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कहानी अच्छी है या नहीं


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insotter

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124
आप सभी तारीख नोट कर लीजिए 05 sep 2025 से पहले ही अपडेट दे पाऊंगा उसके बाद 05 Oct 2025 तक मैं अपडेट नहीं दे पाऊंगा किसी व्यक्तिगत समय के अनुसार (लगता है अब तो ग्रहण भी लग गया मेरा फ़ोन का डिस्प्ले गया) उसके बाद आपसे मुलाकात होगी तब तक आप लोग अन्य कहानी के मजे लेना। बीच बीच में आऊंगा बस कमेंट देखने की अपडेट की कितनी प्रतीक्षा है आप लोगों में।
 
Last edited:

Danny69

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अध्याय- 4
नए किस्सो का आरम्भ

पिछले अपडेट में आपने देखा कमल का क्या हाल हुआ जब उसकी छोटी चाची ने उसे किस किया और जब उसने लेखा चाची की गांड देख के अपने लंड को हिलाया

अब आगे

इन सब से दूर कहीं किसी खेतों में घुसने से पहले वाले रोड में जहाँ अभी फसल काटने में कुछ दिन बचे है आदमी औरत से

“कहा जा रही हो बहू ”

“कहीं नहीं बाबू जी मैं आपके पास ही आ रही थी खाना लेके”

“क्यों आज कोई बच्चे घर पे नहीं थे क्या आज सभी अपने कॉलेज निकल गए क्या”

“हा सभी बच्चे कॉलेज चले गए पर कमल था घर में मैं उसको ढूंड रही थी पर कहीं दिखा ही नहीं”

जी हा ये आदमी और औरत कोई और नहीं बल्कि हमारे अपने घर के मुखिया रमेश चंद मिश्रा जी और घर की बड़ी बहू चंचल देवी है।कुछ अंश चंचल देवी की जुबानी

ससुर जी-“और बाक़ी छोटी बहुये उनमे से किसी को भेज देती तुमने क्यों आने की तकलीफ़ की नेहा को भेज देती वो तो घर पे ही होगी”

मैं -“हा मैंने भी सोचा पर आपको तो पता ही है मुझे खेत आना कितना पसंद है और वैसे भी नेहा खाना बना रही थी बच्चों के लिए, लेखा तो दुकान के निकल गई देवर जी का फ़ोन आया तो और भगवती सिलाई में व्यस्त थी इसलिए मुझे लगा कि मैं ही चली जाती हूँ क्यों किसी को परेशान करना।

ससुर जी -“हा बहू मुझे पता है तुम्हें खेत आना कितना पसंद है अब आ ही गई हो तो खाना लेके पहुँचो मचान की तरफ़ मैं आता हूँ।”

मैं - “ठीक है बाबू जी”

मैं वहाँ से सीधे खेत की तरफ़ चलने लगी जहाँ मचान बना हुआ था। मचान एक बड़े से पेड़ के बगल में बना हुआ था, जिसपे ऊपर बैठने के लिए बना था दो तरफ़ से खुला हुआ और दो तरफ़ से बंद था। खाना खाने के लिए हम मचान के नीचे की जगह तो इस्तेमाल करते है दोपहर के समय भी वहाँ हवा ठंडी ठंडी चलती है।
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वहाँ पहुँच के मैंने बाबू जी के लिए खाना निकालने लगी थी ताकि वो आए और खाना शुरू कर सके पर उससे पहले मैं प्याज को काटने के लिए कुछ लाना भूल गई थी,

तो मचान के दूसरी तरफ़ पम्प चालू बंद करने के लिए बनाये कमरे में चली गई वहाँ जाके देखने लगी कुछ मिल जाए जिससे मैं ये प्याज काट सकू पर तभी मेरी नज़र ट्यूबवेल कि तरफ़ गई जहाँ मेरे ससुर जी पैर हाथ धो रहे थे उन्होंने अपने पजामे और ऊपर के कपड़े को निकाल दिया था,
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बस चड्डी और बनयान पहन रखे थे और अच्छे से पैर हाथ धोने में व्यस्त थे अचानक मुझे उनके चड्डी में झूलता बड़ा सा कुछ दिखा मैं समझ गई वो बाबू जी का लंड है पर कुछ और सोचती उससे पहले बाबू जी वहाँ से हटने लगे उन्होंने अपने पैर हाथ धो लिये थे फिर अपने गमछे से हाथों और पैरों को पोछने लगे और उसी गमछे को पहन के वापस मचान की तरफ़ जाने लगे।

मैं भी जैसे तैसे जल्दी जल्दी वहाँ रखी हशिए से प्याज को काट के मचान के तरफ़ जाने लगी, वहाँ पहुँच के मैंने अपने ससुर जी को खाना परोसने लगी साथ ही मेरी नज़र उनके गमछे के ऊपर भी बनी हुई थी, मैं मन में सोचने लगी क्या बाबू जी का बाकी समय इतना ही बड़ा झूलता रहता है तो जब उनका खड़ा होता होगा तो कितना बड़ा होता होगा, और अपने विचारों से बाहर आते हुए खाना देने के बाद ही मैंने बाबू जी से कहा

मैं-“बाबू जी खेतों में गेहूं के अलावा उस दूर वाले खेत में क्या क्या लगाएं है मैं ज़्यादा गई नहीं हूँ वहाँ ”

ससुर जी -“बहू वहाँ तो कुछ सब्जिया लगायी है पर अभी सब सब्जी छोटे है”

मैं -“क्या क्या लगाये है बाबू जी”

ससुर जी -“ज्यादातर तो वही लगे है जो मेरी बहुओं और बच्चों को पसंद है”

मैं - “फिर तो वहाँ जाके देखना पड़ेगा बाबू जी शायद अभी मेरे काम की मतलब घर के लिए कुछ सब्ज़ी मिल जाए”

ससुर जी -“हा क्यों नहीं बस ये खाना हो जाए फिर चलता हूँ वहाँ तुमको लेके”

मैं -“ठीक है बाबू जी”

चंचल अपने ही ख्यालों में कुछ सोचते हुए नज़दीक के खेतों में वहाँ जाके गेहू को देख रही थी,
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और यहाँ उसके ससुर जी खाना खाते हुए एक नजर अपनी बड़ी बहू चंचल पे डालते है, साथ ही ये सोच उनके मन में आने लगता है की मेरी बड़ी बहुत कितनी अच्छी है खाना लेके आने के लिए कोई नही था तो ख़ुद लेके आ गई फिर अनायास उसकी नजर अपनी बहू के साड़ी के ऊपर से मटकती हिलती डोलती बड़ी सी गांड पे चली गई, हालाँकि नेहा की गांड को उसने कई बार देखा पर आज बड़ी बहू की गांड, फिर जब चंचल मुड़ी तो नजर उसके चूचो पर पड़ गई,
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रमेश चंद ने अपने दिमाग़ को झटका ये मैं क्या देख रहा हूँ पर ना चाहते हुए नज़र जा ही रही थी खाना खाते हुए उसके मन में तरह तरह के विचार उत्पन्न होने शुरू हों गये जैसे क्या मुझे इस तरह देखना चाहिए, नहीं वो मेरी बहू है, क्या हुआ बहू है तो जब नेहा का देख सकता हूँ तब अपने बाकी बहुओं का क्यों नहीं, थोड़ी देर बाद

चंचल वहाँ से अपने ससुर के पास आते हुए पूछती है,

चंचल-“ बाबू जी खाना खा लिए आपने”

रमेश चंद-“ हा बहू लो बर्तन समेट लो फिर उस खेतों की तरफ़ चलते है जहाँ से तुम्हें शायद कुछ काम की सब्ज़ी मिल जाए”

चंचल- थोड़ी सकपकाई और बोली “ठीक है बाबू जी”

रमेश चंद अपनी बहू को बर्तन समेटते हुए देख रहा था आज पहली बार इतने क़रीब से उसने चंचल की गांड और गदराए हुए बदन को गौर किया था, फिर चंचल ने कहा-“चले बाबू जी”

रमेश चंद-“हा चलो हमे इस रास्ते से होते हुए उस खेत की तरफ़ चलना है बहू” एक खेत की तरफ़ इशारा करते हुए फिर से कहता है “बहू तुम आगे चलो मैं पीछे से रास्ता बताता हूँ”

चंचल ने मन में कुछ सोच कर हँसी और रास्ते से होते हुए अपने ससुर के आगे आगे चलने लगी।

.

.

ठीक जब चंचल अपने ससुर के लिए खाना लेके निकली उससे थोड़े देर पहले घर में चंचल पूछती है लेखा से

चंचल -“लेखा बाबू जी तो आज दोपहर खाने के लिए शायद नहीं आयेंगे उन्होंने माँ जी को बोला था खाना किसी के हाथ भेजा देना, अगर तुम कुछ काम नहीं कर रही खाली होगी तो क्या तुम चली जाओगी”

लेखा -“दीदी मैं चली तो जाऊ मुझे बाबू जी के लिए खाना ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है पर आपके देवर जी ने मुझे अभी दुकान में बुलाया है। उनका फ़ोन आया था”

चंचल -“ठीक है कोई बात नहीं मैं ख़ुद चली जाती हूँ वैसे भी हफ़्ते भर से ज़्यादा दिन हो गए खेत गई भी नहीं हूँ।”

लेखा-“ठीक है दीदी मैं जा रही हूँ हो सकता है मैं आपसे शाम को मिलूँगी।”

चंचल-“ठीक है।”

घर से निकल के लेखा जल्दी जल्दी अपनी किराने की दुकान की तरफ चली जाती है वहाँ पहुँच के देखती है दुकान का शटर हल्का बंद है वो सोच में पड़ जाती है की मुझे बुला के उनके पति दुकान के सामने नहीं दिख रहे और शटर भी आधा बंद है तो उसे ढूँड़ने वो अंदर जाती है,

और थोड़े अंदर जाने के बाद वो देखती है उसका पति एक चेयर में बैठा मोबाइल में कुछ देख रहा है वो ये देख के गुस्सा भी हो जाती है और खुश भी फिर कुछ सोच कर अपने पति से कहती है,

लेखा -“आपको कोई और जगह नहीं मिली ये सब करने के लिए”

पीताम्बर जैसे ही ये आवाज़ सुनता है वो डर की वजह से घबरा जाता है और कहता है,

पीताम्बर-“पागल है क्या, ऐसे अचानक आके कोई डराता है भला ”

दरअसल पीताम्बर वहाँ चेयर में बैठे मोबाइल में पोर्न वीडियो चालू करके एक हाथ में लिए और दूसरे हाथ से अपने 7 इंच के लंड को हिला रहा था थोड़े ही देर हुआ था तभी लेखा ने उसे डरा दिया था।
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लेखा-“डरा नहीं रही मैं आपको बता रही हूँ और वैसे भी आपको क्या जरूरत पड़ गई अपने लंड को इस तरह से हिलाने की” फिर लेखा एक हाथ से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।

पीताम्बर-“आहह तुम्हारे छूते ही मुझे लंड में और भी कड़क महसूस होता है मुझे, मैंने इसलिए तो तुम्हें जल्दी दुकान आने को कहा था”

लेखा-“तो सीधे बोल दिए होते ना, आज तीन दिन तो वैसे भी हो गये मेरी चूत में लंड गए” फिर जोर जोर से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।

पीताम्बर-“तुम्हें तो पता है आहह आराम से मेरी जान दिक्कत मेरे लंड में नहीं मेरे पैरों में है, मैं तुम्हारे ऊपर नहीं आ सकता पर तुम मेरी गोद में बैठ के मजा तो पूरा लेती हो ना।”

लेखा-“ हा हा ठीक है और हिलाना जारी रखती है”

फिर लेखा का पति मोबाइल को बंद करके बगल में रख देता है और लेखा के चूचे को दबाते हुए उसके ब्लाउज को खोलने लगता है, यहाँ लेखा भी पीछे नहीं हट रही थी वो भी अपने पति के पैंट को ऊपर से खोलने लगी जिससे लंड और अच्छे से बाहर दिख सके

पीताम्बर-“आहह मेरी जान पता नहीं क्यों जब भी मैं तुम्हारे चूचे को दबाता हूँ लगता है पूरा दबा के खा जाऊ, इतने साल हो गए पर तुम्हारे चूचे हर बार पहले से और ज़्यादा बड़े लगते है”

और चूचों को मुह में लेके चूसने लगता है, वो एक हाथ में चूचे तो दूसरे में अपने मुह को लगा के दोनों को बदल बदल के चूसने लगता साथ ही अब लेखा को और ज़्यादा मजा आ रहा था अपने पति के द्वारा चूचे चूसने से,

लेखा-“आह और जोर के दबा दबा के चूसिए ना जी आह आह उम्म उम्म” कितना अच्छा लगता है जब आप इसे अपने मुंह से चूसते है थोड़ा जोर लगा के काटिए आहहह मां और एक हाथ से उसके लंड को और तेजी से हिलाने लगती है,

