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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

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komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग 246 ----तीज प्रिंसेज कांटेस्ट पृष्ठ १५३३

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97Shiv

New Member
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Hi komaal ji
Kya adbhut lekhan shaili hai aapki .aaj ke daur me aisi shaili itti gaharai vichato ki ki is tarha abhivyakti kamal hai tarif ke liye shabd nahi hai bas itta hi kah sakta hu ki isase utkristha lekhan to ab swayam ma sharda hi kr sakti hai
Kya mujhe aapki sari khaniyon ki suchi mil sakti hai jo ki n keval mere balki mujh jaise n jane aapke kitte prashanshako ke liye upyogi hogi
 

Premkumar65

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चलते चलते
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आफिस से निकलते हुए मैंने एक महत्वपूर्ण फैसला किया, मैं घर पैदल जाऊँगा।

वैसे तो रोज घर पहुँचने की जल्दी रहती थी और कम्पनी की कार पिक अप और ड्राप करती ही थी, पर आज दो बातें थीं। एक तो मुझे लगा की कंपनी की कार में भी जरूर डालने वाले ने कीड़े डाल दिए होंगे और मैं सारे रस्ते कांशस रहूँगा, दूसरे आज वही तीज को लेकर एक कोई लम्बी मीटिंग चल रही थी क्लब में लेडीज क्लब की, तो घर पर कोई इन्तजार भी नहीं कर रहा था।

लेकिन दो बातें और थी पैदल चलने की, एक तो मैं चलते हुए सोच ज्यादा पाता था, और ख़ास तौर से जब अकेले रहूं और दूसरे उसी बहाने, आफिस से टाउनशिप और अपने घर तक मैं ये भी देखना चाहता था की पिछले तीन चार दिनों से कोई नयी एक्टिविटी तो नहीं चालू हुयी, जैसे हम लोगो के घर के पास वो गाजर के ठेले वाला खड़ा हो गया या फ़ो फ़ूड ट्रक लग गयी तो कहीं आफिस के आस पास या रस्ते में भी इस तरह की को नयी दूकान तो नहीं लग गयी।

मौसम भी अच्छा था और पैदल का भी रास्ता १०-१२ मिनट से ज्यादा का नहीं था।

मेरे दिमाग में बार बार इस नए प्रोजेक्ट की बात घूम रही थी, इतना टॉप सीक्रेट प्रॉजेक्ट, जिसमे आई बी के एक टॉप बॉस खुद सिक्योरिटी हैंडल कर रहे हो और, मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हम लोगो के प्रोजेक्ट का इससे क्या जुड़ाव था, और आखिर क्यों मुझे ऑर्डिनेट करने का काम मिला,



पहले तो ' नीड टू नो ' वाली बात सोच के मैंने अपने को मना किया कुछ भी सोचने से, लेकिन मन मानता कहाँ है। हाँ मैं इस प्रॉजेक्ट के बारे में

कहीं बात नहीं कर सकता था ये तो एकदम साफ़ था,

अचानक कुछ बादल छंटे , और मेरी समझ में एक बात तो आ गयी, दिल्ली में दिल्ली जिमखाना और गोल्फ क्लब से लेकर झंडेवालन में जिन लोगों से मैं मिला था, जो सत्ता के गलियारों के असली ताकत के स्त्रोत थे, वो बाकी बातों के साथ मेरी भी वेटिंग कर रहे थे, जांच पड़ताल परख कर रहे थे और उन्हें मैं ठीक लगा होऊंगा तभी उन्होंने ग्रीन सिग्नल दिया होगा मेरे नाम के लिए, कोऑर्डिनेट करने के लिए और इस प्रॉजेक्ट का हिस्सा बनाने के लिए।

अगले दिन बंबई में जो बमचक मची, और फिर सुबह सुबह एयरपोर्ट पर मुलाक़ात जिसमे मुझे वो कीड़ा पकडक यंत्र मिला और मेरे सर्वेलेंस के बारे में रिपोर्ट मिली वो भी अब मुझे लग रहा था की उसी जांच पड़ताल का हिस्सा था और उन लोगो को लग गया था की मैं कामोनी और जो सरकार का स्ट्रेटजी ग्रुप होगा उस के बीच में पुल का काम कर सकता हूँ।

लेकिन कई बार जैसे एक सवाल सुलझने के कगार पर पहुंचता है कई और सवाल मुंह बा कर खड़े हो जाते हैं, और एक सवाल कौंधने लगा

पिछले दिनों जो कुछ हुआ, हमारी कम्पनी को कब्ज़ा करने की कोशिश, बाल बाल हमारा बचना, सरकार का पीछे से ही सही फाएंसियल इंस्टीट्यूशन की ओर से सहयता देना, कुछ तो है ये सब एक संयोग तो नहीं होगा और फिर ये सुपर सीक्रेट प्रोजेट।

और मुझे कुछ कुछ याद आया, कुछ उड़ती उड़ती सुनी थी, की हमारी पैरेंट कम्पनी कोई कटिंग एज टेक्नोलॉजी पे काम कर रही है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी शायद एक कदम आगे हो, और वो ए आई के साथ बिग डाटा, क्वाण्टम कम्प्यूटिंग सब का इस्तेमाल कर रही है। उस के बाद कंप्यूटर शायद पुरानी बातें हो जाये, और उस के डिफेन्स में भी इस्तेमाल हो सकते हैं, हर नयी टेक्नोलॉजी की तरह।



और फिर मुझे दूसरी बात याद आयी, गवर्नमेंट की एक परेशानी ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी को लेकर, लेटेस्ट प्रॉडक्ट हर कंपनी बेचना चाहती है लेकिन ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी के नाम पर वो बिदक जाते हैं, और होता भी है तो आधा तीहा। सोर्स कोड कंपनी कभी नहीं देती और न ही सर्वर यहाँ लगाती है। और मैंने अपनी कम्पनी की ओर से सर्वर फ़ार्म की भी पेशकश की थी।



फिर हमारी कम्पनी भी, इंडस्ट्रियल जासूसी से घिरी है, उसे भी कहीं अपनी उस कटिंग एज टेक्नोलॉजी को जांचना पड़ेगा तो कहीं



और अब मुझे कुछ मामला समझ में आया, हो सकता है बल्कि यही है, अभी हम लोगो की फाएंसियल स्थिति डांवाडोल है तब भी एक्वायर करने वाले ने इतना घाटा सहकर एक्वायर करने की कोशिश की, क्योंकि उसे मालूम था की टेक्नोलॉजी में ब्रेकथ्रू होने वाला है और वह बिना रइस्सर्च पर पैसा खर्च किये उसे एक्वायर कर लेता। लग रहा था सरकार यह नहीं चाहती थी और उन्होंने परदे के पीछे से हम लोगो का साथ दिया। एक्वायर होने के बाद ये टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट खटाई में पड़ जाता

और हो सकता है वो टेक्नोलॉजी, और ये प्रॉजेक्ट कहीं न कहीं हो सकताहै जुड़े हो और जो मेरे ऊपर शक की सुई घूमी है वो भी शायद इसलिए

अब मैं टाउनशिप के बीच में पहुंच गया था, जहाँ से एक पतली सी सड़क गीता के घर की ओर टाउनशिप की बाहरी पर्धित पर जात्ती थी और मेन रोड कालोनी में

और मैंने अब तक की सब बातें झटक दी और अपने से बोला, " सोचो, तुझे क्या करना है "

और वो जवाब सामने था, दूर गाजर का ठेला दिख रहा था।

बार बार मुझे यही कहा जाता है की वर्तमान में जीयो, लिव इन द मोमेंट। डूएबल क्या है और ये शीशे की तरह साफ़ था, दिख रहा था,

