सूरज अच्छी तरह से समझ गया था कि लाडो के मन में किस तरह की घबराहट हो रही है वह क्या चाहती है इसलिए वह अपना उल्लू सीधा करना चाहता था वह औरतों के मन में क्या चल रहा है यह अच्छी तरह से समझने लगा था और इसी के चलते वहलाडो के साथ अपनी मनसा पूरी करना चाहता था और वैसे भी जिस तरह का कार्य लाडो के पिताजी ने उसे सौंप रखा था पैसे में लाडो से मुलाकात होना लाजिमी था,,, पहले दिन तो वहरसोई का सामान कमरे में रखवा कर और लड़ो से कुछ देर बात करके वहां से अपने घर के लिए निकल गया था अपने घर पर पहुंचकर उसने अपनी मां और अपनी बहन दोनों को बोल दिया था की शादी में अच्छी तरह से चलना है क्योंकि उसे शादी में उसे भी रसोई का काम देखने की जिम्मेदारी मिल चुकी है इसलिए ऐसा समझना है कि वह शादी अपने ही घर की है,,,,,। अपने बेटे की बात सुनकर सुनैना काफी खुश नजर आ रही थी क्योंकि पहली बार गांव में शादी के सम्मेलन में रसोई का कार्यभार संभालने को मिला था इस बात से वह मन ही मन खुश हो रही थी उसे इस बात की खुशी थी कि अब उसका बेटा जिम्मेदार बन चुका था तभी तो उसे लाडो के पिताजी इतनी बड़ी जिम्मेदारी का काम सौंप दिए थे।

शादी के दिन सुबह से ही गांव में मेहमानों का आना-जाना शुरू हो चुका था,,,,,,,,, गांव के लोग शादी में हर तरह की मदद कर रहे थे सूरज को भी रसोई का काम संभालने के लिए जाना था इसलिए वह अपनी मां से बोला,,,,।
आज गेहूं काटने के लिए नहीं जाते हैं,,,।
क्यों क्या हुआ,,,?(झाड़ू लगाते हुए सुनैना बोली)
अरे भूल गईआज लाडो की शादी है बारात आने वाली है और मुझे रसोई संभालने का काम मिला है अगर अभी से मैं खेत चला गया तो वहां का काम कौन देखेगा और फिर इतनी बड़ी जिम्मेदारी देकरवह तो निश्चित हो गए होंगे लेकिन मैं समय पर नहीं पहुंचा तो वह मेरे बारे में क्या सोचेंगे,,,।
अरे हां मैं तो भूल ही गई कि आज लाडो का विवाह है,,,,, लेकिन शादी में तो सुबह से तेरा काम होगामेरा काम तो होगा नहीं एक काम कर तू वहां चला जा और मैं खेत चली जाती हूं जितना हो सकता है उतना काम कर लूंगी,,,, और साथ में रानी को भी ले लेती हूं थोड़ा सहारा मिल जाएगा,,,।
हां यह ठीक रहेगा जितना हो सकता है उतना कम करना और फिर जल्दी घर चली आना क्योंकि शादी में रात निकल जाएगी,,,,।(सूरज एकदम खुश होता हुआ बोल वह भी अपने मन में सोच रहा था कि थोड़ा बहुत गेहूं की कटाई का काम भी हो जाएगा और मैं शादी में जाकर थोड़ा इंतजाम देख लूंगा दोनों जगह का काम ठीक हो जाएगा,,,,(इतना कहकर सूरज सुबह-सुबह ही लाडो के घर की तरफ निकल गया और सुनैना घर की साफ सफाई करने के बाद खाना बनाने लगे और रानी को भी बोल दी थी कि आज उसे भी खेत पर चलना है गेहूं की कटाई के लिए पहले तो रानी इंकार करती रही लेकिन फिर वह भी मान गई,,,, थोड़ी ही देर में सुनैना खाना बनाकर तैयार कर चुकी थी और खेत पर जाने के लिए तैयार हो गई थी,,,,, मां बेटी दोनों खेत की तरफ निकल गई थी रानी पहली बार गेहूं कटाई के लिए खेत पर आ रही थी और वह भी अपने खेत पर नहीं बल्कि जमीदार के खेत पर अभी तक रानी सिर्फ अपने ही खेतों में काम की थी पहली बार किसी और के लिए काम करने जा रही थी,,,,। इसलिए वह भी थोड़ा उत्साहित थी,,,,।
