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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

welneo

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I am logged to xforum. In Pics - Adult group none of thread act as link for me. Means I can see many threads example--Public Nudism, MILF. But these words does not show as link. So I cannot open any thread and cannot see any pics/photos. Is any other member also facing same problem. Does any one know solution of this problem
 
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vakharia

Supreme
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सिल्हूट में रेशमी वक्र, जैसे भीगी हुई फुसफुसाहट,
होंठ छुएं तो लंड काँपें, जिस्म बोले धीमी आहट..

कमर पर रोशनी का घेरा, उंगलियां कंगन बन जाएं,
वीर्य की स्याही की लिखावट, हर शेर में तू उतर आए


झिलमिल नूर तेरी जांघों तक, चूत की रेखा खिंचती जाए,
सरकाए उन नरम मांसल होंठों को.. लंड चुपचाप अंदर घुस जाएं


1-1 1-2 1-3 1-4 1-5 1-6 1-7 1-8 1-9 1-10
 

vakharia

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पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..

राजेश, मदन और शीला फार्महाउस पर पहुंचते है.. जहां पहले से ही फाल्गुनी उनके इंतज़ार में थी..

आते ही राजेश और शीला अपनी लीला में मस्त हो गई तो दूसरी और मदन की आँखें जवान फाल्गुनी पर गड़ी हुई थी.. शुरुआती झिझक के बाद फाल्गुनी भी धीरे धीरे सहज होने लगी..

फिर शुरू हुआ... हवस का नंगा नाच..!! कभी मदन-फाल्गुनी के बीच.. कभी शीला और फाल्गुनी.. कभी राजेश और शीला.. तो कभी चारों मिलकर एक साथ..

इस घनघोर चुदाई का दौर पूरी रात चलता रहा और आखिर संतुष्ट होकर चारों चैन की नींद सो गए..
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घर से ऑफिस आए हुए पीयूष का मूड आज बिना कारण ही बहोत अच्छा था.. वो किसी फिल्म का गाना गुनगुनाते हुए अंदर आया.. बाहर के फ्लोर पर करीब दस लोग बैठकर अपने वर्कस्टेशन पर काम में व्यस्त थे.. उनमें से एक वैशाली भी थी.. पिंटू भी उसके बगल में बैठकर अपने लेपटॉप पर नजरें जमाएं बैठा हुआ था.. उसकी मौजूदगी के कारण पीयूष ने बिना वैशाली की तरफ देखे अपनी केबिन का रास्ता नापा..

अपनी चैर पर जाकर बैठते ही उसने अखबार उठाया और पढ़ने लगा.. बीच में चपरासी आकर कॉफी का मग रखकर चला गया..आंतरराष्ट्रीय खबरों के पन्ने पढ़ने में पीयूष ऐसा डूब गया की उसे पता ही नहीं चला की कब कोई उसकी केबिन के अंदर आया और उसकी कुर्सी के पीछे जाकर खड़ा हो गया

अचानक दो हथेलियों ने पीयूष की आँखों को ढँक दिया.. एक पल के लिए पीयूष सोच में पड़ गया की क्या हो गया..!! फिर हथेली की कोमलता और जानी-पहचानी परफ्यूम की खुशबू महसूस होते ही उसे अंदाजा लगने में देर नहीं हुई

"अरे वाह.. मेरी शैतान साली..!! तू अंदर कब आई मुझे पता भी नहीं चला" मुस्कुराते हुए पीयूष ने कहा

रूठने का अभिनय करते हुए मौसम ने कहा "क्या जीजू..!! आपको सरप्राइज़ देने आई पर आपने तो झट से पहचान लिया..!!" मौसम पीयूष के सामने आकर कुर्सी पर बैठ गई

"अरे मेरी प्यारी साली साहेबा.. तू धरती पे चाहे जहां भी रहेगी.. तुझे तेरी खुशबू से पहचान लूँगा" चुटकी लेते हुए पीयूष ने हँसकर कहा

"आहाहा बड़े फिल्मी हो रहे हो आज तो जीजू.. लगता है दीदी ने खुश करके भेजा है ऑफिस" मौसम ने कहा

कविता का जिक्र होते ही पीयूष की मुस्कान गायब हो गई.. लेकिन उसने तुरंत ही उन विचारों को दिमाग से झटकते हुए मौसम से कहा "तू कब आई यार..!! बताना तो था, मैं ड्राइवर को एयरपोर्ट लेने भेज देता..!!"

"बता देती तो आपको सरप्राइज़ कैसे मिलता..!!! आज सुबह की फ्लाइट से आई.. सीधे यहीं पर.. अब तक तो दीदी को भी पता नहीं है की मैं यहाँ आई हूँ" मौसम ने अपनी मुस्कान का जादू बिखेरते हुए कहा

मुस्कुराती मौसम की ओर पीयूष देखता ही रह गया..!! शादी के बाद, अमूमन जिस तरह के बदलाव एक लड़की के जिस्म पर दिखते है, वैसे कुछ हसीन बदलाव मौसम के शरीर पर भी नजर आ रहे थे..!! पतले शरीर पर चर्बी की हल्की सी परत चढ़ चुकी थी.. स्तनों का नाप भी बढ़ चुका था.. जाहीर सी बात थी.. ऐसा कडक माल हाथ आने के बाद, विशाल ने अपनी सारी कसर जो उतारी होगी मौसम पर..!! किस्मत वाला है विशाल, पीयूष ने सोचा, जो ऐसी सेक्सी लड़की उसे पत्नी के रूप में मिल गई..!!

"यार, तू तो दिन-ब-दिन और भी खूबसूरत होती जा रही है" पीयूष ने दिल से प्रशंसा की..

मौसम शरमा गई, उसकी मस्कारा लगी आँखें इतनी सुंदर लग रही थी.. और उसकी लंबी लंबी पलकें.. आह्ह..!!! गोरे गुलाबी गालों वाले चेहरे को देखते ही चूमने का मन कर रहा था पीयूष का..

"क्या जीजू आप भी..!! मेरी टांग खींचने की आपकी पुरानी आदत अब तक गई नहीं" मौसम ने हँसते हुए कहा

पीयूष: "अरे मोहतरमा...
तारीफ़ में मेरी कोई चालाकी नहीं,
आपकी ख़ूबसूरती के चर्चे तो ज़माना करता है..
शरमा के कहती हो, मैं मज़ाक करता हूँ,
अरे! आईना भी तो हर रोज़, यही बात करता है.."

"वाह.. आप तो शायर हो गए जीजू" मौसम ने कहा

पीयूष:
"शायर हूँ नहीं, बस आपके हुस्न ने बना दिया,
वरना मैं तो सीधे-सादे जज़्बातों में जीता हूँ..
जबसे देखा है आपको इन आँखों से पहली बार,
शराब भूल गया.. आपके शबाब को ही पीता हूँ!"

यह सुनकर मौसम पानी-पानी हो गई, उसने कहा "क्या बात है जीजू..!! ऐसी तारीफ तो आज तक विशाल ने भी कभी नहीं की मेरी "

पीयूष:
"वो शायद रोज़ देखते-देखते आदत बना बैठे,
हम तो पहली नज़र में ही क़ायल हो बैठे..
तारीफ़ करना हमारा फ़र्ज़ बन गया,
हुस्न तेरा देख, हम लफ्जों को ही ग़ज़ल बना बैठे!"

मौसम शर्म से लाल लाल हो गई और बोली "बस जीजू.. अब और नहीं.. वरना मैं यहीं पिघल जाऊँगी"

पीयूष फिर भी न रुका और बोला:

"अरे पिघल भी गईं तो क्या हुआ, मैं संभाल लूंगा,
मेरी इन बाँहों में तुम्हें फिर से ढाल लूंगा..
एक बार मौका देकर तो देखो इस नाचीज़ को
मैं साँसों से तेरे आँचल की सिलवटें निकाल लूंगा!"

