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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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dhalchandarun

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#112.

महाबली हनुका

(11 जनवरी 2002, शुक्रवार, 14:30, अटलांटिक महासागर)

हनुका ने अपनी पूरी जिंदगी महा..देव के साधना में लगा दी थी।

देव के आशीर्वाद स्वरुप आज से हजारों साल पहले ही उसे गुरुत्व शक्ति प्राप्त हो गयी थी। पर आज उसी गुरुत्व शक्ति की रक्षा के लिये गुरु नीमा ने उसे भेजा था।

इस समय हनुका आकाश मार्ग से तेजी से लुफासा के पीछे जा रहा था। हांलाकि उसे लुफासा अभी तक नजर नहीं आया था, पर गुरुत्व शक्ति से मिल रहे संकेतों से उसे लग रहा था कि बस वह अब लुफासा तक पहुंचने ही वाला है।

हनुका को जाने क्यों आज अपना बचपन याद आ रहा था। वह बिल्कुल नन्हा सा था, जब महा.. ने नीलाभ के विवाह में उपहार स्वरुप उसे नीलाभ को सौंप दिया था।

तब से नीलाभ ने ही उसे पाला था और बिल्कुल अपने बालक की तरह प्यार दिया था। हनुका भी नीलाभ को अपने पिता समान ही समझता था।

नीलाभ ने हनुका को कभी यति नहीं समझा और उसे असीम और विलक्षण ज्ञान दिया, पर जब से नीलाभ हिमालय से गायब हुए थे, उसने अपना बाकी जीवन हिमलोक की सेवा और महा..देव की साधना में लगा दिया था।

तभी हनुका की सोच पर विराम लग गया।

उसे अपने कुछ आगे उड़कर जाता हुआ, ड्रैगन बना लुफासा दिखाई दिया, जो पीछे आ रहे खतरे से बेखबर, गुरुत्व शक्ति की डिबिया अपने पंजों में दबाये, तेजी से अराका द्वीप की ओर उड़ा जा रहा था।

अराका द्वीप बस अब आने ही वाला था।

हनुका ने अपने उड़ने की गति थोड़ी और बढ़ाई और फिर ड्रैगन के सामने जा कर हवा में खड़ा हो गया।

“रुक जाओ मूर्ख दैत्य।” हनुका ने गरज कर कहा- “चुपचाप गुरुत्व शक्ति मेरे हवाले कर दो, मैं आपको जीवनदान दे दूंगा।”

लुफासा पहले तो हवा में उड़ते यति को देखकर हैरान रह गया, पर फिर हनुका के शब्दों को सुनकर वह समझ गया कि यह यति उसका पीछा करता हुआ हिमालय से आया है।

लुफासा एक पल में समझ गया कि यह यति भी मायावी है। इसलिये वह भी हवा में रुककर हनुका की अगली प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगा।

तभी हनुका ने मुंह खोलकर एक जोरदार गर्जना की।

हनुका की गर्जना इतनी शक्तिशाली थी कि ड्रैगन बना लुफासा गर्जना के वेग से कुछ कदम पीछे हो गया।

मात्र एक गर्जना से ही लुफासा जान गया कि हनुका बहुत शक्तिशाली है।

लुफासा ने हनुका की गर्जना का जवाब देने के लिये अपना ड्रैगन रुपी मुंह खोलकर एक जोर की आग हनुका पर उगल दी।

इतनी तेज आग के पीछे हनुका का पूरा शरीर ढक गया।

लुफासा को लगा कि हनुका उस आग में जल गया होगा। पर जैसे ही आग समाप्त हुई, लुफासा को हनुका मुस्कुराता हुआ वहीं खड़ा दिखाई दिया।

“आप मुझ पर आग बरसा रहे हैं दैत्यराज।” हनुका ने हंसते हुए कहा- “चलिये पहले आप अपने मन की और भी इच्छाएं पूरी कर लीजिये, फिर बताता हूं आपको कि हनुका क्या चीज है?”

“यह कैसा जीव है? इस पर तो आग का बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा।” लुफासा ने मन ही मन सोचा और इस बार अपना मुंह खोल हनुका पर बर्फ का सैलाब उगल दिया।

हनुका बर्फ के सैलाब से पूरा का पूरा बर्फ की चट्टान मे बदल गया, मगर फिर एक झटके से हनुका बर्फ को तोड़कर बाहर आ गया।

“यह नकली बर्फ थी और पूर्णतया अशुद्ध थी। मैं तो हजारों वर्षों तक असली बर्फ में सोता हूं। बर्फ से आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। कोई और शक्ति हो तो उसका प्रदर्शन करिये दैत्यराज?” हनुका ने हंसते हुए कहा।

लुफासा ने इस बार तेजी से आगे बढ़कर हनुका को अपने मुंह में भर लिया और अराका की ओर आगे बढ़ गया। अब लुफासा को अराका दिखाई देने लगा था। वह आसमान से नीचे की ओर उतरने लगा।

उधर ड्रैगन के मुंह में मौजूद हनुका के हाथ के नाखून आश्चर्यजनक ढंग से काफी बड़े हो गये।

हनुका ने अपने नुकीले नाखूनों से ड्रैगन का मुंह ही फाड़ डाला और बाहर आ गया।

मुंह फटने की वजह से ड्रैगन बुरी तरह से घायल हो गया। लुफासा ने यह देख, ड्रैगन के मरने के पहले ही, रुप बदल कर एक छोटी सी चिड़िया में परिवर्तित हो गया।

“अरे वह ड्रैगन की लाश कहां गायब हो गयी ?”

हनुका ने आश्चर्य से इधर-उधर देखा।
तभी हनुका को एक छोटी सी चिड़िया गुरुत्व शक्ति की डिबिया लिये आसमान से नीचे जाती हुई दिखाई दी।

यह देख हनुका का शरीर भी छोटा होकर चिड़िया के बराबर हो गया।

अब हनुका चिड़िया के बगल में उड़ता हुआ बोला- “अच्छा तो आप मायावी राक्षस हो और रुप बदलने की कला भी जानते हो। पर हे दैत्यराज, आप चाहे जितने भी रुप बदल लो, या फिर बड़े-छोटे हो जाओ, पर आप गुरुत्व शक्ति की डिबिया को छोटा-बड़ा नहीं कर सकते। इस प्रकार किसी भी रुप में मैं आपको पहचान जाऊंगा। पर अब मैं आप जैसे मूर्ख पर और समय नष्ट नहीं करुंगा।”

यह कहकर हनुका ने चिड़िया बने लुफासा को एक जोर का घूंसा जड़ दिया।

इतना शक्तिशाली घूंसा खाकर लुफासा पर बेहोशी छा गयी और गुरुत्व शक्ति की डिबिया उसके हाथों से छूटकर जमीन की ओर जाने लगी।

हनुका डिबिया को नीचे गिरता देख, तेजी से डिबिया के पीछे लपका, पर इससे पहले कि हनुका डिबिया को अपने हाथों से पकड़ पाता, वह बहुत तेजी से किसी अदृश्य दीवार से जा टकराया।

टक्कर बहुत भयानक थी। एक पल के लिये हनुका को कुछ समझ नहीं आया।

तभी वह डिबिया भी अदृश्य दीवार से टकरा कर खुल गयी और उसमें से गुरुत्व शक्ति निकलकर तेजी से जमीन की ओर बढ़ने लगी।

हनुका ने अदृश्य दीवार को हाथ से टटोलकर महसूस किया। अदृश्य दीवार को हाथ से छूते ही हनुका आश्चर्य से भर उठा-

“अरे यह तो माता की शक्तियां हैं, पर उनका तो पिछले 20000 वर्षों से कुछ पता नहीं है…… और वह इस अंजान द्वीप पर इतनी दूर कैसे पहुंची? मैं माता की शक्तियों से बने इस अदृश्य कवच को खंडित नहीं कर सकता और वैसे भी अब काफी देर हो चुकी है, अब तक तो गुरुत्व शक्ति भूमि पर गिरकर नष्ट भी हो गयी होगी। लगता है मुझे खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ेगा।”

तब तक आसमान से लुफासा भी गायब हो गया था। अतः अनमने मन से हनुका खाली डिबिया को उठा हिमालय की ओर उड़ चला।

माया रहस्य

(19,110 वर्ष पहलेः दि ग्रेट ब्लू होल, बेलिज शहर के पास, कैरेबियन सागर)

सेण्ट्रल अमेरिका यानि कैरेबियन सागर के बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, लाइट हाऊस रीफ के पास स्थित है- दि ग्रेट ब्लू होल।

दि ग्रेट ब्लू होल, समुद्र के अंदर लगभग 300 मीटर के क्षेत्रफल में फैली, एक विशाल गोल गड्ढे की आकृति है।

यह विशालकाय गड्ढा पानी के अंदर कैसे बना? यह कोई नहीं जानता। इस गड्ढे का आकार इतना ज्यादा गोल है कि यह मानव निर्मित प्रतीत होता है।

124 मीटर गहरा यह अंडर वॉटर सिंकहोल, विश्व के सबसे खूबसूरत और रहस्यमयी क्षेत्रों में गिना जाता है।

समुद्र के अंदर की ओर इस गहरे गड्ढे में अनगिनत पहाड़ी गुफाओं का जाल सा बना है। किसी को नहीं पता कि इन गुफाओं में किस गुप्त शक्ति का वास है? इन्हीं अंजान गुफाओं के अंदर एक कमरे में कैस्पर, मैग्ना और माया बैठे थे।

“माँ, हमने आपके लिये समुद्र की लहरों पर एक खूबसूरत महल का निर्माण किया है।” मैग्ना ने कहा- “हम चाहते हैं कि अब आप इन गुफाओं से निकलकर हमारे साथ उस खूबसूरत महल में रहें।”
यह कहकर मैग्ना ने अपने हाथ में पकड़ा, रोल किया हुआ एक कागज खोलकर माया के सामने रख दिया।

कागज के टुकड़े पर एक चलता-फिरता महल का त्रिआयामी (3D) चित्र दिखाई दे रहा था।

माया ने एक बार ध्यान से महल को देखा और फिर मुस्कुराई।

तभी वातावरण में माया की आवाज गूंजी- “मुझे खुशी है कि तुम दोनों ने बिना किसी बाहरी मदद के, स्वयं से इतने सुन्दर महल की रचना की। मुझे लगता है कि मैंने तुम दोनों को विद्या देकर कोई गलती नहीं की।
पर....पर मैं तुम लोगों के साथ उस महल में रहने के लिये नहीं चल सकती।”

“क्यों माँ....आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है? जो आपको इन समुद्री गुफाओं से जोड़े हुए है।” कैस्पर ने माया से पूछा- “ऐसा क्या है जिसकी वजह से आप किसी से बात नहीं करतीं ?... किसी से भी मिलती नहीं हैं? आज तो आपको बताना ही पड़ेगा कि आपके इस प्रकार छिपकर समुद्र में रहने के पीछे क्या रहस्य है?”

यह सुनकर माया के चेहरे पर कुछ दर्द के भाव उभरे और फिर वातावरण में माया की आवाज उभरी- “ठीक है बेटा, मैं आज तुम दोनों को अपनी कहानी सुना ही देती हूं। शायद अब ये सबकुछ बताने का उचित समय भी है। तो फिर सुनो मैं तुम्हें आज हिं...दू धर्म की एक कहानी सुनाती हूं।”

“सनातन धर्म के बारे में आप हमें लगभग सबकुछ बता चुकी हैं” मैग्ना ने कहा- “यहां तक कि हम उनके देवी -देवताओं के बारे में भी सबकुछ जानते हैं। क्या आपकी कहानी उससे कुछ अलग है? या कुछ ऐसा है जिसके बारे में हम नहीं जानते?”

