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Mind blowing Update bhai ji, kalika ab tak ke sabhi jabaab bakhubi de chuki hai, dekhna ye hai, ki kya wo aage ke dono dwar bina rukawat ke paar kar legi?#121.
चैपटर-6
प्रकाश शक्ति: (14 वर्ष पहले.......... 07 जनवरी 1988, गुरुवार, 17:30, रुपकुण्ड झील, चमोली, भारत)
रुपकुण्ड झील, भारत के कुमाऊं क्षेत्र का एक चर्चित पर्यटन स्थल है, जो कि देवभूमि कहलाने वाले उत्तर भारत का एक हिस्सा है।
रुपकुण्ड झील से कुछ ही दूरी पर, तीन पर्वतों की एक श्रृंखला है, जिसकी नोक त्रिशूल के आकार की होने के कारण उसे त्रिशूल पर्वत कहा जाता है।
त्रिशूल पर्वत से कुछ ही दूरी पर नन्दा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है।
रुपकुण्ड झील के पास शाम के समय एक लड़की हाथों में कैमरा लिये झील के आसपास की फोटोज खींच रही थी। काली जींस, काली जैकेट पहने उस लड़की के काले घने बाल हवा में लहरा रहे थे।
तभी वहां मौजूद एक गार्ड की नजर उस लड़की पर पड़ी।
“ओ मैडम! इस क्षेत्र में शाम होने के बाद टूरिस्ट का आना मना है।” गार्ड ने उस लड़की पर एक नजर मारते हुए कहा।
“हलो ! मेरा नाम कलिका है। मैं दिल्ली की रहने वाली हूं।”यह कहते हुए कलिका ने अपना सीधा हाथ, हाथ मिलाने के अंदाज में गार्ड की ओर बढ़ाया।
कलिका का हाथ आगे बढ़ा देख गार्ड एकदम से सटपटा गया।
शायद आज से पहले किसी भी टूरिस्ट ने उससे हाथ नहीं मिलाया था। गार्ड ने एक क्षण सोचा और फिर कलिका से हाथ मिला लिया।
“ऐक्चुली मैं दिल्ली से छपने वाली एक पत्रिका की एडिटर हूं और मैं रुपकुण्ड झील के बारे में अपनी पत्रिका में एक लेख लिख रही हूं।”
कलिका ने गार्ड से धीरे से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा- “दिन के समय की बहुत सी फोटोज मैंने पहले से ही खींच रखी है, पर अब मैं शाम के समय की कुछ फोटोज खींचना चाहती हूं।”
“अच्छा-अच्छा...तो आप लेख लिखती हैं।” गार्ड ने खुश होते हुए कहा- “ठीक है मैडम। खींच लीजिये आप यहां की फोटोज... पर मेरी भी एक-दो फोटो अपनी पत्रिका में जरुर डालियेगा।”
“हां-हां...क्यों नहीं....आप अगर मुझे यहां के बारे में बताएं तो मैं आपका इंटरव्यू भी अपनी पत्रिका में डाल दूंगी।” कलिका के शब्दों में सीधा-सीधा प्रलोभन था।
“जरुर मैडम...मैं आपको यहां के बारे में जरुर बताऊंगा।” इंटरव्यू के नाम पर तो गार्ड की बांछें खिल गयीं और आज तक उसने जो भी वहां के गाइड से सुन रखा था, वह सारा का सारा बताना शुरु कर दिया-
“वैसे तो यहां का बहुत पुराना इतिहास किसी को भी नहीं पता? यह झील 1942 में सुर्खियों में तब आयी, जब यहां के एक रेंजर एच. के. माधवल को इस झील के किनारे 500 से भी ज्यादा नरकंकाल मिले, जो कि बर्फ के पिघलने की वजह से अस्तित्व में आये थे।
बाद में यूरोपीय और भारतीय वैज्ञानिकों ने इस जगह का दौरा किया और कार्बन डेटिंग के आधार पर इन कंकालों के बारे में पता किया।
