अंकित और उसकी मां बाजार के लिए निकल गए थे,,, घर पर वापस आने पर सुगंधा को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी कि उसके पीठ पीछे घर पर क्या हुआ था उसे नहीं मालूम था कि सीधा-साधा दिखने वाला उसका बेटा दूसरी औरतों के साथ कितना बेशरम बन चुका था,,, सुमन की मां सुगंधा के घर पर आने से पहले कभी सोचा ही नहीं थी कि उसके घर पर आने पर उसे इतना अदभुत सुख प्राप्त होगा इसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी उसे नहीं मालूम था कि सीधा-साधा ऐसा दिखाने वाला अंकित पूरी तरह से मर्द बन चुका है,,, अगर इस बात की खबर सुगंधा हो जाए तो शायद इसी समय वाहन बाजार न जाकर अपने बेटे का हाथ पकड़ कर उसे वापस अपने घर पर ले आए और उसके साथ अपने बरसों की दबी हुई प्यास को अपनी प्यासी बंजर जमीन को हरी भरी कर ले,,, लेकिन वह जानती नहीं थी कि उसका बेटा इतना ज्यादा चालाक हो चुका है और ज्यादा नहीं केवल पांच छः दिनों में ही,,, और उसे एक सीधा-साधा लड़का से मर्द बनने वाली कोई और नहीं बल्कि सुगंधा की ही मां थी।
रास्ते भर अंकित भी इस बात से हैरान था की दूसरी औरतों के साथ वह इतना खुल कैसे जाता है जबकि उसकी मां इतना इशारा करके उसे अपने पास बुलाने की कोशिश करती है उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करती है लेकिन वहां हिम्मत नहीं दिखा पाता और अपनी मां के साथ हम बिस्तर नहीं हो पाता,,, वह अपनी मन में यही सोच रहा था कि सुषमा आंटी के साथ जो कुछ भी उसने किया और बेहद काबिले तारीफ था उसकी हिम्मत इतनी बढ़ चुकी थी जिसका अंदाजा उसे खुद नहीं था और इसी बात से वह हैरान था अगर थोड़ी हिम्मत दिखा दे तो शायद दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत उसकी बिस्तर पर होगी लेकिन इतनी हिम्मत दिखाने में न जाने कैसा डर उसके ईर्द गिर्द मंडराने लगता है कि वह आगे बढ़ने से अपने आप को रोक देता है,,, वह अपने मन में यही सोच रहा था कि अगर सुषमा आंटी उसकी हरकत पर एतराज जता देती तब क्या होता अगर उसकी हरकत सुषमा आंटी को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती और इस बारे में उसकी मां को बता देती तब क्या होता,,,,, अपने मन में उठ रही सवाल का जवाब खुद अपने आप से ही देते हुए वह बोला कि भला ऐसे कैसे हो सकता है,,, अगर सुषमा आंटी को जरा भी ऐतराज होता तो जैसे ही उसकी कमर से टॉवल छुट कर नीचे गिरी थी तभी वह शर्म के मारे अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा देती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था बल्कि बटन प्यासी नजरों से उसकी दोनों टांगों के बीच खड़े हथियार को देख रही थी और वह भी प्यासी नजरों से सुषमा आंटी की नजर में बिल्कुल भी शर्म और मर्यादा नजर नहीं आ रही थी,,,,, और वह काफी देर तक उसके लंड को ही घर रही थी और शायद उसके लंड की मोटाई और लंबाई उन्हें पूरी तरह से मजबूर कर गई थी उसे अपने हाथ में पकड़ने के लिए तभी तो अपना हाथ आगे बढ़कर बेशर्मी की सारी हद पार करते हुए उसे ज़ोर से पकड़ ली थी और यही तो इशारा था जो वह शब्दों में ना कह सकी थी अपने एक हरकत से बता दी थी कि उन्हें क्या चाहिए,,,,।