आज अपने बेटे के बिना खेत में काम करने में सुनैना का मन नहीं लग रहा था ,,उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या हो रहा है लेकिन बात यही थी जो वह खुद नहीं समझ पा रही थी,,, बार-बार वह थोड़ा काम करके रुक जा रही थी और किसी ख्यालों में खो जा रही थी,,, और उसके मन में किसी और का ख्याल नहीं आ रहा था बल्कि अपने ही बेटे का ख्याल आ रहा था,,, सुनैना की नजर झोपड़ी के बाहर रखी हुई खटिया पर चली जा रही थीऐसा लग रहा था की खटिया से उसकी बहुत सारी यादें जुड़ चुकी थी और वाकई में उसे खटिया से उसकी सबसे बेहतरीन यादगार पल जुड़ा हुआ था। रानीअपने ही ख्यालों में मस्त होकर गेहूं की कटाई कर रही थी वह अपनी मां की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही थी और सुनैना थी की झोपड़ी के बाहर खड़ी खटिया की तरफ देख कर कभी उदास हो जा रही थी तो कभी मुस्कुराने लग रही थी जाहिर सी बात थी कि उसे उस दिन वाली बात याद आ रही थी। और उस बात को लेकर वह इस समय हैरान भी हुए जा रही थी क्योंकि उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे दिन वाली घटना उसे क्यों याद आ रही है बार-बार उसकी आंखों के सामने वही दृश्य क्यों घूम रहा है,,,, भले ही वह इनकार कर रही हो लेकिन दिल के किसी कोने में उसका आकर्षण अपने बेटे की तरफ बढ़ता जा रहा था,,, उसे दिन वाली घटना तो उसके मानस पटल पर पूरी तरह से छप चुकी थी।

और बार-बार उसे घटना को याद करके सुनैना उत्तेजित हो जाती थी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में सुरसुराहट सी दौड़ने लगती थीकभी-कभी उसे घटना के बारे में याद करके उसे अच्छा भी लगता था तो कभी बुरा भी लगता था कभी-कभी वह अपने आप को ही कोसने लगती थी कि वह अपने बेटे को उसे दिन रोक क्यों नहीं पाई क्यों उसे ऐसा करने से मना नहीं कर पाई सुनैना को इस बात का ज्ञान अच्छी तरह से था कि उसके द्वारा उसे दिन अपने ही बेटे को दी गई मनमानी एक न एक दिन दोनों के बीच की मर्यादा की दीवार को गिरा देगा संयम का बांध दोनों के बीच टूट कर रहेगा इस बात का अंदाजा सुनैना को लग चुका था क्योंकि वह जानती थी कि जिस चीज के लिए उसका बेटा तड़प रहा है इस चीज के लिए वह भी अंदर ही अंदर तड़प रही है। दोनों प्यासे थेसमय के अनुसार उसका बेटा पूरी तरह से बड़ा हो चुका था जवान हो चुका था ऐसे में एक औरत के प्रति उसका आकर्षण बढ़ जाना लाजिमी थालेकिन वह नहीं जानती थी कि उसका आकर्षण अपनी ही मन के ऊपर इस कदर बढ़ जाएगा कि वह अपनी मां के साथ अत्यंत गंदी हरकत करने पर उतारू हो जाएगा,,,, और सुनैना की तो जरूरत थी जिस तरह से उसका पति रोज उसकी चुदाई करता था उसके कहीं चले जाने के बाद सुनैना की बुर बंजर जमीन की तरह सूख रही थी जिस पर पानी की बौछार के लिए वह तड़प रही थी और उसे लगने लगा था कि अगर वह अपने बेटे को नहीं रोकेगी तोउसकी बुर पर पानी की बौछार उसके बेटे के द्वारा ही पड़ेगी।

इस समय गेहूं काटते हुए वह अपने बेटे को बार-बार याद कर रही थी बार-बार उसकी आंखों के सामने वही खटिया वाली घटना दिखाई दे रही थी,,,, और उसे पल को याद करके वह बार-बार गनगना जाती थी जब उसके बेटे का लंड उसकी बुर के द्वारा तक ठोकर मार रहा थाइस समय वह अपने मन में यही सोच रही थी कि काश उसके बेटे का लंड उसकी बुर की गहराई में समा जाता तो कितना मजा आता और फिर उसके एक दिन पहले वाली ही घटना उसके दिलों दिमाग पर पूरी तरह से ताजा बनी हुई थीजब वह पेशाब करने के लिए झोपड़ी के पीछे गई थी और ठीक