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Incest मुझे प्यार करो,,,

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Herry

Prince_Darkness
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lovlesh2002

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बहुत ही उम्दा और बेहतरीन तरीके से कहानी के धागों को जोड़ा है, किताब का अंकित को दोबारा मिलना बहुत ही अच्छा विचार है कहानी में रोमांच भरी बातों को सुरु करने के लिए, लेकिन दोनों के बीच कुछ बात हो पाती उस से पहले ही अपडेट खत्म हो गया है, जल्दी अपडेट पोस्ट करो, बहुत अच्छा अपडेट है।
 
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rohnny4545

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मां बेटे दोनों को लग रहा था कि वह गंदी किताब की कहानी दोनों के बीच की दूरी को खत्म करने के लिए मददगार साबित हो सकती थी,,,, बस उस गंदी किताब की कहानी के मुद्दे को सही तरीके से उपयोग करना था,,,, कहानी को पढ़कर अंकित के तन बदन में पूरी तरह से उत्तेजना की लहर उठने लगी थी,,, पर यही हाल सुगंधा का भी था सुगंधा किसी भी तरह से चाहती थी कि वह किताब अंकित के हाथ में लग जाए और ऐसा ही हुआ और जानबूझकर उसे कहानी को पढ़ने के लिए वह अपने बेटे से बोली अपने बेटे के मुंह से उसे कहानी के उसे क्षण को पढ़कर वह पूरी तरह से मदहोश हुए जा रही थी,,,, सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना के लहर उठ रही थी खास करके उसके दोनों टांगों के बीच की पतली दरार की हालत पल-पल खराब होती चली जा रही थी।वह कभी सोची नहीं थी कि वह हिम्मत दिखा कर अपने बेटे को गंदी किताब की गंदी कहानी पढ़ने को बोलेगी।

कहानी में जो बैठा था वह अपनी मां को पेशाब करते हुए देख रहा था,,,, अपने बेटे को किताब का वह नजारा पढ़ते हुए देख कर अपने मन में सोच रही थी,, ऐसा पल तो उसके जीवन में बहुत बार आया था,,, बहुत बार ऐसा हुआ था कि उसका बेटा उसे पेशाब करते हुए देख रहा था,,,, और बहुत बार तो वह खुद ही अब जानबूझकर अपने बेटे को या नजारा दिखा चुकी थी,,,, लेकिन किताब के नायक के मन की दशा को पढ़कर सुगंधा अपने मन में सोच रही थी कि उसका बेटा भी बिल्कुल ऐसा ही उसके बारे में सोच रहा होगा उसे पेशाब करते हुए देखकर उसकी नंगी गांड देखकर उसका मन भी उसे चोदने को करता होगा,,,क्योंकि मन में अगर इस तरह का ख्याल ना आए तो फिर किसी भी औरत को अर्धनग्न अवस्था में या नग्न अवस्था में देखकर मर्द को कोई फायदा ना हो मर्द औरत को इस अवस्था में देख कर केवल उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के बारे में ही सोचता है,,, तभी तो उसकी उत्तेजना केवल औरत को नग्न, अर्धनग्न अवस्था में देखकर बढ़ जाती है। कहानी के नायक की तरह उसके बेटे ने उसे बहुत बार देखा था उसके मन में भी उसे चोदने का ख्याल आता होगा तभी तो उसका लंड खड़ा हो जाता है,,, कहानी को पढ़ते समय भी उसके पेंट में तंबू बना हुआ था,,, यह सब यही दर्शाता है कि वह भी कहानी के नायक की तरह अपनी मां को चोदना चाहता है। इस बात को सोचकर ही सुगंधा का बदन गनगना गया,,,,।

सुगंधा मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रही थीक्योंकि धीरे-धीरे मां बेटे आगे की तरफ बढ़ रहे थे मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे मंजिल अब ज्यादा दूर नजर नहीं आ रही थी,,,,दोनों में से कोई एक अगर जल्दी से कदम आगे बढ़ा देता तो शायद दोनों को मंजिल भी मिल जाती लेकिन कोई भी कदम आगे बढ़ाने को तैयार नहीं था बल्कि साथ-साथ ही चल रहे थेऔर शायद इसी में असली सुख भी छुपा हुआ था धीरे-धीरे में जो आनंद है दोनों मां बेटे को प्राप्त हो रहा था वह उनकी कल्पना से भी परे था,,, अंकित भी पूरी तरह से मस्त हो चुका था वह जान चुका था कि उसकी मां के मन में क्या चल रहा है,,,, औरतों की मां की आहट को धीरे-धीरे समझने लगा था जिसने यह अनुभव उसेराहुल की मां और अपनी ही नानी से प्राप्त हुआ था दोनों दिखने में तो बहुत सीधी शादी थी लेकिन अपने अंदर एक तूफान लिए हुए थी,,,बाहर से शांत दिखने वाली दोनों औरतें नदी की तरह थी एकदम शांत लेकिन अंदर से तूफान लिए हुए एक प्यास लिए हुए जो मौका देखकर किसी भी मर्द के साथ एकाकार होने में नहीं हिचकीचाती,,,, अंकित भी अपने काम में लगा हुआ था सुगंधा भी काम में लगी हुई थी लेकिन आगे की योजना अपने मन में बना रही थी,,,,।कपड़ों को व्यवस्थित कर लेने के बाद वह धीरे-धीरे उसे अलमारी में रखने लगी,,,,मां बेटे के बीच इस समय किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थीक्योंकि कुछ देर पहले दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ था कहानी को लेकर जिस तरहके भाव दोनों के मन में जगह थे वह उन दोनों को कुछ देर के लिए एकदम शांत कर दिया था और अपने आप को ही सोचने पर मजबूर कर दिया था कि अब आगे क्या करना है।

अलमारी में कपड़े रख लेने के बाद,,, सुगंधा के मन में कुछ और चल रहा थावह अपने बेटे के सामने अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर उठकर कमर में खोज दी और घुटने के नीचे तक उसकी साड़ी जो थी अब वह घुटनों तक आ चुकी थी उसकी मांसल पिंडलियां उजागर हो चुकी थी और वह अपनी साड़ी को अपनी कमर पर कस ली थी इस रूप में उसकी साड़ी का पल्लू उसकी चूचियों के बीच से आकर नीचे कमर में फंसी हुई थी जिसे अपने हाथ से ही खोंशी थी लेकिन उसके ऐसा करने की वजह से साड़ी का पल्लू उसकी धोनी चूचियों के बीच से नीचे की तरफ और भी ज्यादा बड़ी और उन्नत लग रही थी जिस पर नजर पड़ते ही अंकित के बदन मदहोशी का रस घुलने लगा था,,,। अपनी मां को ऐसा करते हुए देखकर अंकित ऊपर से नीचे की तरफ अपनी मां को देखकर बोला,,,।

अब क्या करने जा रही हो,,,,?
(अंकित जिस तरह से प्यासी नजरों से उसके बदन को ऊपर से नीचे तक देखा था इसका एहसास सुगंध को बड़ी अच्छी तरह से हुआ था और उसके बदन में उत्तेजना की फुहार उठने लगी थी,,, क्योंकि सुगंधा को अपने बेटे की आंखों में वासना और प्यास एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,,अपने खूबसूरत अंगों के उभार के लिए उसकी आंखों में एक चमक दिखाई दे रही थी और उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि अगर अपने बेटे को वह छूट दे देगी तो उसका बेटा उसके खूबसूरत अंगों को अपनी हथेली में लेकर मसल मसल कर उसका रस निचोड़ डालेगा। और इसके लिए वह पूरी तरह से तैयार थीबहुत बार उसने इशारों ही इशारों में अपने बेटे को किया जताने की कोशिश कर चुकी थी कि वह क्या चाहती है उसका क्या इरादा है लेकिन उसका बेटा ना जाने क्यों शायद ना जाने में या सब कुछ जान कर भी आगे बढ़ने से अपने आप को रोक ले रहा था,,, लेकिन अब वह चाहती थी कि अब जो कुछ भी हो दोनों के बीच जल्दी हो जाए क्योंकि अब यह तड़प उससे भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी,,, वह अपने बेटे की मजबूत बुझाओ में अपने आप को सिमटती हुई महसूस करना चाहती थी,,, अपने बेटे के मर्दाना अंग को अपने कोमल अंग के अंदर उसकी गर्मी को महसूस करना चाहती थी उसकी रगड़ को महसूस करके पानी पानी हो जाना चाहती थी।