सर्वेलेंस,



उसे होने भी देना है और उससे बचना भी है।


होने देना इसलिए जरूरी है की उसी के धागे को पकड़ कर हम पहुँच सकते हैं की नेपथ्य में कौन है , और जितना ज्यादा सर्वेलेंस होगा उतना ही पकड़ना आसान भी होगा। दूसरी बात है की मुझे यह पता है की उन्हें क्या पता करना है, अगर उन्हें शक है की मैं ठरकी हूँ, मेरे घर में सभी, तो बस मुझे उनके इस शक को सही सिद्ध करना होगा। आठ दस दिन के सर्वेलेंस के बाद जब उनके आकाओ को विश्वास हो जाएगा की मुझसे कोई खतरा नहीं है तो ये बंद हो जाएगा और उसका सबसे बड़ा सबूत होगा की वो ठेला और फ़ूड ट्रक हट जाएंगे।

और बचना इसलिए है की किसी भी हाल में इस प्रोजेक्ट की या हमारे काउंटर ऑफेंसिव के बारे में उन्हें नहीं मालूम होना चाहिए। लेकिन कई बार हो सकता है मुझे कांटेक्ट करना पड़े तो उस का कोई रास्ता ढूंढना होगा। पर अभी कुछ दिन तो उसकी जल्दी नहीं लग रही थी

सोचते सोचते घर आ गया था,
Mast update hai. Bahut technical ban gaya hai to thoda dhyaan se Sadhna pasta hai samajhne ke liye.
 

vakharia

Supreme
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भाग २४४ नया प्रोजेक्ट

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हम लोगों के टाउनशिप में आफिस के पास ही एक बड़ी जगह खाली पड़ी थी और बार बार कुछ न कुछ वहां होने की बात होती थी लेकिन टल जाती थी। जमींन वैसे भी टाउनशिप की सेंट्रल गवर्मेंट से लीज पर थी। इसलिए बिना सरकार की परमिशन के कुछ हो भी नहीं सकता था, बस उसी जगह कुछ बन रहा था। मेरे कम्पनी की एक मेल भी आफिस के अक्काउंट पे मेरे लिए आयी थी। उसी के सिलसिले में और कुछ डॉक्युमेंट्स भी कारपोरेट आफिस ने क्लियर कर के भेजे थे मुझे ऑथराइज्ड सिग्नेटरी बनाया था लेकिन वो मामला कनफेडेंशियल से भी ज्यादा था और उसमें यहाँ के किसी भी आदमी को इन्वाल्व बिना कारपोरेट आफिस की परमिशन के नहीं करना था।

कुछ डिफेन्स से जुड़ा मामला लग रहा था

हमारी कम्पनी कुछ डिफेन्स कॉनट्रेक्ट लेना चाहती थी, शायद उसी से जुड़ा होगा, मैंने सोचा। हम लोग डी आर डी ओ को कुछ इक्विपमेंट सप्लाई करने वाले थे उसी शायद कुछ लिंक हो।


लेकिन दूर से ही देख कर मुझे लगा की ये कुछ अलग ही हो रहा है।

एक वार्बड वायर की फेंसिंग जो कम से काम बारह फिट ऊँची थी और जगह जगह कैमरे, शायद इलेक्ट्रिफाइड भी,

सिर्फ एक गेट था, स्टील का और उसके आगे ऑटोमेटिक पिलर्स थे जिससे अगर कोई ट्रक से भी गेट तोड़ के घुसने की कोशिश करे तो स्टील के मोटे करीब एक दर्जन पिलर्स सामने होते, वो भी चार पांच फिट ऊँचे तो थे ही।

मेरी कार वहीँ रुकी, फिर एक आदमी ने आके आइडेंटिफाई किया कार के ऊपर नीचे आगे पीछे अच्छी तरह से चेक किया फिर उसने वाकी टाकी से मेसेज दिया तो फिर वो पिलर्स नीचे हुए और गाडी गेट तक पहुंची, लेकिन गेट खुलने के पहले एक बार फिर से मेटल डिटेक्टर से मेरी चेकिंग हुयी और एक लेडी आफिसर बाहर निकली, उन्होंने हाथ मिलाया और मेरा फोन वहां जमा कर लिया और तब गेट खुला।

तब मुझे समझ में आया की पूरी सिक्योरटी सी आई एस ऍफ़ के पास है।

और वो महिला सीआईएसएफ की कमांडेंट थीं, अभी ६-७ साल की सर्विस हुयी होगी, मेरी उम्र के ही आस पास की, नेम बैज से ही नाम पता चल गया, श्रेया रेड्डी, हाइट ६ से थोड़ी ही कम रही होगी और एकदम टाइट यूनिफार्म में, ओके , सब मर्दों की निगाह वहीँ पड़ती है, मेरी भी वहीँ पड़ी टाइट यूनिफार्म में उभार एकदम उभर के सामने आ रहे थे मैं क्या करूँ, ३४ और ३६ के बीच लेकिन कमर बहुत पतली, इसलिए उभार और उभर के सामने आ रहे थे,

मेरी चोरी पकड़ी गयी पर वो मुस्करा पड़ी जैसे आँखों आँखों में कह रही हों, होता है होता है। मुझे जो देखता है सब के साथ यही होता है ।

लेकिन उसके बाद जिस चीज पर मेरी निगाह पड़ी उसने मेरे और होश उड़ा दिए, जैसे मकान बनते समय कई बार टीन के बोर्ड की आड़ लगती है उसी तरह की, लेकिन कोई एकदम अलग ही मटेरियल था, और ऊंचाई कम से कम चार मंजिला घर से भी ऊँची। लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी की वो होते हुए भी नहीं दिखता था। उसमें जैसे होलोग्राफिक इमेजेज थीं, पेड़ों की ऊपर आसमान की और जिसका रंग दिन के आस्मां के हिसाब से बदलता रहता था, वो फेन्स से करीब दस बारह फिट अंदर की तरफ था।
जब हम उसके पास पहुंचे तो कमांडेंट श्रिया ने एक कोई रिमोट सा बटन दबाया और एक एक ऐसा गेट सा रास्ता खुला जिसमे से एक बार में सिर्फ एक कोई जा सकता था, और यहाँ दुबारा मेर्री चेकिंग तो हुयी ही कमांडेंट श्रेया की भी चेकिंग हुयी और यहाँ पर ऑलिव ड्रेस पहने हुए कुछ कमांडों थे।

हम दोनों के फोन यहाँ रखवा लिए गए और दो छोटे छोटे नान स्मार्ट फोन दिए गए जो लौटते हुए वापस कर देने थे और उसके बाद हम दोनों को अपना फोन मिल जाता,

वहीँ उन्ही कमांडोज़ की एक गाडी थी, गोल्फ कार्ट ऐसी, जिसे श्रेया ने ड्राइव किया और मैं उनके साथ।

अंदर की जगह पहचानी नहीं जा रही थी, ७-८ कंटेनर खड़े थे जो आफिस की तरह लग रहे थे, एक टेंट था शायद वर्कर्स के रहने के लिए । कंस्ट्रकशन मशीनरी काम कर रही थीं हफ्ते भर से कम समय में कुछ हिस्सा बन गया था, बड़े बड़े चार पांच जेनसेट भी थे, लाइट्स भी ।