उसी समय उसका बेटा उसके पीछे खड़े होकर उसे ही देख रहा थासुनैना अच्छी तरह से जानती थी कि उसका बेटा उसकी बड़ी-बड़ी गांड देखने के बाद ही इस कदर उसका दीवाना हो चुका था कि उसके साथ गंदी हरकत करने पर उतारू हो चुका था उसे इस बात का भी डर नहीं था कि अगर उसकी मां की नींद खुल गई तो क्या होगा शायद उसे अपने आप पर विश्वास था कि अगर उसकी मां की नींद खुल भी जाएगी तो उसका मोटा तगड़ा लंड उसकी आंखों मेंइस कदर वासना का नशा भर देगा कि वह खुद अपने हाथ से लंड पकड़ कर अपनी बुर के छेद पर रख देगी,,, और ऐसा शायद हो भी जाता अगर वह खुद मां बेटे के बीच के पवित्र रिश्ते की दुहाई ना दी होती अपने आप को समझाई ना होती।धीरे-धीरे गेहूं की कटाई करते हुए समय भी कितना चला जा रहा था और देखते ही देखते सूरज एकदम सर पर आ गया था गर्मी बढ़ने लगी थी इसलिए रानी अपनी मां के पास आई और बोली,,,,।
गर्मी बहुत ज्यादा पड़ रही है मां मुझसे तो अब रहा नहीं जा रहा है और भूख भी बड़े जोरों की लगी है,,,, अब चलो पेड़ के नीचे चलकर खाना खा लेते हैं,,,,।

तु ठीक कह रही है मैं भी यही सोच रही थी और वैसे भी आज का काम इतना ही हो पाएगा शाम को शादी में भी जाना है चल चल कर खा लेते हैं,,,,।
इतना कहने के साथ ही मां बेटी दोनों पेड़ के छांव में आकर झोपड़ी के बाहर खड़ी खटिया को गिराकर उस पर बैठ गई और खाना खाने लगे,,, तभी दोनों के कानों में घोड़े की टाप की आवाज सुनाई दे रही थी,,, उस आवाज को सुनकर सुनैना बोली।
लगता है कोई घोड़े पर बैठकर इधर ही आ रहा है,,,।
(अपनी मां के मुंह से घोड़ा शब्द सुनते ही हैरानी से तन बदन में अजीब सी लहर उठने लगी उसके मन में ऐसा लगने लगा कि उस दिन वाला ही घुड़सवार होगा,,,, मां बेटी दोनों इधर-उधर देखने लगे लेकिन अभी तक घोड़ा कहीं नजर नहीं आ रहा था,,,, और वैसे भी गेहूं कीफसल इतनी बड़ी-बड़ी और दूर तक फैली हुई थी कि किसी के भी देखे जाने का अंदेशा बिल्कुल भी नहीं था तभी उनके कान में आवाज सुनाई दी,,,)
अरे कोई है,,,,, खेत में,,,,,।
(आवाज को सुनकर सुनैना को लगा कि कोई अगर घोड़े से आया है तो मुखिया का रिश्तेदारी होगा या हो सकता है मुखिया ही हो क्योंकिघोड़ा तो सिर्फ बड़े लोगों के ही पास था गांव में किसी के पास नहीं था इसलिए वह खटिया पर स्थित होने के नीचे उतर गई और बोली,,,)
हां हम लोग खेत में काम कर रहे हैं क्या काम है,,,?
(इतना कहकर सुनैना जवाब का इंतजार करने लगी और इधर-उधर देखने लगी रानी भी खटिया पर से नीचे उतरकर इधर-उधर देखने लगी लेकिन कोई दिखाई नहीं दे रहा था तभी गेहूं की फसल के बीच में से एक नौजवाननजर आया जो उनकी तरफ आगे बढ़ रहा था रानी उसे देखते ही एकदम से गदगद हो गई क्योंकि वह उसी दिन वाला घुड़सवार था जिसके बारे में वह दिन रात सोचा करती थी और दोबारा उससे मुलाकात होगी कि नहीं इसके बारे में सोचकर परेशान हुआ करती थी,,,, गेहूं की फसल के बीच में से उन लोगों की तरफ आते हुए वह तुरंत सुनैना और रानी को देखकर बोला,,,,)

नमस्ते,,,,,(इतना कहते हुए उसकी नजर रानी पर पड़ी तो वह एकदम सेखुश होता हुआ कुछ बोलते ही वाला था की रानी उसे इशारे से चुप रहने के लिए बोली तो वह उसका इशारा समझ कर एकदम से खामोश हो गया जिस तरह से उसने नमस्ते बोला था सुनैना उसके व्यवहार से एकदम खुश हो गई थी और बोली)
आप कौन हैं आप मुखिया के रिश्तेदार हैं क्या,,,?