इस तरह की अभिलाषा शायद उसे शादीके पहले भी नहीं हुई होगी जितना कि अब वह एक मर्द का साथ पाने के लिए तड़प रही थी,,, शायद वह इसलिए की,तब उसे नहीं मालूम था कि उसकी मंजिल कहां है उसे क्या चाहिए किस चीज की जरूरत है वह ऐसे ही अपनी जिम्मेदारी एक मां की तरह निभाते चली जा रही थी और अपने अंदर की औरत को वह अपने पति के देहांत के बाद ही मर चुकी थी लेकिन जैसे ही उसके अंदर की एक औरत जागरूक हुई उसकी मां की तरह की जिम्मेदारी एक औरत की अभिलाषा के दबाव में दबती चली गई,,, एक औरत की अभिलाषा एक औरत की प्यास एक मां पर भारी पड़ रही थी वह मजबूर हो चुकी थी अपने अंदर की हवस मिटाने के लिए अपने बदन की प्यास बुझाने के लिए,,, वह यह जानकर भी वह जो कुछ करने जा रही है वह गलत है अपने बेटे के साथ शारीरिक संबंध बनाना पाप है लेकिन वह मजबूर थी अपनी प्यास के आगे बेबस हो चुकी थी और अपने आप को अपने मन को इस बात से दीलासा भी दे चुकी थी कि एक चार दिवारी के अंदर मां बेटे क्या करते हैं यह किसी को क्या पता चलेगा,,,, समाज में समझ के आगे भले ही वह मां बेटे की तरह व्यवहार करते हो लेकिन घर की चार दिवारी के अंदर अगर पति-पत्नी की तरह व्यवहार करेंगे तो इस बारे में किसी को कैसे पता चलेगा और चोरी तब तक ही रहती है जब तक की पकड़ी ना जाए अौर सुगंधा को पूरा भरोसा था कि अगर उसके और उसके बेटे के बीचशारीरिक संबंधी स्थापित हो जाता है तो भी इस बारे में किसी को कानों कान खबर तक नहीं होगी,,,, अपने बेटे के सवाल पर मुस्कुराते हुए अपने बेटे की तरफ देख कर बोली,,,)

अलमारी की सफाई तो हो गई लेकिन कैमरे की सफाई बाकी है जा जाकर बाहर से झाड़ू लेकर आ,,,,।

ओहहह तो तुम झाड़ू लगाने जा रही हो मुझे लगा इस तरह से,,(हथेली अपनी मां की तरफ करके ऊपर से नीचे की तरफ हथेली को घुमाते हुए) क्या करने जा रही हो..


अरे कुश्ती नहीं करने जा रही हूं,,,, और वैसे भी मेरे साथ कुश्ती करेगा कौन,,,,।

मैं हूं ना तुम्हारे साथ कुस्ती करने के लिए,,,(अंकित मुस्कुराते हुए बोला तो उसकी बात सुनकर सुगंधा भी बोल पड़ी)

एक ही बार में दबा दूंगी चित्त हो जाएगा,,,,भले ही तो कसरत करता है लेकिन मुझसे ज्यादा मजबूत नहीं होगा,,,।

अगर यह बात है तो चलो कुश्ती करके देख लेते हैं कौन जीतता है,,,,।

नहीं नहीं रहने देकहीं नीचे गिरकर हड्डी टूट गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे,,,।

बस हो गया डर गई,,,।


डर तो बिल्कुल नहीं गई क्योंकि जब मैं कक्षा8 में थी तो स्कूल में कबड्डी का कंपटीशन होता था और उसमें में हीं फर्स्ट आती थी,,,।

सच में मम्मी,,,,।

तो क्या तुझे भरोसा नहीं होता क्या,,,,

मुझे तो भरोसा है लेकिन,,,,

अच्छा तो तुझे भरोसा नहीं है चल फिर एक बार एक-एक हाथ हो ही जाए,,,,।

यहां पर इस कमरे में,,,।

तो क्या बाहर जाकर कुश्ती लड़ेंगे क्या,,, मां बेटे की बीच की कुश्ती तो घर की चार दिवारी के अंदर ही होती है,,, बिस्तर पर,,,,(सुगंधा अपने बेटे से दो अर्थ वाली बातें कर रही थी और अंकित अपनी मां के कहने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था,,, और अपनी मां की अभिलाषा जानकर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था,,,, और उसकी बात सुनकर बोला,,,)

और कहीं कुश्ती लड़ते-लड़ते पलंग टूट गई तो,,,।

पलंग तोड़ कुश्ती में ही तो मजा आता है तभी तो दोनों में कितना दम है इसका पता चलता है,,,,,,

बात तो सही है तुम्हारे साथ कुश्ती करने का मजा भी तभी है जब पलंग टूट जाए,,,,(अंकित भी अपनी मां की तरह दो अर्थ में बात करते हुए बोला और सुगंधा अपने बेटे के कहने के मतलब को समझ कर उत्तेजना से गनगना गई,,,,)

तो चल देखते हैं कौन पलंग तोड़ता है,,,।

चलो मैं तो तैयार हूं,,,,(ऐसा कहते हुए अंकित शुरुआत करते हुए अपने दोनों हाथ को ऊपर उठा दिया और अपनी मां की तरफ आगे बढ़ा दिया मानो की सच में वह कुश्ती करने के लिए तैयार हो चुका था,,, सुगंधा भीअपने दोनों हाथ को आगे बढ़ा दी और वह भी कुश्ती करने के लिए तैयार हो चुकी थी सुगंधा और अंकित दोनों के मन में कुछ और ही चल रहा था यह तो सिर्फ कुश्ती का बहाना था दोनों एक दूसरे को छूने दबाने और मसलने का मजा लेना चाहते थे,,,,
देखते ही देखते अंकितदोनों हाथ ऊपर किए हुए ही अपनी मां की हथेली को अपनी हथेली में दबोच लिया और जिस तरह से दो योद्धा कुश्ती करते हैं इस तरह से वह दोनों भी तैयार हो चुके थे दोनों जोर लगा रहे थे एक दूसरे के तरफऔर दोनों का जोर बराबर लग रहा था कभी वह एक कदम पीछे चले जा रहा था तो कभी सुगंधा एक कदम पीछे चली जा रही थी।लेकिन अगले ही पल हुआ अपनी स्थिति में आ जा रही थी अपनी मां की ताकत हिम्मत देखकर अंकित मन ही मन बहुत खुश हो रहा था अपने मन में सोच रहा था कि वाकई में पलंग पर उसकी मां के साथ कुश्ती करने में कुछ ज्यादा ही मजा आएगा,,,,ऐसा अपने मन में सोते हुए को थोड़ा सा जोर लगाया तो उसकी मां गिरने को हो गई लेकिन तुरंत अपने आप को संभाल ली,,,,


लेकिन अगले ही पल अंकित थोड़ा सा जोर लगाया और इस बार वह अपनी मां को लेकर पलंग पर जा गिरा सुगंधा पलंग पर नीचे गिरी हुई थी और अंकित उसके ऊपर गिरा हुआ था और उसे अपनी भुजाओं से दबोच कर रखा हुआ था,,,,लेकिन उसके पलंग पर गिरने से उसकी सारी घुटनों के ऊपर तक एकदम से चढ़ गई थी उसकी मोटी मोटी नंगी जांघोंका एहसास अंकित को बहुत अच्छी तरह से हो रहा था और किसी भी तरह से अपनी मां की जान को अपनी हथेली सेदबाना चाहता था मसलना चाहता था तब पूछना चाहता था उसके मखमली जांघों को छुकर महसूस करना चाहता था अपनी मां की जवानी को,,,, सुगंधा उसके नीचे दबी हुई थी और उससे छूटने की कोशिश कर रही थी,,,लेकिन अंकित उसे अपनी भुजाओं से दबोचा हुआ था और उसे पर काबू करने के बहाने अपने हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर अपनी मां की मोटी मोटी जांघों को कस के दबोच लिया था,,,,अपनी मां की चिकनी जांघों का एहसास उसके बदन में उत्तेजना की लहर को बढ़ा रही थी,,, ओ पागल हुआ जा रहा था और उसके हाथ जांघों के ऊपरी सतह पर अपने आप फिसलते हुए चले जा रहे थे जिसका एहसास सुगंधा को बहुत अच्छी तरह से हो रहा था,,,,वह अपने बेटे की पकड़ से छोड़ना चाहती थी लेकिन अंकित की हरकत से वह मदहोश हुए जा रही थी,,,, मां बेटे दोनों जोर लगा रहे थे और दोनों का मजा भी आ रहा थाअंकित कुश्ती के बहाने अपनी मां के मखमली बदन को छू रहा था उसे अपनी हथेली में दबोच रहा था इस समय उसकी उत्तेजना परम शिखर पर थी पेंट के अंदर उसका लंड पूरी तरह से टन्ना गया था।

तभी अंकित की नजर अपनी मां की चूचियों पर पड़ी जो की ब्लाउज से बाहर आने के लिए मचल रही थी,,, क्योंकिकुश्ती का जोर लगाने की कसम काम सुगंधा के ब्लाउज का ऊपर वाला बटन अपने आप ही टूटकर गिर गया था जिसकी वजह से उसकी आधे से भी ज्यादा चूचियां ब्लाउज से बाहर झांकने लगी थी,,,जिसे देखकर अंकित के मुंह में पानी आने लगा था और इसी मौके का फायदा उठाकर सुगंधा एकदम से अपना दांव बदली औरअपने बेटे के कंधे को पकड़ कर उसे ज़ोर से दम लगाकर एकदम से पलट दी और खुद उसके ऊपर चढ़ गईलेकिन ऊपर चढ़ने में उसकी साड़ी एकदम कमर तक उठ गई जिससे उसकी मदद कर देने वाली बड़ी-बड़ी गांड लाल रंग की चड्डी में एकदम साफ दिखाई देने लगी लेकिन इस समय अंकित अपनी मां को ही जरूरत में नहीं देख सकता था क्योंकि वह नीचे दबा हुआ था लेकिन अपने आप को ऊपर उठने की कोशिश में अपने आप को बचाने की कोशिश मेंवह अपने हाथ को अपनी मां के बदन के इधर-उधर रखकर जोर लगा रहा था और ऐसे में उसके दोनों हाथ सुगंधा के भारी भरकम गांड पर चली गई और उसे एहसास हुआ की साड़ी कमर तक उठी हुई है लेकिन पूरे नंगेपन को ढकने के लिए अभी भी उसके बदन पर चड्डी थी जिसका एहसासअंकित को अपनी हथेली पर चड्डी के स्पर्श होते ही महसूस हो रहा था और वह एकदम से मत हुआ जा रहा था लेकिन इस समय कुश्ती के खेल में सुगंधा पूरी तरह से हावी हो चुकी थी,,,।