एक पोर्टा केबिन में मीटिंग रूम था,

लेकिन मैं बाहर नसीम अहमद से मिला, हॉस्टल में मुझसे दो साल सीनियर और पहले धक्के में ही आ इ पीएस में सेलेक्शन हो गया था, उस समय हम लोग हॉस्टल में ही थे, जबरदस्त पार्टी हुयी थी और उन्होंने मेरी जबरदस्त रैगिंग भी ली थी, मैं लेकिन आई आई टी और आईं आई एम् के रस्ते दूसरी ओर मुड़ गया और वो सिविल सर्विस में, छह महीने पहले ही यहाँ उनकी पोस्टिंग हुयी थी,

मीटिंग
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म तीनो साथ साथ मीटिंग में घुसे, मैं श्रेया और नसीम अहमद। एक पोर्टा केबिन दूसरों से अलग लग रहा था, उसी में मीटिंग थी।


अंदर चार लोग थे तीन पुरुष एक महिला . पुरुष तीनों शकल और हाववभाव से सरकारी लग रहे थे, महिला विदेशी।

जिस तरह से दो पुरुष खड़े हुए और तीसरे ने खड़े होने का उपक्रम मात्र किया समझ में आ गया की कौन सीनियर है , हाथ सबने मिलाया लेकिन सबसे गर्मजोशी और मुस्कराहट के साथ वो उस विदेशी महिला ने।
न उन लोगों ने नाम बताया न किस संगठन से जुड़े हैं न उनका का। लेकिन धीरे धीरे सब पता चल गय।



सीनियर वास्तव में सीनियर थे, कॉमर्स मंत्रालय और गृह मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर रह चुके थे, कुछ दिन रॉ में भी काम किया था और अभी इंटेलिजेंस ब्यूरो में सीनियर एडीशनल डायरेक्टर थे और कुछ दिनों बाद डायरेक्टर होने वाले थे। होम मिनिस्ट्री में रहते हुए वो इंटरनल सिक्योरटी १ और साइबर और इन्फॉर्मेंशन सिक्योरिटी का काम सम्हाल चुके थ।



बाकी दो अधिकारी में से एक एन टी आर ओ से जुड़े थे , मतलब अगर पूरा नाम लें तो नेशनल टेक्नीकल रिसर्च आर्गनाइजेशन से जुड़े थे और अभी नेशनल क्रिटिकल इन्फॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर में काम कर रहे थे। इस संगठन का काम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संगठनों के क्रिटिकल इन्फॉर्मेशन को प्रोटेक्ट करना है। एन टी आर ओ में भी काम का उनका लम्बा अनुभव था। वहां वह रिमोट सेंसिंग, सिग्निट, डाटा गेदरिंग प्रसेसीसँग और साइबर सिक्योरिटी के काम को हेड करते थे। उनका कुछ वर्षों का अमेरिका में नेशनल सिक्योरटी एजेंसी में भी काम करने का अनुभव था।


तीसरे सरकारी तो लग रहे थे लेकिन पूरी तरह नहीं, एक तो उन्होंने हाफ शर्ट पहन रखी थी वो भी पैंट के अंदर टक नहीं थी, बातचीत में थोड़े इन्फार्मल थे, और हम लोगों की बात भी ध्यान से सुन रहे थे।

बाद में पता चला उनका एकेडेमिक बैकग्राउंड। आक्सफोर्ड से उन्होंने मैथ्स में मास्टर किया था फिर बर्कले से डॉक्टरल और पोस्ट डॉक्टरल प्रिंसटन से। उनकी थीसिस क्रिप्टोलॉजी पे थ। उसके अलावा आरटिफिश्यल इंटेलिजेंस, बिग डाटा एनेलेटिक्स के साथ साथ लिंग्विस्टिक्स में भी उन्हें महारत थी और पांच भाषाओ में कम्फर्टेबल थे । कुछ दिन तक सिलिकॉन सिटी में काम करने के बाद वो वो कुछ दिन तक फायनेंसियल एक्शन टास्क फ़ोर्स से भी जुड़े रहे। लेकिन माटी की महक उनको हिन्दुस्तान खींच लाय। हैदराबाद में जब से नेशनल इन्ट्रीट्यूट ऑफ़ क्रिप्टोलॉजी रिसर्च एंड डेवेलपमेंट खुला बस उसी से जुड़े है। यह मोहकमा भी एन टी आर ओ के आधीन ही काम करता है।


और अब बची वो विदेशी महिला, एथल नाम था उनका।

हाथ मिलाते ही बता दिया था लेकिन बहुत देर बात में पता चला की मेरी कम्पनी से ही जुडी थी , एक रिसर्च ग्रुप और थिंक टैंक जिसकी फंडिंग बहुत कुछ कम्पनी से ही मिलती थी, कटिंग एज साइबर टेक्नोलॉजी में उनका नाम था । लेकिन कम्पनी से कनेक्शन काफी बाद में पता चल। कहते हैं लड़कियों की उम्र नहीं पूछनी चाहिए, लेकिन कहानी में न बताने पर लोग सोचते रह जाते है, मेरे अंदाज से ३५ के आसपास की। माँ फ्रेंच, पिता क्रोशियन लेकिन अभी पूरी तरह इंटरनेशनल, स्विट्जलैंड ,एन एक लैब में काम करती थी, फ़्रांस के एक रिसर्च आर्गनाइजेशन से जुडी और कम्पनी की कटिंग एज टेक्नोलॉजी की कंसल्टेट । पढाई सोरबोन, हार्वर्ड और कोलंबिया से हुयी थी।



फिर शुरू हुयी काम की बात।

सिक्योरिटी और प्रोजेक्ट के मुद्दे

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मीटिंग की सदारत वही आई बी वाले सज्जन कर रहे थे, सीनयर भी थे एक्सपीरियंस्ड भी थे और सरकार को रिप्रजेंट भी कर रहे थे।

बहुत सी बातें नहीं बता सकता, मीटिंग एकदम कॉन्फिडेंशियल थी, लेकिन कुछ बातें जैसे क्या डिसीजन हुए, किसको क्या काम मिला ये सब चलिए एकदम शार्ट में बता देता हूँ।

पहला मुद्दा था सिक्योरिटी का,

तो एक्सटरनल सिक्योरिटी का काम एस एस पी नसीम अहमद के जिम्मे था, यानी फेन्स के बाहर की सिक्योरटी,

फेन्स पर इंट्री कंट्रोल उनका नहीं था वो सी आई एस ऍफ़ के पास। लेकिन अगर वो टाउनशिप के अंदर पुलिस लगाते या उस नए बन रहे इलाके के पहले बहुत ज्यादा पुलिस होती तो और शक बढ़ता। इसलिए उन्होंने प्रपोज किया टाउनशिप के बाहर वो सिक्योरिटी बढ़ा देंगे, और साथ में मोबाइल पेट्रोल भी। जो गाड़ियां अभी एक घंटे में चक्कर मारती हैं वो १५ से बीस मिनट के अंदर, और टाउनशिप के अंदर जो शॉप्स हैं वहां लोकल इंटेलिजेंस यूनिट के लोगों को,

जो मीटिंग के सदर थे उन्होंने नसीम अहमद को रोक के बोला,

" और वो जो इन्फो लाएंगे आप श्रेया से भी शेयर करना और सीधे मेरे पास। और एक बात और ट्रैफिक सिंगल के जो कैमरे हैं उनकी फुटेज, जो जो रस्ते इस ओर आते हैं, उन कैमरों की वर्किन्ग,… और मैं फेसियल रिकग्निशन सॉफ्टेवयर है उसे भी भेज दूंगा। "

और जब वो मेरी ओर मुखातिब हुए उनके बोलने के पहले ही मैंने बोल दिया, टाउनशिप में काम करने वाले और रहने वालों का डाटा और पिक्स मैं दे दूंगा। "

