३१ दिसंबर की सुबह, वैशाली ऑफिस जाने के लिए निकल गई.. आज कुछ दोस्तों के साथ मिलकर ३१ दिसंबर का प्रोग्राम बनाया था.. वैशाली ने शीला और मदन को बता दिया था की वो आज पिंटू के साथ दोस्त के घर जाने वाली है.. और आते आते देर हो जाएगी
वैशाली ऑफिस पहुंची और अपना काम कर ही रही थी की पिंटू ने आकर उसे बताया की पीयूष का फोन आया था और ३१ दिसंबर की पार्टी के लिए उनके घर.. वैशाली और पिंटू को आमंत्रित किया गया था.. और वहाँ पहुँचने के लिए उन्हें अभी निकलना था..
वैशाली ने फोन करके मदन से अनुमति ली.. पीयूष और कविता के घर वैशाली जाएँ उसमें मदन और शीला को क्या आपत्ति होगी भला.. !!! मदन ने तुरंत हाँ कह दिया..
पिंटू राजेश से छुट्टी मांगने गया.. राजेश ने खुश होकर दो दिन की छुट्टी दे दी.. और साथ में कंपनी की गाड़ी ले जाने को कहा..
पिंटू और वैशाली दोनों ही खुश हो गए.. गाड़ी लेकर दोनों कविता के शहर की और निकल पड़े.. रास्ते में वैशाली ने पिंटू को उकसाने की बेहद कोशिशें की.. अपने स्तन पिंटू के कंधे से रगड़ रगड़कर उसे उत्तेजित करना चाहा.. पर पिंटू ने अपना सारा ध्यान ड्राइविंग पर ही केंद्रित रखा..
आखिर वैशाली को शीला का तरीका आजमाना पड़ा.. क्योंकी ये पिंटू तो भाव ही नहीं दे रहा था.. !! वो सोच रही थी की अभी दो घंटों का सफर बाकी था और गाड़ी में दोनों अकेले थे.. ऐसा मौका अगर पीयूष को मिला होता तो उसने अब तक अपना लंड वैशाली के मुंह में दे दिया होता और उसके बबले दबा दबाकर ढीले कर दीये होते..!!
बड़ी सुहानी रात थी.. जोबन लूटने के लिए बेकरार था.. वैशाली मर्दाना स्पर्श के लिए तड़प रही थी.. उसकी मादक जवानी अपनी माँद में पिंटू का लंड लेने के लिए मचल रही थी.. हाइवे पर सरपट गाड़ी दौड़ रही थी.. आसपास कोई देखने वाला नहीं था.. मस्त रोमेन्टीक म्यूज़िक भी बज रहा था..
वैशाली ने पिंटू की तरफ देखा.. पिंटू का सारा ध्यान रास्ते पर था
वैशाली: "पिंटू, लड़की के सारे अंगों में से कौन सा अंग तुझे सब से ज्यादा पसंद है?"
पिंटू ने तीरछी नज़रों से वैशाली की ओर देखा और हंसने लगा
वैशाली: "अरे बता ना... !!"
पिंटू: "कैसा वाहियात सवाल पूछ रही है तू..!! लड़की का तो हर अंग पसंद होता है सब को"
वैशाली: "यार तुझे कैसे पटाऊँ कुछ समझ ही नहीं आता.. अच्छा ये बता.. तुझे गालियां बकने में मज़ा आता है क्या?"
पिंटू: "ना... जरा भी नहीं"
वैशाली: "तो भेनचोद तुझे अच्छा क्या लगता है??"
वैशाली के मुंह से गाली सुनकर पिंटू स्तब्ध हो गया.. वो बेचारा इस प्रहार के लिए जरा भी तैयार नहीं था.. एक पल के लिए तो उसके हाथ से गाड़ी का स्टियरिंग ही छूट गया
वैशाली: "यार... तूने कभी मुझे ध्यान से देखा है कभी?? मेरा बहोत मन है की तुझे मैं अपना जिस्म दिखाऊँ.. तुझे पता है.. ऑफिस के सारे मर्द मेरे बूब्स को बड़े ध्यान से देखते रहते है.. एक तू ही बेवकूफ है जिसका ध्यान नहीं जाता"
पिंटू: "तेरे है ही ऐसे.. सब का ध्यान वहाँ चला जाता है"
वैशाली: "ऐसे मतलब?? कैसे है मेरे बूब्स?"