अगर मान लो कि यह सब भी सिर्फ भावनाओं में बहकर हुआ था तो,,, तब भी वह अपने आप को पूरी तरह से होश में लाकर अपनी मर्यादा की लाज रख सकती थी जब वह उसकी हरकत पर उसे अपनी बाहों में भर लिया था उसके होठों पर अपने होंठ रख दिया था। और अगर वह तब भी अपने आप को इन सबसे अलग करना चाह रही होती तो अलग कर चुकी होती लेकिन शायद यह सब सोने के बावजूद भी उन्हें मौका ना मिला हो क्योंकि उसकी अगली हरकत पूरी तरह से किसी भी औरत को बेहोश कर सकती थी मर्यादा की दीवार तोड़ने के लिए अपने संस्कारों को एक तरफ रखकर मदहोशी में डूब जाने के लिए जब वह साड़ी उठाकर उसकी बुर पर अपनी हथेली रखकर उसे रगड़ना शुरू कर दिया था तभी सुषमा आंटी एकदम बेहाल हो चुकी थी,,,, इन सबके बावजूद भी एक संस्कारी और मर्यादा वाली औरत अपने आप को अपने मान मर्यादा को बचाने के लिए अपने आप को इन सब से रोक सकती थी लेकिन वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं की क्योंकि वह भी यही चाहती थी शायद वह भी पति से संतुष्टि और प्यार नहीं प्राप्त कर पा रही थी या उनके पति उन्हें वर्षों कब नहीं दे पा रहा था जैसा जवानी के दिनों में दिया करता था इसीलिए वह भावना में पूरी तरह से बह गई थी और अपने ही बेटे की उम्र के लड़के के साथ सारी संबंध बनाकर अपने आप को संतुष्ट कर गई थी। यह सब सो कर अंकित के चेहरे पर प्रसन्नता और संतुष्टि का भाव साफ नजर आ रहा था उसे अपने लंड पर गर्व होने लगा था,,, क्योंकि उसके लंड ने एक उम्र दराज औरत की जमकर चुदाई करके उसे संतुष्टि का एहसास कराया था और दूसरी अपनी ही मां के हम उम्र औरत के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उसे भी पूरी तरह से संतुष्ट कर दिया था।

अंकित बहुत खुश था जी सुख के लिए वह तड़पता था मचलता था सपना देखा था और अपने मन में कल्पनाए किया करता था कल्पनाओं में अपनी मां का साथ पाकर अपने हाथ से ही अपनी जवानी की गर्मी शांत किया करता था अब वह दिन आ गया था जब वह एक औरत के साथ शारीरिक संबंध बनाकर अपनी जवानी की गर्मी को शांत कर रहा था । कल्पनाओं की दुनिया से वह पूरी तरह से बाहर आ चुका था अब हकीकत से उसका सामना हो रहा था कल्पनाओं से अत्यधिक आनंद उसे हकीकत में आ रहा था। कल्पनाओं में जिस अंग के बारे में सोच सोच कर वह मदहोश हुआ करता था वह अंग वह अपनी आंखों से देखकर उसे छूकर उसे मसल कर उस गुलाबी छेद में अपने मर्दाना अंग को डालकर जिस तरह की रगड़ महसूस करके उसे आनंद आ रहा था वह शायद अपने हाथ से खिलाकर उसे कभी भी प्राप्त नहीं हो रहा था एक कमी रह जाती थी जो धीरे-धीरे पूरी हो रही थी। अंकित तो अपनी मां को चोदना चाहता था अपनी मां की चुदाई करना चाहता था उसके खूबसूरत अंगों से खेलना चाहता था उसे अपने हाथों से नंगी करना चाहता था उसके खूबसूरत अंगों को अपने हाथ में लेकर अपने मुंह में भरकर उनका रस पीना चाहता था लेकिन हम जाने में ही मां की जगह मां की मां और पड़ोस की सूषमा आंटी जवानी का मजा उसे चखा दी थी। लेकिन इन सबके बावजूद भी इसका मुख्य थे अग्रिम लक्ष्य उसकी मां ही थी। वह कीसी भी तरह से संभोग करना चाहता था और इससे पहले दो औरतों के साथ शारीरिक संबंध को वह एक अभ्यास के तौर पर ले रहा था। जैसे वार्षिक परीक्षा के पहले