पीताम्बर-“आह मेरी जान लेखा 40 की उमर में आज भी तुम असली मजा देती हो” और एक हाथ ले जाके उसके गांड पे मार देता है।

लेखा चिहुक उठती है अपनी चूची से पति का हाथ और मुह हटा के वो नीचे बैठते हुए उसके लंड को पकड़े हुए कहती है,

लेखा-“मज़ा तो इसने भी बहुत दिया है और आज भी उसी तरह दे रहा है पर रोज लेने को तरसती हूँ।”

और धीरे धीरे लेखा का सर अपने पति के लंड की तरफ़ झुकती चली जाती है, पीताम्बर अपनी बीवी को लंड के नज़दीक जाते देख उससे रुका नही जाता और लंड को एक बार ठुमका मार देता है,

लेखा ये देखकर हस्ती है और अपने पति के आँखो में देखते हुए उसके लंड के सूपाड़े को अपने जीभ से छूने लगती है उसके पति की आह निकल जाती है,

पूरे कमरे में कामवेदना संचार होने लगती है सब चीजों से बेखबर एक पत्नी अपने पति को एक शारीरिक सुख देने जा रही थी पर उन्हें क्या पता था एक तूफ़ान थोड़े देर में यहाँ आने वाला है जिससे इनकी ज़िंदगी बदलने वाली है कुछ दिनों में,

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दोपहर का समय कहीं शोर गुल तेज़ी से हो रहा था, हर कोई एक दूसरे से बात करने में लगे थे, कोई मोबाइल तो कोई किताबे लेके बैठा था, कुछ लड़कियां किसी के बारे में बाते कर रही थी, थोड़ी देर घर की बाते चली फिर किसी ने एक ऐसी बात कहदी जिसे सुन बाकी दोनों लड़कियां उसे खा जाने वाली नजरों से देखने लगी, ये सब हो रहा था गर्ल्स कॉलेज में जहाँ कैंटीन के पास ही गार्डन में बैठे ये तीनो लड़कियाँ पूजा, रिंकी और पिंकी

पूजा-“रिंकी तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो जो भी तुम कह रही मैं इसपे नहीं मानती”

पिंकी-“हा दीदी मुझे भी नहीं लग रहा है ऐसा भी होता होगा”

रिंकी-“रुको तुम लोगो को मैं वो किताब ही दिखा देती हूँ जिसे मैंने आज सुबह ही कमल भैया के कमरे में रखी किताबों के बीच से उठाया था।”

और रिंकी उस किताब के पन्नो को पलटते हुए उसमे छपे कुछ तस्वीरों को दिखाने लगती है, ये वही किताब है जिसे कुछ दिन पहले कमल ने अपने कॉलेज के दोस्तों से अनिमेष को दिखाने के लिए लाया था और अपने रूम में किताबों के बीच रख के छुपाना भूल गया था,

पूजा-“मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कमल भैया ऐसी किताब भी रखते होंगे देखो इसमें कितनी नंगी तस्वीरे है।”

पिंकी-“हाँ दीदी कितनी अजीब अजीब सी है देखो कैसे ये औरत अपनी वो दिखा रही है।”

पूजा और रिंकी एक साथ हसने लगती है और पूजा पिंकी से कहती है,

पूजा-“ये वो क्या होता हैं जो हमारे पास है वो भी उसी के पास है और ये औरत अपनी वो नहीं अपनी चूचे और चूत दिखा रही है”

ये बोलके फिर से पूजा और रिंकी हसने लग जाती है, उनकी ऐसी खुली बाते सुनके पिंकी को थोड़ा अजीब भी लगता है पर कहीं ना कहीं उसके शरीर में एक सनसनाहट सी होने लगती है, जैसे किसी ने उसके बदन को छू लिया हो,

रिंकी-“पर दीदी भैया को ऐसे किताबे पड़ने या देखने की जरूरत क्यों पड़ गई”

पूजा-“बिल्कुल पागल है पिंकी को छोड़ तुझे तो पता होना चाहिए की जब जवानी में किसी चीज की लत लग जाती है तो उसके लिए इंसान क्या नहीं करता है, बस इसी तरह कमल भैया क्या मुझे तो लगता है हमारे सारे भाई एक जैसे ही है और ग़लत आदतें सीख गए है”

रिंकी-“तो क्या भैया लोग वो सब भी” इतना कहके चुप हों जाती है,

पिंकी-“दी आप लोग किस बारे में बात कर रहे मुझे भी थोड़ा अच्छे से बताओ”

पूजा-“हा रिंकी तू सही कह रही है मुझे भी ऐसा ही कुछ लगता है सभी पर हमे नजर रखके देखना होगा जब वो घर पे रहते है”

रिंकी-“पर दीदी ये ग़लत नहीं होगा इस तरह उनपे नजर रखना”

पूजा-“ग़लत बात तो है पर क्या तू ये नहीं जानना चाहती की कमल भैया ये किताब अपने पास क्यूँ लाये और उसे देख के क्या करने वाले है”

रिंकी-“हा ये देखना बड़ा मजे दार होगा की वो इस किताब को देखके क्या करेंगे।”

रिंकी-“दीदी अब चलो बहुत देर से हम यहाँ बैठे है मैं तो क्लास चली बाक़ी बाते आप लोग घर पे कर लेना।”

तीनो बहने अपने अपने क्लास के तरफ़ चल पड़ती है, फिर शाम के जैसे 4 बजते है कॉलेज से ऑटो लेके अपने घर की तरफ़ निकल जाती है,

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धन्यवाद 🙏🏻 दोस्तों आज के लिए इस अपडेट में इतना ही, मिलते है अगले अपडेट में और जानेंगे की क्या होगा चंचल और उसके ससुर रमेश चंद के बीच खेतों की तरफ़, ऐसा कौनसा तूफ़ान आने वाला है लेखा और पीताम्बर के सामने जिससे उनकी ज़िंदगी बदलने वाली है और तीनो बहने मिलके ऐसा क्या करने वाली है घर पहुँच के अपने भाइयों पे नजर रखने के लिए।
Jabardas Update.......
Haaaay daaaaya.....

Kamal ki Maa ko keth ma ana bahut pasand ha.....
Or bahut Nathkhat Vi ha 45 ka umar ma...
To kiya aga jaka Khet ma unki Gili khut ki Jutai hona bali ha .....
Daaaaya raaaaaa......
Ma Sashur Bahu ka Chudai ka Kadardan to nhi hu, par aap ki likhna ki tarika or dono ki Nathkhat bata bahut Kamuk Horny ha...
Jissa ma pura tan tana gaya....
Asa hi Double meaning bata Kahini ma Chudai sa pahala ek Anokha masti create kar deta ha, jo Lund or Chut masalna ko utsahit kar ta ha.....

Lagta ha, Kamal ki Maa ko Buddha Lund pasaand ha....
Or aa Lund aga jaka jarur Kamal ki Maa Chodaga.....
Daaaaya raaaaaa....
Agar Chudai ka bawkt, Kamal ki Maa, Filmo ki tarha chilla ka, bola- Fuck me Daddy, or dono Baap beti jasi roleplay kara, or in dono ki Chudai Kamal dekh la kisi tarha, tab to Kamal ka hal Ani sa vi jada kharab ho jaya ga.....
Daaaaya raaaaaa......

Aap ki Pichwara khol ka Mummy logo ki Mutna ka Scene bahut accha or Kamuk ha....
Agar inma sa koi keth ma Pichwara khol ka hugna bath jaya, to maja hi aa jaya.....
Khas karka Kamal ya Ani ki Maa......


Rekha Aunty or Pitambar Uncle ki Chudai ka Scene vi lajabab ha.....
Or Rekha Aunty ki Chudai ki Josh sa lag raha ha, oh humasha Horny Kamuk rahati ha....
Or unki Rasili Chut, apna ras chorti hi rahati ha...
Sayad unha or Lund cahiya....
Or basa vi ab oh 40+ ha, or Jawan baccho ki Maa.....
To unki Chudai ki bhuk to mitni hi cahiya.....

Or unki Chudai masti ko kahi guna to unka beta Ani na hi badha diya, oh vi unha bina chuya...
Haaaay daaaaya.....
Ani kitna Lucky ha....
Mummy ki Chudai, Mummy ki panty chusta chusta ,Mummy ka samna dekh raha ha....
Oh vi Mummy ko apna Lund dikha ka, Lund masal ta masal ta......
Daaaaya raaaaaa......

Aa Maa Beta ki rista ka accha modh ha....
Is ka aga sayad oh dono Maa Beta Kahini ma or vi ChudaiRas ghol danga.....

Baaaaaaaap raaaaaa....
Kitna Nathkhat Sararati Bahana ha....
Puja, Rinki, Pinki......
Aa tino agar aga chalka Lesbian kara....
To maja hi aa jaya.........

Jabardas Gand fard Update......
Khas karka Rekha Aunty ki....


❤❤❤❤❤❤❤👍👍👍👍👍🤤🤤🤤🤤🤤
 

insotter

👑
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Jabardas Update...

Kamal ka Dada vi to bahut Kamuk Chuddakar Type ka ha...
Apna Bahu ki Gand pa najar dal raha ha...
Or Kamal ki Maa, unki Lund pa...
Daaaaya raaaaaa...


Par Rekha Aunty ki Chudai ka pura Scene da data, to maja aa jata.....
Basa, Dukan ma Chudai....
Rekha Aunty to badhi Chuddakar nikli...
Rat ka vi intajar nhi ho raha ha in dono Pati patni ko.....


Or aa tin bahana, Bhai ki jasushi kar raha ha...
Lagta ha in tin Bahana aga chalka koi gul jarur khilayanga...
Ma to Rinki Pinki Judba Bahen ki soch raha hu...
Dono Jurdba Bahen ki Chudai.....
Daaaaya raaaaaa.....
Kitna Chuddakar Kamuk Scene hoga, jab hoga...


Jabardas Update.....


❤❤❤❤❤❤🤤🤤🤤🤤🤤🤤👍👍👍👍👍
Bilkul mitra Bahut hi jabardast scene hoga
 

insotter

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Kamal ki Maa ko keth ma ana bahut pasand ha.....
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Or unki Rasili Chut, apna ras chorti hi rahati ha...
Sayad unha or Lund cahiya....
Or basa vi ab oh 40+ ha, or Jawan baccho ki Maa.....
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Or unki Chudai masti ko kahi guna to unka beta Ani na hi badha diya, oh vi unha bina chuya...
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Khas karka Rekha Aunty ki....


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Bahut bahut dhanyawad aapki tej tarrar review ne mujhe jaldi se inke bich jaldi kuch karne ko majboor kar diya😁
 

Danny69

Active Member
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अध्याय 6
सोचने वाली रात

रात होते ही सभी एक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, एक एक करके रात के खाने के लिए जिसको जैसे समय मिल रहा था आते जा रहे थे,

सबसे पहले घर की बड़ी बहू चंचल और लेखा ने खाना अपने सास और ससुर, चंचल के पति पंकज, कमल, अनिमेष और रिंकी को दिए, दोनों बहुए खाना बड़े मन से परोस रही थी जिसको जितना चाहिए उतना सभी तो देने लगी और खाते समय,

पंकज -“बाबू जी खेत के काम में कोई परेशानी तो नहीं हो रही ना आपको”

रमेश चंद-“अरे नहीं बेटा अभी तो फसल तैयार भी होने वाले है और इस समय क्या दिक्कत होगी भला”

पंकज -“आप को कोई मदद चाहिए हो तो बताइयेगा”

शामली देवी -“बेटा मैं क्या कह रही थी अभी घर पर सब ठीक है और मौसम भी सही है तो क्यों ना सभी लोग कही घूम आए”

पीताम्बर -“सही कह रही हो माँ फसल कटने शुरू हो उससे पहले घूम आना चाहिए”

पंकज -“जैसा आप लोगो को ठीक लगे पर मुझे कंपनी से छुट्टी शायद ना मिले तो आप लोग चले जाना”

रमेश चंद-“अभी पहले खाना खाओ कल शाम को सोच लेना ये सब”

और अपनी बड़ी बहू चंचल को देखने लगे जो अपने ससुर को देख मुस्कुरा रही थी और इशारे से पूछी जैसे कुछ चाहिए क्या, और उसके ससुर ने ना में अपना सर हिलाया

जहाँ अभी ससुर और बहू नजरे मिला रहे थे वही लेखा पर भी दो लोगो की नजर थी एक कमल और दूसरा उसका ख़ुद का बेटा अनिमेष और लेखा की नजर दोनों में रह रह के जा रही थी, पर कमल और अनिमेष को पता नहीं था उनकी नजरों को कोई पढ़ रही थी

वो रिंकी थी जो खाने के साथ साथ अपने दोनों भाइयो की नजरो को अच्छे से परख रही थी जिसे देख वो अचंभित थी की कैसे कमल अपनी चाची और अनिमेष अपनी माँ को बार बार देख देख मुस्कुरा रहे थे और वहाँ से लेखा भी उनको देख मुस्कुरा रही थीं रिंकी को सक हुआ, कुछ अजीब है आज इनके बीच क्या ये सब पहले भी हुआ करता था इन्ही सब खयालों में खोए रिंकी खाना खाने लगी,