अब मौसम से ओर रहा न गया.. वह उठ खड़ी हुई और पीयूष के पास पहुँच गई.. अपनी हथेलियों में पीयूष का चेहरा भरकर उसने चूम लिया.. लब से लब मिलें.. और पुरानी चिंगारी को जैसे हवा मिल गई..!!! कुर्सी पर बैठे पीयूष ने मौसम को अपने ऊपर खींच लिया.. अपनी दोनों गदराई टांगों को कुर्सी के इर्दगिर्द जमाकर वो पीयूष पर चढ़ गई और बेताहाशा चूमने लगी..!! उसके मस्त मम्मे पीयूष की छाती पर दब रहे थे.. स्लीवलेस टॉप से खुली दिख रही उसकी काँखों से परफ्यूम और पसीने की मिश्रित मादक गंध पीयूष को पागल बना रही थी..मौसम पागलों की तरह पीयूष को चूमे जा रही थी.. विशाल के व्यवहार से त्रस्त होकर वह पीयूष की बाहों में पिघलती जा रही थी..

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चूमते हुए पीयूष अपने दोनों हाथों से, मौसम के मस्त बबलों को मींजने लगा.. पतले टॉप और ब्रा के ऊपर से ही उसकी उंगलियों ने निप्पलों को ढूंढ निकाला.. जो इन हरकतों से सख्त हो चली थी..

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दोनों उंगलियों से निप्पल से खेलते हुए उसने अपना दूसरा हाथ मौसम की जांघों के बीच डाल दिया.. पर कमबख्त जीन्स के सख्त कपड़े के कारण चूत की परतों का बाहर से मुआयना करना नामुमकिन था.. वह अपना हाथ जीन्स के अंदर डालने ही जा रहा था की मौसम ने उसका हाथ पकड़ लिया

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"यहाँ नहीं जीजू.. कोई भी.. कभी भी अंदर आ सकता है" मौसम ने फुसफुसाते हुए उसके कानों में कहा

पीयूष को भी तभी अंदाजा हुआ की वह उसकी केबिन में बैठा था और दरवाजे पर लॉक भी नहीं लगाया था.. कोई अंदर आकर उनको इस अवस्था में देख लेगा तो गजब हो जाएगा..!! उसने तुरंत अपने होश संभाले.. और संभालकर मौसम को कुर्सी से उतारा.. मौसम ने अपना टॉप ठीक कीया और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..

"यार, मन तो कर रहा है की तुझे लेकर कहीं भाग जाऊँ" अपनी टाई को ठीक करते हुए पीयूष ने धीमे से मौसम को कहा

मौसम शरमाते हुए मुस्कुराई ओर बोली "अभी कुछ दिनों के लिए मैं यहीं हूँ.. मौका मिलेगा जीजू.. चिंता मत कीजिए"

"तेरे चक्कर में कॉफी ठंडी हो गई" कॉफी का मग को छूते हुए पीयूष ने कहा

"पर आप को तो गरम कर दिया ना मैंने..!!" खिलखिलाकर हँसते हुए मौसम ने कहा

पीयूष ने घंटी बजाई और चपरासी को अपने और मौसम के लिए कॉफी लाने को कहा

"वैसे तुम वैशाली और पिंटू से बाहर मिली या नहीं?" पीयूष ने पूछा

"पिंटू भैया तो पिछले हफ्ते बेंगलोर ही थे.. उनसे तो वहीं मिल लिया.. वैशाली को हाई बोलकर सीधे अंदर ही आई आपको सरप्राइज़ देने.. अब बाहर जाकर इत्मीनान से मिलूँगी उसे.. काफी टाइम बाद आई हूँ.. ढेर सारी बातें करनी है मुझे उससे और दीदी से भी..!!" मौसम ने जवाब दिया

ठीक है.. तू कॉफी पीकर घर जा और आराम कर.. फिर रात को मिलते है" पीयूष ने कहा

"सोच रही हूँ जीजू.. ऑफिस का थोड़ा काम देख लूँ.. मैंने स्टाफ मीटिंग के लिए बोल दिया है पिंटू भैया को.. एक घंटे बाद है.. फिर सोच रही हूँ, वैशाली को लेकर कहीं बाहर लंच पर जाऊँ.. लौटते हुए शाम हो गई तो हम साथ ही घर जाएंगे.. थकान महसूस हुई तो घर चली जाऊँगी" मौसम ने कहा

"ठीक है, जैसा तुझे ठीक लगे" पीयूष ने कहा

तभी चपरासी दोनों के लिए कॉफी लेकर आया
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अपनी माँ रमिलाबहन को फोन कर उसने उन्हें उनके नौकर को अपने घर भेजने के लिए कहा था.. यह कहकर की उसे घर की साफ-सफाई करानी है.. जाहीर सी बात थी की कुछ दिनों पहले, उस नौकर के साथ हवस का खेल खेलते हुए जब उसकी माँ के आ जाने से जो रुकावट आई थी, उसके चलते, कविता प्यासी ही रह गई थी.. उस दिन के बाद, उसे मौका ही नहीं मिला क्योंकि रमिलाबहन पूरा दिन घर पर ही रहती थी..

पीयूष की उपेक्षा झेल रही कविता के पास ओर कोई विकल्प नहीं था.. जिस्म की प्यास उसे पागल बना रही थी.. वह एक ऐसे कूकर की तरह महसूस कर रही थी जिसे पानी भरकर तेज आंच पर चढ़ाया दिया गया हो और सीटी काम न कर रही हो.. अंदर बन रही भांप का दबाव बढ़ता जा रहा था और इससे पहले की वो फट जाए.. उस भांप को बाहर निकालना बहोत जरूरी था..

पीयूष के ऑफिस जाते ही, कविता ने अपनी माँ से फोन पर बात कर, उस नौकर लड़के को भेजने के लिए कहा.. और फिर बेसब्री से इंतज़ार करने लगी.. घर की डोरबेल बजी और कविता उछलकर दरवाजा खोलने के लिए भागी..

दरवाजा खुलते ही उसने देखा की वह गोरा चिट्टा नेपाली लड़का, मैली टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहने हुए, सहमी नजर से कविता की ओर देख रहा था.. जैसा वह जानता था की उसे क्यों बुलाया गया था..!!

कविता ने उसकी ओर ऊपर से नीचे तक नजर डालकर देखा.. उसके गंदे दीदार देखकर उसने अपनी नाक सिकुड़ी.. इशारे से उसे अंदर आने के लिए कहा और दरवाजा बंद कर दिया

वह लड़का ड्रॉइंगरूम में सोफ़े के पास नजरें झुकाए खड़ा हो गया.. जैसे अगले निर्देश का इंतज़ार कर रहा हो.. कविता कुटिल मुस्कान के साथ उसके पीछे आई और उस लड़के के बिल्कुल सामने खड़ी हो गई

"नहाया नहीं है क्या?" २ फिट दूर से भी कविता को उसके पसीने की बदबू आ रही थी..

उस लड़के ने दायें बाएं सिर हिलाकर इशारे से कहा की वह नहीं नहाया था

"छी.. तू नहाता नहीं क्या?" कविता ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा

"जी वो.. घर की साफ-सफाई हो जाने के बाद ही नहाता हूँ मैं" उसने बिना नजरें उठाए जवाब दिया..

"पहले अंदर बाथरूम में जा.. और ठीक से नहाकर बाहर आ" इशारे से बाथरूम का रास्ता दिखाते हुए कविता ने कहा

वह लड़का यंत्रवत बाथरूम की ओर गया और दरवाजा बंद कर दिया

कविता आमतौर पर घर में पंजाबी सूट या टीशर्ट-शॉर्ट्स पहनती थी, लेकिन आज उसने बेडरूम में जाकर.. रात वाली सिल्क की नाइटी पहन ली, जो घुटनों से ऊपर तक आती थी.. नाइटी उसके बदन पर दो पट्टों के सहारे कंधों पर अटकी हुई थी, जिसकी पीठ काफी खुली हुई थी.. उसे पहनकर वह बेड पर लेट गई..