अभ्यास के रूप में परीक्षा होती है और अंतिम परीक्षा ही मुख्य परीक्षा के तौर पर मानी जाती है इस तरह से अभी उसकी अंतिम परीक्षा बाकी थी जिसमें उसे पूरी तरह से खराब उतरना था यह दो परीक्षा तो अभ्यास के तौर पर थे वह देखना चाहता था कि वह अंतिम परीक्षा में संपूर्ण रूप से उत्तीर्ण हो पता है कि नहीं लेकिन आप उसे पूरा विश्वास हो चुका था वह आत्मविश्वास से भर चुका था वह अपने आप से वादा कर चुका था कि जैसे ही अंतिम परीक्षा उसके जीवन में आएगी वह डंके की चोट पर पूरी तरह से अग्रिम स्थान लेते हुए उत्तीर्ण होकर दिखाएगा।

मां बेटे दोनों बाजार पहुंच चुके थे। सुगंधा का दिल जोरो से तड़प रहा था क्योंकि आज वह अपने लिए एक नए वस्त्र का चयन करने जा रही थी जिसे केवल वह फिल्मों में ही देखी थी जिसे पहनकर फिल्म की हीरोइन जॉगिंग वगैरा करती थी आज वही वस्त्र वह अपने लिए खरीदने जा रही थी जिसके लिए वह काफी उत्साहित थी क्योंकि ऐसे वस्त्र को पहनकर वह देखना चाहती थी कि वह उन वस्त्रो में कैसी लगती है और उन वस्त्र में वह अपने आपको कैसा महसूस करती है। बाजार में पहुंचकर दोनों एक बड़ी सी दुकान में जाने लगे जिसका चयन खुद अंकित नहीं किया था और जानता था कैसी दुकानों पर इस तरह के वस्त्र बड़े आराम से मिल जाएंगे लेकिन दुकान में प्रवेश करते समय सुगंधा के हाथ पैर सुन्न हो रहे थे। दोनों दुकान में प्रवेश कर चुके थे बड़ी सी दुकान में अलग-अलग काउंटर लगा हुआ था एक तरफ बच्चों के कपड़े तो दूसरी तरफ बड़ों के कपड़े एक तरफ साड़ी का काउंटर लगा हुआ था तो दूसरी तरफ औरतों के अंतरवस्त्र थे,,, जिन पर कुछ पल के लिए सुगंधा की नजर टिक गई थी लेकिन फिर उसे समझ में नहीं आया कि वह जिस तरह कपड़े लेने आई है वह किस काउंटर पर मिलेंगे इसलिए वह अपने बेटे से बोली।

अंकित मुझे समझ में नहीं आ रहा की कुर्ता पजामा मिलेगा कहां मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है तू ही जाकर पूछ,,,।
तुम चिंता मत करो मैं पूछ कर आता हूं,,,,(और अंकित एक ऐसे काउंटर पर गया जहां पर लेडी खड़ी थी वह इन सबके वस्त्रो के बारे में अच्छी तरह से जानकारी रखनी होगी इसका अंदाजा अंकित को हो गया था,,, सुगंधा दुकान के बीच में खड़ी होकर अपने बेटे को भी देख रही थी वह अपने मन में सोच रही थी कि उसका बेटा क्या बोल रहा होगा क्या पूछ रहा होगा तो समझ में नहीं आ रहा है लेकिन थोड़ी देर में वह मुस्कुराता हूं अपनी मां के पास आया और बोला,,,)
चलो उसी काउंटर पर मिल जाएगा,,,,(इतना कहकर मां बेटे दोनों उस काउंटर के पास पहुंच गए,,, सुगंधा की तरफ देखते हैं वह काउंटर वाली लेडी मुस्कुराते हुए बोली)
गुड इवनिंग मैम,,, बताइए मैं आपके लिए किस तरह के वस्त्र दिखा सकती हुं,,,,।(यह बात उसने सुगंधा से बोली थी इसलिए सुगंध पल भर के लिए एकदम से हड़बड़ा गई थी और उसके मुंह से निकला,,,)
ईईई,,, इन्होंने जो बताया ना वही कपड़ा चाहिए,,,,,(सुगंधा के शब्दों में इस तरह के शब्द थे जो औरत बड़ी इज्जत से पेश आने पर बोलती है और ऐसे मर्द के लिए प्रयोग करती है जो उसका बहुत खास हो उसका प्रेमी या पति हो इसलिए सुगंधा के इन शब्दों को सुनकर वह लेडी मुस्कुराते हुए अंकित की तरफ मुखातिब हुई और बोली,,,)