इनके खाने के बाद बाकी बचे लोग भी एक एक करके सभी ने खाना खाया और अपने अपने रूम में चले गए।

लगभग रात के १० बजे देखते है किनके रूम में क्या हो रहा है एक जरूरी बात आजकल कमल और अनिमेष कमल के ही कमरे में सो रहे है और रमल अनिमेष के कमरे में नवीन के साथ ऊपर वाले मंजिल में,

पहले कमरे में जहा रमेश जी अपने पत्नी शामली देवी से कहते है- “क्या हुआ तुम्हें आजकल यहां मन नहीं लग रहा जो घूमने जाने का मन बना रही”

जिसके जवाब देते हुए उसकी पत्नी ने कहा- “कहा से मन लगेगा कुछ लोगो को आजकल खेत से फुरसत जो नहीं मिल रही” रमेश जी को खेत का नाम सुनते ही अचानक आज दोपहर हुए अपने बहू के साथ की घटना याद आ गई जिससे उसके लंड में हल्का हलचल हुआ,

रमेश जी ने कहा- “हा तो तुम ही खेत आ जाती वहा बहुत जगह है मन लगाने को”

और ये बोलते ही हसने लगा, जिसके कहने का मतलब उसकी पत्नी अच्छे से समझ रही थी,

“मन तो घर में भी लग सकता है पर कहा लगायेंगे हम तो पुराने लगने लगे ना” शामली देवी ने रमेश जी पे तंज कसते हुए कहा और बिस्तर में लेटे दूसरे तरफ़ मुड़ गई,

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जिसे देख रमेश जी उनके पास आते हुए कहने लगे- “अब तुमने कहा है तो लो अभी यही मन लगा देते है”

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ये कहते हुए अपने हल्की खड़े लंड को जो पजामे में थी अपनी पत्नी के पीछे जाके साड़ी में बंद गांड से लगाते हुए अपने हाथों को कमर से होते हुए पेट पे ले जाके घूमाने लगे, और उसके कान के नजदीक आके कहने लगे- “रही बात पुराने की वो तो मुझे अच्छे से पता है की आज भी तुम कितनी दम रखती को किसी की हालत पस्त करने में"
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वही बगल के कमरे में बात कुछ आगे बढ़ चुकी थी चंचल अपने पति से चुद रही थी। वो पूरी तरह से बिस्तर पर नंगी थी और उसके पति का लंड जल्दी जल्दी उसकी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था। उसके पति तो बिलकुल चूत के पुजारी है। बिना चूत मारे उनका काम ही नही चलता है। इसलिए आज जैसे ही चंचल अपने सारे काम निपटा के बिस्तर में आई तो पंकज उस पर टूट पड़े थे और उसको बजाने लगा।

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चंचल- “आआआअह्हह्हह…… ईईईईईईई…. ओह्ह्ह्हह्ह…. अई. अई..अई…..अई..मम्मी….” की आवाज निकालने लगी क्यूंकि वो चुद रही थी और बहुत अधिक उत्तेजना में आ गई थी। चंचल ने अपने दोनों हाथो से अपने पति पंकज को पकड़ लिया था उसके नाखूनों की नक्काशी पंकज की पीठ में दिखने लगी थी,

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पंकज चंचल के नंगे चिकने, कामुक और बेहद सेक्सी बदन पर लेटा हुआ साथ ही उसके चूची को भी चूस रहा था और दूसरे हाथ से चूची को दबाते हुए चंचल की चूत को जल्दी जल्दी ठोंक रहा था चंचल को बड़ा मजा आ रहा था,

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आज दोपहर जब से वो खेत से वापस आई थी उसकी चूत गीली ही थी उसके ससुर जी की बातों से कहीं ना कहीं उसकी चूत का ये हाल हुआ था,

हर दिन की तरह आज भी उसकी चूत को उसका लंड उसे मिल रहा था और उसकी आँखे चुदाई के नशे से बंद हुई जा रही थी। उसके पति का लौड़ा उसकी चूत में जल्दी जल्दी किसी ट्रेन की तरह सरक रहा था और चंचल की चूत बजा रहा था।

कुछ देर बाद पंकज और जल्दी जल्दी पेलने लगा

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चंचल- “……मम्मी…मम्मी…..सी सी सी सी.. हा हा हा …..ऊऊऊ ….ऊँ. .ऊँ…ऊँ…उनहूँ उनहूँ..” की कामुक आवाजें निकालने लगी। पति का ८” लंड उसकी चूत को बहुत जल्दी जल्दी चोद रहा था और उसके गुलाबी भोसड़े को फाड़ रहा था। चंचल को बहुत मजा आ रहा था।

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पंकज के अचानक से तेज तेज झटके से चंचल की रसीली चूत में पानी भर के आने लगे और चंचल हवस की आग में ठंडी होने लगी। चंचल ने अपनी चिकनी टांगों को पंकज की कमर में गोल गोल लपेट दिया और उसको कसकर पकड़ अपने सीने से चिपका लिया था। पंकज अपनी पत्नी चंचल की चूत को कमर मटका मटकाकर बजा रहे थे और उसकी चूत को अपने मोटे लौड़े से फाड़ रहे थे।

हवस की माँग में चंचल ज़्यादा देर सह ना सही और उसकी चूत ने आत्मसमर्पण कर दिया उसने अपने पैरों और हाथों को तब तक बाँधे रखा जब तक उसकी चूत ने पानी का एक एक कतरा बहा ना दिया और पंकज के लंड को निचोड़ ना दिया।

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अनिमेष -“भाई अब बता भी दे क्या दिखाने वाला था मुझे”

कमल -“यार वही तो देख रहा हूँ पता नहीं कहा रख दिया मैंने”

अनिमेष -“आप बताओ तो सही है क्या! पता चले तो मैं भी खोजता हूँ”

कमल डर के साथ सोच में खोया हुआ “आख़िर गया तो गया कहा, कहीं किसी के हाथ लग गया फिर तो मेरी खैर नहीं” फिर अनिमेष से कहता है -“यार अनी वो एक किताब थी जिसमें कुछ नंगी तस्वीरें थी जिसे मैं कॉलेज से ख़ास तुझे दिखाने के लिए अपने दोस्तों से माँग के लाया था पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने”

अनिमेष -“भाई क्या बात कर रहा है वैसी किताब तू यहाँ लेके आया था और अब कहीं रख के भूल गया वाह मेरे भाई साहब, अगर घर के किसी भी सदस्य ने वो गलती से भी देख लिया ना तो हम दोनों की खैर नहीं है”

कमल -“तू बकचोदी बंद कर और मेरे साथ खोज थोड़ा”

दोनों भाई मिलके उस किताब को बहुत ढूँढे पर उनके कहीं नहीं मिली, मिलेगी भी कहा से क्यों की उस किताब को रिंकी ने चुपके से ले लिया था। दोनों भाई थक हार के बिस्तर पर लेट जाते है और आगे का सोच के डरने लगते है तभी कमल के मोबाइल में कुछ मेसेज आता है जो कॉलेज ग्रुप का था जिसमे किसी लड़के ने एक अश्लील वीडियो भेजा था और कमल खोल के देखता है जिसे अनिमेष ने भी देख लिया,

अनिमेष -“तेरे ही मजे है साले मेरे दोस्त कुछ नहीं भेजते”

और दोनों मिलके वो वीडियो देखने लगते है जिसमे एक कम उम्र का लड़का एक अधिक उम्र की गदराई हुई बड़ी सी चूची और गांड वाली औरत को पीछे से चोद रहा होता है जिसको देख कर दोनों भाई के मन में ख्याल आने लगते है,

अनिमेष मन में- “इस औरत का शरीर तो बिल्कुल माँ के समान लग रही है बिल्कुल वैसी ही गोरी गोरी बड़ी और मोटी गांड”

कमल मन में- “यार इसकी गांड तो बिल्कुल रेखा चाची के जैसे ही है बिल्कुल आज ही की तरह”

और दोनों भाई इशारों में कुछ बोल कर एक साथ अपने पेंट और चड्डी को अपने टाँगों से सरका देते है ताकि आराम से वो दोनों वीडियो देखते हुए अपने लंड मुठिया सके,

कमल - “आह अनी देख रहा क्या गांड है इसकी, बिल्कुल....” और चुप हो जाता है

अनिमेष -“हाँ आह देख रहा भाई गोल गोल बड़ी गांड, आपको किसी के जैसे दिख रही क्या जो बिल्कुल बोलके चुप हो गए”

कमल हाथो से लंड को मसलते हुए -“लग तो रहा यार पर कह नहीं सकता बस उसे याद करके हिला सकता हूँ”

अनिमेष थोड़ा ज़ोर से अपने लंड पे जोर लगाते हुए -“अब बोल भी दो भाई इतने दिन से तो सब बता रहे फिर आज क्यों नहीं कह रहे”

कमल -“तू नहीं समझेगा अनी रहने दे फिर कभी बताऊंगा बस ये समझ ले इस औरत की गांड किसी आसपास रहने वाली के जैसी है”

अनिमेष मन में सोचता है कहीं ये भी वही तो नहीं सोच रहा जो मैं सोच रहा, मैं तो अपनी माँ के बारे में सोच रहा कहीं ये भी घर के किसी औरत के बारे में तो नहीं सोच रहा,

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ये ख्याल आते ही एक तेज फ़व्वारा उसके लंड से निकल पड़ा और शांत होके बिस्तर में पस्त पड़ गया,

वही कमल भी अपनी चाची रेखा की गांड के बारे में सोच के अपने हाथो तो लंड पे तेजी से चलाने लगा, उसने देखा अनिमेष ने धार छोड़ दिया पर वो अभी भी हिलाये जा रहा रहा था उसे उसकी चाची नंगी नजर आने लगी थी,

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उसकी कल्पनाओं का सीमा बढ़ रहा था, रेखा के साथ साथ उसे नेहा भी नंगी नजर आने लगी थी, दोनों के जिस्मों से खेलने की बात सोच कर ही उसके लण्ङ में अकड़न बढ़ती जा रही थी,
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लेखा अपने सारे काम से निवृत्त होकर अपने कमरे में बिस्तर ठीक कर रही थी जहा पीताम्बर उससे कहता है-“क्या हुआ लेखा दुकान से वापस आया हूँ, तब से देख रहा हूँ तू कुछ सोच में डूबी हो, कुछ हुआ है क्या”

लेखा हड़बड़ाते हुए-“नहीं तो मैं कहाँ कुछ सोच रही हूँ, आपको ऐसा क्यों लग रहा है”

पीताम्बर-“दो बार मैंने कुछ पूछा तुमने जवाब नहीं दिया”

लेखा-“क्या पूछे फिर से पूछ लो”

पीताम्बर-“यही की तुम दोपहर में दुकान से जल्दी जल्दी क्यों निकल आई, मैं तुम्हें रुकने के लिए बोलता, तुम उससे पहले ही निकल पड़ी और तुमने खाने का डब्बा भी छोड़ आई”

लेखा अचानक हुए ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए बिल्कुल तैयार थी-“हा वो दीदी ने आज कुछ काम बताया था वो करना भूल गई थीं उसे ही पूरा करने के लिए वहाँ से जल्दी निकल आई”

पीताम्बर-“फिर हुआ काम” कहते हुए अपने कपड़े बदलने लगा

लेखा-“हा सब हो गया” कहकर वह भी अपनी साड़ी निकालने लगी, साड़ी निकालने के बाद नाइटी पहनने बाथरूम में चली गई,

वहाँ पहुँचते ही उसने अपनी ब्रा और चड्डी को निकालने लगी फिर उसे अपने और अनिमेष की बाते याद आने लगी थीं और ख्याल आने लगे की “क्या अनी ने आज सब कुछ शुरू से देखा होगा या आख़िर में आया होगा, वो तो आज मुझे पूरी नंगी देख अपना लंड भी हिला रहा था, कितना बड़ा लग रहा था उसका लंड, थोड़ा बड़ा था उसके पापा से और मोटा भी”

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और अपने हाथों को ना जाने क्यों बड़े बड़े चुचियों पे ले जाने लगती है, “आह अनी तूने तो आज फिर से मेरे ये चूची देख लिया बेटा” “हे भगवान मैं ये क्यो सोच रही और मेरे हाथ क्यों अपने आप चुचियो पे चल रहे” फिर धीरे से हाथ को चूत की तरफ़ ले जाने लगती है “नहीं ये सही नहीं है वो मेरा बेटा है” और फिर पैर हाथ को पानी से धोके कपड़े से पोछने के बाद अपनी नाइटी पहन कर बाथरूम बाहर से बाहर आ जाती है,

जहाँ अपने पति को बिस्तर में लेटे देख बल्ब को बुझा देती है और उसके बगल में जाके लेट जाती है, वो छत की तरफ़ देख अपने पति से कहती है-“सो गए क्या”