" सिर्फ काम करने वालों की, और अगर कोई वेंडर या मीटिंग के लिए कोई आता है उनकी भी, यहाँ पहुँचने का रास्ता तो टाउनशिप के आफिस काम्प्लेक्स से ही है, घर वालों की प्राइवेसी होगी, फिर कितने मिलने जुलने वाले आते होंगे, उनकी जरुरत नहीं है " उन्होंने फैसला सुना दिया ।

फिर उन्होंने नसीम अहमद से पूछा, " अजय कहाँ है आजकल "

" सर, वो एस टी ऍफ़ हेड कर रहे हैं " नसीम अहमद बोले।

" उसे काल लगाओ। " उन्होंने अपनी चाय ख़तम करते बोला।
और एस टी ऍफ़ के हेड को भी एक काम पकड़ा दिया, " नसीम को थोड़ी हेल्प की जरूरत होगी तो अपने दो चार लड़के भेज के यहाँ होटल जो भी हैं उसका चेक, ….कौन आ रहा है, और साथ में अगल बगल के डिस्ट्रिक्ट्स में भी १०० किलोमीटर के अंदर जो भी डिस्ट्रक्ट्स हैं, ….जिसे यहाँ कुछ करना होगा, यहां तो रुकेगा नहीं, तो उन सब के होटल और ये ओयो वाले आज कल घर में भी ठहराने लगे हैं तो वो भी, बाकी तुम सब समझदार हों।।।

उधर से जोर की यस की आवाज आयी। शायद जूते की एड़ी ठोक के सैल्यूट भी किया हों।

फोन रखने के पहले उन्होंने एक बात और कही, " और रिपोर्टिंग सब नसीम के थ्रू ही होगी, मैं उससे ले लूंगा। "

हाँ फोन रखने के पहले उन्होंने उन एस टी ऍफ़ के हेड की पत्नी के बारे में दोनों बच्चो के बारे जरूर पूछ। फिर नसीम अहमद को अगला काम बता दिया।

" अपने डिजास्टर मैनेजमनेट प्लान में ये एरिया भी इन्क्ल्यूड कर लो। और अगले एक महीने तक या जब तक अबकी उन्होंने मेरी ओर इशारा किया , इससे कोऑर्डिनेट कर लेना, आसापास के हॉस्पिटल्स में कम से कम दस पन्दरह बेड रिजर्व रखना, दो आई सी यूं वाली एम्बुलेंस भी ऑन काल रहेंगी। फायर ब्रिगेड में भी दो चार फायर ट्रक, रिजर्व रखने होंगे। और एन डी आर ऍफ़ वालों से भी बात कर लेना "

अब इत्ती देर बाद नसीम अहमद बोले

" मेजर सिंघल हैं हम लोगों एक ज्वाइंट एक्सराइसज भी हुयी है और अब तो स्टेट डी आर ऍफ़ भी।।। "

लेकिन नसीम अहमद की बात उन्होंने काट के उन्हें रोक दिया और बोला,

" नहीं नहीं ज्यादा रायता मत फैलाओ, तुम्हारी स्टेट में न चलनी से ज्यादा छेद हैं, एक एक अफसर ने दस दस यार पाल रखे हैं हर पार्टी में, ….सिंघल ठीक है, जस्ट नीड टू नो बेसिस पे और हाँ जिसको भी इस से जुड़े काम पे लगाओ उसकी लिस्ट मेरा जो स्टेट वाला है उसे बोल दूंगा उसे भी दे देना जरा उनकी जांच पड़ताल कर लेगा और उन सबको हफ्ते हफते शिफ्ट करते रहना, और फेंस का काम तो श्रेया देखेगी लेकिन कैमरे की फीड तुमसे कोऑर्डिनेट करती रहेगी और हाँ फीड ऑनलाइन नहीं तुम खुद दिन में एक चक्कर लगा के इसके कंट्रोल रूम में चेक कर लेना या कोई गड़बड़ होगी तो ये काल कर लेगी। "

और श्रेया, अब वो सी आई एस ऍफ़ कमांडेंट की ओर मुड़े.

" सर ' एकदम कड़क आवाज में श्रेया, सी आई एस ऍफ़ की कमांडेंट बोल। बस खड़ी हो के सैल्यूट नहीं किया।

" फेन्स इज योर चार्ज, नो इंफिल्ट्रेशन। पुलिस का भी नसीम के अलावा कोई नहीं और टाउनशिप से ( मेरी ओर इशारा कर के ) ये बस। और इन दोनों की भी हर बार आईडी चेक होगी, मैं आऊं तो मेरी भी, यू नो मैंने तुम्हे क्यों हैण्ड पिक किया है " वो बोले



यस सर, अबकी श्रेया की आवाज और कड़क थी।

श्रेया
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मुझे नहीं मालूम था लेकिन बाद में पता चला और वो भी श्रेया ने नहीं बताया ।

हर साल एक कांटेस्ट होता था काउंटर इंसर्जेन्सी का सी आई एस ऍफ़ की टीम का काम था इंफिल्ट्रेशन रोकना और आर्मी के कमांडो का काम होता था इंफिल्ट्रेट करन। ७२ घंटे का टारगेट था, टिरेन हर बार बदल के होता था, इस बार मुंबई का समुद्र तट था और नेवी के मार्कोस कमांडोज को अलीबाग के पास लैंडिंग करनी, पिछले सा कोहिमा के पास जंगल थे और उसके पहले साल लेह के पास एक्सरसाइज हुयी थी। आर्मी की अलग अलग टीम थी लेकिन सी आई एस ऍफ़ की एलिट टीम को श्रेया ही लीड करती थी और तीनों बार सी आई एस ऍफ़ के टीम की जीत हुयी।


" तुम्हारी टीम तुम्हारे पास है लेकिन हर हफ्ते रोटेट करती रहना और कोई जवान महीने में दुबारा उसी जगह पोस्ट नहीं कहा होगा, ड्यूटी सार्जेंट जो रोस्टर बनाएगा उसे रोज तुम ४० % चेंज करोगी, कैमरा फीड मोबाइल में तो तुम्हारे आयेगी लेकिन हर छह घंटे में कंट्रोल रूम में जाकर भी चेक कर लेना और फेन्स के तीन चार राउंड खुद। लेकिन जानती हो खतरा क्या है ह्यूमन इंफिल्ट्रेशन से ज्यादा, ? "मीटिंग हेड कर रहे आई बी वाले ने पूछा

" डिजिटल इंफिल्ट्रेशन, सर " श्रेया ने उसी तरह अलर्ट मोड में जवाब दिया।

"एकदम, सो नो रिमोट, नो डिजिटल डिवाइसेज, नो स्मार्ट फोन्स, अंदर जो भी लोग होंगे किसी के पास स्मार्ट फोन या कोई भी डिजिटल डिवाइस नहीं होगी। नान हैकेबल सिम्पल फोन हर आदमी को दिए जाएंगे और कैम्पस छोड़ने के पहले उसे जमा करना होगा। टेक सपोर्ट एन टी आर ओ प्रोवाइड करेगा, लेकिन जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी। आउटर फेन्स वाले कभी इनर फेन्स के २ मीटर से पास नहीं आएंगे। "



यस सर, श्रेया फिर कड़की।

" डिटेल एस ओ पी तुम एन टी आर ओ के साथ बना लेना, यू आर अ स्मार्ट गर्ल, विद यू एंड नसीम आई फील सेफ " वो मुस्करा के बोले ।