सुगंधा जिस तरह से कुश्ती के नियम का फायदा उठाते हुए कि,, जब सामने वाले प्रति द्ववंदी का ध्यान थोड़ा सा भी भटके तो तुरंत दांव लगाकर उसे पटकनी दे दो,,,और सुगंधा को जैसे ही लगा कि उसके बेटे का ध्यान पूरी तरह से भटक चुका है क्योंकि वह अपने बेटे की नजर को देख चुकी थी और उसकी नजर उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों पर थी जो ब्लाउज के बटन टूटने की वजह से बाहर की तरफ पानी भरे गुब्बारे की तरह लुढका हुआ था तभी वहअपने बेटे की कमजोरी का फायदा उठाकर उसे नीचे पटक दीजिए लेकिन जिस तरह से वह अपने बेटे के ऊपर बैठी हुई थी उसकी गांड पर उसकी गांड के बीचों बीच कुछ कड़क चीज चुभती हुई महसूस हो रही थी और उसे समझते देर नहीं लगी कि नीचे से कौन सा अंग उसकी गांड के बीचो-बीच चुभ रहा है यह एहसास होते ही वह पानी पानी होने लगी,,,सुगंध को अच्छी तरह से एहसास हो रहा था की कुश्ती करते समय जब वह पलंग पर पटकी गई थी और जब वह उसके ऊपर चढ़ी तब उसकी साड़ी कमर तक उठ गई थी और इस समय पेट के अंदर से ही उसके बेटे का लंड उसकी पेंटि के ऊपर से उसकी बुर पर ठोकर मार रहा थायह एहसास उसका पानी निकालने के लिए काफी था वह मदहोश हो जा रही थी और गहरी गहरी सांस ले रही थी लेकिन दोनों हाथों से अपने बेटे की हथेलियां को दबोच कर बिस्तर पर दबाए हुए थी ताकि वह कोई हरकत ना कर सके,,,,।

अंकित को भी एहसास हो रहा था कि वह किस स्थिति में है अपनी मां का भारी भरकम बदन वह अपने ऊपर महसूस कर रहा था,,, और शायदयह उसके लिए एक तरह का अभ्यास था जब वह दोनों के बीच सारी मर्यादाएं खत्म होने के बाद जब दोनों संभोग सुख का मजा लेंगे तब शायद इसी तरह से वह अपनी मां को अपने लंड के ऊपर रखकर नीचे से ठोकर लगाएगा,,,और तब वह अपनी मां के भारी भरकम वजन को संभाल सकता है कि नहीं यह देखने के लिए यह पल उसके लिए बेहद जरूरी था,,,और अच्छी तरह से उसकी मां की भारी भरकम गांड का दबाव उसके लंड पर पड़ रहा था उसे देखकर अंकित को एहसास हो रहा था कि वह अपनी मां के भार को अच्छी तरह से संभाल लेगा,,,सुगंधा किस तरह से अपने नीचे उसे दबाए हुए थी वह पूरी तरह से चारों खाने चित हो चुका था और कुश्ती के नियम के अनुसार वह हार चुका था,,, और सुगंधा हल्के से अपनी गांड कोएक दो बार अपने बेटे के लंड पर गोल-गोल घुमाई जिसका एहसास अंकित को महसूस हुआ था और वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था उसका मन तो इसी समय कर रहा था कि अपनी मां को बोल दे की बस अपनी चड्डी उतार दो मुझे रहा नहीं जा रहा है लेकिन ऐसा कह नहीं पाया,,,।

सुगंधा अपनी जीत को लेकर बेहद खुश थी और अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली,,,।

क्यों बच्चु हो गया ना,,, ऐसे ही चार-पांच मेडल नहीं जीती हूं अब तो तुझे यकीन हुआ ना की कुश्ती में तु मुझसे नहीं जीत सकता।

बिल्कुल सच में मैं तुमसे नहीं जी सकता तुमने जिस तरह से पटकनी लगाइ हो मैं तो सोच भी नहीं सकता,,,।

मेरे लाल यही तो कुश्ती का नियम है,,,(ऐसा कहते हुए अपने बेटे के ऊपर से उठने लगी उसकी सारी कमर तक उठी हुई थी और अपने को बेटी के सामने ही खड़ी होकर अपनी साड़ी को व्यवस्थित करने लगी उसे बेहद रोमांच का अनुभव हुआ था उसे बहुत मजा आया था,,,, अंकित भी बिस्तर पर उठकर बैठ गया और बोला,,,)

अच्छा हुआ कि तुम्हारी पलंग नहीं टूटी वरना लेने के देने पड़ जाते,,,।

सच कहूं तो मैं उतना जोर लगाई ही नहीं थी वरना सच में पलंग टूट जाती।( इतना कहते हुए वह पलंग से नीचे उतर गई,,,, अंकित भी धीरे से पलंग से नीचे उतर गया,,,, सुगंधा अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)

जब जल्दी से जाकर झाडू ले आ कमरे की सफाई कर देती हुं,,,,,।

ठीक है मैं अभी लेकर आता हूं,,,,,(इतना कहकर अंकित अपनी मां के कमरे से बाहर चला गया और सुगंधा जल्दी से अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी पैंटी को जल्दी से उतारने लगी और अपनी मोटी मोटी जांघों से नीचे सरकाते हुए वह आगे की योजना बनाने लगी और अगले ही पल वह अपनी पैंटी को अपने पैरों से बाहर निकाल कर उसे बिस्तर के नीचे छुपा दी और अपनी साड़ी को पहले की तरह अपनी कमर में खोंस ली,,,)
 

Ajju Landwalia

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तृप्ति के गांव जाने के बाद अंकित और उसकी मां के लिए हर एक रात बेहद मधुर होती जा रही थी,,,हर एक रात को कुछ ना कुछ एक दूसरे को देखने दिखाने का मौका मिल रहा था और यह मौका उन दोनों के जीवन का सबसे अद्भुत पल होता जा रहा था,,, हर एक पल में मधुरता मादकता मदहोशी छाई हुई थी,,,अंकित अपनी मां को बाहों में लेकर उसके होठों पर चुंबन करके अपने मन की मनसा को दर्शा चुका था अगर उसकी मां उससे अलग ना हुई तो शायद दोनों मंजिल तक पहुंच जाते,,, एन मौके पर सुगंधा क्यों अपने पैर पीछे खींच ली यह सुगंधा को भी समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि सुगंधा भी तो यही चाहती थी,,,, शायद यह मां बेटे के बीच के पवित्र रिश्ते की वजह से हुआ था क्योंकिसुगंधा अपने बेटे के साथ एकाकार होना चाहती थी एक औरत के रूप में लेकिन जब कभी भी दोनों के बीच ऐसा कुछ होता है तबन जाने क्यों सुगंधा के अंदर से औरत अलग हो जाती है और वह एक मां के रूप में सामने होती है जिसकी वजह से वह अपने बेटे के साथ कुछ भी कर पाने में असमर्थ हो जाती है।





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लेकिन एक चुंबन से वह समझ गई थी उसका बेटा भी वही चाहता है जैसा कि वह चाहती है। इसलिए वह बहुत खुश थी,,, और चुंबन करने की वजह भी वह खुद बताई थी इसलिए उसके बेटे को एक मौका मिल गया था इस तरह से चुंबन करने का जिसके चलते उसने रात में छत पर अपने बेटे को अपनी लंबी गांड के दर्शन कर रही थीऔर सुबह जब उठी तो उसके लंड को अपनी गांड के बीचों बीच महसूस करके वह पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,,,, जिसके चलते वह कुछ देर तक उसी तरह से लेटी रह गई थी,,, और आज तो उसे कुर्ता पजामा पहनकर दौड़ने में बहुत अच्छा लग रहा था वह अपने बेटे पर उसकी नजरों पर गौर कर रही थी वह उसके खूबसूरत बदन को ही निहार रहा था,,, पजामे में उसकी गांड और ज्यादा बड़ी लग रही थीजिसे अंकित प्यासी नजरों से देख रहा था और आगे एक बटन नीचे होने की वजह से उसके चूचियों के बीच की गहरी पतली लकीर एकदम साफ दिखाई दे रही थी जिसके बारे में उसका बेटा खुद पहनते समय जिक्र कर चुका था और इसमें कोई आपत्ति नहीं है यदि जता दिया था,,, और खुद चूचियों को प्यासी नजरों से देखकर मस्त हो रहा था,,, अपने बेटे की इस तरह की नजर से सुगंधा बार-बार मदहोश हो रही थी।







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जोगिंग करने के बाद मां बेटे दोनों घर पर पहुंच चुके थे,,,,,,, चाय नाश्ता और खाना बना लेने के बाद वह घर की सफाई में लग गई थी,,,,, कुछ देर तक अंकित अपने कमरे में ही आराम कर रहा थालेकिन बहुत देर से अपनी मां को ना देखने के बाद बहुत धीरे से अपने कमरे से बाहर निकाला और अपनी मां के कमरे में पहुंच गया तो देखा उसकी मां कमरे की सफाई कर रही थी यह देखकर वह बोला,,,।

यह क्या कर रही हो मम्मी,,,?