नहीं नहीं मैं इस गांव का नहीं हूं मैं बगल वाले गांव के जमींदार का साला हूं मेरा नाम कुंवर है,,,,,।(नाम सुनकर रानी मां ही मन प्रसन्न होने लगी क्योंकि उसे दिन जिस तरह के हालात थे उसे देखते हुए घुड़सवार का नाम नहीं याद आ रहा था लेकिन आज फिर से उसी घुड़सवार के मुंह से उसका नाम सुनकर रानी प्रसन्न हो गई थी,,,, उसका परिचय जानकर सुनैना को समझ में आ गया कि यह बड़े घर का बेटा है और बड़े जमींदार का साला है इसलिए एकदम से उसे इज्जत देते हुए बोली,,,)
यहां कैसे आना हुआ मालिक,,,।
पहली बात तो आप मुझे मलिक मत कहिए मेरा नाम कुंवर है चाची,,,,,(रानी की तरफ देखते हुए वह समझ गया था कि रानी उनकी ही बेटी है इसलिए वह रानी की मां को बड़े इज्जत से पेश आ रहा था और वैसे भी कुंवर बेहद संस्कारी और इज्जतदार लड़का थारानी की मां सुनैना तो उसे बड़े घर के लड़के के मुंह से चाचा शब्द सुनकर एकदम से गदगद हो गई और एकदम से प्रसन्न होते हुए बोली)

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धूप में क्यों खड़े हो कुंवर आओ इस समय यहां तो कोई व्यवस्था नहीं है यही खटिया है बैठने के लिए इस पर बैठ जाओ,,,।
जी बहुत-बहुत धन्यवाद,,,(इतना कहते हुए कुंवर खटिया पर बैठ गया और देखा की खटिया पर रोटी और सब्जी रखी हुई थी यह देखकर वह मुस्कुराते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,) आप लोग भोजन कर रहे थे कहीं मैं आपको परेशान तो नहीं कर दिया,,,।
नहीं नहीं कुंवर इसमें परेशानी की कौन सी बात है,,,,।
(रानी की तो हालत खराब हो रही थी वह अपने दुपट्टे को अपनी उंगली पर लपेट लपेटकर कुमार को देख रही थी उसका रूप वाकई में बेहद मनमोहक था,,, तभी वह कुंवर फिर से बोला)
मुझे बड़े जोरो की प्यास लगी है और थोड़ी भूख भी लगी है अगर आपको परेशानी ना हो तो क्या मैं इसमें से एक रोटी खा सकता हूं,,,।
(उसकी बात सुनकर सुनैना एकदम से हैरान होते हुए बोली,,,)
कुंवर जी आप तो बड़े घर के लड़के हैं क्या आप हम लोग के साथ खाना पसंद करेंगे मतलब कि हम लोग का भोजन क्या आप खा सकेंगे,,,।
यह कैसी बात कर रही हो चाची भोजन में भेदभाव कैसा हमारे घर जो रोटी बनती है वह इसी खेत के गेहूं से तो ही बनती है,,,, और खेत में मेहनत भी आप लोग करते हैं तो फिर यह भेदभाव कैसा और यह सब भेदभाव में बिल्कुल भी नहीं मानता अमीर गरीब कुछ नहीं होता दिल साफ होना चाहिए,,,,। अगर इजाजत हो तो,,(रोटी और सब्जी की तरफ उंगली से इशारा करते हुए उसका ही सारा समझते हैं सुनैना एकदम से दो साफ रोटी और सब्जी उसे पर रखते हुए कुंवर की तरफ आगे बढ़ा दी जिसे वह बड़े ही प्यार से लेकर खाने लगा,,,, यह देखकर सुनैना मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)