थोड़ी देर बाद वह लड़का, जिसका नाम बाबिल था, वह नहाकर बाहर निकला.. उसने केवल अपनी शॉर्ट्स पहनी थी और उसकी मैली टीशर्ट कंधे पर डाल रखी थी.. बाहर आकर उसने कविता की ओर देखा.. वह बड़े ही मदहोश अंदाज में, पतली नाइटी पहने, बेड पर लेटे हुए थी..

नजरें झुकाएं वह बेडरूम से बाहर जा ही रहा था की कविता की आवाज ने उसे रोक दिया

"कहाँ जा रहा है..!! इधर आ..!!" आदेशात्मक आवाज में कविता ने कहा

वह लड़का मुंडी नीचे किए हुए कविता के सामने खड़ा हो गया.. कविता ने उसे शॉर्ट्स से पकड़कर खींचते हुए बिस्तर पर गिरा दिया और खुद उसके बगल में लेट गई.. अब जो होने वाला था उसकी अपेक्षा से उस लड़के की आँखें बंद हो गई..!!

कुछ देर बाद, वह धीरे से उसकी ओर मुड़ी और उसके चेहरे को देखने की कोशिश की.. उसने पाया कि हालांकि उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसका लंड उसकी शॉर्ट्स में उछल रहा था.. कविता ने उसका हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रख दिया..

उस नौकर ने अपना हाथ कविता की छाती से हटाने की कोशिश की, लेकिन कविता ने उसका हाथ अपने स्तन पर और ज़ोर से दबा लिया और उसे अपनी ओर खींचने की कोशिश की.. अब वह उससे चिपकी हुई थी, और उनके बीच कोई जगह नहीं बची थी..

कविता अपना चेहरा और करीब लाई, जो अब उसके कंधे पर था और उसकी गर्दन तक पहुँच चुका था.. उसका पैर लड़के के पेट के ऊपर डाल दिया, और उसका लंड शॉर्ट्स के ऊपर से ही सहलाने लगी..

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वह पीठ के बल लेटी थी, जबकि उस लड़के का हाथ उसके स्तन पर था और उसकी टाँगें लड़के के ऊपर लिपटी हुई थीं..

पिछले कई सप्ताह से कविता सेक्स से दूर थी.. धीरे-धीरे उसकी सांसें गरम होने लगी.. बाबिल के शरीर की गर्मी से उसकी कामुकता भड़क उठी..

उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसके स्तन ऊपर-नीचे होने लगे.. हर बार जब उसके स्तन उठते, उसे लगता कि बाबिल के हाथ भी उन्हें धीरे से दबा रहे हैं..

कविता ने उसे देखा.. बाबिल का चेहरा उसके कंधे से सिर्फ एक इंच की दूरी पर था.. उसने उसके माथे पर एक नरम चुंबन दे दिया..

बाबिल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया, जो उसके स्तन को दबा रहा था, और धीरे-धीरे उसे अपने शरीर पर घुमाने लगी..

फिर उसने अपने मुँह में बाबिल की एक उंगली ले ली और धीरे से उस पर जीभ फिराने लगी.. उसका दूसरा हाथ उसकी गर्दन से नीचे गया, और उसे अपने शरीर के करीब खींच लिया..

अब उसका हाथ बाबिल के पेट पर था, और धीरे-धीरे उसने अपनी उंगलियों को उसके शॉर्ट्स और अपने शरीर के बीच में डाल दिया.. उसने महसूस किया कि बाबिल का लंड उसकी निकर में सख्त हो चुका था..

कामोत्तेजना से भरकर, उसने अपनी उंगलियों से उसके लंड को सहलाना शुरू कर दिया.. बाबिल ने अपनी कमर को थोड़ा हिलाया, जिससे उसे और जगह मिल गई..

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जब कविता ने अपना पूरा हाथ उसके लंड पर रखा और धीरे से दबाया, तो अचानक बाबिल ने उसके कंधे, गले और छाती को चूमना शुरू कर दिया.. उसका खाली हाथ अब उसके स्तनों को मसल रहा था, और उसके निप्पल्स को नाइटी के ऊपर से दबा रहा था..

अब कविता से भी नहीं रहा गया.. उसने भी उसके चुंबनों का जवाब दिया.. उसने बाबिल के माथे को चूमा और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए..

अब बाबिल का सब्र टूट चुका था.. उसने अपने दूसरे हाथ से उसके पूरे शरीर को रगड़ना शुरू कर दिया, जिससे कविता की उत्तेजना और बढ़ गई..

अब उसे लगने लगा कि वह उसे जंगली तरीके से चोदना चाहती है, ताकि उसकी महीनों की तृष्णा शांत हो जाए.. वह यह भूल चुकी थी कि वह उसका नौकर है और उससे उम्र में भी काफी छोटा है..

उसने बाबिल को अपने ऊपर खींच लिया.. अब वह उसके ऊपर था, और दोनों एक-दूसरे को जुनून से चूम रहे थे..

बाबिल उसके चेहरे, गर्दन और स्तनों को चाट रहा था.. उसका हाथ उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसके स्तनों को मसल रहा था.. कविता के हाथ उसकी पीठ पर थे, और वह उसे और पास खींचने की कोशिश कर रही थी..

उसे अपने नंगे स्तनों पर उसका मुँह महसूस करने की तीव्र इच्छा हो रही थी.. लेकिन जब उसने देखा कि बाबिल उसकी नाइटी नहीं उतार रहा, तो उसने खुद ही एक हाथ से अपनी नाइटी नीचे खींची और एक स्तन को पूरी तरह बाहर निकाल लिया..

बाबिल उसके स्तनों पर जंगली की तरह टूट पड़ा.. वह उसके निप्पल्स को चाटने, चूसने और नोंचने लगा.. कविता कराह उठी और अपने पैरों से उसकी पीठ को जकड़ लिया..

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उसने बाबिल की टी-शर्ट भी उतार दी, और अब उसके नंगे स्तन उसके नंगे शरीर से रगड़ खा रहे थे.. उसने अपना दूसरा स्तन भी नाइटी से बाहर निकाल लिया..

अब उसके दोनों स्तन खुले हुए थे, और बाबिल उन्हें चाटते हुए उस पर हावी हो चुका था..

और जब कविता ने अपना पूरा हाथ उसके लंड पर रख दिया और धीरे से उसे दबाया तो अचानक पाया कि वह उसके कन्धे के ऊपर पूरी तरह से चूम रहा था, गले पर और छाती के ऊपर सब जगह,और उसका जो हाथ खाली था उससे वह मेरे स्तनों का मर्दन कर रहा था और कविता की निप्पलों को अपनी उँगलियों से नाइटी के ऊपर से मसल रहा था ...

कविता अब अपने पूरे खुमार पर थी.. आतुर हो कर उसने अपने दूसरे हाथ से उस लड़के के पूरे गोरे शरीर को हौले हौले रगडना आरम्भ कर दिया जिससे उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी ... और अब वह चाहती थी कि वह लड़का उसे वहशियाना तरीके से चोदे जिससे उसकी आग शान्त हो जाए ...