अरे बहुत दिन हो गए थे कमरे की सफाई नहीं की थी तो सोची चलो आज कमरे की सफाई ही कर लुंं।

चलो मैं भी तुम्हारा हाथ बंटा लेता हूं,,,(इतना कहकर वह भी सफाई काम में लग गया,,, सुगंधा उसे इस तरह से काम करते देखकर मन ही मन में मुस्कुरा रही थी लेकिन तभी उसके दिमाग में कुछ और चलने लगा उसे याद आया की अलमारी में उसने मां बेटे वाली कहानी वाली किताब रखी हुई है जो वह किसी भी तरह से अपने बेटे को दिखाना चाहती थी ताकि उसका बेटा हुआ कहानी को पड़े और उसके मन में मां बेटे के बीच के रिश्ते को लेकर कुछ-कुछ और ऐसा वह पहले भी कर चुकी थी लेकिन शायद सुगंधा को लगता था कि उसका बेटा उस किताब पर ध्यान नहीं दिया था,,, इसलिए आज मौका अच्छा थाआज वह किसी भी तरह से अपने बेटे को वह किताब दिखाना चाहती थी इसलिए वह बोली,,,)






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तू यह सब रहने दे तू अलमारी की सफाई करना उसमें बहुत सारी किताबें पड़ी है तो एक जगह पर रख दे वह सब रद्दी हो चुकी है कबाड़ी वाले को बेचने के काम आएगी,,,।

ठीक है मम्मी मैं अभी अलमारी साफ कर देता हूं,,,,(इतना कहकर अंकितअलमारी खोलकर अलमारी की सफाई करने लगा उसमें ढेर सारी किताबें रखी हुई थी जिन्हें देख-देख कर वह एक तरफ रख रहा था और जरूरी किताब को एक तरफ रख रहा था तिरछी नजर से सुगंधा अपने बेटे की तरफ देख रही थी वह देखना चाहती थी कि वह किताब उसके हाथ लगती है तब वह क्या करता है,,,, कुछ देर तक अंकित अलमारी की सफाई करता रहा लेकिन वह किताब उसे नहीं मिली थी तब उसे याद आया कि वह किताब तो उसने ड्रोवर के अंदर रखी थी,,, इसलिए वह तुरंत बोली,,,)

नीचे अगर सफाई हो गई हो तो ड्रोवर भी देख लेना,,, बहुत रद्दी किताबें पड़ी है,,, सब बेच दूं तो,,, कचरा कम हो जाए,,,।

मम्मी तुम सच कह रही हो तुम्हारी अलमारी में काम से ज्यादा तो बेकार की चीजे पड़ी है,,,,।(इतना कहते हुए वह अंदर से जूनी पुरानीतीन-चार ब्रा निकाला जो कि हर एक जगह से फटी हुई थी और उसे अपने हाथ में लेकर अपनी मां के सामने दिखने लगा उसे देखकर सुगंधा शर्म से पानी पानी हो गई और बोली,,,)

अरे यह क्या दिख रहा है मैं यह सब नहीं पहनती ये तो बहुत पुरानी है फटी हुई है,,,,।

इसलिए तो बता रहा हूं इसे पहनना भी नहीं,,,।

क्यों,,,?

अरे इतनी खूबसूरत औरत हो और फटी ब्रा पहनोगी तो कितना खराब लगेगा,,,,।

खूबसूरत,,,,(मुस्कुराते हुए सुगंधा बोली,,)






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तो क्या खूबसूरत है ही तो हो मेरा बस चलता तो रोज तुम्हें नए कपड़े पहनाता लेकिन क्या करूं अभी कमाता नहीं हूं नहीं इसलिए मजबूर हूं,,,,।

तो कमाना शुरू कर दे फिर रोज मेरे लिए नए कपड़े लेकर आना,,,।


मैं भी यही सोच रहा हूं अगर कमाता होता तो रोज तुम्हारे लिए गिफ्ट लेकर आता,,,,,,।


तेरे पापा भी मेरे लिए रोज कुछ ना कुछ लेकर ही आते थे,,,,(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा को अनायास ही अपने पति की याद आ गई थी और अपनी मां की बात सुनकर अंकित बोला,,,)

तो क्या हुआ मम्मीमैं भी तुम्हारे लिए रोज गिफ्ट लेकर आऊंगा पापा नहीं है तो क्या हुआ मैं तो हूं ना,,,।
(अंकित अपनी मां को दिलासा देते हुए बोल रहा थालेकिन उसकी इस भावुकता में एक सारे एक आकर्षक और एक पति के द्वारा पूरी करने वाली शारीरिक जरूरत भी शामिल थी जिसे वह इशारे में अपनी मां को समझा रहा था और शायदशब्दों के द्वारा दिए गए थे सारे को उसकी मां अच्छी तरह से समझ रही थी वह जानती थी कि उसका बेटा उसे एक पति की तरह शारीरिक सुख भी जरूर देगा इसलिए मुस्कुराते हुए बोली,,,)





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मुझे पूरा यकीन है कि तु एकदीन तेरे पापा की ही तरह मेरी सारी जरूरतें पूरी करेगा,,,,(सुगंधा के द्वारा भी यह एक इशारा ही था,,,, और इस ईशारे को अंकित समझने की कोशिश कर रहा था और फिर से वह अलमारी की सफाई करना शुरू कर दिया,,,, देखते ही देखते वह अलमारी के ड्रोवर को खोल दियाऔर उसमें से बेकार की वस्तुओं को निकाल कर एक तरफ रखना लगा और तभी अंदर की तरफ जब हाथ डाला तो उसे वही किताब मिल गई और वह ड्रोवर में से उस किताब को बाहर निकाल कर,,,देखने लगा सुगंधा अपने बेटे की हरकत को तिरछी नजर से देख रही थी उसके हर एक हाव-भाव को देख रही थी,,, अंकित के हाथों में वह किताब आते ही उसके मुख्य पृष्ठ को देखकर अंकित के चेहरे का भाव बदलने लगा था उसे याद आ गया था कि इस किताब को वह पहले भी पढ़ चुका था औरअपनी मां के बारे में सोच रहा था किस तरह की किताब क्या हुआ सच में पढ़ती होगी अगर पढ़ती होगी तो उन्हें भी एक मां बेटे के बीच का रिश्ता इसी तरह से दिखाई देता होगा इस बात को सोचकर वह काफी खुश हुआ था,,, और इस समय भी उसके मन में यही सब चल रहा था वह धीरे से उसे किताब के पन्नों को पलटने लगा जिसमें कुछ रंगीन गंदे चित्र भी छुपे हुए थे और मां बेटे के बीच की कहानी भी थी,,,सुगंधा तिरछी नजर से अपने बेटे की हरकत पर बराबर नजर रखी हुई थी उसके चेहरे पर प्रश्न है क्या भाव नजर आ रहे थे जब उसने देखी कि उसके बेटे के हाथ में वही किताब लग गई है जिसे वह दिखाना चाहती थी लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि उसका बेटा उस किताब को पहले भी पढ़ चुका था,,,,।




Sugandha ka khwab

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मां बेटे दोनों के दिल की धड़कन तेज होने लगी थी अपनी मां से नजर बचाकर वह किताब के पन्नों को पलट कर उसमें लिखी गई कहानी के शब्दों को जल्दी-जल्दी पढ़ रहा था तभी उसकी आंखों के सामने कहानी का कुछ भाग लिखा हुआ नजर आया जिसे पढ़कर उसका लंड एकदम से टन्ना गया,,,,।

मम्मी की बड़ी-बड़ी गांड ट्यूब लाइट की दूरी और रोशनी में चमक रही थी मैंने कभी अपनी मां को पेशाब करते हुए नहीं देखा था,, लेकिन पहली बार जब अनजाने में ही मेरी नजरमां पर पड़ी तो मैं देखता ही रह गया पहली बार मां की नंगी गांड मेरे लिए किसी अजूबे से काम नहीं थी और वह भी मम्मी पेशाब कर रहे थे उनकी बड़ी-बड़ी गांड एकदम कसी हुई थी,,,, मां ने साड़ी कमर तक उठाकर पेशाब कर रही थी जिसकी वजह सेकमर के नीचे का पूरा भाग दिखाई दे रहा था उनके पेशाब की आवाज किसी मधुर ध्वनि की तरह मेरे कानों में पड़ रही थी जिसे सुनकर मैं पागल हुआ जा रहा था मैं दीवार के पीछे से यह सब नजर देख रहा था मां को इस बात का अहसास तक नहीं था कि मैं उन्हें इस हालत में देख रहा हूं,,,,मेरी टांगों के बीच अजीब सी हलचल हो रही थी जिसे महसूस करके बदन में मस्ती से चढ रही थी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं।





Sugandha ki kalpna

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इतना पढ़कर तोअंकित की हालत एकदम से खराब होने लगी उसका दिल जोरो से धड़कने लगा हालांकि वह अपनी मां को बहुत बार पेशाब करते हुए देख चुका था लेकिन कहानी में पहली बार इस तरह का वर्णन पढ रहा था जिसे पढ़कर उसके बाद में सुरसुरी से दौड़ने लगी थी,,, पल भर में उसके मन में ढेर सारे सवालढेर सारे विचार जन्म लेने लगे वह अपने मन में सोचने लगा कि अगर उसकी मां इस तरह की किताब अपनी अलमारी में रखी है तो इस तरह की कहानी भी पढ़ती होगी उसे मां बेटे के बीच के रिश्ते के बारे में अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा कि एक कमरे के अंदर मां बेटे अगर अकेले रह रहे हो तो उन दोनों के बीच क्या होना संभव है यही सोचकर उसकी हिम्मत बढ़ने लगी थी और वह उसकी किताब के बारे में अपनी मां से जिक्र करना चाहता था लेकिन इसके लिए उसे काफी हिम्मत जुटाना थाऔर तिरछी नजर से काम करते समय सुगंधा अपने बेटे को देख रही थी उसकी हरकत को देख रही थी,,,, सुगंधा मन ही मन खुश हो रही थी क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि किताब में लिखी हुई कहानी उसके बेटे कोपसंद आ रही थी जिसमें वह रुचि ले रहा था तभी तो वह सब कुछ भूल चुका था तभी उसका ध्यान भंग करने के लिए उसकी मां बोली,,,)

क्या हुआ जल्दी-जल्दी कर जल्दी से काम खत्म करना है अभी मैं नहाई भी नहीं हूं कपड़े भी धोना है,,,।






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हां मम्मी कर रहा हूं लेकिन यह तुम्हारी अलमारी में मुझे क्या मिला है,,,?