फिर जिस तरह उन्होंने नसीम अहमद और श्रेया को देख के ओके बोला, उसका मतलब था डिमसिस। और वो दोनों जाने के लिए खड़े हो गए ।



मैं भी जाने के लिए खड़ा हुआ तो उन्होंने रोक दिया और पहली बार मुस्कराये,

आप कहाँ जा रहे हैं आप तो हमारे होस्ट हैं , आप रुकिए हाँ और एक बार फिर श्रेया से बोले



ये जाने के पहले तुम से मिल लेंगे , सारे डिटेलस इनसे कोआर्डिनेट कर लेना और अब अगले महीने तक तो यहीं रहना हैं तुझे "

श्रेया ने मुस्करा के मुझे देखा और मैंने भी हल्का सा नाड किया की जाने के पहले मिल लूंगा। श्रेया ने बता भी दिया उसका टेम्प आफिस बगल के ही पोटा केबिन में हैं,

( मुझे उसे बताना भी था की मेरे नंबर पे फोन न करे क्योंकि मेरे सारे फोन हैक हैं और घर में जगह जगह 'कीड़े ' लगे हुए हैं जिन्हे मैं हटा भी नहीं सकता , और श्रेया के बारे में और भी आगे आएगा, लेकिन चलिए डिटेल्स बाद में स्टोरी में थोड़ा आगे पीछे तो चलता ही है लेकिन कुछ हिंट दे देता हूँ, और श्रेया के असली किस्से जिसकी वो सहेली है वो बताएंगी, जो अभी तक कहानी सुना रही थीं, तो श्रेया मेरे ' इनकी सहेली थी थी तो तीन चार साल बड़ी लोरेटो गर्ल्स लखनऊ में तीन साल सीनियर । लेकिन उससे बड़ी बात ये थी की श्रेया का घर भी विंडसर पैलेस में था लखनऊ और मेरी सास का भी घर, अगल बगल तो नहीं लेकिन आस पास, पर बच्चो की दोस्ती तो हो ही जाती है। लोरेटो में श्रेया ने टाइकांडो भी ज्वाइन करा दिय। और हफ्ते भर तक तो हम लोगो में दोस्ती थी लेकिन थोड़ी फॉर्मल टाइप, पर एक दिन मैंने खाने पे श्रेया को घर बुलाया और उसे देखते ही, बस हाथ से ट्रे नहीं छूटी,



" दीदी, आप "

और क्या चमक आयी श्रेया की आँख में

" कोमलिया तू, " और क्या गले मिली दोनों जैसे मेले में बिछ्ड़ी बहने हों। फिल्म होती तो डेढ़ मिनट तक सीन चलता और पीछे इमोशनल म्यूजिक

और फिर आग्नेय नेत्रों से मुझे देखा जैसे किसी इंफिल्ट्रेटर को पकड़ के टार्चर कर रही हो ,

" तो तू ले उड़ा मेरी छोटी बहन को तुझे तो मैं,…” और फिर, मेरी छोटी बहन का मर्द है तो तुझे, तूने कोई इसका घर का नाम रखा है की नहीं, ? "



और उधर से जवाब मिल गया, " मैंने नहीं इनकी सासू जी ने रखा है बड़ा प्यारा नाम है आप भी उसी नाम से बुलाना, और वो नाम बता दिया गया।

मुझे लगा की अक्सर तो मैं हाथ मिलाता था और थोड़ा फोकस भी चेंज हो जाएगा तो मैंने हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया, कि पीछे से जोर कि डांट पड़ी,

" कुछ शर्म लिहाज है कि नहीं, मेरी दीदी है, बड़ी दीदी, पैर छू पैर, झुक के सर लगा के, "

और श्रेया ने अपने पैर आगे भी बढ़ा दिए।

चलिए वो किस्सा और बहुत सी बातें जिसकी सहेली हैं बड़ी दीदी हैं वो बताएंगी अभी तो वापस मीटिंग में।



और पता चला कि असली मीटिंग तो अब शुरू होने वाली थी।

ढेर सारे नक़्शे टेबल पर खोल के बिछाये गए। ये उन बिल्डिंग के नक्शे थे जो उस डबल फेन्स के अंदर टाइट सिक्योरिटी में बन रही थीं, देखने से कुछ लैब्स ऐसी कुछ आफिस ऐसी लग रही थीं और पूरा इलाका तीन भागों में था एक हिस्से में रेजीडेंसीएल क्वाटरटस और बाकी एंसिलरी फैसलिटी थीं, एक सबसे बाहरी पार्ट में सिक्योरटी और कंट्रोल रूम था, जो मुख्य भाग था वो एकदम केंद्र में था।

थ्रेट परसेप्सन

अब बात एन टी आर ओ वाले सज्जन ने शुरू कि थ्रेट परसेप्सन- साउंड सिक्योरटी, सिग्नल और एयर।

कुछ बाते मैंने भी शेयर की,

तय हुआ की दीवालों में स्टोन वूल और ग्लास वूल अंदर दो लेयर कम से कम हों परफेक्ट साउंड और वर्क काम्प्लेक्स के चारो और जो दीवाल हो उसमें भी मल्टीपल लेयर साउंड प्रूफिंग की हो, और अब बात इलेक्ट्रॉनिक्स वारफेयर और काउंटर मेजर की शुरू हुयी तो हेजल मैदान में आ गयी।

लीनियर फ्रीकवेंसी मॉडुलेशन, हॉपिंग और न जाने क्या लेकिन सबसे बड़ी बात जो मेरी समझ में आयी वो ये थी की जो सिग्नल हमारे सिंग्नल कैप्चर करेंगे उनपर पिग्गीबैंक कर के हम उन के सोर्सेज तक कैसे पहुँच सकते हैं और उसे कैसे न्यूटलाइज कर सकते हैं।

एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन के बारे में जो जो क्रिप्टोलिएजिस्ट ने कहा वह सब मान लिया गया।

एक बात मैंने भी कही, जो मान भी ली गयी।

पहले था की वर्क एरिया में सी सी टीवी जो मैंने मना किया , कोई भी सी सी टीवी होगा उसकी फीड होगी तो उसे हैक किया जा सकता है और कम्प्यूटर भी नेटवर्क न हों, और हों भी तो लोकल एरिया नेटवर्क जिसे प्रोटेक्ट करना आसान हो, उस एरिया में वैसे भी स्मार्ट फोन मना था, बल्कि इनर फेन्स के अंदर ही मना था, हम लोगों के फोन आउटर फेन्स पर ही रखवा लिए गए थे।
अब एक सवाल आया एरियल सर्वेलेंस का सेटलाइट और ड्रोन,

एंटी ड्रोन मेजर्स तो आउटर फेन्स पर ही लगाने होंगे आई बी वाले सज्जन ने फैसला सुना दिया लेकिन सेटलाइट से यहाँ इतनी हेक्टिक एक्टिविटी दिखेगी और पुरानी इमेजरी गूगल अर्थ की डिटेल्ड इमेज से कम्पेयर करने पर पता चलेगा,

एन टी आर ओ वाले ने थोड़ा सा हल तो निकाला उन लोगों ने ड्रोन से और सेटलाइट से इस इलाके का एक डिटेल्ड मैप बनाया था क्या उसी तरह का एक होलोग्राफिक इमेज बना के सैटलाइट्स को कुछ कन्फ्यूज किया जा सकता है। ये काम उनके और हेजेल के ऊपर छोड़ा गया और पांच दिन का टारगेट तय हुआ।