आप खाना खाओ मैं जल्दी से पानी लेकर आती हूं,,,(इतना कहकर सुनैना छोटी सी बाल्टी लेकर हैंडपंप की तरफ जल्दी,,,, उसके जाते ही रानी अपनी मां के जाने का तसल्ली कर लेने के बाद एकदम से खुश होते हुए बोली,,,)
मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि आप मुझे फिर से इस तरह से मिलेंगे,,,,।
सच कहूं तो मैं तुमसे ही मिलने के लिए गांव-गांव भटक रहा हूं क्योंकि मुझे भी तुम्हारे घर का पता नहीं मालूम था और किस्मत देखो आखिरकार खेत में तुमसे मुलाकात हो ही गई,,,।
अच्छा हुआ कि तुम्हेंमेरे घर का पता नहीं मालूम था वरना तुम घर पर पहुंच जाते तो लोग क्या समझते,,,(दुपट्टे को उंगली में गोल-गोल घूमते हुए रानी बोली,,)
हां यह भी सही है,,,,।
लेकिन तुम मुझसे क्यों मिलना चाहते थे,,,।
पता नहीं क्यों उसे दिनतुम्हें देखने के बाद दिन-रात मेरे दिमाग में तुम्हारा ही चेहरा घूम रहा था इसलिए तुमसे मिलने के लिए मैं तड़प रहा था दो-तीन दिन इधर-उधर भटकने के बाद आज तुमसे मुलाकात हुई है,,,,।
(कुंवर की बात सुनकर रानी मां ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि जिस तरह से वह तड़प रही थी कुंवर भी उससे मिलने के लिए तड़प रहा था,,,, थोड़ी देर की खामोशी के बाद कुंवर निवाला मुंह में डालते हुए बोला,,,)
तुम मुझे इशारा करके रोक क्यों दी जब मैं कुछ बोलने जा रहा था तो,,,,।
मुझे मालूम था कि तुम उसे दिन वाली बात मेरी मां के सामने बता देती और यह बात मेरी मां को बिल्कुल भी नहीं मालूम है इसलिए मैं नहीं चाहती थी कि उस दिन वाली घटना मेरी मां को पता चले,,,।
ओहहह यह बात है,,,, वैसे सच कहूं तो तुम बहुत खूबसूरत हो उस दिन तुम्हें देखा तो तुम्हें देखता ही रह गया,,,,,।
(कुंवर की बात सुनकर रानी एकदम से शर्मा गई क्योंकि रानी जानती थी कि उसे दिन कुंवर उसे किस हालत में देखा था,,,, इसलिए वह थोड़ा सा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,)
बिना कपड़ों की थी इसलिए तुम्हें खूबसूरत लग रही थी,,,।
नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है वैसे तुम्हारा खूबसूरत चेहरा देखकर बोल रहा थाऔर सच कहूं तो मैं सिर्फ तुम्हारा खूबसूरत चेहरा ही देखा था बाकी अंगों पर मेरा ध्यान बिल्कुल भी नहीं किया था जैसा तुम समझ रही हो मैं उस तरह का लड़का बिल्कुल भी नहीं हूं,,,,।
(दोनों की बातचीत आगे बढ़ पाती से पहले ही सुनैना पानी भरकर वहां आ गई और लोटे में पानी भरकर कुंवर को देने लगी,,,, कुंवर खाना खाने के बाद पानी पीने लगा और उसे पानी पीता हुआ देखकर सुनैना मुस्कुराते हुए बोली,,,)
वैसे कुंवर जी आप यहां क्या करने आए थे कोई काम था क्या,,,,?