क्या मिला है,,,?(सुगंधा अनजान बनते हुए बोली)

कोई किताब है लेकिन यह कोई स्कूल की किताब नहीं है,,,,।

क्या ऐसी कौन सी किताब आ गई कोई मैगजीन होगी सरस सलिल जैसी,,,।

नहीं मम्मी ऐसी तो कोई भी मैगजीन नहीं है,,,,।


ला अच्छा मुझे दिखा तो ऐसी कौन सी किताब मेरे अलमारी में आ गई जिसके बारे में मुझे पता नहीं है,,,।

लो तुम ही देख लो,,,, मैं तो इसके पन्ने पलट कर देखा बहुत गंदी कहानी है,,,(अपनी मम्मी की तरफ घूम कर उसे वह गंदी किताब उसके हाथ में थमाते हुए वह बोला,,,सुगंधा भी अपना हाथ आगे बढ़ाकर उस गंदी किताब को अपने हाथ में ले ली और उसके मुख्य पृष्ठ को देखकर एकदम से जानबूझकर शर्मिंदगी का नाटक करते हुए बोली,,,)

हाय दैया यह तुझे कहां मिल गई रे,,,,।





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तुम्हारी अलमारी में और कहां बहुत गंदी किताब है,,,।

यह तो मैं भी जानती हूं कि बहुत गंदी किताब है,,,।

तो क्या तुमने ईसको पढ़ी हो,,,


मेरी अलमारी में है तो पढी ही होंऊंगी,,,, लेकिन तूने क्या पढ़ लिया जो एकदम हैरान हो गया है,,,,(किताब के पन्नों को पलटते हुए और वो भी अपने बेटे के सामने वह बोली,,,)

क्या बताऊं मम्मी मुझे तो बताते भी शर्म आ रही है क्या ऐसी भी किताबें होती हैं मैं तो पहली बार देख रहा हूं,,,।

मैं भी पहली बार देखी थी तब मैं भी तेरी तरह हिरण हो गई थी मुझे तो यकीन नहीं हो रहा था कि इस तरह की भी किताबें होती है और इस तरह की कहानी भी होती है जब पहली बार तेरे पापा लेकर आए थे,,,।

पापा लेकर आए थे,,,,(अंकित हैरान होता हुआ बोला क्योंकि वह किताब नहीं लग रही थी)

हां तेरे पापा लेकर आए थे लेकिन खरीद कर नहीं लाए थे यह किताब के साथ दो-तीन किताबें और थी जो कि तेरे पापा के दोस्त ने उन्हें पढ़ने के लिए दिया था,,,, और तब से यह किताब घर पर ही पड़ी थी लेकिन बस एक ही बची है,,,।

तो क्या पापा इस तरह की कहानी पढ़ते थे,,,,।

नहीं उन्हें लगा कि कोई नोवल होगा कोई जासूसीलेकिन जब पढ़ने लगे तो वो भी हैरान हो गए मैं भी उनके साथ ही बैठी थी तो मेरी नजर भी पड़ गई और मैं भी हैरान हो गई,,,, वैसे तु क्या पढ़ लिया जो तेरी हालत खराब हो गई,,,,।





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नहीं जाने दो मुझसे तो बताया भी नहीं जाएगा,,,, इस तरह की कहानी तो मैं पहली बार पढ़ रहा हूं,,,

लेकिन बता तो सही ,,,,।


अरे कैसे बताऊं मुझे तो शर्म आती है,,,,।

इसमें शरम कैसी जो पड़ा है बता दे वैसे तो सबकुछ सामने ही है,,,, और तु कोई चोरी छुपे तो पढ़ा नहीं,,, वैसे तो पूरी किताब ही गजब की है लेकिन तू कौन सी लाइन पढ़ लिया जो तेरी हालत खराब हो गई बात भी दे,,,,,(सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे को उकसा रही थी बताने के लिएऔर अंकित भी समझ रहा था कि उसकी मां क्या सुनना चाह रही है इसलिए वह अपने मन में सोचा कि जब उसे कोई एतराज नहीं है तो भला हुआ क्यों शर्मा की चादर ओढ़ कर इतने अच्छे मौके को अपने हाथ से गंवा दे,,,,। इसलिए वह हीम्मत करके अपनी मां से बोला,,,)

जो पढ़ा वह तो मेरे दिमाग को एकदम सन्न कर दिया,,,,,।

पढ़ा क्या यह तो बता,,,,,(सुगंधा लालायित हुए जा रही थी अपने बेटे के मुंह से उस गंदी किताब के शब्द को सुनने के लिए,,,,,, अपनी मां की उत्सुकता देखकर अंकित के मन में भी प्रसन्नता हो रही थी इसलिए वह हिम्मत दिखा कर बोला ,,,)






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लाओ में पढ़कर ही बता दु ऐसे तो मुझसे बताया नहीं जाएगा,,,(अंकित अपनी मां की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोला सुगंधा भी मौके की नजाकत को समझते हुए तुरंत अपने हाथ मिली हुई किताब को आगे बढ़कर अपने बेटे को थमा दी और अंकित उस किताब को लेकर उसके पन्ने पलटने लगा और जो शब्द उसने पढे थे वह बोलने लगा,,,,)

मम्मी की बड़ी-बड़ी गांड ट्यूब लाइट की दुधिया रोशनी में चमक रही थी मैंने कभी अपनी मां को पेशाब करते हुए नहीं देखा था,, लेकिन पहली बार जब अनजाने में ही मेरी नजरमां पर पड़ी तो मैं देखता ही रह गया पहली बार मां की नंगी गांड मेरे लिए किसी अजूबे से काम नहीं थी और वह भी मम्मी पेशाब कर रहे थे उनकी बड़ी-बड़ी गांड एकदम कसी हुई थी,,,, मां ने साड़ी कमर तक उठाकर पेशाब कर रही थी जिसकी वजह सेकमर के नीचे का पूरा भाग दिखाई दे रहा था उनके पेशाब की आवाज किसी मधुर ध्वनि की तरह मेरे कानों में पड़ रही थी जिसे सुनकर मैं पागल हुआ जा रहा था मैं दीवार के पीछे से यह सब नजर देख रहा था मां को इस बात का अहसास तक नहीं था कि मैं उन्हें इस हालत में देख रहा हूं,,,,मेरी टांगों के बीच अजीब सी हलचल हो रही थी जिसे महसूस करके बदन में मस्ती सी चढ रही थी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। मम्मी की बुर से लगातार पेशाब की धार फूट रही थी उसमें से मधुर संगीत नहीं कर रही थी और उसे मधुर संगीत ने मेरे लंड को खड़ा करने में बिल्कुल भी समय नहीं लियामैं अपनी मां की नंगी गांड को देख रहा था वह पेशाब कर रही थी और मेरा हाथ अपने आप पेंट के ऊपर से मेरे लंड को दबा रहा था,,,,।



सुगंधाकी तड़प

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(अंकित इस कहानी को पढ़ते समय अपनी मां की तरफ तिरछी नजर से देख ले रहा था जैसे वह उसके हवाओं को देख रही थी वैसे ही अंकित भी अपनी मां के चेहरे के हाव भाव को देखने की कोशिश कर रहा था,,,, अंकित के मुंह से निकले एक-एक शब्द मदहोशी से भरे हुए थे जो उसकी मां के कानों में घुलकर उसे मस्त कर रहे थे।यह देखकर अंकित को भी आनंद आ रहा था और वह बड़ी दिलचस्पी दिखाकर कहानी को आगे पढ़ रहा था,,,,।)