पीताम्बर-“थकान से नींद आ रही है तुम्हें नींद नहीं आ रही क्या”

लेखा-“कुछ नहीं आप सो जाइये मुझे थोड़े देर में आ जाएगी”

लेखा फिर से आज दिनभर की घटना को याद करने लग जाती है की कैसे आज उसने अपने पति के अलावा दो और अलग लंड देखे जो उसके पति से थोड़े बड़े और मोटे थे, दोपहर में अनी का लंड और शाम को कमल का, जवान लंड को याद करके लेखा की चूत फिर से पानीयने लगी थी,

उसे कुछ करने की इच्छा हो रही थी पर ये सोच के की वो उनके अपने परिवार के है और उनके लिए ग़लत सोचना सही नहीं है ख़ासकर जब वो दोनों घर के बेटे हो।

लेखा डर भी रही थी अपने बेटे के लिए उसका इस तरह किसी की चुदाई देखने का मतलब था की अब वो ये सब में दिलचस्पी लेने लगेगा और अब वो किसी की चुदाई के लिए उसे अपनी तरफ़ करने लगेगा, ये उम्र ही ऐसी है जोश पूरा अपने चरम पर होता है और जहाँ हवस की बात आती है इंसान कुछ भी कर जाता है, कहीं वो किसी के साथ ग़लत ना कर दे,

लेखा मन में -“क्या मुझे उससे इस बारे में बात करनी चाहिए, क्या ये सही रहेगा” बहुत सोच विचार कर अपनी दिमाग़ में कुछ सोचने के बाद-“हा बिल्कुल वो मेरा बेटा है और मैं नहीं चाहती वो किसी ग़लत दिशा में जाए, मुझे किसी दिन समय निकाल के उससे बात करनी ही होगी” इन्हीं सब ख्यालों में खोई लेखा भी अपने पति से चिपक के साथ में सो जाती है,
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ऊपर कमरे में तीनो बहने खाने के बाद थोड़ी पढ़ाई करी और सोने से पहले गप्पे मार रही थी की तभी,

पूजा -“पिंकी आज पानी का बॉटल नहीं भरी क्या”

पिंकी -“माफ करना दी मैं अभी लेके आती हूँ”

रिंकी कुछ सोच के -“तू रुक मैं लेके आती हूँ” और पानी के दोनों बॉटल लेके बाहर आ जाती है,

जहाँ उसे उसके छोटे चाचा के कमरे में आ रही आवाज़ सुनाई देती है जिससे उसे पता चल जाता है लगभग रोज़ की तरह आज भी उनके बीच कुछ बातों को लेके बहस हो रही थी और मन में सोचती हुई आगे बड़ती है आज चाचू फिर पीके आए है पता नहीं कब सब ठीक होगा,

रसोई में पहुँच कर फ्रिज खोल के देखती है पर वहाँ तो आज सभी ने पानी ले लिया था और कहती है -“ ओहो क्या मुसीबत है मतलब अब नीचे जाना ही पड़ेगा” और अचानक मन में एक ख्याल आता है क्यों ना कमल और अनिमेष को देखा जाए रात १०:३० में क्या कर रहे है और तेजी से नीचे जाने लगती है,

जहाँ बरामदे का लाइट बंद हो चुका था हल्की रोशनी वाली बल्ब जल चुकी थी रसोई में पानी की बॉटल को रख देती है,
और चुपके से कमल के कमरे के बाहर पहुँच कर जहाँ अभी भी उसके कमरे की लाइट जल रही थी आवाज सुनना चाह रही थी पर उसे आवाज से कुछ ख़ास समझ नही आया और उसकी दोनों भाई को देखने की ललक बड़ रही थी,

वो किसी तरह खिड़की को खिसका के अंदर का नजारा देखना चाह रही थी और उसको सफलता भी मिल गई पर रिंकी को क्या पता ये वही समय था जब उसकी आँखो के सामने वो नजारा दिखा की अनिमेष ने लंड से अपना पानी निकाला और बिस्तर में ही बगल में पस्त पड़ गया, पर कमल अभी भी हिलाए जा रहा था,

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रिंकी सामने का नजारा देख के हक्की बक्की हुई और मन में कुछ सोचने लगी कि "क्या उसने सही किया यहाँ आके"

वो लगातार बस कमल को लंड हिलाते देख रही थी उसके ८” के लंड पर अपने भाई के हाथो को हिलते देख उसके शरीर में एक अजीब सी एठन सी उठ रही थी जिसे सिर्फ वही अहसास कर सकती थी,

वो डर भी रही थी जिसकी वजह से बार बार बरामदे में भी देख रही थी कि कही कोई उसे ऐसा करते देख न ले,

रिंकी की चूत में हलचल मचनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि रिंकी ने कई लंड यहाँ वहाँ देखे थे पर ये पहली बार था जब आज रिंकी ने अपने ही परिवार के किसी सदस्य को इस तरह देखा था,

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वो ना चाहते हुए अपने एक हाथ से चूचे को अनुप्रेषित करने लग गई और धीरे से दूसरे हाथ को लेगिस के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगी,

अब रिंकी को अपने भाई की आवाज भी थोड़ी सुनाई दे रही थी, “ओह क्या गांड है यार बिल्कुल आज जैसे मैने देखा था वैसी ही, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही गांड मार रहा हूँ काश इस लड़के की जगह मैं होता"

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रिंकी उसकी बातों को सुन बड़ी अचंभित थी कि आज कमल ने किसकी खुली गांड देख ली, क्या वो घर की ही बात कर रहा या बाहर किसी और की,

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यहाँ रिंकी सोच ही रही थी की वहाँ कमल ने अपने लंड से पानी निकाल दिया, जिसके बाद वो भी पस्त पड़ गया और ऐसे बेड में लेता रहा,

अब रिंकी धीरे से वहाँ से निकल रसोई से पानी लेके अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी जहाँ पहुँचते ही पूजा ने उससे कहा-“कहा रह गई थी इतने देर मैं तुझे ऊपर भी देखी पर तू कहीं नहीं मिली”

रिंकी-“दी ऊपर वाले फ्रिज में पानी नहीं था तो नीचे लेने चली गई थी”

फिर तीनो बहने सोने की तैयारी में लग जाते है, पर रिंकी की नींद तो गायब थी वो सोच रही थी अभी जो उसने देखना क्या उसे पूजा दी और पिंकी को बताना चाहिए, क्या मुझे सच में बताना चाहिए की आज मैंने कमल भैया को मुठ मारते देखा और बहुत सी बातों को मन में सोचते हुए वो भी कब नींद की आगोश में चली गई उसे ख़ुद पता नहीं चला,

मित्रों आज के लिए इतना ही जैसा कि आपने देखा रात होते ही सभी कही का कही, किसी न किसी के ख्यालों में खोने लगे थे,

अब कल का नया दिन सभी को कहा लेके जाएगा कौन आगे बढ़ेगा कौन पीछे हटेगा ये सब देखना दिलचस्प होगा।

मिलते है अगले अध्याय में तब तक के लिए धन्यवाद 🙏
Haaaay daaaaya........
Kiya mast Chudai Scene ha......

Chut ka Pujari, Pankaj, Kamal ka Papa na, Kamal ki Maa ki fati hu Chudi Chut ka to full khila diya.....
Or apni Papa Jasa Sashur sa Garam hoka, Kamal ki Garam Gadrai Maa, tanga khol ka kiya jabardas masti ma apni Pati sa Chudba rahi ha...
Daaaaya raaaaaa.....
Haaaay Mummy ji ki Gulabi Bhoswra, aa to 1000 kuwari Chut sa vi jada piyari ha.....
Par lagta ha, Kamal ka Papa, Gand ka Diwana nhi ha, nhi to kon apni Gadrai Gaay Bibi ki Gand mara bina raha sakta ha...



Aaa dono Bhai to bahut mast ha......
Daaaaya raaaaaa....
Kasa hila raha ha apni Maa Chachi ka upar...
Aa Scene vi bahut Kamuk ha.......
In dono sa hi Rekha Aunty ko chudba dana cahiya oh vi eksath....
Taki Rekha Rasili ki Chut ka bhuk thoda sant ho jaya.......


Haaaay....
Aa Rekha kamini apni Chuchi daba raha ha.....
Jis Chuchi ka Dudh pila ka,apna beta ka Lund ko itna badha kiya, aaj ohi beta unki Chudai dekh ka hila raha ha, or beta saman Kamal vi Pichkari mar rha ha, unki Pichkari chorti Nangi Gand ko dekh ka.....
To unki vi kiya kasur ha, jab do do Jawan Lund, unka Gand da diwana ban jaya....


Aa Nathkhat Sararati Rinki....
Aa apna Bhai ko, Bahen Chod bana ka managi...
Jab dekho apni Bhai oopa najar rakh rahi ha...
Asi Bahen mil jaya to Girlfriend, Bibi ki kiya jarurat ha......


Jabardas Update.....

❤❤❤❤❤❤❤❤👍👍👍👍👍👍🤤🤤🤤🤤🤤
 

Danny69

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Bahut bahut dhanyawad aapki tej tarrar review ne mujhe jaldi se inke bich jaldi kuch karne ko majboor kar diya😁
Koi jaldi nhi ha Insotter ji.....
Aap aram sa, Seduced kar kar ka, inki Chudai kariya.....
Slowly Slowly, Pura Seduced karka....
Kuki Gharalu Aurat ha na savi ka savi, to inka jabardas Seduction hona jaruri ha, Chudai sa pahala.....
Taki pura feeling ayi Gharalu Mummy ki.....
Nhi to laga ga ki koi Randi chud rhi ha.....
Daaaaya raaaaaa.....


❤❤❤❤❤❤👍👍👍👍👍👍🤤🤤🤤🤤🤤
 

Danny69

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अध्याय-7
अनकही शुरुवात

कुछ दिन तक सभी अपने काम में व्यस्त रहने के बाद शुक्रवार के दिन शाम को चाय पीते समय ये फैसला हुआ की कहा कहा घूमने जाना है और कौन कौन साथ चलेंगे,

पीताम्बर-“तो ठीक है नैनीताल जाना तो पक्का हुआ, अब ये बताओ किस किस को जाने की इक्षा है माँ आप तो जा ही रही और बाक़ी लोग भी बताओ भई”

चंचल-“मेरा जाना तो मुश्किल है माँ जी जा रही है, तो घर में किसी को तो रहना पड़ेगा और वैसे भी आपके भैया और बाबू जी भी तो यही है, तो हमारा रहने दो”

पीताम्बर-“ठीक है भाभी जैसा आप कहे, लेखा तुम भगवती और नेहा से भी पूछ आओ ना”

लेखा ठीक है बोलके वहाँ से निकल जाती है, तीनो लड़किया कॉलेज से वापस आके चाय पी रही थी और आपस में धीरे धीरे कुछ बाते कर रही थी जैसे उनके मन में जाने को लेकर कुछ अलग ही योजना हो,

पीताम्बर-“पूजा तुम लोगों का क्या है किसको जाना है और किसको नहीं अभी बताओं”

पूजा-“पापा मैं और पिंकी जायेंगी रिंकी के कॉलेज के कुछ काम बाक़ी है तो वो नहीं जाएगी” और तीनो बहने वहाँ से उठके बाहर की ओर चल पड़ती है इसी समय दरवाज़े पे रिंकी और कमल की नजरे एक दूसरे से मिलती है और रिंकी उसे देख मुस्कुरा के चलते बनती है।

पीताम्बर के पीछे से लेखा आते हुए अपने पति से कहती है-“मैं भी यही रहूँगी दीदी के साथ बाक़ी भगवती और नेहा तो जाने के लिए हा बोल रही है”

पीताम्बर-“तुम्हें क्या हुआ तुम क्यों नहीं चल रही बस एक ही हफ़्ते की तो बात है”

लेखा- अपने मन में कुछ सोच विचार करके “अब आप लोग एक हफ़्ते के लिए जा रहे तो किसी को दुकान में तो रहना पड़ेगा ना, पता नहीं अनी को भी जाना हुआ फिर तो इतने दिन बंद रखना सही नहीं”

पीताम्बर-“ठीक है जैसा तुम्हें सही लगे करो”

फिर कमल और अनिमेष भी अपने विचारो से बाहर आते हुए अनी अपने पापा से कहता है-“पापा कहा जाने का फैसला हुआ फिर और कौन कौन जाने को तैयार हो गए” अनिमेष बस ये जानना चाह रहा था की उसकी माँ ने क्या फैसला किया है।

पीताम्बर-“नैनीताल जाने का फैसला किया है, अभी तो बस मैं, माँ, तुम्हारी दोनों चाची, पूजा और पिंकी बाक़ी तुम दोनों भी बताओ जाने का क्या विचार है”

कमल और अनिमेष एक दूसरे की ओर देखते हुए इशारे से अपने सर हिला के, हा बता भाई तेरा क्या कहना है चले या नहीं, फिर दोनों ही अनायास एक साथ ना में सर हिला देते है और बस मुस्कुराते हुए बगल में बैठ जाते है,