बाबिल अब कविता के पूरे चेहरे को चूम रहा था, उसकी गर्दन और स्तनों के थोड़ा ऊपर. उसका हाथ नाइटी के ऊपर से ही स्तनों का मर्दन कर रहे थे और कविता के हाथ उसकी पीठ पर थे, उसकी पीठ के निचले हिस्से पर और वह उसे अपने ऊपर रखने की कोशिश कर रही थी. कविता की हालत खराब थी.. वह अपने नंगे स्तनों पर उस लड़के के मुंह को महसूस करना चाहती थी लेकिन तब उसने महसूस किया कि वह लड़का किसी तरह से भी मेरी नाइटी खींच कर नीचे नहीं कर रहा था.. तो उसने एक हाथ से उसके सिर को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी नाइटी नीचे खींच एक स्तन पूरी तरह से बेनकाब किया और अपने नग्न स्तन की ओर उसके मुँह को रास्ता दिखाया. ...

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अब वह लड़का कविता के स्तनों पर जंगली की तरह टूट पड़ा... अब वह निपल्स चाट रहा था, चूस रहा था, उसके जीभ चलाने और फिर निपल्स चूसने् से कविता ने कराहना शुरू कर दिया और फिर अपने पैरों के बीच में उसके शरीर को लाने में कामयाब रही.. कविता ने उसकी पीठ पर अपने पैर लपेट लिये और उसकी शॉर्ट्स उतार दी..

अब वह अपने नंगे स्तनों पर उसके नंगे शरीर को महसूस कर रही थी और उसने अपने दूसरे स्तन को भी नाइटी नीचे खींच कर बेनकाब करने में सफ़लता हासिल कर ली ... लड़के का मस्त ताज़ा गोरा लंड, कविता की चूत की परतों पर रगड़ खाते हुए उसे पागल बना रहा था.. चूत पर हल्की रगड़ खाते ही, कविता की चूत ने काम रस का छोटा सा फव्वारा दे मारा

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"डींग-डोंग.. डींग डोंग..!!"

घर की डोरबेल बजी...!!! और कविता अपनी मदहोशी के नशे से एकदम से बाहर आई.. वह लड़का भी सहम गया और उसने कविता की निप्पल चूसना बंद कर दिया और सवालिया नज़रों से कविता की ओर देखने लगा.. कविता ने महसूस किया की डोरबेल के अचानक बजने से उस लड़के का लंड अपनी सख्ती खोता चला जा रहा था.. शायद वह डर गया था..!!

जिस मुकाम पर वह पहुँच चुकी थी.. वहाँ से वापिस लौटने की उसकी जरा भी इच्छा नहीं थी.. उसने सोचा "जो भी होगा.. चला जाएगा"

उसने वापिस बाबिल को चेहरे को अपनी निप्पल पर दबा दिया और अपनी कमर को हिलाते हुए उसके लंड को फिर से खड़ा होने के लिए उकसाने लग गई.. लड़का भी समझ गया और अपने काम में फिर से झुट गया..

"डींग-डोंग.. डींग डोंग.. डींग डोंग.. डींग डोंग..!!"

जो भी था, बार बार घंटी बजाए जा रहा था.. जैसे कसी भी तरह दरवाजा खुलवाने पर तुला हो..!!! पर कविता ने अब ध्यान देना छोड़ दिया था..उसने लड़के को अपने ऊपर से उठाया और बगल में लेटा दिया..

उस लड़के का लंड, अब चूत में घुसने लायक खड़ा हो चुका था और कविता अब ज्यादा वक्त बर्बाद करना नहीं चाहती थी.. वो खड़ी हुई और अपनी दोनों टांगें लड़के के शरीर के इर्दगिर्द जमाकर खड़ी हो गई.. धीरे से नाइटी उठाकर अपनी नाजुक सी चूत को उजागर किया.. वह लड़का हक्का-बक्का होकर, कविता की उस आकर्षक लकीर को देखता ही रहा..

अपनी जांघें चौड़ी करते हुए वह झुककर उतनी नीचे आई की लड़के के सुपाड़े की नोक उसकी चूत के होंठों को स्पर्श करें.. कविता की आह्ह निकल गई.. उसे उस लड़के के गोरे गुलाबी लंड से जैसे प्यार हो गया था.. उसने अपनी हथेली से लंड को पकड़ा और चूत की दरार पर सेट करने लगी.. अब बस उसे थोड़ा सा वज़न डालने की ही देर थी.. लंड गप्प से अंदर घुस जाता..!!

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"दीदीईईईईई...!!! ओ दीदी...!!! कहाँ हो यार..!!! दरवाजा खोलो..!!!" बाहर से आवाज सुनाई दी..!!

कविता के होश उड़ गए..!!! ये तो मौसम की आवाज थी..!!! वो यहाँ... अभी... इस वक्त..!!! उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था.. निवाला बस मुंह में आने ही वाला था की... एक बार और उसकी कश्ती किनारे पर आकर डूब गई..

बाबिल का लंड छोड़कर वह कूदकर बिस्तर से उतरी.. वॉर्डरोब से उसन गाउन निकाला और नाइटी के ऊपर ही पहन लिया.. और इशारे से उस लड़के को कपड़े पहनने के लिए कहा..

बिखरे हुए बाल ठीक करते हुए वह दरवाजे पर आई और लॉक खोला..

"दीदीईईईई...!!" चीखते हुए मौसम अंदर घुसी और कविता को गले लगा लिया

कविता को संभलने में कुछ पल लगें.. थोड़ा सा सहज होने पर उसने भी मौसम को गले लगा लिया

"कब आई तू?? बताया भी नहीं...!!!" कविता ने उसके आलिंगन से छूटकर कहा

आराम से सोफ़े पर पैर पसारकर बैठते हुए मौसम ने कहा "बताकर आती तो आपको ऐसे रंगेहाथों पकड़ने के मौका कैसे मिलता??" शरारती आँखें नचाते हुए मौसम ने कहा

सुनकर कविता का खून सूख गया.. चेहरे से हंसी गायब हो गई.. चेहरे से नूर उड़ गया..!! मौसम को कैसे पता चला..!! कहीं जिस तरह उसने अपनी माँ को बेडरूम की खिड़की से देखा था वैसे मौसम ने तो नहीं देख लिया..!! पर ऐसा ऐसे कैसे मुमकिन था..!!! खिड़की पर तो बड़े वाले परदे लगे हुए थे.. और पीछे के रास्ते खिड़की तक पहुंचना भी बहोत मुश्किल था..!!! फिर भी किसी तरह उसने देख लिया होगा तो..!! कविता को चक्कर सा आने लगा

उसकी ऐसी हालत देखकर मौसम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली "मज़ाक कर रही हूँ दीदी.. वैसे कब से दरवाजा क्यों नहीं खोल रही थी??"

कविता की जान में जान आई.. पर उसे संभलने में कुछ वक्त लगा.. तभी बाबिल बेडरूम से बाहर निकला.. मौसम उसकी और ताज्जुब से देखने लगी.. कभी वो उस लड़के को देखती तो कभी प्रश्नसूचक नज़रों से कविता की ओर..!!

कविता ने अब होश संभाला "अरे यार.. वो तो मैं आज घर की साफ-सफाई कर रही थी..इसलिए मम्मी को फोन कर इसे बुला लिया था.. इस बेडरूम की सफाई सौंपकर मैं ऊपर के फ्लोर पर सफाई कर रही थी... बोर हो रही थी तो ईयरफोन्स लगाकर म्यूज़िक सुन रही थी.. इसलिए सुनाई नहीं दिया"

मौसम अब भी थोड़ी सी उलझी हुई थी.. वह बोली "वो तो ठीक है दीदी.. पर इस पगले को डोरबेल क्यों नहीं सुनाई दी? वो तो नीचे बेडरूम में ही था ना..!!"