मम्मी निश्चिंत होकर पेशाब कर रही थी,,,,और उसे देखना और वह इस हालत में शायद संभावना होता अगर 2 दिन पहले ही बाथरूम का दरवाजा टूट कर अलग ना हो गया होता उसकी रिपेयरिंग करना बाकी था और उसेबाथरूम से निकाल कर दूसरी तरफ दिए थे इसलिए बाथरूम पूरी तरह से बेपर्दा हो चुका था और इसीलिए मुझे यह खूबसूरत नजारा देखने का मौका मिला,,,,मुझे पहली बार एहसास हुआ की मम्मी कितनी खूबसूरत है उसकी गांड कितनी खूबसूरत है उसका गोरा रंग उसे और भी कितना ज्यादा सेक्सी बनाता है,,,,,मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मम्मी कितना पेशाब करती है बड़ी देर से उसकी बुर से पेशाब की धार फुटते जा रही थी,,, मन तो कर रहा था कि मैं भी बाथरुम में घुस जाऊं और पीछे से मम्मी की बुर में लंड डाल दु और उनकी चुदाई कर दुं,,, लेकिन डर इस बात का था कि कहीं मम्मी शोर ना मचा दे,,,, किसी को पता चल गया तो क्या होगा लेकिन इतना तो मुझे मालूम था कि मम्मी को भी इसी चीज की जरूरत है क्योंकि बरसों से उन्होंने अपनी जवानी को संभाल कर रखी थी,,,, मैं 10 साल का था तभी पापा गुजर गए थे तब से मम्मी अकेले ही थी,,,, घर में बस में मम्मी और मेरी दो बड़ी बहनें,,, मम्मी की गदराई जवानी देखकर मुझे मालूम था उन्हें मोटे तगड़े लंबे लंड की जरूरत थी,,,,,(जब यह लाइन अंकित ने पढा तो तिरछी नजर से अपनी मां की तरफ देखने लगा अंकित को एहसास हुआ कि उसकी मां उसकी पेंट की तरफ देख रही थी और जब उसने गौर किया तो वाकई में उसके पेट में तंबू सा बन गया था लेकिन अंकित अपने पेट में बने तंबू को छुपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रहा था और आगे की लाइन पढ़ने लगा,,,)




अप से ही मजा लेती हुई सुगंधा

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मेरा लंड पेंट से बाहर आने के लिए तड़प रहा था और मम्मी की बुर में जाने के लिए मचल रहा था मम्मी की तरफ से बस इशारा आना बाकी थाअगर इसी समय ऐसा हो जाता तो मैं मम्मी को बाथरूम में हीं जमकर चुदाई कर देता,,,इतना तुम्हें जानता था कि अगर मम्मी मौका देती तो मैं मम्मी की जवानी कर रहा था अपने लंड से मुझे छोड़ देता उन्हें पूरी तरह से संतुष्ट करने का दम मेरे में बहुत था बस मम्मी के इसारे की देरी थी,,,,,।


बस बस रहने दे बाप रे इतनी गंदी कहानी मैं तो कभी सोची भी नहीं थी,,,,(बीच में ही अंकित को रोकते हुए सुगंधा बोली तो अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए अाशचर्य से बोला,,,)


लेकिन तुमने तो पढ़ी हो ना,,,।

अरे पूरी किताब थोड़ी पढी हूं तेरी ही तरह एक दो पन्ने ही पढ़ी हूं,,,,,,।


सच में बहुत गंदी किताब है ना मम्मी मेरी तो हालत खराब हो गई,,,,।

ला ईस किताब को मुझे दे,,,, इसे तो रद्दी में बेचने में भीबदनामी हो जाएगी किसी को पता चल गया कि जिस घर से यह किताब बेची गई है तो गजब हो जाएगा,,,।

सही कह रही हो मम्मी,,,(इतना कहते हुए अंकित उसे किताब को अपनी मां की तरफ बढ़ा दिया और उसकी मां उसे किताब को अपने हाथ में लेकर बिस्तर के नीचे रख दी,,,, और अंकित की तरफ देखते हुए बोली,,,,,)

जल्दी से अब सफाई कर इस किताब ने तो मेरे पसीने छुड़ा दिए,,,,।

सच कह रही हो मेरी भी हालत खराब कर दिया इस किताब ने,,,,(ऐसा कहते हुए वह फिर से आलमारी साफ करने लगा,,,, लेकिन इस कहानी को पढ़ने के बाद मां बेटे दोनों के मन में उथल-पुथल चल रही थी अब उन दोनों के पास बात करने के लिए इस कहानी को लेकर बहुत सारे मुद्दे थे,,,, और अंकित भी अपनी मां से इस तरह की बातों की शुरुआत करना चाहता था इस कहानी को लेकर बहुत सारी बातें सवाल उसके मन में चल रहे थे।)



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Bahut hi shandar update he rohnny4545 Bhai,

Kitab ke jariye dono maa bete ek dusre aur bhi khul gaye he................

Bas kisi ek ko pahal karni he ab

Keep rocking Bro
 

sunoanuj

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Bahut hee badhiya update hai…,, 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Ajju Landwalia

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मां बेटे दोनों को लग रहा था कि वह गंदी किताब की कहानी दोनों के बीच की दूरी को खत्म करने के लिए मददगार साबित हो सकती थी,,,, बस उस गंदी किताब की कहानी के मुद्दे को सही तरीके से उपयोग करना था,,,, कहानी को पढ़कर अंकित के तन बदन में पूरी तरह से उत्तेजना की लहर उठने लगी थी,,, पर यही हाल सुगंधा का भी था सुगंधा किसी भी तरह से चाहती थी कि वह किताब अंकित के हाथ में लग जाए और ऐसा ही हुआ और जानबूझकर उसे कहानी को पढ़ने के लिए वह अपने बेटे से बोली अपने बेटे के मुंह से उसे कहानी के उसे क्षण को पढ़कर वह पूरी तरह से मदहोश हुए जा रही थी,,,, सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना के लहर उठ रही थी खास करके उसके दोनों टांगों के बीच की पतली दरार की हालत पल-पल खराब होती चली जा रही थी।वह कभी सोची नहीं थी कि वह हिम्मत दिखा कर अपने बेटे को गंदी किताब की गंदी कहानी पढ़ने को बोलेगी।

कहानी में जो बैठा था वह अपनी मां को पेशाब करते हुए देख रहा था,,,, अपने बेटे को किताब का वह नजारा पढ़ते हुए देख कर अपने मन में सोच रही थी,, ऐसा पल तो उसके जीवन में बहुत बार आया था,,, बहुत बार ऐसा हुआ था कि उसका बेटा उसे पेशाब करते हुए देख रहा था,,,, और बहुत बार तो वह खुद ही अब जानबूझकर अपने बेटे को या नजारा दिखा चुकी थी,,,, लेकिन किताब के नायक के मन की दशा को पढ़कर सुगंधा अपने मन में सोच रही थी कि उसका बेटा भी बिल्कुल ऐसा ही उसके बारे में सोच रहा होगा उसे पेशाब करते हुए देखकर उसकी नंगी गांड देखकर उसका मन भी उसे चोदने को करता होगा,,,क्योंकि मन में अगर इस तरह का ख्याल ना आए तो फिर किसी भी औरत को अर्धनग्न अवस्था में या नग्न अवस्था में देखकर मर्द को कोई फायदा ना हो मर्द औरत को इस अवस्था में देख कर केवल उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के बारे में ही सोचता है,,, तभी तो उसकी उत्तेजना केवल औरत को नग्न, अर्धनग्न अवस्था में देखकर बढ़ जाती है। कहानी के नायक की तरह उसके बेटे ने उसे बहुत बार देखा था उसके मन में भी उसे चोदने का ख्याल आता होगा तभी तो उसका लंड खड़ा हो जाता है,,, कहानी को पढ़ते समय भी उसके पेंट में तंबू बना हुआ था,,, यह सब यही दर्शाता है कि वह भी कहानी के नायक की तरह अपनी मां को चोदना चाहता है। इस बात को सोचकर ही सुगंधा का बदन गनगना गया,,,,।

सुगंधा मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रही थीक्योंकि धीरे-धीरे मां बेटे आगे की तरफ बढ़ रहे थे मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे मंजिल अब ज्यादा दूर नजर नहीं आ रही थी,,,,दोनों में से कोई एक अगर जल्दी से कदम आगे बढ़ा देता तो शायद दोनों को मंजिल भी मिल जाती लेकिन कोई भी कदम आगे बढ़ाने को तैयार नहीं था बल्कि साथ-साथ ही चल रहे थेऔर शायद इसी में असली सुख भी छुपा हुआ था धीरे-धीरे में जो आनंद है दोनों मां बेटे को प्राप्त हो रहा था वह उनकी कल्पना से भी परे था,,, अंकित भी पूरी तरह से मस्त हो चुका था वह जान चुका था कि उसकी मां के मन में क्या चल रहा है,,,, औरतों की मां की आहट को धीरे-धीरे समझने लगा था जिसने यह अनुभव उसेराहुल की मां और अपनी ही नानी से प्राप्त हुआ था दोनों दिखने में तो बहुत सीधी शादी थी लेकिन अपने अंदर एक तूफान लिए हुए थी,,,बाहर से शांत दिखने वाली दोनों औरतें नदी की तरह थी एकदम शांत लेकिन अंदर से तूफान लिए हुए एक प्यास लिए हुए जो मौका देखकर किसी भी मर्द के साथ एकाकार होने में नहीं हिचकीचाती,,,, अंकित भी अपने काम में लगा हुआ था सुगंधा भी काम में लगी हुई थी लेकिन आगे की योजना अपने मन में बना रही थी,,,,।कपड़ों को व्यवस्थित कर लेने के बाद वह धीरे-धीरे उसे अलमारी में रखने लगी,,,,मां बेटे के बीच इस समय किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थीक्योंकि कुछ देर पहले दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ था कहानी को लेकर जिस तरहके भाव दोनों के मन में जगह थे वह उन दोनों को कुछ देर के लिए एकदम शांत कर दिया था और अपने आप को ही सोचने पर मजबूर कर दिया था कि अब आगे क्या करना है।