“उनके हिसाब से यह कंकाल 12वी से 15वी सदी के बीच के थे। इन सभी कंकालों के सिर पर क्रिकेट की गेंद के बराबर के ओले गिरने के निशान पाये गये, जिससे यह पता चला कि शायद ये किसी बर्फीले तूफान का शिकार हो गये थे? यहां हर साल जब भी गर्मियों में बर्फ पिघलती है तो हर तरफ मानव कंकाल नजर आने लगते हैं।
सर्दी के दिनों में यह जगह पूरी बर्फ से ढक जाती है। बाकी इस झील की गहराई मात्र 2 मीटर है। इसके पश्चिम दिशा में ब्रह्मताल और उत्तर दिशा में त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत है।” इतना कहकर गार्ड चुप हो गया।
“वाह आपको तो बहुत कुछ पता है यहां के बारे में।” कलिका ने मुस्कुराते हुए गार्ड की ओर देखा।
गार्ड अपनी तारीफ सुन कर भाव-विभोर हो गया।
“अच्छा मैडम अब अंधेरा हो गया है, तो आप जब तक यहां की फोटो लीजिये, मैं जरा आगे से टहल कर आता हूं।“ इतना कहकर गार्ड एक दिशा की ओर चल दिया।
गार्ड को दूसरी ओर जाते देख कलिका की आँखें खुशी से चमक उठीं।
कलिका ने झट से अपना कैमरा अपनी पीठ पर लदे बैग में डाला और जैसे ही गार्ड उसकी नजरों से ओझल हुआ, वह रुपकुण्ड झील के
पानी में उतर गयी।
चूंकि कलिका का बैग वाटरप्रूफ था इसलिये उस पर पानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ना था।
कलिका ने एक डुबकी ली और झील की तली में इधर-उधर अपनी नजरें दौड़ाने लगी।
पता नहीं कैसे अंधेरे में भी कलिका को बिल्कुल ठीक दिखाई दे रहा था।
तभी कलिका की नजरें झील की तली में मौजूद एक सफेद पत्थर की ओर गयी। वह पत्थर बाकी पत्थरों से थोड़ा अलग दिख रहा था।
सफेद पत्थर के पास पहुंचकर कलिका ने धीरे से उसे धक्का दिया।
आश्चर्यजनक तरीके से वह भारी पत्थर अपनी जगह से हट गया। पत्थर के नीचे कलिका को एक तांबे की धातु का दरवाजा दिखाई दिया, जिस पर एक हैण्डिल लगा हुआ था।
कलिका ने हैण्डिल को खींचकर दरवाजा खोला। दूसरी ओर बिल्कुल अंधकार था।
कलिका उस अंधकारमय रास्ते से दूसरी ओर चली गयी।
उस स्थान पर बिल्कुल भी पानी नहीं था। कलिका ने जैसे दरवाजा बंद किया, सफेद पत्थर स्वतः लुढ़ककर उस दरवाजे के ऊपर आ गया।
उधर बाहर जब गार्ड लौटकर आया तो उसे कलिका कहीं दिखाई नहीं दी।
“लगता है मैडम बिना बताए ही वापस चली गयीं?” गार्ड ने मन ही मन कहा- “एक फोटो भी नहीं ले पाया उनके साथ।” यह सोच गार्ड थोड़ा उदास हो गया।
उधर कलिका ने जैसे ही दरवाजा बंद किया, उसके चारो ओर तेज रोशनी फैल गयी।
ऐसा लगा जैसे धरती के नीचे कोई दूसरा सूर्य उदय हो गया हो।
कलिका ने अपने आसपास नजर दौड़ायी। इस समय वह एक छोटे से पर्वत की चोटी पर खड़ी थी।
चोटी से नीचे उतरने के लिये बहुत सारी पत्थर की सीढ़ियां बनीं थीं।
कलिका वह सीढ़ियां उतरते हुए नीचे आ गयी। अब उसके सामने एक विशाल दीवार दिखाई दी। उस दीवार में 3 द्वार बने थे।
पहले द्वार पर अग्नि का चित्र बना था, दूसरे द्वार पर एक सिंह का और तीसरे द्वार पर मृत्यु के देवता यमराज का चित्र बना था।
यह देख कलिका ठहर गयी।
तभी कलिका को एक जोर की आवाज सुनाई दी- “कौन हो तुम? और यहां क्या करने आयी हो?”