कविता के लिए अब मौसम के जासूसीभरे प्रश्नों का जवाब देना मुश्किल हो रहा था.. कुछ सोचकर उसने कहा "अरे यार.. आजकल बहोत हादसे हो रहे है.. कोई भी अनजान घर में घुसकर चोरी, छीना-झपटी, खून.. कुछ भी कर देता है.. इसलिए मैंने इसे कहा था की जब तक मैं नीचे न आऊँ तब तक कितनी भी डोरबेल बजे, दरवाजा नहीं खोलना है"

"पर वो तुम्हें बता तो सकता था ना..!!!" मौसम के सवाल खत्म ही नहीं हो रहे थे

"अब तू यही सब माथापच्ची करती रहेगी या अपने बारे में भी कुछ बताएगी..!!! अकेली आई है या विशाल भी साथ आया है?" कविता ने चालाकी से बात को मोड दिया..
 

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Rajizexy

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Supreme
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पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..

राजेश, मदन और शीला फार्महाउस पर पहुंचते है.. जहां पहले से ही फाल्गुनी उनके इंतज़ार में थी..

आते ही राजेश और शीला अपनी लीला में मस्त हो गई तो दूसरी और मदन की आँखें जवान फाल्गुनी पर गड़ी हुई थी.. शुरुआती झिझक के बाद फाल्गुनी भी धीरे धीरे सहज होने लगी..

फिर शुरू हुआ... हवस का नंगा नाच..!! कभी मदन-फाल्गुनी के बीच.. कभी शीला और फाल्गुनी.. कभी राजेश और शीला.. तो कभी चारों मिलकर एक साथ..

इस घनघोर चुदाई का दौर पूरी रात चलता रहा और आखिर संतुष्ट होकर चारों चैन की नींद सो गए..
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घर से ऑफिस आए हुए पीयूष का मूड आज बिना कारण ही बहोत अच्छा था.. वो किसी फिल्म का गाना गुनगुनाते हुए अंदर आया.. बाहर के फ्लोर पर करीब दस लोग बैठकर अपने वर्कस्टेशन पर काम में व्यस्त थे.. उनमें से एक वैशाली भी थी.. पिंटू भी उसके बगल में बैठकर अपने लेपटॉप पर नजरें जमाएं बैठा हुआ था.. उसकी मौजूदगी के कारण पीयूष ने बिना वैशाली की तरफ देखे अपनी केबिन का रास्ता नापा..

अपनी चैर पर जाकर बैठते ही उसने अखबार उठाया और पढ़ने लगा.. बीच में चपरासी आकर कॉफी का मग रखकर चला गया..आंतरराष्ट्रीय खबरों के पन्ने पढ़ने में पीयूष ऐसा डूब गया की उसे पता ही नहीं चला की कब कोई उसकी केबिन के अंदर आया और उसकी कुर्सी के पीछे जाकर खड़ा हो गया

अचानक दो हथेलियों ने पीयूष की आँखों को ढँक दिया.. एक पल के लिए पीयूष सोच में पड़ गया की क्या हो गया..!! फिर हथेली की कोमलता और जानी-पहचानी परफ्यूम की खुशबू महसूस होते ही उसे अंदाजा लगने में देर नहीं हुई

"अरे वाह.. मेरी शैतान साली..!! तू अंदर कब आई मुझे पता भी नहीं चला" मुस्कुराते हुए पीयूष ने कहा

रूठने का अभिनय करते हुए मौसम ने कहा "क्या जीजू..!! आपको सरप्राइज़ देने आई पर आपने तो झट से पहचान लिया..!!" मौसम पीयूष के सामने आकर कुर्सी पर बैठ गई

"अरे मेरी प्यारी साली साहेबा.. तू धरती पे चाहे जहां भी रहेगी.. तुझे तेरी खुशबू से पहचान लूँगा" चुटकी लेते हुए पीयूष ने हँसकर कहा

"आहाहा बड़े फिल्मी हो रहे हो आज तो जीजू.. लगता है दीदी ने खुश करके भेजा है ऑफिस" मौसम ने कहा

कविता का जिक्र होते ही पीयूष की मुस्कान गायब हो गई.. लेकिन उसने तुरंत ही उन विचारों को दिमाग से झटकते हुए मौसम से कहा "तू कब आई यार..!! बताना तो था, मैं ड्राइवर को एयरपोर्ट लेने भेज देता..!!"

"बता देती तो आपको सरप्राइज़ कैसे मिलता..!!! आज सुबह की फ्लाइट से आई.. सीधे यहीं पर.. अब तक तो दीदी को भी पता नहीं है की मैं यहाँ आई हूँ" मौसम ने अपनी मुस्कान का जादू बिखेरते हुए कहा

मुस्कुराती मौसम की ओर पीयूष देखता ही रह गया..!! शादी के बाद, अमूमन जिस तरह के बदलाव एक लड़की के जिस्म पर दिखते है, वैसे कुछ हसीन बदलाव मौसम के शरीर पर भी नजर आ रहे थे..!! पतले शरीर पर चर्बी की हल्की सी परत चढ़ चुकी थी.. स्तनों का नाप भी बढ़ चुका था.. जाहीर सी बात थी.. ऐसा कडक माल हाथ आने के बाद, विशाल ने अपनी सारी कसर जो उतारी होगी मौसम पर..!! किस्मत वाला है विशाल, पीयूष ने सोचा, जो ऐसी सेक्सी लड़की उसे पत्नी के रूप में मिल गई..!!

"यार, तू तो दिन-ब-दिन और भी खूबसूरत होती जा रही है" पीयूष ने दिल से प्रशंसा की..

मौसम शरमा गई, उसकी मस्कारा लगी आँखें इतनी सुंदर लग रही थी.. और उसकी लंबी लंबी पलकें.. आह्ह..!!! गोरे गुलाबी गालों वाले चेहरे को देखते ही चूमने का मन कर रहा था पीयूष का..

"क्या जीजू आप भी..!! मेरी टांग खींचने की आपकी पुरानी आदत अब तक गई नहीं" मौसम ने हँसते हुए कहा

पीयूष: "अरे मोहतरमा...
तारीफ़ में मेरी कोई चालाकी नहीं,
आपकी ख़ूबसूरती के चर्चे तो ज़माना करता है..
शरमा के कहती हो, मैं मज़ाक करता हूँ,
अरे! आईना भी तो हर रोज़, यही बात करता है.."

"वाह.. आप तो शायर हो गए जीजू" मौसम ने कहा

पीयूष:
"शायर हूँ नहीं, बस आपके हुस्न ने बना दिया,
वरना मैं तो सीधे-सादे जज़्बातों में जीता हूँ..
जबसे देखा है आपको इन आँखों से पहली बार,
शराब भूल गया.. आपके शबाब को ही पीता हूँ!"

यह सुनकर मौसम पानी-पानी हो गई, उसने कहा "क्या बात है जीजू..!! ऐसी तारीफ तो आज तक विशाल ने भी कभी नहीं की मेरी "

पीयूष:
"वो शायद रोज़ देखते-देखते आदत बना बैठे,
हम तो पहली नज़र में ही क़ायल हो बैठे..
तारीफ़ करना हमारा फ़र्ज़ बन गया,
हुस्न तेरा देख, हम लफ्जों को ही ग़ज़ल बना बैठे!"

मौसम शर्म से लाल लाल हो गई और बोली "बस जीजू.. अब और नहीं.. वरना मैं यहीं पिघल जाऊँगी"

पीयूष फिर भी न रुका और बोला:

"अरे पिघल भी गईं तो क्या हुआ, मैं संभाल लूंगा,
मेरी इन बाँहों में तुम्हें फिर से ढाल लूंगा..
एक बार मौका देकर तो देखो इस नाचीज़ को
मैं साँसों से तेरे आँचल की सिलवटें निकाल लूंगा!"