पिंटू को लगा की अब अगर उसने जवाब नहीं दिया तो वैशाली उसे पता नहीं कौन सी गाली सुना देगी
पिंटू: "मस्त.. कडक और बड़े बड़े"
वैशाली: "तुझे बड़े बड़े पसंद है या छोटे?"
पिंटू: "मुझे तो तेरे पसंद है"
पिंटू का जवाब सुनकर वैशाली खिलखिलाकर हंस पड़ी.. "वाह वाह पिंटू.. मान गई.. जवाब देना तो कोई तुझ से सीखें.. पर अगर तुझे मेरे पसंद है तो कभी हाथ क्यों नहीं लगाता??"
पिंटू: "वैशाली, तुझे एक रीक्वेस्ट करूँ?"
वैशाली: "हम्म... बोल.. !!"
पिंटू: "मुझे कभी बेवकूफ मत बोलना.. हर्ट होता है यार.. प्लीज"
वैशाली: "अरे यार मैं तो मज़ाक मज़ाक में कह रही थी.. अगर तुझे नहीं पसंद तो नहीं बोलूँगी कभी.. पर इतने सामान्य शब्द से तुझे ऐसा तो क्या परहेज है?"
पिंटू ने थोड़ी देर सोचकर कहा "यार, वैशाली.. मैं तुझसे झूठ नहीं बोलूँगा.. मुझे बेवकूफ कहकर सिर्फ कविता ही बुलाती थी..और तुझे तो पता है की हम दोनों एक दूसरे को चाहते थे"
वैशाली: "चाहते थे या अभी भी चाहते है??"
पिंटू: "कहने के लिए कह सकते है की चाहते थे.. वरना मुझे पूछ तो अब भी कहूँगा की चाहते है"
वैशाली: "तो फिर मेरे साथ तू टाइम पास कर रहा है क्या??"
पिंटू: "बिल्कुल नहीं.. कविता मेरा भूतकाल थी और तू मेरा वर्तमान है"
वैशाली: "हम्ममम.. तो भविष्य के लिए कीसे पसंद कर रखा है?"
पिंटू: "भविष्य हमेशा वर्तमान पर आधारित होता है.. और भूतकाल केवल यादों के लिए होता है"
वैशाली: "तो फिर मुझे अभी अपना भविष्य बना ले.. " पिंटू की ईमानदारी की कायल हो गई वैशाली.. पिंटू के गालों को चूम लिया उसने
पिंटू के शरीर में बिजली सी दौड़ गई.. चूमते वक्त वैशाली का एक स्तन उसके कंधे से दब गया.. वैशाली ने पिंटू की जांघ पर हाथ रखकर कहा "आई लव यू यार.. !!"
पिंटू: "वैशाली, मैंने तुझे कविता का स्थान तब ही दे दिया था जब तेरे मम्मी पापा से तेरा हाथ मांगा था.. झूठ नहीं बोलूँगा पर कविता को लेकर अब भी मेरे मन में जज़्बात है.. उसे भूलने की मैं पूरी कोशिश करूंगा.. ये मेरा वादा है तुझसे.. आई लव यू टू.. !!"
वैशाली: "थेंकस पिंटू.. सब कुछ साफ साफ बताने के लिए.. मुझे गर्व है की तुझ जैसा दोस्त मुझे मिला है.. !!"
पिंटू: "मेरे लिए प्रेम एक एहसास होने के साथ साथ.. एक जिम्मेदारी भी है.. तेरी हर जरूरत को पूरा करना मेरा धर्म है"
वैशाली: "अभी तो मेरे शरीर को तेरे मर्दानगी भरे स्पर्श की बेहद जरूरत है.." कहते हुए पिंटू के लंड पर उसने हाथ रख दिया.. छूते ही वैशाली को लगा की अभी पेंट के अंदर किसी प्रकार की हरकत नहीं हो रही थी.. इसलिए वैशाली ने पिंटू का हाथ गियर से हटाकर अपने स्तन पर रख दिया..

"आह्ह दबा इन्हें पिंटू.. बहोत दिनों से मेरे यह दोनों किसी मर्दाना स्पर्श के लिए तरस रहे है.. "
पिंटू ने दोनों स्तनों को बारी बारी मसल दीये.. वैशाली कराहने लगी.. पिंटू की तरफ से ३१ दिसंबर की सब से अनोखी भेंट थी यह वैशाली के लिए
गियर बदलने के लिए पिंटू ने अपना हाथ वैशाली की चूचियों से हटाया तब वैशाली ने अपने व्हाइट शर्ट के तीन बटन खोल दीये और ब्रा को ऊपर कर दोनों स्तनों को बाहर निकाल लिया.. और पिंटू के हाथों की प्रतीक्षा करने लगी.. पर पिंटू की तरफ से कोई प्रतिक्रीया नहीं मिली..