अलमारी में कपड़े रख लेने के बाद,,, सुगंधा के मन में कुछ और चल रहा थावह अपने बेटे के सामने अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर उठकर कमर में खोज दी और घुटने के नीचे तक उसकी साड़ी जो थी अब वह घुटनों तक आ चुकी थी उसकी मांसल पिंडलियां उजागर हो चुकी थी और वह अपनी साड़ी को अपनी कमर पर कस ली थी इस रूप में उसकी साड़ी का पल्लू उसकी चूचियों के बीच से आकर नीचे कमर में फंसी हुई थी जिसे अपने हाथ से ही खोंशी थी लेकिन उसके ऐसा करने की वजह से साड़ी का पल्लू उसकी धोनी चूचियों के बीच से नीचे की तरफ और भी ज्यादा बड़ी और उन्नत लग रही थी जिस पर नजर पड़ते ही अंकित के बदन मदहोशी का रस घुलने लगा था,,,। अपनी मां को ऐसा करते हुए देखकर अंकित ऊपर से नीचे की तरफ अपनी मां को देखकर बोला,,,।

अब क्या करने जा रही हो,,,,?
(अंकित जिस तरह से प्यासी नजरों से उसके बदन को ऊपर से नीचे तक देखा था इसका एहसास सुगंध को बड़ी अच्छी तरह से हुआ था और उसके बदन में उत्तेजना की फुहार उठने लगी थी,,, क्योंकि सुगंधा को अपने बेटे की आंखों में वासना और प्यास एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,,अपने खूबसूरत अंगों के उभार के लिए उसकी आंखों में एक चमक दिखाई दे रही थी और उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि अगर अपने बेटे को वह छूट दे देगी तो उसका बेटा उसके खूबसूरत अंगों को अपनी हथेली में लेकर मसल मसल कर उसका रस निचोड़ डालेगा। और इसके लिए वह पूरी तरह से तैयार थीबहुत बार उसने इशारों ही इशारों में अपने बेटे को किया जताने की कोशिश कर चुकी थी कि वह क्या चाहती है उसका क्या इरादा है लेकिन उसका बेटा ना जाने क्यों शायद ना जाने में या सब कुछ जान कर भी आगे बढ़ने से अपने आप को रोक ले रहा था,,, लेकिन अब वह चाहती थी कि अब जो कुछ भी हो दोनों के बीच जल्दी हो जाए क्योंकि अब यह तड़प उससे भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी,,, वह अपने बेटे की मजबूत बुझाओ में अपने आप को सिमटती हुई महसूस करना चाहती थी,,, अपने बेटे के मर्दाना अंग को अपने कोमल अंग के अंदर उसकी गर्मी को महसूस करना चाहती थी उसकी रगड़ को महसूस करके पानी पानी हो जाना चाहती थी।

इस तरह की अभिलाषा शायद उसे शादीके पहले भी नहीं हुई होगी जितना कि अब वह एक मर्द का साथ पाने के लिए तड़प रही थी,,, शायद वह इसलिए की,तब उसे नहीं मालूम था कि उसकी मंजिल कहां है उसे क्या चाहिए किस चीज की जरूरत है वह ऐसे ही अपनी जिम्मेदारी एक मां की तरह निभाते चली जा रही थी और अपने अंदर की औरत को वह अपने पति के देहांत के बाद ही मर चुकी थी लेकिन जैसे ही उसके अंदर की एक औरत जागरूक हुई उसकी मां की तरह की जिम्मेदारी एक औरत की अभिलाषा के दबाव में दबती चली गई,,, एक औरत की अभिलाषा एक औरत की प्यास एक मां पर भारी पड़ रही थी वह मजबूर हो चुकी थी अपने अंदर की हवस मिटाने के लिए अपने बदन की प्यास बुझाने के लिए,,, वह यह जानकर भी वह जो कुछ करने जा रही है वह गलत है अपने बेटे के साथ शारीरिक संबंध बनाना पाप है लेकिन वह मजबूर थी अपनी प्यास के आगे बेबस हो चुकी थी और अपने आप को अपने मन को इस बात से दीलासा भी दे चुकी थी कि एक चार दिवारी के अंदर मां बेटे क्या करते हैं यह किसी को क्या पता चलेगा,,,, समाज में समझ के आगे भले ही वह मां बेटे की तरह व्यवहार करते हो लेकिन घर की चार दिवारी के अंदर अगर पति-पत्नी की तरह व्यवहार करेंगे तो इस बारे में किसी को कैसे पता चलेगा और चोरी तब तक ही रहती है जब तक की पकड़ी ना जाए अौर सुगंधा को पूरा भरोसा था कि अगर उसके और उसके बेटे के बीचशारीरिक संबंधी स्थापित हो जाता है तो भी इस बारे में किसी को कानों कान खबर तक नहीं होगी,,,, अपने बेटे के सवाल पर मुस्कुराते हुए अपने बेटे की तरफ देख कर बोली,,,)

अलमारी की सफाई तो हो गई लेकिन कैमरे की सफाई बाकी है जा जाकर बाहर से झाड़ू लेकर आ,,,,।

ओहहह तो तुम झाड़ू लगाने जा रही हो मुझे लगा इस तरह से,,(हथेली अपनी मां की तरफ करके ऊपर से नीचे की तरफ हथेली को घुमाते हुए) क्या करने जा रही हो..


अरे कुश्ती नहीं करने जा रही हूं,,,, और वैसे भी मेरे साथ कुश्ती करेगा कौन,,,,।

मैं हूं ना तुम्हारे साथ कुस्ती करने के लिए,,,(अंकित मुस्कुराते हुए बोला तो उसकी बात सुनकर सुगंधा भी बोल पड़ी)

एक ही बार में दबा दूंगी चित्त हो जाएगा,,,,भले ही तो कसरत करता है लेकिन मुझसे ज्यादा मजबूत नहीं होगा,,,।

अगर यह बात है तो चलो कुश्ती करके देख लेते हैं कौन जीतता है,,,,।

नहीं नहीं रहने देकहीं नीचे गिरकर हड्डी टूट गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे,,,।

बस हो गया डर गई,,,।


डर तो बिल्कुल नहीं गई क्योंकि जब मैं कक्षा8 में थी तो स्कूल में कबड्डी का कंपटीशन होता था और उसमें में हीं फर्स्ट आती थी,,,।

सच में मम्मी,,,,।

तो क्या तुझे भरोसा नहीं होता क्या,,,,

मुझे तो भरोसा है लेकिन,,,,

अच्छा तो तुझे भरोसा नहीं है चल फिर एक बार एक-एक हाथ हो ही जाए,,,,।

यहां पर इस कमरे में,,,।

तो क्या बाहर जाकर कुश्ती लड़ेंगे क्या,,, मां बेटे की बीच की कुश्ती तो घर की चार दिवारी के अंदर ही होती है,,, बिस्तर पर,,,,(सुगंधा अपने बेटे से दो अर्थ वाली बातें कर रही थी और अंकित अपनी मां के कहने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था,,, और अपनी मां की अभिलाषा जानकर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था,,,, और उसकी बात सुनकर बोला,,,)

और कहीं कुश्ती लड़ते-लड़ते पलंग टूट गई तो,,,।

पलंग तोड़ कुश्ती में ही तो मजा आता है तभी तो दोनों में कितना दम है इसका पता चलता है,,,,,,

बात तो सही है तुम्हारे साथ कुश्ती करने का मजा भी तभी है जब पलंग टूट जाए,,,,(अंकित भी अपनी मां की तरह दो अर्थ में बात करते हुए बोला और सुगंधा अपने बेटे के कहने के मतलब को समझ कर उत्तेजना से गनगना गई,,,,)

तो चल देखते हैं कौन पलंग तोड़ता है,,,।

चलो मैं तो तैयार हूं,,,,(ऐसा कहते हुए अंकित शुरुआत करते हुए अपने दोनों हाथ को ऊपर उठा दिया और अपनी मां की तरफ आगे बढ़ा दिया मानो की सच में वह कुश्ती करने के लिए तैयार हो चुका था,,, सुगंधा भीअपने दोनों हाथ को आगे बढ़ा दी और वह भी कुश्ती करने के लिए तैयार हो चुकी थी सुगंधा और अंकित दोनों के मन में कुछ और ही चल रहा था यह तो सिर्फ कुश्ती का बहाना था दोनों एक दूसरे को छूने दबाने और मसलने का मजा लेना चाहते थे,,,,
देखते ही देखते अंकितदोनों हाथ ऊपर किए हुए ही अपनी मां की हथेली को अपनी हथेली में दबोच लिया और जिस तरह से दो योद्धा कुश्ती करते हैं इस तरह से वह दोनों भी तैयार हो चुके थे दोनों जोर लगा रहे थे एक दूसरे के तरफऔर दोनों का जोर बराबर लग रहा था कभी वह एक कदम पीछे चले जा रहा था तो कभी सुगंधा एक कदम पीछे चली जा रही थी।लेकिन अगले ही पल हुआ अपनी स्थिति में आ जा रही थी अपनी मां की ताकत हिम्मत देखकर अंकित मन ही मन बहुत खुश हो रहा था अपने मन में सोच रहा था कि वाकई में पलंग पर उसकी मां के साथ कुश्ती करने में कुछ ज्यादा ही मजा आएगा,,,,ऐसा अपने मन में सोते हुए को थोड़ा सा जोर लगाया तो उसकी मां गिरने को हो गई लेकिन तुरंत अपने आप को संभाल ली,,,,