अब मौसम से ओर रहा न गया.. वह उठ खड़ी हुई और पीयूष के पास पहुँच गई.. अपनी हथेलियों में पीयूष का चेहरा भरकर उसने चूम लिया.. लब से लब मिलें.. और पुरानी चिंगारी को जैसे हवा मिल गई..!!! कुर्सी पर बैठे पीयूष ने मौसम को अपने ऊपर खींच लिया.. अपनी दोनों गदराई टांगों को कुर्सी के इर्दगिर्द जमाकर वो पीयूष पर चढ़ गई और बेताहाशा चूमने लगी..!! उसके मस्त मम्मे पीयूष की छाती पर दब रहे थे.. स्लीवलेस टॉप से खुली दिख रही उसकी काँखों से परफ्यूम और पसीने की मिश्रित मादक गंध पीयूष को पागल बना रही थी..मौसम पागलों की तरह पीयूष को चूमे जा रही थी.. विशाल के व्यवहार से त्रस्त होकर वह पीयूष की बाहों में पिघलती जा रही थी..

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चूमते हुए पीयूष अपने दोनों हाथों से, मौसम के मस्त बबलों को मींजने लगा.. पतले टॉप और ब्रा के ऊपर से ही उसकी उंगलियों ने निप्पलों को ढूंढ निकाला.. जो इन हरकतों से सख्त हो चली थी..

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दोनों उंगलियों से निप्पल से खेलते हुए उसने अपना दूसरा हाथ मौसम की जांघों के बीच डाल दिया.. पर कमबख्त जीन्स के सख्त कपड़े के कारण चूत की परतों का बाहर से मुआयना करना नामुमकिन था.. वह अपना हाथ जीन्स के अंदर डालने ही जा रहा था की मौसम ने उसका हाथ पकड़ लिया

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"यहाँ नहीं जीजू.. कोई भी.. कभी भी अंदर आ सकता है" मौसम ने फुसफुसाते हुए उसके कानों में कहा

पीयूष को भी तभी अंदाजा हुआ की वह उसकी केबिन में बैठा था और दरवाजे पर लॉक भी नहीं लगाया था.. कोई अंदर आकर उनको इस अवस्था में देख लेगा तो गजब हो जाएगा..!! उसने तुरंत अपने होश संभाले.. और संभालकर मौसम को कुर्सी से उतारा.. मौसम ने अपना टॉप ठीक कीया और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..

"यार, मन तो कर रहा है की तुझे लेकर कहीं भाग जाऊँ" अपनी टाई को ठीक करते हुए पीयूष ने धीमे से मौसम को कहा

मौसम शरमाते हुए मुस्कुराई ओर बोली "अभी कुछ दिनों के लिए मैं यहीं हूँ.. मौका मिलेगा जीजू.. चिंता मत कीजिए"

"तेरे चक्कर में कॉफी ठंडी हो गई" कॉफी का मग को छूते हुए पीयूष ने कहा

"पर आप को तो गरम कर दिया ना मैंने..!!" खिलखिलाकर हँसते हुए मौसम ने कहा

पीयूष ने घंटी बजाई और चपरासी को अपने और मौसम के लिए कॉफी लाने को कहा

"वैसे तुम वैशाली और पिंटू से बाहर मिली या नहीं?" पीयूष ने पूछा

"पिंटू भैया तो पिछले हफ्ते बेंगलोर ही थे.. उनसे तो वहीं मिल लिया.. वैशाली को हाई बोलकर सीधे अंदर ही आई आपको सरप्राइज़ देने.. अब बाहर जाकर इत्मीनान से मिलूँगी उसे.. काफी टाइम बाद आई हूँ.. ढेर सारी बातें करनी है मुझे उससे और दीदी से भी..!!" मौसम ने जवाब दिया

ठीक है.. तू कॉफी पीकर घर जा और आराम कर.. फिर रात को मिलते है" पीयूष ने कहा

"सोच रही हूँ जीजू.. ऑफिस का थोड़ा काम देख लूँ.. मैंने स्टाफ मीटिंग के लिए बोल दिया है पिंटू भैया को.. एक घंटे बाद है.. फिर सोच रही हूँ, वैशाली को लेकर कहीं बाहर लंच पर जाऊँ.. लौटते हुए शाम हो गई तो हम साथ ही घर जाएंगे.. थकान महसूस हुई तो घर चली जाऊँगी" मौसम ने कहा

"ठीक है, जैसा तुझे ठीक लगे" पीयूष ने कहा

तभी चपरासी दोनों के लिए कॉफी लेकर आया
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अपनी माँ रमिलाबहन को फोन कर उसने उन्हें उनके नौकर को अपने घर भेजने के लिए कहा था.. यह कहकर की उसे घर की साफ-सफाई करानी है.. जाहीर सी बात थी की कुछ दिनों पहले, उस नौकर के साथ हवस का खेल खेलते हुए जब उसकी माँ के आ जाने से जो रुकावट आई थी, उसके चलते, कविता प्यासी ही रह गई थी.. उस दिन के बाद, उसे मौका ही नहीं मिला क्योंकि रमिलाबहन पूरा दिन घर पर ही रहती थी..

पीयूष की उपेक्षा झेल रही कविता के पास ओर कोई विकल्प नहीं था.. जिस्म की प्यास उसे पागल बना रही थी.. वह एक ऐसे कूकर की तरह महसूस कर रही थी जिसे पानी भरकर तेज आंच पर चढ़ाया दिया गया हो और सीटी काम न कर रही हो.. अंदर बन रही भांप का दबाव बढ़ता जा रहा था और इससे पहले की वो फट जाए.. उस भांप को बाहर निकालना बहोत जरूरी था..

पीयूष के ऑफिस जाते ही, कविता ने अपनी माँ से फोन पर बात कर, उस नौकर लड़के को भेजने के लिए कहा.. और फिर बेसब्री से इंतज़ार करने लगी.. घर की डोरबेल बजी और कविता उछलकर दरवाजा खोलने के लिए भागी..

दरवाजा खुलते ही उसने देखा की वह गोरा चिट्टा नेपाली लड़का, मैली टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहने हुए, सहमी नजर से कविता की ओर देख रहा था.. जैसा वह जानता था की उसे क्यों बुलाया गया था..!!

कविता ने उसकी ओर ऊपर से नीचे तक नजर डालकर देखा.. उसके गंदे दीदार देखकर उसने अपनी नाक सिकुड़ी.. इशारे से उसे अंदर आने के लिए कहा और दरवाजा बंद कर दिया

वह लड़का ड्रॉइंगरूम में सोफ़े के पास नजरें झुकाए खड़ा हो गया.. जैसे अगले निर्देश का इंतज़ार कर रहा हो.. कविता कुटिल मुस्कान के साथ उसके पीछे आई और उस लड़के के बिल्कुल सामने खड़ी हो गई

"नहाया नहीं है क्या?" २ फिट दूर से भी कविता को उसके पसीने की बदबू आ रही थी..

उस लड़के ने दायें बाएं सिर हिलाकर इशारे से कहा की वह नहीं नहाया था

"छी.. तू नहाता नहीं क्या?" कविता ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा

"जी वो.. घर की साफ-सफाई हो जाने के बाद ही नहाता हूँ मैं" उसने बिना नजरें उठाए जवाब दिया..

"पहले अंदर बाथरूम में जा.. और ठीक से नहाकर बाहर आ" इशारे से बाथरूम का रास्ता दिखाते हुए कविता ने कहा

वह लड़का यंत्रवत बाथरूम की ओर गया और दरवाजा बंद कर दिया

कविता आमतौर पर घर में पंजाबी सूट या टीशर्ट-शॉर्ट्स पहनती थी, लेकिन आज उसने बेडरूम में जाकर.. रात वाली सिल्क की नाइटी पहन ली, जो घुटनों से ऊपर तक आती थी.. नाइटी उसके बदन पर दो पट्टों के सहारे कंधों पर अटकी हुई थी, जिसकी पीठ काफी खुली हुई थी.. उसे पहनकर वह बेड पर लेट गई..