आखिर वैशाली को सामने से कहना पड़ा "तुझे बहोत पसंद है ना मेरे.. ले, तेरे लिए खोल कर बाहर निकाल दीये.. एक बार देख तो सही"
वैशाली के खुले स्तन देखकर पिंटू की आँखें फट गई.. "वाऊ... जबरदस्त है बेबी.. "
वैशाली: "अब इन्हें छु भी ले यार.. !!"
पिंटू ने पहली बार वैशाली के नंगे बबलों का स्पर्श किया था.. नरम नरम मांस के गोलों की वो गर्माहट.. हाथ लगाते ही पिंटू का लंड टॉप गियर में आने लगा..
अंधेरी रात में हाइवे पर एक कोने पर.. गाड़ी रोक दी पिंटू ने.. अब पिंटू ने सामने से वैशाली का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया.. थोड़ी देर पहले शांत बैठा लंड.. अब पूरे खुमार पर था.. पिंटू की इस हरकत से वैशाली को बहोत अच्छा लगा.. उसने पेंट के ऊपर से ही पिंटू की मर्दानगी को मसलकर रख दिया.. उसका कडक लंड देखने के लिए वैशाली मर रही थी..
वैशाली ने सामने से कहा "ओहह पिंटू.. प्लीज बाहर निकाल इसे.. मैं मन भरकर देखना चाहती हूँ"
पिंटू ने तुरंत अपनी चैन खोल दी और लंड को बाहर निकाल दिया.. स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर निकले लंड को देखने के लिए वैशाली कब से बेताब थी..
मुठ्ठी में पकड़कर हिलाते हुए वैशाली बोली "मस्त लंड है तेरा यार.. अब इसे मेरे अंदर डालकर कब मुझे स्वर्ग की सैर कराएगा??"
पिंटू: "सब कुछ होगा वैशाली.. जब तू कायदे से मेरी हो जाएगी.. तब वो भी करेंगे.. तब तक ऐसे ही मजे करते है ना.. मुझे भी तेरी ये दमदार छातियों को देखकर बहोत सारी इच्छाएं हो रही है.. पर फिलहाल हमें कंट्रोल रखना पड़ेगा..."
पिंटू की बातें सुनते हुए वैशाली उसके कंधे पर सर रखकर लगभग सो ही गई.. पिंटू का लंड हिलाते हुए भविष्य के सुनहरे सपने देखते देखते वो दूसरे हाथ से जीन्स के अंदर अपनी चूत को सहलाने लगी..
इन सब हरकतों के बीच वो दोनों कविता के शहर कब पहुँच गए पता ही नहीं चला.. वैशाली को कविता के घर छोड़कर पिंटू अपने घर चला गया.. क्योंकी अब वैशाली से नजदीक आने के बाद कविता के सामने जाना नहीं चाहता था.. उसके प्रति प्रेम को वो अब भूलना चाहता था..
पीयूष या मौसम में से किसी ने भी पार्टी के बारे में कविता को कुछ भी नहीं बताया था.. इसलिए वैशाली को आया देख वो चोंक गई..
कविता: "क्या बात है वैशाली.. !! तू यहाँ.. इस वक्त??"
वैशाली दौड़कर कविता से गले मिल गई.. दोनों सखियाँ काफी समय बाद मिल रही थी.. शरारती वैशाली ने पिंटू के साथ थोड़ी देर पहले हुए गरमागरम सेशन की कसर कविता के होंठों को चूमकर निकाल दी.. बगैर पीयूष के साथ के तड़प रही कविता ने भी उसे रिस्पॉन्स दिया.. और वैशाली के दोनों स्तनों को हल्के से दबा दिया.. तो वैशाली ने भी कविता के मस्त कूल्हों पर हाथ फेर लिए...
दोनों लड़कियां संसर्ग के लिए तड़प ही रही थी.. अचानक से दो गरम जिस्मों का मिलन होते ही.. वह देखते ही देखते लेस्बियन सेक्स पर उतर आई.. बिना कुछ कहें ही दोनों एक दूसरे के वस्त्रों को उतारने लगी.. टॉप उतर चुके थे और कमर से ऊपर अर्ध-नग्न सुंदरियाँ एक दूसरे की तड़प को बढ़ा रही थी..