पर माया ने मैग्ना के सवालों का जवाब नहीं दिया, उसकी आवाज का गूंजना लगातार जारी था।

“जिधर से सूर्य उगता है, उस____ दिशा में तीन ओर से समुद्र, पहाड़ और बर्फ से घिरा एक उपमहाद्वीप है जिसे हम जम्बूद्वीप के नाम से जानते हैं, वहीं पर पृथ्वी की शुरुआत में ही इस धर्म का उदय हुआ था। इस धर्म के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति ब्रह्म..देव ने अपने हाथों से की थी। पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद ब्रह्म..देव ने मनुष्यों के निर्माण के बारे में सोचा।

इसके लिये उन्होंने बिना किसी स्त्री के, स्वयं के द्वारा कुछ मानसपुत्रों को जन्म दिया। इन्हीं प्रमुख 10 मानसपुत्रों से सृष्टि का प्रारम्भ हुआ। ब्रह्म..देव के एक मानसपुत्र का नाम ‘मरीचि’ था, जिन्हें ‘द्वितीय ब्रह्मा’ के नाम से भी जाना जाता है।

मरीचि के तीन पत्नियां थीं- संभूति, कला और ऊर्णा। मरीचि और कला से ‘कश्यप’ नामक पुत्र का जन्म हुआ। महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की 13 पुत्रियों से हुआ और इसी के साथ सृष्टि के हर जीव का प्रारम्भ हुआ।

महर्षि कश्यप की पहली पत्नि ‘अदिति’ से उत्पन्न हुए सभी पुत्र आदित्य यानि कि देवता कहलाये।

महर्षि कश्यप की दूसरी पत्नि ‘दिति’ से उत्पन्न हुए सभी पुत्र दैत्य कहलाये। इसी प्रकार महर्षि कश्यप की अन्य पत्नियों से बाकी जीवों का उत्पत्ति हुई।

महर्षि कश्यप और दिति के एक बलशाली पुत्र का नाम ‘मयासुर’ था। मयासुर को दैत्यराज भी कहा जाता था। मयासुर भगवान शि..व के बहुत बड़े भक्त थे। मयासुर ज्योतिष और खगोलविद् भी थे। प्रसिद्ध पुस्तक ‘सूर्य सिद्धान्तम’ की रचना मयासुर ने ही की थी। मयासुर के पास पत्थर को भी पिघलाकर आकार देने की शक्ति थी।

मयासुर को इतिहास में अपने एक से बढ़कर एक शहर की रचनाओं के लिए जाना जाता रहा है। एक बार जब देवताओं और दैत्यों के बीच युद्ध हुआ तो महा शि..व ने सारे दैत्यों को जलाकर राख कर दिया। तब मयासुर ने 12 वर्षों तक एक सूखे कुंए मे रहकर तप किया। जिसके फलस्वरुप महाशि..व ने सभी दैत्यों को पुनर्जीवन दान दिया।

जब मयासुर उस कुंए से निकलकर जाने लगे तो उनकी निगाह कुंए में बैठे 2 जीवों पर गई। वह जीव एक मेढकी और एक कोयल थी। दोनो ही जीव कालान्तर में किसी ना किसी श्राप से प्रभावित अप्सराएं थीं, जो कि 12 वर्ष तक मयासुर के साथ शि..व की तपस्या में रत थीं। मयासुर ने दोनों ही जीवों को वापस अप्सरा का रुप प्रदान कर, उन्हें अपनी पुत्री रुप में स्वीकार कर लिया। मयासुर ने मेढकी का नाम मन्दोदरी रखा और कोयल का नाम माया रखा।”

“इसका मतलब आप पहले अप्सरा थीं।” मैग्ना ने कहानी सुना रही माया को बीच में ही टोकते हुए कहा।

“हाँ , मेरा नाम पहले मणिका था, भगवान गणे..श को चिढ़ाने की वजह से उन्होंने मुझे श्राप देकर कोयल बना दिया था।” माया ने कहा और फिर कहानी सुनाना शुरु कर दिया-

“मयासुर ने मुझे और मन्दोदरी दोनों को वचन दिया कि वह हम दोनों का विवाह विश्व के सबसे बड़े शि..व भक्त और महायोद्धा से करेंगे।

मयासुर हम दोनों को ही अपनी कलाएं सिखाने लगे। कुछ वर्षों के बाद मयासुर को पता चला कि किसी महाबली ने शि..व के निवास स्थान कैलाश को भी उठाने की कोशिश की थी। मयासुर ने उस महाबली के बारे में पता किया।

वह महाबली लंका का राजा रावण था। मयासुर ने मन्दोदरी का विवाह रावण के साथ कर दिया। कुछ समय बाद उन्हें एक और महाबली शिवभक्त नीलाभ के बारे में पता चला। उन्होंने नीलाभ के साथ मेरा विवाह कर दिया।

विवाह के पश्चात मुझे पता चला कि नीलाभ समुद्र मंथन से निकले कालकूट नामक विष से उत्पन्न हुआ है, जिस वजह से वह अत्यन्त जहरीला है। अब मैं विवाहोपरांत नीलाभ से सम्बन्ध नहीं बना सकती थी।

तभी मुझे भगवान गणे..श के दिये श्राप का ध्यान आया। उन्होंने कहा था कि शादी के 20000 वर्षों तक मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं होगी। अब मैं काफी उदास रहने लगी।

नीलाभ ने कुछ दिनों के बाद हिमालय पर एक अद्भुत विद्यालय ‘वेदालय’ की रचना करने का निर्णय लिया, जिसमें पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों से छात्र पढ़ने आते और वेदों के द्वारा शिक्षा ग्रहण करते।

मुझे नीलाभ का यह विचार बहुत पसंद आया। इसलिये मैंने 5 वर्षों तक कड़ी मेहनत कर हिमालय पर 15 विचित्र लोकों का निर्माण किया। निर्माण के बाद मैं वापस नीलाभ के महल में आ गयी, पर अब पुत्र के बिना मुझे बेचैनी सी महसूस होने लगी।

अंततः मैंने नीलाभ को चुपचाप छोड़कर जाने का निर्णय किया। एक रात जब नीलाभ सो रहा था, तो मैं चुपके से महल के बाहर आ गयी और सुदूर जंगलों में जा कर भगवान गणे…श की आराधना करने लगी।

800 वर्षों के अथक तप के बाद भगवान ने मुझे दर्शन दिये। मैंने उनसे पुत्र रत्न की कामना की। उन्होंने कहा कि मुझे 20000 वर्षों तक समुद्र के अंदर किसी गुप्त स्थान पर छिपकर रहना होगा और इन वर्षों के अवधि में प्रत्येक दिन विश्व के सबसे जहरीले नाग और नागिन का जहर रोज चखना होगा।

तब जाकर मेरा शरीर नीलाभ के योग्य बन जायेगा और मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जायेगी। मैंने यह बात अपने पिता मयासुर को बतायी। यहां पर भाग्य ने मेरा साथ दिया क्यों कि विश्व का सबसे जहरीला नाग तक्षक मेरे पिता का दोस्त था।

तक्षक सहर्ष ही मुझे अपना विष देने को तैयार हो गया। अब मुझे तलाश थी एक ऐसे स्थान की जो पूर्णतया गुप्त हो और जहां मैं रहकर विष का सेवन कर सकूं। कुछ ही दिनों में मुझे यह स्थान मिल गया ।

मैंने यहां समुद्र की गुफाओं के अंदर अपना महल बनाने का विचार किया। एक दिन एक मनुष्य ने मुझे समुद्र के तट पर देख लिया। वह मुझे कोई देवी समझ मेरी पूजा करने लगा। अब उस मनुष्य को बचाना मेरा कर्तव्य बन गया।

मैंने पानी के तट के पास एक सभ्यता का निर्माण किया। जो बाद में मेरे नाम से ‘माया सभ्यता’ कहलायी। मैंने उस मनुष्य को ज्योतिष और खगोल विज्ञान सिखाया और देवी देवताओं के बारे में बताया।

मुझे इस स्थान पर अपना महल बनाने और माया सभ्यता को विकसित करने में 80 वर्ष लग गये। बाद में मैं इसी महल में आकर रहने लगी।

इन 80 वर्षों में मुझे विश्व की सबसे जहरीली नागिन मिल गयी थी और वह थी गार्गन फैमिली की 3 बहनों में से एक ‘यूरेल’। उस समय तक पर्सियस मेडूसा को मार चुका था। यूरेल मुझे अपना विष देने को तैयार हो गयी, पर एक शर्त के अनुसार मुझे उसके द्वारा दी गयी एक बच्ची को दुनिया से छिपा कर रखना था।

ऐसा वह क्यों कर रही थी? इसका मुझे पता ना चला। मैंने इस शर्त को स्वीकार कर लिया और उस बच्ची को लेकर अपने महल आ गयी। बच्चे वैसे भी मुझे पहले से ही पसंद थे। इस वजह से मैंने उस बच्ची को
अपनी बेटी की तरह पाला और उसका नाम मैग्ना रखा।”

“तो.... तो..... क्या मैं गार्गन परिवार की विषकन्या यूरेल की बेटी हूं?” मैग्ना ने आश्चर्य से पूछा।

“इस बारे में मुझे ज्यादा नहीं पता।” माया ने कहा- “इस बारे में तो तुम्हें यूरेल ही बता सकती है। उसने तुमसे 20 वर्ष तक यह राज छिपाने को भी कहा था।”

“तो अब मेरे बारे में भी बता दीजिये कि मैं कौन हूं?” कैस्पर ने आशा भरी नजरों से माया की ओर देखते हुए कहा।

“अभी इसका समय नहीं आया है कैस्पर।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “तुम्हें अभी थोड़ी और शक्तियां बटोरनी होंगी। उसके बाद ही मैं तुम्हें तुम्हारे बारे में बताऊंगी। अच्छा अब मेरी कहानी छोड़ो, तुम लोग कुछ अपने बारे में बताओ? अब आगे क्या करने का इरादा है तुम लोगों का?”

अचानक कैस्पर को पोसाईडन का ध्यान आया।

“माँ, क्या आप ग्रीक देवता पोसाईडन को भी जानती हो ?” कैस्पर ने माया से पूछा।

“थोड़ा-थोड़ा ही पता है, कुछ खास नहीं।” माया ने अपने चेहरे के भावों को छिपाते हुए कहा।

“माँ, पोसाईडन समुद्र के देवता हैं।” कैस्पर ने कहा- “कल वह हमारा महल देखने आये थे। महल देखकर वह बहुत खुश हुए। अब वह हमसे वैसा ही महल स्वयं के लिये बनवाना चाहते हैं। वह तो आपसे भी
मिलना चाहते थे, पर हमने मना कर दिया। क्या हमें उनका महल बनाना चाहिये?”

“तुम्हारी स्वयं की क्या इच्छा है कैस्पर?” माया ने उल्टा सवाल करते हुए कहा- “क्या तुम उनका महल बनाना चाहते हो?”

“देवताओं का सानिध्य हमेशा फलदायी होता है।” मैग्ना ने बीच में टोकते हुए कहा- “अगर हम उनका महल बनायेंगे तो हम हमेशा देवताओं की नजर में सुरक्षित रहेंगे।”

“हमेशा देवताओं की नजदीकी अच्छी नहीं होती मैग्ना।” माया ने एक गहरी साँस भरते हुए कहा- “ग्रीक देवताओं का कुछ पता नहीं रहता ? कि वह कब दोस्त से दुश्मन बन जायें और तुम पर ही हमला करने लगें।”

“मैं कुछ समझा नहीं ।” कैस्पर ने चकित होते हुए कहा- “क्या देवताओं की भविष्य में हमसे कोई दुश्मनी भी हो सकती है माँ ?”

“भविष्य को किसने देखा है, भविष्य में तो कुछ भी छिपा हो सकता है?” माया के शब्दों में रहस्य ही रहस्य नजर आ रहा था- “पर ठीक है अगर तुम लोगों ने पोसाईडन का महल बनाने का विचार कर ही लिया है,
तो एक बात ध्यान से अवश्य सुन लो।

तुम लोग देवताओं के लिये जिस भी प्रकार के भवन, महल, शहर या द्वीप का निर्माण करोगे, उसमें कुछ ना कुछ ऐसी शक्तियां जरुर छोड़ दोगे, जो किसी की भी जानकारी में नहीं रहेगी, परंतु समय पड़ने पर उस महल का अधिकार, उस गुप्त शक्ति की वजह से आसानी से तुम्हारे हाथ में आ जाये। तब मुझे तुम्हारे किसी भी निर्माण से कोई आपत्ति नहीं होगी।”

“ठीक है माँ, हम आजीवन आपकी इस बात का ध्यान रखेंगे।” मैग्ना ने कहा।

कैस्पर ने भी मैग्ना की बात पर अपनी सहमति जताई।

“चलो ! अब बातें काफी हो गयीं। मैंने तुम लोगों के लिये आज अपने हाथों से तुम्हारी पसंद का भोजन बनाया है। चलो उसे खाते हैं।”

माया यह कहकर कमरे के अंदर की ओर चल दी। कैस्पर और मैग्ना भी खुश हो कर माया के पीछे चल दिये।


जारी रहेगा_______✍️
Beautiful update brother.
Ek hi update mein Hanuka, Lufasa, Maya, Magna aur Casper ke bare mein thoda thoda pata chala.
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Beautiful update brother.
Ek hi update mein Hanuka, Lufasa, Maya, Magna aur Casper ke bare mein thoda thoda pata chala.
Thank you very much for your valuable review and superb support bhai, :hug:

116 updates ho chuke hai, aapke review baaki hain :D
 

dhalchandarun

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#113.