थोड़ी देर बाद वह लड़का, जिसका नाम बाबिल था, वह नहाकर बाहर निकला.. उसने केवल अपनी शॉर्ट्स पहनी थी और उसकी मैली टीशर्ट कंधे पर डाल रखी थी.. बाहर आकर उसने कविता की ओर देखा.. वह बड़े ही मदहोश अंदाज में, पतली नाइटी पहने, बेड पर लेटे हुए थी..

नजरें झुकाएं वह बेडरूम से बाहर जा ही रहा था की कविता की आवाज ने उसे रोक दिया

"कहाँ जा रहा है..!! इधर आ..!!" आदेशात्मक आवाज में कविता ने कहा

वह लड़का मुंडी नीचे किए हुए कविता के सामने खड़ा हो गया.. कविता ने उसे शॉर्ट्स से पकड़कर खींचते हुए बिस्तर पर गिरा दिया और खुद उसके बगल में लेट गई.. अब जो होने वाला था उसकी अपेक्षा से उस लड़के की आँखें बंद हो गई..!!

कुछ देर बाद, वह धीरे से उसकी ओर मुड़ी और उसके चेहरे को देखने की कोशिश की.. उसने पाया कि हालांकि उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसका लंड उसकी शॉर्ट्स में उछल रहा था.. कविता ने उसका हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रख दिया..

उस नौकर ने अपना हाथ कविता की छाती से हटाने की कोशिश की, लेकिन कविता ने उसका हाथ अपने स्तन पर और ज़ोर से दबा लिया और उसे अपनी ओर खींचने की कोशिश की.. अब वह उससे चिपकी हुई थी, और उनके बीच कोई जगह नहीं बची थी..

कविता अपना चेहरा और करीब लाई, जो अब उसके कंधे पर था और उसकी गर्दन तक पहुँच चुका था.. उसका पैर लड़के के पेट के ऊपर डाल दिया, और उसका लंड शॉर्ट्स के ऊपर से ही सहलाने लगी..

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वह पीठ के बल लेटी थी, जबकि उस लड़के का हाथ उसके स्तन पर था और उसकी टाँगें लड़के के ऊपर लिपटी हुई थीं..

पिछले कई सप्ताह से कविता सेक्स से दूर थी.. धीरे-धीरे उसकी सांसें गरम होने लगी.. बाबिल के शरीर की गर्मी से उसकी कामुकता भड़क उठी..

उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसके स्तन ऊपर-नीचे होने लगे.. हर बार जब उसके स्तन उठते, उसे लगता कि बाबिल के हाथ भी उन्हें धीरे से दबा रहे हैं..

कविता ने उसे देखा.. बाबिल का चेहरा उसके कंधे से सिर्फ एक इंच की दूरी पर था.. उसने उसके माथे पर एक नरम चुंबन दे दिया..

बाबिल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया, जो उसके स्तन को दबा रहा था, और धीरे-धीरे उसे अपने शरीर पर घुमाने लगी..

फिर उसने अपने मुँह में बाबिल की एक उंगली ले ली और धीरे से उस पर जीभ फिराने लगी.. उसका दूसरा हाथ उसकी गर्दन से नीचे गया, और उसे अपने शरीर के करीब खींच लिया..

अब उसका हाथ बाबिल के पेट पर था, और धीरे-धीरे उसने अपनी उंगलियों को उसके शॉर्ट्स और अपने शरीर के बीच में डाल दिया.. उसने महसूस किया कि बाबिल का लंड उसकी निकर में सख्त हो चुका था..

कामोत्तेजना से भरकर, उसने अपनी उंगलियों से उसके लंड को सहलाना शुरू कर दिया.. बाबिल ने अपनी कमर को थोड़ा हिलाया, जिससे उसे और जगह मिल गई..

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जब कविता ने अपना पूरा हाथ उसके लंड पर रखा और धीरे से दबाया, तो अचानक बाबिल ने उसके कंधे, गले और छाती को चूमना शुरू कर दिया.. उसका खाली हाथ अब उसके स्तनों को मसल रहा था, और उसके निप्पल्स को नाइटी के ऊपर से दबा रहा था..

अब कविता से भी नहीं रहा गया.. उसने भी उसके चुंबनों का जवाब दिया.. उसने बाबिल के माथे को चूमा और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए..

अब बाबिल का सब्र टूट चुका था.. उसने अपने दूसरे हाथ से उसके पूरे शरीर को रगड़ना शुरू कर दिया, जिससे कविता की उत्तेजना और बढ़ गई..

अब उसे लगने लगा कि वह उसे जंगली तरीके से चोदना चाहती है, ताकि उसकी महीनों की तृष्णा शांत हो जाए.. वह यह भूल चुकी थी कि वह उसका नौकर है और उससे उम्र में भी काफी छोटा है..

उसने बाबिल को अपने ऊपर खींच लिया.. अब वह उसके ऊपर था, और दोनों एक-दूसरे को जुनून से चूम रहे थे..

बाबिल उसके चेहरे, गर्दन और स्तनों को चाट रहा था.. उसका हाथ उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसके स्तनों को मसल रहा था.. कविता के हाथ उसकी पीठ पर थे, और वह उसे और पास खींचने की कोशिश कर रही थी..

उसे अपने नंगे स्तनों पर उसका मुँह महसूस करने की तीव्र इच्छा हो रही थी.. लेकिन जब उसने देखा कि बाबिल उसकी नाइटी नहीं उतार रहा, तो उसने खुद ही एक हाथ से अपनी नाइटी नीचे खींची और एक स्तन को पूरी तरह बाहर निकाल लिया..

बाबिल उसके स्तनों पर जंगली की तरह टूट पड़ा.. वह उसके निप्पल्स को चाटने, चूसने और नोंचने लगा.. कविता कराह उठी और अपने पैरों से उसकी पीठ को जकड़ लिया..

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उसने बाबिल की टी-शर्ट भी उतार दी, और अब उसके नंगे स्तन उसके नंगे शरीर से रगड़ खा रहे थे.. उसने अपना दूसरा स्तन भी नाइटी से बाहर निकाल लिया..

अब उसके दोनों स्तन खुले हुए थे, और बाबिल उन्हें चाटते हुए उस पर हावी हो चुका था..

और जब कविता ने अपना पूरा हाथ उसके लंड पर रख दिया और धीरे से उसे दबाया तो अचानक पाया कि वह उसके कन्धे के ऊपर पूरी तरह से चूम रहा था, गले पर और छाती के ऊपर सब जगह,और उसका जो हाथ खाली था उससे वह मेरे स्तनों का मर्दन कर रहा था और कविता की निप्पलों को अपनी उँगलियों से नाइटी के ऊपर से मसल रहा था ...

कविता अब अपने पूरे खुमार पर थी.. आतुर हो कर उसने अपने दूसरे हाथ से उस लड़के के पूरे गोरे शरीर को हौले हौले रगडना आरम्भ कर दिया जिससे उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी ... और अब वह चाहती थी कि वह लड़का उसे वहशियाना तरीके से चोदे जिससे उसकी आग शान्त हो जाए ...

बाबिल अब कविता के पूरे चेहरे को चूम रहा था, उसकी गर्दन और स्तनों के थोड़ा ऊपर. उसका हाथ नाइटी के ऊपर से ही स्तनों का मर्दन कर रहे थे और कविता के हाथ उसकी पीठ पर थे, उसकी पीठ के निचले हिस्से पर और वह उसे अपने ऊपर रखने की कोशिश कर रही थी. कविता की हालत खराब थी.. वह अपने नंगे स्तनों पर उस लड़के के मुंह को महसूस करना चाहती थी लेकिन तब उसने महसूस किया कि वह लड़का किसी तरह से भी मेरी नाइटी खींच कर नीचे नहीं कर रहा था.. तो उसने एक हाथ से उसके सिर को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी नाइटी नीचे खींच एक स्तन पूरी तरह से बेनकाब किया और अपने नग्न स्तन की ओर उसके मुँह को रास्ता दिखाया. ...