कमल-“चाची चाय चाहिए” लेखा ये सुनते ही हा में सर हिलाते हुए वहाँ से रसोई की तरफ़ निकल जाती है बस पीछे छोड़ जाती है अपनी गांड की परछाई लड़को के दिमाग़ में,

पीताम्बर-“अनी अभी नवीन और रमल कहा है” लेखा चाय लेके आते हुए कहती है “वो दोनों तो अपने रूम में मस्ती कर रहे है।” “अनी जा उनको बुला ला” पीताम्बर ने तुरंत ही कहा और चाय की अंतिम घुट ख़त्म की और चाय की कप को बगल में रख दिया,

अब नवीन और रमल को पीताम्बर ने वही बताया और पूछा जो सभी से पूछा गया और वो दोनों तो जाने के लिए कुछ ज़्यादा ही उत्साहित हो गए,

पीताम्बर-“ठीक है फिर मैं, माँ, पूजा, रिंकी, नवीन, रमल, भगवती, नेहा, पामराज और अनुज का जाना पक्का हुआ, सभी तैयार हो जाना समान के साथ ही हम सब कल सुबह 9️⃣ बजे यहाँ से निकलेंगे, एक हफ़्ते का सफ़र रहेगा तो सभी उसी तरह समान ले लेना” फिर सभी उठके वहाँ से जाने लगे,

अगले दिन सुबह सभी नाश्ता करके घर के सामने इकट्ठा होने लगे, एक दूसरे को जल्दी नीचे आने के लिए कहने लगे, जब सभी एक साथ खड़े हुए तो पीताम्बर ने सभी जाने वालो को आख़िरी भाषण देना शुरू किया,

पीताम्बर-“आज हम सब यहाँ नैनीताल की यात्रा पर जाने से पहले इकट्ठा हुए हैं। यह एक रोमांचक अवसर है, और मैं आप सभी को इस यात्रा के लिए शुभकामनाएं देना चाहता हूं।

यह यात्रा हमें नैनीताल के बारे में कुछ सकारात्मक बातें, जैसे "सुंदर दृश्य", "ऐतिहासिक स्थान", "सांस्कृतिक अनुभव" का आनंद लेने का अवसर देगी। मैं चाहता हूं कि हम सब यात्रा के दौरान कुछ खास बातें, जैसे "खुले दिमाग से" या "हर पल का आनंद लेते हुए" का अनुभव करें।

यात्रा के दौरान, हमें कुछ सावधानियां, जैसे "सुरक्षित रहें", "एक दूसरे का ध्यान रखें", "स्थानीय संस्कृति का सम्मान करें" का भी ध्यान रखना होगा।

मुझे विश्वास है कि यह यात्रा हम सभी के लिए यादगार और आनंददायक होगी। तो चलिए, इस यात्रा का भरपूर आनंद लेते हैं!”

इसके बाद सभी समान के बैग्स को नवीन और रमल ने कार के ऊपर रखना शुरू कर दिया, बड़े बैग्स को गाड़ी के ऊपर रखा गया एक साथ बांध के और कुछ ज़रूरी सामान, पानी और खाने के थैलियों को नीचे रख दिया,

फिर गाड़ियो में बैठने से पहले सभी एक दूसरे को अलविदा कहने लगे और देखते ही देखते नैनीताल घूमने जाने वालो की गाड़ी निकल गई, नोट- यहाँ से एक हफ़्ते इन गाड़ी वाले 🔟 लोगो के साथ जो भी होगा उनका अलग अध्याय बनेगा।
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बाक़ी लोग घर के अंदर अपने अपने कमरे में कार्यो को पूरा करने के लिए तैयारी के लिए जाने लगे, रमेश जी की पत्नी तो घूमने चली गई थी अपने मन में एक उत्साह लेके जैसे आज से कुछ नया होने वाला हो,

और अब वो भी खेत की तरफ़ जाने ही वाले थे की तभी चंचल दोपहर के खाने के लिए पूछने उनके कमरे में जाने ही वाली थी की उसी समय उसके ससुर रमेश जी भी अचानक बाहर निकल आए और दोनों आपस में टकरा गए जिससे चंचल नीचे गिरते हुए बची क्यूंकि रमेश जी ने उनको अपने हाथ से पकड़ लिया,

चंचल का दिल तो अचानक हुए इस घटना से मानो जोरो से धकधक करने लगा था उसे कुछ देर तक तो इस चीज का आभास ही नहीं रहा की उसके ससुर ने कसके उसे अपने दोनों हाथों से पकड़ रखा है,

लेकिन रमेश जी पूरा अहसास हो रहा था अपनी बहू के गदराए हुए बदन की, उसकी ख़ुशबू वो अपने जहन में उतार ही रहा था की एक आवाज़ ने रमेश को अपने होश में ला दिया, चंचल अलग होते हुए कहने लगी,

चंचल-“शुक्रिया बाबू जी आपने तो मुझे गिरने से बचा ही लिया आप नहीं पकड़ते तो मैं तो गिर ही जाती” और अपनी साड़ी के पल्लू को जल्दी से ठीक करने लगी,

रमेश-“अरे नहीं नहीं बहू तुम भी ना ये सब कहने की कोई जरूरत नहीं, ये बताओ तुम इतनी जल्दी में काहे अंदर आ रही थी”

चंचल-“मैं ये पूछने आ रही थी दोपहर में आप खाने आयेंगे या किसी के हाथ भेजा दु”

रमेश- थोड़ा सोच के कुछ पूछते हुए “कौन कौन है घर पे”

चंचल-“कमल के पापा तो कंपनी के लिए ड्यूटी निकल रहे और बच्चे तो शायद कॉलेज जाने वाले है बची लेखा वो तो दुकान के लिए निकल भी गई दोपहर में आने का बोल के”

रमेश-“और बहू तुम क्या करोगी घर पे अकेले, तुम्ही ले आना फिर खाना मेरे लिए और शायद तुम्हें आज वो सब्जी भी मिल जाए जिसे तुमने उस दिन छोटा कहा था” और चंचल की तरफ़ देख हँसने लगे,

चंचल को आज से पहले इतनी शर्म कभी नहीं आई थी और शर्माते हुए कहने लगी-“ठीक है बाबू जी जैसा आप कहें” और तुरंत रसोई के तरफ़ भाग खड़ी हुई, जहाँ पहुँच के उसे खिड़की से ससुर खेतों की तरफ़ जाते दिखाई दी और उस दिन की बाते याद आ जाती हैं, उसके दिमाग़ में वो दृश्य भी आ जाता है जब उसने अपने ससुर का चड्ढी के अंदर से उसका बड़ा सा लंड देखा था,

चंचल अपने पति के लिए टिफिन तैयार कर रही थी पर उसका दिमाग़ तो कहीं और ही था थोड़े देर पहले हुए घटना को वो आने वाले समय से जोड़ रही थी की क्या होगा जब वो अपने ही घर में अपने पति के अलावा किसी और से संबंध बना बैठी?

पंकज ने चंचल को आवाज दी और अपना खाना लेके कंपनी काम के लिए निकल गया, निकलते समय उसके फ़ोन में किसी का कॉल आया था वो बात करते हुए अपनी गाड़ी में टिफिन रख ड्यूटी के लिए निकल गया,

और चंचल भी अपने कमरे में नहाने चली गई जहाँ सभी कपड़े धोने के बाद जैसे ही नहाने के लिए बैठती है उसकी नजर उसके बदन पे जाती है और उसके मन में कुछ अजीब सी बेचैनी आने लगती है उसका शरीर एठने लगता है जैसे बहुत दिनों से शरीर पर कुछ किया ही ना हो,

उसके दोनों हाथ अपने ही आप उसके एक एक चुचो पर चली जाती है और आँखे बंद कर कुछ अजीब दृश्य को देखते हुए धीरे धीरे उसे मसलने लगती है उसके चूचे अभी भी बड़े ही सख्त थे जो अब और ज़्यादा सख्त होने लगती है उसके मुंह से एक आह निकल जाती है,
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फिर चंचल अपनी एक हाथ को धीरे से नीचे की तरफ़ बड़ाने लगती है और एक जगह आके रुक जाती है जहाँ पहुंचना हर एक मर्द की चाहत होती है वो ऊपर से ही उसे सहलाने लगती है
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और वो अपनी मस्ती में नहाने लग जाती है,
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ऊपर कमरे में कमल बिस्तर पर बैठा अपना फ़ोन चला था और अनिमेष नहाने के लिए बाथरूम में जा चुका था की तभी वहाँ पे रिंकी आ गई और उससे बात करने लगी,

रिंकी-“भाई आज आप कॉलेज जाएँगे क्या?”

कमल- मोबाइल बगल में रखते हुए “हा जाऊँगा पर तू क्यों पूछ रही”

रिंकी-“वो आज थोड़ा काम से मार्केट जाना था पूजा और पिंकी भी नहीं है तो आप चल लेते मेरे साथ”

कमल-“ठीक है चल लेंगे पर जाना कब है” रिंकी से पूछा

रिंकी-“शाम को कॉलेज से आते हुए गए तो देर हो जाएगी आप दोपहर में आ सकते हो क्या मेरे कॉलेज के बाहर” रिंकी ने फिर पूछा

कमल-“मैं तुझे फ़ोन करता हूँ कोई क्लास वैगरा नहीं रहा तो या कुछ और भी रहा तो”

रिंकी-“ठीक है आप कॉल करना नहीं तो मैं ही पूछ लुंगी और एक बात मुझे आपसे कुछ पूछना भी था वो मैं आपसे वही अकेले में पूछ लुंगी”

कमल-“अभी पूछ लेना ऐसी कौन सी बात है”

रिंकी-“नहीं कुछ ऐसी है जो मैं आपसे वही आते समय पूछूँगी अब चलती हूँ मैं दोपहर में मिलूँगी”

कमल थोड़ा सोच में पड़ जाता है ऐसी कौनसी बात होगी जो वो मुझे अभी नहीं अकेले में वही पूछेगी, उसके दिमाग में एक डर सा आने लगा कहीं उसने मुझे कुछ करते या कहीं कुछ देखते तो नहीं देख लिया ये थोड़ा डरावना हो सकता मेरे लिए,

अनिमेष जैसे ही नहा के आया कमल ने उससे पूछा “चल रहा ना कॉलेज की फिर कुछ और प्लान है अपने दोस्तों के साथ”

अनिमेष ने कपड़े पहनते हुए जवाब दिया “हा हा चल रहा भाई आज कौन सा मुझे कोई काम होगा घर पे”

थोड़ी देर में नीचे चंचल दोनो भाई को और रिंकी को नास्ता दे रही थी जहाँ मस्ती करते हुए चंचल ने कमल से पूछा आज भी कॉलेज जा रहे तुम लोग या ऐसे ही घूमने जा रहे, पता नहीं तुम लोग पड़ाई कैसे चल रही होगी,

फिर तुरंत ही रिंकी ने कहा “हम कॉलेज ही जा रहे बड़ी माँ पर दोपहर में मुझे मार्केट जाना है तो मैंने कमल भैया को साथ जाने के लिए कहा है”

चंचल-“ठीक है कमल रिंकी को ले जाना मार्केट और शाम को लेट नहीं करना”

तीनों नाश्ता करके चंचल को अलविदा कहके बस लेने चौक पे पहुँच गए और कॉलेज के लिए निकल पड़े, घर पे चंचल भी नास्ता करके अपने कमरे में आराम करने लगी।
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वहाँ लेखा भी अब दुकान पर झाड़ू और पोछा लगा चुकी थी फिर पूजा पाठ करके आराम से दुकान में बैठी अपने पति को याद करने लगी थी वो उसे कॉल लगा रहा थी पर उसका फ़ोन नहीं लग रहा था फिर उसे कल अपनी पति की बात याद आई,

एक थोक व्यापारी कुछ सामान छोड़ने आयेगा और उसे कुछ पैसे भी देने थे पर दुकान में इतना नगद ना होने के कारण पीताम्बर ने लेखा से कहा था अनि को बोलके शहर के एटीएम से कुछ नगद निकाल लाए,

लेखा ने तुरंत अनिमेष को फ़ोन लगाया,

अनिमेष-“हा माँ बताओ क्या हुआ”

लेखा-“अनी तू कहा है अभी”

अनिमेष-“अभी तो बस में बैठा ही था माँ”

लेखा-“तेरे पापा ने कहा है कॉलेज से आते समय एटीएम से ४० हज़ार निकाल ले आने को”

अनिमेष-“कब तक लेके आना है माँ मैं तो शाम को ही आता हूँ ना कॉलेज से”

लेखा-“आज दोपहर में ही आ जाना ना कॉलेज से”

अनिमेष-“ठीक है माँ वैसे भी कमल भैया भी जल्दी निकल जाएँगे तो मैं भी पैसे लेके आ जाउंगा”