नहीं ऐसी कोई बात नहीं थी यहीं से गुजर रहा था तो मुझे बड़े जोरों की प्यास लगी थी औरमुझे लगा कि कोई खेत में होगा इसलिए यहां खड़ा होकर आवाज लगने लगा और मेरी किस्मत देखो वाकई में आप लोग यहां पर मौजूद थे जो मुझे अपनी भी पिलाए और खाना भी खिलाएं आप लोगों का एहसान में जिंदगी भर नहीं भुलुंगा,,,।
अरे अरे कुंवर जी आप यह कैसी बात कर रहे हैं इसमें एहसान कैसा यह तो हमारी किस्मत है कि आप जैसे बड़े घर के लड़के हमारे साथ बैठकर खाना खाए,,,।
देखो चाची आप फिर मुझे शर्मिंदा कर रही हो,,,,
लेकिन जो हकीकत है वह बदल तो नहीं सकती ना कुंवर जी,,,,।
कुंवर जी नहीं अब तो आप मुझे बेटा कहिए क्योंकि मैं आपको चाची कहता हूं,,,।
बबबबबब,,,,बेटा,,,,
हां बेटा आप मुझे इतने प्यार से खाना खिलाई पानी पिलाई तो मैं आपका बेटा ही हुआ ना,,,।
धन्य है तुम्हारी मां जो तुम्हें इतना अच्छा संस्कार दी है वरना बड़े घरके लड़के इस तरह से हम जैसे लोग से तो बात भी नहीं करते,,,,।
दूसरों में और मुझ में जमीन आसमान का फर्क है चाची,,,,,। अच्छा बहुत-बहुत धन्यवाद अब मैं चलता हूं,,,,।
(रानी अच्छी तरह से जानती थी कि कुंवर किस काम के लिए इस गांव में आए थे उनका काम बन चुका था,,,,रानी उनसे पूछना चाहती थी कि आप कहां मुलाकात होगी लेकिन अपनी मां के सामने पूछ नहीं पा रही थी लेकिन उसकी इस परेशानी को खुद कुंवर ही दूर करते हुए सुनैना से बोला,,,,)
आप इसी गांव में रहती हैं चाची,,,,।
जी बेटा मैं इसी गांव में रहती हूं,,,।
और यह खेत,,,,।
यह मेरा नहीं है यह तो मुखिया जी का है हम लोग इसमें काम कर रहे हैं,,,,।
कोई बात नहीं चाची फिर मुलाकात होगी,,,,।
(सुनैना बाल्टी को एक तरफ रखने लगी तभी कुंवर धीरे से रानी के करीब आकर बोला,,)
कल नदी पर मिलना,,,,(बस इतना कहकर वह फिर से गेहूं की फसल में से जाने लगा और रानी मां ही मन मुस्कुराने लगी और थोड़ी देर बाद मां बेटी दोनों घर पर आ गए,,,,
दूसरी तरफ सूरज सुबह से ही लाडो के घर पर कामकाज में लगा हुआ था बड़े अच्छे से घर की सजावट हो रही थी गांव की सजावट हो रही थी और छोटे-मोटे काम में गांव के लोग हाथ बंटा रहे थे लेकिन इस सबके बीच सूरज की नजर लाडो पर बराबर बनी हुई थी,,,, वह किसी काम से सामान लेने के लिए कमरे में पहुंचा तो वहां पर देख लाडो फिर अकेली बैठी हुई थी,,,लेकिन वह जानता था कि इस समय कुछ करना उचित नहीं था और सूरज को देखते ही लाडो एकदम से खुश होते हुए बोली,,,)
अच्छा हुआ तुम आ गई सूरज मैं सुबह से तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी,,,।
(यह सुनकर सूरज मैन ही मन खुश होने लगा और मुस्कुराते हुए बोला)
क्यों मेरा इंतजार क्यों कर रही थी,,!
अरे तुम ही तो कल बोले थे कि तुम्हारी परेशानी क्या है मैं जानता हूं तो बताओ ना मेरी परेशानी क्या है मैं इतना परेशान क्यों हो रही हूं जबकि शादी के नाम से दूसरी लड़कियां खुश होती हैं तो मुझे क्यों वह खुशी नहीं मिल रही है बल्कि घबराहट हो रही है।
हां मैं जानता हूं ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन अभी समय नहीं आया है ठीक समय देखकर मैं तुम्हें बता दूंगा और तुम्हारी परेशानी भी दूर कर दूंगा,,,।
भला यह कैसी बात हुई अभी तो तुम मेरे सामने ही हो बता सकते हो बताओ ना मेरे परेशानी क्या है,,,।
पागल हो गई हो क्या ऐसे में नहीं बता सकता मैं सही समय जानता हूं सही समय आने दो मैं तुम्हें बता दूंगा,,,।( लाडो की उत्सुकता देखकर सूरज मन ही मन प्रसन्न होता हुआ बोला,,,)
कैसी बेवकूफी भरी बातें कर रहे हो तुम अच्छी तरह से जानते हो कि आज मेरा विवाह हो जाएगा और मैं अपने ससुराल चली जाऊंगी तब कौन सा समय तुम्हें मिलेगा बताने का,,,,।
विवाह रात को होगा उससे पहले मैं तुम्हें बता दूंगा तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो,,,(और इतना कहकर सूरज आलू की बोरी लेकर कमरे से बाहर निकल गया,,,)