चैपटर-3: स्पाइनो-सोरस
(
11 जनवरी 2002, शुक्रवार, 14:45, मायावन, अराका द्वीप)

सुयश की टीम में सुयश को मिला कर अब सिर्फ 6 लोग ही बचे थे।

घास का मैदान पार करके अब सभी पहाड़ी रास्ते पर आ गये थे। पहाड़ी पर एक पतली पगडंडी पर इन्हें आगे बढ़ना पड़ रहा था। रास्ते में चढ़ान होने की वजह से सभी के चेहरे थके-थके से लग रहे थे।

एक तो पिछले कुछ दिनों से वह लगातार चल रहे थे, दूसरे उनके साथियों के मरने या फिर बिछड़ जाने के कारण उनके जोड़े भी टूट गये थे, जिससे उनका मनोबल कुछ टूट सा गया था।

एक शैफाली थी, जो अभी भी सबको बीच-बीच में कुछ ना कुछ कहकर उनका हौसला बढ़ाये हुए थी।
अलबर्ट को अपनी उम्र के कारण सबसे ज्यादा तकलीफ हो रही थी। उन्होंने शायद ही कभी अपनी जिंदगी में इतना चला होगा।

पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण पोसाईडन की मूर्ति कभी-कभी किसी मोड़ पर, दूर दिखाई दे जाती थी।

पथरीला रास्ता होने के कारण हरियाली भी थोड़ी कम हो गयी थी, जिसकी वजह से सभी को दिन में गर्मी भी ज्यादा लग रही थी। ये तो भला हो कि जंगल में पर्याप्त पानी मिल जाने से, सभी ने अपनी बोतलें पूरी भर ली थीं नहीं तो इतनी गर्मी में इन सबका एक कदम भी बढ़ा पाना मुश्किल हो जाता।

सभी अब पहाड़ की चोटी पर पहुंच गये थे। यहां पर बाकी रास्ते की अपेक्षा जगह कुछ ज्यादा थी। एक तरफ कुछ ऊंची-ऊंची चट्टानें थी, तो दूसरी ओर गहरी खाईं। गहरी खाईं की ओर एक विशाल छायादार पेड़ लगा था, जिसे देखकर अलबर्ट से रहा ना गया और वह बोल उठा-

“कैप्टेन! कुछ देर आराम कर लिया जाये। थकान बहुत ज्यादा हो रही है, अब एक कदम भी आगे बढ़ना मुश्किल लग रहा है।”

“आप ठीक कह रहे हैं प्रोफेसर।” सुयश ने भी सभी पर नजर डालते हुए कहा- “सभी थक गये हैं। हम कुछ देर यहां पर आराम करेंगे फिर आगे बढ़ेंगे। तब तक कुछ खा-पी भी लेते हैं।”

सुयश की बात सुन सबकी जान में जान आयी। सब वहीं पेड़ के नीचे एक पत्थर पर बैठ गये। क्रिस्टी ने बैग से कुछ फल निकालकर सभी में बांट दिये।

सबने फल खा के पेट भर पानी पिया और 10 मिनट आराम करने के लिये उसी पेड़ के नीचे लेट गये।
सुयश सबको लेटे देख एक ऊंची सी चट्टान की ओर चल दिया।

सुयश उस ऊंची सी चट्टान पर चढ़कर दूर-दूर तक देखने की कोशिश करने लगा।
तभी सुयश का पैर फिसल गया और वह जमीन पर गिर पड़ा। भला हो कि खाईं थोड़ी दूर थी, नहीं तो सुयश खाईं में भी गिर सकता था।

सुयश धीरे से खड़ा हो कर वापस नीचे दूर-दूर तक फैली हुई घाटी को देखने लगा। पर सुयश के फिसलने से एक बड़ा सा पत्थर पहाड़ से नीचे की ओर गिर गया।


वह पत्थर लुढ़कता हुआ उस पहाड़ के दूसरी ओर के रास्ते में सो रहे एक विशाल डायनासोर पर गिरा।
पत्थर के शरीर पर लगते ही डायना सोर ने अपनी आँखें खोल दी।

उसने एक क्षण के लिये अपनी नाक को ऊपर उठा कर सूंघा और उठकर खड़ा हो गया।

सुयश का ध्यान इस समय दूसरी ओर था, तभी सुयश के पीछे एक विशालकाय 2 आँखें दिखाई दीं। वह आँखें अकेली नहीं थीं, उनके साथ भारी-भरकम शरीर लिये वही डायनोसोर भी था।

हांलाकि डायनोसोर पहाड़ के दूसरी ओर था, फिर भी उसकी ऊंचाई अधिक होने के कारण वह जेनिथ को दिखाई दे गया।

डायनासोर को देखकर जेनिथ के मुंह से चीख निकल गयी। जेनिथ की चीख सुन सभी का ध्यान उस चट्टान की ओर गया, जिस पर सुयश इस समय खड़ा था।

अब सभी चीखकर सुयश को वहां से भागने के लिये बोलने लगे। सभी को चीखते देख सुयश पीछे पलटा। पीछे पलटते ही उसके सारे रोंगटे खड़े हो गये। डायनासोर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसी को घूर रहा था।

सुयश ने धीरे से डायनासोर को देखते हुए अपने कदमों को पीछे करने की कोशिश की। तभी डायनासोर के मुंह से एक तेज गुर्राहट निकली, अब उसने अपने बड़े-बड़े दाँत दिखाकर सुयश को डराने की कोशिश की।

उसका एक दाँत ही सुयश से बड़ा दिख रहा था। डायनासोर ने अपना मुंह तेजी से सुयश की ओर बढ़ाया, पर सुयश पूरी ताकत लगा कर उस चट्टान से कूद गया। डायनोसोर अपने शिकार को भागता देख, दूसरी ओर से उस चट्टान पर चढ़ने की कोशिश करने लगा।

“नक्षत्रा !” जेनिथ ने अपने मन में नक्षत्रा पुकारा- “क्या तुम इस समय कोई मदद करके हमें बचा सकते हो?”

“मैं एक दिन में सिर्फ आधा घंटा ही समय को रोकना सीख पाया हूं।” नक्षत्रा ने कहा- “पर इस आधे घंटे में तुम सबको उठाकर यहां से भाग नहीं सकती। अब रही बात इस डायनासोर की, तो तुम्हें यह बता दूं कि इस डायनासोर को स्पाइनोसोरस कहते हैं। यह सभी डायनासोर का राजा है।

यह उन सबमें सबसे बड़ा भी होता है। यह पानी और जमीन दोनों पर ही शिकार कर सकता है। इसके सूंघने की शक्ति भी बहुत ज्यादा है, इसलिये तुम किसी को कहीं छिपा भी नहीं सकती। अब बची बात इसे मारने की, तो वह भी संभव नहीं है क्यों कि तुम इतने बड़े स्पाइनोसोरस को बिना किसी हथियार के कैसे मार पाओगी? हां अगर तुम सिर्फ स्वयं बचना चाहो तो आधे घंटे में यहां से दूर भाग सकती हो, जिससे यह स्पाइनोसोरस तुम्हारी गंध नहीं सूंघ पायेगा।”

“असंभव!” जेनिथ ने नक्षत्रा से कहा- “मैं यहां से किसी को भी छोड़कर नहीं भागने वाली। तुम एक काम करना नक्षत्रा, फिलहाल जैसे मैं तुम्हें इशारा करुं, तुम बस समय को रोक देना, बाकी मैं स्वयं से देखती हूं
कि इस स्पाइनोसोरस से कैसे निपटना है?”

तब तक सुयश भागकर, बाकी सभी लोगों के पास आकर, दूसरी चट्टान के पीछे छिप गया।

“कैप्टेन!” अलबर्ट ने डरते-डरते कहा- “यह तो स्पाइनोसोरस है। यह तो लाखों वर्ष पहले ही विलुप्त हो गया था। हे भगवान कैसा है यह द्वीप? अब हम इतने बड़े खतरे से कैसे निपटेंगे?”

“शांत हो जा इये प्रोफेसर, नहीं तो वह हमारी आवाज सुन लेगा।” क्रिस्टी ने कहा।

उधर स्पाइनोसोरस चट्टान पर चढ़ने में कामयाब हो गया। अब वह चट्टान के आसपास सुयश को ढूंढने लगा। जेनिथ जानती थी कि ज्यादा देर तक वह छिपे नहीं रह पायेंगे। वह तेजी से इधर-उधर देखते हुए, स्पाइनोसोरस से बचने के लिये अपना दिमाग चला रही थी।

हथियार के नाम पर तौफीक के पास बस एक चाकू बचा था, पर उससे कुछ नहीं होना था।

चट्टान पर चढ़ा स्पाइनोसोरस अब अपनी नाक उठाकर हवा में कुछ सूंघने की कोशिश करने लगा।
कुछ ही देर में स्पाइनोसोरस को उनकी गंध मिल गयी, अब वह तेजी से चट्टान से उतरने की कोशिश करने लगा।

तभी उसके भारी-भरकम शरीर की वजह से एक बड़ा सा पत्थर हवा में उछला और क्रिस्टी की ओर बढ़ा।

“नक्षत्रा ! समय को रोक दो।” जेनिथ ने एक सेकेण्ड से भी कम समय में नक्षत्रा को समय रोकने के लिये कहा।

नक्षत्रा ने समय को रोक दिया। अब जेनिथ के आसपास की हर चीज फ्रीज हो गयी थी। वह पत्थर क्रिस्टी के बिल्कुल सिर के पास पहुंच गया था, अगर नक्षत्रा एक सेकेण्ड की भी देरी कर देता तो क्रिस्टी का सिर फट जाना था।

जेनिथ ने क्रिस्टी को पकड़कर दूसरी ओर खींचा और नक्षत्रा को समय रिलीज करने को बोल दिया।
उछला हुआ पत्थर क्रिस्टी के बगल में आकर गिरा। क्रिस्टी को लगा जैसे उसे किसी ने पकड़कर खींचा हो।

“यहां पर और भी कोई है?” क्रिस्टी ने फुसफुसा कर सभी से कहा- “मुझे अभी किसी ने पकड़कर खींचा है। अगर वह शक्ति ऐसा ना करती तो मैं तो मर ही जाती।”

सुयश, अलबर्ट और तौफीक ने अपनी दृष्टि चारो ओर दौड़ाई, पर उन्हें कोई नजर नहीं आया।
अभी आश्चर्य व्यक्त करने का समय भी नहीं था, क्यों कि स्पाइनोसोरस अब चट्टान से नीचे आ गया था और फिर से उन्हें सूंघने की कोशिश कर रहा था।

अब वह स्पाइनोसोरस उनसे ज्यादा दूरी पर नहीं था। तभी जेनिथ ने नक्षत्रा को फिर से समय फ्रीज करने को कहा। नक्षत्रा के समय फ्रीज करते ही जेनिथ ने तौफीक के हाथ से चाकू को छीना और भागकर स्पाइनोसोरस के नीचे पहुंच गयी।

अब उसने चाकू से स्पाइनोसोरस के पिछले दोनों पैर को घायल कर दिया और भागकर वापस अपनी जगह पर आकर समय को रिलीज कर दिया।

सुयश सहित सभी की निगाहें स्पाइनोसोरस पर थीं। अचानक स्पाइनोसोरस के पिछले दोनों पैर से खून निकलने लगा और वह लहरा कर धड़ाम से जमीन पर गिर गया।

तभी जेनिथ ने फिर से समय को फ्रीज किया और भागकर गिरे पड़े स्पाइनोसोरस पर चढ़कर, चाकू से उसकी गर्दन पर वार करने लगी। पर स्पाइनोसोरस के गर्दन के पास की त्वचा काफी कठोर थी और
जेनिथ का हाथ बहुत कोमल था, इसलिये चाकू के वार से स्पाइनोसोरस की गर्दन पर कुछ छोटी-मोटी खरोंच ही आ रहीं थीं।

यह देख जेनिथ ने समय ना बर्बाद करते हुए, एक-एक कर स्पाइनोसोरस की दोनों आँखें फोड़ दीं और सबके पास पहुंचकर समय को फिर रिलीज कर दिया।

स्पाइनोसोरस के जमीन पर गिरते ही एक-एक कर, उसकी दोनों आँखें फूट गयीं और उनसे खून की धारा बह निकली। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि स्पाइनोसोरस को नुकसान कौन पहुंचा रहा है?