“पहले अपना परिचय दीजिये, फिर मैं आपको अपना परिचय दूंगी।” कलिका ने बिना भयभीत हुए कहा।
“मैं इस यक्षलोक के द्वार का प्रहरी यक्ष हूं, मेरा नाम युवान है। बिना मेरी आज्ञा के इस स्थान से कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता। अब तुम अपना परिचय दो युवती।” युवान की आवाज काफी प्रभावशाली थी।
“मैं हिमालय के पूर्व में स्थित ‘कालीगढ़’ राज्य की रानी कलिका हूं, मैं किसी शुभ उद्देश्य के लिये यक्षलोक, ‘प्रकाश शक्ति’ लेने आयी हूं। अगर मुझसे किसी भी प्रकार की धृष्टता हो गयी हो, तो मुझे क्षमा करें यक्षराज।”
कलिका का एक-एक शब्द नपा तुला था।
कलिका के मनमोहक शब्दों को सुन युवान खुश होता हुआ बोला- “ठीक है कलिका, तुम यहां से आगे जा सकती हो, पर ये ध्यान रखना कि प्रकाश शक्ति पाने के लिये तुम्हें ‘यक्षावली’ से होकर गुजरना पड़ेगा।
‘यक्षावली’ यक्ष के प्रश्नों की प्रश्नावली को कहते हैं। यहां से आगे बढ़ने पर तुम्हें 5 यक्षद्वार मिलेंगे। हर यक्षद्वार पर तुम्हें एक प्रश्न मिलेगा। तुम्हें उन प्रश्नों के सही उत्तर का चुनाव करना होगा, अगर तुम्हारा एक भी चुनाव गलत हुआ तो तुम्हारा कंकाल भी रुपकुण्ड के बाहर मिलेगा।"
“जी यक्षराज, मैं इस बात का ध्यान रखूंगी।” कलिका ने युवान की बात सहर्ष मान ली।
“आगे प्रथम यक्षद्वार है, जिस पर कुछ आकृतियां बनीं हैं, हर द्वार के पीछे वही चीज मौजूद है, जो द्वार पर बनी है। अब तुम्हें पहला चुनाव करना होगा कि तुम किस द्वार से होकर आगे बढ़ना चाहती हो?” इतना कहकर युवान चुप हो गया।
कलिका तीनों द्वार पर बनी आकृतियों को ध्यान से देखने लगी।
एक घंटे से ज्यादा सोचने के बाद कलिका ने अग्नि के द्वार में प्रवेश करने का निश्चय किया।
“मैं अग्निद्वार में प्रवेश करना चाहती हूं यक्षराज।” कलिका ने कहा।
“मैं इसका कारण भी जानना चाहता हूं कि तुमने क्या सोचकर यह निश्चय किया?” युवान की गम्भीर आवाज वातावरण में उभरी।
“यहां पर तीन द्वार हैं।” कलिका ने बारी-बारी से उन तीनों द्वार की ओर देखते हुए कहा- “अगर मैं तीसरे द्वार की बात करुं, तो वहां पर स्वयं यमराज विद्यमान हैं और यमराज मौत के देवता हैं, इसलिये वो तो किसी भी हालत में मुझे आगे जाने नहीं देंगे। अब अगर दूसरे द्वार की बात करुं, तो वहां पर एक सिंह बैठा है। सिंह की प्रवृति ही आक्रामक होती है। अगर उसका पेट भरा भी हो तो भी विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता, कि वह आक्रमण नहीं करेगा। इसलिये उस द्वार में भी जाने पर खतरा हो सकता है। अब अगर मैं पहले द्वार की बात करुं तो वहां पर अग्नि विराजमान हैं, अग्नि की प्रवृति सहायक और आक्रामक दोनों ही होती है।
यानि अग्नि हमारा भोजन भी बनाती है, अग्नि का प्रकाश हमें मार्ग भी दिखलाता है, पर वही अग्नि अपने आक्रामक रुप से हमें भस्म भी कर सकता है। यहां पर कहीं भी नहीं लिखा है कि अग्नि उस द्वार के अंदर
किस रुप में मौ जूद है, तो मैं कैसे मान लूं कि वह आक्रामक रुप में द्वार के अंदर है? ये भी तो हो सकता है कि वह सहायक रुप में हो। इसीलिये मैंने यहां पर मैंने अग्नि का चयन किया है।”
“उत्तम...अति उत्तम।” युवान की खुशी भरी आवाज उभरी- “तुम्हारा तर्क मुझे बहुत अच्छा लगा कलिका। तुम अग्नि के द्वार में प्रवेश कर सकती हो।”