लेखा-“ठीक है बेटा” और लेखा फ़ोन रख देती है,

लेखा मन में सोचती है और उसको आज का दिन सही लगता है अनी से अकेले में बात करने की योजना, लेकिन तभी ग्राहक आते है और वो उनको समान देने में लग जाती है,
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रमेश खेतों में मचान के ऊपर आराम करते करते सोचने लगा, आज तो बहुत गर्मी है, लगता है आज ज़्यादा लोग नहीं आए खेतों में, और अपने खेतों में लगे गेहूं को देखने लगा साथ ही बगल के खेतों के चारों बाजू में लगे बाजरे की ऊँची फसल को देखने लगा,

सुस्ताते हुए उसने जब अपने मोबाइल में समय देखा तो दोपहर हो चुका था उसे अचानक याद आया कि बहू दोपहर का खाना लेकर आ रही होगी, बहू का ख्याल आते ही उसका लंड खड़ा होने लगा और रोंगटे भी खड़े हो गए, उसने धीरे से मस्ती में मचल के कहा “बहू तेरी चूत”

रमेश को अपने मुंह से यह शब्द सुनकर इतना रोमांच हुआ कि उसने अपना हाथ पजामे के ऊपर से ही अपने लंड पर रखा और जोर से बोला "बहू आज खेत में चुदवा ले अपने ससुर से”, अब रमेश और उत्तेजित हो उठा और चिल्लाया “बहू आज अपनी चूत लेके आ मेरे पास देख तेरा ससुर हाथ में लंड लेके बैठा है”,

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रमेश खेतों में मचान के ऊपर लेटा पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और ऐसे गंदे शब्द अपनी बहू के लिए बोलकर अपने आप को और ज़्यादा गर्म कर रहा था, अपनी बहू की चूत की कल्पना करके रमेश पागल हुआ जा रहा था,

उसका लंड तनकर पूरी तरह से खड़ा हो चुका था, सुनसान जगह का फायदा उठा कर रमेश जोर जोर से ख़ुद से बाते करता हुआ अपनी बहू की चूत की तारीफ़ करने लगा, दस मिनट ही हुए थे की उसे अपनी बहू दूर से आती दिखी और रमेश आँखे बंद कर आराम करने का नाटक करने लगा,

कुछ देर बाद चंचल मचान के नीचे आके चिल्लाकर आवाज लगाने लगी “बाबू जी नीचे आइए मैं खाना लेके आई हूँ” पर रमेश थोड़ी देर शांत रहा जैसे नींद में है, फिर अचानक से उठते हुए नीचे अपनी बहू को देखा और नीचे आने लगा,

मन में अपने बहू के लिए गंदे विचारो की वजह से रमेश चंचल से नजरे नहीं मिला रहा था, फिर चंचल ने अपने ससुर से कहा “बाबू जी आज खाना यही नीचे बैठे खाना है या ऊपर ले चालू मचान में” जैसे ही रमेश नीचे पहुँचा तो उसके माथे के पसीने को देख के चंचल फिर बोली “बाबू जी आज गर्मी बहुत है आज तो आपको बहुत गर्मी लग रही होगी लाइये मैं पहले आपके पसीने पोछ देती हूँ उसके बाद आप हाथ मुंह धोने चले जाना”

और अपने ससुर के चेहरे के पसीने को प्यार से पास जाके उसके गमछे से पोछने लगी, फिर रमेश वहाँ से पैर हाथ धोने चला गया वहाँ पहुँच रमेश अपने बहू के व्यवहार से अचंभित था कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा और पाँच मिनट बाद वापस आके अपने बहू के साथ नीचे ही खाने बैठ गया जो उसे निकाल के थाली में परोस रही थी,

चंचल को अपने ससुर को खाना खिलाने के बाद उसके मन में ये इक्षा हो रही थीं की बाबू जी किसी बहाने उनको यहाँ रोके पर उसके ससुर कुछ नहीं कह रहे तो चंचल को ही कहना पड़ा “बाबू जी आज तो गर्मी है तो बाक़ी खेत वाले भी आए है या नहीं”

रमेश-“आए थे पर वो लोग शायद घर चले गए खाने के लिये और मुझे नहीं लगता है अब आने वाले होंगे”

चंचल-“तो बाबू जी क्यों ना सब्ज़ी वाले खेतों से होते हुए पीछे के नहर से घूम आए आज, बड़े दिन हो गए वहाँ गए”

रमेश-“ठीक है बहू अभी एक आध घंटे यही ऊपर थोड़ा आराम कर लो घर पे भी कोई होगा नहीं तो आराम से चल पड़ेंगे”

चंचल-“ठीक है बाबू जी” और बर्तन एक तरफ़ बाजू में रख ऊपर मचान की तरफ़ जाने लगी,

नीचे रमेश पम्प वाले रूम की तरफ़ जाने लगा वहाँ आराम करने के लिए और यहाँ ऊपर चंचल जैसे ही पहुँची उसने अपने ससुर का फ़ोन देखा जिसमे कुछ छूटी कॉल थी, चंचल ने सोचा बाबू जी को आवाज़ लगा के उनका फ़ोन वापस करदे पर फिर पता नहीं क्या दिमाग़ में आया उसने फ़ोन में कुछ कुछ देखने लगी जैसे फोटो और वीडियो जिनमें सब साधारण था कुछ अलग नहीं था,

फिर तभी अचानक चंचल से क्रोम ब्राउज़र खुल गया जिसमे उसने कुछ अजीब देखा जैसे कुछ नंगी तस्वीरे और अश्लील वीडियो सामने आ गई, उसने उसपे उतना ध्यान नहीं दिया जितना अभी वो उस कहानी पे दे रही थी जिसका शीर्षक था “ससुर बहू की प्रेमलीला”

चंचल के लिए ये अनुभव नया होने वाला था उसे अपने ससुर की हरकत पे कोई ज़्यादा सक नहीं था पर अब ये सक यकीन में बदल रहा था की उसके ससुर उसके प्रति एक आकर्षण रखते है उनका लक्ष्य चंचल को साफ़ नज़र आने लगा था की कहीं ना कहीं उसके ससुर अपने ही बहू को चोदना चाहते है,

चंचल भी इन सब से दूर नहीं हो पा रही थी वो भी धीरे धीरे अब इस जाल में फसती चली जा रही थी वो ना चाहते हुए कहानी के कुछ अंस पड़ने लग जाती है जिससे उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी नीचे उसका ससुर अपने फ़ोन की तलास में नीचे आ चुका था वो अपने बहू को आवाज़ लगाए बिना सीढ़ियों से ऊपर की तरफ़ चड़ने की सोच रहा था,

इससे अनजान चंचल की उसका ससुर ऊपर आ सकता है वो अब धीरे से कहानी पढ़ते हुए अपने एक हाथ को साड़ी के अंदर से गठीले और गोरे जांघो को सहलाने लगी थी, चंचल की काम वासना जाग रही थी उसकी चूत में हल्का सा एक टीस उठा जिससे एक बूँद चूत से बाहर आ गई,

जिसका आभास होते ही तुरंत चंचल ने साड़ी को जांघो से हटाके अच्छे से अपने हाथ को चड्डी के अंदर ले जाके चूत को ऊपर से सहलाने लग जाती है,

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चंचल के लिए उसको लगने लगा ये एक कहानी नहीं बल्कि ये उसके साथ घटित हुई हो और कहानी को पढ़ते हुए अपनी चूत को अंदर तक रगड़ने लगी जिससे उसकी एक आह निकल गई,

नीचे रमेश ने खेतों की तरफ़ देखते हुए शांत माहौल में जैसे ही उसने एक आह की आवाज़ सुनी उसे कोई संदेह नहीं हुआ ये कहा से आई उसने नज़र तुरंत ऊपर दौड़ाई और बिना आवाज़ किए ऊपर की तरफ़ चड़ने लगा, रमेश बिना किसी ज़्यादा आवाज़ किए धीरे से ऊपर की तरफ़ पहुँचने लगा,

ऊपर पहुँच जैसे ही पहली नज़र उसने अपने बहू को देखा तो उसे अपने आँखो पे यकीन ही नहीं हुआ, सामने उसकी अपनी बड़ी बहू उसका फोन लिए उसपे कुछ देख रही थी और एक हाथ को अपने चड्डी के अंदर ले जाके अपनी चूत को रगड़ रगड़ के आह भर रही है,

उसे सबसे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब उसने अपने बहु के मुँह से ये सुना “आह बाबू जी आप क्यों नहीं आ रहे मेरे पास, यहाँ आपकी बहू चूत सहला रही और आप नीचे आराम कर रहे”

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चंचल को थोड़ा भी अंदाज़ा नहीं था उसके ससुर जो बाजू में खड़े उसकी हर एक बात ध्यान से सुन रहे है,

आज के लिए इतना ही दोस्तों देरी के लिए माफी 🙏

जल्द ही मिलते है अगले अध्याय में।
Haaaay daaaaya......
Lagta ha ab Chudai jada dur nhi ha, koi Matherchod, koi Betichod, koi Bahenchod banna bala ha.....

Ghar to ab laghvag khali ha....
Or sayad is doran Ani ki apni Mummy sa accha rista ban jaya....
Or oh Matherchod ban jaya....

Or Ramesh apni beti jasi Bahu, Kamal ki Maa chodka, Betichod ban jaya......
Or oh to apni Bahu ki nam ki muth vi laga raha ha...
Or Kamal ki Maa, apni Papaji ki nam sa Apni Yoni ki daba rhi ha....
Sayad aaj keth ma Chudai ho hi jaya......

Or aa Nathkhat Bahen Rinki, aa to apni Bhai ko Bahenchod bana ka hi mana ga.....
Jab dekho apni Bhai ki jasusi kar raha ha, Bibi ki tarha....
Chalo dekhta ha....
Kon kisko kiya banata ha....
Or kon kiski Maa Chodka kiya banta ha....
Daaaaya raaaaaa.......


Jabardas Update......

❤❤❤❤❤❤👍👍👍👍👍👍🤤🤤🤤🤤🤤
 

insotter

👑
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Koi jaldi nhi ha Insotter ji.....
Aap aram sa, Seduced kar kar ka, inki Chudai kariya.....
Slowly Slowly, Pura Seduced karka....
Kuki Gharalu Aurat ha na savi ka savi, to inka jabardas Seduction hona jaruri ha, Chudai sa pahala.....
Taki pura feeling ayi Gharalu Mummy ki.....
Nhi to laga ga ki koi Randi chud rhi ha.....
Daaaaya raaaaaa.....


❤❤❤❤❤❤👍👍👍👍👍👍🤤🤤🤤🤤🤤
Yakeen maniye aapko kisi aurat ko chudte dekh kar jara bhi nahi lagega wo randi wali harkat kar rahi jab tak use kisi ne chheda na ho
 
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Thank you so much for your precious comments 🙏
 
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अध्याय-9
पहला हथियार

दोनों भाई बहन अपनी भावनाओं को अंदर रखे बिल्कुल शांत बैठे थे, थोड़ी देर तक शांति के बाद एक आवाज आई “बस निकलने वाला है किसी का जानकर बाहर हो तो बुला लो”
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शाम के पाँच बज चुके थे बस गाँव में पहुँच चुकी थी दोनों भाई बहन बस से उतर चुके थे तब से लेकर अब तक दोनो में कोई बातचीत नहीं हुई थी,

घर की तरफ़ बड़ते हुए रिंकी ने कमल से कहा-“भाई आप गुस्सा तो नहीं हो ना”

कमल-“नहीं तो मैं क्यों गुस्सा होऊँगा”

रिंकी-“मुझे लगा आप किताब को लेके गुस्सा ना हो जाओ घर पहुँच के मैं वो आपको वापस कर दूँगी”

कमल-“हा वो मुझे तुम वापस कर देना तेरे पास रखना सही नहीं है, किसी और ने देख लिए तो गड़बड़ ना हो जाए”

रिंकी-“लो भाई हम तो घर भी आ गए”

दोनों भाई बहन जैसे ही घर पहुँचे वहाँ उनकी मुलाक़ात चंचल, लेखा और उनके दादा जी से हो गई सभी चाय पीते घर के बाहर बरामदे में बैठे बात कर रहे थे,

चंचल-“बड़ी जल्दी आ गए तुम लोग बाज़ार से”

लेखा-“ये लोग कॉलेज नहीं गए थे क्या”

कमल-“चाची हम कॉलेज गए थे पर दोपहर में बाज़ार चले गए रिंकी को कुछ समान खरीदना था तो”

लेखा-“अच्छा ठीक है मुझे पता नहीं था बेटा इस लिए पूछ बैठी रिंकी क्या लेके आई बाज़ार से”

रिंकी-“कुछ ख़ास नहीं बड़ी माँ वही कॉलेज के लिए जरूरी समान और श्रृंगार समान बस”

रमेश-“अरे अब उनको जाने भी दो जाओ बेटा तुम दोनों और जल्दी से चाय पीने बाहर आ जाओ” और अपनी चाय की चुस्की लेने लगा,