लेकिन सबसे बड़ी बात मेरा एक काम होगया।

एक सिक्योर कम्युनिकेशन सेंटर, मैंने जो अमेरिकन कौंसुलेट में कम्युनिएकशन सेंटर देखा था जिसे कैसे भी हैक नहीं किया जा सकता था मैंने उसे डिस्क्राइब करना शुरू ही किया था की हैजेल ने टोक दिया

" अमेरिकन एम्बेसी के सेंटर की तरह, लेकिन उसके काउंटर मेजर्स यहाँ नहीं मिलेंगे मैं स्टेटस से तीन चार दिन में भिजवाती हूँ , और उसमें एक इम्प्रूवमेंट हैं स्क्रैम्ब्लर के कोड हर बारह घंटे में रैंडमली चेंज होते हैं इसलिए उसे डिकोड करना मुश्किल है।



जो क्रिप्टोलैजिस्ट थे उन्होंने कुछ और चेंज सजेस्ट किया और तय हुआ की फिजिकल स्ट्रक्चर तीन दिन में बन जाएगा और अगले दिन में कम्युनिकेशन डिवाइसेज लग जायेगीं और छह दिन बाद उसी सेंटर में मीटिंग होगी, जिसमें मीटिंग रूम, आफिस, एक दो स्यूट और कामयियनिकेशन सेंटर होग।



अगली मीटिंग कस्ट्रक्शन कांट्रेक्टर्स से थी जिसमे मेरी जरूरत नहीं थी।

श्रेया और प्रोजेक्ट सिक्योरिटी
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वहां से निकल कर मैं श्रेया के आफिस में गया और कुछ बात के बाद वापस आफिस तब तक आधा दिन ख़तम हो गया था।अब वह यूनिफॉर्म से शिफ्ट होकर , शर्ट और जींस में आ गयी थी पर शर्ट अभी भी टाइट थी और वो उसी तरह, हॉट

श्रेया के पास मैं थोड़े देर ही बैठा।

एक तो उन्हें वार्न करना था मेरे नंबर पे फोन न करे। मेरे बिना बताये वो समझ गयी की मेरा फोन कम्प्रोमाइज्ड है, जो नान हैकेबल नान स्मार्ट फोन था, वो श्रेया ने कहा की मैं रख सकता हूँ, लेकिन घर से फोन करने पर रेडिएशन तो जेनरेट होता ही इसलिए इसका इस्तेमाल भी किसी खुले मैदान में या एकदम भीड़ भरी जगह पर ही हो सकता थ। लेकिन अगर श्रेया को कुछ अर्जेन्ट मेसेज करना हो तो कैसे होगा।

इसका रास्ता भी श्रेया ने ही निकाला। मिसेज डी मेलो के मेसेज मुझे आते रहते थे। बस ये तय हुआ की वो मिसेज डी मेलो का सिम क्लोन कर लेंगी और मुझे मेसेज देंगी लेकिन सेकेण्ड वर्ड की स्पेलिंग गलत होगी और फिर मुझे आधे घंटे के अंदर मौका ढूंढ के उस नान हैकेबल फोन से श्रेया से बात करनी होगी।

दूसरा जो डाटा आफिस के लोगों का या और कुछ श्रेया को देना होगा, वो बजाय मेल या इलेक्ट्रॉनिकली मैं या तो खुद या मिसेज डी मेलो के जरिये उन तक फिजिकली भेजूंगा, आउटर फेन्स पर मिसेज डी मेलो की भी आई डी होगी और श्रेया खुद वहां आके वो डॉक्युमेंट्स ले लेगी।

आज शाम को या कल सुबह तक आफिस के सभी लोगों के डाटा मैं श्रेया को भेज दूंगा जिसे वो आई बी को भेज के इंटरनल जांच करवा लेंगीं।



आफिस में पहुँच के मैंने सबसे पहले अपना कीट खोजक यंत्र निकाला और वो जैसे पागल हो गया।

मेरे चैंबर में तो ६ कीड़े निकले ही मेरा डेस्कटॉप भी कीटग्रस्त था, और सबसे बड़ी बात उसका कैमरा ऑन था यानी मेरे कमरे का सब दृश्य ज्यूँ का त्यूं, मिसेज डी मेलो के कमरे में भी २ कीड़े थे।

गनीमत थी की रिसेप्शन एरिया ठीक था और मैंने वहीँ मिसेज डी मेलो को बुला के सब बातें समझायीं और ये भी की हम नार्मल बिहैव करेंगे लेकिन अगर कोई ऐसी बात हो जिसे कीड़े न सुने तो वो मुझे इशारा करेंगी और मैं वाश रूम में पांच मिनट रुक के आऊंगा,

और वो भी वहीँ, वहां बहुत शार्ट में वो मेसेज दे देंगी। प्रिफ्रेब्ली लिख के, लेकिन क्राइसिस या अर्जेन्ट मेसेज के लिए वो इशारा क्या करें जिसे कैमरा देख के भी शक न करे,

मिसेज डी मेलो मुस्करायीं और एक जोर का फ्लाईंग किस मुझे उछाल दिया। मान गया मैं, इसे कोई भी कैमरा अर्जेन्ट मेसेज का सिग्नल नहीं मान सकता था हां जवाब में मुझे भी फ़्लाइंग किस देना पड़ता।

फिर मैंने कम्प्यूटर पे रोज का काम धाम शुरू किया। ४-५ दिन में इतना काम इकठ्ठा हो गया था। मैं और मिसेज डिमेलो लगे रहे तब जाकर सवा सात बजे काम ख़तम हुआ.



मैं दिन भर की बातों के बारे में सोचता रहा, कुछ समझ में आ रहा था कुछ नहीं।

लेकिन अब मैं सीख गया था एक तो नीड टू नो और दूसरा क्राइसिस एन्टिसिपेट नहीं की जा सकती लेकिन उसके लिए तैयार रहा जा सकता है।

श्रेया मुझे बहुत समझदार लगी, एक प्रपोजल जो मैंने दिया था, बोलने के बाद मुझे लगा था की शायद श्रेया को कुछ अटपटा सा लगे, लेकिन सबसे जबरदस्त समर्थन उसी का मिला।


मुद्दा था वर्क प्लेस में घुसने और निकलने की चेकिंग का क्योंकि मैंने कहा था वहां सी सी टीवी लगे होने से उसके हैक होने का खतरा रहेगा, इसलिए ज्यादा से ज्यादा लैन प्रोवाइड किया जा।


साइबर एक्सपर्ट्स ने वैसे भी कहा था की सारे कम्प्यूटर केबल कंक्रीट में कम से कम ४ फिट नीचे दबे रहेंगे, और वैसे तो कोई भी स्टोरेज डिवाइस अंदर ले जाना या बाहर ले आना परमिटेड नहीं था लेकिन चेक। वो भी मैंने सजेस्ट किया की एक चैंबर हो स्टीम बाथ का जिसमें सब कपडे उतार के हर आदमी औरत जो भी वर्क एरिया में जाए, चाहे हम लोग ही क्यों न हो उसे पांच मिनट स्टीम बाथ आते जाते लेना पड़े, और वो पूरी तरह कैमरे से कवर हो साथ ही कम्प्लीट बॉडी स्कैनर भी हो , स्टीम बाथ के बाद उसे सैन्टाइज्ड चेक्ड कपडे पहनने को दिए जाए और उसके कपडे वो अपने लाकर में रख सकता है।