आँख के फूट जाने की वजह से स्पाइनोसोरस और खतरनाक हो गया। वह जोर से चिल्लाया और अपनी पूंछ को जमीन पर इधर-उधर पटकने लगा।

स्पाइनोसोरस के ऐसा करने से उसके आसपास के पेड़ टूट-टूट कर जमीन पर गिरने लगे। जेनिथ के पास अब समय रोकने के लिये 15 मिनट ही बचा था। अब उस स्पाइनोसोरस से निपटने के लिये जेनिथ को किसी ठोस प्लान की आवश्यकता थी।

तभी जेनिथ की निगाह खाईं के पास लगे उस पेड़ की एक बहुत ही लचीली, मगर मजबूत शाख पर गयी। जेनिथ के दिमाग में तुरंत एक विचार कौंधा।

उसने समय को एक बार फिर से फ्रीज किया और सुयश की पीठ पर रखे बैग में से एक खाली बैग निकाल लिया। जेनिथ ने जल्दी-जल्दी उस खाली बैग में पेड़ की सूखी पत्तियां भर दीं और उसे खाईं के पास पेड़ के नीचे रख दिया। अब जेनिथ ने उस लचीली शाख को पूरी ताकत लगा कर खींचा और एक जड़ के सहारे उसे पेड़ के एक तने से बांध दिया।

“जेनिथ जल्दी करो अब बस 5 मिनट ही बचा है।" नक्षत्रा ने कहा- “मैं आज समय को इससे ज्यादा नहीं रोक सकता।"

“हां... हां बस हो गया।” इतना कहकर जेनिथ ने चाकू से अपना हाथ एक जगह से काट लिया और अपने खून की बूंदें, पेड़ के नीचे रखे उस काले बैग पर गिराने लगी।

अब जेनिथ के खून से बैग लाल हो गया था। जेनिथ भागकर वापस सभी के पास पहुंची और फर्स्ट एड बॉक्स खोलकर अपने हाथ पर एक दवा छिड़क लिया। दवा की तेज गंध वातावरण में फैल गयी।

अभी भी 2 मिनट का समय शेष था। तभी जेनिथ ने नक्षत्रा को समय को रिलीज करने को बोला।
समय के रिलीज होते ही स्पाइनोसोरस गुस्से में उठ खड़ा हुआ। अंधा हो जाने की वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिये वह हवा में जोर-जोर से कुछ सूंघने लगा।

अब उसे जेनिथ के खून की गंध मिल गयी थी और वह लंगड़ाते हुए पेड़ के नीचे रखे उस काले बैग की ओर बढ़ने लगा। जैसे ही स्पाइनोसोरस खाईं के पास रखे उस काले बैग के पास पहुंचा, जेनिथ फिर समय रोककर तेजी से उस पेड़ के पास पहुंची और चाकू के एक वार से उसने पेड़ से बंधी जड़ों को काट दिया।

जड़ों के काटते ही जेनिथ वापस भागकर सबके पास पहुंच गयी और उसने समय को फिर से रिलीज कर दिया। समय को रिलीज करते ही वह लचीली डाल तेजी से हवा में लहराई और ‘सटाक’ की आवाज करती हुई स्पाइनोसोरस से जा टकराई।

स्पाइनोसोरस इस वार को झेल नहीं पाया और लड़खड़ा कर खाईं की ओर गिरने लगा।
आखिरी समय पर स्पाइनोसोरस ने अपने अगले पैरों को पत्थर में फंसा कर स्वयं को खाईं में गिरने से बचा लिया।

सुयश, तौफीक, शैफाली और क्रिस्टी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, पर स्पाइनोसोरस को ना गिरता देख जेनिथ की साँस जरुर रुक गयी। क्यों कि अब उसके पास सबको बचाने का कोई तरीका नहीं बचा था।

तभी जेनिथ की निगाह अपने हाथ में पकड़े चाकू की ओर गयी।
उसने एक पल भी ना सो चा और तेजी से भागती हुई खाईं में लटके डायनासोर के पास पहुंच गई।

इससे पहले कि खाईं में लटका स्पाइनोसोरस वापस ऊपर चढ़ पाता, जेनिथ ने उसके आगे के दोनों पैरों पर चाकू से तेज वार करने शुरु कर दिये।

स्पाइनोसोरस के पैर से खून का फव्वारा निकला और असहनीय दर्द की वजह से स्पाइनोसोरस ने अपने पैरों की पकड़ को ढीला कर दिया। इसी के साथ स्पाइनोसोरस एक गुर्राहट के साथ पहाड़ से नीचे गिर
गया।

जेनिथ इन सब कामों से इतना थक गयी थी कि वहीं पेड़ के पास ही जमीन पर लेट गयी। स्पाइनोसोरस को नीचे गिरता देख सभी भागकर जेनिथ के पास आ गये।

तौफीक की आँखों में जेनिथ के लिये बेइन्तहा आश्चर्य के भाव थे। कोई यकीन भी नहीं कर पा रहा था कि जेनिथ चाकू लेकर स्पाइनोसोरस को पहाड़ के नीचे गिरा देगी।

“तुम ठीक तो होना जेनिथ?” तौफीक ने जमीन पर लेटी हुई जेनिथ के हाथ से चाकू लेते हुए पूछा।
जेनिथ ने धीरे से अपना सिर हां में हिला दिया।

“वाह जेनिथ दीदी ! आपने तो कमाल ही कर दिया।” शैफाली ने जेनिथ की ओर पानी की बोतल को बढ़ाते हुए कहा।

सुयश की आँखों में भी जेनिथ के लिये तारीफ के भाव उभरे, पर उन आँखों में कुछ सवाल भी थे? जैसे ही जेनिथ पानी पीकर थोड़ा नार्मल हो गई, सुयश ने उस पर सवालों की बौछार कर दी-

“अगर हम शुरु से इस घटना के बारे में बात करें तो स्पाइनोसोरस के हमला करते ही क्रिस्टी के
सिर पर जब पत्थर गिरने वाला था, तो किसी अदृश्य शक्ति ने उसे बचाया, फिर हमारी ओर आ रहे स्पाइनोसोरस के पैर से अचानक खून निकलने लगा, फिर उसकी आँखें भी अपने आप फूट गयीं। इसके बाद हमारा काला बैग उसी अदृश्य शक्ति ने खाईं के किनारे रखकर, स्पाइनोसोरस के ऊपर लचीली पेड़ की डाल से हमला किया। यह सभी बातें ये शो कर रहीं हैं कि यहां पर हम लोगों के अलावा भी कोई था? क्या तुम्हें उसके बारे में कुछ पता है जेनिथ?”

“अभी किसी से मेरे बारे में कुछ भी मत बताना जेनिथ।” नक्षत्रा ने जेनिथ को सावधान किया।

“नहीं मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता?” जेनिथ ने सुयश को जवाब दिया- “मैंने तो आखिर में स्पाइनोसोरस पर चाकू से हमला किया बस इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं पता।”

“तो फिर तुम्हारे हाथ में मेरा चाकू कैसे आया ?” तौफीक ने शंकित निगाहों से जेनिथ को घूरते हुए पूछा- “मैंने तो तुम्हें अपना चाकू दिया भी नहीं था।”

“मुझे भी नहीं पता कि मेरे हाथ में तुम्हारा चाकू कब और कैसे आया ?” जेनिथ ने सफाई देते हुए कहा।

“तुम्हा रे हाथ पर यह पट्टी क्यों बंधी है?” सुयश ने पूछा- “इस पर से दवा की खुशबू भी आ रही है। हमने तो तुम्हें चोट लगते या पट्टी बांधते नहीं देखा।”

“यह पट्टी मेरे हाथ में कैसे बंधी ? मुझे भी इसकी कोई जानकारी नहीं है?” कहकर जेनिथ ने अपने हाथ में बंधी पट्टी को खोल दिया। उसे लगा कि अब सभी उसके हाथ की चोट के बारे में जान जायेंगे।

पर पट्टी खोलते ही वह स्वयं आश्चर्यचकित हो गई। उसके हाथ पर कोई भी घाव नहीं था।

“ज्यादा आश्चर्य मत व्यक्त करो दोस्त।” नक्षत्रा ने कहा- “मैंने तुमसे कहा था कि समय आने पर मैं तुम्हें अपनी कुछ और शक्तियों के बारे में बता दूंगा। तो ये है मेरी एक और शक्ति, जिसमें मैं तुम्हारे शरीर को
नुकसान होने पर उन पर उभरे घावों को भी भर सकता हूं।” जेनिथ यह सुनकर खुश हो गई।

“मुझे लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति हम लोगों के साथ है? जो कि समय-समय पर हमें अंजाने खतरों से बचा रही है।” अलबर्ट ने कहा-“और वह शक्ति बहुत तेजी से कार्य करती है, जिससे हम उसको देख नहीं
पाते, बस उसे अपने आसपास महसूस कर पाते हैं।”

“आप सही कह रहे हैं प्रोफेसर।” सुयश ने कहा- “मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है।”

“ऐ अदृश्य शक्ति, हमें ऐसे ही अंजान खतरों से बचाते रहना और हमारा मार्गदर्शन करते रहना। हम सदैव तेरे आभारी रहेंगे।” क्रिस्टी ने आसमान की ओर हाथ जोड़कर अदृश्य शक्ति को धन्यवाद दिया।

इसके बाद सभी पुनः आगे की ओर बढ़ गये।


जारी रहेगा..........
Jenith ne sabhi ko bacha liya, khair mera point ye hai ki ab Cristy ka kya role hone wala hai story mein aage???

6 koi bache hain jisme lag raha hai Taufiq ka marna nischit hai dekhte hain Jenith kis tarah se usko saja deti hai??

Exam tha isliye late hoon thoda sa khair aaj sab episode khatam nahi hua toh kal ho jayega.
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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#117.

कालसर्प विषाका:
(3 दिन पहले........09 जनवरी 2002, बुधवार, 16:10, मायावन)

जंगल में पक्षियों का कलरव गूंज रहा था। ठण्डी-ठण्डी हवाओं के झोंको से ऐलेक्स की आँख खुल गयी।

ऐलेक्स ने धीरे से उठकर चारो ओर नजर मारी। उसके आसपास कोई भी नहीं था।

तभी उसे याद आया कि किसी इंसान ने हाथों से निकलते हरे रंग के धुंए को सूंघकर वह बेहोश हो गया था।

“कौन था वह आदमी ? उसने मुझे क्यों बेहोश किया...और...और कैप्टेन सहित सारे लोग मुझे बिना साथ लिये क्यों चले गये?”

परंतु थोड़ी देर तक सोचने के बाद भी जब ऐलेक्स को अपने सवालों का जवाब नहीं मिला, तो वह अपने कपड़ों को झाड़कर, अंदाज से ही जंगल में एक ओर बढ़ गया।

अकेले होने की वजह से ऐलेक्स को अब थोड़ा डर लग रहा था। उसके पास ना तो खाने-पीने की कोई चीज थी और ना ही अपने बचाव के लिये कोई हथियार। अब तो बस जंगल का सहारा ही बचा था।

ऐलेक्स अभी कुछ आगे ही बढ़ा था कि तभी उसे एक पेड़ के पास कोई लड़की का साया दिखाई दिया।
ऐलेक्स यह देख तुरंत एक पेड़ की ओट में छिप गया।

ऐलेक्स ने धीरे से किसी चोर की तरह पेड़ की ओट से झांककर उस साये को देखा।

वह साया अब उजाले में आ गया था। उस साये पर नजर पड़ते ही ऐलेक्स के होश उड़ गये।

“बाप रे....यह तो मेडूसा है। ग्रीक कहानियों की पात्र, जिसकी आँख में देखते ही इंसान पत्थर का बन जाता है....यह...यह इस जंगल में क्या कर रही है...मुझे तो लगता था कि ग्रीक कहानियों के सभी पात्र झूठे थे...पर ...पर इसे देखने के बाद ....देखने से याद आया मुझे इसकी आँखों में नहीं देखना है, नहीं तो मैं भी पत्थर का बन जाऊंगा।”

ऐलेक्स मन ही मन बड़बड़ाते पूरी तरह से भयभीत हो गया। जब थोड़ी देर तक कुछ नहीं घटा, तो ऐलेक्स ने धीरे से अपनी आँखें खोलकर चारो ओर देखा।

मेडूसा का कहीं भी पता नहीं था। यह देख ऐलेक्स ने राहत की साँस ली।

“लगता है कहीं चली गयी?....पर मैंने तो कहानियों में सुना था कि मेडूसा को पर्सियस ने मार दिया था, फिर ये जिंदा कैसे है?... क्या ये भी किसी मायाजाल का हिस्सा है?.... पर ये उस पेड़ के पास क्या कर रही
थी?”