दोनों भाई बहन ने एक साथ कहा ठीक है दादा जी,
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अब चलते है कुछ घंटे पहले जब लेखा दुकान में थी और अनिमेष के लंड में क्रीम लगाने वाली थी,

अनिमेष दवाई लेने जैसे ही हाथ बड़ाया लेखा ने हाथ पीछे करते हुए कहा “बड़ा मतलबी है रे तू अपनी माँ को प्यार से बोलके फसा रहा ना” और अपने हाथ में क्रीम को लेकर उसे अपने बेटे के लंड की तरफ़ बड़ा दी,

लेखा-“तू आँखे बंद कर मैं क्रीम लगा रही हूँ”

अनिमेष-“ठीक है माँ आप जल्दी से क्रीम लगाओ ताकि मुझे थोड़ा जल्दी आराम मिले”

लेखा अब हल्के से अनिमेष के लंड के टोपे को खोलते हुए क्रीम लगाते हुए पूछती है-“यहाँ दर्द हों रहा है क्या” और लंड पे हलचल होता देखती है,

अनिमेष अपने लंड पें पहली बार किसी औरत के हाथ का स्पर्श पा कर ख़ुद पे संयम खो देता है और उसके लंड ने एक ठुमका मार देता है और उसके मुह से बस एक ही शब्द निकलता है-“हाँ मां” और उसकी आँखे बंद हो जाती है,

लेखा अब उसके लंड पे क्रीम पूरी तरह लगा देती है फिर उसे मलने लगती है और देखती है अनी ने अपनी आँखे बंद कर रखी है, साथ ही वो अपने एक हाथ को साड़ी के ऊपर रख अपनी चूत को मसलने लगती है,

लेखा भी अब अपने आपे से बाहर हो रही थी उसे भी अब अपनी चूत खुले में मसलनी थी, उसने अनिमेष से कहा-“हो गया लग गया क्रीम अब तू थोड़ा आराम कर फिर दर्द ठीक हो जाएगा”

अनिमेष-“माँ दर्द तो ठीक हो जाएगा पर ये खड़ा है उसका क्या करूँ इसे तो शांत करना पड़ेगा ना”

लेखा-“हा तो ख़ुद हिला के करले मैं उस तरफ़ जा रही हूँ”

अनिमेष-"आप फिर कहीं और जा रही यही रहो ना माँ वैसे आपने मुझे पहले भी देखा है ना हिलाते हुए”

लेखा-“बेटा देखा है पर वो गलती से देखा था जानबूझ के नहीं”

अनिमेष-“तो अब देख लो ना माँ, देखो कैसे खड़ा है ये इसे शांत करने में मदद करो ना माँ”

लेखा-“बड़ा ही ढीड़ है तू ठीक है चल हिला देख रही मैं”

अनिमेष-“माँ उतने गुस्से में मत देखो मैं कोई गुनाह थोड़े कर रहा बस अपनी तकलीफ़ आपको बता के उसको दूर कर रहा हूँ”

लेखा-“ठीक है मैं गुस्सा नहीं हूँ अब तू जल्दी से शांत हो बस”

अनिमेष अब जोर से अपने लंड को हिलाने लग जाता है जिसे देख लेखा ख़ुद पे काबू नहीं कर पा रही थी वो बस अपने बेटे को लंड मसलते देख रही थी,

अनिमेष-“आह माँ कितना अच्छा लग रहा है ऐसा लग रहा ये समय यू ही बस चलता रहे”

लेखा अपने बेटे से नज़रे बचा के अपनी चूत को भी बीच बीच में सहलाते जा रही थी,

लेखा-“और कितना समय लगेगा तेरा शांत होने में”

अनिमेष-“माँ मुझे थोड़ा समय लगता है जब कुछ सामने हो रहा हो तो और जल्दी निकल सकता है जैसे उस दिन देखा था आपको और पापा को”

लेखा-“तू उस दिन की बात मत ला बस अपना हिला के जल्दी ला वरना मैं भी बहक नहीं जाऊ”

अनिमेष-“तो आप ही मेरे साथ करलो ना माँ मैंने कब मना किया है”

लेखा अपने बेटे का जवाब सुनके एक सेकंड के लिए सोचती है इसी के साथ अपना पानी भी निकाल लू, पर फिर ख़ुद पर काबू करते हुए कहती है-“नहीं मैं बाद में कर लूंगी तू अभी जल्दी कर हमे आराम भी करना है”

अनिमेष-“माँ मेरा तो आ नहीं जब तक मैं आपको उस रूप में ना देखू जो मेरे ख्यालों में आता है”

लेखा-“ओह हो तू भी ना बहुत शैतान हो चुका है अब और क्या करना पड़ेगा मुझे बता”

अनिमेष-“माँ बस एक बार अपनी वो दिखाओ ना” लेखा के चुचो की तरफ़ इशारा करते हुए”

लेखा -“अनी तू होश में है क्या कह रहा अपनी माँ से”

अनिमेष-“माफ़ करना माँ मेरा तभी जल्दी शांत होगा जब मैं आपका पहले वाला रूप देखूँगा”

लेखा-“हे भगवान ये लड़का भी ना आज पता नहीं मुझसे क्या क्या कराएगा” और अपने ब्लाउज़ के हुक्क खोलने लगती है “ले देख और कर शांत”

लेखा जो भी कर रही थी ये हो तो उसके बेटे के हिसाब से रहा था पर कहीं ना कहीं वो ये चाह भी रही थी तभी तो अपने बेटे की हर बात मान रही थी, वो तो यहाँ तक सोच बैठी थी की उसका बेटा अगर उसकी चूत के लिए भी बोलेगा तो वो भी कर देगी,

अनिमेष-“आह माँ बस ऐसे ही रहो थोड़ा और पास आइए ना” लेखा थोड़ा और पास आ जाती है अनिमेष एक हाथ से हिलाते हुए अपनी माँ के एक चूचे में हाथ रख देता है, लेखा दूर हटती है पर अनी उसे फिर से जिद्द करके पास बुला के अब अपनी माँ के चूचो को और अच्छे से सहलाते हुए अपने लंड को हिलाने लगता है,

लेखा अब अपना होश खो रही थी उसे किसी तरह अपनी चूत को भी छूना था पर वो नहीं कर पा रही थी बस अपनी टांगो को हिला के ख़ुद को रोके हुए थी, यहाँ अनिमेष अब लगातार अपने लंड को हिलाये जा रहा था जिसे लेखा बस मदहोशी में देखे जा रही थी,

अनिमेष-“माँ थोड़ी मदद करो ना आप एक बार और दवाई को अच्छे से लगाओ ना”

लेखा अपने बेटे के भावनाओ को अच्छे से समझ रही थी उसने भी बिना कुछ कहे उसके लंड को पकड़ के हिलाना सुरु कर दी, ये पहली बार था जब लेखा ने अपने पति के अलावा किसी और के लण्ङ को इस तरह हिलाया था,
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उसके बेटे ने एक आह भरी “ओह माँ कितना आराम मिल रहा रहा आपके हाथो से बस ऐसे करते रहिए मुझे आराम मिल रहा है”,

अनिमेष अपने चरम सुख की ओर बढ़ चला था वो अपने माँ के कोमल हाथों का स्पर्श अपने लंड पे पाके धन्य हो चुका था उसे लगने लगा अभी कभी भी वो झड़ सकता है, लेखा अब तेजी से अपने बेटे के लंड को हिलाए जा रही थी “आह कैसा लग रहा बेटा उम्म आराम मिल रहा ना मेरे बेटे को बताओ”
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अनिमेष-“हा माँ मुझे आपके हाथो से बहुत आराम मिल रहा है बस अब शांत होने ही वाला है ऐसे ही करते रहिए” अनिमेष अपने एक हाथ को अपनी माँ के कमर में रख उसे अपनी ओर खिचने लगता है और लेखा आ भी जाती है,

अनिमेष तुरंत बिना समय बर्बाद किए अपने मुह को अपनी माँ के चुचो की तरफ़ बड़ा देता है,
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लेखा-“आह नहीं बेटा ये मत कर मैं कहीं कुछ ग़लत ना कर बैठू”

अनिमेष -“उम्म उम्म नहीं माँ मुझे पता है आपको भी अच्छा लग रहा है और मुझे तो और भी ज़्यादा”

लेखा-“बेटा ऐसा मत कर नहीं तो मैं अब सच में बहक जाऊँगी”

अनिमेष-“बस मेरा होने वाला है माँ”

लेखा के लगातार हिलाते रहने के मेहनत ने आख़िर कर अपना रंग ला ही दिया अनिमेष भल भला के लगातार लेखा के हाथो में झड़ने लगा, अनिमेष के मुह से बस “आह माँ अब अच्छा लग रहा है जो मैं नहीं निकाल पाया,
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लेखा अपने हाथों को फिर दूर करते हुए होश में आते ही वहाँ से निकल अपने हाथो को साफ़ करने लगी और कपड़ों को ठीक करते हुए अनिमेष से कहा “तू अब आराम कर थोड़े देर में साथ घर चलेंगे”

अनिमेष आखे बंद किए हुए ही बोला “बहुत बहुत धन्यवाद माँ आपने मेरी इतनी मदद की” और उसी तरह सोता रहा,

अनिमेष के सोते ही बिस्तर और कूलर के बीच नीचे बैठ लेखा ने अपनी नजर अपने बेटे के चेहरे में देखते हुए एक बार अपनी चूत को छू के देखा जो पूरी तरह रस से भर चुकी थी
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वो आगे कुछ करती उससे पहले ही,

थोड़ी देर बाद उस व्यापारी के आने के बाद उससे सामान लिए और उसे पैसे देकर वो भी थोड़ा आराम की, फिर पाँच बजे से पहले दोनों माँ बेटे घर के लिए निकल गए,
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वह खेतों में चंचल अपनी कमर उचकाते हुए लगातार अपने ससुर के मुँह में झड़ती चली गई,

और आँखे बंद कर वही चित्त होकर लेटी रही और अपने साँसो को काबू करते हुए उसके कमर अब भी झटके से धीरे धीरे हिल रहे थे, उसका ससुर भी अब अपने मुंह पर लगे उसके बहु के चुतरश को अपने हाथों से साफ़ करते हुए उसके बगल में लेट गया और साँसो को आराम देने लगा,

चंचल ने शर्म से रमेश की तरफ़ पीठ करके उसी अवस्था में लेट गई वो अब वास्तविक दुनिया में आने लगी उसे लगने लगा उसने इतना बड़ा पाप कैसे होने दिया,

रमेश अब अपने खड़े लंड को बाहर निकाल उसे मसलने लगा जो अभी भी बिल्कुल तनकर खड़ा था जैसे अपनी बहू को सलामी दे रहा हो,

उसने बहू के एक हाथ को पकड़ उसने अपने लंड पे रखना चाहा पर चंचल ने शांत रहकर ही अपना हाथ हटा लिया, रमेश ने अपने बहू का हाथ फिर से पकड़ के अपने खड़े लंड पे रखा और उसी के साथ उसे हिलाने लगा,

चंचल अपने हाथों में एक तगड़े लंड को पकड़ कर फिर से वापस हवस की दुनिया में जाने लगी, और इस बार लंड से हाथ ना हटा के अपने ससुर का साथ देने लगी, रमेश ने धीरे से अपने हाथ को हटा लिया और अपने बहू के कोमल हाथों को अपने लंड पर चलते महसूस करने लगा,
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रमेश-“आह बहू तुम्हारी हाथों में क्या जादू है” साथ ही अपने एक हाथ को फिर से अपने बहू के चूत के ऊपर रख दिया,

चंचल बिना कुछ बोले अब लगातार अपने ससुर के लंड को हिलाती रही फिर रमेश उठ कर बैठ गया और अपने ऊपर के कपड़े निकाल बाजू में रख दिया और ऊपर से पूरा नंगा हो गया, साथ ही उसने चंचल के कपड़ों को भी उसके बदन से दूर करना चाहा पर चंचल ने खुद ही सब जल्दी से कर ली,

चंचल का हाथ अब उसके लंड के ऊपर ही था फिर जो अचानक हुआ उसकी चंचल को कोई उम्मीद नहीं थी, उसके ससुर ने उसके सर को पकड़ अपने लंड की तरफ़ झुकाने लगा, जैसे कह रहा हो अब मेरा पानी भी अपने मुँह से निकल दो बहू,

चंचल भी उनका साथ देते हुए अपने ससुर के लंड पे झुकती चली गई धीरे धीरे उसके मुंह में उसने अपने ससुर के बड़े मोटे लंबे लंड को आँखे फाड़ते अंदर जाते देखने लगी, वो अब पूरी मस्ती में आ चुकी थी और उसने अपने ससुर के लंड से पानी को निकालने की ठान ली,
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फिर चंचल ने अपने दोनों हाथों से अपने ससुर के लंड को पकड़ के अपने पूरे मुँह में ले के अंदर बाहर करना शुरु कर दी,