बोलने के बाद मुझे लगा की श्रेया को भी तो उस एरिया में सिक्योरटी चेक के लिए जाना होगा तो उसे भी, लेकिन मैं कुछ करेक्शन जारी करता उसके पहले ही वो बोल पड़ी,
एकदम अच्छा आइडिया है कम से कम बॉडी कैविटी सर्च से तो बचत होगी और वो खतरा तो हमेशा है की कोई स्टोरेज डिवाइस छुपा के ले जा सकता है और नो ऑर्नामेंट्स नो वॉचेस। हाँ और वो सबसे इम्पोर्टेन्ट चेक होगा तो मैं खुद उसे चेक करती रहूंगी, उसे मेरे फोन से कनेक्ट करने में तो कोई ऐतराज नहीं होगा।

और अब वो हलके से मेरी ओर देख के मुस्करायी ।

बाद में भी वो बहुत फ्रेंडली और कोआपरेटिव थी, वो तो मुझे आफिस लौटना था और मुझे मालूम था की इतने दिन का काम वेट कर रहा है तो मैं जल्दी से कट लिया।

चलते चलते
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आफिस से निकलते हुए मैंने एक महत्वपूर्ण फैसला किया, मैं घर पैदल जाऊँगा।

वैसे तो रोज घर पहुँचने की जल्दी रहती थी और कम्पनी की कार पिक अप और ड्राप करती ही थी, पर आज दो बातें थीं। एक तो मुझे लगा की कंपनी की कार में भी जरूर डालने वाले ने कीड़े डाल दिए होंगे और मैं सारे रस्ते कांशस रहूँगा, दूसरे आज वही तीज को लेकर एक कोई लम्बी मीटिंग चल रही थी क्लब में लेडीज क्लब की, तो घर पर कोई इन्तजार भी नहीं कर रहा था।

लेकिन दो बातें और थी पैदल चलने की, एक तो मैं चलते हुए सोच ज्यादा पाता था, और ख़ास तौर से जब अकेले रहूं और दूसरे उसी बहाने, आफिस से टाउनशिप और अपने घर तक मैं ये भी देखना चाहता था की पिछले तीन चार दिनों से कोई नयी एक्टिविटी तो नहीं चालू हुयी, जैसे हम लोगो के घर के पास वो गाजर के ठेले वाला खड़ा हो गया या फ़ो फ़ूड ट्रक लग गयी तो कहीं आफिस के आस पास या रस्ते में भी इस तरह की को नयी दूकान तो नहीं लग गयी।

मौसम भी अच्छा था और पैदल का भी रास्ता १०-१२ मिनट से ज्यादा का नहीं था।

मेरे दिमाग में बार बार इस नए प्रोजेक्ट की बात घूम रही थी, इतना टॉप सीक्रेट प्रॉजेक्ट, जिसमे आई बी के एक टॉप बॉस खुद सिक्योरिटी हैंडल कर रहे हो और, मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हम लोगो के प्रोजेक्ट का इससे क्या जुड़ाव था, और आखिर क्यों मुझे ऑर्डिनेट करने का काम मिला,



पहले तो ' नीड टू नो ' वाली बात सोच के मैंने अपने को मना किया कुछ भी सोचने से, लेकिन मन मानता कहाँ है। हाँ मैं इस प्रॉजेक्ट के बारे में

कहीं बात नहीं कर सकता था ये तो एकदम साफ़ था,

अचानक कुछ बादल छंटे , और मेरी समझ में एक बात तो आ गयी, दिल्ली में दिल्ली जिमखाना और गोल्फ क्लब से लेकर झंडेवालन में जिन लोगों से मैं मिला था, जो सत्ता के गलियारों के असली ताकत के स्त्रोत थे, वो बाकी बातों के साथ मेरी भी वेटिंग कर रहे थे, जांच पड़ताल परख कर रहे थे और उन्हें मैं ठीक लगा होऊंगा तभी उन्होंने ग्रीन सिग्नल दिया होगा मेरे नाम के लिए, कोऑर्डिनेट करने के लिए और इस प्रॉजेक्ट का हिस्सा बनाने के लिए।

अगले दिन बंबई में जो बमचक मची, और फिर सुबह सुबह एयरपोर्ट पर मुलाक़ात जिसमे मुझे वो कीड़ा पकडक यंत्र मिला और मेरे सर्वेलेंस के बारे में रिपोर्ट मिली वो भी अब मुझे लग रहा था की उसी जांच पड़ताल का हिस्सा था और उन लोगो को लग गया था की मैं कामोनी और जो सरकार का स्ट्रेटजी ग्रुप होगा उस के बीच में पुल का काम कर सकता हूँ।

लेकिन कई बार जैसे एक सवाल सुलझने के कगार पर पहुंचता है कई और सवाल मुंह बा कर खड़े हो जाते हैं, और एक सवाल कौंधने लगा

पिछले दिनों जो कुछ हुआ, हमारी कम्पनी को कब्ज़ा करने की कोशिश, बाल बाल हमारा बचना, सरकार का पीछे से ही सही फाएंसियल इंस्टीट्यूशन की ओर से सहयता देना, कुछ तो है ये सब एक संयोग तो नहीं होगा और फिर ये सुपर सीक्रेट प्रोजेट।

और मुझे कुछ कुछ याद आया, कुछ उड़ती उड़ती सुनी थी, की हमारी पैरेंट कम्पनी कोई कटिंग एज टेक्नोलॉजी पे काम कर रही है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी शायद एक कदम आगे हो, और वो ए आई के साथ बिग डाटा, क्वाण्टम कम्प्यूटिंग सब का इस्तेमाल कर रही है। उस के बाद कंप्यूटर शायद पुरानी बातें हो जाये, और उस के डिफेन्स में भी इस्तेमाल हो सकते हैं, हर नयी टेक्नोलॉजी की तरह।



और फिर मुझे दूसरी बात याद आयी, गवर्नमेंट की एक परेशानी ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी को लेकर, लेटेस्ट प्रॉडक्ट हर कंपनी बेचना चाहती है लेकिन ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी के नाम पर वो बिदक जाते हैं, और होता भी है तो आधा तीहा। सोर्स कोड कंपनी कभी नहीं देती और न ही सर्वर यहाँ लगाती है। और मैंने अपनी कम्पनी की ओर से सर्वर फ़ार्म की भी पेशकश की थी।



फिर हमारी कम्पनी भी, इंडस्ट्रियल जासूसी से घिरी है, उसे भी कहीं अपनी उस कटिंग एज टेक्नोलॉजी को जांचना पड़ेगा तो कहीं



और अब मुझे कुछ मामला समझ में आया, हो सकता है बल्कि यही है, अभी हम लोगो की फाएंसियल स्थिति डांवाडोल है तब भी एक्वायर करने वाले ने इतना घाटा सहकर एक्वायर करने की कोशिश की, क्योंकि उसे मालूम था की टेक्नोलॉजी में ब्रेकथ्रू होने वाला है और वह बिना रइस्सर्च पर पैसा खर्च किये उसे एक्वायर कर लेता। लग रहा था सरकार यह नहीं चाहती थी और उन्होंने परदे के पीछे से हम लोगो का साथ दिया। एक्वायर होने के बाद ये टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट खटाई में पड़ जाता

और हो सकता है वो टेक्नोलॉजी, और ये प्रॉजेक्ट कहीं न कहीं हो सकताहै जुड़े हो और जो मेरे ऊपर शक की सुई घूमी है वो भी शायद इसलिए

अब मैं टाउनशिप के बीच में पहुंच गया था, जहाँ से एक पतली सी सड़क गीता के घर की ओर टाउनशिप की बाहरी पर्धित पर जात्ती थी और मेन रोड कालोनी में

और मैंने अब तक की सब बातें झटक दी और अपने से बोला, " सोचो, तुझे क्या करना है "

