha............Himalaya me Kailash Parvat par pahuch gaya..................

Gazab Bhai............

Keep rocking
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
4,063
15,655
159
#96.

चैपटर-12 : अटलांटिस वृक्ष

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 15:45, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

व्योम लगातार किसी अंधे कुंए में गिरता हुआ सा प्रतीत हो रहा था।

कुछ देर तक ऐसे गिरते रहने के बाद व्योम को अपना शरीर किसी धरातल से छूता हुआ प्रतीत हुआ।

व्योम ने अपनी आँखो को खोला। वह इस समय एक घने जंगल में घास पर पड़ा हुआ था।

“ये मैं कहां आ गया?"
व्योम याद करते हुए बड़बड़ाया- “मैं तो द्वीप के नीचे के स्थान पर किसी विज्ञान की दुनियां में था। वहां पर मैने एक मशीन का बटन दबाया था, तभी मुझे अपना शरीर खंडों मे विभक्त होता हुआ महसूस हुआ। जिसके फल स्वरूप मैं यहां पहुंच गया। क्या....क्या वो मशीन ट्रांसमिट मशीन थी? पर उस मशीन ने मुझे कहां भेज दिया?"

व्योम ने एक नजर अपने आसपास के स्थान पर मारी। वह एक बहुत ही खूबसूरत परंतु छोटी सी घाटी में था।

चारो ओर हरियाली थी। खूबसूरत पहाड़ो के बीच सुंदर फल और फूलों वाली घाटी रंग- बिरंगे फूलों से बिलकुल स्वर्ग के समान महसूस हो रही थी।

वहां लगे सभी पेड़-पौधे व्योम के लिये नये थे। इससे पहले उसने ऐसे फल और फूलों के पौधे अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे थे।

व्योम अभी जंगल की खूबसूरती का नजारा ले ही रहा था कि तभी उसे कुछ ‘धम-धम’ की आवाज सुनाई दी।

आवाज सुनते ही व्योम समझ गया कि कोई विशालकाय जीव उधर आ रहा है।

वह तुरंत एक पास के पेड़ पर चढ़ कर बैठ गया।

व्योम की नजर अब आवाज की दिशा की ओर थी, जो कि अब पास आती जा रही थी।

कुछ ही देर में व्योम को एक तरफ से एक मदममस्त हाथी आता हुआ दिखाई दिया।

उस हाथी की चाल से पता चल रहा था कि वह कुछ दिन पहले ही व्यस्क हुआ है। क्यों कि वह पूरी मस्ती में उछलता-कूदता दिखाई दे रहा था।

हाथी के दाँत लंबे और चमकीले थे। हाथी अपनी मस्तानी चाल से कुछ छोटे-छोटे पेडों को उखाड़ता चल रहा था।

हाथी को देख व्योम ने अपने आप को एक मोटी टहनी के पीछे छिपा लिया, जिससे हाथी की नजर उस पर ना पड़े।

झूमता हुआ हाथी अचानक एक पेड़ को उखाड़ते-उखाड़ते रुक गया। अब हाथी ध्यान से उस पेड़ पर लगे फलों को देखने लगा।

हाथी को ऐसा करते देख व्योम को थोड़ा आश्चर्य हुआ। वह भी ध्यान से उस पेड़ के फलों को देखने लगा।

उस पेड़ पर छोटे-छोटे आँवले के जैसे लाल और हरे फल लगे थे। कुछ देर तक देखते रहने के बाद हाथी ने एक लाल फल को खा लिया।

फल को खाते ही हाथी का आकार आश्चर्यजनक तरीके से एक चूहे के बराबर हो गया।

व्योम आँखे फाड़े उस दृश्य को देख रहा था।

चूहे के आकार में आकर हाथी काफ़ी खुश हो गया। अब वह चिंघाड़ते हुए वहां से चला गया।

“अरे बाप रे....यह तो बहुत ही विचित्र जगह है।" व्योम ने अपने मन मे सोचा- “ऐसे फलों के बारे में तो मैने कभी सुना भी नहीं....यह फल तो किसी भी जीव के जीनोम को बदलने की क्षमता रखता है।"

यह सोच व्योम अब पेड़ से उतरकर उस विचित्र वृक्ष के पास आ गया और उसके फलों को ध्यान से देखने लगा। व्योम को देखने में वो फल बिल्कुल साधारण से ही लगे।

“इन लाल फलों को खाकर वह हाथी छोटा हुआ था। पर यह हरे फलों से क्या होता है? कहीं ये हरे फल वापस जीव को सामान्य आकार में तो नहीं लाते। जरूर ऐसा ही होगा। पर इस हरे फल को चेक कैसे करू? मैं स्वयं पर तो इसका प्रयोग कर नहीं सकता। चलो कुछ फल जेब में रख लेता हूं, बाद में इसका प्रयोग करके देखूंगा कहीं पर?"