बताइए सर आपकी मैडम के लिए किस तरह के कपड़े चाहिए,,,,।
(उस काउंटर वाली लाडी की यह बात सुनते ही सुगंधा एकदम से संन्न रह गई,,, वह शर्म से पानी पानी होने लगी और शर्म के मारे वह अंकित की तरफ देखने लगी अंकित समझ गया था कि उसकी मां क्या सोच रही है इसलिए मुस्कुराने लगा और उस काउंटर वाली लेडी से बोला,,)
इन मैडम को कुर्ता और पैजामा चाहिए ताकि उसे पहनकर वह सुबह अच्छी तरह से जॉगिंग कर सकें,,,।
ओहहह यह बात है मैडम अपने आप को फिट रखने का पूरा कोशिश करती है और इसीलिए तो एकदम फिट भी है,,,, मैं समझ गई मैडम आपको क्या चाहिए,,,,।(और इतना कहकर दूसरी तरफ रखे हुए अलग-अलग कपड़ों के बीच चली गई और सुगंध का पूरा हाल था क्योंकि उसके बेटे ने जिस तरह से इन मैडम को कहा था यह शब्द उसके दिलों दिमाग के साथ साथ उसके दोनों टांगों के बीच उसकी बुर पर दस्तक दे रहे थे यह शब्द बहुत कुछ कह जा रहा था, अपने आप में ही यह दो शब्द एक तरह से किसी भी औरत को अपनापन दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है,,,, सुगंधा जो इस समय पूरी तरह से शर्मा से पानी पानी हुए जा रही थी और एक अद्भुत एहसास में डूबती चली जा रही थी इस बात से हैरान भी थी कि उसका बेटा उसे मम्मी कहकर संबोधन क्यों नहीं कर रहा है। और यह काउंटर वाली लेडी भी कुछ और ही समझ रही है,,, यह एहसास होते ही सुगंधा का तन-बदन ऊपर से नीचे तक उत्तेजना से गनगनाने लगा था,,, वह अपने चारों तरफ देख ले रही थी की कहीं कोई पहचान का तो नहीं है लेकिन ऐसा कोई भी शख्स वहां नहीं था जो दोनों को जानता हो,,, सुगंधा बार-बार अपने बेटे की तरफ देख ले रही थी और अंकित खुशी के मारे बहुत प्रसन्न नजर आ रहा था और अपने चारों तरफ नजर दौड़ा कर देख रहा था,,,,।
तभी थोड़ी ही देर में,,, वह काउंटर वाली लेडी पांच छ सेट कुर्ता और पजामा का लेकर आई, और सबको काउंटर पर रखते हुए बोली।
देख लीजिए मैडम एक से एक कुर्ता और पैजामा है और इतना मुलायम और मखमली है कि आपके बदन पर बहुत अच्छा लगेगा,,,,, सर आप भी देख लीजिए आपकी मैडम को कौन सा कलर अच्छा लगेगा,,,,।
इन मैडम पर तो कोई भी कलर खूब जंचता है,, बस मैडम को पसंद करने की देरी है।
(अंकित पूरी तरह से मौके का फायदा उठा रहा था और सुगंधा शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी,,, सुगंधा अपने मन में सोच रही थी कि पता नहीं काउंटर वाली लेडी उन दोनों के बीच कौन से रिश्ते को देख रही है पति पत्नी का या प्रेमी प्रेमिका का होना हो यह प्रेमी प्रेमिका वाला ही जोड़ा अपने मन में वह सोच रही है इसलिए तो बार-बार मैडम और कर कहके प्रयोग कर रही है। उस काउंटर वाली लाडी की बात सुनकर सुगंधा कुर्ते और पजामे को अपने हाथ में लेकर देखने लगी,,,, जितने भी काउंटर पर रखे हुए थे सब एक से बढ़कर एक थे और उनका कपड़ा इतना मखमल जैसा था कि इसी समय सुगंधा का मन उसे पहनने को कर रहा था वह समझ गई थी कि वाकई में इन कपड़ो में उसके बदन को कितना आराम मिलेगा,,,, काउंटर वरी लेडी बार-बार दोनों की तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे अंकित भी मुस्कुरा रहा था लेकिन सुगंधा का हाल बेहाल था वह जल्द से जल्द इस दुकान से बाहर निकल जाना चाहती