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Thanks bhaiPadh kar hi sihran ho gyi..... bhut shandaar update fouji bhai.........
Thanks bhaiPadh kar hi sihran ho gyi..... bhut shandaar update fouji bhai.........
Gaon pahuch gaye#7
“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने
“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”
“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा
मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.
Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है
मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं
Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.
मैं- पानी पीना चाहता हूँ
Dsp- अन्दर तो चलो
मैं – यही पिला दो
Dsp- तू बैठ जरा
मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.
“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा
मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं
वो-साहब, मैं मर जाऊंगा
मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.
मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .
“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो
मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.
रत्ना- शोएब को मार दिया तूने
मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो
रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे
मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .
रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी
मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .
रत्ना- मत जा
मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .
मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.
“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.
“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा
कंडक्टर- स्टॉप आ गया है
मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .
“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा
“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा
“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .
पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया
“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा
मैं- ये तो ये ही जाने
मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .
“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा
बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा
मैं- ये जाने
बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा
मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को
बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .
मैं – अच्छी बात है ये तो
बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया
मैं- गाँव की क्या खबर
बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में
मैं- हवेली
बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
Nice update....#7
“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने
“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”
“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा
मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.
Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है
मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं
Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.
मैं- पानी पीना चाहता हूँ
Dsp- अन्दर तो चलो
मैं – यही पिला दो
Dsp- तू बैठ जरा
मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.
“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा
मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं
वो-साहब, मैं मर जाऊंगा
मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.
मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .
“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो
मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.
रत्ना- शोएब को मार दिया तूने
मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो
रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे
मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .
रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी
मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .
रत्ना- मत जा
मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .
मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.
“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.
“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा
कंडक्टर- स्टॉप आ गया है
मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .
“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा
“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा
“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .
पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया
“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा
मैं- ये तो ये ही जाने
मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .
“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा
बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा
मैं- ये जाने
बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा
मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को
बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .
मैं – अच्छी बात है ये तो
बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया
मैं- गाँव की क्या खबर
बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में
मैं- हवेली
बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
gaav ki baat hi kuch aur haiगाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी
purani yaade taaja ho gayiहवेली
gaav ki baat hi kuch aur haiगाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी
purani yaade taaja ho gayiहवेली
Nice update.....#7
“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने
“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”
“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा
मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.
Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है
मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं
Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.
मैं- पानी पीना चाहता हूँ
Dsp- अन्दर तो चलो
मैं – यही पिला दो
Dsp- तू बैठ जरा
मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.
“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा
मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं
वो-साहब, मैं मर जाऊंगा
मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.
मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .
“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो
मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.
रत्ना- शोएब को मार दिया तूने
मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो
रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे
मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .
रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी
मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .
रत्ना- मत जा
मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .
मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.
“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.
“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा
कंडक्टर- स्टॉप आ गया है
मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .
“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा
“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा
“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .
पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया
“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा
मैं- ये तो ये ही जाने
मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .
“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा
बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा
मैं- ये जाने
बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा
मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को
बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .
मैं – अच्छी बात है ये तो
बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया
मैं- गाँव की क्या खबर
बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में
मैं- हवेली
बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................