• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार में .....

R_Raj

Engineering the Dream Life
142
447
79
#6

लाला गाड़ी से उतरा और अगले ही पल उसने गाडी में से उसी लड़की को खीच लिया जिसकी वजह से ये सब शुरू हुआ था . अजीब सी सिचुएय्शन हो गयी थी , लाला भी था पुलिस भी थी और मैं भी था , बरिश की बूंदे गिरने अलगी थी शायद आसमान भी नहीं चाहता था की शोएब का खून धरती से पनाह मांगे.

“भैया ” लगभग चीख ही तो पड़ी थी वो लड़की

“लड़की को छोड़ लाला ” मैंने आगे बढ़ते हुए कहा

“दम है तो ले जा इसे ” सुर्ख लहजे में बोला लाला

“तू भी मरेगा लाला, काश थोड़ी देर पहले आता तू , शोएब की जान निकलते देखता बहुत मजेदार नजारा था ” मैंने कहा और लाला की तरफ लपका . लाला भी बढ़ा मेरी तरफ पर बीच में पुलिस आ आगयी . कुछ ने मुझे पकड़ा कुछ ने लाला को .

“हरामी जगदीश , बीच में पड़ , मामला मेरे और इसके बीच का है मेरे टुकडो पर पलने वाले खाकी कुत्तो की इतनी हिम्मत नहीं की शेर का रास्ता रोक सके ” लाला ने गुस्से से कहा

मैं- dsp , हट जा यहाँ से , इसके बेटे को मारा है इसे भी मारूंगा . बार बार मरूँगा जब तक मारूंगा की ये मर नहीं जाता , आज के बाद शहर में लाला का नाम कोई नहीं लेगा नाम लेने वालो को मारूंगा



“आ साले कसम है मिटटी नसीब नहीं होगी तेरी जिस्म को ” लाला ने अपने को पुलिस वालो से छुड़ाया और मेरी तरफ लपका . लाला के लोगो ने शोर मचाना शुरू किया . इस से पहले की मैं अपनी गिरफ्त से आजाद हो पाता लाला की हत्थी मेरे सर पर लगी और कसम से एक ही वार में सर घूम गया. लाला ने मुझे उठाया और शोएब की कार पर पटक दिया . कार पर बनी चील का एक हिस्सा मेरी पसलियों में घुस गया . दर्द को महसूस किया मैंने तभी लाला का घुटना मेरे सीने पर लगा और मुह से उलटी गिर गयी .

“इस शहर में एक ही मर्द है और वो है जहाँगीर लाला . तू अब तक जिन्दा सिर्फ इसलिए है की तेरी सूरत छिपी हुई है , मसीहा बनने का शौक है न तुझे . तेरी रूह तुझसे सिर्फ सवाल पूछेगी की किन नामर्दों का मसीहा बनने चला था , इस शहर में मेरा खौफ इसलिए नहीं है की मैं बुरा हूँ , यहाँ के लोग नामर्द है ” लाला ने फिर से हत्थी मारी और मैं जमीन पर गिर गया .

“उठ साले, किस्मत सबको मौका देती है , उठ और देख सामने खड़ी मौत को . तेरी किस्मत आज मौत है ” लाला ने मुझे लात मार. लाला में सांड जैसी ताकत थी .काबू ही नहीं आ रहा था .

“लड़की को लाओ रे ” लाला की बात सुनकर दो गुंडे लड़की को हमारे पास लेकर आये

“इस दुनिया में कीड़े मकौड़ो के माफिक भरे है लोग.रोज कितने लोग मरते है किसी को कोई हिसाब नहीं , क्या लगती है ये लडकी जिसके लिए तूने बहनचोद सब कुछ मिटटी में मिला दिया . ”लाला ने लड़की को थप्पड़ मारा

“सर पर हाथ रखा है इसके लाला, तू तो क्या कायनात तक इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती ” मैंने पसलियों पर हाथ रखते हुए खड़े होते हुए कहा

“अजीब इत्तेफाक है दुनिया की तमाम लड़ाइयाँ औरतो के लिए ही लड़ी गयी है ” लाला ने हँसते हुए कहा पर उसकी हंसी रुक गयी क्योंकि मैंने मुक्का मार दिया था उसको. आसमान दिन में ही काला हो चूका था बारिश अपने रौद्र रूप पर पहुँच गयी थी लाला कभी मुझ पर भारी पड़े और कभी मैं लाला पर . दरअसल अब ये लड़ाई ईगो की भी तो हो गयी थी .