थी,,, इसलिए एक लाल रंग का कुर्ता और पैजामा बहुत पसंद कर ले और अंकित अपनी मां के द्वारा पसंद किए गए कुर्ते और पजामी को अपने हाथ में ले लिया और कुर्ते को सीधे उसे नापने के लिए उसके गले तक हुआ कपड़ा करके देखने लगा और उसके ऐसा करने पर उसकी उंगलियां उसकी मां की चूचियों और स्पर्श हो गई और चूचियां हल्के से अपने बेटे की उंगली का दबाव महसूस करके दब गई ऐसा लग रहा था जैसे कोई स्पंज स्पर्श हो गया हो इसका एहसास अंकित को भी हुआ था और उसकी मां को भी हुआ था और इस स्पर्श से सुगंधा की बुर में सनसनी से दौड़ने लगी,,,, और इस हरकत को काउंटर वाली लेडी भी देख चुकी थी इसलिए वह मुस्कुराने लगी,,,, और बोली,,,,)
बहुत प्यार है आप दोनों में दिखाई देता है,,,।
(काउंटर वाली लेडी के कहने का मतलब कुछ सुगंधा अच्छी तरह से समझ रही थी,,,,, वह जान गई थी कि जो कुछ भी अभी हुआ था वह उस लेडी की नजरों से बच नहीं पाया था,,, इसलिए मैं कुछ बोल नहीं पाई बस उसे काउंटर वाली लेडी को बुरा ना लगे इसलिए मुस्कुरा दी,,,,)
तो आपको यह पसंद है मैडम।
जी जी,,, मुझे यह पसंदहै,,,।
कुछ और लेना चाहेंगी,,,,
नहीं नहीं बस यही चाहिए था,,,।
सर आप कुछ और दिलाना चाहते हैं,,,(अंकित की तरफ देखते हुए वह काउंटर वाली लेडी बोली और जवाब में अंकित फिर मुस्कुराते हुए बोला)
अगर मैडम चाहेंगी तो जरूर और भी कुछ लेना चाहेंगे,,,।
ले लीजिए मैडम सर भी दिलाने के लिएतैयार है,,,।
नहीं नहीं मुझे और कुछ नहीं चाहिए बस यही चाहिए,,,,।
अगर आप बुरा ना माने तो आपके लिए,,, रुकीए में दिखा देती हूं,,,,,(इतना कहने के साथ है वह काउंटर वाली लेडी फिर से अंदर कहीं और एक पैकेट लेकर आई और उसे काउंटर पर रखकर खोलने लगी,,,, उसे खोलते ही जो वस्त्र उसमें से बाहर निकाला उसे देखकर सुगंधा के होश उड़ गए और अंकित का भी हाल बुरा हो गया वह एक गांव था जो जाऊंगा तक आता था और आगे से बिल्कुल खुला हुआ था बस एक डोरी थी उसे आपस में बांधने के लिए,,, उसे देखकर अंकित समझ गया था कि इसे पहनने के बाद तो उसकी मां स्वर्ग से होती हुई अप्सरा लगेगी,,,, वैसे तो वस्त्र होते हैं बदन को ढकने के लिए लेकिन यह जो गाउन था वह पूरी तरह से अपने खूबसूरत अंगों को दिखाने के लिए उनकी खूबसूरती बढ़ाने के लिए ही था उसे काउंटर वाली लेडिस से हाथ में लेकर सुगंधा को दिखाते हुए बोली,,,,)
यह देखिए मैडम इसे पहनने के बाद तो आप स्वर्ग से उतरी अप्सरा फिल्म की हीरोइन लगेगी सच में यह आप पर बहुत खूबसूरत लगेगा ले लीजिए सर भी खुश हो जाएंगे,,,,
(उस कपड़े का हाल सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी वह जानते थे कि उसे पहनने के बाद वह वाकई में बहुत खूबसूरत लगेगी लेकिन इस समय वह शर्म से पानी पानी में जा रही थी,,,, क्योंकि काउंटर वाली लेडी के व्यवहार से इतना तो समझ में आ गया था कि वाकई में वह काउंटर वाली लेडी उन दोनों को मां बेटा ना समझ कर कुछ और ही समझ रही थी इसलिए इस तरह का वस्त्र दिखा रही थी,,, उसे वस्त्र को देखकर कुछ पल के लिए सुगंधा भी कल्पना करने लगी थी कि वाकई में इसे पहनने के बाद वह बेहद खूबसूरत लगेगी और किसी मर्द को आकर पूरी तरह से अपने बस में करना हो तो यह वस्त्र पूरी तरह से कारगर साबित