और वो जवाब सामने था, दूर गाजर का ठेला दिख रहा था।

बार बार मुझे यही कहा जाता है की वर्तमान में जीयो, लिव इन द मोमेंट। डूएबल क्या है और ये शीशे की तरह साफ़ था, दिख रहा था,

सर्वेलेंस,



उसे होने भी देना है और उससे बचना भी है।


होने देना इसलिए जरूरी है की उसी के धागे को पकड़ कर हम पहुँच सकते हैं की नेपथ्य में कौन है , और जितना ज्यादा सर्वेलेंस होगा उतना ही पकड़ना आसान भी होगा। दूसरी बात है की मुझे यह पता है की उन्हें क्या पता करना है, अगर उन्हें शक है की मैं ठरकी हूँ, मेरे घर में सभी, तो बस मुझे उनके इस शक को सही सिद्ध करना होगा। आठ दस दिन के सर्वेलेंस के बाद जब उनके आकाओ को विश्वास हो जाएगा की मुझसे कोई खतरा नहीं है तो ये बंद हो जाएगा और उसका सबसे बड़ा सबूत होगा की वो ठेला और फ़ूड ट्रक हट जाएंगे।

और बचना इसलिए है की किसी भी हाल में इस प्रोजेक्ट की या हमारे काउंटर ऑफेंसिव के बारे में उन्हें नहीं मालूम होना चाहिए। लेकिन कई बार हो सकता है मुझे कांटेक्ट करना पड़े तो उस का कोई रास्ता ढूंढना होगा। पर अभी कुछ दिन तो उसकी जल्दी नहीं लग रही थी

सोचते सोचते घर आ गया था,
इस नवीनतम अध्याय में आप ने एक ऐसी कथा को आगे बढ़ाया है जो सरकारी गोपनीयता, औद्योगिक जासूसी और व्यक्तिगत सतर्कता के बीच की पेचीदगियों को बखूबी उकेरती है.. कहानी का केंद्रीय पात्र, जो पहले से ही एक उलझे हुए जासूसी नेटवर्क में फंसा हुआ है, अब एक और गहरी साजिश के दलदल में उतरता दिखाई देता है..

टाउनशिप में बन रहे नए सुरक्षित परिसर का वर्णन करते हुए आप ने एक ऐसी दुनिया रची है जहाँ हर कदम पर निगरानी है.. ऊँची बाड़, इलेक्ट्रिफाइड फेंसिंग, ऑटोमेटिक पिलर्स, और सीआईएसएफ की मौजूदगी, ये सभी तत्व एक ऐसे प्रोजेक्ट की ओर इशारा करते हैं जो सामान्य नहीं है.. यहाँ तक कि प्रवेश करने के लिए कई स्तरों की जाँच से गुजरना पड़ता है, जो पढ़ने वालों को भी इस बात का अहसास दिलाता है कि यह कोई साधारण सरकारी योजना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा कोई गोपनीय मिशन है..

श्रेया रेड्डी का चरित्र इस अध्याय में विशेष रूप से उभरकर आया है.. एक सख्त, योग्य और आकर्षक सीआईएसएफ कमांडेंट के रूप में उनकी मौजूदगी, कहानी में एक नया आयाम तो जोड़ती ही है, साथ ही नायक के साथ उनके पुराने रिश्ते की झलक भी दिखाती है.. उनकी टीकाऊ और सतर्क छवि इस बात का संकेत देती है कि यह प्रोजेक्ट कितना महत्वपूर्ण है..

मीटिंग के दृश्य में विभिन्न सरकारी एजेंसियों, आईबी, एनटीआरओ, सीआईएसएफ, के प्रतिनिधियों का आना एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि यह कोई सामान्य व्यावसायिक परियोजना नहीं है.. खासकर, आईबी के वरिष्ठ अधिकारी का चरित्र, जो स्पष्ट रूप से इस मिशन का नेतृत्व कर रहा है, यह दर्शाता है कि यहाँ दांव पर कुछ बहुत बड़ा है..

विदेशी महिला एथल का परिचय भी रहस्यमय है.. क्या वह वास्तव में कंपनी के साथ जुड़ी हुई है, या कोई और भूमिका निभा रही है? यह प्रश्न वाचक के मन में उठता है और कहानी को और भी दिलचस्प बनाता है..

नायक का मन इस बात से आहत है कि उसे इस प्रोजेक्ट में क्यों शामिल किया गया.. क्या यह महज एक संयोग है, या उसकी कंपनी की कटिंग-एज टेक्नोलॉजी इससे जुड़ी हुई है? उसके द्वारा पहले की गई सरकार को सर्वर फार्म की पेशकश, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की समस्याएँ, और कंपनी पर हुए हमले, ये सभी तत्व एक बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करते हैं..

लेकिन सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि नायक जानता है कि उस पर नजर रखी जा रही है, और वह इस निगरानी को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है.. उसका यह द्वंद्व, एक ओर सतर्क रहना, दूसरी ओर सामान्य दिखना, कहानी को गहराई देता है..

इस अध्याय के अंत में, नायक का गाजर के ठेले को देखना एक बार फिर इस बात की याद दिलाता है कि उसकी हर गतिविधि पर नजर है.. लेकिन वह इस निगरानी को चुनौती देने के बजाय, इसे अपने लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति बना रहा है..

कुल मिलाकर, यह अध्याय जासूसी, तकनीकी रहस्यों और मनोवैज्ञानिक द्वंद्व का एक शानदार मिश्रण प्रस्तुत करता है.. अगले भाग की प्रतीक्षा इसलिए और भी ज्यादा बेचैन करने वाली है, क्या नायक इस जटिल जाल में फंसकर रह जाएगा, या वह इसे अपने पक्ष में मोड़ पाएगा?

बहोत ही शानदार..!!
 

komaalrani

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next part soon
 

komaalrani

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फोरम में हुयी उठापटक ने पाठकों और लेखकों दोनों को प्रभावित किया लेकिन अब वक्त आ गया है की हम सब धूल झाड़ के खड़े हों और फिर से कहानी कहने सुनने में लग जाएँ

अभी भी बहुत सी वार्निंग फोरम खोलने पे आती हैं और फोरम एडमिन शायद फोरम को जल्द ही और सुगम्य बनाएं।

मैं अपनी ओर से कोशिश करुँगी की अपनी तीनो कहानियों पर नियमित अपडेट अगले हफ्ते से शुरू कर दूँ। रुकी हुयी कहानी किसी को भी अच्छी नहीं लगती।
 

Sutradhar

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फोरम में हुयी उठापटक ने पाठकों और लेखकों दोनों को प्रभावित किया लेकिन अब वक्त आ गया है की हम सब धूल झाड़ के खड़े हों और फिर से कहानी कहने सुनने में लग जाएँ

अभी भी बहुत सी वार्निंग फोरम खोलने पे आती हैं और फोरम एडमिन शायद फोरम को जल्द ही और सुगम्य बनाएं।

मैं अपनी ओर से कोशिश करुँगी की अपनी तीनो कहानियों पर नियमित अपडेट अगले हफ्ते से शुरू कर दूँ। रुकी हुयी कहानी किसी को भी अच्छी नहीं लगती।

रुकी हुई कहानियां ???

जै बात !!!

कोमल मैम, आप धन्य हो।

पाठकों के मन की बात आप कैसे जान जाती हो ??

पाठकों के मन में रहती हो, शायद इसीलिये।

अब बहुत इंतजार हो गया, जल्दी से सभी कहानियों पर अपडेट, दे ही दीजिए।


सादर
 
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