सीने पर पड़ी लात से लाला निचे गिर गया उठने से पहले ही मैंने उसके घुटने पर मारा दर्द से तड़प उठा पर उस से उठा नहीं गया. मैं समझ गया था की बाज़ी मेरे हाथ में है . “खेल ख़तम लाला ” इस से पहले की मैं उसकी गर्दन तोड़ देता “धाएं ” गोलियों की आवाज गूंजने लगी . मेरी नजर ने सामने जो देखा फिर बस देखता ही रहा .

“बस यही तो नहीं चाहता था मैं ” मैंने आसमान से कहा .

ऐसा तो हरगिज नहीं था की उस से खूबसूरत लड़की मैंने और कही नहीं देखी थी पर ये भी सच था की जिन्दगी में जो भी थी बस वो ही थी . हाथो में पिस्तौल लिए वो हमारी तरफ ही बढ़ रही थी , पता नहीं वक्त थम सा गया था या मेरा अतीत दौड़ आया था मुझे गले से लगाने को . बरसो पहले एक बारिश आई थी जब उसे भीगते हुए देखा था बरसो बाद आज ये बारिश थी जब वो मेरे सामने थी .

“बंद करो ये तमाशा ” हांफते हुए उसने कहा . मेरी आँखे बस उसे ही देखे जा रही थी .

“गिरफ्तार करो लाला को और समेटो सब कुछ यहाँ से अभी के अभी ” चीखते हुए उसने अपनी कैप उतारी और मुझसे रूबरू हुई. कहने को बहुत कुछ था पर जुबान खामोश थी , वो मुझे देख रही थी और मैं उसे . “कबीर ”उसने कांपते होंठो से मेरा नाम लिया एक पल को लगा की सीने से लग जाएगी पर तभी वो पलट गयी . मुड़कर ना देखा उसने दुबारा. दिल की बुझी आग की राख में से कोई चिंगारी जैसे जी उठी.

“पानी पिला दो कोई ” मैंने कहा और गाड़ी से पीठ टिका कर बैठ गया. दूर खड़ी वो पुलिस वालो से ना जाने क्या कह रही थी पर भाग दौड़ बहुँत बढ़ गयी थी .

“पानी भैया ” उस लड़की ने मुझे जग दिया. घूँट मुह से लगाये मैं अतीत की गहराई में डूबने लगा था. कभी सोचा नहीं था की जिन्दगी के इस मोड़ पर वो यूँ मेरे सामने आकर खड़ी हो जाएगी बहुत मुश्किल से संभाला था खुद को समझ नही आ रहा था की ये खुश होने की घड़ी है या फिर रोने की .

“उठ, चल मेरे साथ ” dsp ने मेरे पास आकर कहा

“इस लड़की को सुरक्षित इसके घर पहुंचा दो ” मैंने कहा

Dsp- फ़िक्र मत कर इसकी , इसके लिए शहर जला दिया तूने किसकी मजाल जो नजर भी उठा सके

मैं- थाने ले जायेगा क्या

Dsp- गाड़ी में तो बैठ जा मेरे बाप.

मैंने उस लड़की के सर पर हाथ रखा और गाडी में बैठ गया. रस्ते में ठेका आया तो मैंने गाड़ी रुकवा कर बोतल ले ली , कडवा पानी हलक से निचे जाते ही चैन सा आया. आँखे भीग जाना चाहती थी . मैंने सर खिड़की से लगाया और आँखे बंद कर ली .