ऐलेक्स के दिमाग में अजीब-अजीब से ख्याल आ रहे थे।

थोड़ी देर तक ऐलेक्स अपनी जगह पर खड़ा रहा, फिर कुछ सोच वह उस पेड़ की ओर बढ़ा, जिसके पास से उसने मेडूसा को निकलते हुए देखा था।

उस पेड़ के पास पहुंचकर ऐलेक्स ने घूरकर देखा, उसे उस पेड़ में बड़ा सा कोटर दिखाई दिया।

ऐलेक्स ने उस कोटर में झांककर देखा, पर अंदर अंधेरा होने की वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं दिया।

कुछ सोच ऐलेक्स धीरे से उस कोटर में दाखिल हो गया। वह कोटर अंदर से काफी बड़ा था, ऐलेक्स उसमें खड़ा भी हो सकता था।

ऐलेक्स धीरे-धीरे टटोलकर आगे की ओर बढ़ने लगा।

कुछ आगे जाने पर उसे काफी दूर एक हल्की सी नीले रंग की रोशनी दिखाई दी। ऐलेक्स उस रोशनी की दिशा में आगे बढ़ने लगा।

एक छोटे से पेड़ में इतनी बड़ी सुरंग के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। थोड़ा आगे बढ़ने पर रास्ता ऊपर की ओर से संकरा होने लगा, यह देख ऐलेक्स अब झुककर चलने लगा।

उस संकरे रास्ते में भी पर्याप्त ऑक्सीजन थी, इसलिये ऐलेक्स को साँस लेने में किसी प्रकार की कोई भी तकलीफ नहीं हो रही थी।

बैठकर चलते-चलते ऐलेक्स, कुछ ही देर में उस रोशनी के स्थान पर पहुंच गया।

वहां पर जमीन में एक 4 फुट व्यास का गड्ढा था, रोशनी उसी गड्ढे से आ रही थी।

ऐलेक्स ने रोशनी के स्रोत का पता लगाने के लिये उस गड्ढे में झांककर देखा। गड्ढे में झांकते ही ऐलेक्स का पैर फिसल गया और वह 20 फुट गहरे उस गड्ढे में गिर पड़ा।

गड्ढे में गिरने के बाद भी ऐलेक्स को चोट नहीं लगी, क्यों कि उसका शरीर किसी गुलगुली चीज पर गिरा था।

वह एक बड़ा सा तहखाना था। तहखाना रोशनी से भरा था,शइसलिये ऐलेक्स को देखने में जरा भी मुश्किल नहीं हुई कि वह किस चीज पर गिरा है? पर उस चीज पर नजर पड़ते ही ऐलेक्स की धड़कन बिल्कुल रुक सी गयी, वह एक तीन सिर वाला विशालकाय काला सर्प था, जो कि उस तहखाने में सो रहा था।

ऐलेक्स हड़बड़ा कर उस सर्प से दूर हो गया। भला यही था ऐलेक्स के गिरने के बावजूद भी, वह सर्प नींद से नहीं जागा था।

ऐलेक्स ने तुरंत अपने बचने के लिये तहखाने में चारो ओर नजरें डाली, तहखाने में एक भी दरवाजा नहीं था।

ऐलेक्स यह देख और भी डर गया।

“हे भगवान...यह मैं कहां फंस गया? इस तहखाने में तो निकलने का एक मात्र वहीं रास्ता है, जिससे मैं यहां नीचे गिरा था, पर वह तो 20 फुट की ऊंचाई पर है...और इस तहखाने में कोई भी ऐसी चीज नहीं है? जिस पर खड़ा हो कर मैं उतनी ऊंचाई तक पहुंच सकूं....और ऊपर से यह काला साँप?....अगर यह उठ गया तो मुझे मरने से कोई भी नहीं बचा सकता। हे ईश्वर बचाले इस मुसीबत से।”

ऐलेक्स काफी देर तक डरा-डरा तहखाने के दूसरे किनारे पर बैठा रहा। पर जब काफी देर हो गया तो ऐलेक्स का डर थोड़ा सा कम हुआ।

अब उसने पूरे तहखाने पर नजर मारना शुरु कर दिया। पूरा तहखाना दो भागों में बंटा था।

तहखाने के बीचो बीच एक लाल रंग की रेखा खिंची हुई थी। उस रेखा के एक ओर वह सर्प सो रहा था और दूसरी ओर कुछ सामान रखा था।

ऐलेक्स अब उस समान के पास पहुंचकर उन्हें देखने लगा।

वहां मौजूद सामान में एक बीन थी, एक काँच की बोतल थी, जिसमें सुनहरे रंग का धुंआ भरा था। बीच-बीच में उस धुंए में लाइट स्पार्क हो रही थी।

बोतल को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे बोतल में बादल कैद हैं और उन बादलों में बीच-बीच में बिजली सी चमक रही है।

बोतल के पास एक काँच का पारदर्शी घड़ा रखा था, जिसका मुंह छोटा था और उस काँच के घड़े में एक कंचे के आकार की, नीले रंग की हीरे सी चमचमाती एक मणि रखी थी।

उसी मणि का प्रकाश तहखाने में चारो ओर बिखरा हुआ था।

“क्या मुझे यहां रखे इन सामान को छूना चाहिये?” ऐलेक्स के दिमाग की घंटी बज रही थी- “कहीं ऐसा ना हो कि किसी सामान को छूते ही यह तीन सिर वाला साँप जाग जाये?.. ...नहीं...नहीं मुझे यहां रखी किसी
चीज को भी नहीं छूना।”

ऐलेक्स यह सोच चुपचाप बैठ गया, पर जब 2 घंटे बीत गये तो ऐलेक्स फिर से खड़ा हुआ और उस काँच के मटके में हाथ डालकर उस मणि को निकाल लिया।

ऐलेक्स ने मणि को उलट-पलट कर देखा और फिर से वापस उसी घड़े में रख दिया।

अब ऐलेक्स ने उस काँच की बोतल को उठा कर देखा। उस बोतल के ऊपर एक कार्क का ढक्कन लगा था।

ऐलेक्स ने ढक्कन को खोलने की बहुत कोशिश की, पर वह ढक्कन ऐलेक्स से ना खुला।

आखिरकार ऐलेक्स ने बोतल को रख अब बीन उठा ली। ऐलेक्स उस बीन को कुछ देर तक देखता रहा और फिर उसने बीन को बजाना शुरु कर दिया।

ऐलेक्स के द्वारा बीन के बजाते ही वह तीन मुंह वाला सर्प जाग गया।

यह देख ऐलेक्स ने डरकर बीन को एक ओर फेंक दिया और वापस डरता हुआ तहखाने के दूसरे किनारे पर बैठकर उस साँप को देखने लगा।

जागते ही उस साँप ने एक जोर की फुंफकार मारी और अपने तीनों सिर से ऐलेक्स को घूरकर देखने लगा।

ऐलेक्स उसे साँप को अपनी ओर देखते पाकर और भी ज्यादा डर गया।

तभी उस साँप का बीच वाला सिर बोल उठा- “तुम कौन हो मानव? क्या तुमने ही मुझे इस नींद से जगाया है?”

साँप को बोलता देख ऐलेक्स की घबराहट थोड़ी सी कम हो गयी।

“म...म....मैं तो उस बीन को देख रहा था...वह तो मुझसे गलती से बज गयी...मेरा तुमको उठाने का कोई इरादा नहीं था।” ऐलेक्स ने घबराते हुए कहा।

“घबराओ नहीं मानव...मैं तुमको कोई हानि नहीं पहुंचाऊंगा।” साँप बोला- “तुमने तो मुझे जगा कर मेरी मदद ही की है।”

“मदद!....कैसी मदद।” ऐलेक्स उस सर्प के शब्द को सुनकर अब थोड़ा बेहतर दिखने लगा।

“मेरा नाम विषाका है, मुझे एक विषकन्या ने हजारों सालों से इस स्थान पर कैद करके रखा है, उस विषकन्या ने मेरी सारी शक्तियों को उस बोतल में बंद कर दिया है और मेरी मणि भी छीनकर उस घड़े में रखी है।

मैं एक अच्छा नाग हूं, मैंने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया।” विषाका ने कहा- “हे मनुष्य क्या तुम मेरी मणि को उस घड़े से निकालकर मुझे दे सकते हो ?”

“तुम स्वयं क्यों नहीं ले लेते उस मणि को ?” ऐलेक्स ने शंकित स्वर
में कहा- “अब तो तुम जाग गये हो।”

“मैं अपनी मणि और शक्तियों के बिना इस लाल रेखा को नहीं पार कर सकता।” विषाका ने कहा- “इसी लिये मैं तुमसे उसे देने को कह रहा हूं। मुझे पता है तुम अच्छे इंसान हो, तुम मुझे मणि और वह बोतल अवश्य दोगे।”

“थैंक गॉड कि यह सर्प तहखाने के इस तरफ नहीं आ सकता।” ऐलेक्स ने मन में ही ईश्वर को धन्यवाद किया- “पर पता नहीं यह सर्प सही बोल रहा है या फिर झूठ बोल रहा है?...कहीं ऐसा ना हो कि मैं जैसे ही
इसे यह दोनों वस्तुएं दूं, यह मुझे ही मार दे।”

ऐलेक्स को सोचता देख विषाका ने फिर आग्रह किया- “ज्यादा मत सोचो मानव, मैं कभी झूठ नहीं बोलता, इससे पहले कि वह विषकन्या वापस लौटे, मुझे वह दोनों चीजें दे दो। मैं यहां से आजाद होते ही तुम्हें भी यहां से निकाल दूंगा। अगर वह विषकन्या वापस आयी तो वह तुम्हें पत्थर का बना देगी, फिर तुम कभी भी यहां से निकल नहीं पाओगे।”

ऐलेक्स को वह सर्प सही बोलता दिख रहा था, पर फिर भी जाने क्यों उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी, उस सर्प को दोनों वस्तुएं देने की। ऐलेक्स के लिये यह स्थिति असमंजस से भरी थी।

विषाका बार-बार ऐलेक्स से निवेदन कर रहा था, मगर विषाका समझ गया था कि ऐलेक्स इतनी आसानी से उसे वह दोनों वस्तुंए नहीं देगा।

अचानक विषाका जमीन पर गिरकर तड़पने लगा। ऐलेक्स यह देख कर डर गया।

“ऐ अच्छे मनुष्य, मेरी मणि मेरे पास ना होने से मेरा दम घुटने लगा है।” विषाका ने तड़पते हुए कहा- “अगर तुमने मुझे मणि नहीं दी तो मैं कुछ ही मिनटों में अपने प्राण त्याग दूंगा। अगर तुम्हें सोचने के लिये और समय चाहिये तो तुम सोचो, पर कम से कम मणि मुझे देकर मेरी जान तो बचालो। वैसे भी मैं बिना बोतल की शक्तियों के इस लाल रेखा को पार नहीं कर सकता और अगर मैं मर गया तो तुम्हारी यहां से निकलने की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो जायेगी।”

विषाका की इस बात ने ऐलेक्स पर असर किया। उससे विषाका का यूं तड़पना देखा नहीं गया।

कुछ सोच ऐलेक्स ने काँच के घड़े से मणि को निकाला और विषाका की ओर उछाल दिया।

मणि को अपनी ओर आते देख अचानक विषाका तड़पना छोड़ मणि की ओर झपटा।

विषाका ने मणि को हवा में ही अपने बीच वाले मुंह से पकड़ लिया। अब विषाका सही नजर आने लगा।

“हे मनुष्य, मैं तुम्हारा नाम जानना चाहता हूं।” विषाका ने ऐलेक्स को देखते हुए कहा।

“मेरा नाम ऐलेक्स है।” ऐलेक्स ने जवाब दिया।

यह सुन विषाका जोर से फुफकारा और लाल रेखा को पारकर ऐलेक्स के पास आ गया।

विषाका को लाल रेखा पार करते देख, ऐलेक्स को एक मिनट में ही अपनी भूल का अहसास हो गया।

“तुम्हें पता है कि मैंने तुम्हारा नाम क्यों पूछा ?” विषाका ने अपने तीनों फन को हवा में लहराते हुए कहा- “ताकि मैं पूरे नागलोक को तुम्हारी मूर्खता की कहानी सुना सकूं। मैं उन्हें बताऊंगा कि एक मूर्ख मनुष्य मुझे मिला था, जिसने एक विषधर के नाटक पर विश्वास करके उसकी चमत्कारी मणि वापस कर दी। हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ अरे मूर्ख उस बोतल में तो मेरी शक्तियां हैं ही नहीं। मेरी सारी शक्तियां तो इस मणि में थीं।....अब बताओ तुम्हारा क्या किया जाये?”