रमेश-“आह बहू क्या जादू है तुम्हारे मुंह में”

चंचल लंड से मुंह हटाते हुए बोली-“आपको अच्छा लग रहा बाबू जी” और लंड को मुह में लेके फिर से चुभलाने लगती है कभी पूरा जीभ से चाटती तो कभी टोपे को कुरेदती है,

रमेश-“हा बहू बिल्कुल तुम्हारी मुंह में मेरे लंड का होना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं है आह कितना अच्छा लग रहा है बस ऐसे ही चूसती रहो”

चंचल-“बाबू जी आप ऐसे गंदे शब्द मत कहो मुझे अभी थोड़ी शर्म लग रही”

रमेश-“बहू तुम ही बताओ फिर मैं लंड को लंड और चूत को चूत नहीं बोलूँगा तो क्या बोलूँगा”

चंचल बिना कुछ कहे अपने जीभ और मुंह से लगातार अपने ससुर के लंड पर कहर बरसा रही थी, रमेश के लिए ये पल एक अनोखा एहसास दे रहा था, जिसे उसने कभी महसूस नहीं किया और मादक आवाज निकालते हुए उसने अपने हाथ के एक उंगली को चूत में डालकर थोड़ा अंदर की तरफ जोर दे दिया,

चंचल की चूत इस एहसास से की उसके चूत में उसके ससुर ने उँगली डाल दी है, अपनी चूत को सिकोड़ने लग जाती है जिसका पता अब उसके ससुर को अच्छे से हो रहा था,

चंचल अपनी जीभ को निकाल पूरे लंड को चाटती फिर पूरे लंड को एक बार में अपने मुँह में ले लेती,
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रमेश-“आह बहू ऐसे ही बहुत अच्छा लग रहा मुझसे अब रुका नहीं जाएगा, तुम्हारे मुह ने मेरे लंड को अब और ज़्यादा सख़्त बना दिया है”

वही मचान के ऊपर रमेश अब खड़ा हो जाता है और अपने पजामे को निकाल फेकता है फिर चंचल को अपने सामने घुटने पर बैठा देता है और उसके मुंह में फिर से लंड घुसा देता है, बीच बीच में चंचल के सर को पकड़ उसके मुंह को भी चोदने लगता है, रमेश खुशी के साथ सातवे आसमान में पहुँच चुका था,
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नीचे बैठी चंचल एक हाथ से अपने ससुर के आँखों में देखते हुए उसके लंड को पकड़ मुठियाते हुए फिर लंड को चाटती और चूसती जाती है, और दूसरे हाथ से अपनी छूत के दाने को कुरेदने लगती है, अब चंचल को फिर से अपनी छूट से पानी निकालने की चुल्ल मचने लगी,
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रमेश-“बहू अब मैं तुम्हारी चुचियों को चोदना चाहता हूँ इसे अपने दोनों हाथों से पकड़ो ना”

चंचल अपने ससुर की बातो को मानते हुए अपने हाथो से बड़े बड़े दोनों चुचो को पकड़ लेती है और अपने ससुर के लंड को दोनों के बीच घुसा के उनको पूरा मजे देने शुरू करती है,
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चंचल-“अब ठीक है बाबू जी मजा आ रहा है ना आपको”
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रमेश आँखे बंद कर चुचो की चूदाई करते हुए -“आह बहू पूछो ही मत मुझे कितना मजा आ रहा है ऐसा मजा आज से पहले कभी नहीं आया था” और लगातार चंचल के चुचो को चोदने लगता है,
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चंचल भी बीच बीच में अपने ससुर के लंड को जीभ से चाट लेती है,

थोड़े देर बाद रमेश-“आह बहू मैं अब और नहीं रुक सकता हूँ मेरा लंड तुम्हारी चूत को पाना चाह रहा है और उसे वही सामने घुटने नीचे कर आगे झुकने बोलता है,

चंचल का शरीर अब हवस से भर चुका था रोम रोम बस एक ही चीज की माँग रही थी लंड, जिसकी चाहत ने उसे सामने घुटनो पे झुकने पे मजबूर कर दिया, वो सब कुछ भूल चुकी थी कि कहा और किसके साथ है अब तो उसे बस लंड की मोटाई और लंबाई ही दिखाई दे रही थी,

रमेश भी झुक कर एक बार अपनी जुबान को चूत से लगा कर उसे बाहर से ही एक बार अच्छे से चूस लेता है, चंचल इस हमले से पूरी तरह गनगना जाती है और उसकी चूत की प्यास और बड़ जाती है,

फिर खड़े होकर अपने लंड को अपनी बहू की चुत में बाहर लगा देता है,

ये पहली बार है जब किसी और मर्द ने चंचल की चूत को पाने का रास्ता पार कर लिया था, उसे पता था वो पल दूर नहीं जब उसकी चूत एक नए लंड को अपने अंदर समाने वाली थी, उसे अपने चूत का नया मालिक मिलने वाला था,

चंचल अब तन और मन से पूरी तरह अपने ससुर के लंड को अपनाने को तैयार हो चुकी थी वो सामने झुकी हुई अब इस आनंद के लिए बिल्कुल तैयार थी, पीछे से उसके ससुर ने कमर पे एक हाथ रख दूसरे हाथ से लंड को अपनी बहू की चुत के ऊपर ही रगड़ना शुरू किया,
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चंचल ने एक मधुर आह भरी जो आसपास को और मादक बना रहा था उसके ससुर ने अब धीरे से रगड़ते हुए अंदर डालना शुरू किया और ससुर बहू ने एक साथ मादक स्वर में कहा

चंचल-“आह बाबू जी अब बस अपने सपने को पूरा कीजिए और बिना चूके लगातार अपने हथियार से मेरी मुनिया को चीर दीजिए आह माँ ये अहसास कितना अच्छा है”

रमेश-“आह बहू तुम्हारी चूत इतनी गीली हो चुकी है मेरा लंड तो फिसलते हुए अंदर जा रहा है”

फिर एक बार अच्छे से पूरा अंदर डालने के बाद थोड़ा बाहर निकाल के फिर से चंचल के ससुर ने पूरा लंड उसके चुत में भर दिया और अपनी रफ़्तार पकड़नी शुरू किया,
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चंचल ने आह भरते हुए अपने एक हाथ को पीछे ले जाकर अपनी गांड को पकड़ बाहर की तरफ़ खिचने लगी जिससे उसके ससुर का लंड और अच्छे से अंदर बाहर हो सके, फिर नीचे दूसरी हाथ से अपनी चूत को लंड के साथ सहलाना भी शुरू कर दी,

चंचल-“ओह आह ऊह बाबू जी थोड़ा तेज मारिये ना बड़ा मजा आ रहा है, आह माँ ओह बाबू जी और जल्दी जल्दी करिए, हा ऐसे ही वैसे भी इस तरह का ये मेरा पहला हथियार है”
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रमेश-“ओह बहू तुम तो सच में बहुत गर्म औरत हो मुझे नहीं लगा था तुम्हें मैं कभी चोद पाऊँगा”

चंचल-“आह बाबू जी अब मिल गई तो करते रहिए बिना रुके” और अपनी गांड को पीछे धकेलने लगी,

रमेश अपनी बहू की गांड को सहलाते हुए उसे चोदे जा रहा था ये अहसास सोच कर ही की वो आज अपनी बड़ी बहू को चोद रहा है उसके लंड में जरा भी नरमी नहीं थी, वो बस चोदे जा रहा था,

थोड़ी देर बाद लंड को बाहर निकाल रमेश अपनी बहू को लेटने को कहता है चंचल तो बिल्कुल होश में नहीं थी बिना ज़्यादा समय गवाये तुरंत अपने ससुर के सामने लेट जाती है उसके दोनों टांगो को अगल बगल में कर रमेश अपनी बहू के ऊपर चड़ जाता है,
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और अपनी बहू को चूमने से पहले चंचल से कहता है “बहू लंड को रास्ता दिखाओ ना अपनी चूत का” और उसके होठों को चूमने लगता है, चंचल आँखे बंद किए तुरंत हाथ नीचे ले जाकर अपने हाथों से ससुर जी का लंड मुट्ठी में पकड़ के सीधे चूत की तरफ़ ले जाती है,

रमेश अब बिना समय गवाये अपनी बहू की चूत का भोसड़ा बनाना शुरू कर देता है उसके झटके इतने तेज हो चुके थे की चंचल को भी अब दर्द का अहसास हो रहा था,
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चंचल-“आह बाबू जी दर्द हो रहा है पर आप अब तेज रफ़्तार को रोकिए मत और ऐसे ही करते रहिए आह बाबू जी बहुत अच्छा लग रहा है आह ओह माँ मेरा आने ही वाला है हा और तेज और तेज आह ह ह ह ह ह माँ” और अपने आप को दोबारा से झड़ते महसूस करने लगती है,

रमेश भी अब लगातार इसी तरह पाँच मिनट चोदने के बाद अपने लंड पे तनाव महसूस करता है उसने चंचल से कहा “आह बहू लगता है मेरा भी आने वाला है,
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चंचल-“हा बाबू जी और तेज कीजिए आपका और ज़्यादा पानी आयेगा” चंचल ने अपने ससुर को बाहर निकालने को कहा,

रमेश को अगले पल जैसे ही लगा कि वह आने वाला है उसने अपने लंड को अपनी बहू की चूत से बाहर निकाल उसके पेट में लगातार पिचकारी मारते हुए झड़ने लगा,
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रमेश-“आह बहू लो मेरा पानी अपने ऊपर”

चंचल साथ देते हुए बोली-“हा बाबू जी दीजिए मुझे डालिए मेरे ऊपर”

रमेश अब पस्त होके अपने बहू के बगल में लेट गया और दोनों ससुर बहू मचान के छत की तरफ़ देखने लगे दोनों इतने थक चुके थे कि उनको पता ही नहीं चला और बिना अपने आप को ठीक किए उसी तरह उनकी आँख लग गई,

क़रीब घंटे भर बाद जब अचानक चंचल की नींद खुली तो उसे अपने हालात पर यकीन नहीं हुआ उसने मन ने सोचना शुरू किया चूत की भूख ने उसे आज ये क्या करवा दिया पर जैसे ही उसकी नजर अपने ससुर और उसके हल्के तने लंड पर गई थोड़ी शर्मा गई,

उसने कपड़ो को खोज के जल्दी से अपने आप को ठीक करना शुरू कर रही थी की तभी उसके ससुर भी उठ गए लेकिन जैसे ही आँख खुली और सामने का नजारा देखा तो वो अपनी बहू को कुछ बोल नहीं पाया, फिर अपने आप को ठीक करके तुरंत नीचे आ गया,
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हाथ पैर धोके वापस आया तो देखा उसकी बहू नीचे आ चुकी थी, उसने अपने बहू से कहा-“जाओ बहू हाथ मुंह दो आओ”

चंचल बिना कुछ बोले चली गई और वापस आके सामान समेट लिया जैसे ही अपने ससुर को घर जाने के लिए बताने वाली थी,

रमेश-“मुझे माफ करना बहू अगर आज मैंने जोश जोश में कुछ ग़लत किया हो तो”

चंचल बिना बोले एकटक कहीं और देख कुछ सोच रही थी फिर उसने अपने ससुर से कहा-“इसमें आपकी नहीं बाबू जी हम दोनों की ही गलती थी, जो भी हुआ दोनों की मर्जी से हुआ है और कहीं ना कहीं हम दोनों ही चाह रहे थे तो इसके लिए आप अपने आप को ग़लत मत बोलिए”

रमेश-“धन्यवाद बहू मुझे तो लग रहा था कहीं तुम बुरा ना मान जाओ”

चंचल-“ये छोड़िये बाबू जी समय देखिए आज तो मुझे बहुत देर हो गई घर का बाक़ी काम भी पहुँच के पूरा करना पड़ेगा”

रमेश-“मुझे ख़ुशी है बहू तुमने बुरा नहीं माना और ये बात हम दोनों के बीच ही रहेगी”

चंचल-“मैंने कहा ना बाबू जी आप ये सब छोड़िए अभी और आप भी चल रहे साथ में चलिए, अब आपको भी आराम की जरूरत है तो सीधे मेरे साथ घर चलिए” और हंसते हुए आगे बढ़ना चाही पर,

रमेश आगे बड़के सीधे अपने बहू को जाके गले लगा लेता है और कहता है-“तुम बड़ी बहू के साथ एक समझदार बेटी भी हो मेरे लिए कितना सोचने लग गई हो, धन्यवाद मेरी बेटी” और उसके गर्दन में एक चुम्मा दे देता है,

चंचल अचानक से अपने ससुर के इस हरकत से शर्मा जाती है और चुम्मा लेने के तुरंत बाद उन्हें दूर हटाते हुए कहती है “दूर हटिये बहु जी यहाँ कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी” और दोनों सीधे घर की तरफ़ चल पड़ते है।

आज के लिए इतना ही दोस्तो मिलते है अगले अध्याय में धन्यवाद 🙏
 
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