होगा लेकिन इस समय वह पूरी तरह से डर गई थी घबरा गई थी और शर्म से पानी पानी हो गई थी इस तरह का वस्त्र खरीदने में और वह भी अपने बेटे की आंखों के सामने उसे वाकई में शर्म महसूस हो रही थी भले ही वह काउंटर वाली लेडी उन दोनों को किसी और रूप में देख रही हो लेकिन फिर भी वह तो जानती थी ना कि दोनों के बीच कौन सा रिश्ता है अपने ही बेटे के सामने इस तरह का वस्त्र खरीदने में न जाने क्यों उसे ईस समय शर्म महसूस हो रही थी। इसलिए वह बोली,,,)
नहीं नहीं मुझे नहीं चाहिए,,,, रहने दो मैं जो कपड़ा लेने आई थी वह मुझे मिल गया इसके लिए शुक्रिया,,,,।
क्या सर बोलिए ना,,,,(मायूसी से अंकित की तरफ देखते हुए,,,, उस काउंटर वाली लेडी को देखकर अंकित बोला,,,)
ले लो मैडम इतना कह रही हैं तो तुम पर सही में बहुत अच्छा लगेगा,,,,।
नहीं नहीं मुझे नहीं चाहिए बस इतना पैक कर दो,,,,,।
(सुगंधा का मिजाज देखकर वह काउंटर वाली लेडी समझ चुकी थी कि वह इस कपड़े को नहीं खरीदेंगी,,,,, इसलिए वह वापस उस कपड़े को पैक करने लगी लेकिन सुगंधा की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोली,,,)
वैसे भी मैडम इतनी खूबसूरत है कि इस तरह के कपड़े की जरूरत उन्हें है भी नहीं,,,,,।
(काउंटर वाली लाडी की बात सुनकर सुगंधा मन ही मन प्रसन्न होने लगे क्योंकि वाकई में उसे काउंटर वाली लाडी ने सुगंधा की खूबसूरती की तारीफ की थी,,,,, थोड़ी देर में कुर्ता और पैजामा को पैक करके अंकित के हाथ में थमाते हुए वह लेडी बोली,,,)
जाकर काउंटर पर पैसे चुका दीजिए।
ठीक है और आपकी मदद के लिए धन्यवाद,,,।
वेलकम सर,,, आते रहीएगा मैडम को लेकर,,,
(थोड़ी ही देर में अंकित और उसकी मां काउंटर पर पहुंच कर वहां पर पैसा चुकाने के बाद दोनों दुकान से बाहर निकल गए दुकान के अंदर जो कुछ भी हुआ था उसे देखते हुए अंकित समझ गया था कि उसकी मां उसे डांटेगी या कुछ ऐसा जरुर बोलेगी,,, लेकिन इससे पहले ही दुकान की सीढ़ियां उतरते हुए अंकित एकदम से बोल पड़ा,,,)
देखी मम्मी आपकी खूबसूरती और बदन की बनावट को देखकर कोई समझ ही नहीं पता कि हम दोनों मां बेटे हैं वह काउंटर वाली लेडी भी हम दोनों को मां बेटा नहीं समझ रही थी।
यह तो मैं खूब अच्छे से समझ रही हूं और तू बहुत मजा ले रहा था ना वहां पर,,,,(आंखों को गोल-गोल घूमाते हुए सुगंधा बोली तो उसकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए अंकित बोला,,,)
आप कर भी क्या सकते हैं वह लेडी हम दोनों को मां बेटा नहीं समझ रही थी तो मैं भी सोचा कि चलो जब वह हम दोनों को जानती ही नहीं है तो भला उसे बात कर क्या फायदा कि हम दोनों मां बेटे हैं ना कि प्रेमी प्रेमिका,,,,(अंकित जानबूझकर इस शब्द का प्रयोग किया था और इस शब्द को सुनकर सुगंध भी हैरान हो गई थी और उसकी तरफ देखते हुए बोली)
प्रेमी प्रेमिका,,,,
क्यों हम दोनों लगते नहीं है क्या,,,,?(अंकित भी मजा लेते हुए बोला)
बड़ा बेशर्म हो गया है तू,,,,।
नहीं ऐसी बात नहीं है वह तो हम दोनों को कोई जानता नहीं था इसलिए सोचा चलो जैसा वह समझ रही है वैसा ही नाटक किया जाए,,,।