“कौन है भाई तू ” dsp ने पुछा मुझसे

“कोई नहीं ” मैंने बस इतना ही कहा ..........

Are Bc Bete Bap Ke Bad Dada Ko Bhi Lapet Liya
Kahani KI Bhumika Ban Chuki Hai
Bas FlashBack Start Hone Ki Der Hai

Outstanding Update Bhai !
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,997
90,739
259
#7

“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने

“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”

“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा

मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.

Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है

मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं

Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.

मैं- पानी पीना चाहता हूँ

Dsp- अन्दर तो चलो

मैं – यही पिला दो

Dsp- तू बैठ जरा

मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.

“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा

मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं

वो-साहब, मैं मर जाऊंगा

मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.

मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .

“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो

मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.

रत्ना- शोएब को मार दिया तूने

मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो

रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे

मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .

रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी

मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .

रत्ना- मत जा

मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .

मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.

“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.

“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा

कंडक्टर- स्टॉप आ गया है

मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .

“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा

“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा

“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .

पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया

“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा

मैं- ये तो ये ही जाने

मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .

“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा

बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा

मैं- ये जाने

बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा

मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को

बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .

मैं – अच्छी बात है ये तो

बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया

मैं- गाँव की क्या खबर

बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में

मैं- हवेली

बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
 

Himanshu630

Reader
274
1,000
124
गजब अपडेट फौजी भाई ऐसा लगा जैसे मैं खुद अपने गांव पहुंच गया...

निशा..कबीर आपने तो स्टोरी के नाम के साथ साथ कैरेक्टर भी वही से ले लिए


फर्क इतना है की तब वो स्याह रातों में मिली थी और ये पुलिस की वर्दी में

लग रहा निशा जी SP है शहर की

आखिर कार अपना हीरो गांव पहुंच ही गया अपने अतीत के पास अपनो के पास जो अपने शायद उसे अपना नही मानते..

हवेली.. कही ये अर्जुन सिंह वाली हवेली तो नहीं
 

vihan27

Be Loyal To Your Future, Not Your Past..
625
511
93
#7

“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने

“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”

“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा

मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.

Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है

मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं

Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.

मैं- पानी पीना चाहता हूँ

Dsp- अन्दर तो चलो

मैं – यही पिला दो

Dsp- तू बैठ जरा

मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.

“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा

मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं

वो-साहब, मैं मर जाऊंगा

मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.

मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .

“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो

मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.

रत्ना- शोएब को मार दिया तूने

मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो

रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे

मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .

रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी

मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .

रत्ना- मत जा

मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .

मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.

“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.

“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा

कंडक्टर- स्टॉप आ गया है

मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .

“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा

“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा

“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .

पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया

“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा

मैं- ये तो ये ही जाने

मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .

“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा

बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा

मैं- ये जाने

बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा

मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को

बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .

मैं – अच्छी बात है ये तो

बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया

मैं- गाँव की क्या खबर

बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में

मैं- हवेली


बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
Bahut badhiya likh rhe ho Bhai, lag raha hai ke aage kai raaz khulne wale hai
 

despicable

त्वयि मे'नन्या विश्वरूपा
Supreme
356
1,080
123
#7

“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने

“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”

“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा

मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.

Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है

मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं

Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.

मैं- पानी पीना चाहता हूँ

Dsp- अन्दर तो चलो

मैं – यही पिला दो

Dsp- तू बैठ जरा

मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.

“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा

मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं

वो-साहब, मैं मर जाऊंगा

मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.

मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .

“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो

मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.

रत्ना- शोएब को मार दिया तूने

मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो

रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे

मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .

रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी

मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .

रत्ना- मत जा

मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .

मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.

“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.

“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा

कंडक्टर- स्टॉप आ गया है

मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .

“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा

“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा

“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .

पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया

“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा

मैं- ये तो ये ही जाने

मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .

“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा

बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा

मैं- ये जाने

बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा

मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को

बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .

मैं – अच्छी बात है ये तो

बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया

मैं- गाँव की क्या खबर

बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में

मैं- हवेली


बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
जीवंत ।…

बहुत ही सुन्दर । कहानी और रिश्ता दोनों ही गहरे मालूम होते है ।
 

Froog

Active Member
519
2,207
123
नि
#7

“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने

“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”

“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा

मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.

Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है

मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं

Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.

मैं- पानी पीना चाहता हूँ

Dsp- अन्दर तो चलो

मैं – यही पिला दो

Dsp- तू बैठ जरा

मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.

“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा

मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं

वो-साहब, मैं मर जाऊंगा

मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.

मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .

“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो

मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.

रत्ना- शोएब को मार दिया तूने

मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो

रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे

मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .

रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी

मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .

रत्ना- मत जा

मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .

मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.

“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.

“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा

कंडक्टर- स्टॉप आ गया है

मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .

“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा

“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा

“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .

पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया

“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा

मैं- ये तो ये ही जाने

मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .

“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा

बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा

मैं- ये जाने

बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा

मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को

बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .

मैं – अच्छी बात है ये तो

बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया

मैं- गाँव की क्या खबर

बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में

मैं- हवेली


बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
निशा आ गई हवेली का भी जिक्र आ गया बाकी रह गये लाल मन्दिर और तालाब
इस अपडेट से पहले हेरोइन का नाम मन में नाम निशा ही आया था
 

Luckyloda

Well-Known Member
2,660
8,623
158
#7

“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने

“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”

“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा

मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.

Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है

मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं

Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.

मैं- पानी पीना चाहता हूँ

Dsp- अन्दर तो चलो

मैं – यही पिला दो

Dsp- तू बैठ जरा

मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.

“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा

मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं

वो-साहब, मैं मर जाऊंगा

मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.

मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .

“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो

मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.

रत्ना- शोएब को मार दिया तूने

मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो

रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे

मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .

रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी

मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .

रत्ना- मत जा

मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .

मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.

“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.

“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा

कंडक्टर- स्टॉप आ गया है

मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .

“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा

“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा

“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .

पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया

“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा

मैं- ये तो ये ही जाने

मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .

“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा

बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा

मैं- ये जाने

बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा

मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को

बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .

मैं – अच्छी बात है ये तो

बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया

मैं- गाँव की क्या खबर

बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में

मैं- हवेली

बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
निशा.... पुराना प्यार....



वही पुराना मंदिर....


वही हवेली..... कुछ भी नहीं बदला......



सब ऐसा ही है अधूरा सा......



💔💔💔💔💔💔
 

Dhansu2

Well-Known Member
2,111
3,854
158
#7

“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने

“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”

“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा

मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.

Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है

मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं

Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.

मैं- पानी पीना चाहता हूँ

Dsp- अन्दर तो चलो

मैं – यही पिला दो

Dsp- तू बैठ जरा

मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.

“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा

मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं

वो-साहब, मैं मर जाऊंगा

मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.

मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .

“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो

मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.

रत्ना- शोएब को मार दिया तूने

मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो

रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे

मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .

रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी

मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .

रत्ना- मत जा

मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .

मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.

“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.

“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा

कंडक्टर- स्टॉप आ गया है

मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .

“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा

“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा

“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .

पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया

“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा

मैं- ये तो ये ही जाने

मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .

“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा

बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा

मैं- ये जाने

बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा

मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को

बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .

मैं – अच्छी बात है ये तो

बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया

मैं- गाँव की क्या खबर

बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में

मैं- हवेली

बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
Bahut hi jabardast story hai fauji bhai, apki likhne ki Kala ekdum hatke hai
 
Top