यह सुनकर कलिका अग्नि द्वार में प्रवेश कर गयी। द्वार के अंदर बहुत अंधकार था, पर कलिका के प्रवेश करते ही उस कमरे में एक दीपक प्रज्वलित हो गया। कलिका उस कमरे से होती हुई आगे की ओर बढ़ गयी।
कुछ आगे जाने पर वह कमरा समाप्त हो गया। परंतु कमरे से निकलने के लिये पुनः तीन दरवाजे बने थे।
उन दरवाजों के बाहर एक खाने की थाली रखी थी।
तभी युवान की आवाज फिर सुनाई दी- “तुम्हारे सामने द्वितीय यक्षद्वार का चयन उपस्थित है कलिका।
पहले द्वार के अंदर एक बालक है, दूसरे द्वार के अंदर एक युवा मनुष्य है तथा तीसरे द्वार के अंदर एक वृद्ध
मनुष्य है। तीनों ही अपने स्थान पर भूखे हैं। यक्षद्वार के बाहर एक थाली में भोजन रखा है। अब तुम्हें यह चुनाव करना है कि यह भोजन की थाली तुम कि से खिलाओगी? अगर तुम्हारा चयन गलत हुआ तो तुम्हें मृत्यु से कोई नहीं बचा सकता।” यह कहकर युवान चुप हो गया।
कलिका ने एक बार फिर से दिमाग लगाना शुरु कर दिया।
काफी देर तक सोचने के बाद कलिका ने कहा - “यक्षराज, मैं यह भोजन की थाली वृद्ध पुरुष को खिलाना चाहती हूं क्यों कि युवा पुरुष तो बालक और वृद्ध के सामने भोजन का अधिकारी नहीं हो सकता। उसे सदैव ही इन दोनों को खिलाने के बाद खाना चाहिये। अब अगर मैं भोजन की थाली की बात करुं, तो इस थाली में अधिक मात्रा में अनाज उपस्थित है और यह कहीं नहीं लिखा है कि बालक कि आयु कितनी है?
तो यह भी हो सकता है कि बालक बहुत छोटा हो और अगर वह माँ का दूध पीने वाला बालक हुआ, तो वह थाली में रखे भोजन को ग्रहण ही नहीं कर पायेगा। इस स्थिति में भोजन ना तो वृद्ध को मिलेगा और ना ही बालक खा पायेगा।
यानि ये पूरा भोजन व्यर्थ हो जायेगा और कोई यक्ष कभी भोजन को व्यर्थ नहीं होने देता, ऐसा मेरा मानना है, इसलिये मैंने इस भोजन को वृद्ध पुरुष को खिलाने का विचार किया।”
“अद्भुत! तुम्हारे विचार तो बिल्कुल अद्भुत हैं कलिका। मैं ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि प्रकाश शक्ति तुम्हें ही मिले।” युवान कलिका के विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गया।
“धन्यवाद यक्षराज!” यह कह कलिका भोजन की थाली उठा कर वृद्ध पुरुष के कमरे में चली गयी।
कमरे में एक जर्जर शरीर वाला व्यक्ति जमीन पर लेटा था।
कलिका ने उस वृद्ध को उठाकर उसे बहुत ही प्रेम से भोजन कराया और अगले द्वार की ओर बढ़ गयी।
अगले यक्षद्वार पर सिर्फ 2 ही दरवाजे बने थे। उस द्वार के बाहर एक स्त्री की प्रतिमा खड़ी थी।
यह देख कलिका थोड़ा प्रसन्न हो गयी।
उसे लगा कि इस बार चुनाव थोड़ा सरल हो जायेगा।
तभी वातावरण में युवान की आवाज पुनः गूंजी- “यह तृतीय यक्षद्वार है कलिका, इस द्वार में प्रवेश का चयन करने के लिये मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं, यह कथा ही अगले प्रश्न का आधार है इसलिये ध्यान से सुनना।”
यह कहकर युवान एक कहानी सुनाने लगा- “एक गाँव में एक स्त्री रहती थी, जो ईश्वर की बहुत पूजा करती थी। एक बार उस स्त्री के पति और भाई जंगल मे लकड़ी लेने गये। जब वह लकड़ी लेकर आ रहे थे, तो उन्हें रास्ते में एक मंदिर दिखाई दिया।
जंगल में मंदिर देखकर दोनो ही व्यक्ति मंदिर में प्रवेश कर गये। तभी कहीं से मंदिर में कुछ डाकू आ गये और उन्होंने दोनों व्यक्तियों के पास कुछ ना पाकर, उनके सिर काट कर उन्हें मार दिया। बाद में वह स्त्री अपने पति और भाई को ढूंढते हुए उस मंदिर तक आ पहुंची।