अच्छा जब कोई हम दोनों के रिश्ते के बारे में नहीं समझेगा तो हम दोनों कुछ और बन जाएंगे पति-पत्नी प्रेमी प्रेमिका है ना,,,,(सुगंधा भी एकदम से यह शब्द बोल गई थी लेकिन पति-पत्नी वाली बात पर खुद ही वह शर्म से पानी पानी हो गई और अंकित अपनी मां की बात सुनकर मुस्कुराने लगा था उसकी मुस्कुराहट बहुत कुछ बयां कर रही थी,,, लेकिन यह सब बातें सुगंधा की गर्म जवानी थोड़ा-थोड़ा करके पिघला रही थी जिससे उसकी पेंटि गीली हो रही थी। और उसे बड़े जोरों की पैसाब भी लगी हुई थी लेकिन यहां कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां पर वह बैठकर पेशाब कर सके।
शाम ढलने लगी थी समय भी थोड़ा ज्यादा हो रहा था इसलिएवह बोली,,,।
आज कुछ नाश्ता खरीद लेते हैं घर पर खाना नहीं बनाऊंगी काफी देर हो गई है,,, अंधेरा हो रहा है घर पहुंचते पहुंचते और देर हो जाएगी।
ठीक है कुछ खरीद लो,,,,।
पहले तो मुझे पानी पुरी खाना है,,, तू भी खाएगा,,,,।
नहीं नहीं मैं नहीं खाऊंगा तुम खा लो,,,।
चल तू भी खा लेना,,,,।
नहीं मेरे लिए समोसे और जलेबी ले लेना,,,,।
वह तो लेना ही है लेकिन पहले पानी पुरी तो खा ले,,,,।
नहीं,,,, मुझे नहीं पसंद है जानती हो ना जब मैं खाता हूं तो आंख से पानी गिरने लगता है,,,।
चल कोई बात नहीं मैं ही खा लेती हूं,,,,।
(, इतना कहकर वह सड़क के किनारे पर लगे पानी पुरी के ठेले पर पहुंच गई पीछे-पीछे अंकित भी वही पहुंच गया और पानी पुरी खाने लगी लेकिन पानी पुरी खाने से पहले वह अपने हाथ से अपने आगे की साड़ी को दोनों टांगों के बीच फंसा कर आगे की तरफ झुक कर पानी पुरी मुंह में डालकर खाने लगी क्योंकि पानी पुरी का पानी साड़ी पर गिरने का डर रहता है इसलिए अपनी साड़ी को बचाने के लिए वह थोड़ा सा आगे की तरफ झुक गई थी और उसकी इस अदा पर उसके ब्लाउज से झांकते हुए उसके दोनों जवानी एकदम से उजागर हो गई थी,,, आगे से दोनों चुचीया और पीछे से गोलाकार गांड कुल मिलाकर मर्दों को बेहाल कर रहा था,,,। अंकित अपनी मां की छलकती हुई जवान का रस अपनी आंखों से पी रहा था,,, और यह रस शायद आसपास में खड़े दूसरे मर्द भी पी रहे थे क्योंकि बार-बार उन मर्दों की नजर सुगंधा करी जा रही थी और इस बात का एहसास अंकित को भी हो रहा था लेकिन अंकित को अपनी मां की जवानी पर उसकी खूबसूरती पर गर्व महसूस हो रहा था।
सुगंधा धीरे-धीरे एक-एक करके बड़े चाव से पानी पुरी खा रही थी और उसके स्वाद से निहाल हुए जा रही थी,,,, अंकित अपनी मां की ईस अदा को प्यासी नजरों से देख रहा था और जब पानी पुरी वाले आदमी की तरफ देखा तो उसे एहसास हुआ कि वह आदमी भी,,, उसकी मां की चूचियों की तरफ ही देख रहा है जब जब वह पानी पुरी सुगंधा की तरफ ले जा रहा था तब तक नजर भरकर उसके ब्लाउज से झांकती हुई उसकी दोनों जवानी को देखकर मन मसोस कर रह जा रहा था। इस बात का एहसास होते ही अंकित अपने मन में सोचने लगा कि वाकई में उसकी मां को चोदने के लिए कितने लोग तैयार है अगर इसकी मां भी दूसरी औरतों की तरह होती तो शायद अब तक अपनी बुर में न जाने कितने लंड ले ली होती,,,, और इस बात का गर्व भी अंकित को हो रहा था कि अच्छा हुआ उसकी मां दूसरी औरतों की तरह नहीं है जब भी उसे उसकी मां की बुर मिलेगी तो उसके पापा के बाद उसके बुरे में जाने वाला लंड उसकी ही होगा इस बात को सोचकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। तभी पास में दो आदमी खड़े थे जो इंतजार कर रहे थे अपना नंबर आने का और सुगंध की तरफ देख कर आपस में ही बात करते हुए बोले।