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अब वह लड़का कविता के स्तनों पर जंगली की तरह टूट पड़ा... अब वह निपल्स चाट रहा था, चूस रहा था, उसके जीभ चलाने और फिर निपल्स चूसने् से कविता ने कराहना शुरू कर दिया और फिर अपने पैरों के बीच में उसके शरीर को लाने में कामयाब रही.. कविता ने उसकी पीठ पर अपने पैर लपेट लिये और उसकी शॉर्ट्स उतार दी..

अब वह अपने नंगे स्तनों पर उसके नंगे शरीर को महसूस कर रही थी और उसने अपने दूसरे स्तन को भी नाइटी नीचे खींच कर बेनकाब करने में सफ़लता हासिल कर ली ... लड़के का मस्त ताज़ा गोरा लंड, कविता की चूत की परतों पर रगड़ खाते हुए उसे पागल बना रहा था.. चूत पर हल्की रगड़ खाते ही, कविता की चूत ने काम रस का छोटा सा फव्वारा दे मारा

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"डींग-डोंग.. डींग डोंग..!!"

घर की डोरबेल बजी...!!! और कविता अपनी मदहोशी के नशे से एकदम से बाहर आई.. वह लड़का भी सहम गया और उसने कविता की निप्पल चूसना बंद कर दिया और सवालिया नज़रों से कविता की ओर देखने लगा.. कविता ने महसूस किया की डोरबेल के अचानक बजने से उस लड़के का लंड अपनी सख्ती खोता चला जा रहा था.. शायद वह डर गया था..!!

जिस मुकाम पर वह पहुँच चुकी थी.. वहाँ से वापिस लौटने की उसकी जरा भी इच्छा नहीं थी.. उसने सोचा "जो भी होगा.. चला जाएगा"

उसने वापिस बाबिल को चेहरे को अपनी निप्पल पर दबा दिया और अपनी कमर को हिलाते हुए उसके लंड को फिर से खड़ा होने के लिए उकसाने लग गई.. लड़का भी समझ गया और अपने काम में फिर से झुट गया..

"डींग-डोंग.. डींग डोंग.. डींग डोंग.. डींग डोंग..!!"

जो भी था, बार बार घंटी बजाए जा रहा था.. जैसे कसी भी तरह दरवाजा खुलवाने पर तुला हो..!!! पर कविता ने अब ध्यान देना छोड़ दिया था..उसने लड़के को अपने ऊपर से उठाया और बगल में लेटा दिया..

उस लड़के का लंड, अब चूत में घुसने लायक खड़ा हो चुका था और कविता अब ज्यादा वक्त बर्बाद करना नहीं चाहती थी.. वो खड़ी हुई और अपनी दोनों टांगें लड़के के शरीर के इर्दगिर्द जमाकर खड़ी हो गई.. धीरे से नाइटी उठाकर अपनी नाजुक सी चूत को उजागर किया.. वह लड़का हक्का-बक्का होकर, कविता की उस आकर्षक लकीर को देखता ही रहा..

अपनी जांघें चौड़ी करते हुए वह झुककर उतनी नीचे आई की लड़के के सुपाड़े की नोक उसकी चूत के होंठों को स्पर्श करें.. कविता की आह्ह निकल गई.. उसे उस लड़के के गोरे गुलाबी लंड से जैसे प्यार हो गया था.. उसने अपनी हथेली से लंड को पकड़ा और चूत की दरार पर सेट करने लगी.. अब बस उसे थोड़ा सा वज़न डालने की ही देर थी.. लंड गप्प से अंदर घुस जाता..!!

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"दीदीईईईईई...!!! ओ दीदी...!!! कहाँ हो यार..!!! दरवाजा खोलो..!!!" बाहर से आवाज सुनाई दी..!!

कविता के होश उड़ गए..!!! ये तो मौसम की आवाज थी..!!! वो यहाँ... अभी... इस वक्त..!!! उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था.. निवाला बस मुंह में आने ही वाला था की... एक बार और उसकी कश्ती किनारे पर आकर डूब गई..

बाबिल का लंड छोड़कर वह कूदकर बिस्तर से उतरी.. वॉर्डरोब से उसन गाउन निकाला और नाइटी के ऊपर ही पहन लिया.. और इशारे से उस लड़के को कपड़े पहनने के लिए कहा..

बिखरे हुए बाल ठीक करते हुए वह दरवाजे पर आई और लॉक खोला..

"दीदीईईईई...!!" चीखते हुए मौसम अंदर घुसी और कविता को गले लगा लिया

कविता को संभलने में कुछ पल लगें.. थोड़ा सा सहज होने पर उसने भी मौसम को गले लगा लिया

"कब आई तू?? बताया भी नहीं...!!!" कविता ने उसके आलिंगन से छूटकर कहा

आराम से सोफ़े पर पैर पसारकर बैठते हुए मौसम ने कहा "बताकर आती तो आपको ऐसे रंगेहाथों पकड़ने के मौका कैसे मिलता??" शरारती आँखें नचाते हुए मौसम ने कहा

सुनकर कविता का खून सूख गया.. चेहरे से हंसी गायब हो गई.. चेहरे से नूर उड़ गया..!! मौसम को कैसे पता चला..!! कहीं जिस तरह उसने अपनी माँ को बेडरूम की खिड़की से देखा था वैसे मौसम ने तो नहीं देख लिया..!! पर ऐसा ऐसे कैसे मुमकिन था..!!! खिड़की पर तो बड़े वाले परदे लगे हुए थे.. और पीछे के रास्ते खिड़की तक पहुंचना भी बहोत मुश्किल था..!!! फिर भी किसी तरह उसने देख लिया होगा तो..!! कविता को चक्कर सा आने लगा

उसकी ऐसी हालत देखकर मौसम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली "मज़ाक कर रही हूँ दीदी.. वैसे कब से दरवाजा क्यों नहीं खोल रही थी??"

कविता की जान में जान आई.. पर उसे संभलने में कुछ वक्त लगा.. तभी बाबिल बेडरूम से बाहर निकला.. मौसम उसकी और ताज्जुब से देखने लगी.. कभी वो उस लड़के को देखती तो कभी प्रश्नसूचक नज़रों से कविता की ओर..!!

कविता ने अब होश संभाला "अरे यार.. वो तो मैं आज घर की साफ-सफाई कर रही थी..इसलिए मम्मी को फोन कर इसे बुला लिया था.. इस बेडरूम की सफाई सौंपकर मैं ऊपर के फ्लोर पर सफाई कर रही थी... बोर हो रही थी तो ईयरफोन्स लगाकर म्यूज़िक सुन रही थी.. इसलिए सुनाई नहीं दिया"

मौसम अब भी थोड़ी सी उलझी हुई थी.. वह बोली "वो तो ठीक है दीदी.. पर इस पगले को डोरबेल क्यों नहीं सुनाई दी? वो तो नीचे बेडरूम में ही था ना..!!"

कविता के लिए अब मौसम के जासूसीभरे प्रश्नों का जवाब देना मुश्किल हो रहा था.. कुछ सोचकर उसने कहा "अरे यार.. आजकल बहोत हादसे हो रहे है.. कोई भी अनजान घर में घुसकर चोरी, छीना-झपटी, खून.. कुछ भी कर देता है.. इसलिए मैंने इसे कहा था की जब तक मैं नीचे न आऊँ तब तक कितनी भी डोरबेल बजे, दरवाजा नहीं खोलना है"

"पर वो तुम्हें बता तो सकता था ना..!!!" मौसम के सवाल खत्म ही नहीं हो रहे थे


"अब तू यही सब माथापच्ची करती रहेगी या अपने बारे में भी कुछ बताएगी..!!! अकेली आई है या विशाल भी साथ आया है?" कविता ने चालाकी से बात को मोड दिया..
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