विषाका की बात सुनकर ऐलेक्स आशा के विपरीत गुस्सा होते हुए बोला-

“अगर तुम मेरी अच्छाई को मूर्खता का नाम दे रहे हो, तो तुम से बड़ा धोखेबाज तो आज तक मैंने इंसानों में भी नहीं देखा। मुझे गर्व है कि मैं इंसान हूं...तुम मुझे मारना चाहते हो तो मार दो, पर ये याद रखना कि तुम जब भी कभी जिंदगी में मेरे बारे में सोचोगे, तुम्हें बहुत बेचैनी महसूस होगी।”

ऐलेक्स के ऐसे शब्दों को सुन विषाका एक पल को हिल गया, उसे डरे-डरे ऐलेक्स से ऐसी वीरता की उम्मीद नहीं थी।

कुछ सोच विषाका पलटा और उसने अपने दांए फन से वहां रखी बोतल को उठा लिया।

बोतल उठाकर विषाका वापस ऐलेक्स की ओर घूमा- “कुछ भी हो मुझे तुम्हारा यह रुप बहुत अच्छा लगा, इसलिये मैं तुम्हें जीवनदान देता हूं, वैसे भी मेरे जाने के बाद या तो तुम भूख-प्यास से मर जाओगे या फिर विषकन्या तुम्हें मार देगी, तो फिर मैं तुम्हें मारकर इस पाप को अपने सिर क्यों लूं।”

इतना कहकर विषाका अपनी पूंछ पर खड़ा हो कर छत पर लगे उस
छेद से बाहर निकल गया।

विषाका के बाहर निकलते ही तहखाने में पूरी तरह से अंधकार छा गया। अब ऐलेक्स के पास उस तहखाने से बाहर निकलने का कोई उपाय नहीं बचा था।


जारी रहेगा______✍️
 

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#114.

महाशक्ति (
11 जनवरी 2002, शुक्रवार, 15:10, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

व्योम को चलते हुए 1 दिन से भी ज्यादा हो चुका था। पिछली रात व्योम ने एक पेड़ पर सोकर गुजारी थी।
एक ही बात बेहतर थी कि अभी तक उसे किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं मिला था।

अकेला होने की वजह से व्योम को उस जंगल में काफी उलझन महसूस हो रही थी, फिर भी वह आगे बढ़ रहा था।

जिस मूर्ति को उसने पहाड़ से चढ़कर देखा था, व्योम को लगा था कि 2 घंटे में ही वह उस मूर्ति तक पहुंच जायेगा, पर जंगल के टेढ़े-मेढ़े रा स्ते की वजह से व्योम को अभी तक उस मूर्ति के दर्शन नहीं हुए थे।
वैसे वह जंगल इतना खूबसूरत था कि व्योम को थकान का अहसास नहीं हो रहा था। खाने-पीने की भी बहुत सारी चीजें आस-पा स थीं।

“मैं यहां ‘सुप्रीम’ के लोगों को बचाने आया था, पर मैं स्वयं ही इस रहस्यमय द्वीप पर फंस गया। पता नहीं मैं अब कभी अपने घर पहुंच भी पाऊंगा कि नहीं ?” व्योम मन ही मन बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ रहा था-
“ऊपर से इस द्वीप पर भी पता नहीं कैसे-कैसे रहस्य छुपे हुए हैं?”

तभी व्योम को उन लाल और हरे फलों का ध्यान आया जिसे खाकर वह हाथी, चूहे जितने आकार का हो गया था। यह सोच व्योम ने लाल रंग के फल को जेब से निकालकर देखा।

“देखने में तो साधारण फल जैसा ही लग रहा है। पता नहीं इस फल का खाने में स्वाद कैसा होगा ?”
तभी व्योम के दिमाग में एक खुराफात आयी।

“क्यों ना उस लाल फल को खाकर देखूं? आखिर पता तो चले कि चूहे जितना बनकर कितना मजा आता है? पर कहीं मैं हमेशा के लिये उतना ही बड़ा रह गया तो फिर क्या होगा ?” व्योम के दिमाग में यह सोचकर उथल-पुथल होने लगी।

आखिरकार दिल को कड़ाकर व्योम ने उस फल को खाने का निर्णय कर ही लिया।

“ठीक है, खा ही लेता हूं फल को, पर.... पर इसे किसी पेड़ पर बैठ कर खाना होगा, नहीं तो छोटा होते ही कोई पक्षी मुझ पर हमला ना कर दे?”

यह सोच व्योम एक ऊंचे से पेड़ की डाल पर चढ़कर बैठ गया। व्योम ने अब उस लाल फल को अपने वस्त्रों पर रगड़ कर साफ किया और फिर अपने मुंह में रख लिया।

व्योम ने उस फल को चबाया, उस फल का स्वाद खट्टा था। उसमें कोई बीज भी नहीं था।
तभी व्योम के शरीर को एक झटका लगा। अब उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह आसमान की ऊंचाइयों से नीचे गिर रहा हो।

उसके आसपास के पेड़-पौधे बड़े होते दिखने लगे, जबकि असल में व्योम के छोटे हो जाने की वजह से उसे ऐसा महसूस हो रहा था। कुछ ही देर में व्योम का आकार एक चींटी के बराबर का हो गया।

“अरे ये तो मैं चूहे से भी छोटा हो गया।” व्योम ने स्वयं को देखते हुए सोचा- “अच्छा वह हाथी बहुत बड़ा था, इसलिये वह चूहे के आकार का हो गया था। इंसान के शरीर को यह फल चींटी जितना छोटा कर देता है।”

व्योम ने अब अपनी जेब में पड़े सभी वस्तुओं को देखा, वह सारी वस्तुएं भी व्योम के अनुपात में ही छोटी हो गयीं थीं।

“यह कैसे सम्भव हो सकता है, इस फल को तो केवल मेरा शरीर छोटा करना चाहिये था, फिर मेरे कपड़े और जेब में रखा सामान कैसे छोटा हो गया?”

काफी देर सोचने के बाद भी जब व्योम को कुछ समझ नहीं आया तो वह सोचना छोड़ अपने इस सूक्ष्म रुप का आनन्द उठाने लगा।

तभी व्योम को कुछ अजीब सी खरखराने की आवाज सुनाई दी। व्योम ने अपने चारो ओर देखा। तभी व्योम की नजर अपनी डाल पर सामने से आ रही एक लाल रंग वाली चींटी पर पड़ी।

चींटी ने भी अब उसे देख लिया था। वह खूंखार नजरों से व्योम को घूर रही थी। यह देखकर व्योम के होश उड़ गये।
चींटी अब व्योम की ओर बढ़ने लगी थी। व्योम यह देखकर डाल के किनारे की ओर भागा। चींटी भी तेजी से व्योम के पीछे लपकी।

व्योम भागते हुए डाल के बिल्कुल किनारे तक पहुंच गया। आगे अब रास्ता खत्म हो गया था। चींटी अभी व्योम से कुछ दूरी पर थी।

व्योम ने अपनी नजरें ऊपर नीचे दौड़ाईं। व्योम को अपने ऊपर कुछ ऊंचाई पर एक दूसरी डाल दिखाई दी। पर वह डाल इतनी ऊंची थी कि व्योम उछलकर उस डाल तक नहीं पहुंच सकता था।

तभी व्योम का ध्यान अपने बैग में रखी नायलान की रस्सी की ओर गया। व्योम ने जल्दी से बैग की जिप खोलकर उसमें से रस्सी का गुच्छा निकाल लिया और उसका एक किनारा ऊपर की ओर उछाल दिया।

एक बार में ही रस्सी का वह सिरा एक डाल के ऊपर से होकर वापस व्योम के हाथ में आ गया।
व्योम ने रस्सी के दोनों सिरों को जोर से पकड़ा और उछलकर हवा में लहराते हुए, दूसरी पेड़ की डाल पर पहुंच गया।

चींटी को उम्मीद नहीं थी कि उसका शिकार इतनी आसानी से उसके हाथ से निकल जायेगा।
चींटी ने घूरकर एक बार व्योम को देखा और फिर दूसरे शिकार की खोज में चली गयी।

चींटी के जाने के बाद व्योम ने राहत की साँस ली। व्योम ने वापस रस्सी का गुच्छा बना कर अपने बैग में डाला और वहीं पेड़ की डाल पर बैठकर जंगल का नजारा देखने लगा। तभी व्योम को सूखे पत्ते के खड़कने की आवाज सुनाई दी।

व्योम ने नीचे झांककर देखा। वह 2 बौने थे, जो आकर उस पेड़ के नीचे खड़े हो गये थे।
उनमें से एक बौने के हाथ में एक छोटा सा लकड़ी का यंत्र था, जिसमें एक लाल रंग की लाइट लगी थी और वह यंत्र ‘बीप-बीप’ की आवाज कर रहा था।

वह आपस में बातें कर रहे थे।

“रिंजो, तू यह यंत्र लेकर मुझे बेकार में ही जंगल में घसीट रहा है, यहां नहीं मिलने वाली कोई शक्ति तुझे?” काली दाढ़ी वाले बौने ने कहा।

“तुझे तो कुछ मालूम ही नहीं है शिंजो ?” रिंजो ने कहा- “पिछली बार भी वह धरा शक्ति का कण मैंने ढूंढा था। अगर मैंने वह नहीं ढूंढा होता, तो हम जोडियाक वॉच कभी ना बना पाते।”

“ढूंढा नहीं चुराया था तूने।” शिंजो ने गुस्सा कर कहा।

“अरे चुप कर! अगर किसी ने सुन लिया तो हमारी रही सही इज्जत भी चली जायेगी।” रिंजो ने मुंह पर उंगली रख, शिंजो को चुप कराते हुए कहा- “वैसे भी उस अविष्कार का क्रेडिट हम दोनों ने ही लिया था।
अगर किरीट को पता चला तो वह हम दोनों की खाल उतार लेंगे।”

“ठीक है-ठीक है।” शिंजो भी बात की गम्भीरता को समझ चुप हो गया।

“किरीट और कलाट, हमें बहुत अच्छा वैज्ञानिक समझतें हैं, अब वो क्या जानें कि हम लोग छिपी हुई गुप्त शक्तियों को इस यंत्र के माध्यम से ढूंढते हैं? और फिर उसे अपने द्वारा बनाये किसी इलेक्ट्रानिक यंत्र में फिट करके, अपना अविष्कार बताकर उन्हें दिखा देते हैं।” रिंजो ने हंसते हुए कहा।

यह सुन शिंजो भी हंसते हुए बोला- “चाहे जो हो, पर बुड्ढे तेरी खोपड़ी बहुत कमाल की है।”

“तूने फिर मुझे बुड्ढा बोला।” रिंजो ने गुस्साते हुए कहा- “मैं सिर्फ तेरे से 1 मिनट ही बड़ा हूं।”

“पर तेरी दाढ़ी तो पककर भूरी हो गयी है, मेरी तो अभी भी काली-काली है।” शिंजो ने उछल-उछल कर अपनी काली दाढ़ी को दिखाते हुए, रिंजो को चिढ़ाने वाले अंदाज में कहा।