दोनों के ही कटे सिर देखकर वह ईश्वर के सामने विलाप करने लगी। उसका दुख देखकर ईश्वर प्रकट हुए और दोनों के ही सिर धड़ से जोड़ दिये। पर उनके सिर जोड़ते समय ईश्वर से एक गलती हो गयी। उन्होंने पति के सिर पर भाई का...और भाई के सिर पर पति का सिर जोड़ दिया।
तो बताओ कलिका कि वह स्त्री अब किसका चुनाव करे? अगर तुम्हें लगता है कि भाई का सिर और पति के शरीर का चुनाव उचित है, तो तुम इस स्त्री के साथ प्रथम द्वार में प्रवेश करो और अगर तुम्हें लगता है कि पति का सिर और भाई का शरीर वाला चुनाव उचित है, तो तुम्हें इस स्त्री के साथ दूसरे द्वार में प्रवेश करना होगा।” इतना कहकर युवान चुप हो गया।
पर इस बार कलिका का दिमाग घूम गया। वह कई घंटों तक वहां बैठकर सोचती रही, क्यों कि एक गलत चुनाव का मतलब उसकी मृत्यु थी।
कलिका लगातार सोच रही थी- “अगर मैं भाई का सिर और पति के शरीर का चुनाव करती हूं तो भाई के चेहरे को देखते हुए वह स्त्री पति के प्रति पूर्ण समर्पित नहीं हो सकती। यहां तक कि उसे पति से सम्बन्ध
बनाना भी असहज महसूस होगा। इस प्रकार वह स्त्री एक पत्नि का दायित्व उचित प्रकार से नहीं निभा सकती।
अब अगर मैं पति का सिर और भाई के शरीर का चुनाव करती हूं, तो वह स्त्री उस शरीर के साथ कैसे सम्बन्ध बना सकती है, जो उसके भाई का हो। यानि दोनों ही स्थितियां उस स्त्री के लिये अत्यंत मुश्किल वाली होंगी।" धीरे-धीरे 4 घंटे बीत गये। आखिरकार वह एक निष्कर्ष पर पहुंच ही गयी।
“यक्षराज, मैं पति का सिर और भाई के शरीर वाला चुनाव करुंगी क्यों कि जब मैंने मानव शरीर का गहन अध्ययन किया तो मुझे लगा कि मानव का पूरा शरीर मस्तिष्क नियंत्रित करता है, यानि किसी मानव शरीर में इच्छाओं का नियंत्रण पूर्णरुप से मस्तिष्क के पास होता है, शायद इसीलिये ईश्वर ने हमारी पांचो इंन्द्रियों का नियंत्रण सिर वाले भाग को दे रखा है।
आँख, कान, नाक, जीभ ये सभी सिर वाले भाग की ओर ही होते हैं, अब बची पांचवी इंद्रिय त्वचा, वह भी मस्तिष्क से ही नियंत्रित होती है। यानि मस्तिष्क जिस प्रकार से चाहे, हमारे शरीर को परिवर्तित कर सकता है। अब अगर दूसरे तरीके से देंखे तो मनुष्य का प्रथम आकर्षण चेहरे से ही शुरु होता है। इसलिये मैंने ये चुनाव किया और मैं दूसरे द्वार में प्रवेश करना चाहती हूं।”
“अद्वितीय मस्तिष्क की स्वामिनी हो तुम कलिका। तुम्हारा तर्क बिल्कुल सही है।” युवान ने खुश होते हुए कहा।
युवान के इतना कहते ही उस स्त्री की प्रतिमा सजीव हो गयी।
कलिका उस स्त्री को लेकर दूसरे द्वार में प्रवेश कर गयी। कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।
जारी रहेगा________![]()
Thanks for your valuable review and support bhaiMind blowing Update bhai ji, kalika ab tak ke sabhi jabaab bakhubi de chuki hai, dekhna ye hai, ki kya wo aage ke dono dwar bina rukawat ke paar kar legi?awesome story and superb update
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Kya matlab abhi tak kiya hi nahi tha kya?Raj_sharma bhai iss baar review late aayega abhi kahani ka dusra bhag Atlantic ke rahasya reread kar raha hu .