यार कितनी मस्त औरत है गांड तो देखो कितनी कसी हुई है ऐसा लग रहा है की साड़ी फाड़ कर बाहर आ जाएगी,,,,।
गांड तो छोड़ वह तो ढकी हुई है आगे देख दोनों चुचीया छलक रही हैं कसम से मैं अगर पानी पूरी वाला होता तो सिर्फ चूचियों को दबाने का बदले उसे जी भर कर पानी पूरी खिलाता,,,,,(उसके साथ वाला आदमी बोला दोनों की बातें सुनकर अंकित का दिमाग एकदम से सन्न रह गया उन दोनों आपस में बहुत धीरे-धीरे बात कर रहे थे सिर्फ अंकित उन दोनों के पास में खड़ा था इसलिए उसे सुनाई दे रहा था बाकी किसी को सुनाई नहीं दे रहा था लेकिन दोनों की बातें उसकी मां के बारे में थी उसकी मां की जवानी देखकर बेहद गंदे ख्यालात उन दोनों के मन में आ रहे थे शायद इस तरह के खलत दूसरे मर्दों को भी आते होंगे जब उसकी मां की जवानी को देखते होंगे इस बात का एहसास अंकित को उत्तेजित कर रहा था,,,, अभी अंकित उन दोनों के बारे में उनकी कही गई बातों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी पहले वाला आदमी फिर से उसकी मां के बारे में बोला।)
यार कसम से एक रात के लिए मिल जाए ना तो समझ लो जन्नत का मजा मिल जाए ऐसी औरत का मैं आज तक नहीं देखा,,,।
सच कह रहा है यार तु साली जब कपड़े उतारती होगी तो नंगी होने के बाद तो गजब लगती होगी,,,।
बात तो सही है लेकिन जो लेती होगा उसकी किस्मत कितनी तेज होगी,,, मजा ही मजा देती होगी हम लोग तो सिर्फ सोच कर ही इतना मत हो जा रहे हैं लेने वाला तो बहुत किस्मत वाला होगा।
(गंदे शब्दों में ही सही वह दोनों अंकित की मां की खूबसूरती की और उसकी जवानी की तारीफ ही कर रहे थे इस बात का एहसास अंकित को अच्छी तरह से था,, इस तरह की बातें करने से वह उन दोनों को रोक नहीं सकता था अगर रोकता भी तो क्या कहकर कुछ बताने लायक भी नहीं था सबके बीच में खुद उसका ही मजाक बन जाता और यह सब कुछ चाहता नहीं था लेकिन वह जितना उन दोनों के करीब था इतना तो बताया था कि उन दोनों को भी पता होगा कि बगल वाला लड़का या सब सुन रहा होगा इसलिए वह नहीं चाहता था कि उन दोनों को पता चले की उनके बगल में खड़ा लड़का उस औरत का बेटा है,,, वरना उन दोनों को लगेगा कि बेटा पूरी तरह से निकम्मा है तभी तो यह सब सुनकर भी कुछ बोल नहीं पाया इसलिए वह तुरंत सड़क पार करके दूसरी तरफ आ गया जहां पर लोगों का आने जाना ज्यादा ही था थोड़ी देर में उसकी मां भी पानी पुरी खाकर दूसरी तरफ आ गई और दोनों घर की तरफ जाने लगे।)
घर पर चलकर मुझे पहन कर दिखाना कैसा लगता है,,,,।
(यह बात सुनते ही सुगंधा को वह पल याद आ गया जब उसका बेटा उसके लिए पेंटि खरीद कर लाया था और उसे पहन कर दिखाने के लिए बोला था और वह दिखाइए भी थी पैंटी पहनने में और दिखने में जो कुछ भी हुआ था उसे सब कुछ अच्छी तरह से याद था इसलिए उन पल को याद करके एक बार फिर से उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी। वह अपने मन में सोचने लगी कि कहीं फिर से कपड़े पहन कर दिखाते समय उसका बेटा ऐसी वैसी हरकत ना करते और यह ख्याल उसके मन में आते ही उसका पूरा बदन गनगनाने लगा।)