यह सुन रिंजो गुस्से से पागल हो गया। उसने आगे बढ़कर शिंजो को पटक दिया और उसके सीने पर चढ़कर उसकी दाढ़ी नोचने लगा- “चल आज दाढ़ी का किस्सा ही खत्म करते हैं। ना रहेगी दाढ़ी....ना तू मुझे कभी चिढ़ायेगा।”

“अरे कमीने रिंजो... छोड़ मेरी दाढ़ी। अगर मेरी दाढ़ी का एक भी बाल टूटा, तो मैं तेरे सब जगह के बाल नोंच डालूंगा...तू अभी मुझे जानता नहीं है।”

यह कहकर दो नों बौने पटका-पटकी करके लड़ने लगे।

व्योम पेड़ के ऊपर बैठा दोनों बौंनों का हास्यास्पद युद्ध देख रहा था। तभी रिंजो का यंत्र पैर लगने की वजह से थोड़ी दूर जा गिरा और उससे एक तेज ‘बीप-बीप’ की आवाज आयी। यह सुन दोनो बौने लड़ना छोड़ तुरंत उठकर खड़े हो गये।

“रिंजो मेरे प्यारे भाई... तुम्हें कहीं चोट तो नहीं आयी ?” शिंजो ने एका एक सुर बदलते हुए कहा।

“नहीं मेरे प्यारे छोटे भाई। मुझे कहीं चोट नहीं आयी, पर अगर तुम्हें आयी हो तो अपने इस 1 मिनट बड़े भाई को माफ कर देना।” रिंजो ने शिंजो को गले से लगाते हुए कहा।

व्योम को दोनो बौनों का यह प्रवृति समझ में नहीं आयी, पर उसे दो नों बौनों का कैरेक्टर बड़ा अच्छा लगा।

अब रिंजो ने यंत्र को जमीन से उठाते हुए कहा- “अरे बाप रे... इस गुप्त शक्ति के सिग्नल की स्ट्रेंथ तो देखो। आज तक हमें कभी इतनी ताकतवर शक्ति नहीं मिली?”

शिंजो भी उस यंत्र की तरफ देखते हुए बोला- “चलो भाई फिर जल्दी से चलकर उस गुप्त शक्ति पर अपना अधिकार कर लेते हैं।”

यह कहकर दोनों बौने उस यंत्र को उठा कर एक दिशा की ओर चल दिये, पर जैसे ही वह दोनों बौने व्योम के पेड़ के नीचे से निकले, ऊपर से व्योम रिंजो के सिर पर कूद गया।

चींटी जैसे व्योम के कूदने से रिंजो को कोई अहसास भी नहीं हुआ। व्योम ने कसकर रिंजो के सिर पर लगी टोपी को पकड़ लिया।

दोनों बौने यंत्र को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे। कुछ ही देर में वह दोनों बौने एक छोटी सी झील के पास पहुंचकर रुक गये।

“गुप्त शक्ति के सिग्नल तो इस झील के अंदर से आ रहे हैं।” रिंजो ने शिंजो की ओर देखते हुए कहा- “अब क्या करें?”

“करना क्या है, झील के अंदर जाओ और उस गुप्त शक्ति को बाहर लेकर आ जाओ।” शिंजो ने अपना ज्ञान बांटते हुए कहा।

“अच्छा... तो मैं झील के अंदर जाऊं और तू बाहर रहकर मेरा इंतजार करेगा। फिर जब मैं गुप्त शक्ति को लेकर आऊं, तो तू किरीट को बताएगा कि यह शक्ति तूने मेरे साथ मिलकर बनाई है।” रिंजो ने शिंजो को
घूरते हुए कहा- “मतलब जान मैं अपनी संकट में डालूं और मजा तू भी बराबर का लेगा।”

“पानी में घुसना, जान संकट में डालना होता है क्या?” शिंजो गुर्राया- “अरे मैं तो बाहर खड़े रहकर तेरी सुरक्षा करुंगा।”

“तो फिर एक काम कर तू चला जा झील के अंदर।” रिंजो ने दुष्टता से भरी मुस्कान बिखेरते हुए कहा- “मैं बाहर रहकर तेरी सुरक्षा करुंगा।”

“म....म...मैं क्यों जाऊं?” शिंजो यह सुनकर घबरा गया- “तू चला जा ना भाई, मैं 70 प्रतिशत उस अविष्कार का क्रेडिट तुझे ही दिलवा दूंगा। तू तो जानता है ना कि मैं पानी से कितना डरता हूं, मैं तो पिछले 50 वर्षों
से नहाया भी नहीं हूं।”

“तो मैं कौनसा रोज नहाता हूं, किरीट के डर से रोज बाथरुम में घुसता तो हूं, पर पानी गिरा कर बाहर आ जाता हूं।“ रिंजो ने भी घबराते हुए कहा- “भाई बताना मत मेरा यह राज किसी को।”

“अरे शांत हो जा, मैं किसी को नहीं बताऊंगा।” शिंजो ने डरकर झील को देखते हुए कहा- “पर अब ये बताओ कि फिर इस झील से उस गुप्त शक्ति को कैसे प्राप्त करेंगे?”

“मेरे हिसाब से हमें इस शक्ति को भूल जाना चाहिये और किसी दूसरी शक्ति को ढूंढना चाहिये। जो पहाड़, बर्फ, ज्वालामुखी कहीं भी हो, पर पानी में ना हो।” रिंजो ने हथियार डालते हुए कहा- “और मेरे प्यारे
भाई, मैंने तुम्हें जो भी अपशब्द कहे, उसके लिये अपने इस 1 मिनट बड़े भाई को दिल से माफ कर देना।”

“भैया मैंने भी आपका दिल दुखाया है, चलो आज मैं आपके सोते समय पैर भी दबाऊंगा।” शिंजो ने भी माफी मांगते हुए कहा और वहां से जाने लगे।

उन्हें वहां से जाता देखकर व्योम रिंजों की टोपी से वहीं कूद गया।

दोनों बौने एक दूसरे के गले में हाथ डालकर वहां से चले गये। व्योम इतने कॉमेडी कैरेक्टर्स को देखकर मुस्कुरा उठा।

बौनों के जाने के बाद व्योम ने एक बार उस झील को देखा और फिर उसमें छलांग लगा दी।
जल्दी-जल्दी में व्योम यह भूल गया कि उसका आकार अभी छोटा ही है।

पानी में कूदते ही एक विशाल मछली को देख, व्योम को अपनी भूल का अहसास हो गया।
वह पलटकर तेजी से वापस किनारे की ओर चला, तभी व्योम को अपने पीछे एक 12 इंच बड़ा
समुद्री घोड़ा दिखाई दिया।

वह समुद्री घोड़ा वैसे तो सिर्फ 12 इंच ही बड़ा था, पर व्योम के चींटी जैसे आकार में होने के कारण वह व्योम को अपने से 100 गुना ज्यादा बड़ा नजर आ रहा था।

इससे पहले कि व्योम अपने बचाव में कुछ कर पाता, समुद्री घोड़े ने अपने हाथ में पकड़ी एक सुनहरी रस्सी से व्योम को बांध लिया और झील की तली की ओर लेकर चल दिया।

झील के पानी में कुछ मछलियाँ और समद्री घोड़े ही दिखाई दे रहे थे। व्योम पानी में सिर्फ 25 मिनट तक ही साँस ले सकता था, इसलिये उसे थोड़ा डर लग रहा था कि कहीं वह इतने समय में झील से बाहर नहीं
निकल पाया तो क्या होगा?

समुद्री घोड़ा व्योम को लेकर, अब झील की तली में पहुंच गया। तभी व्योम को पानी के अंदर कोई चमकती हुई चीज दिखाई दी। समुद्री घोड़ा उसी ओर जा रहा था।

कुछ ही देर में व्योम को वह सुनहरी चीज बिल्कुल साफ दिखाई देने लगी थी। वह एक सुनहरी धातु का बना पंचशूल था, जिस पर सूर्य की एक आकृति बनी दिखाई दे रही थी।

समुद्री घोड़े ने पंचशूल के पास पहुंचकर व्योम के हाथ की रस्सी खोल दी। व्योम को समुद्री घोड़े की यह हरकत समझ में नहीं आयी, पर वह इतना जरुर जान गया कि यही वह गुप्त शक्ति है, जिसके बारे में दोनो बौने बात कर रहे थे।

समुद्री घोड़ा व्योम को वहीं छोड़कर, स्वयं पानी में भागकर कहीं गायब हो गया। व्योम यह नहीं समझ पा रहा था कि अगर यह कोई शक्ति है? और समुद्री घोड़ा इसकी रक्षा करता है, तो वह व्योम को इस शक्ति के पास क्यों छोड़ गया?

तभी व्योम को उस पंचशूल से कुछ वाइब्रेशन जैसी तरंगे निकलती दिखाईं दीं। उन तरंगों में एक प्रकार की गूंज थी।

व्योम इस शब्द की ध्वनि को पहचानता था। यह ध्वनि ‘ओऽम्’ शब्द की थी।

व्योम ने धीरे से पहले, अपनी जेब से एक हरे रंग का फल निकाला और उस फल को अपने मुंह में रख लिया।

फल को चबाते ही व्योम का शरीर अपने वास्तविक आकार में आ गया। अब व्योम उस पंचशूल को उठाने के लिये आगे बढ़ा।

व्योम ने अपने दाहिने हाथ से जैसे ही उस पंचशूल को छुआ, उसके शरीर को हजारों वोल्ट के बराबर का, करंट जैसा झटका लगा। यह झटका इतना तेज था कि व्योम उछलकर झील से बाहर आ गिरा।

व्योम को असहनीय दर्द का अहसास हो रहा था। व्योम ने कराहते हुए एक नजर अपने शरीर पर मारी। व्योम का पूरा शरीर झुलस गया था। कई जगह से फटा हुआ मांस बाहर झांक रहा था।

उस पंचशूल से निकली ऊर्जा ने व्योम के शरीर के चिथड़े उड़ा दिये थे, पता नहीं वह कौन सी शक्ति थी, जिसने व्योम को अभी तक जिंदा रखा था।

एक पल में व्योम समझ गया कि अब उसका अंत निश्चित है। उसकी आँखों के सामने अपने परिवार के सदस्यों के चेहरे एक-एक कर घूमने लगे।

व्योम की आँखों से आँसू भी नहीं निकल पा रहे थे, शायद उसे भी उस असीम ऊर्जा ने सोख लिया था ?

धीरे-धीरे व्योम निढाल हो कर वहीं लुढ़क गया। अब व्योम के शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी।
तभी आसमान में एक जोर की गड़गड़ा हट हुई। ऐसा लगा जैसे कोई विशालकाय वस्तु सामरा राज्य की अदृश्य दीवार से टकराई हो।

कुछ ही पलों में आसमान से एक बूंद टपकी और वह व्योम के खुले मुंह में प्रवेश कर गयी।
व्योम को एक झटका लगा और उसकी साँसें पुनः चलने लगीं।

जी हाँ, यह बूंद और कुछ नहीं, वही गुरुत्व शक्ति की बूंद थी, जो लुफासा और हनुका के लड़ते समय सामरा राज्य की अदृश्य दीवार से टकरा कर नीचे गिर गयी थी।

धीरे-धीरे गुरुत्व शक्ति ने अपना चमत्कार दिखाना शुरु कर दिया। व्योम के शरीर पर उत्पन्न हुये सभी घाव तेजी से भर रहे थे।

कुछ ही देर में व्योम ने कराह कर अपनी आँखें खोल दीं। कुछ देर तक व्योम को कुछ समझ नहीं आया? फिर उसने घबरा कर अपने शरीर की ओर देखा।
इस समय उसके शरीर पर एक भी घाव नजर नहीं आ रहा था। व्योम उठकर खड़ा हो गया और अपने चारों ओर देखने लगा। पर उसे कोई वहां नजर नहीं आया ?