लेकिन अगले ही पल अंकित थोड़ा सा जोर लगाया और इस बार वह अपनी मां को लेकर पलंग पर जा गिरा सुगंधा पलंग पर नीचे गिरी हुई थी और अंकित उसके ऊपर गिरा हुआ था और उसे अपनी भुजाओं से दबोच कर रखा हुआ था,,,,लेकिन उसके पलंग पर गिरने से उसकी सारी घुटनों के ऊपर तक एकदम से चढ़ गई थी उसकी मोटी मोटी नंगी जांघोंका एहसास अंकित को बहुत अच्छी तरह से हो रहा था और किसी भी तरह से अपनी मां की जान को अपनी हथेली सेदबाना चाहता था मसलना चाहता था तब पूछना चाहता था उसके मखमली जांघों को छुकर महसूस करना चाहता था अपनी मां की जवानी को,,,, सुगंधा उसके नीचे दबी हुई थी और उससे छूटने की कोशिश कर रही थी,,,लेकिन अंकित उसे अपनी भुजाओं से दबोचा हुआ था और उसे पर काबू करने के बहाने अपने हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर अपनी मां की मोटी मोटी जांघों को कस के दबोच लिया था,,,,अपनी मां की चिकनी जांघों का एहसास उसके बदन में उत्तेजना की लहर को बढ़ा रही थी,,, ओ पागल हुआ जा रहा था और उसके हाथ जांघों के ऊपरी सतह पर अपने आप फिसलते हुए चले जा रहे थे जिसका एहसास सुगंधा को बहुत अच्छी तरह से हो रहा था,,,,वह अपने बेटे की पकड़ से छोड़ना चाहती थी लेकिन अंकित की हरकत से वह मदहोश हुए जा रही थी,,,, मां बेटे दोनों जोर लगा रहे थे और दोनों का मजा भी आ रहा थाअंकित कुश्ती के बहाने अपनी मां के मखमली बदन को छू रहा था उसे अपनी हथेली में दबोच रहा था इस समय उसकी उत्तेजना परम शिखर पर थी पेंट के अंदर उसका लंड पूरी तरह से टन्ना गया था।

तभी अंकित की नजर अपनी मां की चूचियों पर पड़ी जो की ब्लाउज से बाहर आने के लिए मचल रही थी,,, क्योंकिकुश्ती का जोर लगाने की कसम काम सुगंधा के ब्लाउज का ऊपर वाला बटन अपने आप ही टूटकर गिर गया था जिसकी वजह से उसकी आधे से भी ज्यादा चूचियां ब्लाउज से बाहर झांकने लगी थी,,,जिसे देखकर अंकित के मुंह में पानी आने लगा था और इसी मौके का फायदा उठाकर सुगंधा एकदम से अपना दांव बदली औरअपने बेटे के कंधे को पकड़ कर उसे ज़ोर से दम लगाकर एकदम से पलट दी और खुद उसके ऊपर चढ़ गईलेकिन ऊपर चढ़ने में उसकी साड़ी एकदम कमर तक उठ गई जिससे उसकी मदद कर देने वाली बड़ी-बड़ी गांड लाल रंग की चड्डी में एकदम साफ दिखाई देने लगी लेकिन इस समय अंकित अपनी मां को ही जरूरत में नहीं देख सकता था क्योंकि वह नीचे दबा हुआ था लेकिन अपने आप को ऊपर उठने की कोशिश में अपने आप को बचाने की कोशिश मेंवह अपने हाथ को अपनी मां के बदन के इधर-उधर रखकर जोर लगा रहा था और ऐसे में उसके दोनों हाथ सुगंधा के भारी भरकम गांड पर चली गई और उसे एहसास हुआ की साड़ी कमर तक उठी हुई है लेकिन पूरे नंगेपन को ढकने के लिए अभी भी उसके बदन पर चड्डी थी जिसका एहसासअंकित को अपनी हथेली पर चड्डी के स्पर्श होते ही महसूस हो रहा था और वह एकदम से मत हुआ जा रहा था लेकिन इस समय कुश्ती के खेल में सुगंधा पूरी तरह से हावी हो चुकी थी,,,।

सुगंधा जिस तरह से कुश्ती के नियम का फायदा उठाते हुए कि,, जब सामने वाले प्रति द्ववंदी का ध्यान थोड़ा सा भी भटके तो तुरंत दांव लगाकर उसे पटकनी दे दो,,,और सुगंधा को जैसे ही लगा कि उसके बेटे का ध्यान पूरी तरह से भटक चुका है क्योंकि वह अपने बेटे की नजर को देख चुकी थी और उसकी नजर उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों पर थी जो ब्लाउज के बटन टूटने की वजह से बाहर की तरफ पानी भरे गुब्बारे की तरह लुढका हुआ था तभी वहअपने बेटे की कमजोरी का फायदा उठाकर उसे नीचे पटक दीजिए लेकिन जिस तरह से वह अपने बेटे के ऊपर बैठी हुई थी उसकी गांड पर उसकी गांड के बीचों बीच कुछ कड़क चीज चुभती हुई महसूस हो रही थी और उसे समझते देर नहीं लगी कि नीचे से कौन सा अंग उसकी गांड के बीचो-बीच चुभ रहा है यह एहसास होते ही वह पानी पानी होने लगी,,,सुगंध को अच्छी तरह से एहसास हो रहा था की कुश्ती करते समय जब वह पलंग पर पटकी गई थी और जब वह उसके ऊपर चढ़ी तब उसकी साड़ी कमर तक उठ गई थी और इस समय पेट के अंदर से ही उसके बेटे का लंड उसकी पेंटि के ऊपर से उसकी बुर पर ठोकर मार रहा थायह एहसास उसका पानी निकालने के लिए काफी था वह मदहोश हो जा रही थी और गहरी गहरी सांस ले रही थी लेकिन दोनों हाथों से अपने बेटे की हथेलियां को दबोच कर बिस्तर पर दबाए हुए थी ताकि वह कोई हरकत ना कर सके,,,,।

अंकित को भी एहसास हो रहा था कि वह किस स्थिति में है अपनी मां का भारी भरकम बदन वह अपने ऊपर महसूस कर रहा था,,, और शायदयह उसके लिए एक तरह का अभ्यास था जब वह दोनों के बीच सारी मर्यादाएं खत्म होने के बाद जब दोनों संभोग सुख का मजा लेंगे तब शायद इसी तरह से वह अपनी मां को अपने लंड के ऊपर रखकर नीचे से ठोकर लगाएगा,,,और तब वह अपनी मां के भारी भरकम वजन को संभाल सकता है कि नहीं यह देखने के लिए यह पल उसके लिए बेहद जरूरी था,,,और अच्छी तरह से उसकी मां की भारी भरकम गांड का दबाव उसके लंड पर पड़ रहा था उसे देखकर अंकित को एहसास हो रहा था कि वह अपनी मां के भार को अच्छी तरह से संभाल लेगा,,,सुगंधा किस तरह से अपने नीचे उसे दबाए हुए थी वह पूरी तरह से चारों खाने चित हो चुका था और कुश्ती के नियम के अनुसार वह हार चुका था,,, और सुगंधा हल्के से अपनी गांड कोएक दो बार अपने बेटे के लंड पर गोल-गोल घुमाई जिसका एहसास अंकित को महसूस हुआ था और वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था उसका मन तो इसी समय कर रहा था कि अपनी मां को बोल दे की बस अपनी चड्डी उतार दो मुझे रहा नहीं जा रहा है लेकिन ऐसा कह नहीं पाया,,,।

सुगंधा अपनी जीत को लेकर बेहद खुश थी और अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली,,,।

क्यों बच्चु हो गया ना,,, ऐसे ही चार-पांच मेडल नहीं जीती हूं अब तो तुझे यकीन हुआ ना की कुश्ती में तु मुझसे नहीं जीत सकता।

बिल्कुल सच में मैं तुमसे नहीं जी सकता तुमने जिस तरह से पटकनी लगाइ हो मैं तो सोच भी नहीं सकता,,,।

मेरे लाल यही तो कुश्ती का नियम है,,,(ऐसा कहते हुए अपने बेटे के ऊपर से उठने लगी उसकी सारी कमर तक उठी हुई थी और अपने को बेटी के सामने ही खड़ी होकर अपनी साड़ी को व्यवस्थित करने लगी उसे बेहद रोमांच का अनुभव हुआ था उसे बहुत मजा आया था,,,, अंकित भी बिस्तर पर उठकर बैठ गया और बोला,,,)

अच्छा हुआ कि तुम्हारी पलंग नहीं टूटी वरना लेने के देने पड़ जाते,,,।

सच कहूं तो मैं उतना जोर लगाई ही नहीं थी वरना सच में पलंग टूट जाती।( इतना कहते हुए वह पलंग से नीचे उतर गई,,,, अंकित भी धीरे से पलंग से नीचे उतर गया,,,, सुगंधा अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)

जब जल्दी से जाकर झाडू ले आ कमरे की सफाई कर देती हुं,,,,,।

ठीक है मैं अभी लेकर आता हूं,,,,,(इतना कहकर अंकित अपनी मां के कमरे से बाहर चला गया और सुगंधा जल्दी से अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी पैंटी को जल्दी से उतारने लगी और अपनी मोटी मोटी जांघों से नीचे सरकाते हुए वह आगे की योजना बनाने लगी और अगले ही पल वह अपनी पैंटी को अपने पैरों से बाहर निकाल कर उसे बिस्तर के नीचे छुपा दी और अपनी साड़ी को पहले की तरह अपनी कमर में खोंस ली,,,)

Bahut hi gazab ki update he rohnny4545 Bro,

Maja gaya Bro.......

Keep Rocking
 
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