उसी दौरान, फाल्गुनी और मौसम ने दौड़कर घर के अंदर प्रवेश किया.. पीयूष ने दोनों को यह कहकर भेजा था की वो दोनों जाएँ और कविता को सरप्राइज़ दे..
ड्रॉइंग रूम में कविता और वैशाली सिर्फ ब्रा में आवृत स्तनों को हाथों से महसूस कर रही थी.. तभी फाल्गुनी और मौसम को आया हुआ देखकर, वैशाली को तो कुछ फरक नहीं पड़ा.. लेकिन कविता शर्म से पानी पानी हो गई.. वैसे मौसम और फाल्गुनी ने कई बार कविता को टॉप-लेस अवस्था में भी देखा था.. जवान लड़कियां अक्सर साथ कपड़े बदलते वक्त एक दूसरे को इस अवस्था में देखने की आदि होती है.. पर यहाँ सीन अलग था.. मौसम और फाल्गुनी दोनों ने वैशाली और कविता को एक दूसरे के आलिंगन में देखा था.. और वो भी स्तनों से खेलते हुए.. !!
कविता इतनी शरमा गई की मौसम को धमकाते हुए बोली "जरा भी मेनर्स नहीं है इस लड़की मे.. घर में घुसने से पहले डोरबेल तो बजानी चाहिए ना.. !!"
मौसम खिलखिलाकर हँसते हुए बोली "उत्तेजना में किसी बात का ध्यान नहीं रहता.. ये आज समझ में आ गया मुझे.. !! दीदी, तुम मेनर्स की बात कर रही हो तो इतना भी पता नहीं चलता की ऐसा कुछ करने से पहले दरवाजा बंद कर लेना चाहिए.. !!! ये तो अच्छा है की मैं और फाल्गुनी थे.. अगर मम्मी आ गई होती तो??"
वैशाली: "अरे यार.. तुम लोग छोड़ो भी यह सब बातें.. मैं यहाँ तुम लोगों का भाषण सुनने नहीं आई.. 31 दिसंबर की पार्टी के मजे लेने आई हूँ.. बोलो, क्या इंतेजाम किया है तुम लोगों ने?"
कविता: "अरे यार.. मोस्ट वेलकम.. मैं वैसे भी अकेले बोर हो रही थी.. तुम लोगों की बहोत याद आ रही थी.. आज अगर शीला भाभी के साथ होते तो पार्टी के लिए सोचना भी नहीं पड़ता"
मौसम: "वैशाली यार.. बहोत अच्छा किया जो तू आ गई.. आज जैसा तू कहेगी वैसे हम पार्टी मनाएंगे.. बोल क्या करना है? मूवी देखने चले? या फिर किसी अच्छी होटल में??"
वैशाली: "पागल है क्या तू.. एक जवान तलाकशुदा लड़की को इन सर्दियों में क्या चाहिए वो तुझे कैसे बताऊँ.. !! मैं तो अभी इन्जॉय ही कर रही थी.. हमारी पार्टी चल रही थी तभी तुम दोनों, कबाब में हड्डी की तरह टपक पड़ी.. !!"
फाल्गुनी: "वैशाली, जो तू मांग रही है.. वो सिर्फ तुझे नहीं.. हम सब को चाहिए.. !!"
कविता: "हाँ.. सब को जरूरत है.. जिनके पति को बिजनेस से फुरसत नहीं उसे भी चाहिए और जिनका आशिक गुजर चुका हो उसे भी"
सुनकर फाल्गुनी उदास हो गई..
मौसम: "दीदी यार तुम भी ना.. वैशाली इतनी दूर से पार्टी करने आई है और तुम बेकार की बातें करके मूड खराब कर रही हो"
कविता को मन तो बहोत था की वो फाल्गुनी को सुनाएं.. पर फिर उसने सोचा.. ये बातें तो वैशाली के जाने के बाद भी हो सकती थी..
वैशाली की छेड़खानियों के कारण उत्पन्न हुई शारीरिक गर्मी से कविता अब भी उत्तेजित थी.. वैशाली की हरकतों ने कविता के शांत पड़े अरमानों को झकझोर कर जगा दिया था..पिछले काफी सप्ताहों से पीयूष ने एक बार भी कविता को ढंग से संतुष्ट नहीं किया था..
चारों लड़कियां मिलकर बातें कर रही थी तभी पीयूष का फोन आया की काम के चक्कर में उसे बहोत देर हो जाएगी और वो घर नहीं आ पाएगा..