इस समय व्योम को अपने शरीर में एक जबरदस्त शक्ति का अहसास हो रहा था। अब व्योम फिर से झील के पास आकर खड़ा हो गया। व्योम को लगा कि जरुर पंचशूल ने ही उसे ठीक किया है क्यों कि और कोई
चमत्कारी शक्ति तो आसपास है नहीं।

यह सोचकर व्योम ने वापस से झील में छलांग लगा दी। थोड़ी ही देर में वह एक बार फिर पंचशूल के पास था। व्योम ने फिर एक बार अपना हाथ आगे को बढ़ाया और पंचशूल को पकड़ लिया। इस बार व्योम को पंचशूल पकड़ने पर एक शीतल अहसास हुआ।

व्योम मुस्कुराया और पंचशूल लेकर झील से बाहर आ गया। मगर झील से निकलते ही पंचशूल हवा में गायब हो गया।

व्योम घबरा कर अपने चारो ओर देखने लगा, पर पंचशूल कहीं नहीं था। तभी व्योम की निगाह अपनी दाहिने हाथ की कलाई की ओर गयी।

व्योम की कलाई पर अब एक सुनहरे रंग का सूर्य का टैटू चमक रहा था। व्योम समझ गया कि वह शक्ति कहीं गई नहीं है, वह अब भी उसके पास है और वह भी अदृश्य रुप में।

व्योम के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आयी और वह पुनः आगे की ओर बढ़ गया।

जारी रहेगा__________
✍️
Kya future mein Nakshatra ki new power kisi aur ko theek karegi ya phir sirf ye power Jenith ke liye hai???

Kya Vyom aur Suyash mein aapas mein koi connection hai kyunki dono ke paas ab golden surya tattoo hai???

BTW lovely update brother!!!
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
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बहुत ही सुंदर updates... और तोड़ लो फूल.... जब मालूम है कि लगे हुए हैं फिर भी छेड़ा खानी चालु हैं...


अब भोरे को bhugto

avsji बन्धु आपका तर्क स्वीकारणीय है लेकिन अकाट्य नहीं।
वास्तव में किसी भी
उपलब्ध इतिहास, प्रसिद्ध व्यक्ति और सामाजिक व्यवस्था से पहले भी संस्कृति, परम्परा और समाज होता था।
Raj_sharma भाई अपनी संस्कृति दूसरे पर थोप रहे हैं ऐसा आपको लगा, लेकिन मुझे इसका दूसरा पहलू जो समझ आया, आपके सामने रख रहा हूं, पढ़कर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें
सम्पूर्ण पृथ्वी पर समान संस्कृति या सभ्यता थी, समय के साथ नये सामाजिक, सांस्कृतिक व साम्प्रदायिक समूह बनने पर उन समूहों ने सभ्यता या संस्कृति को अपने अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर अलग-अलग रुप में परिभाषित किया जिससे अलग-अलग शब्दों में एक ही बात को कहा जाने लगा और साधारण मनुष्यों ने उनको अलग-अलग ही सभ्यता मान लिया।
विदेशी सभ्यताओं के ऊपर कुछ साम्प्रदायिक समूह इतने हावी हो गये कि वहां के आमजन उन सम्प्रदायों के संस्थापकों और पुस्तकों को ही सभ्यता और संस्कृति का सृजन मानने लगे और उनके पूर्व की सभ्यता-संस्कृति का अस्तित्व ही मानने को तैयार नहीं।
जबकि भारतीय सनातन संस्कृति से जुड़े ज्यादातर लोग आज भी संस्कृति, परम्परा, सभ्यता को अपने आराध्य व्यक्ति और पुस्तकों से प्राचीन मानते हैं
इसीलिए उनकी सभ्यता की कहानी 1500-2000 साल पहले जन्मे व्यक्ति और उसकी लिखी पुस्तक पर समाप्त हो जाती है जबकि हम सांस्कृतिक इतिहास को किसी विशेष क्षेत्र, व्यक्ति या पुस्तक से भी पहले सम्पूर्ण पृथ्वी ही नहीं सम्पूर्ण विश्व तक गणना करते हैं सृष्टि काल से....
जो शर्मा जी यहां कर रहे हैं।

शब्दों का फेर है पोसाइडन कहो या वरुण, जैसे ऑसन कहो या समुद्र....मूल में तत्व तो एक ही है

सबसे पहले तो एक बार फिर से इस पोसाइडन महाराज की - :hammer: यह देवता तो आदमी छोड़ो राक्षस से भी अधिक हैवान है । इसे वहां के लोगों ने देवता कैसे मान लिया !
इस बार उसने जलपरियों के साथ धृष्टता करी और उन्हे शायद मार भी डाला । यह व्यक्ति खुद को समुद्र का देवता कहता है और इसे यह भी पता नही है कि समुद्र के अंदर कुछ गुफाएँ भी है ।

समुद्र के देवता हमलोगों के लिए वरूण है । इन्हे भी एक बार अपने शक्ति पर अभिमान हो गया था लेकिन सिर्फ अभिमान ही हुआ था और कोई गलत विकार पैदा नही हुआ था । सिर्फ इस घमंड की वजह से प्रभु राम इन पर क्रोधित हो गए थे और समुद्र का अस्तित्व ही समाप्त करने पर उतारू थे । लेकिन जल्द ही वरूण को अपनी गलती का एहसास हो गया ।
" विनय न मानत जलधि जड़ , गए तीन दिन बीति ।
बोले राम सकोप तब , भय बिनु होइ न प्रीति ।। "

और जहां तक बात है लंका की , लंका का निर्माण भोलेनाथ के निर्देश पर विश्वकर्मा ने किया था । लेकिन पुलस्तय ऋषि के पुत्र विश्रवा मुनि लोभ मे पड़कर लंका को खुद के लिए मांग लिया । बाद मे इन्होने इसे अपने पुत्र कुबेर को सौंप दिया । इन्ही विश्रवा मुनि की दूसरी पत्नी कैकसी से उत्पन्न रावण ने आगे चलकर इस लंका को कुबेर से छीन लिया था ।
कैकसी मायासुर की पुत्री थी ।

इन विषय पर बहुत लंबी चर्चा हो सकती है लेकिन प्रोब्लम यह है कि इसके लिए यह फ्लैटफार्म सही नही है ।

खैर , देखते है कैस्पर और मैग्ना इस तथाकथित समुद्री गाॅड पोसाइडन का सामना किस तरह से करते है !

खुबसूरत अपडेट शर्मा जी ।


उन्नीस हज़ार साल पहले के जहाज़ का नाम अंग्रेजी भाषा पर नहीं हो सकता, क्योंकि अंग्रेज़ी ठीक से बनी (organised) कोई छः सात सौ साल पहले, और उत्पत्ति में आई कोई डेढ़ हज़ार साल पहले! उसी तरह मीटर शब्द की उत्पत्ति भी कोई ढाई सौ साल पहले हुई। इसलिए माया किलोमीटर जैसे शब्द का प्रयोग नहीं कर सकतीं।
लेकिन मैं बूढ़ी सास की तरह बाल की खाल नहीं उखाड़ूँगा... यह व्यर्थ की बहस हो जाएगी। 😂 पहले ही आपका मन खट्टा कर चुका हूँ, पिछले कमेंट से!

ज़ीउस और हेड्स दोनों भाई थे - मतलब सोफ़िआ और मेरॉन दोनों कजिन हैं।
लिहाज़ा कैस्पर में भी दैवीय शक्तियाँ होनी चाहिए।

मणिका ने भी क्या पंगा ले लिया - जिस देवी की स्तुति करने आई थी, उसी के बालक को बुरी भली बातें बोल दीं।
घंटा कोई वरदान मिलने वाला है देवी से। उल्टा गणेश जी ने दण्ड अलग से दे दिया।
वैसे मणिका और गणेश भगवान वाले एपिसोड और कैस्पर वाले एपिसोड में 900 साल बीत गए हैं।

क्या मणिका और कैस्पर की शादी होगी? [आकाश का राजा + स्वर्ग की अप्सरा]
अगर हाँ, तो आधुनिक काल में उनका पुत्र कौन होगा? रोचक!

बहुत ही बढ़िया लिख रहे हो राज भाई। 👏👏

Bahut acha update aapne supreme ka saransh bhi de diya

nice update

Jabrdast story 👹👹👹👺👺

Site issue to nahi ho raha hai par meri main id Gaurav1969 pe 403 forbidden show kar raha hai ...ye kya issue hai guruji thoda clearance dijiye ispe

Ab forum firse track pe aa gya hai to me bhi 11th episode se continue krunga



Season 9 Hello GIF by Curb Your Enthusiasm

बहुत ही जबरदस्त लाजवाब और अद्भुत मनमोहक रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

अपडेट हमेशा की तरह लाजवाब था गुरूजी 🧡। मेरा पूर्वानुमान की गुरुत्व शक्ति गिरने के बाद नष्ट नही हुई होगी ,सत्य हो गया इस अपडेट में। रिंजो और शिंजो की जोड़ी अपने में ही अलग है, अतरंगी तथा हास्यास्पद कृत्य करने में अव्वल है दोनो, द्वीप पर घूम घूम कर शक्ति को खोजना और उसे अपने किसी यंत्र में प्रयोग करके उसे अपनी खोज बताना यही उनका मुख्य काम है, किरीट से शाबाशी जो मिलती है इन सबसे। व्योम भी समय के साथ शक्तिशाली होता जा रहा है पहले उस दिव्य पेड़ से , फिर गुरुत्व शक्ति और अब पंचशूल , व्योम का क्या किरदार होने वाला है आने वाले समय में ये तो लेखक ही जाने पर इतना तो जरूर है की व्योम, सुयश, शैफ़ाली हमें दिखेंगे ही लगातार बाकी का सफर कहा तक रहेगा ये अभी कहा नही जा सकता। अब व्योम और बाकी के सदस्यों का मेल मिलाप कब होगा ये भी देखने योग्य दृश्य होगा।

एक चीज़ जिसपे मैने गौर किया है की ये 114 अपडेट्स कहानी के समय के 1 महीने से भी कम समय के हैं ।

बहुत ही कमाल की कहानी है इंतजार रहे अगले प्रसंग का।

Bhut hi badhiya update Bhai
To professor Albert ko tero sour uta kar le gaya hai
Dhekte hai ab aage kya hota hai

waiting next

nice update. hanuka ne nakhush hokar dibiya rudraksh ko di par usme gurutv shakti ko dekhkar khush ho gaya ,hanuka ke alawa kisi ko bhi pata nahi chal paya asli baat ka ,ki shakti kisi achche insan ko mili isliye nayi shakti dibiya me aa gayi ..

terosor se taufik ne himmat se ladhai ki par bechara albert ko bada terosor utha le gaya ,kya wo jinda bachne ki koi ummeed hai ya suyash ,jenith milkar kuch kar paaye bachane ke liye ..

English name hai na isliye main bhi thodi bhool jati but story achhi hai name se itna problem nhi hai story pdte pdte name rat jayenge

Behad hi sundar kahani Or shandar update
Waiting for more

अल्बर्ट भी ऊपर वाले को प्यारे हो गए, अब डायनासोर के पड़कने के बाद भला कोई जीवित रहा, अब फैंटेसी दुनिया का जादू ही प्रोफेसर को बचा सकता है,

लग रहा था तौफीक का नंबर आ गया, लेकिन तौफीक की जगह प्रोफेसर ही निपट गए, ये गलत हुआ, एक अच्छे इंसान के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए,

अब अल्बर्ट के ना होने से सुयश की टीम में अनुभव की कमी खलेगी,

गुरुत्व की बूँद ने रीजेनेरेट होकर कमाल कर दिया, हनुका भी एक पल के लिए शॉक हो गये लेकिन वो समझ गये कि गुरुत्व किसी सही इंसान को ही मिला ,

अब सुयश की टीम का बहुत सारा खाना डायनासोर बेबी ने खा लिया है, इससे सुयश की टीम को खाने की परेशानियों से जूझना पड़ेगा

कुलमिला कर अपडेट अच्छा है,

Nice update👌👌

Bhut hi badhiya update Bhai
Vega par bar bar janleva and khatarnak musibate aa rahi hai aur har bar vega kinhi na kinhi vajho se bach ja raha hai ya to uski jodiyak watch ki vajah se ya kisi aur vajah se
Lekin ab jab vo kudh apne dushmano ko hi apne ghar ke ja raha hai to dhekte hai vo bach pata hai ya nahi

Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....

Mst update bro

Nice update....

Nice update

Besabari se intezaar kar rahe hai next update ka Raj_sharma bhai....

Raj_sharma Bhai,

Update kab tak aayega????

Jenith ne sabhi ko bacha liya, khair mera point ye hai ki ab Cristy ka kya role hone wala hai story mein aage???

6 koi bache hain jisme lag raha hai Taufiq ka marna nischit hai dekhte hain Jenith kis tarah se usko saja deti hai??

Exam tha isliye late hoon thoda sa khair aaj sab episode khatam nahi hua toh kal ho jayega.
Update posted
 
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