यह सोचकर व्योम ने कुछ लाल और कुछ हरे फल, पेड़ से तोड़कर अपनी जेब में डाल लिये।

“अब मुझे सबसे पहले पता करना चाहिए कि मैं हूं कहां पर?"
यह सोचकर व्योम ने अपने बैग से दूरबीन को निकाल कर अपनी आँखों पर चढ़ा लिया और घाटी पर एक नजर डाली, पर उसे दूर-दूर तक कुछ नजर नहीं आया।

“यहां से तो मनुष्य के जीवन के कोई अवशेष नजर नहीं आ रहे, फ़िर मुझे बतायेगा कौन? कि मैं इस समय कहां पर हूं? मुझे पहाड़ पर चढ़कर देखना चाहिए। शायद वहां से कुछ नजर आ जाये।"

यह सोचकर व्योम एक पास वाले पहाड़ पर चढ़ना शुरू हो गया। 1 घंटे के अथक परिश्रम के बाद व्योम उस पहाड़ की चोटी पर पाहुंच गया।

पहाड़ पर उसे एक विशालकाय वृक्ष दिखाई दिया। उस वृक्ष की ऊंचाई कम से कम 100 फिट से कम नहीं थी।

उस वृक्ष पर हजारो शाखाएं थी और हर शाखा पर बहुत ज़्यादा पत्तियाँ लगी थी। वह पेड़ इतना घना था कि पेड़ के नीचे सूर्य की रोशनी भी नहीं आ रही थी।

उस पेड़ का तना 12 फिट चौड़ा था। दूर से देखने पर वह पेड़ किसी विशालकाय दैत्य की भाँति प्रतीत हो रहा था।

उस पेड़ पर एक भी फल और फूल नहीं लगे थे।

व्योम ने उस पेड़ को हाथ लगाकर देखा। पेड़ को छूते ही अचानक उसे अपने मस्तिष्क में बहुत शांति महसूस हुई।

व्योम को एक अतिन्द्रिय शक्ति का अहसास हुआ, इसिलसे जाने क्यों श्रद्धावश व्योम ने पेड़ को हाथ जोड़कर प्रणाम कर लिया।

धीरे-धीरे शाम होने वाली थी और व्योम को भूख और प्यास भी लग रही थी, इसिलये व्योम ने एक बार फिर दूरबीन को आँखों से लगाकर घाटी की दूसरी ओर देखना शुरू कर दिया।

घाटी के दूसरी ओर बहुत दूरी पर उसे कोई चमकती हुई चीज दिखाई दी। व्योम ने दूरबीन को समायोजित करके देखा।

“अरे यह तो कोई धातु की विशाल मूर्ति लग रही है। मुझे उस दिशा में ही चलना चाहिए। शायद वहां पर कोई इंसान मिल जाये।"

यह सोच व्योम धीरे-धीरे पहाड़ से उतरने लगा। व्योम के पलटते ही उस वृक्ष से रोशनी की एक किरण निकली और व्योम के शरीर में समा गयी, पर व्योम इस दृश्य को देख नहीं पाया।

सागरिका

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 16:20, कलाट महल, अराका द्वीप)

इस समय युगाका कलाट महल में कलाट के सामने बैठा था।

“क्या हुआ बाबा? आपने आपातकाल बटन क्यों दबाया? ऐसी क्या तत्काल जरूरत पड़ गयी? सब ठीक तो है ना?" युगाका ने एक नजर कलाट पर डालते हुए पूछा।

“मुझे भी कुछ ज्यादा पता नहीं है बेटा। पर मुझे लग रहा है कि कोई बाहरी इंसान सामरा राज्य के अंदर दाख़िल हुआ है क्यों कि कुछ देर पहले अटलांटिस वृक्ष को, किसी के छूने के संकेत मुझे प्राप्त हुए हैं।" कलाट ने गंभीर होकर कहा।

“ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी अदृश्य दीवार को कोई बाहरी शक्ति भेद नहीं सकती। फ़िर भला कोई अंदर कैसे आ सकता है? और बाहरी किसी इंसान को अटलांटिस वृक्ष के बारे में कैसे पता चलेगा?" युगाका के शब्दों में आश्चर्य के भाव नजर आने लगे।