गुस्से से लाल हो गई कविता.. !! उसने फोन काटकर सोफ़े पर लगभग फेंक ही दिया..
मौसम और फाल्गुनी को थोड़े स्नेक्स फ्राई करने का काम सौंपकर, कविता वैशाली का हाथ पकड़कर बेडरूम में खींचकर ले गई.. !!
बेडरूम मे जाते ही कविता ने दरवाजा बंद किया और धक्का देकर वैशाली को बेड पर लैटा दिया.. और छलांग मारकर उसपर सवार हो गई.. वैशाली के दोनों उभारों को पकड़कर जोर जोर से मसलते हुए उसने झुककर उसके होंठों को चूम लिया..
वैशाली तो पहले से ही गरम थी.. उसने कहा "यार कविता.. तू तो आज जबरदस्त मूड में है.. पीयूष ठीक से चोदता नहीं है क्या तुझे?"
कविता: "नहीं यार.. इस बिजनेस के कारण हम दोनों की बीच बहोत दूरी आ गई है.. देख ना.. !! आज ३१ दिसंबर है और उसने फोन कर दिया की नहीं आ पाऊँगा.. उसे खाना खाने का टाइम नहीं है.. तो चोदने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.. आज तो इतना मन कर रहा था की चांस मिलता तो रसिक के सामने ही टांगें खोल देती??"
वैशाली: "कौन रसिक?? वो दूधवाला भैया??"
कविता: "हाँ यार.. तू अब मेरे भी दबा... आह्ह.. तुझे पता नहीं होगा.. वो दूधवाला भैया.. तेरी मम्मी का दूध भी चूसता है और मेरी सास को घोड़ी बनाकर चोदता है.. सोसायटी की आधी बुढ़ियाँ उससे चुदवाती होगी.. मेरी बारी भी आते आते रह गई.. !!"
तब तक दोनों ने अपने सारे कपड़े उतार दीये थे... और दोनों एक दूसरे की चूतों को रगड़ रही थी..
वैशाली के लिए यह जानकारी अचंभित करने वाली थी.. उस मामूली दूध वाले के साथ मम्मी??
वैशाली: "तेरी बारी आते आते रह गई मतलब?? क्या तू भी उसके साथ.. !!!"
कविता: "नहीं यार.. वो तो बिना तेल लगाएं मेरे लेने की फिराक में था.. पर तभी तुम लोग आ गए और मेरी फटते फटते बची"
कविता ने उस रात की पूरी घटना बताई वैशाली को
अपनी कुहनी तक इशारा करते हुए कविता ने कहा "यार इतना बड़ा है उसका.. काला काला.. और तेरी कलाई से भी मोटा.. अगर डाल देता तो मैं वहीं मर जाती.. !!"
कविता की चूत से पानी रिसने लगा था.. और वैशाली पिंटू के लँड को याद करते हुए एकदम गरम हो चुकी थी.. ऊपर से रसिक के मूसल जैसे लंड का वर्णन सुनकर उसकी आग और भड़क गई.. दोनों लड़कियों को स्खलित होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा.. उत्तेजना की बॉर्डर लाइन पर खड़ी दोनों ने.. केवल एक दूसरे की चूत मैं उंगली कर ही स्खलन प्राप्त कर लिया..
शांत होकर दोनों ने कपड़े पहने और बेडरूम के बाहर निकली.. तब दोनों के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे.. उन्हें बाहर आया देख मौसम और फाल्गुनी ने एक दूसरे की तरफ देखा और मुस्कुराने लगी.. क्योंकी अभी थोड़ी देर पहले ही वो दोनों मौसम के बेडरूम में संतुष्ट होकर ही आई थी
वैशाली: "मज़ा आ गया" उसने बिंदास होकर अपनी तृप्ति के भाव प्रदर्शित कर दीये.. वैसे भी उसे फाल्गुनी और मौसम से शर्माने की कोई वजह नहीं थी.. पर मौसम अपनी दीदी की मौजूदगी में शरमा रही थी..
चार चूत मिलकर.. बिना लोड़े के.. ३१ दिसंबर की पार्टी मनाने की तैयारियां कर रही थी.. अंदर बेडरूम में कविता की चूत में उंगली करते हुए ही वैशाली ने अपने और पिंटू के संबंधों के बारे में कविता को बता दिया था.. कविता और पिंटू का पहले से चक्कर था, यह बात तो कविता उसे पहले ही बता चुकी थी.. कविता ने अब वैशाली और पिंटू के संबंधों का मन ही मन स्वीकार कर लिया था