Thanks brotherNice update![]()
पहली बात तो यह है की वो मैग्जीन की संपादक नहीं है, बल्की ये कहना उचित होगा की उसका मैग्जीन से कुछ लेन-देन ही नहीं है।चौदह वर्ष पूर्व कलिका - जो दिल्ली के एक मैग्जीन की संपादक थी - ने यक्षलोक के प्रहरी युवान के कठिन सवालों का जो जवाब दिया वह बिल्कुल महाभारत के एक प्रसंग ( युधिष्ठिर और यक्ष संवाद ) की तरह था ।
क्या ही कठिन सवाल थे और क्या ही अद्भुत जवाब थे ! यह सब कैसे कर लेते है आप शर्मा जी ! पहले तो दिमाग मे कठिन सवाल लाना और फिर उस सवाल का जवाब ढूंढना , यह कैसे कर लेते है आप !
यह वाकई मे अद्भुत था । इस अपडेट के लिए आप की जितनी तारीफ की जाए कम है ।
नहीं भाई साहब, यहां आप गलत सोच रहे हो, आकृती वो लड़की नहीं है।शायद सम्राट शिप से चौदह साल पहले जो शिप बरमूडा ट्राइंगल मे डुब गया था , उस शिप मे ही कलिका की बेटी सफर कर रही होगी । वह लड़की आकृति हो सकती है । वह आकृति जो शलाका का क्लोन धारण कर रखी है ।
व्योमदूसरी तरफ सामरा प्रदेश मे व्योम साहब पर कुदरत बहुत ही अधिक मेहरबान हो रखा है । वगैर मांगे छप्पर फाड़ कर कृपा बरसा रहा है । पहले अमृत की प्राप्ति हुई और अब राजकुमारी त्रिकाली का दिल उनपर धड़क गया है ।
मंदिर मे जिस तरह दोनो ने एक दूसरे को रक्षा सूत्र पहनाया , उससे लगता है यह रक्षा सूत्र नही विवाह सूत्र की प्रक्रिया थी ।
सत्य वचन, वो वही हैइन दो घटनाक्रम के बाद तीसरी तरफ कैस्पर का दिल भी मैग्ना पर मचल उठा है और खास यह है कि यह धड़कन हजारों वर्ष बाद हुआ है । लेकिन सवाल यह है कि मैग्ना है कहां !
कहीं शैफाली ही मैग्ना तो नही ! शैफाली कहीं मैग्ना का पुनर्जन्म तो नही !
पांडव जीवित तब मी थे, अब भी है भाई साहबकुकुरमुत्ता को छाते की तरह इस्तेमाल करते हुए सुयश साहब और उनकी टीम का तेजाबी बारिश से खुद को रक्षा करना एक और खुबसूरत अपडेट था । पांच लोग बचे हुए हैं और एलेक्स को मिला दिया जाए तो छ लोग । तौफिक साहब की जान जाते जाते बची , लेकिन लगता नही है यह साहब अधिक दिन तक जीवित रह पायेंगे ।
कुछ मिलाकर पांच प्राणी ही सम्राट शिप के जीवित बचेंगे , बशर्ते राइटर साहब ने कुछ खुराफाती न सोच रखा हो ।
ये मिश्रित पांडव जीवित रहने चाहिए पंडित जी !![]()
भाई साहब, मेरी बस यही कोशिश है की आप सभी को कुछ ऐसा पढ़ने को मिलै जो फोरम पर और कहीं ना मिल पाए, कुछ हटकर , कुछ अलग।सभी अपडेट बेहद खुबसूरत थे ।
रोमांच से भरपूर ।
एक अलग तरह की कहानी , एक अद्भुत कहानी ।
और आउटस्टैंडिंग राइटिंग ।