“युगाका तुम तो जानते हो कि तुम्हारी वृक्ष शक्ति का आधार वही अटलांटिस वृक्ष है। हम गिने-चुने सामरा वासियो के अलावा उस वृक्ष की जानकारी तो सीनोर वासियो को भी नहीं है। फ़िर कोई भला उसके बारे में कैसे जान सकता है। बस यही तो मेरी चिंता का कारण है। लगता है हमें अटलांटिस वृक्ष तक चलना पड़ेगा।" कलाट ये कहकर खड़ा होने लगा।

“बाबा, मुझे भी आपसे कुछ बातें बतानी है?" युगाका ने कलाट को खड़ा होते देख कहा।

युगाका की बात सुन कलाट वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया और युगाका की ओर देखने लगा।

“बाबा कुछ दिन पहले एक पानी का जहाज कुछ इंसानों को लेकर इस क्षेत्र में आया था, जिसे लुफासा ने अपनी शक्तियों से तोड़कर अधिकतर इंसानों को मार डाला, परंतु 12 इंसान किसी प्रकार बचकर मायावन में प्रविष्ट हो गये हैं। वह एक के बाद एक बाधाओं को पार करते जा रहे हैं। उनमें से कुछ मानव के पास तो असीमित शक्तियां भी हैं।" युगाका ने अपने भावनाओं को प्रदर्शित करते हुए कहा।

“इंसानों के पास शक्तियां? कैसी शक्तियां हैं उनके पास?" कलाट ने आश्चर्य से भरते हुए युगाका से पूछा।

“एक इंसान की पीठ पर ‘पंचशूल’ पर छपी सूर्य की आकृति बनी है। उसने देवी शलाका की मूर्ति को भी छुआ, फिर भी वो जिंदा बच गया।" युगाका ने कहा।

“पंचशूल वाली सूर्य की आकृति? और....और....उसे देवी शलाका की मूर्ति को छूकर भी कुछ नहीं हुआ? ..... असंभव!....ये नहीं हो सकता।" कलाट भी यह बात सुनकर घबरा गया।

“ऐसा मेरी आँखों के सामने ही हुआ है बाबा। मैं आपसे झूठ नहीं बोल रहा।" युगाका ने कलाट को यकीन दिलाते हुए कहा- “और दूसरी लड़की तो अभी मात्र xx-xx वर्ष की ही लग रही है, पर वह मायावन के बारे में सबकुछ जानती है, उसने....उसने तो आज मेरी वृक्ष शक्ति भी मुझसे छीन ली थी।"

“क्याऽऽऽऽऽऽ?" युगाका के शब्द सुन कलाट के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा ।

“तुमने मुझे इस बारे में पहले क्यों नहीं बताया? मुझे लगता है वह घड़ी आने वाली है जिसका अराका वासियों को हज़ारों सालो से इंतजार है। महाशक्ति ने अराका पर अपने कदम को रख दिया है। अब ‘सागरिका’ को फ़िर से खोलना पड़ेगा।"

“कौन महाशक्ति बाबा? और...और ये सागरिका क्या है?" युगाका के लिये कलाट का हर शब्द एक रहस्य के समान था।

“बताता हूं, सब बताता हूं...पर पहले सूर्य के अस्त होने के पहले हमें अटलांटिस वृक्ष तक पहुंचना होगा।" कलाट ने कहा।

“ठीक है बाबा तो पहले अटलांटिस वृक्ष तक पहुंचने की ही व्यवस्था करते हैं। आप मेरे साथ महल की छत पर चिलये।" इतना कहकर युगाका कलाट महल के छत की ओर भागा।

कलाट युगाका के पीछे था।

युगाका ने महल की छत पर पहुंचकर एक अजीब सी सीटी बजाई, कुछ देर बाद उसे हवा में उड़कर वही लकड़ी का ड्रोन आता दिखाई दिया।

ड्रोन महल की छत पर उतर गया। कलाट और युगाका दोनों ही ड्रोन में बैठ गये।

युगाका के इशारे पर अब वह ड्रोन अटलांटिस वृक्ष की ओर उड़ चला।

“क्या अब आप बतायेंगे बाबा कि महाशक्ति कौन है?" युगाका ने कलाट से पूछा।


जारी रहेगा_______✍️

Behad shandar update he Raj_sharma Bhai,

Na jaane aur kitne rahasay chhupe huye he is island me............

Gazab Bhai..............Keep rocking
 
Top